गांव से शहर 350 किलोमीटर दूर था. बस मात्र एक स्थान पर रुकी. वहां पति लघुशंका के लिए अन्य पुरुष यात्रियों की तरह होटल के पीछे कचरे के ढेर के पास जा कर निवृत्त हुआ.
पत्नी ने कहा, ‘‘मुझे भी जाना है.’’
पति ने दुकानदार से पूछा, ‘‘यहां स्त्रियों के लिए कोई अलग से शौचालय नहीं है?’’
होटल वाले ने कहा, ‘‘जो है वह यही है कचरे और गंदगी का ढेर. पुरुष फुरसत हो जाएं तो भेज देना. अलग से सुविधा का सवाल ही नहीं उठता. छोटी सी जगह है. कोई शहर तो है नहीं.’’
पति ने जा कर पत्नी से कहा. पत्नी ने इनकार कर दिया शर्म के कारण और कहा, ‘‘आगे देख लेंगे.’’
आगे बस कहीं रुकी नहीं. प्राइवेट बस थी. ड्राइवर का काम था कि बस को ठीक टाइम पर पहुंचाए ताकि अगली फेरी के लिए बस जा सके. पहले से रिजर्वेशन करवाने वाले भी ठीक समय के इंतजार के बाद चिल्लाने लगते हैं. फिर अन्य सवारी दूसरी बस में बैठ जाती है, इस से फिर सवारी मिलने में समस्या होती है. ड्राइवर सड़कों पर बने गड्ढों की परवा किए बिना उसी रफ्तार से तेजी से गाड़ी चलाता रहा. पतिपत्नी उम्मीद ही करते रह गए कि बस कहीं रुकेगी. रुकी भी तो रास्ते के यात्रियों को उतारने और तैयार बैठी रोड के पास सवारी को लेने के लिए. वह भी एकाध मिनट. पत्नी के चेहरे पर तनाव सा आ गया जो प्राकृतिक चीज को रोकने के कारण था. पति ने एकदो बार कंडक्टर से पूछा भी कि बस रुकेगी कहीं या रोक सकते हैं दो मिनट के लिए.
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