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चिड़िया चुग गईं खेत: भाग-1

कंपनी के खर्चे पर दोस्तों के साथ थाईलैंड जाना मनोज के लिए किसी सपने के पूरा होने जैसा था. वहां जा कर जूली से मिलने के बाद मनोज के मन की रंगीनियां जागने लगीं और नया अनुभव पाने की इच्छा में उस के साथ ऐसा क्या घटा कि वापस आ कर उसे लगा कि बेकार की भावनात्मक सहानुभूति में पड़ कर उसे अच्छाखासा चूना लग गया?

कंपनी मीटिंग के लिए थाईलैंड ले जाने वाली कंपनी की बात सुनते ही मनोज और उस के दोस्तों की बाछें खिल गईं. एक तो कंपनी के खर्चे पर विदेश जाने का मौका और वह भी थाईलैंड जैसी जगह, जहां पत्नी और बच्चों का झंझट नहीं. यानी सोने पर सुहागा. मनोज और उस के दोस्त सुरेश और भावेश तैयारियों में लग गए. वे दिन गिनने लगे. जाने के जोश में वे अतिरिक्त उत्साह से काम करने लगे. जाने का दिन भी आ गया. अहमदाबाद से तीनों मुंबई पहुंचे. कंपनी के देशभर के डीलर मुंबई में इकट्ठा होने वाले थे फिर वहां से सब इकट्ठा बैंकौक जाने वाले थे.

रात की फ्लाइट से सब बैंकौक पहुंचे और सुबह बस से पटाया पहुंचे. होटल पहुंच कर सब अपनेअपने कमरों में जा कर आराम करने लगे. मनोज को हफ्तेभर से बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी. वह थकान से निढाल हो कर पलंग पर लेट गया. लेटते ही उस को झपकी आ गई. आधे घंटे बाद ही रूम की बेल के बजने से उस की नींद खुल गई. उस ने झल्लाते हुए नींद में ही दरवाजा खोला.

भावेश और सुरेश तेजी से कमरे में आए और चहकते हुए बोले, ‘‘चल यार, थाई मसाज करवा कर आते हैं.’’

‘‘शामवाम को चलेंगे यार, अभी तो थोड़ा सोने दो, बहुत थक गया हूं,’’ मनोज ने पलंग पर लेटते हुए कहा.

‘‘अरे, शाम को तो ओपन शो देखने जाएंगे. मसाज का टाइम तो अभी ही है. फिर आने के बाद नाश्ता करेंगे,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘अबे, तू यहां सोने आया है क्या. और थाई मसाज करवाने से तो सारी थकान उतर जाएगी,’’ भावेश ने सुरेश को देख कर आंख मारी.

‘‘और क्या, होटल के सामने वाली सड़क के उस पार ही तो मसाज पार्लर है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘तुम लोग जरा देर भी सोए नहीं क्या, मसाज पार्लर भी ढूंढ़ आए. गजब हो यारो तुम भी,’’ मनोज आश्चर्य से उठ बैठा.

सोने के लिए तो उम्र पड़ी है. यहां चार दिन तो ऐश कर लें. चलचल उठ जा और चिंता मत कर, हम भाभी को कुछ नहीं बताएंगे,’’ भावेश ने मनोज से चुटकी ली.

मनोज झेंप गया, ‘‘चलो, चलते हैं,’’ कह कर उठ गया.

तीनों होटल से बाहर निकले और रोड क्रौस कर ली. सामने ही रोज मसाज पार्लर था. तीनों पार्लर में चले गए. रिसैप्शन पर भड़कीले और कम कपड़ों में एक थाई लड़की खड़ी थी. उस ने मुसकरा कर तीनों का स्वागत किया. उस ने गहरे गले की शौर्ट ड्रैस पहन रखी थी. उस के आधे उभार ड्रैस से बाहर दिखाई दे रहे थे.

उसे देखते ही सुरेश और भावेश की बाछें खिल गईं. मीठीमीठी बातें कर के उस लड़की ने तीनों का मन जीत लिया. थाई मसाज के उस लड़की ने तीनों से कुल 2,400 भाट रखवा लिए. भाट थाइलैंड की करैंसी है. सुरेश, भावेश ने तो खुशी से पैसे दे दिए लेकिन मनोज को 800 भाट देते हुए थोड़ा बुरा लगा. इतना पैसा सिर्फ मसाज करवाने के लिए. इस से तो दोनों बच्चों के लिए या पत्नी मीरा के लिए अच्छी ड्रैसेज आ जातीं. थोड़ा भारी मन लिए हुए वह मसाज केबिन की ओर बढ़ा. उस के दोनों दोस्त पहले ही खुशी से फड़कते हुए केबिनों में जा चुके थे. मनोज ने भी एक केबिन का दरवाजा खोला और धड़कते हुए दिल से अंदर दाखिल हुआ.

केबिन में बड़ा रहस्यमय और सपनीला सा माहौल था. पीली नारंगी मद्धिम रोशनी. एकतरफ लाल रंग की सुगंधित मोमबत्तियां जल रही थीं. खुशबू और रोशनी का बड़ा दिलकश कौंबिनेशन था. मसाज बैड के पास एक 25-26 साल की खूबसूरत युवती खड़ी थी. वह चटक लाल रंग की शौर्ट बिना बांहों की ड्रैस पहने खड़ी थी. लाल रंग में उस का गोरा रंग गजब का खिला हुआ दिख रहा था. टाइट ड्रैस में से उस के सीने के उभार स्पष्ट दिख रहे थे. मनोज क्षणभर को अपनी सुधबुध खो कर लोलुप दृष्टि से उसे देखता रह गया. लड़की उस की हालत देख कर मुसकरा दी तो मनोज झेंप गया.

मसाज वाली लड़की ने इशारे से उसे कपड़े उतार कर बैड पर लेटने को कहा. मनोज उस के जादू में खोया या यंत्रवत कपड़े एक ओर रख कर बैड पर लेट गया. बैड की चादर मुलायम और मखमली थी. इतनी नर्म चादर मनोज ने अपने जीवन में पहली बार देखी थी. कमरे में मनोज को ऐसा लग रहा था कि वह किसी तिलिस्मी दुनिया में आ गया है. वह एक अनोखी रूमानी दुनिया में पहुंच गया. तभी लड़की ने एक सुगंधित तेल उस की पीठ पर लगा कर मसाज करना शुरू कर दिया.

लड़की के मादक स्पर्श से वह मदमस्त हो कर एक मादक खुमारी में खो गया. उस पर एक हलका सा नशा छाता जा रहा था. बंद कमरे में एक जवान लड़की के साथ एक रोमांटिक माहौल में मसाज करवाने का यह उस का पहला अनुभव था. 800 भाट खर्च होने का अफसोस जाता रहा. मसाज करीब 1 घंटे तक चला. थोड़ा नशा हलका होने पर जानपहचान बढ़ाने के मकसद से मनोज ने उस लड़की से बातचीत करनी शुरू कर दी. वह लड़की थोड़ीबहुत अंगरेजी बोल पा रही थी. मनोज ने उस से उस का नाम पूछा तो उस ने जूली बताया. मनोज ने उस की शिक्षा और घरपरिवार के बारे में बात की. वह 25 वर्ष की गे्रजुएट लड़की थी. उस का घर पटाया से दूर एक गांव में था. मातापिता बूढ़े थे. वह घर चलाने के लिए पटाया में यह काम कर रही थी.

न जाने उस के चेहरे और स्वर में ऐसी क्या पीड़ा थी, एक दर्द सा झलक रहा था कि मनोज का दिल पिघल गया. यों भी, वह कच्चे मन का भावुक इंसान था.

आगे पढ़ें- मसाज का वक्त खत्म हो गया था. मनोज केबिन से…

मन्नत वाले बाबा

पिछले कई महीनों से मेरे वो (पतिदेव) परेशान दिखाई दे रहे थे. एक तो उन की कोई मल्टीनैशनल कंपनी थी, वह बंद होने वाली थी, दूसरे, स्वास्थ्य संबंधी कोई न कोई शिकायत बराबर बनी रहती थी. वे परेशान थे तो मैं भी परेशान रहती थी. एक बार मैं सड़क पर पैदल चली आ रही थी. दिमाग में पतिदेव का परेशान चेहरा घूम रहा था, तभी मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे एक व्यक्ति पर गई जोकि पिंजरा लिए हुए था. उस में एक तोता था. उस पर एक छोटा सा बोर्ड लगा रखा था, ‘प्रत्येक समस्या का हल तोता महाराज देता है.’

मैं उस के पास रुकी, अपनी समस्या बताई तो उस ने 50 रुपए का एक नोट मांगा. हम ने अपनी बचत में रखे 50 रुपए के नोट को दिया इस उम्मीद के साथ कि पता लग जाएगा कि हमारी खुशियों की मंजिल कितनी दूर है. नोट ले कर उस पिंजरे का मालिक खुश हो गया. उस ने पिंजरे का पल्ला खोला. सामने 2 दर्जन लिफाफे थे. तोता बाहर निकला, हमारा चेहरा देखा, मानो कह रहा हो, ‘अरी मूर्ख, मैं क्या तेरा भविष्य बतलाऊंगा? मैं तो पिंजरे में कैद हूं. कब इस बंधन से मुक्ति मिलेगी, मैं तो यही नहीं जानता हूं.’ लेकिन यह सब तो मुझे पहले ही सोच लेना था. अब तो 50 रुपए तोता वाले को जेब में जा चुके थे. तोते ने 1-2 मिनट बाद 1 लिफाफा उठाया और फिर अपने दड़बे में चला गया.

उस तोता वाले ने लिफाफा खोला और हमें कागज पढ़ने को दिया. लिखा था, ‘हिम्मत, साहस से काम लो तब परेशानियों से मुक्ति मिलेगी.’ यह तो मैं भी जानती थी लेकिन इस ज्ञान का रिवीजन 50 का नोट हमारी पौकेट से जाने के बाद मालूम पड़ा. मैं दुखी मन से आगे बढ़ गई. अभी भी पतिदेव का उदास चेहरा आंखों के सामने घूम रहा था. तब ही हमें भीड़ दिखाई दी. मैं उस भीड़ के पास जा पहुंची. देखा कि एक मोटातगड़ा सांड यानी बैल बीच में खड़ा था. उस से प्रश्न पूछे जा रहे थे. वह सब को उत्तर दे रहा था. कभी हां में सिर हिलाता, कभी नहीं में मुंह मटकाता. सब खड़ेखड़े उस की प्रशंसा कर रहे थे. प्रत्येक प्रश्न पर वह 100 रुपए वसूल रहा था. हम ने भी 100 का नोट दे कर अपने पति की राह में जो दुख हैं, उन के खत्म होेने के विषय में जानना चाहा. 100 का नोट पा कर वहां खड़ा सांड का मालिक खुश हो गया. हमें हिदायत दी गई थी कि सवाल मन ही मन में करना है. सो, मैं ने मन ही मन में प्रश्न किया कि हमारी परेशानियां कब दूर होंगी.

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सांड हमारे सामने आ कर खड़ा हो गया और हमारा दिल जोरों से धड़कने लगा. सांड ने ऊपर से नीचे तक हमें घूरा और अपना सिर नहीं में हिला दिया. सांड का मालिक खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘बहनजी, आप ने जो सवाल किया उस पर इस ने कहा कि आप के दुश्मन आगे नहीं बढ़ पाएंगे, बधाई हो.’’

मैं मन ही मन दुखी हो गई थी कि उस ने बड़ा भयंकर जवाब दिया कि तुम्हारी परेशानियां समाप्त नहीं होंगी.

मैं दुखी मन लिए आगे बढ़ती गई, तभी मेरा नाम ले कर किसी ने आवाज दी, मैं रुक गई. मेरी पुरानी सहेली थी.

‘‘कैसी गुम हो कर चल रही थी?’’

‘‘थोड़ी परेशानी है,’’ मैं ने कहा.

‘‘तुझे मैं ने 4 आवाजें दीं, फिर दौड़ कर तेरा हाथ थामा, जब तू जागी,’’ मेरी सहेली शिकायत कर रही थी.

‘‘सौरी यार,’’ मैं ने उस से कहा, फिर मैं ने बताया कि किस तरह मैं परेशान चल रही हूं.

सुन कर उस ने तुरंत कहा, ‘‘चिंता मत करो, मेरे पास एक तांत्रिक बाबा का पता है. ये सब क्रियाएं तुम्हारे दुश्मनों ने तुम पर करवाई होंगी, वे सब ठीक कर देंगे.’’

मैं सुबह स्नान कर के सहेली के घर जा पहुंची, वह मुझे तांत्रिक बाबा के पास ले गई, उस ने तांत्रिक क्रिया करने के 1001 रुपए फीस के हम से ले लिए. पूरे दोपहर तक वह न जाने क्याक्या मंत्र पढ़ता रहा और फिर मुझे भभूत दे कर कहा, ‘इसे पति पर मसल देना और घर में फैला देना.’

उन का आदेश मान कर मैं थैला भर राख ले कर आई थी, पूरे घर में छिड़काव किया और बाकी बची राख को पति पर डालने गई तो वे नाराज हो उठे.

तांत्रिक ने बताया था कि यदि वे भभूत पूरे बदन पर न लगवाएं तो सौ प्रतिशत मान लेना कि उन पर चौंसठयोगिनी कन्याओं की क्रिया कर के मारण मंत्र बिगाड़ा तंत्र किया गया है.

तांत्रिक की बात सही निकली. पति राख को पूरे बदन पर लगाने से इनकार कर गए. मैं रोई, मनाया लेकिन साजन नहीं पिघले. रात सोलहशृंगार कर के मैं ने उन्हें लुभाया और जब वे मस्ती में डूबे हुए थे तब पलंग के नीचे रखी वह भभूत मैं ने मुट्ठी में भरकर उन के पूरे बदन पर फेंक दी. वे नाराज हो गए, विकराल रूप धारण कर के विकृत दिखाई देने लगे. ऐसे दिखाई दे रहे थे मानो फिल्मी भूत हों.

हमें उम्मीद थी किसी परिणाम की, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला और 20 दिनों तक वे अबोले रहे. हमारा पारिवारिक जीवन तहसनहस हो गया. मैं ने मन ही मन तांत्रिक को कोसा, गालियां दीं. लेकिन मेरे तो हजार रुपए जा चुके थे. मैं पति से अधिक चिंता में डूबी थी कि हमारी दूर की रिश्तेदार आईं, उन्होंने हमारी उदासी का कारण जाना और हंसने लगीं. फिर कह उठीं, ‘‘इतनी सी परेशानी से इतनी दुखी. अरे, एक तीर्थस्थली है गधीया बाबा की. वहां जाने पर सब दुखदलिद्र दूर हो जाते हैं.’’

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मैं ने प्रश्न किया, ‘‘रुपए कितने लगते हैं?’’

‘‘अरी पगली, एक पैसा भी नहीं, भोजन मुफ्त में, फिर काम होने पर जो दान देना चाहो, देते रहना.’’

‘‘अपने देश में ऐसी जगह भी है?’’

‘‘अरी पगली, अपने देश में ऐसी ही जगहें हैं, जहां केवल चमत्कार ही चमत्कार होते हैं,’’ हमारी रिश्तेदार ने बताया.

हम ने पतिदेव को मनाया, अपने जेवर का 10 प्रतिशत हिस्सा बेच दिया और पतिदेव से हाथ जोड़ कर गधीया बाबा जाने की जिद की. रातदिन के खटराग सुनने से वे भी परेशान हो उठे और आखिर हमारे साथ जाने को तैयार हो गए.

हम जब उस समाधिस्थल पर पहुंचे तो तुरंत सेवक ने हमें घेर लिया. उन के ही द्वारा निर्माण किए गए विश्रामस्थल पर ले गए. स्नान करवाया और दर्शन के पूर्व मुफ्त का भोजन करने की सलाह दी. मैं गद्गद हो गई थी. भोजन के लिए पतिदेव लाइन में लगे, लाइन चीन की दीवार जैसी लंबी थी. मुझे तो भूख के मारे चक्कर आने लगे. सेवक ने हम से 100 रुपए लिए और जल्दी ही खाने का टोकन ला दिया. भोजन का टोकन लेने के बाद फिर भिखारियों की तरह भोजन लेने के लिए खड़े हो गए. बड़ी मुश्किल से भोजन किया. जब तक भोजन कर के निबटे तब तक समाधिस्थल के द्वार बंद हो चुके थे.

रात रुकने का चार्ज अदा करने के बाद फिर रातभर हम ने अपने खून को मच्छरों, खटमलों के हवाले कर के सुबह की प्रतीक्षा की. सुबह नींद लगी ही थी कि सेवक ने दरवाजा बजा कर हमें सोते से उठाया. जल्दी से नहाने का उपदेश दिया ताकि दर्शन हो सकें. ढेर सारी मनोकामनाएं लिए हम ने फटाफट स्नान किया. सुबह का सूरज निकला भी नहीं था कि हम समाधिस्थल की ओर मैराथन दौड़ में शामिल हो गए. जिसे देखो, भागा जा रहा था. कितने दुखी और श्रद्धालु लोग हैं, मैं यह सब सोच रही थी.

सेवक ने कानों में कहा, ‘‘यदि शीघ्र दर्शन करने हों तो 5001 रुपया लगेगा, वरना लाइन में लगने पर हो सकता है आप का नंबर आतेआते पट बंद हो जाएं.’’

मैं ने जब श्रद्धालुओं की भीड़ देखी तो सच मानिए, मुझे ऐसा लगा मानो कोई युद्धस्थल का शरणार्थियों से भरा मैदान हो. पतिदेव ने 5001 रुपए दिए और हम ने पीछे के द्वार से 1 मिनट में दर्शन कर लिए. अपनी मांगों का आवेदनपत्र भी मन ही मन समाधि मंत्री को दे दिया. मैं बड़ी खुश थी कि चलो, अब तो हमारे जीवन की समस्याएं सुलझ जाएंगी, लेकिन पतिदेव अकाउंट सैक्शन में हैं और हिसाबकिताब बड़ा कड़क करते हैं.

हम थकहार कर जब बैठे तो पतिदेव ने सेवक से प्रश्न किया, ‘‘करीब कितने लोग प्रतिदिन यहां आते हैं?’’

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पतिदेव की बात सुन कर उस ने बताया, ‘‘साहब, कम से कम 40 से 50 हजार लोग प्रतिदिन आते हैं. देखिए न, उन की मनोकामनाएं पूरी हुईं तो किसी ने सोने का सिंहासन चढ़ाया, किसी ने हीरे का मुकुट. समाधि बाबा सब के मन की इच्छा पूरी करते हैं.’’

‘‘सब की इच्छाएं?’’ पतिदेव ने दोबारा पूछा.

‘‘जी हां, साहब, सब की,’’ उस ने झट से जवाब दिया और अगले ग्राहक की प्रतीक्षा में बाहर देखने लगा.

‘‘यह गधीया बाबा का समाधिस्थल कब से है?’’

‘‘साहब, 20 साल से तो मैं देख रहा हूं,’’ सेवक ने श्रद्धा से भर कर कहा.

‘‘माना 20 वर्ष से ही सही, अब हिसाब लगाओ सेवकजी, 1 महीने में 6 लाख और सालभर में 72 लाख लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं तो 20 वर्षों में लगभग 20 करोड़ के लगभग जोड़ होता है. लेकिन आज भी देश में 85% लोग गरीबी भरा जीवन जी रहे हैं. उन की गरीबी, देश की अज्ञानता क्यों दूर नहीं हुई? फिर इन बाबाजी के अतिरिक्त आधा दर्जन और भी समाधि बाबा हैं, सब का हिसाब लगाऊं तो 1 साल में इस देश को विश्व का सब से सुखीसंपन्न देश हो जाना चाहिए था, जो आज तक नहीं हुआ,’’ फिर मेरी ओर देख कर उन्होंने कहा, ‘‘ये तांत्रिक, बाबा, समाधियों के चक्कर में तुम ने 10 हजार और बरबाद कर के एक परिवार को गरीब करवा दिया. अपने पर भरोसा करो. क्यों बाहर दौड़ लगा रही हो? मेरी एक नौकरी जाएगी तो दूसरी मिल जाएगी. ठीक से इलाज करवा लूंगा तो ठीक हो जाऊंगा. क्यों ऐसे पाखंडों में पड़ी हो? उठो और घर चलो. शांति, सुख हमें अपने घर में मिलेगा, समझीं,’’ कह कर वे खड़े हो गए.

मेरी भी आंखें खुल गईं. सच तो कह रहे हैं, इतनी समाधि, इतने बाबाओं के चलते देश गरीब होता जा रहा है और बाबाओं की समाधियां अमीर होती जा रही हैं.

मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया था. मैं ने पतिदेव से कहा, ‘‘घर लौट चलते हैं, हम मिल कर संघर्ष कर के अपना नया रास्ता बनाएंगे, मंजिल जरूर मिलेगी.’’

पतिदेव खुश हो गए. उस पाखंडी सेवक का चेहरा पीला पड़ गया था. वह नजरें नीची किए चुपचाप खिसक गया.

…चिड़िया चुग गईं खेत

शारीरित संबंध बनाते समय एचआईवी एड्स होने का रिस्क किसे अधिक होता है?

सवाल

मेरे आप से 2 सवाल हैं. पहला यह कि क्या वीर्यपात से पहले पुरुष से अलग हो जाने पर बगैर गर्भनिरोध भी काम चल सकता है? दूसरा यह कि स्त्री के शारीरिक मिलन में एचआईवी एड्स होने का रिस्क किसे अधिक होता है?

जवाब

कुछ दंपती गर्भनिरोध युक्तियों से बचने के लिए यह तरीका अपनाते हैं कि वीर्यपात होने से पहले स्त्री पुरुष से अलग हो जाती है, पर यह तरीका जरा भी भरोसे का नहीं है. उस में भूल होने का हमेशा खतरा रहता है. यौनोत्तेजना के क्षणों में स्खलन से पहले भी वीर्य की बूंद छूटने से गर्भ ठहर सकता है. समय से अलग न हो पाने पर तो अवांछित गर्भ ठहरने की तब तक चिंता बनी रहती है जब तक कि अगला महीना नहीं हो जाता. अत: गर्भनिरोध के लिए कोई बेहतर विधि अपनाना ही अच्छा है.

जहां तक स्त्रीपुरुष के शारीरिक मिलन में एचआईवी एड्स होने के रिस्क का सवाल है, तो दोनों में से कोई भी एचआईवी से संक्रमित है तो दूसरे को रोग हो सकता है, लेकिन पुरुष से स्त्री में एचआईवी विषाणु जाने का रिस्क अधिक होता है. इसका ठोस कारण भी है. शारीरिक मिलन के बाद पुरुष से स्खलित हुआ वीर्य लंबे समय तक स्त्री की योनि में रहता है. यदि यह वीर्य एचआईवी से संक्रमित है, तो वायरस के स्त्री में पैठ करने का रिस्क बढ़ जाता है.

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क्या सुहागरात के समय महिला की योनि से रक्तस्राव जरूरी है?

सवाल

मैं 27 वर्षीय पुरुष हूं. जल्द ही मेरा विवाह होने वाला है. सेक्स के बारे में दोस्तों से तरह तरह की बातें सुनने को मिल रही हैं, जिन के कारण मन में कई प्रकार की दुविधाएं जाग उठी हैं. कृपया बताएं कि क्या सुहागरात के समय पहली बार शारीरिक मिलन करने पर स्त्री की योनि से रक्तस्राव होना जरूरी है?

जवाब

कुंआरी कन्या में योनिछिद्र को कुदरती झिल्ली ढांपे रहती है. इसे योनिच्छद कहते हैं. कन्या के कुंआरे बने रहने तक उस में सिर्फ एक छोटा सा छेद होता है. उस से ही मासिक रक्तस्राव होता है. यह छिद्र का व्यास हर कन्या में शुरू से ही अलग अलग होता है. कुछ में यह सूई की नोक जैसा महीन होता है तो कुछ में इतना बड़ा और खुला होता है कि उस में 2 उंगलियां तक गुजर सकती है.

यह सोचना गलत है कि हर कुंआरी कन्या में योनिच्छद अक्षत ही होगा. यह सच है कि कुछ कन्याओं का योनिच्छद इतना कोमल होता है कि वह साधारण खेलकूद में ही फट जाता है. मासिकधर्म के दिनों रक्तस्राव सोखने के लिए इंटरनल सैनिटरी पैड रखने से भी यह भंग हो सकता है. घुड़सवारी और दूसरी कई गतिविधियों में भी योनिच्छ फट सकता है.

अत: यह सोचना कि नववधू के कुंआरे होने पर पहले शारीरिक मिलन के समय योनिच्छद से हलका रक्तस्राव अवश्य होगा, बेतुका ही है. मन में इस प्रकार की गलत कसौटियां बना लेना ठीक नहीं है. इन के चलते वैवाहिक जीवन बेवजह नारकीय बन जाता है. नववधू अबोध होते हुए भी अनावश्यक संदेह के कठघरे में खड़ी हो जाती है.

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डोर से कटी पतंग : भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- 

लेखक- अलंकृत कश्यप

साल 2018 दिसंबर की बात है. परिवार में किसी की शादी का कार्यक्रम था. मोहसिना अपने शौहर के साथ मुंबई से अपने गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर आई हुई थी.

शादी के बाद नसीम उसे एकदो महीने के लिए उस के मायके में छोड़ गया. मोहसिना की ससुराल भी गांव में थी, इसलिए कुछ दिन वह ससुराल में भी रह लेती थी. अब वाट्सऐप पर बातें करना उस की रोजाना की आदतों में शुमार था.

शादी के दौरान ही मोहसिना की मुलाकात महेंद्र नाम के युवक से हुई थी. वह अपनी बोलेरो गाड़ी से वहां कोई सामान ले कर आया था. महेंद्र रसिक स्वभाव का था. पहली ही नजर में वह मोहसिना की तरफ आकर्षित हो गया था.

सामान उतारने के दौरान जब वह घर में बैठ कर चाय पी रहा था तो उस ने मोहसिना से उस के बारे में पूछ लिया. मोहसिना ने बताया कि वह मुंबई में अपने शौहर के साथ रहती है.

बातोंबातों में महेंद्र ने मोहसिना से उस का मोबाइल नंबर और मुंबई का पता भी पूछ लिया था.

मोहसिना के पूछने पर महेंद्र ने बताया कि वह अमेठी जिले के गांव कठौरा कमरोली का रहने वाला है, लेकिन इस समय भेल कालोनी जगदीशपुर, अमेठी में रह रहा है. उस की बोलेरो गाड़ी बुकिंग पर अलगअलग शहरों में जाती रहती है.

मोहसिना ने पूछा क्या आप को मुंबई की बुकिंग भी मिलती है. महेंद्र ने बताया कि महीने में 1-2 बुकिंग उसे मुंबई की मिल जाती हैं. तब वह अपने ड्राइवर संदीप के साथ वहां जाता है. इसी बहाने उस का मुंबई में घूमनाफिरना भी हो जाता है.

मोहसिना ने कहा कि अब की बार जब मुंबई आना हो तो उस के पास पवई जरूर आए. महेंद्र ने उस से इस बात का वादा कर दिया.

उस दिन की मुलाकात के बाद मोहसिना और महेंद्र की मोबाइल और वाट्सऐप पर अकसर बातचीत होने लगी. अपनी बातों के प्रभाव से महेंद्र ने मोहसिना को अपने जाल में फांस लिया. मोहसिना अपने दिल की बात उस से कह लेती थी. दोनों के बीच होने वाली बातों का दायरा बढ़ने लगा. यह दायरा उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गया.

इस बीच उन्होंने 2-3 बार चोरीछिपे मुलाकात भी कर ली. फिर एक दिन मोहसिना अपने मायके से पति के साथ मुंबई चली गई. जाने से पहले उस ने महेंद्र से कह दिया कि वह मुंबई का चक्कर जल्द लगा ले ताकि मुंबई में वह साथसाथ घूमफिर सके.

मोहसिना के मुंबई पहुंचने के बाद भी उस की महेंद्र से पहले की तरह वाट्सऐप पर रोजाना बातचीत चलती रही. वह शाम को पति के सामने भी वाट्सऐप और फेसबुक पर व्यस्त रहती थी. नसीम ने उसे काफी समझाया लेकिन वह नहीं मानी.

एक दिन महेंद्र को मुंबई की बुकिंग मिल गई. यह जानकारी उस ने मोहसिना को दी तो वह काफी खुश हुई. उसे लगा जैसे उस की मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. बुकिंग ले कर महेंद्र जब मुंबई पहुंचा तो वह मोहसिना से बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर मिला.

महेंद्र से मिल कर वह बहुत खुश थी. इस के बाद महेंद्र ने उसे अपनी गाड़ी से घुमाया. दोनों ने काफी देर तक जुहू चौपाटी पर मस्ती की. इस के बाद महेंद्र उसे एक होटल में ले गया, जहां दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद महेंद्र ने उसे उस के बच्चों के स्कूल के पास छोड़ दिया. स्कूल से बच्चों को साथ ले कर मोहसिना वापस घर लौट आई.

महेंद्र मुंबई में 2 दिन रुका. दोनों दिन उस ने मोहसिना के साथ खूब मौजमस्ती की.

नसीम मोहसिना की इस बात से बिलकुल अंजान था. महेंद्र व मोहसिना की यह मुलाकात ऐसे प्यार में बदली कि दोनों ने जीवनभर साथ रहने का इरादा कर लिया. मुंबई में मोहसिना की महेंद्र से हुई मुलाकात यादगार बन कर रह गई. वह दिनरात सपने बुनने लगी.

वह पंख लगा उड़ कर महेंद्र के पास पहुंच जाना चाहती थी. महेंद्र ने भी मुंबई में मुलाकात के दौरान मोहसिना से वादा किया कि जब वह उस के साथ लखनऊ आ कर रहने लगेगी तो वह दरोगाखेड़ा में एक मकान खरीद कर उस के अलग रहने का बंदोबस्त कर देगा.

बातों के दौरान ही मोहसिना को यह जानकारी मिल ही गई थी कि महेंद्र पहले से ही विवाहित है और उस की पत्नी अपने बच्चों के साथ उस के पुश्तैनी घर कठौरा कमरोली, जनपद अमेठी में रहती है. महेंद्र अब हर महीने मोहसिना से मिलने मुंबई जाने लगा. वहां कुछ समय बिताने के बाद वह जगदीशपुर लौट आता था. एक दिन महेंद्र ने मोहसिना को वाट्सऐप मैसेज भेजा कि वह अपने पति का साथ छोड़ कर रहने के लिए लखनऊ आ जाए.

मोहसिना महेंद्र की इतनी दीवानी हो चुकी थी कि उस की खातिर वह अपने पति और बच्चों को छोड़ कर जून 2019 के महीने में अकेले ही मुंबई से भाग कर लखनऊ आ गई और महेंद्र के पास आ कर रहने लगी. मोहसिना के घर से गायब होने के बाद पति नसीम ने उसे काफी तलाश किया.

वह कई दिनों तक अपनी रिश्तेदारियों में और अन्य जगहों पर उसे तलाश करता रहा. जब उस का कोई पता नहीं चला तो 29 जून, 2019 को उस ने मुंबई के पवई थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मोहसिना जब महेंद्र के पास पहुंची तो वह कुछ दिनों तक मोहसिना के साथ सरोजनी नगर थाने के दरोगाखेड़ा में किराए के मकान में रहा.

इस के बाद उस ने दादूपुर गांव के पास नई कालोनी में 9 लाख रुपए का मकान खरीद लिया. यह मकान उस ने अपने दोस्त संदीप के नाम से खरीदा था. मोहसिना उसी मकान में रहने लगी. वह जब भी लखनऊ आता तो रात को मोहसिना के पास रहता. दादूपुर के मकान की बागडोर महेंद्र ने मोहसिना को सौंप दी थी.

इस के बाद महेंद्र ने एक मंदिर में उस से शादी भी कर ली. शादी के बाद उस ने अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. वह हिंदू महिला की तरह ही रहती थी.

पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को पता नहीं था कि खुशी मुसलिम है और उस ने अपने पति व बच्चों को छोड़ कर महेंद्र के साथ दूसरी शादी की है. चूंकि खुशी उर्फ मोहसिना बातूनी थी इसलिए वह जल्दी ही मोहल्ले के लोगों से घुलमिल गई.

समाज, घरपरिवार, शौहर और अपने 3 बेटों की परवाह न कर के मोहसिना पता नहीं किस नशे में मदमस्त हो कर प्रेमी महेंद्र के साथ लखनऊ में रह कर जिंदगी को ढो रही थी.

धीरेधीरे मोहसिना की परीक्षा की वो घड़ी आ गई, जहां महिलाओं को धर्म और संयम की मर्यादाओं से गुजरना पड़ता है. यानी करवाचौथ का त्यौहार आ गया. खुशी ने भी पड़ोसिनों के साथ करवाचौथ का निर्जला व्रत रखा.

उस दिन महेंद्र घर पर अपनी ब्याहता और बच्चों से मिलने कठौरा कमरोली चला गया. उधर खुशी उस का इंतजार कर रही थी. उस का यह पहला व्रत था इसलिए उस के मन में ज्यादा उत्सुकता थी. लेकिन फोन करने के बावजूद महेंद्र उस के पास नहीं पहुंचा.

रात को जब चंद्रमा दिखाई दिया तो पूजा के समय भी महेंद्र खुशी के पास मौजूद नहीं था. इस से खुशी को गुस्सा आ गया. उस ने वाट्सऐप पर महेंद्र को एक भावुक मैसेज भेजा, जिस में उस ने कहा कि तुम बेवफा निकले. मैं ने तुम्हारे प्यार की खातिर अपने बच्चे, पति और समाज को छोड़ा लेकिन तुम ने मेरी भावनाओं की कद्र नहीं की.

मैं सारे दिन (करवाचौथ वाले दिन) प्रतीक्षा करती रही, न तुम आए और न ही तुम ने फोन पर बताया कि कहां हो, इसे मैं क्या समझूं. जहां तक मैं समझती हूं, शायद तुम्हें मेरे प्यार की जरूरत नहीं रह गई है, तुम्हारी नजर में औरत सिर्फ एक खिलौना है, तुम्हें मेरे प्यार की नहीं जिस्म की ज्यादा जरूरत थी, इस से ज्यादा मैं क्या जानू.

महेंद्र ने पुलिस को बताया कि 18-19 अक्तूबर, 2019 की रात को 12 बजे जब वह दादूपुर दरोगाखेड़ा के मकान पर आया तो उस ने देखा खुशी उर्फ मोहसिना गले में फंदा डाले पंखे से लटकी हुई थी.

उस ने आत्महत्या कर ली थी. पत्नी को इस हालत में देख वह घबरा गया और उस ने नायलोन की डोरी का फंदा काट कर खुशी के शव को नीचे उतारा.

साथ ही उस ने अपने दोस्त संदीप को बोलेरो गाड़ी ले कर आने को कहा. संदीप रात 2 बजे करीब बोलेरो ले कर बंथरा पहुंचा. फिर दोनों ने खुशी उर्फ मोहसिना के शव को ठिकाने लगाने और सबूत नष्ट करने के उद्देश्य से बोलेरो में डाला. फिर उसे 5 किलोमीटर दूर पुराई खेड़ा, थाना बंथरा इलाके के एक खेत में डाल आए.

मोहसिना का शव ले जाते समय महेंद्र टौयलैट क्लीन करने वाला ऐसिड साथ ले गया था. वह एसिड उस ने खुशी उर्फ मोहसिना के चेहरे पर डाल दिया, जिस से चेहरा थोड़ा झुलस गया था. घबराहट की वजह से वे दोनों खुशी उर्फ मोहसिना का पर्स, मोबाइल फोन और एसिड की खाली शीशियां वहीं छोड़ कर भाग निकले.

अगले दिन पुलिस को खुशी उर्फ मोहसिना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई, जिस में मौत की वजह गले में फंदा डाल कर दम घुटना बताया गया.

पुलिस ने हत्या की जगह आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मामला दर्ज कर दिया. आरोपी महेंद्र और संदीप की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त हुई महेंद्र की  बोलेरो नंबर यूपी 36 टी 2331 भी बरामद कर ली.

पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अंधेरी रात का जुगनू

अंधेरी रात का जुगनू: भाग-3

पलभर के लिए रेशमा का आत्मविश्वास भी डगमगाने लगा था. कहीं किसी ग्राहक को जल्दबाजी में ज्यादा पैसे तो नहीं दे दिए मैं ने, कहीं किसी से कम पैसे तो नहीं लिए? लेकिन दूसरे ही पल उस ने खुद को धिक्कारा. अपनी सतर्कता और हिसाब पर पूरा यकीन था उसे. तभी सेठ की आवाज का चाबुक उस की कोमल और ईमानदार भावना पर पड़ा, ‘रेशमा, अगर तुम मेरे दोस्त की बेटी न होतीं तो अभी, इसी समय पुलिस को फोन कर देता. शर्म नहीं आती चोरी करते हुए. पैसों की जरूरत थी तो मुझ से कहतीं. मैं तनख्वाह बढ़ा देता. लेकिन तुम ने तो ईमानदार बाप का नाम ही मिट्टी में मिला दिया.’

सुन कर तिलमिला गई रेशमा. क्या सफाई देती उन्हें जो उस की विवशता को उस का गुनाह समझ रहे हैं. मेहनत और वफादारी के बदले में मिला उसे जलालत का तोहफा. तभी खुद्दारी सिर उठा कर खड़ी हो गई और 28 दिन की तनख्वाह का हिसाब मांगे बगैर वह दुकान से बाहर निकल गई. अंदर का आक्रोश उफनउफन कर बाहर आने के लिए जोर मार रहा था. मगर रेशमा ने पूरी शिद्दत के साथ उसे भीतर ही दबाए रखा. असमय घर पहुंचती तो अम्मी को सच बतलाना पड़ता. रेशमा पर चोरी का इलजाम लगने और नौकरी हाथ से चले जाने का सदमा अम्मी बरदाश्त नहीं कर पाएंगी. अगर उन्हें कुछ हो गया तो वह कैसे दोनों भाइयों और घर को संभाल पाएगी, यह सोचते हुए रेशमा के कदम अनायास ही मजार की तरफ बढ़ गए.

मजार के अहाते का पुरसुकून, इत्र और फूलों की मनमोहक खुशबू भी उस के रिसते जख्म पर मरहम न लगा सकी. घुटनों पर सिर रख कर फफक कर रो पड़ी. रात 10 बजे मजार का गेट बंद करने आए खादिम ने आवाज लगाई, ‘घर नहीं जाना है क्या, बेटी?’ सुन कर जैसे नींद से जागी. धीमेधीमे मायूस कदम उठाते हुए घर पहुंची. अम्मी का चिंतित चेहरा दोनों भाइयों की छटपटाहट देख कर उसे यकीन हो गया कि मेरे घर के लोग मुझे कभी गलत नहीं समझेंगे.

‘कहां चली गई थीं?’

‘दुकान में ज्यादा काम था आज,’ संक्षिप्त सा जवाब दे कर पानी के साथ रोटी का निवाला गटकते हुए बिना कोई सफाई दिए बिस्तर पर पहुंचते ही मुंह में कपड़ा ठूंस कर बिलखबिलख कर रो पड़ी. उस रात अब्बू बहुत याद आए थे. कमसिन कंधों पर उन की भरीपूरी गृहस्थी का बोझ तो उठा लिया रेशमा ने, मगर उन के नाम को कलंकित करने का झूठा इल्जाम वह बरदाश्त नहीं कर पा रही थी.

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दूसरे दिन रोज की तरह लंच बाक्स ले कर रेशमा के कदम अनजाने में अब्बू की दुकान की तरफ मुड़ गए. बरसों बाद जंग लगे ताले को खुलता देख अगलबगल वाले दुकानदार हैरान रह गए.

धूल से अटे कमरे में अब्बू का बनाया हुआ मार्बल का लैंपस्टैंड, सूखा एक्वेरियम और कभी तैरती, मचलती खूबसूरत मछलियों के स्केलटन. दुकान के कोने में बना प्लास्टर औफ पेरिस का फाउंटेन, सबकुछ जैसा का तैसा पड़ा था. अगर कुछ नहीं था तो अब्बू का वजूद. बस, उन की आवाज की प्रतिध्वनि रेशमा के कानों में गूंजने लगी, ‘बेटा, खूब दिल लगा कर पढ़ना. आप को चार्टर्ड अकाउंटैंट और दोनों बेटों को डाक्टर, इंजीनियर बनाऊंगा,’ ऐसे ही गुमसुम बैठे हुए सुबह से शाम गुजर गई.

भरा हुआ टिफिन वापस बैग में डाल कर घर वापस जाने के लिए उठ ही रही थी कि मोबाइल बज उठा, ‘रेशमा, आई एम सौरी. मुझे माफ करना बेटा. मैं गुस्से में तुम को पता नहीं क्याक्या कह गया,’ दूसरी ओर से सेठ की आवाज गूंजी, ‘सुन रही हो न, रेशमा. दरअसल, 8 हजार रुपए मेरे बेटे ने गल्ले से निकाले थे. कल शाम को ही वह जुआ खेलता हुआ पकड़ा गया तो पता चला.’

सुन कर रेशमा स्थिर खड़ी अब्बू की धूल जमी तसवीर को एकटक देखती रही.

‘बेटे, अपने अब्बू के दोस्त को माफ कर दो तो कुछ कहूं.’

इधर से कोई प्रतिउत्तर नहीं.

‘कोई बात नहीं, तुम अगर दुकान पर काम नहीं करना चाहती हो तो कोई बात नहीं, तुम मेरा बुटीक सैंटर संभाल लो. तुम्हारी जैसी मेहनती और ईमानदार इंसान की ही जरूरत है मेरे बुटीक सेंटर को.’

रेशमा ने कोई जवाब नहीं दिया. अपमान और तिरस्कार का आघात,

सेठ की आत्मविवेचना व पछतावे पर भारी रहा.

रास्ते भर ‘बुटीक…बुटीक…बुटीक’ शब्द मखमली दूब की तरह कानों में उगते रहे. स्कूल के दिनों में शौकिया तौर पर एंब्रायडरी सीखी थी रेशमा ने. कुरतों, सलवारों, चादरों, नाइटीज पर खूबसूरत रेशमी धागों से बनी डिजाइनों ने उसे अब्बू और रिश्तेदारों की शाबाशियां भी दिलवाई थीं. थोड़ाबहुत कटे हुए कपड़े भी सिलना सीख गई थी. अनजाने में ही सेठ ने रेशमा की अमावस की अंधेरी रात को पूर्णिमा का उजाला दिखला दिया, स्वाभिमान और आत्मविश्वास से जीने का रास्ता बतला दिया.

पापा की दुकान और रेशमा का शौकिया हुनर, अपना निजी और स्वतंत्र कारोबार, जहां अपना आधिपत्य होगा जहां उसे कोई चोर कह कर जलील नहीं करेगा. जहां वह अपने परिवार के साथसाथ हुनरमंद कारीगरों और उन के परिवारों का पेट पालने का जरिया बन सकेगी. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलती रही रेशमा. उस दिन आसमां पर चांद की रफ्तार धीमी लगने लगी उसे.

पौ फटते ही रेशमा दोनों भाइयों के साथ पापा की दुकान में खड़ी अनुपयोगी वस्तुओं को ठेले पर लदवा रही थी. लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना के तहत बैंक से लोन लेने के लिए आवेदन दे दिया. 1 महीने बाद दुकान के सामने बोर्ड लग गया, ‘जास्मीन बुटीक सैंटर’. दूसरे ही दिन दुकान के शुभारंभ का दावतनामा ले कर बांटने के लिए निकल पड़ी रेशमा. कार्ड देख कर किसी ने हौसला बढ़ाया, तो किसी ने नाउम्मीद और नाकामयाबी के डर से डराया. लेकिन रेशमा कान और मुंह बंद किए हुए पूरे हौसले के साथ जिस रास्ते पर चल पड़ी उस से पलट कर पीछे नहीं देखा.

रेशमा के भीतर का कलाकार धीरेधीरे उभरने लगा, वह कपड़ों की डिजाइन केटलौग्स के अलावा कंप्यूटर स्क्रीन पर ग्राहकों को दिखलाने लगी. धीरेधीरे आकर्षक डिजाइनों व काम की नियमितता देख कर महिला ग्राहकों की भीड़ बढ़ने लगी. शादीब्याह, तीजत्योहारों के मौकों पर तो रेशमा को दम लेने की फुरसत नहीं होती.

कड़ी मेहनत, समझदारी से मृदुभाषी रेशमा के बैंक के बचत खाते में बढ़ोतरी होने लगी. 1 साल के बाद 30×60 स्क्वैर फुट का प्लौट खरीदते समय खालेदा बेगम ने अपने बचेखुचे जेवर भी रेशमा को थमा दिए.

हाउस लोन ले कर रेशमा ने तनहा ही धूप, बरसात, ठंड के थपेड़े सह कर नींव खुदवाने से ले कर मकान बनने तक दिनरात एक कर दिए. दोनों छोटे भाइयों और अम्मी के संबल ने रेशमा का हौसला मजबूत किया. अब कतराने वाले रिश्तेदार, अब्बू के करीबी दोस्त, मकान की मुबारकबाद देने बुटीक सैंटर पर ही आने लगे.

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चौक पर लगी घड़ी ने रात के 4 बजाए. रेशमा की अम्मी दर्द की चादर ओढ़े नींद के आगोश में समा गईं लेकिन रेशमा छत की ग्रिल से टिक कर खड़ी, एकटक कोने पर लगी ग्रिल की तरफ देख रही थी. लगा, अब्बू सफेद कुरतापाजामा पहने दीवार से टिक कर खड़े हैं. ‘रेशमा, मेरी बच्ची, मेरा ख्वाब पूरा कर दिया. शाबाश बेटा. मैं जानता हूं तुम दोनों भाइयों को इसी तरह जुगनू बन कर राह दिखलाती रहोगी.’ धीरेधीरे पापा की परछाईं अंधेरे में कहीं खो गई और रेशमा बिस्तर पर आ कर लेट गई. दूर कहीं भोर होने की घंटी बजी. पूर्व दिशा में आसमान का रंग लाल हो चला था.

अंधेरी रात का जुगनू: भाग-2

‘बेटी, इकबाल साहब की मौत, मिट्टी का इंतजाम…’ महल्ले के बुजुर्ग अनीस साहब ने डूबते जहाज का मस्तूल पकड़ा दिया रेशमा के कमजोर हाथों में. सुन कर भीतर तक दहल गई रेशमा.

भारी कदमों को घसीटते हुए अलमारी खोल कर, अपनी शादी के लिए अम्मी द्वारा जमा की गई लाल पोटली में बंधी पूंजी अनीस साहब को थमाते हुए रेशमा के हाथ पत्थर के हो गए थे.

अब्बू की मौतमिट्टी, चेहल्लुम, अम्मी की इद्दत के पूरे होने तक रेशमा का खिलंदड़ापन जाने कहां दफन हो गया. शौहर की मौत के सदमे से बुत बनी अम्मी को देख कर, दोनों छोटे भाइयों को अब्बू की याद कर रोते देखती तो उन्हें समझाने के लिए पुचकारते हुए रेशमा कब बड़ी हो गई, उसे खुद भी पता नहीं चला. रेशमा ने अब्बू के अकाउंट्स चेक किए तो बमुश्किल 8-10 हजार रुपए का बैलेंस था.

रेशमा की पढ़ाई छूट गई, दिनचर्या ही बदल गई. रेशमा के उन्मुक्त ठहाकों को आर्थिक अभाव का विकराल अजगर निगलता चला गया. बहुत ढूंढ़ने पर होमलोन देने वाले प्राइवेट बैंक की नौकरी 4 जनों की रोटी का जुगाड़ बनी. घर के खाली कनस्तरों में थोड़ाथोड़ा राशन भरने लगा.

जिंदगी कड़वे तजरबों के चुभते ऊबड़खाबड़ रास्ते से गुजर कर अभी समतल मैदान पर आ भी नहीं पाई थी कि मकान मालिक ने मकान खाली करवाने की जिम्मेदारी पेशेवर गुंडे गोलू जहरीला को सौंप दी.

‘मकान जल्दी खाली कर दीजिए,’ आएदिन दरवाजे पर दस्तक देती उस की डरावनी शक्ल दिखलाई पड़ती.

एक दिन हिम्मत कर के रेशमा ने ज्यों ही दरवाजा खोला तो शराब का भभका उस के नथुनों में घुस गया. गोलू जहरीला ने उसे देखते ही अपना वाक्य दोहरा दिया, ‘मकान जल्दी खाली कर दीजिए नहीं तो…’

‘नहीं तो… क्या कर लेंगे आप?’ भीतर के आक्रोश को दबातेदबाते भी रेशमा की आंखें चिंगारी उगलने लगी थीं.

‘कुछ नहीं. बस, तुम को उठवा लेंगे,’ पान रचे होंठों को तिरछा कर के व्यंग्य से हंसते हुए गोलू जहरीला ने चेतावनी दी तो रेशमा के कानों में जैसे अंगारे सुलगने लगे.

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‘बंद कीजिए बकवास. दफा हो जाइए यहां से,’ रेशमा का आक्रोश बरदाश्त का पुल उखाड़ने लगा.

बाहर आवाजों का हंगामा सुन कर भीतर से दौड़ी आई रेशमा की अम्मी. रेशमा को दरवाजे के पीछे ढकेल कर, खुद दरवाजे के बीचोंबीच खड़ी हो कर बोलीं, ‘देखिए, आप जब मरजी हो तब कमर पर बंदूक लटका कर हमारे दरवाजे पर न आया कीजिए. जैसे ही हालात ठीक होंगे, हम आप को घर खाली करने की सूचना दे देंगे.’

सुन कर गोलू चला तो गया लेकिन अपने पीछे छोड़ गया दहशत, डर और मजबूरियों का अंधड़.

उस के जाते ही रेशमा की अम्मी रो पड़ीं. रेशमा के पैर गुस्से से कांपने लगे और दांत किटकिटाने लगे लेकिन विवशता की नदी मुहाने तक आतेआते अपनी रफ्तार खो चुकी थी. दोनों भाइयों को सीने से चिपकाए वह खुद भी रो पड़ी. उस रात न उन के घर में चूल्हा जला न किसी के हलक से पानी का घूंट ही उतरा. सब अपनीअपनी मजबूरियों के शिकंजे में कसे छटपटाते रहे.

वक्त की आंधियों ने कसम खा ली थी रेशमा को तसल्ली देने वाले हर चिराग को बुझा देने की.

3 महीने बाद प्राइवेट बैंक भी बंद हो गया. घर की जरूरतों ने रेशमा को कपड़ों के थोक विक्रेता की दुकान पर कैशियर की नौकरी के लिए ला कर खड़ा कर दिया. छोटी सी तनख्वाह घर की बड़ीबड़ी जरूरतों के सामने मुंह छिपाने लगी और ऊंट के मुंह में जीरे की तरह चिपक गई. बस, जिंदा रहने के लायक तक की चीजें ही खरीद पाते रेशमा के पसीने से भीगी बंद मुट्ठी के नोट. रिश्तेदार, जो अपना काम करवाने के लिए इकबाल साहब से मधुमक्खी की तरह चिपके रहते थे, अब जंगल की नागफनी की तरह हो गए थे. महफिलों, मजलिसों में अब मिलनेजुलने वाले उस के परिवार को देख कर कन्नी काट लेते, जैसे कांटों की बाड़ को छू गए हों.

उस दिन रात का खाना खाते हुए गुमसुम बैठे छोटे भाई से रेशमा ने पूछ ही लिया, ‘क्या हुआ आफाक तबीयत ठीक नहीं है क्या?’ कुछ देर तक साहस बटोरने के बाद भाई के द्वारा बोले गए शब्दों ने रेशमा को कांच के ढेर पर खड़ा कर दिया. ‘बाजी, छोटे मामूजान कह रहे थे कि तुम दोनों भाइयों को रेशमा अब तुम्हारे अम्मीअब्बू के पास भेज देगी, क्योंकि उस की छोटी सी तनख्वाह अब 4 लोगों का पेट नहीं पाल सकेगी. फाके की नौबत आने वाली है. ऐसे में तुम दोनों भाई उस पर बोझ…’ ठहरी हुई झील में मामू ने पत्थर मार दिया था. तिलमिलाहट के ढेर सारे दायरे बनने लगे. रेशमा ने तुरंत मामू को फोन मिलाया और चीख पड़ी, ‘मेरे घर में कंगाली आ जाए या फाकाकशी हो, मैं अपने चचाजात भाइयों को कभी भी अपने से अलग नहीं करूंगी. अगर घर में एक रोटी भी बनेगी न, तो हम चारों एकएक टुकड़ा खा कर सो जाएंगे, मगर किसी के दरवाजे पर हाथ पसारने नहीं जाएंगे. कान खोल कर सुन लीजिए, आज के बाद कभी मेरे मासूम भाइयों को बरगलाने की कोशिश की तो मैं भूल जाऊंगी आप इन के सगे मामू हैं.’

रेशमा का गुस्सा देख कर दोनों भाई तो सहम गए लेकिन खालेदा को यकीन हो गया कि रेशमा की खुद्दारी और आत्मविश्वास बढ़ने लगा है. अगर रेशमा की जगह उन का अपना बेटा होता तो वह अभावों का हवाला दे कर किसी भी सूरत में चचाजान भाइयों की जिम्मेदारी न उठाता. सचमुच अभाव इंसानों को जुदा नहीं करते, जुदा करती हैं उन की स्वार्थी भावनाएं.

घर का खर्च, भाइयों के स्कूल का खर्च, मकान का किराया, सब पूरा करने के बाद रेशमा के पास मुश्किल से आटो का किराया ही बच पाता.

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अपनी पसंद का काम न होते हुए भी रेशमा दुकान के काम में दिल लगाने लगी थी. तभी एक दिन सेठ की कर्कश आवाज ने चौंका दिया, ‘रेशमा, तुम ने कल जो हिसाब दिया था उस में 8 हजार रुपए कम हैं.’

‘लेकिन मैं ने तो पूरे पैसे गिन कर गल्ले में रखे थे,’ रेशमा की आत्मविश्वास से भरी आवाज सुन कर सेठ ने जैसे अंगारा छू लिया.

‘मैं ने 10 बार हिसाब मिला लिया है, पैसे कम हैं इसलिए बोल रहा हूं. कहां गए पैसे अगर तुम ने रखे थे तो?’

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अंधेरी रात का जुगनू: भाग-1

शाम होते ही नया बना मकान रंगीन रोशनी से जगमगा उठा. मुख्यद्वार पर आने वाले मेहमानों का तांता लगा था. पूरा घर अगरबत्ती, इत्र और लोबान की खुशबू से महक रहा था. कव्वाली की मधुर स्वरलहरी शाम की रंगीनियों में चार चांद लगा रही थी. पंडाल से उठती मसालेदार खाने की खुशबू ने वातावरण को दिलकश बना दिया था.

तभी बाहर जीप रुकने की आवाज सुन कर एक 20-22 वर्ष की लड़की दरवाजे पर आ खड़ी हुई और दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘नमस्ते, चाचाजी.’’

‘‘जीती रहो, रेशमा बिटिया,’’ कहते हुए 2 अंगरक्षकों के साथ इलाके के विधायक रमेशजी ने मकान में प्रवेश किया.

पोर्च में खड़े हो कर मकान के चारों तरफ नजर डालते रमेशजी के चेहरे पर मुसकराहट खिलने लगी, ‘‘बिटिया, आज तुम ने अपने अब्बाजान का सपना पूरा कर के दिखला दिया. तुम्हारी हिम्मत और हौसले को देख कर लोग अब से बेटे नहीं बेटियां चाहेंगे.’’

रमेशजी की इस बात से रेशमा की आंखें नम हो गईं. खुद को संभालते हुए संयत स्वर में बोल उठी रेशमा, ‘‘चाचाजी, आप ने ही तो अब्बू की तरह हमेशा मेरा संबल बढ़ाया. मकान बनाते हुए आने वाली तमाम परेशानियों को सुलझाने में हमेशा मेरी मदद की.’’

‘‘बिटिया, तुम्हारे अब्बू इकबाल मेरा लंगोटिया यार था. उस की असमय मृत्यु के बाद उस के परिवार का खयाल रखना मेरा फर्ज था. मैं ने उसे निभाने की बस कोशिश की है. बाकी सबकुछ तुम्हारे साहस और धैर्य के सहारे ही संभव हो सका है.’’

‘‘चाचाजी, चलिए, खाना टेबल पर लग गया है,’’ रेशमा के चाचा का बेटा आफताब बड़े आदरपूर्वक रमेशजी को खाने की मेज की तरफ ले गया.

रेशमा की अम्मी खालेदा इकबाल ओढ़नी से सिर को ढके परदे के पीछे से चाचाभीतीजी का वात्सल्यमयी वार्तालाप सुन रही थीं और रेशमा को घर के इस कोने से उस कोने तक आतेजाते, मेहमानों का स्वागत करते हुए गृहप्रवेश की मुबारकबाद स्वीकारते हुए भीगी आंखों से मंत्रमुग्ध हो कर देख रही थीं. तभी मेहमानों की भीड़ से उठते कहकहों ने उन्हें चौंकाया और वे दुपट्टे के छोर से उमड़ते आंसुओं को पोंछ कर, अतीत की यादों के चुभते नश्तर से बचने के लिए मेहमानों की गहमागहमी में खो जाने का असफल प्रयास करने लगीं.

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देर रात तक मेहमानों को विदा कर के बिखरे सामान को समेट और मेनगेट पर ताला लगा कर ज्योंही वे भीतर जाने लगीं, ऐसा लगा जैसे इकबाल साहब ने आवाज दी हो, ‘फिक्र न करना बेगम, धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. आज सिर पर छत का साया मिला है, कल रेशमा की शादी, फिर बेटों की गृहस्थी…’

वे चौंक कर पीछे पलटीं तो दूर तक रात की नीरवता के अलावा कुछ भी न था. कहां हैं इकबाल साहब? यहां तो नहीं हैं? कैसे नहीं हैं यहां? यही सोतेजागते, उठतेबैठते हर वक्त लगता है कि वे मेरे करीब ही बैठे हैं. बातें कर रहे हैं. विश्वास ही नहीं हो रहा है कि अब वे हमारे बीच नहीं हैं. बिस्तर पर पहुंचने तक बड़ी मुश्किल से रुलाई रोक पाई थीं रेशमा की अम्मी. दिनभर का रुका हुआ अवसाद आंखों के रास्ते बह निकला. बहुत कोशिशें कीं बीते हुए तल्ख दिनों को भूल जाने की लेकिन कहां भूल पाईं वे.

इकबाल साहब की मौत के बाद हर दिन का सूरज नईनई परेशानियों की तीखी किरणें ले कर उगता और उन की हर रात समस्याओं के समाधान ढूंढ़ने में आंखों ही आंखों में कट जाती. दर्द की लकीरें आंसुओं की लडि़यां बन कर आंखों में तैरती रहतीं.

8 भाईबहनों में 5वें नंबर के इकबाल की शिक्षा माध्यमिक कक्षा से आगे संभव न हो सकी थी. लेकिन कलाकार मस्तिष्क ने 14 साल की उम्र में ही टायरट्यूब खोल कर पंचर बनाने और गाडि़यां सुधारने का काम सीख लिया था. भूरी मूछों की रेखाओं के काली होने तक पाईपाई बचा कर जोड़ी गई रकम से शहर की मेन मार्केट में टायरों के खरीदनेबेचने की दुकान खरीद ली. शाम होते ही दुकान पर दोस्तों का मजमा जमता, ठहाके लगते. शेरोशायरी की महफिल जमती. सालों तक दोस्तों के साथ इकबाल साहब के व्यवहार का झरना अबाध गति से बहता रहा. उन की 2 बेटियां और छोटे भाई के 2 बेटों के बीच गहरा प्यार और अपनापन देख कर रिश्तेदारों और महल्ले वालों के लिए फर्क करना मुश्किल हो जाता कि कौन से बच्चे इकबाल साहब के हैं और कौन से उन के भाई के. खुशियां हमेशा उन के किलकते परिवार के इर्दगिर्द रहतीं.

अकसर एकांत के क्षणों में इकबाल साहब खालेदा का हाथ अपने हाथ में ले कर कहते, ‘बेगम, मेरा कारोबार और ट्यूबलैस टायर बनाने की टेकनिक टायर कंपनी को पसंद आ गई तो मैं खुद डिजाइन बना कर एक आलीशान और खूबसूरत सा घर बनाऊंगा जिस के आंगन में गुलाबों का बगीचा होगा. सब के लिए अलगअलग कमरे होंगे और छत को, आखिरी सिरे तक छूने वाले फूलों की बेल से सजाऊंगा.’

रेशमा अकसर अपनी ड्राइंगकौपी में घर की तसवीर बना कर पापा को दिखाते हुए कहती, ‘पापा, मेरी गुडि़या और डौगी के लिए भी अलग कमरे बनवाइएगा.’

सुन कर इकबाल साहब हंस कर मासूम बेटी को गले लगा कर बोलते, ‘जरूर बनाएंगे बेटे, अगर लंबी जिंदगी रही तो आप की हर ख्वाहिश पूरी करेंगे.’

‘तौबातौबा, कैसी मनहूस बातें मुंह से निकाल रहे हैं आप. आप को हमारी उम्र भी लग जाए,’ रेशमा की अम्मी ने प्यार से झिड़का था शौहर को.

ठंडी सांस भर कर सोचने लगीं, शायद उन्हें आने वाली दुर्घटनाओं का पूर्वाभास हो चुका था. तभी तो तीसरे ही दिन हट्टेकट्टे इकबाल साहब सीने के दर्द को हथेलियों से दबाए धड़ाम से गिर पड़े थे फर्श पर. देखते ही गगनभेदी चीख निकल गई थी रेशमा की अम्मी के मुंह से.

‘पापा की तबीयत खराब है,’ सुन कर तीर की तरह भागी थी रेशमा कालेज से.

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घर के दालान में लोगों का जमघट और कमरे में पसरा पड़ा जानलेवा सन्नाटा. बेहोश अम्मी को होश में लाने की कोशिशें करती पड़ोसिन, हालात की संजीदगी से बेखबर सहमे से कोने में खड़े दोनों चचाजान, भाई और फर्श पर पड़ा अब्बू का निर्जीव शरीर. घर का दर्दनाक दृश्य देख कर रेशमा की निस्तेज आंखें पलकें झपकाना ही भूल गईं और पैर बर्फ की सिल्ली की तरह जम गए.

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