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अपना अपना क्षितिज : भाग 1

सत्यव्रत ने अपने सपनों को बेटे प्रशांत पर थोपने का प्रयास कर बापबेटे के रिश्तों में कड़वाहट भर ली थी. बरसों बाद प्रशांत भी अपने मासूम बेटे पर अपने पिता के सपने को थोपने लगा तो सत्यव्रत तड़प उठे…

प्रशांत को देखते ही प्रभावती की जान में जान आ गई. प्रशांत ने भी जैसे ही मां को देखा दौड़ कर उन के गले लग गया, ‘‘मां, यह कैसी हालत हो गई है तुम्हारी.’’

प्रभावती के गले से आवाज ही न निकली. बहुत जोर से हिचकी ले कर वह फूटफूट कर रो पड़ीं. प्रशांत ने उन्हें रोकने की कोई चेष्टा नहीं की. इस रोने में प्रभावती को विशेष आनंद मिल रहा था. बरसों से इकट्ठे दुख का अंबार जैसे किसी ने धो कर बहा दिया हो.

थोड़ी देर बाद धीरे से  प्रशांत स्वयं हटा और उन्हें बैठाते हुए पूछा, ‘‘मां, पिताजी कहां हैं?’’

‘‘अंदर,’’ वह बड़ी कठिनाई  से बोलीं. एक क्षण को मन हुआ कि कह दें, पिताजी हैं ही कहां. पर जीभ को दांतों से दबा कर खुद को बोलने से रोक लिया. सच बात तो यह थी कि वह अपने जिस पिता के बारे में पूछ रहा था वह तो कब के विदा हो चुके थे. अवकाश ग्रहण के 2 माह बाद ही या एक तरह से सुशांत के पैरों पर खड़ा होते ही उन की देह भर रह गई थी और जैसे सबकुछ उड़ गया था.

अपनी आवाज की एक कड़क से, अपनी भौंहों के एक इशारे से पिताजी का जो व्यक्तित्व इस्पात की तरह सब के सामने  बिना आए ही खड़ा हो जाता था, वह पिताजी अब उसे कहां मिलेंगे.

प्रशांत दूसरे कमरे की ओर बढ़ा तो तुरंत प्रभावती के पैरों पर रजनी आ कर झुक गई और साथ ही 7 बरस का नन्हा प्रकाश. उन्होंने पोते को भींच कर छाती से लगा लिया. मेले में बिछुड़ गए परिवार की तरह वह सब से मिल रही थीं. पूरे 7 साल बाद प्रशांत और रजनी से भेंट हो रही थी. वह प्रकाश को तो चलते हुए पहली बार देख रही थीं. उस की डगमग चाल, तुतलाती बोली, कच्ची दूधिया हंसी, यह सब वह देखसुन नहीं सकी थीं. साल दर साल केवल उस के जन्मदिन पर उन के पास प्रकाश का एक सुंदर सा फोटो आ जाता था औैर उन्हें इतने से ही संतोष कर लेना पड़ता था कि अब मेरा प्रकाश ऐसे दिखाई देने लगा है.

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7 साल पहले जब वह कुल 9 माह का था, तभी प्रशांत घर छोड़ कर अपने परिवार को ले कर वहां से दूर बंगलौर चला गया था. इस अलगाव  के पीछे मुख्य कारण था प्रशांत और सुशांत की आपसी नासमझी और उन के पिता द्वारा बोया गया विषैला बीज. सुशांत डाक्टर था और प्रशांत कालिज में शिक्षक. बस, यही अंतर दोनों के मध्य उन के पिता के कारण बड़ा होता चला गया और इतना बड़ा कि फिर पाटा न जा सका.

उन के पिता सत्यव्रत शुरू से ही चाहते थे कि दोनों बच्चे डाक्टर बनें. इस के लिए उन्होंने अपनी सीमित आय की कभी परवा नहीं की. उन का बराबर यही प्रयत्न रहा कि उन के बच्चों को कभी किसी चीज का अभाव न खटके.

सत्यव्रत दफ्तर से लौटने के बाद बच्चों की पढ़ाई  पर ध्यान देते. उन का पाठ सुनते, उन्हें समझाते, उन की गलतियां सुधारते, उन्हें स्वयं नाश्ता परोसते, उन के कपड़े बदलते, बत्ती जलाते, मसहरी लगाते पुस्तकें खोल कर रखते. बच्चे पढ़तेपढ़ते सोने लगते तो पंखा चला देते. दूध का गिलास थमाते. कभी अपने हिस्से का दूध भी दोनों के गिलास में उडे़ल देते. सोचते, ‘बहुत पढ़ते हैं दोनों. गिलास भर दूध से इन का क्या होगा.’

भविष्य के दर्पण में उन्हें 2 डाक्टर बेटों का अक्स दिखाई पड़ता और वह दोगुनेचौगुने गर्व से झूम उठते. अपने इस सपने को बुनने में बस, इसी बात का कोई ध्यान नहीं रखा कि असल में उन के बेटे क्या चाहते हैं. उन की रुचि किस बात में है, डाक्टर बनने में या इंजीनियर अथवा कुछ और बनने में.

सत्यव्रत इस मामले में एक तानाशाह की तरह थे. जो सोच लिया वह बच्चों को पूरा करना ही है. वह सदा यही सोच कर चलते थे, पर ऐसा हो कहां सका. बड़े लड़के प्रशांत को डाक्टर बनने में कोई रुचि  नहीं थी. उस का कविताओं, कहानियों, पेंटिंग, साहित्य में खूब मन लगता था. कई बार वह पढ़ाई  के ही मध्य में आड़ीतिरछी लकीरें खींचता पकड़ा जाता था. कभी रेखागणित की आकृतियां बनातेबनाते पन्ने पर कविता लिखने लगता था.

सत्यव्रत की नजर उस पर पड़ जाती तो जैसे आग में घी पड़ जाता. खूब कस कर धुनाई होती उस की. खाना बंद कर दिया जाता. उसे सोने नहीं दिया जाता. यहां तक कि प्यास से उस का कंठ सूखने लगता, पर वह नल में मुंह नहीं लगा सकता था.

वह अकसर कहा करते, ‘साहित्य, पेंटिंग, कविता भी कोई विषय हैं?’

प्रभावती सन्न रह जातीं. हाथ जोड़ कर कहतीं, ‘मेरे बेटे को इतना मत सताओ.  उस की तो तारीफ होनी चाहिए कि वह इतनी बढि़या कहानियां लिखता है. तुम्हें कब अक्ल आएगी पता नहीं.’

‘कविता, कहानी से पेट नहीं भरता,’ वह चीख कर कहते, ‘जानती हो न कि कितने कवि और लेखक भूखों मरते हैं?’

वह इतने से ही बस न करते. कहते, ‘मैं जानता हूं, तुम्हीं प्रशांत का दिमाग बिगाड़ रही हो. पर अच्छी तरह समझ लो इसे कवि या शिक्षक नहीं, डाक्टर बनना है. इस का भोजन अभी तो एक दिन ही बंद हुआ है, कभी हफ्ते भर भी बंद किया जा सकता है.’

डर से प्रभावती के हाथ फूल जाते, क्या कहें बेटे को. हर व्यक्ति एक ही बात को आसानी से नहीं सीख सकता. किसी के लिए हिसाब आसान है तो किसी के लिए इतिहास. प्रकृति ने सब की समझ का पैमाना एक कहां रखा है? पर वह यह भेद अपने पति को न समझा पातीं. उन्हें  तमाशाई  बन कर चुपचाप सबकुछ देखना, सहना पड़ता.

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सब से बुरी हालत तो प्रशांत की हो गईर्र्  थी. अपनी और पिता की इच्छाओं के मध्य वह झूलता रहता था. न वह कविता लिखना छोड़ सकता था न पिता की तमन्ना पूरी करने से पीछे हटना चाहता था. दिनरात किताब उस की आंखों के आगे लगी रहती थी. इस चक्कर में आंखों पर मोटे फे्रम का चश्मा चढ़ गया था. चेहरे की चमक खो गई थी. वह किसी से कुछ कहता नहीं था. बस, भीतर ही भीतर छटपटाता रहता था.

इस के विपरीत सुशांत की आंखोंं के आगे बस, एक ही सपना तैरता रहता था, डाक्टर बनने का. उस के लिए उसे न पिता से मदद लेने की जरूरत थी न मां से. प्रशांत को बड़ी तेजी से पीछे छोड़ता हुआ सुशांत अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था.

अगले भाग में पढ़ें-  इसे जो राह पसंद है उसी पर चलने दो

शुभारंभ: राजा-रानी के बीच बढ़ती गलतफहमियाँ, क्या तोड़ देंगी दोनों के बीच शादी के बंधन को

कलर्स के शो, ‘शुभारंभ’ में राजा-रानी के रिश्ते में गलतफहमियों का दौर एक बार फिर शुरू हो गया है. कीर्तिदा की राजा-रानी को अलग करने की कोशिश कामयाब होती दिखाई दे रही है. वहीं उत्सव की एक गलती रानी की शादीशुदा जिंदगी के लिए मुसीबत बन गई है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा आगे…

उत्सव ने खोला आशा का राज़

अब तक आपने देखा कि राजा के उत्सव के चोरी करने के मामले को शांत करने के बावजूद मेहुल और हितांक, रानी और उसके परिवार को बेइज्जत करना बंद नही करते. वहीं उत्सव 50 लाख की लौटरी का राज़ खोलते हुए कहता है कि राजा की माँ, आशा ने राजा और रानी की शादी लौटरी के पैसों के लिए करवाई थी.

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राजा-रानी ने उठाया एक कदम

उत्सव को पकड़वाने के लिए रेशमिया परिवार पुलिस बुलाता हैं, लेकिन रानी अपने भाई का इल्ज़ाम अपने सिर लेते हुए कहती है कि चोरी के प्लान में वो भी शामिल थी. साथ ही रानी ये भी कहती है कि उसने राजा से शादी पैसों के लिए की है.वहीं आशा के मुंह से शादी का सच सुनने के बाद राजा भी झूठ कहता है कि उसने रानी से शादी लौटरी के पैसों के लिए की है. ताकि दोनों अपने परिवार को बेइज्जती से बचा सकें. लेकिन इन सब चीजों के कारण राजा-रानी के बीच गलतफहमियों का सिलसिला फिर से शुरू हो जाता है.

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आशा पर भड़केगा राजा

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि कीर्तिदा को तिजोरी की चाबियाँ सौंप कर रानी राजा का घर छोड़ देगी. दूसरी ओर, राजा, आशा पर भड़कते हुए कहेगा कि उसने ऐसा क्यों किया, जबकि आशा बताएगी कि उसने ऐसा राजा की आर्थिक सुरक्षा के लिए किया.

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कीर्तिदा चलेगी नई चाल

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राजा और रानी के अलग होने के बाद जहाँ गुणवंत और कीर्तिदा खुशी मनाते हैं तो वहीं आगे राजा-रानी का रिश्ता पूरी तरह खत्म करने के लिए नई प्लानिंग भी करते हैं.

अब देखना ये है कि क्या शादी के बाद, राजा और रानी के बीच बढ़ती गलतफहमियाँ बन जाएंगी दोनों की शादी के टूटने का कारण.  जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

लंबे और खूबसूरत नाखून पाने लिए अपनाएं ये 5 उपाय

हाथों की खूबसूरती लंबे नाखूनों से बढ़ती है. पर इसके लिए नाखून का मजबूत और शेप में होना बेहद जरूरी है. लंबे नाखूनों को आप तरह-तरह के नेल आर्ट भी बनाकर सजा सकती हैं.लेकिन बहुत-सी लड़कीयों की शिकायत रहती है कि उनके नाखून बढ़ने के साथ ही टूट जाते हैं. ऐसे में कभी भी उन्हें परफेक्ट शेप मिल ही नहीं पाती जिसकी उम्मीद होती है.

पर क्या आपने कभी ये सोचा है कि नाखून टूटते क्यों हैं? कई बार हार्मोनल कारणों की वजह से भी नाखून टूट जाते हैं. आइए आपको बताते हैं कि आप खूबसूरत नाखून पाने के लिए क्या कर सकती हैं.

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  1. संतरे का रस और अंडे की सफेदी

अंडे के सफेद हिस्से को एक कटोरी में निकाल लें. इसमें दो चम्मच संतरे का रस मिला लें. इस घोल को अपने नाखूनों पर 5 मिनट तक लगा कर छोड़ दें. इसमें विटामिन सी होता है जो कोलजिन का प्रोडक्‍शन करता है जिससे नाखून मजबूत बनते हैं.

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2. एप्‍पल साइडर वेनिगर

एक चम्‍मच घिसा लहसुन लें और उसमें एक चम्‍मच एप्‍पल साइडर वेनिगर मिलाएं. इसे अपने नाखूनों पर लगाकर 10 मिनट के लिए छोड़ दें. इसके बाद हाथों को साफ पानी से धो लें.

3. औलिव औयल से करें मसाज

अपने नाखूनों पर जैतून का तेल लगा कर मालिश करें. इसमें विटामिन ई होता है जो नाखूनों को पोषण प्रदान करता है जिससे नाखून तेजी से बढ़ते हैं.

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4. लहसुन के इस्तेमाल से

लहसुन की एक कली लें. उसके छिलके उतार दें. कली को बीच में से काट ले और इसे अपने नाखूनों पर 10 मिनट तक रगड़ें. ऐसा करने के 10 दिन के भीतर ही आपको रिजल्ट दिखने लगेगा.

5. नारियल का तेल

नारियल तेल में फैटी एसिड तथा अन्‍य पोषण तत्व पाए जाते हैं, जिससे नाखूनों की मसाज करने पर फायदा होता है.

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‘बंकर’ : नेक इरादे, मगर मकसद से परे

रेटिंग : दो स्टार

निर्माताः गौरव गुप्ता

निर्देशकः जुगल राजा

कलाकारः अभिजीत सिंह, अरिंधिता कालिता, अरनव तिमसीनिया, देव रोंसा और बेबी यशवी वारिया

अवधिः एक घंटा 38 मिनट  

फिल्मकार जुगल राज अपनी फिल्म ‘‘बंकर’’ देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर तैनात सशस्त्र सैनिकों पर केंद्रित है. हर सैनिक अपनी भावनाओं पर लगाम लगाकर युद्ध के मैदान पर डटा रहता है. जबकि उसके पास कहने को बहुत कुछ होता है. जुगल राज का मकसद लाखों सैनिकों की अनसुनी कहानियों को जन जन तक पहुंचाना है. वह अपनी इस फिल्म को ‘‘युद्ध विरोधी @एंटी वार फिल्म के रूप में प्रचारित करते आए हैं, मगर फिल्म में काफी विरोधाभास है.

कहानीः

फिल्म की कहानी पुंछ (कश्मीर) पर भारतीय सेना की बटालियन नंबर 42 के बंकर पर रात के अंधेरे में घुसपैठियों @आतंकवादियों द्वारा युद्धविराम समझौते का उल्लंघन कर हमला किया जाता है और इनका मकसद इस बंकर पर कब्जा करना है. इस हमले का मुंह तोड़ जवाब देते हुए सुबेदार सुखराम (अरनव तिमसिना) व एक अन्य सैनिक शहीद हो जाता है. जबकि  लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह (अभिजीत सिंह) अकेले जीवित बचते हैं, मगर वह गंभीर रूप से घायल हैं. एक पैर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है. वह दोनों आंखों से देख नहीं पा रहे हैं तथा उनके पैर में एक जीवित शेल से बंधा हुआ है. वह अपने दिल, आत्मा और पराक्रम से लड़ते हैं. एक तरफ वह अपने तरीके से जावेद नामक एक आतंकवादी के बंकर के अंदर घुसने पर उसे मौत की नींद सुला देते हैं, तो दूसरी तरफ वह बार बार अपने उच्च अधिकारियों से फोन पर सैन्य मदद मांगते रहते है. सैन्य मदद निकली है, मगर वह आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रही है. बीच बीच में विक्रम सिंह को अपनी पत्नी स्वरा सिंह (अरिंधिता कलीता) व चार साल की बेटी गुड़िया की याद आती है. उनसे हुई पिछली बातें याद आती हैं. वह अपनी पत्नी व बेटी से आठ माह से नहीं मिले हैं.

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लेखन व निर्देशनः

फिल्म की गति अति धीमी है और ऐसा लगता है कि फिल्मकार ने एक नेक विचार के साथ फिल्म बना डाली, मगर उसको ठीक से प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक शोधकार्य कर एक रोचक विस्तृत कहानी नहीं जुटा पाए. फिल्मकार युद्ध की निरर्थकता को सामने लाने का दावा करते हैं, मगर यह पूरी फिल्म आतंकवादियों से मुठभेड़ और इस मुठभेड़ में कई सैनिकों के मारे जाने की कहानी है. फिल्म में युद्धग्रस्त क्षेत्र के नतीजों पर चर्चा करने के लिए कभी नहीं मिलते हैं. दूसरी बात फिल्मकार का मकसद शत्रुतापूर्ण माहौल में सीमा पर डटे रहने वाले सैनिकों के मानसिक स्वास्थ्य व भावनात्मक स्थितियों को उजागर करना है, मगर फिल्म इस तरफ दर्शकों का ध्यान खींचने में असफल रहती है. बहादुर सैनिकों के परिवारों को अपने प्रियजनों को खोने का दर्द व सीमा पर तैनाती के समय कई माह तक न मिल पाने के दर्द व अन्य मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं को भी यह फिल्म सही अंदाज में उकेरने में विफल रहती है. इतना ही नही लेफ्टीनेट विक्रम सिंह के चेहरे पर इतना खून वगैरह जमा हुआ लगातार दिखाया गया है कि दर्शक उससे अपना मुंह फेर लेता है. पटकथा काफी कमजोर है.

अभिनयः

लेफ्टीनेंट विक्रम सिंह के किरदार अभिजीत सिंह ने बहुत ज्यादा प्रभावित करने वाला अभिनय नहीं किया है. वह किरदार की तीव्रता और उस स्थिति की भयावहता के साथ न्याय नहीं कर पाए. अन्य कलाकारों के चरित्र ठीक से उभरे ही नहीं.

फिल्म में रेखा भारद्वाज द्वारा स्वरबद्ध  गीत ‘लौट के घर जाना है’’ जरुर दिल को छू लेता है.

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BIRTHDAY SPECIAL: सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म ‘शेरशाह’ का फर्स्ट लुक जारी, देखें यहां

बर्थडे स्पेशल बौलीवुड के स्पोर्टी और फिट बौडी वाले हैंडसम एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा  का 16 जनवरी यानी आज अपना 35वां बर्थडे मना रहे हैं. इस खास मौके पर उनकी अपकमिंग फिल्म ‘शेरशाह’ का फर्स्ट लुक भी रिलीज कर दिया गया है. जिसमे वह जांबाज आर्मी कैप्टन विक्रम बत्रा के फौजी लुक में नजर आ रहे हैं.

सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेरशाह का फर्स्ट लुक शेयर किया है. सिद्धार्थ ने लुक शेयर करते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा को श्रद्धांजलि दी है. उन्होंने लिखा, ‘बहादुरी और शहादत के अलग-अलग रंगों को बड़े स्क्रीन पर उकेरना मेरे लिए सम्मान की बात है. कैप्टन विक्रम बत्रा की जीवन यात्रा को श्रद्धांजलि और उनकी अनकही कहानी को सभी के सामने ला रहे हैं.’

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फिल्म ‘शेरशाह’ का फर्स्ट लुक करण जौहर ने भी अपने ऑफिशल ट्विटर हैंडल से शेयर किया है. फर्स्ट लुक में करण ने फिल्म के दो पोस्टर्स शेयर करते हुए लिखा, ‘करगिल युद्ध के हीरो और हम इस फिल्म के जरिए हमारी श्रद्धा और सम्मान अर्प‍ित करते हैं.’

फिल्म ‘शेरशाह’ 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ी गई करग‍िल युद्ध के वीर जवान शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की जिंदगी पर आधारित है.इस फिल्म में  सिद्धार्थ मल्होत्रा कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके भाई विशाल बत्रा के डबल रोल में नजर आएंगे. फिल्म में कियारा आडवाणी उनकी मंगेतर डिंपल चीमा का किरदार निभा रही हैं.

 

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इसके अलावा जावेद जाफरी, हिमांशु मल्होत्रा और परेश रावल भी नजर आएंगे. परेश रावल भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के रूप में नजर आएंगे.  विष्णु वर्धन के निर्देशन में बनीं शेरशाह 3 जुलाई को रिलीज हो रही है. फिल्म को करण जौहर, हीरू जौहर, अपूर्वा मेहता, शब्बीर बॉक्सवाला, अजय शाह और हिमांशु गांधी ने प्रोड्यूस किया है.

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छोटी सरदारनी: परम की बीमारी का सच जानने के बाद क्या होगा मेहर का अगला कदम?

कलर्स के शो छोटी सरदारनी में सरब हर तरह से कोशिश कर रहा कि मेहर को परम की बीमारी का सच पता ना लग पाए, लेकिन मेहर को आखिरकार परम का सच पता चल गया है. परम के बारे में जानने के बाद क्या होगा मेहर का अगला कदम आइए आपको बताते हैं….

मेहर को पता चलता है परम की बीमारी का सच

अब तक आपने देखा कि डौक्टर संजना डोनर के साथ-साथ परिवार के किसी भी सदस्य का ब्लड टैस्ट परम के साथ मैच नही होने की बात बताती है, जिससे सरब और ज्यादा घबरा जाता है. वहीं मेहर, सरब के चेहरे को देखकर समझ जाती है कि वह कुछ छिपा रहा है. आखिर में मेहर सच का पता लगाने के लिए अपना भेष बदलकर सरब का पीछा करती है. वहीं सरब उसे परम का डोनर समझकर परम की हालत बयां कर देता है.

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मेहर करेगी परम के लिए ये फैसला

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आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि परम की बीमारी का सच जानने के बाद मेहर डौक्टर से कहेगी कि वह अपना लीवर परम को देने के लिए तैयार है क्योंकि परम का खून उसके खून से मिलता है. वहीं डौक्टर मेहर की प्रेग्नेंसी की हालत देखकर, उसे परम का डोनर मानने से इंकार कर देगी.

पिकनिक पर जाने की जिद करेगा परम

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डोनर ढूंढने में लगे मेहर और सरब, परम को हर तरह से खुश रखने की कोशिश कर रहे हैं. इसी बीच परम अपने स्कूल पिकनिक पर जाने की बात कहेगा, लेकिन सरब इस बात को पूरी तरह इंकार कर देगा, जिससे परम दुखी हो जाएगा. वहीं परम को दुखी देखकर मेहर उसे पिकनिक पर ले जाने का वादा करेगी.

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अब देखना ये है कि क्या मेहर डौक्टर के मना करने के बावजूद परम को अपना लीवर देगी? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवाररात 7:30 बजेसिर्फ कलर्स पर.

घर पर बनाएं मसाला पराठा

मसाला पराठा, सादे पराठे का ही एक अलग रूप है, जो खाने में काफी टेस्‍टी लगता है. जिस दिन आपका मन पराठे खाने का करें, उस दिन आटा सानते वक्‍त उसमें कुछ मसाले मिक्‍स कर दें और मसाला पराठा बनाएं.

सामग्री-

2 कप गेहूं का आटा

1 चम्मच तेल

¼ चम्मच जीरा

¼ चम्मच अजवाइन

¼ चम्मच कुटी हुई काली मिर्च

¼ चम्मच लाल मिर्च पाउडर

¼ चम्मच हल्दी पाउडर

आधा चम्मच गरम मसाला पाउडर

आधा चम्मच अमचूर पाउडर

¾ 1 कप पानी

घी या तेल

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बनाने की विधि- 

2 कप आटा लें, उसमें सभी मसाले मिक्‍स करें. फिर उसमें 1 चम्‍मच तेल और आधा कप पानी डाल कर साने.

आटा सानते वक्‍त जितने पानी की जरुरत हो, उतना मिलाएं.

आटे को गीले कपड़े से ढंक कर 30 मिनट के लिये रख दें.

फिर इससे लोई ले कर पराठे बनाएं और तवे पर घी या तेल लगा कर दोंनो ओर सेंके.

जब पराठे गोल्‍डन हो जाएं तब गैस बंद कर दें. इसी तरह से सारे पराठे बना लें.

फिर इन्‍हें सब्‍जी या आम के अंचार के साथ सर्व करें. मसाला पराठा, सादे पराठे का ही एक अलग रूप है, जो खाने में काफी टेस्‍टी लगता है.

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बैंक और कर्ज संबंधी बातें

बैंक शब्द की उत्पत्ति इटैलियन शब्द बेंको से हुई. बेंको का मतलब बैंच होता है, जिस पर बैठ कर रुपएपैसे के लेनदेन की बात की जाती है. यानी, आजकल के सेठ लोगों की गद्दी या गल्ला.

कर्ज लेने के लिए बैंक लोन एक बेहतरीन तरीका है अपने जीवन में वह सब खरीदने, बनाने, और पाने का, जिस के आप ने सपने देखे हों. आप बैंक ऋ ण लेते हैं क्योंकि हर महीने आप के पास छोटी रकम तो होती है पर एकमुश्त बड़ी रकम नहीं होती.

रिटेल ऋण

आप ने हर बैंक में लगा यह इश्तिहार जरूर देखा होगा – ‘लोन लीजिए, सपने पूरे कीजिए.’

यह इश्तिहार रिटेल लोन यानी घरगृहस्थी से जुड़े लोन के लिए होता है. सभी बैंकों के व्यापार का आधार उस का व्यापक जनाधार होता है. बड़े कर्जों के लिए बैंकों की रणनीति बिलकुल अलग होती है और विशेष शाखाएं भी.

जितना ज्यादा लोन पोर्टफोलियो का आधार बड़ा होगा, उतना ही बैंकों का जोखिम, बंट कर कम हो जाएगा. सीधे शब्दों में कहें तो, एक व्यक्ति को एक करोड़ रुपए का लोन देने से अच्छा है 10 लोगों को 10-10 लाख रुपए दिए जाएं. अब दसों लोग एकसाथ डिफौल्ट तो नहीं होंगे. रिस्क बंट गया और बैंक ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगे.

निजी बैंकों का फंडा

कर्ज के कारोबार में निजी बैंक खूब आए, जैसे आईसीआईसीआई बैंक, सिटी बैंक, एचडीएफसी बैंक आदि.

क्रैडिट कार्ड को इन्होंने ही बाजार में उतारा और लोग जाल में फंसते चले गए. यह भी एक तरह का क्लीन लोन ही था. लोगों ने इसे फ्रीफंड का पैसा समझ कर खूब उड़ाया और निजी बैंकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. क्रैडिट कार्ड का प्रचलन कम हुआ और डैबिट कार्ड सब के हाथों में आ गया.

शुरू में इन बैंकों की शाखाएं महानगरों तक ही सीमित थीं. शहर, कसबा, देहात में ये नहीं उतरे थे. इन के पास आईटी का बेस अच्छा रहा. युवा स्टाफ और सब से महत्त्वपूर्ण इन का ग्राहकवर्ग उच्चमिडिल और उच्च श्रेणी का था. शाखाओं में भीड़ न के बराबर थी. इसलिए सेवाएं उच्चस्तरीय और निर्णय तुरंत होते थे. यहां लालफीताशाही और हरामखोरी बेहद कम थी.

फंड मैनेजमैंट बढि़या होने से ये डिपौजिट्स पर ब्याजदर राष्ट्रीयकृत बैंकों से थोड़ी ज्यादा रख कर ग्राहकों को लुभाते और होम सर्विस भी देते रहे.

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बैंकों की बदलती कर्ज नीति

धीरेधीरे सरकारी बैंकों ने भी अपने उच्चतम स्तर पर रिटेल लोन के अलग विभाग खोले और विज्ञापन पर जम कर खर्च किया जाने लगा. बैंकों में रिटेल मेगामार्ट जैसा शुरू हो चुका था.

होम लोन, कार लोन ये 2 क्षेत्र बैंकों और ग्राहकों के सर्वप्रिय थे और आज भी हैं. बैंकों ने बिल्डर्स और कार निर्माताओं से टाईअप किया ताकि दोनों को फायदा हो सके.

आइए, सस्ती और मनमाफिक किस्तों पर लोन लीजिए और आप भी मुसकराइए.

बैंक लोन और मिडिल क्लास

पहले बैंक रिटेल लोन देने में आनाकानी करते थे. उन के लोन कृषि, लघु उद्योग, छोटे व्यवसाय और ट्रक, लारी, टैंपो, टैक्सी, बस, आदि खरीदवाने के लिए दिए जाते थे. शायद देश और समय की यही मांग थी. वह 70 का दशक था, बैंक सोशल बैंकिंग सीख रहे थे.

शुरू में बैंक मिडिल क्लास घरों में घुसने से भी कतराते थे. उस समय इस तबके पर बैंकों का विश्वास कम था. इस का मुख्य कारण कम तनख्वाह थी. किस्त जमा करेंगे या नहीं, यह सवाल भी था.

यानी बैंकों के अनुसार, रिपेमैंट कल्चर शायद उस समय मिडिल क्लास में नहीं था. पर बात वही थी, पहले मुर्गा आया या अंडा. लोन दोगे तभी तो रिपेमैंट की बात आएगी. धीरेधीरे यह मिथ भी टूट गया और सारे बैंक बड़े पैमाने पर समाज के हर तबके व व्यवसाय के लिए अलगअलग प्रोडक्ट ले कर बाजार में उतर आए.

आजीवन कर्जदार

कर्ज लेना आसान है पर अदायगी मुश्किल. यह कड़वा सच है. कर्ज लेने वाले के मन में अपने समीकरण चलते हैं, जो बैंक के नियमों से मेल नहीं खाते.

पहला समीकरण कि हाउसिंग लोन के प्रोजैक्ट में घर का एक रुपया न लगे, यानी पूरा खर्चा बैंकलोन में एडजस्ट हो जाए. दूसरा समीकरण, बाइक भी इसी लोन से निकल आए, तो मजा ही आ जाए. तीसरा समीकरण, कुछ कैश भी हाथ में आ जाए.

यानी कि लोन के दुरुपयोग की नींव कर्जदार ने खुद ही डाल दी. यानी, जरूरत से ज्यादा लोन लेना. अब इस में बैंक की गलती क्या है? नीयत में खोट कर्जदार की हुई कि नहीं? चलिए अब लोन मिल गया तो अदायगी मय ब्याज के शुरू होनी है. ईएमआई यानी इक्वेटेड मंथली इंस्टौलमैंट जिस में मूल और ब्याज दोनों शामिल होते हैं, अगर सैलरी से काट लिया जा रहा है, तब तो मजबूरी है, पर अगर खुद से देना हो तो समीकरण फिर बदल जाता है.

अदायगी की रकम आ जाएगी खर्चों की लिस्ट में सब से आखिरी पायदान पर. कभी मेहमानों का खर्चा तो कभी हारीबीमारी, कभी बच्चों को ऐडमिशन तो कभी डोनेशन. कुछ नहीं, तो सैरसपाटे. यानी, बैंक महोदय खड़े रहेंगे सब से पीछे.

आप ही बताइए, इस में बैंक की कोई गलती है क्या? आप भूलना चाहते हैं, पर बैंक तो आजीवन आप को नहीं भूलेगा बेचारा. नौकरी उस की भी है.

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पहले बैंकसाहब दाता थे, अब याचक बन कर किस्त की गुहार लगा रहे हैं. भीख मांग रहे हैं. याद रखिए, बैंक न छोड़ता है और न ही भूलता है.

यह शुद्ध आय नहीं

बहुत से लोग बैंक लोन ले कर छोटेमोटे रोजगार खोलते हैं, कुछ चालू व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए लोन लेते हैं. नए युवा उद्यमी एक गलती कर जाते हैं. दुकान के टोटल कलैक्शन को आय मान बैठते हैं, जो कि गलत है. बिजली, पानी, मजदूरी, तनख्वाह, दुकान का भाड़ा, टेबलकुरसी, कंप्यूटर लाइटफिटिंग, मरम्मत, रखरखाव, कच्चे माल, इंक, पैट्रोल खर्च, स्टेशनरी, इनकम टैक्स, डैप्रिसिएशन और सब से बड़ी बात बैंक की ईएमआई को वे खर्चा ही नहीं मानते.

यहीं पर वह धोखा हो जाता है और सारी इकोनौमिक्स फेल हो जाती है. महीनेभर में हुई कुल प्राप्ति में से इन मदों पर हुए खर्च को घटाने के बाद जो बचे, वह आप की शुद्ध आय होगी. दुकान पर जितने नोट मिलें, वे प्रौफिट नहीं होते.

एनपीए

नौन परफौर्मिंग एसेट्स यानी जिस ऋ ण खाते में पिछले 3 महीने से न ब्याज जमा किया गया और न ही मूल या दोनों में से कोई एक डिफौल्ट किया गया, तो ऋ ण खाता एनपीए हो जाएगा. यानी अगर ईएमआई एक हजार रुपए महीने की है तो 3 हजार रुपए जमा न करने पर लोन की पूरी बकाया रकम, जो हो सकता है 3 लाख रुपए हो, एनपीए हो जाएगी. 3 हजार रुपए के डिफौल्ट पर 3 लाख रुपए का एनपीए बैंक को दर्ज करना पड़ेगा.

अब आप समझ गए होंगे कि एनपीए की पूरी राशि डिफौल्ट नहीं होती. बस, कुछ किस्तें न दिए जाने के कारण एनपीए का पोर्टफोलियो करोड़ोंअरबों तक चला जाता है.

बैंक अब चाह कर भी आप के ऋ ण खाते को हैल्दी कैटेगरी में नहीं रख पाते. कंप्यूटर हर तिमाही एक लिस्ट निकाल कर बैंक को आप के कर्ज की सेहत बताता रहेगा.

आप का ऋ ण एनपीए हो गया है तो अब बैंक अपनी नजरें टेढ़ी कर लेगा. सिबिल में आप का नाम आ जाएगा जो बाकी के बैंकों में भी पहुंच जाएगा, ताकि आप की करतूत वे भी देख लें. यानी, लोन के दरवाजे आप के लिए बंद. मतलब यह है कि लेने के देने पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी.

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एनपीए होने के कारण

एक तो वह कारण है जिस की चर्चा विस्तार से ऊपर की गई. यानी ऋण लेने वाले की नीयत में खोट यानी विलफुल डिफौल्टर. दूसरा कारण, प्राकृतिक आपदा, बाजार में उतारचढ़ाव, राजनीतिक या सामाजिक उथलपुथल अर्थात वे सभी कारण जिन पर कर्जदार का वश नहीं होता, अर्थात नौन विलफुल डिफौल्टर.

दूसरी परिस्थिति में सरकार या बैंक कर्जदारों को किस्तों में छूट, समय आगे बढ़ाना, ब्याज में छूट आदि मदद करने के लिए आगे आते हैं ताकि कर्जदार को राहत दी जा सके और वह फिर से यथावत अपना धंधा कर सके.

ओटीएस

वन टाइम सैटलमैंट के अंतर्गत कर्जदार और बैंक अधिकारी बैठ कर एक समझौता करते हैं जो दोनों को मान्य

होता है. इस के अंतर्गत, नियमानुसार अनअप्लाइड ब्याज को बैंक छोड़ देता है. कर्जदार या जमानती या वारिस दूसरे स्रोतों से पैसे जमा कर के एनपीए खाते में पैसा डाल कर उसे बंद कर के नजात पा जाता है. ऐसा अकसर ऋ णी की मृत्यु की हालत में या दूसरे नौन विलफुल डिफौल्ट की हालत में किया जाता है ताकि बैंक और कर्जदार दोनों ही इस त्रासदी से मुक्ति पा सकें. बैंक की रिकवरी पौलिसी में इस संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश दिए हुए होते हैं.

बैंकिंग का मूल तत्त्व

अब आप ही बताइए, बैंक ने आप पर विश्वास किया, लोन दिया, आप ने लोन वापस नहीं किया, फिर बैंक ने वापसी का नोटिस भेजा, तो बैंक अधिकारी भ्रष्ट कैसे हो गए? यह सच है कि एनपीए होने में कर्जदार की नीयत का बहुत बड़ा हाथ होता है.

बैंक हो या कोई और आर्र्थिक संस्थान, चलता तो ईमानदार और कर्मठ कर्मचारियों से ही है. बुरे, भ्रष्ट लोग न हों, तो सोने पे सुहागा.

बैंकिंग का मूल तत्त्व ही है विश्वास, भरोसा, ट्रस्ट. इसे दोनों को ही नहीं तोड़ना है. बैंक आप के डिपौजिट्स के साथ धोखा नहीं करता, आप बैंक के कर्ज के साथ न करें. बस, बन गई बात.

ये जरूर करें

अकसर लोग बैंक से लोन लेने के बाद बैंक से नाता तोड़ लेते हैं, जो कि एकदम गलत है. बैंक आप के बिजनैस का सीनियर फाइनैंशियल पार्टनर होता है.

उसे समयसमय पर बिजनैस की स्थिति की जानकारी देते रहें. चाहे अच्छी खबर हो या बुरी, बैंक को बताते रहें. ऐसा करने पर बैंक को एक तरह की कम्फर्ट फीलिंग आती है कि आप अपने लोन और अदायगी को ले कर संजीदा हैं.

बैंक जो भी वांछित सूचना जैसे बीमा, स्टौक स्टेटमैंट आदि मांगे तो तुरंत दें.

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अपने स्तर पर बिजनैस संबंधी खाते जरूर रखें जिन में खरीदबिक्री को दिनवार दर्ज करें. लेनदेन पारदर्शी रखें. इस से आप को ही मदद मिलेगी.

सब से अहम बात, देय तारीख पर किस्त जरूर जमा करें, यदि देर हो रही है तो व्यक्तिगत रूप से बैंक को सूचित अवश्य करें, गायब तो बिलकुल भी न हों. ऐसा करने से आप को फायदा ही होगा.

अगर बिजनैस में कोई बड़ी रुकावट आ गई हो तो उस की लिखित सूचना प्रूफ के साथ बैंक को तुरंत दें ताकि उसे यदि कोई मदद करनी हो तो वह कर सके या आप की सूचना आप की फाइल में मौजूद रहे और वक्तजरूरत काम आए.

स्टेशन पर चलता था सेक्स रैकेट : भाग 1

विजय बद्री बेशक दिव्यांग था लेकिन वह था बहुत शातिर. कम उम्र की लड़कियों से वह न सिर्फ भीख मंगवाता था, बल्कि जवान दिखने के लिए वह उन्हें हारमोंस के इंजेक्शन भी लगाता था ताकि उन से जिस्मफरोशी करा कर मोटी कमाई हो सके. लेकिन पुलिस ने…   गोरखपुर पूर्वोत्तर रेलवे मंडल के मंडल सुरक्षा आयुक्त अमित कुमार मिश्रा के निर्देश पर मंडल के सभी रेलवे स्टेशनों एवं ट्रेनों में सघन जांच का अभियान चलाया जा रहा था. दरअसल, अमित कुमार मिश्रा को सूचना मिली थी कि कुछ ऐसे गैंग सक्रिय हैं, जो कम उम्र की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर जिस्मफरोशी का धंधा कराते हैं. उन के निर्देश पर बादशाह नगर रेलवे सुरक्षा बल के एसआई वंशबहादुर यादव 25 सितंबर, 2019 की सुबह आनेजाने वाली ट्रेनों की जांच कर रहे थे. ट्रेनों की जांच करने के बाद उन की नजर प्लेटफार्म नंबर-1 पर बैठे बालकों पर पड़ी.

एक पेड़ के निकट रुक कर वह उन को निहारने लगे. वहां 2 किशोरों के साथ 2 किशोरियां थीं. उन्हें देख कर पहले उन्होंने सोचा कि शायद ये ट्रेन में भीख मांग कर गुजारा करने वाले खानाबदोश या बंगलादेशियों के बच्चे होंगे और सामान एकत्रित कर के अपने गंतव्य स्थान पर कुछ देर में चले जाएंगे, किंतु पेड़ की आड़ में छिप कर देखने के बाद उन्हें उन की गतिविधियां कुछ संदिग्ध लगीं.

तब उन के नजदीक जा कर उन्होंने उन से पूछा, ‘‘तुम लोग कौन हो? सुबहसुबह यहां प्लेटफार्म पर क्या कर रहे हो?’’

पुलिस वाले को अपने पास देख कर वे चारों सहम गए और सुबकने लगे. उन चारों को सुबकते देख एसआई वंशबहादुर यादव को मामला कुछ संदिग्ध लगा. उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुए उन चारों को चाय पिला कर ढांढस बंधाते हुए पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है, बताओ. तुम इस तरह रो क्यों रहे हो? कुछ तो बताओ, तभी तो मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा.’’

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कुछ देर खामोश रहने के बाद किशोरों के साथ बैठी दोनों किशोरियों ने अपनी आपबीती एसआई वंशबहादुर को सुनाई. उन्होंने बताया कि एक दिव्यांग व्यक्ति ने उन्हें अपने कब्जे में कर रखा था और वह उन से जिस्मफरोशी का धंधा कराता था. किसी तरह वे उस के चंगुल से निकल कर आई हैं.

उन की व्यथा सुन कर एसआई आश्चर्य में पड़ गए. उन का दिल करुणा से भर आया. उन दोनों किशोरियों ने अपने नाम गुंजा व मंजुला खातून और किशोरों ने विजय व आनंद बताए. किशोरियों ने बताया कि यहां से वे वैशाली एक्सप्रैस से अपनी रिश्तेदारी में बहराईच जाने के लिए प्लेटफार्म पर बैठी हुई ट्रेन का इंतजार कर रही थीं.

एसआई वंशबहादुर यादव ने उन की व्यथा सुनने के बाद यह जानकारी ऐशबाद रेलवे स्टेशन पर स्थित आरपीएफ के थानाप्रभारी एम.के. खान को फोन द्वरा दे दी.

चूंकि मामला गंभीर था इसलिए उस दिव्यांग व्यक्ति को तलाशने के लिए उन्होंने सिपाही उमाकांत दुबे, धर्मेंद्र चौरसिया, महिला सिपाही अंजनी सिंह व अर्चना सिंह को एसआई वंशबहादुर के पास भेज दिया. इस के बाद वंशबहादुर पुलिस टीम के साथ उस दिव्यांग की तलाश में मुंशी पुलिया के पास उस के अड्डे पर गए, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

उन किशोरियों ने बताया था कि वह दिव्यांग व्यक्ति उन दोनों को ही ढूंढ रहा होगा. वह उन्हें ढूंढता हुआ बादशाह नगर प्लेटफार्म तक जरूर आएगा. इस के बाद पुलिस टीम इधरउधर छिप कर उस के आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर बाद करीब 11 बजे के वक्त वह दिव्यांग व्यक्ति बादशाह नगर रेलवे स्टेशन पर आता हुआ दिखाई दिया. किशोरियों ने उसे पहचान लिया.

उन्होंने बताया कि वह करीब एक साल से इसी व्यक्ति के चंगुल में थीं. पुलिस टीम ने उस दिव्यांग को हिरासत में ले लिया और उसे बादशाह नगर रेलवे पुलिस चौकी ले आए.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने उन दोनों किशोरियों एवं किशोरों को पहचानते हुए यह स्वीकार किया कि इन लड़कियों से अनैतिक कार्य और किशोरों से भीख मांगने का धंधा कराता था. रेलवे पुलिस को यह भी पता चला कि मुंशी पुलिया के निकट यह दिव्यांग व्यक्ति पुलिस चौकी के पीछे झोपड़ी में रहता था. उस ने अपना नाम विजय बद्री उर्फ बंगाली बताया. वह पश्चिमी बंगाल का निवासी था.

आरोपी की गिरफ्तारी की सूचना पर रेलवे सुरक्षा बल ऐशबाद के थानाप्रभारी एम.के. खान भी बादशाह नगर रेलवे पुलिस चौकी पर पहुंच गए.

चूंकि मामला सिविल पुलिस का था, इसलिए थानाप्रभारी के निर्देश पर एसआई वंशबहादुर मेमो डिटेल बना कर उन दोनों किशोरों विजय व आनंद और दोनों किशोरियों गुंजा और मंजुला खातून को साथ ले कर थाना गाजीपुर पहुंचे.

उन्होंने गाजीपुर थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा को पूरी बात बताई तो उन्होंने विजय बद्री के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 370, 370ए के अंतर्गत 25 सितंबर, 2019 को मुकदमा दर्ज कर लिया.

गाजीपुर थाने में मुकदमा दर्ज हाने के बाद थानाप्रभारी ने उक्त प्रकरण की जांच विकास नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज एसआई दुर्गाप्रसाद यादव को सौंप दी. जांच मिलते ही दुर्गाप्रसाद ने आरोपी दिव्यांग विजय बद्री से पूछताछ की तो उस ने अन्य आरोपियों सुमेर व शमीम के नाम भी बताए. पुलिस ने अन्य आरोपियों की खोजबीन शुरू कर दी.

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एसआई दुर्गाप्रसाद यादव ने दोनों किशोरियों से पूछताछ की तो पता चला कि उन में से एक असम व एक बिहार की रहने वाली थी. उन के पिता लखनऊ शहर आ कर रिक्शा चलाते थे. उन के घर की हालत खस्ता थी. किसी तरह से केवल पेट भरने लायक रोटी मिल पाती थी.

मंजुला खातून विकासनगर के पास स्थित गांव चांदन में अपने पिता के साथ रहती थी. वहीं से वह कामधंधे की तलाश में निकली तो वह मुंशी पुलिया के पास झुग्गी में रहने वाले दिव्यांग विजय बद्री के संपर्क में आई. कुछ दिनों तक बद्री ने मंजुला की काफी मेहमाननवाजी की.

विजय बद्री के पास कुछ औरतें आती थीं. उस ने मंजुला को उन औरतों से मिलवाया. उन महिलाओं ने मंजुला को गोमतीनगर, इंदिरानगर और विकास नगर की पौश कालोनियों में भीख मांगने के काम पर लगा दिया.

इसी बीच गुंजा भी विजय बद्री के संपर्क में आ गई. गुंजा को भी उस ने मंजुला के साथ भीख मांगने के काम पर लगा दिया. बाद में उन दोनों को बादशाह नगर चौराहे व रेलवे स्टेशन के आसपास भेजा जाने लगा. वे ट्रेन में भी भीख मांगने लगीं. अधिकांशत: गुंजा व मंजुला खातून बादशाह नगर स्टेशन से ट्रेन में सवार हो कर काफी दूर तक भीख मांगने निकल जाया करती थीं.

शाम को वह अपने अड्डे पर जब वापस नहीं पहुंचतीं तो विजय बद्री खुद उन की तलाश में निकल पड़ता था. धीरेधीरे उस के यहां काम करने के दौरान गुडंबा निवासी विजय व आनंद से उन का संपर्क हुआ. ये दोनों किशोर भी भीख मांगने का धंधा किया करते थे. ये चारों दिन भर में लगभग एकएक हजार रुपए कमा कर लाते थे. विजय बद्री इस काम के लिए उन्हें रोजाना 200 रुपए दिया करता था.

गुंजा व मंजुला दोनों किशोरियों ने जांच के दौरान पुलिस को बताया कि विजय बद्री ने मुंशी पुलिया पुलिस चौकी के पीछे गोल्फ चौराहे पर ठहरने का अड्डा बना रखा था. जांच में पता चला कि विजय बद्री पश्चिमी बंगाल से आ कर उत्तर प्रदेश में बस गया था.

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