आज तो हद ही हो गई. दुर्गा प्रसाद की आज हिम्मत इतनी बढ़ गई कि उस ने मुझे जोर से एक मुक्का मारा और सामने के 2 दांत हिला दिए. यह रोज का किस्सा होने लगा था. नल में रोज पानी नहीं आता था और जब नगर निगम का टैंकर आता था, तब से महल्ले वाले तो पानी के लिए लाइन में लग जाते थे, पर ये दुर्गा प्रसाद लोगों से लड़ कर लाइन के आगे पहुंच जाता था. सिर्फ मुझ से ही नहीं, औरों से भी लड़ाई करता था. लोग डरते सिर्फ इसलिए थे कि वह कलैक्टर औफिस में काम करता था. वक्तबेवक्त हो सकता है कि काम पड़ जाए.

पर, मैं क्यों डरूं? मैं तो खुद इज्जतदार आदमी था और एक स्कूल में हैडमास्टर था. मेरे दांत टूटने पर मेरे बड़े लड़के ने कहा, ‘‘पापा, आज तो हद ही हो गई. आज जरूर इस की शिकायत थाने में करनी चाहिए, वरना इस की हिम्मत रोज बढ़ती जाएगी.’’ मैं ने भी आज फैसला कर लिया कि मैं अभी थाने में इस के विरुद्ध एफआईआर लिखवाता हूं.

थाने में जाते समय मेरे साथ 2-3 महल्ले वाले भी तैयार हो गए. पर सब ने यही कहा कि अभी सिर्फ 7 बजे हैं, थाने में अभी कुछ भी व्यवस्थित नहीं होगा. पर मुझे तो उस की ऐसीतैसी करने का भूत सवार था. सोच लिया था कि आज इधर या उधर.

थाने में जब मैं पहुंचा तो लोगों की सोच के विपरीत आज थाने में सब लोग ज्यादा ही मुस्तैद लग रहे थे. मेरे पूछने पर कि ‘शिकायत कहां लिखवाएं,’ मुझे हवलदार भीम सिंह के पास भेज दिया गया. वह भी मुस्तैदी से अपना रजिस्टर खोल कर कुछ काम में व्यस्त दिखाई दे रहा था. हम को लगा, हो सकता है कि जरूर ऊपर वालों की सख्ती से यह मुस्तैदी दिखाई दे रही है. मैं जैसे ही उस के पास पहुंचा, वह बोला, ‘‘हां, बोलिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

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