भाजपा हिन्दू राष्ट्र की समर्थक है. अपने हर काम को जायज ठहराने के लिये महाभारत और रामायण काल के उदाहाण से काम चलाती है. रामायण और महाभारत में राजाओं ने सत्ता पर कब्जा करने के लिये हर तरह का कदम उठाया और बाद में उसे जायज भी करार दिया. राजाओं के उस दौर में रातोरात सत्ता पलटी जाती थी. लोकतंत्र में ऐसे उदाहरण कम मिलेगे जब समय से पहले प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग जाये और समय से पहले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ भी दिला दी जाये. अब दलबदल कानून और संविधान की रोशनी में इसे भी जायज ठहराने का काम किया जाएगा.
महाराष्ट्र में एनसीपी को सरकार बनाने के लिये दिये गये समय से पहले राज्यपाल भगत सिंह कोश्यिारी ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की सिफारिश कर दी. भाजपा नेता देवेन्द्र फड़वनीस को एनसीपी के विद्रोही गुट के नेता अजीत पवार ने जैसे ही अपना समर्थन दिया राज्यपाल ने सुबह औफिस खुलने का भी इंतजार नहीं किया और सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर ही मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. सत्ता को कब्जे में करने के लिये दलबदल के ऐसे खेल रात में ही खेले जाते है. दलबदल के इस खेल में सबसे महत्वपूर्ण दो खिलाड़ी होते है. तो संवैधानिक पद पर बैठे होते है. जिनके बारे में संविधान कहता है कि वह दलीय परंपरा से उठ कर संविधान के हित में काम करते है. राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष दलबदल के खेल में सबसे महत्वपूर्ण होते है. कई बार इनमें आपस में टकराव भी होता है.
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कई प्रदेशों में दलबदल के उदाहरण इस बात को साबित करते है. उत्तर प्रदेश में 1996 में बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने आपस में मिलकर 6-6 माह की सरकार बनाई थी. पहले 6 माह बसपा नेता मायावती मुख्यमंत्री रही तो विधानसभा अध्यक्ष भाजपा ने अपना रखा. 6 माह पूरे होने पर जब बसपा ने सत्ता छोड़ने में आनाकानी की तो दलबदल का खेल शुरू हुआ. बसपा को तोड़ा गया. उससे अलग हुए गुट को विधानसभा में अलग दल की मान्यता दी गई. उसके समर्थन से भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. बदलबदल कानून देखता रहा और उसकी कानून में दिखे छेदों से सरकार बन गई.
उत्तर प्रदेश में दलबदल के इस खेल का असर हुआ और यह मांग तेज हो गई कि दलबदल कानून को सख्त किया जायेगा. कुछ बदलाव हुये पर इसका भी कोई असर होता नहीं दिख रहा है. कई राज्यों में बदबदल कानून को ताक पर रख सरकार बनाई गई. कर्नाटक इसका बड़ा उदाहरण है. अब महाराष्ट्र में भी दलबदल कानून की ऐसी ही नजीरे पेश की जायेगी. राजनीति में परिवारवाद की असफलता का भी यह सबसे बड़ा उदाहरण है. जिस समय एपसीपी नेता शरद पवार, शिवसेना के उद्धव ठाकरे और कांग्रेस सरकार बनाने की पूरी रणनीति तय कर चुके थे तभी अगली सुबह एनसीपी अचानक महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यिारी ने भाजपा नेता देवेन्द्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. देवेन्द्र फड़नवीस का मुख्यमंत्री बनवाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका एनसीपी के ही अजीत पंवार ने अदा की. अजीत पवार शरद पंवार के भतीजे है और इनके खिलाफ ईडी जांच की सिफारिश भी हुई थी.
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