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इन कारणों से नहीं पतले होते आप, बढ़ता है वजन

लोगों के लिए वजन का कम होना किसी चुनौती से कम नहीं होता. शरीर की चर्बी को कम कर उसे सही शेप में लाना एक बड़ी चुनौती होती है. शरीर की चर्बी कम करने के लिए लोग तरह तरह के एक्सरसाइजेज करते हैं, जिम जाते हैं, डाइटिंग करते हैं पर लोगों को बहुत फायदा नहीं मिलता. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अगर लाख कोशिशों के बाद भी अगर आप अपना वजन कम नहीं कर पा रहें तो उसके कारण कौन से हो सकते हैं.

अधिक तनाव लेने से

तनाव और मोटापे का गहरा संबांध होता है. कई शोधों में ये बात साबित भी हो चुकी है. जब व्यक्ति तनाव में रहता है तो उसके शरीर से कोर्टिसोल हार्मोन्स प्रोड्यूस होने लगते हैं. इससे ब्लड शुगर का स्तर काफी बढ़ जाता है और फैट जमा होने लगता है. इसके अलावा बहुत से लोग तनाव में अधिक खाने लगते हैं जिससे उनका वजन बढ़ने लगता है.

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नींद में कमी

सेहतमंद रहने के लिए जरूरी शर्त है कि आपकी नींद पूरी रहे. सही ढंग से और पूरी नींद नहीं लेने से आप मोटापे के चपेट में आ सकते हैं. कई स्टडीज में इस बात की पुष्टि हुई है कि नींद पूरी ना रहने से मोटापा बढ़ता है.

हो सकता है थायरौयड

अगर आपकी लाख कोशिशों के बावजूद आपका वजम कम नहीं हो पा रहा है तो आपको थायरौयड की की बीमारी हो सकती है. आपको बता दें कि आपके गले में मौजूद छोटी ग्रंथियां थायरौयड हार्मोन बनाती हैं. खाने के माध्यम से जो आयोडीन शरीर को मिलता है उससे थायरौयड दो तरह के हार्मोन्स बनाते हैं. जब थायरौयड ग्लैंड कम मात्रा में हार्मोन्स बनाने लगता है तो इससे आपका वजन बढ़ने लगता है.

इंसुलीन में रुकावट

हम जो भी खाते हैं वो ग्लूकोज में टूट जाता है. इससे ब्लड शुगर का स्तर अधिक हो जाता है. पैंक्रियाज शरीर में ग्लूकोज से मिलने पर इंसुलीन बनाता है. इंसुलीन का काम ग्लूकोज को शरीर के जरूरी भागों तक पहुंचाने का है, लेकिन अगर आप इंसुलिन प्रतिरोधी हैं, तो आपके इंसुलिन रिसेप्टर्स इंसुलिन को पहचान नहीं पाते हैं. इस कारण शरीर की एनर्जी मोटापे के रूप में जमा हो जाती है, जिससे वजन बढ़ता है.

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बिहाइंड द बार्स : भाग 1

‘आह… आह… आह… आह… ओ गौड… सेव मी…. आह… सेव मी गौड…’ नोरा की चीखों से काल कोठरी गूंज रही थी. दर्द अपनी हदें पार कर रहा था. वह जमीन पर पड़ी बिन पानी की मछली की तरह तड़प रही थी. मृणालिनी और कुसुम जैसे-तैसे उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन दर्द था कि बढ़ता ही जा रहा था. नोरा की चीखों और कराहों से जेल की दीवारें थरथरा रही थीं. आसपास की कोठरियों की महिला कैदियों की आंखों से नींद उड़ चुकी थी. तमाम औरतें अपनी बैरकों के जंगले पकड़ कर खड़ी थीं. सभी गहरे दर्द और दहशत में थीं. हरेक के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें थीं कि पता नहीं अगले क्षण क्या होने वाला है. किसी ने चीख कर कहा, ‘उसके पेट को नीचे की ओर सहलाओ… उससे कहो जोर लगाए…’ तभी दूसरी आवाज उभरी, ‘पानी गर्म कर लो… ये रोटियां झोंक कर आग जला ले…ले रोटियां ले… ले… और ले…’

सामने की सलाखों में बंद औरतें निशाना साध-साध कर अपनी पोटलियों में चुरा कर छिपायी गयीं सूखी रोटियां निकाल-निकाल कर नोरा की सेल की तरफ फेंकने लगीं. कुसुम जमीन पर तड़पती नोरा को छोड़कर अपने सेल की सलाखों से हाथ निकाल कर बाहर जमीन पर पड़ी रोटियां इकट्ठा करने लगी. कैदी औरतें दोपहर और रात के वक्त खाने में ज्यादा रोटियां ले लेती थीं और उन्हें अपनी बैरकों में छिपा कर रख लेती थीं. ये रोटियां सूख कर कड़ी लकड़ी की भांति हो जाती थीं. कुछ दबंग अपराधिनें तालाबंदी के दौरान अपनी बैरकों में इन्हें जला कर चाय वगैरह भी बना लेती थीं, लेकिन ज्यादातर औरतें तो इसलिए रोटियों का ढेर लगाती थीं ताकि जाड़ों की सर्द रातों में इन्हें जला कर आग तापी जा सके. कड़कड़ाते जाड़े की रातें एक-एक कंबल के सहारे काटना मुश्किल लगता था.

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नोरा का चीखना-चिल्लाना बढ़ता ही जा रहा था. मृणालिनी तेजी से अपने सामान में कुछ ढूंढ रही थी. जल्दी ही उसे अपने कपड़ों की पोटली में वह चीज मिल गयी, जिसकी उसे तलाश थी. वह प्लास्टिक की बड़ी कंघी थी. मृणालिनी जल्दी-जल्दी कंघी के दांतों को जमीन पर दबा-दबा कर तोड़ने लगी. ऐसा करने में उसके हाथ घायल हुए जा रहे थे, मगर उसे उस वक्त अपने लहूलुहान हो रहे हाथों की जरा भी परवाह नहीं थी. वह जल्दी से जल्दी उस कंघी के सारे दांतों को तोड़कर उसे चाकू जैसा धारदार बनाना चाह रही थी. पाखाने के चबूतरे के किनारे बैठ कर उसने खुरदरी जमीन पर कंघी को एक तरफ से तेजी से घिसना शुरू कर दिया. वह पूरा जोर लगाकर कंघी जमीन पर घिस रही थी. उसकी सांस धौकनी की तरह चल रही थी. नोरा का रुदन उसे व्याकुल कर रहा था. घबराहट के मारे उसका पूरा शरीर कांप रहा था, लेकिन इस वक्त न जाने कहां से उसके हाथों में गजब की ताकत आ गयी थी. कंघी को घिस-घिस कर उसने पंद्रह-बीस मिनट में एक ओर से इतना धारदार बना डाला कि अब उससे बच्चे की नाल आसानी से काटी जा सकती थी.

उधर कुसुम ने सूखी रोटियों को पाखाने के होल में डाल कर उसमें आग लगा दी. उसके ऊपर उसने पानी से भरा वह छोटा ड्रम रख दिया, जिसमें पाखाने के लिए पानी भर कर रखा जाता था. कैदियों की बैरक में ज्यादा चीजें नहीं होती हैं. मगर जरूरत का कुछ सामान रखने की इजाजत औरतों को होती है और कुछ चीज़ें वो चुरा चुरा कर जमा कर लेती हैं. आज इन थोड़े से संसाधनों के सहारे ही इस अंधेरी रात में एक नया जीव सलाखों के बीच अपनी आंखें खोलने वाला था. नोरा का तड़पना और चीखना-चिल्लाना चरम पर था. पानी को गर्म होने के लिए छोड़ कर कुसुम जमीन पर उसके पास बैठी उसका पेट दबा और सहला रही थी.

वह उसके सिर पर हाथ फेर-फेर कर दर्द को बर्दाश्त करने की ताकत देते हुए बोली, ‘नीचे की ओर जोर लगा बिटिया… लंबी सांस ले… नीचे जोर लगा… देख अभी बाहर आ जाएगा…’ नोरा का पूरा जिस्म पसीने से तर-ब-तर था. वह बार-बार थक कर बेहोश होने को हो जाती थी… कुसुम उसके गालों पर जोर-जोर से थपकी देने लगी. नोरा बेहोश न हो जाए इस घबराहट में एक बार तो उसने उसके गाल पर जोर का तमाचा भी जड़ दिया. काफी समय हो गया था नोरा को दर्द में तड़पते हुए. रात के डेढ़ बजे होंगे जब उसको दर्द उठना शुरू हुआ था. जेल के घड़ियाल ने तीन का घंटा बजाया ही था कि अचानक नोरा की एक जोरदार चीख सुनायी दी और इस चीख के साथ बच्चा बाहर आ गया. जमीन पर चारों तरफ खून ही खून फैल गया. कुसुम के हाथों में खून में लिथड़ा बच्चा देखकर मृणालिनी ने जल्दी से जमीन पर बैठ कर उसकी नाल काटी. कुसुम ने बच्चे को थोड़ा ऊपर उठाया तो वह चीख मार कर रो पड़ा. नई जिन्दगी ने अपने सही सलामत आने का पैगाम दे दिया था. लड़का हुआ था. मां का चेहरा खिल उठा. मासूम के रुदन का दूसरी  बैरकों में बंद औरतों ने हर्ष मिश्रित स्वरों में स्वागत किया. कुसुम ने मृणालिनी की ओर देखा और फिर पलट कर नोरा का चेहरा देखने लगी. तीनों के चेहरों पर विजयी मुस्कान थी.

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धुंधली रोशनी में नोरा का पसीने से नहाया चेहरा चांद सा चमक रहा था. दर्द गुजर चुका था मगर थकान ने उसे निढाल कर रखा था. उसमें हिलने तक की ताकत नहीं बची थी. वह ज्यों की त्यों ज़मीन पर पड़ी रही. कुसुम और मृणालिनी ने मां और बच्चे को साफ किया और पुरानी धोती में लपेट कर मासूम को नोरा के बगल में लिटा दिया. नोरा ने बेटे को छाती से चिपका लिया. उसकी आंखों के कोरों से आंसू की बूंदें टपकने लगीं. जेल की कालकोठरी में उसके एडबर्ड का जन्म होगा, यह तो उसने कभी नहीं सोचा था. एडबर्ड – हां, यही नाम रखा उसने अपने मासूम बेटे का.

एडबर्ड का पिता यानी उसका पति फ्रेडरिक कहां है, नोरा को कुछ पता नहीं. पिछले सात महीने से वह इस जेल में ड्रग तस्करी के आरोप में बंद है और इन सात महीनों में फ्रेडरिक एक बार भी उसका हालचाल लेने नहीं आया. पता नहीं वह कहां है? जिंदा भी है या नहीं? कहीं वह भी उसकी तरह किसी कैदखाने में बंद न हो? कहीं वह देश छोड़कर भाग न गया हो? अनेक सवाल नोरा के जेहन में उभरने लगे.

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मृणालिनी ने अपनी धोती फाड़ कर उसके कई टुकड़े किये. फिर कुसुम के साथ मिल कर उसने बैरक के फर्श पर बिखरा खून साफ कर डाला. पाखाने में पानी डाल कर जली हुई रोटियों की राख बहायी. सुबह होने में कुछ वक्त है. शायद पांच बज रहे हैं. बाहर अभी अंधेरा है. जाड़ों की शुरुआत हो चुकी है. रातें लंबी होने लगी हैं. छह बजे तक ही रोशनी होती है. सात बजे बैरकों के ताले खुलेंगे और कैदी औरतें अपने नित्य के कामों में जुट जाएंगी. आज इन तीनों को ही नहीं बल्कि आस पास की बैरकों में बंद सभी औरतों को बड़ी शिद्दत से सुबह होने का इंतज़ार था.

प्यार पर भारी पड़ा धर्म

मंजू पूरी रात अपने बेटे संजय के घर लौटने का इंतजार करती रही, लेकिन वह नहीं लौटा. सुबह होने पर मंजू ने संजय के दोस्तों से बेटे के बारे में पता किया तो उन्होंने बताया कि उस के 3-4 दोस्त उसे अपने साथ ले कर कहीं गए थे. मंजू ने उन दोस्तों के बारे में पता लगाना शुरू किया तो जो बात मालूम हुई, उसे सुन कर वह परेशान हो उठी.

उसे जानकारी मिली कि वहीदा का भाई सलीम संजय को शराब पिलाने की पार्टी में शामिल होने के लिए अपने साथ ले गया था. सलीम के साथ और भी युवक थे. वह संजय के ऊपर यह सोच कर झुंझला रही थी कि जब जाना ही था तो क्या उसे साथ जाने के लिए सलीम ही मिला था. क्योंकि सलीम की बहन वहीदा को ले कर संजय की उस से दुश्मनी चल रही थी. अब मंजू का मन तरहतरह की आशंकाओं से घिरने लगा. उसे बेटे के गायब होने के पीछे किसी साजिश की बू आने लगी.

सलीम अपने अब्बा फजरुद्दीन, मां मदीना और बहन वहीदा के साथ हरियाणा के जिला फरीदाबाद की नेहरु कालोनी में मंजू के पड़ोस में ही रहता था. मंजू का मन नहीं माना तो देर शाम वह सलीम के घर पहुंच गई. उस ने सलीम से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह संजय को अपने साथ ले कर तो जरूर गया था, मगर पार्टी खत्म होने के बाद घर जाने की बात कह कर संजय कहां चला गया, यह उसे नहीं मालूम.

जब संजय के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो 19 अगस्त को मंजू थकहार कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने थाना डबुआ कालोनी पहुंची.

पुलिस ने जब उस से किसी पर शक होने के बारे में पूछा तो उस ने शक जाहिर किया कि उस के बेटे को गायब करने में पड़ोस में रहने वाले सलीम और उस के पिता फजरुद्दीन का हाथ हो सकता है. फजरुद्दीन उस की इसलिए हत्या करना चाहता था, क्योंकि संजय ने उस की मरजी के खिलाफ उस की बेटी वहीदा से लव मैरिज कर ली थी.

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मंजू की शिकायत पर उसी दिन डबुआ थाने में भादंवि की धारा 346 के तहत मुकदमा दर्ज कर संजय की तलाश शुरू कर दी. संजय 16 अगस्त, 2018 से गायब था. उसे गायब हुए 3 दिन गुजर चुके थे. पुलिस ने संजय के सभी दोस्तों से पूछताछ की लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

थानाप्रभारी ने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. तब अपर पुलिस उपायुक्त (एनआईटी) निकिता अग्रवाल ने इस हत्याकांड के रहस्य से परदा उठाने के लिए एक टीम का गठन किया, जिस में एसआई ब्रह्मप्रकाश, ओमप्रकाश, एएसआई कप्तान सिंह, हैडकांस्टेबल ईश्वर सिंह, कांस्टेबल संदीप, रविंद्र, अनिल कुमार, बिजेंद्र, संजय आदि शामिल थे.

इस टीम का नेतृत्व इंसपेक्टर नवीन पाराशर कर रहे थे. उन्होंने मृतक संजय की मां मंजू तथा घर वालों से घटनाक्रम के बारे में पूछताछ की, तब उन्हें पता चला कि संजय ने अपने पड़ोस में रहने वाली दूसरे समुदाय की लड़की वहीदा से उस के परिजनों की मरजी के खिलाफ घर से भाग कर शादी कर ली थी.

इसी वजह से लड़की के भाई और अब्बा उस की जान के दुश्मन बने हुए थे. पुलिस आयुक्त अमिताभ ढिल्लो ने क्राइम ब्रांच (डीएलएफ) को भी थाना पुलिस के साथ जांच में लगा दिया.

मुकदमा दर्ज होने के तीसरे दिन 21 अगस्त को पता चला कि किसी युवक की लाश सैनिक कालोनी से थोड़ी दूर झाडि़यों में पड़ी है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस टीम सैनिक कालोनी के पास उस जगह पर पहुंची, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. पुलिस को वहां एक युवक की सड़ीगली लाश मिली. लाश काफी विकृत अवस्था में थी. वह 3 टुकड़ों में थी.

लाश देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कई दिन पहले हुई होगी. इस सड़ीगली लाश की शिनाख्त मंजू ने अपने गुमशुदा बेटे संजय के रूप में की. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए रोहतक पीजीआई भेज दी और एफआईआर में आईपीसी की धारा 302 जोड़ दी गई.

लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने आरोपी फजरुद्दीन और उस के बेटे की तलाश शुरू कर दी. उसी दिन पुलिस को सलीम के बारे में एक गुप्त सूचना मिली, जिस के आधार पर पुलिस ने सलीम को गिरफ्तार कर लिया. उसे उसी दिन कोर्ट में पेश कर पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

सलीम से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने अगले दिन उस के पिता फजरुद्दीन उर्फ फजरू तथा सुमित उर्फ सोनी को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सभी आरोपियों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने संजय की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. संजय की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली.

मंजू अपने 2 बेटों संजय और अजय के साथ फरीदाबाद की नेहरू कालोनी में किराए के मकान में रहती थी. उस के पति रूप सिंह की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. उस के पड़ोस में फजरुद्दीन अपने परिवार के साथ रहता था.

दोनों परिवार अलगअलग समुदाय के थे लेकिन उन के बीच काफी अपनापन था. त्यौहारों के मौकों पर वे एकदूसरे की खुशी में जरूर शरीर होते थे.

पारिवारिक संबंध होने की वजह से दोनों ही परिवारों का एकदूसरे के यहां खूब आनाजाना था. फजरू की बेटी वहीदा बला की हसीन होने के साथसाथ बालिग हो चुकी थी. उधर मंजू का बेटा संजय भी 23 साल का हो चुका था. दोनों ही एकदूसरे को जीजान से प्यार करने लगे थे.

दोनों का प्यार गुपचुप तरीके से काफी दिनों से चल रहा था. फजरुद्दीन और उस की बेगम मदीना को बेटी के प्रेम प्रसंग की जानकारी नहीं थी. वे समझते थे कि दोनों बच्चे यूं ही आपस में कभीकभार मिलने पर हंसीठिठोली कर लेते हैं. उन्होंने कभी भी इन संबंधों के बारे में ध्यान नहीं दिया था.

सब कुछ ठीक ही चल रहा था. इधर वहीदा और संजय का प्यार और गहराता जा रहा था. उन्होंने आपस में शादी करने का फैसला कर लिया था लेकिन उन की शादी के बीच धर्म और समाज की अदृश्य दीवार सामने आ रही थी, जिसे किसी भी हालत में गिराना असंभव ही नहीं बल्कि एकदम से नामुमकिन था. इसलिए संजय का वहीदा ने आपस में सोचविचार कर अपने घरों से भाग कर कहीं बाहर शादी करने की योजना तैयार कर ली.

फिर योजना के अनुसार, वे पहली सितंबर, 2017 को किसी काम के बहाने अपनेअपने घरों से बाहर निकले. कालोनी से काफी दूर जा कर वहीदा संजय से लिपटते हुए बोली, ‘‘संजय, मुझे अपने साथ एक ऐसी दुनिया में ले चलो जहां हमारे प्यार के बीच कोई दीवार न बन सके.’’

संजय ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘वहीदा, तुम चिंता मत करो. अब दुनिया की कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती.’’

वहीदा को अपने प्यार पर खुद से बढ़ कर भरोसा था, इसलिए उस ने खुद को अपने प्रेमी संजय के भरोसे छोड़ दिया. संजय उसे ले कर राजस्थान स्थित अपने पैतृक गांव पहुंचा. वहां कुछ दिन रुकने के बाद उस ने वहीदा से कोर्टमैरिज कर ली.

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शादी के अगले दिन वहीदा घर की अन्य औरतों के परिधान के अनुसार अपनी गोरी कलाई में चूड़ा, मांग में सिंदूर, हाथ में मेहंदी लगा कर संजय के सामने पहुंची तो इस रूप में देख कर उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. वह दुलहन के शृंगार में और भी ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी.

संजय वहीदा को अपनी पत्नी बना कर अपने आप को दुनिया का सब से भाग्यशाली समझने लगा. दोनों वहीं रहने लगे. चूंकि उस ने घर से भाग कर शादी की थी, इसलिए घर से बाहर कम ही निकलती थी.

उस का डर बेवजह नहीं था. उधर वहीदा के घर नहीं लौटने पर मदीना और उस के शौहर फजरुद्दीन को जैसे सांप सूंघ गया. उन्हें यह भी पता लग गया कि संजय भी घर से गायब है. अब उन के लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि जरूर संजय की वहीदा को भगा कर ले गया होगा.

किसी तरह उन लोगों ने संजय के राजस्थान स्थित पैतृक गांव की भी जानकारी हासिल कर ली. फिर फजरू ने अपने जानकार लोगों को राजस्थान भेजा लेकिन काफी कोशिश के बाद भी वे वहीदा का पता नहीं लगा सके. आखिर निराश हो कर वे घर लौट आए.

वहीदा अपनी अम्मी मदीना को बहुत प्यार करती थी. कुछ महीने गुजरने के बाद वहीदा को जब अम्मी की याद आई तो उस ने अम्मी के फोन पर संपर्क कर बताया कि वह इस संजय के साथ है और यहां बेहद खुश है. इसलिए वह उस की जरा भी चिंता न करें.

मंजू को भी बेटे ने फोन कर पूरी घटना के बारे में जानकारी दे दी थी. मंजू वहीदा को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था. जब संजय ने बताया कि करवाचौथ पर उस ने उस के लिए व्रत रखा और चांद निकलने पर पानी का घूंट हलक के नीचे उतारा तो बेटे के प्रति बहू के मन में प्रेम देख कर मंजू की खुशी के मारे आंखें भर आईं.

उस ने फोन पर वहीदा से काफी देर तक बातें कीं और उसे सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद दिया. इस के बाद मंजू की अपने बेटेबहू से अकसर बातचीत होती रहती थी.

कुछ दिनों के बाद वहीदा के पांव भारी हो गए तो संजय के लिए उस की देखभाल करना कठिन हो गया. एक दिन वह वहीदा को ले कर फरीदाबाद लौट गया ताकि घर पर मां उस की ठीक से देखभाल करती रहे.

संजय और वहीदा के घर में आने की बात सुन कर वहीदा के अम्मीअब्बू संजय के घर आ कर अपनी बेटी और संजय से मिले. संजय उन का अपराधी था, इसलिए वह उन की हर शर्त माने के लिए तत्पर था. फजरू और उस की बेगम मदीना ने आपस में बातें करने के बाद संजय से कहा कि अगर उसे वहीदा के संग जीवन गुजारना है तो वह इसलाम धर्म अपना ले.

संजय के ऊपर वहीदा की मोहब्बत का नशा इस कदर चढ़ा था कि वह उस के लिए धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो गया. लेकिन इस में पेंच तक फंस गया जब संजय के मामा और चाचा ने इस का जम कर विरोध किया.

उन के विरोध के कारण संजय का धर्म परिवर्तन नहीं हो सका. इसी घटनाक्रम के बीच मदीना ने जबरन वहीदा का गर्भपात करवा दिया. इन बातों से दुखी और परेशान हो कर संजय का परिवार दूसरी जगह शिफ्ट हो गया.

दूसरी जगह जाने के बाद भी दोनों परिवारों के बीच उपजा तनाव कम नहीं हुआ. कुछ दिनों के बाद वहीदा को फिर गर्भ ठहर गया. इस का पता चलते ही फजरू ने वहीदा और संजय को अलग होने का फैसला सुना दिया.

संजय की हत्या होने से 2 महीने पहले एक दिन फजरू और उस के दोनों बेटे संजय और वहीदा को ले कर उन के बीच तलाक कराने कोर्ट गए लेकिन संजय ने वहीदा को तलाक देने से इनकार कर दिया. अलबत्ता अपने अम्मीअब्बा के द्वारा संजय की हत्या कर दिए जाने की धमकी से डर कर वहीदा संजय के घर से अपने घर लौट गई.

वहीदा के चले जाने के बाद संजय की दुनिया एकदम वीरान हो गई. बुरी तरह हताश और निराश हो कर संजय फरीदाबाद को छोड़ कर राजस्थान चला गया, जबकि उस की मां, भाई और बहन ने नेहरू कालोनी में रहना जारी रखा.

15 अगस्त, 2018 को वहीदा के भाई सलीम ने राजस्थान में रह रहे संजय को फोन कर के बताया कि मामला अब शांत हो गया है, इसलिए बात को खत्म करने के लिए फरीदाबाद लौट आओ.

अगले दिन संजय यह सोच कर फरीदाबाद आ गया कि जल्दी से यह मामला निपट जाए तो वहीदा और वह दोनों शांति के साथ अपना जीवन गुजार सकेंगे. उसे क्या मालूम था कि सलीम और उस का बाप उस की हत्या के लिए उसे मामला खत्म करने का सुनहरा ख्वाब दिखा रहे थे.

संजय उन की चाल में बुरी तरह फंस गया. उसी दिन सलीम संजय को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर शराब पार्टी में शामिल होने की बात कह कर अपने साथ ले गया. सलीम संजय को 3 नंबर पहाड़ी की सुनसान जगह पर ले गया, जहां पर उस का पिता फजरू, दोस्त सुमित और मोहम्मद अली उन के आने का इंतजार कर रहे थे.

सुमित उर्फ सोनी और मोहम्मद अली सलीम के दोस्त थे. चारों ने पहले तो मीठीमीठी बातों में फंसा कर उसे इतनी अधिक शराब पिला दी कि वह अपनी सुधबुध खो बैठा. इस के बाद सभी ने संजय की इतनी पिटाई की कि वह अधमरा हो गया.

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पिटतेपिटते संजय जब बेहोश हो गया तो सलीम ने चाकू से गोद कर उसे मौत के घाट उतार दिया. झाडि़यों में डाल दिए. फिर सभी वहां से फरार हो गए.

पुलिस ने सलीम, फजरुद्दीन उर्फ फजरू और सुमित उर्फ सोनी से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के 2 दिन बाद ही पुलिस ने चौथे आरोपी मोहम्मद अली को भी गिरफ्तार कर उस से पूछताछ की. उस ने भी अपना अपराध कबूल कर लिया. पुलिस ने उसे भी कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया. कथा लिखने तक चारों आरोपी जेल में बंद थे. ??

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में वहीदा परिवर्तित नाम है.

आंखों की शेप के अनुसार ऐसे लगाएं आईलाइनर

हर किसी की पसंद कजरारी आंखें होती है. चेहरे की खूबसूरती का केन्द्र आंखे ही होती है. हर लड़की आंखों में काजल लगाना को पसंद होता है. काजल के साथ अगर आप आईलाइनर भी लगा लेती हैं तो पूरी तरह से आपके चेहरे का लुक बदल जाता है. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि लाइनर लगाने के बाद भी आंखों और हमारे चेहरे को सूट नहीं करता. तो आइए आपको बताते है, ऐस क्यों होता है?

ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि अधिकतर लड़कियों पता नहीं होता कि आंखों में लाइनर आंखों की शेप के अनुसार लगना चाहिए.

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आंखों की शेप के अनुसार लगाएं आईलाइनर

उभरी हुई आंखें

ऐसे आंखों का आकार थोडा़ उभरा होता है और पलकों का साइज भी काफी बड़ा होता है. आप अपनी आंखों पर स्‍टार्टिंग लाइन से लेकर एंड कौर्नर तक मोटा या पतला एक जैसा लाइनर लगा सकती हैं.

राउंड शेप्‍ड आईज

राउंड शेप्‍ड आंखें बड़ी और चौड़ी होती हैं और ऐसी आंखों पर विंग्‍ड आईलाइनर बहुत अच्‍छा लगता है.

 स्‍मौल आईज

स्‍मौल आईज हैं तो कभी भी अपनी आंखों की बौटम लाइन पर डार्क लाइनर लगाने से बचें. लाइनर को टौप लैश लाइन से पतली लाइन के साथ स्‍टार्ट करें और एंड पर आकर इसे हल्‍का मोटा कर दें.

बड़ी आंखें

अगर आपकी आंखें बड़ी-बड़ी हैं तो आप खुद को लकी फील करा सकती हैं क्‍योंकि आपको ज्‍यादा रूल फौलो करने की जरूरत नहीं है. आप कैट आईलाइनर और विंग्‍ड स्‍टाइल दोनों को कभी भी बेहिचक लगा सकती हैं.

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नेतागिरी के नशे में अपहरण : क्या सफल हो पाया यह कुचक्र

40  वर्षीय दीपकमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र के देवरिया खास (नगर) मोहल्ले का रहने वाला था. देवरिया खास में उस की अपनी आलीशान कोठी है. फिर भी वह भटनी में किराए का कमरा ले कर अकेला रहता था. उस के परिवार में बड़ी बहन डा. शालिनी शुक्ला के अलावा कोई नहीं है. दीपक ने शादी नहीं की थी.

सालों पहले दीपक के पिता मंगलेश्वरमणि त्रिपाठी का उस समय रहस्यमय तरीके से कत्ल कर दिया गया था, जब वह घर में अकेले सो रहे थे. अपनी जांच के बाद पुलिस ने दीपक को पिता की हत्या का आरोपी बनाया था. पिता की हत्या के आरोप में वह कई साल तक जेल में रहा. इन दिनों वह जमानत पर जेल से बाहर था. कहा जाता है कि दीपक को दांवपेंच खेल कर एक गहरी साजिश के तहत पिता की हत्या के आरोप फंसाया गया था.

शादीशुदा डा. शालिनी की ससुराल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में है. वह अपनी ससुराल में परिवार के साथ रहती हैं. उन्हें दीपक की चिंता रहती है. वैसे भी बहन के अलावा दीपक का कोई और सहारा नहीं था. इसलिए कोई भी बात होती थी तो वह बहन और बहनोई को बता देता था.

20 मार्च, 2018 को मुकदमे की तारीख थी. दीपक को तारीख पर पेश होना था. उधर उस की एमएसटी टिकट की तारीख भी बढ़वानी थी. उस ने सोचा एमएसटी की डेट बढ़वा कर कचहरी चला जाएगा. इसलिए सुबह उठ कर वह सभी कामों से फारिग हो कर करीब 10 बजे एमएसटी की तारीख बढ़वाने भटनी स्टेशन चला गया.

एमएसटी बनवा कर दीपक वहीं से सलेमपुर कचहरी पहुंच गया. भटनी से सलेमपुर कुल 20-22 किलोमीटर दूर है. सलेमपुर पहुंचने में उसे कुल आधे घंटे का समय लगा होगा. सलेमपुर जाते समय उस ने बहन शालिनी को फोन कर के बता दिया था कि वह मुकदमे की तारीख पर पेश होने सलेमपुर जा रहा है. कचहरी से लौटने के बाद मुकदमे की स्थिति बताएगा.

धीरेधीरे शाम ढलने को आ गई. शालिनी भाई के फोन का इंतजार कर रही थी. जब उस का फोन नहीं आया तो उन्होंने खुद ही भाई के नंबर पर काल की. लेकिन दीपक का मोबाइल स्विच्ड औफ था.

शालिनी ने 3-4 बार दीपक के फोन पर काल की. हर बार उन्हें एक ही जवाब मिल रहा था, ‘उपभोक्ता के जिस नंबर पर आप काल कर रहे हैं वो अभी बंद है.’ शालिनी ने सोचा कि हो सकता है, दीपक के फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई हो इसलिए फोन बंद है. रात में फिर से फोन कर के बात कर लेंगी.

रात में 10 साढ़े 10 बजे के करीब शालिनी ने फिर दीपक के मोबाइल पर काल की. लेकिन तब भी उस का फोन स्विच्ड औफ था. यह बात शालिनी को कुछ अटपटी सी लगी, क्योंकि दीपक अपना फोन इतनी देर तक कभी बंद नहीं रखता था. उस ने यह बात जब अपने पति को बताई तो वह भी चौंके. दीपक को ले कर किसी अनहोनी की आशंका से दोनों चिंता में पड़ गए.

रात काफी गहरा चुकी थी. शालिनी ने सोचा कि इतनी रात में किसी से बात करने से कोई फायदा नहीं होगा. अगले दिन ही कुछ हो सकता था. अगले दिन सुबह होते ही शालिनी ने अपने नातेरिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपक के बारे में पता किया, लेकिन दीपक का कहीं कुछ पता नहीं चला.

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वैसे भी वह किसी नातेरिश्तेदार के यहां जाना पसंद नहीं करता था, सिवाय शालिनी को छोड़ कर. शालिनी की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि दीपक गया तो गया कहां? कहीं उस के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं घट गई, यह सोच कर शालिनी परेशान हो रही थीं.

धीरेधीरे एक सप्ताह बीत गया लेकिन दीपक का कहीं कोई पता नहीं चला. अपने स्तर पर शालिनी ने भाई का हर जगह पता लगा लिया था, उन्हें हर जगह से निराशा ही मिली थी.

दीपक करोड़ों की संपत्ति का इकलौता वारिस था. सालों से बदमाश उसे जान से मारने की धमकी दे रहे थे. इसीलिए वह गांव की कोठी छोड़ कर भटनी कस्बे में किराए का कमरा ले कर रहता था ताकि चैन और सुकून से जी सके. लेकिन बदमाशों ने यहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ा था.

यह बात डाक्टर शालिनी शुक्ला भी जानती थीं, इसीलिए वह भाई के लिए फिक्रमंद थीं. शहर के कुछ नामचीन बदमाश और भूमाफिया उस की करोड़ों की संपत्ति को हथियाने की कोशिश में लगे हुए थे.

10 दिन बीत जाने के बाद भी जब दीपक का कहीं कोई पता नहीं चला तो डाक्टर शालिनी सक्रिय हुईं. शालिनी ने 10 अप्रैल, 2018 को बिलासपुर से ही भाई के अपहरण की शिकायत पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रजिस्टर्ड डाक व ईमेल के माध्यम से भेज दीं. दीपक की गुमशुदगी की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे में खलबली मच गई.

दीपक करोड़ों की संपत्ति का इकलौता वारिस था. उसे गायब हुए करीब 20 दिन बीत चुके थे. उस के गायब होने के बारे में पुलिस को भनक तक नहीं लगी थी. डा. शालिनी शुक्ला की शिकायत पर सदर कोतवाली में भादंवि की धारा 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

खैर, एक सप्ताह बाद भी कोई काररवाई न होने पर 17 अप्रैल, 2018 को उन्होंने फिर शिकायत की. 17 अप्रैल को ही पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय को एक चौंका देने वाली सूचना मिली. सूचना यह थी कि नियमों को दरकिनार कर के गायब हुए व्यक्ति से एक ही दिन में कई बैनामे कराए गए थे.

इस में 2 बैनामे जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव उर्फ बबलू के नाम से, तीसरा उस की मां मेवाती देवी, चौथा भाई अमित कुमार यादव और 5वीं रजिस्ट्री मधु देवी पत्नी ब्रह्मानंद चौहान निवासी खोराराम के नाम से हुई थी.

बैनामे के साथ ही बड़े पैमाने पर स्टांप की भी चोरी हुई थी. पुलिस अधीक्षक रोहन सकते में आ गए और उन्होंने तत्काल पूरे मामले से जिलाधिकारी को अवगत करा दिया. बैनामा किसी और के द्वारा नहीं बल्कि कई दिनों से लापता दीपकमणि त्रिपाठी के द्वारा कराया गया था.

इस का मतलब था कि दीपकमणि त्रिपाठी जिंदा था और बदमाशों के कब्जे में था. बदमाशों ने दीपक को कहां छिपा रखा था, ये कोई नहीं जानता था. एसपी रोहन ने दीपक को बदमाशों के चंगुल के सहीसलामत छुड़ाने के लिए कमर कस ली. उन्होंने सीओ सदर सीताराम के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया.

इस टीम में सीओ सदर के अलावा सदर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक प्रभतेश श्रीवास्तव, प्रभारी स्वाट टीम सीआईयू सर्विलांस अनिल यादव, स्वाट टीम के कांस्टेबल घनश्याम सिंह, अरुण खरवार, धनंजय श्रीवास्तव, प्रशांत शर्मा, मेराज खान, सर्विलांस सेल के राहुल सिंह, विमलेश, प्रद्युम्न जायसवाल, कांस्टेबल सूबेदार विश्वकर्मा, रमेश सिंह और सौरभ त्रिपाठी शामिल थे.

उधर डा. शालिनी ने तीसरी बार 23 अप्रैल को मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत की. उन्हें पता चला था कि मुख्यमंत्री के वाट्सऐप नंबर पर शिकायत करने के 3-4 घंटे के भीतर काररवाई हो जाती है.

उन की यह सोच सही साबित हुई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक शिकायत पहुंचने के बाद जिले की पुलिस सक्रिय हो गई और एसपी रोहन पी. कनय मामले में विशेष रुचि लेने लगे.

इधर बदमाशों की सुरागरसी में सीओ सदर सीताराम ने मुखबिर लगा दिए थे. इस बीच पुलिस को जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव और उस के भाई अमित यादव का मोबाइल नंबर मिल गया था. दोनों नंबरों को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा दिया.

आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 2 मई, 2018 को पुलिस को पता चल गया कि बदमाशों ने अपहृत दीपकमणि त्रिपाठी को देवरिया शहर के निकट अमेठी मंदिर, स्थित पूर्व सांसद व सपा के राष्ट्रीय महासचिव रमाशंकर विद्यार्थी के कटरे में रखा था.

सूचना पक्की थी. सीओ सदर सीताराम ने कुछ चुनिंदा पुलिसकर्मियों की टीम बनाई और इस मिशन को गोपनीय रखा ताकि मिशन कामयाब रहे. वे बदमाशों को किसी भी तरह  भागने का मौका नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने पूरी तैयारी के साथ सपा नेता रमाशंकर विद्यार्थी के अमेठी आवास स्थित कटरे पर दबिश दी.

पुलिस टीम ने कटरे को चारों ओर से घेर लिया. उसी कटरे के एक कमरे में बदमाशों ने दीपकमणि त्रिपाठी को हाथपैर बांध कर रख रखा था. उस वक्त वह अर्द्धविक्षिप्तावस्था में था. बदमाशों ने उसे काबू में रखने के लिए नशे का इंजेक्शन लगा रखा था.

पुलिस ने दीपकमणि त्रिपाठी को बदमाशों के चंगुल से सकुशल मुक्त करा लिया. पुलिस ने दबिश के दौरान मौके से 4 बदमाशों को गिरफ्तार किया. पूछताछ में चारों बदमाशों ने अपना नाम अमित यादव, धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद बताए.

पुलिस चारों बदमाशों और उन के कब्जे से मुक्त कराए गए दीपकमणि त्रिपाठी को ले कर सदर कोतवाली लौट आई. सूचना  पा कर पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय बदमाशों से पूछताछ करने कोतवाली पहुंच गए. इस पूछताछ में पता चला कि दीपक अपहरणकांड का मास्टरमाइंड कोई और नहीं, जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव था.

दीपक का अपहरण 10 करोड़ की जमीन का बैनामा कराने के लिए किया गया था. बदमाशों ने शहर में स्थित दीपकमणि की 40 करोड़ से अधिक की बची हुई जमीन का बैनामा बाद में कराने की योजना बनाई थी. लेकिन पुलिस ने उन की योजना पर पानी फेर दिया.

बदमाशों से पूछताछ में पता चला कि अमित यादव इस मामले के मास्टरमाइंड रामप्रवेश का सगा भाई था. धर्मेंद्र गौड़ जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश का वाहन चालक था. मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद रामप्रवेश यादव के गांव के रहने वाले थे और उस के सहयोगियों में से थे. खैर, बदमाशों के पकड़े जाते ही जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव भूमिगत हो गया.

दीपकमणि त्रिपाठी को सकुशल बरामद करने के बाद एसपी रोहन पी. कनय ने पुलिस लाइंस में एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया. उन्होंने पत्रकारों के सामने दीपक को पेश किया. दीपक ने अपहरण की पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी कि उस के साथ क्याक्या हुआ था?

बाद में पुलिस ने चारों अभियुक्तों अमित यादव, धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. अभियुक्तों के बयान के आधार पर पुलिस ने इस केस में धारा 365 के साथ धारा 467, 471, 472 व 120 बी भी जोड़ दीं. भगोड़े नेता रामप्रवेश यादव पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया.

पुलिस ने दीपक अपहरणकांड की जांच आगे बढ़ाई तो कई और चौंकाने वाले तथ्य खुल कर सामने आए. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि दीपकमणि से जमीन का बैनामा करवाने में आरोपी रामप्रवेश यादव का साथ रजिस्ट्री विभाग के फूलचंद यादव निवासी अब्दोपुर, थाना चिरैयाकोट, जनपद मऊ (उप निबंधन अधिकारी), रामशरन सिंह निवासी अंसारी रोड, थाना कोतवाली, देवरिया (वरिष्ठ सहायक निबंधन अधिकारी) ने भी दिया था.

इन के अलावा बैनामा कराने में शोभनाथ राव निवासी राघवनगर, चंदेल भवन, थाना कोतवाली, देवरिया (वरिष्ठ सहायक निबंधन अधिकारी), शोएब चिश्ती निवासी करैली, थाना करैली, इलाहाबाद (कंप्यूटर आपरेटर), कौशलकिशोर निवासी रामगुलाम टोला, थाना कोतवाली, देवरिया और विनोद तिवारी उर्फ मंटू तिवारी निवासी विशुनपुर, थाना भटनी, देवरिया ने भी पूरा सहयोग दिया था.

पुलिस ने रजिस्ट्री विभाग के उक्त 6 कर्मियों को भी कानून के शिकंजे में जकड़ लिया. 5 मई, 2018 को इन 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. अब तक कुल 10 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. लेकिन रामप्रवेश का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. इस बीच पुलिस ने उस पर ईनाम बढ़ा कर 25 हजार कर दिया था. पुलिस रामप्रवेश यादव की तलाश में दिनरात एक किए हुए थी.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई, उसे रामप्रवेश के मोबाइल नंबर की लोकेशन मिल गई. सर्विलांस के जरिए पता चला कि वह नेपाल में था.

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इधर यादव की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भारी दबाव बनने लगा था. शासन के आदेश के बाद आईजी जोन निलाब्जा चौधरी ने रामप्रवेश यादव का ईनाम बढ़ा कर 50 हजार रुपए कर दिया.

ईनाम बढ़ने के साथसाथ पुलिस की जिम्मेदारी भी बढ़ गई थी. जब से पुलिस को रामप्रवेश के नेपाल में छिपे होने की बात पता चली थी, पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए बेचैन थी. चूंकि मामला दूसरे देश से जुड़ा था, इसलिए उसे नेपाल में गिरफ्तार करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था.

पुलिस ने भारतनेपाल के सोनौली बौर्डर पर अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. ऐसा इसलिए कि रामप्रवेश यादव जैसे ही नेपाल से निकल कर भारत की सीमा सोनौली में प्रवेश करे, मुखबिर सूचित कर दें.

आखिरकार 25 मई, 2018 को पुलिस को बड़ी सफलता मिल ही गई. मुखबिर की सूचना पर रामप्रवेश यादव को देवरिया पुलिस ने भारतनेपाल बौर्डर के सोनौली से गिरफ्तार कर लिया. वहां से उसे कोतवाली सदर थाना लाया गया.

पूछताछ में रामप्रवेश ने खुद को बचाते हुए पैतरा चला. उस ने पुलिस के सामने कबूल किया कि दीपकमणि त्रिपाठी से उस के वर्षों से घरेलू संबंध रहे हैं. दीपक का उस के घर खानेपीने से ले कर परेशानी के समय दवा तक का इंतजाम होता था. उस पर अपहरण का आरोप लगाया जाना विपक्षियों की चाल है. उसे किसी ने फंसाने के लिए जानबूझ कर जाल बिछाया है.

लेकिन पुलिस के सामने उस की दाल नहीं गली, उसे झुकना ही पड़ा. रामप्रवेश ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि दीपकमणि त्रिपाठी अपहरण कांड के पीछे असल हाथ उसी का था. उसी ने लालच में उस के अपहरण की पटकथा लिखी थी.

रामप्रवेश यादव के इकबालिया बयान के बाद पुलिस ने उसे अदालत के सामने पेश किया. अदालत ने रामप्रवेश यादव को न्यायिक हिरासत में जेल भेजने का आदेश दिया. उसे हिरासत में ले कर देवरिया जेल भेज दिया गया. आरोपियों से की गई गहन पूछताछ और अपहृत दीपकमणि त्रिपाठी के बयान से अपहरण की पूरी कहानी सामने आ गई—

यूं तो दीपकमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के देवरिया खास का रहने वाला था. उस के पास पैसे की खूब रेलमपेल थी, लेकिन वह अकेला था. शहर की अलगअलग जगहों पर उस की 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति थी. इस के साथ ही गांव में भी उस की काफी जमीन थी.

पिता की हत्या के बाद वह सारी जायदाद का एकलौता वारिस था. कुछ लोगों ने दीपक से शहर के सीसी रोड और चीनी मिल के पीछे की जमीन वर्षों पहले खरीद ली थी. इस के बाद भी शहर के राघव नगर, सीसी रोड, परशुराम चौराहा, देवरिया खास, सुगर मिल के पास उस की करोड़ों की संपत्ति थी. इस के साथ ही गांव रघवापुर, लिलमोहना समेत कई जगहों पर उस की जमीनें थीं.

पिता मंगलेश्वरमणि त्रिपाठी की हत्या के बाद से दीपक अकेला रह रहा था. उस की एकमात्र बहन डाक्टर शालिनी शुक्ला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहती थी. वह बराबर फोन कर के भाई का हालचाल लेती रहती थी. वह जानती थी कि इस जमाने में सीधेसादे लोगों का जीना आसान नहीं है, वह तो वैसे भी करोडों की संपत्ति का मालिक था. यह करोड़ों की संपत्ति ही दीपक की जान के लिए आफत बनी हुई थी.

उस की संपत्ति को ले कर कुछ लोग पहले ही दीपक पर जानलेवा हमला कर चुके थे. इसलिए वह शहर को छोड़ कर भटनी कस्बे में किराए पर कमरा ले कर रहता था. वहीं से वह पिता की हत्या के मुकदमे की पैरवी करता था. उस की संपत्ति पर 2011 से रामप्रवेश यादव की भी नजर गड़ी हुई थी.

40 वर्षीय रामप्रवेश यादव देवरिया जिले के रजला गांव का रहने वाला था. 2 भाइयों में वह बड़ा था. उस के छोटे भाई का नाम अमित यादव था. रामप्रवेश शादीशुदा था. रजला गांव में उस की बडे़ रसूख वालों में गिनती होती थी. रामप्रवेश का ईंट भट्ठे की व्यवसाय था.

भट्ठे की कमाई से पैसा आया तो वह राजनीति की गलियों में पहुंच कर बड़ा नेता बनने का ख्वाब देखने लगा. रामप्रवेश यादव ने गंवई राजनीति से अपनी राजनीतिक पारी खेलनी शुरू की. एक नेता के जरिए उस ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली.

समाजवादी पार्टी की राजनीति करने के साथ ही वह जिला पंचायत सदस्य के लिए चुनाव में कूद पड़ा और जिला पंचायत सदस्य की कुर्सी हासिल कर ली. जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद उस के सपा मुखिया अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव से अच्छे संबंध बन गए.

अखिलेश यादव से संबंधों के चलते उसे पार्टी की ओर से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में टिकट मिल गया. इस में वह जीता और जिला पंचायत अध्यक्ष बन गया.

जिला पंचायत अध्यक्ष बनते ही रामप्रवेश यादव की गिनती बड़े नेताआें में होने लगी. पार्टी के बडे़बड़े नेताओं के बीच उठतेबैठते उस के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे. कुछ ही दिनों में आगे का सफर तय करते हुए उस ने लोगों के बीच अपनी अच्छी छवि बना ली.

सपा पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद 2011 से ही रामप्रवेश की निगाह दीपकमणि त्रिपाठी की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थी. उसे हथियाने के लिए वह साम दाम दंड भेद सभी तरीके अपनाने के लिए तैयार था, लेकिन दीपक तक उस की पकड़ नहीं बन पा रही थी. दीपक को अपने चंगुल में फांसने के लिए उस ने अपने खास सिपहसालार ब्रह्मानंद चौहान को उस के पीछे लगा दिया.

ब्रह्मानंद चौहान के जरिए दीपक को वह अपने नजदीक लाने में कामयाब रहा. रामप्रवेश यादव जानता था कि दीपक अकेला है. उस के आगेपीछे कोई नहीं है. वह जैसा चाहेगा, उसे अपनी धारा में मोड़ लेगा. सीधासादा दीपक रामप्रवेश के मन क्या चल रहा है, नहीं समझ पाया और उस की राजनीतिक यारी का कायल हो कर रह गया.

दीपक की एक बड़ी संपत्ति कुछ दबंगों के हाथों में चली गई थी, जहां वह कुछ नहीं कर पा रहा था. यह बात रामप्रवेश को पता थी. वह इसी बात का फायदा उठा कर दीपक के दिल में जगह बनाना चाहता था और उस ने ऐसा ही किया भी.

दीपक की जमीन से कब्जा हटवा कर रामप्रवेश ने उस के दिल में जगह बना ली. रामप्रवेश यादव दीपक से इस एहसान का बदला उस की बेनामी संपत्तियों को अपने नाम बैनामा करवा कर लेना चाहता था. उस ने अपनी मंशा दीपक के सामने रख भी दी थी कि वह कुछ संपत्ति का उस के नाम बैनामा कर दे. फिर उस की ओर आंख उठा कर देखने की किसी की हिम्मत नहीं होगी.

यह रामप्रवेश के तरकश का पहला तीर था. उस का तर्क था कि एक बार दीपक थोड़ी सी जमीन उस के नाम बैनामा कर दे तो बाकी संपत्ति को वह धीरेधीरे हथिया लेगा. इसलिए वह दीपक का खास ख्याल रखता था. इसी गरज से उस ने दीपक को अपने यहां पनाह दी थी. उस का खूब सेवासत्कार किया था.

देखने में दीपक भले ही सीधासादा था, पर कम चालाक नहीं था. वह रामप्रवेश की मंशा भांप गया था. एक दिन बातोंबातों में रामप्रवेश ने उस के सामने प्रस्ताव रखा कि वह अपनी कुछ जमीन का बैनामा उस के नाम कर दे, बदले में वह उस की देखभाल करता रहेगा. लेकिन दीपक इस के लिए तैयार नहीं हुआ.

उसे लगा कि रामप्रवेश ताकतवर राजनेता है. वो उस की जमीन का बैनामा करा लेगा. उस के बाद से दीपक ने रामप्रवेश का साथ छोड़ दिया. यही नहीं अपनी जानमाल की सुरक्षा के दृष्टिकोण से उस ने देवरिया की धरती ही छोड़ दी और भटनी में जा कर किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

रामप्रवेश यादव की मंशा पर दीपक ने पानी फेर दिया था. उसे यह बात गंवारा नहीं थी कि कमजोर सा दिखने वाला दीपक उसे हरा दे. उस के इनकार कर देने से रामप्रवेश यादव तिलमिला कर रह गया. लेकिन वह बैकफुट पर जाने के लिए तैयार नहीं था.

जब उस ने देखा कि अब सीधी अंगुली से घी नहीं निकलने वाला तो उस ने अंगुली टेढ़ी कर दी. रामप्रवेश ने दीपक का अपहरण करने और जबरन बैनामा करने की योजना बनाई.

इस योजना में उस ने अपने छोटे भाई अमित यादव सहित ड्राइवर धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद चौहान को शामिल कर लिया. रामप्रवेश यादव को सुरक्षा में एक सरकारी गनर मिला हुआ था. अपहरण की योजना को अंजाम देने से 2 दिन पहले उस ने गनर को यह कह कर वापस भेज दिया था कि अभी उसे उस की जरूरत नहीं है. आवश्यकता पड़ने पर वह खुद ही उसे वापस बुला लेगा.

इस की जानकारी उस ने कप्तान रोहन पी. कनय को दे दी थी ताकि कोई बात हो तो वह खुद को सुरक्षित बचा सके. ऐसा उस ने इसलिए किया था, ताकि उस की योजना विफल न हो जाए. गनर के साथ रहते हुए वह योजना को अंजाम नहीं दे सकता था.

दीपक के क्रियाकलापों से रामप्रवेश यादव वाकिफ था. 20 मार्च, 2018 को मुकदमे की तारीख थी. मुकदमे की पेशी के लिए दीपक भटनी से सलेमपुर कोर्ट पहुंचा. रामप्रवेश को ये बात पता थी. उस ने दीपक का अपहरण करने के लिए अमित, धर्मेंद्र, मुन्ना और ब्रह्मानंद को उस के पीछे लगा दिया.

कोर्ट जाते समय इन चारों को मौका नहीं मिला, लेकिन शाम ढलने के बाद अदालत से घर लौटते समय इन लोगों ने दीपक को सलेमपुर चौराहे पर हथियारों के बल पर घेर लिया और कार में बैठा कर फरार हो गए.

40 दिनों तक जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव दीपकमणि त्रिपाठी को शहर के विभिन्न स्थानों पर रखे रहा. इस दौरान बदमाश उसे नशीला इंजेक्शन लगा कर काबू में करते रहे, उसे शारीरिक यातनाएं देते रहे. साथ ही दबाव बनाने के लिए उसे मारतेपीटते भी रहे.

उस से कहा गया कि अगर वह शहर की 50 करोड़ की संपत्ति नेताजी के नाम पर बैनामा कर दे तो उसे जिंदा छोड़ दिया जाएगा. नहीं तो ऐसे ही यातना दी जाएगी. दीपक अपनी बात पर अडिग रहा कि उसे चाहे जो सजा दे दो, लेकिन वह संपत्ति का बैनामा नहीं करेगा.

जमीन का बैनामा कराने से पहले ही रामप्रवेश ने दीपक के ओरियंटल बैंक के खाते में साढ़े 4 लाख रुपए का आरटीजीएस भी किया था. बाद में 17 अप्रैल को जमीन का बैनामा कराने के बाद उस ने उस रुपए को निकालने के लिए दीपक से उस के चेक पर हस्ताक्षर करा कर बैंक भिजवाया. लेकिन दीपक ने खाता खोलने के दिन से ही शाखा प्रबंधक से कह दिया था कि कभी भी बिना उस की जानकारी के कोई बड़ी रकम उस के खाते से नहीं निकाली जानी चाहिए.

इसलिए वह उस के खाते से रुपए नहीं निकल पाया. ये मात्र साढ़े 4 लाख रुपए जिला पंचायत अध्यक्ष ने जमीन के लिए दिए थे और फिर दिए गए रुपए को वह साजिश रच कर वापस पाना चाहता था. लेकिन उस का इरादा कामयाब नहीं हुआ. पुलिस ने रामप्रवेश के कब्जे से वह चैक भी बरामद कर लिया.

रामप्रवेश यादव ने आस्तीन का सांप बन कर दीपक को डंसा. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रामप्रवेश उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत करेगा. नेताजी के कुकृत्यों में साथ दे कर रजिस्ट्री विभाग के कर्मचारियों ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली और नाहक जेल की हवा खानी पड़ी.

नेता रामप्रवेश यादव कभी डीएम और एसपी की कुर्सी के बीच बैठ कर शेखी बघारता था. लेकिन जब पुलिस ने उसे हथकड़ी पहनाई तो उस की सारी हेकड़ी धरी रह गई. कथा लिखे जाने तक सभी 11 आरोपी जेल में बंद थे. बुरी तरह डरा हुआ दीपक कुछ दिनों के लिए अपनी बहन शालिनी के पास छत्तीसगढ़ चला गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

छोटी सरदारनी: गिल फैमिली पर फूटेगा ‘मेहर’ की मां का गुस्सा, ‘सरब’ को कहेंगी कातिल

कलर्स के शो छोटी सरदारनी में इन दिनों सरब और मेहर की जिंदगी में उथल-पुथल चल रही है. दरअसल, मेहर के खून के इल्जाम में सरब जेल चला गया है. जिससे सभी लोग परेशान है. दूसरी तरफ मेहर, सरब की बेगुनाही साबित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है.

वहीं अब शो में गिल फैमिली में मेहर की मां कुलवंत बड़ा धमाका करती हुई नजर आने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा गिल फैमिली में आने वाला ट्विस्ट…

गिल फैमिली पर फूटेगा कुलवंत का गुस्सा…

आज की एपिसोड में आप देखेंगे कि बेटी की मौत से दुखी कुलवंत कौर सरबजीत को ही कातिल मान रही है इसलिए जब गिल फैमिली उनके घर पहुंचेगी तो कुलवंत सबके सामने उनकी बेइज्जती करेगी.

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परम का सीक्रेट…

इस बीच परम, जग्गा को एक ऐसा सीक्रेट बताएगा जिसे सुनकर वो हैरान हो जाएगा. जाहिर परम कोई ऐसी बात जानता है जो उसकी मेहर मम्मा से जुड़ी हुई है.

इंडिया पहुंचेगी मेहर…

सर्बियाई पुलिस मेहर को बताएगी कि जब वो इंडिया पहुंचेगी तो उसकी कस्टडी इंडियन पुलिस को सौंप दी जाएगी और उसके बाद उसे रिहा कर दिया जाएगा. मेहर, सरब की हालत के लिए खुद को ही दोषी मानेगी. उसे एहसास होगा कि उसकी वजह से ही सरबजीत मुसीबत में फंस गया है.

छोटी सरदारनी

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क्यों चुप है सरब…

छोटी सरदारनी

कुलवंत कौर के घर पर, सरब के लोग कुलवंत से पूछेंगे कि अगर वह सरबजीत के खिलाफ है तो फिर सरब उनकी पार्टी का पीआरओ क्यों है. कुलवंत ये बात सुनकर आपा खो देगी और अपने घर में लगी नेम प्लेट से सरब का नाम मिटाने की कोशिश करेगी. कुलवंत कहेगी कि सरबजीत कातिल है और उसने ही मेरी बेटी को मारा है.

छोटी सरदारनी

सवालों से घिरा सरब…

सरब जब कोर्ट पहुंचेगा तो मीडिया उसे घेर लेगी और मेहर के बारे में पूछेगी लेकिन सरब कुछ भी नहीं कह पाएगा. यहां हरलीन, सरब से कहेगी कि वो आज कोर्ट में अपनी बेगुनाही के बारे में कहे. दरअसल, सरब नहीं चाहता है कि मेहर का सच सबके सामने आए इसलिए वो जानबूझकर चुप्पी साधे हुए है.

छोटी सरदारनी

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अब देखना है कि क्या मेहर, सरब को सजा से बचा पाएगी. क्या वो सही वक्त पर कोर्ट पहुंच पाएगी? जानने के लिए देखिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, शाम 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

वह काली रात

जैसे ही रंजना औफिस से आ कर घर में घुसीं, बहू रश्मि पानी का गिलास उन के हाथ में थमाते हुए खुशी से हुलसते हुए बोली, मांजी, 2 दिनों बाद मेरी दीदी अपने परिवार सहित भोपाल घूमने आ रही हैं. आज ही उन्होंने फोन पर बताया.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. तुम्हारी दीदीजीजाजी पहली बार यहां आ रहे हैं, उन की खातिरदारी में कोई कोरकसर मत रखना. बाजार से लाने वाले सामान की लिस्ट आज ही अपने पापा को दे देना, वे ले आएंगे.’’

‘‘हां मां, मैं ने तो आने वाले 3 दिनों में घूमने और खानेपीने की पूरी प्लानिंग भी कर ली है. मां, दीदी पहली बार हमारे घर आ रही हैं, यह सोच कर ही मन खुशी से बावरा हुआ जा रहा है,’’ रश्मि कहते हुए खुशी से ओतप्रोत थी.

‘‘बड़ी बहन मेरे लिए बहुत खास है. 12वीं कक्षा में पापा ने जबरदस्ती मुझे साइंस दिलवा दी थी और मैं फेल हो गई थी. मैं शुरू से प्रत्येक क्लास में अव्वल रहने की वजह से अपनी असफलता को सहन नहीं कर पा रही थी और निराशा से घिर कर धीरेधीरे डिप्रैशन में जाने लगी थी. तब दीदी की शादी को 2 महीने ही हुए थे. मेरी बिगड़ती हालत को देख कर दीदी बिना कुछ सोचेविचारे मुझे अपने साथ अपनी ससुराल ले गईर् थीं. जगह बदलने और दीदीजीजाजी के प्यार से मैं धीरेधीरे अपने दुख से उबरने लगी थी. मेरा मनोबल बढ़ाने में जीजाजी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उन्हीं की मेहनत और प्यार का फल है कि डौक्टरेट कर के आज कालेज में पढ़ा कर खुशहाल जिंदगी जी रही हूं. मां, कितना मुश्किल होता होगा अपनी नईनवेली गृहस्थी में किसी तीसरे, वह भी जवान बहन को शामिल करना,’’ रश्मि ने अपनी दीदी की सुनहरी यादों को ताजा करते हुए अपनी सास से कहा.

‘‘हां, सो तो है बेटा, पर तुम उन की यादों में ही खोई रहोगी कि कुछ तैयारी भी करोगी. दीदी के कितने बच्चे हैं?’’ रंजना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘2 बेटे हैं मां, बड़ा बेटा अमन इंजीनियरिंग के आखिरी साल में है और छोटा अर्णव 12वीं कर रहा  है,’’ रश्मि ने खुशी से उत्तर दिया.

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए रंजना ने अपने

2 कमरों के छोटे से घर पर नजर डाली जो 4 लोगों के आ जाने से भर जाता था. उन्होंने पति के साथ मिल कर बड़े जतन से इस घर को उस समय बनाया था जब बेटे का जन्म हुआ था. तब आर्थिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं थी. सो, किसी तरह 2 कमरे बनवा लिए थे. उस के बाद परिवार बड़ा हो गया पर घर उतना ही रहा. कितनी बार सोचा भी कि ऊपर 2 कमरे और बनवा लें, ताकि किसी के आने पर परेशानी न हो, पर सुरसा की तरह मुंह फाड़ती इस महंगाई में थोड़ा सा पैसा बचाना भी मुश्किल हो जाता है. खैर, देखा जाएगा.

2 दिनों बाद सुबह ही रश्मि की दीदी परिवार सहित आ गईं. सभी लोग हंसमुख और व्यवहारकुशल थे. शीघ्र ही रश्मि के दोनों बच्चे 12 वर्षीय धु्रव और 8 वर्षीया ध्वनि दीदी के बेटों के साथ घुलमिल गए. पुरुष देशविदेश की चर्चाओं में व्यस्त हो गए. वहीं रश्मि और उस की दीदी किचन में खाना बनाने के साथसाथ गपों में मशगूल हो गईं. रंजना स्वयं भी नाश्ता कर के अपने औफिस के लिए रवाना हो गईर्ं.

नहाधो कर सब ने भरपेट नाश्ता किया. रश्मि ने खाना बना कर पैक कर लिया ताकि घूमतेघूमते भूख लगने पर खाया जा सके. पूरे दिन भोपाल घूमने के बाद रात का खाना सब ने बाहर ही खाया. मातापिता के लिए खाना रश्मि के पति ने पैक करवा लिया. घर आ कर ताश की महफिल जम गई जिस में रंजना और उन के रिटायर्ड पति भी शामिल थे.

रात्रि में हौल में जमीन पर ही सब के बिस्तर लगा दिए गए. सभी बच्चे एकसाथ ही सोए. बाकी सदस्य भी वहीं एडजस्ट हो गए. रश्मि की दीदी ने पहले ही साफ कह दिया था कि मम्मीपापा अपने कमरे में ही लेटेंगे ताकि उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे. अपने रात्रिकालीन कार्य और दवाइयां इत्यादि लेने के बाद जब रंजना हौल में आईं तो कम जगह में भी सब को इतने प्यार से लेटे देख कर उन्हें बड़ी खुशी हुई. अचानक बच्चों के बीच ध्वनि को लेटे देख कर उन का माथा ठनका, वे अचानक बहुत बेचैन हो उठीं और बहू रश्मि को अपने कमरे में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, ध्वनि अभी छोटी है, उसे पास सुलाओ.’’

‘‘मां, वह नहीं मान रही. अपने भाइयों के पास ही सोने की जिद कर रही है. सोने दीजिए न, दिनभर के थके हैं सारे बच्चे, एक बार आंख लगेगी तो रात कब बीत जाएगी, पता भी नहीं चलेगा,’’ कह कर रश्मि वहां से खिसक गईं.

वे सोचने लगीं, ‘यह तो सही है कि थकान में रात कब बीत जाती है, पता नहीं चलता, पर रात ही तो वह समय है जब सब सो रहे होते हैं और करने वाले अपना खेल कर जाते हैं. रात ही तो वह पहर होता है जब चोर लाखोंकरोड़ों पर हाथ साफ करते हैं. दिन में कुलीनता, शालीनता, सज्जनता और करीबी रिश्तों का नकाब पहनने वाले अपने लोग ही अपनी हवस पूरी करने के लिए रात में सारे रिश्तों को तारतार कर देते हैं.

कहते हैं न, दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है, सो, उन का मन नहीं माना और कुछ देर बाद ही वे फिर हौल में जा पहुंचीं. ध्वनि उसी स्थान पर लेटी थी. उन्होंने धीरे से उस के पास जा कर न जाने कान में क्या कहा कि वह तुरंत अपनी दादी के साथ चल दी. बड़े प्यार से अपनी बगल में लिटा कर वे ध्वनि को कहानी सुनाने लगीं और कुछ ही देर में ध्वनि नींद की आगोश में चली गई. पर नातेरिश्तों पर कतई भरोसा न करने वाला उन का विद्रोही मन अतीत के गलियारे में जा पहुंचा.

तब वे भी अपनी पोती ध्वनि की उम्र की ही थीं. परिवार में उन के अलावा

4 वर्षीया एक छोटी बहन थी. मां गांव की अल्पशिक्षित सीधीसादी महिला थीं. एक बार ताउजी का 23 वर्षीय बेटा मुन्नू उन के घर दोचार दिनों के लिए कोई प्रतियोगी परीक्षा देने आया था. भाई के आने से घर में सभी बहुत खुश थे, आखिर वह पहली बार जो आया था. गरमी का मौसम था. उस समय कूलरएसी तो होते नहीं थे, सो, मां ने खुले छोटे से आंगन में जमीन पर ही बिस्तर लगा दिए थे.

वे अपने पिता से कहानी सुनाने की जिद कर रही थीं कि तभी भाई ने कहानी सुनाने का वास्ता दे कर उसे अपने पास बुला लिया. वह भी खुशीखुशी भैया के पास कहानी सुनतेसुनते सो गई. आधी रात को जब सब सोए थे, अचानक उन्हें अपने निचले वस्त्र के भीतर कुछ होने का एहसास हुआ. कुछ समझ नहीं आने पर वे अचकचाईं और करवट ले कर लेट गईं. कुछ देर बाद भाई ने दोबारा उन्हें अपनी ओर कर लिया और वही कार्य फिर से शुरू कर दिया. न जाने क्यों उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था. जब असहनीय हो गया तो एक झटके से उठी और जा कर मां से चिपक कर लेट गई. उस दिन बहुत देर तक नींद ही नहीं आई. वह समझ ही नहीं पा रही थीं कि आखिर भैया उस के साथ क्या कर रहे थे?

8 साल की बच्ची क्या जाने कि उस के ही चचेरे भाई ने उस के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था. उस समय मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया तो था नहीं जो मां के बिना बताए ही सब पता चल जाता. यह सब तो उसे बाद में समझ आया कि उस दिन भाई अपनी ही चचेरी बहन के साथ…छि… सोच कर उस का मन आज भी मुन्नू भैया के प्रति घृणा से भर उठता है. अगले दिन सुबह मां ने पूछा, ‘क्या हुआ रात को उठ कर मेरे पास क्यों आ गई थी.’

उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे? सो वह ‘कुछ नहीं, ऐसे ही’ कह कर बाहर चली गई. उस समय तो क्या वह तो आज तक मां से नहीं कह पाई कि उन के लाड़ले भतीजे ने उस के साथ क्या किया था. पर क्या वह उस समय मां को बताती तो मां उस की बातों पर भरोसा करतीं? शायद नहीं, क्योंकि मां की नजर में वह तो बच्ची थी और मुन्नू भैया उन के लाड़ले भतीजे.

उस जमाने में मांबेटी में संकोच की एक दीवार रहती थी. वे इतने खुल कर हर मुद्दे पर बात नहीं करती थीं जैसे कि आज की मांबेटियां करती हैं. वह कभी किसी से इस विषय में बोल तो नहीं पाई परंतु पुरुषों और सैक्स के प्रति एक अनजाना सा भय मन में समा गया. पुरानी यादों की परतें थीं कि धीरेधीरे खुलती ही जा रही थीं. समय बीतता गया. जब उन्होंने जवानी की दहलीज पर पैर रखा तो मातापिता को शादी की चिंता सताने लगी. आखिर एक दिन वह भी आया जब पेशे से प्रोफैसर बसंत उन के जीवन में आए.

उन्हें याद है जब वे शादी कर के ससुराल आईं तो बहुत डरी हुई थीं. पति बसंत बहुत सुलझे और समझदार इंसान थे. उन्होंने आम पुरुषों की तरह संबंध बनाने की कोई जल्दबाजी नहीं की. जब सारे मेहमान चले गए तो एक दिन परिस्थितियां और माहौल अनुकूल देख कर बसंत ने जब उन के साथ संबंध बनाने की कोशिश करनी चाही तो वे घबरा कर पसीनापसीना हो गईं और उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी. इस के बाद जब भी बसंत उन के नजदीक आने की कोशिश करते, उन की यही स्थिति हो जाती.

उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कई बार रंजना से इस का कारण जानने की कोशिश की परंतु रंजना हर बार टाल गईं. एक दिन जब घर में कोई नहीं था, समझदार बसंत ने मानो समस्या हल करने का बीड़ा ही उठा लिया. वे रंजना का हाथ पकड़ कर जमीन पर बैठ गए और बड़े प्यार से इस मनोदशा का कारण पूछने लगे. पहले तो रंजना चुप रहीं पर फिर बसंत के प्यारभरे स्पर्श से सालों से जमी बर्फ की पर्त मानो पिघलने को आतुर हो उठी, उन की आंखों से आंसुओं के रूप में लावा बह निकला और रोतेरोते पूरी बात उन्होंने बसंत को कह सुनाई, जिस का सार यह था कि जब भी बसंत उन के नजदीक आते हैं उन्हें वह काली रात याद आ जाती है और वे घबरा उठती हैं.

बसंत कुछ देर तो शांत रहे, वातावरण में चारों ओर मौन पसर गया. वे मन ही मन घबराने लगीं कि न जाने बसंत की प्रतिक्रिया क्या होगी. परंतु कुछ देर बाद माहौल की खामोशी को तोड़ते हुए बसंत उठ कर उन की बगल में बैठ गए, रंजना का हाथ अपने हाथ में ले कर बड़े ही प्यार से बोले, ‘रंजू, जो हुआ उसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाओ. तुम्हारी उस में कोई गलती नहीं थी. गलती तो तुम्हारे उस भाई की थी जिस ने एक कोमल कली को कुचलने का प्रयास किया. जिस ने तुम्हारे मातापिता के साथ विश्वासघात किया. जिस ने रिश्तों की गरिमा को तारतार कर दिया. वह भाई के नाम पर कलंक है. जहां तक मां का सवाल है वे यह कभी सपने में भी नहीं सोच पाईं होंगी कि उन का सगा भतीजा ऐसा कुकृत्य कर सकता है. परंतु अब मैं तुम्हारे साथ हूं. हम पतिपत्नी हैं. तुम्हारा और मेरा हर सुखदुख साझा है.

‘कल हम एक मनोवैज्ञानिक काउंसलर के पास चलेंगे जिस से तुम अपने मन की सारी पीड़ा को बाहर ला कर अपने और मेरे जीवन को सुखमय बना पाओगी. इतना भरोसा रखो अपने इस नाचीज जीवनसाथी पर कि जब तक तुम स्वयं को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर लेतीं मैं कोई जल्दबाजी नहीं करूंगा. बस, इतना प्रौमिस जरूर चाहूंगा कि यदि भविष्य में हमारी कोई बेटी होगी तो उसे तुम संभाल कर रखोगी. उसे किसी भी हालत में परिचितअपरिचित की हवस का शिकार नहीं होने दोगी. बोलो, मेरा साथ देने को तैयार हो.’

‘हां, बसंत, मैं अपनी बेटी तो क्या इस संसार की किसी भी बेटी को उस तरह की मानसिक यातना से नहीं गुजरने दूंगी, जिसे मैं ने भोगा है, पर मुझे अभी कुछ वक्त और चाहिए,’ रंजना ने बसंत का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, तो बसंत मुसकराते हुए प्यार से बोले, ‘यह बंदा ताउम्र अपनी खूबसूरत पत्नी की सहमति का इंतजार करेगा.’

अचानक रंजना कुछ सोचते हुए बोलीं, ‘बसंत, मैं धन्य हूं जो मुझे तुम जैसा समझदार पति मिला. मुझे लगता है हर महिला बाल्यावस्था में कभी न कभी पुरुषों द्वारा इस प्रकार से शोषित होती होगी. अगर आज तुम्हारे जैसा समझदार पति नहीं होता तो मुझ पर क्या बीतती.’

‘तुम बिलकुल सही कह रही हो, कितने परिवारों में ऐसा ही दर्द अपने मन में समेटे महिलाएं जबरदस्ती पति के सम्मुख समर्पित हो जाती हैं. कितनी महिलाएं अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं और कितनों के इसी कारण से परिवार टूट जाया करते हैं, जबकि इस प्रकार की घटनाओं में महिला पूरी तरह निर्दोष होती है, क्योंकि बाल्यावस्था में तो वह इन सब के माने भी नहीं जानती. चलो, अब कुछ खाने को दो, बहुत जोरों से भूख लगी है,’ बसंत ने कहा तो वे मानो विचारों से जागी और फटाफट चायनाश्ता ले कर आ गईं.

कुछ दिनों की कांउसलिंग सैशन के बाद वे सामान्य हो गईं और एक दिन जब वे नहा कर बाथरूम से निकली ही थीं कि बसंत ने उन्हें अपने बाहुपाश में बांध लिया और सैक्सुअल नजरों से उन की ओर देखते हुए बोले, ‘‘अब कंट्रोल नहीं होता, बोलो, हां है न.’’

बसंत की प्यारभरी मदहोश कर देने वाली नजरों में मानो वे खो सी गईं और खुद को बसंत को सौंपने से रोक ही नहीं पाईं. बसंत ने उन्हें 2 प्यारे और खूबसूरत से बच्चे दिए. बेटी रूपा और बेटा रूपेश. उन्हें अच्छी तरह याद है जैसे ही रूपा बड़ी होने लगी, वे रूपा को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती थीं. दोनों बच्चों के साथ बसंत और उन्होंने ऐसा दोस्ताना रिश्ता कायम किया था कि बच्चे अपनी हर छोटीबड़ी बात मातापिता से ही शेयर करते थे.

वे चारों आपस में मातापिता कम दोस्त ज्यादा थे. बेटी रूपा जैसे ही 7-8 वर्ष की हुई, उन्होंने उसे अच्छीबुरी भावनाओं, स्पर्श और नजरों का फर्क भलीभांति समझाया. ताकि उस के जीवन में कभी कोई रात काली न हो. सोचतेसोचते कब आंख लग गई, उन्हें पता ही नहीं चला. सुबह आंख देर से खुली तो देखा कि सभी केरवा डैम जाने की तैयारी में थे. वे भी फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल लीं. अगले दिन रश्मि की दीदी का सुबह की ट्रेन से जाने का प्रोग्राम था. 3 दिन कैसे हंसीखुशी मेें बीत गए, पता ही नहीं चला.

रीते हाथ

महत्त्वाकांक्षी उमा ने खूब सपने संजोए थे अपने भावी पति के बारे में. जल्द ही उस का सपना पूरा भी हो गया. सिला खत्म कर उमा घर से निकली तो मैं दरवाजा बंद कर अंदर आ गई. आंखों में अतीत और वर्तमान दोनों आकार लेने लगे. मैं सोफे पर चुपचाप बैठ कर अपने ही खयालों में खोई अपनी सहेली के रीते हाथों के बारे में सोचती रही.

क्यों उमा से मेरी दोस्ती मां को बिलकुल पसंद नहीं थी. सुंदर, स्मार्ट, हर काम में आगे, उमा मुझे बहुत अच्छी लगती थी. वह मुझ से एक क्लास आगे थी और रास्ता एक होने के कारण हम अकसर साथ स्कूल आतेजाते थे. तब मैं भरसक इस कोशिश में रहती कि मां को हमारे मिलने का पता न चले, पर मां को सब पता चल ही जाता था.

उमा स्कूल से कालिज पहुंची तो दूसरे ही साल मेरा भी दाखिला उसी कालिज में हो गया. कालिज के उमड़ते सैलाब में तो उमा ही मेरा एकमात्र सहारा थी. यहां उस का प्रभाव स्कूल से भी ज्यादा था. कालिज का कोई भी कार्यक्रम उस के बगैर अधूरा लगता था. नाटक हिंदी का हो या अंगरेजी का उमा का नाम तो होता ही, अभिनय भी वह गजब का कर लेती थी.

लड़कों की एक  लंबी फेहरिस्त थी, जो उमाके दीवाने थे. वह भी तो कैसे बेझिझक उन सब से बात कर लेती थी. बात भी करती और पीठ पीछे उन का मजाक भी उड़ाती. कालिज से लौटते समय एक बार उमा ने मुझे बताया था कि अभी तो ये ग्रेजुएशन ही कर रहे हैं और इन को कुछ बनने में, कमाने में सालों लगेंगे. मैं तो किसी ऐसे युवक से विवाह करूंगी जिस की अच्छी आमदनी हो ताकि मैं आराम से रह सकूं.

इसलिए मैं किसी के प्यार के चक्कर में नहीं पड़ती. मैं उस की दूरदर्शी बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गई. मुझ में झिझक थी. मैं अपनी किताबी दुनिया से बाहर कुछ नहीं जानती थी और उमा ठीक मेरे विपरीत थी. क्या यही कारण था, जो मुझे उस के व्यक्तित्व की ओर आकर्षित करता था? मन में छिपी एक कसक थी कि काश, मैं भी उस की जैसी बन पाती लेकिन मां क्यों…?

संयोग देखो कि उस की आकांक्षाओं पर जो युवक खरा उतरा वह मेरा ही मुंहबोला भाई विकास था. विकास से हमारा पारिवारिक रिश्ता इतना भर था कि उस के और मेरे पिता कभी साथसाथ पढ़ते थे पर इतने भर से ही विकास ने कभी हम बहनों को भाई की कमी महसूस नहीं होने दी.

अपने घर की एक पार्टी में मैं ने विकास का परिचय उमा से कराया था और यह परिचय दोस्ती का रूप धर धीरेधीरे प्रगाढ़ होता चला गया था. मगर उस के पिता का मापतौल अलग था, उमा की आकांक्षाओं पर विकास भले ही खरा उतरा था. उमा की मां किसी राजघराने से संबंधित थीं और इस बात का गरूर उमा की मां से अधिक उस के पिता को था.

एक साधारण परिवार में वह अपनी बेटी ब्याह दें, यह नामुमकिन था. इसलिए उन्होंने एक खानदानी रईस परिवार में उमा का रिश्ता कर दिया. ऐसी बिंदास लड़की पर भी मांबाप का जोर चलता है, सोच कर मुझे आश्चर्य हुआ पर यही सच था.

उमा के विवाह के 2 महीने बाद ही मेरा भी विवाह हो गया. पहली बार मायके आने पर पता चला कि उमा भी मायके आई हुई है, हमेशा के लिए. ‘लड़का नपुंसक है,’ यही बात उमा ने सब से कही थी. यह सच था अथवा उस ने अपने डिक्टेटर पिता को उन्हीं की शैली में जवाब दिया था, वही जाने.

बहरहाल, पिता अपना दांव लगा कर हार चुके थे. इस बार मां ने दबाव डाला. उमा एक बार फिर दुलहन बनी और इस बार दूल्हा विकास था. प्यार की आखिरकार जीत हुई थी. एक असंभव सी लगने वाली बात संभव हो गई. हम सभी खुश थे. विकास की खुशी हम सब की खुशी थी. बस, मां ही केवल औपचारिकता निभाती थीं उमा से.

साल दर साल बीत रहे थे. अब शादीब्याह जैसे पारिवारिक मिलन के अवसरों पर उमा से मुलाकात हो ही जाती. एकदूसरे की हमराज तो हम पहले से ही थीं, अब और भी करीब हो गई थीं. एक बात सोचती हूं कि मनचाहा पा कर भी व्यक्ति संतुष्ट क्यों नहीं हो पाता? और ऊंचे उड़ने की अंधी चाह औंधेमुंह पटक भी तो सकती है. उमा यही बात समझ नहीं पा रही थी. उसे अपनी महत्त्वा- कांक्षाओं के आगे सब बौने लगने लगे थे.

विकास से उस की शिकायतों की फेहरिस्त हर मुलाकात में पहले से लंबी हो रही थी, वह महत्त्वाकांक्षी नहीं, पार्टियों, क्लबों का शौकीन नहीं, उसे अंगरेजी फिल्में पसंद नहीं, वह उमा के लिए महंगेमहंगे उपहार नहीं लाता…और भी न जाने क्याक्या? मैं भी अब पहले जैसी नादान नहीं रही थी. दुनियादारी सीख चुकी थी और मुझ में इतना आत्मविश्वास आ चुका था कि उमा को अच्छेबुरे की, गलतसही की पहचान करा सकूं.

‘देख उमा, मैं जानती हूं कि विकास बहुत महत्त्वाकांक्षी नहीं है पर तुम तो आराम से रहती हो न, और सब से बड़ी बात, वह तुम्हें कितना प्यार करता है. इस से बड़ा सौभाग्य क्या और कुछ हो सकता है? बताओ, कितनों को मनपसंद साथी मिलता है. फिर भी तुम्हें शिकायतें हैं, जबकि ज्यादातर औरतें एक अजनबी व्यक्ति के साथ तमाम उम्र गुजार देती हैं, बिना गिलेशिकवों के.’

‘मैं यह नहीं कहती कि पुरुष की सब बदसलूकियां चुपचाप सह लो, उस के सब जुल्म बरदाश्त कर लो पर जीवन में समझौते तो सभी को करने पड़ते हैं. यदि औरत घरपरिवार में तो पुरुष भी घर से बाहर दफ्तर में, काम में समझौते करता ही है.

‘मुझे ही देखो. मेरे पति अपने पैसे को दांत से पकड़ कर रखते हैं. अब इस बात पर रोऊं या इस बात पर तसल्ली कर लूं कि फुजूलखर्ची की आदत नहीं है तो दुखतकलीफ में किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाने पड़ेंगे. दूसरे, कंजूस व्यक्ति में बुरी आदत जैसे सिगरेटशराब की लत पड़ने का भय नहीं रहता. अब यह तो जिस नजर से देखो नजारा वैसा ही दिखाई देगा.’

‘समझौता करना, कमियों को नजरअंदाज कर देना, यह सब तुम जैसे कमजोर लोगों का दर्शन है सुधा, सो तुम्हीं करो. यह समझौते मेरे बस के नहीं. मुझे जो एक जीवन मिला है मैं उसे भरपूर जीना चाहती हूं. शादी का मतलब यह तो नहीं कि मैं ने जीवन भर की गुलामी का बांड ही भर दिया है. ठीक है, गलती हो गई मेरे चयन में तो उसे सुधारा भी तो जा सकता है. मैं तुम्हारी तरह परंपरावादी नहीं हो सकती, होना भी नहीं चाहती और विकास को तो मैं सबक सिखा कर रहूंगी. इसी के लिए तो मैं पहले पति को छोड़ आई थी.’

विकास को सबक सिखाने का उमा ने नायाब तरीका भी ढूंढ़ निकाला. उस के काम पर जाते ही वह अपने पुरुष मित्रों से मिलने चल पड़ती. उस का व्यक्तित्व एक मैगनेट की तरह तो था ही जिस के आकर्षण में पुरुष स्वयं ख्ंिचे चले आते थे. क्या अविवाहित और क्या विवाहित, दोनों ही.

उमा अब विकास के स्वाभिमान को, उस के पौरुष को खुलेआम चुनौती दे रही थी. उसे लगता था कि इस से अच्छा तो तलाक ही हो जाता. कम से कम वह चैन से तो जी पाएगा.

उमा की यह इच्छा भी पूरी हो गई. उस का विकास से भी तलाक हो गया और वह अपनी 5 वर्षीय बेटी को भी छोड़ने को तैयार हो गई, क्योंकि इस बीच उस ने नवीन पाठक को पूरी तरह अपने मोहजाल में फंसा कर विवाह का वादा ले लिया था.

मैं उस के नए पति से कभी मिली नहीं थी और न ही मिलने की कोई उत्सुकता थी. बस, इतना जानती थी कि वह किसी उच्च पद पर है और प्राय: ही विदेश जाता रहता है.

कुछ दिन के बाद उमा दूसरे शहर चली गई तो हम सब ने राहत की सांस ली. बस, विकास को देख कर मन दुखी होता था. इस रिश्ते का टूटना विकास के लिए महज एक कागजी काररवाई न थी. उस में अस्वीकृति का बड़ा एहसास जुड़ा था और उस जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिए यह गहरा धक्का था. वैरागी सा हो गया था वह. कम ही किसी से मिलता और काम के बाद का सारा समय वह अपनी बेटी के संग ही बिताता.

लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर उमा अचानक मिल गई. इस बीच हम भी अनेक शहर घूम दिल्ली आ कर बस गए थे. हुआ यों कि एक शादी के रिसेप्शन में शामिल होने हम जिस होटल में गए थे, होटल की लौबी में अचानक ही उमा मुझे दिख गई. उस ने भी मुझे देख लिया और फौरन हम एकदूसरे की तरफ लपके.

उमा अब 50 को छू रही थी किंतु उस के साथ जो पुरुष था वह उस से काफी बड़ा लग रहा था. उस समय तो अधिक बातचीत नहीं हो पाई पर उसे देख कर सब पुरानी यादें उमड़ पड़ी थीं. मैं ने फौरन उसे अगले ही दिन घर आने और पूरा दिन संग बिताने के लिए आमंत्रित कर लिया. आश्चर्य, अब भी उस के प्रति मेरा अनुराग बना हुआ था.

उमा समय पर पहुंची. मैं ने खाना तो तैयार कर ही रखा था, काफी भी बना कर थर्मस भर दिया था ताकि इत्मीनान से बैठ कर हम बातचीत कर सकें.

मेरे पहले प्रश्न का उत्तर ही मुझे झटका दे गया, महज बात शुरू करने के लिए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पाठक साहब कैसे मिजाज के हैं? मैं ने कल पहली बार उन्हें देखा.’’

उमा के चेहरे पर एक बुझी हुई और उदास सी मुसकान दिखाई दी और पल भर में वह गायब भी हो गई, कुछ पल खामोश रही वह, पर मेरी उत्सुक निगाहों को देख टुकड़ोंटुकड़ों में बोली, ‘‘वह पाठक नहीं था. हम दोनों अब एकसाथ रहते हैं. दरअसल, पाठक सही आदमी नहीं था. बहुत ऐयाश किस्म का आदमी था वह. तुम सोच नहीं सकतीं कि मैं किस तनाव से गुजरी हूं. जी चाहता है जान दे दूं. एंटी डिपे्रशन की दवाई तो लेती ही हूं.’’

विकास के साथ किए गए उस के पुराने व्यवहार को भूल कर मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर सांत्वना देने का प्रयत्न किया.

‘‘कई औरतों के साथ पाठक के संबंध थे और विवाह के एक साल बाद से ही वह खुलेआम अपने दफ्तर की एक महिला के संग घूमने लगा था. जब जी चाहता वह घर आता, जब चाहता रात भी उसी के संग बिता देता. अपनी ऐसी तौहीन, मेरे बरदाश्त के बाहर थी.’’

‘हमारे किए का फल कई बार कितना स्पष्ट होता है’ कहना चाह कर भी मैं कह नहीं पाई. मुझे उस से हमदर्दी हो रही थी. एक औरत होने के नाते या पुरानी दोस्ती के नाते? जो भी मान लो.

‘‘फिर अब कहां रहती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘एक फ्लैट पाठक ने विवाह के समय ही मेरे नाम कर दिया था. मैं उसी में रहती हूं. बाकी मैं रीयल एस्टेट का अपना व्यवसाय करती हूं ताकि उस से और किसी सहायता की जरूरत न पड़े.’’

बच्चों की बात हुई तो मैं ने उसे बताया कि मेरे दोनों बच्चे ठीक से सैटल हो चुके हैं. बेटे ने अहमदाबाद से एम.बी.ए. किया है और बेटी ने बंगलौर से. बेटी का तो विवाह भी हो चुका है और अब बेटे के विवाह की सोच रहे हैं.

जानती तो मैं भी थी उस की बिटिया के बारे में पर वह कितना जानती है पता नहीं. यही सोच कर मैं कुछ नहीं बोली. उस ने स्वयं ही बेजान सी आवाज में कहा, ‘‘सुना है, अलग अपनी किसी सहेली के साथ रहती है. कईकई दिनों घर नहीं जाती. मुझ से तो ठीक से बात करने को भी तैयार नहीं. फोन करूं तो एकदो बात का अधूरा सा जवाब दे कर फोन रख देती है,’’ यह कहतेकहते वह रोंआसी हो गई. मैं उस की ओर देखती रही, लेकिन ढूंढ़ नहीं पाई जीवन से भरपूर, अपनी ही शर्तों पर जीने वाली उमा को.

‘‘सिर पर छत तो है पर सोच सकती हो, उस घर में अकेले रहना कितना भयावना हो जाता है? लगता है दीवारें एकसाथ गिर कर मुझे दबोच डालने का मनसूबा बनाती रहती हैं. शाम होते ही घर से निकल पड़ती हूं. कहीं भी, किसी के भी साथ… मैं तुम्हें पुरातनपंथी कहती थी, मजाक उड़ाती थी तुम्हारा. पर तुम ही अधिक समझदार निकलीं, जो अपना घर बनाए रखा, बच्चों को सुरक्षात्मक माहौल दिया. बच्चे तुम्हारे भी तुम से दूर हैं, फिर भी वह तुम्हारे अपने हैं. पूर्णता का एहसास है तुम्हें, कैसा भी हो तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है, उस का सुरक्षात्मक कवच है तुम्हारे चारों ओर. जानती हो, मुझे कैसीकैसी बातें सुननी पड़ती हैं. मेरी ही बूआ का दामाद एक दिन मुझ से बोला, कोई बात नहीं यदि पाठक चला गया तो हम तो हैं न.

‘‘उस की बात से अधिक उस के कहने का ढंग, चेहरे का भाव मुझे आज भी परेशान करता है पर चुप हूं. मुंह खोलूंगी तो बूआ और उन की बेटी दोनों को दुख पहुंचेगा. और फिर अपने ही किए की तो सजा पा रही हूं…’’

उमा को अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था. ठोकरें खा कर दूसरों के दुखदर्द का खयाल आने लगा था पर अब बहुत देर हो चुकी थी. मैं उस की सहायता तो क्या करती, सांत्वना के शब्द भी नहीं सोच पा रही थी. वही फिर बोली, ‘‘सुधा, घर तो खाली है ही मेरा मन भी एकदम खाली है. लगता है घनी अंधेरी रात है और मैं वीरान सड़क पर अकेली खड़ी हूं… रीते हाथ.

छोटी सरदारनी: क्या सरब को सजा से बचा पाएगी मेहर?

कलर्स के पौपुलर सीरियल में से एक छोटी सरदारनी आजकल फैंस को काफी एंटरटेन कर रहा है. शो में इन दिनों मेहर, सरब और परम का हनीमून स्पैशल एपिसोड फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वहीं अब आने वाले एपिसोड में कई बड़े ट्विस्ट एंड टर्न्स फैंस को हैरान करने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला ट्विस्ट…

हनीमून स्पेशल में आएगा ये ट्विस्ट

शो में आपको देखने को मिल रहा है कि मेहर, सरब और परम हनीमून पर जाते हैं. जहां सरब, मेहर और उसके होने वाले बच्चे को हैप्पी लाइफ देने के लिए सरबिया छोड़ने का फैसला करता है और वापस इंडिया आकर ये कहता है कि मेहर की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई है, लेकिन सरब का प्लान उस पर ही उल्टा पड़ जाता है जब मेहर किडनैप हो जाती है और पुलिस उसे ही मेहर के खून के इल्जाम में पकड़ लेती है.

क्या किडनैपर से बच पाएगी मेहर

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दूसरी तरफ आप देखेंगे कि मेहर किसी तरह गुंडों से बचकर सरब को फोन करने की कोशिश करेगी, लेकिन रौबी फोन उठा लेगा और गुंडो को उसे पकड़ने के लिए भेजेगा जो उसे जान से मारने की कोशिश करेंगे.

परम से झूठ बोलेगा सरब

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इसी बीच परम जेल में सरब से मिलने जाएगा और मेहर को लेकर सवाल करेगा, जिसका जवाब न देते हुए सरब बहाना बनाकर परम से झूठ बोलता हुआ नजर आएगा.

बता दें, ‘छोटी सरदारनी’ कहानी है मेहर की जो जिंदगी की मुश्किलों से गुजरते हुए अपने बच्चे को जन्म देने के लिए अपनी मां और परिवार से लड़ती है. यह शो इस बात को साबित करता है कि एक मां से बड़ा कोई योद्धा नहीं है.

मानव मेहर का पहला प्यार है और वो उसके बच्चे की मां बनने वाली है, लेकिन मेहर की मां कुलवंत कौर मानव पसंद नहीं करती, इसलिए वो उसका खून कर देती है और अपने फायदे के लिए मेहर की शादी सरबजीत से करवा देती है. सरबजीत की ये दूसरी शादी है. पहली शादी से उसका एक बेटा परम है, जिससे वो बेहद प्यार करता है और उसी की खातिर सरबजीत ने ये शादी की है. लेकिन शादी की पहली रात ही मेहर अपने और मानव के रिश्ते में उसे बता देती है और ये भी कहती है कि वो उसके बच्चे की मां बनने वाली है. जिसके बाद सरबजीत ये फैसला करता है कि वो मेहर को एक नई जिंदगी देगा और उसे किसी दूसरे देश में सेटल कर देगा. लेकिन इसी दौरान परम और मेहर के बीच ममता की डोर मजबूत हो जाती है. अब देखना ये है कि क्या मेहर और परम एक दूसरे के बिना रह पाएंगे. शो के ऐसे ही नए ट्विस्ट एंड टर्न्स जानने के लिए देखिए सोमवार से शनिवार, रात 7.30 बजे सिर्फ कलर्स पर.

जन्म के बाद भी पता नहीं लड़का है या लड़की

दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाके लाजपतनगर के एक संयुक्त परिवार में रहने वाले अंजू और ताहिर अपनी निजता को बनाए रखना चाहते हैं. ये दोनों पतिपत्नी दुविधा में जी रहे हैं. कारण है जन्म के समय बच्चे का लिंग निर्धारित न होना. बच्चे के जन्म के समय इन्हें बताया गया कि बच्चे का लिंग स्पष्ट नहीं है. इन्हें 6 माह इंतजार करने को कहा गया. चिकित्सकों ने कहा कि उस के बाद ही इस का लिंग निर्धारित किया जाएगा.

6 माह तक वे सभी को इस नवजात शिशु को लड़की बताते रहे. इस दौरान मस्तिष्क में कई सवाल उठते रहे, जैसे क्या होगा अगर यह लड़का हुआ, हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ, यह सामान्य क्यों नहीं जन्मा आदि. जन्म के समय बच्चा स्वस्थ 3.2 किलोग्राम का प्यारा और ध्यान आकर्षित करने वाला था. 6 माह होने पर शिशु के परिजनों ने दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल से अपने सवाल का जवाब मांगा. 4 घंटे की जांचपड़ताल के बाद जानीमानी बाल रोग विशेषज्ञ व सर्जन डा. मीरा लूथरा ने परिजनों के आगे प्रस्ताव रखा कि उन्हें लड़का चाहिए या लड़की?

परिजन यह सुन कर भौचक्के रह गए कि बच्चे में दोनों लिंगों के लक्षण मौजूद हैं. विभिन्न टैस्टों व गुणसूत्र टैस्ट में पाया गया कि उस का कार्योटाइप 4634 था, जिस से यह निश्चित होता था कि शिशु जन्म से लड़का है. लेकिन उस में छोटी योनि व गर्भाशय होने के कारण लड़की के लक्षण भी मौजूद हैं. कुल मिला कर शिशु मध्यलिंगी था.

डा. लूथरा का कहना है कि इस प्रकार के शिशु को सर्जरी द्वारा पुरुष या महिला के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है लेकिन वयस्क होने पर इस बच्चे की प्रजनन क्षमता नहीं होगी, क्योंकि इस शिशु में न तो अंडाशय है और न ही टैस्टोस्टेरौन का स्तर उच्च है.

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मध्यलिंगी बच्चे

विश्व में मध्यलिंगी बच्चों की संख्या 1,000 की आबादी पर एक है. भारत में यह आंकड़ा ज्यादा हो सकता है. सायन अस्पताल, मुंबई के प्रमुख डा. पारस कोठारी का कहना है, ‘‘मैं हर माह ऐसे एकदो बच्चों की सर्जरी करता हूं. ऐसे मामले निम्नवर्ग में ही नहीं होते बल्कि उच्चवर्ग में भी होते हैं. इस स्थिति के लिए मुख्यतया हार्मोंस असंतुलन उत्तरदायी होता है जो आगे चल कर लिंग अस्पष्टता या मध्यलिंगी शिशु के रूप में प्रकट होता है.’’

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार, मध्यलिंगी व्यक्ति वह है जिस की विशेषता पारंपरिक पुरुष या महिला की परिभाषा से मेल नहीं खाती. आमतौर पर 3 तरीके होते हैं जिन के द्वारा बच्चे या किसी व्यक्ति की यौन विशेषताओं को निर्धारित किया जाता है. एक, बाह्य जननांग की शारीरिक उपस्थिति – यदि यह सामान्य नर या मादा प्रकार में फिट बैठती है, दूसरा, पुरुषों के संदर्भ में क्रोमोसोम की संख्या 4634 तथा महिलाओं के संदर्भ में 46ङ्गङ्ग प्रकार की हो और तीसरा, शिशु में अंडाशय है या वृषण, और परिणामी हार्मोन टैस्टोस्टेरौन या एस्ट्रोजन में से किसी की अधिकता है.

पहला व दूसरा प्रकार लिंग निर्धारण की कसौटी पर खरे नहीं हैं. उदाहरण के तौर पर मादा गुणसूत्र ङ्गङ्ग के साथ अगर एंड्रोजन हार्मोन अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न होता है तो परिणामस्वरूप भगनासा बड़ा लिंग जैसा बन जाता है तथा अन्य पुरुष विशेषताएं, जैसे दाढ़ी व शरीर पर बाल आदि आ जाते हैं. इस के विपरीत, नर गुणसूत्र ङ्गङ्घ के साथ अगर एंड्रोजन हार्मोन की मात्रा कम उत्पन्न होती है तब उस का लिंग छोटा और योनि जैसी आकृति बन जाती है. वैश्विक आधार पर इस स्थिति को यौन भेदभाव (डीएसडी) के विकार के रूप में जाना जाता है. इस स्थिति में कई अंतरंग भिन्नताएं शामिल होती हैं.

डाक्टर क्या बताएं

हरियाणा के हिसार जिले के 18 वर्षीय कमल को लेते हैं. वह मध्यलिंगी (इंटरसैक्स) पैदा हुआ था. उसे 15 साल की उम्र तक एक लड़की के रूप में पालापोसा गया था. लेकिन 15 वर्ष की उम्र में परिजनों को महसूस हुआ कि इस की हरकतें तो लड़के जैसी हैं. जन्म के समय कमल के वृषण छिपे हुए थे और मूत्रमार्ग लिंग के अंत में था जिस से कि महिला जननांग जैसी आकृति बनती थी.

कमल ने बताया, ‘‘मु झे भी 15 वर्ष की उम्र में महसूस हुआ कि कुछ गलत है, क्योंकि इस उम्र में भी मेरे स्तनों का कोई विकास नहीं हुआ था, साथ ही लघुशंका में भी अत्यंत दर्र्द होता था. जांच से पता चला कि मेरे गुणसूत्र 34 हैं. तब 4 बड़ी सर्जरियों के बाद मु झे पुरुष बनाया गया. शुरू में मुझे बहुत बड़ा झटका लगा क्योंकि बचपन से ले कर वयस्कता तक मुझे लड़की माना गया. लेकिन मैं कभीकभी लड़कपन महसूस करता था. मेरी आवाज लड़कों जैसी थी. लड़कियों के बजाय मैं लड़कों को दोस्त बनाना पसंद करता था. अब मैं आश्चर्यचकित हूं कि अगर मैं लड़की होता, तो क्या होता?’’

हरियाणा का समाज पितृसत्तात्मक है, इसलिए समाज की स्वीकृति मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा. अब कमल नियमित हार्मोंस इंजैक्शन ले रहा है जिस से उस की दाढ़ीमूंछ जैसी भौतिक पुरुष विशेषताएं विकसित हो सकें.

मुंबई के जसलोक अस्पताल में प्रसिद्ध स्त्रीरोग विशेषज्ञ डा. फिरोजा पारेख का कहना है, ‘‘समस्या मध्यलिंगी के रूप में जन्म लेने में नहीं है बल्कि समाज में है जोकि स्त्रीलिंग व पुल्ंिलग के आगे देखना ही नहीं चाहता. जब बच्चे का जन्म होता है और डाक्टर देखता है कि बच्चे के जननांग निर्धारित नहीं हैं, तो उसे तुरंत समस्या का आभास हो जाता है. सब से पहली समस्या तो यह आती है कि वह परिजनों को क्या बताए. दूसरी समस्या यह आती है कि वह जन्म प्रमाणपत्र में लिंग की क्या घोषणा करे, विशेषकर जब बच्चे का जन्म समय से पूर्र्व 7 माह में होता है, क्योंकि इस दौरान जननांग अविकसित होते हैं. इसलिए मातापिता को बच्चे के लिंग के बारे में बताना असंभव सा हो जाता है.’’

परिजन मध्यलिंगी बच्चे को स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होते. यही कारण है कि अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के होली फैमिली अनाथालय के पालने में एक बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ दिया गया था. अगले दिन जांच में पाया गया कि बच्चा मध्यलिंगी है.

वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ व सर्जन डा. फजल नबी का कहना है, ‘‘मध्यलिंगी बच्चे के जन्म के बाद हम उस के मातापिता को सलाह देते हैं कि आप कुछ महीनोंकी प्रतीक्षा करो, उस के बाद इस के आनुवंशिक और हार्मोनल परीक्षणों के बाद ही पता चलेगा कि बच्चे की परवरिश कैसे करनी है.

‘‘इस तरह के मामलों में अधिकतर वयस्कता के समय असल मुद्दा उभर कर सामने आता है. विशेषकर जब शारीरिक बनावट जननांग की बनावट से मेल नहीं खाती. हम परिजनों को सलाह देते हैं कि बच्चे की परवरिश लड़की की तरह करें, क्योंकि इस प्रकार के बच्चे में सर्जरी से योनि का निर्माण करना आसान है बनिस्बत लिंग के.

यदि पुरुष लिंग बना भी दिया जाता है तो उस में स्तंभन पैदा करना बहुत मुश्किल काम है, क्योंकि सभी अंगों का प्रत्यारोपण किया गया होता है. इस प्रकार से उत्पन्न पुरुष में प्रजनन क्षमता भी नहीं होती क्योंकि भारतीय समाज के संदर्भ में एक बां झ पुरुष की अपेक्षा बां झ महिला को अधिक स्वीकारोक्ति प्राप्त है. इसलिए इस प्रकार के शिशु को स्त्री के रूप में विकसित करने में ही भलाई है.’’

मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव

मध्यलिंगी व्यक्ति के मस्तिष्क पर गहरा मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव पड़ता है. इस प्रकार के व्यक्ति जैसेजैसे किशोर अवस्था से वयस्कता की ओर बढ़ते हैं, यह स्थिति और भी भयानक होती जाती है. मध्यलिंगी विनय गोयल आज भी जब कालेज के दिनों को याद करते हैं तो उन की आंखें नम हो जाती हैं. उन का कहना है, ‘‘तमाम स्कूल और कालेज के जीवन में मु झे दुत्कार मिली क्योंकि मैं पारंपरिक पुरुष या महिला ढांचे के अनुकूल नहीं था. मेरा हर कदम पर मजाक उड़ाया जाता था.

‘‘एक बार एक प्रवक्ता ने मु झ से पूछा कि तुम्हारे में बच्चा पैदा करने के अंग हैं या नहीं, तो मैं ने उन से कहा कि क्या पैंट उतार दूं. इसी प्रकार विद्यार्थी भी मु झे अपनमानजनक नामों से बुलाते थे और मेरा मजाक उड़ाते थे. बारबर मेरा मन करता था कि आत्महत्या कर लूं. मैं ने

3 बार प्रयास भी किया, लेकिन मैं हर बार बच गया. आत्महत्या का पहला प्रयास मैं ने 9 वर्ष की उम्र में किया था.’’

गोपाल याद कर बताते हैं, ‘‘कालेज के दिनों में खुद की पहचान उजागर न हो, इसलिए मैं 7 से 8 घंटे तक लघुशंका के लिए नहीं जाता था.’’

गोपाल का जन्म क्लेनफेल्टर सिंड्रोम (केएस), एक आनुवंशिक विकार और सब से आम अंतरंग भिन्नताओं में से एक, के साथ हुआ था, एक सामान्य पुरुष के विपरीत जो 34 गुणसूत्र के साथ पैदा होता है. जबकि एक क्लाइनफेलर नर एक अतिरिक्त एक्स गुणसूत्र 334 के साथ पैदा होता है. यह अतिरिक्त गुणसूत्र पुरुष के संपूर्ण गुणों को विकसित होने से रोकता है. केएस ग्रस्त पुरुष के स्तन विकसित हो जाते हैं जबकि उस के दाढ़ीमूंछ नहीं उगती. उस का लिंग छोटा तथा टैस्टोस्टेरौन का स्तर बहुत नीचा होता है. ये सभी लक्षण वयस्क होने पर दिखाई पड़ते हैं. अपूर्णता के साथ जन्मे बच्चों पर नजर रखने वाली संस्था संपूर्ण के अनुसार, विश्वभर में 500 बालकों में से एक बालक का जन्म मध्यलिंगी के रूप में होता है.

गोपाल का कहना है, ‘‘मैं हमेशा चिंतित रहता था, क्योंकि मैं पारंपरिक पुरुष या महिला की परिभाषा में ठीक नहीं बैठता था. मेरी आवाज अन्य लड़कों से अलग थी. मैं कठोर शारीरिक परिश्रम नहीं कर सकता था. लड़कियों के साथ दोस्ती में मु झे सुकून मिलता था. इसी कारण से मैं अपने शारीरिक अंगों को ले कर काफी सजग था. मैं ऐसी कमीज पहनता था कि मेरी छाती (स्तन) ढके रहें.’’

गोपाल आगे कहते हैं, ‘‘पहली बार मेरी दादी ने 3 साल की उम्र में ध्यान दिया था. उन्हें महसूस हुआ था कि मेरे साथ कुछ गलत चल रहा है. मैं बचपन से ही न तो लड़की था और न ही लड़के जैसा अनुभव करता था.’’

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समाज में कोई जगह नहीं

तीर्थ (बदला हुआ नाम) दक्षिण भारत के एक राज्य में पुलिस इंस्पैक्टर हैं. वे आनुवंशिक बीमारी एड्रेनल हाइपरप्लासिया की मरीज थीं. यह बीमारी एड्रेनल गं्रथियों को प्रभावित करती है. तीर्थ अपना नाम गोपनीय रखने का अनुरोध करती हैं. उन का कहना था, ‘‘अगर मेरी पहचान उजागर हुई तो मु झे नौकरी से निकाल दिया जाएगा. यद्यपि मैं सामान्य व्यक्ति की भांति हूं लेकिन मध्यलिंगी (इंटरसैक्स) के लिए समाज में कोई जगह नहीं है.’’

डा. फिरोजा का कहना है कि उक्त बीमारी से ग्रस्त महिला की भगनासा काफी बड़ी हो जाती है, जोकि पुरुषांग जैसी दिखाई देती है. इन का शरीर कठोर, अत्यधिक बाल, गहरी आवाज और अनियमित या माहवारी का अभाव होता है. ये लक्षण आगे चल कर प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते हैं.

तीर्थ का कहना है, ‘‘मैं एक लड़की थी और मेरी परवरिश भी एक लड़की की तरह हुई. लेकिन मु झ  में लिंग विचित्रता थी. जब मैं यौनाचार करती तो मेरा स्वभाव एक पुरुष की भांति होता. अन्य समय में मैं एक खूबसूरत महिला जैसा आचरण करती. मैं दोनों लिंगों के साथ मेल कर लेती, लेकिन मैं विषमलिंगी नहीं थी. मेरे शारीरिक संबंध केवल महिलाओं के साथ थे. बचपन से मैं एक सामान्य लड़की की भांति थी. बदलाव तब आया जब 13 वर्ष की उम्र में भी मु झे माहवारी नहीं आई. मैं ने शादी नहीं की, क्योंकि लोग सोचते कि मैं अजीब हूं. मैं किसी बंधन में नहीं रहना चाहती. समाज मेरा और मेरी लिंग स्थिति का सम्मान करे. लोगों के लिए सामान्य क्या है, मु झे नहीं पता? मैं जो हूं वो हूं.’’

संपूर्ण संस्था की सदस्य नाडजा नोदिका का कहना है कि मध्यलिंगी व्यक्ति कोईर् भी लिंग पहचान अपना सकता है, जैसे पुरुष, महिला या किन्नर. मध्यलिंगी व्यक्ति को सब से पहले परिवार से ही भेदभाव का सामना करना पड़ता है. अकसर मध्यलिंगी शिशुओं को अनाथालय में छोड़ दिया जाता है. जैसेजैसे वे वयस्क होते हैं, उन्हें उन के व्यक्तित्व के लिए दुत्कारा जाता है जिस से उन में व्याकुलता और तनाव बढ़ता है. इस प्रकार के व्यक्ति के साथ चिकित्सकीय दखल और जननांग सर्जरी आगे चल कर और भी दुखद सिद्ध होती है, क्योंकि इस का प्रभाव ताउम्र पड़ता है.

इंटरसैक्स एक जैविक स्थिति है. जो व्यक्ति इंटरसैक्स है, उसे पता होना चाहिए कि वह स्वयं के बारे में क्या सोचता है तथा उस की मनोस्थिति क्या है. कुछ इंटरसैक्स स्वयं को ट्रांसजैंडर सम झते हैं. यद्यपि सभी ट्रांसजैंडर, इंटरसैक्स नहीं होते और न ही सभी इंटरसैक्स, ट्रांसजैंडर होते हैं. भारतीय गर्भपात कानून में ऐसे भ्रूण का गर्भपात कराने की अनुमति है जिस का उचित लिंग निर्माण न हो रहा हो, लेकिन कभीकभी इस का सही आंकलन नहीं हो पाता क्योंकि मानव शरीर के 334 और 344 जैसे गुणसूत्रों के कई असामान्य संयोजन हो सकते हैं, जो सामान्य 33 (मादा) और 34 (पुरुष) गुणसूत्रों से अलग होते हैं.

डेनियल मेनडोनका संयुक्त लिंग के साथ जन्मा था. उस के शरीर में दोनों लिंगों का अस्तित्व मौजूद था. उस की शारीरिक संरचना पुरुष जैसी थी जबकि सभी आतंरिक यौन अंग महिला से मेल खाते थे. क्रोमोसोम्स 334 एक अतिरिक्त 3 था. डेनियल ने बताया कि जब उस का जन्म हुआ तो डाक्टर ने उस के मातापिता को बताया कि तुम्हारे परिवार में हिजड़ा पैदा हुआ है. 25 वर्षीय डेनियल जींस और टीशर्ट में सामान्य युवक की भांति दिखता है. उस का कहना है कि उस के पिता ने जन्म के तुरंत बाद ही उसे त्याग दिया था. उस की एक चाची ने उस का पालनपोषण किया. वह बताता है, ‘‘मैं स्वभाव से जनानिया था और मु झे लड़कियों का साथ अच्छा लगता था. हालांकि, मैं कुछ अलग तरह की हरकतें करता जिन पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था. तब मु झे महसूस होता कि मैं औरों के जैसा नहीं हूं.

‘‘मेरी चाची ने मु झे किसी से ज्यादा घुलनेमिलने नहीं दिया. वे मु झे ले कर बहुत सजग थीं. जब मैं हाईस्कूल में था तब मु झे शारीरिक, मौखिक और यौनशोषण का सामना करना पड़ा. मैं ने कभी सार्वजनिक शौचालय का प्रयोग नहीं किया. निजी शौचालय का प्रयोग करने पर भी दरवाजा जरूर बंद करता था.

‘‘9 वर्ष की उम्र में मु झे पहली बार मासिकधर्म हुआ. इस के बाद तनावग्रस्त होने पर 4 बार आत्महत्या का प्रयास किया. 15 वर्ष की उम्र में मु झे विकल्प मिला, या तो मैं महिला सर्जरी करा लूं या जैसा हूं वैसा रहूं. मैं ने बाद वाला विकल्प चुना.’’

ताकि मिले आजादी

विशेषज्ञों के मुताबिक, इंटरसैक्स शिशुओं को अपनी तटस्थ स्थिति में रहने की इजाजत दी जानी चाहिए ताकि उन्हें बाद में अपना लिंग निर्धारण करने की आजादी मिल सके. डा. पारेख का कहना है कि क्या होगा यदि लड़के की भांति दिखने वाला शिशु बाद में लड़की बनने की इच्छा जाहिर करे. भारतीय समाज में ऐेसे लोगों का तिरस्कार होता है. जबकि इंटरसैक्स व्यक्ति को जल्द स्वीकार किया जाता है बजाय लिंग परिवर्तन के.

संथी सुंदराजन ऐथलीट इस मामले में भाग्यशाली नहीं रही. 2006 के एशियन खेलों में 800 मीटर दौड़ में उसे अपना रजत पदक लौटाना पड़ा क्योंकि लिंग टैस्ट में वह सफल नहीं हो पाई. उस की पुरुष विशेषताएं महिला अंगों पर भारी पड़ीं. संथी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला ऐथलीट के तौर पर कई पदक हासिल किए हैं.

हाथी और मानव द्वंद जारी आहे

दिल्ली उच्च न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा एक इंटरसैक्स मामले का जिक्र कर बताती हैं, ‘‘मेरे पास अपनी तरह का पहला भारतीय मामला फैजान सिद्दीकी का आया था जोकि शारीरिक रूप से पुरुष था लेकिन जननांग महिला के थे. निस्संदेह वह बच्चे पैदा नहीं कर सकता/सकती. लेकिन वह नौकरी करना चाहता था/थी जिस के लिए यह जरूरी था कि हार्मोंस इंजैक्शन ले कर महिला बन जाए, जिस से वह बीएसएफ की परीक्षा में बैठ सके. आखिरकार, उस ने बीएसफ की भौतिक व लिखित परीक्षा पास कर ली.

‘‘लेकिन बीएसएफ मैडिकल बोर्ड ने उसे अनफिट करार दिया. उस ने लिखा कि वह पूरी तरह महिला नहीं है और इस के प्रजनन अंग भी सामान्य नहीं हैं. मैं ने इस मामले को ले कर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की और मामला जीता और सिद्दीकी को नौकरी मिल गई.’’

इस बीच अंजू और ताहिर अभी भी डाक्टर के फैसले का इंतजार कर रहे हैं, जबकि उन के दोस्त और शुभचिंतक उन से सवाल पूछते रहते हैं कि उन का शिशु लड़का है या लड़की?

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