निर्भया के दोषियों की फांसी की सजा पर दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है जिस पर निर्भया की मां आशादेवी ने फिर उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया दी है कि बार बार फांसी का टलना सिस्टम की नाकामी को दर्शाता है . आज लोगों के बीच हमारे देश में इंसाफ से ज्यादा मुजरिमों को सपोर्ट किया जाता है . इससे स्पष्ट होता है कि हमारा सिस्टम भी दोषियों के बचाव के लिए है .
तकनीकी तौर पर आशादेवी का यह बयान प्रथम दृष्ट्या ही अदालत की अवमानना है , इस पर भी उन्हें आम लोगों का समर्थन मिल रहा है तो लगता ऐसा है कि लोग सिर्फ फांसी की सजा का रोमांच भर लेना चाहते हैं और यह फांसी उनके लिए एक इवैंट बनकर रह गई है . क्या निर्भया के दोषियों को कानूनी प्रक्रिया को ताक में रखते जल्द फांसी महज इसलिए दे दी जाये कि उसकी मां और लोग जल्द ऐसा चाहते हैं ?
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इस सवाल का जबाब सीधे सीधे न में ही निकलता है . फांसी के शौकीन लोगों को अदालत की दलीलों पर गौर करते सोचना चाहिए कि यह चार लोगों की ज़िंदगी और उनके कानूनी अधिकारों का भी सवाल है जो किसी मां की इच्छा पर उनसे छीना नहीं जा सकता . बिलाशक इन चारों दरिंदों ने जो किया वह बेहद शर्मनाक , अमानवीय , अमानुषिक और दरिंदगी भरा जुर्म है . इसकी सजा अदालत उन्हें सुना भी चुकी है और कानूनी औपचारिकताए पूरी होने के बाद फांसी उन्हें होगी भी , लेकिन आशादेवी की बातों से सहमत होने से पहले इन अहम बातों पर गौर करना जरूरी है –