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बड़े काम की खेती की मशीनें

पशु ताकत का इस्तेमाल खेती के कामों में दिनोंदिन कम हो रहा है, जिस के चलते इंजन, ट्रैक्टर, पावर टिलर व मोटरों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, लेकिन ऐसा कहना ठीक होगा कि देश में सभी पावर साधनों का इस्तेमाल होता रहेगा.

खेती की मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए एक लंबी योजना तैयार कर के उसे लागू करना होगा. मौजूदा संसाधनों व सामाजिक और माली हालात को ध्यान में रखते हुए छोटे किसानों को सही फार्म मशीनरी के चुनाव पर ज्यादा बल देना होगा. देश के ज्यादातर किसान छोटे किसानों की कैटीगरी में आते हैं, जो ज्यादा पावर वाले व कीमती ट्रैक्टरों को नहीं खरीद सकते.

अगर बीज की बोआई और रोपाई वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो पैदावार में औसतन 15 फीसदी की बढ़वार होती है. अगर खरपतवार की रोकथाम, कटाईमड़ाई, सिंचाई और धान या गेहूं व दलहनी फसलों की मड़ाई में वैज्ञानिक तकरीकों को अपनाया जाए तो पैदावार में काफी बढ़ोतरी हो सकती है.

मशीनीकरण व पावर के इस्तेमाल से पैदावार का सीधा संबंध है. भारतीय खेती में पशु पावर और खेतिहर मजदूर शामिल हैं. फिर भी छोटे व मध्यम दर्जे के किसानों के लिए यह पावर पूरी नहीं है. अगर प्रति हेक्टेयर मुहैया पावर को देखा जाए तो विकसित देशों के मुकाबले अभी भी हम काफी पिछड़े हुए हैं.

आधुनिक फार्म मशीनरी के इस्तेमाल से ज्यादातर खेतों से साल में कम से कम 2 फसलें लेना मुमकिन हो गया है. इस के साथसाथ बढि़या मशीनों, बीज व खाद को सही गहराई और दूरी पर डाल कर किसान पैदावार बढ़ाने में काबिल हो सकते हैं. प्रसार व ट्रेनिंग की कमी से किसानों में खेती की मशीनों के प्रति जानकारी की कमी, समय पर बैंकों से लोन हासिल न होना और अच्छी फार्म मशीनरी का समय पर मुहैया न होना वगैरह कुछ ऐसी वजहें हैं, जिन से फार्म मशीनरी का फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है.

खेती में मशीनों की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए ज्यादातर मशीनरी बनाने वाले किसानों को अच्छे ट्रैक्टर व फार्म मशीनरी मुहैया कराने में मददगार हो रहे हैं. किसानों के लिए आधुनिक फार्म मशीनरी मुहैया कराने व मशीनों की मरम्मत व देखभाल की सुविधा देने के लिए पूरे देश में ग्रामीण कारीगर हैं. इन ग्रामीण कारीगरों को मरम्मत की आधुनिकतम सुविधा मुहैया कराने की जरूरत है.

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खेती की पैदावार बढि़या मशीनों से कई गुना बढ़ाई जा सकती है जो ताकत का जरीया, अच्छे काम, काम करने वाले की थकान में कमी को ध्यान में रख कर मुमकिन हो सकता है. बहुत सी सरकारी व प्राइवेट कंपनियां और विश्वविद्यालय लगातार फार्म मशीनरी में सुधार का काम कर रहे हैं जो कि इनसानी थकान को कम व भविष्य में खेती के काम को पूरी तरह मशीनी तरीके से करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

बढि़या मशीनों द्वारा कम समय, पैसा, मेहनत और ऊर्जा का इस्तेमाल कर असरदार तरीके से कम थकान व बिना किसी नुकसान के खेती के काम को अंजाम दिया जा सकता है.

देश का कुल रकबा 328 मिलियन हेक्टेयर है, जिस में 142 मिलियन हेक्टेयर रकबे पर खेती होती है.

हालांकि किसान बढि़या बीज, खाद, फसल हिफाजत के तरीके, सिंचाई व ताकत का इस्तेमाल कर के पैदावार को बढ़ा रहे हैं, लेकिन अभी भी खेती की मशीनों का इस्तेमाल जानकारी की कमी में कम ही कर रहे हैं. नई व बढि़या मशीनों का इस्तेमाल कर के फसलों की पैदावार को काफी तक बढ़ाया जा सकता है.

हमारे देश में खेत छोटेछोटे हैं. खेतों का आकार छोेटा होने की वजह से किसान बड़ीबड़ी व ज्यादा कीमती मशीनें खरीदने और उन का इस्तेमाल करने में नाकाम हैं.

फार्म मशीनरी का इस्तेमाल खेत और दूसरी बातों पर निर्भर करता है. बीज, खाद व कैमिकल बहुत ही खर्चीले तरीके हैं, जिन का इस्तेमाल कर के पैदावार ज्यादा की जाती है.

इस बात को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी हो गया है कि सुधरे व विकसित फार्म मशीनरी का इस्तेमाल किया जाए जो कि बीजों की बोआई की दर पर जरूरत के मुताबिक कंट्रोल व खेत में बोआई समय से करें.

इनसान व पशु पावर स्रोत पर निर्भरता को कम करने के लिए यह जरूरी है कि खेती के कामों को पूरा करने के लिए आधुनिक फार्म मशीनरी का इस्तेमाल किया जाए.

साल 2000-01 में पशु पावर 16.38 फीसदी तक कम हुई व मशीनी पावर में 83.62 की बढ़ोतरी साल 1971-72 के मुकाबले में हुई है. प्रति हेक्टेयर खेती के मजदूरों की संख्या में 0.82-1.44 फीसदी की बढ़वार हुई है, लेकिन फिर भी प्रति हेक्टेयर खेती के मजदूरों की प्रति घंटे पिछले सालों में कई फसलों के लिए कमी पाई गई है.

यह अनुमानित किया गया है कि कुल ऊर्जा का 66-80 फीसदी हिस्सा ग्रामीण इलाकोें में घरों की देखभाल और 16-25 फीसदी खेती उत्पादन में इस्तेमाल होता है.

बिजली विभाग ने कुल बिजली का तकरीबन 85 फीसदी गांवों को मुहैया किया है. खेती में मशीनीकरण का हिस्सा तकरीबन

9-10 फीसदी तक है. खेती हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो कि कुल पैदावार का तकरीबन 25 फीसदी है.पिछले 10 दशकों में फार्म मशीनरी का इस्तेमाल बहुत ही ज्यादा हुआ है. आज के समय में तकरीबन 126 लाख ट्रैक्टर, 9650 कंबाइन, 38.8 लाख थ्रेशर व 168 लाख सिंचाई के पंप हैं. फार्म मशीनरी कई खेती के कामों जैसे जुताई, बोआई, फसल हिफाजत व गहाई, जोकि तकरीबन 41 फीसदी, 30 फीसदी, 35 फीसदी तक हर किसी के लिए है.

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इन बातों को ध्यान में रखते हुए यह बहुत जरूरी है कि बढि़या फार्म मशीनरी को गंवई इलाके में खेती के कामों के लिए इस्तेमाल किया जाए, जिस से उत्पादकता को ज्यादा व फसलों की पैदावार में लगने वाले माली बजट को कम किया जाए.

सरकार द्वारा छोटे और मध्यम कैटीगरी के फार्म मशीनरी बनाने वाले को काफी सुविधाएं दी जा रही हैं. कईर् निर्माता किसानों के लिए ट्रेनिंग का भी प्रावधान रखते हैं, जिस से किसानों को फार्म मशीनरी के इस्तेमाल, देखभाल और मरम्मत की जानकारी हो सके.

घर पर बनाएं स्वीट कार्न की सब्जी

आज आपको कार्न की सब्जी बनाने की रेसिपी बताते हैं. जो  बहुत ही टेस्टी है और बनाने में  उतना ही आसान है. तो आईए जानते हैं स्वीट कार्न बनाने की सब्जी.

सामग्री

1 चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट

1 चम्मच काजू का पेस्ट

1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर

1 चम्मच गरम मसाला

1 कप मकाई के दाने (उबले हुए)

1 प्याज बारीक कटा

2 टमाटर बारीक कटे

नमक स्वादानुसार

तेल

बारीक कटी हरी धनिया

1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

1 छोटा चम्मच जीरा

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बनाने की वि​धि

एक पैन को गर्म करें  और उसमें थोड़ा तेल डालें. जब तेल हल्का गर्म हो, तो उसमें एक चम्मच जीरा डालें.

फिर कटा हुआ प्याज और लहसुन-अदरक का पेस्ट डालें और धीमी आंच पर इन्हें पकाएं.

जब प्याज का रंग हल्का सुनहरा हो जाए, तो इसमें टमाटर, हल्दी, लाल मिर्च, गरम मसाला पाउडर और नमक डालकर पकाएं.

इसके बाद इसमें काजू का पेस्ट डालें और 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं. फिर इस मिक्सचर में स्वीट कार्न के दाने डालकर मिक्स करें.

दो मिनट बाद आधा कप पानी डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें और फिर इसे नौ मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं.

सब्जी गाढ़ी होने पर गैस बंद कर दें. इसे रोटी या चावल के साथ सर्व करें.

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चार सुनहरे दिन : भाग 1

 लेखक : चंद्रमोहन प्रधान

रेखा ने बैग अपने कंधे पर लटकाते हुए मैनेजर से कहा, ‘‘मिस्टर जगतियानी, मुझे ही बैग ढोने की क्या जरूरत है? रामलाल भी तो…’’

‘‘नहींनहीं,’’ वह घबरा कर बोला, ‘‘बैग तो तुम्हीं रखा करो. बैंक है ही कितनी दूर,’’ फिर उस ने पुकारा, ‘‘चलो भई, रामलाल, जल्दी करो…’’

बिगड़ी पड़ी एक बस के पास मिस्त्री से तंबाकू ले रहा रामलाल लपकता हुआ आया, ‘‘आ गया, मालिक.’’

रोज की तरह वह रेखा के पीछेपीछे चल पड़ा. रेखा को उतना भारीभरकम बैग रोज ढो कर ले जाना अखरता था, किंतु मिस्टर जगतियानी को और किसी भी कर्मचारी पर भरोसा नहीं था. सुरक्षा के लिए रामलाल को वह जरूर साथ कर देता था.

रामलाल बड़ा हट्टाकट्टा, तगड़ी कदकाठी का अधेड़ आदमी था. बड़ीबड़ी मूंछें रखता था. कद 6 फुट के आसपास था, लेकिन अक्ल का कोरा था. मालिक का सब से वफादार आदमी था. सांड़ से भिड़ जाने की हिम्मत रखता था, लेकिन कोई भी उसे आसानी से बेवकूफ बना सकता था. इसलिए मैनेजर ने रेखा के साथ पहलवान जैसे रामलाल को लगा रखा था. वह दोनों के काम से संतुष्ट था.

दि रोज ट्रांसपोर्ट कंपनी के पास 20 से ज्यादा बसें थीं. अकसर कुछ खराब हो जातीं, लेकिन ज्यादातर के चलते रहने से रोज लगभग 20-25 हजार रुपए की रकम आ जाती थी. त्योहार वगैरह के दिनों में तो यह रकम 40 हजार से ऊपर पहुंच जाती थी. जगतियानी बड़ा डरपोक था. वह रात को रकम औफिस की तिजोरी में रखना नहीं चाहता था. रोज रात को चौक वाले भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में रुपए जमा करा दिया करता था.

इस तरफ बसस्टैंड तथा एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र होने के कारण स्टेट बैंक ने सुविधा के लिहाज से खासतौर से यह शाखा खोली थी, जो दोपहर बाद से रात के 9 बजे तक खुली रहती थी. रेखा रोज 8.50 बजे तक बैंक पहुंच जाती थी और रुपए जमा करा देती थी.

बसअड्डा होने के कारण सड़क थोड़ी चौड़ी और साफ थी. बसअड्डे के पास ही चाय और पान की कई दुकानें थीं. आगे चल कर एक अच्छा सा चायखाना भी था. फिर बैंक तक का रास्ता सूना था. रास्ता लगातार आतीजाती गाडि़यों की रोशनी से प्रकाशित होता रहता था. रेखा शुरू से बहुत डरती थी कि कोई उस का गला दबा कर या छुरा मार कर बैग छीन ले तो? किंतु अब वह अभ्यस्त हो गई थी. रामलाल के कारण उसे इत्मीनान रहता था.

चलतेचलते रेखा ने बैग को दूसरे कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘भई रामलाल, अगर कोई गुंडाबदमाश छुरा या पिस्तौल ले कर…’’

‘‘गुंडाबदमाश?’’ रामलाल मूंछों पर ताव देता हुआ हंसा, ‘‘बिटिया, हम एक ही हाथ में पिस्तौल, छुरा सब  झाड़ देंगे उस का. तुम चिंता न करो.’’

बैंक का कैशियर उन्हीं का इंतजार कर रहा था. रेखा के बैग से नोटों की गड्डियां निकाल कर उस ने फुरती से गिनीं. कुल 21 हजार 9 सौ रुपए मात्र. उस ने मुहर लगा कर रसीद रेखा को दे दी.

लौटते वक्त रेखा चौराहे के इधर वाले चायखाने में रोज की तरह चाय पीने चली आई. रामलाल चाय पीते वक्त बोला, ‘‘बिटिया, तुम किसी तरह की चिंता न करो. रामलाल के रहते कोई पंछी पंख भी नहीं फड़फड़ा सकता है. यहां हम को सब लोग जानते हैं. किसी ने कुछ करने की कोशिश भी की तो उठा के पटक दूंगा. हड्डीपसली सब बराबर हो जाएगी.’’

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रेखा इस सीधे पर अनपढ़गंवार को कैसे सम झाती कि यह गांव का अखाड़ा नहीं है. यहां गुंडेबदमाश कुश्ती नहीं लड़ते. पीछे से कोई छुरा या गोली मार दे. वह बहुत डरती थी. लेकिन इस काम के लिए मैनेजर उसे कंपनी से 5 सौ रुपए का अतिरिक्त बोनस दिलाता था, क्योंकि उसे वह अच्छी लड़की सम झता था और उस की मदद करना चाहता था. मैनेजर जगतियानी जानता था कि रेखा पर बूढ़े पिता, एक छोटी बहन और एक लापरवाह और आवारा किस्म के छोटे भाई की जिम्मेदारी है. जगतियानी यह भी जानता था कि 30 साल की उम्र पार कर चुकी रेखा की शादी हो पाने की उम्मीद कम ही है, क्योंकि वह देखने में सुंदर नहीं है. न चेहरे से, न शरीर से. संकरा माथा, दबी नाक, भीतर धंसी छोटीछोटी आंखें. मोटे होंठ, रंग सांवला, सपाट सा शरीर, न वक्ष उभरते हुए न नितंब. देखने में लड़कों जैसी लगती थी. उम्र के असर से चेहरे पर कुछ रेखाएं भी बनने लगी थीं. वैसे लड़की कमाऊ हो तो शादी किसी तरह हो भी जाती है, किंतु रेखा अपने परिवार के भरणपोषण के खयाल से खुद ही शादी नहीं करना चाहती थी. लेकिन उस के हिसाबकिताब, अकाउंटैंसी, फाइलिंग आदि की दक्षता का जगतियानी प्रशंसक था.

लौट कर रेखा ने रसीद जगतियानी को दी और साढ़े 9 बजे की बस से घर लौट चली. वह बस उसे घर के पास के चौराहे पर ही उतार देती थी.

बस से उतर कर वह जैसे ही घर की तरफ चली थी कि अचानक पीछे से धक्का लगा और वह गिर पड़ी. धक्का एक मोटरसाइकिल से लगा था. मोटरसाइकिल वाले ने उसे उठा कर खड़ा किया और माफी मांगने लगा, ‘‘बड़ी गलती हुई. माफ कीजिए, मैडम.’’

रेखा कराहती हुई उठी. उस ने देखा, सामने एक सुंदर युवक खड़ा था. रंग गोरा, अच्छे नाकनक्श वाला, सुंदर कपड़े पहने, तंदुरुस्त. वह बोला, ‘‘आप का घर कहां है, चलिए पहुंचा दूं.’’

वैसे तो रेखा का घर पास में ही था और उसे चोट भी ज्यादा नहीं लगी थी कि किसी को पहुंचाने जाना जरूरी होता, लेकिन पता नहीं क्यों वह उस लड़के को मना नहीं कर सकी. वह उस के साथ घर तक आई.

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‘‘आइए,’’ रेखा ने कहा, ‘‘चाय पी कर जाइएगा.’’

युवक तुरंत तैयार हो गया. रेखा ने उसे बैठक में बिठा दिया. बैठक बहुत सामान्य थी. जहां एक पुराना सा बदरंग सोफा पड़ा था. एक चौकी पर दरी बिछी थी. दीवारों पर पुराने कैलेंडर लगे थे. रेखा उसे बिठा कर भीतर चली गई.

चाय के 2 प्याले ले कर वह लौटी. युवक उस के बूढ़े पिता से बातें कर रहा था. बूढ़े पिता ने खोदखोद कर उस के बारे में पूछताछ की. रेखा ने सुना, नाम प्रदीप कुमार. उस के पिता हेडक्लर्क हो कर रिटायर्ड हो चुके हैं. परिवार में मां और 2 छोटे भाईबहन हैं. वह खुद एमए पास कर चुका है और नौकरी तलाश रहा है. रेखा ने दोनों को चाय दी.

मानव तस्करी : हैवानियत की हद

गुजरात के खूबसूरत शहर सूरत की कई मायनों में अपनी अलग पहचान है. हीरा नगरी के नाम से जाने वाले इस शहर में व्यापक स्तर पर हीरे तराशने का काम होता है. इस के अलावा सूरत की साडि़यां भी पूरे देश में मशहूर हैं.

उस दिन सूरत शहर के थाना पांडेसरा क्षेत्र में जीयाव-बुडि़या रोड पर साईंमोहन सोसायटी के पास कुछ बच्चे मैदान में क्रिकेट खेलने गए थे. इन में कुछ बच्चे जमीन में विकेट गाड़ रहे थे तो कुछ बौलिंग और कुछ फील्डिंग की प्रैक्टिस कर रहे थे. तभी उन की बौल मैदान के पास झाडि़यों की तरफ चली गई. 2-3 बच्चे बौल लेने के लिए झाडि़यों की ओर गए तो वहां उन्हें एक लड़की पड़ी दिखाई दी.

लड़की को इस तरह पड़ा देख बच्चे डर गए और अपने साथियों के पास लौट आए. उन्होंने अपने साथियों को झाडि़यों के पास एक लड़की के पड़े होने की बात बताई. इस के बाद 8-10 बच्चे झाडि़यों के पास पहुंचे तो वहां का नजारा देख सन्न रह गए. वहां एक लड़की की लाश पड़ी हुई थी.

यह देख बच्चे अपनी बौल ढूंढना और क्रिकेट खेलना भूल कर दौड़ते हुए साईंमोहन सोसायटी की तरफ आ गए. उन्होंने लोगों को मैदान के पास झाडि़यों में एक लड़की की लाश पड़ी होने की जानकारी दी. बच्चों के बताने पर कई लोग झाडि़यों के पास गए तो वहां सचमुच लाश पड़ी हुई थी. लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में पांडेसरा थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई, पुलिस ने मौकामुआयना किया. लाश को उलटपुलट कर देखा. लाश करीब 10-11 साल की लड़की की थी. उस के बदन पर नीले सफेद रंग की टीशर्ट और नीला पायजामा था. उस के गले के अलावा शरीर पर कई जगह मारपीट के निशान साफ नजर आ रहे थे. पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से मृत लड़की की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन किसी ने उसे नहीं पहचाना.

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पुलिस ने पंचनामे के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम की प्राथमिक रिपोर्ट में पता चला कि लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया था. रिपोर्ट में उस की हत्या कुछ घंटे पहले किए जाने की बात कही गई थी. हत्या गला घोंट कर की गई थी.

पांडेसरा पुलिस स्टेशन में उसी दिन अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या, दुष्कर्म और पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. यह बीते 6 अप्रैल की बात है.

लड़की की शिनाख्त न होने से पुलिस को लगा कि उस की हत्या कहीं दूसरी जगह की गई होगी और शव यहां क्रिकेट मैदान के पास ला कर फेंक दिया गया होगा. पुलिस के लिए सब से पहले लड़की की शिनाख्त होना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने लड़की के फोटो के साथ स्टेट कंट्रोलरूम को इस की जानकारी भेज दी. इस के अलावा शहर के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में दर्ज लापता लड़कियों के बारे में सूचनाएं जुटाई गईं. काफी कोशिश के बाद भी उस लड़की के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

लाश मिलने के अगले ही दिन पुलिस ने लड़की की पहचान में आम लोगों का सहयोग मांगते हुए उस के बारे में सूचना देने वाले को 20 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा कर दी. घोषणा में पुलिस ने यह भी जोड़ा कि जानकारी देने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा.

पुलिस ने भले ही इनाम का ऐलान कर दिया था, लेकिन इस का कोई फायदा नहीं हुआ. पुलिस को मृतका के बारे में कोई सूचना नहीं मिली. इस पर पुलिस अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गई.
इसी बीच 9 अप्रैल को सूरत शहर के पांडेसरा इलाके में ही जीयाव गांव के नजदीक हाईवे किनारे की झाडि़यों में एक महिला की सड़ीगली लाश मिली. लाश कई दिन पुरानी थी. यह जगह साईंमोहन सोसायटी से ज्यादा दूर नहीं थी. पुलिस ने महिला की लाश का पोस्टमार्टम करवाया.

पोस्टमार्टम की प्राथमिक रिपोर्ट से पता चला कि महिला की उम्र 35-40 साल के बीच थी और उस की हत्या कई दिन पहले गला घोंट कर की गई थी. इस महिला की भी पहचान नहीं हो सकी.

4 दिन के भीतर एक ही थानाक्षेत्र में एक लड़की और एक महिला की लाश मिलने से इलाके में सनसनी फैल गई थी. पुलिस के लिए यह परेशानी की बात थी कि दोनों शवों की ही शिनाख्त नहीं हो सकी थी. जबकि आमतौर पर शव की शिनाख्त होने पर ही जांच आगे बढ़ती है.

दोनों शव मिलने की जगह में करीब 2 किलोमीटर की दूरी होने के कारण पुलिस को दोनों शवों के बीच आपसी संबंध होने का संदेह हुआ. पुलिस का अनुमान था कि महिला उस लड़की की मां हो सकती है. इस बात की पुष्टि के लिए पुलिस ने महिला और लड़की के शव का डीएनए टेस्ट कराने के लिए सैंपल भेजे.
जहां लड़की की लाश मिली थी, उस के आसपास में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई. फुटेज में तड़के करीब साढ़े 4 बजे एक हैचबैक कार नजर आई. कई कैमरों की फुटेज देखने पर कार का रंग काला होने का पता चला. इस पर पुलिस ने भेस्तान इलाके में काले रंग की सभी हैचबैक कार के बारे में पूछताछ की. आरटीओ कार्यालय से भी काले रंग की सभी हैचबैक कार के बारे में जानकारी जुटाई गई.

काफी भागदौड़ के बाद पुलिस की नजरें कार नंबर जीजे05सी एल8520 पर अटक गई. इस कार के मालिक के बारे में पता चला कि कार भेस्तान के सोमेश्वर नगर में रहने वाले रामनरेश के नाम से रजिस्टर्ड है. पुलिस ने पूछताछ के लिए रामनरेश को थाने बुलवा लिया. उस ने बताया कि उस की कार 6 अप्रैल को हरसहाय गुर्जर ले गया था.

पुलिस हरसहाय गुर्जर की तलाश में जुट गई. पता चला कि हरसहाय गुर्जर सूरत के भेस्तान इलाके में सोमेश्वर सोसायटी की एक बिल्डिंग में अपने बड़े भाई हरिसिंह के साथ रह रहा था. हरिसिंह मार्बल लगाने की ठेकेदारी करता था.

वह मूलरूप से राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी के पास कुरकुरा खुर्द गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बेटे थे. एक बेटा उस के साथ सूरत में और दूसरा बेटा कुरकुरा खुर्द गांव में रहता था.

हरसहाय के बारे में सारी जानकारी जुटा कर पुलिस ने सूरत की सोमेश्वर सोसायटी में उस के मकान पर दबिश दी तो वह वहां नहीं मिला. पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि हरसहाय 2-3 दिन पहले ही पत्नी और बच्चों के साथ अपना सारा सामान ले कर गांव चला गया है.

इस पर अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच की एक टीम राजस्थान भेजी गई. राजस्थान में सवाई माधोपुर पुलिस की मदद से 20 अप्रैल को कुरकुरा खुर्द गांव से हरसहाय गुर्जर को पकड़ लिया गया. गुजरात पुलिस उसे सूरत ले गई.

इस बीच डीएनए जांच से इस बात की पुष्टि हो गई कि पांडेसरा में जीयाव के पास जिस महिला का शव मिला, वह दुष्कर्म पीडि़ता 11 साल की बेटी की मां ही थी. महिला और बच्ची के शव की डीएनए रिपोर्ट पौजिटिव आई.

हरसहाय से की गई पूछताछ में अभागिन मांबेटी के मामले में मानव तसकरी होने की बात सामने आई. दोनों मांबेटी से कई दिनों तक दुष्कर्म कर के बाद में उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया था. इस मामले में बाद में पुलिस ने मानव तस्करी से जुड़े हरसहाय के कुछ अन्य साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस की पूछताछ में मांबेटी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

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राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी के पास कुरकुरा खुर्द गांव का रहने वाला हरसहाय गुर्जर कई साल पहले गुजरात के सूरत चला गया था. उस का बड़ा भाई हरिसिंह भी सूरत में रहता था. हरसहाय सूरत में मकानों और अन्य बिल्डिंगों में ठेके ले कर मार्बल लगाने का काम करता था.

हरसहाय भेस्तान के सोमेश्वर सोसायटी की एक बिल्डिंग में पत्नी रमादेवी और छोटे बेटे प्रियांशु के साथ किराए के मकान में रहता था. उस का बड़ा बेटा दीपांशु राजस्थान में गांव में ही रहता था.

हरसहाय के पास मार्बल लगाने का काम करने वाले एक युवक कुलदीप की शादी नहीं हुई थी. कुलदीप करीब 6 महीने पहले राजस्थान से एक महिला को शादी करने के मकसद से 35 हजार रुपए में खरीद कर सूरत ले आया था. उस महिला के साथ 11 साल की एक बेटी भी थी. बाद में कुलदीप के घर वालों ने खरीदी हुई महिला से उस की शादी करने से इनकार कर दिया.

कुलदीप ने हरसहाय को सारी बात बताई. हरसहाय ने उस महिला और उस की बेटी को रखने की हामी भर ली. इस पर कुलदीप और मुकेश ने वह महिला और उस की बेटी हरसहाय को सौंप दीं. हरसहाय ने मांबेटी के रहने की व्यवस्था सूरत के कामरेज में टाइल्स फिटिंग की एक साइट पर कर दी. उस ने दोनों मांबेटी के रहने के साथ खानेपीने का भी इंतजाम कर लिया. इस के एवज में हरसहाय ने महिला से ज्यादती कर अवैध संबंध बना लिए.

इश्कमुश्क और अवैध संबंधों के मामले ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. यहां भी ऐसा ही हुआ. कुछ दिनों बाद हरसहाय की पत्नी रमादेवी को इस बात का पता चल गया कि उस के पति ने एक महिला को रखा हुआ है.

दरअसल हरसहाय उस महिला के लिए कई बार अपने घर से कई तरह के सामान और कपड़े ले कर जाता था और वहां से कईकई घंटे बाद लौटता था.

रमादेवी जब उस से इस बारे में पूछती तो वह उसे साफ जवाब नहीं देता था. एक दिन रमादेवी ने अपने भरोसे के एक आदमी को पति के पीछे लगा दिया. बाद में उस आदमी ने रमादेवी को बताया कि हरसहाय ने एक औरत रखी हुई है.

रमादेवी इस बात पर पति से झगड़ा करने लगी. घर में रोजरोज की कलह शुरू हो गई. इस बीच हरसहाय ने उस महिला और उस की बेटी को कामरेज से हटा कर मानसरोवर के एक फ्लैट में रख दिया. दूसरी तरफ हरसहाय ने जिस महिला को रखा हुआ था, वह बारबार शादी करने या पैसे देने की बात कहती थी. इस पर हरसहाय परेशान रहने लगा. कोई और रास्ता न देख उस ने महिला से पीछा छुड़ाने का फैसला कर लिया.

मार्च महीने के चौथे सप्ताह में हरसहाय ने पहले उस महिला के सिर पर ईंट मार कर उसे घायल कर दिया. इस के बाद दुपट्टे से उस का गला घोंट कर उसे मार डाला. महिला की हत्या उस की मासूम बेटी के सामने की गई. इस के बाद हरसहाय ने उस महिला का शव पांडेसरा में जीयाव के पास फेंक दिया था. बाद में 9 अप्रैल को पुलिस ने उस महिला का शव सड़ीगली हालत में बरामद किया था.

महिला की हत्या के बाद उस की 11 साल की बेटी को हरसहाय अपने घर पर ले आया. वह बच्ची अपनी मां के लिए रोती रहती थी. किसी दूसरे की बच्ची को अपने घर लाने पर रमादेवी का अपने पति से झगड़ा बढ़ गया. हरसहाय यह तय नहीं कर पा रहा था कि उस बच्ची का क्या करे.

घर में बढ़ते झगड़े को देख कर और उस बच्ची द्वारा कभी भी पोल खोल दिए जाने के डर से वह बच्ची को बंधक बना कर यातनाएं देने लगा. कई बार वह उसे डंडे से बेरहमी से पीटता था. बच्ची के शरीर पर उस ने ब्लेड से कई घाव कर दिए थे. इस दौरान हरसहाय ने उस मासूम से दुष्कर्म भी किया.

5 अप्रैल की रात हरसहाय उस बच्ची को मकान की छत पर ले गया, जहां उस ने उस के साथ दुष्कर्म किया. दुष्कर्म के बाद उस ने उस के नाजुक अंगों पर घाव कर दिए. फिर गला दबा कर बच्ची को मार डाला. बच्ची की हत्या उस ने सिर्फ इसलिए की कि कहीं वह अपनी मां की हत्या का राज उजागर न कर दे.
हरसहाय 6 अप्रैल को तड़के रामनरेश की कार से उस बच्ची के शव को साईंमोहन सोसायटी के पीछे क्रिकेट मैदान के पास झाडि़यों में फेंक आया. बाद में उसी दिन बच्ची का शव पांडेसरा पुलिस ने बरामद किया था. बच्ची की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस के शरीर पर 80 से ज्यादा घाव मिले.

20 दिनों की मशक्कत के बाद सूरत पुलिस ने राजस्थान और सूरत में 40 से ज्यादा लोगों से पूछताछ कर के मांबेटी की शिनाख्त करने में सफलता हासिल कर ली.

वह महिला राजस्थान के सीकर की रहने वाली थी. महिला की मां के मुताबिक, उस की बेटी का चेहरा बचपन में गर्म पानी से झुलस गया था. इस वजह से उस की शादी नहीं हो पा रही थी. बाद में उस की शादी 22 जून, 2007 को सीकर के फतेहपुर कस्बे में कर दी गई. ससुराल में आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के साल भर बाद ही उस महिला ने एक बेटी को जन्म दिया.

बाद में महिला ने फतेहपुर निवासी पति को छोड़ दिया. उस ने 2010 में बूंदी में एक युवक से शादी कर ली. महिला अपनी बेटी को भी बूंदी ले गई. महिला का दूसरा पति बूंदी में जूतेचप्पल बेचने का काम करता था. उस की पहली पत्नी की मौत हो चुकी थी. पहले से ही उस के 3 बच्चे थे. दूसरी शादी के बारे में महिला ने अपने परिवार वालों को नहीं बताया था.

दूसरी शादी करने के बावजूद महिला को सुख नसीब नहीं हुआ. उस का पति से झगड़ा रहने लगा. एक बार पति से झगड़ा होने पर महिला अपने मायके चली गई.

बाद में उस का पति भी बूंदी से सीकर आ गया. उस समय महिला की मां ने उस से कहा कि या तो यहां पर रुक जा, नहीं तो फिर दोबारा यहां पर मत आना. इस के बाद वह सीकर से चली गई थी. इस के बाद महिला के घर वालों का उस से कोई संपर्क नहीं हुआ था.

घटना से करीब 7 महीने पहले यह महिला अपने पति से 2 दिन में आने की बात कह कर बेटी के साथ घर से निकली थी. वह घर से जेवर भी ले गई थी. लोगों ने महिला को बूंदी के बसस्टैंड पर एक युवक के साथ देखा था.

जब वह 2 दिन तक घर नहीं लौटी तो पति ने उसे फोन किया. महिला ने कहा कि वह जयपुर में है और काफी परेशानी में है. इस के बाद उस का महिला से संपर्क नहीं हुआ तो उस ने बूंदी कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

पुलिस ने महिला की मोबाइल लोकेशन निकलवाई तो वह गंगापुर सिटी की आई. इस पर उस के दूसरे पति ने गंगापुर सिटी जा कर भी उस की तलाश की लेकिन उस का पता नहीं चल सका. बाद में उस की मोबाइल लोकेशन दौसा व गंगापुर सिटी और इस के बाद सूरत आती रही.

महिला के दूसरे पति का कहना है कि वह उस की पत्नी को बेचने और खरीदने वाले को नहीं जानता. उस का आरोप है कि पुलिस ने सपोर्ट नहीं किया. पुलिस अगर सपोर्ट करती तो उस की पत्नी सूरत नहीं पहुंचती और आज वह जिंदा होती.

सूरत पुलिस ने सीकर पहुंच कर महिला के परिजनों को खोज लिया. फिर फोटो, आधार कार्ड और अन्य सबूतों के आधार पर महिला की शिनाख्त की. इस के बाद पुलिस सीकर से महिला के घर वालों को सूरत ले गई. सूरत में पुलिस की मौजूदगी में 27 अप्रैल को मोरा भागल स्थित कब्रिस्तान में परिजनों ने महिला और उस की बेटी के शव दफना दिए.

हतभागी मांबेटी को एकता ट्रस्ट के अब्दुल मलबारी के सहयोग से दफनाया गया था. हालांकि यह सब पुलिस ने गुप्तरूप से किया और मीडिया को इस से दूर रखा. पुलिस ने मीडिया को गुमराह करने के लिए कब्रिस्तान के गेट पर ताला भी लगा दिया था.

महिला के परिजनों को पुलिस जिस कार में कब्रिस्तान ले गई, उस के नंबर भी ढक दिए थे. घर वालों को मुंह ढक कर कार में बीच में बैठा कर लाया और ले जाया गया. इस के बाद सूरत पुलिस ने महिला के सीकर से आए घर वालों के बयान दर्ज किए. घर वालों ने बताया कि 2 साल पहले उन की बेटी सीकर में घर आई थी, उस के बाद से उन का उस से कोई संपर्क नहीं था.

इस मामले में यह खास बात रही कि 26 अप्रैल को पांडेसरा इलाके में क्रिकेट मैदान के पास मिले बच्ची के शव की शिनाख्त के लिए सूरत पुलिस और अहमदाबाद क्राइम ब्रांच सहित करीब 500 पुलिस जवानों को लगाया गया था. पुलिस ने करीब 8 हजार घरों पर जा कर बच्ची का फोटो दिखा कर उस की पहचान करने की कोशिश की थी. सूरत शहर में बच्ची के पोस्टर चिपकवाए गए. बच्ची की पहचान बताने वाले को 20 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की गई.

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भेस्तान क्षेत्र के अलावा नैशनल हाईवे के आसपास के इलाके में करीब 800 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई. गुजरात के अलावा आसपास के 3 राज्यों से गुमशुदा बच्चियों के फोटो से मृतक बच्ची का फोटो मिलान करने का प्रयास किया गया. सूरत से अन्य राज्यों में जाने वाली ट्रेनों में बच्ची के फोटो चिपकवाए गए. सूरत के नागरिकों ने भी अपने स्तर पर बच्ची की पहचान के लिए इनाम का ऐलान किया था.

कपड़ा व्यापारियों ने दूसरे राज्यों में भेजे जाने वाले माल के पार्सलों पर भी बच्ची के फोटो चिपकवाए. जिस जगह बच्ची का शव मिला था, उस के आसपास 5 अप्रैल की रात से 6 अप्रैल की सुबह तक एक्टिव रहे करीब एक हजार मोबाइल नंबरों की जांच की गई.

भेस्तान में सोमेश्वर सोसायटी की जिस बिल्डिंग में बच्ची को बंधक बना कर उस से दुष्कर्म और फिर हत्या की गई थी, उस बिल्डिंग के लोगों को बच्ची का शव मिलने के बाद पुलिस ने फोटो दिखाया था, लेकिन किसी ने उसे नहीं पहचाना था. इस का कारण यह था कि बच्ची को घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था.

सूरत के पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा का कहना है कि आरोपियों को सख्त सजा दिलाने के लिए पुलिस के पास काफी सबूत हैं. सीसीटीवी फुटेज हैं. मांबेटी का डीएनए मैच हो गया है. दूसरी ओर गुजरात के गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा का कहना है कि इस मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में होगी. इस के लिए सरकार स्पैशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त करेगी.

बहरहाल, यह मामला न केवल खुल गया है, बल्कि यह बात भी उजागर हो गई है कि महिलाओं की खरीद फरोख्त आज भी हो रही है. खरीदार खरीदी गई महिला को उपभोग की वस्तु मानता है. जब तक मन चाहता है उपभोग करता है. मन भर जाने पर उसे दरदर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देता है या हरसहाय जैसे दरिंदे पीछा छुड़ाने के लिए उसे मौत के घाट उतार देते हैं. इस कहानी में न तो महिला का कोई कसूर था और न उस की बच्ची का. लेकिन दरिंदों ने उन की जान ले ली.

आशा का दीप : भाग 1

‘‘आप हैं मिस वैभवी, सीनियर मार्केटिंग मैनेजर,’’ शाखा प्रबंधक ने वैभवी का परिचय नए नियुक्त हुए सेल्स एवं डिस्ट्रिब्यूशन औफिसर विनोद से कराते हुए कहा.

वैभवी ने तपाक से उठ कर हाथ मिलाया. विनोद ने वैभवी के हाथ के स्पर्श में गर्मजोशी को स्पष्ट महसूस किया. उस ने वैभवी की तरफ गौर से देखा. वह उस के चुस्त शरीर, संतुलित पोशाक और दमकते चेहरे पर बिखरी मधुर मुसकान से प्रभावित हुआ.

वैभवी ने भी विनोद का अवलोकन किया. सूट के साथ मैच करती शर्ट और नेक टाई, अच्छी तरह सैट किए बाल, क्लीनशेव्ड, दमकता चेहरा पहली नजर में प्रभावित करने वाला व्यक्तित्व.

‘‘आप हैं मिस्टर विनोद, आवर न्यू सेल्य एंड डिस्ट्रिब्यूशन मैनेजर.’’

वैभवी से परिचय के बाद शाखा प्रबंधक महोदय विनोद को सिलसिलेवार सभी केबिनों में ले गए. विनोद ने केबिन में अपनी सीट पर बैठ कर मेज के एक तरफ रखा लैपटौप औन किया.

थोड़े समय में ही सेल्स, डिस्ट्रिब्यूशन और मार्केटिंग इंटररिलेटिड वैभवी और विनोद की नियमित बैठकें होने लगीं. फिर धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ती गई.

दोनों ही अविवाहित थे. दोनों अपने लिए उपयुक्त जीवनसाथी की तलाश में भी थे. बढ़ती अंतरंगता की परिणति उन की मंगनी में बदली और विवाह की तिथि तय की गई.

दोनों के परिवार जोशोखरोश से विवाह की तैयारियां कर रहे थे. एक रोज बड़े डिपार्टमैंटल स्टोर से शौपिंग कर वैभवी बाहर आ रही थी, सामने से आती एक प्रौढ़ा स्त्री उस से टकराई. उस के हाथों का पैकेट वैभवी के वक्षस्थल से टकराया.

दर्द की तीव्र लहर वैभवी के वक्ष स्थल पर फैल गई. बड़ी मुश्किल से चीखने से रोक पाई वैभवी अपनेआप  को. पर लौट कर कपड़े बदलते हुए उस ने वक्षस्थल पर हाथ फिराया तो एक हलकी सी गांठ उस को दाएं वक्षस्थल पर महसूस हुई. गांठ दबाने पर हलकाहलका दर्द उठा.

औफिस से थोड़ी देर की छुट्टी ले कर वह अपने परिचित डाक्टर के पास गई. जांच करने के बाद डाक्टर गंभीर हो गए.

‘‘आप को कुछ टैस्ट करवाने होंगे,’’ डाक्टर साहब ने गंभीरता से कहा.

‘‘क्या कुछ सीरियस है?’’ आशंकित स्वर में वैभवी ने पूछा.

‘‘टैस्ट रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है. वैसे क्या आप के परिवार में किसी, मेरा मतलब आप की माताजी या पिताजी या दादीनानी को ऐसी तकलीफ हुई थी,’’ डाक्टर साहब ने धीरेधीरे बोलते हुए गंभीर स्वर में पूछा.

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इस सवाल पर वैभवी गंभीर हो गई. उस की मम्मी को कई साल पहले, जब वह किशोरावस्था में थीं, ब्रेस्ट कैंसर हुआ था. लंबे समय तक तरहतरह के इलाज के बाद और वक्षस्थल से एक वक्ष काटने के बाद इस समस्या से छुटकारा मिला था. क्या उसे भी वक्षस्थल यानी ब्रेस्ट कैंसर है?

‘‘क्या टैस्ट आप के यहां होंगे?’’

‘‘जी नहीं, ये सब बड़े अस्पताल में होते हैं. एक टैस्ट से स्थिति स्पष्ट न होने पर दूसरे कई टैस्ट करवाने पड़ सकते हैं.’’

‘‘बाई द वे, आप का अंदाजा क्या है?’’ वैभवी के इस सवाल पर डाक्टर गंभीर हो गए, ‘‘मिस वैभवी, अंदाजे के आधार पर चिकित्सा नहीं हो सकती. प्रौपर डायग्नोसिस किए बिना बीमारी का इलाज नहीं हो सकता.’’

‘‘आप ने फैमिली बैकग्राउंड पर सवाल किया था. मेरी मम्मी को कई साल पहले ब्रेस्ट कैंसर हुआ था. सर्जरी द्वारा उन के वक्ष को काटना पड़ा था. कहीं मु झे भी…’’

‘‘मिस वैभवी, हैव फेथ औन योरसैल्फ. कभीकभी सारा अंदाजाअनुमान गलत साबित होता है,’’ यह कहते डाक्टर साहब ने अपने लैटर पर एक बड़े अस्पताल का नाम लिखते उस पर परामर्श लिखा और कागज वैभवी की तरफ बढ़ा दिया.

औफिस में अपनी सीट पर बैठी वैभवी गंभीर सोच में थी. हर रोज वह अपने सहयोगियों के साथ कंपनी के किसी नए उत्पादन और उस की मार्केटिंग पर डिस्कशन करती थी, मगर आज वह खामोश थी.

विनोद भी अपनी मंगेतर को गंभीर देख कर उल झन में था.

‘‘हैलो वैभवी, हाऊ आर यू?’’ साइलैंट मोड पर रखे सैलफोन की स्क्रीन पर एसएमएस चमका.

‘‘फाइन,’’ संक्षिप्त सा जवाब दे वैभवी ने फोन बंद कर दिया और उठ कर शाखा प्रबंधक के कमरे में चली गई.

‘‘सर, मु झे कुछ पर्सनल काम है, आज छुट्टी चाहिए.’’

बेटी को आज इतनी जल्दी आया देख कर मम्मी चौंक गईं. ‘‘वैभवी, कोई प्रौब्लम है?’’ पानी का गिलास थमाते मम्मी ने पूछा.

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वैभवी खामोश थी. क्या बताए? कैंसर एक दाग सम झा जाता था. एक स्टिगमा. कैंसरग्रस्त व्यक्ति को अछूत के समान सम झ कर हर कोई उस से दूरी बनाए रखना चाहता है.

उस की मम्मी को भी कैंसर हुआ था 20 साल पहले. सर्जरी द्वारा उन का एक वक्ष काट दिया गया था. कैंसर जेनेटिक स्टेज की प्रथम स्टेज पर था. उस का फैलना थम गया था. 20 साल बाद उस की मम्मी नौर्मल लाइफ जी रही थीं. मगर सब जानकार, सभी संबंधी उन से एक दूरी बना कर रखते थे.

‘‘वैभवी, क्या बात है, कोई औफिस प्रौब्लम है?’’ सोफे पर बैठ कर वैभवी का चेहरा अपने हाथों में थामते मम्मी ने प्यार से पूछा.

वैभवी की आंखें भर आईं. वह हौलेहौले सुबकने लगी. इस पर मम्मी घबरा गईं. उन्होंने उस को अपनी बांहों में भर लिया. पानी का गिलास उस के होंठों से लगाया. चंद घूंट पीने के बाद वैभवी संयत हुई. उस ने स्थिर हो मम्मी को सब बताया.

वैभवी की मां गंभीर हो गईं. क्या कैंसर पुश्तैनी था? उन को कैंसर था. उन से पहले शायद उन की मां को भी. मगर दोनों अच्छी उम्र तक जीवित रही थीं.

अजीब पसोपेशभरी और दुखभरी स्थिति बन गई थी. वैभवी के विवाह होने को मात्र 15 दिन बाकी थे. अब यह दुखद स्थिति बताने पर रिश्ता टूटना तो था ही, साथ ही कैंसरग्रस्त परिवार है, यह दाग स्थायीतौर पर उन पर लग जाना था.

‘‘डाक्टर ने अभी अपना अंदाजा बताया है, साथ ही यह भी कहा है कि कई बार अंदाजा गलत भी साबित होता है,’’ मम्मी ने हौसला बंधाने के लिए आश्वासनभरे स्वर में कहा.

‘‘मगर हम विनोद और उस के परिवार को क्या बताएं?’’

वैभवी के इस सवाल पर मम्मी खामोश हो गईं. मां के बाद अब बेटी को कैंसर जैसे रोग की त्रासदी का सामना करना पड़ रहा था. मां को कैंसर विवाह के बाद 2 बच्चों को जन्म देने के बाद जाहिर हुआ था. परिणाम में वक्ष स्थल और बाद में गर्भाशय को निकालना पड़ा था.

मगर बेटी की त्रासदी मां से बड़ी थी. वह कुंआरी थी. विवाह दहलीज पर था. वरवधू दोनों पक्षों की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं.

विवाह की तारीख से पहले रिश्ता टूट जाना आजकल के जमाने में इतना असामान्य नहीं सम झा जाता. मगर कोई उचित कारण होना चाहिए.

मगर वैभवी की स्थिति एकदम असामान्य थी. कुदरत की मार कि इतनी त्रासदीभरे ढंग से उस पर पड़ी थी. ‘‘मैं अगर यह बात विनोद से छिपाती हूं तो विवाह के बाद इस बात के उजागर होने पर, कि मु झे डाक्टर द्वारा आगाह कर दिया गया था, मैं सारी उम्र उन से आंख नहीं मिला सकूंगी,’’ वैभवी ने सारी स्थिति की समीक्षा करते कहा.

‘‘मेरे बाद तुम्हारे कैंसरग्रस्त होने से तुम्हारी छोटी बहन अनुष्का के भविष्य पर भी प्रभाव पड़ेगा. उस का रिश्ता करना मुश्किल हो जाएगा,’’ मम्मी के स्वर में परेशानी  झलक रही थी.

वैभवी भी सोच में थी कि वह विनोद को कैसे बताए.

‘‘वैभ,’’ विनोद का फोन था. हर शाम विदा लेने के बाद दोनों एक या अनेक बार अपनेअपने सैलफोन से हलकीफुलकी चैट करते थे.

‘‘हैलो विनोद, हाऊ आर यू?’’ प्रत्युत्तर में वैभवी का औपचारिकताभरा संबोधन सुन कर विनोद चौंका. उस ने गौर से सैलफोन की स्क्रीन पर नजर डाली, कहीं गलती से किसी और का नंबर तो प्रैस नहीं कर दिया था. प्यार से विक्की कह कर बुलाने वाली वैभवी उसे अपरिचित या गैर के समान संबोधन कर रही थी.

‘‘विनोद, परसों संडे है, आप पार्क व्यू होटल के ओपन रैस्टोरैंट में आ जाना,’’ कहते हुए वैभवी ने फोन काट दिया.

असमंजस में पड़ा विनोद हाथ में पकड़े सैलफोन को देख रहा था.

पार्क व्यू होटल के रैस्टौंरैंट को एक बड़े तालाब को सुधार कर पिकनिक स्पौट का रूप दिया गया था. कई बार दोनों वहां जा चुके थे.

आमनेसामने बैठ कर चप्पू चलाते किश्ती  झील के बीचोंबीच ला कर किश्ती रोक कर विनोद ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है? इतनी सीरियस क्यों हो? तुम्हारा लहजा भी एकदम एब्नौर्मल है?’’

वैभवी ने अपने छोटे वैनिटी पर्स से एक लिफाफा निकाल कर बढ़ाया. एक बड़े अस्पताल का लिफाफा देख कर विनोद चौंका.

उस ने लिफाफा निकाला और उस में रखे कागजों को निकाल कर एक नजर डाली और प्रश्नवाचक नजरों से वैभवी की तरफ देखा.

‘‘विनोद, मु झे कैंसर है. मेरे वक्षस्थल में ट्यूमर है. मैं ब्रेस्ट कैंसर ग्रस्त हूं. आई एम सौरी,’’ कहते हुए वैभवी ने अपना चेहरा  झुका लिया.

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विनोद को ऐसा लगा जैसे किसी ने उस को ऊंची पहाड़ी के शिखर से नीचे की ओर की धक्का दे दिया हो.

वह भौचक्का सा कभी हाथ में पकड़े मैडिकल रिपोर्ट के कागजों को, कभी सामने बैठी अपनी मंगेतर, अपनी भावी पत्नी को देख रहा था. उस ने एक बार फिर सरसरी नजर मैडिकल रिपोर्ट पर डाली और कागज लिफाफे में डाल कर लिफाफा वैभवी की तरफ बढ़ा दिया. दोनों खामोश थे.

भूलकर भी न लगाएं उंगली से लिप बाम

आमतौर पर लिप बाम का इस्तेमाल पर मौइश्चर के लिए किया जाता है. अगर आप उंगली से बाम होठों पर लगाते हैं तो संभल जाइए. इससे आपको कई तरह के इंफेक्शन हो सकते हैं. ऐसे में हो सके तो पहले अपने हाथों को अच्छी तरह साफ कर लें और उसके बाद ही लिप-बाम लगाएं.

क्यों खतरनाक साबित हो सकता है उंगली से लिप बाम लगाना

हमारी उंगलियों पर बीमारियां फैलाने वाले कई बैक्टीरिया और वायरस चिपके होते हैं. ये इतने छोटे होते है कि नंग्न आंखों से आप देख भी नहीं सकते. और ऐसे में आप उंगली से लिप बाम लगाते हैं तो आप खुद बीमारी को न्यौता देते हैं.

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आपका मोबाइल आपके हाथों से चिपका रहता है. लेकिन आपको शायद ये पता न हो कि मोबाइल की स्क्रीन पर भी बहुत सारे बैक्टीरिया चिपके रहते हैं. मोबाइल पकड़े-पकड़े अचानक से आप  लिप बाम लगा लेते हैं. ये सारे बैक्टीरिया हमारे पेट में पहुंच जाते हैं.

क्या है समाधान?

अगर आप भी उंगलियों से लगाया जाने वाला लिप-बाम यूज करती हैं तो अभी भी समय है उसे बदल डालिए. स्ट‍िक वाला लिप बाम यूज करना शुरू कर दीजिए. अगर आप स्ट‍िक वाले लिप बाम के साथ कंफर्टेबल नहीं हैं तो बाम लगाने से पहले उंगलियों को साफ कर लें.

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अनजाना बोझ : भाग 1

‘‘देखिए, सब से पहले आवश्यक है आप का अपने ऊपर विश्वास का होना. स्वयं को अबला नहीं, बल्कि दुनिया का सब से सशक्त इंसान समझने का वक्त है. यदि आप मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत हैं तो विश्वास कीजिए कि कोई आप को हाथ तक नहीं लगा सकता. मैं शिक्षकों से भी कहना चाहूंगा कि वे बालिकाओं को मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाएं कि अपने साथ होने वाले हर अनुचित व्यवहार का वे दृढ़ता से मुकाबला कर सकें. यदि कभी कोई आप के साथ किसी प्रकार की हरकत करता है तो आप उसे मुंहतोड़ जवाब दें. यदि फिर भी मसला न सुल झे, तो हमारे पास आइए, हम आप की मदद करेंगे.’’

‘‘पर सर, यदि कभी हमारे शिक्षक ही हमारे साथ कुछ ऐसावैसा करें तो? क्योंकि न्यूजपेपर में तो अकसर ऐसा ही कुछ पढ़ने में आता है.’’

‘‘तो…तो…उसे भी छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. शिक्षक है तो क्या हुआ, आप उस के सौ खून माफ कर देंगी? ऐसे व्यक्ति को शिक्षक बनने का अधिकार नहीं है.’’ सिटी एसपी अमित ने कुछ उत्तेजना से 12वीं में पढ़ने वाली बच्ची के प्रश्न का जवाब तो दे दिया परंतु इस प्रश्न ने उन्हें अंदर तक  झक झोर भी दिया. उन के हाथपांवों में कंपन महसूस होने लगा और भरी सर्दी में भी माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. स्कूल स्टाफ के सामने बड़ी मुश्किल से वे स्वयं को संयत कर पाए और तय समय से आधे घंटे पूर्व ही अपना लैक्चर समाप्त कर के फुरती से गाड़ी में आ कर बैठ गए. खिड़की से बाहर की ओर वे गंभीर मुद्रा में देखने लगे.

हमेशा जोशखरोश से भरे रहने वाले और खुशमिजाज एसपी साहब को यों शांत और गंभीर देख कर ड्राइवर रमेश कुछ डरेसहमे से स्वर में बोला, ‘‘सर, कहां चलना है?’’

‘‘घर चलो,’’ एसपी अमित ने कहा.

जैसे ही उन के बंगले के सामने गाड़ी रुकी, वे तेजी से चलते हुए अपने बैडरूम में पहुंचे और दरवाजा बंद कर के अपने बैड पर निढाल से पड़ गए. यह तो अच्छा था कि पत्नी सृष्टि अभी घर पर नहीं थी, वरना उन का यह हाल देख कर परेशान हो जाती. आज उन के विवाह को 3 वर्ष और नौकरी को 5 वर्ष हो गए थे. वे 2 साल की बेटी के पिता भी थे. पत्नी सृष्टि एक सरकारी कालेज में प्रोफैसर और बहुत ही सुल झी हुई महिला थी. वह घरबाहर और नातेरिश्तेदारों की जिम्मेदारियां भलीभांति निभा रही थी. कुल मिला कर बड़ा ही खुशगवार जीवन जी रहे थे वे.

कुछ समय पूर्व ही उज्जैन जिले में तबादला हो कर वे आए थे. एक सरकारी स्कूल में आयोजित बालिका सुरक्षा सप्ताह के दौरान उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. वे बहुत खुशीखुशी आए थे. परंतु एक बालिका के प्रश्न ने उन के भूले साल सामने ला खड़े किए थे.

उस समय एमएससी करने के बाद वे अपने गांव से दूर छोटी बहन के साथ भोपाल में ही रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. सो, अपने खर्चे के लिए कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा दिया करते थे. एक दिन उन की एक सहपाठी का फोन आया, ‘अमित, मेरी आंटी की बेटी 11वीं में है जिसे मैथ्स पढ़ना है. अगर तेरे पास टाइम हो तो देख ले.’

‘हांहां, ठीक है, मैं पढ़ा दूंगा. मेरे पास अभी एक भी ट्यूशन नहीं है.’

सहपाठी ने अपनी आंटी का पता और मोबाइल नंबर उन्हें भेज दिया. उन से बातचीत होने के बाद अगले दिन से उन्होंने बड़ी लगन से उस बच्ची को पढ़ाना प्रारंभ भी कर दिया. बच्ची होनहार थी. मातापिता भी शिक्षित थे. कुल मिला कर अच्छा संस्कारी परिवार था. आंटीअंकल दोनों ही उन से बहुत स्नेह रखते थे. उन की लगन और बच्ची की मेहनत ने असर दिखाया और बच्ची धीरेधीरे अपनी कक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने लगी थी, जिस से आंटीअंकल दोनों ही उन से बहुत खुश थे.

आंटी अकसर उन से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों के बारे में बातचीत करती रहती थीं. उन से बात कर के उन्हें भी बहुत अच्छा लगता था, क्योंकि उन की सकारात्मक बातें सुन कर वे स्वयं उत्साह से भर उठते थे. एक वर्ष में ही उन्होंने अपना विश्वास सब पर भलीभांति जमा लिया था.

बच्ची की अब वार्षिक परीक्षाएं आने वाली थीं, सो, कोर्स पूरा करवा कर रिवीजन वर्क चल रहा था. इन दिनों पढ़ाने को तो कुछ खास नहीं होता था, वे बैठेबैठे पेपर या पत्रिकाएं पलटते रहते. बीचबीच में बच्ची के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दे देते. कई बार उन का युवा मन बच्ची की ओर आकर्षित भी होने लगता. परंतु अगले ही पल अपनी बहकी भावनाओं पर वे काबू पा लेते. पर शायद बेरोजगारी व्यक्ति की विचारधारा, मानसिकता और सोचनेसम झने की शक्ति सभी का हरण कर लेती है, वे 2 वर्ष से बेरोजगार थे.

उस दिन उन की भावनाओं पर से उन का नियंत्रण ही मानो समाप्त हो गया. उस दिन आंटी अर्थात बच्ची की मां की तबीयत खराब थी और डाक्टर ने 6 बजे का टाइम दिया था. सो, वे अंकल के साथ चली गईं. उन के जाते ही उन की अभी तक सुसुप्त भावनाएं मानो कुलांचें भरने लगीं. उन्हें याद ही नहीं कि उन्होंने कब और कैसे बच्ची का हाथ जोर से पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया और आंखें बंद कर लीं.

उन की चेतना कानों में पड़ी बच्ची की आवाज से लौटी, ‘सर, व्हाट आर यू डूइंग?’ बच्ची इस अप्रत्याशित सी घटना से सहम गई थी.  झटके से अपना हाथ छुड़ा कर वह कोने में जा कर खड़ी हो गई. बच्ची की आवाज सुन कर वे मानो सोते से जाग गए और सौरी कह कर एक गिलास पानी पी कर अपना सिर नीचा कर के वापस घर की ओर चल दिए.

क्षणिक आवेग ने उन का चरित्र, संस्कार और आत्मनियंत्रण सब तारतार कर दिया. आत्मग्लानि से मन स्वयं के प्रति ही वितृष्णा से भर उठा. पूरे रास्ते वे सिर  झुका कर चलते रहे, मानो सड़क पर चलने वाले हर शख्स की नजरें उन्हें ही घूर रही हों. जैसे ही वे घर में घुसे, उन के चेहरे का उड़ा रंग देख कर छोटी बहन बोली, ‘क्या हुआ भैया, इतने घबराए हुए क्यों हो?’

‘नहीं, कुछ नहीं. तुम अपना काम करो. मैं छत पर हूं,’ कह कर वे छत पर आ गए थे.

छत पर खुली हवा में आ कर लंबी सांस ली. मानसिक अंतर्द्वंद्व चरम पर था. ‘कैसे अपना आपा खो दिया मैं ने. यदि उन लोगों ने एफआईआर लिखा दी तो कहीं का नहीं रहूंगा. आजकल तो घूरने तक पर कड़ी सजा का प्रावधान है. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.’ यह सब सोचतेसोचते वे बेचैन हो उठे.

हालात जानने के लिए बच्ची की मां को फोन लगा दिया और बड़ी ही मासूमियत से बोले, ‘आंटी, शुक्रवार को कितने बजे आना है?’

???‘रोज के समय पर ही आ जाना बेटे.’ आंटी को उतने ही प्यार से बात करते देख वे आश्वस्त हो गए कि बच्ची ने आंटी को कुछ नहीं बताया है क्योंकि चलते समय उन्होंने बच्ची से सौरी बोल कर मां को कुछ न बताने की विनती की थी.

2 दिनों तक जब उधर से कोई फोन नहीं आया तो वे आश्वस्त हो गए कि मामला शांत हो गया है. तीसरे दिन सुबहसुबह जब वे नाश्ता कर के उठे ही थे कि मोबाइल बज उठा. मोबाइल स्क्रीन पर आंटी का नाम देखते ही उन के हाथ कांप उठे. किसी तरह साहस कर के उन्होंने ‘हैलो’ बोला. उधर से कड़कती आवाज आई, ‘तुम्हारे मातापिता ने संस्कार नाम की चीज से परिचित कराया है या नहीं. तुम्हें ऐसी हरकत करते हुए खुद पर शर्म नहीं आई?’

सामने छोटी बहन बैठी थी. सो, वे एकदम हड़बड़ा गए और कड़क स्वर में बोले, ‘क्या, क्या किया क्या है मैं ने. अपने शब्दों को लगाम दीजिए.’

‘यह भी मु झे ही बताना पड़ेगा कि तुम ने किया क्या है. बेशर्मी की भी हद होती है.’

‘नहींनहीं आंटी, वह मेरी बहन थी सामने, इसलिए. अब मैं छत पर आ गया हूं. सौरी आंटी, गलती हो गई. मैं हाथ जोड़ कर माफी मांगता हूं.’

इंडी पौप करती नजर आएंगी एलनाज नौरोजी

नेटफ्लिक्स की पौपुलर सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ में अपनी एक्टिंग की छाप छोड़ने के बाद, एलनाज नौरोजी अब जल्द ही म्युजिक वीडियो से औडिएंस को एंटरटेन करती नजर आएंगी. ईरानी अभिनेत्री जल्द ही टोनी कक्कड़ के म्युजिक वीडियो ‘नागिन जैसी कमर हिला’ में किलर डांस मूव्स करती हुई दिखाई देंगी.

इस बारे में बात करते हुए एलनाज ने कहा, “मैंने इस गाने को इसलिए चुना क्योंकि मुझे लगता है कि यह बहुत ही शानदार ढंग से बनाया गया है. यह बहुत ही कैची है और मुझे उम्मीद है कि बाकी सभी को भी यह पसंद आएगा. मुझे डांस करना पसंद है और मुझे इस गाने में अपने इस टैलेंट को दिखाने का मौका मिला. एक कलाकार के तौर पर मुझे लगता है कि आपको अलग-अलग चीजें करते रहना चाहिए. मुझे भारतीय संगीत और म्युजिक वीडियो बहुत पसंद हैं. यह बहुत ही अमेजिंग है कि मुझे टोनी के साथ काम करने का मौका मिला जो देश की सबसे पसंदीदा डांस एंथम के लिए जाने जाते हैं. जब मैंने गाना सुना तो वीडियो के लिए मैंने तुरंत हामी भर दी.”

हालांकि, सेक्रेड गेम्स की अभिनेत्री ने ये भी बताया कि एक्टिंग हमेशा उनका पहला प्यार होगा. एलनाज ने कहा, “अभिनय मेरा नंबर 1 जुनून है. सेक्रेड गेम्स से पहले ये कोई नहीं जानता था कि मैं एक्टिंग कर सकती हूं. मेरा लक्ष्य पहले एक अभिनेत्री के तौर पर खुद को स्थापित करना था और फिर अपने डांसिंग स्किल्स को दिखाना था. लेकिन इसके अलावा म्युज़िक वीडियो भी स्टोरीटेलिंग का एक माध्यम है और इस गाने में मुझे अलग मंच पर एक्टिंग करने का मौका मिला जो कि रोमांचक है.”

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एलनाज ने खुलासा किया कि वह हमेशा एक डांसर रही हैं. डांस के प्रति अपने प्यार को याद करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे हमेशा से डांस करने का शौक था. एक बच्चे के तौर पर, मुझे याद है कि मेरी चाची मुझे एक पारंपरिक पर्शियन डांस सिखाया करती थी. जब मैं जर्मनी गयी तो मैं नियमित रूप से डांस क्लासेस लिया करती थी. मुझे डांस करना बहुत पसंद है और मैं इसके लिए बहुत मेहनत करती हूं.”

इतना ही नहीं बल्कि एलनाज ने ये भी कहा कि, “इस गाने के रिहर्सल के लिए उसके पास बहुत कम समय था, लेकिन उन्होंने शूटिंग के प्रोसेस का पूरा आनंद लिया. कक्कड़ के साथ काम करने के अनुभव के बारे में बात करते हुए नैरोजी ने कहा, “मुझे टोनी के गाने बहुत पसंद हैं. उनकी एक अनूठी शैली है, जो मुझे लगता है कि बहुत कूल है. उनके साथ काम करने का अनुभव अद्भुत था. वह बहुत ही अच्छे, इजी गोइंग और विनम्र है. मैं सेट पर उन्हें गाने का हुक स्टेप सिखाने की कोशिश कर रही थी क्योंकि वो डांस करने में बहुत शर्माते हैं. कोरियोग्राफर राहुल शेट्टी कमाल के थे. पूरी टीम मेरे साथ बहुत धैर्यवान थी. ”

जब उनसे एक डांस फिल्म के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा,  “अगर कोई डांस फिल्म करने का मौका मिले तो बहुत अच्छा होगा. ये बहुत ही चुनौतीपूर्ण और मजेदार होगा.”

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टौप फैशन ट्रेंड में है ‘वेलवेट की ड्रसेज’ 

वेलवेट की ड्रसेज विंटर के ब्राइडल सीजन में सबसे टौप ट्रेंड में है. केवल दुल्हन के लिये ही नहीं दूल्हे और शादी में शामिल होने आये दूसरे लोगों में भी वेलवेट पहली पंसद बनती जा रही है. इसकी वजह है कि यह फैशनेबल होने के साथ साथ सीजन के हिसाब से ठंड से बौडी को बचाती भी है. इसके साथ ही साथ वेलवेट की ड्रेसेज पर हर तरह की कढ़ाई अब होने लगी है. ऐसे में यह पहनने वाले को आसानी से दूसरों से अलग दिखाने में सक्षम होती है. ‘कारनेशन्स’ फैशन ब्रांड की ओनर शिखा सूरी कहती है ‘ब्राइडल के लिहाज से देखे तो दुल्हन की पहनने वाले लंहगों में वेलवेट हमेशा से पंसद किये जाते रहे है. शादी के विंटर सीजन में सबसे ज्यादा वेलवेट के लंहगे पंसद किये जाते हैं. अब दुल्हन के लंहगे के साथ ही साथ सिल्क की साड़ियों के साथ वेलवेट के ब्लाउज भी खूब पहने जा रहे है.

शिखा सूरी कहती है कि बहुत सारे लोगों के पास सिल्क की साड़िया पुरानी होकर अलमारी में रखी रहती है. ऐसे में उनको बाहर निकालने का समय आ गया है. सिल्क की साड़ियों पर वेलवेट के कढाई वाले ब्लाउज फैशन ट्रैंड में है. विंटर में यह बौडी को जाड़ो से बचाकर भी रखते है. शादी के सीजन में केवल दुल्हन ही नहीं अब दूसरे लोग भी वेलवेट की ड्रेसेज पहन सकते है. शिखा कहती हैं केवल इंडियन ड्रेस में ब्लाउज ही नहीं वेस्टन ड्रेसेज में भी वेलवेट खूब पसंद किये जा रहे है.

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शादी विवाह ही नहीं दूसरी पार्टीज में यूथ और बच्चों को भी वेलवेट की ड्रेसेज पंसद आ रही है. छोटी लड़कियों के लिये वेलवेट प्लेयर कुर्ता सलवार का पूरा सूट भी पंसद किया जा रहा है. यूथ लडकियां पाकिस्तानी स्टाइल के क्यूलौक्ट को मीडियम लेंथ के लूज कुर्ते के साथ पहन सकती है. क्यूलौक्ट प्लाजो और पेंसिल पैंट के बीच की चैडी मोहरी वाली पैंट टाइप की होती है. इसके अलावा शेरवानी स्टाइल का कुर्ता भी वेलवेट से तैयार होता है. वेलवेट की शौल और वेलवेट का पूरा सलवार सूट भी खूब पसंद किया जाता है.

वेलवेट की पार्टी ड्रेसेज में गाउन और लौग टयूनिख में चोकर का प्रयोग किया जाता है. चोकर गले में बांधे जाने वाला ज्वैलरी नुमा वेलवेट का कपडा होता है. इसमें सुदंर कढ़ाई की जाती है. लडकियों के पसंद आने वाले जंपशूट भी वेलवेट से बनने लगे है. काफ्रतान ड्रेसेज भी पंसद की जा रही है. इनमें कुर्ते की एक बांह पर कढ़ाई होती है और एक बांह प्लेन रहती है. शिखा कहती है इस विंटर सीजन वेलवेट सबसे ज्यादा पंसद किया जा रहा है.

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गैंगरेप आखिर कब तक ?

निर्भया कांड हो या बदायूं कांड, छोटा शहर हो या महानगर, कसबा हो या गांव, विदेशी महिला हो या गांवदेहात की, सवर्ण हो या दलित. पुरुषों द्वारा किए जाने वाले गैंगरेप की घटनाएं पिछले कुछ सालों से तकरीबन हर रोज की खबर बन गई हैं. समाज एकल बलात्कार से ही परेशान था, अब तो सामूहिक बलात्कार आम बात होती चली जा रही है. इस में पीडि़ता के बचने की संभावना न के बराबर होती है.

यदि केवल 2019 की ही बात करें, तो देश में अकल्पनीय गैंगरेप की कई घटनाएं घटी हैं. बिहार के गया डिस्ट्रिक्ट में 15 वर्षीया किशोरी के साथ न केवल गैंगरेप किया गया बल्कि उस का सिर मूंड़ कर उसे गांवभर में घुमाया भी गया. घटना अगस्त की है जब पीडि़ता अपने दोस्त के साथ रात में टहलने निकली थी. पीडि़ता के अनुसार, वह उस लड़के की गर्लफ्रैंड थी और इस बाबत उस के दोस्तों से मिलने के लिए राजी हुई थी. लेकिन, उन 6 लड़कों ने लड़की पर हमला कर दिया और उस के बौयफ्रैंड समेत सातों लड़कों ने बारीबारी उस का बलात्कार किया.

लड़कों के खिलाफ लगाए गए पीडि़ता के आरोपों को गांव के लोगों ने  झूठ माना और इसीलिए लड़की का सिर मूंड़ कर उसे गांव में शर्मसार करने के लिए घुमाया गया.

दोस्तों द्वारा किए गए गैंगरेप के मामलों की गिनती कम नहीं है. नैशनल क्राइम ब्यूरो औफ रिकौर्ड्स यानी एनसीआरबी की 2013 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2012 में 24,923 रेप की घटनाएं सामने आई थीं जिन में से 24,470 रेप पीडि़ता के किसी परिचित द्वारा किए गए थे.

ऐसा ही एक मामला सामने आया जिस में औरंगाबाद की 19 वर्षीया लड़की का उस के 4 दोस्तों द्वारा मुंबई में जन्मदिन की पार्टी के दौरान बलात्कार किया गया. लड़की अपने घर औरंगाबाद से मुंबई गई थी जहां उस के दोस्तों ने उस का जन्मदिन एक दोस्त के घर में मनाने के लिए उस से कहा. 7 जुलाई यानी लड़की के जन्मदिन के दिन केक कट जाने के बाद इन्हीं चारों ने लड़की का बलात्कार किया. इस के बाद लड़की वापस घर आ गई और इस बारे में घर पर किसी से कुछ नहीं कहा.

घटनाक्रम से करीब 2 हफ्ते बाद 24 जुलाई को पीडि़ता ने गुप्तांगों में असहनीय दर्द का जिक्र किया जिस के बाद उसे औरंगाबाद के एक हौस्पिटल में भरती कराया गया. जांच के दौरान डाक्टरों को लड़की के यौनशोषण का ज्ञान हुआ जिस पर उन्होंने स्थानीय पुलिस को इस की जानकारी दी. पुलिस की पूछताछ के दौरान पुराना मामला सामने आया और मुंबई, जहां दुष्कर्म को अंजाम दिया गया था, में मामला दर्ज किया गया. पीडि़ता को आई अंदरूनी चोटों के कारण कुछ ही दिनों में उस की मृत्यु हो गई.

ऐसी ही एक घटना सितंबर की है जब देवरिया के एक जिले में कक्षा 8 में पढ़ने वाली लड़की का रात के अंधेरे का फायदा उठा रेप किया गया. पीडि़ता के अनुसार, वह घर के पास के हैंडपंप से पानी भरने गई थी जब पड़ोस के गांव के 2 लड़के उस का मुंह दबा कर उसे सुनसान जगह ले गए और वहां दुष्कर्म को अंजाम दिया. लड़की ने यह भी बताया कि उसे धमकी भी दी गई कि यदि वह किसी को कुछ भी बताती है तो वे दोनों उस के घरवालों को मार डालेंगे.

अगली सुबह लड़की घर पहुंची तो इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी उस के घरवालों को लगी और उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई. प्रोटैक्शन औफ चिल्ड्रन फ्रौम सैक्सुअल औफेंसेस यानी पोस्को तथा आईपीसी की अनिवार्य धाराओं के अंतर्गत मामले की एफआईआर दर्ज की गई.

निर्भया गैंगरेप के 6 में से 4 आरोपियों को आखिरकार फांसी की सजा मुकर्रर की गई. आरोपी राम सिंह द्वारा आत्महत्या करने और नाबालिग दोषी के अपनी सजा पूरी करने के बाद मुकेश, अक्षय सिंह, पवन गुप्ता व विनय शर्मा को फांसी दिए जाने से पहले राष्ट्रपति को दया याचिका लिखने को कहा गया है. इस के अलावा यदि वे ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हैं या रिव्यू पिटीशन दायर करते हैं तो मामले पर एकबार फिर सुनवाई होगी या नहीं, यह कोर्ट तय करेगा.

अधिवक्ता बी एम डी अग्रवाल कहते हैं, ‘‘फास्ट टै्रक अदालत गठित करने, त्वरित दंड प्रक्रिया अपनाए जाने पर भी समाज में भय नहीं दिख रहा. यह चिंता का विषय है. अपराधी को दंड देने के पीछे समाज को संदेश देना भी होता है ताकि आगे वैसे अपराध न हों. पहले रेप थे, फिर गैंगरेप और अब रेप विद मर्डर का आम चलन होता जा रहा है. पूरे समाज में चरमराहट शुरू हो गईर् है.’’

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डा. समीर मल्होत्रा जानेमाने मनोचिकित्सक हैं. वे इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं, ‘‘गैंगरेप गु्रप बिहेवियर है. इसे मनोविज्ञान में कंडक्ट डिस्और्डर कहा जाता है. यह एकदूसरे को उकसावा देने वाली गतिविधि है. गलत आचरण या कंडक्ट पर जब दोस्तों या घरवालों की सख्ती काम नहीं करती तो ऐसा मान लिया जाता है कि उस की स्वीकृति है. सो, ऐसे कंडक्ट को जानेअनजाने बढ़ावा मिलता है.

‘‘अकसर लोग साथसाथ नशा करते हैं. नशा सैक्स की चाहत को तो बढ़ाता ही है, साथ ही तनमन की नियंत्रण क्षमता को कम कर देता है. ऐसे में एक तरह की मनोस्थिति वाले लोगों का एकसाथ एक महिला के साथ दुराचरण करना स्वाभाविक हो जाता है.’’

कानूनी सख्ती के बावजूद रेप, गैंगरेप में बढ़ावा होने की बाबत डा. समीर मल्होत्रा कहते हैं, ‘‘कानूनी सख्ती उतनी ही सख्ती से समाज और हर केस में लागू हो, यह जरूरी नहीं. अपराधी, दुराचारी आज धड़ल्ले से बच निकल रहे हैं. ऐसे में समाज में गलत संदेश जा रहा है. साथ ही, गु्रप ऐक्टिविटी में अपराध साबित करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए भी यह ऐक्टिविटी बढ़ती जा रही है. शायद ही पकड़े जाएं…मैं ने ही मारा है, कैसे साबित होगा… कईयों के अपराध के बीच या बाद में छूटे प्रमाण अपराधियों को संदेह का लाभ दे सकते हैं…जैसी कई बातें बलात्कारियों के जेहन में रहती हैं. इसलिए भी गैंगरेप बढ़ रहे हैं.’’

प्रकृति व समाज विज्ञानी संसार चंद्र कहते हैं, ‘‘एकल रेप में अपराधी के पकड़े जाने की स्थिति ज्यादा रहती है. इसलिए भी रेप की तुलना में गैंगरेप बढ़ रहे हैं. जहां एकल रेप का अपराधी अकेला प्रताडि़त अनुभव करता है, वहीं समूह में ऐसा नहीं होता. समूह में बदनामी, सजा, गिल्ट, जिम्मेदारी सबकुछ बंट जाती है. अपने जैसे वाला भाव शर्म, कुकृत्य का भाव नहीं जगाता.’’

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आचरण पर अविश्वास

सामूहिक रेप के आरोपी के रिश्तेदार अदालती सुनाई के दौरान अकसर कहते हैं, ‘हमें लगता है हमारे बेटे को गलत फंसाया गया. हमें नहीं लगता वह ऐसा कभी कर सकता है.’ वे यह भी कहते हैं कि वे आखिर तक उसे बचाने के लिए लड़ेंगे. गैंगरेप में अपराधी में यह सोच भी आ जाती है या आ सकती है कि अपनों द्वारा होने वाले संदेह से उन को लाभ मिल सकता है.

उपयुक्त पेरैंटिंग का अभाव : ड्राइवर रामसिंह (निर्भया कांड के सजाप्राप्त) ने आत्महत्या कर ली. उस के घरवाले उस के प्रति आरोप के साबित हो जाने के बाद भी चारित्रिक विश्वास व्यक्त करते रहे. जब अदालत ने मय प्रमाणों के उस विश्वास का खंडन किया तो आत्महीनता और ग्लानि ने अपराधी को मरने के लिए उकसाया. व्यक्तित्व विकास, प्रौपर ग्रूमिंग व मार्गदर्शन का अभाव इस प्रकार की आत्महत्या का जिम्मेदार है.

गृहिणी नसीम (परिवर्तित नाम) कहती हैं, ‘‘मेरी पड़ोसिन ने मु झे बताया कि मेरा 13 साल का लड़का छोटीछोटी लड़कियों के साथ सीढ़ी पर बेजा हरकत करता है तो मैं ने पड़ोसिन को बुरी तरह फटकार दिया. एक दिन लड़की की मां व चाची बुरी तरह हंगामा मचाती हमारे घर पहुंचीं तो मैं हिल गई. मैं तब मना कर रही थी. इस बीच, मेरे पति आ गए. उन के साथ एक पीडि़त बच्ची भी थी, छोटी सी प्यारी सी. मेरे पति मु झ पर बिफरेबरसे, ‘तू ने लड़के को बिगाड़ रखा है. तु झे दूसरों की बेटी नहीं दिखती.’ तब बात सामने आई. वाकई छोटी बच्ची  झूठ नहीं बोल सकती.’’

नसीम के बेटे ने उस लड़की के वस्त्रों के अंदर हाथ डाला या दबाया और दोस्तों ने उस के होंठ चूमे. जब लड़के के पिता ने कहा कि यह एक दिन फांसी चढ़ेगा, तो नसीम रोने लगी और सब से माफी मांगी. रैजिडैंट वैलफेयर एसोसिएशन के हस्तक्षेप से कार्रवाई हुई. बच्चों को मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया. परंतु वे सरकारी आवास छोड़ कर गाजियाबाद के पास ही एक गांव में शिफ्ट हो गए हैं. नसीम कहती हैं कि जो लड़का पढ़नेलिखने में इतना आगे हो, घर में सहयोग करता हो, उसे मैं गलत कैसे मान लूं.

नसीम के पति से जब हम ने पूछा कि भाईसाहब, आप ने अपनी पत्नी जैसा विश्वास अपने बच्चे पर व्यक्त क्यों नहीं किया, तो वे बोले, ‘‘एक तो सचमुच मैं लड़के की गतिविधियों पर शर्मिंदा था. मैं भी तो बेटियों वाला हूं. कोई क्यों अपनी बेटी की बदनामी कराएगा. फिर मैं भी नसीम की तरह करता तो आज पुलिस केस बन जाता और कल यह किशोर बंदीगृह में होता. मैं इस के दोस्तों के पिता से भी मिला. वे अपने बच्चों पर ऐसा ही विश्वास व्यक्त कर रहे थे. उन्हें बहुत मुश्किल से मैं ने काउंसलिंग के लिए मनाया. मैं समाज के 8-10 रसूखदार लोगों को ले कर लड़की के यहां माफी मांगने गया, तभी केस बनने से बचा. बच्चे पर विश्वास रखना अच्छा है, पर यह विश्वास सच्चा हो, सिर्फ औलाद होने या पक्ष लेने पर आधारित न हो.’’

शह को मिले मात : तवलीन ने मां को बताया कि उस का भाई व उस के दोस्त अजीब नजरों से लड़कियों को घूरते हैं और चुपचाप छत पर बतियाते हैं. तो, मां ने उसे ही 2  झापड़ मार दिए, बोली, ‘‘भाई की बदनामी कराती है? मेरा बच्चा इस उम्र में हंसेगाखेलेगा नहीं तो कब हंसेगाखेलेगा? पापा से बकवासबाजी करने व कहने की कोई जरूरत नहीं.’’ तवलीन बताती है, ‘‘मैं ने स्कूल काउंसलर से यह बात कही. उन्होंने इसे बेहद चिंताजनक बताया. मैं ने उन से जबरन मम्मी की बात कराई. मम्मी उन से भी वैसी ही बातें करने लगीं. एक दिन मम्मी का लाड़ला चौराहे पर सरेआम अधमरा कर दिया गया. तब भी मम्मी की बात सुनने लायक लगी, ‘मेरा बेटा निर्दोष लग रहा था.’ पर आज उन का वश नहीं चल पाया. पापा को यह बात पता लगी तो उन्होंने मम्मी को डांटा. भाई के तन के साथ मन का इलाज भी कराया गया. अब वह बहुत जिम्मेदार हो गया है.’’

देर न करें : नीरज को भी अपना लाड़ला प्यारा लगता है. अचानक मोबाइल पर 100 रुपए डाउनलोड करने के कटे तो वे औफिस के चपरासी पर शक करने लगे. खैर, डाउनलोड समय पर गौर किया और बेटे पर नजर रखी तो पता चला वह सैक्सी व हौट वीडियो देखता व डाउनलोड करता है. तब बेटे के दोस्त बन कर किसी तरह समस्या से नजात पाई. वे बताते हैं, ‘‘फिर भी मैं कहता हूं, बच्चे को काबू करना आसान नहीं होता. मेरी तरह आप देरी न करें. बच्चों का पक्ष लेना, उन पर भरोसा व्यक्त करना, औरों को दरकिनार करना, उन लोगों पर अविश्वास करना आप की समस्या को बढ़ाता ही है. हां, आप बच्चे को, उस की गलतियां जान कर, ढंग से हैंडिल करें. सख्ती व दंड से ही नहीं. घर में प्यार, अपनेपराएपन का अभाव व भावनात्मकता और सम झदारी का वातावरण होना जरूरी है.’’

मनोचिकित्सक डा. अरविन कामरा कहते हैं, ‘‘आज बच्चे, बच्चे नहीं रहे, वे जल्दी बड़े होने लगे हैं. उन के हार्मोन, सैक्सुअल डिजायर भी जल्दी जागने लगे हैं. ऐसे में उन के साथ दोस्ताना व्यवहार जरूरी है. आज सबकुछ बच्चों की पकड़ व पहुंच में है. कुछ भी छिपाना संभव नहीं. इसलिए समय रहते उन्हें सबकुछ सम झा दिया जाए.’’

डिस्और्डर भी : मनोचिकित्सक डा. समीर मल्होत्रा कहते हैं, ‘‘एंटी सोशल पर्सनैलिटी डिस्और्डर का संकेत मिलते ही चेतें. बच्चे व किशोर की एनर्जी सही रूप से चैनेलाइज करें, उन्हें खाली न छोड़ें. दोस्तों व मिलनेजुलने वालों के संपर्क में रहें. अपोजिट जैंडर के प्रति रवैए पर ध्यान दें, गलत है तो सुधारें. बहुत गोपनीयता न रखें.’’

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क्या बच्चे, क्या बड़े, क्या बूढ़े : रेप व गैंगरेप में हर उम्र और तबके के लोग शामिल हो रहे हैं. यह बहुत ही चिंता का विषय है. जिन पर बच्चों को सुधारने, पालनपोषण, मार्गदर्शन करने, मर्यादा वहन करने का जिम्मा है वे भी अगर इस तरह की गतिविधियों में लग जाएं तो ऐसे समाज में अनुशासन और मर्यादा रखना मुश्किल है. ‘आजकल 6 से 66 साल तक सब चलता है’ जैसी बातें आम हैं.

कैसेकैसे दंश : दिल्ली की सीमा चौहान 378 नंबर सिटी बस का वाकेआ सुनाती हैं. ‘‘मैं नियमित इस रूट पर जाती हूं. एक दिन दंग रह गई जब 75-80 साल के वृद्ध ने 9-10 साल की लड़की के स्तन भीड़ में इस तरह मसल दिए कि वह जोरों से चीख कर रो पड़ी. सब ने मिल कर उस व्यक्ति को पुलिस के हवाले कर दिया. यह पुलिस हैडक्वार्टर के बिलकुल पास की बात है. किशोरी को रोते देख कर भी पुलिस वाला उस बूढ़े पर रहम करने को कहने लगा. अब जनता का गुस्सा फूट पड़ा. लोगों ने बुरी तरह मारना शुरू किया तो पुलिस वाले अपने वाहन में बैठा कर उसे ले गए.’’

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युवा छात्रा चेतना कहती है, ‘‘एक बार 540 नंबर बस में मेरी बगल में अपना यौनांग घुसा देने वाले व्यक्ति को मैं ने डांटा, विरोध किया, तो लोग मु झे ही दबाने लगे, ‘अरे, इस की उम्र देखो, कब्र में पैर है बेचारे का…’ इस से उस व्यक्ति को ऐसी शह मिली कि वह बोला, ‘इस से सुंदर तो मेरी बीवी है. इस उम्र में भी इस से बढि़या लगती है.’

‘‘तब मैं ने तुगलक रोड थाने पर बस रुकवाने को कहा, 100 नंबर पर फोन भी किया. बस थाने पर रुकी तो लोग चिल्लाने लगे. मु झे व उस व्यक्ति को नीचे उतार कर बस चलाने को कहने लगे. उस दौरान निर्भया कांड नयानया था. पुलिस दबाव में थी. सो, वह आई. तब भी लोग मेरे खिलाफ बोलने लगे, ‘इतना हठ कोई करता है क्या बस में. ऐसा स्वभावतया हो जाता है, वरना अपनी गाड़ी में चलो.’

‘‘दिल्ली पुलिस के एसआई ने मेरे रुख को भांप लिया. उस ने सब को डांटा और कहा, ‘तुम्हारी बहनबेटी होती तो क्या ऐसे ही करते तुम. मैं सब पर कार्यवाही करूंगा. सही न बताओ तो कम से कम गलत को तो मत दबाओ.’ इस पर लोग मु झ पर उस व्यक्ति को माफ करने का दबाव बनाने लगे. खैर, पुलिस ने उस से सच पूछा और सच बताने पर हलके ऐक्शन का आश्वासन (जिसे मैं ब्राइब कहती हूं) दिया तब उस ने सच कुबूला.

‘‘तब उस को उतारा. उस के  घरवालों को बुला कर सच बताने की बात कह कर उसे थाने में बैठाया.

‘‘पर मैं अब इतनी आक्रामक हो गई हूं कि अपनी रक्षा के लिए गुहार लगाना या किसी से उम्मीद करना गुनाह सा लगता है. मेरे वक्ष को घूरने पर मैं 2 लड़कों को पीट चुकी हूं. होली पार्टी में हग व किस कर लेने वाले जीजा को मारपीट कर नीचे गिरा चुकी हूं. मु झे लगता है कि मेरे हाथ से कहीं किसी का मर्डर न हो जाए. किसी से हंसतीबोलती, बतियाती नहीं. मेरे घर वाले बेहद परेशान हैं. फिल्मों में नाचती औरत देखना, बेवजह की चूमाचाटी, पियक्कड़ी इन सब से मु झे घृणा हो गई है.’’

स्टिग्मा क्यों : मनोचिकित्सक अरविन कामरा कहते हैं, ‘‘दुर्भाग्य से हमारे यहां काउंसलिंग और मनोचिकित्सा व उस के पेशेवरों से मार्गदर्शन पाना कौमन नहीं है. इस का चलन नहीं है. ऐसी जगह जाने वाले पागल, बीमार तथा समाज के लिए अनुपयुक्त माने जाते हैं. जबकि यह सब हर स्टेज पर जरूरी है. मांबाप की व्यस्तता, भौतिकवादी जीवनशैली, मर्दानगी के मानदंड आदि सब भ्रमित किए हुए हैं.’’

डा. अरविन कामरा इस तथा ऐसे केसों पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहते हैं, ‘‘ऊपर लिखित मामले में चेतना जो बिहेवियरल चेंज महसूस कर रही है वह समाजजनित व्यवहार है. अपने चारों ओर के प्रति उस की जो अविश्वासभरी प्रतिक्रिया है, वह स्वाभाविक है. ऐसे में तुरंत काउंसलिंग मिल जाए तो व्यक्ति को समाज में अनुकूलित किया जा सकता है, वरना व्यक्तित्व विखंडन हो सकता है. मनोचिकित्सा रूटीन जीवन का हिस्सा हो, उसे छिपाने या चुपकेचुपके मिलनेजुलने वाली स्थिति नहीं मानना चाहिए.’’

अलर्ट होने पर मिलता है लाभ: विदेशों में मनोचिकित्सा रूटीन हैल्थचैकअप का हिस्सा है. व्यवहार में थोड़ा भी परिवर्तन आने पर लोग मनोचिकित्सकों से सलाह लेते हैं और अपने बच्चों व घरवालों को सलाह दिलवाते हैं.

रेप व गैंगरेप में यह बात कैसे लागू होती है? इस के जवाब में डा. कामरा कहते हैं, ‘‘यकीनन, इस तरह का कांड करने वाले लोगों का व्यवहार आसानी से महसूस किया जा सकता है. उन के घरवाले या दोस्त अथवा उन के संपर्क में रहने वाले लोग उन के हावभाव, रिऐक्शन, ऐक्शन, चीजों को देखने की स्टाइल, नजरिया आदि से सब सम झ जाते हैं. अंतर्मन व बौडी लैंग्वेज को दबाना या बहुत देर तक नजरअंदाज करना आसान नहीं होता. बच्चों में उग्रता, हिंसा, अति वाचालता या इस के विपरीत अनबोलापन, उदासीनता जैसी स्थितियां हों तो उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए. कई बार बच्चे की शांति, उदासीनता मांबाप को अच्छी व सुविधाजनक लगती है पर वह अवसादकारी एवं निकट भविष्य के लिए विस्फोटक भी हो सकती है. सो, खुद कुछ तय न करें, बल्कि मनोचिकित्सक से सलाह लें.’’

 बलात्कार व हमारा समाज

औरत को समाज कितना सम्मान देता है, इसे समाज की सभ्यता का मापदंड माना जाता है. यह भी एक सचाई है कि कोईर् भी सभ्यता तब तक पूरी तरह से विकसित नहीं मानी जा सकती जब तक उस में नारी को आदर व सम्मान न प्राप्त हो. गहराई से देखा जाए तो जीवन के ठोस धरातल पर खड़ा हुआ पुरुष समाज नारी के बिना अधूरा है.

नारी ऐसी देवी है जो हमारे समाज को आगे बढ़ाने के लिए क्याक्या त्याग नहीं करती. फिर भी पुरुष उसे नारी न मान कर मनोरंजन का साधन ही मानता चला आ रहा है. आदमी अपनी हवसपूर्ति के लिए आएदिन बलात्कार जैसा घिनौना अपराध करता है जिस में, बेचारी औरत का दोष नहीं होता, फिर भी वह इसे एक अभिशाप सम झ कर जीवनभर दुख  झेलने को विवश है.

आज आदमी एक ओर जहां अपने समान ही औरतों को अधिकार दिलाने के लिए हर पल कोशिश कर रहा है, वहीं कुछ लोगों के चलते पुरुष वर्र्ग बदनाम भी हो रहा है. बलात्कार पुरुष द्वारा किया गया ऐसा घिनौना अपराध है जोकि हत्या जैसे जघन्य अपराध से भी बुरा है. बलात्कार की शिकार नारी खुद अपनेआप से घृणा करने लगती है और कई बार इसी घृणा के फलस्वरूप वह आत्महत्या तक कर लेती है.

समाज में लड़कियों के दिमाग में यह बात बचपन से ही बैठा दी जाती है कि उस के लिए उस की इज्जत सब से बड़ा गहना है और इस की रक्षा उसे करनी है. जब तक वह इस की रक्षा करती है, तभी तक पवित्र है. जिस दिन उस के साथ बलात्कार हो गया उसी दिन उस का दामन दागदार हो गया और वह समाज में सिर उठा कर चलने लायक नहीं रही. जबकि बलात्कार लड़की तो नहीं करती, उस का तो जबरन शीलभंग किया जाता है. अगर दूसरा कोई जबरदस्ती शीलभंग करता है तो फिर लड़की गुनाहगार कैसे हो गईर्?

औरत के लिए पवित्रता, अपवित्रता तो हमारे अपने मन की धारणा है. शरीर से कोईर् पवित्र है, तो कोई मन से पवित्र है. मान लीजिए कोई शरीर से तो पवित्र है पर मन से अपवित्र, है, तो क्या आप खुद उसे पवित्र मानेंगे? जिस घटना के लिए लड़की दोषी नहीं, तो फिर उसे आजीवन दुख क्यों  झेलने पड़ते हैं?

कुछ समाजसेविकाओं ने इस संदर्भ में सु झाव दिया कि बलात्कार को एक अभिशाप की तरह नहीं, बल्कि किसी सड़क दुर्घटना की तरह माना जाना चाहिए, जिस तरह सड़क दुर्घटना में किसी का पैर टूट जाता है, तो किसी का हाथ जख्मी हो जाता है, उसी प्रकार बलात्कार के मामले को भी लेना चाहिए. बलात्कार को पवित्रता से जोड़ कर औरत को जिंदगीभर दुखी नहीं रहना चाहिए.

बलात्कार होता क्यों है?

बलात्कार का कारण यौनशिक्षा का अभाव है. लड़केलड़कियों को अलग रखने की कोशिश ही उन्हें सैक्स को जानने के लिए प्रेरित करती है. फलस्वरूप, यह जघन्य अपराध होता है. पर दूसरे पहलुओं पर भी अगर गौर किया जाए तो कईर् बातें उभर कर सामने आती हैं, जिन से कुछ कहने जैसी बात ही सम झ में नहीं आती.

राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक कारणों के चलते भी बलात्कार की घटनाएं घटती हैं. जब से राजनीति में आपराधिक तत्त्वों का प्रवेश हुआ है तब से बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है.

धार्मिक कारणों की तरफ ध्यान दें तो आज भी हमारे देश में कईर् ऐसी कुप्रथाएं हैं जिन के चलते औरत का शारीरिक शोषण आज भी अनवरत जारी है. सामंती व्यवस्था के चलते बड़ी जाति व छोटी जाति के बीच गहरी खाईर् है. इस सब का दुष्परिणाम बलात्कार के रूप में सामने आता है.

आंकड़े बताते हैं कि बलात्कार की अधिकांश घटनाएं गरीब महिलाओं व लड़कियों के साथ ही होती हैं. गरीबी के चलते परिवार के भरणपोषण के लिए उन्हें भी काम के लिए इधरउधर भटकना पड़ता है, जिस के चलते कब कामांध पुरुष द्वारा उन की इज्जत लूट ली जाए, कोईर् भरोसा नहीं. ये गरीब महिलाएं धन की कमी के कारण पुलिस व कचहरी के चक्कर भी नहीं लगा पातीं.

बलात्कार को पुरुष एक हथियार के रूप में भी प्रयोग करता है. अगर महिला को चुप कराना हो तो जबरन उसे बलात्कार का शिकार बनाया जाता है. अगर पुरुष को भी चुप कराना हो तो उस की मां, बहन, बेटी, पत्नी आदि को बलात्कार का शिकार बना दिया जाता है.

कुछ बलात्कार तो मानसिक विकृतियों के चलते होते हैं. इन मानसिक विकृतियों के चलते 4-5 साल की बच्चियां भी बलात्कार का शिकार हो जाती हैं. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मासूम बच्ची आखिर क्या यौनसुख दे पाएगी. यह तो केवल पागलपन की ही निशानी है

अधिकांश बलात्कार के मामले में परिवार के लोग या खुद महिलाएं या लड़कियां परदा डाल देती हैं. अगर मान लीजिए, महिला सब जलालत सह कर पुलिस कार्रवाई द्वारा मदद लेना चाहे तो वहां भी अधिकतर महिला को परेशान ही किया जाता है. सही तरह से मैडिकल जांच न हो, इस के लिए उसे खूब इधरउधर दौड़ाया जाता है, जिस से उस का समय बरबाद हो.

यदि बलात्कारी पुरुष पहुंच व पैसे वाला है तो वह अपने प्रभाव से पुलिस कार्रवाई पर दबाव डालता है. मान लीजिए, बलात्कार के मामले में पुलिस अधिकारी ईमानदारी से कार्रवाई करता है तो बलात्कारी पुरुष भुक्तभोगी महिला या उस के परिवार पर केस वापस लेने के लिए दबाव डालता है.

कई ऐसी घटनाएं भी देखने को मिली हैं जिन में खुद पुलिसकर्मी द्वारा छेड़छाड़ या बलात्कार करने का प्रयास किया गया.

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यौनहिंसा अमानवीय कृत्य होने के साथ ही महिला की गोपनीयता और पवित्रता के अधिकार में गैरकानूनी हस्तक्षेप है. यह महिला के सर्वोच्च सम्मान पर गंभीर आघात है. यौनहिंसा उस के आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा को भंग करता है. यह भुक्तभोगी को बदनाम तथा अपमानित करता है. यह अपराध अपने पीछे भयावह सदमे को छोड़ जाता है.

शासन व अदालत द्वारा किए गए प्रयासों से इस समस्या का हल नहीं मिल पाएगा. जरूरत है कि हमारा समाज भुक्तभोगियों को अतीत के गर्त से निकाल कर यथार्थ की जिंदगी में प्रवेश कराने की कोशिश करे, जिस से भुक्तभोगी औरत हीनभावना की शिकार न हो सके.

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 कुंठा और हीरोइज्म के

 चलते घिनौनी करतूत

डा. नीलेश तिवारी, मनोचिकित्सक

सामूहिक बलात्कार ऐसी ही नैगेटिव ऐक्टिविटीज में लगे लोग न नकारात्मक, आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं. निगलैक्ट पासर बाई-फैक्ट के कारण भी ऐसा होता है. इस इफैक्ट का मतलब है भीड़ में एक आदमी कुछ निगलैक्ट करता है तो दूसरा भी, तीसरा भी ऐसा करने लगता है. यानी, एक व्यक्ति नहीं बोलता तो उस की देखादेखी दूसरे लोग भी ऐसा करने लगते हैं. भीड़ में नो अलार्म इफैक्ट की स्थिति रहने से लोग गलत काम अब समूह में ज्यादा कर रहे हैं ताकि, उन पर किसी का ध्यान कम जाए. जाए भी तो बंट जाए. ऐसे में क्राइम करने के बाद बचे रहने की संभावना बढ़ जाती है.

गैंगरेप सैक्सुअल एक्ट ही नहीं है, यह वायलैंस भी है. इस में एक ही साइकोसोशल बैकग्राउंड के लोगों के प्रवृत्त होने की संभावना ज्यादा रहती है. समाज के निगलैक्ट और लो फाइनैंशियल स्टेटस के लोगों को इस में ज्यादा लिप्त देखा जा रहा है क्योंकि और क्षेत्रों में उन के लिए अपनेआप को प्रूव करना थोड़ा मुश्किल (बल्कि काफी कठिन) रहता है. उन की महत्त्वाकांक्षाओं को आउटलेट नहीं मिलता. समाज में उन्हें ठीक नजर से नहीं देखा जाता या खास महत्त्व नहीं दिया जाता. समाज की असमानता से ऐसे लोगों की आक्रामकता बढ़ती रहती है. वे समाज में टिपटौप और बड़े लोग देखते हैं तो सोचते हैं, ऐसी ऊंचाई या उपलब्धि को छूने वाले का उन्हें अधिकार क्यों नहीं? यही बात लड़की को देख कर भी उन्हें मन में आती है कि इसे मैं क्यों नहीं पा सकता. चूंकि, मैं सचमुच में इसे नहीं पा सकता, इसलिए भी एकजैसे लोग मिल कर अपनी इस दमित भावना व कुंठा के वश ऐसा करने में लग जाते हैं. इस तरह प्रवृत्त होने के बाद वे अपने साथियों व दोस्तों के सामने हीरोइज्म और मर्दानगी साबित करने की होड़ लगा लेते हैं. ऐसे में लड़की के जिस्म से घिनौना खेल खेलने के बाद उस की सहज हत्या कर बैठते हैं. उदाहरणार्थ, निर्भया केस में नाबालिग आरोपी ने हीरोइज्म दिखाने के फेर में बड़ी उम्र वालों को पीछे छोड़ने की मानसिकता में ही स्क्रूड्राइवर का उपयोग किया.

मिल कर करने होंगे प्रयास

सरकार को सब को शिक्षा व रोजगार मुहैया कराने के साथ जनहित की सभी नीतियों को ईमानदारी से लागू किया जाना सुनिश्चित करना होगा. शहरी सुविधाएं गांवों में पहुंचाई जाएं. वहां रोजगार के अवसर हों ताकि घर, गांव, खेती आदि को खोने का दुख लोगों को बागी और विद्रोही न बनाए.  झुग्गी झोंपड़ी का जीवन उन्हें डिमोरलाइज करने वाला तथा नैगेटिव एक्ट में प्रवृत्त करने वाला लगता है. इसराईल, वियतनाम तथा दूसरे ऐसे ही देशों की तरह हर भारतीय को शब्दों से देशभक्त बनाने के बजाय ऐक्शन से देशभक्त बननेबनाने का प्रशिक्षण दिया जाए.

ब्रा, ब्यूटी, बौडी के प्रदर्शन के पसरते मायाजाल के बारे में औरतों को सम झाया जाए. नीति, नैतिकता और मूल्यों की बात करने वाला मीडिया भी ब्रा, ब्यूटी, बौडी का प्रदर्शन कर औरत को प्रदर्शन की चीज, भोग्या बताताबनाता है. ‘ग्लैमर, विज्ञापन के बिना फिल्में चल नहीं सकतीं,’ के नाम पर छूट लेना इन हरकतों को बढ़ावा देता है. कन्याभ्रूण हत्या व महिलाओं की उपेक्षा के चलते सामाजिक ढांचे में असंतुलन आ रहा है, इसे संतुलित किया जाए. सैक्स, यौनशिक्षा ही नहीं, नैतिकता की शिक्षा भी दी जाए.

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