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नीना गुप्ता ने बयां किया सिंगल मदर होने का दर्द, कहा- सिर्फ इस वजह से शादी करना चाहता था दोस्त

नीना गुप्ता पिछले कुछ दिनों से अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर काफी सुर्खियों में हैं. अब हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान नीना ने अपने सिंगल मदर होने का दर्द शेयर किया है.

नीना ने कहा, ‘कुछ लोगों के लिए मैं बहादुर हूं, लेकिन ये सब बहादुर बनने की बात नहीं है. मेरी मीडिया पर्सनैलिटी, मेरी पर्सनल लाइफ से अलग है. मुझे नहीं लगता कि ये तय करना मुश्किल है कि बेबी को जन्म देना है या नहीं. लेकिन अपने फैसले पर अड़े रहना और इसके साथ चलना मुश्किल होता है. मुझे अक्सर कहा जाता है लेकिन इस चीज ने मुझे नेगेटिव छवि दी है.’

दोस्त ने बोला- मैं दूंगा सहारा…

नीना ने कहा, एक बार मेरे दोस्त ने मुझसे कहा कि मैं तुमसे शादी करूंगा. कम से कम तुम्हारी बेटी को नाम तो मिलेगा. मुझे फिर लगा कि क्या केवल सरनेम देने के लिए मैं शादी करूं. मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी बेटी को खुद का नाम दूंगी और इसके लिए मैंने काम करना शुरू कर दिया.’

पति नहीं तो पिता थे साथ…

नीना ने आगे बताया, ‘मैं सिंगल मदर ज्यादा समय तक नहीं रही थी क्योंकि मेरे पिता मेरे पास आ गए थे. उन्होंने मेरा घर देखा, मेरी बेटी को संभाला. मेरे पास पति नहीं थे तो भगवान ने मुझे पिता दिया था.’

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इससे पहले दी थी शादीशुदा आदमी से प्यार ना करने की सलाह…

नीना ने इससे पहले किसी शादीशुदा आदमी से प्यार ना करने की सलाह दी थी. नीना ने एक वीडियो शेयर किया था जिसमें उन्होंने कहा, मैं आपको आज वो बात बताना चाहूंगी जो आपने पहले कई बार सुना होगा. उसने मुझे कहा कि वो अपनी वाइफ को प्यार नहीं करता और वो उसके साथ काफी समय से नहीं रह रहा. फिर आप उसके प्यार में पड़ जाते हो और कहते हो कि आप अपनी पत्नी से अलग क्यों नहीं हो जाते. तो वो कहते हैं कि हां, मैं करूंगा ये, लेकिन सही समय पर.

फिर आप उनसे कहोगे कि चलो कहीं घूमने चलो तो वो बहाने बनाएगा क्योंकि वो झूठ बोलकर जाएगा, लेकिन आप लोग फिर घूमने जाएँगे. फिर आप कहेंगे कि आपको नाइट स्पेंड करना है. आप होटल जाते हैं और नाइट स्पेंड करते हैं.’

नीना ने फिर कहा, ‘आप ज्यादा नाइट स्पेंड करना चाहते हैं और फिर आप उनसे शादी करना चाहते हो और आप उसको प्रेशर बनाओगे कि पत्नी से तलाक लो और शादी करो. आपको गुस्सा आने लग जाता है और कभी-कभी आपका मन करता है कि आप उसकी वाइफ को भी फोन करो और उसे बताऊं कि उसका पति कैसा है.’

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नीना ने फिर आगे सभी को सलाह देते हुए कहा, ‘कभी किसी शादीशुदा आदमी से प्यार मत करना. मैं ऐसा किया है, मैंने बहुत कुछ झेला  है इसलिए मैं आप सभी को कह रही हूं कि प्लीज कभी ऐसा मत करना.’

किराए के एक कमरे से बंगलो तक, नेहा कक्कड़ ने दुनिया को दिखाया अपना सफर

पॉपुलर बॉलीवुड सिंगर और टीवी रियलिटी शो इंडियन आइडल की जज नेहा कक्कड़ अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी हॉट फोटोज की वजह से सुर्खियों में रहती हैं. पिछले दिनों वो बॉलीवुड सिंगर आदित्य नारायण के साथ अपनी शादी को लेकर भी खूब चर्चा में रही थीं. लेकिन अब नेहा की जो फोटोज वायरल हो रही हैं. उन्हें देखकर फैंस उनकी काफी तारीफ कर रहे हैं.

नए और पुराने घर की फोटो की शेयर…   

हाल ही में नेहा कक्कड़ अपने होम टाउन ऋषिकेश पहुंचीं थीं. वहां से उन्होंने अपने नए बंगले और उस घर की फोटो शेयर की है, जहां उनका जन्म हुआ था. फोटो शेयर करते हुए नेहा ने लिखा- “ऋषिकेश में यह वह बंगला है, जिसके हम मालिक हैं और उस घर की फोटो देखने के लिए राइट स्वाइप कीजिए जहां मेरा जन्म हुआ था. हम कक्कड़ इसी घर के एक कमरे में रहते थे. इसके अंदर मेरी मां ने एक टेबल रखी थी, जो इस छोटे से कमरे में हमारे किचन के रूप में इस्तेमाल होता था.” यह हमारा अपना कमरा नहीं था’

नेहा ने आगे लिखा है, “यह कमरा हमारा अपना नहीं था. हम इसमें किराए से रहते थे. अब जब मैं उसी शहर में अपने बंगले को देखती हूं तो भावुक हो जाती हूं.” उन्होंने इसके साथ सेल्फमेड और नेहा कक्कड़ को हैशटैग करते हुए अपने परिवार का शुक्रिया अदा किया है. वे लिखती हैं,  “बहुत-बहुत धन्यवाद मेरे परिवार को, मम्मी, पापा को, माता रानी को और बेशक मेरे नेहर्ट्स (फैन्स) और सभी शुभचिंतकों को.”

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फैंस और सेलेब्स ने की तारीफ…
नेहा की पोस्ट पर कई टीवी सेलेब्स और फैंस ने कमेंट किया है और उनकी तारीफ की है. सिंगर आदित्य नारायण ने लिखा है, “इस बात का चमकता हुआ उदाहरण कि दृढ़ संकल्प, धैर्य और कड़ी मेहनत से कुछ भी हासिल किया सकता है.” एक्ट्रेस रुबीना दिलाइक का कमेंट है, “हमेशा विनम्र और जमीन से जुड़ी रहिए.” अभिनेता रवि दुबे ने लिखा है, “वाह…कितनी प्रेरणादायक…आपने वाकई अपनी नियति को बदला है…भगवान आप पर कृपा बनाए रखे.”

बता दें कि नेहा कक्कड़ ‘को पहचान ‘इंडियन आइडल’ के दूसरे सीजन से मिली थी, जिसमें वे बतौर कंटेस्टेंट नजर आई थीं. हालांकि, वे विनर नहीं बन सकी थीं. बाद में वे इतनी पॉपुलर हुईं कि इसी शो के पिछले दो सीजंस में बतौर जज दिखाई दे चुकी हैं.

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ऐसे होली मनाएंगे ‘कार्तिक-नायरा’, ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट से सामने आई Photos

छोटे परदे के पॉपुलर शो ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां कार्तिक-नायरा, त्रिशा को इंसाफ दिलाने के लिए अपने ही घरवालों के खिलाफ हो गए हैं. लेकिन होली के माहौल में ये कड़वाहट थोड़ी कम हो सकती है. जिसका सबूत है ये फोटोज.

सेट से वायरल हुईं फोटोज…

हाल ही में ये रिश्ता क्या कहलाता है के सेट से होली सेलिब्रेशन की कुछ फोटोज वायरल हुई हैं. जिनमें कार्तिक-नायरा यानी मोहसिन खान और शिवांगी जोशी कलरफुल अंदाज में दिख रहे हैं. इनके अलावा शो के चाइल्ड एक्टर माज खान (वंश) ने भी अपने ब्रो यानी मोहसिन के साथ होली सेलिब्रेशन की एक फोटो शेयर की है. माज ने अपने इंस्टा अकाउंट पर फोटोज का एक कोलाज भी शेयर किया है, जिसमें वो कार्तिक-नायरा के साथ नजर आ रहे हैं.

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हमेशा धूमधाम से होली मनाते हैं कायरा…

कायरा के नाम से फेमस कार्तिक-नायरा की जोड़ी हमेशा शो में धमाकेदार अंदाज में होली मनाती नजर आती है. पिछले साल होली सेलिब्रेशन के दौरान ही कार्तिक-नायरा की तीसरी बार शादी हुई थी और दोनों के बीच सारी गलतफहमी मिट गई थी. दोनों की रोमांटिक केमेस्ट्री फैंस को खूब लुभाती है.

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होली पर लव-कुश का पर्दाफाश करेंगे कार्तिक-नायरा

खबरों की माने तो इस शो में एक नया ट्विस्ट आने वाला है और तो और आने वाले एपिसोड्स में दर्शकों को खूब हंगामें देखने को मिलने वाले हैं. जहां एक तरफ होली का जश्न हो रहा होगा वहीं दूसरी तरफ कार्तिक और नायरा लव-कुश के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने में लगे होंगे और इसी दौरान वे दोनों एक प्लान बनाएंगे जिससे कि लव-कुश खुद अपने मुंह से ही अपने गुनाह सबके सामने रख डालेंगे. होली के प्रोग्राम में लव-कुश दोनों भांग के नशे में डूबे होंगे जिसका फायदा उठा कर कार्तिक-नायरा इन दोनों के मुंह से इनका सच उगलवा लेंगे. ऐसे में देखना ये होगा कि गोयनका परिवार अब लव-कुश को बचाने के लिए क्या कदम उठाएंगे.

त्रिशा की अगली सुनवाई में नायरा और झावेरी के बीच जमकर बहस होने वाली है जिसके चलते नायरा झावेरी पर कार्तिक के एक्सीडेंट का भी इल्जाम लगाएगी. इतना ही नहीं बल्कि नायरा और झावेरी के बहस के चलते नायरा गुस्से में झावेरी का कॉलर तक पकड़ती दिखाई देगी.

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लुटेरी! चिटफंड कंपनियों की छत्तीसगढ़ में बहार

छत्तीसगढ़  में फर्जी चिटफंड कंपनियां लोगों को दोनों नहीं, दसों हाथों से लूट रही है. और छत्तीसगढ़ सरकार शासन प्रशासन वर्षों वर्षों से आंख मूंदे हुए हैं.कभी कभार किसी कंपनी पर अंकुश लगाया जाता है. मगर फिर धड़ल्ले से ऊंचे लोगों के वरद-हस्त  मिलने पर चिटफंड और लूट का काम शुरू हो जाता है.
छत्तीसगढ़  में 50-60 चिटफंड कंपनियों ने करोड़ों रुपए की ठगी का कारोबार किया है. लोक लुभावने वायदे कर अभिकर्ताओं के माध्यम से आम जन की खून पसीने की कमाई को जमा करा कर लूटा गया.  निवेशकों की रकम वापसी की मियाद पूर्ण  होते  ही  कंपनियां अपने दफ्तरों में ताला जड़कर फरार हो जाती है .छत्तीसगढ़  से चिटफंड कंपनियों ने हजारों  करोड़ की चपत लगाई है. निवेशक अभिकर्ताओं के घरों में पहुंचकर रकम वापसी के लिए दबाव बना पसीना रहे हैं. पुलिस थानों को चक्कर लगाते हैं और थक हार कर लूट कर घर बैठ जाते है.
 
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 दरवाजे  पर लॉक लग जाता है
छत्तीसगढ़  में संचालित सनसाईन इन्फ्राबिल्ड कार्पोरेशन, बीएनपी रियल स्टेट, दिव्यानी प्रापर्टी, एचबीएन डेयरी, गरिमा होम्स, सुविधा इंडिया, महानदी एडवाइजरी, सांई प्रसाद प्रापर्टी, सांई प्रसाद ग्लोबल, सांई किसान, सनसाईन हाईटेक, जीएन गोल्ड एंड जीएन डेयरी, अनमोल इंडिया, जेएसबी फार्मिंग, याल्को क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी, सांई प्रसाद प्रापर्टी, पीएसीएल, व्ही ग्रुप, एनआईसीएल निर्मल इन्फ्रा होम, रोज वेली, माइक्रो फायनेंंस, संजीवनी रियल स्टेट, मिलियन माईल्स, मिलियन माईल्स इन्फ्रा, एडीव्ही डैव्हलपर्स, ओम भू विकास इंश्योरेंस कंपनी, सिल्क इंडिया को छत्तीसगढ़ निक्षेपकों के हितों के संरक्षण अधिनियम के तहत नोटिस जारी किया जाता है . कुछ कुछ कंपनियां ताला लग गया है कुछ गायब हो गई है और कुछ के कर्ता-धर्ता जेल पहुंच गए हैं. मगर यह सब एक औपचारिकता बनकर रह जाती है पुलिस नोटिस जारी करती है. कुछ चतुर जवाब दे देते हैं और फिर लुका छुपाई चलती रहती है. एक लंबी प्रक्रिया के तहत कुल मिलाकर आम जनता ही  लूटी जाती है. ऐसे में आवश्यकता है जागरूकता की लोगों को जागरूक करना शासन प्रशासन एवं स्वयंसेवी संस्थाओं की प्राथमिकता होनी चाहिए.
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 पुलिस का शिकंजा
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निवेशकों की रिपोर्ट पर पुलिस  चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करती है. सांई प्रकाश एडवाइजरी के पुष्पेंद्र सिंह बघेल, बीएनपी के संचालक राघवेंद्र सिंह, दयानंद सिंह, दिव्यानी कंपनी के संचालक रमेश चौधरी तथा एचबीएन कंपनी के अमनदीप सिंह की गिरफ्तारी की है.  इसी तरह एचबीन के अमनदीप सिंग को नई दिल्ली से गिरफ्तार किया गया. यह भी सच है कि जब तक राजनीतिक दबाव नहीं पड़ता तब तलक पुलिस सोई रहती है पुलिस की कुंभकरण की नींद जिला प्रशासन की निंद्रा तभी टूटती है जब राजनीतिक आका इशारा करते हैं ऐसे में चिटफंड कंपनियां आम आदमियों को लूटने का काम अबाध गति से थोड़े-थोड़े अंतराल में करती रहती है.
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निवेशकों से करोड़ों रुपए की हेराफेरी कर विगत एक साल से फरार चल रहे चिटफंड कंपनी महानदी एडवायजरी के तीन डायरेक्टरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. दरअसल सिटी कोतवाली धमतरी और अर्जुनी थाना पुलिस ने मार्च 2019 में चिटफंड कंपनी महानदी एडवाइजरी के 5 डायरेक्टर यशवंत सोनकर, मयंक सोनकर, चित्रसेन साहू, हेमन्त देवांगन और कुलेश्वर के खिलाफ धारा 420, 34 इनामी चिटफंड एवं धन परिचालन स्कीम 1978 की धारा 4, 5, 6 और छत्तीसगढ़ निक्षेपकों के हितों के संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 6, 10 के तहत अपराध दर्ज किया था.

क्या आपको भी सता रहा है बैंक में जमा अपने पैसों के डूब जाने का डर?

एस बैंक के खतरे में आते ही सोशल मीडिया में एक बार फिर आम लोगों के बीच बैंक खातों में जमा अपने पैसों के डूब जाने की चिंता पर जबरदस्त चर्चा है.ऐसा हो भी क्यों न? जब महज छह महीने के भीतर देश का चौथा सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक डूबने की कगार पर पहुंच गया हो तो न तो इस तरह के डर को महज लोगों के साहस के बल पर रोका जा सकता है और न ही बिना किसी विश्वसनीय ठोस आश्वसन के इस तरह के डर को पैनिक होने से बचाया जा सकता है. करीब 6 महीने पहले जब रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआपरेटिव बैंक (पीएमसी) पर प्रतिबंध लगाकर खाताधारकों की विदड्रोल लिमिट 10,000 रुपये तय कर दी थी, तभी से मीडिया में एक और बैंक पर मंडराते खतरे की खबरें आ रही थीं. यह बैंक कोई और नहीं यही यस बैंक था, जिस पर अंततः 5 मार्च 2020 को रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने 3 अप्रैल 2020 तक के लिए  खाताधारकों की अधिकतम विदड्रोल राशि 50,000 रुपये तय कर दी.

कहने की जरूरत नहीं है कि इस खबर के आते ही लोगों में अफरा-तफरी मच गई है. चूंकि यस बैंक की देश के 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों में करीब 1000 शाखाएं और देशभर में 1800 के आसपास इसके एटीएम हैं. इसलिए इसके ग्राहक भी पूरे भारत में हैं और यह अफरा-तफरी भी पूरे भारत में है.

इसी दौरान सोशल मीडिया में लोगों के बीच यह डर और चर्चा भी स्वभाविक है कि क्या बैंक में जमा उनकी रकम डूब जायेगी? करीब करीब हर घबराया हुआ आम आदमी एक दूसरे से यही सवाल पूछ रहा है. ऐसे में कुछ आम सवाल और उनके विश्वसनीय जवाब जरूरी हैं.

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सवाल- अगर बैंक डिफाल्ट कर जाये क्या तब भी किसी खातेदार के बैंक में जमा पूरे पैसे उसे वापस मिलते हैं?

जवाब- अगर किसी बैंक में किसी खातेदार के पांच लाख रुपये तक जमा हैं तो वे वापस मिलेंगे। वास्तव में पांच लाख की यह धनराशि अभी अभी बढ़ी है. इस आम बजट के पहले तक यह धनराशि सिर्फ एक लाख रूपये थी.किसी भी खाताधारक को अपने कुल जमा पर यह अधिकतम राशि इसलिए मिल जायेगी; क्योंकि बैंक में जो भी पैसा जमा होता है, वह डिपोजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिड गारंटी कारपोरेशन (डीआईसीजीसी) द्वारा बीमित होता है.पिछले आम बजट के पहले तक यह अधिकत राशि एक लाख रुपये तक हुआ करती थी.लेकिन बैंकों के डिफाल्ट होने पर मिलने वाली इस अधिकतम राशि के बारे में कुछ बातें और जान लीजिए.

  • अगर आपका किसी डिफाल्ट बैंक की चार अलग अलग शाखाओं में एकाउंट है और उन सब एकाउंट्स में जमा पैसा पांच लाख से ऊपर है तो भी आपको कुल पांच लाख रुपये ही मिलेंगे.
  • ये पांच लाख रुपये की गारंटी भी अभी तक केंद्रीय बजट में दी गई गारंटी ही है.इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह स्पष्ट नहीं है कि बजट में दी गई यह गारंटी चलन में आ चुकी है या अभी तक नहीं. लेकिन डीआईसीजीसी की वेबसाइट में यह रकम दर्ज है. इसलिए कहा जा सकता है कि बदला हुआ नियम चलन में आ चुका है.
  • डिफाल्ट हुए बैंक में जमा राशि पर मिलने वाली अधिकतम राशि में मूल धन और ब्याज सब शामिल होता है.अगर आपका मूल धन 4 लाख है और ब्याज 2 लाख है तो भी आपको कुल 5 लाख रुपये ही मिलेंगे.यह नहीं है कि मूल धन के अलावा ब्याज भी अलग से मिल जायेगा.
  • इस बात को भी ध्यान में रखें कि डिफाल्ट होने वाले बैंक में अगर आपके एक से ज्यादा अलग अलग तरह के एकाउंट हैं मसलन आपकी उसी बैंक में चार लाख की एफडी है, उसी बैंक की किसी दूसरी शाखा में आपका सावधि खाता है (रैकरिंग एकाउंट) और उसी बैंक में आपका करेंट एकाउंट भी है.इन सभी खातों में जमा धनराशि तथा उस पर मिलने वाली ब्याज की राशि मिलकर, अगर 5 लाख से काफी ज्यादा हैं तो भी आपको सिर्फ और सिर्फ 5 लाख ही मिलेंगे.

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सवाल- ऐसी स्थिति को ध्यान में रखकर आम लोग आखिर ऐसा क्या करें जिससे कि बैंकों में उनकी जमा राशि पूरी तरह से सुरक्षित हो?

जवाब- इस सवाल के कई जवाब हैं.पहला तो यह कि हर खाताधारक सुनिश्चित करे कि किसी भी एक बैंक में उसकी अधिकतम जमा धनराशि, मूल और ब्याज के साथ मिलकर पांच लाख से कम हो. जिससे कि बैंक के डिफाल्ट होने पर उसे उसकी पूरी राशि मिल जाए.

  • इस सवाल का एक जवाब यह भी है कि अगर बैंकों में आपके पास जमा करने के लिए या उनकी योजनाओं में हिस्सेदारी करने के लिए पांच लाख रुपये से ज्यादा की व्यवस्था हो तो एक बैंक की बजाय आप उसे कई अलग अलग बैंकों में रखें.इससे दो फायदे होते हैं, एक तो यह कि एक बैंक डिफाल्ट कर जाता है तो दूसरे बैंक में जमा पैसा आपके तुरंत काम में आ सकता है.साथ ही अगर दोनो बैंक एक साथ डिफाल्ट कर जाता है तो भी आपका पूरा पैसा सुरक्षित हैं. तब दोनो ही बैंक आपके पांच लाख रुपये से कम होंगे.
  • जहां तक अच्छा बैंक चुनने का सवाल है तो फिलहाल तो हर बैंक इस तरह की चालाकी बरतता है कि आम आदमी बहुत आसानी से स्पष्ट रूप से नहीं जान पाता कि कौन बैंक वाकई कमजोर है और कौन बैंक वाकई मजबूत है. फिर भी जब भी अच्छा बैंक चुनने की बात हो तो बैंक की क्रेडिट रेटिंग के आधार पर चुनना चाहिए. साथ ही उसके शेयर भाव और मार्केट कैपिटलाइजेशन को भी देखना चाहिए। किसी बैंक के मजबूत होने के यही बुनियादी आधार हैं.
  • अपनी पूरी सेविंग कभी भी एक ही बैंक में या एक ही बैंक की अलग अलग शाखाओं में न रखें। आपके कम से कम दो बैंक में एकाउंट तो होने ही चाहिए. इससे ज्यादा के एकाउंट भी नुकसानदायक है.क्योंकि आज की तारीख में हर बैंक एकाउंट आपरेशन की लागत अपने ग्राहक से ही वसूलता है. इसलिए ज्यादा बैंकों में एकाउंट होने का मतलब बैंकों को बेमतलब चार्ज देना है.

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#coronavirus: कोरोना से घबराएं नहीं पैरेंट्स, बच्चों में न के बराबर होता है इसका असर

दुनियाभर में कोहराम मचाने वाला कोरोना वायरस हिंदुस्तान में भी पहुंच चुका है. हालांकि यहां अभी तक इसके वजह से किसी की भी मौत नहीं हुई है. यहां अलग-अलग शहरों में 30 लोगों के संक्रमित होने की खबर आ रही है. दिल्ली से सटे गाजियाबाद में नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) का एक नया मामला सामने आने के साथ ही देश में वायरस से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 30 तक पहुंच चुकी है. इनमें से तीन मामले दिल्ली-एनसीआर के हैं.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने गुरुवार को पुष्टि की कि अभी तक देश में कोविड-19 के कुल पॉजिटिव मामलों की संख्या 30 हो गई है.

बच्चों पर नहीं हो रहा असर…

इन सबके बीच एक सबसे अच्छी बात ये है कि बच्चों में इस वायरस का कोई असर नहीं देखा जा रहा है. इसलिए बच्चों की सेफ्टी तो करना है लेकिन इससे बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरुरत नहीं है.

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नोएडा में सामने आया मामला…

बुधवार को दिल्ली में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया. इसके तुरंत बाद ही नोएडा के एक स्कूल को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया, क्योंकि वहां पर कोरोना वायरस से संक्रमित शख्स के बच्चे पढ़ते थे.

इसके बाद से ही दिल्ली-एनसीआर में माता-पिता अपने स्कूल जाने वाले बच्चों को लेकर काफी चिंतित हैं. उनमें एक पैनिक की स्थिति पैदा हो गई है. हालांकि, इस बीच स्कूल और सरकारें सभी ये कह रही हैं कि घबराने की जरूरत नहीं है, तैयारी पूरी है, लेकिन एक के बाद एक तेजी से कोरोना वायरस के मामले सामने आने से माता-पिता की चिंता न चाहते हुए भी बढ़ रही है.

नोएडा में कई पैरेंट्स ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया तो कई ने तो शहर तक छोड़ने का फैसला कर लिया. हालांकि यहां कुछ आंकड़ें हैं जिससे पता चलता है कि बच्चों में इस वायरस का असर बहुत कम या यूं कहूं कि न के बराबर है.

दुनियाभर में 3100 से ज्यादा मौतें…

अब तक दुनिया भर में कोरोना वायरस के 3100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 91,700 से भी अधिक लोग इससे संक्रमित हो गए हैं, लेकिन अगर उम्र के हिसाब से देखा जाए तो पता चलता है कि 0-9 साल के एक भी बच्चे की मौत कोरोना वायरस से नहीं हुई है. वहीं 10-19 साल के बच्चों और किशोरों में सिर्फ 0.2 फीसदी मौतें ही कोरोना वायरस की वजह से हुई हैं. इसी तरह 20-29 साल और 30-39 साल के लोगों में सिर्फ 0.2 फीसदी लोग ही कोरोना वायरस से मरे हैं.

ज्यादा उम्र वालों पर ज्यादा असर…

इस वायरस से ये ट्रेंड सामने आया है कि जिसकी उम्र अधिक है, उस उम्र के लोगों की कोरोना वायरस से अधिक मौतें हुई हैं. जैसे 70-79 साल के करीब 8 फीसदी लोग कोरोना वायरस से मारे गए हैं और 80 साल से अधिक के 14.8 फीसदी की मौत कोरोना वायरस ने ली है.

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ये है कारण…

ऐसा क्यों होता है. ये सवाल सबके मन में आता होगा. इसका उम्र से कोई खास रिश्ता नहीं है बल्कि इसका कारण आपका इम्यून क्षमता यानि (प्रतिरोधक क्षमता) है. बच्चों में इम्यून क्षमता सबसे ज्यादा होती है इसलिए इस वायरस का असर उन पर नहीं होता.

भारत में कोरोना वायरस का असर…

कोरोना वायरस में केरल के वह तीन संक्रमित लोग भी शामिल हैं, जो अब ठीक हो चुके हैं और उन्हें अस्पताल से भी छुट्टी दे दी गई है. दिल्ली-एनसीआर में तीन पॉजिटिव रिपोर्ट वाले मामले हैं, जिनमें से दो लोगों ने इटली की यात्रा की थी. एक व्यक्ति ईरान गया था. दिल्ली में संक्रमित पहले व्यक्ति से एक जन्मदिन की पार्टी के दौरान आगरा के छह लोगों को कथित तौर पर संक्रमण हुआ.

तेलंगाना में भी कोरोना के एक मामले की पुष्टि हुई है. संक्रमित व्यक्ति ने दुबई का दौरा किया था, जहां उसे सिंगापुर के एक व्यक्ति से संक्रमण हुआ था. इन मामलों के अलावा 16 इतालवी पर्यटक भी संक्रमित हैं, जो भारत में घूमने आए थे. उनके साथ रह रहा एक भारतीय ड्राइवर भी संक्रमित हुआ है. तेलंगाना के पहले के दो संदिग्ध मामलों की रिपोर्ट नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणे में नकारात्मक पाई गई है.

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Women’s Day 2020: इन बीमारियों की शिकार होती हैं ज्यादातर महिलाएं

8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. इस मौके का लाभ अपने आस-पास वालों को शिक्षित करने के लिए उठाएं. हम महिलाओं को होने वाली कुछ सबसे आम बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाकर भी सहायता कर सकते है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का मकसद जागरूकता पैदा करना और महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करना है.

एक महिला के रूप में आप समाज के भिन्न वर्गों के लिए अच्छा-खासा योगदान कर रही हैं पर उस प्रयास का सम्मान तभी हो सकेगा जब हम महिला-पुरुष का भेद मिटाने के लिए काम करना जारी रखेंगे. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आइए हम लोग उन आम बीमारियों के बारे में जानें तथा खुद को और अपने आस-पास के लोगों को सुरक्षित करने के लिए कदम उठाएं. इस बारे में बता रहें हैं क्लिनिकऐप्प के सीईओ, श्री सत्काम दिव्य.

1 हृदय की बीमारी
हृदय की स्थिति पुरुषों और महिलाओं की मौत के अग्रणी करणों में से एक है. महिलाओं की मौते के 29% मामले इस कारण होते हैं. हालांकि, असली खतरा यह है कि हृदय से संबंधित बीमारियों के कारण मनुष्य विकलांग हो सकता है और समय से पहले उसकी मौत हो सकती है.

अगर आप आंकड़े देखें तो पाएंगे कि हृदय की स्थिति के कारण महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पुरुषों की मौत होती है. पर महिलाओं की बीमारी का पता ही नहीं चलता है. कई मामलों में जब बीमारी का पता चला तो काफी देर हो चुकी थी. जब हम हार्ट अटैक के बारे में सोचते हैं तो जो मुख्य लक्षण दिमाग में आता है वह सीने में दर्द होता है. पर हार्ट अटैक अक्सर असामान्य लक्षणों के जरिए आता है जैसे जबड़े में दर्द, मितली आना, सांस फूलना आदि.

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2 कैंसर
बच्चेदानी, स्तन और ग्रीवा के कैंसर महिलाओं में आम हैं. अगर हम ग्रीवा या गर्भाशय के कैंसर की बात करते हैं तो ज्यादातर महिलाओं को इसकी जानकारी नहीं होती है. डिम्बग्रंथि का कैंसर फैलोपियन ट्यूब में विकसित होता है. पर ग्रीवा का कैंसर गर्भाशय के निचले हिस्से से शुरू होता है. महिलाओं में स्तन कैंसर भी आम है. इसका पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप खुद भी अपने घर पर स्तन की जांच कर सकती हैं. स्तन कैंसर की शिकार महिलाओं के स्तन में अक्सर गांठ विकसित हो जाता है. कैंसर से बचने की सबसे अच्छी संभावना यह है कि इसका पता जल्दी चल जाए और समय रहते इलाज शुरू हो जाए.

3 अल्जाइमर्स डिजीज
अल्जाइमर्स डिजीज (भूलने की बीमारी) अनुमान है कि देश भर में करीब 40 लाख लोग किसी ना किसी तरह की अल्जाइमर्स डिजीज (भूलने की बीमारी) से ग्रस्त हैं. यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ने वाली क्षरण की गड़बड़ी है जो महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होता है. इसकी शुरुआत अक्सर भूलने या भ्रम से होती है. यह लक्षण धीरे-धीरे बढ़ता हुआ मानसिक खराबी का रूप ले सकता है और तब यह ठीक होने की स्थिति में नहीं रहता है. अगर आपको लगता है कि ऐसे कुछ लक्षण आपमें हैं तो यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी जांच कराएं. इससे अन्य कारणों की आंशका खत्म करने में मदद मिलेगी.

4 ऑस्टियोपोरोसिस
क्या आपने किसी ऐसे बूढ़े व्यक्ति को देखा है जिसकी कमर झुकी हुई हो? मुमकिन है कि वे ऑस्टियोपोरोसिस के शिकार. कमर दर्द और झुकी हुई कमर ऑस्टियोपोरोसिस के कुछ आम संकेतों में है. हालांकि इस बीमारी को रोका जा सकता है. ऑस्टियोपोरोसिस तब होती है जब शरीर हड्डी की देख-रेख छोड़ देता है या बहुत कम कर देता है. नतीजतन समय के साथ-साथ हड्डी कमजोर होती जाती है. ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिसके शिकार लोग दूसरों के मुकाबले अपनी हड्डी ज्यादा आसानी से तोड़ लेते हैं. हड्डी बनने और मजबूर होने का ज्यादातर काम 30 साल की आयु तक होता है. बाद में आप अपनी हड्डियों का ख्याल खुद भी रख सकते हैं. उन्हें मजबूत करने के लिए आप पोषण और सप्लीमेंट्स ले सकते हैं.

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5 अवसाद और चिन्ता
मानसिक संघर्ष अब हरेक आयु के लोगों में बहुत आम है. हालांकि, हमारे हारमोन बढ़ते-घटते रहने के कारण यह महिलाओं को ज्यादा प्रभावित कर सकता है. उदाहरण के लिए, नई माएं प्रसाव के बाद प्रसवोत्तर अवसाद में चली जाएं यह आम है. हर महीने, प्री मेनसुरल सिनड्रोम (पीएमएस) से मूड बदल सकता है, चिड़चिड़ापन आ सकता है, दुख हो सकता है, आलस्य आदि आ सकता है. इसी तरह, मासिक होना खत्म होने यानी (रजोनिवृत्ति) की स्थिति में पहुंचने पर महिला की भावनाएं बढ़ सकती हैं और वे अवसाद में भी जा सकती है.

6 डायबिटीज (मधुमेह)
डायबिटीज (मधुमेह) बुजुर्गों की बीमारी हुआ करती थी. पर अब यह युवाओं को भी प्रभावित करती है. यह एक गंभीर स्थिति है जब शरीर में ग्लूकोज आवश्यक मात्र से ज्यादा होता है. भारत में 60 मिलियन लोग डायबिटिक हैं. इनमें से करीब 30 मिलियन को यह पता नहीं है कि वे डायबिटिक हैं या उन्हें यह बीमारी है. इसे अक्सर सायलेंट किलर कहा जाता है. इसमें ढेर सारे लक्षण नहीं होते हैं. जिन पर आपको ध्यान देना है. हालंकि, अगर आपको अक्सर भूख लगती है, बार-बार पेशाब आता है तो आपको इन लक्षणों की जांच
कराना चाहिए.

व्यंग्य: बच्चों का भविष्य कितना सुनहरा होगा, देखते जाइए

टीकाकरण के पूर्व कोचिंग करण…

जब मेरा बेटा 7वीं कक्षा में पहुंचा और मैं बदली पर भोपाल पहुंचा, तो सयानजनों ने कहा कि यह सही सत्य है कि आने वाले समय व उस समय की प्रतियोगिता की धार को देखते हुए बेटे को आईआईटी, ट्रिपलआईटी आदि परीक्षाओं में सफलता अर्जित करने के अवसर बढ़ाने की गरज से आप कोचिंग में डाल दो.

लेकिन उस समय मुझे 7वीं कक्षा के बच्चे को कोचिंग में डालना बेकार का काम लगा और कोचिंग वालों की सोच व उन मांबाप पर भी मुझे तरस आया जिन्होंने अपने इतने छोटे बच्चों को कोचिंग संस्थानों में कैसे भी दाखिला करवा दिया है. इस बात को कई साल बीत गए. अब पेरैंट्स के बीच कोटा का बहुत नाम है, कम से कम जिन के बच्चे 9वीं में पहुंच गए हैं.

यह बात अलग है कि कोटा के स्वयं के हाल बेहाल हैं. हर माह वहां बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं. इसी कोटा की एक विख्यात कोचिंग संस्थान की शाखा भोपाल में खुली. अब जब हमारा बेटा 11वीं में पहुंच चुका था, इन का लटकेदार व झटकेदार विज्ञापन पढ़ कर यों ही इस संस्थान में एक दिन पहुंच गए.

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मेरे आते ही सुंदर, सुशील, गौरवर्ण, लंबी व अपने कार्य में दक्ष रिसैप्शनिस्ट ने पूछा, ‘‘आप ने अपौइंटमैंट लिया है?’’ मैं ने मजाक में कहा, ‘‘हां, मुझ से मिलने के लिए कई लोग अपौइंटमैंट लेते हैं?’’ फिर वे बोलीं, ‘‘नहीं, मैं यहां की बात कर रही हूं?’’ मैं ने कहा, ‘‘जी नहीं.’’ तो वे बोलीं, ‘‘अभी सर काफी बिजी हैं. मुलाकात में समय लगेगा.’’ मैं ने सोचा, अब वापस इतनी दूर जा कर क्या करेंगे, इंतजार करते हैं.

इंतजार के दौरान व्यक्ति जहां बैठा हो, वहां की दीवारों आदि पर उस की नजर जाती ही है. सामने दीवार पर टंगे एक पोस्टर में बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था – ‘जेईई शर्तिया प्लान.’ नीचे उस का विवरण था- ‘प्रवेश तीसरी कक्षा से आवश्यक है.’ बवासीर व भगंदर के शर्तिया इलाज के विज्ञापन तो सुने थे लेकिन आईआईटी प्रवेश परीक्षा में पास होने का शर्तिया प्लान पहली बार सुना था.

इस प्लान की खास बात यह थी कि बच्चे का स्कूल साथसाथ चलता रहेगा, मगर कोचिंग दौड़ती रहेगी. मैं कहां पहले 7वीं कक्षा के बच्चे को कोचिंग में दाखिले को बकवास बात मान रहा था और ये महानुभव तीसरी कक्षा से ही बच्चे पर कब्जा चाहते हैं. तीसरी कक्षा का बच्चा मतलब 8-9 साल का नौनिहाल.

बात यहीं रुकती, तो ठीक थी. काफी देर बाद जब मेरा नंबर आया तो सर से मुलाकात हुई. वैसे आजकल सब से बड़े ‘सर’ कोचिंग वाले ही हो गए हैं. बातों ही बातों में उन्होंने इशारा किया कि तीसरी कक्षा वाले उन के विशेष प्लान में प्रवेश बहुत मुश्किल है. जबकि, मैं ने अभी यह प्रकट ही नहीं किया था कि मेरा बेटा कौन सी कक्षा में है. हां, मुझे यह जरूर अच्छा लगा कि वे मुझे मेरी उम्र से काफी छोटा समझते रहे थे.

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वैसे भी, इस समय बड़ी उम्र के ऐसे बापों का जमाना है जिन के बच्चे बहुत छोटे हों. जब उम्रदराज डोनाल्ड ट्रंप का बेटा मात्र 13 साल का हो सकता है तो मेरा क्यों नहीं. सर अतिउत्साहित थे, बोले, ‘‘तीसरी कक्षा से ही फुल कोचिंग वाले प्लान को इतना अच्छा रिस्पौंस आप जैसे जागरूक पेरैंट्स दे रहे हैं कि हम अब एक और नया प्लान लौंच कर रहे हैं.’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछ लिया, ‘‘वह कौन सा है?’’ वे बोले, ‘‘अब पहली कक्षा से ही हम होनहार बच्चों का अपने यहां दाखिला कर लेंगे और फिर उन्हें 12वीं तक की कोचिंग देंगे. उस की स्कूली शिक्षा भी हमारे चलती का नाम गाड़ी ब्रैंड चयनित स्कूल में चलती रहेगी. हम पहली से ही उसे भविष्य की कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेंगे.’’

इस कोचिंग संस्थान की कल्पनाशीलता का मैं कायल हो गया, लेकिन तुरंत इस से मेरी कल्पनाशीलता भी जाग गई. मैं अपनी आम भारतीय की तरह दिन में सपने देखने की आदत के मुताबिक तुरंत किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गया. मैं एक ऐसे कोचिंग संस्थान में पहुंच गया था जहां कि पहली कक्षा क्या, बल्कि नर्सरी से ही बच्चों को कोचिंग संस्थान में ले लिया जाता था.

उन का कहना था कि उन का ‘प्ले कोचिंग स्कूल’ का मौडल ऐसा है कि बच्चे को इसी उम्र से हम कोचिंग की तथा यहीं से आईआईटी की ओर मोड़ देते हैं. उस के मन को हम अपने विजन से जोड़ लेते हैं. प्ले कोचिंग स्कूल के सारे गेम्स व प्ले आईआईटी से ही जुड़े रचेबुने हैं. मैं ने उत्सुकता से पूछा, ‘इतने छोटे बच्चे पर इतनी पढ़ाईलिखाई का क्या बोझ डालना?’

उन्होंने कहा, ‘आप सही हैं, लेकिन यह बोझ नहीं है. खेलखेल में हम उसे नर्सरी से ही आईआईटी ही ‘जीवन का लक्ष्य है’ का संदेश उस के कोमल दिमाग में प्रविष्ट करा देते हैं. बचपन में ही हम उसे सपने बुनने सिखा देंगे तो उसे सफल तो होना ही है. यह उस का एक तरह से ब्रेनवाश होता है.’ मैं ने कहा, ‘कोमल दिमाग में क्या ऐसी कठोर बात डालनी जरूरी है?’ वे बोले, ‘नहीं डालोगे तो आप का बच्चा फिर भविष्य के कंपीटिशन में कहां ठहरेगा?’

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यहीं तक बात होती, तो भी हम मान जाते, लेकिन इन का आगे का एक और भी लेकिन वाकई डरावना प्लान था. वह यह था कि बच्चा एक साल का हुआ और वह मांबाप का नहीं, इन का हुआ. ये उसे उसी दिन से कोचिंग संस्थान में रख लेंगे. प्रीनर्सरी के समय ही उस का जेईई के लक्ष्य हेतु ब्रेनवाश करना जरूरी होगा. मैं ने सोचा कि उस के बचपन का क्या होगा. उन की सोच थी कि बचपन तो 55 में भी आ जाता है. अभी तो कंपीटिशन के माहौल में बचपन से ही ढालना होगा.

मैंने कहा, ‘इतनी कम उम्र का बच्चा तो मां की गोद में ही रहता है. और फिर मां का ही दूध बच्चे के लिए सब से अच्छा आहार होता है. सो, इस का क्या होगा?’ तो वे मुसकरा कर बोले, ‘महाशय, हम ऐसे ही इतने नामधारी नहीं हैं, इस के बारे में हमारी योजना बन चुकी है. हम पन्ना धाय की तरह यहां आयाएं रखेंगे और हम मांओं को भी सुविधा उपलब्ध कराएंगे कि वे समयसमय पर आ कर अपने बच्चे को देख सकती हैं, फीड भी करा सकती हैं. वैसे, आज की मांएं फिगर के चक्कर में फीडिंग कराने का जिगर नहीं रखतीं.’

अब मैं और आगे की सोचने लगा कि भविष्य में ऐसा होने वाला है कि कोई स्त्री गर्भवती हुई नहीं कि कोचिंग वाले चक्कर लगाना शुरू कर देंगे, टीकाकरण वगैरह बाद में हो सकता है. कोचिंगकरण तो बच्चे के पेट में रहते ही अब जरूरी रहेगा. कंपीटिशन इतना गलाकाट हो गया है कि इन के प्लान की कोई काट भी नहीं होगी. उस समय तक जनसंख्या भी बढ़ कर 200 करोड़ हो चुकी होगी. लेकिन अच्छे संस्थानों में सीट्स उतनी ही रहेंगी. थोड़ीबहुत बढ़ेंगी और जब हर मांबाप अपने अंदर यह जिजीविषा पाले हैं कि उन का बच्चा आईआईटी में दाखिला ले तो इन की बात भी लोग पूरी तरह नकार नहीं पाएंगे.

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वैसे भी, पेरैंट्स की एक खास बात होती है कि वे जब बच्चे थे तो उतने महत्त्वाकांक्षी नहीं थे, लेकिन जब बालबच्चेदार बन जाते हैं तो अति महत्त्वाकांक्षी हो जाते हैं. कुछ ऐसे लोग भी होंगे जोकि अजन्मे बच्चे की कोचिंग की व्यवस्था कर लेंगे. कोचिंग वाले स्कीम भी इस तरह की डिजाइन कर देंगे कि यदि आप को जुड़वां हो गए, तो दूसरे की कोचिंग मुफ्त रहेगी. लेकिन कल्पनाशीलता की कोई सीमा नहीं होती है. ये

कोचिंग वाले इस के आगे भी, आगे के जमाने में चले जाएंगे. ये जिस की शादी हुई, उस के ये पीछे लग जाएंगे. या, यों कहिए कि हनीमून टूर का भी पीछा करने में इन्हें गुरेज नहीं होगी. ये पूछ भी सकते हैं कि महाशय, परिवार बढ़ाने की कब सोच रहे हैं?

हर कोचिंग संस्थान में एक सैल ऐसा होगा जोकि नए विवाहित जोड़ों में अपने बिजनैस की जोड़तोड़ का स्कोप देखेगा. इस के एक्जिक्यूटिव इन से अपौइंटमैंट ले कर अपनी बात सामने रखेंगे. लोगों को बताएंगे कि कोचिंग का कितना महत्त्व है.

जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचेंगे कोचिंग वाले. और गंगू तो यह सोचता है कि आगे यह भी हो सकता है कि जो बच्चा उन के यहां कोचिंग ले रहा है, 12वीं में पहुंच गया है, उस के साथ भी वे कहीं एग्रीमैंट न कर लें कि जब तुम्हारा ब्याह होगा और बालबच्चों वाले होगे तो तुम भी अपनी आलौद हमें कोचिंग के पुनीत काम के लिए सौंप दोगे, ताकि हम उसे कंपीटिशन फेस करने के लिए फौलाद जैसा बना सकें.

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भविष्य कितना सुनहरा होगा, देखते जाएं. 12वीं का विद्यार्थी जिस की पूरी दाढ़ीमूंछ भी नहीं आई है उस की शादी व उस के बाद उस की औलाद की कोचिंग का प्लान. नीति आयोग भी इतना आगे की नहीं सोचता होगा.

इलाहाबाद के पंडों की तरह इन के पास अब 3 पीढि़यों का कोचिंग का इतिहास होगा और ये आपस में लड़ेंगे कि इस परिवार का कोचिंग का पीढ़ीदरपीढ़ी क्रियाकर्म वे ही करते आ रहे हैं, कोई दूसरा नहीं कर सकता. मुझे वाकई लग रहा था कि यदि भारत में विजन किसी के पास है, तो वह कोचिंग वाले ही हैं.

हास्य के बदलते मुखौटे

विदूषक, मसखरा, हंसोड़, जोकर, कौमेडियन, हास्य कलाकार और स्टैंडअप आर्टिस्ट… कई नाम हैं इन के और कई मुखौटे भी. ‘कहता है जोकर सारा जमाना, मजहब है अपना हंसनाहंसाना’ के फलसफे पर चलते ये हंसोड़ कलाकार दुनिया को अपने करतबों, सैंस औफ ह्यूमर और चुटकुलों से हंसाहंसा कर लोटपोट कर देते हैं. ऐसे ही कुछ हास्य के बदलते पड़ाव और परिभाषाओं पर रोशनी डाल रहे हैं राजेश कुमार.

कभी केले के छिलके पर जानबूझ कर फिसल कर हंसाते हैं तो कभी, ऊटपटांग शक्लों से गुदगुदाते हैं. कभी आप पर भी छींटाकशी करने की हिमाकत तो कभी महंगाई, भ्रष्टाचार और सियासत को सटायर की लुगदी में लपेट कर आप के हंसोड़ जबड़ों में चस्पां कर देते हैं. इन के चेहरे पर हर वक्त हंसताखिलखिलाता मुखौटा चढ़ा रहता है. मुखौटे के पीछे का चेहरा खुश हो या गमगीन, बाहरी मुखौटे पर खुली बत्तीसी ही दिखना इन की मजबूरी और पेशा दोनों है.
आज दुनियाभर के टीवी चैनल, अखबार, पत्रपत्रिकाएं, रेडियो और सार्वजनिक मंचों पर हास्य कलाकारों की उपस्थिति अनिवार्य होती जा रही है. इन्हीं की हंसी के फौआरों से महफिल का आगाज होता है. इसी लोकप्रिय होती हंसोड़ संस्कृति से हास्य की दुनिया के कई नामी कलाकार अस्तित्व में आए. इन्हीं में से एक हैं कपिल शर्मा. पिछले कुछ सालों से कौमेडी की दुनिया में इन का सिक्का चल रहा है. इन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन के शो ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ ने बिग बी के ‘केबीसी’ को टीआरपी के मामले में पीछे ढकेल दिया. कपिल के अलावा देश में हास्य के भूगोल और इतिहास को बदलने में किनकिन कारकों और चेहरों ने योगदान दिया है, उस पर गौर फरमाने के बाद ही हास्य के बदलते ट्रैंड और कल्चर को समझा जा सकता है.

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कपिल, कौमेडी और टीवी

हाल ही में ‘सीएनएन इंडियन औफ द इयर’ के अवार्ड से नवाजे गए स्टैंडअप आर्टिस्ट कपिल शर्मा आज किसी सुपरस्टार्स से कम रुतबा नहीं रखते. इन के जैसे कई और नाम हैं जिन्होंने लोगों की थकान और टैंशनभरी जीवनशैली में मुसकान घोलने का काम किया है. सासबहू और साजिश की थीम पर चुइंगम की तरह जबरन खींचे जा रहे फुजूल कार्यक्रमों के बीच इन की कौमेडी औडियंस का मिजाज भी बदलने का काम की रही है. कपिल शर्मा कहते हैं, ‘‘मैं अपने अधिकतर पात्र अपने जीवन से ही उठाता हूं. शमशेर नाम का जो मेरा पात्र काफी फेमस हुआ है, वह मेरे साथ हुई एक घटना से जुड़ा है.’’
कपिल का यह स्टारडम भले ही बहुत पुराना न हो लेकिन इन के जैसे स्टैंडअप कौमेडियन के उद्भव को जानने के लिए जरा पीछे जाना पड़ेगा. इस की शुरुआत लगभग 2005 के आसपास हुई जब ‘स्टार वन’ चैनल पर पहली बार इतने बड़े पैमाने पर ‘द गे्रट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ प्रोग्राम के जरिए स्टैंडअप आर्टिस्टों का मुकाबला हुआ. इस प्रोग्राम ने कौमेडी की शक्लोसूरत बदल कर रख दी. इस में भाग लेने वाले कई प्रतिभागियों को दुनिया ने टीवी पर देखा. इस कल्चर को ‘सोनी टीवी’ के प्रोग्राम ‘कौमेडी सर्कस’ ने आगे बढ़ाया.
आज इन हास्य कार्यक्रमों की बदौलत सुनील पाल, राजू श्रीवास्तव, कपिल शर्मा, सुदेश लहरी, एहसान कुरैशी, नवीन प्रभाकर, भारती सिंह, खयाली घरघर में अपनी पहचान बना चुके हैं. ‘गजोधर भैया’, ‘रतन नूरा’ और ‘पहचान कौन’ की बातें आम बोलचाल का अगर हिस्सा बनीं तो इस के पीछे भारत में हास्य के बढ़ते बाजार का हाथ था.

हास्य का इतिहास

अगर इन स्टैंडअप से इतर सिर्फ हास्य की बात करें तो उस का दायरा बेहद विशाल है. भारतीय संस्कृति व इतिहास में हास्य का सही अध्ययन कपिल के जरिए करना बेहद संकरी गली से गुजरना होगा. दरअसल, इतिहास के हर कालखंड में विदूषकों या कहें हास्य कलाकारों की मौजूदगी व प्रासंगिकता रही है. पंचतंत्र की कहानियों के दिलचस्प किस्से, अकबरबीरबल के चुटकुले और खुसरो की कहमुकरियां हंसी के बदलते चेहरे की शुरुआती तसवीरें कही जा सकती हैं.
बाद के दौर में हास्य ने साहित्य का मुखौटा पहना. नतीजतन, हास्यव्यंग्य की चाशनी में डूबे साहित्य के कई हंसोड़ लेखक या कहें व्यंग्यकार पैदा हुए. इस परंपरा को हरिशंकर परसाई, काका हाथरसी से ले कर आधुनिक दौर में शरद जोशी और अशोक चक्रधर जैसी आधुनिक हस्तियां बखूबी आगे बढ़ा रही हैं.

साहित्य से सिनेमा तक

साहित्य के ही साथसाथ आजादी से कुछ वक्त पहले भारतीय सिनेमा भी शैशव अवस्था में करवट ले रहा था. चलतीफिरती तसवीरों के जरिए बनती धार्मिक कहानियों में भी हास्य को कामयाबी की गारंटी माना जाता था. यहां तक कि कई धार्मिक प्रसंगों के फिल्मी संस्करणों में नारद मुनि को ऐसे खुराफाती और इधर की उधर करने वाले चरित्र के तौर पर पेश किया गया जो तथाकथित भगवानों के घरघर जा कर हास्य स्थितियां पैदा करने में माहिर था.

जैसेजैसे सिनेमा ने धार्मिक चोला उतार कर व्यावसायिक जामा पहना वैसेवैसे कौमेडी और कौमेडियन की परिभाषा भी बदलने लगी. हर फिल्म में हीरो, हीरोइन व विलेन के साथ हास्य कलाकार की ऐंट्री जरूरी हो गई. यहां तक कि गुरुदत्त की क्लासिक फिल्मों में भी जौनी वाकर की हंसोड़ छवि अनिवार्य होती थी. ‘प्यासा’ जैसी संजीदा फिल्म में भी ‘सर जो तेरा चकराए…’ जैसी दिलचस्प प्रस्तुति इस बात की तसदीक करती है कि सिनेमा में हास्य की कितनी महती भूमिका थी.
जौनी वाकर, मुकरी, केश्टो मुखर्जी, टुनटुन, महमूद, जगदीप, असरानी, जूनियर महमूद, देवेन वर्मा जैसे चरित्र कलाकार अब पूरी तरह से हास्य कलाकार की छवि में कैद हो चुके थे. इस सिलसिले को आज भी शक्ति कपूर, परेश रावल, टीनू आनंद, अनुपम खेर, बोमन ईरानी, जौनी लीवर, संजय मिश्रा आदि कायम रखे हुए हैं.

बदलते चेहरे और तेवर

हां, मल्टीप्लैक्स कल्चर ने इस सिलसिले को जरूर बदल दिया. इस के आने से गोविंदा, अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, जौन अब्राहम, नाना पाटेकर, अनिल कपूर और मिथुन चक्रवर्ती जैसे मुख्य कलाकार भी कौमेडी में हाथ आजमाने लगे. यानी जो चलन चरित्र अभिनेताओं से शुरू हुआ, उस ने करवट लेते हुए परंपरागत अभिनेताओं के चेहरे पर हास्य का मुखौटा चढ़ा दिया. इस चलन का श्रेय गोविंदा को जाता है. गोविंदा ने ही कादर खान, शक्ति कपूर और जौनी लीवर के साथ 90 के दशक में कौमेडी की चौकड़ी जमाई. जब गोविंदा का सितारा गर्दिश में आया तो बौलीवुड के ऐक्शनजैक्शन खिलाड़ी अक्षय कुमार ने कौमेडी की हेराफेरी शुरू कर दी. अपनी बेहतरीन कौमिक टाइमिंग के चलते उन की कौमेडी के गरममसाले में हंसी का देदनादन डोज आज की भागमभाग जिंदगी में खट्टामीठा हास्य परोस रहा है.
आलम यह है कि ‘दबंग’, ‘बरफी’ जैसी ऐक्शन और भावना प्रधान फिल्में भी पूरी तरह से कौमिक थीम पर आधारित रहीं और सफल भी.

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स्टैंडअप से मिली पहचान

हास्य के बढ़ते बाजार ने कई कलाकारों की न सिर्फ आमदनी बढ़ाई बल्कि उन्हें फिल्मों में भी अवसर उपलब्ध कराए. राजू श्रीवास्तव, सुनील पाल, सुदेश और कृष्णा कई बड़ी फिल्मों में अपनी छवि के चलते मौका पा चुके हैं. इसी लिस्ट में स्टैंडअप आर्टिस्ट वीरदास भी हैं. सालों से स्टैंडअप करते आ रहे वीरदास को लोग उन की फिल्म डेल्हीबेली के लिए जानते हैं. डेल्हीबेली में उन के सह कलाकार रहे कुणाल राय कपूर, जो इस से पहले ‘प्रैसिडैंट इज कमिंग’ फिल्म का निर्देशन कर चुके हैं, खाली वक्त में स्टैंडअप ही करते हैं.

चार्ली चैपलिन की हास्य छवि

भारतीय सिनेमा में हास्य देसी न हो कर हौलीवुड या कहें वैस्टर्न सिनेमा से आयातित था. जब भारतीय सिनेमा पूरी तरह से स्थापित नहीं हुआ था तब वैस्टर्न सिनेमा युवावय था. उस दौर में चार्ली चैपलिन मूक व ब्लैक ऐंड ह्वाइट परदे के जरिए अपनी यूनीवर्सल स्टाइल में दुनियाभर को मनोरंजित कर रहे थे. तब उन की कौमेडी के जरिए सामाजिक संदेश कहने की अदा, भावभंगिमाओं तक को विश्व सिनेमा में फौलो किया गया. बौलीवुड के पहले शोमैन राज कपूर ताउम्र चार्ली चैपलिन की छवि के इर्दगिर्द अपने सिनेमा रचते रहे. चैपलिन की हास्य छवि आज भी अलगअलग रंगों व माध्यमों में दोहराई जा रही है.

जारी है सफर

साहित्य, सिनेमा और सार्वजनिक मंचों से इतर अगर हास्य को टीवी ने पुख्ता पहचान दी है. छोटे परदे के कौमेडी शोज ने इन हास्य कलाकारों को दर्शकों के ड्राइंगरूम तक पहुंचा दिया. ‘लाफ्टर चैलेंज’, ‘कौमेडी सर्कस’, ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’, ‘लापतागंज’, ‘एफआईआर’, ‘चिडि़याघर’, ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ जैसे प्रोग्राम आज रोनेधोने वाले सीरियल्स से कहीं ज्यादा देखे जा रहे हैं. ऐसे में अगर आप टीवी देख रहे हों और अजय देवगन, ‘मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया’ का अंगरेजी अनुवाद ‘माइ चैस्ट बिकम ब्लाउज’ के तौर पर करें तो यकीनन आप का पेट हंसहंस कर दुखने लगेगा. इसी तरह कपिल का ‘बाबा जी का ठुल्लू’, राजू श्रीवास्तव का ‘गजोधर भैया’, अक्षय कुमार का ‘बच्चे की जान लेगा क्या’, भारती का ‘गंगू बाई’, कृष्णा का ‘ताकी ओ ताकी’, सुदेश का ‘मैं ने जिंदगी में बस इतनी इज्जत कमाई है, मेरी एक बेटी है और दो जमाई है’ जैसे जुमले पूरे देश को हंसा रहे हैं. वैसे भी आज की टैंशन, थकान और भागदौड़भरी जिंदगी में दवाओं की जरूरत ही क्या है, जब हंसी की एक गोली की डोज ही काफी है जनाब.

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शौचालय

गांव से शहर 350 किलोमीटर दूर था. बस मात्र एक स्थान पर रुकी. वहां पति लघुशंका के लिए अन्य पुरुष यात्रियों की तरह होटल के पीछे कचरे के ढेर के पास जा कर निवृत्त हुआ.
पत्नी ने कहा, ‘‘मुझे भी जाना है.’’
पति ने दुकानदार से पूछा, ‘‘यहां स्त्रियों के लिए कोई अलग से शौचालय नहीं है?’’
होटल वाले ने कहा, ‘‘जो है वह यही है कचरे और गंदगी का ढेर. पुरुष फुरसत हो जाएं तो भेज देना. अलग से सुविधा का सवाल ही नहीं उठता. छोटी सी जगह है. कोई शहर तो है नहीं.’’
पति ने जा कर पत्नी से कहा. पत्नी ने इनकार कर दिया शर्म के कारण और कहा, ‘‘आगे देख लेंगे.’’

आगे बस कहीं रुकी नहीं. प्राइवेट बस थी. ड्राइवर का काम था कि बस को ठीक टाइम पर पहुंचाए ताकि अगली फेरी के लिए बस जा सके. पहले से रिजर्वेशन करवाने वाले भी ठीक समय के इंतजार के बाद चिल्लाने लगते हैं. फिर अन्य सवारी दूसरी बस में बैठ जाती है, इस से फिर सवारी मिलने में समस्या होती है. ड्राइवर सड़कों पर बने गड्ढों की परवा किए बिना उसी रफ्तार से तेजी से गाड़ी चलाता रहा. पतिपत्नी उम्मीद ही करते रह गए कि बस कहीं रुकेगी. रुकी भी तो रास्ते के यात्रियों को उतारने और तैयार बैठी रोड के पास सवारी को लेने के लिए. वह भी एकाध मिनट. पत्नी के चेहरे पर तनाव सा आ गया जो प्राकृतिक चीज को रोकने के कारण था. पति ने एकदो बार कंडक्टर से पूछा भी कि बस रुकेगी कहीं या रोक सकते हैं दो मिनट के लिए.

कंडक्टर ने कहा, ‘‘बहुत देर हो गई है पहले ही. मालिक चिल्लाएगा. बस पहुंचने ही वाले हैं थोड़ी देर में. आप रुकोगे तो और लोग भी उतरेंगे. टाइम हो जाएगा. अब बस गंतव्य पर ही रुकेगी.’’
खराब गड्ढेदार रोड पर बस के उछलने से पत्नी के पेट पर धक्के से लगते और पेशाब रोकने के प्रयास में उसे ज्यादा कस कर शरीर को सिकोड़ना पड़ता. शहर आ गया तो पत्नी के चेहरे पर खुशी सी छा गई. वे जल्दीजल्दी उतरे. उन्हें इस शहर से आगे जाना था. अगली बस भी पकड़नी थी. पेशाब रोकना मुश्किल था तो वे बस स्टैंड पर उतर कर सब से पहले सुलभ शौचालय ढूंढ़ने लगे.

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आमतौर पर छोटे शहर के बस स्टैंड पर शौचालय अब होने लगे हैं. पति, पत्नी को ले कर जैसे ही शौचालय की ओर बढ़ा, वहां ताला लगा पाया. वहां खड़े एक आदमी ने बताया कि कोर्ट के स्टे पर बंद है. सामने हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित है. सो, धार्मिक लोगों ने इसे जबरन बंद करवा दिया. चूंकि सरकारी शौचालय था, सो कोर्ट में केस चल रहा है. आखिर धर्म भी कोई चीज है.’’
पति ने पूछा, ‘‘और कहां है?’’
उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘बाहर देख लो बस स्टैंड के आसपास.’’

वे बाहर निकले तो बड़ीबड़ी दुकानें, लाइटिंग से जगमगाता शहर. वे दोनों तलाशने लगे आसपास. लेकिन उन्हें नजर नहीं आया. वे आगे बढ़ते गए. बड़ेबड़े शौपिंग मौल नजर आ रहे थे.
पति ने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘भाई, यहां कहीं शौचालय नहीं है?’’
उस ने कहा, ‘‘मर्द हो कहीं भी कोना पकड़ कर शुरू हो जाओ.’’
पति के पीछेपीछे पत्नी बड़ी मुश्किल से चल रही थी. उस का चलना दूभर हो रहा था. पति सड़क के पास एक नाली के पास पहुंचा. जहां भारी मात्रा में कुत्ते और सूअरों का झुंड विचरण कर रहा था. आवागमन भारी मात्रा में जारी था. नाली के किनारे बड़ी संख्या में मलमूत्र पर कीड़े, मक्खियां भिनभिना रही थीं. पत्नी की तरफ पति ने इशारा किया. पत्नी ने कहा, ‘‘इतनी भीड़, गंदगी फिर ये जानवर, यहां कैसे?’’

उन्होंने एक रिकशेवाले से कहा, ‘‘यहां पास में कोई सुलभ शौचालय हो तो ले चलो.’’
रिकशेवाले ने कहा, ‘‘यहां पास में नहीं है. नगरपालिका मार्केट में है, जो
1 किलोमीटर दूर है. अभी रात हो गई है तो वह भी बंद हो गया होगा. दूसरा रेलवे स्टेशन में है. वह यहां से 12 किलोमीटर दूर है. 50 रुपए लगेंगे.’’
वे गांव से शहर मजदूरी करने निकले थे. फिर आना भी तो था वापस. आगे जाने के लिए पैसे कम पड़ जाते. फिर बस भी आगे के लिए पकड़नी थी.

वे थोड़ा और आगे बढ़े. एक बुजुर्ग व्यक्ति को अपनी समस्या बताई. उस ने कहा ‘‘यहां से बाईं वाली सड़क पकडि़ए. दोचार किलोमीटर के बाद सुनसान रास्ता है. कहीं भी निवृत्त हो लेना.’’
उन्होंने बुजुर्ग को धन्यवाद दिया. पति तेजी से आगे बढ़ा और पत्नी उतनी ही तेजी से उस के पीछे. 3 किलोमीटर पैदल चलने  के बाद कुछ सुनसान सा था. पति ने पत्नी से कहा, ‘‘जाओ.’’
पत्नी तेजी से रोड किनारे बढ़ी कि तभी एक पुरुष के चीखने की आवाज आई, ‘‘देखते नहीं, भैरो बाबा की कुटी बनी है. आगे जाओ.’’

पत्नी ने देखा कि एक वृक्ष के नीचे काले रंग का पत्थर रखा हुआ था. वह पति के पास आई. पति ने कहा, ‘‘चिंता मत कर, थोड़ा सा आगे चलते हैं.’’
पत्नी के सिर में तकलीफ होने लगी. पेट और नीचे का हिस्सा बहुत भारी हो चला था. उसे चक्कर आ रहे थे. आगे कुछ सुनसान सा देख कर पति ने पत्नी को इशारा किया. पत्नी आगे बढ़ी ही थी कि फिर एक आवाज आई, ‘‘मैडम आप को शर्मवर्म है कि नहीं. हनुमानजी की कुटी बनी है. एक तो आप औरत, उस पर पेशाब करने आई हैं. इस कुटी को मंदिर बनाने के लिए हम लोग दिनरात चंदा कर रहे हैं, सरकार से लड़ रहे हैं और आप हैं कि…’’ पत्नी तेजी से वापस लौटी.

थोड़ा और चलने पर सुनसान तो था लेकिन एक छोटा सा शिव मंदिर था जहां गंजेडी लोग गांजा पी कर आतीजाती महिलाओं पर अश्लील ताने कस रहे थे. वे आगे बढ़े. उन्हें एक दरगाह दिखाई दी. वे और आगे बढ़े तो आईएएस, आईपीएस के बड़ेबड़े बंगले, भूंकते विदेशी कुत्ते. घबरा कर और आगे भागे तेजी से, तो एक विशाल मसजिद थी. और आगे बढ़े तो फिर मंदिर उस के बाद फिर मसजिद. फिर मंदिर, फिर मसजिद, फिर गुरुद्वारा, फिर आगे चर्च. वे तेजी से आगे बढ़ते रहे यह सोच कर कि शायद खाली जगह मिल जाए. लेकिन फिर मकान, दुकानें. और आगे बढ़े तो एक उद्यान दिखाई दिया.

पति ने माली से पूछा, ‘‘यहां शौचालय होगा?’’
माली गुस्से में बोला, ‘‘यह लाखों की लागत से बना पार्क है. लोग यहां घूमने आते हैं. बच्चे खेलने आते हैं. प्रेमीप्रेमिका प्रेम करने आते हैं. आगे जाओ.’’
वे थोड़ा और आगे बढ़े. उन्हें खाली विशाल मैदान दिखाई दिया. इस बार पत्नी, पति से पूछे बगैर आगे बढ़ी और जैसे ही बैठने को हुई कि एक टौर्च की तेज रोशनी के साथ आवाज आई, ‘‘कौन है, क्या कर रहा है?’’
वह घबरा कर उठ गई. एक गार्ड डंडा लिए सामने खड़ा चिल्ला रहा था, ‘‘सरकार लाखोंकरोड़ों खर्च कर के ग्राउंड बना रही है ताकि भविष्य में मैच हो सकें और इन्हें देखो अक्ल नाम की चीज ही नहीं है. खबरदार, मेरी बात नहीं मानी तो और यहां कुछ किया तो पुलिस को बुला कर अंदर कर दूंगा.’’

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वे दोनों बेचारे आगे बढ़ गए. लेकिन हर जगह देवीदेवताओं के मंदिर, कुटी, दरगाह, मकान, दुकान, धार्मिक स्थल बने हुए थे. वे कहां जाएं. पत्नी की तो हालत खराब हो चुकी थी. पति खाली जगह तलाश रहा था. इतने में पत्नी बेचारी पेशाब को लंबे समय रोकने से चक्कर खा कर गिर पड़ी. उस का शरीर ढीला पड़ गया और वहीं सड़क पर कपड़ों में ही पेशाब निकल गया.

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