टीकाकरण के पूर्व कोचिंग करण…

जब मेरा बेटा 7वीं कक्षा में पहुंचा और मैं बदली पर भोपाल पहुंचा, तो सयानजनों ने कहा कि यह सही सत्य है कि आने वाले समय व उस समय की प्रतियोगिता की धार को देखते हुए बेटे को आईआईटी, ट्रिपलआईटी आदि परीक्षाओं में सफलता अर्जित करने के अवसर बढ़ाने की गरज से आप कोचिंग में डाल दो.

लेकिन उस समय मुझे 7वीं कक्षा के बच्चे को कोचिंग में डालना बेकार का काम लगा और कोचिंग वालों की सोच व उन मांबाप पर भी मुझे तरस आया जिन्होंने अपने इतने छोटे बच्चों को कोचिंग संस्थानों में कैसे भी दाखिला करवा दिया है. इस बात को कई साल बीत गए. अब पेरैंट्स के बीच कोटा का बहुत नाम है, कम से कम जिन के बच्चे 9वीं में पहुंच गए हैं.

यह बात अलग है कि कोटा के स्वयं के हाल बेहाल हैं. हर माह वहां बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं. इसी कोटा की एक विख्यात कोचिंग संस्थान की शाखा भोपाल में खुली. अब जब हमारा बेटा 11वीं में पहुंच चुका था, इन का लटकेदार व झटकेदार विज्ञापन पढ़ कर यों ही इस संस्थान में एक दिन पहुंच गए.

ये भी पढ़ें- शौचालय

मेरे आते ही सुंदर, सुशील, गौरवर्ण, लंबी व अपने कार्य में दक्ष रिसैप्शनिस्ट ने पूछा, ‘‘आप ने अपौइंटमैंट लिया है?’’ मैं ने मजाक में कहा, ‘‘हां, मुझ से मिलने के लिए कई लोग अपौइंटमैंट लेते हैं?’’ फिर वे बोलीं, ‘‘नहीं, मैं यहां की बात कर रही हूं?’’ मैं ने कहा, ‘‘जी नहीं.’’ तो वे बोलीं, ‘‘अभी सर काफी बिजी हैं. मुलाकात में समय लगेगा.’’ मैं ने सोचा, अब वापस इतनी दूर जा कर क्या करेंगे, इंतजार करते हैं.

इंतजार के दौरान व्यक्ति जहां बैठा हो, वहां की दीवारों आदि पर उस की नजर जाती ही है. सामने दीवार पर टंगे एक पोस्टर में बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था – ‘जेईई शर्तिया प्लान.’ नीचे उस का विवरण था- ‘प्रवेश तीसरी कक्षा से आवश्यक है.’ बवासीर व भगंदर के शर्तिया इलाज के विज्ञापन तो सुने थे लेकिन आईआईटी प्रवेश परीक्षा में पास होने का शर्तिया प्लान पहली बार सुना था.

इस प्लान की खास बात यह थी कि बच्चे का स्कूल साथसाथ चलता रहेगा, मगर कोचिंग दौड़ती रहेगी. मैं कहां पहले 7वीं कक्षा के बच्चे को कोचिंग में दाखिले को बकवास बात मान रहा था और ये महानुभव तीसरी कक्षा से ही बच्चे पर कब्जा चाहते हैं. तीसरी कक्षा का बच्चा मतलब 8-9 साल का नौनिहाल.

बात यहीं रुकती, तो ठीक थी. काफी देर बाद जब मेरा नंबर आया तो सर से मुलाकात हुई. वैसे आजकल सब से बड़े ‘सर’ कोचिंग वाले ही हो गए हैं. बातों ही बातों में उन्होंने इशारा किया कि तीसरी कक्षा वाले उन के विशेष प्लान में प्रवेश बहुत मुश्किल है. जबकि, मैं ने अभी यह प्रकट ही नहीं किया था कि मेरा बेटा कौन सी कक्षा में है. हां, मुझे यह जरूर अच्छा लगा कि वे मुझे मेरी उम्र से काफी छोटा समझते रहे थे.

ये भी पढ़ें- बागी नेताओं के इंटरव्यू

वैसे भी, इस समय बड़ी उम्र के ऐसे बापों का जमाना है जिन के बच्चे बहुत छोटे हों. जब उम्रदराज डोनाल्ड ट्रंप का बेटा मात्र 13 साल का हो सकता है तो मेरा क्यों नहीं. सर अतिउत्साहित थे, बोले, ‘‘तीसरी कक्षा से ही फुल कोचिंग वाले प्लान को इतना अच्छा रिस्पौंस आप जैसे जागरूक पेरैंट्स दे रहे हैं कि हम अब एक और नया प्लान लौंच कर रहे हैं.’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछ लिया, ‘‘वह कौन सा है?’’ वे बोले, ‘‘अब पहली कक्षा से ही हम होनहार बच्चों का अपने यहां दाखिला कर लेंगे और फिर उन्हें 12वीं तक की कोचिंग देंगे. उस की स्कूली शिक्षा भी हमारे चलती का नाम गाड़ी ब्रैंड चयनित स्कूल में चलती रहेगी. हम पहली से ही उसे भविष्य की कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेंगे.’’

इस कोचिंग संस्थान की कल्पनाशीलता का मैं कायल हो गया, लेकिन तुरंत इस से मेरी कल्पनाशीलता भी जाग गई. मैं अपनी आम भारतीय की तरह दिन में सपने देखने की आदत के मुताबिक तुरंत किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गया. मैं एक ऐसे कोचिंग संस्थान में पहुंच गया था जहां कि पहली कक्षा क्या, बल्कि नर्सरी से ही बच्चों को कोचिंग संस्थान में ले लिया जाता था.

उन का कहना था कि उन का ‘प्ले कोचिंग स्कूल’ का मौडल ऐसा है कि बच्चे को इसी उम्र से हम कोचिंग की तथा यहीं से आईआईटी की ओर मोड़ देते हैं. उस के मन को हम अपने विजन से जोड़ लेते हैं. प्ले कोचिंग स्कूल के सारे गेम्स व प्ले आईआईटी से ही जुड़े रचेबुने हैं. मैं ने उत्सुकता से पूछा, ‘इतने छोटे बच्चे पर इतनी पढ़ाईलिखाई का क्या बोझ डालना?’

उन्होंने कहा, ‘आप सही हैं, लेकिन यह बोझ नहीं है. खेलखेल में हम उसे नर्सरी से ही आईआईटी ही ‘जीवन का लक्ष्य है’ का संदेश उस के कोमल दिमाग में प्रविष्ट करा देते हैं. बचपन में ही हम उसे सपने बुनने सिखा देंगे तो उसे सफल तो होना ही है. यह उस का एक तरह से ब्रेनवाश होता है.’ मैं ने कहा, ‘कोमल दिमाग में क्या ऐसी कठोर बात डालनी जरूरी है?’ वे बोले, ‘नहीं डालोगे तो आप का बच्चा फिर भविष्य के कंपीटिशन में कहां ठहरेगा?’

ये भी पढ़ें- यारो, शूल चुभाओ कोई बेवकूफ आया है

यहीं तक बात होती, तो भी हम मान जाते, लेकिन इन का आगे का एक और भी लेकिन वाकई डरावना प्लान था. वह यह था कि बच्चा एक साल का हुआ और वह मांबाप का नहीं, इन का हुआ. ये उसे उसी दिन से कोचिंग संस्थान में रख लेंगे. प्रीनर्सरी के समय ही उस का जेईई के लक्ष्य हेतु ब्रेनवाश करना जरूरी होगा. मैं ने सोचा कि उस के बचपन का क्या होगा. उन की सोच थी कि बचपन तो 55 में भी आ जाता है. अभी तो कंपीटिशन के माहौल में बचपन से ही ढालना होगा.

मैंने कहा, ‘इतनी कम उम्र का बच्चा तो मां की गोद में ही रहता है. और फिर मां का ही दूध बच्चे के लिए सब से अच्छा आहार होता है. सो, इस का क्या होगा?’ तो वे मुसकरा कर बोले, ‘महाशय, हम ऐसे ही इतने नामधारी नहीं हैं, इस के बारे में हमारी योजना बन चुकी है. हम पन्ना धाय की तरह यहां आयाएं रखेंगे और हम मांओं को भी सुविधा उपलब्ध कराएंगे कि वे समयसमय पर आ कर अपने बच्चे को देख सकती हैं, फीड भी करा सकती हैं. वैसे, आज की मांएं फिगर के चक्कर में फीडिंग कराने का जिगर नहीं रखतीं.’

अब मैं और आगे की सोचने लगा कि भविष्य में ऐसा होने वाला है कि कोई स्त्री गर्भवती हुई नहीं कि कोचिंग वाले चक्कर लगाना शुरू कर देंगे, टीकाकरण वगैरह बाद में हो सकता है. कोचिंगकरण तो बच्चे के पेट में रहते ही अब जरूरी रहेगा. कंपीटिशन इतना गलाकाट हो गया है कि इन के प्लान की कोई काट भी नहीं होगी. उस समय तक जनसंख्या भी बढ़ कर 200 करोड़ हो चुकी होगी. लेकिन अच्छे संस्थानों में सीट्स उतनी ही रहेंगी. थोड़ीबहुत बढ़ेंगी और जब हर मांबाप अपने अंदर यह जिजीविषा पाले हैं कि उन का बच्चा आईआईटी में दाखिला ले तो इन की बात भी लोग पूरी तरह नकार नहीं पाएंगे.

ये भी पढ़ें- हाइटैक स्कूल

वैसे भी, पेरैंट्स की एक खास बात होती है कि वे जब बच्चे थे तो उतने महत्त्वाकांक्षी नहीं थे, लेकिन जब बालबच्चेदार बन जाते हैं तो अति महत्त्वाकांक्षी हो जाते हैं. कुछ ऐसे लोग भी होंगे जोकि अजन्मे बच्चे की कोचिंग की व्यवस्था कर लेंगे. कोचिंग वाले स्कीम भी इस तरह की डिजाइन कर देंगे कि यदि आप को जुड़वां हो गए, तो दूसरे की कोचिंग मुफ्त रहेगी. लेकिन कल्पनाशीलता की कोई सीमा नहीं होती है. ये

कोचिंग वाले इस के आगे भी, आगे के जमाने में चले जाएंगे. ये जिस की शादी हुई, उस के ये पीछे लग जाएंगे. या, यों कहिए कि हनीमून टूर का भी पीछा करने में इन्हें गुरेज नहीं होगी. ये पूछ भी सकते हैं कि महाशय, परिवार बढ़ाने की कब सोच रहे हैं?

हर कोचिंग संस्थान में एक सैल ऐसा होगा जोकि नए विवाहित जोड़ों में अपने बिजनैस की जोड़तोड़ का स्कोप देखेगा. इस के एक्जिक्यूटिव इन से अपौइंटमैंट ले कर अपनी बात सामने रखेंगे. लोगों को बताएंगे कि कोचिंग का कितना महत्त्व है.

जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचेंगे कोचिंग वाले. और गंगू तो यह सोचता है कि आगे यह भी हो सकता है कि जो बच्चा उन के यहां कोचिंग ले रहा है, 12वीं में पहुंच गया है, उस के साथ भी वे कहीं एग्रीमैंट न कर लें कि जब तुम्हारा ब्याह होगा और बालबच्चों वाले होगे तो तुम भी अपनी आलौद हमें कोचिंग के पुनीत काम के लिए सौंप दोगे, ताकि हम उसे कंपीटिशन फेस करने के लिए फौलाद जैसा बना सकें.

ये भी पढ़ें- धूमकेतु समस्या

भविष्य कितना सुनहरा होगा, देखते जाएं. 12वीं का विद्यार्थी जिस की पूरी दाढ़ीमूंछ भी नहीं आई है उस की शादी व उस के बाद उस की औलाद की कोचिंग का प्लान. नीति आयोग भी इतना आगे की नहीं सोचता होगा.

इलाहाबाद के पंडों की तरह इन के पास अब 3 पीढि़यों का कोचिंग का इतिहास होगा और ये आपस में लड़ेंगे कि इस परिवार का कोचिंग का पीढ़ीदरपीढ़ी क्रियाकर्म वे ही करते आ रहे हैं, कोई दूसरा नहीं कर सकता. मुझे वाकई लग रहा था कि यदि भारत में विजन किसी के पास है, तो वह कोचिंग वाले ही हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...