लेखक: डा. बसंतीलाल बाबेल
लिवइन रिलेशनशिप 21वीं सदी की एक महत्त्वपूर्ण नवीनतम अवधारणा है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा शर्मा बनाम वी के वी शर्मा (एआईआर 2014 एससी 309) के मामले में इसे एक हद तक मान्यता प्रदान की गई है. इस अवधारणा के पीछे व्यक्ति के जीवन जीने की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का प्रभाव है. यह एक प्रचलित व्यवहार पर कानूनी मुहर है. जो लोग इसे अनैतिक मान रहे थे उन के लिए यह एक चुनौती है.
लिवइन रिलेशनशिप में 2 व्यक्ति (पुरुष व स्त्री) स्वेच्छा से एकसाथ रहते हैं और यौन संबंध स्थापित करते हैं. वे एकसाथ ऐसे रहते हैं जैसे पतिपत्नी रहते हैं. लेकिन लिवइन रिलेशनशिप से कानूनी वैवाहिक दर्जा दोनों को नहीं मिलता. यह स्वाभाविक तौर से 2 व्यक्तियों की आपसी चौइस और रजामंदी का परिणाम है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस लिवइन रिलेशनशिप को मान्यता दी कि ऐसे लोग जो लंबे समय से शांतिपूर्वक एकसाथ रह रहे हैं, उन्हें तंग या परेशान नहीं किया जाए. पुलिस अधिकारी भी उन के संबंधों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करें कि वे बिना पंडितमौलवी या अदालत के ठप्पे के साथ क्यों रह रहे हैं.
दीपिका बनाम स्टेट आफ उत्तर प्रदेश (एआईआर 2014 इलाहाबाद) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि जहां पुरुष व स्त्री स्वतंत्र इच्छा से पतिपत्नी के रूप में एकसाथ रह रहे हों तथा उन का जीवन शांतिपूर्वक चल रहा हो, वहां उन के मातापिता या रिश्तेदारों की शिकायत पर पुलिस अधिकारी द्वारा उन के शांतिपूर्वक जीवन में हस्तक्षेप करने का हक नहीं. ऐसे मामलों में अकसर लड़की के मातापिता पुलिस में एफआईआर दर्ज करा देते हैं कि उन की बेटी का अपहरण कर लिया गया है.