अधिकतर महिलाओं में चालीस की उम्र के बाद पीरियड के दौरान रक्तस्राव में बढ़ोत्तरी, कमर, पेड़ू और हाथपैरों में तेज़ दर्द की समस्या पैदा हो जाती है. कई बार मासिक चक्र अनियमित हो जाता है. पीरियड आने पर पेट में असहनीय दर्द होता है. पांच दिन की जगह आठ से दस दिन तक रक्तस्राव बना रहता है. शरीर में खून की कमी हो जाती है. कमजोरी और बुखार बना रहता है. यह सारे लक्षण फाइब्राइड के हैं. फाइब्राइड यानी गर्भाशय की गांठ या रसौली.
पैंतालीस और पचास आयुवर्ग की महिलाएं पीरियड के अनियमित होने या अत्यधिक रक्तस्राव होने पर सोचती हैं कि यह मीनोपाज से जुड़ी प्रौब्लम है और मीनोपाज के बाद समाप्त हो जाएगी. मगर ऐसा नहीं है. यह सारे संकेत यूटरस में फाइब्राइड की समस्या का संकेत हैं. फाइब्रौइड की समस्या आजकल चालीस पार की महिलाओं में आम होती जा रही है. इसमें गर्भाशय की मांसपेशियों में छोटी-छोटी गोलाकार गांठें बन जाती हैं, जो किसी में कम बढ़ती हैं और किसी में ज्यादा. यह अंगूर के आकार की भी हो सकती है, और बढ़ते-बढ़ते एक फुटबौल का आकार भी ले सकती है. इसकी संख्या भी अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होती है.
फाइब्राइड्स अक्सर हेवी ब्लीडिंग का कारण बनते हैं. गांठें छोटी हों या फिर यूटरस के बाहर हों तो महिला को किसी भी तरह के लक्षण पता नहीं चलते हैं, लेकिन जो फाइब्राइड्स यूटरस के अंदर कैविटी में पैदा होते हैं उनकी वजह से हेवी ब्लीडिंग होने लगती है, इससे इसका पता चलता है. यूटरस के अन्दर पाये जाने वाले फाइब्राइड्स को सबम्यूकस फाइब्राइड्स कहते हैं. ऐसे बड़े फाइब्राइड्स जो यूटरस के साइज और उसकी कैविटी को बड़ा कर देते हैं अत्यधिक ब्लीडिंग का कारण बनते हैं. अधिक ब्लीडिंग होने से महिला में रक्त की कमी हो जाती है और वह एनीमिया की शिकार हो जाती है. एनीमिया होने से महिला को कमजोरी, बदनदर्द, बुखार और अन्य गम्भीर रोग लग जाते हैं. फाइब्रॉइड एक तरह से गर्भाशय का ट्यूमर है, जो कैंसर का कारण भी बन सकता है. 0.2 प्रतिशत मामलों में कैंसर होने की आशंका होती है. इसलिए इसको नजरअंदाज करना खतरनाक है.
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