बाडाइन कौलेज या विशिष्ट भारतीय उच्चारण में ‘बाउडिन कालेज’ का हो सकता है, बहुत से भारतीयों ने नाम न सुना हो.क्योंकि शायद अमेरिका के इस विशिष्ट कौलेज में आज तक एक भी भारतीय पढ़ने नहीं गया. बहरहाल यह अमेरिका के मैसाचुसेट्स प्रांत [ब्रंसविक,मेन में] में स्थित एक निजी उदार कला महाविद्यालय है. इस मायने में यह दुनिया भर में विशिष्ट कौलेज माना जाता है ; क्योंकि इसमें कला, विज्ञान और मानविकी जैसे विषयों को एक साथ पढ़ाया जाता है. सबसे ख़ास बात यह कि 1794 से मौजूद और 2017 में अमेरिका के 1201 निजी आर्ट्स कोलेजों में, अव्वल रहने वाले इस कौलेज में बेहद अलग किस्म के अनुसंधान होते हैं. कुछ सालों पहले इसी कालेज ने अपने लंबे और बेहद खास अनुसंधान से यह उजागर किया है कि आखिर शर्मोहया का विज्ञान और मनोविज्ञान क्या होता है.
दरअसल शर्मीलेपन की बुनियाद अपरिचितों से भी झिझकने और किसी भी किस्म की उपस्थिति से छिपने या बचने की कोशिश में परिलक्षित होती है.वैज्ञानिकों के मुताबिक शर्मीलेपन के रहस्य का बीज यही है.शर्मीलेपन लोग भीड़ में दूसरों से अलग दिखते हैं.
- उन्हें किसी से भी आंखे मिलाने में दिक्कत होती है.
- उनके कंधे झुके हुए होते हैं.
- उनका पूरा शरीर सिकुड़ा-सिकुड़ा सा होता है.
- वे बैठने के लिए पीछे की कुर्सी या कोई अँधेरा कोना तलाशते हैं.
- वे आपकी कोई भी बात मान सकते हैं ताकि बहस से बचा जा सके.
- शर्मीले लोगों को पहचानना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं होता.
वास्तव में शर्मीलापन एक ऐसी अवस्था है जो देखने वाले के लिए तो कष्टदायी होती ही है,इसका अनुभव और भी ज्यादा कष्टदायी होता है. इससे भी बढ़कर उत्तरजीविता की दृष्टि से इसका स्पष्टीकरण बमुश्किल ही संभव है. कुल मिलाकर शर्मीले लोग या शर्मीलापन आपको यह सोचने को प्रेरित करता है कि भूल जाइये कि ‘मैं हूं भी’ बनिस्बत इसके कि वह यह जतायें कि ‘मैं हूं न’. द पेंग्विन डिक्शनरी ऑफ़ साइकोलौजी के मुताबिक ‘शर्मीलापन, दूसरों की उपस्थिति में असहज महसूस करना है जो तीव्र स्व-बोध से पैदा होता है.’ ऐसा सकारात्मक एवं नकारात्मक स्व-बोध के एक साथ पैदा होने से होता है.
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