बनारस की दिव्या को मम्मी -पापा का साथ जरूर अच्छा लगता है, लेकिन हर बात पर मम्मी को टोकना उसे पसंद नही है. दिव्या चाहती है कि  उनके मम्मी -पापा उसके ऊपर भरोसा करें , क्योंकि वह दबे सवार में यह स्वीकारती है कि  हां –  मम्मी-पापा उनके मस्ती में ब्रेकर की तरह है. वह यह भी स्वीकार करती है कि कई दफा उसकी लड़ाई अभिभावकों से हो चुकी है. वही दिल्ली के साकेत की आरुणा का मानना है कि माता-पिता  से अच्छा दोस्त कोई नही , लेकिन आरुणा भी यह कहती है कि हां-मुझे हर गलती पर करार डांट पड़ता है, जो कुछ पल के लिए मुझे अपने अभिभावकों के बारे में गलत सोचने को मजबूर कर देता है. मेरठ के अजय चौधरी तो खुल कर कहते हैं, मै उसी क्षेत्र में करियर बनाना पसंद करुंगा जो मुझे पसंद है. अजय बताते है कि  12 वीं के बाद उनके  पिता कि इच्छा इन्हे इंजीनियर बनाने का था लेकिन उनकी रूचि निजी क्षेत्र में काम करने का था , इसलिए उन्होंने अभिभावक के इच्छा के विरोध जाना सही समझा, कुछ समय तक उनके पिता उनसे नाराज रहे फिर स्थिति सामान्य हो गई. आज अजय एक निजी संस्था में काम करते हुए अपने निजी जीवन में काफी खुश है.  इस प्रकार के कई उदाहरण है, बच्चो को दबे स्वर में अभिभावकों के विरोध आवाज बुलंद करने की.

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हां एक बात तो इन उदाहरणों  से साफ होता है कि कहीं ना कहीं अभिभावक भी बच्चों पर आवश्यकता से अधिक दबाव बना देते है . अगर 110 में से 84 फीसदी नवयुवक कुछ करने से पहले माता -पिता का इजाजत लेना उचित समझते हैं. जबकि 16 फीसदी इसका कोई जरुरत नहीं समझते. नवयुवक अपने बातों पर अभिभावकों का मश्वरा लेना उचित समझाते है.  तभी तो 78 फीसदी नवयुवक अभिभावकों के मशवरे पर  अमल करते हैं.  अगर मौज – मस्ती के बीच ब्रेकर की बात होती है तो 18 फीसदी खुल कर इस बात कों स्वीकार करते है कि उनके अभिभावक मौज -मस्ती में ब्रेकर बन जाते हैं.  जबकि 82 फीसदी नवयुवक  इस बात को सिरे से खारीच करते है.  अगर समय रहते  अभिभावक खुल कर सामने नही आये तो मौज -मस्ती के ब्रेकर का 18 फीसदी  ही कल के लिए भयावह बन सकता है. आधुनिक फैशन युग में सिगरेट को एक फैशन मानने वाले 11 फीसदी नायुवक अभिभावकों के सामने भी सिगरेट पिने की बातों सही मानते है.  जबकि 89  फीसदी नवयुवक आज भी अभिभावकों के सामने इस फैशन रूपी  नशा के प्रचलन को कभी ना करने कि बात करते है.  यह एक शुभ संकेत है फिर भी 11 फीसदी का जवाब अभिभाको को सोचने  पर मजबूर कर देने वाला है  कि कल उनके बच्चे इस फैशन के चपेट में ना आ जाये.  72 फीसदी नवयुवक का मानना है कि  उन्हें अपनी  गलती के लिए डांट पड़ती है, जबकि 28  फीसदी नवयुवक ऐसे नकारते है. अभिभावकों के लिए यह जरुरी है कि  वह आपने बच्चो को गलती पर डाटने के बजाये समझाने पर जोर दे. ताकि 72 फीसदी का विरोध में उठाने वाला स्वर काम हो और बच्चे उनके पास और पास आये. इंजीनियरिंग का क्रेज  अभिभावकों के बीच  आज भी बना हुआ है, लेकिन नवयुवक इसे  नकारते है. 64 फीसदी नवयुवक अपने पसंद से करियर चुनना चाहते है. आपसी झड़पों के बारे में 66 फीसदी नवयुवक का मानना है कि उनका अपने घर में झगडा नही होता  है.  जबकि एह तिहाई ( 34 फीसदी ) का मानना है कि उनका झगडा आपने घर में हुआ है . यह विशेष रिपोर्ट अभिभावकों कों बच्चो  से और  नजदीक आने का संदेश देता है , तो नवयुवको के बदलते स्वरूप को बायान करता है.

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 कैसे तैयार किया गया रिपोर्ट  ..

यह विशेष रिपोर्ट मुख्य रूप से बच्चों के बीच पनप रही पश्चिमी सभ्यता कों भापने एवं बच्चों और अभिभावकों के बीच की दूरियों के कारणों को खोज निकलने के लिए तैयार किया गया है. आप और आप के अभिभावक पर विशेष रिपोर्ट तैयार करने के लिए दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश के कई जगहों के नवयुवकों से बात किया गया. शुरुआती तौर पर 110 नवयुवकों से बातचीत कर बच्चों और अभिभावकों के बीच आ रही दूरियों के कारणों कों खोजने की कोशिश किया गया. इस बातचीत  में 18 – 25 साल के नवयुवको कों शामिल किया गया. वार्तालाप के दौरान करियर, घरेलू झड़प और अभिभावकों के लिए सम्मान से जुड़े प्रशन पूछे  गए.  सिगरेट के बढ़ते प्रचलन और मौज -मस्ती में अभिभावकों को ब्रेकर बताने वाले प्रश्न भी इसका एक हिस्सा था. कुल सात प्रश्नों कों नवयुवको के अलग -अलग टोली से पूछी गई , ताकि रिपोर्ट के  रुझानो में हकीकत झलके.  कालेज जाने वाले नवयुवक, दुकानों पर बैठ कर गप्पे मरने वाले नवयुवक एवं इजीनियरिंग और मेडिकल जैसे दिग्गज पाठ कर्मो कों पढ़ने वाले नवयुवक इस वार्तालाप  में शामिल हुए. अलग-अलग इलाकों से 110 नवयुवको के जवाबो  कों जानने के बाद रुझान तय किया गया. जिसके आधार पर यह विशेष रिपोर्ट तैयार किया गया .

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क्या कहते हैं नवयुवक — 

प्रवीण – समय के साथ अभिभावकों कों भी बच्चो कों समझाना चाहिए . जरुरी नही हर वक्त अभिभावक ही सही हो . 

रिया  – करियर का चुनाव करते समय अपनी योग्यता कों देखना चाहिए .क्यों कि अपनी रूचि अनुसार काम करने का मज्जा ही कुछ और होता  है . 

आशुतोष   – मम्मी का टोकना थोड़ी देर के लिए बुरा जरुर लगता है ,लेकिन बाद में लगता है कि उन्होंने हमारे भलाई के लिए ही हमें डाट या टोका है . 

 खुशबू   – मम्मी – पापा की कुछ बातें कभी कभी बुरा लग जाता है ,लेकिन सही मायने पर अभिभावक ही हमारे अच्छे मित्र होते है .

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