इस 4 जुलाई को राजधानी दिल्ली के वसंत विहार इलाके में 11वीं क्लास के एक बच्चे साहिल को पिता की डांट इतनी बुरी लगी कि उस ने आत्महत्या कर ली. उस के कमरे से एक पर्ची मिली है जिस पर लिखा है , सौरी मोम डैड. अपने इकलौते बेटे द्वारा आत्महत्या किये जाने से पूरा परिवार सदमे में है.
हुआ कुछ यों कि साहिल ने दो दिन पहले औनलाइन शौपिंग साइट से ब्लूटूथ बुक करवाया था. बीते बुधवार को उस के पिता के फोन पर इस डिवाइस की डिलिवरी के लिए मेसेज आया तब उन्हें इस बुकिंग के बारे में पता चला. इस के बाद उन्होंने फोन पर ही अपने बेटे को डांट लगाई. उन्होंने साहिल से कहा कि अभी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. इतना महंगा ब्लूटूथ मंगवाने की क्या जरूरत थी.
इस बात से 16 वर्षीय साहिल इतना आहत हो गया कि उस ने अपने कमरे में खुद को फांसी लगा ली. घटना के समय साहिल की मां और बहन घर पर ही थे जब कि पिता अपने कालेज गए थे. पिता को जब आत्महत्या का पता चला तो वे उसे ले कर अस्पताल गए लेकिन वहां पर डौक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
इस तरह की घटनाएं आज के युवा और किशोर बच्चों के मन में चल रहे झंझावातों और पेरेंट्स के प्रति विद्रोह के भावों का खुलासा करती हैं.
ऐसा नहीं है कि साहिल ने खुदकुशी का फैसला पिता की केवल एक डांट के आधार पर ले लिया होगा. बल्कि उस के मन में काफी समय से कशमकश चल रही होगी. पिता के रवैयों के प्रति लम्बे समय से नाराजगी के भाव रहे होंगे. नतीजा यह हुआ कि उस डांट ने विद्रोह की चिंगारी को हवा दे दी और वह खुद को उस आग में झोंकने से रोक नहीं पाया.
देखा जाए तो यहां दोष न पिता का है और न ही बच्चे का है. दोष तो समझ में अंतर का है. एक पिता जब तक यह स्वीकार नहीं करेगा कि मेरे बच्चे की जिंदगी उस की अपनी है, उस के भविष्य की जिम्मेदारी भी उस की खुद की है , तब तक यह समस्या सुलझ नहीं सकती. पेरेंट्स होने के नाते पिता या मां बच्चे को सही दिशा दिख सकते हैं, उसे समझा सकते हैं मगर उस की जिंदगी पर अपना कंट्रोल नहीं जमा सकते.
बच्चे को अपनी जिंदगी खुद जीने दें. उसे एक पैरेंट के रूप में अपने हिसाब से चलाने का प्रयास न करें. बल्कि खुद फैसले लेने दें. उस पर कठोर अनुशाशन न रखें बल्कि कभीकभी ठोकर भी खाने दें ताकि वह अपनी गलतियों से खुद सबक ले.
कभीकभी उस के जज्बातों को समझने का भी प्रयास करें. वह आज के समय का है. उस की सोच को सिरे से नकारें नहीं बल्कि समय के साथ आगे बढ़ने दें. सही गलत का बेसिक अंतर जरूर बताएं मगर उसे अपने तरीके से जीने से न रोकें वर्ना एक असंतुष्टि के भाव मन में गहराते जाएंगे.
अमेरिका में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक 11 से 12 वर्ष के बच्चों के पेरेंट्स सब से ज्यादा अकेले और परेशान पाए जाते हैं. इस उम्र में यानी टीनएज की शुरुआत में मां को बच्चों की वजह से सब से अधिक तनाव से गुजरना पड़ता है. एक मां को उस वक्त ज्यादा दुख नहीं होता जब बच्चे अपना अलग घर बना लेते हैं बल्कि दुख तब होता है जब वे मानसिक और भावनात्मक दूरी का एहसास कराते हैं.
किशोरावस्था के दौरान बच्चे और मातापिता के बीच का रिश्ता बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहा होता है. इस समय जहाँ बच्चे का साक्षात्कार नए अनुभवों से हो रहा होता है वहीँ भावनात्मक उथलपुथल भी हावी रहती है. इस उम्र में न केवल बच्चे के अंदर हजारों हार्मोनल चेंज होते हैं बल्कि वे उग्र और अपनी मर्जी चलाने वाले बन जाते हैं. वे खुद को साबित करने और अपना व्यक्तित्व निखारने की जद्दोजहद में लगे होते है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी बढ़ रहा होता है.
ऐसे में अगर आप जान लें कि आप के बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है तो इस स्थिति से निपटना शायद आप के लिए आसान हो जाएगा .जब भी समय मिले तो बच्चे के साथ समय बिताएं. उस से बातचीत करें. उस की भावनाओं को समझें उस की समस्याएं सुलझाने में अपना सहयोग दें. तानाशाही रवैये के बजाय दोस्ताना व्यवहार रखें.
प्रेगनेंसी के बाद या जब आप अपना वजन कम करती हैं तो, पेट या फिर जांघों के आस पास की त्वचा में ढीलापन आ जाता है जिससे वह जगह देखने में बड़ी ही भद्दी नजर आती है. प्रेगनेंसी में वजन बढ़ जाता है और जब आप बहुत तेजी से वजन कम करती हैं तो त्वचा में जो लचीलापन होता है वह भी चला जाता है और काफी वक्त के बाद वापस आता है या फिर आता ही नहीं है. अगर आप धीरे धीरे वजन कम करती हैं तो यह आपके लिये फायदेमंद रहेगा क्योंकि इससे आपकी त्वचा एक दम से ढीली नहीं होगी.
आपको कुछ ऐसे आसान होममेड टिप्स बताएंगे जिसे आजमाने से आप दुबारा अपनी त्वचा का खोया हुआ लचीलापन और कसाव वापस पा सकती हैं.
हमेशा हाइड्रेट रहें
दिन में कम से कम 8 गिलास पानी पियें. इससे आपको अपनी त्वचा में बदलाव महसूस होगा. अगर त्वचा में पानी की कमी रहती है तो त्वचा रूखी और झुर्रियों से भरी दिखती है.
प्रोटीन युक्त आहार
खाएं प्रोटीन खाने से मसल्स दुबारा बनने शुरु हो जाते हैं और त्वचा का लचीलापन वापस आ जाता है. अपने आहार में दालें, बींस, चिकन और मछली आदि शामिल करें.
लचीलापन वापस लाने वाले आहार खाएं
अपने आहार में विटामिन ए, सी, ई और के शामिल करें. इससे त्वचा के अंदर कोलाजेन बनने की प्रक्रिया शुरु होगी जो कि त्वचा में लचीलापन लाता है. इसलिये आपको ढेर सारे मेवे खाने चाहिये जिसमें जिंक और सीलियम होता है.
अपनी स्किन को ब्रश करें
त्वचा पर स्क्रब और ब्रशिंग करने से डेड स्किन निकल जाती है. ऐसा हर रोज करें जिससे खून का सर्कुलेशन बढ़े और नई सेल्स की ग्रोथ हो.
कच्चे फल और सब्जियां खाएं
अपनी डाइट में ढेर सारे फल और सब्जियां शामिल करें क्योंकि इनमें विटामिन्स और मिनलल्स होते हैं जो स्किन को टाइट बनाते हैं.
धनिया पनीर रेसिपी आपको बेहद पसंद आएगी. यह डिश टेस्टी होनो के साथ-साथ बनाने में भी काफी आसान है. तो आइए जानते हैं कि इस धनिया पनीर रेसिपी कैसे बनाया जाता है.
सामग्री
धनिया पत्ता
हरी मिर्च (2)
लहसुन की कलियां (2)
गरम मसाला पाउडर (1 चम्मच)
हल्दी पाउडर (1 चम्मच)
नींबू का रस (2 चम्मच)
पनीर (250 ग्राम)
प्याज (1)
अदरक (1 चम्मच)
लाल मिर्च पाउडर (1 चम्मच)
धनिया पाउडर (1 चम्मच)
रिफाइन्ड औइल (2 चम्मच)
सबसे पहले पनीर को काट लें और एक बड़े से बोल में रख लें.
अब इसमें लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, गरम मसाला पाउडर, नमक और नींबू का रस डालें
हल्के हाथ से मिलाएं ताकि पनीर के सभी टुकड़ों पर मसाले और नींबू का रस लग जाए.
अब धनिया पत्ता को अच्छी तरह से धो लें और बारीक काटकर मिक्सी में पीस लें और साथ में हरी मिर्च भी पीस लें.
एक पैन में तेल गरम करें और अदरक-लहसुन का पेस्ट डालें.
थोड़ी देर चलाएं और फिर कटा प्याज डालकर भूनें और जब प्याज हल्की ब्राउन हो जाए तो धनिया और मिर्च का पेस्ट डाल दें.
अब बचे मसाले ऊपर से डाल दें और नमक स्वादानुसार ऊपर से डालें. अब मैरिनेट किए हुए पनीर के टुकड़े डालें और फिर एक बोल में गर्मागर्म परोसें.
आरती अपने बेटेबहू से नाराज हो कर अपनी बेटी अंजलि के घर आ गई. अब आरती का अगला कदम जहां अपने बेटेबहू को अपनी अहमियत बताना था वहीं किसी और की भी अक्ल ठिकाने लगाने का काम उसे करना था.
अटैची हाथ में पकड़े आरती ड्राइंगरूम में आईं तो राकेश और सारिका चौंक कर खडे़ हो गए.
‘‘मां, अटैची में क्या है?’’ राकेश ने माथे पर बल डाल कर पूछा.
‘‘फ्रिक मत कर. इस में तेरी बहू के जेवर नहीं. बस, मेरा कुछ जरूरी सामान है,’’ आरती ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.
‘‘किस बात पर गुस्सा हो?’’
अपने बेटे के इस प्रश्न का आरती ने कोई जवाब नहीं दिया तो राकेश ने अपनी पत्नी की तरफ प्रश्नसूचक निगाहों से देखा.
‘‘नहीं, मैं ने मम्मी से कोई झगड़ा नहीं किया है,’’ सारिका ने फौरन सफाई दी, लेकिन तभी कुछ याद कर के वह बेचैन नजर आने लगी.
राकेश खामोश रह कर सारिका के आगे बोलने का इंतजार करने लगा.
‘‘बात कुछ खास नहीं थी…मम्मी फ्रिज से कल रात दूध निकाल रही थीं…मैं ने बस, यह कहा था कि सुबह कहीं मोहित के लिए दूध कम न पड़ जाए…कल चाय कई बार बनी…मुझे कतई एहसास नहीं हुआ कि उस छोटी सी बात का मम्मी इतना बुरा मान जाएंगी,’’ अपनी बात खत्म करने तक सारिका चिढ़ का शिकार बन गई.
‘‘मां, क्या सारिका से नाराज हो?’’ राकेश ने आरती को मनाने के लिए अपना लहजा कोमल कर लिया.
‘‘मैं इस वक्त कुछ भी कहनेसुनने के मूड में नहीं हूं. तू मुझे राजनगर तक का रिकशा ला दे, बस,’’ आरती की नाराजगी उन की आवाज में अब साफ झलक उठी.
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‘‘क्या आप अंजलि दीदी के घर जा रही हो?’’
‘‘हां.’’
‘‘बेटी के घर अटैची ले कर रहने जा रही होे?’’ राकेश ने बड़ी हैरानी जाहिर की.
‘‘जब इकलौते बेटे के घर में विधवा मां को मानसम्मान से जीना नसीब न हो तो वह बेटी के घर रह सकती है,’’ आरती ने जिद्दी लहजे में दलील दी.
‘‘तुम गुस्सा थूक दो, मां. मैं सारिका को डांटूंगा.’’
‘‘नहीं, मेरे सब्र का घड़ा अब भर चुका है. मैं किसी हाल में नहीं रुकूंगी.’’
‘‘कुछ और बातें भी क्या तुम्हें परेशान और दुखी कर रही हैं?’’
‘‘अरे, 1-2 नहीं बल्कि दसियों बातें हैं,’’ आरती अचानक फट पड़ीं, ‘‘मैं तेरे घर की इज्जतदार बुजुर्ग सदस्य नहीं बल्कि आया और महरी बन कर रह गई हूं…मेरा स्वास्थ्य अच्छा है, तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम महरी भी हटा दो…मुझे मोहित की आया बना कर आएदिन पार्टियों में चले जाओ…तुम दोनों के पास ढंग से दो बातें मुझ से करने का वक्त नहीं है…उस शाम मेरी छाती में दर्द था तो तू डाक्टर के पास भी मुझे नहीं ले गया…’’
‘‘मां, तुम्हें बस, एसिडिटी थी जो डाइजीन खा कर ठीक भी हो गई थी.’’
‘‘अरे, अगर दिल का दौरा पड़ने का दर्द होता तो तेरी डाइजीन क्या करती? तुम दोनों के लिए अपना आराम, अपनी मौजमस्ती मेरे सुखदुख का ध्यान रखने से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. मेरी तो मेरी तुम दोनों को बेचारे मोहित की फिक्र भी नहीं. अरे, बच्चे की सारी जिम्मेदारियां दादी पर डालने वाले तुम जैसे लापरवाह मातापिता शायद ही दूसरे होंगे,’’ आरती ने बेझिझक उन्हें खरीखरी सुना दीं.
‘‘मम्मी, हम इतने बुरे नहीं हैं जितने आप बता रही हो. मुझे लगता है कि आज आप तिल का ताड़ बनाने पर आमादा हो,’’ सारिका ने बुरा सा मुंह बना कर कहा.
‘‘अच्छे हो या बुरे, अब अपनी घरगृहस्थी तुम दोनों ही संभालो.’’
‘‘मैं आया का इंतजाम कर लूं, फिर आप चली जाना.’’
‘‘जब तक आया न मिले तुम आफिस से छुट्टी ले लेना. मोहित खेल कर लौट आया तो मुझे जाते देख कर रोएगा. चल, रिकशा करा दे मुझे,’’ आरती ने सूटकेस राकेश को पकड़ाया और अजीब सी अकड़ के साथ बाहर की तरफ चल पड़ीं.
‘पता नहीं मां को अचानक क्या हो गया? यह जिद्दी इतनी हैं कि अब किसी की कोई बात नहीं सुनेंगी,’ बड़बड़ाता हुआ राकेश अटैची उठा कर अपनी मां के पीछे चल पड़ा.
परेशान सारिका को नई आया का इंतजाम करने के लिए अपनी पड़ोसिनों की मदद चाहिए थी. वह उन के घरों के फोन नंबर याद करते हुए फोन की तरफ बढ़ चली.
करीब आधे घंटे के बाद आरती अपने दामाद संजीव के घर में बैठी हुई थीं. अपनी बेटी अंजलि और संजीव के पूछने पर उन्होंने वही सब दुखड़े उन को सुना दिए जो कुछ देर पहले अपने बेटेबहू को सुनाए थे.
‘‘आप वहां खुश नहीं हैं, इस का कभी एहसास नहीं हुआ मुझे,’’ सारी बातें सुन कर संजीव ने आश्चर्य व्यक्त किया.
‘‘अपने दिल के जख्म जल्दी से किसी को दिखाना मेरी आदत नहीं है, संजीव. जब पानी सिर के ऊपर हो गया, तभी अटैची ले कर निकली हूं,’’ आरती का गला रुंध गया.
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‘‘मम्मी, यह भी आप का ही घर है. आप जब तक दिल करे, यहां रहें. सोनू और प्रिया नानी का साथ पा कर बहुत खुश होंगे,’’ संजीव ने मुसकराते हुए उन्हें अपने घर में रुकने का निमंत्रण दे दिया.
‘‘यहां बेटी के घर में रुकना मुझे अच्छा…’’
‘‘मां, बेकार की बातें मत करो,’’ अंजलि ने प्यार से आरती को डपट दिया, ‘‘बेटाबेटी में यों अंतर करने का समय अब नहीं रहा है. जब तक मैं उस नालायक राकेश की अक्ल ठिकाने न लगा दूं, तब तक तुम आराम से यहां रहो.’’
‘‘बेटी, आराम करने के चक्कर में फंस कर ही तो मैं ने अपनी यह दुर्गति कराई है. अब आराम नहीं, मैं काम करूंगी,’’ आरती ने दृढ़ स्वर में मन की इच्छा जाहिर की.
‘‘मम्मी, इस उम्र में क्या काम करोगी आप? और काम करने के झंझट में क्यों फंसना चाहती हो?’’ संजीव परेशान नजर आने लगा.
‘‘काम मैं वही करूंगी जो मुझे आता है,’’ आरती बेहद गंभीर हो उठीं, ‘‘जब अंजलि के पापा इस दुनिया से अकस्मात चले गए तब यह 8 और राकेश 6 साल के थे. मैं ससुराल में नहीं रही क्योेंकि मुझ विधवा की उस संयुक्त परिवार में नौकरानी की सी हैसियत थी.
‘‘अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने के लिए मैं ने ससुराल को छोड़ा. दिन में बडि़यांपापड़ बनाती और रात को कपड़े सिलती. आज फिर मैं सम्मान से जीना चाहती हूं. अपने बेटेबहू के सामने हाथ नहीं फैलाऊंगी. कल सुबह अंजलि मुझे ले कर शीला के पास चलेगी.’’
‘‘यह शीला कौन है?’’ संजीव ने उत्सुकता दर्शाई.
सोशल मीडिया पर जहां मी टू जैसे कैंपेन चल रहे हैं, वहीं एक मौडल को इस की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी. वजह, फेसबुक फ्रैंड ने ही मौडल बनने आई कुलीग के साथ ऐसी हरकत कर डाली कि उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
मलाड (पश्चिम) में माइंडस्पेस के पास झाड़ियों के बीच ट्रैवल बैग में 20 साल की मौडल की लाश मिलने से हड़कंप मच गया. बैग के अंदर एक महिला की लाश थी जिस के सिर पर चोट थी. उस के शव को कुशन और बेडशीट से कवर किया हुआ था.
हालांकि सीसीटीवी फुटेज में एक कार दिखी है जिस के अंदर बैठे एक शख्स ने सड़क किनारे सूटकेस फेंका था. इसी के आधार पर पुलिस ने आरोपी की पहचान की और उसे उस की बिल्डिंग से पकड़ लिया गया. आरोपी की पहचान 20 साला मुजम्मिल सईद के रूप में हुई. आरोपी सेकंड ईयर का छात्र है. वह मिल्लत नगर अंधेरी (पश्चिम) में रहता था. वहीं मृतका का नाम मानसी दीक्षित है जो राजस्थान से मुंबई मौडल बनने का सपना ले कर आई थी.
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पुलिस के मुताबिक, मानसी राजस्थान के कोटा शहर की रहने वाली थी, आरोपी मुजम्मिल सईद हैदराबाद का रहने वाला है. मानसी आरोपी से इंटरनेट के जरीए मिली थी. दोनों ने अंधेरी स्थित आरोपी के फ्लैट में मुलाकात की थी. दोपहर में दोनों के बीच किसी बात पर बहस हो गई, जिस के बाद मुजम्मिल सईद ने गुस्से में मानसी को किसी चीज से सिर पर मारा जिस से उस की मौत हो गई.
घटना को अंजाम देने के बाद सईद ने मानसी के शव को बैग में भरा और अंधेरी से मलाड तक एक प्राइवेट कैब बुक की. इस के बाद उस ने मलाड के माइंडस्पेस के पास झाड़ियों में बैग को फेंक दिया और वहां से फरार हो गया.
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पुलिस को इस घटना की जानकारी कैब ड्राइवर ने दी. कैब ड्राइवर ने सईद को झाड़ियों में बैग फेंक कर आटोरिक्शा में फरार होते देखा था. पुलिस ने तुंरत मौके पर पहुंच कर मामले की जांच शुरू की और मानसी का शव बरामद कर लिया.
मुजम्मिल ने बताया कि हादसे के दौरान मानसी उस के फ्लैट में थी. उस ने गुस्से में मानसी के सिर पर स्टूल मार दिया जिस से अनजाने में मानसी की मौत हो गई. आरोपी ने हत्या की बात कबूल कर ली है.
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के लिये ‘युवा महोत्सव’ का महत्व ‘लखनऊ महोत्सव‘ से अधिक है. इस कारण युवा महोत्सव के लिये 45 साल पुराने लखनऊ महोत्सव को स्थगित कर दिया गया है. योगी सरकार के लिये युवा महोत्सव का प्रभाव इसलिये अधिक है क्योकि यह स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन 12 जनवरी से 16 जनवरी के आयोजित हो रहा है. योगी सरकार के लिये यह हिन्दुत्व और वोटबैंक से जुड़ा मुद्दा है.
केवल कला और संस्कृति का मंच नहीं
‘लखनऊ महोत्सव‘ केवल कला और संस्कृति का मंच नहीं था इसमें लगने वाले स्टाल लोगों के रोजगार का साधन भी थे. पर्यटन विभाग के आंकडे बताते है कि लखनऊ घूमने आने वाले पर्यटको की संख्या सबसे अधिक इस दौरान ही होती रही है. उत्तर प्रदेश की ‘योगी सरकार’ ने 45 साल पुराने ‘लखनऊ महोत्सव‘ को महत्व नहीं दिया. उसके आयोजन के समय में बदलाव किया.
दिसंबर में भी स्थगित हुआ था ‘लखनऊ महोत्सव’
2019 का ‘लखनऊ महोत्सव‘ स्थगित कर दिया गया. पहले यह महोत्सव 25 नवम्बर से 5 दिसंबर के बीच आयोजित होना था. अयोध्या मुकदमें के फैसले के मददेनजर इसके आयोजन के समय को बदल कर जनवरी 2020 कर दिया गया. सारी तैयारी पूरी होने के बाद अचानक 06 जनवरी को ‘लखनऊ महोत्सव‘ के आयोजन को स्थगित कर दिया गया. ‘लखनऊ महोत्सव‘ के स्थगित होने का कारण 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस से आयोजित होने वाला ‘युवा महोत्सव’ है. योगी सरकार युवा महोत्सव को पूरे धूमधाम से आयोजित करना चाहती है. युवा महोत्सव की तैयारी में कोई चूक ना हो जाये इस कारण ‘लखनऊ महोत्सव‘ को स्थगित कर दिया गया.
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लखनऊ की पहचान है ‘लखनऊ महोत्सव
‘लखनऊ महोत्सव‘ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की पहचान रहा है. लखनऊ महोत्सव का आयोजन हर साल 25 नवंबर से 5 दिसम्बर के बीच किया जाता है. 10 दिन का यह महोत्सव का आयोजन यूपी पर्यटन विभाग और लखनऊ जिला प्रशासन संयुक्त रूप से करते रहे है. इसमें उत्तर प्रदेश की कला और संस्कृति को प्रर्दशित किया जाता था.
साल 1975 में हुई थी शुरुआत
लखनऊ महोत्सव की शुरुआत सन् 1975-76 में हुई थी. जब दक्षिण एशियाई पर्यटन वर्ष मनाया गया था. लखनऊ में पर्यटन का सबसे अच्छा समय नवम्बर से फरवरी तक होता है. इसको विंटर टूरिज्म से जोड कर देखा जाता है. इस महोत्सव के बहाने देश-विदेश के पर्यटक लखनऊ की कला, संस्कृति और पर्यटन से रूबरू होते रहे है.
पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया शुरू
पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘लखनऊ महोत्सव’ को वार्षिक महोत्सव के रूप में आयोजित करने का निर्णय लिया गया था. जिसके बाद से ही हर साल लखनऊ महोत्सव का आयोजन बड़ी धूमधाम के साथ किया जाता है. नवाबों का शहर लखनऊ अपनी वेशभूषा के साथ-साथ अपनी अदब वाली बोली और विभिन्न प्रकार के खान-पान के लिए भी प्रसिद्ध है. लखनवी कबाब और शाही पान का एक अलग ही स्वाद रहा है. लखनऊ को नवाबी शहर भी कहा जाता है.
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कला संस्कृति ही नहीं रोजगार का भी साधन
लखनऊ की इसी झलक को दिखाने के लिए हर साल लखनऊ महोत्सव का आयोजन किया जाता है. लखनऊ महोत्सव में ना केवल लखनऊ की झलक मिलती है बल्कि, पूरे भारत की संस्कृति यहां दिखती है. इस महोत्सव में कई रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं. यहां लखनवी व्यंजनों, प्रर्दशनियों के साथ एक्का दौड़, पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता, मुर्गा लड़ाई और अन्य पारंपरिक ग्रामीण खेलों से दर्शकों को रोमांचित किया जाता है. इनके जरिए लखनऊ में नवाबी रंग फिर से घोला जाता है ताकि लोग यहां की संस्कृति, सभ्यताओं से जुड़े रहें.
‘लखनऊ महोत्सव’ के बहाने केवल कला संस्कृति ही नहीं तमाम तरह के स्टाल लगाकर लोगों को रोजगार के लिये मौका दिया जाता था. जनवरी 2020 में आयोजित होने वाले लखनऊ महोत्सव में स्टाल की संख्या बढ़कर 8 सौ कर दी गई थी. इसमें चिकनकारी के साथ ही साथ उत्तर प्रदेश की मशहूर चीजें यहां मिलती रही है. ‘लखनऊ महोत्सव’ देश-विदेश में काफी प्रसिद्ध है. ‘लखनऊ महोत्सव’ से यहां का पर्यटन बढ़ता रहा है.
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कलर्स के शो शुभारंभ में राजा और रानी की शादी का दिन आखिरकार आ गया है. वहीं राजा की माँ, आशा ने भी कीर्तिदा की योजना पर पानी फेरने की पूरी तैयारी कर ली है, लेकिन कीर्तिदा भी हार मानने वाली नहीं है. आइए आपको बताते हैं कीर्तिदा को रोकने के लिए क्या करने वाली है आशा…
शादी रोकने की योजना बनाने में व्यस्त है कीर्तिदा
पिछले एपिसोड में आपने देखा कि राजा-रानी जहाँ अपनी शादी से पहले के खुशियों के पलों में खुश होते हैं तो वहीं कीर्तिदा शादी रोकने के लिए चाल चलने की योजना बनाने में व्यस्त होती है.
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आशा ने किया कीर्तिदा को शादी से दूर
कीर्तिदा के शादी को रोकने की योजना को नाकाम करने के लिए आशा एक कदम उठाती है और वह कीर्तिदा को स्टोर रूम में बंद कर देती है, लेकिन राजा कीर्तिदा के बिना शादी की रस्मों को निभाने से मना कर देता है. वहीं आशा पूरे परिवार को ये यकीन दिलाती है कि राजा-रानी की शादी बिना रूकावट के हो जाए, इसलिए कीर्तिदा ने शादी से दूर रहने का खुद ही प्रण लिया है.
शादी की रस्में निभाएंगे राजा-रानी
आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि राजा अपनी माँ की बात मानकर शादी की रस्में निभाने के लिए मान जाएगा, जिसके बाद राजा और रानी शादी की रस्मों को निभाते हुए नजर आएंगे. वहीं आशा इस बात से परेशान रहेगी कि कीर्तिदा कहीं कमरे से बाहर न निकल जाए.
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अब देखना ये है कि क्या कीर्तिदा स्टोर रूम से निकलकर राजा और रानी की शादी रोकने में कामयाब हो पाएगी? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.
‘‘मुझे अपने बेटे पर गर्व है,’’ सुमन फिर बोली, ‘‘क्या बताऊं, बीना, बहुत प्यार करता है. असीम को छोड़ कर कहीं चली जाऊं, तो इसे बुखार हो जाता है.’’
मां और बच्चे में प्यार और ममता तो सहज होती है. उसे बारबार अपने मुंह से कह कर प्रमाणित करने की जरूरत भला कहां होती है.
उस रात बीना ने अनायास पति के सामने अपने मन की बात कह दी, तो वे भी गरदन हिला कर बोले, ‘‘हां, अकसर ऐसा होता है. जहां जरा सी मिलावट हो वहां मनुष्य जोरशोर से यही साबित करने में लगा रहता है कि मिलावट है ही नहीं. जो पतिपत्नी घर पर अकसर कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ते रहते हैं वे चार लोगों में ज्यादा चिपकेचिपके से रहते हैं. मानो, लैलामजनू के बाद इतिहास में इन्हीं का स्थान आने वाला है.’’
‘‘आप का मतलब सुमनजी को अपने बच्चे से प्यार नहीं है.’’
‘‘बच्चे से प्यार नहीं है, ऐसा तो नहीं हो सकता. मगर कुछ तो असामान्य अवश्य है जिसे तुम्हारी सुमन बहनजी सामान्य बनाने के चक्कर में स्वयं ही असामान्य व्यवहार कर रही थीं, क्योंकि जो सत्य है, उसे चीखचीख कर बताने की जरूरत नहीं होती. और फिर रिश्तों में तो दिखावे की जरूरत होनी ही नहीं चाहिए. अरे भई, पतिपत्नी, मांबेटे, सासबहू, भाईबहन, इन में अगर सब सामान्य है, तो है. प्यार होना चाहिए इन रिश्तों में जो कि प्राकृतिक भी है. उसे मुंह से कह कर बताने व दिखाने की जरूरत नहीं होती. अगर कोई चीखचीख कर कहता है कि उन में बहुत प्यार है, तो सम झो, कहीं कोई दरार अवश्य है.’’
पति के शब्दों पर विचार करतीकरती बीना फिर कमलाजी के बारे में सोचने लगी. मनुष्य लाख अपने आसपास से कट कर रहने का प्रयास करे, मगर एक सामाजिक जीव होने के नाते वह ऐसा नहीं कर सकता. उस का माहौल उसे प्रभावित किए बगैर रह ही नहीं सकता. सुमन कभी कालेज में अपने बेटे का नाम नहीं लेती थी, जबकि कमला बातबात में पति का बखान करती हैं. वह मन ही मन कमला और सुमन का व्यवहार मानसपटल पर लाती रही थी और उस मनोवैज्ञानिक तथ्य तक पहुंचना चाहती थी कि क्या वास्तव में कहीं कोई मिलावट है?
धीरेधीरे समय बीतने लगा था और वह कालेज के वातावरण में रह कर भी उस में पूरी तरह लिप्त न होने का प्रयास करने लगी थी.
एक दिन सब चाय पी रही थीं कि एकाएक कप की चाय छलक कर सुमन की शौल पर गिर गई. झट से बाथरूम की ओर भागी थी वह.
‘‘नई शौल खराब हो गई,’’ नीमाजी ने कहा.
तब झट से कमलाजी ने भी कहा था, ‘‘यह वही शौल है जो हम सब ने मिल कर सुमन की शादी पर उसे उपहार में दी थी.’’
उन की बातों को सुन कर बीना तब स्तब्ध रह गई थी. सुमन की शादी में शौल दी थी. यह शौल तो आजकल के फैशन की है, मतलब सुमन की शादी अभी हुई है.
बीना चुप थी. उसे बातोंबातों में पता चल गया था कि सुमन की शादी सालदोसाल पहले ही हुई है और वह 20 साल का जवान लड़का, अवश्य सुमन का सौतेला बेटा होगा. इसीलिए सुमन मेहमानों के सामने यही प्रमाणित करने में लगी रहती है कि उसे उस से बहुत प्यार है. मेरा बेटा, मेरा बच्चा कहतेकहते उस की जीभ नहीं थकती.
जीवन के इस दृष्टिकोण से बीना का पहली बार सामना हुआ था. वास्तव में इस जीवन के कई रंग हैं, यही कारण होगा जिस ने सुमन को इतना संजीदा व सम झदार बना दिया होगा.
इतनी अच्छी है सुमन, तभी तो सौतेले बेटे के सामने उस की इतनी प्रशंसा, इतना सम्मान कर रही थी. उस ने इसे दिखावा माना था. हो सकता है वहां दिखावे की ही जरूरत थी. कई बार मुंह से भी कहना पड़ता है कि किसी को किसी से प्यार है. जहां कुछ सहज न हो वहां असहज होना जरूरत बन जाती है.
सुमन से उस ने इस बारे में कोई बात नहीं की थी, परंतु उस के व्यवहार को वह बड़ी बारीकी से सम झने लगी थी. सुमन बेटे का स्वेटर बुन रही थी. जब पूरा हो गया तब अनायास उस के मुंह से निकल गया, ‘‘मैं नहीं चाहती, उसे कभी अपनी मां की कमी महसूस हो.’’
बीना उत्तर में कुछ नहीं कह पाई थी. आंखें भर आई थीं सुमन की.
‘‘सौतेली मां होना कोई अभिशाप नहीं होता. मेरा बच्चा आज मु झ पर जान छिड़कता है. यह डेढ़ साल की अथक मेहनत का ही फल है जो असीम सामान्य हो पाया है. बहुत मेहनत की है मैं ने इस बगैर मां के बच्चे पर, तब जा कर उसे वापस पा सकी हूं, वरना पागल ही हो गया था यह अपनी मां की मौत के बाद.’’
तब बीना ने सुमन का हाथ थपथपा दिया था.
‘‘बीना, हर इंसान का जीवन एक युद्ध है. हर पल स्वयं को प्रमाणित करना पड़ता है. यह जीवन सदा, सब के लिए आसान नहीं होता, किसी के लिए कम और किसी के लिए ज्यादा दुविधापूर्ण होता है. इस तरह कुछ न कुछ कहीं न कहीं लगा ही रहता है.’’
एक लंबी सांस ले कर सुमन बोली, ‘‘ये जो कमला हैं, जिन पर तुम सदा चिढ़ी सी रहती हो, इन के बारे में तुम क्या जानती हो?’’ सुमन की अर्थपूर्ण व धाराप्रवाह बातों को सुन कर बीना की सांस रुक गई थी.
‘‘6 साल का एक बच्चा है उन का. शादी के 4-5 महीने के बाद ही पति ने कमला को तलाक दे दिया, क्योंकि उस का संबंध किसी और युवती से था. कमला कितनी सुंदर हैं, अच्छे घर की हैं, पढ़ीलिखी हैं, मगर जीवन में सुख था ही नहीं.’’
बीना जैसे आसमान से नीचे गिरी. सुमन के शब्दों पर उसे विश्वास नहीं आया.
‘‘पति का नाम लेले कर अगर वे अपने मन का कोई कोना भर लेती हैं तो हमें भरने देना चाहिए. यहां हमारे कालेज में सभी जानते हैं कि कमलाजी तलाकशुदा हैं. मगर वे इस सचाई को नहीं जानतीं कि हम इस कड़वे सत्य को जानते हैं. अब क्यों उन का दिल दुखाएं, यही सोच कर उन की बातों को सुनाअनसुना कर देते हैं.’’
बीना रो पड़ी थी. सुमन के हिलते हुए होंठों को देखती रही थी. बातों के प्रवाह में समुन बहुतकुछ कहती रही थी, जिन्हें उस ने सुना ही नहीं था.
‘‘क्या सोच रही हो, बीना, मैं तुम्हारे सूट की तारीफ कर रही हूं और तुम…’’
कमलाजी के इसी अंदाज पर बीना कितनी पीछे चली गई थी. अपना व्यवहार झटक दिया बीना ने. नई नजर से देखा उस ने कमलाजी को और मुसकरा कर उन का हाथ थपक दिया.
‘‘जी कमलाजी, आप ठीक कह रही हैं.’’
कभीकभी उसे सुमन बड़ी रहस्यमय लगती थी. ऐसा लगता था जैसे बहुतकुछ अपने भीतर वह छिपाए हुए है. सुमन किसी भी स्थिति की समीक्षा झट से कर के दूध पानी अलगअलग कर सारा झं झट ही समाप्त कर देती है.