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एक नन्हा जीवनसाथी: भाग-2

एकदम उछल कर वह सड़क की तरफ दौड़ पड़ी और बिना अपनी जान की परवा किए वह उस पमेरियन को बचाने का जोखिम उठा बैठी.

दायीं तरफ से आती लंबी कार ने जोर से ब्रेक लगाई. चीखती गाड़ी थमतेथमते भी उस तक आ लगी. शीशा नीचा कर उस में बैठा अफसरनुमा व्यक्ति जोर से चिल्लाया, ‘‘क्या कर रही हैं आप? बेवकूफ हैं क्या? एक कुत्ते को बचाने के लिए अपनी जान झोंक दी. मरना है तो जा कर यमुना या रेलगाड़ी चुनिए. हम लोगों को क्यों आफत में डालती हैं? आप तो निबट जाएंगी पर हम पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो जाएंगे.’’

परंतु सुलभा जैसे कुछ सुन ही नहीं रही थी. उस ने सड़क पर से उस सफेद सुंदर पमेरियन को उठा लिया और गोद में लिए वापस बस स्टौप के उस शेड में आ बैठी. अब वह हांफ रही थी और उस कार वाले की बात को गंभीरता से ले रही थी. कह तो वह सही रहा था. एक कुत्ते के लिए उसे ऐसे अपनी जान जोखिम में नहीं डालनी चाहिए थी. पता नहीं, सड़क के इस पार की कालोनी में किस मकान का पालतू जानवर है यह. दुर्घटना जो अभी होतेहोते टली, उस के विषय में सोचते हुए उस के रोएं खड़े हो गए. सचमुच वह बालबाल बची. अगर उस कार चालक ने पूरी ताकत से ब्रेक न लगाया होते तो आज वह इस पमेरियन के साथ ही सड़क पर क्षतविक्षत लाश बनी पड़ी होती.

पमेरियन को गोद में उठाए सुलभा स्टौप के शेड के पास ही खोखे में रखी कोल्ड ड्रिंक और नमकीनों की दुकान की तरफ बढ़ गई. एक वृद्ध दुकानदार के रूप में वहां बैठा था, ‘‘आप ने जैसी बेवकूफी आज की है वैसी फिर कभी न करिएगा,’’ उस वृद्ध ने सुलभा को हिदायत दी, ‘‘इस शहर का टै्रफिक बहुत बेरहम है. वह तो कार वाला भला आदमी था जो उस ने ब्रैक लगा ली और आप बच गईं वरना जो होने जा रहा था वह बहुत बुरा होता. आप के पति और बच्चे आप को खो कर बहुत पछताते. अच्छीखासी युवती हैं आप. ऐसा कैसे कर बैठीं?’’

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उस वक्त इस नन्ही जान को बचाने के अलावा मैं और कुछ सोच ही नहीं पाई. अब उस सब को सोचती हूं तो भय से मेरे रोएं खड़े हो जाते हैं. सचमुच मैं गलत कर बैठी थी, परंतु मुझे संतोष भी है कि मैं इस कुत्ते की जान बचाने में सफल हो गई. यह सब सोच कर हंस दी सुलभा.

एक बार को उसे लगा, उस ने अद्भुत साहस का परिचय दिया है आज. वह जीवन में जोखिम भी उठा सकती है, इस का भान हो गया उसे. अच्छा भी लगा, गर्व भी महसूस हुआ. क्या वह इस जानवर को बचा कर अपने पति को बचाने की कल्पना कर रही थी? या फिर इस नन्ही जान को बचाने के पीछे अपनी कोख में न आए नन्हे बच्चे को बचाने के लिए दौड़ी थी? अवचेतन में आखिर ऐसी कौन सी बात थी, जिस ने उसे अचानक स्टौप की बैंच से उछाल कर सड़क के बीचोंबीच पहुंचा दिया?

‘‘क्या आप बता सकते हैं, बाबा कि इस पीछे वाली कालोनी में किस घर का यह पालतू कुत्ता है? सड़क के उस पार यह भटकता हुआ पहुंच गया होगा. इस पार आने की कोशिश यह इसीलिए कर रहा था कि यह इस पीछे वाली कालोनी में ही किसी घर में पला हुआ है.’’

‘‘ठीक कह रही हैं आप. मकान नंबर 301,’’ वृद्ध बोला, ‘‘एक वृद्धा इसे पाले हुए थी. पर 15-20 दिन हुए उस की मृत्यु हो गई. फिर इस कुत्ते की किसी ने सुध नहीं ली. वह अकेली रहती थी. जो लोग उस का मालमत्ता समेटने आए उन्होंने भी इस मासूम जानवर को ले जाना जरूरी नहीं समझा. यह बेचारा अकसर यों ही कालोनी में भटकता रहता है.’’

‘‘क्यों? यह है तो बहुत प्यारा और भोलाभाला. कोई भी इसे पाल लेता,’’ सुलभा ने प्यार से उस के सिर को सहलाया, मानो अपने नए पैदा बच्चे के सिर को सहला रही हो, जिस के सिर पर रेशम जैसे नरम बाल हों.

‘‘मनहूस मान रहे हैं लोग इस मासूम जानवर को,’’ वृद्ध ने बताया, ‘‘वह वृद्धा 2 महीने पहले ही इसे कहीं से लाई थी. पहले भी उस के पास एक कुत्ता था, काले रंग का, वह उस का बहुत वफादार जानवर था. इस सड़क पर ही किसी वाहन के नीचे आ कर मर गया तो वह बहुत रोई, कलपी. जैसे उस का अपना कोई था, उस की मौत हो गई हो. आदमी जानवर को भी कितना चाहने लगता है,’’ कुछ सोच कर वह वृद्ध फिर बोला, ‘‘लोग इसे रोटियां दे देते हैं पर पाल नहीं रहे, क्योंकि यह उस दिन वृद्धा की लाश के पास बैठा रोता रहा था.’’

‘‘तब इसे मैं अपने साथ लिए जा रही हूं,’’ सुलभा ने प्यार से उस कुत्ते के रेशम बालों पर हाथ फिराया.

‘‘ले जाइए,’’ वृद्ध बोला, ‘‘इस महल्ले में इसे कोई नहीं पाल रहा. अच्छा रहेगा, इसे एक घर मिल जाएगा,’’ कुछ सोच कर वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आप इसे बाद में किसी कारण मनहूस मान कर छोड़ न दीजिएगा. महल्ले में मैं ही अकेला ऐसा आदमी हूं जो इसे अपने घर के बरामदे में रात को सोने देता है. जब इसे कहीं रोटी नहीं मिलती तो यह मेरे घर के दरवाजे पर अपने नन्हे पंजे मारने लगता है. मैं समझ जाता हूं, यह भूखा है और इसे किसी ने आज खाने को नहीं दिया है. बरामदे में एक तरफ मैं ने छोटा सा बरतन रख रखा है, उस में पानी हर दिन भरता रहता हूं. यह उसे पीता रहता है.’’

‘‘आप इसे मनहूस नहीं मानते?’’ सुलभा ने उस वृद्ध से पूछा.

‘‘मानता तो हूं. डर भी लगता है कि कहीं उस वृद्धा की तरह मैं भी किसी दिन अकेला ही अपने मकान में मरा न पाया जाऊं. परंतु इस की भोली और अपनत्वभरी आंखों में जो अद्भुत चमक मुझे दिखाई देती है, उस के आगे मैं मनहूसियत की बात लगभग भूल ही जाता हूं. कभीकभी सोचता हूं, न कोई जानवर मनहूस होता है, न घर, न आदमी. मनहूसियत का खयाल हमारे मन का अपना भय होता है, वह उल्लू या घुग्घू का बोलना हो या कौए का किसी के सिर पर बैठना या फिर बिल्ली का रात को किसी घर के आसपास रोना.

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‘‘हम अपने भीतर के भय को ही शायद इन बहानों से बाहर निकालते हैं वरना ये जानवर स्वाभाविक रूप से अपना जीवन जीते हैं और आवाजें निकालते हैं.’’

सुलभा बोली, ‘‘कोई अगर महल्ले में इसे खोजे तो आप बता दीजिएगा. आप चाहें तो मेरा फोन नंबर अपने फोन में सेव कर लें.’’

आगे पढ़ें- फिर उस ने उस वृद्ध का नंबर पूछा और अपने…

एक नन्हा जीवनसाथी: भाग-1

बस की प्रतीक्षा में वह स्टौप के शेड में बैठी थी. गरमी के कारण पसीने से लथपथ…सामने की मुख्य सड़क से लगातार ट्रैफिक भर्राता गुजर रहा था, कारें, सामान से लदे वाहन, आटो, सिटी बसें…हाथ के बैग से उस ने मिनरल वाटर की छोटी बोतल निकाली और 3-4 घूंट पानी पी कर गला तर किया.

कुछ राहत मिली तो उसे सहसा मां के कहे वाक्य स्मरण हो आए :

‘बुरे से बुरे हालात में भी जीवन जीने के लिए कुछ न कुछ ऐसा संबल हमें मिल जाता है कि हम व्यर्थ हो गए जीवन में भी अर्थ खोज लेते हैं. हालांकि बुरे हालात का दिमाग पर इतना असर होता है कि जीने की सारी आशाएं ही जीवन से फिसल जाती हैं और आदमी हो या औरत, आत्महिंसा रूपी भावनाएं दिलोदिमाग पर हावी हो जाती हैं. जिंदगी को इसलिए हमें कस कर थामे रखने वाले साहस की जरूरत होती है. साहस बाहर से नहीं, हमें अपने भीतर ही पैदा करना होता है. वादा करो, निराशा में कोई ऐसा गलत कदम नहीं उठाओगी जो मुझे बहुत अखरे और तुम्हें अपनी बेटी कहनेमानने पर पछताना पड़े कि मैं एक कमजोर दिमाग की लड़की की मां थी. विषम स्थितियों में भी हमें अच्छी स्थितियों की तलाश करनी चाहिए. निराशा जीवन का लक्ष्य नहीं होती, आशा की डोर हमेशा हमें थामे रहना चाहिए.’

इस महानगर के भर्राते ट्रैफिक के ही शिकार हो गए थे मनीष. अपनी मोटरसाइकिल पर सुबह दफ्तर के लिए निकले थे और आधे घंटे बाद ही अस्पताल से फोन आया था, ‘तुम्हारे पति मनीष की बस से टक्कर होने से मृत्यु हो गई है. अस्पताल में आइए, पुलिस से खानापूरी करवा कर पति का शव ले जाइए.’ विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जो सुन रही है, वह वास्तव में सच है. हड़बड़ाई सुलभा अस्पताल के लिए निकल गई, निपट अकेली.

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बेतहाशा भागते ट्रैफिक के पार, सड़क के उस तरफ बने गुलाबी रंग के अस्पताल में कुछ देर पहले वह डाक्टर शर्मा के पास बैठी थी. जांच करवाने आई थी. उसे पूर्ण विश्वास था कि वह गर्भवती है. वह सोचती थी बच्चे के सहारे वह अपनी सूनी और नीरस जिंदगी को शायद ठीक से समेटने में सफल हो जाए. जीने का संबल मिल जाएगा तो जीवन का अर्थ भी खोज लेगी वह. परंतु डा. शर्मा ने जांच करने के बाद उस से साफ कह दिया, ‘सौरी मिसेज मनीष, आप गर्भवती नहीं हैं. आप को गलतफहमी है.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है, डाक्टर?’ वह हताशा के बावजूद अविश्वास से बोली थी, ‘3 महीने से मुझे पीरियड नहीं आया है. ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ. आप के जांच में कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं, डाक्टर?’

‘नहीं. अपने पति मनीष की मौत के हादसे ने आप के दिलोदिमाग पर बहुत गहरा असर डाला है. हार्मोनल असंतुलन के कारण कभीकभी कुछ महिलाओं को पीरियड्स में इस तरह की गड़बडि़यां झेलनी पड़ती हैं. जब दिलोदिमाग संतुलित हो जाएंगे तो हार्मोनल साइकिल भी सही हो जाएगी और सबकुछ सामान्य हो जाएगा.’

‘लेकिन मेरे लिए यह सूचना मेरे पति की मौत से कम भयानक नहीं है, डाक्टर.’ वह आंसू भरी आंखों से डाक्टर की तरफ देख रही थी. उसे अस्पताल के उस कक्ष में सबकुछ डबडबाता व डगमगाता नजर आ रहा था. पानी में तैरता, डूबता और बहता सा. सिर को हलके हाथों थपक दिया था डाक्टर ने, ‘जो सच है, उसे तो स्वीकारना ही पड़ता है, मिसेज मनीष. मनीष की मृत्यु मेरे लिए भी एक बड़ा हादसा है और अपूर्णीय क्षति है. अकसर दफ्तर से लौटते वक्त मनीष हमारे पास अस्पताल में कुछ देर बैठता था. हमारा सहपाठी रहा था वह. यह दूसरी बात है कि मैं ने मैडिकल लाइन पकड़ी और उस ने कंप्यूटर विज्ञान की लाइन.’

अस्पताल से हताशनिराश निकली सुलभा. बाहर आते ही उस ने मां को फोन लगाया, ‘डाक्टर ने जांच कर के बताया कि मुझे भ्रम है. मां, कुछ नहीं है. अब क्या होगा? कैसे और किस के सहारे जीने का मन बनाऊंगी? सिवा अंधकार के अब मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा.’

मां फोन पर बिसूरती बेटी को तरहतरह से तसल्ली देती रही थीं. और कर भी क्या सकती थीं. हालांकि उन के दिमाग में यह बात भी आई थी कि बेटी मां नहीं बन रही तो इस के पीछे भी कुछ न कुछ अच्छा ही होगा. जब उस का गम कुछ हलका होगा और जिंदगी पटरी पर लौटेगी तो वह दूसरी शादी के बारे में सोच सकती है. पति के बीमे की रकम कितने दिनों तक उस के जीवन का आधार बनेगी? आखिर तो उसे कोई नौकरी पकड़नी पड़ेगी और बिखरे जीवन को फिर से समेटना पड़ेगा. बहुत संभव है कि उसे फिर कोई उपयुक्त जीवनसाथी मिल जाए. बच्चे वाली महिला से दूसरी शादी करने में लोग अकसर हिचकते हैं.

मां ने भले कुछ ऐसा सोचा हो पर सुलभा के लिए डाक्टर द्वारा दी गई सूचना बेहद मारक थी और निराशा के गर्त में डूब जाने के लिए बहुत ज्यादा.

मनीष के मित्र डाक्टर ने सुलभा से कई बार कहा था, ‘घर पर दिनभर पड़ीपड़ी क्या करती हो? हमारा अस्पताल जौइन कर लो. नर्स की ट्रेनिंग ले रखी है तुम ने. किस दिन काम आएगी यह?’ परंतु मनीष ने ही डाक्टर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था तब, ‘क्या करेगी सुलभा वह मामूली नौकरी कर के? मेरी अच्छीखासी तनख्वाह है. घर संभालो. कुछ नई हौबीज के बारे में सोचो. किसी सामाजिक एनजीओ में अपने लिए उपयुक्त भूमिका तलाशो. नर्स के जौब में तुम्हें कोई आत्मसंतोष नहीं मिलेगा जिस की जरूरत हम मध्यवर्गीय लोगों को सब से ज्यादा रहती है.’

हालांकि आज जब वह डाक्टर के अस्पताल में गई तो डाक्टर ने उस के सामने वह पुराना प्रस्ताव नहीं दोहराया, परंतु सुलभा जानती है, जब चाहेगी, डाक्टर के उस अस्पताल को जौइन कर लेगी और अपना गम भुलाने में उसे सहूलियत हो जाएगी.

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सहसा उस ने सामने दहाडे़ं मारते गुजरते टै्रफिक के बीच देखा कि एक सफेद रंग के बड़ेबड़े झबरीले बालों वाले पमेरियन ने सड़क पार करनी शुरू कर दी है. वह हालांकि काफी सावधान है परंतु जानवर आदमी जैसा सावधान कैसे हो सकता है? उसे लगा, अभी कुछ ही क्षणों में वह सफेद पमेरियन सड़क पर किसी वाहन के पहियों से कुचल जाएगा और उस का शव सफेद से लाल खूनी रंग में रंग जाएगा. एक दर्दभरी छोटी सी चीख निकलेगी और सबकुछ खत्म हो जाएगा. ऐसा ही हुआ होगा मनीष के साथ भी. हैलमैट के बावजूद सिर बुरी तरह कुचल गया था. पहचानने में नहीं आ रहे थे. मोटरसाइकिल की तरह ही उन के शरीर के भी परखचे उड़ गए थे. वही कुछ इस सफेद पमेरियन के साथ कुछ ही पलों में होने जा रहा है.

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इस एक्टर ने पहली बार शेयर की पत्नी और बेटी की Photo, कंगना के ‘पति’ बनकर हुए थे पॉपुलर

‘पंगा’ में शानदार प्रदर्शन करने वाले सिंगर और अभिनेता जस्सी गिल अपने प्रशंसकों को खुश रखना जानते हैं. भारत के सबसे बड़े पंजाबी त्यौहार क्रॉस ब्लेड में एक शानदार परफॉर्मेंस देने के बाद, अभिनेता ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर तूफान मचा दिया है. उन्होंने पहली बार पत्नी और बेटी के साथ एक फोटो शेयर की है.

शादीशुदा हैं जस्सी, बीवी हैं बेहद खूबसूरत

जी हां, बहुत कम लोगों को पता है कि जस्सी गिल शादीशुदा हैं और उनकी एक बेटी भी है. हाल ही में जस्सी गिल ने इंस्टाग्राम पर अपने परिवार के साथ पहली फोटो शेयर की है. इस फोटो में जस्सी की वाइफ पिंक कलर के सूट में नजर आ रही हैं और बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

 

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???? Styled by @butterandmuse – Shoes @heelandbucklelondon Bandi and Kurta @nm_design_studio, Pants @priyachhabriadesigns

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बेटी की बर्थडे की है फोटो…

हाल में ही जस्सी ने अपनी बेटी रूजस का दूसरा जन्मदिन मनाया. ऐसे में उन्होंने इस पार्टी की तस्वीरें पोस्ट कीं. इसी के साथ उन्होंने पहली बार अपनी बेटी और पत्नी को भी दुनिया के सामने पेश किया.

 

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You are and always will be my princess as long as I live ?? Happy 2nd b’day my princess ? Meri rooh da jas Meri Roojas ❤️

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सेलेब्स ने किए कमेंट…

पंजाबी हार्टथ्रोब ने बहुत कम समय में सभी के दिल में जगह बना ली है, और अब उन्होंने फोटो शेयरिंग प्लेटफॉर्म पर अपने लेटेस्ट फोटोज़ के साथ लोगों का दिल जीत लिया है. हैप्पी फ़िर भाग जाएगी एक्टर को इस तस्वीर पर कई अच्छे कमेंट्स मिले. नेहा कक्कड़ ने लिखा, “आखिरकार!”, टोनी कक्कड़, रंजीत बावा, बी प्रैक, जगदीप सिद्धू ने हार्ट इमोजी पोस्ट की.

 

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Prashant & Jaya ?‍❤️‍? #Panga 24th jan 2020

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बता दें कि जस्सी गिल ने पंगा में कंगना रनौत के पति का रोल किया था. जिसे फैंस ने काफी पसंद किया. जल्द ही जस्सी गिल ‘सोनम गुप्ता बेवफा है’ में अहम रोल में दिखाई देंगे.

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मध्य प्रदेश की सियासत में आया भूचाल, कांग्रेसी विधायक डंग ने दिया इस्तीफा

हिंदुस्तान के दिल मध्यप्रदेश में सियासी उठापटक मची हुई है. इससे पहले भी एकबार ऐसी उठापटक मची थी लेकिन तब कमलनाथ सरकार ने किसी तरह अपने विधायकों को बागी होने से ने केवल बचाया था बल्कि दावा किया था कि बीजेपी के भी कई विधायक उनके संपर्क में हैं. लेकिन अब स्थिति वैसी नहीं है जैसी पहले थी. यानि कि यहां से एमपी की राजनीति करवट बदल सकती है.

खरीद-फरोख्त के बीच कांग्रेस के विधायक हरदीप सिंह डंग ने इस्तीफा दे दिया है, डंग ने अपना इस्तीफा विधानसभाध्यक्ष को भेजा है. वैसे तो डंग का आरोप है कि वह मंदसौर जिले के सुवासरा से दूसरी बार विधायक चुने गए हैं, मगर उनकी बात कोई मंत्री और अधिकारी नहीं सुन रहा है. इससे परेशान होकर वह इस्तीफा दे रहे हैं, लेकिन मौजूदा दौर की राजनीति पर नजर पसारें तो ये उनके तर्क पर यकीन नहीं होता.

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मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने के लिए खरीद-फरोख्त के जाल में फंसने की चर्चाओं के बीच सामने आए विधायकों के जवाबों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, साथ ही सत्ता पक्ष के कई नेताओं को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया है.

राज्य की सियासत में बीते तीन दिनों से कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने के लिए 10 विधायकों को बंधक बनाए जाने की खबरों ने हलचल मचाई हुई है. सीधे तौर पर भाजपा पर आरोप लगे कि उसने कांग्रेस सरकार को समर्थन देने वाले सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों को 25 से 35 करोड़ रुपये में खरीदने का ऑफर दिए गए हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए विधायकों को दिल्ली ले जाने और फिर विधायकों को हरियाणा के एक होटल में रखे जाने व बसपा विधायक राम बाई को मुक्त कराने का दावा किया. मुक्त कराने में मंत्री जीतू पटवारी व दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की बातें कही जा रही है.

कांग्रेस की ओर से जब भाजपा पर खरीद-फरोख्त करने के आरोप लगाए जा रहे हैं, उसी बीच इस मामले में संदिग्ध बने विधायकों के बयान आए हैं. इन बयानों में किसी भी विधायक ने भाजपा पर सीधा आरोप नहीं लगाया, जिसके चलते सत्ता पक्ष से जुड़े कई लोग ही संदेह के घेरे में आ गए हैं. बुधवार की शाम को दिल्ली से छह विधायकों को चार्टर प्लेन से भोपाल लाया गया था. इन विधायकों में से एक बसपा के संजीव सिंह कुशवाहा का कहना है कि उनसे किसी भाजपा के नेता ने संपर्क नहीं किया, साथ ही कांग्रेस नेताओं द्वारा मुक्त कराए जाने की बात को भी नकारा है.

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इसी तरह बसपा की अन्य विधायक (निलंबित) राम बाई ने भी किसी भी तरह से भाजपा के संपर्क में होने और भाजपा नेता के साथ चार्टर प्लेन से दिल्ली जाने की बात से इंकार किया है. उनका कहना है कि, ‘उनकी बेटी की तबियत खराब थी और उन्होंने एक सप्ताह पहले ही दिल्ली जाने का विमान का टिकट कराया था, उस विमान में पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक भी गए थे, मगर उनसे किसी तरह की बात नहीं हुई, आमतौर पर जो अभिवादन होता है, वही हुआ था, यह बात पूरी तरह झूठ है कि मैं उनके साथ गई थी.’

होटल में किसी के द्वारा अभद्रता, मारपीट किए जाने की चर्चाओं के सवाल पर राम बाई ने कहा, “दुनिया में कोई हाथ नहीं लगा सकता, जो उन्हें हाथ लगाता उसका वे हाथ तोड़ देती चाहे वह अधिकारी ही क्यों न हो, सच्चाई जानने के लिए मंत्री जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह से पूछिए जो वहां थे.” इसी तरह निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने भी भाजपा के संपर्क में होने की बात को नकारा है. वे इन दिनों बेंगलुरु में हैं. कहा जा रहा था कि भाजपा उन्हें बेंगलुरु ले गई है. शेरा का कहना है कि वे अपनी बेटी का इलाज कराने बेंगलुरु आए हैं, उनके साथ पूरा परिवार और अन्य कर्मचारी भी है. वे तो सरकार के साथ हैं, मगर सरकार से भी पूछिए कि सरकार उनके साथ है.

विधायकों के बयान पर भाजपा तो हमलावर है मगर कांग्रेस की ओर से मंत्री जीतू पटवारी का कहना है कि इस पूरे घटनाक्रम के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिम्मेदार हैं, विधायक लगातार कांग्रेस के संपर्क में थे क्योंकि भाजपा की सोच जहां खत्म होती है वहां से कमलनाथ की सोच शुरू होती है.

वहीं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने राज्य की जनता को बदनाम करने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि कांग्रेस और दिग्विजय सिंह को प्रदेश की जनता से माफी मांगना चाहिए. खरीद-फरोख्त के आरोपों से घिरे विधायकों के बयानों ने सत्ताधारी दल कांग्रेस की मुसीबत बढ़ाने का काम कर दिया है, क्योंकि किसी भी विधायक ने भाजपा पर खुलकर आरोप नहीं लगाया है.

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भले ही ये नेता किसी भी प्रकार की राजनीतिक उठापटक की बात न मान रहे हों लेकिन राज्य में इस बात की चर्चा है कि भाजपा कांग्रेस के घर सेंध लगाने में जुटी हुई है. लेकिन अभी भी एक  बात लोगों को समझ नहीं आ रही कि ये सब राज्य की सत्ता हथियाने को लेकर है या फिर राज्यसभा में सीटें बढ़वाने के लिए.

पैर फ्रैक्चर होने के बावजूद शूटिंग करती रही ये एक्ट्रेस, जानें क्यों

‘गजनी’, ‘वेकअप इंडिया’,‘सिटी आफ गोल्ड’, ‘हंटर’’ और ‘‘लव सोनिया’’ जैसी हिंदी फिल्मों के अलावा करीबन चालीस मराठी भाषा की फिल्मों व दस टीवी सीरियलो में अभिनय कर अभिनेत्री के तौर पर एक अलग पहचान बना चुकी सई ताम्हणकर इन दिनों लक्ष्मण उतेकर के निर्देशन में बहुचर्चित फिल्म ‘‘मिमी‘ ‘को लेकर काफी उत्साहित हैं, जिसमें उनके साथ कृति सेनन, सुप्रिया पाठक, पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकार भी हैं.

शूटिंग के दौरान हुआ पैर में फ्रैक्चर…

हाल ही में फिल्म की पूरी टीम मंडवा, जयपुर में शूटिंग कर रही थी. जहां शूटिंग के दौरान ही एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में सई ताम्हणकर के पैर में फ्रैक्चर हो गया. डाक्टरों की सलाह के अलावा यूनिट के लोगों ने भी उन्हे आराम करने की सलाह दी, पर सई अपने हिस्से की शूटिंग करती रही.

 

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@Regrann from @lets_draw_light – When I met you in the summer, To my heartbeat sound, We fell in love, As the leaves turned brown ✨? . . . Muse – @saietamhankar Stylist – @nehachaudhary_ Makeup Artist – @malcolmfernz_official Hair – @nikita_harsora_2nd_feb Assisted by – @rohit.khedkar @og_omkargosavi @haranish.hrf . . #optoutside#streetdreamsmag#portraitphotography#attacktheshot#killersgram#heatercentral#way2ill#illgrammers#jj_portraits#humanedge#fatalframes#agameoftones#jj_allportraits#rsa_portraits#igworldclub#igworldclub_women#rsa_ladies#justgoshoot#moodyports#portraitmood#portraitsociety#bnw_society#bnw_captures#indiaphotoproject#humanedge#themysterypr0ject#bnw_planet_2018 @thoughtcatalog #inspiroindia

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चोट के बावजूद करती रही शूटिंग…

सूत्रों के अनुसार जिस दिन सई ताम्हणकर का पैर फ्रैक्चर हुआ उस दिन भी दूसरे दिनों की ही तरह शूटिंग चल ही थी. शूटिंग पूरा होने के बाद जब वह बेस पर जा रही थीं, तो उनका पैर मुड़ गया और पैर में सूजन आ गई थी, तब भी सई शूटिंग करती रही. लेकिन जब सई के पैर में बुरी तरह से दर्द होने लगा, तो उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया. तब पता चला कि यह कोई साधारण चोट नहीं थी,एक फ्रैक्चर था.

इस संबंध में सई ताम्हणकर कहती हैं- ‘‘जब मुझे पता चला कि यह सिर्फ एक मामूली मोच नहीं बल्कि एक फ्रैक्चर था, तो वास्तव में मैं डर गई थी और बहुत तनाव में थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अब मैं अपनी शूटिंग कैसे करुंगी. क्योंकि हम पूरी युनिट के साथ मुंबई से दूर थे. मेरे शूटिंग न करने से इसका असर यूनिट के हर सदस्य पर पड़ना था.

 

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बुरगुंडा! #धुरळा #incinemasnow

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लेकिन मैं बहुत लकी महसूस कर रही हूं. मुझे यह स्वीकार करते हुए खुशी के साथ गर्व है कि पूरी टीम मुझे सपोर्ट कर रही है. मैंने अपने सीन्स की शूटिंग जारी रखी. हमारे निर्देशक लक्ष्मण उतेकर को जरुर यह सोचना पड़ रहा है कि वह किस सीन में किस एंगल से मुझे पेश करते हुए स्क्रीन पर कैसे दर्शाएंगे.”

पहली बार दिया ‘मिमी’ के लिए ऑडिशन…

सई ताम्हणकर के करियर में ‘‘मिमी’’ पहली फिल्म है, जिसके लिए उन्हे ऑडिशन देना पड़ा. खुद सई ताम्हणकर कहती हैं- ‘‘मैंने कई दर्जन मराठी भाषा की फिल्मों में अभिनय किया है, मगर मुझे किसी भी फिल्म के लिए ऑडिशन देने की जरुरत नहीं पड़ी. लेकिन मुझे दिनेश विजन निर्मित और लक्ष्मण उतेकर निर्देशित फिल्म ‘‘मिमी’ के लिए ऑडिशन देना पड़ा और मैने अपना पहला ऑडिशन पास भी किया.’’

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सुपरहिट मराठी फिल्म का रीमेक…

यह 2011 की मराठी भाषा की सैरोगसी के विषय पर बनी सुपर डुपर हिट और राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत फिल्म ‘‘मला आई व्हायचा’’ का हिंदी रीमेक है. इसका 2013 में ‘वेलकम ओबामा’’ नाम से तेलगू भाषा में रीमेक किया गया था. अब ‘मिमी’ नाम से हिंदी में रीमेक हो रहा है.

केजरीवाल से कांपी भाजपा

जिस सहजता से महाराष्ट्र में शिवसेना की पलटीमार राजनीति से चोट खाई, फिर झारखंड में मिली करारी हार और अब सब से छोटे राज्य दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की छोटी सी आम आदमी पार्टी ने देश की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी को चुनावी धूल चटा दी, उस से लगता है कि धर्म की राजनीति का उबाल अब थमने लगा है.

पिछले 100-150 सालों से आधुनिक प्रिंटिंग प्रैस तकनीक, लाउडस्पीकरों, रेडियो, टैलीविजन और अब कंप्यूटर आधारित मोबाइल, इंटरनैट के उपयोग से धर्म की आड़ में जम कर सत्ता हासिल की गई और पूरे देश व समाज को इस की कीमत देनी पड़ी थी. यह स्पष्ट है कि भाजपा देश में धर्म की राजनीति करती है. लेकिन, आम आदमी पार्टी की काम करने की राजनीति से भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति अब कांप गई है.

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राजा राममोहन राय जैसे सती प्रथा विरोधी समाज सुधारक आज की तारीख में केवल बच्चों की टैक्स्ट बुक में रह गए हैं और कल को इन पृष्ठों पर सती मैया के प्रताप की कहानियां परोसनी शुरू कर दी जाएं तो बड़ी बात न होगी. 100-150 वर्षों से जिस ज्ञान को बांटा गया है उस का उद्देश्य सत्ता पाना था, जो 2014 में जा कर साकार हुआ और 2019 में पुनर्विजय के बाद एकएक कर के धार्मिक फैसले लिए जाने लगे. महाराष्ट्र, झारखंड और अब दिल्ली ने उस पर ब्रेक लगाई है.

मतदान से ठीक एक दिन पहले राममंदिर ट्रस्ट को घोषित कर के एक लौलीपौप और दिया गया कि वोट धार्मिक कट्टरता को ही करना, बटन ऐसे दबाना कि तार्किक दिमाग बंद हो जाएं और धार्मिक दिमाग पर दीए जलने शुरू हो जाएं ताकि दिल्ली के सिंहासन पर बैठे महादेवताओं के चेहरे चमकें और आम जनता धर्म के नाम पर अपनी अंतिम साड़ी भी उतार कर दान में दे दे.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा नेता व देश के गृहमंत्री अमित शाह की सारी राजनीति धारा 370, बालाकोट, पाकिस्तान, नागरिकता संशोधन कानून पर टिकी थी जबकि आप नेता व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन पर बहस से बचते हुए केवल 200 यूनिट तक बिना पैसे के बिजली बिल, फ्री पानी, औरतों के लिए बस में मुफ्त यात्रा, साफ अस्पतालों और अच्छे स्कूलों की बात करते रहे. भाजपा के लिए ये विषय निरर्थक हैं. शायद भाजपा यही सोचती है कि ये सब भौतिक चीजें मिलती हैं लेकिन पूजापाठ से. सो, वह पूजापाठ करने के लिए मंदिरों को बनवाने, चारधाम को ठीक करने और यमुनातट पर आरतियों की बात करती रही.

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अरविंद केजरीवाल सरकार के पिछले 5 साल केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से उलझते हुए बीते थे. अरविंद केजरीवाल की पिछली बार की 67 सीटों पर जीत भाजपा पचा नहीं पाई. वह केजरीवाल के दस्यु राज (भाजपा के दृष्टिकोण के मुताबिक) में लगातार विघ्न डालने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल का स्वार्थवश इस्तेमाल करती रही. उसे विश्वास था कि दस्यु दमन पर खुश हो कर ब्रह्मा उस की झोली में 60 सीटें डाल देंगे. लेकिन, हुआ उलटा. इस सब का यह अर्थ नहीं है कि जनता समझ चुकी है. हां, कुछ चेती जरूर है.

धार्मिक प्रचार करने वालों की तरकीबें समझना आसान नहीं है. वे तरहतरह से बातों को घुमाना जानते हैं और अच्छेअच्छों को बहकाना उन के बाएं हाथ का खेल है. वे आने वाले वक्त में आम आदमी पार्टी में घुसपैठ कर सकते हैं और उसे अंदर से तोड़मरोड़ सकते हैं. वे संवैधानिक तीरों के सहारे फिर से अरविंद केजरीवाल पर हमले कर सकते हैं और जनता के फैसले को निरर्थक कर सकते हैं.

दिल्ली की जनता ने अभी तो वैसी ही जागरूकता दिखाई है जैसी अर्धमिश्रित झारखंड व छत्तीसगढ़ की जनता ने दिखाई थी. जब तक जनता की यह भावना हर कदम में न दिखे, गुरुडम का डर बना रहेगा.

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मैं कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं पर कभी संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई, क्या करूं?

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. अपने बौयफ्रैंड के साथ 1 साल से कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं पर मुझे कभी संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई. मैं जानना चाहती हूं कि क्या मुझ में कोई कमी है और क्या मैं भविष्य में मां बन पाऊंगी या नहीं?

जवाब

सहवास के दौरान आनंदानुभूति न होने की मुख्य वजह सैक्स के प्रति आप की अनभिज्ञता ही है. जहां तक संतानोत्पत्ति का प्रश्न है तो उस का इस से कोई संबंध नहीं है. पीरियड के तुरंत बाद के कुछ दिनों में पति पत्नी समागम के बाद स्त्री गर्भ धारण कर लेती है, बशर्ते दोनों में से किसी में कोई कमी न हो. इसलिए आप कोई पूर्वाग्रह न पालें.

पर विवाह से पहले किसी से संबंध बनाना किसी भी नजरिए से उचित नहीं है. अत: इन संबंधों पर तुरंत विराम लगाएं वरना पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

लुटेरी दुल्हन: इस जवान रानी के थे इतने बूढ़े राजा, शादी कर लगाती थी चूना

भोपाल के कोलार इलाके में रहने बाले 72 साला सोमेश्वर (बदला नाम) के पास सब कुछ था. दौलत, इज्जत, अपना बड़ा सा घर और वह सब कुछ जिसकी जरूरत सुकून, सहूलियत और शान से जीने के लिए चाहिए रहती है. पेशे से इंजीनियर रहे सोमेश्वर की पत्नी की मौत कोई एक साल पहले हुई थी तब से वे खुद को काफी तन्हा महसूस करने लगे थे जो कुदरती बात भी थी. रोमांटिक और शौकीन मिजाज के सोमेश्वर ने एक दिन अखवार में इश्तिहार दिया कि उनकी देखरेख के लिए एक स्वस्थ और जवान औरत की जरूरत है जिससे व शादी भी करेंगे.

जल्द ही उनकी यह जरूरत पूरी करता एक फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम शंकर दुबे बताते हुये कहा कि वह पन्ना जिले के भीतरवार गांव से बोल रहा है उसकी जान पहचान की एक जवान औरत काफी गरीब है जिसके पेट में बचपन में गाय ने सींग मार दिया था, इसलिए उसने शादी नहीं की क्योंकि वह अब मां नहीं बन सकती थी.

सोमेश्वर के लिए तो यह सोने पे सुहागा बाली बात थी क्योंकि इस उम्र में वे न तो औलाद पैदा कर सकते थे और न ही बाल बच्चों बाली बीबी चाहते थे जो उनके लिए झंझट बाली बातें थीं. बात आगे बढ़ी तो उन्होने शंकर को उस औरत यानि लड़की को भोपाल लाने का न्योता दे दिया.

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चट मंगनी पट ब्याह…..

शंकर जब रानी को लेकर उनके घर आया तो सोमेश्वर उसे देख सुध बुध खो बैठे. इसमें उनकी कोई गलती थी भी नहीं भरे पूरे बदन की 35 साला रानी को देखकर कोई भी उसकी मासूमियत और भोलेपन पर पहली नजर में मर मिटता. देखने में भी वह कुंवारी सी ही लग रही थी लिहाजा सोमेश्वर के मन में रानी को देखते ही लड्डू फूटने लगे और उन्होने तुरंत शादी के लिए हां कर दी.

इस उम्र और हालत में कोई बूढ़ा भला बैंड बाजा बारात के साथ धूमधाम से तो शादी करता नहीं इसलिए बीती 20 फरवरी को उन्होने रानी से घर में ही सादगी से शादी कर ली और घर के पास के ही मंदिर में जाकर उसकी मांग में सिंदूर भर कर अपनी पत्नी मान लिया. जिसका मुझे था इंतजार वो घड़ी आ गई की तर्ज पर सुहागरात के वक्त सोमेश्वर ने अपनी पहली पत्नी के कोई 15 तौले के जेवरात जिनकी कीमत 6 लाख रु होती है रानी को उसकी मांग पर दे दिये और सुहागरात मनाई. उनकी तन्हा ज़िंदगी में जो वसंत इस साल आया था उससे वो खुद को बांका जवान महसूस कर रहे थे.

रानी को बीबी का दर्जा और दिल वे दे ही चुके थे इसलिए ये सोना, चांदी, हीरे, मोती उनके किस काम के थे ये तो रानी पर ही फब रहे थे. लेकिन रानी ने दिल के बदले में दिल उन्हें नहीं दिया था जब यह बात उन्हें समझ आई तब तक चिड़िया खेत चुग कर फुर्र हो चुकी थी साथ में उसका शंकर नाम का चिड़वा भी था.

इधर जग हंसाई से बचने सोमेश्वर ने अपनी इस शादी की खबर किसी को नहीं दी थी यहां तक कि कोलकाता में नौकरी कर रहे इकलौते बेटे को भी इस बात की हवा नहीं लगने दी थी कि पापा उसके लिए उसकी ही बराबरी की उम्र की मम्मी ले आए हैं.

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यूं खत्म हुआ खेल

सोमेश्वर की खुमारी अभी पूरी तरह उतरी भी नहीं थी कि दूसरे ही दिन शंकर ने घर आकर यह मनहूस खबर सुनाई कि रानी की मां की मौत हो गई है इसलिए उन्हें तुरंत गांव जाना पड़ेगा. रोकने की कोई वजह नहीं थी इसलिए सोमेश्वर ने उन्हें जाने दिया और मांगने पर रानी को 10 हजार रु भी दे दिये जो उनके लिए मामूली रकम थी. पर गैरमामूली बात यह रही कि जल्दबाज़ी में रानी रात को पहने गहने उतारना भूल गई उन्होंने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया.

2 दिन बाद शंकर फिर उनके घर आया और उन्हें बताया कि रानी अब मां की तेरहवी के बाद ही आ पाएगी और उसके लिए 40 हजार रु और चाहिए. सोमेश्वर ने अभी पैसे देकर उसे चलता ही किया था कि उनके पास राजस्थान के कोटा से एक फोन आया. यह फोन राजकुमार शर्मा नाम के शख्स का था जिसकी बातें सुन उनके पैरों तले जमीन खिसक गई.

63 वर्षीय राजकुमार ने उन्हे बताया कि कुछ दिन पहले ही उनकी शादी रानी से हुई थी जो कि उसके रिश्तेदार शंकर ने करवाई थी लेकिन दूसरे ही दिन रानी की मां की मौत हो गई थी इसलिए वे दोनों गांव चले गए थे इसके बाद से उनके कहीं अते पते नहीं है. रानी और शंकर भारी नगदी ले गए हैं और लाखों के जेवरात भी. राजकुमार को सोमेश्वर का नंबर रानी के काल डिटेल खंगालने पर मिला था. दोनों ने खुलकर बात की और व्हाट्सएप पर रानी के फोटो साझा किए तो इस बात की तसल्ली हो गई कि दोनों को कुछ दिनों के अंतर से एक ही तरीके से बेबकूफ बनाकर ठगा गया है.

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कल तक अपनी शादी की बात दुनिया से छिपाने बाले सोमेश्वर ने झिझकते हुये कोलकाता अपने बेटे को फोन कर आपबीती सुनाई तो उस पर क्या गुजरी होगी यह तो वही जाने लेकिन समझदारी दिखते उसने भोपाल पुलिस को सारी हकीकत बता दी. तफ्तीश हुई तो चौंका देने बाली बात यह उजागर हुई कि इन दोनों ने सोमेश्वर और राजकुमार को ही नहीं बल्कि जबलपुर के एक और अधेड़ सोनी को भी इसी तर्ज पर चूना लगाया है जो सरकारी मुलाजिम हैं.

भोपाल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने फुर्ती दिखाते दोनों को दबोच लिया तो रानी का असली नाम सुनीता शुक्ला निवासी सतना और शंकर का असली नाम रामफल शुक्ला निकला. हिरासत में इनहोने तीनों बूढ़ों को ठगना कुबूल लिया. पुलिस ने दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी और चारसौ बीसी का मुकदमा दर्ज कर लिया.

बन गए बंटी और बबली  –

दरअसल में सुनीता रामफल की दूसरी पत्नी है. सतना का रहने बाला रामफल सेना में नौकरी करता था लेकिन तबीयत खराब रहने के चलते उसे नौकरी छोड़ना पड़ी थी. पहली पत्नी के रहते ही उसने सुनीता से शादी कर ली थी. दोनों बीबीयों में पटरी नहीं बैठी और वे आए दिन बिल्लियों की तरह लड़ने झगड़ने लगीं तो रामफल ने सुनीता को छोड़ दिया.

कुछ दिन अलग रहने के बाद सुनीता को समझ आ गया कि बिना मर्द के सहारे और पैसों के इज्जत तो क्या बेइज्जती से भी गुजर करना आसान नहीं तो वह वापस रामफल के पास आ गई और अखबारों के वैवाहिक विज्ञापनों के बूढ़ों के बारे में उसे अपनी स्कीम बताई तो रामफल को भी लगा कि धंधा चोखा है. एक के बाद एक इन्होंने तीन बूढ़ों को चूना लगाया हालांकि पुलिस को शक है और वह इस बात की भी छानबीन कर रही है कि इन्होंने कई और लोगों को भी ठगा होगा अभी तो इस हसीन रानी के तीन राजा ही सामने आए हैं. मुमकिन है कई दूसरों ने शर्मोहया के चलते रिपोर्ट ही दर्ज न कराई हो.

लुटेरी दुल्हनों द्वारा यूं ठगा जाना कोई नई बात नहीं है बल्कि अब तो ऐसे मामले हर दिन सामने आ रहे हैं. सोमेश्वर, राजकुमार और सोनी जैसे बूढ़े जिस्मानी जरूरत और सहारे के लिए शादी करें यह कतई हर्ज की बात नहीं, हर्ज की बात है इनकी हड़बड़ाहट और बेसब्री जो इनके ठगे जाने की बड़ी वजह बनते हैं.

प्रिसाइडिंग औफिसर की डायरी

प्रिसाइडिंग औफिसर की डायरी: भाग-4

कतारों में खड़े लोगों को देखने भर से ही उन की निर्धनता का अंदाजा लग रहा था. अधिकांश के पैरों में चप्पलें नहीं थीं. पहनावा भी ढंग का नहीं था. बोलचाल से साफ पता रहा था कि उन्हें रियांग भाषा को छोड़ दूसरी कोई भाषा नहीं आती. उन की दुनिया स्वयं तक सीमित है. पहाड़ की तलहटी में बसे गांव में वे कभीकभार बाजार करने जाते होंगे. जिला मुख्यालय हैलाकांदी या शिल्चर शायद कभी गए हों. हां, एक बात साफ है कि भले ही वे निर्धन हों पर वे अपनी अभावग्रस्त जिंदगी में भी संतुष्ट थे. बस, उन्हें चाहिए था अपने घर में पीने का साफ पानी, बिजली, बच्चों के लिए विद्यालय और आवागमन के लिए सही रास्ते, ताकि वे भी दुनिया के साथ सही तालमेल बिठा सकें.

लोग कतारबद्ध खड़े थे. चुनाव चल रहा था. हमारे साथियों को दम मारने की फुरसत नहीं थी. वे चाह कर भी उठ नहीं पा रहे थे. खाने के नाम पर कुछ बिस्कुट और चोंगे में चाय मिली. दोपहर का 1 बजने वाला था. फिर भी कतार लंबी थी. स्थानीय लोग भोजन ले कर हाजिर थे. मनुहार कर रहे थे, ‘‘खाना खा लेते तो ठीक था.’’

मेरे एक सहयोगी ने अनुरोध किया, ‘‘आधे घंटे के लिए नियमानुसार मतदान रोक दें. प्रिसाइडिंग औफिसर की डायरी में लिखा भी है. कुछ खाने की इच्छा नहीं. मगर बैठेबैठे देह अकड़ गई है. हम अपना शरीर जरा सीधा कर लें.’’

कुछ अन्य लोग भी इस से सहमत थे. मगर बाहर प्रतीक्षारत लोगों को क्या कहें. वे भी तो धूप में घंटों खड़े थे. उन्हें अपनी बारी का इंतजार था. उत्सुकता और जिज्ञासा थी कि वे देखें कि मतदान क्या और कैसे होता है. उन के इस नागरिक अधिकार की पूर्ति का यही तो एक मौका था. मतदान रोक कर कैसे खाना खाएं हम लोग. बाहर लगी लंबी लाइन को कैसे नजरअंदाज कर देते. इन्हें फिर इस का मौका कब मिले, पता नहीं.

‘‘थोड़ा धैर्य रखिए,’’ मैं ने कहा, ‘‘आप अपना काम मुझे दें और 10 मिनट में भोजन के बहाने शरीर सीधा कर लें.’’

मेरे सहयोगियों को भी यहां की परिस्थिति की गंभीरता का एहसास था कि हम एक उग्रवाद पीडि़त क्षेत्र में हैं, सो कोई तर्कवितर्क नहीं करते. वे जानते थे कि अभी जो ठीकठाक चल रहा है, वह एक जरा सी गड़बड़ी या अव्यवस्था से भयानक रूप ले सकता है. एक जरा सी चूक हुई नहीं कि हमें जान के लाले पड़ सकते हैं क्योंकि ये तथाकथित सीधेसादे पहाड़ी लोग जब हिंसक होते हैं तो उन्हें संभालना काफी कठिन हो जाता है. आखिर हमें अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था इसलिए तो दी गई है. ये लोग हमारे काम में सहयोग कर रहे हैं, यह बड़ी बात है. मैं ने एकएक कर सभी सहयोगियों को भोजन करने के लिए भेज दिया. वे खड़ेखड़े ही भोजन कर शीघ्रतापूर्वक वापस आ गए.’’

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‘‘सर, आप भी भोजन कर लीजिए,’’ एक रियांग युवक ने मनुहार की, ‘‘आप भी थके हैं बहुत.’’

उस के अनुरोध पर मैं ने प्लेट पकड़ी. भोजन में वही कल वाली सामग्री. बस, मछली की जगह आज चिकन था और आलूगोभी की सब्जी थी लेकिन वह भी अच्छी लगी. मैं भी जल्दीजल्दी खाना खा कर वापस लौट आया.

ढाई बज रहे थे. भीड़ कम होती हुई खत्म होने को थी. अब पैकिंग की बारी थी. लेकिन मुझे तो नियमानुसार 3 बजे के बाद ही पैकिंग करनी थी.

मेरे सहयोगी स्थानीय चुनाव एजेंटों की देखरेख में मतपेटी को बंद कर सीलमुहर लगा रहे थे. यह भी काफी मुश्किल व संवेदनशील कार्य था. सुरक्षाकर्मी कह रहे थे, ‘‘लौटना है तुरंत. आप लोग भी तैयार हो जाएं.’’

अब मतदानपेटी सुरक्षाकर्मियों के घेरेबंदी में थी.

पोर्टर आ चुका था. सामान बांधे जा चुका था. सभी के पैर वापसी के लिए बेचैन थे. जैसे हमारे पीछे कोई आदमखोर शेर लगा हो. सभी वहां से जल्द से जल्द निकलना चाहते थे.

हमारा कारवां वापसी के लिए चल पड़ा. सभी को धन्यवाद कह कर हम भी चल पड़े. एक गहरी नजर उस प्राथमिक विद्यालय पर डाली, जहां किसी अनहोनी की आशंका के बीच हम ने दमसाधे 10 घंटे का समय बिताया था.

वापसी 4 बजे शुरू हुई. फिर जंगलपहाड़ों के बीच गुजरते, चढ़नेउतरने का सिलसिला शुरू हुआ. 5 बजे तक दिन के उजाले में जितना रास्ता तय कर लिया जाता, उतना बेहतर था. फिर बाद में अंधेरे में गति धीमी हो जानी थी और खतरा बढ़ने का अंदेशा भी था. ये खतरे कई प्रकार के हो सकते थे, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था. सो सभी तेजतेज चल रहे थे.

अंधेरा बढ़ने के साथ हमारे सहयोगी सुरक्षाकर्मियों की टौर्च चमकने लगी थीं. वे हमें रास्ता दिखाते आगे बढ़ रहे थे. नाला और नदी पार हुए. जंगल और पहाड़ का रास्ता खत्म हुआ. अब हम रामनाथपुर की धूल भरी पगडंडियों पर चल रहे थे.

वहां के बस स्टैंड पर सरकारी गाड़ी लगी थी, जिस में हमें सवार होना था. मतदान सामग्री और अपने सामान को वहां बस में रख कर हमें थोड़ी मुक्ति का एहसास हुआ. अब सबइंस्पैक्टर अपनी सेवाओं के बदले एक कागजात पर अपनी मुक्ति हेतु मेरे हस्ताक्षर ले रहा था.

रामनाथपुर में बिजली नहीं है. मगर यहां भी दूसरे भारतीय कसबों के समान जेनरेटर से भाड़े के बल्ब जल रहे थे. अब तो कुछ ढंग का खा लें. मगर वहां के होटलों में कुछ हो, तब तो खाएं. आज चुनाव का दिन था. सो, होटलों में खाने की सामग्री खत्म थी. चलो, जो भी बचा था वही खा लिया जाए. स्वाद यहां देखता कौन है. मगर जो था, वह देने में दुकानदार इनकार करने लगा, क्योंकि वह खराब था, खाने योग्य नहीं था. मन मार कर बिस्कुट के पैकेट से काम चलाना पड़ा.

धीरेधीरे दूसरे मतदान केंद्रों में गए मतदान अधिकारी भी पहुंच गए थे. 9 बजे रात में बस घरघराने लगी. 11 बजे रात तक हैलाकांदी पहुंचना था. बस के आगेपीछे पुलिस का दस्ता था.

वहां पहुंचते ही मतदानपेटी और दूसरी सामग्री जमा करते रात का 1 बज चुका था. खाने का लंगर खुला था. मगर एक तो ऐसे ही भूख मर चुकी, फिर वहां ढंग का भोजन भी तो हो. बस, यही एक संतोष था कि मतदानपेटी जमा हो गई. उसे जमा करते वक्त मेरे सहयोगी के एक सवाल उछालता है, ‘‘प्रिसाइडिंग औफिसर की डायरी कहां है?’’

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‘‘वह यह है जनाब,’’ मैं ने तपाक से कहा और डायरी जमा कराने के लिए चल पड़ा.

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