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मां, पराई हुई देहरी तेरी : भाग 1

कमरे में पैर रखते ही पता नहीं क्यों दिल धक से रह जाता है. मां के घर के मेरे कमरे में इतनी जल्दी सब- कुछ बदल सकता है मैं सोच भी नहीं सकती थी. कमरे में मेरी पसंद के क्रीम कलर की जगह आसमानी रंग हो गया है. परदे भी हरे रंग की जगह नीले रंग के लगा दिए गए हैं, जिन पर बड़ेबड़े गुलाबी फूल बने हुए हैं.

मैं अपना पलंग दरवाजे के सामने वाली दीवार की तरफ रखना पसंद करती थी. अब भैयाभाभी का दोहरा पलंग कुछ इस तरह रखा गया है कि वह दरवाजे से दिखाई न दे. पलंग पर भाभी लेटी हुई हैं. जिधर मेरी पत्रिकाओं का रैक रखा रहता था, अब उसे हटा कर वहां झूला रख दिया गया?है, जिस में वह सफेद मखमली सा शिशु किलकारियां ले रहा है, जिस के लिए मैं भैया की शादी के 10 महीने बाद बनारस से भागी चली आ रही हूं.

‘‘आइए दीदी, आप की आवाज से तो घर चहक रहा था, किंतु आप को तो पता ही है कि हमारी तो इस बिस्तर पर कैद ही हो गई है,’’ भाभी के चेहरे पर नवजात मातृत्व की कमनीय आभा है. वह तकिए का सहारा ले कर बैठ जाती हैं, ‘‘आप पलंग पर मेरे पास ही बैठ जाइए.’’

मुझे कुछ अटपटा सा लगता है. मेरी मां के घर में मेरे कमरे में कोई बैठा मुझे ही एक पराए मेहमान की तरह आग्रह से बैठा रहा है.

‘‘पहले यह बताइए कि अब आप कैसी हैं?’’ मैं सहज बनने की कोशिश करती हूं.

‘‘यह तो हमें देख कर बताइए. आप चाहे उम्र में छोटी सही, लेकिन अब तो हमें आप के भतीजे को पालने के लिए आप के निर्देश चाहिए. हम ने तो आप को ननद के साथ गुरु  भी बना लिया है. सुना है, तनुजी ‘बेबी शो’ में प्रथम आए?थे.’’

मैं थोड़ा सकुचा जाती हूं. भैया मुझ से 3 वर्ष ही तो बड़े थे, लेकिन उन्हीं की जिद थी कि पहले मीनू की शादी होगी, तभी वह शादी करेंगे. मेरी शादी भी पहले हो गई और बच्चा भी.

भाभी अपनी ही रौ में बताए जा रही हैं कि किस तरह अंतिम क्षणों में उन की हालत खराब हो गई थी. आपरेशन द्वारा प्रसव हुआ.

‘‘आप तो लिखती थीं कि सबकुछ सामान्य चल रहा है फिर आपरेशन क्यों हुआ?’’ कहते हुए मेरी नजर अलमारी पर फिसल जाती है, जहां मेरी अर्थशास्त्र की मोटीमोटी किताबें रखी रहती थीं. वहां एक खाने में मुन्ने के कपड़े, दूसरे में झुनझुने व छोटेमोटे खिलौने. ऊपर वाला खाना गुलदस्तों से सजा हुआ है.

‘‘सबकुछ सामान्य ही था लेकिन आजकल ये प्राइवेट नर्सिंग होम वाले कुछ इस तरह ‘गंभीर अवस्था’ का खाका खींचते हैं कि बच्चे की धड़कन कम हो रही है और अगर आधे घंटे में बच्चा नहीं हुआ तो मांबच्चे दोनों की जान को खतरा है. घर वालों को तो घबरा कर आपरेशन के लिए ‘हां’ कहनी ही पड़ती है.’’

‘‘अब तो जिस से सुनो, उस के ही आपरेशन से बच्चा हो रहा है. हमारे जमाने में तो इक्कादुक्का बच्चे ही आपरेशन से होते थे,’’ मां शायद रसोई में हमारी बात सुन रही हैं, वहीं से हमारी बातों में दखल देती हैं.

मेरी टटोलती निगाह उन क्षणों को छूना चाह रही है जो मैं ने अपनी मां के घर के इस कमरे में गुजारे हैं. परीक्षा की तैयारी करनी है तो यही कमरा. बाहर जाने के लिए तैयार होना है तो शृंगार मेज के सामने घूमघूम कर अपनेआप को निखारने के लिए यही कमरा. मां या पिताजी से कोई अपनी जिद मनवानी हो तो पलंग पर उलटे लेट कर रूठने के लिए यही कमरा या किसी बात पर रोना हो तो सुबकने के लिए इसी कमरे का कोना. मेरा क्या कुछ नहीं जुड़ा था इस कमरे से. अब यही इतना बेगाना लग रहा है कि यह अपनी उछलतीकूदती मीनू को पहचान नहीं पा रहा.

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‘‘तू यहीं छिपी बैठी है. मैं तुझे कब से ढूंढ़ रहा हूं,’’ भैया आते ही एक चपत मेरे सिर पर लगाते हैं. भाभी के हाथ में कुछ पैकेट थमा कर कहते हैं, ‘‘लीजिए, बंदा आप के लिए शक्तिवर्धक दवाएं व फल ले आया है.’’ फिर मुन्ने को गोद में उठा कर अपना गाल उस के गाल से सटाते हुए कहते हैं, ‘‘देखा तू ने इसे. मां कह रही थीं बचपन में तू बिलकुल ऐसी ही लगती थी. अगर यह तुझ पर ही गया तो इस के नखरे उठातेउठाते हमारी मुसीबत ही आ जाएगी.’’

‘‘मारूंगी, ऐसे कहा तो,’’ मैं तुनक कर जवाब देती हूं. मुझे यह दृश्य भला सा लग रहा है. अपने संपूर्ण पुरुषत्व की पराकाष्ठा पर पहुंचा पितृत्व के गर्व से दीप्त मुन्ने के गाल से सटा भैया का चेहरा. सबकुछ बेहद अच्छा लगने पर भी, इतनी खुश होते हुए भी एक कतरा उदासी चुपके से आ कर मेरे पास बैठ जाती है. मैं भैया की शादी में भी कितनी मस्त थी. भैया की शादी की तैयारी करवाने 15 दिन पहले ही चली आई थी. मैं ने और मां ने बहुत चाव से ढूंढ़ढूंढ़ कर शादी का सामान चुना था. अपने लिए शादी के दिन के लिए लहंगा व स्वागत समारोह के लिए तनछोई की साड़ी चुनी थी. बरात में भी देर तक नाचती रही थी.

मां व मैं घर पर सारी खुशियां समेट कर भाभी का स्वागत करने के लिए खड़ी थीं. भैया भाभी के आंचल से अपने फेंटे की गांठ बांधे धीरेधीरे दरवाजे पर आ रहे थे.

‘‘अंदर आने का कर लगेगा, भैया.’’ मैं ने अपना हाथ फैला दिया था.

‘‘पराए घर की छोकरी मुझ से कर मांग रही है, चल हट रास्ते से,’’ भैया मुझे खिजाने के लिए आगे बढ़ते आए थे.

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‘‘मैं तो नहीं हटूंगी,’’ मैं भी अड़ गई थी.

‘‘कमल, झिकझिक न कर, नेग तो देना ही होगा,’’ मां और एक बुजुर्ग महिला ने बीचबचाव किया था.

‘‘तुम्हीं बताओ, इसे कितनी बख्शीश दें?’’ भैया ने स्नेहिल दृष्टि से भाभी को देखते हुए पूछा था.

भाभी तो संकोच से आधे घूंघट में और भी सिमट गई थीं. किंतु मुझे कुछ बुरा लगा था. मुझे कुछ देने के लिए भैया को अब किसी से पूछने की जरूरत महसूस होने लगी है.

ऐसे करें डैंड्रफ की समस्या का इलाज

आपकी पर्सनैलिटी कितनी खूबसूरत होगी, इसमें बालों का काफी योगदान होता है. आपके बालों से आपकी सुंदरता तय होती है. पर सोचिए बढ़ती उम्र के साथ जब आपके सिर से बाल कम होने लगें तो कैसा लगेगा. जब आपके बाल कम होने लगते हैं तो आपका आत्मविश्वास कम होने लगता है.

आप सार्वजनिक जगहों में जाने से कतराती हैं. खुद पर से आपका कौंफिडेंस कम होने लगता है. इस लिए जरूरी है कि आप अपने बालों की देखभाल करें. इस खबर में हम आपको हेयरकेयर से जुड़ी खास बाते बताएंगे.

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बालों के झड़ने के कारण

बालों के झड़ने के कई कारण होते हैं. इसमें डैंड्रफ, गलत रहन-सहन, बालों में मशीनों का बार-बार प्रयोग करना, तनाव जैसे अन्य वजहों से बाल झड़ते हैं. वहीं कई लोगों में ये शिकायत अनुवांशिक तौर पर होती है. इसमें पोषण की कमी भी महत्वपूर्ण है.

आम तौर पर जिन भी कारणों से हेयरफौल होती है उनमें डैंड्रफ प्रमुख है. तो आइए जाने कि इस समस्या को कैसे दूर करें.

ऐसे करें डैंड्रफ दूर

सबसे पहले चिरौंजी, मुलेठी, कूठ, उड़द और सेंधा नमक पीस कर रख लें. रोज सुबह इस पाउडर में शहद मिलाकर सिर पर लगाएं. आधे घंटे तक इसे सिर पर रहने दें. फिर बाल धो लें. कुछ ही दिनों में आपको काफी अंतर दिखेगा.

इस परेशानी में नीलकमल, नागकेसर, मुलेठी जैसे तत्व भी काफी असरदार होते हैं. इन्हें काले तिल और आंवला में मिलाकर पीस लें और रोज पानी में मिलाकर सिर पर लगाएं. आधे घंटे के इस बाद धो लें. इस उपाय से भी डैंड्रफ की समस्या समाप्त हो जाएगी.

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चश्मे से स्क्रैच हटाने के 5 उपाय

आज हम आपको चश्‍में पर पड़े स्‍क्रैच को हटाने के कुछ टिप्स बताएंगे जिनसे आप अपने चश्‍में पर पड़े स्‍क्रैच को आसानी से मिटा सकती हैं. चलिए जानते हैं.

1.आप जिससे अपनी कार के शीशे को साफ करते हैं, यानी की विंडशीट वाटर रैपेलेंट के दा्रा स्‍क्रैच को  साफ कर सकती हैं. इसके अलावा मेटल पौलिश से भी यह कार्य बड़ी आसानी से किया जा सकता है.

2. घर में आपका टूथपेस्‍ट इस कार्य को आसानी से कर सकता है. एक कपड़े से टूथपेस्‍ट ले कर चश्‍में के स्‍क्रैच वाले स्‍थान पर धीरे धीरे रगड़िए और देखिए कि निशान हल्‍का हो चुका होगा.

3. प्लास्टिक आई रिपेयर के लिए, नारियल का जमा हुआ तेल या फिर मोम काम आ सकता है. इनको लगाने के बाद चश्‍में को कपड़े से पोंछ दीजिए.

4. कभी कभी रेफ्रिजरेटर में अपने चश्मे को रखने से और उस पर बर्फ के थक्‍को को हटाने पर भी खरोंच कम हो जाती है. इसको जरुर आजमाएं.

5. थोड़ा सा बेकिंग सोड़ा और पानी लेकर पेस्‍ट तैयार करें और उसे स्‍क्रैच वाले स्‍थान पर लगा दें. इससे आपके चश्‍में बिल्‍कुल ब्रैंड न्‍यू लगने लगेगें.

लाली : भाग 1

नेत्रहीन लाली और रोशन बचपन के साथी थे. लाली रोशन की आंखों से दुनिया देखती थी. दोनों साथसाथ खातेपीते, मस्ती करते. आखिर दोनों ही तो एकदूसरे का सहारा थे. इतनी नजदीकियों के बावजूद न जाने क्यों दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं.

वह दीवार के सहारे बैठा था. उस के चेहरे पर बढ़ी दाढ़ी को देख कर लगता था कि उसे महीने से नहीं छुआ गया हो. दाढ़ी के काले बालों के बीच झांकते कुछ सफेद बाल उस की उम्र की चुगली कर रहे थे. जिंदगी की कड़वी यादें और अनुभव के बोझ ने उस की कमर को भी झुका दिया था.

रात का दूसरा पहर और सड़क के किनारे अंधेरे में बैठा वह अपनी यादों में खोया था. यादें सड़क से गुजरने वाले वाहनों की रोशनी की तरह ही तो थीं, जो थोड़ी देर के लिए अंधेरी दुनिया को रोशन कर जाती थीं, लेकिन आज क्षणभंगुर रोशनी का भी आखिरी दिन था. आज लाली की शादी जो हो रही थी, उसी चारदीवारी के अंदर जिस के सहारे वह बैठा था. वह अपने 12 साल पुराने अतीत में चला गया.

रेल के डब्बे के पायदान पर बैठा वह बहुत खुश था. उम्र करीब 14 साल रही होगी. उस दिन बड़ी तन्मयता के साथ वह अपनी कमाई गिन रहा था.

2…4…10…15… वाह, आज पूरे 15 रुपए की कमाई हुई है. अब देखता हूं उस लाली की बच्ची को…कैसे मुझ से ज्यादा पैसे लाती है. हर बार मुझ से ज्यादा पैसे ला कर खुद को बहुत होशियार समझती है. आज आने दो उसे…आज तो वह मुझ से जीत ही नहीं सकती. 15 रुपए तो उस ने एकसाथ देखे भी नहीं होंगे. जो टे्रन की रफ्तार के साथ भाग रहे थे.

‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…’ भजन के स्वर कान में पड़ते ही वह अपने खयालों से बाहर आ गया. यह लाली की आवाज ही थी, जैसे दूर किसी मंदिर में घंटी बज रही हो.

उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो लाली खड़ी थी. उम्र करीब 12 वर्ष, आंखों में चमक मगर रोशनी नहीं, दाएं हाथ में 2 संगमरमर के छोटेछोटे टुकड़े जो साज का काम करते थे, सिर के बाल पीछे की ओर गुंथे हुए.

‘लाली, मैं यहां हूं. तू इधर आ. कब से तेरा इंतजार कर रहा हूं. स्टेशन आने वाला है. आज कितने पैसे हुए?’

‘रोशन, तू यहां है,’ लाली बोली और अपने दोनों हाथों को आगे की ओर उठा कर आवाज आने की दिशा की ओर मुड़ गई. इन 12 सालों में लाली ने हाथों से ही आंखों का काम लिया था. रोशन ने उसे अपने साथ पायदान पर बिठा लिया.

‘रोशन, जरा मेरे पैसे गिन दे.’

‘अभी तू इन्हें अपने पास रख. स्टेशन आने वाला है. उतरने के बाद पार्क में बैठ कर इन पैसों को गिनेंगे.’

स्टेशन आते ही दोनों टे्रन से उतर कर पार्क की ओर चल दिए.

पार्क की बेंच पर बैठते ही लाली ने अपने सभी पैसे रोशन को पकड़ा दिए.

रोशन के चेहरे पर विजयी मुसकान आ गई, आज तो उस की जीत होनी ही थी. उस ने पैसे लिए और गिनने लगा.

‘2…4…10…12…15…20…22, ओह, आज फिर हार गया और अब फिर से इस के ताने सुनने होंगे.’ रोशन ने मन ही मन सोचा और चिढ़ कर सारे पैसे लाली के हाथ में पटक दिए.

‘बता न कितने हैं?’

‘मैं क्यों बताऊं, तू खुद क्यों नहीं गिनती, मैं क्या तेरा नौकर हूं.’

‘समझ गई,’ लाली हंसते हुए बोली.

‘तू क्या समझ गई.’

‘आज फिर मेरे पैसे तुझ से ज्यादा हैं, तू मुझ से जल रहा है.’

‘अरे, जले मेरी जूती,’ रोशन ने बौखलाते हुए कहा.

‘तेरे पास तो जूते भी नहीं हैं जलाने को, देख खाली पैर बैठा है,’ लाली यह कह कर हंसने लगी. लाली की इस बात ने जैसे आग में घी डाल दिया. रोशन गुस्से में बोला, ‘अरे, तू अंधी है तभी तुझ पर तरस खा कर लोग पैसे दे देते हैं, वरना तेरे गाने को सुन कर तो जिंदा आदमी भी मर जाए और मरे आदमी का भूत भाग जाए.’

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यह सुन कर लाली जड़ हो गई और उस की आंखों से आंसू निकल पड़े. लाली के आंसुओं ने रोशन के गुस्से को धो डाला. वह पछताने लगा मगर माफी मांगे तो कैसे?

‘लाली, माफ कर दे मुझे, मैं तो पागल हूं. किसी पागल की बात का बुरा नहीं मानते.’

लाली ने दूसरी तरफ मुंह मोड़ लिया.

‘अरे, लाली, मैं ने तुझ से अच्छा गाने वाला आज तक नहीं सुना. मैं सच बोल रहा हूं. तुझ से अच्छा कोई गा ही नहीं सकता.’

वह सच बोल रहा था. काश, लाली उस की आंखों में देख पाती तो जरूर विश्वास कर लेती. लाली के चेहरे पर अविश्वास की झलक साफ पढ़ी जा सकती थी.

‘लाली, मैं सच कह रहा हूं…बाबा की कसम. देख तुझे पता है मैं बाबा की झूठी कसम नहीं खाता. अब तू चुप हो जा.’

लाली के चेहरे पर अब मुसकान लौटने लगी थी.

‘अब मैं कभी तुझे अंधी नहीं बोलूंगा, तुझे आंखों की जरूरत ही नहीं है, ये रोशन तेरी आंखों की रोशनी है,’ अब लाली के चेहरे पर मुसकान लौट आई थी.

कमरे में खाट पर जर्जर काया लेटी हुई थी. टूटी हुई छत से झांकते हुए धूप के टुकड़ों ने कमरे में कुछ रोशनी कर रखी थी.

माखन खाट पर लेटा रोशन के आने का इंतजार कर रहा था. ‘आज इतनी देर हो गई रोशन आया नहीं है.’

माखन की उम्र करीब 65 वर्ष होगी. खाट पर लेटे हुए वह अपने अंतिम दिनों को गिन रहा था. लोगों की घृणा भरी नजरें और अपने शरीर को गलता देख माखन में जीने की चाह खत्म हो गई थी पर मौत भी शायद उस के साथ आंखमिचौली का खेल खेल रही थी.

दिल की इच्छा थी कि रोशन पढ़लिख कर साहब बने. उस ने वादा भी किया था रोशन से कि जिस दिन वह मैट्रिक पास कर लेगा उस दिन वह उसे अपने रिकशे में साहब की तरह बिठा कर पूरा शहर घुमाएगा. लेकिन गरीब का सपना पूरा कहां होता है.

4 साल पहले कोढ़ ने उसे रिकशा चलाने लायक भी नहीं छोड़ा और वह बोझ बन गया रोशन पर. रोशन को स्कूल छोड़ना पड़ा. गरीब की जिंदगी में बचपन नहीं होता, गरीबी और जिम्मेदारी ने रोशन को उम्र से पहले ही बड़ा कर दिया. कलम की जगह झाड़ू ने ले ली, स्कूल की जगह रेलगाड़ी ने और शिक्षक की प्यार भरी डांटफटकार की जगह लोगों के कटु वचनों और गाली ने ले ली.

‘अरे, तू आ गया रोशन. कहां था अब तक और यह तेरे हाथ में क्या है?’

‘बाबा, यह लो अपनी दवाई, तुम्हें जलेबी पसंद है न. लो, खाओ और यह भी लो,’ यह कहते हुए उस ने देसी शराब की बोतल माखन की ओर बढ़ा दी.

‘अरे, बेटा, इतने पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी.’

रोशन के चेहरे पर मुसकान आ गई. उस ने बाबा की आंखों की चमक को पढ़ लिया था. उसे पता था कि बाबा को रोज शराब की तलब होती है, लेकिन पैसों की तंगी के कारण कई महीने बाद बाबा के लिए वह बोतल ला पाया था.

रोशन हर दिन की तरह उस दिन भी टे्रन के पायदान पर लाली के साथ बैठा था.

‘वह देख लाली, इंद्रधनुष, कितना खूबसूरत है,’ टे्रन के पायदान पर बैठे रोशन ने इंद्रधनुष की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘इंद्रधनुष कैसा होता है, कहां रहता है?’

‘अरे, तुझे इतना भी नहीं पता. इंद्रधनुष 7 रंगों से बना होता है. उस में लाल रंग सब से सुंदर होता है और पता है यह आसमान में लटका रहता है.’

स्कूल में सीखे हुए इंद्रधनुष के सारे तथ्य उस ने लाली को बता दिए लेकिन उसे खुद इन बातों में भरोसा नहीं था. जैसे इंद्रधनुष के 7 रंग.

उस ने 5 रंग बैगनी, नीला, हरा, पीला और लाल से ज्यादा रंग कभी इंद्रधनुष में नहीं देखे थे. और भी मास्टरजी की कई बातों पर उसे भरोसा नहीं होता था जैसे धरती गोल है, सूरज हमारी धरती से बड़ा है…इन सारी बातों पर कोई पागल ही भरोसा करेगा.

लेकिन दूसरे बच्चों पर अपनी धौंस जमाने के लिए ये बातें वह अकसर बोला करता था.

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अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता देख माखन समझ गया अब उस का अंतिम समय आ गया है. रोशन को अंतिम बार देखने के लिए उस ने अपनी सांसें रोक रखी थीं, उस ने अपनी आंखें दरवाजे पर टिका रखी थीं. लेकिन जितनी सांसें उस के जीवन की थीं शायद सारी खत्म हो चुकी थीं. आत्मा ने शरीर का साथ छोड़ दिया था. बस, बचा रह गया था उस का ठंडा शरीर और इंतजार करती दरवाजे की ओर देखती आंखें.

बाबा को गुजरे 1 साल हो गया था. रोशन ने टे्रन की सफाई के साथसाथ घर भी छोड़ दिया था. जब भी वह घर जाता उसे लगता बाबा का भूत सामने खड़ा है और बारबार उसे बारूद के कारखाने में काम करने से मना कर रहा है. टे्रन का काम रोशन को कभी पसंद नहीं था लेकिन बाबा के दबाव में वह कारखाने में काम नहीं कर पाया था. बाबा ने उस से वादा भी किया था कि उन के मरने के बाद रोशन बारूद के कारखाने में काम नहीं करेगा, लेकिन वह उस वादे को निभा नहीं पाया.

बचपन के दिन क्यों होते हैं बेहद खूबसूरत

बचपन के दिन बेहद खूबसूरत होते हैं. सपनों की दुनिया में विचरते इस बचपन का हर लम्हा दर्द और तनाव से दूर ऊर्जा से भरपूर होता है. यदि आप भी लड़ाई-झगड़ों, मानसिक तनावों और बीमारियों से दूर एक स्वस्थ ,खुशहाल, रोचक और आसान जिंदगी जीना चाहते हैं तो हमारी सलाह मानिये. आप 35 साल के हों या 55 के जीवन में वे रंग भरिए, जो होते हैं बचपन के …

  1. लड़ना ,रूठना और तुरंत मान जाना
    याद कीजिए बचपन में आप को कोई भी बात बुरी लगती थी तो आप दिल खोल कर बोलते थे. कोई बात दिल में दबा कर नहीं रखते थे. अपना हक मांगते थे. लड़झगड़ कर सामने वाले से रूठ भी जाते थे तो 2 मिनट बाद ही आप उसी शख्स के साथ खेलने लग जाते थे. मन में कोई मेल नहीं रखते थे. कोई शिकायत नहीं थी. पर अब हजारों बातें और शिकायतें हैं जिन्हें आप मन में रखते हैं. सामने वाले से कहते नहीं. अंदर ही अंदर घुटने रहते हैं. किसी की बात बुरी लगे तो आहत हो जाते हैं. छोटीछोटी बातों पर क्रोधित होते हैं और उस क्रोध की ज्वाला से सालों खुद को ही झुलसाते रहते हैं. इस तरह आप खुद अपनी सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं. रिश्तो में दरार लाते हैं और सालोंसाल और पीड़ा का बोझ मन पर ढोए जीते जाते हैं. बेहतर है कि बच्चों की तरह दूसरे की कटु बातों को भी हल्के में लेना शुरू करें. अपना मन हमेशा साफ रखें.

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2. हर समय कुछ नया सीखने की चाह
बचपन में इंसान हर पल कुछ नया सीखता है. उस के हाथ में कुछ भी दे दीजिए वह घंटों उस से खेलता रहेगा. नएनए प्रयोग करेगा. उस के अंजरपंजर तोड़ कर देखेगा. जानने का प्रयास करेगा. हर बात पर सवाल करेगा. हमेशा कुछ नया जानने और सीखने का प्रयास करेगा. इसी स्वभाव की वजह से बच्चे न तो कभी बोर होते हैं और न ही सुस्त बैठते हैं. हर समय एक्टिव रहते हैं दिमाग से भी शरीर से भी. इस सक्रियता की वजह से वे बीमार कम होते हैं. उन के शरीर में उर्जा और जीवन के प्रति आकर्षण बना रहता है. पर बड़े होने के बाद हम क्या करते हैं ? एक रूटीन जिंदगी जीने लग जाते हैं. कुछ नया सीखने या करने की इच्छा खत्म होती जाती है. कभी कंप्यूटर के सामने घंटों बैठे रहते हैं तो कभी मोबाइल हाथ में ले कर स्क्रौल डाउन करते रहते हैं. इस जड़ता का नतीजा यह होता है कि शरीर और दिमाग में जंग लगने लगता है. शारीरिक मानसिक निष्क्रियता ले कर आती है सैकड़ों बीमारियां और बोझिल लमहे. इस लिए स्वस्थ रहना चाहते हैं तो दिमाग और शरीर को हमेशा सक्रिय बनाए रखें.

3. भोलापन और मासूमियत
बच्चे रिश्तो को नफा नुकसान के तराजू पर नहीं तौलते. प्यार और मासूमियत से हर किसी को अपना बना लेते हैं. बिना किसी भेदभाव के सब को गले लगाते हैं. सब के साथ मस्ती करते हैं. सब को बुआ, मामा, अंकल ,आंटी बना लेते हैं. बदले में उन्हें हर किसी का प्यार मिलता है.
मगर बड़े होने पर हम फायदा देख कर रिश्ते बनाना शुरू कर देते हैं. हमारा दिल सब के लिए नहीं खुलता. ईर्ष्या ,क्रोध, द्वेष ,वैमनस्य की काली छाया में हमारी सरलता कहीं खो जाती है. नतीजा यह होता है कि हम हमेशा तनाव में जीवन गुजारने लग जाते हैं. मन की खुशी चाहते हैं तो बच्चों की सरलता और भोलेपन को अपने स्वभाव का हिस्सा बनाएं.

4. बेफिक्री
बचपन में हमें किसी बात की फिक्र नहीं होती. न पैसे कमाने की, न अहम् पर चोट लगने की और न ही दूसरों से आगे बढ़ने की. जो मिल गया उसी का जश्न मना लेते हैं. मगर बड़े होने पर हम छोटीछोटी बातों पर तनाव ले लेते हैं. कभी भविष्य की चिंता तो कभी किसी के द्वारा नजरअंदाज किए जाने का गुस्सा ,कभी किसी करीबी को खो देने का डर तो कभी असफल हो जाने भय. इस तरह बेवजह की चिंताएं हमारे दिल पर हर समय हावी रहती है. धीरेधीरे हमारे दिल पर इतने बोझ इकट्ठे होने लगते हैं कि दिल सही ढंग से काम ही नहीं कर पाता.
इसलिए अभी से सचेत हो जाइये. दिल और दिमाग पर बोझ बढ़ाने के बजाय मन के हर मलाल को बेफिक्री के धुओं में उड़ाते चलें. तब आप भी बच्चों की तरह खुशहाल जिंदगी जी सकेंगे.

5. सादगी और सरलता
कभी आपने बच्चों को नोटिस किया है? वे जो सोचते हैं वही बोलते हैं. जो उन के मन में होता है वही जुबां पर होता है. वे रिश्तों के समीकरणों या दूसरे को पीछे कर आगे निकलने के दांवपेंचों में नहीं उलझते. वे नकली मुखौटा नहीं पहनते.

यदि आप भी जिंदगी में सादगी और सरलता के गुणों को अपना ले तो बिन मांगे आप को खुशियों और सम्मान भरी जिंदगी मिल जाएगी.वहीं बड़े होने पर हमारा माइंड सेट ही बदल जाता है. घूमफिर कर हम उन्ही बातों को याद करते रहते हैं जिन की वजह से हमें दुख पहुंचा या अपमान हुआ. हम कुछ लोगों के प्रति मन में नकारात्मक भाव रखने लगते हैं और बारबार उसे मजबूत भी करते रहते हैं. इस तरह हमारा मन नकारात्मक उर्जा से भर जाता है. इस का सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है. इन सब से बचने के लिए जरूरी है कि आप खुद को नकारात्मक सोच और अपने आसपास फैली नकारात्मकता से दूर रखें. हर चीज़ में अच्छा देखने की आदत डालें. इस से आप के जीवन में सुकून, सेहत और ऊर्जा का संचार होगा. दूसरों को माफ कर अपना दिल साफ रखें. इस से आप जीवन को बिना किसी पूर्वाग्रह से जी पाते हैं.

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6. गलतियों से घबराना नहीं
बचपन में हम गलतियां कर के नई बातें सीखते हैं. कितनी भी बड़ी गलती हो जाए हंस कर आगे बढ़ जाते हैं. पर उम्र बढ़ने के साथ हमारा नजरिया बदल जाता है. हम हर काम परफैक्शन के साथ करना चाहते हैं. प्रतियोगिता में सब को पछाड़ कर आगे आना चाहते हैं. मगर हमें यह खबर नहीं होती कि इस चक्कर में हम खुद पर कितना दबाव डाल रहे हैं. अपनी सेहत के साथ कितना अन्याय कर रहे हैं. जीवन में गलतियां करना गलत नहीं. गलतियों से सबक लेना गलत है. गलती के डर से जोखिम न उठाना गलत है. बच्चों की तरफ गलतियां करें और उस से सीखें. आगे बढ़े.तभी जिंदगी आप को खुशियों से नवाजेगी.

  1. खुल कर हंसना
    बच्चों को कभी गौर से देखिए. वे छोटीछोटी बातों पर ठठा कर हंस पड़ते हैं. अजनबियों को देख कर भी मुस्कुरा देते हैं. मगर बड़े होने के बाद हमारी यह हंसी कहीं खो जाती है. हम सोचसोच कर हंसते मुस्कुराते हैं. हमें प्रयत्न कर के हंसना पड़ता है. किसी भी पार्क में सुबहसुबह आप को ऐसे लोगों का ग्रुप जरूर मिल जाएगा जो हाथ उठा कर सम्मिलित रूप से एक साथ हंसने का प्रयास करते हैं ताकि फेफड़ों को पूरा ऑक्सीजन मिल सके और सेहत बेहतर हो सके. पर यह जबरदस्ती की हंसी वह फायदा नहीं दे सकती जो स्वाभाविक रूप से हमारे अंदर से आती है. असली मुस्कान जरुरी है जो होठों से बढ़ कर आँखों तक पहुंचे.ऐसी मुस्कान हर दर्द , हर तनाव से आप को राहत देगी. इसलिए जीवन को खूबसूरत बनाना है तो खुल कर दिल से हंसिये. हंसने में कभी भी कंजूसी न करें.

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हाइड्रोजैल के उपयोग : जल प्रबंधन और अधिक उपज

बढ़ती आबादी के साथसाथ कृषि, उद्योग और शहरी आबादी के बीच पानी की कमी होना अब चिता की बात है. इस समस्या से कैसे निबटा जाए, इस के लिए हर रोज नए प्रयोग भी हो रहे हैं. जल प्रबंधन की अनेक तरकीबें जैसे ड्रिप व फव्वारा सिंचाई, छोटे पैमाने पर जल संचयन यानी पानी जमा करना मल्चिंग, शून्य या कम से कम जुताई जैसे तरीकों को अपनाया जा रहा है. खेती में कम से कम पानी की जरूरत हो, इसी संदर्भ में विशेषज्ञों ने ऐसा पदार्थ ईजाद किया जिन्हें हाइड्रोजैल कहा जाता है. यह जल संरक्षण के लिए बेहद उपयोगी तकनीक है.

पूसा हाइड्रोजैल : कृषि की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पूसा कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि रसायन संभाग के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजैल तैयार किया है जिसे पूसा हाइड्रोजैल का नाम दिया गया?है.

यह कृषि रसायन प्राकृतिक पौलीमर सैल्यूलोस पर आधारित है. यह अपने शुष्क वजन के मुकाबले 350-500 गुना अधिक पानी ग्रहण कर फूल जाता है और पौधे की जरूरत के मुताबिक धीरेधीरे जड़ क्षेत्र में अपना प्रभाव छोड़ता है, जिस से पौधे की जड़ में नमी बनी रहती?है. यह उत्पाद उच्च तापमान (40 से 50 डिगरी सैल्सियस) पर भी प्रभावी रहता है, इसलिए यह हमारे देश के गरम इलाकों के लिए भी बेहद लाभदायक है.

पूसा हाइड्रोजैल के लाभ : पौधों की जड़ों के आसपास की मिट्टी में नमी बनी रहती है. बारानी क्षेत्रों व सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में किसानों के लिए पानी की बचत होती है. मिट्टी में पूसा हाइड्रोजैल डालने से सभी तरह की फसलों, जिन में खाद्यान्न व बागबानी फसलें शामिल हैं, में कम सिंचाई करनी पड़ती है. इस प्रकार यह तकनीक सिंचाई, पैसा और समय की लागत को कम करती है.

गेहूं की फसल में इस के असर को जानने लिए पूसा संस्थान व देश के अन्य कई संस्थानों द्वारा परीक्षण किए गए. इन परीक्षणों के नतीजों में पाया गया कि सामान्य तौर पर गेहूं के लिए 5-6 सिंचाइयों की जरूरत रहती?है, जबकि पूसा हाइड्रोजैल का इस्तेमाल कर के उपज में नुकसान के बिना आसानी से 2 सिंचाई बचाई जा सकती हैं. इसी तरह मूंगफली, आलू, सोयाबीन, फूलों, शाकीय व अन्य फसलों में भी इस के अच्छे नतीजे देखे गए हैं.

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नर्सरी व पौध रोपाई के अच्छे नतीजे : नर्सरी लगाते समय व पौध रोपण के समय पूसा हाइड्रोजैल का प्रयोग अंकुरण व जड़ फुटाव को बढ़ावा देता है. संस्थान के संरक्षित कृषि व प्रौद्योगिकी केंद्र के पौलीहाउस व खेतों में किए गए परीक्षणों में देखा गया है कि गुलदाउदी में पूसा हाइड्रोजैल के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता की नर्सरी मात्र 18-20 दिन में तैयार हो जाती?है जबकि आमतौर पर नर्सरी तैयार होने में 28-30 दिन का समय लगता है.

मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए पूसा हाइड्रोजैल न केवल बीज के फुटाव, फसल विकास में भी सहायक है, बल्कि यह पौधे को स्थायी रूप से मुरझाने की स्थिति में लंबे समय तक बचाता?है.

कैसे काम करता है पूसा हाइड्रोजैल : मिट्टी में डालने पर पूसा हाइड्रोजैल इसी का एक हिस्सा बन जाता?है. इस हाइड्रोजैल के चीनी के दानों जैसे छोटेछोटे कण जड़ के आसपास में सिंचाई या बारिश के बाद अतिरिक्त पानी, जो कि पौधों को नहीं मिल पाता है, को पा कर फूल जाते हैं और पौधों के विकास के दौरान पानी की कमी से पैदा होली वाली स्थिति में जड़ें इन फूले हुए कणों से जरूरत के मुताबिक पानी व पोषक तत्त्व लेती हैं.

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कहां और किस कीमत पर : अनेक परिस्थितियों में उगाई जाने वाली अधिकांश फसलों के लिए पूसा हाइड्रोजैल 2.5 से 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना सही माना गया है. बाजार में यह उत्पाद निम्नलिखित कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है:

कार्बोरंडम यूनिवर्सल प्रा. लि. बैंगलुरु, ब्रांड का नाम कावेरी, मोबाइल नंबर 9449081339.

अर्थ इंटरनैशनल प्रा. लि., नई दिल्ली, ब्रांड का नाम वारिधर, जी 1, मोबाइल नंबर 9868259735.

इस के अलावा 2 और कंपनियां, हंटिन आर्गेनिक्स प्राइवेट लि., फरीदाबाद व नागार्जुन फर्टिलाइजर्स प्रा. लि., हैदराबाद भी इस उत्पाद को जल्दी ही बाजार में उपलब्ध कराएंगी.

पूसा हाइड्रोजैल की शुरुआती कीमत 1,200 रुपए प्रति किलोग्राम से ले कर 1,400 रुपए प्रति किलोग्राम रखी गई?है. कंपनियों से मिली जानकारी के आधार पर मांगानुसार कीमत के कम या ज्यादा होने की संभावनाएं हैं.

हाइड्रोजैल का इस्तेमाल : पूसा हाइड्रोजैल का इस्तेमाल तय किए गए तौरतरीकों के अनुसार ही करें. जरूरत के मुताबिक तय की जाने वाली प्रत्येक विधि में यह ध्यान रखना जरूरी है कि हाइड्रोजैल के कण बीज या पौध के एकदम नीचे या आसपास ही डालें, जिस से पौधें को पूरी नमी मिले.

खास तरीका:

गेहूं, मक्का, दालों, तिलहन वगैरह जैसी फसलों के लिए:

* खेती की तैयारी, पूर्व बोआई व सिंचाई, उर्वरक आदि का प्रयोग सामान्य रूप से करें.

* हाइड्रोजैल का प्रयोग बोआई के समय सब से ज्यादा लाभदायक है.

* खेत से 20-25 किलोग्राम सूखी मिट्टी लें व उसे एकसमान कर लें. इस में जरूरत के मुताबिक 2.5-5.0 किलोग्राम हाइड्रोजैल व बीज मिलाएं.

* यदि आप डीएपी का प्रयोग कर रहे?हैं तो इसे भी खेत में डालने की अपेक्षा मिट्टी जैल के मिश्रण में मिलाना फायदेमंद रहता है.

* तैयार किए गए मिश्रण को सीड ड्रिल या हल द्वारा लाइनों में डालें, बाद में फसल की अवस्था व मिट्टी में नमी के आधार पर सिंचाई करें.

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पौधा तैयार करने के लिए

कुछ फसलों के लिए पौध भी तैयार करनी होती?है जिस के लिए सही वातावरण व पोषण तत्त्वों की तय मात्रा बेहद जरूरी है. पूसा हाइड्रोजैल इस संदर्भ में बहुत उपयोगी है. बोआई से पहले मिट्टी की तैयारी के समय भी इस के इस्तेमाल की सिफारिश की जाती है.

ट्रे में पौध तैयार करने के लिए हाइड्रोजैल (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है) को सूखे मिट्टी रहित माध्यम में अच्छी तरह मिलाएं. ट्रे को इस मिश्रण से भर लें और ट्रे में बीज बो दें और सामान्य रूप से प्रथम सिंचाई या फर्टीगेशन करें. बाद की सिंचाइयां बीज अंकुरण व समयसमय पर नमी की स्थिति को देखते हुए करनी चाहिए. खेत में पौध तैयार करने के लिए हाइड्रोजैल (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) और बीज जरूरत के मुताबिक उतनी सूखी मिट्टी में मिलाएं जिसे आसानी से नर्सरी क्षेत्र में समान रूप से फैलाया जा सके.

पौध की खेत में रोपाई के समय

हाइड्रोजैल को सूखी मिट्टी में मिलाएं. तैयार मिश्रण को खेत में बनाई गई कुंड पंक्तियों में समान रूप से डालें. बाद में पौध रोपाई इस तरीके से करें कि डाला गया जैल जड़ के आसपास ही रहे.

डिबलिंग विधि द्वारा फसल (आलू, गन्ना) की रोपाई के समय जैल मिट्टी मिश्रण बीज कलम लगाने के लिए बनाए गए गड्ढों

या कुंडों में समान रूप से बांट कर के डालें. बाद में बीज कलम रोप कर कुंड या गड्ढे को ढक दें.

सावधानियां

* पैकेट को अच्छी तरह से बंद कर के रखें, ताकि इस पर नमी का असर न हो.

* बोआई या पौध रोपण के समय हाइड्रोजैल मिट्टी मिश्रण को पूर्ण रूप से नमी रहित सूखी मिट्टी में तैयार करें.

* बीज व मिट्टी के साथ जैल का सभाग मिश्रण करना जरूरी है.

* जैल मृदा मिश्रण का खेत में समान रूप से प्रयोग सुनिश्चित करें.

* नमी रहित स्थान पर ही इस का भंडारण करें.

आसरा : भाग 1

मातापिता के सपनों को चूर कर के नासमझ जया ने करन के प्यार को अपना लिया लेकिन वह भूल गई थी कि जिंदगी तो पत्थर पर उकेरे गए उन अक्षरों की तरह होती है जो एक बार नक्श हो गए तो उन्हें न बदला जा सकता है न ही मिटाया.

धूप का एक उदास सा टुकड़ा खिड़की पर आ कर ठिठक गय  था, मानो अपने दम तोड़ते अस्तित्व को बचाने के लिए आसरा तलाश रहा हो. खिड़की के पीछे घुटनों पर सिर टिकाए बैठी जया की निगाह धूप के उस टुकड़े पर पड़ी, तो उस के होंठों पर एक सर्द आह उभरी. बस, यही एक टुकड़ा भर धूप और सीलन भरे अंधेरे कमरे का एक कोना ही अब उस की नियति बन कर रह गया है.

अपनी इस दशा को जया ने खुद चुना था. इस के लिए वह किसे दोष दे ? कसूर उस का अपना ही था, जो उस ने बिना सोचेसमझे एक झटके में जिंदगी का फैसला कर डाला. उस वक्त उस के दिलोदिमाग पर प्यार का नशा इस कदर हावी था कि वह भूल गई कि जिंदगी पानी की लहरों पर लिखी इबारत नहीं, जो हवा के एक झोंके से मिट भी सकती है और फिर मनचाही आकृति में ढाली भी जा सकती है.

जिंदगी तो पत्थर पर उकेरे उन अक्षरों की तरह होती है कि एक बार नक्श हो गए तो हो गए. उसे न तो बदला जा सकता है और न मिटाया जा सकता है. अपनी भूल का शिद्दत से एहसास हुआ तो जया की आंखें डबडबा आईं. घुटनों पर सिर टिकाए वह न जाने कब तक रोती रही और उस की आंखों से बहने वाले आंसुओं में उस का अतीत भी टुकड़ेटुकड़े हो कर टूटताबिखरता रहा.

जया अपने छोटे से परिवार में  तब कितनी खुश थी. छोटी बहन अनुपमा और नटखट सोमू दीदीदीदी कहते उस के चारों ओर घूमा करते थे. बड़ी होने की वजह से जया उन दोनों का आदर्श भी थी, तो उन की छोटी से छोटी समस्या का समाधान भी. मां आशा और पिता किशन के लाड़दुलार और भाईबहन के संगसाथ में जया के दिन उन्मुक्त आकाश में उड़ते पंछी से चहकते गुजर रहे थे.

इंटर तक जया के आतेआते उस के भविष्य को ले कर मातापिता के मन में न जाने कितने अरमान जाग उठे थे. अपनी मेधावी बेटी को वह खूब पढ़ाना चाहते थे. आशा का सपना था कि चाहे जैसे भी हो वह जया को डाक्टर बनाएगी जबकि किशन की तमन्ना उसे अफसर बनाने की थी.

जया उन दोनों की चाहतों से वाकिफ थी और उन के प्रयासों से भी. वह अच्छी तरह जानती थी कि पिता की सीमित आय के बावजूद वह  दोनों उसे हर सुविधा उपलब्ध कराने से पीछे नहीं हटेंगे. जया चाहती थी कि अच्छी पढ़ाई कर वह अपने मांबाप के सपनों में हकीकत का रंग भरेगी. इस के लिए वह भरपूर प्रयास भी कर रही थी.

उस के सारे प्रयास और आशा तथा किशन के सारे अरमान तब धरे के धरे रह गए जब जया की आंखों  में करन के प्यार का नूर आ समाया. करन एक बहार के झोंके की तरह उस की जिंदगी में आया और देखतेदेखते उस के अस्तित्व पर छा गया.

वह दिन जया कैसे भूल सकती है जिस दिन उस की करन से पहली मुलाकात हुई थी, क्योंकि उसी दिन तो उस की जिंदगी एक ऐसी राह पर मुड़ चली थी जिस की मंजिल नारी निकेतन के सीलन भरे अंधेरे कमरे का वह कोना थी, जहां बैठी जया अपनी भूलों पर जारजार आंसू बहा रही थी. लेकिन उन आंसुओं को समेटने के लिए न तो वहां मां का ममतामयी आंचल था और न सिर पर प्यार भरा स्पर्श दे कर सांत्वना देने वाले पिता के हाथ. वहां थी तो केवल केयरटेकर की कर्कश आवाज या फिर पछतावे की आंच में सुलगती उस की अपनी तन्हाइयां, जो उस के वजूद को जला कर राख कर देने पर आमादा थीं. इन्हीं की तपन से घबरा कर जया ने अपनी आंखें बंद कर लीं. आंखों पर पलकों का आवरण पड़ते ही अतीत की लडि़यां फिर टूटटूट कर बिखरने लगीं.

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जया के घर से उस का स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. मुश्किल से 10-12 मिनट का रास्ता रहा होगा. कभी कोई लड़की मिल जाती तो स्कूल तक का साथ हो जाता, वरना जया अकेले ही चली जाया करती थी. उस ने स्कूल जाते समय करन को कई बार अपना पीछा करते देखा था. शुरूशुरू में उसे डर भी लगा और उस ने अपने पापा को इस बारे में बताना भी चाहा, लेकिन जब करन ने उस से कभी कुछ नहीं कहा तो उस का डर दूर हो गया.

करन एक निश्चित मोड़ तक उस के पीछेपीछे आता था और फिर अपना रास्ता बदल लेता था. जब कई बार लगातार ऐसा हुआ तो जया ने इसे अपने मन का वहम समझ कर दिमाग से निकाल दिया और इस के ठीक दूसरे ही दिन करन ने जया के साथसाथ चलते हुए उस से कहा, ‘प्लीज, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं.’

जया ने चौंक कर उस की ओर देखा और रूखे स्वर में बोली, ‘कहिए.’

‘आप नाराज तो नहीं हो जाएंगी?’ करन ने पूछा, तो जया ने उपेक्षा से कहा, ‘मेरे पास इन फालतू बातों के लिए समय नहीं है. जो कहना है, सीधे कहो.’

‘मैं करन हूं. आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं.’ करन ने कुछ झिझकते और डरते हुए कहा.

अपनी बात कहने के बाद करन जया की प्रतिक्रिया जानने के लिए पल भर भी नहीं रुका और वापस मुड़ कर तेजी से विपरीत दिशा की ओर चला गया. करन के कहे शब्द देर तक जया के कानों में गूंजते और मधुर रस घोलते रहे. उस की निगाह अब भी उधर ही जमी थी, जिधर करन गया था. अचानक सामने से आती बाइक का हार्न सुन कर उसे स्थिति का एहसास हुआ तो वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ गई.

अगले दिन स्कूल जाते समय जया की नजरें करन को ढूंढ़ती रहीं, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया. 3 दिन लगातार जब वह जया को दिखाई नहीं दिया तो उस का मन उदास हो गया. उसे लगा कि करन ने शायद ऐसे ही कह दिया होगा और वह उसे सच मान बैठी, लेकिन चौथे दिन जब करन नियत स्थान पर खड़ा मिला तो उसे देखते ही जया के मन की कली खिल उठी. उस दिन जया के पीछेपीछे चलते हुए करन ने आहिस्ता से पूछा, ‘आप मुझ से नाराज तो नहीं हैं?’

‘नहीं,’ जया ने धड़कते दिल से जवाब दिया, तब करन ने उत्साहित होते हुए बात आगे बढ़ाई, ‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’

‘जया,’ उस का छोटा सा उत्तर था.

‘आप बहुत अच्छी हैं, जयाजी.’

अपनी बात कहने के बाद करन थोड़ी दूर तक जया के साथ चला, फिर उसे ‘बाय’ कर के अपने रास्ते चला गया. उस दिन के बाद वह दोनों एक निश्चित जगह पर मिलते, वहां से करन थोड़ी दूर जया के साथ चलता, दो बातें करता और फिर दूसरे रास्ते पर मुड़ जाता.

इन पल दो पल की मुलाकातों और छोटीछोटी बातों का जया पर ऐसा असर हुआ कि वह हर समय करन के ही खयालों में डूबी रहने लगी. नादान उम्र की स्वप्निल भावनाओं को करन का आधार मिला तो चाहत के फूल खुद ब खुद खिल उठे. यही हाल करन का भी था. एक दिन हिम्मत कर के उस ने अपने मन की बात जया से कह ही दी, ‘आई लव यू जया,’ मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बगैर जिंदगी अधूरीअधूरी सी लगती है.

करन के मन की बात उस के होंठों पर आई तो जया के दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं. उस ने नजर भर करन को देखा और फिर पलकें झुका लीं. उस की उस एक नजर में प्यार का इजहार भी था और स्वीकारोक्ति भी.

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एक बार संकोच की सीमाएं टूटीं, तो जया और करन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. ज्योंज्यों दूरियां कम होती गईं, दोनों एकदूसरे के रंग में रंगते गए. फिर उन्होंने सब की नजरों से छिप कर मिलना शुरू कर दिया. जब भी मौका मिलता, दोनों प्रेमी किसी एकांत स्थल पर मिलते और अपने सपनों की दुनिया रचतेगढ़ते.

उस वक्त जया और करन को इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि पागल मन की उड़ान का कोई वजूद नहीं होता. किशोरवय का प्यार एक पागलपन के सिवा और क्या है. बिलकुल उस बरसाती नदी की तरह जो वर्षाकाल में अपने पूरे आवेग पर होती है, लेकिन उस के प्रवाह में गंभीरता और गहराई नहीं रहती. इसीलिए वर्षा समाप्त होते ही उस का अस्तित्व भी मिट जाता है. अब जया की हर सोच करन से शुरू हो कर उसी पर खत्म होने लगी थी. अब उसे न कैरियर की चिंता रह गई थी और न मातापिता के सपनों को पूरा करने की उत्कंठा.

बेटी में आए इस परिवर्तन को आशा की अनुभवी आंखों ने महसूस किया तो एक मां का दायित्व निभाते हुए उन्होंने जया से पूछा, ‘क्या बात है जया, इधर कुछ दिन से मैं महसूस कर रही हूं कि तू कुछ बदलीबदली सी लग रही है? आजकल तेरी सहेलियां भी कुछ ज्यादा ही हो गई हैं. तू उन के घर जाती रहती है, लेकिन उन्हें कभी नहीं बुलाती?’

मां द्वारा अचानक की गई पूछताछ से जया एकदम घबरा गई. जल्दी में उसे कुछ सुझाई नहीं दिया, तो उस ने बात खत्म करने के लिए कह दिया, ‘ठीक है मम्मी, आप मिलना चाहती हैं तो मैं उन्हें बुला लूंगी.’

कई दिन इंतजार करने के बाद भी जब जया की कोई सहेली नहीं आई और उस ने भी जाना बंद नहीं किया तो मजबूरी में आशा ने जया को चेतावनी देते हुए कहा, ‘अब तू कहीं नहीं जाएगी. जिस से मिलना हो घर बुला कर मिल.’

घर से निकलने पर पाबंदी लगी तो जया करन से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी. आशा ने भी उस की व्याकुलता को महसूस किया, लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. धीरेधीरे 4-5 दिन सरक गए तो एक दिन जया ने आशा को अच्छे मूड में देख कर उन से थोड़ी देर के लिए बाहर जाने की इजाजत चाही, जया की बात सुनते ही आशा का पारा चढ़ गया. उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में जया को जोर से डांटते हुए कहा, ‘इतनी बार मना किया, समझ में नहीं आया?’

‘‘इतनी बार मना कर चुका हूं, सुनाई नहीं देता क्या?’’ नारी निकेतन के केयरटेकर का कर्कश स्वर गूंजा तो जया की विचारधारा में व्यवधान पड़ा. उस ने चौंक कर इधरउधर देखा, लेकिन वहां पसरे सन्नाटे के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. जया को मां की याद आई तो वह फूटफूट कर रो पड़ी.

जया अपनी नादानी पर पश्चाताप करती रही और बिलखबिलख कर रोती रही. इन आंसुओं का सौदा उस ने स्वयं ही तो किया था, तो यही उस के हिस्से में आने थे. इस मारक यंत्रणा के बीच वह अपने अतीत की यादों से ही चंद कतरे सुख पाना चाहती थी, तो वहां भी उस के जख्मों पर नमक छिड़कता करन आ खड़ा होता था.

‘पति पत्नी और वह’ : कलाकारों का शानदार अभिनय

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः टीसीरीज और बीआर फिल्मस

निर्देशकः मुदस्सर अजीज

कलाकारः कार्तिक आर्यन, भूमि पेडनेकर, अपारशक्ति खुराना, अनन्या पांडे, राजेश शर्मा, नवनी परिहार, सनी सिंह, नीरज सूद व अन्य.

अवधिः दो घंटे आठ मिनट

1978 की बीआर चोपड़ा की सुपर हिट फिल्म ‘‘पति पत्नी और वह’’ की इस रीमेक फिल्म को  फिल्मकार मुदस्सर अजीज ने समसामायिक बनाते हुए इसमें आदर्शवाद के साथ हास्य तड़का भी डाला है. मगर मुदस्सर अजीज अपनी पिछली फिल्म ‘‘हैप्पी भाग जाएगी’’ के के मुकाबले इस बार कुछ मात खा गए हैं.

कहानीः

कहानी कानपुर में पले बढ़े और कानपुर के पीडब्लूडी में कार्यरत इंजीनियर अभिनव त्यागी उर्फ चिंटू त्यागी (कार्तिक आर्यन) की है. उनकी शादी वेदिका (भूमि पेडनेकर) के संग हुई है. वेदिका को कानपुर छोड़ दिल्ली में बसने की चाह है. शादी के कुछ अरसे तक तो सबकुछ बेहतर चलता है. वेदिका भी एक कालेज में पढ़ाने लगती है. चिंटू की जिंदगी भी रूटीन और बोरियत से गुजरने लगती है. पर तभी दिल्ली से कानपुर शहर में तपस्या सिंह (अनन्या पांडे) का आगमन होता है. वह कानपुर में एक भूखंड लेकर उस पर अपना ब्यूटिक का व्यापार शुरू करना चाहती हैं, इसी सिलसिले में तपस्या जब पीडब्लू डी आफिस पहुंचती है, तो तपस्या और चिंटू त्यागी की मुलाकात होती है. यहीं से चिंटू की जिंदगी बदल जाती है. चिंटू तपस्या की ओर आकर्षित हो जाता है. उन दोनों की नजदीकी का राजदार चिंटू का दोस्त फहीम रिजवी (अपारशक्ति खुराना) है. एक दिन तपस्या को पता चलता है कि चिंटू त्यागी शादीशुदा है, तो वह चिंटू से दूरी बनाने गलती है. ऐसे हालत में तपस्या का साथ पाने के लिए चिंटू त्यागी, तपस्या के सामने अपनी पत्नी वेदिका को चरित्रहीन बताता है. दोनो फिर से नजदीक आ जाते हैं. उधर फहीम अपनी तरफ से चिंटू को शादी और दुनियादारी की बातें समझाने की कोशिश करता है. चिंटू अपनी पत्नी वेदिका और वह तपस्या के बीच कोई संतुलन साध पाता, उससे पहले ही हालात बिगड जाते हैं. फिर कहानी में कई अजीबोगरीब मोड़ आते हैं.

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निर्देशनः

पटकथा के स्तर पर कुछ कमियों के बावजूद फिल्म शुरू से अंत तक दर्शकों को हंसाने का प्रयास करती है. मगर कई जगह हास्य दृश्य जबरन खींचे हुए लगते हैं. कहानी धीरे धीरे विकसित होती है कानपुर शहर की पृष्ठभूमि और संवादो की भाषा और लहजा फिल्म को रोचक बनाते हैं. इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. वेदिका आज की नारी है, जो कि पति के आगे दबकर जीने में यकीन नही रखती. पटकथा की कमजोरी के चलते चिंटू त्यागी की पूर्व प्रेमिका नेहा का बार बार जिक्र होता है, पर चिंटू त्यागी अभी भी नेहा से किस वजह से जुड़ाव महसूस करता है, इसका कहीं कोई जिक्र नही होता.

अभिनयः

मूलतः कानपुर निवासी कार्तिक आर्यन ने कानपुर के युवक चिंटू त्यागी के किरदार में जान डाल दी है. चिंटू त्यागी के किरदार को कार्तिक आर्यन अपने हलके से हकलानेवाले अंदाज से मनोरंजक बनाते हैं. वेदिका के किरदार में भूमि पेडनेकर ने साबित कर दिखाया कि उनके अंदर विविधतापूर्ण किरदार निभाने की अद्भुत क्षमता है. वेदिका के किरदार में वह ग्लैमरस और घरेलू दोनों ही रूप में अच्छी लगी हैं. भूमि पेडनेकर की जितनी तारीफ की जाए, उतना कम है. तपस्या के किरदार में अनन्या पांडे ने शानदार अभिनय किया है. अनन्या पांडे के करियर की यह दूसरी फिल्म होने के बावजूद उनके अंदर जबरदस्त आत्मविश्वास नजर आता है. फहीम के किरदार में अपारशक्ति खुराना ने भी जानदार परफौर्मेंस दी है. नीरज सूद व नवनी परिहार ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ : नायरा और कार्तिक के बीच फिर से आएंगी दूरियां !

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला सबसे मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों का  खुब मनोरंजन हो रहा है. कहानी का एंगल नया मोड़ ले रही है.  इधर नायरा और कार्तिक एक दूसरे के हो चुके हैं तो वहीं वेदिका अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है. लेकिन ये जो चीजें इतनी सही दिख रही है उतनी है नहीं. तो आइए जानते है क्या होने वाला है शो में.

अपकमिंग एपिसोड में कहानी का एक नया मोड़ देखने को मिलने वाला है. जी हां एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले दिनों में दिखाया जाएगा कि वेदिका नायरा और कार्तिक के कहने पर गोयनका हाउस में दोबारा आएगी.दरअसल कार्तिक और नायरा को लगेगा कि वेदिका अकेले सेफ नहीं है.

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इस वजह से वह वेदिका को अपने साथ घर ले आएंग. यहां पर आते ही नायरा का पैर फिसल जाएगा और कार्तिक उसे संभाल लेगा. इस दौरान दोनों एक दूसरे से नजरें भी नहीं हटा पाएंगे. ऐसे में वेदिका दोनों को साथ देखकर थोड़ा अनकम्फर्टेबल हो जाएगी.

वेदिका को अपने घर में दोबारा देखकर दादी तो खूब नखरें करने वाली है. दादी को लगेगा कि अभी-अभी घर में खुशियां वापस लौटी है. ऐसे में वेदिका का फिर से घर में आना ठीक नहीं है. अब तो ये आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा कि वेदिका नायरा और कार्तिक के बीच दूरियां लाने के  लिए कौन सी नयी चाल चलेगी.

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फिल्म समीक्षा : पानीपत

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः सुनीता गोवारीकर और रोहित शेलातकर

निर्देशकः आषुतोष गोवारीकर

संगीतकार: अजय अतुल

कलाकारः अर्जुन कपूर, संजय दत्त, कृति सैनन, मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे, जीनत अमान, साहिल चड्ढा, कुणाल कपूर,अभिषेक निगम, रवींद्र महाजनी, घसमीर महाजनी, नवाब शाह, मंत्रा, सुहासिनी मुले, विनिता महेश, कृतिका देव, श्याम मशालकर व अन्य

अवधिः दो घंटे 53 मिनट

फिल्मकार आशुतोश गोवारीकर पहली बार इतिहास पर केंद्रित फिल्म लेकर नही आए हैं. वह इससे पहले भी ‘जोधा अकबर’ और ‘मोहन जोदाड़ो’ जैसी फिल्में बना चुके हैं. पर इस बार वह 1761 की पानीपत की तीसरी लड़ाई पर फिल्म लेकर आए हैं, जिसके संबंध में हर किसी को पता है कि आततायी व लुटेरे अति क्रूर अफगानी शासक अहमद शाह अब्दाली से मराठा परास्त हुए थे. मगर निर्देशक आशुतोश गोवारीकर अपनी इस फिल्म में पानीपत के उस तीसरे युद्ध में मराठाओं के परास्त होने की वजहों के साथ शौर्य, जांबाजी, प्रेम, बलिदान की गाथा को पिरोया है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है सदाशिव राव भाऊ (अर्जुन कपूर) द्वारा उदगीर के निजाम को परास्त कर विजयी होकर लौटने और नाना साहेब पेशवा के दरबार में उनके सम्मान से. सदाशिव राव भाउ अपने चचेरे भाई नाना साहब पेशवा (मोहनीश बहल) की सेना का जांबाज पेशवा है. अपने सम्मान के दौरान सदाशिव दरबार मे ही उदयगीर की सेना स जुड़े इस इब्राहिम खान गार्डी (नवाब शाह) को कुछ विरोधों के बावजूद मराठा सेना का हिस्सा बनाने की घोषणा करता है.

उदगीर के निजाम को परास्त करने के बाद दरबार में सदाशिव राव भाऊ के बढ़ते रसूख और ख्याति से पेशवा की पत्नी गोपिका बाई (पद्मिनी कोल्हापुरे) इस बात को लेकर असुरक्षित हो जाती हैं कि कहीं गद्दी का वारिश सदाशिव न बन जाए. वह अपने पुत्र विश्वास राव (अभिषेक निगम) को गद्दीन शीन देखना चाहती हैं. इसी के चलते सदाशिव के प्रभाव को कम करने के लिए उसे युद्ध से हटाकर धनमंत्री बना दिया जाता है.

उधर राज वैद्य की बेटी पार्वती बाई (कृति सेनन) सदाशिव से प्रेम करने लगी है, वह उनके शरीर पर लगी चोट पर दवा लगाते हुए अपने प्रेम का इजहार भी कर देती है. और जल्द ही वह विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. तभी दिल्ली की गद्दी को हथियाने के लिए नजीब उद्दौला (मंत्रा) अफगानिस्तान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली (संजय दत्त) के साथ हाथ मिलाता है. ऐसे समय में दिल्ली की गद्दी और देश को बचाने के लिए मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ को सौंपा जाता है.

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सदाषिव राव, शुजाउद्दौला (कुनाल कपूर) व अन्य राजाओं के साथ नजीब उद्दौल व अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं. पानीपत के मैदान में सदाशिव और अब्दाली की जंग के बीच वीरता और शौर्यता के साथ-साथ विश्वासघात की कहानी सामने आती है. पर इस युद्ध में विश्वास राव व सदाशिव के साथ तकरबीन डेढ़ लाख सैनिक मारे जाते हैं और अहमद शाह अब्दाली की जीत होती है.

निर्देशनः

फिल्मकार आशुतोष गोवारीकर ने इतिहास के उस जटिल अध्याय को चुना है, जहां सत्ता के लिए पीठ पर खंजर भोंकना आम बात थी. पेशवा शाही की अंदरूनी राजनीति के साथ-साथ दिल्ली की जर्जर होती स्थिति और अपने निजी स्वार्थों के लिए देश की सुरक्षा को दांव पर लगाने वाले राजाओं के साथ आशुतोश ने उन वीरों की शौर्यगाथा का भी चित्रण किया है, जो देश की आन-बान के लिए शहीद हो गए थे.

ऐतिहासिक विषयों पर फिल्म बनाते समय आषुतोश गोवारीकर का सारा ध्यान भव्य सेट और कास्ट्यूम पर ही रहता है. जिसके चलते वह इस बार काफी चूक गए हैं. एडीटर कई जगह मात खा गए. फिल्म बेवजह लंबी होने के साथ ही धीमी गति से आगे बढ़ती है. पानीपत पहुंचते पहुंचते इंटरवल हो जाता है.

इसके अलावा कास्ट्यूम पर ध्यान देते समय वीएफएक्स पर कम ध्यान दिया है, जिसके चलते अमहद शाह अब्दाली का दरबार सही ढंग से नहीं उभरा. वीएफएक्स काफी कमजोर है.अहमद शाह अब्दाली के चरित्र को भी फिल्मकार ठीक से रेखांकित नहीं कर पाए. वास्तव में फिल्मकार का सारा ध्यान राष्ट्वाद और मराठा वीरता तक ही रहा. सदाशिव राव और पार्वती बाई की प्रेम कहानी भी ठीक से उभर नहीं पायी. गोपिका बार्ठ के किरदार को भी सही ढंग से चित्रित नहीं किया गया.

फिल्म के कई संवाद मराठी भाषा मे हैं, जिसके चलते गैर मराठी भाषायों को दिक्कत होगी. युद्ध के दृष्य सही ढंग से नही बने हें. एक्शन दृष्य भी कमजोर हैं. अफगानी शासक अहमद शाह अब्दाली जिस तरह का खुंखार दरिंदा था, उस तरह से वह इस फिल्म में नहीं उभरता. सदाशिव राव और अहमद शाह अब्दाली के बीच युद्ध के एक भी दृष्य का न होना कई सवाल खड़े करता है. नितिन देसाई का आर्ट डायरेक्शन और नीता लुल्ला के कौस्ट्यूम ने इस एतिहासिक फिल्म को भव्य बनाने में मदद की हैं. कैमरामैन सी के मरलीधरन बधाई के पात्र हैं.

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अभिनयः

सदाशिव राव भाऊ के किरदार में अर्जुन कपूर ने काफी मेहनत की है, मगर एक मराठा योद्धा के रूप मे वह सटीक नही बैठते. पार्वती बाई के किरदार में कृति सैनन खूबसूरत लगी हैं और अपने किरदार के साथ उन्होनें न्याय भी किया है. अहमद शाह अब्दाली के किरदार में संजय दत्त ने जबरदस्त परफौर्मेंंस दी है. विश्वास राव के किरदार में अभिशेक निगम अपनी अभिनय प्रतिभा की छाप छोड़ जाते हैं. सहयोगी कलाकारों में पद्मिनी कोल्हापुरे, मोहनीश बहल, सुहासिनी मुले, नवाब शाह, अभिषेक निगम आदि ने अपनी भूमिकाओं को सही ढंग से निभाया है. जीनत अमान की प्रतिभा को जाया किया गया है.

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