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घर पर बनाएं सोया चिली

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है की हम अपने आहार में प्रोटीनयुक्त चीजों को शामिल करें. दाल और सोयाबीन में जितना प्रोटीन पाया जाता है शायद ही किसी और खाद्य पदार्थ में मिले. इसलिए आज हम आपको प्रोटीन युक्त और स्वादिष्ट रेसिपि सोया चिली बनाने की विधि बता रहे हैं. जानें इसे बनाने की विधि.

सामग्री

100 ग्राम सोयाबीन

1 शिमला मिर्च

3 बड़े और मोटे कटे प्याज

1 कटोरी कटी हुई ब्रोकली

एक छोटी कटोरी हरा प्याज

1 बड़ी चम्मच अदरक-लहुसन पेस्ट

1 बड़ा चम्मच मक्के का आटा

1 चम्मच सोया सौस

1 चम्मच विनेगर

1 चम्मच टमैटो केचप

1 छोटी चम्मच मिर्च पाउडर

1 छोटी चम्मच हल्दी पाउडर

हरी मिर्च

तेल आवश्यकतानुसार

नमक स्वादानुसार

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बनाने की विधि

सोयाबीन को गर्म रपानी में भिगोकर करीब 1 घटें के लिये रख दें. फिर उस पानी से निकालकर उसका पानी हाथ से पूरी तरह से निचोड़ दें. अब इस सोया की बरी में मक्के का आटा के साथ नमक, मिर्च, हल्दी, अदरक लहुसन की पेस्ट डालकर इसे पानी का साथ मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट तैयार कर इसे डिप फ्राई कर लें.

अब एक पैन या कढ़ाही में थोड़ा सा तेल डालकर गर्म करने को रखें. गर्म किये हुये तेल में लहसुन और प्याज डालकर ब्राउन होने तक भूनते रहे. इसके बाद इसमें शिमला मिर्च, ब्रोकली और हरे प्याज डालें. इन सभी सामग्रियों को डालने के बाद इसमें फ्राई किया हुआ सोया डालकर अच्छी तरह से चलाते हुये पूरे मसालों को आपस में मिला दें.

इसके बाद अच्छी तरह मिलाने के बाद इसमें उपर से सोया सॉस, विनेगर, टैमटो केचप, नमक और हरी मिर्च डालकर एक बार फिर पूरी तरह से चलाते हुये पूरे मिश्रण को मिला दें. अब इसके पक जाने के बाद इसे एक प्लेट में निकालकर इसमें धनिये की पत्ती का उपयोग कर अच्छी तरह से सजायें. सोया चिली बन कर तैयार है.

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अंतिम भाग : दुनिया के मुसलमान अपनों के शिकार

भाग 1- दुनिया के  मुसलमान अपनों के  शिकार

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ईसाईयत के बाद इसलाम को मानने वालों की तादाद दुनिया में सब से ज्यादा है. आज मध्यपूर्व दुनिया का वह इलाका है जहां ताकतवर मुसलिम देशों की खेमेबंदी बहुत तगड़ी है, लेकिन यहां रूस और अमेरिका के साथसाथ चीन की सक्रियता और हस्तक्षेप भी बहुत ज्यादा है. ये तीनों ही राष्ट्र नहीं चाहते कि मुसलिम देश कभी भी एकजुट हो कर उन से ज्यादा ताकतवर हो जाएं और पूर्व के तेल के भंडारों पर पश्चिम की पकड़ कमजोर पड़ जाए. इसलिए वे साजिशन इन को आपस में लड़ाए रखते हैं.

सीरिया जैसे अनेक मुसलिम देश जो शियासुन्नी  झगड़ों या सत्ता पर वर्चस्व के चलते गृहयुद्ध की स्थितियों से जू झ रहे हैं, चीन, रूस और अमेरिका उन को सैन्य मदद देने के बहाने उकसाने और लड़ानेमरवाने का काम कर रहे हैं.

दक्षिणपश्चिम एशिया इलाके का मुसलिम राष्ट्र सीरिया आज लगभग पूरी तरह बरबाद हो चुका है. बीते 10 वर्षों से सीरिया सिविल वार से जू झ रहा है. राजधानी दमिश्क को छोड़ कर देश के तकरीबन सभी शहर बरबाद हो चुके हैं. वहां नन्हेनन्हे बच्चे गोलियों से भून दिए जाते हैं, मगर कोई मानवाधिकार संगठन उन की बात नहीं करता. विश्व समुदाय सीरिया की हालत पर खामोश है. सीरिया की जंग को रोकने, वहां के हालात पर काबू पाने के लिए कोई ठोस काम नहीं हो रहा है. सीरिया की हालत हमेशा से ऐसी नहीं थी.

यह मुसलिम देश कभी काफी एडवांस और मौडर्न हुआ करता था. यहां कौफी शौप, फास्ट फूड जाएंट्स से ले कर बीच और नाइट क्लब तक थे, जहां लोगों की भरमार देखी जाती थी. वे लोग आधुनिक जीवन जीते थे. गृहयुद्ध शुरू होने के बाद भी राजधानी दमिश्क में लोग काफी समय तक ऐसी ही लाइफ जीते रहे. जबेसा में 1940 में प्राकृतिक गैस के भंडारों का पता लगा. वर्ष 1956 में यहां पैट्रोलियम की खोज हुई थी. इस के सुवायदिया, करत्सुई तथा रुमाइयां में प्रमुख तेल क्षेत्र हैं. ये तेल क्षेत्र इराक के मोसुल तथा किरकुक के पास के तेल क्षेत्रों के प्राकृतिक विस्तार हैं. पैट्रोलियम सीरिया का प्रमुख निर्यात है.

2011 में जब अरब के बाकी देशों में जैस्मिन क्रांति शुरू हुई थी, तभी सीरिया में इस की शुरुआत हुई. बाकी देशों में सत्ता परिवर्तन हो गए और दशकों से सत्ता पर काबिज तानाशाह शासक या तो मारे गए या जेल में डाल दिए गए, लेकिन सीरिया की कहानी एकदम अलग रास्ते पर चली गई.

सीरिया में मार्च 2011 में गृहयुद्ध शुरू होने के बाद से ही वहां अभूतपूर्व और अकल्पनीय तबाही व बरबादी हुई. साथ ही, भारी संख्या में लोग बेघर भी हुए. 50 लाख से ज्यादा सीरियाई लोगों को देश छोड़ कर भागना पड़ा और करीब 60 लाख लोग देश के भीतर ही विस्थापित हुए. आज एक करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोगों को जीवित रहने के लिए सहायता की जरूरत है. सीरियाई संघर्ष और युद्ध ने सीरियाई लोगों के लिए असीमित तकलीफों और तबाही के हालात बना दिए, जिन से पुरुष, महिलाएं और बच्चे, कोई अछूते नहीं रहे.

7 वर्षों बाद भी सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद की सेना और विद्रोहियों के बीच युद्ध जारी है. 5 लाख से ज्यादा लोग सीरिया में अब तक मारे जा चुके हैं और इस से भी कई गुना शरण लेने के लिए पड़ोस के देशों की ओर पलायन कर चुके हैं. कई शहर खंडहरों में तबदील हो चुके हैं.

आईएसआईएस और विद्रोहियों के साथसाथ खुद सीरिया की सरकार ने ही अपने मुल्क के सीने पर इतने बम गिराए हैं कि कई भरेपूरे शहर खंडहर में तबदील हो चुके हैं. देश का तीसरा सब से बड़ा शहर होम्स विद्रोहियों का केंद्र बना और फिर तबाही का भी. वर्ष 2011 तक इस शहर में 10 लाख लोग बसते थे. शहर के लोग बेहद जिंदादिल और खुलेमिजाज के थे. यहां तक कि औरतें भी बिना हिजाब यानी परदे के मर्दों के साथ बाहर आतीजाती थीं. लेकिन 2011 में सब बदल गया.

सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ विद्रोह हो गया. विद्रोही सेना ने सब से ज्यादा गदर होम्स शहर में मचाया और इस शहर का नाम क्रांति की राजधानी रख दिया. चौतरफा बमों की बारिश ने 95 फीसदी होम्स शहर को खंडहर बना दिया. हजारों लोग मारे गए. बाकी जान बचाने के लिए होम्स छोड़ कर महफूज ठिकाने की तरफ निकल पड़े.

तबाही और उजड़ती जिंदगियों के बीच आज सीरिया जंग का अखाड़ा बन चुका है. दुनिया की तमाम ताकतें बमबारी का केंद्र सीरिया को बनाए हुए हैं. यूएनएससी जैसी संस्थाएं शांति स्थापित करने, युद्ध रोकने और जानमाल की क्षति रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई हैं. यहां तक कि रूस के टीवी चैनलों पर तीसरे विश्वयुद्ध का अलर्ट तक आने लगा है. इस में शांति के लिए काम कर रहे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और विश्व नेताओं की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है, जो संबद्ध पक्षों को वार्त्ता की टेबल तक लाएं. 2 गुटों में बंटती जा रही दुनिया के बीच शांति स्थापित करने के लिए यूएन की ओर से ही पहल कारगर हो सकती है. पर चूंकि यह मुसलिम मुल्क का अपना मामला है, शायद इसीलिए चारों तरफ खामोशी छाई हुई है.

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बंगलादेश, भारत और म्यांमार में आज रोहिंग्या मुसलमान मौत से संघर्ष कर रहे

हैं. म्यांमार के निवासी रोहिंग्याओं को वहां से खदेड़ा जा रहा है. जान बचाने के लिए वे कभी भारत भाग कर आते हैं तो कभी बंगलादेश में सिर छिपाते हैं, मगर मौत उन का पीछा नहीं छोड़ रही है. वे घर में रुकना चाहते हैं तो हिंसा मौत बन कर आ जाती है और जब घर से निकलते हैं तो समुद्र उन को अपनी आगोश में खींच लेता है.

भले ही इंसानियत की आंख का पानी खुश्क हो गया हो, लेकिन शायद समुद्री पानी को उन की हालत पर दया आ रही है, इसीलिए दर्द में छटपटाते और दरदर भटकते इन गरीबों को वह थपकियां दे कर अपनी गहराई में गहरी नींद सुला रहा है. सब खामोश हैं. मानवता की बात करने वाले भी और वे लोग भी जो सहिष्णु होने का दावा करते हैं.

खुद को शांतिप्रिय कहने वाले बुद्धिस्ट उन की मौत का तमाशा देख रहे हैं, खुद उन के कातिल बने जा रहे हैं. इन रोहिंग्या मुसलमानों को भागते हुए सब देख रहे हैं, लेकिन कोई भी उन का हाथ थामने को तैयार नहीं है इसलिए, क्योंकि वे मुसलमान हैं. अमीर मुसलिम देश भी खामोश हैं, क्योंकि गरीब रोहिंग्या मुसलमानों से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है. इन मुसलमानों के लिए म्यांमार में इतनी नफरत है कि उन के घरों को जलाया जा रहा है. उन के बच्चों का बेरहमी से कत्ल किया जा रहा है. उन को उन के ही देश से भगाया जा रहा है.

म्यांमार की प्रधानमंत्री आंग सान सू की को लगता है जैसे कुछ पता नहीं. वे बर्मा (आज म्यांमार) के राष्ट्रपिता आंग सान की बेटी हैं, जिन की 1947 में राजनीतिक हत्या कर दी गई थी. यह सच है कि आंग सान सू की ने बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना के लिए लंबा संघर्ष किया है, लेकिन सैनिक सरकार का विरोध करने वाली सू की का सत्ता में होने के बाद भी रोहिंग्या के मामले में खामोश रहना हैरान करता है.

आर्कबिशप डेसमंड टूटू से ले कर मलाला यूसुफजई तक – 12 नोबेल पुरस्कार विजेता म्यांमार सेना द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों पर किए जा रहे जुल्मों को रोकने के लिए आंग सान सू की से अपील कर चुके हैं, मगर शांति की तमाम अपीलों को दरकिनार करते हुए पूरे मामले पर सू की ने बड़े ही रहस्यमय ढंग से चुप्पी साध रखी है. इस मामले में वे अपने पिता आंग सान जैसा रवैया ही अपनाती दिख रही हैं, जिन्होंने 1947 में पांगलौंग वार्त्ता में रोहिंग्या प्रतिनिधियों को बुलाना जरूरी नहीं सम झा था. वह सम्मेलन अलगअलग जातीय समूहों को बर्मा के नए संघ में लाने के लिए था.

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कौन हैं रोहिंग्या मुसलिम ?

रोहिंग्या मुसलिम म्यांमार के रहाइन स्टेट में रहने वाले अल्पसंख्यक हैं, जो सुन्नी इसलाम को मानते हैं. ये रोहिंग्या भाषा बोलते हैं. प्रतिबंध होने की वजह से ये पढ़ेलिखे नहीं हैं. ये सिर्फ बुनियादी इसलामी तालीम ही हासिल कर पाते हैं. म्यांमार में रोहिंग्या सदियों से रह रहे हैं. वर्ष 1400 के आसपास ये रहाइन में आ कर बसे थे. 1430 में ये रहाइन पर राज करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला के दरबार में नौकर थे.

राजा ने मुसलिम एडवाइजरों और दरबारियों को अपनी राजधानी में जगह दी थी. रहाइन स्टेट म्यांमार का पश्चिमी बौर्डर है, जो बंगलादेश के बौर्डर के पास है. यहां के शासकों ने अपनी सेना में मुसलिम पदाधिकारियों को रखा और इस तरह मुसलिम कम्युनिटी वहां पनपती गई.

साल 1785 में बौद्धों का अटैक हुआ, जिस के बाद उन्होंने रहाइन पर कब्जा कर लिया. वह म्यांमार में पहला मौका था जब मुसलिमों को मारा गया. जो बाकी बचे, उन्हें वहां से खदेड़ दिया गया. इस दौरान करीब 35 हजार लोग बंगाल चले गए. वर्ष 1824 से 1826 तक एंग्लो बर्मीज जंग हुई. 1826 में रहाइन अंगरेजों के कब्जे में आ गया.

अंगरेजों ने बंगालियों को बुलाया और रहाइन इलाके में बसने को कहा. इसी दौरान रोहिंग्या मूल के मुसलमानों को भी वापस लौटने और वहां रहने के लिए प्रोत्साहित किया गया. बड़ी तादाद में बंगाल और भारत से प्रवासी वहां पहुंचे. मगर रहाइन के बौद्धों में एंटीमुसलिम फीलिंग पनपने लगी और बीते कई सालों से यही जातीय तनाव अब बड़ा रूप ले रहा है.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान का इस इलाके में दबदबा बढ़ा. अंगरेज रहाइन छोड़ कर चले गए, लेकिन म्यांमार में मुसलिम और बौद्ध एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए और वहां कत्लेआम मच गया. रोहिंग्या मुसलिमों को लगने लगा कि अंगरेजों के संरक्षण के बिना उन का जीवित और सुरक्षित रहना मुश्किल है तो उन्होंने अंगरेजों के लिए जापानी सैनिकों की जासूसी करनी शुरू कर दी.

जापानियों को इस बात का पता चला तो मुसलिमों पर उन के जुल्म और बढ़ गए. बड़ी संख्या में उन का कत्ल किया गया, उन की औरतों और बच्चियों के बलात्कार किए गए. डर के मारे लाखों रोहिंग्या मुसलिम फिर बंगाल और भारत की ओर भागे.

1962 में जनरल नेविन की लीडरशिप में म्यांमार में तख्तापलट हुआ. रोहिंग्या मुसलिमों ने रहाइन में एक अलग रोहिंग्या देश बनाने की मांग की. मगर सैनिक शासन ने रोहिंग्या लोगों को सिटिजनशिप देने से ही इनकार कर दिया. तब से रोहिंग्या मुसलमान बिना देश वाले लोग बन कर रह रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्ट्स में जिक्र हुआ कि रोहिंग्या दुनिया के ऐसे मुसलिम हैं जिन का सब से ज्यादा दमन हुआ.

बर्मा के सैनिक शासन ने 1982 में उन के सभी राइट्स छीन लिए. तब से आज तक उन का उत्पीड़न रुका नहीं है. वे जहां भी बसने की कोशिश करते हैं, उन की बस्तियों को आग के हवाले कर दिया जाता है, उन की जमीनें हड़प ली जाती हैं, घर और मसजिदें तोड़ दी जाती हैं और उन्हें उन की जगह से खदेड़ दिया जाता है. म्यांमार में उन्हें स्कूल, मकान, दुकानें और मसजिदें बनाने की इजाजत नहीं है. आज हर तरफ से खदेड़े जा रहे रोहिंग्या मुसलमान समुद्र की लहरों में अपनी इहलीला समाप्त करने के लिए मजबूर हैं.

18 साल से युद्ध की आग में जल रहे अफगानिस्तान की 2 एकदम विपरीत तसवीरें दिखाई देती हैं. एक तरफ जहां तालिबान के साथ अमेरिका शांतिवार्त्ता करतेकरते रुक गया है, वहीं दूसरी ओर कुंदूज-हेलमंड जैसे उत्तरी क्षेत्रों में अफगान सुरक्षाबलों और तालिबान लड़ाकों के बीच घातक संघर्ष छिड़ा हुआ है.

एक तरफ अफगानियों और तालिबानियों के बीच वर्चस्व की जंग के बीच अमेरिका अफगानिस्तानी सेना की मदद का ढोंग कर के अपना उल्लू सीधा करने में लगा है तो दूसरी ओर 9/11 की 18वीं बरसी पर अफगानिस्तान में अमेरिकी दूतावास पर जबरदस्त हमले के बाद अलकायदा सरगना ने मुसलमानों से अमेरिका, रूस, यूरोप और इसराईल को तबाह कर देने का आह्वान किया है.

एक अनुमान के मुताबिक, अफगानिस्तान पर नियंत्रण के लिए 18 साल से जारी संघर्ष में विदेशी फौजों के अलावा 3,50,000 अफगान सैनिक और पुलिसकर्मी मोरचे पर डटे हैं. जबकि दूसरी ओर तालिबान की ओर से 40 हजार के करीब लड़ाके युद्ध कर रहे हैं. देश के 58 फीसदी हिस्से पर अफगान सुरक्षाबलों का, जबकि 19 फीसदी इलाके पर तालिबान का कब्जा है. शेष 22 फीसदी इलाके पर नियंत्रण के लिए संघर्ष जारी है. आएदिन बम धमाकों से गूंजने वाले इस देश में आम मुसलमान बड़ी संख्या में हताहत हो रहे हैं.

अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए अमेरिका ने अपनी बहुत बड़ी फौज लगा रखी है. कथिततौर पर वह तालिबान पर जल्द सम झौते का दबाव भी बना रहा है और कह रहा है कि ऐसा होने पर वह अपनी सेना वहां से हटा लेगा. हालांकि, उस की मंशा कतई साफ नहीं है. अमेरिका अपने सैनिकों को वहां से पूरी तरह हटाने का इच्छुक नहीं है. अभी अफगानिस्तान में नाटो और सहयोगी देशों के 30 हजार से अधिक सैनिक हैं, जिन में से 14,500 अमेरिकी सैनिक हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन में से अधिकांश सैनिकों को वापस बुलाना चाहते हैं, लेकिन 8,600 सैनिकों को स्थायीतौर पर निगरानी के लिए वे वहां रखने की मंशा भी रखते हैं. तालिबान इस के लिए कतई राजी नहीं है.

कतर में अमेरिका और तालिबान के बीच 9 दौर की शांतिवार्त्ताएं हो चुकी हैं. तालिबान की शर्त है कि अमेरिकी सुरक्षा बल पूरी तरह अफगानिस्तान से बाहर निकल जाएं. दूसरी ओर अमेरिका तालिबान से यह गारंटी चाहता है कि उस के सैनिकों के जाने के बाद अफगानिस्तान की जमीन आईएसआईएस और अलकायदा जैसे अमेरिका विरोधी या ईसाईयत विरोधी आतंकी संगठनों की शरणस्थली नहीं बनेगी. जबकि तालिबान ऐसी कोई गारंटी देने को तैयार नहीं है. लिहाजा, शांतिवार्त्ताओं का सिर्फ नाटक भर चल रहा है और इस की आड़ में आम मुसलमान का सफाया हो रहा है.

सवाल ये हैं कि अगर अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से चले जाते हैं तो तालिबान की अफगानिस्तान की सत्ता में कितनी और कैसी हिस्सेदारी होगी? तालिबान के कट्टर राज का पुराना अनुभव देखते हुए क्या अफगान समाज शासन में तालिबान की भागीदारी को सहन करने के लिए तैयार होगा? सरकार का सैटअप कैसा होगा? सिविल सोसाइटी और अन्य सामाजिक संगठनों के लिए तालिबान को सत्ता में स्वीकार करना क्या आसान होगा? इन सवालों के जवाब मिले बगैर इस इलाके में न कभी शांति आएगी और न आम नागरिक चैन से जीवन बसर कर पाएगा.

पाकिस्तान, पाकिस्तान समर्थित तालिबान और चीन की क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाएं अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता को बनाए रखना चाहती हैं और आगे भी उन की साजिशें चलती रहेंगी. वहीं, तेल भंडारों पर गिद्ध नजर जमाए अमेरिका भी इस क्षेत्र को छोड़ने की मंशा नहीं रखता है. वह तो बस अफगानियों और तालिबानियों के बीच आग में घी  झोंकने का काम ही करता रहा है.

यूनाइटेड नेशन के अनुसार, पिछले एक साल में अफगानिस्तान के संघर्ष में लगभग 5 हजार नागरिकों की जानें जा चुकी हैं, जिन में 900 बच्चे शामिल थे. जबकि 7 हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं. लड़ाई थम नहीं रही, बल्कि तेज हो रही है.

अफगान लोकल मीडिया के अनुसार, कुंदूज, तकहार, बदक्शन, बल्ख, फराह और हेरात में नियंत्रण के लिए तालिबान और अफगान सेनाओं में घमासान संघर्ष छिड़ा हुआ है. इस लड़ाई के कारण काबुलबाघलान और बाघलानकुंदूज हाईवे भी ब्लौक हैं. पूरा का पूरा उत्तरी अफगानिस्तान वार जोन में तबदील हो चुका है. अगस्त माह के आखिरी दिन और सितंबर महीने के शुरुआती दिनों में हुए हिंसक संघर्ष अफगानिस्तान के वार जोन बनने की कहानी कह रहे हैं.

इसलाम और ईसाईयत की जंग के बीच अब बौद्ध भी कूद पड़े हैं. बहती गंगा में सभी हाथ धोना चाहते हैं. पाकिस्तानी मुसलमानों का हिमायती बना चीन खुद अपने देश में मुसलमानों का उत्पीड़न करने पर आमादा है. पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में चीन ने मुसलमानों के लिए बाकायदा नजरबंदी बस्तियां बना रखी हैं, जिस में लाखों मुसलमानों को नजरबंद कर के रखा गया है. चीन ने पिछले कुछ सालों में ऐसी तमाम जेल सरीखी इमारतें शिनजियांग सूबे में खड़ी की हैं.

अमेरिकी सरकार का आकलन है कि अप्रैल 2017 से चीनी अधिकारियों ने उइगर, कजाक और अन्य मुसलिम अल्पसंख्यक समुदायों के कम से कम 20 लाख लोगों को अपने नजरबंदी शिविरों में अनिश्चितकाल के लिए बंद कर रखा है. सूचनाओं के अनुसार, हिरासत में रखे गए ज्यादातर लोगों के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया है और उन के परिजनों को उन के ठिकानों के बारे में बेहद कम या कोई जानकारी नहीं है.

पिछले दिनों चीन के शिनजियांग प्रांत में मुसलिम व्यापारियों में तब हड़कंप मच गया जब वहां 200 से अधिक मुसलिम व्यापारियों की पत्नियां लापता हो गईं. मुसलिम व्यापारियों की पत्नियां कहां हैं, इस विषय में किसी के पास कोई जानकारी नहीं है. जब इस गंभीर मामले की शिकायत चीनी अधिकारियों से की गई तो उन्हें बस इतना कह कर रवाना कर दिया गया कि उन की पत्नियों को शैक्षणिक केंद्र ले जाया गया है. पत्नियों के यों अचानक गायब होने से शिनजियांग प्रांत के उइगर मुसलामानों के मन में डर बैठ गया है.

दिलचस्प बात यह है कि पहले तो चीन ने इस तरह की किसी भी हरकत से साफ इनकार कर दिया था, मगर जब उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ा तब उस ने माना कि उस ने ऐसे कैंप बना रखे हैं जहां लोगों को जबरन रखा जाता है. चीन के अनुसार, ये व्यावसायिक शिक्षा केंद्र हैं जहां उइगर मुसलमानों को रखा गया है. कैदी मुसलमानों पर उन के धर्म और संस्कृति की रवायतों को छोड़ कर बौद्ध रवायतों को सीखने और उन्हें कुबूल करने का दबाव इन केंद्रों में बनाया जाता है और इस जबरदस्ती को छिपाने के लिए चीन तालीम का परदा तान कर बैठ गया है.

चीन द्वारा निर्मित ये शैक्षिक केंद्र कैसे हैं, यदि इसे सम झना हो तो उन लोगों की बातें जरूर सुननी चाहिए जो इन कैंपों से सुरक्षित बाहर निकले हैं. इन लोगों के अनुसार, कैंप के हालात बहुत खराब हैं. उन शिविरों में नमाज सहित अन्य धार्मिक रीतियों पर प्रतिबंध है. साथ ही, कैंपों में रहने वाले लोगों को बाध्य किया जाता है कि वे ऐसा कोई भी काम न करें जो कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा के विपरीत हो.

दिलचस्प है कि चीन में उइगर या वीगर मुसलमानों के खिलाफ जारी क्रूरता पर तमाम मुसलिम देशों में खामोशी छाई हुई है. दुनियाभर के मानवाधिकार संस्थान इस मामले में चुप्पी साधे हैं. पहली बार तुर्की ने

10 फरवरी को चीन के खिलाफ आवाज उठाई थी और उन शिविरों को बंद करने की मांग की थी. तुर्की के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हामी अक्सोय ने कहा था कि चीन का यह कदम मानवता के खिलाफ है. मगर तुर्की के अलावा दुनिया के किसी भी मुसलिम देश या अन्य देशों ने चीन के इस रुख के खिलाफ एक लफ्ज नहीं बोला.

हाल ही में सऊदी अरब के क्राउन पिं्रस मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान, भारत और चीन का दौरा किया. जब प्रिंस सलमान से चीन में उइगर मुसलमानों को नजरबंदी शिविरों में रखे जाने पर सवाल पूछे गए तो उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से चीन का बचाव ही किया. सलमान ने कहा, ‘चीन को आतंकवाद के खिलाफ और अपने राष्ट्र की सुरक्षा में कोई भी कदम उठाने का पूरा अधिकार है.’ प्रिंस सलमान ने इसे आतंकवाद और अतिवाद के खिलाफ लड़ाई करार दिया.

हैरत की बात है कि चीन में बेहद कठिन परिस्थितियों में जीवन जीने वाले इन गरीब उइगर मुसलमानों को रहनेखाने तक के लाले पड़े हुए हैं. वे अपनी औरतोंबच्चों की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं. उसी मुसलिम कौम से ताल्लुक रखने वाले प्रिंस सलमान अपने स्वार्थवश उन पर आतंकवादी या अतिवादी होने का लांछन लगा रहे हैं.

वाशिंगटन पोस्ट अपने एक संपादकीय में लिखता है कि – ‘क्राउन प्रिंस सलमान का चीन का बचाव करना बिलकुल स्वभाविक है. इस बचाव को आसानी से सम झा जा सकता है. चीन ने हाल ही में सऊदी के गोपनीय रूप से एक पत्रकार की हत्या के अधिकार का समर्थन किया था और इसे उस का आंतरिक मामला कहा था. आप का नजरबंदी शिविर आप का आंतरिक मामला है और हत्या के लिए मेरी साजिश मेरा आंतरिक मामला है. कमाल की बात है. हम लोग एकदूसरे को बखूबी सम झते हैं.’

गौरतलब है कि हाल ही में तुर्की में सऊदी मूल के पत्रकार जमाल खागोशी की हत्या हुई थी. यह हत्या सऊदी के दूतावास में हुई थी. इस मामले में सऊदी ने कई  झूठ बोले और बाद में उस के सारे  झूठ पकड़े भी गए. खागोशी की हत्या के बाद ऐसे कई तथ्य सामने आए जिन से पता चलता है कि सऊदी अरब की सरकार इस हत्याकांड में शामिल थी. मगर चीन ने इसे सऊदी का आंतरिक मामला बता कर खामोशी ओढ़ ली.

उधर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी चीन में मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार पर असामान्य रूप से खामोश रह जाते हैं. यही नहीं, पाकिस्तान में इसलाम के नाम पर कई चरमपंथी संगठन सक्रिय हैं, लेकिन ये चरमपंथी संगठन भी चीन के खिलाफ कोई बयान नहीं देते हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सेना के अत्याचार की निंदा तो करते हैं, मगर चीन में मुसलमानों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, उस पर खामोश रहते हैं. उन की मजबूरी भी सम झी जा सकती है.

पाकिस्तान और चीन की दोस्ती जगजाहिर है. काफी समय से चीन पाकिस्तान का मददगार बना हुआ है. वह पाकिस्तान में चाइनापाकिस्तान इकोनौमिक कौरिडोर के तहत 60 अरब डौलर का निवेश कर रहा है. दूसरी तरफ पाकिस्तान पर चीन के अरबों डौलर का कर्ज भी है. तीसरी बात यह है कि पाकिस्तान कश्मीर विवाद में चीन को भारत के खिलाफ एक मजबूत पार्टनर के तौर पर देखता है. ऐसे में पाकिस्तान चीन में उइगर मुसलमानों के खिलाफ चुप रहना ही ठीक सम झता है. दुनियाभर के मुसलिमबहुल देश इंडोनेशिया, मलयेशिया, सऊदी और पाकिस्तान चीन में प्रताड़ना शिविरों के अंदर आम मुसलमानों पर हो रहे जुल्मों पर खामोश हैं.

आस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी में चाइना पौलिसी के ऐक्सपर्ट माइकल क्लार्क मुसलिम देशों की इस खामोशी का कारण चीन की आर्थिक शक्ति और पलटवार के डर को मुख्य कारण मानते हैं. क्लार्क का कहना है, ‘‘म्यांमार के खिलाफ मुसलिम देश इसलिए बोल लेते हैं क्योंकि वह कमजोर देश है. उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाना आसान है. म्यांमार जैसे देशों की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था 180 गुना बड़ी है. उस को नाराज करना या उस से टकराना उन के बस की बात नहीं है.’’

मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका में चीन 2005 से अब तक 144 अरब डौलर का निवेश कर चुका है. इसी दौरान मलयेशिया और इंडोनेशिया में चीन ने 121.6 अरब डौलर का निवेश किया है. चीन ने सऊदी अरब और इराक की सरकारी तेल कंपनियों में भी भारी निवेश कर रखा है. इस के साथ ही चीन ने अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना ‘वन बेल्ट वन रोड’ के तहत एशिया, मध्यपूर्व और अफ्रीका में भारी निवेश का वादा कर रखा है. इसलिए चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को ले कर मुसलिम देश खामोश रहना ही ठीक सम झते हैं. सऊदी अरब के क्राउन पिं्रस सलमान ने तो चीन का बचाव कर इस खामोशी को मान्यता ही दे दी है.

पश्चिमी शिक्षा का विरोधी बोको हराम

नाइजीरिया

बोको हराम नाइजीरिया का एक आतंकी संगठन है जिस का आतंक उत्तरी अफ्रीका के देशों में फैला हुआ है. इस संगठन को इसलामिक स्टेट्स औफ वैस्ट अफ्रीका प्रौविंस यानी आईएसडब्लूएपी के नाम से भी जाना जाता है. नाइजीरिया में सक्रिय आतंकी संगठन बोको हराम किसी दूसरे आतंकी संगठन की तरह ही एक के बाद एक आतंकी वारदातों को अंजाम देता रहा है.

बोको हराम एक अरबी शब्द है जिस का मतलब है – ‘पश्चिमी शिक्षा हराम.’ इस संगठन का औपचारिक नाम ‘जमात ए अहले सुन्नी लिदावती वल जिहाद’ है. इन अरबी शब्दों का मतलब है कि वे लोग जो पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा में और जिहाद फैलाने में यकीन रखते हैं. इस संगठन का केंद्र नाइजीरिया का मेदुगुरी शहर रहा है. वहीं इस का मुख्यालय था. वर्ष 1903 में उत्तरी नाइजीरिया, निजेर और दक्षिणी केमरून के इलाके जब से ब्रिटेन ने अपने नियंत्रण में लिए, तब से वहां पश्चिमी शिक्षा का विरोध जारी है. वर्ष 2002 में बोको हराम का गठन हुआ. इस का संस्थापक नाईजीरियाई मुसलिम नेता मोहम्मद यूसुफ था.

बोको हराम का मकसद बच्चों को पश्चिमी शिक्षा से दूर कर इसलामिक शिक्षा देना है. इस संगठन का राजनीतिक मकसद इसलामिक स्टेट का गठन करना है. अपने उद्देश्यों को पाने के लिए और अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए वर्ष 2009 में बोको हराम ने सरकारी इमारतों पर हमले किए. तब से नाइजीरियाई पुलिस और बोको हराम के बीच विवाद जारी है. सरकारी इमारतों पर हमले के बाद से दोनों के बीच जो जंग शुरू हुई, उसे विराम तब मिला जब पुलिस ने बोको हराम के मुख्यालय पर कब्जा कर उस के संस्थापक मोहम्मद यूसुफ को मार डाला.

वर्ष 2010 में इस संगठन ने फिर अपना सिर उठाया. उस वक्त संगठन से जुड़े कुछ लोगों ने जेल पर हमला कर के अपने साथियों को छुड़वा लिया. इस बार आतंक फैलाना इस संगठन का मकसद था. बोको हराम अब न सिर्फ नाइजीरिया तक सीमित है, बल्कि उस ने विस्तार कर पड़ोसी देशों पर भी हमले शुरू कर दिए हैं.

नाइजीरिया की सेना और पुलिस की ओर से 2009 में इस कट्टरपंथी संगठन के खिलाफ कई औपरेशन चलाए गए. इस दौरान वहां 20 हजार लोग मारे गए और 26 लाख बेघर हुए. लेकिन वर्ष 2014 तक इस संगठन ने अपने हमलों में दोगुनी वृद्धि कर ली. इस की बढ़ती शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आतंकी घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से वर्ष 2013 में नाइजीरिया जहां 5वें स्थान पर था, वहीं वर्ष 2014 में यह दूसरे स्थान पर पहुंच गया. दूसरे आंतकी संगठनों से प्रशिक्षण मिलने के बाद समूह ने विस्फोटकों और बमों का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया. मशीनगनों के इस्तेमाल से सामूहिक कत्लेआम इस आतंकी संगठन की विशिष्ट पहचान रही है.

बोको हराम अब तक सैकड़ों स्कूली बच्चों का अपहरण कर चुका है, लेकिन हाल ही में उस ने 200 लड़कियों को एकसाथ अगवा कर दुनियाभर में दहशत फैला दी थी. आर्म्ड कनफ्लिक्ट लोकेशन ऐंड इवैंट डेटा प्रोजैक्ट के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014 में बोको हराम के हमलों में 6,347 लोग मारे गए थे. साल 2015 की शुरुआत में ही बोको हराम ने एक ही दिन में 2,000 लोगों की हत्या कर दी थी. यह बोको हराम का अब तक का सब से बड़ा हमला माना जाता है. इंटरनैशनल और्गेनाईजेशन फौर माइग्रेशन के अनुसार, बोको हराम के आतंक से अब तक 10 लाख से भी ज्यादा लोग अपने घर छोड़ कर भाग चुके हैं.

बोको के आत्मघाती हमलावरों ने वर्ष 2018 के फरवरी माह में नाइजीरिया के राज्य बोर्नो के शहर मीदुगुरी के स्थानीय बाजार में लोगों के बीच स्वयं को धमाके से उड़ा लिया था. लगातार 3 आत्मघाती हमलों से यह पूरा क्षेत्र थर्रा उठा था और लोग जान बचाने के लिए चीखपुकार करने लगे थे. इन धमाकों के बाद मार्केट में भगदड़ मच गई, जिस के चलते भी कई लोगों की जानें गईं. यह घटना मीदुगुरी के भीड़भाड़ वाले मछली बाजार में हुई थी, जिस में 22 लोग हताहत हुए और 70 से अधिक घायल, जिन में 3 हमलावर पुरुष भी शामिल थे, जिन्होंने माना कि ये हमले बोको हराम की ओर से किए गए थे.

नाइजीरिया में बोको हराम जैसे चरमपंथी संगठन को एक तरफ जहां गरीबी और अशिक्षा से ताकत मिल रही है, वहीं, दूसरी तरफ तेल और हथियारों के अवैध कारोबार से यह और मजबूत होता जा रहा है. नाइजीरिया में ईसाइयों का वर्चस्व है, लेकिन वे मोहम्मद बुहारी का समर्थन करते हैं, ताकि वे बोको हराम के खिलाफ कार्रवाई करें तो विरोध न हो. दरअसल, सारी साजिश तेल के कुओं के इर्दगिर्द है. मामला सेना का नहीं, बल्कि गरीबी, अशिक्षा और तेल के भंडार का है. और इसी कारण बोको हराम बना हुआ है.

 तेल के खेल में बरबाद पश्चिम एशिया

विश्व राजनीति में पश्चिम एशिया एक ऐसे क्षेत्र के तौर पर कुख्यात हो चुका है जहां केवल आतंक, अशांति और अराजकता का बोलबाला है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से मिडिल ईस्ट या पश्चिम एशिया कई छोटेबड़े युद्ध और अनगिनत हिंसक  झगड़े  झेल चुका है. फतह और हमास द्वारा फिलिस्तीन के अलगअलग इलाकों पर कब्जा करने के बाद तो पश्चिम एशिया का सामरिक वातावरण और उल झ गया.

आज पूरा पश्चिम एशिया समस्याग्रस्त है और अमेरिकी विदेश नीति के पास इन समस्याओं से जू झने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं है. अगर आतंक के खिलाफ विश्वव्यापी जंग की बात करें, तो वर्तमान हालात यही इशारा कर रहे हैं कि अमेरिका शांति स्थापना के अपने कथित प्रयासों में फेल है. सच तो यह है कि शांति स्थापना की आड़ में पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, ने अपने स्वार्थ के लिए पश्चिम एशिया के शासकवर्ग को अपने पक्ष में कर रखा है, ताकि वह बिना रोकटोक यहां के खनिज खासकर पैट्रोलियम को अपने देश में आयात कर सके.

पिछले एक दशक में जब से ऊर्जा के मामले में अमेरिका की आत्मनिर्भरता बढ़़ी है, तब से अमेरिकी नीति केवल तेल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के बजाय आपूर्ति के स्रोत पर नियंत्रण की दिशा में काम करने लगी है. अब यह एक सामान्य स्थिति बन गई है, लेकिन इस के साथ ही इस सामान्यता की पुनरावृत्ति भी हो रही है.

पश्चिम एशिया क्षेत्र में बारबार उत्पन्न होने वाला तनाव ईरान-प्रायोजित आतंकवाद पर केंद्रित नहीं है, बल्कि इस का मंतव्य ईरान द्वारा उत्पादित तेल पर नियंत्रण करना है. सुन्नी मुसलिमों के रहनुमा और अगुआ माने जाने वाले सऊदी अरब को अपने प्रभाव में लेने के बाद अमेरिका अब शिया इसलामी विश्व (इराक, ईरान, सीरिया) पर पूर्ण नियंत्रण करने का प्रयास कर रहा है.

पिछले भाग में आप ने पढ़ा

एक ही स्रोत से निकले 3 धर्म – यहूदी, ईसाई और मुसलमान – कैसे दुनिया में अपने वर्चस्व के लिए एकदूसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं. तेल के ज्यादातर कुएं चूंकि मुसलिम देशों के पास हैं, इसलिए सदियों से ईसाई और यहूदी समुदाय कहीं परदे के पीछे से, तो कहीं सामने से इस खजाने पर अपना हक जमाने की साजिशें रचने में जुटे हैं. जिस के चलते अधिकांश मुसलिम देश खूनखराबे और आतंकवाद से जू झ रहे हैं.

मुसलिम देशों में दहशतगर्दी फैलाने, उन्हें बरबाद करने और उन पर आतंकवाद का लेबल चस्पा करने में पश्चिमी देशों की साजिशें इसलिए सफल हैं क्योंकि मुसलमान कहीं भी एकजुट नहीं है. कबीलियाई संस्कृति से प्रभावित मुसलमान आपस में बेतरह बंटे हुए हैं, जिस का फायदा पश्चिमी मुल्क खूब उठा रहे हैं.

ईसाई और यहूदी समुदाय मुसलमानों को आपस में लड़वाने और खत्म करने का कोई अवसर नहीं खोते. बेवकूफ मुसलमान नेताओं को आपस में लड़वाने के लिए पश्चिमी देश पहले उन्हें अत्याधुनिक हथियार और  गोलाबारूद मुहैया कराते हैं और जब वे आपस में लड़ते हैं, कत्लोगारत मचाते हैं, तबाही फैलाते हैं तो रूस और अमेरिका जैसे ताकतवर देश शांतिदूत बन कर उन का सफाया करने के लिए वहां पहुंच जाते हैं. यह तमाशा लगभग पूरी दुनिया में जारी है.

पूरी दुनिया में मुसलमान हताहत हो रहा है. मुसलमानों को मारनेखदेड़ने और उन से उन की धार्मिक पहचान छीन लेने का यह सिलसिला बढ़तेबढ़ते अब चीन, जापान, अफ्रीका, भारत, म्यांमार तक आ पहुंचा है.

रिटायरमैंट के क्विक लौस

मेरे रिटायरमैंट का दिन नजदीक आते ही मेरे आसपास के लोग मेरा मन बहलाने के लिए मुझे सपने दिखाते रहे कि रिटायर होने के बाद जो मजा है, वह सरकारी नौकरी में रहते नहीं. लेकिन रिटायरमैंट के बाद मेरे जो क्विक लौस हुए उन्हें मैं ही जानता हूं.

रिटायर होने के 4 दिनों बाद ही पता चल गया कि रिटायर होने के कितने क्विक लौस हैं. लौंग टर्म लौस तो धीरेधीरे सामने आएंगे. आह रे रिटायरी. बीते सुख तो कम्बख्त औफिस में ही छूट गए रे भैये. रिटायरमैंट के बाद के सब्जबाग दिखाने वालो, हे मेरे परमादरणियो, मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें कभी समय पर पैंशन न मिले.

बंधुओ, घर के कामों से न मैं पहले डरता था, न अब डरता हूं. इन्हीं कम्बख्त घर के कामों के कारण ही तो हर रोज लेट हो जाने के बाद अगले दिन समय पर औफिस जाने की कसम खा कर भी रिटायर होने तक समय पर औफिस न पहुंचा.

वैसे मु झे इस बात पर पूरा संतोष है कि मैं ने सरकारी नौकरी में रहते घर के कामों को औफिस के कामों से अधिक प्राथमिकता दी, इन की, उन की, सब की तरह. औफिस के कामों का क्या? वे तो होते ही रहते हैं. आज नहीं तो कल. कल नहीं तो परसों. परसों नहीं तो चौथे. और जो ज्यादा ही हुआ तो अपना काम सरका दिया किसी दूसरे की ओर. पर घर के काम तो भाईसाहब आप को ही करने होते हैं, अपने हिस्से के भी, अपनी बीवी के हिस्से के भी घर में शांति रखनी हो तो. वरना, महाभारत के लिए कुरुक्षेत्र ढूंढ़ने की कतई जरूरत नहीं.

दूसरी ओर, जोजो औफिस के कामों को कम घर के कामों को अधिक प्राथमिकता देते हैं, उन का घर नरक होते हुए भी स्वर्ग होता है. और जो औफिस के कामों को अधिक प्राथमिकता देते हैं और घर के कामों से हाथ चुराते हैं वे रिटायरमैंट के बाद तो छोडि़ए, रिटायर होने से पहले ही स्वर्ग जैसे औफिस में रहने के बाद भी नरक ही भोगते हैं.

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जौब लगने से ले कर रिटायरमैंट तक लेट औफिस जाने, जाने तो जाने, न जाने तो न जाने का, बिन छुट्टी लिए औफिस से जल्दी घर आने का मु झे तनिक भी मलाल नहीं क्योंकि मैं उस देश का वासी हूं जहां जल्दी तो सब को रहती है, पर समय पर कोई कहीं भी नहीं पहुंचता.

तो मित्रो, अब मैं फील कर रहा हूं कि रिटायरमैंट के बाद मेरा सब से बड़ा क्विक लौस जो हुआ है, वह यह है कि अब मैं सरकारी पैसे पर निजी मस्ती करने नहीं जा सकूंगा. सरकारी नौकरी में रहते सरकार के पैसों पर घूमने के आप के पास हजारों बहाने होते हैं. न भी हों तो भी किसी भी बहाने घूमने की अति आवश्यक जरूरत बता बहाने बना लिए जाते हैं. बस, आप के पास  झूठा इनोवेटिव दिमाग होना चाहिए.

ऐसा करने से सरकारी कामों में गतिशीलता बनी रहती है. बाहर के लोगों से संपर्क बढ़ते हैं जो रिटायरमैंट से पहले और रिटायरमैंट के बाद बड़े काम आते हैं. वैसे भी, जो मैं ने रिटायरमैंट तक फील किया, वह यह कि सरकारी नौकरी मेलमिलाप के सिवा और कुछ भी नहीं, काम तो जाए भाड़ में.

जब हम अंगरेजों के रहते हुए भी सरकारी काम का बहिष्कार सीने पर गोली खाने के बाद कर सकते हैं तो भाईसाहब, अब तो हम आजाद हैं, आजाद. और आजाद भी ऐसे कि हमारी आजादी हम सब से कुछ करवा सकती है पर, औफिस में काम कदापि नहीं करवा सकती. हम और तो सब कुछ कर सकते हैं, पर औफिस में रह कर औफिस का काम नहीं कर सकते, तो बस, नहीं कर सकते. जिस में दम हो, करवा कर देख ले. चौथे दिन अपनेआप ही काम करना न भूल जाए तो रिटायरमैंट के बाद उस का जूता मेरा सिर.

सच कहूं तो अपनी जेब से पैसे दे कर आज तक मैं शौचालय भी नहीं गया था. शौचालय जाता तो उस का 5 के बदले 50 रुपए का बिल ले औफिस आ कर वापस ले लेता. कई बार तो मैं ने ऐसा भी किया कि शौच खुले में कर दिया और शौचालय वाले से बिल ले उसे सगर्व औफिस में प्रोड्यूस कर रीइंबर्स करवा लिया. अब मैं सच बोल कर अपना मन हलका कर लेना चाहता हूं. सो, जो शौचालय के बाहर जानपहचान का निकल आता, उस से अलतेचलते यों ही 50 रुपए का बिल ले लेता. शौच के जाली बिल के 10 रुपए निकालने वाला खा लेता, 40 अपुन रख लेते अदब से.

दूसरा क्विक लौस जो मैं फील कर रहा हूं वह यह कि घर में अब सारा दिन इस भीषण गरमी में पंखा पूरी स्पीड में चलाना पड़ रहा है. पड़ेगा ही, अपने मीटर के साथ. औफिस में ऐसीऐसी गंदी आदतें पड़ गई थीं कि अब पता चल रहा है कि वे गंदी नहीं, बहुत गंदी आदतें थीं. औफिस में कई बार तो हीटर और पंखा तक एकसाथ चला देता था. पर अब 2 दिन में ही घर के पंखे को औन करने में भी दम निकल रहा है. अभी से ही यह हाल है तो सर्दी में सूरज ही जाने, हीटर कैसे लगा पाऊंगा?

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रिटायरमैंट का एक और क्विक लौस जो मैं फील कर रहा हूं वह यह भी है कि औफिस में तो जिसे जो मन में आता था, बक देता था. बेचारे प्यून टेबल साफ होने के बाद भी मेरे गालियां देने पर साफ करते रहते थे. इतना साफ कि हर महीने टेबल का माइका नया लगवाना पड़ता था. इस बहाने लाख पगार लेने वाले के ऊपर या नीचे कहीं से भी 2-4 सौ और बन जाते थे. पर अब घर में सब मु झ पर बकते रहते हैं. जबकि मु झे बेवजह अपने पर बकना तक पसंद नहीं.

रिटायरमैंट का एक और क्विक लौस…कल तक जो कुत्ता मेरे घर से औफिस जाने और औफिस से घर आने पर मेरे तलवे चाटता था, आज मु झे उसी के तलवे चाटने पड़ रहे हैं. जिस बंदे ने औफिस में सब को उंगलियों पर नचाया, आज वही घर, गली के गधे से गधे की उंगलियों पर नाचने को विवश है.

कुल मिला कर, जमा के नाम पर कुछ नहीं, सब घटघटा कर ही अपनी हालत वह हो गई है कि… अपने रिटायरमैंट के कगार पर बैठे मित्रों से सारे सच कहना चाहता हूं पर इस बात से डरता हूं कि कल को कहीं वे रिटायर होने के डर के बदले एक्सटैंशन की टैंशन ले कर वैसे ही रिटायर न हो जाएं.

इसबगोल की जैविक खेती

इसबगोल एक महत्त्वपूर्ण नकदी व औषधीय फसल है. इसबगोल को स्थानीय भाषा में घोड़ा जीरा भी कहते हैं. विश्व की कुल पैदावार की 80 फीसदी इसबगोल की पैदावार भारत में होती है. इस की खेती मुख्य रूप से राजस्थान व गुजरात में की जाती है. इसबगोल को मुख्यतया दानों के लिए उगाया जाता है, पर इस का कीमती भाग इस के दानों पर पाई जाने वाली भूसी है, जिस की मात्रा बीज के भार की 27-30 फीसदी तक होती है.

इसबगोल के भूसी रहित बीजों का इस्तेमाल पशुओं व मुरगियों के लिए आहार बनाने में किया जाता है.

साथ ही, इसबगोल का इस्तेमाल आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपैथिक इलाजों में किया जाता है. इस के अलावा इस का इस्तेमाल रंगाईछपाई, आइसक्रीम, ब्रेड, चौकलेट, गोंद और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में भी होता है.

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उन्नत किस्में

आरआई 89 : यह किस्म राजस्थान की पहली उन्नत किस्म?है. इस के पौधों की ऊंचाई 30-40 सैंटीमीटर होती है. यह 110-115 दिनों में पक कर तैयार हो जाती?है. इस की उपज 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरआई 1 : सूखे और कम सूखे इलाकों के लिए मुनासिब इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 29-47 सैंटीमीटर होती?है. यह 115-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस की औसत उपज 12-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

जलवायु व जमीन

इसबगोल के लिए ठंडी व शुष्क जलवायु अच्छी मानी जाती है. बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए 20-25 डिगरी सैल्सियस के बीच का तापमान अच्छा माना जाता है. इस के पकने की अवस्था पर साफ, सूखा व धूप वाला मौसम बहुत अच्छा रहता?है. पकाव के समय बारिश होने पर इस के बीज सड़ने लगते?हैं और बीजों का छिलका फूल जाता?है. इस से इस की पैदावार व गुणवत्ता में कमी आ जाती है. इस की खेती के लिए दोमट, बलुई मिट्टी, जिस में पानी के निकलने की अच्छी व्यवस्था हो, अच्छी रहती?है.

खेत की तैयारी

खरीफ फसल की कटाई के बाद खेत की 2-3 बार जुताई कर के मिट्टी को?भुरभुरी बनाएं और फसल से?ज्यादा पैदावार लेने के लिए 5-6 टन सड़ी गोबर की खाद या 3 टन सड़ी देशी खाद व फसल के अवशेष 3 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. जैव उर्वरकों के?रूप में 5 किलोग्राम पीएसबी व 5 किलोग्राम एजोटोबेक्टर प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत में डालें.

बीज दर व बोआई

इसबगोल का बीज बहुत छोटा होता है. इसे क्यारियों में छिटक कर मिट्टी में मिलाना चाहिए. इस के फौरन बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. इस प्रकार छिटक कर बोआई करने के लिए 4-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.

बीजोपचार : इसबगोल की जैविक खेती के तहत फसल को तुलासिया रोग से बचाने के लिए बीजों में नीम, धतूरा व आक की सूखी मिश्रित पत्तियों (1:1:1) से बना पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाएं.

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खरपतवारों की रोकथाम

इसबगोल में 2-3 निराइयों की जरूरत होती है. पहली निराई बोआई के तकरीबन 20 दिनों बाद व दूसरी निराई 40-45 दिनों बाद कर के फसल को खरपतवारों से बचाएं. इस से तुलासिया रोग का हमला भी कम होता है.

सिंचाई

इसबगोल में बोआई के समय, उस के 8 दिनों, 30 दिनों व 65 दिनों बाद सिंचाई करने से अच्छी उपज हासिल होती है.

इसबगोल की फसल में?क्यारी विधि के बजाय फव्वारा विधि द्वारा 6 सिंचाइयां (बोआई के समय और 8, 20, 40, 55 व 70 दिनों बाद) करने से अच्छी उपज मिलती है.

कीट व रोग

रोगग्रस्त फसल के अवशेषों को खेत से बाहर कर के नष्ट कर देना चाहिए. गरमी में गहरी जुताई कर के खेत खाली छोड़ें. फसल चक्र अपनाएं यानी बारबार एक ही खेत में इसबगोल की खेती न करें. स्वस्थ, प्रमाणित व रोगरोधी किस्मों का चयन करें.

खेत में इस्तेमाल की जाने वाली गोबर की खाद अच्छी तरह से सड़ी हुई होनी चाहिए. खेत में ट्राइकोडर्मा कल्चर 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अंतिम जुताई के समय मिलाएं. इसबगोल की जैविक खेती में नीम, धतूरा, आक की सूखी पत्तियों के पाउडर को 1:1:1 के अनुपात में मिला कर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें.

फसल को रोगों व मोयले से बचाने के लिए 12 पीले चिपचिपे पाश यानी फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं. दीमक से बचाव के लिए जमीन में बेवेरिया बेसियाना या मोटाराइजियम (मित्र फफूंद) 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिलाएं. पर्णीय छिड़काव के रूप में नीम की पत्तियों का अर्क, धतूरा (10 फीसदी) व गौमूत्र (10 फीसदी) का इस्तेमाल मृदरोमिल आसिता और मोयले की रोकथाम के लिए करें. जरूरत के मुताबिक दोबारा छिड़काव करें.

कटाई, मड़ाई व ओसाई

इसबगोल में 25 से 125 तक कल्ले निकलते?हैं. पौधों में 60 दिनों बाद बालियां निकलना शुरू होती?हैं. तकरीबन 115-130 दिनों में फसल पक कर तैयार हो जाती है.

फसल पकने पर सुनहरी पीली बालियां गुलाबीभूरी हो जाती?हैं और बालियों को दबाने पर दाने बाहर आ जाते हैं.

फसल के पूरी तरह पकने के 1-2 दिन पहले ही फसल को काट लेना चाहिए. कटाई सुबह के समय करें, जिस से बीजों के बिखरने का?डर न रहे. कटी हुई फसल को 2-3 दिन खलिहान में सुखा कर जीरे की तरह झड़का लें व निकले हुए बीजों की सफाई कर के व सुखा कर बोरियों में भर कर सूखी व ठंडी जगह पर भंडारण करें.

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उपज व उपयोगी भाग

इसबगोल की औसत उपज 9-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इस की भूसी की मात्रा बीज के भार की 30 फीसदी होती है, जो सब से कीमती व उपयोगी भाग?है. बाकी 65 फीसदी गोली, 3 फीसदी खली और 2 फीसदी खारी होती है. भूसी के अलावा सभी भाग जानवरों को खिलाने के काम आते हैं.

आखिर क्यों होती है कपल्स में अक्सर तकरार

किसी भी संबंध में झगड़े और तकरार होना स्वभाविक है. बल्कि छोटी-छोटी तकरारें आपके रिश्तों को और बेहतर बनाती हैं. लेकिन अगर इन छोटे- छोटे झगड़ों को सही नहीं किया गया तो ये आपके रिश्तों में दूरियां भी बना सकती हैं. आपको लगता है कि रिश्ते में इतना प्यार है और समझदारी है तो बात-बात पर झगड़े क्यों होते हैं.

क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे क्या वजह हो सकती हैं. आपकी जिंदगी के हर रोज की छोटी चीजें और बातें आपके रिश्ते में तकरार का कारण बन सकती हैं. आइए जानते हैं कौन से कारण हैं जो आपके रिश्ते में तकरार पैदा कर रहे हैं.

सगे-सम्बंधियों से मतभेद

ऐसा होता है कि आपके विचार और आपके साथी के सगे-सम्बंधियों के विचार अलग-अलग हों और उन्हें लेकर झगड़ा होना लाजमी है. आप अपने संबंधियों से ना ही अलग हो सकते हैं और ना ही पीछा छुड़ा सकते हैं चाहें फिर वो आपसे कितनी भी दूर क्यों ना हो.

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आर्थिक समस्याएं

रिश्तों में पैसा भी एक समस्या है. आप कितना कमाते हैं और आपका साथी कितना कमाता है. आप में से जो भी ज्यादा कमाता है उस के विचारों में ये बात आ ही जाती है कि वो रिश्ते को चला रहा है और इस पर विवाद होना आम बात है. साथ ही घर के और बच्चों के खर्चों को लेकर झगड़े भी आपके रिश्तों में दरार डाल सकते हैं. कभी कभी आर्थिक समस्याएं होने के कारण भी लोग परेशान हो जाते हैं और इससे भी तकरार होने लगती हैं.

बच्चों के फैसले लेने में झगड़ा

शादी के बाद परिवार को संभालना एक बड़ी जिम्मेदारी होती है और आप इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाने के लिये कभी-कभी अधिक संवेदनशील हो जाते हैं. जिसके कारण आप अपने साथी के फैसलों को भी अनदेखा करने लगते हैं. अधिकतर झगड़े इस बात पर होते हैं कि बच्चों के लिये बेहतर फैसला कौन लेगा. बच्चे की परवरिश के लिए आप काफी चिंतित होते हैं लेकिन आपको ध्यान रखना चाहिए कि आपका साथी भी उसी मनोस्थिति में हैं.

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एक-दूसरे को दोषी ठहराना

एक चीज जो हम में से अधिकतर लोग करते हैं वो यही है कि हम अपनी गलती को अनदेखा करके दूसरे इंसान की तरफ अंगुली उठा देते हैं. जब भी कोई गलत चीज होती है तो आप अपने साथी को दोषी ठहरा देते हैं. इससे झगड़े तो होते ही हैं साथ ही आपका रिश्ता भी अधिक नहीं चल पाता. बेहतर होगा कि एक-दूसरे को दोषी ठहराने की जगह आप उस विषय पर बात करें. अगर आपके साथी की गलती भी है तो उन्हें बताएं और उसे सुलझाने की कोशिश करें.

प्रिया की बाकी जिंदगी भी बर्बाद कर गया फेसबुकिया आशिक

28 वर्षीय प्रिया ( बदला नाम ) भोपाल के एशबाग इलाके में रहती है उसकी शादी कुछ साल पहले अनिमेश ( बदला नाम ) से धूमधड़ाके से हुई थी. शादी के बाद कुछ वक्त तो अच्छे से गुजरा लेकिन इसके बाद पति पत्नी में खटपट होने लगी जिसके चलते प्रिया ने अनिमेश के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करा दिया और मायके भाई भाभियों के पास आकर रहने लगी .

वक्त काटने प्रिया सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने लगी जहां उसकी जान पहचान मुंबई निवासी आरिफ़ उर्फ अरमान शेख से हुई . जल्द ही दोनों की जान पहचान दोस्ती से होते प्यार में तब्दील हो गई और वे फोन और व्हाट्स एप पर लंबी लंबी अंतरंग बातें और चेटिंग करने लगे. यह फेसबुकिया प्यार अंतरंगता की तमाम सीमाएं पार कर जैसा कि अक्सर होता ही है शरीर की जरूरत तक आ पहुंचा तो नवंबर 2018 में आरिफ प्रिया से मिलने भोपाल आ पहुंचा और अस्सी फीट रोड स्थित एक होटल में ठहरा . प्रिया उससे मिलने होटल गई और उसी दिन दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए .

4 जून 2018 को प्रिया ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि आरिफ उसे ब्लेकमेल कर रहा है और 50 हजार रुपये के लिए उस पर अड़ी डाल रहा है. दरअसल में होटल में अंतरंग लम्हों के दौरान  आरिफ ने प्रिया की अश्लील फिल्म बना ली थी और उसे वायरल करने की धमकी देने लगा था. प्रिया ने पैसे नहीं दिये तो आरिफ ने अपनी धमकी पर खरा उतरते उसकी अश्लील फोटो उसकी बहिन, बहनोई और भाई को भेज भी दीं. ये फोटो देख सभी स्वभाविक रूप से सकते में आ गए.  एक तो वे पहले से ही प्रिया को लेकर तनाव में थे ऊपर से यह बैठे ठाले की मुसीबत नया सरदर्द साबित हो रही थी .

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प्रिया के घर बालों को समझ आ गया था कि मामला उलझ गया है और इस बात की कोई गारंटी नहीं कि एक बार 50 हजार लेने के बाद आरिफ मान जाएगा क्योंकि ऐसे मामलों में ब्लेकमेलर का पेट कभी भरता नहीं और वे हर कभी पैसों की मांग करने लगते हैं. लिहाजा आरिफ़ नाम की बला से छुटकारा पाने उन्होंने पुलिस का सहारा लेना मुनासिब समझा जो एक समझदारी भरा कदम था लेकिन जैसे ही अनिमेश को यह बात पता चली तो उसने प्रिया पर तलाक का मुकदमा ठोक दिया .

अनिमेश को बेहतर मालूम है कि कोई इस बात पर भरोसा नहीं करेगा कि आरिफ़ ने प्रिया के साथ ज़ोर ज़ोर जबरजसती से ही संबंध बनाए होंगे क्योंकि प्रिया कोई दूध पीती बच्ची नहीं है जो इस कथित जबरजस्ती का विरोध नहीं कर पाती और दूसरे वह खुद अपनी मर्जी से अपने मुंबइया आशिक से चोरी छिपे मिलने होटल गई थी और सहमति से संबंध बनाए थे. और अगर ऐसा था भी तो उसने तुरंत क्यों रिपोर्ट नहीं लिखाई और तभी क्यों लिखाई जब आरिफ ने अपना असली रंग दिखाया .

फेसबुकिया प्यार का  इस तरह का यह कोई पहला या आखिरी मामला नहीं है जिसमें औरत यूं दौराहे पर आ खड़ी हुई हो.  पति से अलगाव झेल रही प्रिया को आरिफ़ में कोई भावनात्मक सहारा दिखा था या वह भी अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने आरिफ़ को ढील और शह दे रही थी यह तो वही जाने लेकिन वह कतई बुद्धिमानी का काम नहीं कर रही थी . आए दिन फेसबुकिया लव के ऐसे मामले उजागर होते रहते हैं जिनमें ब्लेकमेलिंग होती रहती है और अक्सर इसका खामियाजा महिला को ही भुगतना पड़ता है क्योंकि उसकी अर्धनग्न तस्वीरें ब्लेकमेलिंग की वजह या हथियार बनती हैं . नतीजतन महिला जो थोड़ी सी मौजमसती या सुख के लिए अंजान चेहरे और किरदार पर भरोसा कर उससे से संबंध बनाती है वह एक अंतहीन शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार हो जाती है .

अब पुलिस आरिफ़ की तलाश कर रही है जो आज नहीं तो कल कभी उसके हत्थे चढ़ ही जाएगा लेकिन प्रिया को इससे कुछ हासिल होगा ऐसा लग नहीं रहा वजह वह यह साबित नहीं कर पाएगी कि सब कुछ उसकी मर्जी के खिलाफ हुआ था. ब्लेकमेलिंग का आरोप जरूर साबित हो सकता है जिसमें आरिफ़ को मामूली ही सजा होगी वह भी प्रिया को कोई राहत देने बाली नहीं होगी क्योंकि गेंद अब अनिमेष के पाले में है जो कोर्ट में उसे चरित्रहीन साबित करने का मौका चूकेगा नहीं और प्रिया का उस पर प्रताड्ना का आरोप भी खोखला सिद्ध हो जाएगा . नैतिक , चारित्रिक , पारिवारिक और सामाजिक रूप से भी प्रिया कमजोर पड़ गई है जिसे जरूरत पूरी करने के लिए संबंध बनाने की भी तमीज या सलीका नहीं मालूम था.

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फेसबुकिया प्यार के इस तरह के साइड इफेकटों से आगाह करने वक्त वक्त पर खासतौर से लड़कियों और महिलाओं के लिए टिप्स मीडिया देता रहता है लेकिन इसके बाद भी वे नहीं समझतीं, संभलतीं या नहीं मानती तो उनका अंजाम प्रिया जैसा ही होता है जो घर की रहतीं न घाट की.

 (कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां) 

उन्मुक्त : भाग 1

सोहन लाल  झारखंड की एक यूनिवर्सिटी में सीनियर प्रोफैसर थे. उन की उम्र 60 वर्ष हो चुकी थी. उन दिनों प्रोफैसर 62 वर्ष में रिटायर होते थे. वे शहर के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों में गिने जाते थे. शहर में उन का बड़ा सा मकान था. वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे. उन की एक ही संतान थी, एक बेटा, नवल. वह पढ़लिख कर सैटल हो चुका था. मुंबई में किसी प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. उस की भी शादी हो चुकी थी. नवल की पत्नी रेखा मुंबई के प्राइवेट स्कूल में टीचर थी. काफी सुखी व संपन्न परिवार था.

प्रोफैसर साहब की पत्नी कमला हाउसवाइफ थीं. देखनेसुनने में साधारण थीं, पर एक व्यावहारिक व कुशल गृहिणी थीं. इधर कुछ महीनों से वे बीमार चल रही थीं. प्रोफैसर साहब के रिटायर होने में एक साल से कम ही रह गया था. पर इस उम्र में भी वे रंगीनमिजाज थे. वे फिल्मी गाने सुना करते थे और गुनगुनाते भी रहते थे. सच तो यह है कि उन की असली आयु औफिशियल आयु से 4 साल ज्यादा ही थी. यह बात खुद प्रोफैसर ने अपने बेटे को बताई थी कि तेरे दादा कितने चालाक थे क्योंकि इस तरह वे 4 साल ज्यादा नौकरी कर सकेंगे.

मियांबीवी दोनों ने मिल कर रिटायरमैंट के बाद का प्लान बनाना शुरू कर दिया था. उन्होंने सोचा था कि साल के 6 महीने बेटे के साथ रहेंगे और बाकी अपने शहर में. उसी समय शिक्षकों की रिटायरमैंट उम्र बढ़ा दी गईर् थी. अब नए नियम के अनुसार, प्रोफैसर साहब को 65 साल में रिटायर होना था. अब उन्हें

3 साल और नौकरी करनी थी. मियांबीवी दोनों खुश थे. उन का बेटा नवल भी सुन कर खुश हुआ. नवल ने उन लोगों को लैपटौप दे रखा था और अकसर वीकैंड में मातापिता से वीडियो चैटिंग भी हो जाती थी.

प्रोफैसर साहब के यहां एक महरी थी, रीमा. वह पड़ोसी राज्य ओडिशा की आदिवासी औरत थी. वह अपने गांव में रहती थी. उस की 10 साल की बेटी थी जानकी. रीमा के पति ने उसे छोड़ कर दूसरी शादी कर ली थी. पति के जाने के बाद गांव में रीमा के लिए अपना और बेटी का गुजरबसर करना कठिन हो गया था. वहां आमदनी का जरिया बहुत सीमित था, इसलिए वह गांव छोड़ कर  झारखंड के शहर में आ गई थी क्योंकि उस के कुछ रिश्तेदार पहले से ही यहां थे. शुरू में जब तक उसे काम नहीं मिला था, अपने रिश्तेदार के साथ रहती थी. धीरेधीरे 3-4 घरों में महरी का काम करने लगी थी और एक  झोंपड़ी को किराए पर ले लिया था. उस की बेटी स्कूल पढ़ने जाती थी.

रीमा प्रोफैसर साहब के यहां लगभग 5 साल से काम कर रही थी. उन के परिवार का विश्वासपात्र बन चुकी थी. वह साधारण नैननक्श वाली पर आकर्षक दिखने वाली 30-32 साल की औरत थी. प्रोफैसर के बेटेबहू जब स्काइप पर मातापिता से वीडियो चैट पर होते तो कभी रीमा भी उन्हें दिख जाती थी. प्रोफैसर साहब की पत्नी कमला इधर अकसर बीमार रहती थीं. हालांकि प्रोफैसर अब 68 साल के हो चुके थे, पर कभीकभी अपनी कामवाली को ललचाई नजरों से देखा करते थे. यह बात रीमा से छिपी नहीं थी.

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एक दिन कमला ने रीमा से कहा, ‘‘मु झ से अब ज्यादा काम नहीं हो पाता है. तुम मेरे घर में अब ज्यादा समय दो. रोजाना के काम के अलावा हमारा खाना भी बना दिया करो.’’

रीमा बोली, ‘‘मांजी, एक घर में काम करने से तो मेरा खर्च नहीं चलने वाला है. मु झे और 2 घरों में भी काम करना होता है.’’

प्रोफैसर साहब भी वहां खड़े थे. उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हारी पगार मैं बढ़ा दूंगा. बाकी के घरों का काम छोड़ दो. तुम्हें दिनभर इधरउधर दौड़ना भी नहीं पड़ेगा.’’

रीमा बोली, ‘‘यह तो ठीक है. पर मेरा भी एक पुराना डेरा है. वहां 2 महीने बाद लड़की की शादी है. उन्होंने उस समय 3-4 दिनों के लिए बाकी घरों से छुट्टी लेने को कहा है. मैं ने भी हां कर दी है, बीच में उन्हें धोखा नहीं देना चाहती हूं.’’

कमला बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं. तू 2 महीने वहां और काम कर और बाकी के घर छोड़ दे. शादी के समय तुम हमारे यहां सुबह जल्दी आ कर 2 घंटे में सब काम कर के वहां चली जाना. शादी के बाद उन का काम छोड़ कर सिर्फ मेरे घर का काम करना.’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘ठीक है, कल से तुम्हारी पगार बढ़ा दी जाएगी और दिन का खाना भी यहीं खाना. मैडम जैसा कहें वैसा करो. पैसे की चिंता नहीं करना, जितना और लोग देते हैं उन से कुछ ज्यादा ही मिल जाएगा.’’

2 महीने बाद से अब रीमा प्रोफैसर के घर में सारा दिन रहती थी. घर का सारा काम देखने लगी थी. पर शाम को अपनी  झोंपड़ी वापस चली जाती थी. तब तक उस की बेटी जानकी भी स्कूल से लौट आती थी और मां का इंतजार करती थी. रीमा को शाम को लौटते वक्त भी प्रोफैसर साहब के यहां से कुछ खानेपीने का सामान मिल ही जाता था, जिस से 2 जनों का पेट भर जाता था.

कुछ महीनों बाद प्रोफैसर साहब की पत्नी कमला की मृत्यु हो गई. लंबी अवधि तक उन की जीवनसंगिनी रही थीं वे. प्रोफैसर काफी दुखी थे. बेटाबहू और निकट संबंधी आए थे. कुछ तो 2-3 दिनों में ही चले गए थे. नवल और रेखा करीब 3 सप्ताह तक रुके थे, फिर वे भी मुंबई लौट गए थे. जाने से पहले नवल ने पिता से कहा, ‘‘पापा, अब आप भी चल कर हमारे साथ रहें. यहां अकेले क्या करेंगे आप?’’

प्रोफैसर साहब ने कहा, ‘‘अब तो 2 महीने ही बची है नौकरी. रिटायर होने के बाद आऊंगा तुम लोगों के पास. तब तक यहां पढ़नेपढ़ाने में दिन कट जाएंगे.’’

अब प्रोफैसर सोहन लाल रिटायर हो चुके थे और घर में अकेले रह गए थे. रीमा पहले की ही तरह घर का पूरा काम खत्म कर, शाम को प्रोफैसर को चाय पिलाती और रात का खाना टेबल पर लगा कर चली जाती थी. चूंकि अब कमला नहीं रहीं, तो बीच में अकसर दोपहर में 2-3 घंटे के लिए रीमा अपने घर चली जाती थी. कुछ दिन यों ही बीत गए थे.

एक दिन सुबहसुबह प्रोफैसर साहब फिल्मी गाना सुन रहे थे. रीमा चाय बना कर उन की टेबल पर दे गई थी. तभी बेटे नवल का स्काइप कौल आया था. उन्होंने मोबाइल पर ही वीडियो चैट शुरू किया था. बेटे ने देखा कि पापा चाय पी रहे थे, साथ में रोमांटिक गाना भी सुन रहे थे तो वह बोला, ‘‘पापा, आज मु झे आप को देख कर खुशी हुई. इसी तरह आप नौर्मल रहिए तो हम लोग भी चिंता से मुक्त रहेंगे.’’

इस चैट के दौरान बहू रेखा से भी बात हुई थी, बीच में प्याली उठाने रीमा आई थी, तो उस ने भी रेखा को नमस्ते कहा था, रेखा ने उसे पापा का खयाल रखने को कहा.

प्रोफैसर साहब नाश्ता करने बैठे थे. अभी रीमा परांठे बना ही रही थी, वे उसे देखे जा रहे थे, उस के गदराए शरीर को, उस के मांसल उरोजों को जो टाइट ब्लाउज के अंदर कसमसा रहे थे मानो फाड़ कर बाहर आना चाह रहे थे. उस ने बालों में ताजे फूलों का गजरा लगाया था जिस की भीनीभीनी खुशबू प्रोफैसर को मदमस्त कर रही थी. रीमा ने प्लेट में परांठा और भुजिया ला कर प्रोफैसर के सामने रख दिया था. उन्होंने कहा, ‘‘तुम भी अपना नाश्ता कर लो.’’

वह भी अपना नाश्ता ले कर एक किनारे स्टूल पर बैठ गई थी. प्रोफैसर साहब ने कहा, ‘‘इधर ही मेरे पास की कुरसी पर आ जाओ न.’’

पहले तो उसे संकोच हुआ, पर जब प्रोफैसर ने कहा, ‘‘आओ न, मेरी खातिर. मु झे अच्छा लगेगा,’’ वह उन की बगल में आ कर बैठ गई थी. उन्होंने उस के जूड़े को सूंघ कर कहा, ‘‘अच्छे हैं. अभी भी काफी खुशबू है इन में.’’

फिर वे नाश्ता छोड़ कर उस के बालों को सहलाने लगे थे और धीरेधीरे उस की पीठ भी सहलाने लगे. करीब 10 साल बाद किसी मर्द के स्पर्श से रीमा भी रोमांचित हो उठी थी. उन्होंने कहा, ‘‘तुम आज क्यों बिजली गिरा रही हो?’’

तब तक वह  झटक कर अलग होते हुए बोली, ‘‘बिजली तो बाद में गिरेगी. अभी दूध उफान पर है. बस, गिरने ही वाला है.’’

और वह गैस बंद करने किचन में चली गई. प्रोफैसर ने कहा, ‘‘और मेरे अंदर जो उफान है, उस का क्या होगा?’’

तब रीमा ने कहा, ‘‘वह सब छोडि़ए, अभी चाय बनाऊं या कौफी?’’

उस के उरोजों की तरफ देखते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आज चायकौफी या कुछ और भी.’’

रीमा भी इठला कर बोली, ‘‘आप का इतना रंगीनमिजाज तो पहले कभी नहीं देखा था. यह लीजिए आज कौफी से ही काम चलाइए?’’

अगले दिन फोन कर बेटे ने उन्हें मुंबई आने को कहा था. वे बेटे के पास मुंबई जा रहे थे. जाने से पहले रीमा को बुला कर कहा, ‘‘मैं कुछ दिनों के लिए मुंबई जा रहा हूं, तुम्हें एक मोबाइल फोन और घर की चाबी दे रहा हूं. बीचबीच में घर की साफसफाई करती रहना. मैं जा तो रहा हूं, पर मु झे तेरे साथ की आदत पड़ गई है. मैं जल्द ही आऊंगा. आने के पहले तुम्हें फोन कर दूंगा, तब आ जाना.’’

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प्रोफैसर साहब मुंबई तो गए, पर 2 सप्ताह में ही वापस आ गए थे. बेटे ने रोकना चाहा, तो कुछ बैंक के काम, कुछ फाइनल सैटलमैंट, पैंशन आदि का बहाना कर वहां से चल दिए थे. उन्होंने रीमा को फोन कर अपना प्रोग्राम बता दिया था. जब वे घर लौटे तो रीमा घर पर मौजूद थी.

घर पूरी तरह सुव्यवस्थित और साफसुथरा था. खुशबूदार अगरबत्ती भी जल रही थी और साथ में जूड़े के फूल की खुशबू थी. रीमा ने दरवाजा खोला ही था कि  झट से उन्होंने दरवाजा बंद कर उसे आगोश में लेते हुए कहा, ‘‘यह कैसा जादू किया है तुम ने? मुझे तुम्हारे बिना वहां अच्छा नहीं लग रहा था. दिल कर रहा था कि अगले दिन ही लौट आऊं.’’

रीमा ने दिखावे के लिए आधे मन से उन से छूटने का नाटक किया था और प्रोफैसर साहब ने अपना बंधन थोड़ा ढीला किया तो वह छूटते हुए बोली, ‘‘अच्छा चलिए, पहले नहाधो कर नाश्तापानी कीजिए.’’

नौसेना में महिलाएं भी बना सकती हैं उज्जवल भविष्य

देश की तीनो सेनाएं वायु सेना, नौसेना, थल सेना हम भारतीयों की शान हैं. इन सभी बलों के अधिकारी न केवल समाज में सर्वोच्च सम्मान का आनंद लेते हैं,  बल्कि कार्यस्थल पर साहसिक और चुनौतीपूर्ण कार्य भी करते हैं. अपने देश की सुरक्षा के लिये हंसते हंसते अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं. जब भी हम इन सेनाओं के बारे में सोचते हैं तो एक वर्दी धारी पुरुष की छवि ही सामने आती हैं न की महिलाओं की.. लेकिन अब महिलाएं भी इस क्षेत्र मे पीछे नहीं हैं और धीरे धीरे वो भी भारतीय सेनाओं मे अपना परचंप लहरा रही हैं. चाहे वायु सेना की पहली पायलट भावना कांत हों. हाल ही में सब लेफ्टिनेंट शिवांगी भारतीय नौसेना की बनी पहली महिला पायलट. सभी अपने देश और अपने माता पिता का नाम रोशन कर रही हैं. जिन महिलाओं को समुन्दर से लगाव और सफेद वर्दी से हो प्यार तो वो अपना उज्वल भविष्य नौसेना में बेझिझक बना सकती हैं. इसमें शामिल होने के लिए अनिवार्य है कि उम्मीदवार के पास इनमें से कोई भी डिग्री हासिल हो और साथ ही सेना में शामिल होने के लिए महिला अविवाहित हो .

योग्यता

नौसेना में जाने के लिए साइंस से 12 वीं पास होना  आवश्यक हैं. वर्तमान में भारतीय नौसेना शार्ट सर्विस कमीशन प्रवेश परीक्षा के अंतर्गत महिला उम्मीदवारों को शामिल करती है. उनकी एसएससी अवधि पूर्ण होने पर महिला नौसैनिक अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाता है, जो कि रिक्तियों की संख्या, मेरिट और उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन पर आधारित होता है. भारत सरकार ने ला, एजुकेशन और नेवल आर्किटेक्चर कैडर में महिलाओं को आकर्षक करियर बनाने का मौका देती है.

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आब्जर्वर

आब्जर्वर पद के लिये महिला की उम्र 19 से 25 वर्ष होनी चाहिए. शैक्षिक योग्यता के अंतर्गत कम से कम 55 %अंकों के साथ किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से किसी भी एक विषय में मैकेनिकल इंजीनियरिंग / इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग / कंप्यूटर साइंस / टेक्नोलौजी में स्नातकोत्तर की डिग्री हो या भौतिक विज्ञान या गणित में किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी के मास्टर की डिग्री प्राप्त हो.

नेवल आर्कीटेक्चर – जिन महिलाओं को चमत्कारों को निर्मित करने का जुनून हो उनके लिये बिल्कुल सटिक प्रोफेशन है. इसमें शामिल होने के लिये महिला की उम्र 21 से 25 वर्ष के समहू में आना जरूरी है. मैकेनिकल, सिविल, एरोनौटिकल, मेटालर्जीकल, एरोस्पेस इंजीनियरिंग में बी.टेक/बी.ई में कम से कम 60 % अंकों से उत्तीर्ण किया होना चाहिए है. भारतीय नौसेना में महिला इंजीनियर एसएससी/यूनिवर्सिटी एण्ट्री स्कीम द्वारा ली जाती हैं.

ला

जो उम्मीदवार नौसेना में ला के पद में अपना करियर बनाना चाहते हैं उनकी जानकारी के लिए बता दें कि ला के उम्मीदवारों की कम से कम 22 से 27  वर्ष होनी चाहिए. 55 % अंकों के साथ ला की डिग्री प्राप्त होनी चाहिए .

पायलट जनरल

जो उम्मीदवार पायलट जनरल के पद में  के लिए महिलाओं की न्यूनतम आयु सीमा 19 से 24 वर्ष है. उम्मीदवारों को 12 वीं कक्षा में भौतिकी और गणित के साथ किसी भी विषय में बीई / बीटेक की डिग्री होनी चाहिए.

एजुकेशन – शिक्षा शाखा में भी महिलाएं अपना करियर बना सकती हैं. इसके लिए उम्र सीमा 21-25 वर्ष होनी चाहिए और न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ कम्प्यूटर सांइस, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रौनिक्स, मेकेनिकल में बी.टेक/बी.ई पूर्ण किया होना चाहिए या गणित,  भौतिक शास्त्र, कम्प्यूटर एप्लीकेशन एवं अन्य में एमएससी होनी  चाहिए.

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लौजिस्टिक्स और वर्क

इसके लिए आवश्यक आयु 19 से 25 वर्ष है उम्मीदवारों को किसी भी विषय में बीई / बी टेक / एमबीए / बी एससी / बी काम / बी एससी (आईटी) प्रथम श्रेणी में होना चाहिए. प्रथम श्रेणी के साथ पीजी डिप्लोमा में फाइनेंस / लौजिस्टिक्स / सप्लाई चेन मैनेजमेंट / मटेरियल मैनेजमेंट या एमसीए / एम एससी (आईटी) की ड्रिगी प्राप्त होनी चाहिए.

वर्क्स के लिए: बीई / बी टेक (सिविल) / बी आर्किटेक्ट की डिग्री प्राप्त होनी चाहिए.

खानपान के लिए : एम एससी (एचएम) / एमबीए (एचएम) / बी एससी या बीए प्रथम श्रेणी के साथ और एचएम में पीजी डिप्लोमा प्राप्त होना चाहिए .

एटीसी

जो उम्मीदवार एटीसी में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो उनकी जानकारी के लिए बता दें कि इस पद के लिए महिलाओं की न्यूनतम आयु 19 से 25  वर्ष के समहू में हो. शैक्षणिक आवश्यकता के लिए, उम्मीदवार द्वारा अनिवार्य रूप से विज्ञान संकाय अर्थात भौतिक शास्त्र/गणित/इलैकट्रोनिक्स में स्नातक या स्नातकोत्तर होना अनिवार्य है .

महाराष्ट्र के बाद झारखंड को गंवाना नहीं चाहती भाजपा, क्या रघुवर दास तोड़ पाएंगे ये मिथक ?

हिंदुस्तान के किसी न किसी कोने में लोकतंत्र का त्योहार होता ही रहता है. कुछ महीनों पहले हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव हुए. इन दोनों की प्रदेशों में भाजपा को करारा झटका लगा. हरियाणा में तो भाजपा ने जुगाड़ कर सरकार बना ली लेकिन महाराष्ट्र में सियासी नाटक के बाद बीजेपी से सत्ता छीन गई. बीजेपी ने खूब कोशिश की लेकिन बात नहीं बन सकी. अब झारखंड में चुनाव हो रहे हैं. पहले चरण का मतदान हो गया है. दूसरे चरण का मतदान के लिए 20 सीटों पर सात दिसंबर को मतदान होगा. इसमें 13 सीटें कोल्हान और सात सीटें दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल की हैं. इन सीटों पर 2014 के चुनाव में भाजपा और झामुमो बराबरी पर रहे थे. इस बार भाजपा को अपना जनाधार बढ़ाने की तो झामुमो को अपने गढ़ बचाने की चुनौती है.

इस चुनाव में सबसे ‘हौट सीट’ जमशेदपुर (पूर्वी) विधानसभा क्षेत्र बनी हुई है, जहां से मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव मैदान में उतरे हैं. मिथक है कि राज्य में जितने भी मुख्यमंत्री बने हैं, उन्हें चुनाव में हार का स्वाद चखना पड़ा है. इसलिए सबके मन में यह सवाल आ रहा है कि क्या दास इस मिथक को तोड़ पाएंगे?

दास की पहचान झारखंड में पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की है. बिहार से अलग होकर झारखंड बने 19 साल हो गए है परंतु रघुवर दास ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री पर हार का मिथक तोड़ने को लेकर भी लोगों की दिलचस्पी बनी हुई है.

झारखंड के गठन के बाद वर्ष 2000 में भाजपा सरकार में राज्य में पहले मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी ने कुर्सी संभाली थी. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने वर्ष 2014 में भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) बना ली और गिरिडीह और धनवाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन दोनों सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

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धनवाद विधानसभाा क्षेत्र में भाकपा (माले) के राजकुमार यादव ने मरांडी को करीब 11,000 मतों से पराजित कर दिया, जबकि गिरिडीह में उन्हें तीसरे स्थान से संतोश करना पड़ा. भाजपा के अर्जुन मुंडा भी राज्य की बागडोर संभाली, लेकिन उन्हें भी मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी. राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अर्जुन मुंडा 2014 में खरसावां से चुनाव हार गए. उन्हें झामुमो के दशरथ गगराई ने करीब 12 हजार मतों से हराया. दशरथ गगराई को 72002 मत मिले, जबकि अर्जुन मुंडा को 60036 मत ही प्राप्त हो सके.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से मुख्यमंत्री बने नेताओं को भी देर-सबेर हार का मुंह देखना पड़ा है. झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन राज्य की तीन बार बागडोर संभाल चुके हैं, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री रहते तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक गंवानी पड़ी.

मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वर्ष 2008 में शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन वह उस समय विधानसभा के सदस्य नहीं थे. वर्ष 2009 में उन्होंने तमाड़ विधानसभा सीट से किस्मत आजमाई, लेकिन जीत नहीं सके. उन्हें झारखंड पार्टी के प्रत्याशी राजा पीटर ने आठ हजार से अधिक मतों से पराजित कर दिया.

शिबू सोरेन के पुत्र और झामुमो के नेता हेमंत सोरेन भी झारखंड के मुख्यमंत्री जरूर रहे, लेकिन उन्हें भी हार का स्वाद चखना पड़ा है. वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत दो विधानसभा सीटों बरहेट और दुमका से चुनावी मैदान में उतरे, मगर उन्हें दुमका में हार का सामना करना पड़ा. बरहेट से जीतकर हालांकि उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा बचा ली.

निर्दलीय चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने वाले मधु कोड़ा को भी 2014 में मंझगांव विधानसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा है.

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इस चुनाव में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास एक बार फिर जमशेदपुर (पूर्वी) से चुनावी मैदान में हैं. उनके सामने उनके ही मंत्रिमंडल में रहे सरयू राय बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे हैं. ऐसे में इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है. अब सबकी दिलचस्पी इस बात को लेकर है कि ‘झारखंड में मुख्यमंत्री हार जाते हैं’ के मिथक को दास तोड़ पाएंगे? हार-जीत का फैसला 23 दिसंबर को होना है.

फिलहाल खनिज प्रधान इस प्रदेश की चुनावी खबरें इतनी ज्यादा न दिखाई दे रहीं हों लेकिन यहां का पारा गर्म है. महाराष्ट्र के बाद भाजपा इस प्रदेश को गंवाना नहीं चाहती. यही वजह है कि पीएम मोदी से  लेकर तमाम बीजेपी के हाई प्रोफाइल नेता वहां की जनता को रिझाने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे.

अगर आप भी आइडिअल कपल बनना चाहते हैं तो पढ़ें ये खबर

आज की जीवनशैली में घर और औफिस की बढ़ती जिम्मेदारियों को निभाना यों तो आसान लगता है किंतु वास्तव में आसान है नहीं. स्वस्थ मानसिकता के अभाव में इस रिश्ते को निभाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आइए, उन बातों का अध्ययन करें जो कमजोर पड़ते रिश्तों को और अधिक कमजोर बनाती हैं.

विवाह के बाद के पहले 5 वर्ष

  1. पतिपत्नी के लिए पहले 5 वर्ष बहुत अहमियत रखते हैं. शुरू के 5 वर्षों में जो गलतियां करते हैं वे हैं:
  2. खुद को बदलने की जगह पार्टनर से बदलने की चाह रखना.
  3. लाइफपार्टनर से जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं रखना.
  4. छोटीछोटी बातों को मुद्दा बना कर लड़ाईझगड़ा करना. न खुद चैन से रहना, न दूसरे को चैन से रहने देना.
  5. एकदूसरे के दोषों को ढूंढ़ढूंढ़ कर आलोचना और ताने मारने की प्रवृत्ति रखना.

इन कारणों से पतिपत्नी में दूरी बढ़ती जाती है और वक्त रहते अगर सूझबूझ से अपनी समस्याओं का समाधान पतिपत्नी नहीं कर पाते हैं तो अलगाव होना और फिर तलाक की संभावना बढ़ जाती है. अत: दोनों को इस बात का आभास होना चाहिए कि रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं. इन्हें अथक प्रयास द्वारा, स्वस्थ मानसिकता के साथ संभालना बहुत जरूरी होता है.

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गलतियों को मानें

सब से विचित्र बात यह है कि पतिपत्नी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं कर पाते जबकि जीवन से संबंधित ये गलतियां जीवन को अधिक सीमा तक प्रभावित करती हैं. इन्हें छोटी गलतियां मानना ही मूलरूप से गलत है. रिश्ते को हर हाल में टूटने से बचाने की जिम्मेदारी पति और पत्नी दोनों की होती है. मुश्किलें पतिपत्नी की हैं, तो समाधान भी उन के द्वारा ही ढूंढ़ा जाना चाहिए.

दिल खोल कर प्रशंसा करें

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट मानते हैं कि एकदूसरे के प्रति तारीफ के शब्द न केवल पार्टनर्स को एकदूसरे के नजदीक लाते हैं, बल्कि टूटने के कगार पर आ गए रिश्तों में ताजगी भरने की भी संभावना रखते हैं. वैवाहिक जीवन की कामयाबी बहुत सीमा तक इस बात पर निर्भर करती है कि पतिपत्नी एकदूसरे की प्रशंसा कर के जीवन को आनंदपूर्ण बनाए रखें.

रिलेशनशिप टिप्स

  1. ऐक्सपर्ट स्टीव कपूर ने अपनी पुस्तक में हैल्दी रिलेशनशिप के निम्न टिप्स दिए हैं:
  2. पतिपत्नी को सैंस औफ ह्यूमर रखना चाहिए. चीजों और समस्याओं को गंभीरता से लेना चाहिए, जब यह स्थिति और समस्या की मांग हो.
  3. पतिपत्नी को एकदूसरे की ड्रैस सैंस की तारीफ करनी चाहिए. अच्छी बातों के लिए तारीफ करने में कंजूसी बिलकुल नहीं करनी चाहिए.
  4. एकदूसरे को कौंप्लिमैंट दें. विश्वास के आधार पर रिश्ते में मिठास भरें.
  5. यदि पतिपत्नी में से कोई एकदूसरे की बात मानने को तैयार नहीं है तो इस के कारण को जानने की कोशिश करें न कि उस के साथ विवाद कर उसे परेशान करें और खुद भी परेशान हों.
  6. सरे की भावनाओं से खिलवाड़ ठीक नहीं होता है. एकदूसरे को ब्लैकमेल करने से या उस की कमजोरी पर फोकस करने की आदत आत्मघाती होती है. भावनात्मक स्तर पर एकदूसरे के साथ जुड़ाव के लिए वक्त निकाल कर घूमने अवश्य जाएं. भूल कर भी अपने प्यार का प्रदर्शन लोगों के सामने न करें.
  7. बहसबाजी अच्छी आदत नहीं है. जब भी ऐसा अवसर आए अपने संवाद को कट शौर्ट कर के सुखद मोड़ देते हुए अपने रिश्ते को बचाएं और संवारें.

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रिलेशनशिप की समस्याओं की पृष्ठभूमि

आइए, रिलेशनशिप की समस्याओं को नीतिपूर्वक तरीके से निबटने के बारे में जानें:

  1. आप अपने पार्टनर को बेहद प्यार करते हैं, लेकिन जब बात आती है इगो को बैलेंस करने की तो चुपचाप सहन करते हुए कभी खुल कर एकदूसरे के सामने नहीं आ पाते हैं. चुप रहना एक बहुत बड़ी कमजोरी बन जाती है. बेहतर होगा कि अपनी तरफ से आप स्पष्ट रूप से पार्टनर का सहयोग कर विवाहित जीवन को बेहतर बनाने के बारे में सोचें.
  2. रिलेशनशिप का सारा दारोमदार क्रिया और प्रतिक्रिया का है. अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने में जल्दबाजी न करें. सोचसमझ कर व सूझबूझ के साथ सही प्रतिक्रिया दें. एक सिंगल वार्तालाप से हमेशा समस्या सुलझ जाने की आशा न करें.
  3. अपनी रिलेशनशिप को बेहतर बनाए रखने के लिए एकदूसरे से सुझाव मांगें और अध्ययन करने के बाद उन सुझावों को अमल में लाएं जो रिलेशनशिप के लिए कारगर और उपयोगी हैं. यह काम धैर्यपूर्वक समस्या को खुले दिल से स्वीकार करने के बाद ही हो सकता है.
  4. बेकार का वादविवाद न करें और न ही दूसरे लोगों को उस का हिस्सा बनाएं. कम से कम शब्दों में समस्या को परिभाषित करें. एकदूसरे को उचित समय दें. ऐसा माहौल बनाएं जिस में आप खुले दिल और दिमाग से समस्या का निवारण करने की जिम्मेदारी पूरी लगन और सचाई के साथ कर सकें.
  5. हर समस्या के समाधान पर एकदूसरे को पार्टी, लंच, डिनर दे कर यह एहसास कराएं कि जो कुछ हुआ बहुत अच्छा हुआ.

ऐसे निकालें समस्याओं के हल

पतिपत्नी का रिश्ता जब विवाह के बाद प्रारंभिक चरण में होता है तो सब रिश्तेदारों की अपेक्षाएं वास्तविक आधार पर नहीं होतीं. संबंधी नई बहू से आशा करते हैं कि वह हर रिश्ते को दिल से सम्मान दे. अपनी सुविधा को नजरअंदाज कर वह रिश्ते का निर्वाह इस तरह करे जैसे वह उन्हें बरसों से जानती है. अधिकतर पत्नियां जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ पर यह उम्मीद रखती हैं कि पति उपहार में डायमंड या गोल्ड के आभूषण, डिजाइनर वस्त्र आदि उसे गिफ्ट करे. दोनों पार्टनर जीवन के लिए प्रैक्टिकल अप्रोच अपनाएं तो वे जीवन को क्रोध, तानों और दोषारोपण की मौजूदगी में भी उत्तम तरीके से बिता सकते हैं. मनोवैज्ञानिक जौन गोटमैन का सुझाव है कि पतिपत्नी का महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि वे एकदूसरे पर कीचड़ न उछालें. एकदूसरे के प्रशंसक बनें. एकदूसरे के लिए चिंता तो करें, लेकिन रचनात्मक सोच के साथ. उन का हर फैसला सहयोग के आधार पर होना चाहिए.

हर विवाह की स्थिति ऐसी होती है कि अगर आप खूबियां ढूंढ़ेंगे तो आप को सब कुछ अच्छा नजर आएगा. अगर एकदूसरे की कमियों पर फोकस करना चाहेंगे तो बहुत कमियां नजर आएंगी. इसलिए बेहतर होगा कि अच्छाई पर फोकस रखें व पौजिटिव नजरिया अपनाएं. आप में वे सब गुण और काबिलीयत हैं, जो आप को ‘विन विन’ स्थिति में रख कर विजयी घोषित कर सकते हैं. प्यार मांगने से नहीं मिलता है. प्यार के लिए डिजर्व करना पड़ता है. जीवन का हर लमहा आनंद से सराबोर होना चाहिए. यह पतिपत्नी का जन्मसिद्ध अधिकार है.

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