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रोमा के कई रंग : भाग 2

दोनों युवकों ने पीछे मुड़ कर भागने का प्रयास किया तो पीछे से एक ट्रक आ जाने के कारण वे भाग न सके और हड़बड़ाहट में बाइक सहित सड़क के बीच में गिर पड़े. इस के बाद पुलिस टीम ने फुरती के साथ उन्हें पकड़ लिया.

पूछताछ में दोनों युवकों ने अपने नाम पते विकास व कपिल निवासी गांव मांडला, थाना पुरकाजी, मुजफ्फरनगर व हाल निवासी गांव रावली महदूद बताए.

इस के बाद पुलिस दोनों को ले कर रुड़की कोतवाली पहुंची और उन से सुदेश पाल की हत्या की बाबत पूछताछ की. पहले तो विकास और कपिल पुलिस को टरकाते रहे, मगर जब कोतवाल अमरजीत सिंह ने सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली. विकास ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी.

विकास कई सालों से सिडकुल स्थित महिंद्रा कंपनी में नौकरी कर रहा था. पिछले 4 सालों से अंगरेश नाम की एक युवती उस के मकान में किराए पर रह रही थी. इसी वजह से अंगरेश के भाई अर्जुन व उस की पत्नी रोमा का उस के यहां आनाजाना लगा रहता था.

उसी दौरान विकास की मुलाकात रोमा से हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. उन के अवैध संबंधों के बारे में जब विकास के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया. इस के बाद विकास ने रोमा का साथ छोड़ दिया.

यह बात 2 साल पहले की है. इस के बाद रोमा रावली महदूद छोड़ कर शंकरपुरी में आ कर रहने लगी.

4 महीने पहले गांव शंकरपुरी के आकाश ने विकास को बताया कि रोमा रिश्ते में उस की मौसी लगती है और उस के मन में अभी भी उस के लिए पहले जैसा प्यार है.

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यह सुनते ही विकास के मनमस्तिष्क में रोमा की यादें ताजा हो गईं. वह रोमा से मिलने पहुंच गया. नतीजा यह हुआ कि विकास और रोमा दोबारा छिपछिप कर मिलने लगे. इसी दौरान विकास ने रोमा को अपने नाम से खरीद कर एक मोबाइल फोन व सिमकार्ड दे दिया था. रोमा और विकास की मोबाइल पर अकसर बातें होती रहतीं.

एक दिन रोमा ने विकास को बताया कि उस के अपने जेठ सुदेश पाल के साथ भी अवैध संबंध थे, लेकिन अब वह सुदेश पाल को पसंद नहीं करती. जबकि सुदेश पाल अब भी उस के साथ जबरन संबंध बनाने के लिए परेशान करता रहता है.

रोमा ने बताया कि सुदेश पाल को हमारे अवैध संबंधों की भी जानकारी हो गई है. अब वह हमारे बीच में दीवार बन कर खड़ा हो गया है. अगर तुम सुदेश को निपटा दो तो हम दोनों एक हो सकते हैं. रोमा की यह बात सुन कर विकास को गुस्सा आ गया. उस ने अपने दोस्त आकाश व रोमा से मिल कर सुदेश पाल की हत्या की योजना बनाई.

हत्या करने के बाद वे जेल न जा सकें, यानी पुलिस से बचने के लिए उन्होंने यूट्यूब पर हत्या से संबंधित कई वीडियो देखीं. उन से पता चला कि हत्या करने के बाद पुलिस से बचने के लिए क्या करना चाहिए.

पूरी योजना बनने के बाद रोमा ने सुदेश पाल का मोबाइल नंबर भी उपलब्ध करा दिया. योजना के अनुसार इस हत्या में उन्हें किसी लूटे हुए मोबाइल फोन का प्रयोग करना था.

इस बारे में विकास ने अपने परिचित कपिल से बात की तो उस ने पहली सितंबर, 2019 को लूटा हुआ एक मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिया. फिर 4 सितंबर को आकाश ने ही उस के व कपिल के साथ जा कर घटनास्थल की रेकी कराई.

आकाश व रोमा ने ही विकास को बताया था कि सुदेश पाल बोरवैल लगाने का काम करता है और तुम भी उसे इसी बहाने अज्ञात जगह ले जा कर उस की हत्या कर देना.

8 सितंबर को विकास व कपिल सुबह 7 बजे काले रंग की पल्सर बाइक से रावली महदूद से चले. शंकरपुरी पहुंचने के बाद विकास ने उसी लूटे हुए मोबाइल से सुदेश पाल को फोन किया और बोरवैल के लिए जगह दिखाने की बात की. धंधे का मामला था, बोरवैल की जगह देखने के लिए सुदेश पाल गांव के बाहर आ गया.

इस के बाद विकास और कपिल सुदेश पाल को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव शेरपुर-बाजुहेड़ी मार्ग के निकट एक खेत में ले गए. वहां पहुंचते ही उन दोनों ने क्लच के तार का फंदा बना कर सुदेश पाल के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया. इस के तुरंत बाद उन्होंने चाकू से उस का गला भी रेत डाला. जिस से उन दोनों के कपड़ों पर खून के धब्बे भी लग गए.

गांव रावली महदूद वापस जाते समय उन्होंने अपने कपड़े व चाकू मेहवड़ पुल के पास ईंट भट्ठे की ओर वाली झाडि़यों में छिपा दिए. इस के बाद दोनों पुलिस से छिपते घूम रहे थे.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर सुदेश पाल की हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने कपड़े, काले रंग की पल्सर बाइक तथा हत्या में इस्तेमाल किए गए 3 मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए.

इस के बाद एसएसपी सेंथिल अवुदई कृष्णराज एस. ने थाने में प्रैसवार्ता कर के सुदेश पाल हत्याकांड का खुलासा किया और आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया. पुलिस ने रोमा को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या की साजिश रचने में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

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अगले दिन यानी 12 सितंबर, 2019 को सुदेश पाल की हत्या का तानाबाना बुनने वाले आरोपी आकाश को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. मृतक सुदेश पाल 5 बेटियों का पिता था. जिन में से वह भारती, आरती व साक्षी की शादी कर चुका था. बेटा न होने के कारण उस ने अपने भाई अर्जुन के बेटे प्रभात को गोद ले लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपीगण विकास, कपिल, आकाश और रोमा जेल में थे. थानाप्रभारी अमरजीत सिंह इस प्रकरण की जांच पूरी करने के बाद आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में भेजने की तैयारी में लगे थे.

यूं बनाएं घर और औफिस के कामों में तालमेल

मान्या की शादी 4 महीने पहले ही हुई है. वह बैंक में है. पहले संयुक्त परिवार में रह रही थी. इसलिए उस पर काम का बोझ अधिक नहीं था. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. मान्या को भी पति के साथ जाना पड़ा. वह जिस बैंक में थी उस की अन्य शाखा भी उस शहर में थी, इसलिए मान्या ने भी वहां तबादला करा लिया.

दोनों परिवार से दूर अनजाने शहर में रह रहे हैं. यहां मान्या के ऊपर घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा. बचपन से संयुक्त परिवार में रही थी. इसलिए उस ने अकेले काम का इतना अधिक बोझ कभी नहीं संभाला था. उस का टाइम मैनेजमैंट गड़बड़ाने लगा. वह घर और दफ्तर के कार्यों के बीच अपना सही संतुलन नहीं बना पा रही थी. धीरेधीरे उस की सेहत पर इस का असर दिखने लगा.

एक दिन अचानक मान्या औफिस में बेहोश  हो गई. उसे हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने बताया कि वह तनाव से घिरी है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है. उस के बेहोश होने की वजह यही है.

1 हफ्ता मान्या ने घर पर आराम किया. कई रिश्तेदार और दोस्त उस से मिलने आए. एक दिन उस की एक खास सखी भी आई, जो मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर थी. उस ने बताया, ‘‘तुम्हारे तनाव और बीमारी की वजह तुम्हारे द्वारा टाइम को सही तरीके से मैनेज नहीं करना है. वर्किंग वूमन के लिए अपने टाइम को इस तरह से बांटना कि तनाव और डिप्रैशन जैसी स्थिति न आए, बहुत जरूरी होता है.’’

आधुनिक समय में कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं, जिन में वे उलझ जाती हैं. वे हर जगह खुद को साबित करने और अपना शतप्रतिशत देने की चाह में तनाव की शिकार हो जाती हैं. पति और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पातीं. सोशल लाइफ से दूर होती जाती हैं. औफिस में घर की परेशानियां और घर में औफिस की परेशानियों के साथ कार्य करना, ऐसे बहुत से कारण हैं, जो उन की जिंदगी में कहीं न कहीं ठहराव सा ला देते हैं, जो उन की सुपर वूमन की छवि पर एक प्रश्नचिह्न होता है.

ऐसे में जिंदगी में आई इन मुश्किलों का सामना जिंदादिली के साथ किया जाए, तो हार के रुक जाने का मतलब ही नहीं बनता. वैसे भी जिंदगी में सफलता का मुकाम कांटों भरी राह को तय करने के बाद ही मिलता है.

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दोहरी जिम्मेदारी निभाएं ऐसे

आइए जानते हैं किस तरह वर्किंग वूमन अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए दूसरी महिलाओं के लिए कामयाबी की मिसाल बन सकती हैं:

जमाना ब्यूटी विद ब्रेन का है. अत: सुंदरता के साथसाथ बुद्धिमत्ता भी जरूरी है. हमेशा सकारात्मक सोच रखें. नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें.ऐसी दिनचर्या बनाएं, जिस में आप अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को समय दे सकेें.

अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें. अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, क्योंकि यह आप के व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है. अपने अंदर आत्मनिरीक्षण करने की आदत विकसित करें. इस के अलावा अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से भी अपनी कमियां जानने की कोशिश करें.

वर्किंग वूमन के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. इसलिए औफिस और घर पर समय की बरबादी को रोकने का हर संभव प्रयास करें. कौन सा कार्य कितने समय में करना है, इस की रूपरेखा मस्तिष्क या लिखित रूप में आप के पास होनी चाहिए.

घर के कामों में परिवार के सदस्यों और बच्चों की मदद जरूर लें. साथ ही अपनी समस्याओं को परिवार के सदस्यों से प्यार से बताएं.औफिस में अकसर आप को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता होगा. ऐसी बातों को नकारात्मक ढंग से न लें. अपनी कार्यक्षमता, संयमित व्यवहार और अपने आदर्शों से आप किसी न किसी दिन अपने आलोचकों को मुंह बंद कर ही देंगी.

यदि आप को औफिस में अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो उन से पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सकारात्मक तरीके से निभाएं, क्योंकि ऐसी जिम्मेदारियां आप की कार्यक्षमता की, परीक्षा की जांच के लिए भी आप को दी जा सकती हैं.

वीकैंड पति व बच्चों के नाम कर दें. इस दिन मोबाइल फोन से जितनी हो सके दूरी बना कर रखें. बच्चों और पति को उन की फैवरेट डिश बना कर खिलाएं. शाम के समय मूड फ्रैश करने के लिए परिवार के साथ पिकनिक स्पौट या आउटिंग पर जाएं. इस तरह आप खुद को अगले सप्ताह के कामों के लिए फ्रैश और कूल महसूस करेंगी.

औफिस में अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करें. लंच में ज्यादा समय न खराब करें. देर तक मोबाइल पर बातें करने से बचें. औफिस में सहकर्मियों से न तो अधिक निकटता रखें और न ही अजनबियों जैसा व्यवहार करें. औफिस में सहकर्मियों के साथ फालतू की बहस से बचें. उन के साथ आप को जादा देर तक काम करना होता है. अत: उन के साथ दोस्ताना संबंध बना कर चलें.

फिस की परेशानियों को घर न लाएं. ज्यादा देर टीवी देख कर या मोबाइल पर बातें कर के समय खराब न करें. जहां तक हो घर जा कर खाना खुद ही बनाएं. रोजरोज बाहर का खाना और्डर न करें. यह आप और आप के परिवार के लिए सही नहीं.

आप की दोहरी भूमिका निभाने में पारिवारिक सदस्यों का सहयोग बहुत ही जरूरी है. इसलिए  व्यवहारिक जीवन में पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और एकदूसरे की परेशानी को हल करने के लिए आपस में काम बांट लेने चाहिए.

आप का अपने लिए भी समय निकालना जरूरी है ताकि आप इस बीच शौपिंग आदि कर के अपना मूड फ्रैश कर सकें. रोजाना औफिस और घर के बीच की भागदौड़ की थकावट आप की सुंदरता कम कर सकती है. इस के लिए पार्लर में जा कर अपने सौदर्य में चार चांद लगाएं. चाहें तो पति को एक दिन के लिए बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाएं.

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एक महिला के शरीर में मैं बहुत खुश हूं : कियारा नारायण अय्यर

एक ट्रांसजेंडर होने के बावजूद दिल्ली के ललित होटल में पीआर और एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करने वाली किआरा ने अपनी इच्छा से लिंग परिवर्तन कराया क्योंकि लड़के के शरीर में वे खुद को कम्फर्टेबल महसूस नहीं कर रही थी. लड़की बन कर वे एक संतुष्ट और जिन्दादिल जिंदगी जी रही है. आइये जानते हैं एक ट्रांसजेंडर के रूप में उन्हें किस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और किस तरह वह आगे बढ़ती गईं .

अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों के बारे में बताइये.

मेरा जन्म जुलाई 1988 को कोलकाता में मिडिल क्लास फैमिली में एक लड़के के रूप में हुआ था. मेरी मां बंगाल से और पिता चेन्नई से थे. घर में दोनों तरह के कल्चर का प्रभाव दिखता था. मैं छोटी थी. मुझ से 6 साल बड़ी एक बहन थी. जब मैं क्लास 10 में थी तभी मां को कैंसर डायग्नोज़ हुआ. मैं मां के इलाज के लिए कौल सेंटर में काम करने लगी. मां के गुजरने के बाद पापा को भी कैंसर डायग्नोज़ हो गया. उन दोनों के गुजरने के बाद मैं ने अपने बारे में सोचना शुरू किया.

आप को कब महसूस हुआ कि आप दूसरों से अलग हैं?

मुझे बचपन से ही महसूस होता था जैसे मैं दूसरों से अलग हूं. मुझे लड़कों के साथ घूमना, दौड़भाग वाले खेल खेलना पसंद नहीं था. इस के विपरीत मुझे घरघर खेलना, साड़ी लपेटना , दीदी को तैयार होते देखना ,खाना बनाना ,फीमेल टीचर बनना जैसी बातें पसंद थीं. मुझे लगता था जैसे मैं लड़की के शरीर में एक लड़का हूँ. मुझे लड़के के शरीर में तकलीफ होने लगी थी. मैं दूसरों को धोखा देना नहीं चाहती थी. मैं नहीं चाहती थी कि किसी लड़की से शादी कर मैं उस की जिंदगी खराब करूं और उसे वह सब न दे सकूं जो एक वास्तविक लड़का उसे दे सकता था. सो मैं ने तय किया कि मैं अपना औपरेशन करवाउंगी और वास्तव में एक लड़की बन कर ही जीऊंगी. लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह मुझे नहीं थी.

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आप का लड़के से लड़की बनने का सफर कैसा रहा?

2010 में मैं ने लड़की बनने का फैसला ले लिया था. सोचा था कि दिल्ली आ कर अपना पूरा ट्रीटमेंट करवाउंगी. 2011 से मैं लड़की बन कर बाहर निकलने लगी. दिल्ली में मिस ट्रांसक्वीन इंडिया की डायरेक्टर रीना राय ने मेरा काफी सपोर्ट किया. उन्होंने मुझे होटल ललित के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर केशव सूरी से मिलवाया जिन्होंने इस फैसले को हकीकत में ढालने में मेरी काफी मदद की .

2017 में मेरी सर्जरी हुई और मैं पूरी तरह लड़की बन गई. सर्जरी में 8 से साढ़े 8 लाख तक का खर्च आया. सर्जरी से सिर्फ शरीर और हार्मोन्स ही नहीं बल्कि मेरी आवाज भी बदली गई. आज एक महिला के शरीर में मैं बहुत खुश हूँ.

फिलहाल मैं दिल्ली के होटल ललित में पीआर और मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रही हूं. केशव सूरी ने जौब के पहले दिन ही कहा था कि हम ने आप के टैलेंट के आधार पर आप को काम दिया है. आप के कपड़े या जेंडर से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. जैसे आने में आप को अच्छा लगे वैसे आएं.

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आप लोगों को जीवन में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ?

शुरुआत में जब इंसान मर्द से औरत बन रहा होता है तो ट्राजिसन के उस दौर में काफी समस्याएं आती हैं. इस समय न आप मर्द होते हैं और न महिला. वह दौर बहुत कठिन होता है क्यों कि लोग आप का मजाक उड़ाते हैं.

रिश्तेदारों द्वारा हमारे साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है. लोग हमें घिन की नजर से देखते हैं. यह बर्दास्त के बाहर होता है.

हर कम्युनिटी में कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे. किन्नर माइनॉरिटी में आते हैं इस लिए उन के बारे में लाउडली बोला जाता है.

किन्नर जबरदस्ती अपने जैसे बच्चों को उठा कर ले जाते हैं, यह सोच गलत है. दरअसल जब ऐसे बच्चे के घरवाले ही उन्हें अकेला छोड़ देते हैं तभी किन्नर इन्हें अपनाते हैं और अपने साथ रखते हैं.

मुझे लोगों से यह शिकायत है कि वे किन्नरों को उस समय तो बुलाते हैं जब उन्हें दुआएं चाहिए होती हैं. मगर बाकी समय दुत्कार दिया जाता है. यह दोगला व्यवहार क्यों?

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तुम मेरी हो : भाग 2

चुनमुन का बुखार कम हुआ तो दोनों थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गए. सारांश की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रहरह कर शीतल के बारे में सोच रहा था, ‘कितनी दर्दभरी जिंदगी जी रही हो तुम, जैसे कोई फिल्मी कहानी हो. इतनी पीड़ा सह कर भी चुनमुन का पालनपोषण ऐसा कि यह बाग का खिला हुआ फूल लगता है, टूट कर मुर झाया हुआ नहीं.

पुरुष के इतने वीभत्स रूप को देखने के बाद भी तुम मु झ से अपना दर्द बांट पाई. तुम शायद यह जानती हो कि हर पुरुष बलात्कारी नहीं होता. तुम्हारे इस विश्वास के लिए मैं तुम्हारा जितना सम्मान करूं, वह कम है. स्वयं जीवन की नकारात्मकता में जी रही हो और दूसरों को सकारात्मक ऊर्जा दे रही हो. तुम कितनी अच्छी हो, शीतल.’ शीतल को मन ही मन इस तरह सराहते हुए सारांश उस का सब से बड़ा प्रशंसक बन चुका था.

2-3 दिनों में चुनमुन का बुखार कम होना शुरू हो गया. औफिस के अलावा सारांश अपना सारा समय आजकल चुनमुन के साथ ही बिता रहा था. शीतल ने स्कूल से छुट्टियां ली हुई थीं, इसलिए बाहर से सामान आदि लाने का काम भी सारांश ही कर दिया करता था. उस का सहारा शीतल के लिए एक परिपक्व वृक्ष के समान था, फूलों से लदी बेल सी वह उस के बिना अधूरा अनुभव करने लगी थी स्वयं को. स्त्री एक लता ही तो है जो पुरुष का आश्रय पा कर और भी खिलती है तथा निस्वार्थ हो कर सब के लिए फलनाफूलना चाहती है.

चुनमुन का बुखार उतरा तो कामवाली बाई बीमार पड़ गई. दोनों घरों का काम लक्ष्मी ही देखती थी. उस ने शीतल को फोन पर सूचना दी और यह सूचना जब वह सारांश को देने पहुंची तो वह सिर पकड़ कर बैठ गया. रात को उस की मां नीलम का फोन आया था कि वे सुरभि के साथ 2 दिनों के लिए चमोली आ रही हैं. सिर्फ एक सप्ताह के लिए भारत आई थी सुरभि और सारांश से बिना मिले वापस नहीं जाना चाहती थी.

‘‘लगता है दोनों यहां आ कर काम में ही लगी रहेंगी,’’ सारांश ने निराश हो कर शीतल से कहा.

‘‘तुम क्यों फिक्र करते हो, मैं सब देख लूंगी,’’ शीतल के इन शब्दों से सारांश को कुछ राहत मिली और वह घर की चाबी शीतल को सौंप कर औफिस चला गया. सारांश की मां नीलम और सुरभि दोपहर को पहुंचने वाली थीं. शीतल ने चुनमुन की बीमारी के कारण पहले ही पूरे सप्ताह की छुट्टियां ली हुई थीं विद्यालय से.

सुरभि और मां सारांश की अनुपस्थिति में घर पहुंच गईं. शीतल के रहते उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई. सारांश के आने पर भी वह सारा घर संभाल रही थी. चुनमुन भी सारांश की मां से बहुत जल्दी घुलमिल गया.

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2 दिन कैसे बीत गए, किसी को पता ही नहीं लगा. जाने से एक दिन पहले रात का खाना खाने के लिए शीतल ने सब को अपने घर पर बुलाया. घर की साजसज्जा, खाने का स्वाद, रहने का सलीका आदि से सारांश की मां शीतल से प्रभावित हुए बिना न रह सकीं. बैडरूम में पुराने गानों की सीडी और विभिन्न विषयों पर पुस्तकों का खजाना देख कर सुरभि को शीतल के शौक अपने जैसे ही लगे और वह प्रसन्नता से चहकती हुई हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ का आनंद लेने लगी. चुनमुन सारांश की मां से कहानियां सुन रहा था.

देररात भारी मन से वे शीतल के घर से आए. घर आ कर भी वे दोनों सारांश से शीतल और चुनमुन के बारे में ही बातें कर रही थीं. मौका पा कर सारांश ने शीतल की जिंदगी की दुखभरी कहानी दोनों को सुनाई और शीतल को घर की बहू बनाने का आग्रह किया. किंतु उसे जो शंका थी, वही हुआ. मां ने इस रिश्ते के लिए साफ इनकार कर दिया. सारांश के इस फैसले से सुरभि यद्यपि सहमत थी किंतु मां ने विभिन्न तर्क दे कर उस का मुंह बंद कर दिया. अगले दिन दोनों दिल्ली वापस चली गईं.

वापस दिल्ली आ कर सुरभि 3 दिन और रही मां के पास, और फिर वापसी के लिए रवाना हो गई. मां अपनी दिनचर्या शुरू नहीं कर पा रही थीं. एक तो सब से मिलने के बाद अकेलापन और उस पर सुरभि का पहुंच कर फोन न आना. दिन तो जैसेतैसे कट गया, पर रात में चिंता के कारण उन्हें नींद नहीं आ रही थी. ‘सुबह कुछ तो करना ही होगा,’ उन के यह सोचते ही मोबाइल बज उठा. फोन सुरभि का ही था.

‘‘मम्मा, प्रकृति का शुक्रिया अदा करो कि तुम्हारी बेटी और दामाद सलामत है,’’ सुरभि ने डरी पर राहतभरी आवाज में कहा.

‘‘क्यों, क्या हो गया, बेटा?’’ मां का मुंह भय से खुला रह गया.

‘‘हमारे प्लेन में कुछ आतंकवादी घुस गए थे. अपहरण करना चाह रहे थे वे जहाज का. हमारा समय अच्छा था कि अंदर राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के 3 कमांडो भी यात्रा कर रहे थे. उन्होंने उन शैतानों की एक न चलने दी और हम सभी सुरक्षित अपनेअपने ठिकानों पर पहुंच गए,’’ सुरभि ने एक सांस में ही सब कह डाला. मां ने राहत की सांस ली और उसे आराम करने को कह कर फोन काट दिया.

मां की आंखों से तो जैसे नींद पूरी तरह उड़ गई. ‘क्या होता अगर कुछ अनहोनी हो गई होती? वे दरिंदे यात्रियों की जान ले लेते या फिर महिलाओं के साथ कुछ और…’ यह सोच कर मां का कलेजा कांप उठा. उन्हें सहसा शीतल का ध्यान आ गया, ‘कितनी बेबस होगी वह भी उस रात… कौन चाहता है कि उस की इज्जत तारतार हो जाए?

क्या कुसूर है शीतल या चुनमुन का? शीतल को क्यों यह अधिकार नहीं है कि वह भी बुरे समय से निकल कर नई खुशियों को गले लगाए. क्यों वह उस शैतान का दिया हुआ दुख ढोती रहे जीवनभर.’ सोचते हुए मां ने एक फैसला किया और रात में ही फोन मिला दिया सारांश को.

‘‘कहो मम्मा,’’ सारांश ने ऊंघते हुए फोन उठा कर कहा.

‘‘बेटा, सुरभि ठीक से पहुंच गई है. मैं ने सोचा कि तु झे बता दूं, वरना तू चिंता कर रहा होगा. और हां, एक बात और कहनी है. सुरभि 3 महीने बाद फिर आ रही है इंडिया, उस की सहेली की शादी है. तू भी टिकट ले ले अभी से ही यहां आने का. छुट्टियां जरा ज्यादा ले कर आना. जल्दी ही तु झे भी बंधन में बांध देना चाहती हूं मैं. जिस महीने में जन्मदिन होता है उसी महीने में शादी हो तो अच्छा माना जाता है हम लोगों में. जल्दी ही तारीख बता दूंगी तु झे.’’

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‘‘अरे मम्मा, क्या हो गया आज आप को? मेरा जन्मदिन तो पिछले महीने ही था न. मैं आप की बात सम झ नहीं पा रहा ठीक से,’’ परेशान सा होता हुआ सारांश बोला.

‘‘तो मैं कब कह रही हूं कि दूल्हे का जन्मदिन ही पड़ना चाहिए उस महीने. दुलहन का भी हो सकता है. शीतल के जन्मदिन के बारे में चुनमुन बता रहा था मु झे उस दिन.’’

सारांश को एक बार तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ मां की बात सुन कर, फिर आश्चर्य और हर्ष से मुसकराते हुए वह बोला, ‘‘पर मम्मा, शीतल से तो पूछने दो मु झे.’’

‘‘मैं ने पढ़ ली थीं उस की आंखें,’’ मां ने छोटे से उत्तर से निरुत्तर कर दिया सारांश को.

सुबह होते ही सारांश शीतल के पास पहुंच गया. चुनमुन सो कर उठा ही था. सारांश को देखते ही उस से लिपट गया.

‘‘आज तुम्हारे स्कूल में पेरैंट्सटीचर मीटिंग है न? क्या मैं चल सकता हूं तुम्हारे साथ पापा बन कर?’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन को स्नेहभरी निगाहों से देखा. चुनमुन प्यार से सारांश के गाल चूमने लगा और शीतल भाग गई वहां से. एक कोने में हाथ जोड़ कर खड़ी शीतल की आंखों से टपटप बहते आंसू सारी सीमाएं तोड़ देना चाहते थे.

शीतल मुड़ कर वापस आई तो सारांश के आगे सिर  झुका लिया अपना. सारांश ने मुसकरा कर उस की ओर देखा मानो कह रहा हो, ‘कह दो आंसुओं से कि दूर चले जाएं तुम्हारी आंखों से, तुम मेरी हो अब, सिर्फ मेरी.’

तुम मेरी हो : भाग 1

सारांश का स्थानांतरण अचानक ही चमोली में हो गया. यहां आ कर उसे नया अनुभव हो रहा था. एक तो पहाड़ी इलाका, उस पर जानपहचान का कोई भी नहीं. पहाड़ी इलाकों में मकान दूरदूर होते हैं. दिल्ली जैसे शहर में रह कर सारांश को ट्रैफिक का शोर, गानों की आवाजें और लोगों की बातचीत के तेज स्वर सुनने की आदत सी पड़ गई थी. किंतु यहां तो किसी को देखने के लिए भी वह तरस जाता था. जिस किराए के मकान में वह रह रहा था, वह दोमंजिला था. ऊपर के घर से कभीकभी एक बच्चे की मीठी सी आवाज कानों में पड़ जाती थी. पर कभी आतेजाते किसी से सामना नहीं हुआ था उस का.

उस दिन रविवार को नाश्ता कर के वह बाहर लौन में कुरसी पर आ कर बैठ गया. पास ही मेज पर उस ने लैपटौप रखा हुआ था. कौफी के घूंट भरते हुए वह औफिस का काम निबटा रहा था, तभी अचानक मेज पर रखे कौफी के मग में ‘छपाक’ की आवाज आई. सारांश ने एक तरफ जा कर कौफी घास पर उड़ेल दी. इतनी देर में ही पीछे से एक बच्चे की प्यारी सी आवाज सुनाई दी, ‘‘अंकल, मेरा मोबाइल.’’

सारांश ने मुड़ कर बच्चे की ओर देखा और मुसकराते हुए पास रखे टिशू पेपर से कौफी में गिरे हुए फोन को साफ करने लगा.

‘‘लाइए अंकल, मैं कर लूंगा,’’ कहते हुए बच्चे ने अपना नन्हा हाथ आगे बढ़ा दिया.

किंतु फोन सारांश ने साफ कर दिया और बच्चे को थमा दिया. बच्चा जल्दी से फोन को औन करने लगा. लेकिन कईर् बार कोशिश करने के बाद भी वह औन नहीं हुआ. बच्चे का मासूम चेहरा रोंआसा हो गया.

उस की उदासी दूर करने के लिए सारांश बोला. ‘‘अरे, वाह, तुम्हारा फोन तो छलांग मार कर मेरी कौफी में कूद गया था. अभी स्विमिंग पूल से निकला है, थोड़ा आराम करने दो, फिर औन कर के देख लेना. चलो, थोड़ी देर मेरे पास बैठो, नाम बताओ अपना.’’

‘‘अंकल, मेरा नाम प्रियांश है,’’ पास रखी दूसरी कुरसी पर बैठता हुआ वह बोला, ‘‘पर यह मोबाइल औन क्यों नहीं हो रहा, खराब हो गया है क्या?’’ चिंतित हो कर वह सारांश की ओर देखने लगा.

‘‘शायद, पर कोई बात नहीं. मैं तुम्हारे पापा से कह दूंगा कि इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है, अपनेआप छूट गया था न फोन तुम्हारे हाथ से?’’

‘‘हां अंकल, मैं हाथ में फोन को पकड़ कर ऊपर से आप को देख रहा था,’’ भोलेपन से उस ने कहा.

‘‘फिर तो पापा जरूर नया फोन दिला देंगे तुम्हें. हां, एक बात और, तुम इतने प्यारे हो कि मैं तुम्हें चुनमुन नाम से बुलाऊंगा, ठीक है?’’ सारांश ने स्नेह से प्रियांश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘बुला लेना चुनमुन कह कर, मम्मी भी कभीकभी मुनमुन कह देती हैं मु झे. पर मेरे पापा तो बहुत दूर रहते हैं. मु झ से कभी मिलने भी नहीं आते. अब मैं नानी से फोन पर बात कैसे करूंगा?’’ कहते हुए चुनमुन की आंखें डबडबा गईं.

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सारांश को चुनमुन पर तरस आ गया. प्यार से उस के गालों को थपथपाता हुआ वह बोला, ‘‘चलो, हम दोनों बाजार चलते हैं, मैं दिला दूंगा तुम को मोबाइल फोन.’’

‘‘पर अंकल, मेरी मम्मी नहीं मानेंगी न,’’ चुनमुन ने नाक चढ़ाते हुए ऊपर अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘अरे, आप की मम्मी को मैं मना लूंगा. हम दोनों तो दोस्त बन गए न, तुम्हारा नाम प्रियांश और मेरा सारांश. चलो, तुम्हारे घर चलते हैं,’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन का हाथ थाम लिया और सीढि़यों पर चढ़ना शुरू कर दिया.

दरवाजे पर नाइटी पहने खड़ी गौरवर्ण की आकर्षक महिला शायद चुनमुन का इंतजार कर रही थी. सारांश को देख कर वह एक बार थोड़ी सकपकाई, फिर मुसकरा कर अंदर आने को कहती हुई आगेआगे चलने लगी. भीतर आ कर सारांश ने अपना परिचय दिया.

उस के बारे में वह केवल इतना ही जान पाया कि उस का नाम शीतल है और पास के ही एक विद्यालय में अध्यापिका है. चुनमुन ने मोबाइल की घटना एक सांस में बता दी शीतल को, और साथ ही यह भी कि अंकल ने उस का नाम चुनमुन रखा है, इसलिए शीतल भी उसे इसी नाम से बुलाया करे, मुनमुन तो किसी लड़की के नाम जैसा लगता है.

शीतल रसोई में चली गई और सारांश चुनमुन से बातें करने लगा. तब तक शीतल फू्रट जूस ले कर आ गई. सारांश ने शाम को बाजार जाने का कार्यक्रम बना लिया. शीतल को भी बाजार में कुछ काम था. पहले तो वह साथ जाने में थोड़ी  िझ झक रही थी, पर सारांश के आग्रह को वह टाल न सकी.

तीनों शाम को सारांश की कार में बाजार गए और रात को बाहर से ही खाना खा कर घर लौटे. बाजार में चुनमुन सारांश की उंगली पकड़े ही रहा. सारांश भी कई दिनों से अकेलेपन से जू झ रहा था. इसलिए उसे भी उन दोनों के साथ एक अपनत्व का एहसास हो रहा था. शीतल के चेहरे पर आई चमक को सारांश साफसाफ देख पा रहा था. वह खुश था कि पड़ोसी एकदूसरे के साथ किस प्रकार एक परिवार की तरह जु

उस दिन के बाद चुनमुन अकसर सारांश के पास आ जाया करता था, सारांश भी कभीकभी उन के घर जा कर बैठ जाता था. सारांश को शीतल ने बताया कि उस के मातापिता हिमाचल प्रदेश में रहते हैं. ससुराल पक्ष के विषय में उस ने कभी कुछ नहीं बताया. सारांश भी अकसर उन को अपने मातापिता व छोटी बहन सुरभि के विषय में बताता रहता था. पिता दिल्ली में एक व्यापारी थे जबकि छोटी बहन एक साल से मिस्र में अपने पति के साथ रह रही थी.

उस दिन सारांश औफिस में बाहर से आए हुए कुछ व्यक्तियों के साथ व्यस्त था. एक महत्त्वपूर्ण बैठक चल रही थी. उस के फोन पर बारबार चुनमुन का फोन आ रहा था. सारांश ने 3-4 बार फोन काट दिया पर चुनमुन लगातार फोन किए जा रहा था. बैठक के बीच में ही बाहर जा कर सारांश ने उस से बात की.

चुनमुन को तेज बुखार था. शीतल ने डाक्टर को दिखा कर दवाई दिलवा दी थी और लगातार उस के पास ही बैठी थी. पर चुनमुन तो जैसे सारांश को ही अपनी पीड़ा बताना चाहता था. सारांश के दुलार से मिला अपनापन वह अपने नन्हे से मन में थाम कर रखना चाहता था.

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सारांश ने बैठक में जा कर सब से क्षमा मांगी और अपने स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को बैठा कर औफिस से सीधा चुनमुन के पास आ गया. उसे देखते ही चुनमुन खिल उठा. शीतल भी मन ही मन राहत महसूस कर रही थी. चुनमुन ने सारांश को अपने घर कपड़े बदलने भी तभी जाने दिया जब उस ने रात को चुनमुन के घर ठहरने का वादा किया. शीतल के आग्रह पर सारांश रात का खाना उन के साथ ही खाने को तैयार हो गया.

तेज बुखार के कारण चुनमुन की नींद बारबार खुल रही थी, इसलिए शीतल और सारांश उस के पास ही बैठे थे. अपनेपन की एक डोर दोनों को बांध रही थी. अपने जीवन के पिछले दिन दोनों एकदूसरे के साथ सा झा कर रहे थे. सारांश का जीवन तो कमोबेश सामान्य ही बीता था, पर शीतल एक भयंकर तूफान से गुजर चुकी थी.

कुछ वर्षों पहले वह अपनी दादी के घर हिमाचल के सुदूर गांव में गई थी. उन का गांव मैक्लोडगंज के पास पड़ता था जहां अकसर सैलानी आतेजाते रहते हैं. एक रात वह ठंडी हवा का आनंद लेती हुई कच्ची सड़क पर मस्ती से चली जा रही थी. अचानक एक कार उस के पास आ कर रुकी. पीछे से किसी ने उस का मुंह दबोच लिया और उसे स्त्री जन्म लेने की सजा मिल गई.

अंधेरे में वह उस दानव का चेहरा भी न देख पाई और वह तो अपने पुरुषत्त्व का दंभ भरते हुए चलता बना. उसे तो पता भी नहीं कि एक नन्हा अंकुर वह वहीं छोड़ कर जा रहा है. शीतल का नन्हा चुनमुन. मातापिता ने शीतल पर चुनमुन को अनाथाश्रम में छोड़ कर विवाह करने का दबाव बनाया पर वह नहीं मानी. लोग तरहतरह की बातें कर के उस के मातापिता को तंग न करें, इसलिए उस ने घर से दूर आ कर रहने का निर्णय कर लिया. चुनमुन उस के लिए अपनी जान से बढ़ कर था.

बालों के लिए बेहद फायदेमंद है स्टीम लेना

स्‍टीम चेहरे के लिए जितना फायदेमंद है ठीक उतना ही फायदेमंद बालों के लिये भी है. आप चाहें तो ब्‍यूटी पार्लर जा कर या फिर अपने घर में ही तौलिये को गरम पानी में डुबो कर बालों को स्‍टीम दे सकती हैं. आइये जानते हैं बालों पर स्‍टीम दिये जाने से क्‍या लाभ होते हैं.

हेयर पोर खुलते हैं

बालों में तेल लगाने से पहले अपने बालों को स्‍टीम करें, इससे बालों के पोर खुल जाते हैं. अगर बालों के पोर्स बंद रहेंगे तो उसमें तेल अंदर तक नहीं जा पाएगा और आपके बालों को सही पोषण नहीं मिल पाएगा. स्‍टीम से जड़े मजबूत बनती हैं.

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स्‍कैल्‍प की सफाई

अपने स्‍कैल्‍प को रोजाना साफ करने के लिये स्‍टीम लीजिये. वैसे तो, बालों को शैंपू से धोने पर भी स्‍कैल्‍प साफ हो जाती है, लेकिन इतना ही काफी नहीं होता. अगर आप अपने स्‍कैल्‍प को पास से देखेंगी तो पाएंगी की वह गंदी है और इस गंदगी को बिल्‍कुल साफ करने के लिये स्‍टीम की जरुरत पड़ती है.

बाल बढ़ते हैं

अगर आपके बालों की ग्रोथ अच्‍छी नहीं है, तो स्‍टीम लेना शुरु कर दें. इससे जहां कहीं पर भी बाल कम होंगे वह स्‍टीम दा्रा निकलने लगेंगे.

हेयर स्‍टाइल

गीले बालों में हेयरस्‍टाइल बनाना बहुत मुश्‍किल काम होता है. लेकिन अगर आप भाप ले कर अपने बालों में स्‍टाइल बनाएंगी तो आपको आसानी होगी. इससे बाल बिल्‍कुल भी गीले नहीं होते बल्कि इससे बाल उतने ही गीले होते हैं, जितनी आपको जरुरत होती है.

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मिलावट : भाग 1

कमलाजी के दोगलेपन को देख कर बीना चिढ़ उठती थी. वह उन के इस व्यवहार के पीछे छिपे मनोवैज्ञानिक तथ्य तक पहुंचना चाहती थी. और जिस दिन उसे वजह पता चली तो उस पर विश्वास करना बीना के लिए मुश्किल हो रहा था.

‘‘वाह बीनाजी, आज तो आप कमाल की सुंदर लग रही हैं. यह नीला सूट और सफेद शौल आप पर इतना फब रहा है कि क्या बताऊं. मेरे साहब को भी नीला रंग बहुत पसंद है. जब भी खरीदारी करने जाओ, यही नीला रंग सामने रखवा लेंगे.’’

कमलाजी के जानेपहचाने अंदाज पर उस दिन बीना न मुसकरा पाई और न ही अपनी प्रशंसा सुन कर पुलकित ही हो पाई. सदा की तरह हर बात के साथ अपने पति को जोड़ने की उन की इस अनोखी अदा पर भी उस दिन वह न तो चिढ़ पाई और न ही तुनक पाई.

‘‘कमलाजी हर बात में अपने पति को क्यों खींच लाती हैं?’’ बीना ने सुमन से पूछा.

‘‘अरे भई, बहुत प्यार होगा न उन्हें अपने पति से,’’ सुमन ने उत्तर दिया.

‘‘फिर भी, कालेज के स्टाफरूम में बैठ कर हर समय अपनी अति निजी बातों का पिटारा खोलना क्या ठीक है?’’ बीना ने एक दिन सुमन के आगे बात खोली, तब हंस पड़ी थी सुमन.

‘‘कई लोगों को अपने प्यार की नुमाइश करना अच्छा लगता है. लोगों में बैठ कर बारबार पति का नाम, उस की पसंदनापसंद का बखान करना भाता है. भई, अपनाअपना स्वभाव है. अब तुम्हीं को देखो, तुम तो पति का नाम ही नहीं लेती हो.’’

‘‘अरे, जरूरी है क्या यह सब?’’

बीना की बात सुन कर सुमन खिलखिला कर हंसने लगी थी. फिर उस के बदले तेवर देख कर सुमन ने उस का हाथ थपथपा कर पुचकार दिया था, ‘‘चलो, छोड़ो, प्रकृति ने अनेक तरह के प्राणी बनाए हैं. उन में एक कमलाजी भी हैं, सुन कर  झाड़ दिया करो, दिल से क्यों लगाती हो?’’

‘‘अरे, मैं भला दिल से क्यों लगाऊंगी. इतनी गंभीर नहीं हूं मैं, और न ही मेरा दिल इतना…’’

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बीना की बात को बीच में ही काटते हुए सुमन बोली, ‘‘चलो, छोड़ो भी. लो, समोसा खाओ.’’

मस्त स्वभाव की सुमन स्थिति को सदा हलकाफुलका बना कर देखती थी. बीना को कालेज में आए अभी कुछ ही समय हुआ था और इस बीच सुमन से उस का दिल अच्छा मिल गया था.

कभीकभी उसे सुमन बड़ी रहस्यमयी लगती थी. ऐसा लगता था जैसे बहुतकुछ अपने भीतर वह छिपाए हुए है. सुमन किसी भी स्थिति की समीक्षा  झट से कर के दूध पानी अलगअलग कर सारा  झं झट ही समाप्त कर देती है.

‘‘देखो बीना, किसी बात को अधिक गंभीरता से सोचने की जरूरत नहीं है. रात गई बात गई, बस. समाप्त हुआ न सारा  झमेला,’’ सुमन ने बीना को सम झाया. वह बात को  झट से एक सुखद मोड़ दे देती, मानो कहीं कुछ घटा ही नहीं.

‘‘अरे, वाह नीमाजी, आज तो आप बहुत सुंदर लग रही हैं.’’

एक सुबह बीना के सामने ही कमलाजी ने उस की एक सहयोगी नीमा की जी खोल कर तारीफ की थी, मगर जैसे ही वह क्लास लेने गई, पीछे से मुंह बिचका कर यह कह कर हंसने लगीं, ‘‘कैसी गंदी लग रही है नीमा. एक तो कालीकलूटी सूरत और ऊपर से ऐसा रंग, मु झे तो मितली आने लगी थी.’’

कमलाजी के इस दोगले आचरण को देख कर बीना अवाक रह गई. एक पढ़ीलिखी, कालेज की प्रोफैसर से उसे इस तरह के आचरण की आशा न थी.

‘‘मेरे पति को भी इस तरह के चटक रंग पसंद नहीं हैं. शादी में मेरी मां की ओर से ऐसी साड़ी मिली थी, पर उन्होंने कभी मु झे पहनने ही नहीं दी. मैं तो कभी पति की नापसंद का रंग नहीं पहनती. क्या करें, जिस के साथ जीना हो उस की खुशी का खयाल तो रखना ही पड़ता है,’’ कमलाजी के मुंह से इस तरह की बातों को सुन कर तब बीना को अपनी प्रशंसा में कहे गए कमला के शब्द  झूठे लगे थे. उसे लगा था कि उस की तारीफ में कमलाजी जो कुछ कहती हैं उस का दूसरा रूप यही होता होगा जो उस ने अभीअभी नीमा के संदर्भ में देखा है. उस के बाद तो बीना कभी भी कमलाजी के शब्दों पर विश्वास कर ही नहीं पाई.

कमलाजी के शब्दों पर सदा  झल्ला ही पड़ती थी. एक दिन बोल पड़ी थी, ‘‘हांहां, कमलाजी, आते समय मैं ने भी शीशा देखा था. वास्तव में सुंदर लग रही थी.’’

‘‘आप को आतेआते शीशा देखना याद रहता है क्या? मु झे तो समय ही नहीं मिलता. सुबहसुबह कितना काम रहता है. सुबह के बाद कहीं देररात जा कर चारपाई नसीब होती है. दिनभर काम करतेकरते कमर टूट जाती है. ऊपर से पतिदेव का कहना न मानो, तो मुसीबत. हम औरतों की भी क्या जिंदगी है. मैं तो सोच रही हूं कि नौकरी छोड़ दूं. फिर मेरे पति भी कहते हैं कि यह क्या, 3 हजार रुपए की नौकरी के पीछे तुम मेरा घर भी बरबाद कर रही हो.’’

‘‘तो छोड़ दीजिए नौकरी. आप के पति की आमदनी अच्छी है और आप शाम तक इतना थक भी जाती हैं, तो जरूरत भी क्या है?’’ बीना ने तुनक कर उत्तर दिया था.

‘‘बीना, चलो, तुम्हारी क्लास है,’’ सुमन उस की बांह पकड़ कर उसे बाहर ले आई थी, ‘‘क्यों सुबहसुबह कमलाजी से उल झ रही हो?’’

‘‘मु झे ऐसे दोगले इंसान दोमुंहे सांप जैसे लगते हैं, सुमनजी. मुंह पर कुछ और पीठपीछे कुछ. और जब देखो, अपनी राय दूसरों को देती रहती हैं.’’

‘‘बीना, तुम वही कमजोरी दिखा रही हो. मैं ने कहा न, इस तरह के लोगों को सुनाअनसुना कर देना चाहिए.’’

‘‘सुमनजी, आप भी बस…’’

‘‘देखो बीना, यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि मनुष्य अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए उसी कमजोरी के न होने का ढोंग बड़े जोरशोर से करता है. मन में किसी तरह की कोई कुंठा हो तो दूसरों का मजाक उड़ा कर उस कुंठा को शांत करता है. ऐसे लोग दया के पात्र होते हैं. उन पर हमें क्रोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्या कमजोरी है कमलाजी को? अच्छीखासी सुंदर हैं. अमीर घर से संबंध रखती हैं. पति उन पर जान छिड़कता है. इन के मन में क्या कुंठा है?’’

‘‘कोई तो होगी. हमें क्या लेनादेना. हम यहां नौकरी करने आते हैं, किसी की कुंडली जानने नहीं.’’

चुप रह गई थी बीना. सुमन उस से उम्र में बड़ी थी, इसलिए आगे बहस करना उसे अच्छा न लगा था.

एक शाम बीना परिवार समेत सुमन के घर गई थी. तब सुमन ने बड़े प्यार से, बड़ी बहन की तरह उसे सिरआंखों पर बिठाया था.

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‘‘मेरे बेटे से मिलो. ये देखो, मेरे बच्चे के जीते हुए पुरस्कार,’’ फिर बेटे की तरफ देख कर बोली, ‘‘बेटे, ये बीना मौसी हैं. मेरे साथ कालेज में पढ़ाती हैं.’’

कालेज में शांत और संयम से रहने वाली सुमन बीना को कुछ दिखावा सा करती प्रतीत हुई थी. बारबार अपने बेटे की प्रशंसा और उस की उपलब्धियों का बखान करती हुई, उस के द्वारा जीते गए कप व अन्य पुरस्कार ही दिखाती रही.

इंडिया वॉइस फेस्ट 2019 के पुरस्कार से सम्मानित हुए दिग्गज गायक सुदेश भोसले

ज्येष्ठ पार्श्व गायक और प्रशंसित आवाज के अभिनेता सुदेश भोसले का संगीत की दुनिया में योगदान अज्ञात नहीं है. हालांकि, कम ही लोग जानते हैं कि उनकी आवाज में अभिनय से उन्हें महारत हासिल है और उन्हें इंडस्ट्री में सराहना मिली है.

हाल ही में सुदेश भोसले को वॉयस एक्टिंग के शिल्प में उनके अनुकरणीय योगदान के लिए इंडिया वॉयस फेस्ट 2019 से सम्मानित किया गया. बांद्रा में रंग शारदा ऑडिटोरियम में आयोजित इसके दूसरे संस्करण में इंडिया वॉयस फेस्ट 2019 को अखिल भारतीय आवाज कलाकारों, रेडियो के डबिंग कलाकारों, फिल्मों या टीवी द्वारा जो पर्दे के पीछे से मदद करते हैं उन्हे समर्पित था.

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“अक्सर, कुछ अभिनेता अपनी खुद की डबिंग नहीं करते हैं. हम अभिनेताओं को आवाज देते हैं, “सुदेश भोसले कहते हैं,” अमोल सेन, हरीश भीमनी जूरी का हिस्सा थे जिन्होंने मुझे इस साल डबिंग और वॉयस कलात्मकता की दुनिया में मेरे योगदान के लिए इस पुरस्कार के लिये मेरा चुनाव किया. ”

यह सम्मान पाने पर सुदेश भोसले ने साझा किया, “यह वास्तव में अच्छा लगा. इस दौरान मेरी वरिष्ठ कलाकारों के साथ-साथ युवा पीढ़ी के कलाकारों से भी मुलाकात हुई. ”उनकी सलाह चाहने वाले मौजूद युवा को सलाह देते हुए उन्होंने कहा, “बस पर्दे के पीछे काम करने पर ना अड़े, सामने की तरफ आकर अपनी कला उजागर करने की कोशिश करें और हमेशा कैमरे के पीछे न रहें. आप अपना नाम, शोहरत कमाने के साथ-साथ और पैसा कमाएंगे.”

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हर कोई नहीं जानता की दिग्गज अभिनेता संजीव कुमार के आकस्मिक निधन के बाद, यह सुदेश भोसले थे जो उनकी आवाज बने, उन्होंने दिवंगत अभिनेता की 5 फिल्मों को उनकी आवाज में डब किया. इतना ही नहीं उन्होंने तेजाब में अनिल कपूर की आवाज़ को भी डब किया. संजीव कुमार और अनिल कपूर के अलावा, बहुमुखी गायक ने अक्सर क्षेत्रीय भाषाओं में महानायक अमिताभ बच्चन के लिए डब करते हैं

जेएनयू में एबीवीपी और वाम छात्रों के बीच हुआ टकराव, स्टूडेंट और टीचर हुए घायल

जेएनयू विश्वविद्यालय का जिक्र हमेशा उस वक्त होता था, जब वहां से निकला कोई छात्र या छात्रा दुनिया में हिंदुस्तान का परचम लहराता था. लेकिन अब इस विश्वविद्यालय की आत्मा को बार-बार झकझोरने की कोशिशें हो रही हैं. इस विश्वविद्यालय की रूह को जख्मी करने के लिए कभी पुलिस तो कभी विपरीत विचारधारा वाले लोग आगे रहते हैं. रविवार को शाम भी कुछ ऐसा ही हुआ.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) परिसर में रविवार शाम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्र नेताओं और वामपंथी छात्रों के बीच हुई हिंसक झड़प में जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष सहित कई अन्य विद्यार्थी बुरी तरह से घायल हो गए. वीडियो में घोष के शरीर से खून निकलता देखा जा सकता है. जानकारी के मुताबिक लोहे की रोड से उसकी आंख पर हमला किया गया. प्राथमिक उपचार के लिए उसे पास के अस्पताल ले जाया गया है.

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लाठियों-डंडों के साथ कैंपस में दाखिल हुए थी भीड़…

महासचिव सतीश चंद्र भी इस दौरान घायल हो गए और कथित तौर पर कुछ शिक्षकों पर भी हमला किया गया. घटनास्थल से मिली खबरों के अनुसार, मुनिरका इलाके से कुछ बाहरी लोग लाठियों-डंडों के साथ कैंपस में दाखिल हुई थी. घटना के बाद बदमाश कथित तौर पर फरार हो गए.

एबीवीपी के छात्र नेताओं ने लगाया था ये आरोप 

इससे पहले एबीवीपी के छात्र नेताओं ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पेरियार छात्रावास के छात्रों के साथ वामपंथी छात्रों ने मारपीट कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया.

एबीवीपी की जेएनयू यूनिट के अध्यक्ष दुर्गेश ने कहा, “करीब चार से पांच सौ वाम सदस्य पेरियार छात्रावास में इकट्ठा हुए, यहां तोड़फोड़ कर जबरन घुसपैठ की और अंदर बैठे एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को पीटा.” एबीवीपी ने दावा किया कि उसके अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मनीष जांगिड़ को बुरी तरह से घायल किया गया है और शायद मारपीट के बाद उसका हाथ टूट गया है.

दुर्गेश ने आगे कहा कि छात्रों पर पत्थर फेंके गए, जिसके चलते कुछ के सिरों पर चोटें आई हैं। उन्होंने कहा, “अंदर मौजूद छात्रों पर उन्होंने पत्थर और डंडे बरसाए.” हालांकि, वामपंथी छात्रों के नेतृत्व वाले जेएनयूएसयू ने इस दावे को तुरंत खारिज करते हुए कहा कि एबीवीपी और प्रशासन झूठी कहानी फैलाने में लगे हुए हैं.

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जेएनयूएसयू के महासचिव सतीश चंद्र के मुताबिक एबीवीपी और प्रशासन बढ़ी हुई फीस को लेकर छात्रों के प्रदर्शन को निशाना बना रहे हैं. यह और कुछ नहीं छात्रों और समाज को गुमराह करने के लिए लगाए जा रहे झूठे आरोप हैं.” इस बीच दक्षिणपंथी संगठन एबीवीपी ने कहा है कि उन्होंने फैसला किया है कि जैसे ही घायल हुए उनके साथी प्राथमिक उपचार के बाद लौटेंगे वह इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कराएंगे.

छोटी सरदारनी में होगा 2 महीने का लीप, क्या नया मोड़ लेगी मेहर और परम की जिंदगी?

शो ‘छोटी सरदारनी’ में धीरे-धीरे मेहर की जिंदगी में परेशानियां कम हो रही है. और आज के एपिसोड में दिखेगा लीप. मेहर, सरब और परम की जिंदगी में आने वाला ये लीप शो में नया मोड़ लाने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

मेहर पहुंची अस्पताल

अब तक आपने देखा कि सरब मेहर को ढूंढता है, लेकिन वह उसे नहीं मिलती. दूसरी तरफ मेहर अबौर्शन के लिए अस्पताल पहुंच जाती है. जहां डौक्टर अबौर्शन की तैयारी करते हुए मेहर को बेहोशी का इंजेक्शन लगा देते हैं.

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मेहर और उसके बच्चे को बचाती है हरलीन

मेहर के औपरेशन शुरू होने से पहले ही हरलीन आकर डौक्टर को रोक देती है. वहीं सरब भी पहुंच जाता है और मेहर और उसका बच्चा बिल्कुल सही सलामत रहते हैं.

लीप के बाद दिखेगा ये नया ट्विस्ट

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मेहर और सरब का परिवार परम के दस्तरबंदी का फंक्शन मनाते हुए नजर आएंगे. दस्तरबंदी सेलिब्रेशन के लिए सरब पूरे घर को डेकोरेट करेगा. वहीं मेहर और परम सेलिब्रेशन के लिए तैयार होते हुए नजर आएंगे. दस्तरबंदी सेलिब्रेशन के वक्त भी मेहर और हरलीन के बीच कड़वाहट देखने को मिलेगी.

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अब देखना ये है कि लीप के बाद कहीं गिल फैमिली की खुशियों को किसी की नजर तो नही लग जाएगी? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

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