कई बार आलू की खेती से किसान अच्छाखासा मुनाफा कमाते हैं, लेकिन कभीकभार यही ज्यादा पैदावार किसानों के लिए घाटे का सौदा भी बन जाती है, इसलिए सब से पहले हमें आलू की बोआई में अच्छी किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए जो रोगरहित हों.
अभी जल्दी में ही केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने आलू की 3 नई किस्में तैयार की हैं. संस्थान द्वारा विकसित ये नई किस्में कुफरी गंगा, कुफरी नीलकंठ और कुफरी लीमा हैं. आलू की ये प्रजातियां मैदानी इलाकों में आसानी से पैदा होंगी. किसान आलू की नई किस्में लगा कर अच्छी पैदावार ले सकते हैं.
ये आलू पकने में आसान हैं और इन का स्वाद भी अच्छा है. कम समय में अधिक पैदावार होगी. 70 से 135 दिन की अलगअलग कुफरी किस्म की फसल से प्रति हेक्टेयर 350 से 400 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है.
देश के केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए अब तक 51 आलू की प्रजातियां विकसित की हैं. इन में से कुछ चुनिंदा किस्मों की जानकारी दी गई है. इन प्रजातियों को देश के अलगअलग इलाकों में लगाया जाता है.
देश की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के मुताबिक पूरे साल कहीं न कहीं आलू की खेती होती रहती है. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और हिमाचल प्रदेश आलू के उत्पादन में अग्रणी राज्य माने जाते हैं. देश में सब से ज्यादा आलू उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता?है. देश के कुल उत्पादन में 32 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है.
किसानों को चाहिए कि वे आलू की खेती करने के लिए अपने इलाके के हिसाब से बेहतर बीज का चुनाव करें और समय पर फसल बोएं. आलू बीज का आकार भी आलू की पैदावार में खासा माने रखता है.