निर्भया कांड हो या बदायूं कांड, छोटा शहर हो या महानगर, कसबा हो या गांव, विदेशी महिला हो या गांवदेहात की, सवर्ण हो या दलित. पुरुषों द्वारा किए जाने वाले गैंगरेप की घटनाएं पिछले कुछ सालों से तकरीबन हर रोज की खबर बन गई हैं. समाज एकल बलात्कार से ही परेशान था, अब तो सामूहिक बलात्कार आम बात होती चली जा रही है. इस में पीडि़ता के बचने की संभावना न के बराबर होती है.
यदि केवल 2019 की ही बात करें, तो देश में अकल्पनीय गैंगरेप की कई घटनाएं घटी हैं. बिहार के गया डिस्ट्रिक्ट में 15 वर्षीया किशोरी के साथ न केवल गैंगरेप किया गया बल्कि उस का सिर मूंड़ कर उसे गांवभर में घुमाया भी गया. घटना अगस्त की है जब पीडि़ता अपने दोस्त के साथ रात में टहलने निकली थी. पीडि़ता के अनुसार, वह उस लड़के की गर्लफ्रैंड थी और इस बाबत उस के दोस्तों से मिलने के लिए राजी हुई थी. लेकिन, उन 6 लड़कों ने लड़की पर हमला कर दिया और उस के बौयफ्रैंड समेत सातों लड़कों ने बारीबारी उस का बलात्कार किया.
लड़कों के खिलाफ लगाए गए पीडि़ता के आरोपों को गांव के लोगों ने झूठ माना और इसीलिए लड़की का सिर मूंड़ कर उसे गांव में शर्मसार करने के लिए घुमाया गया.
दोस्तों द्वारा किए गए गैंगरेप के मामलों की गिनती कम नहीं है. नैशनल क्राइम ब्यूरो औफ रिकौर्ड्स यानी एनसीआरबी की 2013 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2012 में 24,923 रेप की घटनाएं सामने आई थीं जिन में से 24,470 रेप पीडि़ता के किसी परिचित द्वारा किए गए थे.
ऐसा ही एक मामला सामने आया जिस में औरंगाबाद की 19 वर्षीया लड़की का उस के 4 दोस्तों द्वारा मुंबई में जन्मदिन की पार्टी के दौरान बलात्कार किया गया. लड़की अपने घर औरंगाबाद से मुंबई गई थी जहां उस के दोस्तों ने उस का जन्मदिन एक दोस्त के घर में मनाने के लिए उस से कहा. 7 जुलाई यानी लड़की के जन्मदिन के दिन केक कट जाने के बाद इन्हीं चारों ने लड़की का बलात्कार किया. इस के बाद लड़की वापस घर आ गई और इस बारे में घर पर किसी से कुछ नहीं कहा.
घटनाक्रम से करीब 2 हफ्ते बाद 24 जुलाई को पीडि़ता ने गुप्तांगों में असहनीय दर्द का जिक्र किया जिस के बाद उसे औरंगाबाद के एक हौस्पिटल में भरती कराया गया. जांच के दौरान डाक्टरों को लड़की के यौनशोषण का ज्ञान हुआ जिस पर उन्होंने स्थानीय पुलिस को इस की जानकारी दी. पुलिस की पूछताछ के दौरान पुराना मामला सामने आया और मुंबई, जहां दुष्कर्म को अंजाम दिया गया था, में मामला दर्ज किया गया. पीडि़ता को आई अंदरूनी चोटों के कारण कुछ ही दिनों में उस की मृत्यु हो गई.
ऐसी ही एक घटना सितंबर की है जब देवरिया के एक जिले में कक्षा 8 में पढ़ने वाली लड़की का रात के अंधेरे का फायदा उठा रेप किया गया. पीडि़ता के अनुसार, वह घर के पास के हैंडपंप से पानी भरने गई थी जब पड़ोस के गांव के 2 लड़के उस का मुंह दबा कर उसे सुनसान जगह ले गए और वहां दुष्कर्म को अंजाम दिया. लड़की ने यह भी बताया कि उसे धमकी भी दी गई कि यदि वह किसी को कुछ भी बताती है तो वे दोनों उस के घरवालों को मार डालेंगे.
अगली सुबह लड़की घर पहुंची तो इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी उस के घरवालों को लगी और उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई. प्रोटैक्शन औफ चिल्ड्रन फ्रौम सैक्सुअल औफेंसेस यानी पोस्को तथा आईपीसी की अनिवार्य धाराओं के अंतर्गत मामले की एफआईआर दर्ज की गई.
निर्भया गैंगरेप के 6 में से 4 आरोपियों को आखिरकार फांसी की सजा मुकर्रर की गई. आरोपी राम सिंह द्वारा आत्महत्या करने और नाबालिग दोषी के अपनी सजा पूरी करने के बाद मुकेश, अक्षय सिंह, पवन गुप्ता व विनय शर्मा को फांसी दिए जाने से पहले राष्ट्रपति को दया याचिका लिखने को कहा गया है. इस के अलावा यदि वे ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हैं या रिव्यू पिटीशन दायर करते हैं तो मामले पर एकबार फिर सुनवाई होगी या नहीं, यह कोर्ट तय करेगा.
अधिवक्ता बी एम डी अग्रवाल कहते हैं, ‘‘फास्ट टै्रक अदालत गठित करने, त्वरित दंड प्रक्रिया अपनाए जाने पर भी समाज में भय नहीं दिख रहा. यह चिंता का विषय है. अपराधी को दंड देने के पीछे समाज को संदेश देना भी होता है ताकि आगे वैसे अपराध न हों. पहले रेप थे, फिर गैंगरेप और अब रेप विद मर्डर का आम चलन होता जा रहा है. पूरे समाज में चरमराहट शुरू हो गईर् है.’’
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डा. समीर मल्होत्रा जानेमाने मनोचिकित्सक हैं. वे इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं, ‘‘गैंगरेप गु्रप बिहेवियर है. इसे मनोविज्ञान में कंडक्ट डिस्और्डर कहा जाता है. यह एकदूसरे को उकसावा देने वाली गतिविधि है. गलत आचरण या कंडक्ट पर जब दोस्तों या घरवालों की सख्ती काम नहीं करती तो ऐसा मान लिया जाता है कि उस की स्वीकृति है. सो, ऐसे कंडक्ट को जानेअनजाने बढ़ावा मिलता है.
‘‘अकसर लोग साथसाथ नशा करते हैं. नशा सैक्स की चाहत को तो बढ़ाता ही है, साथ ही तनमन की नियंत्रण क्षमता को कम कर देता है. ऐसे में एक तरह की मनोस्थिति वाले लोगों का एकसाथ एक महिला के साथ दुराचरण करना स्वाभाविक हो जाता है.’’
कानूनी सख्ती के बावजूद रेप, गैंगरेप में बढ़ावा होने की बाबत डा. समीर मल्होत्रा कहते हैं, ‘‘कानूनी सख्ती उतनी ही सख्ती से समाज और हर केस में लागू हो, यह जरूरी नहीं. अपराधी, दुराचारी आज धड़ल्ले से बच निकल रहे हैं. ऐसे में समाज में गलत संदेश जा रहा है. साथ ही, गु्रप ऐक्टिविटी में अपराध साबित करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए भी यह ऐक्टिविटी बढ़ती जा रही है. शायद ही पकड़े जाएं…मैं ने ही मारा है, कैसे साबित होगा… कईयों के अपराध के बीच या बाद में छूटे प्रमाण अपराधियों को संदेह का लाभ दे सकते हैं…जैसी कई बातें बलात्कारियों के जेहन में रहती हैं. इसलिए भी गैंगरेप बढ़ रहे हैं.’’
प्रकृति व समाज विज्ञानी संसार चंद्र कहते हैं, ‘‘एकल रेप में अपराधी के पकड़े जाने की स्थिति ज्यादा रहती है. इसलिए भी रेप की तुलना में गैंगरेप बढ़ रहे हैं. जहां एकल रेप का अपराधी अकेला प्रताडि़त अनुभव करता है, वहीं समूह में ऐसा नहीं होता. समूह में बदनामी, सजा, गिल्ट, जिम्मेदारी सबकुछ बंट जाती है. अपने जैसे वाला भाव शर्म, कुकृत्य का भाव नहीं जगाता.’’
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आचरण पर अविश्वास
सामूहिक रेप के आरोपी के रिश्तेदार अदालती सुनाई के दौरान अकसर कहते हैं, ‘हमें लगता है हमारे बेटे को गलत फंसाया गया. हमें नहीं लगता वह ऐसा कभी कर सकता है.’ वे यह भी कहते हैं कि वे आखिर तक उसे बचाने के लिए लड़ेंगे. गैंगरेप में अपराधी में यह सोच भी आ जाती है या आ सकती है कि अपनों द्वारा होने वाले संदेह से उन को लाभ मिल सकता है.
उपयुक्त पेरैंटिंग का अभाव : ड्राइवर रामसिंह (निर्भया कांड के सजाप्राप्त) ने आत्महत्या कर ली. उस के घरवाले उस के प्रति आरोप के साबित हो जाने के बाद भी चारित्रिक विश्वास व्यक्त करते रहे. जब अदालत ने मय प्रमाणों के उस विश्वास का खंडन किया तो आत्महीनता और ग्लानि ने अपराधी को मरने के लिए उकसाया. व्यक्तित्व विकास, प्रौपर ग्रूमिंग व मार्गदर्शन का अभाव इस प्रकार की आत्महत्या का जिम्मेदार है.
गृहिणी नसीम (परिवर्तित नाम) कहती हैं, ‘‘मेरी पड़ोसिन ने मु झे बताया कि मेरा 13 साल का लड़का छोटीछोटी लड़कियों के साथ सीढ़ी पर बेजा हरकत करता है तो मैं ने पड़ोसिन को बुरी तरह फटकार दिया. एक दिन लड़की की मां व चाची बुरी तरह हंगामा मचाती हमारे घर पहुंचीं तो मैं हिल गई. मैं तब मना कर रही थी. इस बीच, मेरे पति आ गए. उन के साथ एक पीडि़त बच्ची भी थी, छोटी सी प्यारी सी. मेरे पति मु झ पर बिफरेबरसे, ‘तू ने लड़के को बिगाड़ रखा है. तु झे दूसरों की बेटी नहीं दिखती.’ तब बात सामने आई. वाकई छोटी बच्ची झूठ नहीं बोल सकती.’’
नसीम के बेटे ने उस लड़की के वस्त्रों के अंदर हाथ डाला या दबाया और दोस्तों ने उस के होंठ चूमे. जब लड़के के पिता ने कहा कि यह एक दिन फांसी चढ़ेगा, तो नसीम रोने लगी और सब से माफी मांगी. रैजिडैंट वैलफेयर एसोसिएशन के हस्तक्षेप से कार्रवाई हुई. बच्चों को मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया. परंतु वे सरकारी आवास छोड़ कर गाजियाबाद के पास ही एक गांव में शिफ्ट हो गए हैं. नसीम कहती हैं कि जो लड़का पढ़नेलिखने में इतना आगे हो, घर में सहयोग करता हो, उसे मैं गलत कैसे मान लूं.
नसीम के पति से जब हम ने पूछा कि भाईसाहब, आप ने अपनी पत्नी जैसा विश्वास अपने बच्चे पर व्यक्त क्यों नहीं किया, तो वे बोले, ‘‘एक तो सचमुच मैं लड़के की गतिविधियों पर शर्मिंदा था. मैं भी तो बेटियों वाला हूं. कोई क्यों अपनी बेटी की बदनामी कराएगा. फिर मैं भी नसीम की तरह करता तो आज पुलिस केस बन जाता और कल यह किशोर बंदीगृह में होता. मैं इस के दोस्तों के पिता से भी मिला. वे अपने बच्चों पर ऐसा ही विश्वास व्यक्त कर रहे थे. उन्हें बहुत मुश्किल से मैं ने काउंसलिंग के लिए मनाया. मैं समाज के 8-10 रसूखदार लोगों को ले कर लड़की के यहां माफी मांगने गया, तभी केस बनने से बचा. बच्चे पर विश्वास रखना अच्छा है, पर यह विश्वास सच्चा हो, सिर्फ औलाद होने या पक्ष लेने पर आधारित न हो.’’
शह को मिले मात : तवलीन ने मां को बताया कि उस का भाई व उस के दोस्त अजीब नजरों से लड़कियों को घूरते हैं और चुपचाप छत पर बतियाते हैं. तो, मां ने उसे ही 2 झापड़ मार दिए, बोली, ‘‘भाई की बदनामी कराती है? मेरा बच्चा इस उम्र में हंसेगाखेलेगा नहीं तो कब हंसेगाखेलेगा? पापा से बकवासबाजी करने व कहने की कोई जरूरत नहीं.’’ तवलीन बताती है, ‘‘मैं ने स्कूल काउंसलर से यह बात कही. उन्होंने इसे बेहद चिंताजनक बताया. मैं ने उन से जबरन मम्मी की बात कराई. मम्मी उन से भी वैसी ही बातें करने लगीं. एक दिन मम्मी का लाड़ला चौराहे पर सरेआम अधमरा कर दिया गया. तब भी मम्मी की बात सुनने लायक लगी, ‘मेरा बेटा निर्दोष लग रहा था.’ पर आज उन का वश नहीं चल पाया. पापा को यह बात पता लगी तो उन्होंने मम्मी को डांटा. भाई के तन के साथ मन का इलाज भी कराया गया. अब वह बहुत जिम्मेदार हो गया है.’’
देर न करें : नीरज को भी अपना लाड़ला प्यारा लगता है. अचानक मोबाइल पर 100 रुपए डाउनलोड करने के कटे तो वे औफिस के चपरासी पर शक करने लगे. खैर, डाउनलोड समय पर गौर किया और बेटे पर नजर रखी तो पता चला वह सैक्सी व हौट वीडियो देखता व डाउनलोड करता है. तब बेटे के दोस्त बन कर किसी तरह समस्या से नजात पाई. वे बताते हैं, ‘‘फिर भी मैं कहता हूं, बच्चे को काबू करना आसान नहीं होता. मेरी तरह आप देरी न करें. बच्चों का पक्ष लेना, उन पर भरोसा व्यक्त करना, औरों को दरकिनार करना, उन लोगों पर अविश्वास करना आप की समस्या को बढ़ाता ही है. हां, आप बच्चे को, उस की गलतियां जान कर, ढंग से हैंडिल करें. सख्ती व दंड से ही नहीं. घर में प्यार, अपनेपराएपन का अभाव व भावनात्मकता और सम झदारी का वातावरण होना जरूरी है.’’
मनोचिकित्सक डा. अरविन कामरा कहते हैं, ‘‘आज बच्चे, बच्चे नहीं रहे, वे जल्दी बड़े होने लगे हैं. उन के हार्मोन, सैक्सुअल डिजायर भी जल्दी जागने लगे हैं. ऐसे में उन के साथ दोस्ताना व्यवहार जरूरी है. आज सबकुछ बच्चों की पकड़ व पहुंच में है. कुछ भी छिपाना संभव नहीं. इसलिए समय रहते उन्हें सबकुछ सम झा दिया जाए.’’
डिस्और्डर भी : मनोचिकित्सक डा. समीर मल्होत्रा कहते हैं, ‘‘एंटी सोशल पर्सनैलिटी डिस्और्डर का संकेत मिलते ही चेतें. बच्चे व किशोर की एनर्जी सही रूप से चैनेलाइज करें, उन्हें खाली न छोड़ें. दोस्तों व मिलनेजुलने वालों के संपर्क में रहें. अपोजिट जैंडर के प्रति रवैए पर ध्यान दें, गलत है तो सुधारें. बहुत गोपनीयता न रखें.’’
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क्या बच्चे, क्या बड़े, क्या बूढ़े : रेप व गैंगरेप में हर उम्र और तबके के लोग शामिल हो रहे हैं. यह बहुत ही चिंता का विषय है. जिन पर बच्चों को सुधारने, पालनपोषण, मार्गदर्शन करने, मर्यादा वहन करने का जिम्मा है वे भी अगर इस तरह की गतिविधियों में लग जाएं तो ऐसे समाज में अनुशासन और मर्यादा रखना मुश्किल है. ‘आजकल 6 से 66 साल तक सब चलता है’ जैसी बातें आम हैं.
कैसेकैसे दंश : दिल्ली की सीमा चौहान 378 नंबर सिटी बस का वाकेआ सुनाती हैं. ‘‘मैं नियमित इस रूट पर जाती हूं. एक दिन दंग रह गई जब 75-80 साल के वृद्ध ने 9-10 साल की लड़की के स्तन भीड़ में इस तरह मसल दिए कि वह जोरों से चीख कर रो पड़ी. सब ने मिल कर उस व्यक्ति को पुलिस के हवाले कर दिया. यह पुलिस हैडक्वार्टर के बिलकुल पास की बात है. किशोरी को रोते देख कर भी पुलिस वाला उस बूढ़े पर रहम करने को कहने लगा. अब जनता का गुस्सा फूट पड़ा. लोगों ने बुरी तरह मारना शुरू किया तो पुलिस वाले अपने वाहन में बैठा कर उसे ले गए.’’
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युवा छात्रा चेतना कहती है, ‘‘एक बार 540 नंबर बस में मेरी बगल में अपना यौनांग घुसा देने वाले व्यक्ति को मैं ने डांटा, विरोध किया, तो लोग मु झे ही दबाने लगे, ‘अरे, इस की उम्र देखो, कब्र में पैर है बेचारे का…’ इस से उस व्यक्ति को ऐसी शह मिली कि वह बोला, ‘इस से सुंदर तो मेरी बीवी है. इस उम्र में भी इस से बढि़या लगती है.’
‘‘तब मैं ने तुगलक रोड थाने पर बस रुकवाने को कहा, 100 नंबर पर फोन भी किया. बस थाने पर रुकी तो लोग चिल्लाने लगे. मु झे व उस व्यक्ति को नीचे उतार कर बस चलाने को कहने लगे. उस दौरान निर्भया कांड नयानया था. पुलिस दबाव में थी. सो, वह आई. तब भी लोग मेरे खिलाफ बोलने लगे, ‘इतना हठ कोई करता है क्या बस में. ऐसा स्वभावतया हो जाता है, वरना अपनी गाड़ी में चलो.’
‘‘दिल्ली पुलिस के एसआई ने मेरे रुख को भांप लिया. उस ने सब को डांटा और कहा, ‘तुम्हारी बहनबेटी होती तो क्या ऐसे ही करते तुम. मैं सब पर कार्यवाही करूंगा. सही न बताओ तो कम से कम गलत को तो मत दबाओ.’ इस पर लोग मु झ पर उस व्यक्ति को माफ करने का दबाव बनाने लगे. खैर, पुलिस ने उस से सच पूछा और सच बताने पर हलके ऐक्शन का आश्वासन (जिसे मैं ब्राइब कहती हूं) दिया तब उस ने सच कुबूला.
‘‘तब उस को उतारा. उस के घरवालों को बुला कर सच बताने की बात कह कर उसे थाने में बैठाया.
‘‘पर मैं अब इतनी आक्रामक हो गई हूं कि अपनी रक्षा के लिए गुहार लगाना या किसी से उम्मीद करना गुनाह सा लगता है. मेरे वक्ष को घूरने पर मैं 2 लड़कों को पीट चुकी हूं. होली पार्टी में हग व किस कर लेने वाले जीजा को मारपीट कर नीचे गिरा चुकी हूं. मु झे लगता है कि मेरे हाथ से कहीं किसी का मर्डर न हो जाए. किसी से हंसतीबोलती, बतियाती नहीं. मेरे घर वाले बेहद परेशान हैं. फिल्मों में नाचती औरत देखना, बेवजह की चूमाचाटी, पियक्कड़ी इन सब से मु झे घृणा हो गई है.’’
स्टिग्मा क्यों : मनोचिकित्सक अरविन कामरा कहते हैं, ‘‘दुर्भाग्य से हमारे यहां काउंसलिंग और मनोचिकित्सा व उस के पेशेवरों से मार्गदर्शन पाना कौमन नहीं है. इस का चलन नहीं है. ऐसी जगह जाने वाले पागल, बीमार तथा समाज के लिए अनुपयुक्त माने जाते हैं. जबकि यह सब हर स्टेज पर जरूरी है. मांबाप की व्यस्तता, भौतिकवादी जीवनशैली, मर्दानगी के मानदंड आदि सब भ्रमित किए हुए हैं.’’
डा. अरविन कामरा इस तथा ऐसे केसों पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहते हैं, ‘‘ऊपर लिखित मामले में चेतना जो बिहेवियरल चेंज महसूस कर रही है वह समाजजनित व्यवहार है. अपने चारों ओर के प्रति उस की जो अविश्वासभरी प्रतिक्रिया है, वह स्वाभाविक है. ऐसे में तुरंत काउंसलिंग मिल जाए तो व्यक्ति को समाज में अनुकूलित किया जा सकता है, वरना व्यक्तित्व विखंडन हो सकता है. मनोचिकित्सा रूटीन जीवन का हिस्सा हो, उसे छिपाने या चुपकेचुपके मिलनेजुलने वाली स्थिति नहीं मानना चाहिए.’’
अलर्ट होने पर मिलता है लाभ: विदेशों में मनोचिकित्सा रूटीन हैल्थचैकअप का हिस्सा है. व्यवहार में थोड़ा भी परिवर्तन आने पर लोग मनोचिकित्सकों से सलाह लेते हैं और अपने बच्चों व घरवालों को सलाह दिलवाते हैं.
रेप व गैंगरेप में यह बात कैसे लागू होती है? इस के जवाब में डा. कामरा कहते हैं, ‘‘यकीनन, इस तरह का कांड करने वाले लोगों का व्यवहार आसानी से महसूस किया जा सकता है. उन के घरवाले या दोस्त अथवा उन के संपर्क में रहने वाले लोग उन के हावभाव, रिऐक्शन, ऐक्शन, चीजों को देखने की स्टाइल, नजरिया आदि से सब सम झ जाते हैं. अंतर्मन व बौडी लैंग्वेज को दबाना या बहुत देर तक नजरअंदाज करना आसान नहीं होता. बच्चों में उग्रता, हिंसा, अति वाचालता या इस के विपरीत अनबोलापन, उदासीनता जैसी स्थितियां हों तो उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए. कई बार बच्चे की शांति, उदासीनता मांबाप को अच्छी व सुविधाजनक लगती है पर वह अवसादकारी एवं निकट भविष्य के लिए विस्फोटक भी हो सकती है. सो, खुद कुछ तय न करें, बल्कि मनोचिकित्सक से सलाह लें.’’
बलात्कार व हमारा समाज
औरत को समाज कितना सम्मान देता है, इसे समाज की सभ्यता का मापदंड माना जाता है. यह भी एक सचाई है कि कोईर् भी सभ्यता तब तक पूरी तरह से विकसित नहीं मानी जा सकती जब तक उस में नारी को आदर व सम्मान न प्राप्त हो. गहराई से देखा जाए तो जीवन के ठोस धरातल पर खड़ा हुआ पुरुष समाज नारी के बिना अधूरा है.
नारी ऐसी देवी है जो हमारे समाज को आगे बढ़ाने के लिए क्याक्या त्याग नहीं करती. फिर भी पुरुष उसे नारी न मान कर मनोरंजन का साधन ही मानता चला आ रहा है. आदमी अपनी हवसपूर्ति के लिए आएदिन बलात्कार जैसा घिनौना अपराध करता है जिस में, बेचारी औरत का दोष नहीं होता, फिर भी वह इसे एक अभिशाप सम झ कर जीवनभर दुख झेलने को विवश है.
आज आदमी एक ओर जहां अपने समान ही औरतों को अधिकार दिलाने के लिए हर पल कोशिश कर रहा है, वहीं कुछ लोगों के चलते पुरुष वर्र्ग बदनाम भी हो रहा है. बलात्कार पुरुष द्वारा किया गया ऐसा घिनौना अपराध है जोकि हत्या जैसे जघन्य अपराध से भी बुरा है. बलात्कार की शिकार नारी खुद अपनेआप से घृणा करने लगती है और कई बार इसी घृणा के फलस्वरूप वह आत्महत्या तक कर लेती है.
समाज में लड़कियों के दिमाग में यह बात बचपन से ही बैठा दी जाती है कि उस के लिए उस की इज्जत सब से बड़ा गहना है और इस की रक्षा उसे करनी है. जब तक वह इस की रक्षा करती है, तभी तक पवित्र है. जिस दिन उस के साथ बलात्कार हो गया उसी दिन उस का दामन दागदार हो गया और वह समाज में सिर उठा कर चलने लायक नहीं रही. जबकि बलात्कार लड़की तो नहीं करती, उस का तो जबरन शीलभंग किया जाता है. अगर दूसरा कोई जबरदस्ती शीलभंग करता है तो फिर लड़की गुनाहगार कैसे हो गईर्?
औरत के लिए पवित्रता, अपवित्रता तो हमारे अपने मन की धारणा है. शरीर से कोईर् पवित्र है, तो कोई मन से पवित्र है. मान लीजिए कोई शरीर से तो पवित्र है पर मन से अपवित्र, है, तो क्या आप खुद उसे पवित्र मानेंगे? जिस घटना के लिए लड़की दोषी नहीं, तो फिर उसे आजीवन दुख क्यों झेलने पड़ते हैं?
कुछ समाजसेविकाओं ने इस संदर्भ में सु झाव दिया कि बलात्कार को एक अभिशाप की तरह नहीं, बल्कि किसी सड़क दुर्घटना की तरह माना जाना चाहिए, जिस तरह सड़क दुर्घटना में किसी का पैर टूट जाता है, तो किसी का हाथ जख्मी हो जाता है, उसी प्रकार बलात्कार के मामले को भी लेना चाहिए. बलात्कार को पवित्रता से जोड़ कर औरत को जिंदगीभर दुखी नहीं रहना चाहिए.
बलात्कार होता क्यों है?
बलात्कार का कारण यौनशिक्षा का अभाव है. लड़केलड़कियों को अलग रखने की कोशिश ही उन्हें सैक्स को जानने के लिए प्रेरित करती है. फलस्वरूप, यह जघन्य अपराध होता है. पर दूसरे पहलुओं पर भी अगर गौर किया जाए तो कईर् बातें उभर कर सामने आती हैं, जिन से कुछ कहने जैसी बात ही सम झ में नहीं आती.
राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक कारणों के चलते भी बलात्कार की घटनाएं घटती हैं. जब से राजनीति में आपराधिक तत्त्वों का प्रवेश हुआ है तब से बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है.
धार्मिक कारणों की तरफ ध्यान दें तो आज भी हमारे देश में कईर् ऐसी कुप्रथाएं हैं जिन के चलते औरत का शारीरिक शोषण आज भी अनवरत जारी है. सामंती व्यवस्था के चलते बड़ी जाति व छोटी जाति के बीच गहरी खाईर् है. इस सब का दुष्परिणाम बलात्कार के रूप में सामने आता है.
आंकड़े बताते हैं कि बलात्कार की अधिकांश घटनाएं गरीब महिलाओं व लड़कियों के साथ ही होती हैं. गरीबी के चलते परिवार के भरणपोषण के लिए उन्हें भी काम के लिए इधरउधर भटकना पड़ता है, जिस के चलते कब कामांध पुरुष द्वारा उन की इज्जत लूट ली जाए, कोईर् भरोसा नहीं. ये गरीब महिलाएं धन की कमी के कारण पुलिस व कचहरी के चक्कर भी नहीं लगा पातीं.
बलात्कार को पुरुष एक हथियार के रूप में भी प्रयोग करता है. अगर महिला को चुप कराना हो तो जबरन उसे बलात्कार का शिकार बनाया जाता है. अगर पुरुष को भी चुप कराना हो तो उस की मां, बहन, बेटी, पत्नी आदि को बलात्कार का शिकार बना दिया जाता है.
कुछ बलात्कार तो मानसिक विकृतियों के चलते होते हैं. इन मानसिक विकृतियों के चलते 4-5 साल की बच्चियां भी बलात्कार का शिकार हो जाती हैं. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मासूम बच्ची आखिर क्या यौनसुख दे पाएगी. यह तो केवल पागलपन की ही निशानी है
अधिकांश बलात्कार के मामले में परिवार के लोग या खुद महिलाएं या लड़कियां परदा डाल देती हैं. अगर मान लीजिए, महिला सब जलालत सह कर पुलिस कार्रवाई द्वारा मदद लेना चाहे तो वहां भी अधिकतर महिला को परेशान ही किया जाता है. सही तरह से मैडिकल जांच न हो, इस के लिए उसे खूब इधरउधर दौड़ाया जाता है, जिस से उस का समय बरबाद हो.
यदि बलात्कारी पुरुष पहुंच व पैसे वाला है तो वह अपने प्रभाव से पुलिस कार्रवाई पर दबाव डालता है. मान लीजिए, बलात्कार के मामले में पुलिस अधिकारी ईमानदारी से कार्रवाई करता है तो बलात्कारी पुरुष भुक्तभोगी महिला या उस के परिवार पर केस वापस लेने के लिए दबाव डालता है.
कई ऐसी घटनाएं भी देखने को मिली हैं जिन में खुद पुलिसकर्मी द्वारा छेड़छाड़ या बलात्कार करने का प्रयास किया गया.
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यौनहिंसा अमानवीय कृत्य होने के साथ ही महिला की गोपनीयता और पवित्रता के अधिकार में गैरकानूनी हस्तक्षेप है. यह महिला के सर्वोच्च सम्मान पर गंभीर आघात है. यौनहिंसा उस के आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा को भंग करता है. यह भुक्तभोगी को बदनाम तथा अपमानित करता है. यह अपराध अपने पीछे भयावह सदमे को छोड़ जाता है.
शासन व अदालत द्वारा किए गए प्रयासों से इस समस्या का हल नहीं मिल पाएगा. जरूरत है कि हमारा समाज भुक्तभोगियों को अतीत के गर्त से निकाल कर यथार्थ की जिंदगी में प्रवेश कराने की कोशिश करे, जिस से भुक्तभोगी औरत हीनभावना की शिकार न हो सके.
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कुंठा और हीरोइज्म के
चलते घिनौनी करतूत
डा. नीलेश तिवारी, मनोचिकित्सक
सामूहिक बलात्कार ऐसी ही नैगेटिव ऐक्टिविटीज में लगे लोग न नकारात्मक, आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं. निगलैक्ट पासर बाई-फैक्ट के कारण भी ऐसा होता है. इस इफैक्ट का मतलब है भीड़ में एक आदमी कुछ निगलैक्ट करता है तो दूसरा भी, तीसरा भी ऐसा करने लगता है. यानी, एक व्यक्ति नहीं बोलता तो उस की देखादेखी दूसरे लोग भी ऐसा करने लगते हैं. भीड़ में नो अलार्म इफैक्ट की स्थिति रहने से लोग गलत काम अब समूह में ज्यादा कर रहे हैं ताकि, उन पर किसी का ध्यान कम जाए. जाए भी तो बंट जाए. ऐसे में क्राइम करने के बाद बचे रहने की संभावना बढ़ जाती है.
गैंगरेप सैक्सुअल एक्ट ही नहीं है, यह वायलैंस भी है. इस में एक ही साइकोसोशल बैकग्राउंड के लोगों के प्रवृत्त होने की संभावना ज्यादा रहती है. समाज के निगलैक्ट और लो फाइनैंशियल स्टेटस के लोगों को इस में ज्यादा लिप्त देखा जा रहा है क्योंकि और क्षेत्रों में उन के लिए अपनेआप को प्रूव करना थोड़ा मुश्किल (बल्कि काफी कठिन) रहता है. उन की महत्त्वाकांक्षाओं को आउटलेट नहीं मिलता. समाज में उन्हें ठीक नजर से नहीं देखा जाता या खास महत्त्व नहीं दिया जाता. समाज की असमानता से ऐसे लोगों की आक्रामकता बढ़ती रहती है. वे समाज में टिपटौप और बड़े लोग देखते हैं तो सोचते हैं, ऐसी ऊंचाई या उपलब्धि को छूने वाले का उन्हें अधिकार क्यों नहीं? यही बात लड़की को देख कर भी उन्हें मन में आती है कि इसे मैं क्यों नहीं पा सकता. चूंकि, मैं सचमुच में इसे नहीं पा सकता, इसलिए भी एकजैसे लोग मिल कर अपनी इस दमित भावना व कुंठा के वश ऐसा करने में लग जाते हैं. इस तरह प्रवृत्त होने के बाद वे अपने साथियों व दोस्तों के सामने हीरोइज्म और मर्दानगी साबित करने की होड़ लगा लेते हैं. ऐसे में लड़की के जिस्म से घिनौना खेल खेलने के बाद उस की सहज हत्या कर बैठते हैं. उदाहरणार्थ, निर्भया केस में नाबालिग आरोपी ने हीरोइज्म दिखाने के फेर में बड़ी उम्र वालों को पीछे छोड़ने की मानसिकता में ही स्क्रूड्राइवर का उपयोग किया.
मिल कर करने होंगे प्रयास
सरकार को सब को शिक्षा व रोजगार मुहैया कराने के साथ जनहित की सभी नीतियों को ईमानदारी से लागू किया जाना सुनिश्चित करना होगा. शहरी सुविधाएं गांवों में पहुंचाई जाएं. वहां रोजगार के अवसर हों ताकि घर, गांव, खेती आदि को खोने का दुख लोगों को बागी और विद्रोही न बनाए. झुग्गी झोंपड़ी का जीवन उन्हें डिमोरलाइज करने वाला तथा नैगेटिव एक्ट में प्रवृत्त करने वाला लगता है. इसराईल, वियतनाम तथा दूसरे ऐसे ही देशों की तरह हर भारतीय को शब्दों से देशभक्त बनाने के बजाय ऐक्शन से देशभक्त बननेबनाने का प्रशिक्षण दिया जाए.
ब्रा, ब्यूटी, बौडी के प्रदर्शन के पसरते मायाजाल के बारे में औरतों को सम झाया जाए. नीति, नैतिकता और मूल्यों की बात करने वाला मीडिया भी ब्रा, ब्यूटी, बौडी का प्रदर्शन कर औरत को प्रदर्शन की चीज, भोग्या बताताबनाता है. ‘ग्लैमर, विज्ञापन के बिना फिल्में चल नहीं सकतीं,’ के नाम पर छूट लेना इन हरकतों को बढ़ावा देता है. कन्याभ्रूण हत्या व महिलाओं की उपेक्षा के चलते सामाजिक ढांचे में असंतुलन आ रहा है, इसे संतुलित किया जाए. सैक्स, यौनशिक्षा ही नहीं, नैतिकता की शिक्षा भी दी जाए.