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जब राजा के हुनर पर चढ़ेगा रानी के हौंसले का रंग, दुनिया देखेगी कैसे होगा जीवन का नया ‘शुभारंभ’

हम सब का स्वभाव एक दूसरे से अलग होता है और हम सबमें कोई न कोई खूबी जरूर होती है. यही हम सब के व्यक्तित्व की खूबसूरती और पहचान दोनों है. जब दो अलग स्वभाव और मिज़ाज के लोग एक साथ आते हैं और एक दूसरे की खूबियों को पहचान ने में भी सफल होते हैं तो सफलता उनके कदम चूमती है. अगर किस्मत ऐसे ही दो लोगों को करीब लाती है तो वे मिलकर एक और एक दो नहीं पूरे ग्यारह हो जाते हैं. इसीलिए कलर्स लेकर आ रहा है, एक ऐसी ही साझेदारी की अनोखी कहानी ‘शुभारंभ’ आज से कलर्स पर.

भोले-भाले राजा की कहानी का होगा शुभारंभ

शुभारंभ की कहानी दो किरदार ‘राजाऔर रानी’ की है जो गुजरात के एक छोटे शहर, सिद्धपुर से हैं. राजा एक मेहनती और स्वभाव से भोला लड़का है जिसके व्यवहार को सभी पसंद करते हैं. एक अमीर गुजराती बिजनेस घराने का लड़का. राजा अपने पिता को बचपन में ही खो देता है. उस के पिता की मौत के बाद उसके रिश्तेदार धीरे धीरे उसके पिता के बिजनेस और जायजाद पर कब्जा कर लेते हैं. पर राजा अपने भोलेपन की वजह से इससे अनजान बना रहता है और वे लोग अपने मन मुताबिक उसका इस्तेमाल करते रहते हैं.

राजा के हुनर को पहचान दिलाती रानी की कहानी का होगा शुभारंभ

रानी होशियार और कौन्फिडेंट लड़की है. वो गरीब घर की लड़की है जिसके पिता शराबी हैं और मां मेहनत मजदूरी कर के घर का पालन – पोषण करती है. बचपन से ही गरीबी से लड़ते-लड़ते रानी उम्र से पहले बड़ी हो जाती है और उसे ज़माने से निपटना बखूबी आता है. एक ओर रानी का बिज़नेस सेन्स काफी अच्छा है तो दूसरी तरफ राजा में पेंटिंग करने का हुनर है. राजा को घर-दुकान के काम से जब भी वक्त मिलता है, वो पेंटिंग करने में मशगूल हो जाता है. रानी वक्त के साथ राजा के व्यक्तित्व में छुपे हुनर को पहचान लेती है. राजा भी अपने हुनर में रानी से मिले हौसले के पंख लगाता है, और शुरू होती है सपनों की नई उड़ान.

राजा-रानी की जिंदगी में आएगा बदलाव

कलर्स पर आने वाले इस नए धारावाहिक का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है. माना जा रहा है कि ‘राजा-रानी’ का किरदारऔर उनकी कहानी सिर्फ दर्शकों का भरपूर मनोरंजन ही नहीं करेगी बल्कि अपने रिश्ते को नए नजरिये से देखने को प्रेरित भी करेगी. लोगों के दिलों में उत्सुकता है कि जब किस्मत राजा-रानी को करीब लाएगातो दोनों एक-दूसरे की जिंदगी में बदलाव कैसे लाएंगे.

राजा-रानी अपने नए जीवन का शुभारंभ कैसे करते हैं, साथ मिलकर साझेदारी की अनोखी कहानी कैसे लिखते हैं, जानने के लिए देखिये – ‘शुभारंभ’  आज से कलर्स पर.

एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस का कहर

एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी का जानलेवा विकराल रूप फेफड़े की साधारण टीबी के मरीजों को ठीक होते हुए भी देखा होगा पर एमडीआर टीबी का नाम या तो कभी आप ने सुना नहीं होगा या फिर हाल के कुछ सालों में यह नाम रिश्तेदार या मित्रों द्वारा सुनने में आया होगा. एमडीआर टीबी यानी दूसरे शब्दों में अगर कहें तो मौत का पैगाम, अगर समय रहते इस की विकरालता पर अंकुश नहीं लगाया गया.

एमडीआर टीबी की भयानकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ तो इस रोग से ग्रसित मरीज जीविकोपार्जन के लिए सर्वथा अयोग्य हो जाता है जिस से रोगी का घरपरिवार आर्थिक तंगी व बदहाली का शिकार हो जाता है, तो दूसरी तरफ रोगग्रस्त मरीज टीबी के इन्फैक्शन को तेज गति से फैलाने का स्त्रोत बन जाता है, जिस की वजह से घरपरिवार के सदस्य तो नजदीक होने की वजह से टीबी की चपेट में आते ही हैं, साथ ही साथ, उस के कार्यस्थल के सहकर्मी, नजदीकी मित्र व रिश्तेदार और पड़ोसी भी अनजाने में टीबी इन्फैक्शन के आक्रमण से बच नहीं पाते हैं.

सारी दुनिया में एक इकलौते इन्फैक्शन से होने वाली मौतों के कारणों में एड्स या एचआईवी के बाद ट्यूबरकुलोसिस का दूसरे नंबर पर स्थान है. आप चौंकिए नहीं, अपने भारतवर्ष में ही हर साल 15 लाख नए टीबी के मरीज बनते हैं और इन 15 लाख में तकरीबन एक लाख मरीज हर साल एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस में परिवर्तित हो जाते हैं, और इन एक लाख एमडीआर टीबी के मरीजों में केवल 7 प्रतिशत ही अपना इलाज करवा पाते हैं. हर साल टीबी से मरने वालों की संख्या अपने देश में करीब 14 लाख है. इन मौतों में करीब दोतिहाई मौतों का जिम्मेदार एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस है.

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एमडीआर टीबी है क्या

एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस का साधारण अर्थ है फेफडे़ की टीबी की वह अवस्था जब टीबी के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएं बेअसर होने लगें और फेफड़े पूर्णरूप से नष्ट होने की कगार पर पहुंच जाएं. लगभग नष्ट हुए इन फेफड़ों में मवाद व कीटाणुओं से ग्रसित ऊतकों का जमाव हो जाता है.

जब एमडीआर टीबी का मरीज खांसता है तो एक खांसी से तकरीबन 3 हजार टीबी के कीटाणु हवा में फैलते हैं. इसलिए कहा जाता है कि एमडीआर टीबी से ग्रस्त फेफड़ा टीबी के कीटाणुओं का गढ़ बन जाता है.

ऐसे मरीजों में पहली पंक्ति की टीबी की दवाएं तो पहले से ही बेअसर हो चुकी होती हैं और दूसरी पंक्ति की महंगी वाली टीबी की दवाओं का असर भी नहीं होता है. एक तरफ पैसे की बरबादी, तो दूसरी तरफ मौत की दस्तक. अगर समय रहते किसी थोरैसिक सर्जन यानी चैस्ट सर्जन से इस का इलाज नहीं कराया गया, तो मौत देरसवेर निश्चित है.

एमडीआर टीबी क्यों

अगर साधारण टीबी से ग्रस्त फेफड़ा एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस में परिवर्तित हो जाता है, तो उस का अपने भारतवर्ष में सब से बड़ा कारण मरीज द्वारा टीबी के इलाज में बरती लापरवाही है. शुरुआती इलाज में टीबी की 3 से 4 दवाइयां एकसाथ दी जाती हैं. इन दवाइयों को कम से कम 6 महीने प्रतिदिन नियम से खाना पड़ता है. होता यह है कि मरीज इन 4 दवाइयों की जगह सिर्फ एक या 2 दवाइयां ही खाता है. इस लापरवाही का कारण एक तरफ आर्थिक तंगी होने की वजह से चारों दवाइयों का खर्चा न उठा पाना, तो दूसरी तरफ स्वयं मरीज द्वारा इलाज को गंभीरता से न लेना और सिर्फ आलस्य के कारण दवाइयों के सेवन में नियमितता न बरतना होता है.

ज्यादातर टीबी के मरीजों को जब कुछ दिन इलाज से फायदा होने लगता है तो वे इलाज को आधाअधूरा ही छोड़ देते हैं. यहीं से एमडीआर टीबी की शुरुआत हो जाती है. फिर जब मरीज कुछ समय के बाद दोबारा दवा शुरू करता है तो यही दवा टीबी के इलाज में बेअसर हो जाती है और फेफड़े के नष्ट होने की नींव पड़ जाती है.

एमडीआर टीबी के पनपने में स्वास्थ्यकर्मी भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं. हमारे फिजिशियन भी मरीज को इस बात के लिए जोर नहीं दे पाते हैं कि मरीज इलाज को गंभीरता से ले व कड़ाई से नियम का पालन करे. डाक्टर उस को इलाज में बिलकुल कोताही न बरतने की बारबार सलाह दें. साथसाथ एमडीआर टीबी की भयानकता से भी अवगत कराएं.

एक्सडीआर ट्यूबरकुलोसिस यानी जिद्दी टीबी

आजकल विश्व में प्रतिवर्ष तकरीबन 25 हजार एक्सडीआर टीबी के नए मरीज देखने में आ रहे हैं. अब तक आप को सम झ में आ गया होगा कि एमडीआर टीबी के कारण इलाज में कोताही बरतने, अनियमित टीबी की दवा का सेवन व आधेअधूरे इलाज हैं. पर एक्सडीआर टीबी का कारण टीबी का ऐसा कीटाणु है जिस पर शुरुआती दिनों से किसी भी तरह की टीबी की दवा का असर नहीं होता है. यह टीबी के इतिहास में सब से खतरनाक स्थिति है. हमारी भारत सरकार ने समय रहते ट्यूबरकुलोसिस को संक्रामक रोग घोषित कर दिया है. यह ट्यूबरकुलोसिस की विभीषिका को रोकने की दिशा में लिया गया एक प्रभावी कदम है.

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एड्स या डायबिटीज के मरीज को टीबी

एड्स या डायबिटीज के मरीजों में लगभग एकतिहाई मरीज टीबी इन्फैक्शन की चपेट में आ जाते हैं. अगर सही इलाज व सावधानी न बरती गईर् तो यह स्थिति बहुत जल्दी मरीज को मौत के मुंह में ले जाती है. अपने देश की लगभग 6 करोड़ जनता डायबिटीज से पीडि़त है. आप इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि हालात कितने बदतर हैं और टीबी इन्फैक्शन एक महामारी का रूप ले रहा है.

होता यह है कि एड्स और डायबिटीज के मरीजों में शरीर का इम्यून सिस्टम यानी सुरक्षा व्यवस्था ढीली पड़ जाती है, जिस के परिणामस्वरूप टीबी के इन्फैक्शन का खतरा ऐसे मरीजों में हमेशा सिर पर मंडराने लगता है. ऐसे मरीजों में टीबी के इलाज के दौरान भी मृत्यु की संभावना रहती है और दोबारा से टीबी का इन्फैक्शन होने का खतरा रहता है. इसलिए डायबिटीज के मरीज को चाहिए कि वे समयसमय पर टीबी की जांच करवाते रहें.

रोगी क्या करें

अगर प्रथम पंक्ति की टीबी की दवाएं आइसोनायजिड, रिफैम्पीसिन, पायराजिनामाइड और इथमब्यूटोल बेअसर हो जाएं तो तुरंत जनरल फिजिशियन के बजाय किसी छाती रोग या टीबी

विशेषज्ञ से सलाह लें. उन की निगरानी में ही टीबी की दूसरी पंक्ति वाली दवाएं, जैसे कैनामाइसीन, एमिकासीन, कैप्रियोमाइसीन, एथियोनामाइड व साइक्लोसिरीन शुरू करें. याद रहे कि दूसरी पंक्ति वाली टीबी की दवाएं महंगी पड़ती हैं और शरीर पर कुप्रभाव भी डालती हैं. दूसरी पंक्ति वाली दवाइयां एक से 2 साल तक खानी पड़ सकती हैं. इन दवाइयों की खुराक में व नियमन में अपने डाक्टर की सलाह के बिना कोई तबदीली न करें, हर महीने बलगम की जांच करवाते रहें और किसी तरह का हेरफेर न करें.

शल्य चिकित्सा का रोल अहम

अगर फेफड़े के किसी हिस्से में इलाज के बावजूद अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है या छाती के एक्सरे में सफेदी कम नहीं हो रही है या बढ़ रही है या इलाज के दौरान बलगम में टीबी के कीटाणुओं की संख्या में कमी व शून्य होने के बजाय बढ़ोतरी हो रही है या खांसी के साथ ज्यादा खून आने लगा है, तो फिर हाथ पर हाथ धर कर मत बैठिए. तुरंत किसी जनरल सर्जन के बजाय थोरैसिक या चैस्ट सर्जन से संपर्क करें.

अगर फेफड़ा ठीक होने की स्थिति में नहीं है तो तुरंत फेफड़े का नष्ट हुआ हिस्सा निकलवा दें. अगर एक तरफ का पूरा फेफड़ा नष्ट हो चुका है तो उस को जितनी जल्दी हो सके किसी थोरैसिक या चैस्ट सर्जन से निकलवा दें. अन्यथा दूसरी तरफ का स्वस्थ फेफड़ा इन्फैक्शन की चपेट में आ कर नष्ट होना शुरू हो जाएगा. अगर किसी तरफ के फेफड़े का कुछ हिस्सा ही नष्ट हुआ है तो उस हिस्से को जल्दी निकलवाने में कोताही न बरतें अन्यथा उस फेफड़े के स्वस्थ हिस्से को बचाने की रहीसही कोशिश भी नाकाम हो जाएगी. देखा यह गया है कि हमारे देश में फिजिशियन समय रहते फेफड़े के नष्ट हुए भाग को निकलवाने में उतने उत्साहित नहीं होते जितना होना चाहिए. उन को चाहिए कि समयसमय पर किसी थोरैसिक सर्जन की राय लेते रहें.

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कहां जाएं मरीज

फेफड़े के औपरेशन के  लिए हमेशा ऐसे बड़े अस्पताल में जाएं जहां एक अनुभवी थोरैसिक सर्जन यानी चैस्टसर्जन की 24 घंटे उपलब्धता हो. देखा गया है कि दिल का औपरेशन करने वालों को फेफड़े के औपरेशन का ज्यादा अनुभव नहीं होता, इसलिए यह सुनिश्चित कर लें कि फेफड़े का औपरेशन करने वाला सर्जन फेफड़े के औपरेशन के मामले में अनुभवी हो.

फेफड़े के औपरेशन के लिए हमेशा ऐसे अस्पताल का चुनाव करें जहां क्रिटिकल केयर और छाती रोग का विकसित विभाग हो तथा अत्याधुनिक आईसीयू व ब्लडबैंक की सुविधा हो. छाती व फेफड़े के औपरेशन के लिए बेहोशी देने वाले एनेस्थीसियालौजिस्ट को फेफड़े के औपरेशन कराने का अच्छा अनुभव होना चाहिए.

(लेखक नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में सीनियर थोरैसिक एवं कार्डियोवैस्कुलर सर्जन हैं.)

 रबी फसल : खाद प्रबंधन और देखभाल

इस में कोई शक नहीं कि फसल उत्पादन में खाद और उर्वरकों का अहम रोल होता है. फसल की बढ़वार के लिए जरूरी पोषक तत्त्वों का सही मात्रा में मुहैया होना जरूरी होता है. मिट््टी इन सभी पोषक तत्त्वों की सही मात्रा में आपूर्ति करने में असमर्थ होती है व हर फसल को पोषक तत्त्वों की अलगअलग मात्रा की जरूरत होती है. साथ ही, ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों में पोषक तत्त्वों की मांग कुछ ज्यादा होती है.

इन पोषक तत्त्वों की आपूर्ति के लिए कार्बनिक व कैमिकल खाद डालने की जरूरत होती है. लेकिन किसानों द्वारा अकसर गलत तरीके से खेती करना, गलत मिट्टी प्रबंधन, कैमिकल खादों की पूरी मात्रा न देना व जैविक खादों का कम इस्तेमाल करना वगैरह होता है, जिस के चलते फसल के उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है.

दूसरी तरफ रबी सीजन में नाइट्रोजन वाली कैमिकल खादों, जैसे यूरिया, डीएपी वगैरह की बाजार में उपलब्धता काफी कम हो जाती है और जो मुहैया होती है, उसे महंगे दामों में खरीदना पड़ता है. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि खादों का संतुलित मात्रा में सही समय पर इस्तेमाल किया जाए.

ज्यादातर किसान नाइट्रोजन व फास्फोरस वाली कैमिकल खादों के इस्तेमाल पर तो ज्यादा ध्यान देते हैं, लेकिन पोटाश वाली खादों को नजरअंदाज करते हैं, जो गलत है. नाइट्रोजन व फास्फोरस की तरह पोटाश की भी पूरी मात्रा खेतों में डालनी चाहिए. इस से पौधों की पानी की उपयोग करने की कूवत बढ़ने के चलते पैदावार में बढ़वार होती है.

इस के अलावा रबी की कुछ फसलों, जैसे गेहूं को सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की ज्यादा मात्रा में जरूरत होती है, इसलिए मिट्टी में इन का भी जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए. लेकिन ध्यान रखें कि खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी की जांच जरूर करानी चाहिए.

वैसे, 3 साल में एक बार जैविक खादों का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए. रबी में बोई जाने वाली खास फसलों, जैसे गेहूं, जौ, सरसों, आलू, मटर, मसूर, लहसुन, प्याज वगैरह में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल आगे बताए जा रहे तरीकों से करें. खाद व उर्वरकों की मात्रा मिट्टी के उपजाऊपन व पिछली फसलों में किए गए कृषि प्रबंधन पर निर्भर करती है.

गेहूं : यह रबी सीजन की सब से खास फसल होने के साथ ही अनाज वाली अहम फसल है. इस फसल पर नाइट्रोजन की कमी का सब से ज्यादा उलटा असर पड़ता है, जिस के चलते कल्ले कम बनते हैं. मैदानी इलाकों में सिंचित खेतों में आमतौर पर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए. आधा नाइट्रोजन व पूरा फास्फोरस व पोटाश आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए.

यदि हो सके तो इन्हें बोते समय कूंड़ों में 3 से 5 सैंटीमीटर की गहराई में डालें. बाकी बचा नाइट्रोजन 2 बराबर भागों में कल्ले निकलते समय व बालियां बनते समय सिंचाई के बाद डालें. फास्फोरस की सुलभता को बढ़ाने के लिए 200 ग्राम पीएसबी कल्चर को 3 लिटर पानी में मिला कर प्रति 10 किलोग्राम बीज को उपचारित करें.

असिंचित हालत में 40-60 किलोग्राम नाइट्रोजन की पूरी मात्रा बोआई के समय 10-15 सैंटीमीटर तक गहराई में कतारों में डालें. हरी खाद या दलहनी फसल लेने के बाद गेहूं बोने पर नाइट्रोजन की तकरीबन 80 से 100 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर दें.

पूर्वोत्तर राज्यों के पहाड़ी इलाकों की असिंचित मिट्टियों में 40:20:20 की दर से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश इस्तेमाल करें. जिन इलाकों में डीएपी का लगातार इस्तेमाल किया जाता है, वहां पर 30 किलोग्राम गंधक का इस्तेमाल फायदेमंद रहता है. ज्यादातर गेहूं उत्पादित राज्यों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों, जैसे जिंक, लोहा, तांबा व मैंगनीज की कमी भी पाई जा रही है, इसलिए इन की पूर्ति के लिए भी उर्वरकों का इस्तेमाल करें.

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यदि वहां पिछली बोई गई फसल में जस्ता उर्वरक नहीं डाला गया है, तो जस्ते की कमी को दूर करने के लिए सामान्य मिट्टी में 20-25 किलोग्राम व ऊसर मिट्टी में 40-45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट बोआई के समय डालना चाहिए या 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट यानी 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट+ 2.5 किलोग्राम चूना 1,000 लिटर पानी में घोल बना कर खड़ी फसल पर छिड़काव कर सकते हैं. लोहे की पूर्ति के लिए भी लगभग यही दर रखें.

जैविक गेहूं उत्पादन करना चाहें, तो 8-10 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट, 5-10 टन वर्मी कंपोस्ट, 2 किलोग्राम पीएसबी व 2-3 टन नीम या अरंडी की खली को मिला कर प्रति हेक्टेयर खेत में आखिरी जुताई के समय मिला दें.

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु वगैरह राज्यों की क्षारीय मिट्टी में ज्यादातर नाइट्रोजन, कैल्सियम व जिंक की कमी पाई जाती है. इसलिए 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की अमोनियम सल्फेट द्वारा पूर्ति करना फायदेमंद होता है. यूरिया से ऐसा करने पर नाइट्रोजन का नुकसान वाष्पीकरण द्वारा ज्यादा होता है. यदि ऐसा करते हैं, तो गोबर की खाद या हरी खाद का इस्तेमाल जरूर करें.

फास्फोरस की पूर्ति के लिए सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल ज्यादा फायदेमंद होता है. जिंक के जरीयों को जिप्सम के साथ देना ज्यादा फायदेमंद होता है.

खरीफ की फसल के बाद बोई गई हरी खाद, जैसे ढैंचा, सनई वगैरह को खेत में मिलाने से गेहूं की पैदावार में बढ़वार होती है. पूर्वोत्तर राज्य केरल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड की अम्लीय मिट्टी में बोआई से 15-25 दिन पहले 2-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चूना मिला दें व नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट. फास्फोरस के लिए सिंगल या ट्रिपल सुपर फास्फेट और पोटाश के लिए म्यूरेट औफ पोटाश का इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमंद होता है.

जौ : इस फसल में असिंचित व सूखे के हालात में आमतौर पर खादों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. लेकिन सिंचित इलाकों में

4-5 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट, 40-60 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए, जबकि असिंचित इलाकों में 20 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन बोआई के समय 8-10 सैंटीमीटर तक गहराई में डालें. सिंचित हालत में नाइट्रोजन की आधी व फास्फोरस की पूरी मात्रा आखिरी जुताई के समय और बाकी बचा नाइट्रोजन पहली सिंचाई के बाद छिड़क कर दें.

लेकिन ध्यान रहे, ज्यादा नाइट्रोजन के इस्तेमाल से दानों से बनने वाले खाद्य व पेय पदार्थ, जैसे बीयर वगैरह की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. जस्ते की कमी वाली मिट्टियों में 10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट का इस्तेमाल बोआई से पहले करें.

मक्का : वैसे तो मक्का खरीफ की खास फसल है, लेकिन यह हमारे देश में रबी सीजन में भी खूब उगाई जाती है. खासकर उन इलाकों में, जहां पाला नहीं पड़ता है. मक्का की पैदावार में खाद व उर्वरक अहम रोल अदा करते हैं.

रबी में बोई गई मक्का में नाइट्रोजन की उपयोग कूवत खरीफ मक्का के मुकाबले ज्यादा होती है. आमतौर पर संकर व संकुल किस्मों में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश तत्त्व की प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है और लोकल किस्मों में नाइट्रोजन की दर 40-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है.

नाइट्रोजन की एकतिहाई व फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को आखिरी जुताई के समय खेत में मिला दें. बाकी बचे नाइट्रोजन की मात्रा को 2 भागों में बांट कर पहली जब फसल घुटनों तक ऊंची हो जाए और दूसरी, नर मंजरी निकलने पर कतारों से 20 सैंटीमीटर की दूरी पर देना ज्यादा फायदेमंद होता है.

जिंक की कमी वाली मिट्टियों में 15 से 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर आखिरी जुताई के समय खेत में मिला दें या जिंक सल्फेट के 0.2 फीसदी घोल का एक हफ्ते के अंतर पर 2-3 बार खड़ी फसल पर छिड़काव करें.

गन्ना : मक्का की तरह गन्ना भी रबी सीजन में देश के कई इलाकों में बोया जाता है. इस की अच्छी पैदावार के लिए कंपोस्ट या सही गोबर की खाद 15 से 20 टन और 3-4 टन नीम की खली का पाउडर प्रति हेक्टेयर बोआई से तकरीबन 15 दिन पहले खेत में मिला दें. आमतौर पर इस को 120 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है.

नाइट्रोजन की आधी व फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बोआई से पहले कूंड़ों में डाल दें व बाकी बची नाइट्रोजन को 2 भागों में बांट कर कल्ले फूटते समय व कल्ले फूटने के 45 दिन बाद छिड़क कर दें.

पेड़ी की फसल में नौलख फसल के मुकाबले ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत होती है, क्योंकि पेड़ी गन्ने की जड़ कमजोर होने की वजह से इस को ज्यादा ले नहीं पाती है. इसलिए पेड़ी गन्ने में नाइट्रोजन की 25 फीसदी से ज्यादा मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए. नाइट्रोजन के लिए सामान्य मिट्टी में अमोनियम सल्फेट, क्षारीय मिट्टी में यूरिया व अम्लीय मिट्टी में 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 10 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है.

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सरसों, तोरिया व राई : रबी सीजन में गेहूं के बाद सरसों, तोरिया व राई खास फसलें हैं. इन फसलों में तेल की क्वालिटी के लिए गंधक का इस्तेमाल बहुत जरूरी होता है. मैदानी इलाकों की सिंचित हलकी मिट्टियों में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश व 40 किलोग्राम गंधक, जबकि असिंचित मिट्टी में 40 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम गंधक का इस्तेमाल करना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी व अन्य तत्त्वों की पूरी मात्रा को आखिरी जुताई के समय खेत में मिला दें व बाकी बचे नाइट्रोजन को बोआई के तकरीबन 40 दिन बाद छिड़क कर दें.

फास्फोरस व गंधक की उपलब्धता बढ़ाने के लिए बीजों को पीएसबी, थायोबेसिलस या फ्यूजेरियम स्पिसीज कल्चर से उपचारित करें व फास्फोरस उर्वरकों को पौधे के जड़ इलाके में दें.

उर्वरकों में अमोनियम सल्फेट व सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल ज्यादा फायदेमंद होता है, क्योंकि ये नाइट्रोजन, फास्फोरस के साथ ही गंधक व कैल्सियम की भी भरपाई करते हैं.

गंधक की पूर्ति के लिए क्षारीय मिट्टी में गंधक या आयरन पाइराइट और गंधक की कमी वाली मिट्टियों में अमोनियम सल्फेट का इस्तेमाल फायदेमंद होता है.

यदि खरीफ की फसल में जिंक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, तो 10 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल बोआई के समय करें. ऊसर मिट्टी में बोआई के समय ढाई क्विंटल जिप्सम का इस्तेमाल करने से जरूरी गंधक की पूर्ति हो जाती है. असम वगैरह राज्यों के सिंचित मैदानी भागों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश की मात्रा दें.

असिंचित पहाड़ी इलाकों में 65 किलोग्राम नाइट्रोजन व 35 किलोग्राम फासफोरस प्रति हेक्टेयर डालें. साथ ही, चूना 4-5 क्विंटल व बोरेक्स 5-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बोने से 15 दिन पहले खेत में मिलाना फायदेमंद होता है.

आलू : आलू की फसल को दूसरी फसलों के मुकाबले पोषक तत्त्वों की ज्यादा मात्रा में जरूरत होती है. सामान्य मिट्टियों में खेत तैयार करते समय 25-30 टन गोबर की अच्छी तरह सड़ी हुई खाद व 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस व 100 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है. नाइट्रोजन की आधी, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को खेत तैयार करते समय डालें व नाइट्रोजन की बाकी आधी मात्रा को मिट्टी चढ़ाते समय दें.

जलोढ़ मिट्टियों में 180-240 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 से 100 किलोग्राम फास्फोरस व 100 से 150 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें.

पहाड़ी इलाकों की अम्लीय मिट्टियों में 150 से 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 150 से 180 किलोग्राम फासफोरस व 150 से 200 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें.

अम्लीय मिट्टियों में कैल्सियम की उपलब्धता बढ़ाने के लिए 2.5 टन चूना प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल फायदेमंद होता है. नीम की खली 20 टन प्रति हेक्टेयर समावेश मिट्टी की भौतिक दशा सुधारने के साथ ही दीमक से भी बचाता है. डीएपी की जगह पर सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल ज्यादा ठीक रहता है. जस्ते की पूर्ति के लिए 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट बोआई के समय कूंड़ों में डालें.

रबी में बोई जाने वाली दलहनी फसलों में चना, मटर, मसूर, राजमा खास फसलें हैं. इन फसलों की खासीयत यह होती है कि इन की जड़ों की ग्रंथियों में आबोहवा की नाइट्रोजन को इकट्ठा करने की कूवत होती है. इसलिए इन में नाइट्रोजन की जरूरत दूसरी फसलों के मुकाबले कम होती है.

नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए जैव उर्वरक, जैसे राईजोबियम कल्चर का 150 से 200 ग्राम को समुचित पानी से प्रति 3-4 किलोग्राम बीज उपचारित कर के 10 मिनट तक छाया में सुखाने के बाद शाम के समय बोआई करनी चाहिए. जड़ग्रंथियों में राईजोबियम सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ाने के लिए 1-1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मोलिब्डेनम को आखिरी जुताई के समय मिलाएं.

मटर : मटर की फसल से ज्यादा पैदावार हासिल करने के लिए खेत की आखिरी जुताई के समय 20 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट के साथ ही 25-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50-60 किलोग्राम फास्फोरस व 40-45 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है. नाइट्रोजन की आधी व फास्फोरस की पूरी मात्रा को बोआई से पहले अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें. बाकी बचे नाइट्रोजन को 25-30 दिन बाद टौप ट्रैसिंग के रूप में देना चाहिए.

दलहनी फसलों में जस्ते की कमी का दूसरी फसलों के मुकाबले ज्यादा उलटा असर पड़ता है.

चना व चिकपी : सिंचित खेतों में गोबर की खाद या कंपोस्ट 4-5 टन और 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20-60 किलोग्राम फास्फोरस व 20-25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. असिचिंत खेतों में देर से बोआई करने पर 2 फीसदी यूरिया व पोटैशियम क्लोराइड का छिड़काव फूल आने के समय करने पर पैदावार में बढ़ोतरी होती है. नाइट्रोजन व फास्फोरस की एकसाथ पूर्ति के लिए 100 से 150 किलोग्राम डीएपी व गंधक के लिए 100 किलोग्राम जिप्सम का इस्तेमाल सर्वोत्तम होता है. धान/चना फसल चक्र वाले इलाकों में जस्ता की कमी व जलाक्रांत इलाकों में लोहे की कमी पाई जाती है. ऐसे खेतों में 10-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की मिट्टी में मिलाएं व 0.5 फीसदी आयरन सल्फेट के घोल का खड़ी फसल पर छिड़काव करें.

मसूर : सामान्य सिंचित मिट्टियों में 4-5 टन सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट व 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश तत्त्व का प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए. असिंचित खेतों में इस की आधी मात्रा डालनी चाहिए. इस के साथ ही जस्ते की कमी को पूरा करने के लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर बोआई से पहले खेत में डालें. जिन इलाकों में गंधक की कमी हो, वहां 2.5 क्विंटल जिप्सम प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल फायदेमंद होता है.

राजमा : इस में नाइट्रोजन की जरूरत दूसरी दलहनी फसलों के मुकाबले में काफी ज्यादा होती है. आमतौर पर 100 से 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 से 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 से 60 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करना चाहिए.

मधुमक्खीपालन से किसानों को फायदा

किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मधुमक्खीपालन उन के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है. मधुमक्खीपालन से किसानों को दोहरा फायदा होगा. एक तो मधुमक्खीपालन से तैयार होने वाले शहद और मोम की बिक्री से अतिरिक्त आमदनी होगी और दूसरी फसल का उत्पादन भी बेहतर होगा.

मधुमक्खीपालन से शहद, मोम, रौयल जैली में दूसरे कई उत्पाद किसान हासिल कर सकते हैं जो उन की आमदनी बढ़ाने के लिए मददगार साबित होते हैं.

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डाक्टर आनंद सिंह का कहना है कि पारंपरिक फसलों में प्राकृतिक मार के चलते कई बार फसल खराब होने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है.

ऐसे में मधुमक्खीपालन के जरीए किसान अपनी पैदावार और आमदनी को बढ़ा सकते हैं. किसान एपीकल्चर यानी मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग ले कर और इसे अपना कर दोहरा फायदा ले सकते हैं.

दुनिया में मधुमक्खियों के तकरीबन 20,000 प्रकार हैं. इन में से केवल 3 प्रकार की मधुमक्खी ही शहद बना पाती हैं. आमतौर पर मधुमक्खी का जो छत्ता होता है, उस में एक रानी मक्खी होती है. इस रानी मक्खी के अलावा छत्ते में कई हजार श्रमिक मक्खी और कुछ नर मधुमक्खी भी होती हैं. मधुमक्खी श्रमिक मधुमक्खियों की मोम ग्रंथि से निकलने वाले मोम से अपना घर बनाती हैं, जिसे आम भाषा में शहद का छत्ता कहा जाता है.

मधुमक्खीपालन में रखें खास ध्यान

विशेषज्ञों के मुताबिक, मधुमक्खियां अपने कोष्ठक का इस्तेमाल अंडे सेने और भोजन इकट्ठा करने के लिए करती हैं, इसलिए किसानों को मधुमक्खीपालन के समय कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत है.

दरअसल, मधुमक्खी छत्ते के ऊपरी भाग का इस्तेमाल शहद जमा करने के लिए करती हैं. ऐसे में किसानों को यह चाहिए कि छत्ते के अंदर परागण इकट्ठा करने, श्रमिक मधुमक्खी, डंक मारने वाली मधुमक्खियों के अंडे सेने के कोष्ठक बने होने चाहिए. कुछ मधुमक्खियां खुले में अकेले छत्ते बनाती हैं, जबकि कुछ अन्य मधुमक्खियां अंधेरी जगहों पर कई छत्ते बनाती हैं. मधुमक्खीपालन में उपकरणों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐसे में किसानों को एपीकल्चर के विशेषज्ञ या फिर ऐसे किसान से टे्रनिंग ले कर मधुमक्खीपालन को अपनाना चाहिए जो इस की अच्छी जानकारी रखता हो.

घर पर बनाएं पालक की भुर्जी

पालक की भुर्जी काफी हेल्दी होती है और इसे आप रोटी या परांठे के साथ सर्व कर सकते हैं. चाहे तो आप इसे सैलेड के साथ गर्निश कर सकते हैं.

सामग्री

1 टी स्पून जीरा पाउडर

1 टी स्पून धनिया पाउडर

1 टेबल स्पून देसी घी

2 टी स्पून अदरक पेस्ट

3 बड़ा बटर क्यूबस

2 प्याज, टुकड़ों में कटा हुआ

2-3 टमाटर, टुकड़ों में कटा हुआ

हरा धनिया, टुकड़ों में कटा हुआ

अदरक का पीस, कटा हुआ

2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

4-5 हरी मिर्च

4 टी स्पून लहसुन का पेस्ट

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बनाने की वि​धि

पालक को काट लें, एक पैन में तेल गर्म करें. इसमें लहसुन का पेस्ट, पालक और नमक डालकर कुछ देर पकाएं.

एक पैन में देसी घी गर्म करें,  इसमें लहसुन का पेस्ट,  अदरक का पेस्ट डालकर भूनें.

एक बार जब लहसुन ब्राउन हो जाए तो इसमें टमाटर, जीरा पाउडर और धनिया पाउडर डालें और इसे थोड़ी देर पकाएं.

एक पैन में मक्खन डालें, इसमें कटा हुआ प्याज डालकर भूनें. अब इसमें पालक, टमाटर पेस्ट, नमक, लाल मिर्च पाउडर, पनीर, हरी मिर्च और हरा धनिया डालें.

पालक भुर्जी को थोड़ी देर पकाएं और गर्मागर्म सर्व करें.

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करप्शन आई लव यू!

कनछेदी लाल को अनुभूति है, आप भी, इंकार नहीं कर सकेंगे. भ्रष्टाचार के संदर्भ में संपूर्ण विश्व एक साझा सरोकार रखता है . हमारा देश भारत तो इस क्षेत्र में अन्यतम स्थान रखता है .आम आदमी से लेकर देश का उच्चतम न्यायालय इस मामले में एक है- कि भ्रष्टाचार, इस देश की रग- रग में फैल चुका है. इसे सामाजिक स्वीकृति मिल रही है .ऐसे में कनछेदी लाल ने यह प्रस्ताव देश के समक्ष रखने की घृष्टता की है कि क्यों न भ्रष्टाचार को हम राष्ट्रीय पर्व बन लें और उसे सकारात्मक भाव से ले.

भ्रष्टाचार को हम खुले हृदय से अपना मित्र माने. गले से लगाएं. सारी दुनिया से खुलेआम कह डालें- आई लव यू करप्शन. अनेकानेक लाभ होंगे.कनछेदी लाल कई दिनों से निंद्रा देवी से कोसों दूर है.प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित देश के लाड़ले राष्ट्र नायकों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं.इन दिनों यह कुछ ज्यादा ही हो रहा है. दरअसल मेरा मानना है इसमें दोष हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का नहीं है. भ्रष्टाचार को दैवीय शक्ति प्राप्त है .वह बढ़ता चला जा रहा है. विस्तारित अपने प्रारब्घ से हो रहा है .खेत में बाड़ लगाई जाती है मगर खरपतवार कहां रुकता है. अब प्रारब्घ है .तो भ्रष्टाचार भी विश्वव्यापी शक्ति प्राप्त संस्था है. कनछेदी लाल को महसूस होता है, इसके पीछे हमारे राष्ट्र नायको का कोई हाथ नहीं है .हमारे नायक तो चुकि पद पर हैं इसलिए आरोप सहने मजबूर हैं. इनकी जगह और कोई भी, आप, मैं या हमारा कोई मित्र पद पर होता, वह भी इससे दो-चार होता. तो हमें विशाल हृदय का बनना होगा.

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कनछेदी लाल तो कहता है ‘भ्रष्टाचार देव भव:’ का नारा दिया जाना समाज और राष्ट्रहित में होगा .कनछेदी लाल बड़ा स्वार्थी है. यह काम किसी राष्ट्रीय पुरुष के हाथों संपन्न होना चाहिए. कनछेदी लाल रात भर जागता है, सोचता है, आंखों में नींद नहीं है. भ्रष्टाचार ने ऐसा जादू किया है कि आंखों से नींद, गधे के सिंग की तरह गायब हो गई है .कनछेदी लाल खुश है,- चलो राष्ट्र चिंतन के लिए जीवन का समय लग रहा है इससे बढ़कर इस मस्तिष्क और शरीर का क्या उपयोग हो सकता है.

आखिरकार इस देश में इतनी बड़ी बड़ी बौद्धिक शख्सियते हैं. फिर क्यों नहीं भ्रष्टाचार को उचित सम्मानजनक स्थान, पद प्रदान किया जाता ? मैंने अन्वेषण कर रात रात जागकर यह अनमोल तथ्य राष्ट्र को समर्पित करने खोज निकाला है भ्रष्टाचार देव भव: यह नारा अगर प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति एक सेमिनार आयोजित कर राष्ट्र के समक्ष उद्घाटित करें. राष्ट्र को बताएं कि भ्रष्टाचार के क्या-क्या लाभ हैं. हमारी क्या खामियां हैं तो कनछेदी लाल को महसूस होता है यह दुनिया को शुन्य के बाद हमारी महान देन होगी. कुछ लोग सदैव बाल की खाल निकालने वाले होते हैं. कनछेदी लाल ऐसे दुष्टत्मा चेहरों से वाकिफ है. कुछ बुद्धिजीवी का चेहरा ओढे. कुछ छुटभैया राजनेता. कुछ विपक्षी दल, इस नारे का विरोध करेंगे .मगर कनछेदी लाल के पास उनकी काट भी है…आप चिंता न करें. देखिए…सबसे पहले लाभ देखिए . हमारा देश महान है. महावीर, गौतम बुध्द, गांधी का देश है . हमेशा बताया गया है दुश्मनों से प्रेम करो. प्रेम से दुश्मन की आत्मा, ह्रदय परिवर्तन हो जाता है .यह भारतीय राजनीति में अक्सर देखा गया है .श्रीमती सोनिया गांधी के प्रति करुणानिधि का व्यवहार का अध्ययन करने वालो से पूछिएगा . आप देखेंगे अन्नाद्रमुक अर्थात करुणानिधि की पार्टी पर स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्या के दरम्यान प्रभाकरण और लिट्टे समर्थक होने का आरोप था . मगर जब सत्ता की बात आती है. प्रेम की ताकत देखिए श्रीमती गांधी करुणानिधि से हाथ मिला लेती है. आज महबूबा मुफ्ती फूटी आंख नहीं सुहाती मगर प्रेम में इतनी शक्ति है कि हृदय परिवर्तन हो जाता है .लालू प्रसाद कभी नीतिश का विरोध करते थे । शरद पवार, पी. ए. संगमा ने का कांग्रेस छोड़ दी थी मुकुल रॉय ने ममतादी को छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया की नही. प्रेम की अक्षत शक्ति का उदाहरण देखिए, सभी का हृदय परिवर्तन हो जाता है . कनछेदी लाल का निवेदन है, आप अपने आसपास देखिए ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे.
कनछेदी लाल का स्वार्थ सिर्फ इतना है कि इससे आप प्रेम के कायल हो जाएंगे और मेरी थ्योरी पर ध्यान देंगे.तो अगर हम भ्रष्टाचार को सम्मान देंगे, हमें लगेगा यह भ्रष्टाचार करना है और कहेंगे,भ्रष्टाचार देवो भव: तो भ्रष्टाचार के प्रति हम सहिष्णु हो जाएंगे .देखिए सब आत्मा और मन का मामला है. आत्मा की स्वीकृरोक्ति सारी समस्या का समाधान है. हमारा परिजन किसी की बलात्कार या हत्या कर दे, तो क्या हम निष्ठुर होकर उसे फांसी पर चढ़ने छोड़ देते हैं ? भई ! अपनी जमीन जायदाद बेचकर झूठ बोलकर भी न्यायालय से बचा लाते हैं कि नहीं.

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तो, जिस तरह आत्मा, मन हृदय को मना कर हम मन मार कर स्वीकारोक्ति कर लेते हैं. भ्रष्टाचार के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वीकारोक्ति करनी है बस .हो गया काम. भ्रष्टाचार देश से समाप्त. दुनिया हमें सम्मान से देखेगी . वाह ! भारत को देखो… देश से भ्रष्टाचार समाप्त कर दिया . कनछेदी लाल चिंतित है. देश चिंतामग्न है. सुप्रीम कोर्ट कुद्र है . भ्रष्टाचार विकराल होकर देश को तोड़ने का कारक बनने जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट कह रहा है, देश में अराजकता का माहौल बन जाएगा .भ्रष्टाचारी लोग सड़क पर पीटेंगे . सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है . मगर सच्चाई को हम स्वीकार करें .हरि अनंत हरि कथा अनंता एक कहावत है न ! तो भ्रष्टाचार भी अनंत है और भ्रष्टाचार की कथा भी अनंता है. कनछेदी लाल ने बहुत-बहुत चिंतन किया है. निष्कर्ष यही है कि कोई ताकत भ्रष्टाचार का निर्मूलन नहीं कर सकती. भगवान भोलेनाथ के माटी के पुत्र श्री गणेश एक उत्पाती और कुद्र बालक थे. सभी देवता उनसे त्रस्त थे .ऋषिमुनि, देवगण और राक्षसों को अपनी ताकत के मद में गणेश ने हलाकान कर रखा था. अंततः त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने गणेश को प्रतिष्ठापित किया .सर्वप्रथम पूजा का अधिकार दिया. इस तरह गणेश जी शांत हुए. प्रसन्न हुए .बस कन छेदीलाल का भी यही प्रस्ताव है- देश भ्रष्टाचार से प्रेम करें.देवगण माने और हृदय से पूजा करें .भ्रष्टाचार का रौद्र रूप शांत होता चला जाएगा. भ्रष्टाचार विकास की अनिवार्यता में परिवर्तित होकर देश में जन-जन में स्वीकार हो जाएगा.

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प्रियंका रेड्डी बलात्कार: पाषाण हृदय सत्ता और हमारी व्यवस्था

हैदराबाद की डा प्रियंका रेड्डी के साथ  घटित नृशंस हत्याकांड के बरअक्स  अगर देखे तो सेलयूलाइड  पर भी निरंतर इस “सच” को दिखाकर समाज में जागृति लाने का प्रयास किया गया है. इस क्रम में सबसे महत्वपूर्ण फिल्में हैं मदर इंडिया एवं रोटी कपड़ा और मकान अगर आपने इन दो क्लासिक फिल्मों को देखा होगा, तो आप समझ सकते हैं कि महिला के साथ किस दरिंदगी के साथ, कथित पुरुष अपने नंगे पन के साथ सामने आते हैं. और शायद यही क्रम डा प्रियंका रेड्डी के साथ भी घटित हुआ है, जिसमें उसकी जान चली गई.

मदर इंडिया की  नरगिस

सेल्यूलाइट पर महबूब खान की बहुचर्चित फिल्म मदर इंडिया में भी एक बलात्कार का दृश्य बड़े ही जीवंत और तल्ख रूप में दिखाया गया है. फिल्म में अभिनेत्री नरगिस एवं सहित अभिनेता कन्हैयालाल के ऊपर फिल्माया गया यह दृश्यांकन , कुछ ऐसा है कि जिसे भुलाया नहीं जा सकता. महबूब खान ने अपनी प्रतिभा का अद्भुत परिचय देते हुए फिल्म मदर इंडिया में नरगिस और कन्हैयालाल के माध्यम से ऐसा सच चित्रित कर दिया है, जो लंबे समय तक अविस्मरणीय रहेगा और देखने वालों के रोंगटे खड़े होते रहेंगे.

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मनोज कुमार की रोटी कपड़ा और मकान

अभिनेता निर्देशक भारत कुमार के नाम से प्रसिद्ध मनोज कुमार की फिल्म रोटी कपड़ा और मकान मे भी बलात्कार का एक दृश्य ऐसा बना है, जो जीवंत और मन को स्पर्श करने वाला है. अपने समय की महत्वपूर्ण अभिनेत्री मौसमी चटर्जी पर यह दृश्य फिल्माया गया. फिल्म में वह एक दिव्यांग की भूमिका में है. उनके साथ 3 लोग बलात्कार करते हैं, यह दृश्य देखकर भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आंखों में आंसू आ जाते हैं. इस दृश्यांकन  के माध्यम से मनोज कुमार ने बताया है कि समाज में किस तरह महिलाओं के साथ पुरुष अत्याचार के आयाम स्थापित करता है और समाज में स्वयं को कलंकित करता है.  सच तो यह है कि फिल्मों एवं साहित्य में नारी के साथ हो रहे अत्याचार, बलात्कार को बड़े ही जीवंत रूप से निरंतर दिखाकर उसके शमन का प्रयास किया गया है.

 निर्भया कांड की जीवंत हो उठी स्मृतियां

कैसा है हमारा समाज और कानून जहां ऐसा कोई दिन नहीं होता जब किसी लड़की, बच्ची के साथ कोई  जघन्य  बलात्कार और हत्या ना होती हो. इस सच्चाई को बढ़ी तल्खी के साथ साहित्य एवं सिनेमा में भी हमने बार बार दिखाया गया है .

आज यहां हम चर्चा करना चाहते हैं, हैदराबाद में घटित प्रियंका रेडी के साथ घटित बलात्कार एवं हत्या कांड की . जिसने संपूर्ण देश को उद्वेलित कर दिया है. ऐसा जान पड़ता है मानो निर्भया कांड के बाद एक बार फिर देश की आवाम का गुस्सा अपने बांध तोड़ कर निकल चुका है. दिल्ली के निर्भया कांड के समय में भी देखा गया था कि किस तरह संपूर्ण देश में कांड के खिलाफ लोगों में गुस्सा उफान पर आ गया था. सरकार और व्यवस्था की “कुर्सी” हिलने लगी थी. और तब जाकर  शासन ने कठोर कानून बनाने की पहल की थी. आज स्थिति यह है कि बलात्कार के संदर्भ में कठोरतम कानून होने के बावजूद इस तरह के प्रकरणों  में कमी नहीं आ रही है. आइए देखें आज इस रिपोर्ट में क्या हुआ था तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में प्रियंका रेड्डी के साथ-

 प्रियंका रेड्डी मिनट टू मिनट

दिनांक  27 नवम्बर 2019 दिन- बुधवार.स्थान हैदराबाद शहर. पशु चिकित्सक प्रियंका रेड्डी  कोल्लुरु स्थित  पशु चिकित्सालय जाने के लिए निकलीं. उन्होंने अपनी स्कूटी,  को शादनगर के टोल प्लाजा के पास पार्क कर दिया . वहां  से कैब ली और आगे निकल गईं. रात में जब वह लौटी तो उनकी स्कूटी पंक्चर मिली . यहां से तब प्रियंका ने अपनी बहन को फोन किया और इसकी जानकारी दी. प्रियंका ने बहन को बताया  कि उसे वहां बहुत भय लग रहा है. आसपास कुछ  अनजान लोग हैं, ट्रकों के ड्राइवर  उसे अजीब नजरों से घूर रहे हैं. मुस्लिम बहुल इलाका होने के चलते बहन भी एक अज्ञात आशंका से घिर गई  थी .बहन ने प्रियंका को तुरंत टोल प्लाजा जाने और कैब से घर आने की सलाह दी. बाद मे  जब बहन ने प्रियंका को कौल किया गया तो उनका फोन” स्विच औफ” हो चुका था. बहन ने परिवार को बताया. चिंतित  परिवारजन  सीधे  टोल प्लाजा पहुंच प्रियंका को तलाशने की कोशिश करने  लगे, जब वह नहीं मिली तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई.

गुरुवार सुबह पुलिस को हैदराबाद-बेंगलुरु हाईवे के पास एक महिला का जला हुआ शव दिखाई देने की रिपोर्ट  मिली. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर प्रियंका के परिवार से संपर्क किया .जिन्होंने कपड़ों और गले के लौकेट के आधार पर शव प्रियंका का होने की पुष्टि कर दी. माना जा रहा है  बलात्कार के बाद प्रियंका की जघन्य  नृशंस हत्या कर दी गयी थी.

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पाषाण हृदय हमारे राजनेता

डा प्रियंका रेड्डी की घटना से जहां संपूर्ण देश उद्वेलित हो चुका है. वहीं राज नेताओं की भी सामान्य सी प्रतिक्रिया आ रही है. इस संदर्भ में डॉक्टर गुलाब राय पंजवानी जो कि एक गांधीवादी हैं की प्रतिक्रिया बड़ी महत्वपूर्ण प्रतीत होती है उनके अनुसार- होना तो यह चाहिए कि ऐसे नृशंस हत्या कांड की जिम्मेदारी लेते हुए चाहे दिखावे के लिए ही, हमारे पाषाण हृदय  नेताओं को अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर देनी चाहिए! हो सकता है आपको हमारी यह इल्तजा कुछ बहुत ज्यादा अपेक्षा मांगती दिखाई दे. मगर जब तक देश की ऐसी बड़ी  घटनाओं पर रोक के लिए बड़े पदों पर बैठे हुए लोगों  की कुछ ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आएगी, तब तलक यह अबाध गति से चलता रहेगा.

सवाल सबसे बड़ा यह है कि दिनदहाड़े हो या फिर रात के अंधेरे में, आखिर कोई महिला बच्ची सुरक्षित क्यों नहीं है? कहां है शासन और कानून? और ऐसी घटनाएं इसके बावजूद हो रही है तो ऐसे पत्थर हृदय नेता और अधिकारी किस मुंह से अपने पदों पर बैठे हुए हैं. अरे भाई! कम से कम दिखावे के लिए ही सही एक बार इस्तीफा की पेशकश तो करें… शायद उससे जनचेतना जागृत हो, लोगों में जागृति आए और ऐसा जघन्य  बंद हो जाए.

स्वीडन की इस तकनीक से भारत को होगा फायदा, पराली से प्रदूषण नहीं बनेंगी ऊर्जा पैलेट्स

हर साल अक्टूबर-नवंबर महीने में वायु प्रदूषण सूचकांक में भारी इजाफा होता है. दिल्ली एनसीआर में तो सांस लेना दूभर हो जाता है. इसका प्रमुख कारण बताया जाता है पराली का जलाना. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में इन्हीं महीनों में धान की फसल की कटाई होती है. फसल कटने के बाद खेत में पराली का जमाव हो जाता है. चूंकि तुरंत किसानों को दूसरी फसल की बुआई करनी होती है इस वजह से उस पर आग लगा देते हैं. जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषित होता है.

किसानों की मजबूरी ये है कि वो इस पराली को कैसे खेत से हटाएं वहीं सरकार पूरा ठीकरा किसानों पर ही फोड़ रही है. देशभर में हजारों किसानों पर मुकदमें भी दर्ज किए गए हैं. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए. देश का अन्नदाता पहले से ही मौसम और सरकार की गलत नीतियों का शिकार हो रहा है ऐसे में उसको ये सब झेलना उनके साथ ज्यादती ही है.

खैर, इस समस्या से निजात पाया जा सकता है. कितना अच्छा होगा, अगर दिल्ली की हवा को अत्यधिक प्रदूषित करने वाले पराली को जलाने के बदले उसका किसी और काम में उपयोग किया जाए? स्वीडन ने पराली को हरित कोयला या ऊर्जा पैलेट्स में बदलने का उपाय सुझाया है, जिसका ईंधन के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है.

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सोमवार को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आगंतुक स्वीडन के राजा कार्ल सोलहवें गुस्ताफ पंजाब के मोहाली में बटन दबाकर धान की पराली से हरित कोयला बनाने की पायलट परियोजना की आधिकारिक रूप से शुरुआत करेंगे. इस परियोजना में स्वीडिश कंपनी बावेनडेव सहयोग करेगी.

इस वर्ष जनवरी में, मोहाली में राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई) ने पायलट परियोजना की स्थापना के लिए स्वीडन की कंपनी बावेनडेव एबी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. भारत सरकार और बावेनडेव एबी के बीच परियोजना को लेकर 50-50 की साझेदारी है.
स्वीडन के राजदूत क्लास मोलिन ने बताया, “वन-कचरे को ऊर्जा पैलेट्स में तब्दील करने में माहिर स्वीडन की कंपनी के पास धान या गेहूं की पराली के सही उपयोग की क्षमता है.” राजदूत ने कहा, “मोहाली में धान की पराली को ऊर्जा पैलेट्स में तब्दील करने के लिए एक बड़ा संयंत्र स्थापित किया गया है.” इस संयंत्र में टोरीफेक्शन प्रक्रिया अपनाई जाएगी. यह बायोमास को कोयला जैसी सामग्री में तब्दील करने की प्रक्रिया है. हरित कोयला कोई कार्बन फुटप्रिंट नहीं छोड़ता.

बावेनडेव की वेबसाइट के अनुसार, भारत में हर साल 3.5 करोड़ टन धान की ऊर्जा बेकार हो जाती है. इसे जैव कोयले में तब्दील किया जा सकता है और इसे 2.1 करोड़ टन जीवाश्म कोयले में तब्दील किया जा सकता है. इस प्रक्रिया से न केवल हरित पैलेट्स बनेंगे, बल्कि पराली को अन्य उपयोगी विकल्पों जैसे टैबल मेट्स, सजावटी समान, लैंप शेड्स इत्यादि में भी तब्दील किया जा सकेगा.

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‘ममूटी के साथ काम कर बहुत कुछ सीखा’ : प्राची तेहलान

मूलतः हरियाणवी (रोहतक निवासी) मगर दिल्ली में पली बढ़ी प्राची तेहलान को लोग एक अभिनेत्री के तौर पर पहचानते हैं, मगर उन्होंने कभी भी अभिनेत्री बनने के बारे में नहीं सोचा था. पढ़ाई करते करते अचानक वह नेट बौल और बौस्केटबाल खिलाड़ी बन गयी.

2010 के कामनवेल्थगेम्स में भारतीय बास्केटबौल टीम की कैप्टन के रूप में विजयश्री दिलाने व 2011 के ‘साउथ एशियन बीच गेम्स’’में अपने नेतृत्व में भारतीय टीम को पहली बार गोल्ड मैडल जिताने वाली प्राची तेहलान अब अभिनेत्री के रूप में धूम मचा रही हैं. इन दिनों 29 नवंबर को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘मामंगम’’ को लेकर चर्चा में है. मलयालम भाषा में बनी, मगर हिंदी, तमिल व तेलगू में प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘मामंगम’’ में उनकी मुख्य भूमिका ममूटी के साथ है.

अपनी पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?

मैं मूलतः हरियाण की जाट हूं, पर मेरी परविरश दिल्ली में हुई. मेरा जन्म और पालनपोषण दिल्ली में ही हुआ. मेरी नानी रोहतक से हैं. तो आप मेरा यह लंबा कद देखकर रहे है, वह नाना नानी व मामा व ममेरे भाईयो पर है. नानी के परिवार पर गई है. मैं अपने परिवार में तीन पीढ़ियों के बाद पहली लड़की पैदा हुई थी. मेरे दादा जी व मेरे पिता जी की कोई बहन नही थी. इसलिए मेरी परवरिश कुछ ज्यादा ही प्यार से की गयी है. मेरे पिता का दिल्ली में ‘टूर्स एंड ट्रेवल्स’ का व्यापार है. मेरी मां गृहिणी है. मेरा छोटा भाई, साहिल सिविल इंजीनियर है. अभी उसने ईकौमर्स का बिजनेस शुरू किया है. हमारे पास दो कुत्ते हैं. मुंबई में मेरी मौसी रहती है और मैं उन्ही के साथ रहती हूं.

आप कभी स्पोट्रस ओमन थी. फिर अभिनेत्री बन गयीं ?

जी हां! मैंने आठ साल तक दिल्ली की तरफ से बास्केटबौल खेला है. बहुत ही कम उम्र में बौस्केटबाल खेलना शुरू कर दिया था. फिर मैंने नेटबौल दिल्ली और भारत के लिए 4 साल खेला. कामन वेल्थ गेम में भारतीय टीम की सबसे कम उम्र की कैप्टन थी, जिसने देश को पहला गोल्ड मैडल दिलाया.

माउंटफुट स्कूल, अशोक विहार दिल्ली से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस मैरी कौलेज से बीकौम औनर्स किया. इसी कौलेज से प्रियंका गांधी, नेहा धूपिया व दिया मिर्जा भी हैं. उसके बाद मैंने मार्केटिंग और एच आर में एमबीए किया. फिर मैंने कुछ समय के लिए नौकरी की. उसी दौरान मेरे पास टीवी सीरियल ‘‘दिया बाती और हम’’ में आरजू का किरदार निभाने का आफर आया. यह पैरेलल लीड था. मैंने इसको एक अवसर की तरह लिया. उनसे बात की. उन्होंने मुझे यहां औडीशन के लिए मुंबई बुलाया. फिर तीन दिन के अंदर मैं मुंबई रहने आ गयी. और शूटिग शुरू कर दी.

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तो आप पहले से अभिनेत्री ही बनना चाहती थी ?

जी..नहीं. ऐसा कभी नहीं सोचा था. मुझे अभी भी याद है. स्कूल में अगर कोई मुझे गाना गाने या माइक पर पढ़कर बोलने के लिए शिक्षक कहती थी, तो मेरे पसीने छूट जाते थे. मैंने कभी नहीं सोचा था कि जिंदगी में अभिनय करुंगी. मैं स्कूल में थिएटर की बजाय स्पोर्ट्स में हिस्सा लेती थी.

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आप स्पोर्ट्स में अच्छा काम कर रही थी. गोल्ड मैडल भी हासिल किया. वह सब कुछ छोड़ क्यों दिया ?

स्पोट्रस में उसके बाद करने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. भारतीय टीम के लिए खेल चुकी थी. गोल्ड मैडल ला चुकी थी. इसके बाद स्पोट्रस कोच नहीं बनना चाहती थीं. क्योंकि कभी कोच बनने का पैशन नहीं था.

हरियाणा के बारे में कहा जाता है कि हरियाणा के लोग सरकार नौकरी के लालच में स्पोर्ट्स से जुड़ते हैं ?

एक अच्छे व सफल खिलाड़ी को ही सरकारी नौकरी मिल पाती है. यदि आप अच्छे खिलाड़ी नहीं होंगे तो सरकारी नौकरी कहां से मिलेगी ? अगर माता पिता अपने बच्चे को स्पोर्ट्स से जोड़ते हैं, तब उन्हें नहीं पता होता कि उनका बच्चा अच्छा करेगा या नहीं. बच्चे को भी उस वक्त कुछ पता नहीं होता है कि वह भविष्य में क्या करेगा? माता पिता अपने बेटे या बेटी को तभी खिलाते हैं, जब उन्हें समझ होती है कि अगर अपने बच्चे को अच्छे स्पोर्ट्स में डालता हूं, वह एक बेहतरीन खिलाड़ी बन गया, तो उसे एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल सकती है. तो यह माता पिता का लालच होता है, न कि खिलाड़ी बनने के लिए मेहनत करने वाले का लालच होता है. माता पिता को ही पता होता है सरकारी नौकरी में कमाई, सुविधाएं व सुरक्षित जिंदगी है. इसलिए मैं कहती हूं कि हरियाणा कम से कम इतने अच्छे स्तर की सरकारी नौकरी तो अपने खिलाड़ी को दे रहा है. कम से कम सरकार मोटीवेशन कर रही है कि लोग अपने बच्चे को स्पोर्ट्स में भर्ती करें. क्योंकि उनके पास एक कैरियर अपौर्चुनिटी है. मेरे पास वह नहीं था. मैं तो लंबे कद की वजह से बिना कुछ सोचे ही खेलना शुरू कर दिया था.

तो फिर स्पोर्ट्स@खेलों में आपकी दिलचस्पी कैसे पैदा हुई थी ?

मेरे लंबे कद को देखकर मेरे कोच ने कहा कि बास्केटबौल खेलना शुरू करो. मैंने आंख मूंदकर खेलना शुरू किया.  धीरे धीरे खेल मेरा पैशन बन गया. दिल्ली के लिए खेलना शुरू किया. फिर खेलते हुए काफी आगे बढ़ गयी. एक दिन खेल को अलविदा कह कर टीवी सीरियल ‘‘दिया बाती और हम’’ हमें अभिनय करने लगी. तब से अभिनय में सक्रिय हूं.

जब आपने ‘‘दीया बाती और हम’’ में अभिनय करना स्वीकार किया, तो आपने एक्टिंग कहां से सीखी क्या प्रोसेस रहा?

दिसंबर 2016 में मैंने शुरुआत की थी. मैंने जो भी कुछ सीखा है, वह सब कुछ मैंने कैमरे के सामने काम करते हुए सीखा. मैंने अभिनय की कोई भी ट्रेनिंग नहीं ली. मैं निर्देशक की कलाकार हूं. निर्देशक की बात केा अच्छी तरह से समझ कर उसे निभाती आ रही हूं.

मगर कभी आपके अंदर डर था कि आप पढ़कर भी बोल नहीं सकती थी, वह डर व झिझक कैसे खत्म हुई ?

झिझक काम कर करके दूर हुई. मेरा डर लाइव बोलने को लेकर था. यहां तो लाइव होता नहीं है. स्टूडियो के अंदर कैमरे के सामने हम कई रीटेक कर लेते हैं. फिर मेरे अंदर कैमरे का डर कभी नही रहा. जैसे ही निर्देशक ने एक्शन कहा, मैं भूल जाती हूं कि लोग देख रहे हैं कि नहीं देख रहे हैं. उस वक्त मैं दृश्य में खे चुकी होती हूं. मुझे लगता है कि इसी से मेरे अंदर का आत्मविश्वास बलवान हुआ. मैं कोशिश करती हूं कि पिछली बार से इस बार कुछ नया व कुछ बेहतर ही करूं. एक कलाकार के तौर पर जैसे-जैसे मैं सीरियल या फिल्में कर रही हूं, वैसे वैसे मेरी अभिनय के प्रति समझ विकसित हो रही है. बड़े कलाकारों के साथ काम करके समझ में आ रहा है कि वह कैसे करते हैं, उनका थौट प्रोसेस क्याहै? क्योंकि मैं हर कलाकार से बातें बहुत करती हूं.

किस विषय पर बात करती है ?

किसी भी विषय पर. आपको पता होता है कि सामने वाले के पास आपसे अधिक अनुभव है, तो हम बात कर उससे सीखते हैं. एक दिग्गज कलाकार का अनुभव 20 साल की उम्र में मेरे अंदर नहीं हो सकता. पर मैं उनसे कुछ बातें सीख जरुर सकती हूं. मैंने ममूटी सर के साथ काम किया है.

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आपने ‘‘दिया बाती और हम’’ तथा ‘‘इक्यावन’ इन दो सीरियलों में अभिनय किया. आपके अनुभव क्या रहे ? डेली सोप में काम करने के तरीके से आप कितना सहज थी ?

सर, टीवी सीरियल में अभिनय करना मतलब गधा मजदूरी है. शोहरत व धन कमाने के लिए टीवी अच्छा माध्यम है. पर आपकी खुद की निजी जिंदगी नही रह जाती. बस सुबह उठो, स्टूडियो पहुंचकर काम करो. वही आपकी दुनिया बन जाती है. मैंने खुद को आर्थि रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए दो डेली सोप किए. फिर जब आप लंबे समय तक लगातार काम करते हो, तो आपकी स्क्रीन प्रेजेंस अपने आप को ग्रूम करने का मौका मिलता है. इसके अलावा इन दोनों सीरियल में बहुत अच्छे किरदार थे.यह बात मेरे लिए बहुत ही ज्यादा एक्साइटमेंट थी. फिर यह दोनों ही किरदार बहुत कुछ प्राची जैसे थे.

स्पोर्ट्स में आप कैरियर बना रही थी तो फिर एमबीए की जरूरत क्यों महसूस हुई ?

मुझे शुरू से ही पढ़ाई का महत्व पता था. मेरा मानना रहा है कि वातावरण, दुनियादारी आदि की  पढ़ाई व बुद्धिमत्ता से ही आती है. अगर मैं 12वीं पास होती, तो मैं इतनी गहराई में आपसे बात नहीं कर पाती. मैं अपने आप को समझा नहीं पाती. तो मुझे लगता है कि एक पढ़े लिखे इंसान और कम पढ़े लिखे इंसान में यही अंतर है. मैं मानती हूं कि आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में यही फर्क नजर आता है. जब किसी ने कल्चर में जाती हूं, तो बहुत जल्दी उस कल्चर में ढल जाती हैं. मुझे जल्द समझ में आ जाता है कि ऐसे ऐसे करना है. मेरी पढ़ाई मुझे बहुत मदद कर रही है और मैं शुरू से ही अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी. ग्रेजुएशन के बाद एमबीए किया, जिससे मेरी अच्छी नौकरी लग जाए. मैं नौकरी में भी बहुत बड़े पद पर काम कर रही थी. जब मुझे अवसर मिला तो मैंने खेल जगत में उच्चस्तर का काम किया. कारपोरेट जगत में शून्य से शुरु कर उच्च स्तर तक पहुंची. फिर अभिनय में शून्य से शुरू किया .आगे भगवान ने मेरे लिए क्या सोच कर रखा है वह मुझे नहीं पता.

आपके दोनों ही सीरियल हिट रहे. आपको काफी लोकप्रियता मिली. लेकिन हिंदी फिल्म क्यों नहीं मिली ?

हिंदी फिल्में मुझे काफी औफर हुई, पर हिंदी में मैं तब काम करना चाहती थी, जब मेरी सोच के अनुरूप बड़े स्तर की फिल्म में काम करने का अवसर मिले. मैं नहीं जानती कि ऐसा अवसर आएगा या नही. पर जब होगा तो मैं प्राउड फील करके उस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनूंगी.

पर पिछले 2 सालों में काफी चीजें बदल भी चुकी हैं. अब भाषा बहुत मायने नही रखती ?

जी हां काफी कुछ बदल चुका है. पर मेरे लिए सब कुछ एक बराबर है. मैं हिंदी में पलीबढ़ी हूं हिंदी मेरी भाषा है, इसलिए मैं हिंदी फिल्म भी करना चाहूंगी, पर मैं तभी करूंगी जब मेरे मनमाफिक फिल्म मिलेगी.

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आपकी पंजाबी फिल्म कौन सी थी ?

मैंने पंजाबी में अर्जुन सहित दो फिल्में की हैं. मैं प्रिविलेज बैकग्राउंड से नहीं हूं. स्टार किड नहीं हूं. मैं कोई ऐसी इंसान भी नहीं हूं कि मैं एक्टर बनना चाहती थी. पर मैं अच्छी एक्ट्रेस हूं. मुझे पता था कि मुझे अपने आपको ग्रूम करना पड़ेगा. वह मैं लगातार करती आ रही हूं.

ममूटी संग मलयालम फिल्म ‘‘मामंगम’’  कैसे मिली आपको ?

औडीशन देकर मिली. यह मलयालम व हिंदी सहित पांच भाषाओं में है.

सीरियल ‘‘इक्यावन’’ बीच में बंद हो गया तो यह भी आपके लिए फायदा था ?

सीरियल ‘‘दीया बाती और हम’’ खत्म होने से हले पंजाबी फिल्म ‘अर्जुन’ मिली. इसके रिलीज से पहले मैं ‘बाइलौज’की शूटिंग कर रही थी. जब बाइलौज रिलीज हुई तब मैं इक्यावन की शूटिंग कर रही थी. इसकी शूटिंग खत्म होने से पहले ही ‘मामंगम’ मिल गयी थी.

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फिल्म ‘‘मामंगम’’ करने की मुख्य वजह क्या रही ?

फिल्म ‘‘मामंगम’’ के किरदार ने मुझे इस फिल्म को करने के लिए उत्साहित किया. यह अति सशक्त किरदार है. मुझे बताया गया था कि इस फिल्म में मेरे किरदार का लुक फिल्म ‘‘डर्टी पिक्चर्स’ में जो लुक विद्या बालन का था, वह होगा. उसी तरह के थोड़े से रिलीविंग कपड़े हैं. यह सुनकर मैं अंदर से घबरा भी गयी थी कि क्या मैं इस किरदार को निभा पाउंगी. फिल्म बहुत बड़े बजट की है. ममूटी सर के साथ काम करनाथा. तो मेरे दिमाग सिर्फ यही चल रहा था कि क्या मैं अपने किरदार के साथ न्याय कर पाउंगी. पर फिल्म के निर्देशक व निर्माता को यकीन था कि मैं कर पाउंगी. फिल्म के निर्माता का परिवार मेरे पर सीरियल ‘‘इक्यावन’’ का प्रशंसक था. वह मेरी अभिनय क्षमता से वाकिफ थे.

आपको किस तरह की तैयारी करने की जरुरत पड़ी ?

सबसे पहले तो हमने हर दिन दो घंटे भाषा के उच्चारण और दो घंटे नृत्य की ट्रेनिंग ली. मैंने मोहिनी अट्टम नृत्य सीखा. मैंने मलयालम भाषा सीखी. त्यागराजन सर ने मुझे एक्शन की टे्निंग दी. 76 वर्षीय त्यागराजन सर अब तक दो हजार से अधिक फिल्मों में एक्शन डायरेक्टर के रूप में काम कर चुके हैं. वही हमारी फिल्म ‘‘मामंगम’’ के एक्शन डायरक्टर भी हैं. उनके साथ काम करके बहुत मजा आया. उनके अंदर की एनर्जी तो कमाल की है. मैंने तलवार बाजी सीखी.

71 वर्ष के ममूटी सर में भी काम करने की एनर्जी कमाल की है. उनका व्यक्तित्व हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है. 20 अक्टूबर को गाने का रिलीज था. ममूटी सर ने स्टेज पर बुलाया. मैं खुशी की वजह से बोल नहीं पायी. इस फिल्म को करने में दो वर्ष का समय लगा

फिल्म के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी ?

-मैने इसमें उन्नी मां का किरदार निभाया है, जो कि परफामर,डांसर और देवदासी है. इसी के साथ वह योद्धा भी है. मेरे सीन काफी परफार्मेंस वाले है. नदी के किनारे होने वाने मेले की कहानी है.

ममूटी और आपके किरदार कहानी में कैसे जुड़े हुए हैं ?

वह उन्नी मां के मेंशन में रूप बदलकर आते हैं, पर उन्होंने दूसरों के लिए रूप बदला हुआ है. जबकि उन्नीमां जानती है कि वह महान योद्धा है. इस फिल्म में ममूटी सर के कई भेष हैं. वह कई तरह के रूप में नजर आएंगे. यह फिल्म अनसंग हीरोज ‘चावेरा’ की गाथा है. पर महिला किरदारों में मुख्य किरदार मेरा यानी कि उन्नीमां है. उन्नी मां काफी स्ट्राग है.

फिल्म में आपके साथ कई महारथी पुरूष व महिला कलाकार हैं. उनके बीच आपकी उपस्थिति कहीं गुम तो नहीं हो जाएगी ?

पूरी फिल्म में कहानी के स्तर पर मेरा किरदार ही अहम है. उन्नी मां के किरदार की लंबाई भी सबसे ज्यादा है. जब सारे ‘चावेरा’ उन्नी मां  के मेंशन में आ जाते हैं, तो वह उन्हें बचाने का प्रयास करती है. जबकि मेरे मेंशन में उस वक्त खलनायक भी मौजूद है. मगर उन्नी मां अति बुद्धिमान देवदासी है. उसे पता है कि क्या हो रहा है. उसे पता है कि कौन सही व कौन गलत है. वह चावेरा को बचाने के लिए दूसरों का माइंड डायवोर्ट करती है.

किस तरह के एक्शन आपने किए हैं ?

मुझे क्रेन पर भी टंगा गया. मैंने वजनदार तलवारों के साथ युद्ध किया है. भागदौड़ भी की. इसमें मैं साड़ी पहने, मांग टीका लगाए, एक नारी के लुक के साथ तलवारबाजी व अन्य एक्शन करते हुए नजर आउंगी.

आपने खुद इस फिल्म को लेकर कोई शेाधकार्य किया था ?

मैंने अपनी तरफ से इस संबंध में काफी जानकारी हासिल की थी. यह इतिहास का ऐसा अध्याय है,जिसके बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते हैं. 18 वी सदी में राजा नदी किनारे एक फेटिवल रखता था और वह घोषणा करता था कि कौन उसे तलवार बाजी में चोट पहुंचाएगा. फिर सबसे छोटा चावेरा यानी कि छोटा बच्चा उसे चोट पहुंचाता था. फिर पूरी कहानी खुलती है. इसमें बदले की कहानी है. चावेरा को राजा से बदला लेना है.

ममूटी से पहली मुलाकात कैसी थी ?

पहली मुलाकात सेट पर ही हुई थी और बहुत ही अच्छी रही थी. ममूटी सर ने पहली बार कद में सबसे बड़ी हीराईन यानी कि मेरे साथ काम किया. उनका व्यवहार बहुत अच्छा रहा. मैंने उनसे कई तरह के सवाल किए. मैंने उनकी यात्रा, समय के साथ किस तरह के बदलाव आए, को लेकर हमने उनसे काफी बातें की. उन्होंने बताया कि समय के साथ चीजें आसान नही बल्कि कठिन होती गयीं. क्योंकि स्टारडम को भी मेंटेन करना था, नई तकनीक के साथ तालमेल भी बिठाना था. अपने समकालीन हीरो के साथ साथ नई पीढ़ी के हीरो के साथ भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है. मैंने उनसे बातें करके बहुत कुछ सीखा और उससे मेरे जीवन व करियर पर काफी प्रभाव पड़ा. वह उच्च शिक्षित हैं. वकील हैं. शिक्षा के स्तर पर हम दोनों काफी उच्च शिक्षित हैं. बुद्धिमत्ता के स्तर पर उनसे काफी कुछ सीखने को मिला. हमने उनसे हिंदी व अंग्रेजी में बातें की. सेट पर वह अक्सर सलाह दिया करते थे.

फिल्म की शूटिंग के अनुभव क्या रहे ?

कोचीन में शूटिंग करने के अनुभव बहुत अच्छे रहे.मुझे कोचीन की प्राकृतिक संुदरता ने अपना बना लिया. वहां पर हरियाली बहुत है. वहां का भोजन बहुत स्वादिष्ट है. मैंने मलयालम के कुछ शब्द सीखे.शूटिंग भी रीयल सेट पर हुई. दूसरी आने वाली फिल्में कौन सी हैं ?

एक तेलगू फिल्म ‘त्रिशंकु’की है. इस साइंस फिक्शन फिल्म में मेरे किरदार का नाम है- नक्षत्र. बहुत पयारा किरदार है. मैं इसमें एक वैज्ञानिक बनी हूं.

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कोर्ई ऐसा किरदार जो करना चाहती हों ?

मैं एक रोमांटिक किरदार व रोमांटिक फिल्म में काम करना चाहती हूं. एक पूरी एक्शन फिल्म करना चाहती हूं.

जानें कैसे बनाएं सोंठ की चटनी

खाने के साथ अगर चटनी हो तो खाने का स्वाद ही कुछ ही और होता है. और वो भी जब आप भेलपुरी, चाट, पापड़ी, दहीवड़े खा रहे हो तो इसके साथ चटनी हो तो ये खाने में काफी टेस्टी लगते हैं. अक्सर भेलपुरी, चाट के साथ सोंठ की चटनी लोगों को काफी पसंद आती है. तो चलिए इसे बनाने की विधि जानते हैं,

सामग्री

2 चम्मच सोंठ (सूखा अदरक)

4 चम्मच नमक

185 ग्राम गुड़

आधा चम्मच मिर्च पाउडर

चाट मसाला पाउडर (2 चम्मच)

पानी

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बनाने की वि​धि

सबसे पहले इमली को पानी में भिगोएंव और जब ये सौफ्ट हो जाए तो इसे पानी से निकाल लें.

अब एक गहरे पैन को मध्यम आच पर रखें और इसमें थोड़ा पानी डालकर इमली डाल दें.

उबाल आने पर गुण, सोंठ, नमक, चाट मसाला, काली मिर्च और मिर्च डाल दें.

अब आंच को धीमा करके इसे गाढ़ा होने दें.

गाढ़ा होने के बाद इसे प्लेट में सर्व करें.

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अच्छी नींद और सेहत के लिए जरूरी है अच्छे गद्दों का चयन

पूरा दिन हमारा शरीर, हमारा दिमाग भागा दौड़ी में गुजर जाता है और रात को जब हम अपने बिस्तर पर जाते हैं तो एक आरामदायक और सुकून भरी नींद की ही अपेक्षा करते हैं हम बिस्तर पर इस उम्मीद से लेटते हैं कि अब अपने शरीर को थोड़ा आराम दें, ताकि अगले दिन फिर नई ऊर्जा के साथ जीवन की भागदौड़ में जुट सकें. अगर हम अपने शरीर को रिलैक्स नहीं करेंगे तो हम मानसिक रूप से तनाव से भी पीड़ित हो सकते है इससे बचने के लिए जरूरी है अच्छे बिस्तर पर आरामदायक नींद लेना. हम अपनी जिंदगी का एक तिहाई हिस्सा सो कर गुजरते हैं इसलिए बहुत जरूरी है कि अपने बिस्तर को उतनी ही अहमियत दी जाए, जितनी खानपान और पहनावे को दी जाती है. थौमसन इंडिया के चीफ बिज़नेस आर्किटेक्ट यशवंत प्रताप सिंह जानकारी दे रहे है कैसा हो आपका मैट्रेस.

स्प्रिंग मैट्रेस में छिपी है आरामदायक नींद

डिजाइन मैट्रेस के लिए बौक्‍स स्प्रिंग मैट्रेस परफेक्‍ट विकल्‍प है. इस मैट्रेस को खुद या फिर इलेक्ट्रिक मोटर के जरिए एडजस्‍ट किया जा सकता है. ये लेदर, स्प्रिंग और स्‍लैट्स मौडल में उपलब्‍ध है. ये मैट्रेस सोने वाले का 1/3 वजन लेता है. ये उन लोगों के लिए बहुत अच्‍छा है जिनकी कमर में दर्द होता है. ये और्थोपीडिक मैट्रेस होते हैं इन्हे मेमोरी फोम से बनाया जाता हैं इस पर सोने से कमर दर्द नहीं होती अगर किसी को कमर दर्द की शिकायत पहले से हैं तो उनके लिये मैटर्स बहुत अच्छे हैं. इससे स्पाइन दर्द की समस्या में भी नहीं होगी जो कि सामन्यता गलत मैट्रेस चुनने की वजह से हो जाती हैं.

तलाले लेटेक्स  मैट्रेस

लेटेक्स मैट्रेस पर्यावरण के अनुकूल है. यह रबर  के पेड़ की छाल से बना होता है. इसे ओपन सेल स्ट्रक्चर पर बनाकर  तैयार किया जाता है. इस लेटेक्स  में वैंटिलेशन अधिक होने के साथ साथ यह हाइपोएलर्जेनिक होता है. हेवे ब्रासिलिएन्सिस, लेटेक्स गद्दा स्वाभाविक रूप से लोचदार होता है लोचदार होने के कारण  इसकी  खसियत  है यह है कि यह शरीर के भारी हिस्से को सिकोड़ लेता है व हल्के हिस्से को बाहरी ओर धकेलता है. जिस कारण रीढ़  व स्पाइन सीधी व आरामदायक अवस्था में  रहती है और कमर दर्द नहीं होता.

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दर्द से  दिलाएं राहत बांन्डेड मैट्रेस

ये मैट्रेस काफी हार्ड होता है यह मेमोरी फोम के छोटे छोटे पीसेज को कंप्रेस कर इसकी डेंसिटी बढ़ाई जाती है. जिन्हें कमर दर्द की शिकायत होती है उनको अच्छे  हार्ड मैट्रेस का इतेमाल करना चाहिए.


मैट्रेस हो हाइजिनिक

ऐसे लोग जिन्‍हें धूल से एलर्जी है या ज्‍यादा संवेदनशील हैं तो उनके लिए स्‍लेटेड मैट्रेस सबसे अच्‍छा है. यह भी जांच लें कि इससे एंटीबैक्‍टेरियल फंक्‍शन हो. क्योंकि जब हम सोते हैं तो हमारी बौडी से पसीना निकलता हैं जो की हमारा मैट्रेस सोख लेता हैं जिसमें धूल मिटटी और बौडी से निकला पसीना मिलकर मैट्रेस मे अंदर कीचड़ का रूप ले लेता हैं जिससे उसमे गड्ढे पड़ने लगते हैं. तो जरूरी हैं की मैट्रेस ऐसा हो जिसमे वैंटिलेशन हो.

मैट्रेस की डेंसिटी का रखें ख्याल

मैट्रेस की डेंसिटी की जानकारी होना जरूरी हैं क्योंकि अगर आपका वेट ज्यादा होगा मैट्रेस का डेंसिटी कम होगा तो उससे आपको अच्छी नींद आने मे परेशानी होगी.

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कीमत

मैट्रेस हमेशा अच्छी ब्रांडेड कम्पनी के लेने चाहिए. अच्छे मैट्रेस की कीमत 20 हजार से लेकर डेढ़ लाख तक की होती है. मैट्रेस खरीदते समय उसकी गारंटी देखना न भूले.

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