उस समय मैं एमए फाइनल ईयर में थी. परीक्षा की तारीख नजदीक थी. तैयारी के लिए अपने कालेज की लाइब्रेरी में कुछ महत्त्वपूर्ण नोट्स तैयार करने में लगी हुई थी. मेरी ही टेबल पर सामने एक लड़का भी अपने कुछ नोट्स तैयार करने में लगा था. मैं लंच ब्रेक में लाइब्रेरी जाती और वह लड़का भी उसी समय मेरे ठीक सामने आ कर बैठ जाता. एक दिन जब मैं लाइब्रेरी की अलमारी से कुछ किताबें हाथों में ले कर आ रही थी तभी उस के पास पहुंचते ही उन में से कुछ किताबें फिसल कर उस के पैरों पर जा गिरीं.
‘‘सौरी,’’ बोलते हुए मैं पुस्तकों को उठाने लगी. उस ने किताबों को उठाने में मेरी मदद की और मेरे हाथों में उन्हें थमाते हुए बोला, ‘‘नो प्रौब्लम, कभीकभी ऐसा हो जाता है.’’
उस के बाद हम दोनों में अकसर बातें होने लगीं. बातचीत से पता चला कि वह गांव का रहने वाला एक गरीब विद्यार्थी था जो एमए की तैयारी कर रहा था और उस का मकसद बहुत ऊंचा था. वह एमए करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी करना चाहता था. वह अपने कुछ साथियों के साथ एक कमरा किराए पर ले कर रहता था और वे लोग अपना खाना खुद बनाते थे और बहुत ही कम पैसे में अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहते थे. वे सभी किसानों के लड़के थे. उस का नाम रवि था.
रवि गरीब जरूर था लेकिन शरीर से सुडौल और मन से शांत चित्त वाला एक बहुत ही अच्छे स्वभाव का मधुरभाषी व दूसरों की मदद करने की भावना लिए एक हंसमुख लड़का था. कभीकभी बहुत आग्रह करने पर रवि मेरे साथ कालेज के कैफेटेरिया में जाता और एक कप चाय से ज्यादा कुछ नहीं लेता. जबरन चाय का पैसा मैं ही देती.