पशु ताकत का इस्तेमाल खेती के कामों में दिनोंदिन कम हो रहा है, जिस के चलते इंजन, ट्रैक्टर, पावर टिलर व मोटरों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, लेकिन ऐसा कहना ठीक होगा कि देश में सभी पावर साधनों का इस्तेमाल होता रहेगा.

खेती की मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए एक लंबी योजना तैयार कर के उसे लागू करना होगा. मौजूदा संसाधनों व सामाजिक और माली हालात को ध्यान में रखते हुए छोटे किसानों को सही फार्म मशीनरी के चुनाव पर ज्यादा बल देना होगा. देश के ज्यादातर किसान छोटे किसानों की कैटीगरी में आते हैं, जो ज्यादा पावर वाले व कीमती ट्रैक्टरों को नहीं खरीद सकते.

अगर बीज की बोआई और रोपाई वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो पैदावार में औसतन 15 फीसदी की बढ़वार होती है. अगर खरपतवार की रोकथाम, कटाईमड़ाई, सिंचाई और धान या गेहूं व दलहनी फसलों की मड़ाई में वैज्ञानिक तकरीकों को अपनाया जाए तो पैदावार में काफी बढ़ोतरी हो सकती है.

मशीनीकरण व पावर के इस्तेमाल से पैदावार का सीधा संबंध है. भारतीय खेती में पशु पावर और खेतिहर मजदूर शामिल हैं. फिर भी छोटे व मध्यम दर्जे के किसानों के लिए यह पावर पूरी नहीं है. अगर प्रति हेक्टेयर मुहैया पावर को देखा जाए तो विकसित देशों के मुकाबले अभी भी हम काफी पिछड़े हुए हैं.

आधुनिक फार्म मशीनरी के इस्तेमाल से ज्यादातर खेतों से साल में कम से कम 2 फसलें लेना मुमकिन हो गया है. इस के साथसाथ बढि़या मशीनों, बीज व खाद को सही गहराई और दूरी पर डाल कर किसान पैदावार बढ़ाने में काबिल हो सकते हैं. प्रसार व ट्रेनिंग की कमी से किसानों में खेती की मशीनों के प्रति जानकारी की कमी, समय पर बैंकों से लोन हासिल न होना और अच्छी फार्म मशीनरी का समय पर मुहैया न होना वगैरह कुछ ऐसी वजहें हैं, जिन से फार्म मशीनरी का फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है.

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