ऋतु ही बौराने की है. आम से ज्यादा खास बौरा रहे हैं. फिर वे तो अमेरिका से खासतौर से बौराने आए हैं. अहोभाग्य इस आर्यावर्त के , लग ऐसा रहा है मानो सुदामा के घर कृष्ण पधारे हैं. सुदामा ने चावल की पोटली नहीं खोली बल्कि जुमेटो पर बिरियानी आर्डर कर दी है. उनके आने की आहट के साथ ही गरीबखाना सजने लगा था.सुदामा बीबी के गहने लाला के पास गिरवी रख देगा लेकिन देश की नाक नहीं कटने देगा. वे कृष्ण के ही नहीं बल्कि पूरे देश के दोस्त हैं पर कैसे हैं यह बौराये हुये लोगों को नहीं मालूम.जार्ज पंचम के वक्त में भी किसी को नहीं मालूम था बस ड्यूटी थी कि जैकारा करना है सो करते रहे थे आज भी नमस्ते नमस्ते कर रहे हैं.

उनके आने के पहले ही गरीबी दीवारों में चुनवा दी गई थी , गरीब दूर कहीं हांक दिये गए थे. ठीक वैसे ही जैसे किसी निर्धन के घर कभी कोई अमीर रिश्तेदार आता है तो नंग धड़ंग बच्चों को खेलने भेज दिया जाता है. गृह स्वामिनी ट्रंक में से शादी के वक्त मायके से मिली सलमा सितारों बाली साड़ी निकाल कर पहन लेती है लेकिन गरीबी उसके रूखे सूखे चेहरे से टपक ही पड़ती है. अमीर रिश्तेदार एक नजर में ही ताड़ जाता है कि इनकी जीडीपी ज्यों की त्यों गिरी पड़ी है. पड़ोसी से पैसे ही उधार नहीं लिए जाते बल्कि क्राकरी भी उधार ली जाती है.

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रईस रिश्तेदार अपने आप में शोषक और सूदखोर होता है.वह खाता कम है नाश्ते का निरीक्षण यह सोचते ज्यादा करता है कि इनकी औकात मूँगफली के दानों की नहीं फिर ये साले काजू कहाँ से ले आए वे भी भुने हुये और मसालेदार. फिर वह समझ जाता है कि गरीबी ढकने के चक्कर में मेजबान अनजाने में उसे और उजागर ही कर रहा है. उसे अपने वैभव और संपन्नता पर गर्व हो आता है इसी भावुकता में वह जानबूझकर मेजबान को गले लगा बैठता है. फिर यह पीढ़ियों तक सुनाया जाने बाला किस्सा बन जाता है कि देखो बड़े आदमी हैं पर गुरूर इनमें नाम का भी नहीं.

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