विदूषक, मसखरा, हंसोड़, जोकर, कौमेडियन, हास्य कलाकार और स्टैंडअप आर्टिस्ट... कई नाम हैं इन के और कई मुखौटे भी. ‘कहता है जोकर सारा जमाना, मजहब है अपना हंसनाहंसाना’ के फलसफे पर चलते ये हंसोड़ कलाकार दुनिया को अपने करतबों, सैंस औफ ह्यूमर और चुटकुलों से हंसाहंसा कर लोटपोट कर देते हैं. ऐसे ही कुछ हास्य के बदलते पड़ाव और परिभाषाओं पर रोशनी डाल रहे हैं राजेश कुमार.

कभी केले के छिलके पर जानबूझ कर फिसल कर हंसाते हैं तो कभी, ऊटपटांग शक्लों से गुदगुदाते हैं. कभी आप पर भी छींटाकशी करने की हिमाकत तो कभी महंगाई, भ्रष्टाचार और सियासत को सटायर की लुगदी में लपेट कर आप के हंसोड़ जबड़ों में चस्पां कर देते हैं. इन के चेहरे पर हर वक्त हंसताखिलखिलाता मुखौटा चढ़ा रहता है. मुखौटे के पीछे का चेहरा खुश हो या गमगीन, बाहरी मुखौटे पर खुली बत्तीसी ही दिखना इन की मजबूरी और पेशा दोनों है.
आज दुनियाभर के टीवी चैनल, अखबार, पत्रपत्रिकाएं, रेडियो और सार्वजनिक मंचों पर हास्य कलाकारों की उपस्थिति अनिवार्य होती जा रही है. इन्हीं की हंसी के फौआरों से महफिल का आगाज होता है. इसी लोकप्रिय होती हंसोड़ संस्कृति से हास्य की दुनिया के कई नामी कलाकार अस्तित्व में आए. इन्हीं में से एक हैं कपिल शर्मा. पिछले कुछ सालों से कौमेडी की दुनिया में इन का सिक्का चल रहा है. इन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन के शो ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ ने बिग बी के ‘केबीसी’ को टीआरपी के मामले में पीछे ढकेल दिया. कपिल के अलावा देश में हास्य के भूगोल और इतिहास को बदलने में किनकिन कारकों और चेहरों ने योगदान दिया है, उस पर गौर फरमाने के बाद ही हास्य के बदलते ट्रैंड और कल्चर को समझा जा सकता है.

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