Download App

आखिर क्यों होती है छोटी जात की बहू से बदसलूकी

अंजलि अपने कुलीग सौमित्र से कोर्ट मैरिज करके उसके घर तो आ गयी, मगर उसे वहां कोई अपनापन महसूस नहीं होता है. उस घर की चीजों को हाथ लगाने में उसे संकोच होता है. पता नहीं कौन किस बात पर उसे टोक दे. खासतौर पर किचेन और घर के मंदिर में रखी चीजों को छूने पर उसकी सास बहुत रोक-टोक करती है. अंजलि और सौमित्र ने लव मैरिज की है. उनकी शादी पर दोनों परिवारों की ओर से किसी ने एतराज तो नहीं किया, लेकिन शादी कोई ज्यादा धूमधाम से नहीं हुई. कोर्ट में शादी रजिस्टर करने के बाद कुछ करीबी दोस्तों और कुछ नजदीकी रिश्तेदारों को छोटा सा रिसेप्शन ही दिया गया था. सौमित्र का कहना था कि वह बेवजह का दिखावा और खर्चा नहीं करना चाहता है, इसलिए सिम्पल तरीके से शादी होगी. यहां तक कि उसने अंजलि से कोई दान-दहेज भी नहीं लिया. तब अंजलि को उसकी सोच पर काफी गर्व और खुशी महसूस हुई थी. उसे लगा कि सौमित्र उच्च विचारों वाला, दकियानूसी सोच और दिखावे से दूर रहने वाला व्यक्ति है, मगर उसके घर आने के बाद असलियत कुछ और ही निकली. अंजलि सुन्दर-सुशील है, काम करने में माहिर है, अच्छी तनख्वाह पाती है, सौमित्र उससे प्यार तो करता है, मगर यह प्यार नि:स्वार्थ भाव से किया गया प्यार हरगिज नहीं है. यह बातें अंजलि के सामने धीरे-धीरे खुली हैं. सौमित्र के पिता ने अपने डूबते बिजनेस को संभालने के लिए काफी लोन लिया था, जिसके कारण सौमित्र के ऊपर काफी आर्थिक बोझ था. अंजलि से शादी के बाद जब उसकी भी तनख्वाह परिवार में आने लगी तो इससे सौमित्र को काफी राहत मिली. शादी के बाद सौमित्र, उसके पिता और अंजली के ज्वाइंट एकाउंट में तीनों की कमाई जाती है, जिससे घर का खर्चा, लोन की किश्त, सौमित्र के छोटे भाईयों के हॉस्टल और पढ़ाई का खर्च, रिश्तेदारी में लेनदेन आदि होता है.

सौमित्र और अंजलि एक सॉफ्टवेयर कम्पनी में इंजीनियर हैं. वहीं साथ काम करते हुए दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया और उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया. अंजलि सुन्दर, सुशील और हार्डवर्किंग लड़की है. वह नीच जाति में जरूर पैदा हुई है मगर उसके परिवार का आर्थिक स्टेटस ठीक-ठाक है. उसके पिता भी अच्छी सरकारी नौकरी में हैं. वहीं सौमित्र ऊंची जाति से ताल्लुक रखता है. उसके माता-पिता में ऊंची जाति का दम्भ है. सौमित्र के पिता का तालों का बिजनेस लगभग बर्बाद होने की कगार पर था, जब लोन लेकर उसे थोड़ा दुरुस्त किया गया. पर अभी भी वह पूरी तरह पटरी पर नहीं आया है. ऐसे में सौमित्र की तनख्वाह से ही परिवार का खर्च मुश्किल से चल रहा था. सौमित्र के दो छोटे भाई जो हॉस्टल में रह कर पढ़ रहे हैं, उनका खर्चा भी सौमित्र को वहन करना होता है. अंजलि से शादी के बाद जब उसकी तनख्वाह भी हासिल होने लगी तो सौमित्र को काफी राहत महसूस हुई. सौमित्र ने अंजलि से शादी तो कर ली मगर अपने परिवार में उसको वह मान-सम्मान नहीं दिला पाया, जो अपनी ऊंची जाति की बहू को यहां मिलता. यहां तक कि सौमित्र अंजलि के साथ अपनी मां के गलत व्यवहार के प्रति विरोध भी दर्ज नहीं कर पाता है. वह अपनी पत्नी को समझा-बुझा कर मां से थोड़ी दूरी बनाये रखने का ही सुझाव देता रहता है. वह अंजलि से कहता है कि मां बूढ़ी हैं, उनकी बातों पर गौर मत किया करो, घर की शांति के लिए उनकी हरकतें नजरअंदाज कर दो, उन्हें कितने दिन जीवित रहना है – ज्यादा से ज्यादा पांच साल या दस साल, तुम उनकी तरफ ध्यान मत दिया करो. दरअसल ऐसी बातें वह इसलिए करता है क्योंकि उसे डर बना रहता है कि कहीं मां की किसी बात से आहत होकर अंजलि अपने मायके न चली जाये, अथवा उससे सम्बन्ध विच्छेद करने जैसा कदम न उठा ले. अब इतने सालों में अंजलि ने भी सास की उल्टी-सीधी बातों को इग्नोर करना सीख लिया है, मगर भेदभाव का दंश उसके कोमल मन को यदा-कदा भेदता ही रहता है. नीच होने का दंश जो उसे पहले ही दिन से दिया जा रहा है. पहले ही दिन से उसे यह बात अच्छी तरह बता दी गयी कि तुम्हारा स्थान घर में जरूर है, मगर दिल में नहीं.

ये भी पढ़ें- प्रीवैडिंग इन्क्वायरी दोनों पक्षों के हित में

शादी के बाद अंजलि ने जब अपना सूटकेस खोला था, तो कपड़ों पर सबसे ऊपर भगवान की तस्वीर एक लाल कपड़े में लिपटी रखी थी. अंजलि ने श्रद्धापूर्वक उस तस्वीर को निकाल कर घर के मंदिर में अन्य मूर्तियों और तस्वीरों के साथ सजा दी थी. अगले दिन सुबह जब वह नहा-धो कर मंदिर में सिर झुकाने गयी तो देखा कि उसकी लगायी तस्वीर मंदिर से निकाल कर वहीं अलग कुछ दूरी पर रख दी गयी है. उसने जब इस बारे में अपनी सास से पूछा तो उन्होंने कहा कि इसे अपने कमरे में ही लगा लो और वहीं पूजा कर लिया करो. अंजलि को बड़ा धक्का लगा. भगवान को लेकर भेदभाव! उसने अपने पति सौमित्र से इस बात की शिकायत की तो सौमित्र ने उसे प्यार से समझाते हुए अपने बेडरूम के एक कोने में ही उसके भगवान की तस्वीर को स्थापित कर दिया और वहीं उसके लिए पूजा का इंतजाम कर दिया. अंजलि साफ समझ गयी कि इस घर में उसके साथ भेदभाव होगा क्योंकि वह नीच जाति से है. फिर चाहे सौमित्र ने क्यों न उससे प्रेम-विवाह किया हो, मगर ऊंची जाति के अहंकार में ग्रस्त उसकी सास कभी भी उसे अपने मंदिर में पूजा करने की अनुमति नहीं देगी. उसने अपनी इस हरकत से ही अंजलि को बता दिया है कि उसके दिल में अंजलि के लिए कोई जगह नहीं है क्योंकि वह नीच जाति की है.

आज अंजलि की शादी को छह साल हो चुके हैं मगर आज भी अंजलि को लगता है जैसे वह सौमित्र के घर में कोई पेइंग गेस्ट है. जिसकी हर हरकत पर मकान मालकिन की नजर रहती है. वह उसे इसलिए उस घर में रहने दे रही हैं क्योंकि अंजलि अच्छी नौकरी में अच्छा पैसा कमा रही है. घर का खर्चा उसकी कमाई से चल रहा है. सुख-सुविधा की चीजें उसके पैसे से मोल ली जा रही हैं. परिवार का बैंक-बैलेंस बढ़ रहा है. अब अंजलि सोचती है कि शायद सौमित्र ने उससे शादी भी इसलिए की क्योंकि वह नौकरीपेशा है और अच्छी कमाई करती है. हालांकि सौमित्र उससे प्यार करने का पूरा दावा करता है. वह अपनी मां के क्रोध से भी उसे बचा-बचा कर रखता है. उसको साथ लेकर घूमने-फिरने जाता है, उसको शॉपिंग करवाता है, फिल्में दिखाता है, मगर रिश्तेदारों के वहां नहीं ले जाता है. अंजलि के सास-ससुर भी उसकी आमदनी पर तो पूरा हक जमाते हैं, मगर रिश्तेदारों में उसे उठने-बैठने नहीं देते और गाहे-बगाहे अपने व्यवहार से यह बात भी जाहिर कर ही देते हैं कि वह छोटी जाति से है. तीज-त्योहारों पर यह भेदभाव कुछ ज्यादा मुखर हो जाता है. त्योहारों पर भगवान का घर हमेशा उसकी सास ही साफ करती है. वही भगवान को नहलाती-धुलाती है, नये कपड़े पहनाती है, उनका श्रृंगार करती है. वही पूरे मंदिर स्थल को गंगाजल और दूध से धोती-पोंछती है. वही दिया-बत्ती करती है. पूजा-आरती करती है. अंजलि तो बस दूर से ही हाथ बढ़ा कर प्रसाद ले लेती है. त्योहारों पर बनने वाले पकवानों में अंजलि की सास उससे पूरी मदद लेती है, मगर भगवान को चढ़ाए जाने वाले भोग-प्रसाद में उसे हाथ नहीं लगाने देती.

ये भी पढ़ें- NEW YEAR RESOLUTION : इन 7 कामों से बनाएं नये साल को खास

दूसरों के घर से शादी-ब्याह के न्यौते आते हैं तो अंजलि के सास-ससुर ही शगुन डालने जाते हैं. कभी सौमित्र और अंजलि नहीं जाते. सौमित्र तो हमेशा अपने काम और अपने थके होने का बहाना बना देता है. अब उसके बिना अंजलि अकेले तो कहीं जाने से रही. अंजलि को याद है कि जब उसके मायके में कोई निमंत्रण पत्र आता था तो अंजलि सजधज कर अपने माता-पिता के साथ जाती थी, शगुन चढ़ाती थी, फोटो खिंचवाती थी, फ्लोर पर डांस करती थी, दावत इन्जॉय करती थी, मगर यहां तो कोई उसे साथ ले जाने के लिए पूछता भी नहीं है. अंजलि चाहती है कि वह भी बनाव-श्रृंगार करके सौमित्र के रिश्तेदारों की शादी या बर्थडे पार्टियों में जाए, उनसे जान-पहचान बढ़ाए, लेकिन आजतक उसे कहीं नहीं ले जाया गया. हैरानी तो उसे तब सबसे ज्यादा हुई जब उसकी चचिया सास की बेटी की शादी तय हुई और किसी भी रस्म में उसे आमंत्रित नहीं किया गया. सारे रिश्तेदार वहां इकट्ठा हुए. तरह-तरह की रस्में हुईं. सबने खूब इन्जॉय किया. वाट्सऐप और फेसबुक पर खूब फोटोज शेयर हुईं. फोटोज में सौमित्र के दूर-दराज के रिश्तेदार भी नजर आये, मगर उनमें अंजलि कहीं नहीं थी. वह बस घर से ऑफिस और ऑफिस से घर तक की अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही थी.

दरअसल अंजलि की सास नहीं चाहती कि उनका कोई रिश्तेदार अंजलि के परिवार, उसके पिता के नाम आदि की पड़ताल करने लग जाए. अब अंजलि किसी से मिलेगी तो उसके माता-पिता के बारे में भी सवाल-जवाब होंगे. लोग उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहेंगे. अभी तो कई रिश्तेदारों को उसकी जात का पता भी नहीं है. मगर उसके पिता के नाम से उसकी जात का पता चल जाएगा. लोग तरह-तरह की बातें करेंगे. भले वह कितनी खूबसूरत हो, कितनी पढ़ी-लिखी हो, साफ्टवेयर इंजीनियर हो, पति के बराबर तनख्वाह पाती हो, मगर जैसे ही पता चलेगा कि वह नीच जाति की है, लोग नाक-भौं सिकोड़ेंगे, पीठ पीछे बातें करेंगे. इसी सोच के तहत अंजलि की सास उसे रिश्तेदारों से दूर ही रखती है. कोई कभी पूछता भी है कि बहू को साथ नहीं लायी तो वह बहाना बना देती है कि उसे तो ऑफिस से छुट्टी ही नहीं मिलती, या उसकी तबियत ठीक नहीं थी या कुछ और बहाना.

आधुनिकता और रूढ़िवादिता के पाटों के बीच फंसी अंजलि की सास न खुद चैन से जी पा रही है और न अंजलि को जीने दे रही है. इन दोनों के बीच सौमित्र भी पिस रहा है. वह आग और फूस को अलग-अलग रख कर दोनों को खुश रखने की कवायदों में लगा रहता है. इसमें उसका बहुत सारा समय और ऊर्जा बर्बाद होती है. बेटे की कमाई पर आधारित सौमित्र के मां-बाप उसे नीच जाति की लड़की से शादी करने से नहीं रोक पाये क्योंकि तब उनको बहू की कमाई नजर आ रही थी. उनको लगा कि यह लड़की आ गयी तो घर की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, इसलिए उन्होंने अंजलि को घर में तो जगह दे दी, मगर रूढ़िता से ग्रस्त अपने दिल में नहीं दे पाये. यही वजह है कि अंजलि आज तक सौमित्र के घर को अपना घर नहीं मान पायी. वह न तो अपने सास-ससुर को माता-पिता का दर्जा दे पायी और न अपने पति सौमित्र के प्रेम पर पूरा विश्वास कर पायी. उसे हमेशा यही लगता है कि जब तक वह कमा कर इस घर को दे रही है, तब तक ही वह यहां रह सकती है, जिस दिन उसने कमाना बंद कर दिया, उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया जाएगा क्योंकि वह नीच जाति की है.

ये भी पढ़ें- कैसे कंट्रोल करें बच्चों का टैंट्रम

अंजलि का जीवन बहुत सुखद हो जाता अगर उसके सास-ससुर जाति-धर्म की दकियानूसी सोच से आगे बढ़ कर उसे सच्चे दिल से अपना लेते. तब पढ़ी-लिखी और संवेदनशील अंजलि भी उन्हें अपने माता-पिता से कहीं ज्यादा प्यार और सम्मान देती, और उसके पति सौमित्र को भी इस डर से मुक्ति मिल जाती कि कहीं अंजलि उसे छोड़ कर न चली जाए. यह कहानी सिर्फ एक अंजलि और सौमित्र की नहीं है, बल्कि शहरों और महानगरों में ऐसे बहुतेरे परिवार हैं जहां बुजुर्ग आधुनिकता की चादर के भीतर रूढ़िवादिता को ही पोस रहे हैं. आज की पढ़ीलिखी पीढ़ी पुरातन सोच से मुक्त होना चाहती है. वह शिक्षा और करियर पर विशेष ध्यान दे रही है. इसलिए जाति-धर्म की दीवारें भी ढह रही हैं. कई ऐसे कपल हैं जो माता-पिता की इसी दकियानूसी सोच के चलते ही परिवार से अलग होकर अपना अलग आशियाना बना लेते हैं.

तुम से मिल कर : भाग 2

इतने सारे लोगों के बीच रीना अपने समय का चीथड़ा खोलना नहीं चाहती थी. ऊपर से अनंत, अच्छाखासा, देखनेभालने में तरोताजा इंसान उसे ही एकटक अपनी नजरों से निगलता जा रहा था. रीना ने मां को इशारों से रोकना चाहा लेकिन वे अनंत को पुत्रसम मान आंखों से बहते आसुंओं को पोंछपोंछ कर बताती ही जा रही थीं.

‘‘और है ही कौन मेरा? एक बेटा, वह भी अमेरिका जा कर बस गया. उस ने अमेरिकी लड़की से शादी कर ली और वहीं की नागरिकता भी ले ली. 3 साल में एक बार दर्शन देता है. बेचारी मेरी यह रीना होम साइंस के फाइनल ईयर में अच्छे रैंक से पास हुई, साथ में डेढ़ साल के बेटे को संभालती हुई. बस, सब खत्म हो गया. ऐक्सिडैंट में दामाद की मौत के साथ ही इस की जिंदगी सूनी हो गई. देवर ने शादी की, देवरानी ने इतने जाल रचे कि अब इस का वहां टिकना मुश्किल हो गया है.’’

रीना के रोके न रुक रही थी उस की मां. कई लोग कभी ध्यान देते, कभी अनसुना करते. लेकिन कई मानो में परखा गया कि आत्मकेंद्रित अनंत रीना की मां की बात बड़े ध्यान से सुन रहा था. रीना की मां को भी अरसे बाद कोई अच्छा श्रोता मिला था. वे कहती गईं.

‘‘मैं ही ले आई इसे, वहां क्यों जान खपाए. टीटो भी पल जाएगा हमारे साथ.’’

वे अनंत की ओर उम्मीद से देख रही थीं कि उन्होंने सही ही किया हो, इस पर एक राय मिल जाए.

अनंत उन की बातों में खो चुका था. अचानक जैसे होश आ गया हो, बोला, ‘‘हां, हां, ठीक ही तो किया.’’

इधर शाम होतेहोते अब इक्केदुक्के लोग ही चढ़उतर रहे थे. बल्कि, उतरने वाले ही अधिक थे.

रात के 8 बज रहे थे. लोग डिनर लेना शुरू कर चुके थे. रीना अपने बेटे टीटो को खाना खिलाने की तैयारी करने लगी थी. इतने में रूही को दर्द महसूस हुआ. वह बर्थ पर निढाल हो गई. धीरेधीरे दर्द बढ़ने लगा. भाई से पानी की बोतल मांगी. गरमी ने पानी की बोतल खाली करवा दी थी. रात में अब पानी वाले विके्रता आने वाले नहीं थे और भोर में 5 बजे के बाद ट्रेन पटना पहुंचने वाली थी.

ये भी पढ़ें- अपने अपने रास्ते

रूही की हालत धीरेधीरे नाजुक होने लगी. अनंत असहाय सा इधरउधर देखता रहा. ट्रेन में कहां डाक्टर… रीना जल्द अपने गिलास में पानी भर रूही के पास आई. उस की ओर जैसे ही उस ने पानी बढ़ाया, दर्द से ऐंठती रूही ने धीरे से पूछा, ‘‘आप लोग किस जात से हो?’’

रीना की सोच अलग थी. जाति जब इंसान के आपस के प्रेम में दीवारें खड़ी करे, वह त्याज्य हो जाती है, ऐसा मानना था रीना का. वह तिलमिला गई. उस ने पानी का गिलास उस की तरफ बढ़ाए रखा और कहा, ‘‘पहले पानी पी लो, फिर जाति बता देंगे.’’

रूही ने पानी नहीं लिया. रीना की मां ने उस का आशय सम झ रीना से कहा, ‘‘रहने दे, रीना.’’ फिर रूही से मुखातिब होते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, हम जाटव हैं, आप लोग… अच्छा, सम झ गई, मिश्रा, चार्ट में देखा तो था.’’

रीना को आरक्षण के कारण अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया था. उस का पति भी विदेश में नौकरी कर चुका था और अब उस का व्यक्तित्व निखर चुका था. रीना कहीं से निम्न जाति की नहीं लगती थी. हां, मां में पुरानापन साफ  झलकता था.

‘‘अब कैसे प्यास बु झेगी, बेटी?’’

अब तक रूही दर्द से छटपटाने लगी थी. रीना वैसे तो कम बोलने वालों में से थी, लेकिन जब बोलने पर आ जाती है तो अच्छेअच्छों की बोलती बंद कर देती है. वह बुत बने खड़े अनंत की ओर देखती हुई बोली, ‘‘पानी जब शरीर के अंदर प्रवेश करता है तो उस का हाइजीन इफैक्ट देखा जाता है, गंदा पानी तो नहीं, विषैला तो नहीं. यह कहां का फंडा पाल रखा है आप लोगों ने, इस जात का पानी और उस जात का पानी. बहन से कहिए कि पानी पी ले, बाद में पीने को तरसेगी क्योंकि दर्द के मारे पी नहीं पाएगी.’’

अनंत था तो बड़ा हट्टाकट्टा, रोबीला सा नौजवान मगर ठेठ लकीर का फकीर. पटना का विशुद्ध ब्राह्मण. बचपन का देखा, सुना, सीखा ही उस की लकीर थी. उस से आगे बढ़ने की न तो उस की मंशा थी और न ही हिम्मत.

‘‘कैसे पिला दें, जी. वह खुद ही नहीं पिएगी. अपना धर्म पहले है.’’

अपनी पंडिताई का सुर बरकरार था उस के अंदाज में.

‘‘कमाल की सोचते हैं, आप लोग. एक नहीं, 2-2 जिंदगियां साथ लिए जा रहे हैं, आप. उन्हें बचाना धर्म नहीं?  कहां पर रहता है आप का धर्म?’’

‘‘आप से बात ही नहीं करनी मु झे,’’ अक्खड़ की तरह वह रीना से मुंह मोड़ बैठ गया.

ये भी पढ़ें- बच्चों की भावना

हताश सी रीना रूही की स्थिति पर परेशान होने लगी. वह होम साइंस की छात्रा थी. ऐसी स्थिति में प्राथमिक व्यवस्था कर लेने का उसे ज्ञान था. उसे एहसास हो गया था कि गरमी, थकान और अंतिम दिनों में ज्यादा हिलनेडुलने की स्थिति बच्चे के अचानक आगमन का कारण बन सकती है.

इधरउधर से कई चीजों का उस ने जुगाड़ कर लिया. अपने टीटो के दूध बनाने के लिए वह साथ में जार ले जा रही थी और एक फ्लास्क गरम पानी तो उस के पास ही मौजूद था. तत्काल उस ने उसी क्षेत्र में रेलवे में खलासी पद पर कार्यरत अपने मामा को फोन लगाया. वस्तुस्थिति की जानकारी अपनी प्रिय भांजी से पा कर मामा ने तुरंत अगले स्टेशन पर एक डाक्टर को भिजवा दिया. इसी जद्दोजेहद में रूही की छोटी सी बच्ची इस दुनिया में आ चुकी थी. रीना पूरी तरह उन दोनों के लिए जैसे समर्पित हो गई थी.

अनंत साहब ‘मिश्रा’ होने का लबादा ओढ़े, लाचार और अवाक से देखते रहे और रीना उस की ही आंखों के सामने एक यज्ञ को पूर्णाहुति तक पहुंचाने में कामयाब हो गई.

अचानक टिकट बनवाने की वजह से उन्हें इतनी तकलीफ में स्लीपर क्लास में जाना पड़ रहा है. आज रूही की जो स्थिति थी, अगर सब लोग सिर्फ अपने में ही सिमटे रहते, रीना अगर अपने साथ हुए व्यवहार का बुरा मान आगे नहीं आती, तो रूही और बच्चे का तो आज बड़ा बुरा अंजाम होता.

रीना के प्रति अनंत कृतज्ञता कैसे जाहिर करे. अचानक उस ने रीना से पानी मांगा. अवाक सी उसे देखते हुए रीना ने पानी दे दिया. अनंत ने रूही को दिखा कर पूरा पानी पी लिया और रूही से कहा, ‘‘जा, बता देना घर में, अब से मैं जाटव के हाथ का ही पानी पिऊंगा.’’

तुम से मिल कर : भाग 1

नी पिएगी?’’ अनंत ने रूही से पूछा.

ट्रेन शोर के साथ दौड़ती जा रही थी. रूही अपने 8 महीने के पेट के साथ निढाल दिख रही थी.

अप्रैल का आखिरी हफ्ता, गरम हवा के थपेड़े और ट्रेन में बैठे पसीने की मार से तरबतर लोग. रिजर्र्वेशन के बावजूद डब्बा दिन में पैसेंजर्स से ठसाठस भरा था.

पटना की ओर रुख था अनंत और रूही का. अनंत अपनी बहन रूही को डिलिवरी के लिए मायके ले जा रहा था. यह सबकुछ आखिरी वक्त में तय हुआ, वरना ससुराल वाले रूही की डिलिवरी अपने पास भोपाल में ही कराना चाहते थे. दरअसल, ऐन वक्त पर रूही की ननद के बेटे का गिर कर हाथ टूट जाना, ननद का नौकरी में होना, उस की सास का अपनी बेटी के पास चले जाना आदि तय कार्यक्रम में हेरफेर का कारण बने.

ट्रेन बढ़ती जा रही थी, हां, यात्री उस से कहीं ज्यादा स्पीड में डब्बे में आते जा रहे थे. गरमी की छुट्टी भी एक वजह थी यात्रियों की अधिकता की. लोग रूही की स्थिति देख आपस में चिपक कर बैठे थे. दोपहर की गरमी से परेशान रूही बारबार पानी मांग रही थी. खिड़की बंद करने के बावजूद ट्रेन की ढीली खिड़कियां ऊपर की ओर चढ़ जातीं और बाहर की बहुत ही गरम हवा अंदर आ कर मुंह सुखा जाती. खीरे वाले ने इसी बीच उपस्थिति दर्ज कराई तो कई पैंसेंजरों की सूखी जीभें तर हुईं.

यात्रियों के सिर के ऊपर पंखा चल रहा था या उन पर हंस रहा था, यह जानने के लिए बारबार वे पंखे की ओर देखते और अपने पास मौजूद अखबार या गमछे को हिलाहिला कर हवा को महसूस करते. चल तो रहा था पंखा मगर सिर्फ तसल्ली के लिए, बहुत ही धीमेधीमे.

अगले स्टेशन पर पानी के लिए अनंत उतरा. खाली सीट देखते ही नए आए सज्जन वहां बैठने लगे. अपने में ही सिमटी रूही ने अब मुंह खोला, ‘‘मेरा भाई है यहां, पानी लेने गया है.’’

‘‘जब आएगा देखा जाएगा, बहनजी.’’

‘‘यह सीट रिजर्व है, हमारी है.’’

‘‘अरे बहनजी, इतनी भीड़ में कहां कोई रिजर्व. रात में सोते वक्त ही अब खाली होगी. उस से पहले नहीं.’’

सामने की बर्थ पर रीना बैठी थी. वह रूही को देखे जा रही थी. उस की बर्थ पर भी नए आए यात्रियों की जोरआजमाइश कम नहीं थी.

रीना की बर्थ ऊपर की थी. उस पर 3 लोग आसन जमाए थे. मिडिल बर्थ खोली नहीं जा सकी थी, वरना वह भी… नीचे वाली बर्थ उस की मां की थी. उस पर भी 5 लोग बैठे थे और छठे के लिए रहरह कर गुंजाइश बनाने की कोशिश जारी थी.

रूही की स्थिति पर मन ही मन व्यथित होती हुई रीना उस के मामले में खुद को दखल देने से नहीं रोक पाई. उस सज्जननुमा दुर्जन से पंगा लेते हुए रूही के शब्दों को आगे बढ़ाते बोली, ‘‘इन का भाई अभी आता ही होगा, क्यों परेशान कर रहे हैं इन्हें, इन को बहुत तकलीफ है, दिखता नहीं?’’

‘‘तकलीफ है तो एसी क्लास का टिकट क्यों नहीं लिया?’’ सज्जन अपनी सज्जनता छोड़ते जा रहे थे.

रीना सोच में पड़ गई. कैसेकैसे लोग होते हैं. अभी वह कुछ बोलती, इस से पहले ही वे सज्जन फिर बोल पड़े, ‘‘और आप कौन होती हैं बीच में बोलने वाली?’’

रीना के दिमाग में कई शोर बज उठे. भाईभतीजावाद के इस जमाने में सब को अपने में ही मरनेखपने दो. एक तो आप किसी को परेशान देख आगे बढ़ जाओ क्योंकि सभी को यही स्वाभाविक लगता है, दूसरे आप किस के कौन से भाईभतीजा हो, इस का प्रमाण दो. बिना किसी रिश्ते के आप किसी के लिए खड़े होंगे, यह तो हो ही नहीं सकता न. रूही का उस से पीछा छुड़ाने को रीना कह पड़ी, ‘‘यह मेरी ननद है, सम झे.’’

ये भी पढ़ें- हमदर्द

रूही ने रीना को आश्चर्य से देखा. और उन सज्जन के सीट से हट जाने पर मुसीबत से मुक्ति का आनंदलाभ लेती वह भाई अनंत का इंतजार करने लगी. रीना के प्रति उस ने एक छोटा सा धन्यवाद भी नहीं दिया, रीना ने उम्मीद भी नहीं की.

अनंत पानी और नाश्ता ले कर रूही के पास आया और सीट पर बैठ गया. रूही भाई से अपने साथ हुई घटना का ज्योंज्यों जिक्र करती, वह रीना की ओर देखदेख कर जाने क्याक्या सोचता. इतने में एक वृद्धा ने अनंत से अपना भारी सूटकेस बर्थ के नीचे ढकेलने का आग्रह किया. रीना को काफी आश्चर्य हुआ कि अनंत और रूही दोनों ही ऐसे बैठे रहे जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो. रीना ने उठ कर वृद्धा के कहेनुसार सूटकेस को सीट के नीचे सरका दिया.

अब शाम होने को आई थी. लोगबाग, जो अपनी गोलाईभर की सीट को जन्मजन्मांतर का कब्जा सम झ बैठे थे, आने वाले स्टेशनों पर उतरते चले गए. ट्रेन का डब्बा अब कुछ सांस लेने लायक हो गया था.

रीना का 3 साल का बेटा टीटो सो कर उठ चुका था और अपनी मासूम शरारतों से सहयात्रियों का ध्यान खींच रहा था. वह कई बार दौड़दौड़ कर अनंत और रूही के पास भी गया. वे दोनों नाश्ता करने में व्यस्त थे. रीना के बच्चे को भी अनदेखा करते रहे.

अब तक रीना की मां मुखर हो चुकी थीं. उन्होंने अनंत से पूछा, ‘‘इन के पति क्या करते हैं?’’

‘‘सौफ्टवेयर इंजीनियर हैं,’’ अनंत ने न चाहते हुए भी सब के सामने जवाब देने की मजबूरी के चलते कहा.

रूही की तरफ देख कर उन्होंने पूछा,  ‘‘पहला है?’’

‘‘जी,’’ शरमा कर रूही ने जवाब दिया तो रीना की आंखें अनजाने ही नम होने लगीं. शायद कोई पिघलता सा एहसास था, जिस ने उस का आंचल पकड़ कर खींचा था.

रूही ने स्त्रीसुलभ जिज्ञासावश रीना की ओर देख पूछ लिया, ‘‘भैया क्या करते हैं?’’

रीना की मां इस सवाल के लिए जैसे तैयार ही बैठी थीं. दर्द था, अपराधबोध था, या बेटी के सामने अपना दिल खोलना चाहती थीं जो अब तक हो न सका था, कहा, ‘‘कहां रहे वे. विदेश जा रहे थे, प्लेन क्रैश में 40 लोगों की मौत हुई थी. हमारी रीना का भविष्य खत्म हो गया. मेरी ही गलती थी शायद, मैं ने ही इस रिश्ते के लिए जोर दिया था.’’

‘अब से मैं जाटव के हाथ का ही पानी पिऊंगा,’ रूही के दिमाग में यह वाक्य जैसे जोर से फटा. कम बोलने वाला लड़का, यह क्या कह गया. 29 वर्ष का अनंत वैसे तो रूही से 3 साल ही उम्र में बड़ा था, लेकिन उस के सीधेपन की वजह से रूही उस पर हमेशा अपना हुक्म चलाती आई है. आज इस हाल में वह कुछ कह नहीं पाई, वरना इस सत्यानाश के लिए वह भैया को कभी छोड़ती नहीं. इतना बड़ा अनर्थ कर दिया अनंत ने.

मिश्रा परिवार में 3 बार पूजाअर्चना होती है नियम से. अन्य जाति के लोग द्वार पर आ कर रुक जाते हैं. घर में चायपानी के लिए उन का अलग बरतन होता है. हाथों से छू कर अम्मा उन्हें कभी कुछ नहीं परोसतीं. सब बाइयां ही करती हैं.

बाई के घर में घुसते ही अम्मा अपने यहां रखी साड़ी देती हैं पहनने को. उस के माथे पर गंगाजल छिड़कती हैं. तब जा कर वह इस घर का काम शुरू करती है. तब भी अम्मा इन कामवालियों के पीछे दौड़ती ही रहती हैं. एकबार ये बरतन धो देती हैं तो अम्मा फिर उन्हें दोबारा धोती हैं. मंदिर का सारा काम बेटी और अम्मा के हाथ में. और यहां एक पल में इस महामूर्ख ने सब करम तमाम कर डाला.

ये भी पढ़ें- अपने हुए पराए

यह लड़की तो जाटव है, कामवाली बाइयों के लिए भी अछूत. पर देखो, पढ़लिख कर कमाऊ हो कर क्या शान से खुद को प्रस्तुत कर रही है.

मारे क्रोध के रूही ने मुंह फेर लिया. तब तक स्टेशन आ चुका था, जहां रीना के मामा की सूचना पर एक असिस्टैंट नर्स के साथ डाक्टर मौजूद था. बहन को ले कर यहां उतरते समय अनंत ने एक छोटी सी दृष्टि रीना पर डाली और दो शब्दों के जरिए उस से उस का फोन नंबर ले लिया.

गुड़ : सर्दी में होने वाली परेशानियों की एक दवा

गन्ने के रस से बने गुड़ के कई फायदे हैं. ठंड में गुड़ और भी ज्यादा लाभकारी हो जाता है. ये हमारे शरीर में खून की कमी नहीं होने देता. इसके अलावा ये एक प्रभावशाली ऐंटीबायोटिक है. ठंड के मौसम में गुड़ का सेवन करना सभी उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद रहता है.

इस खबर में हम आपको गुड़ से होने वाले फायदों के बारे में बताएंगे

ये भी पढ़ें- लीवर ट्रांसप्लांटेशन : स्वस्थ जिंदगी की शुरूआत

  • गुड़ एक प्रभावशाली ऐंटीऔक्सिडेंट है. गले और फेफड़ों में होने वाले इंफेक्शन में ये काफी लाभकारी होता है और उन्हें स्वस्थ रखने में मदद करता है.
  • जिन लोगों को नाक के एलर्जी की शिकायत है उनके लिए गुड़ का सेवन बेहद असरदार होता है. एलर्जी के मरीज सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस के साथ गुड़ का सेवन करें. ऐसा रोजाना करने से नाक की एलर्जी में फायदा मिलता है.
  • सर्दी के मौसम में होने वाले स्वास्थ संबंधी शिकायतों में गुड़ काफी लाभकारी होता है. इन समस्‍याओं से छुटकारा पाने के लिए गुड़ की चाय पीना लाभदायक साबित होता है. ठंड के दिनों में गुड़, अदरक और तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीना भी आपको कई बीमारियों से बचाता है.
  • गुड़ और तिल की बर्फी खाने से सर्दी और जुकाम में काफी आराम मिलता है. इन्हें खाने से शरीर में गर्मी बनी रहती है.

ये भी पढ़ें- सेहत के लिए फायदेमंद है हरी और पत्तेदार सब्जियां !

रोमा के कई रंग : भाग 1

अगर मरने और मारने वाले दोनों के अवैध संबंध किसी एक महिला से हों तो दोनों को जलन तो हो सकती है, पर मारनेमरने की स्थिति नहीं आती. लेकिन रोमा ने एक अवैध संबंध वाले को दूसरे से मरवा दिया. कैसे…

8सितंबर, 2019 का दिन था. उस समय सुबह के करीब पौने 9 बजे थे. तभी जिला हरिद्वार के रुड़की स्थित थाना सिविललाइंस के थानाप्रभारी अमरजीत सिंह के पास शेरपुर गांव के पूर्वप्रधान अनुज का फोन आया.

उस ने बताया कि शेरपुर बाजुहेड़ी मार्ग पर एक आदमी की लाश पड़ी है, जो खून से लथपथ है. लाश मिलने की खबर सुनते ही थानाप्रभारी सबइंसपेक्टर अंकुर शर्मा, सिपाही अरविंद व आशुतोष को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

उन्होंने इस मामले की सूचना सीओ चंदन सिंह बिष्ट, एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर तथा एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. को दे दी. घटनास्थल कोतवाली से मात्र 2 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए.

लाश गांव के मुखिया दयाराम सैनी के गन्ने के खेत में पड़ी थी. अच्छी बात यह थी कि पुलिस के आने से पहले ही मृतक की शिनाख्त हो चुकी थी. शव मिलने की सूचना पर जब गांव शंकरपुरी के लोग मौके पर पहुंचे तो उन्होंने उस की शिनाख्त शंकरपुरी निवासी बोरवैल ठेकेदार सुदेश पाल के रूप में कर दी.

तब तक वहां मृतक सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी भी पहुंच गई थी. देशो देवी ने थानाप्रभारी को बताया कि आज सुबह 8 बजे सुदेश मोबाइल पर किसी व्यक्ति से बात करते हुए घर से बाहर चले गए थे. इस के बाद गांव के कुछ लोगों ने सुदेश को 2 युवकों के साथ बाइक पर बैठ कर शेरपुर गांव की ओर जाते देखा था.

इसी बीच सीओ चंदन सिंह बिष्ट भी घटनास्थल पर पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने जब सुदेश पाल के शव का गहन निरीक्षण किया तो पाया कि हत्यारों ने सुदेश का गला किसी धारदार हथियार से रेता था. लाश की स्थिति देखनेसमझने के बाद सीओ चंदन सिंह ने वहां मौजूद देशो देवी व अन्य लोगों से सुदेश के बारे में पूछताछ की.

ये भी पढ़ें- प्यार की कीमत : 3 लाशें

घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सुदेश की लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

सुदेश पाल की हत्या से उस के परिवार में  कोहराम मच गया था. गांव वाले भी इस बात से हैरान थे कि उस की हत्या आखिर किस ने की. इस हत्या के विरोध में सैकड़ों गमजदा ग्रामीण थाना सिविललाइंस पहुंच गए. थानाप्रभारी से मुलाकात कर उन्होंने हत्यारों को तत्काल गिरफ्तार कर कड़ी सजा दिलवाने की मांग की.

पुलिस ने सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी की ओर से आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. पोस्टमार्टम के बाद दोपहर बाद सुदेश पाल का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया.

उसी शाम एसपी (देहात) नवनीत सिंह ने सुदेश पाल की हत्या के खुलासे के लिए सीओ चंदन सिंह बिष्ट के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सहित एसएसआई प्रमोद चौधरी, थानेदार अंकुर शर्मा व संजय नेगी सहित अपराध अन्वेषण यूनिट प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती, जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने सब से पहले घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज चैक किए.

इस के बाद पुलिस टीम ने मुखबिरों से क्षेत्र में सुरागरसी कराई. मृतक के परिजनों से भी व्यापक पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान टीम को जानकारी मिली कि सुदेश सीधासादा व्यक्ति था.

वह बोरवैल का ठेकेदार था. गांव में उस की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी. उस के छोटे भाई अर्जुन की पत्नी रोमा के पास विकास नाम के युवक का आनाजाना था, जिस का सुदेश अकसर विरोध करता था.

विकास मूलरूप से गांव मांडला थाना पुरकाजी, जिला मुजफ्फरनगर का रहने वाला था. मगर वह पिछले 8 सालों से हरिद्वार के थाना रानीपुर क्षेत्र के गांव रावली महदूद में रह रहा था. यह जानकारी मिलते ही जांच टीम के शक की सुई विकास की ओर घूम गई. पुलिस ने जब विकास से संपर्क करने का प्रयास किया तो पता चला कि वह सुदेश की हत्या के बाद से ही घर से गायब है.

इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि सुदेश की हत्या के तार अवश्य ही विकास से जुड़े हुए हैं. इस के बाद जांच टीम ने विकास को गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सुरागरसी पर लगा दिया.

पुलिस को सुदेश की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली थी, उस में उस की मौत का कारण गला घोंटना व धारदार प्रहारों के कारण शरीर से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

11 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सुबह 11 बजे अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी उन के खास मुखबिर ने सूचना दी कि सुदेश पाल की हत्या का आरोपी विकास थोड़ी देर पहले अपने एक साथी के साथ पल्सर बाइक पर बहादराबाद क्षेत्र में देखा गया था. यह सूचना महत्त्वपूर्ण थी.

अमरजीत सिंह ने तत्काल एसएसआई प्रमोद चौधरी, एसआई संजय नेगी, अंकुश शर्मा, सीआईयू प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती व सिपाही जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री, नीरज राणा व सचिन अहलावत को साथ लिया और 15 मिनट में बहादराबाद पहुंच गए.

वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस की 2 टीमें बनाईं. अमरजीत सिंह ने पुलिस की एक टीम को सिडकुल-सलेमपुर रोड पर वाहन चैकिंग के लिए लगाया और दूसरी टीम को बहादराबाद हाइवे पर काले रंग की पल्सर बाइक की तलाश में लगा दिया.

ये भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश : अपराध का अधर्म राज

लगभग 2 घंटे बाद पुलिस टीम को काले रंग की पल्सर बाइक सिडकुल सलेमपुर रोड पर आती दिखाई दी. बाइक पर 2 युवक सवार थे. पुलिस ने जब उन्हें रुकने का इशारा किया, तो वे सकपका गए.

ट्रांसजैंडर : समाज के साथ मिला रहे कदम से कदम

पढ़ेलिखे और सम झदार लोगों को किन्नर, हिजड़े जैसे शब्द अब चुभते हैं. कानून भी अब इन्हें ट्रांसजैंडर मानता है. हर तरह के कानूनी अधिकार इन्हें प्राप्त हैं. अब ये हवाईजहाज से सफर करते हैं. सभ्य समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चलने का प्रयास करते हैं. सरकार की तमाम योजनाओं के प्रचारप्रसार में अपना योगदान देते हैं. इन का व्यवहार भी अब पहले जैसा नहीं रहा.

किन्नर समाज के ऐसे लोग केवल समाज के साथ ही कदमताल नहीं कर रहे बल्कि अपने समाज में भी लोगों को बदल रहे हैं. यह भी देखा गया है कि जो किन्नर पढ़ेलिखे हैं वे ज्यादा सम झदार हैं. शिक्षा ही किन्नर समाज को आगे बढ़ने का रास्ता दिखा सकती है. ये फैशन के साथ कदमताल तो मिला ही रहे हैं, सोशल मीडिया पर भी पूरी तरह से अपने को अपडेट रखते हैं.

किन्नरों की दुनिया हमेशा से रहस्यमय नजर आती रही है. पहले ये खुद को समाज से जोड़ने का प्रयास नहीं करते थे, जिस की वजह से समाज भी इन से उपेक्षा का व्यवहार करता था. अब धीरेधीरे दोनों तरफ से एकदूसरे के करीब आने के प्रयास हो रहे हैं. ‘आओ साथ चलें हम’ कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए किन्नर समाज के प्रमुख लोगों से बात करने का मौका मिला.

किन्नर से ट्रांसजैंडर तक का सफर कैसे तय हुआ इस पर काजल मंगलमुखी से बातचीत करने का मौका मिला, जो वैसे तो चंडीगढ़ में रहती हैं पर रहने वाली मैसूर के एक गांव की हैं.

काजल जन्म से ही लड़की की तरह रहती थीं. परिवार गरीब था. परिवार में पैसे और शिक्षा दोनों का ही अभाव था. गांव के लोग अपने घरेलू कामों जैसे रसोई के बरतन साफ करना और नहाने के लिए नदी के पानी का प्रयोग करते थे. नदी गांव के पास थी. एक दिन काजल भी वहां अपनी सहेलियों के साथ नहा रही थी. ऐसे में उस ने अपनी सहेली के जननांगों को देखा तो उसे लगा कि उस की और उस की सहेली की शारीरिक बनावट में फर्क है.

यह बात उस ने अपनी मां को बताई तो उन्होंने चुप रहने के लिए कह कर बात को टाल दिया. धीरेधीरे काजल भी इस बात को भूल गई. समय बीतता गया. काजल को अब अपने अंदर अधिक बदलाव महसूस हो रहा था.

ये भी पढ़ें- विज्ञान : कैसा होगा भविष्य का इंसान ?

बचपन में हुआ शारीरिक शोषण

जब वह कक्षा 8 में पढ़ रही थी तो उसे मोहन नाम के एक लड़के से प्यार हो गया. वह एक दिन लवलैटर लिख रहा था. काजल को लगा कि मोहन उस के लिए लवलैटर लिख रहा है. उसे लगा कि यह लैटर वह उसे देगा. जब मोहन ने लवलैटर उसे नहीं दिया तो पूछने पर मोहन ने कहा, ‘‘तु झ से प्यार क्यों करूंगा? तू तो खुद लड़का लगती है.’’

उस दिन काजल बहुत रोई. एक दिन रिश्ते के एक अंकल उसे बहलाफुसला कर अपने घर ले गए. वहां एकांत में जब उन्होंने काजल को लड़की नहीं पाया तो भी लड़कों की तरह उस का शारीरिक शोषण किया. जब यह बात काजल ने घर में बताई तो मां ने उसे ही बुराभला कहा.

इस घटना के बाद एक तरह से काजल अपने घरपरिवार और समाज से कट गई. उस के पिता ने घर की जमीन बेच दी. पूरा परिवार गरीबी में रहने लगा. ऐसे में काजल को एक दिन मां ने घर से निकाल दिया. वह बस स्टेशन पर बैठ कर रात काटने लगी.

इसी बीच काजल की मुलाकात एक महिला से हुई जो उसे कामधंधा दिलाने के नाम पर मैसूर से मुंबई ले आई. उस औरत ने काजल को कुछ रुपयों के बदले मुंबई के रैड लाइट एरिया में बेच दिया. यहां काजल का काम देहधंधे में आए लोगों से पैसे छीन कर भगा देने का था. सैक्स संबंधों की चाह में लोग किन्नर लड़कियों के पास आते थे. ये लोग उन के पैसे छीन कर उन्हें भगा देते थे.

मुंबई में देखी देहधंधे की दरिंदगी

काजल मुंबई में समाज के भूखे भेडि़यों से वाकिफ हुई. काजल जिस खोली में रहती थी वहीं पर एक बूढ़ी दादी भी रहती थीं. वह उन की सेवा करती थी. काजल को लोगों से पैसे छीनना बुरा लगता था. एक दिन यही बात वह उन बूढ़ी दादी को बता रही थी. तब उन्होंने बताया कि तुम तो गनीमत समझो हालत तो इन लड़कियों की खराब है जिन के मांबाप ने इन्हें देहधंधे के लिए बेच दिया.

7-8 साल की लड़कियों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं होता, बावजूद इस के सैक्स के भेडि़ए इन के शरीर को नोचते. छोटी लड़कियों को सैक्स के लिए तैयार करने के लिए तमाम उपाय और मारपीट की जाती है. लड़कियों के अंगों को बड़ा करने के लिए उन्हें नोचा जाता है. उन के जननांगों में नीबू डाल दिया जाता है ताकि जगह बन सके और फिर आदमी सैक्स कर सके.

यह सुन कर काजल को लगा कि वह लोगों को लूट कर सही कर रही है. काजल यहां आने वालों के पर्स निकाल लेती थी. उन में केवल इतने पैसे छोड़ती थी कि वे अपने घर चले जाएं. काजल को अपने जैसे कुछ अच्छे लोग भी मिले, जिन्होंने सम झाया कि किन्नर 3 तरह से अपना जीवनयापन कर सकते हैं- एक देहधंधा कर, दूसरा भीख मांग कर और तीसरा बधाई दे कर. काजल को बधाई देने वाला धंधा पसंद आया.

इस के लिए उस ने बात की तो पता चला कि उसे औपरेशन कर के लड़की बनना होगा. औपरेशन 2 तरह से होता था-एक डाक्टर सर्जरी कर के करते थे और एक दुर्गा मां के सामने होता था. दोनों का खर्च अलगअलग था. डाक्टर 10 हजार रुपए लेता था और दुर्गा मां के सामने 3 हजार रुपए में होता था. दूसरे में मरने का खतरा होता था. यही वजह है कि दुर्गा मां के सामने पूजा के साथ एक अलग गड्ढा था. अगर कोई औपरेशन के बाद सैप्टिक होने से मर जाता था तो उसे उसी गड्ढे में दफन कर देते थे.

ये भी पढ़ें- शिक्षकों की भर्ती : सच या ख्वाब

मरने से बची तो आगे बड़ी

काजल दुर्गा के सामने औपरेशन को तैयार हो गई. काजल बताती है, ‘‘पूजा के समय मेरे सारे कपड़े उतार दिए गए. पूजा करने के लिए फूलमाला पहना कर तैयार किया गया. इस के बाद एक चाकू टाइप धारदार औजार से मेरे जननांग को काट दिया गया. दर्द की पीड़ा आज भी याद कर के शरीर कांप जाता है.

‘‘मरणासन्न अवस्था में देशी दवाओं के सहारे 40 दिन बीत गए. मेरी जान नहीं गई. इस के बाद जलसा हुआ और मु झे किन्नर समाज में शामिल कर लिया गया. अब मैं बधाई मांगने लगी थी. मु झे यह पता चल चुका था कि किन्नरों को कमाई के 3 रास्ते ही होते हैं – देहधंधा, अपराध और बधाई मांगना. मु झे बधाई मांगना ही सब से आसान रास्ता लगा. इस में गाने गा कर हम बधाई मांगने लगे. यहीं से मेरी जिंदगी भी बदली.

‘‘एक दिन हम लोग एक वकील साहब के यहां बधाई मांगने गए तो वहां उन की बूढ़ी मां मिलीं. उन्होंने कहा कि ऐसे मांगमांग कर कब तक काम चलाओगी. कोई नौकरीधंधा करो. हम ने उन से कहा कि हमें नौकरी कौन देगा? वे बोलीं कि पढ़ोलिखो, अपने अधिकार जानो, संविधान ने तुम्हें अधिकार दिए हैं. उस दिन हमें लगा कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए.

‘‘1995 से हम ने अपनी संस्था ‘मंगलमुखी ट्रांसजैंडर सोसाइटी’ का गठन किया और अपने अधिकारों की लड़ाई शुरू की. इस के बाद चंडीगढ़ में ‘चंडीगढ़ ट्रांसजैंडर वैलफेयर बोर्ड’ की सदस्य भी बनी. हम ने वहां लोगों को तैयार किया और कानूनी लड़ाई लड़ी. ‘भारतीय जन सम्मान पार्टी’ बनाई और 2019 में हरियाणा विधानसभा में चुनाव लड़ने के लिए अपने प्रत्याशी उतारे.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘बधाई मांगने जाने वाले अपने लोगों को मैं यह सम झाती हूं कि वे लोगों की आर्थिक हालत देख कर ही बधाई मांगें, जबरदस्ती बधाई न मांगें. बधाई देने वाले हमारे जजमान होते हैं. उन्हें कष्ट दे कर हम सुखी नहीं रह सकते हैं.

‘‘आज हम अपने समाज को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. हम भी चाहते हैं कि हमारे समाज के लोग भी पढ़लिख कर अफसर बनें. हम लोग बचपन में जिन मुसीबतों से गुजरे उन से किसी और को न गुजरना पड़े, इस के लिए हम अपने समाज को जागरूक कर रहे हैं. मैं बहुत सारे ट्रांसजैंडरों और सामान्य बच्चों को स्कूल में पढ़ा रही हूं.’’

बिहार सरकार की प्रचार योजना में सहभागिता

26 वर्षीय सुमन मित्रा बिहार के पटना जिले की रहने वाली है. स्कूल के दिनों में जैसेजैसे वह बड़ी होने लगी तो साथियों ने उस के हावभाव देख कर उसे चिढ़ाना शुरू कर दिया. सुमन अपने घर वालों को कुछ बता नहीं पा रही थी. जैसेजैसे वह बड़ी होती गई उसे यह लगने लगा कि वह नौर्मल लड़की नहीं है. स्कूल के साथी उसे ‘फिफ्टीफिफ्टी’ बुलाते थे. धीरेधीरे यह क्रम बढ़ता गया और ग्रैजुएशन तक आतेआते सभी को पता चल गया कि वह लड़की नहीं है.

सुमन के लिए यह खुशी की बात थी कि कम से कम उस के घर वाले साथ थे. घर वाले सुमन को ले कर चेन्नई के मैडिकल कालेज गए. वहां तमाम तरह के टैस्ट हुए. औपरेशन और हार्मोंस की दवाओं के बाद सुमन पूरी तरह से लड़की बन गई.

सुमन कहती है, ‘‘इस के बाद धीरेधीरे समाज ने मु झे स्वीकार कर लिया. जिन लोगों को दिक्कत है भी, उन की हम परवाह नहीं करते.’’

सुमन अपने परिवार के साथ रहती है. देखने में वह स्लिम और फिट, सांवले रंग वाली टैनिस खिलाड़ी दिखती है. सुमन को वैस्टर्न कपड़े पहनने पसंद हैं. इस के साथ ही वह बिहार सरकार की प्रचार योजनाओं में भी हिस्सा ले रही है. सुमन अपने गानों के जरिए नशामुक्ति, भ्रूण हत्या, दहेज और बालविवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रही है.

सुमन कहती है, ‘‘अब ट्रांसजैंडरों को ले कर लोगों की राय बदल रही है. मैं हवाईजहाज से ले कर हर तरह का सफर कर रही हूं. हर बड़े होटल में रुकती हूं. समाज के हर वर्ग के साथ उठतीबैठती हूं पर मु झे कोई हिचक नहीं होती है. अगर हम तुलना करें तो स्कूल के दिनों में ज्यादा परेशानी होती थी. वहां मेरा नाम ही ‘फिफ्टीफिफ्टी’ पड़ गया था. अब मैं ब्यूटीशियन का काम करती हूं. मैं गाने गाती हूं, जिन में से कई गाने बिहार सरकार की प्रचार योजनाओं में बजते हैं. हम समाज को कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक भी करते हैं.’’

ये भी पढ़ें- लोगों में NRC और CAA की अनभिज्ञता है विरोध का कारण

शादी उस से जो हमें समझ सके

सुमन बताती है, ‘‘हर लड़की की तरह ही मेरे दिल में भी शादी को ले कर खयाल आता है. मैं शादी ऐसे लड़के से करना चाहती हूं जो मु झे सम झ सके. शादी एक जीवन का गुजरबसर करने का जरिया है. ऐसे में जब तक आपसी सहमति नहीं होगी, आपस में सामंजस्य नहीं होगा शादी सफल नहीं होगी. कुछ अरसा पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने 11 ट्रांसजैंडर जोड़ों की शादियां कराई हैं. इस तरह से हर सरकार और समाज को काम करना चाहिए ताकि ट्रांसजैंडर भी आपस में शादी कर साथ रह सकें.’’

सुमन 6 ट्रांसजैंडर बच्चों का पालनपोषण कर रही है. वे सभी लड़कियां ही हैं. वह कहती है कि हर काम के लिए सरकार से ही उम्मीद नहीं करनी चाहिए. समाज को खुद भी अपने काम करने चाहिए.

सुमन आगे कहती है,  ‘‘हमारे अंदर की फीलिंग्स लड़कियों वाली हैं. कई बार लोगों को यह लगता है कि ट्रांसजैंडरों में भावनाएं नहीं होती हैं, ऐसा नहीं है. ट्रांसजैंडर मेल या फीमेल जो भी होते हैं, उन में भी भावनाएं होती हैं.

‘‘आज मैडिकल युग में ट्रांसजैंडर भी मैडिकल सुविधाओं को ले कर समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकते हैं. जरूरत केवल जागरूक होने की है. हम इस बात को बताने के लिए फैशन शोज, सोशल मीडिया हर जगह खुद को रखते हैं ताकि हमें देख कर हम जैसे दूसरे लोगों में भी आत्मविश्वास बढ़ सके. आज मु झे अपने जैसे तमाम लोग मिलते हैं जो ट्रांसजैंडर होते हुए भी समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं.’’

जानिए, कैसे हटाएं प्यूबिक हेयर

बौडी के बाकी अंगों की तरह प्राइवेट पार्ट्स की भी साफ-सफाई भी बहुत जरूरी है. पर इस पर आप ज्यादा चर्चा नहीं कर पाते. यह आपके ग्रूमिंग का भी अहम हिस्सा है. आप हमेशा इस बात को लेकर कन्फ्यूज रहते हैं कि प्यूबिक पार्टस पर कौन-सा हेयर रिमूवल इस्तेमाल करें कि इसका परिणाम बेस्ट हो. अक्सर आप इसके लिए शेविंग, ट्रिंमिंग, वैक्स, हेयर रिमूवर वगैरह इस्तेमाल करते हैं. तो आइए जानते हैं इसके लिए कुछ जरूरी टिप्स.

सबसे पहले आपको बता दें, प्यूबिक हेयर प्राइवेट पार्ट्स के प्रटेक्शन के लिहाज से जरूरी होते हैं. ये बैक्टीरिया, इनफेक्शंस, सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज और बाहरी फ्रिक्शन वगैरह से बचाते हैं. इसलिए इनको पूरी तरह से हटाना ठीक नहीं लेकिन साफ-सफाई का ध्यान देना जरूरी है.

ये भी पढ़ें- ऐसे चुनें अपनी स्किन के लिए स्क्रबर

एक्सपर्ट्स की मानें तो प्यूबिक हेयर हटाने के लिए हेयर रिमूवर का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए. यह काफी नुकसान पहुंचाते हैं. इनमें मौजूद केमिकल नाजुक स्किन पर काफी खराब असर डालते हैं, जिनसे घाव और इन्फेक्शंस तक हो सकते हैं.

रेजर इस्तेमाल करते हैं तो ध्यान रखें कि अपना रेजर किसी से शेयर न करें. इसके अलावा रेजर जल्दी-जल्दी बदलते रहें. एक ही रेजर ज्यादा दिन इस्तेमाल करेंगे तो इसकी धार खराब हो जाएगी और बाल सही से नहीं निकलेंगे. अगर आप ताकत के साथ इस्तेमाल करेंगे तो कटने का खतरा बढ़ जाएगा.

कई लोग प्यूबिक हेयर हटाने के लिए रेजर का इस्तेमाल भी करते हैं लेकिन इसमें भी सावधानी बरतनी चाहिए. रेजर से कटने का खतरा होता है. अगर रेजर इस्तेमाल ही कर रहे हैं तो बाल हटाने का सही डायरेक्शन सही रखें. ग्रोथ वाली दिशा में बाल निकालें इससे कटने का खतरा कम रहता है.

ये भी पढ़ें- कौस्मेटिक सर्जरी से बने जवान

घर पर बनाएं तवा आलू मसाला

आज आपको तवा आलू मसाला बनाने की रेसिपी बता रहे हैं. इसे बनाने में ज्यादा समय भी नहीं लगता है और बनाने में भी काफी आसान है.  तो आइए जानते हैं तवा आलू मसाले की रेसिपी.

सामग्री

जीरा – 1/2 टीस्पून

प्याज – 70 ग्राम

अदरक पेस्ट – 1/2 टीस्पून

लहसुन पेस्ट – 1/2 टीस्पून

टमाटर पूरी – 180 ग्राम

गर्म मसाला पाउडर – 1/2 टीस्पून

तेल – जरूरत अनुसार

उबले आलू – 500 ग्राम

नमक – 1 टीस्पून

हल्दी – 1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर – 1/2 टीस्पून

धनिया पाउडर – 1 टीस्पून

चाट मसाला पाउडर – 1/2 टीस्पून

मेथी – 1/2 टीस्पून

धनिया – गार्निशिंग के लिए

ये भी पढ़ें- जानें कैसे बनाएं वेजिटेबल सूप

बनाने की विधि

सबसे पहले एक कड़ाई में तेल डालकर मध्यम आंच पर गर्म करें.

इसके बाद इसमें उबले हुए आलू, हल्दी, धनिया मसाला, चाट मसाला, नमक और लाल मिर्च पाउडर डालकर अच्छे से पकाएं.

जब आलू का रंग सुनहरा हो जाए तो इसे आंच से हटा लें. अब एक पैन में तेल डालकर मध्यम आंच पर गर्म होने दें. फिर इसमें जीरा, लहसुन, अदरक और प्याज डालकर फ्राई कर लें.

इसके बाद इसमें टमाटर प्यूरी डालकर 2 मिनट तक पकाएं. अब इसमें फ्राई किए हुए आलू, मेथी और गर्म मसाला डालकर कुछ मिनट तक कम आंच में पकाते रहें.

आपका तवा आलू मसाला बनकर तैयार है. इसे धनिये के साथ गार्निश कर सर्व करें.

ये भी पढ़ें- ऐसे बनाएं चिकन पकोड़े

तुम से मिल कर : भाग 3

पटना पहुंच कर रीना ने सब से पहले अपने लिए एक नौकरी ढूंढ़ी. उसे एक प्राइवेट नर्सिंग होम में डाइटीशियन की नौकरी जल्दी मिल भी गई. फिलहाल उस के लिए इतना काफी था. मां, पिताजी के साथ उस का बेटा टीटो पलने लगा.

उस शाम रीना नर्सिंग होम से घर के लिए निकल ही रही थी कि एक अनजान नंबर से कौल आई. उस के रिसीव करते ही उस ने इतना ही कहा, ‘‘अपना पता दे सकोगी अभी?’’

अरे, यह अनंत है. उसे अच्छा ही लगा. फिर भी स्त्रीसुलभ विरोध दर्शाते हुए पूछा, ‘‘क्या?’’

‘‘अमेरिका के राष्ट्रपति पूछ रहे हैं, इसलिए.’’

‘‘अच्छा, तुम मजाक भी कर सकते हो. मैं तो सम झ रही थी कि तुम बस ऊंचानीचा, भेदभाव ही कर सकते हो.’’

‘‘माफ करो, इसलिए तो आना चाहता हूं तुम्हारे पास, बहुतकुछ सीखना चाहता हूं तुम से. जीवन को सुंदर तरीके से जीना चाहता हूं. कुएं से बाहर निकलना चाहता हूं. पहली बार एहसास हुआ कि इंसान कितना प्यारा हो सकता है. पता दो न, प्लीज.’’

एक घंटे में अनंत रीना के दरवाजे पर खड़ा था. घर में उस की भरपूर  आवभगत की गई. लेकिन खानेपीने के मामले में चाह कर भी किसी ने पहल नहीं की. अनंत ने आखिर रीना से पानी मांग ही लिया.

रीना ने भेदभरी निगाहें रख उस से पूछा, ‘‘सच? पानी?’’

वह शर्मिंदा सा होता हुआ बोला, ‘‘हां, दो न, हो सके तो चाय भी.’’

दरअसल, ज्यादा पढ़ालिखा न होने की वजह से उस में आत्मविश्वास कम था और अभिव्यक्ति भी. 12वीं के बाद से वह पिता का कारोबार ही संभाल रहा था.

बाजार इलाके में उस के पिता की लाइन से 30 दुकानें किराए पर थीं. उन पैसों की उगाही का काम अनंत के जिम्मे था. पैसे का हिसाब लगाना और जातिबिरादरी के बीच उठनाबैठना, बस, इतनी ही जिंदगी थी उस की. उम्र निकलती जा रही थी, मगर ब्याह को बाबूजी मान नहीं रहे थे. बिरादरी में सब से ऊंचा दहेज देने वाला कोई परिवार हो, तो बात बने. लेकिन इतना दहेज का औफर अब तक अनंत के लिए कोई ला न पाया था कि जिस से बाबूजी संतुष्ट हो पाते.

अब रीना की वजह से अनंत में काफी बदलाव आ गया था. बेवजह दोनों मिलते. धीरेधीरे दूरियां कम होने लगी थीं.

रीना की मां वैसे चाहती तो थीं कि बेटी का घर फिर से बस जाए. पर अनंत के घर में रीना निभा सकेगी, इस पर उन्हें पूरा शक था. उन की सीधी सोच थी कि वे लोग तो सिर्फ सेवा के लिए बने हैं, बराबरी कैसे कर सकते हैं उन से.

एक रोज शाम की चाय के वक्त अनंत ने अपने घर में बात छेड़ी. रूही अपने पति और सालभर की बेटी के साथ वहीं थी. अनंत ने सीधे कहा, ‘‘बाबूजी, मैं रीना से शादी करूंगा. वह प्राइवेट नर्सिंग होम में डाइटीशियन है, काफी पढ़ीलिखी है.’’

‘‘पढ़ीलिखी होने से क्या, जाति क्या है?’’ बाबूजी ने तल्खी से कहा. मन ही मन उन्हें दहेज की भी चिंता थी.

‘‘पढ़ेलिखे होने से हमारी विरासत के लिए अच्छा होगा. नई पीढ़ी ज्यादा सम झदार होगी,’’ अनंत सम झाने की कोशिश में था.

रूही बीच में कूद पड़ी, ‘‘बाबूजी, यह रीना जाटव है.’’ जाटव पर जोर था. रूही ने आगे जोड़ा, ‘‘विधवा है, एक बच्चे की मां.’’ यह सुनते ही अम्मा भी बुराभला कहने लगीं. बाबूजी तो हतप्रभ थे. बेटा इतना बिगड़ चुका है कि जाटव को घर की बहू बनाएगा. वह भी विधवा. उन्होंने आखिरकार अपनी चप्पल अनंत पर दे मारी.

अनंत ने उस के बाद इतना ही कहा, ‘‘रूही, इसी रीना जाटव ने तुम्हारी और तुम्हारी बेटी की जान बचाई थी.’’

अम्मा बोल पड़ीं बीच में, ‘‘उस से क्या होता है, कुजात लड़की को इस वजह से सिर पर बिठा लें?’’

‘‘इस तरह की लड़कियों को तो हम रास्ते से उठा कर ला कर रातभर रख कर सुबह छोड़ आते थे. बुरा हो इस आरक्षण का कि ये सिर पर बैठने लगीं,’’ बाबूजी बोले.

‘‘यानी आप लोग मानोगे नहीं,’’ अनंत हताश हो चुका था.

जीजा को छोड़ लगभग सभी ने एक सुर में कहा, ‘‘कभी नहीं, शादी हमारी पसंद से होगी.’’

अनंत जीजा को रीना से मिलवा चुका था. वह कहीं से भी अनपढ़ या असभ्य नहीं लगती थी. आखिर उस के पिता, भाई सब अच्छी नौकरियों में थे. पैसे की किल्लत नहीं थी. बस, जाति का मतभेद था.

अनंत सब छोड़छाड़ घर से निकल गया. उस ने रीना से कोर्ट मैरिज करने का फैसला कर लिया. कोर्ट

में साथ में थे रीना के मातापिता और अनंत के जीजा सार्थक.

टीटो नानानानी के साथ ही पल रहा था. पर अनंत ने कह दिया था कि टीटो को जब चाहे रीना अपने पास ला सकती है.

रूही के अपने पति के पास दूसरे शहर वापस चले जाने के बाद अनंत के मातापिता अकेले ही रह गए.

गुमान के सिंहासन से खुद को बांध इस बुजुर्ग दंपती ने हमेशा ही आसपड़ोस से खुद को अलग रखा. खुद की श्रेष्ठता के मान ने उन्हें दूसरों के छू जाने तक से डरा कर रखा. जाति और कुल का गौरव इन के लिए इतना बड़ा था कि इंसानी रिश्ते इन से दूर होते गए. अब 2 साल से अनंत भी रीना से शादी करने की वजह से दूर कर दिया गया था. अनंत उन लोगों के लिए अछूत हो गया था. उन्होंने मान लिया था कि वंशनाश हो गया है.

जिंदगी एकसी कब चली है और वह भी मनमुताबिक? अम्मा की गठिया की बीमारी ने इतना भयावह रूप धारण किया कि वे बिस्तर से उठने के लायक न रहीं. बेटी दूर शहर से साल में हफ्तेभर के लिए आती. उस के सहारे जिंदगी कैसे चले? बाबूजी का शरीर भी अब गिरने पर  था.

आखिर अम्माजी ने अनंत को फोन लगाया. अनंत का गुस्सा उतरा नहीं था. उस ने जाने से साफ मना कर दिया. लेकिन रीना कहां उपेक्षा कर सकती थी. वह उसी दिन उन के पास दौड़ी गई. वहां पहुंच कर उस ने बड़ी दयनीय स्थिति देखी. बिस्तर पर पड़ेपड़े अम्मा का जातधरम का गुमान छूट चुका था. खाना बाइयां ही बनातीं. घर की अव्यवस्था और अम्माजी की स्थिति देख रीना की आंखें नम हो गईं. वह बिस्तर के पास खड़ी थी. अम्मा ने उस का हाथ पकड़ बिस्तर पर बिठा लिया.

रीना के हाथों को अपने हाथों में ले कर अम्मा ने कहा, ‘‘काम न आया वह ?जातधरम. आखिरी वक्त में इंसान का प्रेम ही काम आता है. बाई नेहा को मैं ने ‘मत छू, मत छू’ कह कर कितना दुत्कारा था. आज वह कितना प्यार लुटाती है. दिल से काम करती है बेचारी. ऊंचनीच के भ्रम में किसी के घर तक नहीं जाती थी मैं. किसी की मदद भी मैं ने कभी नहीं की. यह सोचा करती थी कि उन के पास जाना पड़ेगा तो उन्हें छूना पड़ेगा और जात चली जाएगी.’’

रीना को याद आया, ट्रेन में एक वृद्धा के सूटकेस हटाने के अनुरोध को अनंत ने किस तरह अनसुना कर दिया था. अच्छा, तो इसी शिक्षा की वजह से. वह तो तब सम झ भी नहीं पाई थी कि इतना निर्दयी कैसे है यह इंसान.

रीना ने अम्मा को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मैं आ गई हूं न, मां, हमेशा के लिए. मैं देखूंगी सब को. बेटे को भी जल्दी ले आऊंगी, आप चिंता न करो.’’

अम्मा आंसू पोंछती सी बोलीं, ‘‘तूने मेरी बेटी और उस की बच्ची की जान बचाई, जानबू झ कर जात के नाम पर तु झे हम ने आयागया कर दिया. अब फिर से तू आ गई हमें तारने. सच में इंसानियत जिसे कहते हैं वह तो ऐसी ही होती है.’’

मिलन की इस बेला में विचारों में जमी बर्फ पिघलने लगी थी. हवाओं में स्नेहिल ताजगी महसूस हो रही थी. अब तो अनंत भी वापस आ गया था. अम्मा की सेवा करती रीना की आंखों में अनंत देखता और उस की आंखें प्रेम से लबालब हो जातीं. दिल में उस के एक ही बात गूंजती रहती, ‘रीना, तुम से मिल कर…’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें