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करण जौहर के बेटे ने उन्हें दिया ये दिलचस्प नाम, जो हो रहा है खूब वायरल

बौलीवुड के फेमस डायरेक्टर और प्रोड्यूसर करण जौहर ने अपनी फिल्मों से तो छाए ही रहते हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी चर्चा में रहते ही हैं. हाल ही में उनका एक ट्वीट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. जिसमें उन्होंने अपने बेटे यश जौहर  से जुड़ी एक खास बात बताई है. करण जौहर ने ट्वीट कर फैंस को बताया कि उनके बेटे ने उन्हें करण जौहर की जगह करण जोकर बुलाया.  करण जौहर का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रहा है,  लोग इसपर खूब  रिएक्शन भी दे रहे हैं.

करण जौहर ने अपने ट्वीट में लिखा, “मेरा बेट ने अभी मुझे ‘करण जोकर’ कहकर बुलाया. मुझे लगता है कि वह मुझे इंस्टाग्राम पर भी फौलो करता है.” करण जौहर के इस ट्वीट पर अमिश त्रिपाठी ने लिखा, “मेरे बेटे को लगता है कि रिक रिओर्डन की किताबें मुझसे बेहतर हैं. यह बेटे हमें हमेशा धरती पर ही रखने के लिए बने हुए हैं.”

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आपको बता दें कि करण जौहर के दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी. जिनका नाम यश और रूही है.  ये दोनों साल 2017 में सरोगेसी की मदद से हुए थे  करण अपने बच्चों की तस्वीरें  सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं जिन्हें  उनके फैंस खूब  पसंद भी करते हैं.

करण जौहर सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं और अपनी और बच्चों की तस्वीरें अपने इंस्टाग्राम पर शेयर करते रहते हैं.  इन सभी तस्वीरों में करण  रंग-बिरंगे आउटफिट्स में नजर आ रहे हैं. कई बार करण अपने इन रंग-बिरंगे आउटफिट्स के कारण ट्रोल भी हो जाते हैं. शायद इसीलिए भी करण का बेटा उन्हें ‘जोकर’  कह कर बुलाता हो.

वर्क फ्रंट की बात करें तो करण जौहर  ने हाल ही में अक्षय कुमार की ‘गुड न्यूज’  प्रोड्यूस की थी, इस फिल्म में अक्षय कुमार के साथ करीना कपूर, दिलजीत दोसांझ और कियारा अडवाणी मुख्य भूमिका में हैं. प्रोडक्शन के बैनर तले बनी गुड न्यूज लगभग  190 करोड़ रुपये का कलेक्शन कर चुकी है. और खूब धमाल मचा रही है.

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इस फिल्म के अलावा करण जौहर करण इस समय अपनी आने वाली मल्टी-स्टारर फिल्म ‘तख्त’ की शूटिंग की तैयारी कर रहे हैं. इस फिल्म में अनिल कपूर, विकी कौशल, रणवीर सिंह, करीना कपूर, भूमि पेडनेकर और जाह्नवी कपूर मुख्य भूमिकाओं में दिखाई देंगे. बताया जा रहा है कि फिल्म में अनिल कपूर शाहजहां, विकी कौशल औरंगजेब, रणवीर सिंह दारा शिकोह और करीना कपूर जहांआरा के किरदार में नजर आएंगे. इस  फिल्म के अलावा दोस्ताना  2 और ब्रह्मास्त्र भी प्रोड्यूस कर रहे हैं.

अपनी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल संग वरुण धवन लेंगे सात फेरे

बौलीवुड एक्टर वरुण धवन अपनी गर्लफ्रेंड संग सात फेरे लेने वाले हैं. जी हां, उनकी शादी से लेकर  हनीमून शेड्यूल तक की भी खबरें आ रही हैं. एक बार फिर से वरुण धवन की शादी चर्चा में है.

एक रिपोर्ट के अनुसार वरुण धवन अपनी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल से इस साल अपने जन्मदिन यानी 24 अप्रैल को शादी कर लेंगे. दरअसल, पहले दोनों की शादी 2019 के दिसंबर में ही होने की संभावनाएं जताई जा रही थी. लेकिन फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त होने के चलते यह तारीख आगे बढ़ गई.

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Sweethearts❤ @varundvn @natashadalal88

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अब खबर ये है कि वरुण धवन की फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर 3D’  रिलीज होने वाली है जबकि उनकी ‘कुली नंबर 1’ की शूटिंग भी  पूरी हो चुकी है. इसके बाद उन्होंने शशांक खेतान की फिल्म ‘मिस्टर लेले’ साइन की है. लेकिन उनके शेड्यूल को देखते हुए इस तरह बिठाया जा रहा है कि वरुण ना केवल शादी कर पाएं बल्कि वो हनीमून पर भी जा सकें.

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दोनों की शादी के आउटफिट के लिए डिजाइनर नताशा दलाल खुद काम करेंगी तो वहीं मनिष मल्होत्रा भी डिजाइनिंग करेंगे. यही दोनों मिलकर शादी के कपड़े डिजाइन करेंगे. बताया जा रहा है कि दोनों की डेस्टिनेशन वेडिंग को गोवा में प्लान किया जा रहा है.

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They are pyaar❤?

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आपके बता दें, ‘कौफी विद करन’ सीजन 6 में वरुण धवन ने खुलासा किया था कि वो नताशा दलाल को डेट कर रहे हैं. उन्होंने हिंट भी दिया था कि वो जल्द ही शादी भी कर सकते हैं. वरुण धवन ने बताया था कि नताशा स्कूल के दिनों से ही उनके लिए काफी सपोर्टिव रही हैं.

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डिनर में सर्व करें टमाटर पनीर रेसिपी

आज अपको टमाटर पनीर की रेसिपी बताते हैं, जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ बनाने में भी आसान है, तो चलिए जानते हैं टमाटर पनीर की रेसिपी.

 सामग्री

2 प्याज

नमक स्वादानुसार

3 कप टमाटर गूदा

3 चम्मच मक्खन

डेढ़ चम्मच अदरक

400 ग्राम पनीर

काली मिर्च स्वादानुसार

4 हरी मिर्च

डेढ़ चम्मच गार्लिक पेस्ट

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 बनाने की वि​धि

सबसे पहले पनीर के क्यूब्स काट लें. अब प्याज और हरी मिर्च काट लें.

एक बड़े बर्तन में पानी उबाल लें और उसमें पनीर और नमक डाल दें. 10 मिनट बाद इसे निकाल दें. इससे पनीर सौफ्ट हो जाते हैं.

एक फ्राइंग पैन लें और मीडियम फ्लेम पर गर्म करें. इसमें मक्खन डाल दें. जब मक्खन पिघल जाए तो उसमें प्याज और हरी मिर्च डाल दें. इसे फ्राई होने दें.

अब इसमें टमाटर के गूदे को डाल दें और इसे लो फ्लेम पर पकाएं. जब यह मिक्सचर आधा हो जाए तब इसमें जिंजर-गार्लिक पेस्ट मिला लें और फिर 10 मिनट तक पकाएं.

इसमें नमक, काली मिर्च मिला लें और 2-3 मिनट तक पकने दें. अब इसमें पनीर क्यूब्स मिला लें. इसे गार्निश करके सर्व करें.

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तेरी मेरी यारी सबसे न्यारी

कहते हैं दोस्ती करना आसान है पर इसे निभाना मुश्किल, क्योंकि इस में पड़ी दरार के दूरगामी परिणाम भी लक्षित होते हैं. हाल ही में महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा और शिवसेना के बीच दोस्ती के बदलते समीकरण ने भाजपा के हाथों से सत्ता की कुरसी परे सरका दी. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना के मैत्री गठबंधन ने उद्धव ठाकरे के सिर पर सत्ता का ताज सुशोभित कर दिया.

इसी तरह झारखंड में हाल ही के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और आजसू की मैत्री में दरार पड़ने से वहां भाजपा को शिकस्त का मुंह देखना पड़ा है जबकि कांग्रेस के साथ जेएमएम की दोस्ती ने कमाल दिखाते हुए भारी मतों से अपने बहुमत को स्थापित किया है. इस का मतलब दोस्ती का जादू हर क्षेत्र में समयसमय पर अपने प्रभुत्त्व को दर्शाता रहा है, फिर चाहे स्तर कोई भी हो.

‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे…’ दोस्ती पर गीतकार आनंद बख्शी का लिखा यह गीत आज भी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है. सच में दोस्ती ऐसा जज्बा है जो कभीकभी प्रकृतिदत्त रिश्तों पर भी भारी

पड़ जाता है. सच तो यह है कि दोस्तों के बगैर हमारी जिंदगी बेरौनक और उदास सी होती है. चूंकि उन के साथ हम अपनी भावनाओं और विचारों की खुली साझेदारी कर सकते हैं, इसलिए उन के साथ बिताए पलों में हम अकसर खुल कर ही अपनी जिंदगी जीते हैं और ये पल हमारे जीवन के खास पलों का कभी न भूलने वाला हिस्सा बन जाते हैं.

जिंदगी के सब से मुश्किल दौर में नातेरिश्तेदारों से अधिक एक दोस्त ही हमारी ओर मदद का हाथ बढ़ाता है और वह भी बिना किसी स्वार्थ के.

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समयसमय पर दोस्ती के बारे में बहुतकुछ लिखा जाता रहा है. हमारी फिल्मों में भी दोस्ती को कई मानो में बारबार तराशा गया है. दोस्ती का कोई दायरा नहीं होता. यह तो असीमित, अपरिमित होती है.

दोस्ती पर चौंकाने वाला खुलासा

मशहूर साइकोलौजिस्ट रिया बंसल मानती हैं कि जिंदगी में दोस्तों की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता यानी दोस्त होना बहुत जरूरी है. लेकिन उतना ही जरूरी सही दोस्तों का चयन करना भी है. क्योंकि यही संगत न सिर्फ आप का आत्मविश्वास बढ़ाती है, बल्कि आप का व्यक्तित्व भी निखारती है.

यों तो दोस्ती पर सैकड़ों गाने, कविताएं और कहानियां लिखी जा चुकी हैं, लेकिन वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक दावे को सुन कर निश्चय ही आप चौंक उठेंगे. अब तक आम धारणा यही थी कि परिवार के सदस्यों का डीएनए ही आपस में मेल खाता है, परंतु अमेरिका में की गई एक रिसर्च बतलाती है कि दोस्तों का डीएनए भी उतना ही समान होता है.

एक इंग्लिश मीडिया के मुताबिक, यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया और येल यूनिवर्सिटी की रिसर्च में 1,932 लोगों के डीएनए की जांच की गई. इस के लिए लगभग 30 साल के बीच के उन के रिश्तों के आंकड़े जमा किए गए. रिसर्चरों ने पाया कि जो जीन गंध समझने के लिए सक्रिय होते हैं वे दोस्तों में एकजैसे ही थे.

इसे वैज्ञानिकों ने यों समझा कि जीन संरचना वाले लोग एक ही जैसे माहौल की ओर आकर्षित होते हैं और वहां एकदूसरे से इत्तफाक से मिलते ही दोस्ती हो जाती है. अगर इस रिसर्च को हम दोस्ती का पैमाना बना कर चलें, तो दोस्ती में अब भावनात्मक जुड़ाव ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक जुड़ाव भी बराबरी से जिम्मेदार होगा.

कुछ रिसर्चर्स बताते हैं कि आज की लाइफस्टाइल में वर्चुअल वर्ल्ड का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. नतीजतन, सामाजिक जीवन में दोस्तों की संख्या में कुछ कमी आई है. आज आभासी दुनिया के मित्रों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है, पर उन का हमारी सोशल लाइफ से कोई नाता नहीं है.

आखिर क्या है दोस्ती

मशहूर अमेरिकन कमैंटेटर वाल्टर विनचेल दोस्ती को कुछ इस तरह परिभाषित करते हैं, ‘‘एक सच्चा दोस्त वह है जो तब आप के साथ चलता है जब शेष दुनिया साथ छोड़ देती है.’’

टेलर कौलरिज के अनुसार, ‘‘प्यार फूल की तरह होता है और दोस्ती पेड़ की तरह.’’

तो दोस्ती केवल एक संबंध न हो कर आपसी प्रेम, विश्वास, खुशी और सम्मान की भावना का वह अनोखा मिश्रण है जो सदियों से न सिर्फ स्वस्थ समाज की जरूरत है बल्कि आज भी यह बेहद प्रासंगिक है. प्रस्तुत दौर की बेहद व्यस्त जिंदगी में समयाभाव के कारण दोस्ती का महत्त्व और बढ़ गया है. शायद यही कारण है कि भूलेबिसरे सभी दोस्तों की दोस्ती को समर्पित एक खास दिन चुना गया जिसे फ्रैंडशिप डे के नाम से जाना जाता है.?

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कैसे थामें दोस्ती की डोर

बेंगलुरू में कार्यरत मनोचिकित्सक डा. श्यामला वत्स दोस्ती के बारे में एक आकर्षक सलाह देती हैं. वे अपने दिन को पिज्जा की तरह बांटने को कहती हैं, यानी 16 से 18 घंटे का जो समय हम जाग कर बिताते हैं, पिज्जारूपी इस समयचक्र के 6 टुकड़ों में से अपने दोस्तों को हमें 2 टुकड़े देने चाहिए ताकि बचे हुए टुकड़ों में हम अपने दूसरे जरूरी कार्यों को निबटा सकें. जिन में घर के हमारे हिस्से के काम, अपने रूटीन वर्कऔर अपने पसंदीदा कार्य जैसे टीवी देखना, किताबें पढ़ना या अन्य शौक जो हम करने की इच्छा रखते हों, पूरे किए जा सकें.

दोस्ती के नियम

सच तो यह है कि दोस्ती में कोई नियमकायदा नहीं होता. दोस्ती सभी मानकों के परे होती है. फिर भी कुछ बातों का ध्यान रख कर हम अपनी दोस्ती को हमेशा के लिए टिकाऊ बना सकते हैं.

दोस्ती में कभी पैसोंरुपयों का लेनदेन न आने दें, क्योंकि तगड़ी से तगड़ी दोस्ती भी कभीकभार लेनदेन के गणित में उलझ कर रह जाती है और अपनी स्वाभाविकता खो बैठती है.

दोस्त के पीठपीछे उतनी ही बात करें, जितनी उस के सामने स्वीकारने में हिचक न हो. क्योंकि कई लोग जो आप की दोस्ती पसंद नहीं करते, आप को एकदूसरे के विरुद्ध बहकाने की कोशिश कर सकते हैं.

दोस्ती की है, तो विश्वास करना भी सीखें. अगर मित्र के प्रति दिल या दिमाग में कोई वहम आया भी है तो उसे मित्र के सामने रखें और बात को साफ कर लें, वरना कई बार छोटीछोटी बातों को दिल में रख कर हम शक का एक पुलिंदा तैयार कर लेते हैं और मौकेबेमौके वह गुबार हमारे दिल से निकल कर जबान पर आ जाता है. इस से अच्छीखासी दोस्ती में दरार आ जाती है.

किसी उलझन में फंसे दोस्त को सही, सार्थक और सटीक राय दीजिए, भले ही उस समय वह उसे नीम की कड़वी गोलियों की भांति लगे. कई बार केवल दोस्त का मन रखने के लिए हम उसे उस की पसंदीदा सलाह दे देते हैं, जिस से बाद में उसे परेशानी उठानी पड़ सकती है और हमें पछताना पड़ सकता है कि काश, हम ने सही समय पर उसे सही सलाह दी होती, तो आज दोस्त को यों दुखी न देखना पड़ता.

अच्छे दोस्त अपने साथी की खुशी को दोगुना और तकलीफ को आधा कर देते हैं. दोस्ती में अपने अहं को आड़े न आने दें. मैं ही बारबार क्यों याद करूं, क्यों उस के घर जाऊं? वह क्यों नहीं आ सकता? ऐसी बातें दोस्ती के आड़े नहीं आनी चाहिए.

अच्छे श्रोता बनें. कई बार दोस्त आपके पास अपनी तकलीफ को शेयर करने ही आते हैं, ताकि समस्या से नजात न सही, कुछ मानसिक सुकून ही मिल जाए. ऐसे वक्त में उन्हें निराश न होना पड़े. प्रेम और धैर्य के साथ यदि आप उन की बात सुन लेंगे तो समस्या का निदान न सही, उन्हें मानसिक सुकून व दिमागीतौर पर आराम जरूर मिलेगा.

दोस्ती में आए बदलाव को सहर्ष स्वीकार करें. कई दोस्तों को इस बात की शिकायत होती है कि पहले तो उन का बड़ा याराना था पर वक्त के साथ दोस्ती की यह महक फीकी पड़ती जा रही है. लेकिन, यह भी तो सोचें कि परिस्थितियां और हालात सदा एक से नहीं रहते. कई बार हालात से मजबूर दोस्त हम से रोजाना मेलमुलाकात नहीं कर पाते या हमें अधिक समय नहीं दे पाते. ऐसे में उन की व्यस्तता को समझ कर उन्हें कोसने और शिकायतें करने के बजाय वस्तुस्थिति को समझने का प्रयास करें.

बढ़ती उम्र और समय के साथ दोस्ती में और परिपक्वता आ जाती है. दोस्त के बिना कहे हम उस की तकलीफ या तनाव को समझने लगते हैं. दोस्ती में सहज भाव से अपनी बात रखें. एक सच्ची दोस्ती में अहंकार, फरेब, कटाक्ष और टीकाटिप्पणी न हो कर सहज और सरल भाव का होना अत्यावश्यक है.

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दोस्ती की आजमाइश की कोशिश कभी न करें. वक्तबेवक्त दोस्तों का आजमाना आप की अति होशियारी का प्रतीक है. जिस से न सिर्फ दोस्ती का स्तर गिरता है बल्कि उस का मौलिक स्वरूप भी आहत हो जाता है.

तो यह बात अच्छी तरह जान लें कि दोस्ती में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. दोस्ती उम्र देख कर भी नहीं की जाती, न ही रंगरूप या सामाजिक स्तर देख कर. इसलिए इस के टिकने की संभावना दूसरे रिश्तों से कहीं अधिक होती है. सो, सिर्फ दोस्त बनाने की जुगत न करें, बल्कि दोस्ती निभाने का बीड़ा भी सच्चे दिल से उठाएं.

 सेक्स में नीरसता क्यों

लेखक: विनय कुमार पांडेय

लंबे समय से जापान को ‘लव होटल’ वाला देश माना जाता रहा है. जापान को अब ऐसा क्या हो गया है कि वहां के युवाओं की रुचि सैक्स से खत्म हो रही है. जापान के युवा सैक्स नहीं कर रहे हैं.

नए शोध के मुताबिक, ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिन्होंने कभी सैक्स नहीं किया. जापान में 18 से 34 साल के बीच के 43 फीसदी लोगों ने कभी संभोग नहीं किया है. 52 फीसदी लोगों का कहना है कि वे वर्जिन हैं और 64 फीसदी लोग किसी भी तरह की रिलेशनशिप में नहीं हैं. जापान में सैक्स के प्रति घटती रुचि चिंताजनक है.

सैक्स के लिहाज से मौजूदा समय मानव इतिहास का सब से उन्मुक्त दौर कहा जा सकता है. बीते 4 दशकों की तकनीक ने यौन संबंधों को उन्मुक्ता दी है, चाहे वे गर्भनिरोधक गोलियां हों या फिर गिं्रडर और टिंडर जैसी डेटिंग ऐप. ये सब मिल कर यौन संबंधों को नया आयाम देते हैं. इतना ही नहीं, सामाजिक मान्यताओं के लिहाज से भी समलैंगिकता, तलाक, शादी से पहले सैक्स संबंध, और एकसाथ कई से यौन संबंध जैसे चलन अब कहीं ज्यादा स्वीकार किए जा रहे हैं. बावजूद इन सब के, शोध अध्ययन यह बताते हैं कि पिछले दशक की तुलना में दुनिया में लोग कम सैक्स कर रहे हैं.

अमेरिकी शोधकर्ता जीन त्वेंगे, रायन शेरमान और बु्रक वेल्स का एक शोध अध्ययन आर्काइव्स औफ सैक्सुअल बिहेवियर में प्रकाशित हुआ, जिस के मुताबिक, 1990 के दशक की तुलना में 2010 के दशक में लोग हर साल 9 बार कम सैक्स कर रहे हैं. आंकड़ों के हिसाब से इस में 15 फीसदी की कमी देखी गई. 1990 के दशक में हर साल लोग 62 बार सैक्स कर रहे थे, जो 2010 के दशक में घट कर सालाना 53 बार रह गया था. यह गिरावट सभी धर्म, सभी नस्ल, सभी क्षेत्र, शिक्षित और अशिक्षित सभी तरह के लोगों में देखने को मिली थी.

युवाओं में डिप्रैशन और एंग्जायटी के मामले भी बढ़े हैं. आज की युवापीढ़ी नौकरी की असुरक्षा और गलाकाट प्रतियोगिता के बीच उल झी हुई है. इन सब का असर उन के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. ऐसे में वे एंटी डिप्रैसैंट जैसी दवाइयों का सेवन करने लगते हैं और इन सब का दुष्प्रभाव उन की सैक्स लाइफ पर पड़ रहा है. दूसरी तरफ इंटरनैट ने हमारी जिंदगी आसान तो बना दी है लेकिन इस के कई साइड इफैक्ट्स भी देखने को मिल रहे हैं. सैक्स रिसैशन उन में से एक है.

आजकल के ज्यादातर जोड़े अपने स्मार्टफोन में इतने व्यस्त रहते हैं कि वे साथ होते हुए भी साथ नहीं हो पाते. खाली वक्त में भी वे एकदूसरे के साथ नहीं रह पाते. सैक्स की पहल तो दूर, उन्हें मोबाइल में ज्यादा दिलचस्पी होती है. आज की युवापीढ़ी औनलाइन डेटिंग और डिजिटल सोशलाइजिंग ज्यादा पसंद करती है, जिस का असर उन के सैक्स संबंधों पर भी पड़ रहा है.

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खानपान का असर

सैक्स के प्रति युवाओं में घटती रुचि के लिए उन का खानपान भी काफी हद तक जिम्मेदार है. वे जंक फूड, फ्राइड फूड इत्यादि का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, जो सैक्स हार्मोन टैस्टोस्टेरौन के स्तर को कम करते हैं. इस वजह से उन की सैक्स ड्राइव यानी यौनइच्छा घट रही है. वहीं, अकसर बहुत सी महिलाओं में यौन इच्छा की कमी देखने को मिलती है जिसे ले कर वे चिंतित रहती हैं क्योंकि इस से उन का रिश्ता प्रभावित होता है. इस समस्या के दौरान महिलाओं की यौनसंबंध बनाने की वास्तविक इच्छा खत्म हो जाती है और लवमेकिंग के वक्त उन का दिमाग टर्नऔन नहीं होता है.

सैक्स के प्रति नीरसता

आखिर ऐसा क्या हो रहा है जो लोग सैक्स के प्रति नीरस होते जा रहे हैं? इस की मुख्य रूप से 2 वजहें हैं. एक तो औनलाइन पोर्नोग्राफी और दूसरा सोशल मीडिया. 2011 में इटली में पोर्न देखने वाले 28 हजार लोगों पर एक सर्वे किया गया. सर्वे के मुताबिक, लोगों पर पोर्न में दिखने वाली काल्पनिक तसवीरों का ऐसा असर होता है कि वे बैडरूम में सैक्स संबंध के लिए तैयार ही नहीं हो पाते हैं और उन की स्थिति असहाय जैसी हो जाती है.

वर्ष 2014 में अमेरिका में माइकल मैलकौल्म और जौर्ज नाउफैल नामक 2 शोधकर्ताओं ने 18 से 35 साल के 1,500 युवाओं पर सर्वे किया. इन से इंटरनैट के बढ़ते इस्तेमाल और उन के  रोमांटिक जीवन पर पड़ने वाले असर के बारे में पूछा गया. ईस्टर्न इकोनौमिक जरनल में प्रकाशित इस अध्ययन में देखा गया कि जो लोग ज्यादा देर तक इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं, उन में शादी करने की दर कम होती है.

एक पत्नी की हमेशा चाहत रहती है कि उस का हमसफर रोमांटिक हो. लेकिन देखा जाए, तो जीवनभर का साथ जैसी सोच ही कभीकभी पतिपत्नी को एकदूसरे के प्रति लापरवाह बना देती है. उस पर पति अंतर्मुखी स्वभाव के हों, तो स्थिति और भी मुश्किल हो जाती है. पतिपत्नी का रिश्ता जितना गहरा होता है, उतना ही टकरावभरा भी होता है.

आमतौर पर पुरुषों के व्यवहार के कई रूप देखने को मिलते हैं, जैसे आक्रामक, दयालु, नम्र, कठोर, धीरशांत, खुशमिजाज, रोमांटिक या फिर बोरिंग. पुरुष बोरिंग इसलिए होते जा रहे हैं क्योंकि वे पत्नी को समय नहीं दे पाते जिस से उन में टकराव होता है और रिश्ते टूट जाते हैं. दूसरा कारण है सैक्स के प्रति उदासीनता.

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तनाव और काम का बो झ भी सैक्स के प्रति नीरसता ला रहा है. तनाव से हार्मोंस का स्तर गड़बड़ हो जाता है और इन सब का असर सैक्स संबंधों पर भी पड़ता है. पहले के समय में महिलाएं घर पर रहती थीं. दिनभर काम कर के जब पति घर लौटते थे, तो वे उन्हें रि झाने की कोशिश करती थीं, जिस से उन की सैक्सलाइफ में उत्तेजना बनी रहती थी. पर आज के समय में पतिपत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं. दोनों पर काम का दबाव इतना होता है कि सैक्स उन की प्राथमिकता की लिस्ट से गायब हो जाता है. काम का प्रैशर कपल्स को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से इतना शिथिल कर देता है कि उन की कामोत्तेजना खत्म होने लगती है.

इंटरनैट सैक्स एडिक्शन

औनलाइन पोर्नोग्राफी के बढ़ते चलन से कई लोगों में इंटरनैट सैक्स एडिक्शन जैसी बीमारी देखने को मिल रही है. इस के कारण उन का रियल सैक्स के प्रति  झुकाव कम होता जा रहा है. जिन लोगों को पोर्न फिल्मों की लत लग जाती है, उन्हें रियल सैक्स की जगह पोर्न में ही मजा आने लगता है. वे उस काल्पनिक दुनिया से बाहर नहीं आ पाते. उसी तरह के सैक्स की कल्पना भी करने लगते हैं. ऐसे में अगर पार्टनर उन की अपेक्षाओं पर पूरा नहीं उतरता, तो सैक्स संबंध बनाने से उन्हें अरुचि हो जाती है.

वहीं, कुछ कपल्स में यह हीनभावना भी घर कर जाती है कि उन में पोर्न में दिखाए जाने वाले स्टार की तरह न ही स्टैमिना है और न ही वैसी परफैक्ट बौडी. ऐसे में वे पार्टनर से दूरी बना लेते हैं. बढ़ती उम्र के साथ सैक्स में रुचि कम होना स्वाभाविक है, पर जब कम उम्र में ही सैक्स में रुचि घटने लगे, तो यह सैक्स रिसैशन का संकेत है. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि भारत सहित कई देशों में हुए शोधों से यह बात पता चली है कि पिछले दशक की तुलना में अब लोगों, खासतौर पर युवाओं, में यह बीमारी बढ़ रही है.

सैक्सुअल ड्राइव कैसे बढ़ाएं

सैक्सुअल ड्राइव बढ़ाने के लिए 8 घंटे की नींद लेनी बहुत जरूरी है. मोटापे का सैक्सुअल ड्राइव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, सो, वजन नियंत्रण में रखें. बहुत से कपल्स एक ही तरह के सैक्सुअल पैटर्न को फौलो करते हैं. रोजमर्रा की जिंदगी की तरह सैक्स में भी एक ही रूटीन होने से वह बोरिंग व नीरस बन जाता है. सो, रिश्तों में नई ताजगी और ऊर्जा लाने के लिए नएनए सैक्सुअल प्रयोग करते रहें.

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केले के पौधों से करें रेशा उत्पादन

  डाक्टर आरएस सेंगर

इनसानी जाति के लिए ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ा खतरा है. ग्लोबल वार्मिंग के असर को रोकने के लिए इस के प्रभाव को बदलने की जरूरत है. यह बदलाव लाने के लिए सब से अच्छा तरीका कृषि अपशिष्ट के लिए नएनए तरीकों का इस्तेमाल करना या उन्हें ढूंढ़ना है.

भारत में कटाई के बाद हर साल कचरे के रूप में तकरीबन 5 लाख टन केले के तने को बरबाद कर दिया जाता है, जबकि आधुनिक तकनीक से आसानी से केले के तनेसे फाइबर निकाल सकते हैं. इस का कपड़ा, कागज और उद्योगों में बडे़ पैमाने पर उपयोग हो सकता है. सिंथैटिक फाइबर के लिए केला फाइबर एक बहुत अच्छा प्रतिस्थापन है.

तने से फाइबर निकालना

केला फाइबर पौधे के छद्म स्टैम शीथ से निकाला जाता है. केला फाइबर निकालने के लिए मुख्य रूप से 3 तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है : मैनुअल, रासायनिक और मेकैनिकल अर्थात मशीन द्वारा.

मशीन द्वारा पर्यावरण अनुकूल तरीके से अच्छी गुणवत्ता और मात्रा दोनों के फाइबर को प्राप्त करने का सब से अच्छा तरीका है.

इस प्रक्रिया में छद्म स्टैम शीथ को एक रास्पडोर मशीन में डालने से फाइबर निकाला जाता है. रास्पडोर मशीन शीथ में मौजूद फाइबर बंडल से गैररेशेदार ऊतकों और सुसंगत सामग्री (जिसे सौक्टर के रूप में जाना जाता है) हटा देता है और आउटपुट के रूप में फाइबर देता है.

मशीन से निकालने के बाद फाइबर एक दिन के लिए छाया में सुखाया जाता है और एचडीपीई बैग में पैक किया जाता है. फिर इसे नमी और रोशनी से दूर रखा जाता है, ताकि इसे तब तक अच्छी हालत में रखा जा सके, जब तक इस का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

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केला फाइबर का उपयोग

ऐसे प्रयोजनों के लिए केले फाइबर का उपयोग किया जाता है :

* मुद्राएं, बौंड पेपर और विशेषता पत्र बनाने के लिए, जो 100 सालों तक चल सकते हैं.

* कागज उद्योग में लकड़ी कीलुगदी के लिए बहुत अच्छे प्रतिस्थापन के रूप में, क्योंकि इस में उच्च सैलूलोज सामग्री है. इस प्रकार वनों की कटाई के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करता है.

* फाइबर ग्लास के प्रतिस्थापन के रूप में समग्र सामग्री बनाने में.

* फर्नीचर उद्योग में गद्दे, तकिए और कुशन बनाने के लिए.

* बैग, पर्स, मोबाइल फोन कवर, दरवाजे मैट, परदे और योग मैट वगैरह बनाने के लिए बड़े पैमाने पर हस्तशिल्प में.

*     वस्त्रों के बनाने में.

तने से रेशा ऐसे बनाएं

केला स्टैम से बाहरी म्यान को पहले छील दिया जाता है, जिस से अंदर कीपरतें चपटी हो जाती हैं और फाइबर मैन्युअल रूप से या मशीनों के माध्यम से अलग हो जाता है. केले की उपज के ढेर से प्रसंस्करण इकाई के पास ढेर लग जाते हैं और मजदूर केले की उपजाऊ पतली तारों को इकट्ठा कर लेते हैं.

इस कटे हुए स्टैम टुकड़ों को मशीन के माध्यम से निश्चित मंच पर पारित किया जाता  है जो ताप बढ़ने पर लिग्निन और पानी की सामग्री को अलग करती है. कटा हुआ फाइबर सूखे में साफ किया जाता है और सूरज की रोशनी में सूख जाता है, जो नोट पैड, स्टेशनरी सामान, दीपक और हस्तशिल्प बनाता है.

ईको ग्रीन यूनिट ने जरमन तकनीक का इस्तेमाल कर के इस मशीनरी को तैयार किया है, जो इसे शक्ति देने के लिए 1 एचपी एकल चरण मोटर का उपयोग करता है. मशीनों को आसानी से अर्द्धकुशल महिलाओं द्वारा संचालित किया जा सकता है. यह प्रक्रिया कम रखरखाव और संचालित करने के लिए सुरक्षित है और उन की गुणवत्ता और पानी की मात्रा के आधार पर 1 किलोग्राम फाइबर निकालने के लिए तकरीबन 5-6 उपभेदों की जरूरत होती है.

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रेशे का उत्पादन

केला उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का नेतृत्व करता है, जो 13.9 मिलियन मीट्रिक टन (साल 2012) की विश्वव्यापी फसल का तकरीबन 18 फीसदी उत्पादन करता है. महाराष्ट्र और तमिलनाडु अग्रणी केला उत्पादक राज्य हैं. हालांकि तकरीबन 5,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र केले की खेती के तहत हैं. केले के स्टैम का केवल 10 फीसदी ही फाइबर में संसाधित होता है.

अगर किसान इन फाइबर प्रसंस्करण इकाइयों को केले की उपज की आपूर्ति करने का फैसला करते हैं, तो वे बिना किसी लागत के कचरे को साफकरेंगे, बल्कि उन की कमाई से भी फायदा होगा. वे 1,10,000 रुपए की लागत से किसान छोटीछोटी इकाई लगा सकते हैं, जो अर्द्धकुशल मजदूरों को रोजगार देगा.

महाराष्ट्र में खेती की जाने वाली केला उपज की गुणवत्ता फाइबर निकालने के लिए आदर्श पाई गई है. तमिलनाडु और गुजरात के तंतुओं की तुलना में वे बेहतर क्वालिटी वाले हैं और ज्यादा चमकते हैं.

फाइबर की विशेषताएं

*  केला फाइबर की उपस्थिति बांस फाइबर और रैमी फाइबर के समान है,

लेकिन इस की सुंदरता और स्पिनिबिलिटी दोनों की तुलना में बेहतर है. *   केला फाइबर की रासायनिक संरचना सैलूलोज, हैमिसैलूलोज  और लिग्निन है.

*     यह अत्यधिक मजबूत फाइबर है.

*     इस की लंबाई छोटी होती है.

*     मशीन द्वारा निकालने और कताई प्रक्रिया के आधार पर इस में कुछ चमक होती है.

*     इस का वजन दूसरे फाइबर से हलका होता है.

*     केला फाइबर में मजबूत नमी अवशोषण क्वालिटी है. यह अवशोषण के साथ ही नमी बहुत तेजी से जारी करता है.

*   यह जैव गिरावट योग्य है और इस का पर्यावरण पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है. इस प्रकार पर्यावरण अनुकूल फाइबर के रूप में बांटा जा सकता है.

*  बास्ट फाइबर कताई और दूसरों के बीच अर्द्धबुरी कताई सहित यह कताई के तकरीबन सभी तरीकों से इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

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स्टेशन पर चलता था सेक्स रैकेट : भाग 2

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वह कई दशक पहले प्रयागराज में चोरीछिपे अनैतिक काम करता था. किंतु पुलिस के बढ़ते दबाव के कारण उस ने वहां से लखनऊ आ कर शरण ली थी. तब से वह खुद को उत्तर प्रदेश का मूल निवासी बताने लगा था.

लखनऊ में इस ने ठहरने के कई अड्डे बना रखे थे. पुलिस की सख्ती होने पर वह जगह बदलबदल कर गैरकानूनी गतिविधियां संचालित करता था. इन दोनों किशोरियों के द्वारा भीख मांगने को इनकार करने पर वह इन से जिस्मफरोशी का धंधा करने को मजबूर करता था.

पुलिस को पता चला कि विजय बद्री के चंगुल में एक दरजन से अधिक नाबालिग बच्चे थे, जो इस के बताए हुए अलगअलग जगहों पर भीख मांगने का धंधा किया करते थे.

इस से पहले गाजीपुर थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा ने एक शिकायत के आधार पर विजय बद्री को 26 जुलाई, 2019 को गाजीपुर थाना क्षेत्र से पकड़ा था किंतु जमानत पर रिहा हो कर वह फिर से अपराध में मशगूल हो गया था.

पता चला कि वह युवतियों को बुरी तरह प्रताडि़त भी करता था और भीख मांगने के लिए विवश करने के लिए वह उन्हें भूखा रखता था तथा सिगरेट आदि से जलाता था.

अपने गैंग में शामिल करने के लिए वह बच्चों को खोजता रहता था. बच्चे खोजने के लिए वह खुद भी भीख मांगतेमांगते असम और बिहार तक चला जाता था. वहां कुछ दिन रुक कर कुछ सस्ते दामों में भोलीभाली गरीब बच्चियों को अपने अड्डे पर ले आता था.

वह किशोरियों से भीख ही नहीं मंगवाता था बल्कि उन से जिस्मफरोशी का धंधा भी करवाता था. वह उन्हें होटलों में भेजता था. इस से उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. बताया जाता है कि उस के पास 30 किशोरियां थीं.

विजय बद्री के गैंग में जो भी लड़कियां आती थीं, सब से पहले वह उन्हें नशे की लत लगाता था. वह उन्हें अफीम, गांजा, भांग व दारू के नशे की आदत डालता था. जब वे नशे की आदी हो जाती थीं तो वह उन्हें जिस्मफरोशी के दलदल में ढकेल देता था.

मना करने पर रात को बेहोशी में सोने के दौरान नशे के इंजेक्शन दे कर उन्हें नशेड़ी बनाता. इतना ही नहीं ब्लेड से उन किशोरियों के शरीर पर गहरा चीरा लगा कर खून निकालता फिर उस खून से पट्टियां भिगो कर अपने कटे हुए दिव्यांग अंगों पर बांध लेता जिस से लोगों को लगे कि उस के जख्मों से खून निकल रहा है. इस से उसे भीख में ज्यादा पैसे मिलते थे.

विजय बद्री दाहिने पैर से विकलांग था. उस का घुटनों से ऊपर पैर कटा हुआ था और सुबह को यह खून से भीगी पट्टी पैर के कटे हुए भाग पर बांध कर नाटक बनाने के बाद भीख मांगने के लिए खुद भी ट्रेन में निकल जाता था.

भीख मांगते समय बद्री मौका मिलते ही यात्रियों का मोबाइल आदि भी चोरी कर लिया करता था. वह विकलांग जरूर था लेकिन दिमाग से बहुत शातिर था.

गुंजा व मंजुला ने बताया कि उन्होंने कई बार मुंशी पुलिया पुलिस चौकी पर जा कर मदद की गुहार लगाई थी, किंतु पुलिस ने उन्हें हर बार डपट कर भगा दिया था. विजय बद्री ने पुलिस को बताया कि नाबालिग किशोरियां जल्दी बड़ी दिखने लगें, इस के लिए वह उन्हें रात में हारमोंस के इंजेक्शन लगाता था.

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गाजीपुर पुलिस के द्वारा विजय बद्री द्वारा बताए स्थानों की सघन तलाशी कराई गई तो पुलिस को पता चला कि आरोपी विजय बद्री तो गैंग का एक मामूली मोहरा था. उस के पीछे जिस्मफरोशी का रैकेट चलाने वाले सफेदपोश लोगों का हाथ था.

गैंग को संचालित करने वाले 3 लोगों के नाम सामने आए, जिस में एक शर्मीला नाम की औरत बताई जाती है. उस महिला ने पुलिस को बताया कि वह केवल विजय बद्री के यहां रोटीपानी के लिए काम करती थी. ये सफेदपोश लोग बाहर से युवतियां खरीद कर विजय बद्री के हाथ अड्डे पर बेच जाया करते थे. उस के बदले उन्हें बद्री मोटी रकम दिया करता था.

गाजीपुर पुलिस को छानबीन में पता चला कि विजय बद्री उर्फ बंगाली ने अब तक अपने जीवन में 30 लड़कियों को जिस्मफरोशी के  लिए चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर 10 हजार से ले कर 40 हजार रुपए तक में बेचा था.

इस काले धंधे को पूर्ण अंजाम तक पहुंचाने के लिए सीतापुर रोड के कल्याणपुर निवासी सुमेर नाम के व्यक्ति का पूरा सहयोग रहता था. गाजीपुर पुलिस ने सुमेर को पकड़ कर 18 सितंबर, 2019 को जेल भेजा था. सुमेर ने पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद शमीम नामक व्यक्ति के संपर्क में आ कर इस मानव तस्करी में लिप्त रहने की बात कबूली थी.

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सुमेर व विजय बद्री को न्यायालय में पेश किया गया जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. वहीं दोनों युवतियां गुंजा व मंजुला खातून को मोहान रोड स्थित महिला सुधार गृह और दोनों बालकों को बाल सुधार गृह में दाखिल करा दिया गया.

5 अक्तूबर, 2019 को जांच पूरी करने के बाद थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा आरोपियों के खिलाफ शीघ्र ही आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में थे.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपना अपना क्षितिज : भाग 3

कभी सत्यव्रत पुरानी बातें ले कर बैठ जाते, ‘मुझ से प्रशांत जरूर नाराज रहता होगा. प्रभावती, मैं ने उसे बहुत बुराभला कहा था इस लिखनेपढ़ने के कारण.’

अब वह खोजखोज कर प्रशांत की रचनाएं पढ़ते.

प्रभावती खुश रहने लगीं. देर से ही, पर सत्यव्रत प्रशांत की सड़ीगली किताबों के ढेर से प्रीत तो कर सके. कभीकभी मन करता कि सत्यव्रत से पूछ लें, ‘लिख दूं प्रशांत को, यहीं आ जाए. कितना सूना लगता है मेरा घर. बच्चों के आने से रौनक हो जाएगी. सुशांत की चिट्ठियां आती हैं तो उन से यही लगता है कि शेर के मुंह खून लग गया है. वह उस पराए देश का गुणगान ही करता रहता है. ऐसा लगता है जैसे वह वहीं बस जाएगा.’

पर कह कहां पातीं. डर लगता कि सत्यव्रत बुरा न मान जाएं. ऐसा न समझें कि वह उन्हें प्रशांत से पराजित करना चाहती है. शायद किसी दिन स्वयं ही कह दें, ‘प्रभा, प्रशांत को बुला लो. वह भी तो हमारा बेटा है. मैं ने उसे बहुत उपेक्षित किया. अब उस का प्रायश्चित्त करूंगा.’

पर सत्यव्रत खुद कभी न बोले. अंदर से कई बार वह उबलतेउफनते प्रशांत से मिलने के लिए उतावले हो उठते पर उसे बुला लेने की बात होंठों पर न लाते.

साल भर तो जैसेतैसे निकला. पर इस के बाद सत्यव्रत के अंदर का तनाव रोग बन कर फूट पड़ा. वह रक्तचाप के साथसाथ दमे की भी गिरफ्त में आ गए.

डाक्टरों ने उन से बहुत अधिक न सोचने, व्यर्थ परेशान न होने की ताकीद कर दी. बारबार प्रभावती को भी हिदायतें मिलीं कि वह अपने पति को व्यस्त रखें और दिमागी तौर पर प्रसन्न रखें. तब प्रभावती स्वयं को रोक न पाईं. वह समझ गईं कि बुढ़ापे के इस अकेलेपन में वह प्रशांत के लिए परेशान हैं. पुत्र को देखनेमिलने के लिए वह तड़प रहे हैं. पर अंदर के संकोच व पिता होने के अभिमान ने उन का मुंह सी रखा है.

तब प्रभावती ने प्रशांत को सब समझा कर पत्र लिख ही दिया. पत्र मिलने में 4-5 दिन लगे होंगे और अब प्रशांत उन की सेवा में वैसे ही उपस्थित हो गया, जैसे आज से पहले कुछ हुआ ही न हो. दमे से खांसते सत्यव्रत से प्रशांत ने उन का हालचाल पूछा तो उन की हालत देखने लायक हो गई. आंखों के दोनों कोर भीग गए. कैसे सिसकी भर कर रो पड़े.

प्रशांत ने उन्हें सहारा दे कर उठाया, ‘‘छि:, पिताजी, रोते नहीं. लीजिए, अपने पोते से मिलिए.’’

सत्यव्रत ने प्रकाश को बड़ी जोर से अपनी छाती से भींच कर आंखें मूंद लीं. थोड़ी देर बाद रजनी ने उन के पैरों का स्पर्श किया तो वह स्वयं को संभाल कर आंखें पोंछने लगे. कुछ मुसकरा कर उसे आशीर्वाद दिया. प्रभावती सत्यव्रत की ओर बढ़ीं और वह प्रकाश को दुलार कर पूछने लगे, ‘‘कौन सी कक्षा में पढ़ते हो?’’

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प्रकाश ने हंस कर बताया, ‘‘तीसरी में.’’

‘‘खूब, और क्याक्या करते हो?’’

‘‘मन लगा कर सितार बजाता हूं. मैं बहुत अच्छा सितारवादक बनूंगा, दादाजी.’’

प्रभावती सन्न रह गईं, कहीं सत्यव्रत बिदक न पड़ें. अभी प्रशांत के प्रति जो थोड़ाबहुत पिघलाव शुरू हुआ है वह फिर हिम न हो जाए. ऐसा हुआ तो वह कभी प्रशांत के साथ रहना पसंद नहीं करेंगे. वह कुछ कहतीं, उस से पहले ही प्रशांत ने थोड़ा झेंप कर सफाई दी, ‘‘क्या कहूं, पिताजी, बहुत चाहता हूं कि यह पढ़ाई ज्यादा करे और शौक कम पूरे करे, पर यह मानता ही नहीं. सोचता हूं कि इसे डाक्टर बना कर अपने डाक्टर न होने की आप की शिकायत दूर कर दूंगा.’’

‘‘कोईर् बात नहीं,’’ सत्यव्रत ने सब की इच्छा के विपरीत प्रभावती से कहा, ‘‘तुम तो अच्छा सितार बजाती हो, प्रभा, तुम इस की मदद करना. यह भी प्रशांत की तरह हमारा नाम रोशन करेगा.’’

प्रभावती की आंखें भर आईं. प्रशांत ने चकित हो कर पूछा, ‘‘मगर सितार बजाने भर से यह क्या कर लेगा, पिताजी?’’

सत्यव्रत ने बहुत दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘यह सोचना तुम्हारा काम नहीं है. इस के पंख काट कर इस की उड़ान मत रोको. प्रशांत, जो गलती कल मैं करता रहा, उसे आज तुम मत दोहराओ. मन के सुर जिस प्रकार बजना चाहते हैं उन्हें उसी प्रकार बजने दो. यह मत समझो कि यह डाक्टर- इंजीनियर नहीं बन सका तो इस की उड़ान खत्म हो गई. नहीं बेटे, नहीं. यह सोचना बड़ी भूल है.

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‘‘मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारी कला को कोई विकास नहीं दे सका. अगर मैं ने तुम्हारी कोई मदद की होती तो आज तुम वहां होते, जहां 20 साल बाद होगे. हम अपनी इच्छा मनवाने के चक्कर में भूल जाते हैं कि जिसे ऊपर उठना होता है, वह अपना क्षितिज स्वयं ही ढूंढ़ लेता है. तुम्हीं बोलो, सूरज को आकाश में कौन चढ़ाता है? कोई भी तो नहीं. वह खुद ही ऊंचाइयों की तरफ उठता चला जाता है.

अपना अपना क्षितिज : भाग 2

सत्यव्रत उसे देखदेख कर निहाल होते रहते थे. पड़ोसियों में बखान करते और दोस्तों से तारीफ करते न अघाते. सुशांत से तुलना कर के वह प्रशांत को नीचा दिखाते रहते. सुशांत प्रशांत से सिर्फ 1 साल ही छोटा था. पर दोनों एक ही कक्षा में थे. दोनों ने एकसाथ ही मेडिकल में दाखिले के लिए तैयारियां की थीं और साथ ही परीक्षाएं दी थीं. नतीजा निकला तो प्रशांत असफल था और सुशांत सफल. सुशांत आगे की पढ़ाई के लिए मुजफ्फरपुर रवाना हो गया. प्रशांत अपनी असफलता के साथसाथ पिता के व्यंग्य बाणों से घायल अपने कमरे में बंद हो गया.

प्रभावती चीख कर बोली थीं, ‘इसीलिए तो कहा था, इसे जो राह पसंद है उसी पर चलने दो. जिस पढ़ाईर् में इस की रुचि नहीं है उस में धक्के दे कर मत चलाओ.’

‘इस की अपनी कोई राह नहीं है. मेहनत से जी चुराने की सजा इस ने पाईर् है. पूरे समाज में इस ने मेरी नाक कटवा दी है. तुम्हें कुछ पता है कि क्या करेगा यह आगे? कलम घिसेगा कलम, बस.’

‘कौन जानता है, कलम घिसते- घिसते यह कहां से कहां पहुंच जाए. सुशांत ने अगर तुम्हारी डाक्टरी की लाइन पकड़ ही ली है तो क्या हुआ. प्रशांत भी मनचाहे क्षेत्र में कहीं ज्यादा सफल हो. तुम साहित्यकारों, कवियों के महत्त्व को नकारते क्यों हो?’

ऐसी बहसों से सत्यव्रत प्रभावती की ओर से बेटे को मिलने वाली तरफदारी समझते. वह कहते, ‘मैं उसे राह दिखाता हूं तो तुम्हें बुरा लगता है. क्या मेरा बेटा नहीं है वह? किसी भी पौधे के विकास के लिए उस की काटछांट जरूरी है. वही काम मैं भी कर रहा हूं.’

प्रभावती को कहना ही पड़ता, ‘पर काटछांट इतनी अधिक न करें कि पौधे का विकास ही न होने पाए.’

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पर अपनी जिद पर अडे़ सत्यव्रत ने प्रशांत से फिर डाक्टरी में प्रवेश की तैयारी कराई, पर नतीजा फिर वही निकला. तीसरी बार प्रशांत ने जबरदस्ती तैयारी नहीं की. मन में पिता के प्रति एक विद्रोह, एक क्रोध लिए प्रशांत उन दिनों  भटकने लगा था. न वह ढंग  से खातापीता था न सोता था और न घर में रहता था. देर रात तक वह घर से बाहर रहता. यहां तक कि घर के सदस्यों से उस की बातचीत भी बंद हो जाती. पिता की तो वह सूरत भी नहीं देखना चाहता था.

जब सत्यव्रत ने प्रशांत का यह रूप देखा तो धीरेधीरे उस के प्रति उन का रुख बदलता गया. अब वह केवल सुशांत की देखरेख में खोए रहने लगे. प्रशांत की ओर से उन का मन खट्टा हो गया. अपने बेटे के रूप में मात्र कलम घिस्सू की कल्पना न उन से होती थी और न ही किसी के पूछने पर उन से यह परिचय ही दिया जाता था.

कई बार तो वह मित्रों में बस, सुशांत की चर्चा करते. प्रशांत की बात गोल कर जाते. कोई बहुत जोर दे कर प्रशांत से मिलने की चर्चा करता तो उस की मुलाकात सुशांत से करवा कर झट से बहाना बना देते, ‘प्रशांत घर पर नहीं है.’

प्रभावती का मन चूरचूर हो जाता और प्रशांत पंख कटे पंछी सा छटपटाता  रह जाता. सत्यव्रत अब जैसे सुशांत के लिए ही जी रहे थे. जब तक सुशांत  घर में रहता, वह उस के लिए एकएक चीज का ध्यान रखते.

प्रशांत यह सब देखदेख कर कटता रहता, फिर भी वह पिता की किसी बात का विरोध न करता. भले ही सत्यव्रत उस की रुचि को जिद का नाम दे कर अपने और पुत्र के मध्य निरर्थक विवादों को जन्म दे बैठते.

यह केवल प्रभावती ही समझ सकती थीं कि प्रशांत की रुचि किस चीज में है. ऐसे में वह सदा ही अपने पति को दबा कर रखतीं और प्रशांत के लिए वह सब करतीं जो सत्यव्रत सुशांत के लिए किया करते और चाहतीं कि प्रशांत यही जाने कि पिता ने उस के लिए वह सब किया है.

ऊंची आकांक्षाआें के बीच तनाव की कंटीली दूरियां तय करतेकरते दिन भागते गए. प्रशांत साहित्यकार के रूप में स्थापित हो चुका था और सुशांत डाक्टर बन चुका था. अब दोनों घर पर ही मौजूद रहते. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों भाइयों में मतभेद पैदा होने लगे. गांव और महल्ले वाले भी सत्यव्रत की देखादेखी प्रशांत और सुशांत की तुलना कर उन में नीचे और ऊपर की सीमा खींचने लगे थे.

असल में खींचातानी तो तब शुरू हुई जब सुशांत अपनी डाक्टर पत्नी लाया और प्रशांत अपने ही साहित्य की प्रशंसिका ब्याह लाया. घर में प्रशांत का कम मानसम्मान और सुशांत की अधिक इज्जत प्रशांत की पत्नी को हिलाने लगी थी. स्वयं सुशांत और उस की पत्नी पूनम को भी प्रशांत का यह कह कर परिचय देना कि साहित्यकार है, अच्छा न लगता.

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रोजरोज के इस मानअपमान ने प्रशांत को इतना परेशान कर दिया कि एक दिन उस ने घर ही छोड़ दिया. तब रजनी की गोद में 9 महीने का प्रकाश था. प्रभावती के चरण छू कर उस ने कहा था, ‘मां, जब भी तुम्हें मेरी जरूरत हो, मुझे बुला लेना.’

प्रशांत के जाने के 1 वर्ष बाद ही  सत्यव्रत सेवानिवृत्त हो गए थे. कुछ सालों तक घर आसानी से चलता रहा था. सुशांत और पूनम के हंसीठहाके, सत्यव्रत की परम संतोषी मुद्रा, इन सब के बीच अपने एक पुत्र के विछोह के क्लेश को मौन रूप से झेलती प्रभावती बस, जीती थीं, एक पत्थर की तरह. कभीकभार पत्रपत्रिकाओं में अपने पुत्र की प्रशंसा देखपढ़ कर पलभर के लिए उन्हें सुकून मिल जाता था.

धीरेधीरे समय ने करवट बदली. सुशांत को अपने विषय में शोध के लिए 3 वर्ष अमेरिका जाने का अवसर मिला. वह मांबाप को आश्वासन देता हुआ पूनम के साथ चला गया.

अब घर में केवल सत्यव्रत और प्रभावती के साथ अकेलापन रह गया.

सत्यव्रत किताबें पढ़ कर वक्त काटने लगे थे. घर में जितनी किताबें थीं, सब प्रशांत की सहेजीसंजोई हुई थीं. प्रशांत द्वारा अलगअलग पन्नों पर खींची गई लकीरों को देख और कुछ अपनी ओर से लिखी गई टिप्पणियों को पढ़ कर सत्यव्रत मुसकराते. प्रभावती मन ही मन डरतीं कि ऐसा न हो कि वह पुन: इन पुस्तकों को पढ़ कर प्रशांत का मजाक उड़ाने लगें. पर ऐसा नहीं हुआ. किताबों के साथ वक्त काटने के चक्कर में वह किताबों के दोस्त होते गए. दिन ही नहीं रात में भी कईकई घंटे वह आंखों पर चश्मा चढ़ाए किताबें पढ़ते रहते. कई बार वह चकित हो कर कह उठते, ‘अरे, इन किताबों में तो बहुत कुछ है. मत पूछो क्या मिल रहा है इन में मुझे. मैं तो सोचा करता था कि लोगों का वक्त बेकार करने के लिए इन पुस्तकों में केवल ऊलजलूल बातें भरी रहती हैं.’

प्रभावती चकित हो कर उन्हें सुनतीं, फिर रो पड़तीं. अब कभीकभी वह उस से पूछने भी लगे थे, ‘प्रशांत की कोई रचना अब देखने को नहीं मिलती. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस ने लिखना बंद कर दिया हो. उस से कहो, वह कुछ लिखे. ऐसी ही कोई शानदार चीज जैसी मैं पढ़ रहा हूं.’

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कभीकभी तो सत्यव्रत आधी रात को पत्नी को उठा कर कहते, ‘परसों प्रशांत की एक कहानी पढ़ी थी. एक प्रशंसापत्र उसे अवश्य डाल देना अपनी ओर से. इस से हौसला बढ़ता है.’

आगले भाग में पढ़ें- सूरज को आकाश में कौन चढ़ाता है?

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