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#coronavirus lockdown: लॉकडाउन में किन्नरों का लंगर

लेखक-राजेश चौरसिया

●किन्नरों ने नेताओं जनप्रतिनिधियों को पीछे छोड़ा..
●रोजाना बांट रहे जरूरतमंद लोगों को लाखों का राशन..
●कहा अब तक जनता ने हमें पाला अबकी हमारी बारी है..
●हमारा सब कुछ न्यौछावर इन पर, ये सब इनका ही तो है..
●जनता बोली किन्नरराज़ में रामराज़, नेता वेता सब नाम के..
●सेक्स परिवर्तन कर जीतू से बनी थी नीतू..

देशभर में लॉग डाउन का असर सभी जगह देखने को मिल रहा है जिसके चलते आम से लेकर खासतक तक हर कोई परेशान है जो भी जिस स्तर का है वह उस स्तर पर मजबूर और परेशान है. किसी की परेशानी किसी से कमतर यानि किसी से कम नहीं है. बावजूद इसके लोगों में जितना दम है वह एक-दूसरे की मदद करने में लगे हुए हैं. और ऐसे लोगों के जज्बे को हम सलाम करते हैं.

ताजा मामला मध्य प्रदेश बुंदेलखंड अंचल के छतरपुर जिले का है जहां जनता के राजा अर्थात सेवक कहने वाले नेताओं जनप्रतिनिधियों को पीछे छोड़ते लोगों के हुए मुश्किल वक्क्त में थर्ड जेंडर (किन्नरों) ने वो कर दिखाया है कि जिसे देख कर आप आह और वह किए बगैर ना रहेंगे.

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तो आइए चलते हैं उस जगह पर जहां पर आप की आह और वाह दोनों एक साथ निकलने वाली है.

यह हैं छतरपुर की आईकॉन नीतू किन्नर जिन्होंने यहां छतरपुर की धरा पर ही जन्म लिया और देशभर में अपनी खूबसूरती और नाजुक अदाओं प्रणाम कमाया. नीतू ने अपने दौर का सबसे युवा और खूबसूरत किन्नर माना जाता था जो उम्र के इस पड़ाव में भी कायम है, उन्होंने अपने शुरुआती दौर में मुंबई में रहते हुए बहुत नाम कमाया और अब कई वर्षों से अपनी जन्मभूमि पहुंचकर लोगों की सेवा में लगी हुईं हैं.

बता दें कि जब से कोरोना का कहर देश-दुनिया पर छाया हुआ है और अब इसके डर/बचाव से देशभर में लॉक डाउन किया हुआ है तब से लोगों पर इसका खाशा असर हुआ है. और तभी से नीतू किन्नर और उनके साथी किन्नर इस मुहिम्मन लगे हुए हैं और रोजाना गरीब, असहाय, जरूरतमंद, मज़बूर, मजदूर लोगों को खाने के लाले पड़े हुए हैं उन्हें काम भी नहीं मिला रहा जिससे वहः और उनके बच्चे भूखों मरने के कगार पर आ गये हैं. ऐसे में नीतू किन्नर सभी जरूरतमंदों को राशन, पानी और उनकी हर जरूरत को पूरा कर रहे हैं उन्हें राशन, पानी से लेकर कपड़े और नगद रूपाये तक बांट रहे हैं.

नीतू की मानें तो यह सब लॉग डाउन के पहले दिन से ही अनवरत जारी है और उनके यहां रोजाना सैकड़ों जरूरतमंदों की यूं ही भीड़ लगती है और वह दिल दोनों हाथ खोलकर लोगों की मदद करतीं हैं.

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नीतू की मानें तो यह सब इनका (जनता का) ही तो है. अब तक जनता ने हमें पाला है अब हमारी बारी है कि हम इनकी सेवा कर सकें यह जो भी है सब इनका ही तो दिया हुआ है जो हम इन्हें सूत समेत वापिस कर रहे हैं इसमें हमारा कुछ भी नहीं है सब ऊपरवाला कर रहा है हम सो सिर्फ निमित्त मात्र हैं. इस जग में हमारा किन्नर समाज का कुछ भी नहीं होता सब इन लोगों का ही होता है.

जानकारी के अनुसार नीतू किन्नर आज से नहीं विगत कई वर्षों से ऐसा करतीं आ रहीं हैं कि वह हर जरूरतमंद की हरसंभव मदद करती हैं. जो भी इनके दर पर पहुंचता है वह उसे खाली हाथ नहीं जाने देतीं.

दुनिया और लोगों की नजरों में भले ही यह शहर, नगर, जिले में बधाई और नेंग के तौर पर लोगों से मांगते नजर आते हैं पर असल में इसका दूसरा पहलू कुछ और ही है यह एक हाथ लेते हैं और दोनों हाथों से फील खोलकर सबको बांट देते हैं.

यहां जो जरूरतमंद इन तक पहुंच नहीं पाता और इन्हें पता चल जाता है तो यह और इनकीं टीम जरूरतमंद के घर जाकर उन्हें उनकी जरूरत का सामान मुहैया कराते हैं.

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जरूरतमंद लेने आई महिलाओं मीरा यादव, ममता प्रजापति, पुष्पा देवी की मानें तो नेता, जनप्रतिनिधि तो सिर्फ नाम के होते हैं जो सिर्फ हमसे लेने आते हैं देने कुछ भी नहीं, वह चुनाव के वक्त तो हमारे घरों तक चले आते हैं और उसके बाद 5 साल तक कहीं नजर ही नहीं आते. इससे बेहतर तो हमारे किन्नर लोग हैं जो हर वक्त हम मजमून, गरीबों, जरूरतमंदों की मदद के लिये तत्पर और हर संभव खड़े रहते हैं.

मामला चाहे जो भी हो पर इतना तो तय है कि हम महिला/पुरुषों को इन (थर्ड जेंडर) किन्नरों ने पीछे छोड़ दिया है और ऐसे वक्त दिल और दोनों हाथ खोलकर लोगों की मदद कर रहे हैं. जिसे देख हर किसी के मुंह से आह और वाह दोनों निकल पड़ती है.

स्वत्रंत पत्रकारिता के लिए जरूरी है कि पाठक सब्सक्राइब करके पढ़े डिजिटल संस्करण

लॉक डाउन का असर तेजी से प्रिंट मीडिया पर पड़ा है. बहुत सारे शहरों में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का वितरण नही हो पा रहा. हॉकर और ग्राहक दोनो में करोना का डर छाया हुआ है. पाठकों की गिरती संख्या को देखते हुए समाचार पत्रों ने जनता को यह समझने की बहुतेरी कोशिश की कि इससे करोना वायरस नही फैलता है. इसके बाद भी बात बनी नही.

लॉक डाउन के समय मददगार है डिजिटल संस्करण :

बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बों तक एक जैसे ही हालत बने हुए है. ऐसे में प्रिंट मीडिया ने भी अपने “ई पेपर” भेजने शुरू किए. आज वाट्सएप पर बहुत सारे समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के पीडीएफ फाइल आने लगी है. इससे सूचनाएं मिलती है.

ई पेपर के साथ ही साथ सभी मीडिया अपने डिजिटल एडिशन भी वेबसाइट पर पाठकों के लिए लाई है. जिंसमे एक लिंक के साझा करने पर खबरें, कहानियां, लेख पढ़ें जा रहे है.

लॉक डाउन के समय जब लोग घरों से बाहर नही निकल पा रहे और पत्र पत्रिकायें घरो तक नही पहुँच पा रही ऐसे में ई पेपर औऱ डिजिटल संस्करण ही लोगो के लिए सबसे उपयोगी है.

प्रमाणिक खबरों के लिए स्वत्रंत पत्रकारिता जरूरी

सोशल मीडिया पर आने वाली खबरों की प्रामाणिकता नही होती. ऐसे में जब तक मीडिया की किसी वेबसाइट या ई पेपर में उसको पढ़ा ना जा सके तो लोगो का भरोसा नही होता है.

पाठकों तक निष्पक्ष खबरे पहुचे इसके लिए जरूरी है कि पत्र और पत्रिकाए स्वत्रंत रूप से काम कर सके. अगर पत्र पत्रिकाएं विज्ञापन के दवाब में होगी तो वो समझौते करेगी. जिस संस्था या सरकार से पत्र पत्रिकाओं को विज्ञापन मिलेगा वो कभी उनकी सच्चाई से पाठकों को रूबरू नही कराएगी. पाठकों को अगर निष्पक्ष पत्रकारिता चाहिए तो इनको मजबूत करना पाठकों की जिम्मेदारी बनती है.

पम्पलेट नहीं खबरे पढ़े:

पाठकों तक सही सूचनाएं पहुँचने वाली संस्थाएं आज भी सरकारी विज्ञपनों पर निर्भर नही रहती है. पाठक की ताकत ही पत्र पत्रिकाओं की असल ताकत होती है. दुनिया मे कोई भी चीज मुफ्त नही होती. मुफ्त की जो भी चीज होती है उसके खर्च किसी और तरह से पूरे होते है. इसी तरह अगर पाठक फ्री में पत्र पत्रिकाए पढ़ाने की आदत डाल लगे तो उनको पत्र पत्रिकाएं नही पंपलेट पढ़ने को मिलेंगे. जिनको पाठक पढ़ना भी नही चाहते और एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ से फेंक देते है.

दुनिया भर में स्वत्रंत पत्रकारिता को बचाये रखने के लिए पाठक पत्र पत्रिकाओं को खरीद कर पढ़ते है. जंहा पाठक खरीद कर नही पढ़ते वँहा की पत्रकारिता विज्ञपनों के भरोसे हो जाती है फिर पाठक वही पढ़ते है जो विज्ञापन देने वाला पढ़ना चाहता है. यही वजह है कि भारत मे विज्ञापन और मैटर के बीच किसी तरह का कोई सिद्धांत नही रह गया है. कवर पेज तक पर विज्ञापन छपने लगे है. समाचार से अधिक विज्ञापन होने लगे है. समाचार भी पेड़ न्यूज बन गए है. ऐसे में पाठकों को सही जानकारी नही मिलती.

 खबरे ही नही पत्रकारिता के लिए सामाजिक जिम्मेदारी जरूरी:

पत्र पत्रिकाओं के डिजिटल संस्करण वेबसाइट पर लाने के लिए और पाठकों तक सच्ची खबरे पहुचने तक एक टीम मेहनत करती है. उसकी अपनी कुछ जरूरतें होती है. कंपनी का एक इन्फ्रास्ट्रक्चर होता है. जिसको चलाने के दो ही रास्ते है या तो पाठक सब्सक्राइब करके संस्थान को मजबूत करे या मुफ्त पढ़ने के चक्कर मे वो पढ़े जिसकी कीमत कोई और दे रहा हो. पाठकों को अपनी मर्जी अपनी जानकारी प्राप्त करने के लिये मीडिया चाहियें तो उसे मुफ्त के पढ़ने की आदत छोड़नी चाहिए.

#coronavirus: मुआवजे की आस में किसान

पिछले दिनों देश में अनेक हिस्सों में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने अनेक किसानों की फसल खराब कर दी है. अब किसान की नजरें कभी बरबाद हुई फसल की ओर उठती हैं तो कभी सरकार की ओर. अब सब से बड़ी समस्या उन खेतों के सर्वे की आ रही है. क्योंकि लॉक डाउन लागू है.

राजस्थान के एक कृषि विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि फसल ख़राब होने पर शायद की ये पैसा सभी किसानों को मिल पता हो, क्योंकि बीमा कंपनियों के नियम ही कुछ ऐसे हैं जिन में किसान उलझ कर रह जाता है. जैसे फसल खराब होने की जानकारी बीमा कंपनियों को 72 घंटे में देनी होती है आदि. उन्होंने ये भी बताया कि अभी तक पिछले 2 सालों में ख़राब हुई फसल का पैसा भी अनेक किसानों को नहीं मिला है. जबकि सरकार की तरफ से समय पर फंड जारी हो गया था. किसानों के बैंक खाते से बिना जानकारी दिए बीमा की किश्त भी काट ली जाती है.

हालांकि इस समय हालातों को देखते हुए राजस्थान सरकार की तरफ से गिरदावरी के आदेश जारी हो चुके हैं और अनेक रकबों की जांच होने के बाद रिपोर्ट भी संबंधित विभागों को भेजी जा चुकी है. देखना यह है की महामारी के इस दौर में किसानों का पैसा उन तक पहुँचता भी है या नहीं. हालांकि फसल सर्वे को जरुरी मानते हुए हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व अन्य प्रदेश सरकारों ने टाइम बाउंड सर्कुलर जारी कर दिया है. सभी जिलों के कृषि अधिकारियों को कहा है की इस से जुड़े कर्मचारी इस काम में लग जाएं और तय समय में इस काम को पूरा करें और रिपोर्ट मुख्यालय में भेजें.

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लेकिन यह काम इतना आसान नहीं दिख रहा क्योंकि बीमा कंपनियों के कर्मचारी भी फील्ड में जाने से कतरा रहे हैं और कई गांव में तो बाहर से आए लोगों को भी रोका जा रहा है.ड्रोन से फसल सर्वे : वैसे आज तकनीकी के दौर में कोई भी काम ऐसा नहीं है जो न हो सके. आज सरकार और कंपनियों के पास आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी अनेक आधुनिक तकनीक मौजूद हैं. जिस का इस्तेमाल ऐसे सर्वे में होता रहा है. इसलिए सरकार और बीमा कंपनीयां फसल सर्वे के काम को ड्रोन के जरिए करा कर किसान को समय से रहत दे सकती है.

कैसे होता है फसल सर्वे: फसल सर्वे के पहले चरण में कृषि विभाग के लोग संबंधित किसान के खेतों में जाते हैं और पिछले 5 सालों की फसल पैदावार लगभग कितनी होती है यह देखते हैं. इस सर्वे के लिए कृषि विभाग के स्टाफ को फसल काटने से पहले 2 से 3 बार जाना होता है. फसल बीमा के लिए यह सर्वे खास होता है. क्योकि सर्वे में यह देखा जाता है कि पिछले 5 सालों में उस खेत से किसान की कितनी औसतन कटाई हुई. इसी के आधार पर मुआवजा दिया जाता है.सर्वे के दूसरे दौर में कृषि विभाग के कर्मचारी द्वारा यह देखा जाता है. किसान ने कौन कौन सी फसल बोई हैं और कितने रकबे में बोई है. जिसका मिलान पटवारियों द्वारा की गई गिरदावरी से किया जाता है. गिरदावरी का मतलब खेत के रिकॉर्ड से है कि किसान ने कितने रकबे में कौन की फसल बोई है. जिस का लेखाजोखा पटवारी के पास होता है.

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तीसरा और आखिरी सर्वे स्थानीय सर्वे होता है इस चरण में एडीओ (एग्रीकल्चर डवलपमेंट ऑफिसर) या उसी ओहदे के बराबर अधिकारी द्वारा एक कमेटी का गठन होता है जिस में बीमा कंपनी का प्रतिनिधि और किसान भी शामिल होता है. इस कमेटी के लोग मौके पर जाकर आपदा वाले खेत में फसल का सर्वे करते हैं. यह काम फसल कटाई से पहले करना होता है. उसी के आधार पर किसान के नुकसान की भरपाई की जाती है.अब किसान के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है. क्योकि ज्यादातर इलाकों में फसल पक चुकी है या पकने वाली है. फसल पकने के बाद उसे समय से काटना भी जरुरी है. जब तक ख़राब फसल का सर्वे नहीं होता तो किसान उसे काट भी नहीं सकता.

इसलिए सबसे पहले सरकार को यह कदम उठाना ही होगा होगा कि प्राकृतिक आपदा से ख़राब हुई फसल का जल्दी से जल्दी सर्वे कराया जाए. जिस से उस की भरपाई हो सके. साथ ही बची हुई फसल को किसान समय से काट कर रख सके.

कहां खो गये जनसेवक

पूरा देश जहां कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है, वहीं हमारे देश के चौकीदार आलीशान सरकारी बंगलों में दुबक कर जनता को भाषण देकर अपना ज्ञान बघार रहे हैं. कोरोना से बचाव के लिए लाक डाउन की घोषणा तो हो गई, लेकिन इसके लिए कोई पूर्व तैयारी न होने से लोगों के समक्ष रोजमर्रा की जरूरतों की बस्तुओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है. देश का कोई भी बड़ा नेता या जनप्रतिनिधि जनता के बीच नहीं पहुंचा है.

कोरोनावायरस से बचाव के लिए जनससेवक की भूमिका हमारे देश के डाक्टर, नर्सेस, पैरा मेडिकल स्टाफ, सरकारी अफसर, पुलिस जवान  , मीडिया कर्मी और बड़ी संख्या में कर्मचारी अधिकारी निभा रहे हैं. मध्यप्रदेश के गांव कस्बों में सुदूर जिलों से आये कृषि मजदूरों को खाने पीने की जिम्मेदारी छोटी छोटी स्वयंसेवी संस्थाओं ने पूरी की तो प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हे बसों से उनके गंतव्य तक पहुचाने का काम किया.

मध्यप्रदेश का नरसिंहपुर जिला देश का पहला जिला है जहां नरेंद्र मोदी से भी पहले 23 मार्च को लौक डाउन षुरू हो गया था .मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में 21 मार्च को 4 कोरोना पाज़ीटिव केस मिलने की खबर ने पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया.कमलनाथ सरकार की बिदाई हो चुकी थी. यैसे में प्रदेश के अफसरों ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए सख्त कदम उठाने का फैसला किया. 22 को देश में प्रधानमंत्री के  आह्वान पर जनता कर्फ्यू चल रहा था. जबलपुर से सटे नरसिंहपुर जिले के डीएम दीपक सक्सेना और एसपी डा.गुरूकरण सिंह ने आपात बैठक बुलाई और 23 से पूरे जिले में लाक डाउन की घोषणा कर दी.

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कोरोनावायरस का खतरा इन दूरदर्शी अधिकारिओं ने पहले ही भांप लिया था. लाक डाउन के दिन डीएम और एसपी की जोड़ी जब सड़कों पर उतरी तो जिले की जनता ऐसे जनसेवकों पर‌ नाज कर उठी. लाक डाउन के दौरान जिले के कोने कोने में घूमकर इन अफसरों ने न केवल कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रति जनता को जागरूक किया,बल्कि जनता की तकलीफों को दूर भी किया. गाडरवारा तहसील के एसडीएम राजेश शाह ने जिले में फंसे शहडोल जिले के मजदूरों को खाना पीना की व्यवस्था के साथ उन्हें उनके घर भी पहुंचाया. 28 मार्च से पूरे जिले में होम डिलीवरी की सुविधा देकर लोगो को जयरी दवाइयों के साथ फल ,सब्जी ,दूध और किराना सामग्री घर घर पहुंचाने की व्यवस्था कर सख्ती से लौक डाउन का पालन जनता से करवाया .

 

जांबाज अफसरों ने जनता के मन में छुपे उस भ्रम को दूर  कर दिया कि असली जनसेवक सफेद पोश नेता नहीं है. 26 मार्च को जनता को रोजमर्रा की जरूरतों के लिए लाक डाउन में सुबह 7 बजे से 12 बजे तक ढील देकर फल सब्जी, दूध, किराना ,आटा चक्की की दुकानें खोलने का निर्णय लेकर सोशल डिस्टेसिंग का पूरा ख्याल रखा गया. दुकानों के सामने मार्किंग करके भीड़ को कुशलता के साथ काबू में किया गया.किसानों को कृषि कार्य में राहत देते हुए थ्रेसर, हार्वेस्टर चलाने और डीजल की व्यवस्था सुनिश्चित करने में ये अफसर सफल रहे.

जब शहरों में फंसे मजदूर रोजी-रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे थे तो पुलिस के जवानों ने घरों से खाना लाकर उनकी पेट पूजा कराई. नर्मदा सुगर मिल सालीचौका के विनीत माहेश्वरी ने आस पास के गांव कस्बों में सेनाटाइजर को बांट कर लोगों को कोरोना वायरस से बचने के लिए जागरूक करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.मगर कोई भी जनप्रतिनिधि या राजनेता अपनो बंगलों से बाहर नहीं निकला.

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गांव कस्बों में काम करने वाले डाक्टरों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई . गाडरवारा के डा संजय मोदी ने लोगों को फ्री मेडिकल चैक अप की सुविधा मुहैया कराई तो तेंदूखेड़ा के डा शचीन्द्र मोदी ने 50 हजार रूपये की रकम जिला आपदा प्रबंधन के लिये अवश्यक दवांये ,मास्क और सेनेटाइजर खरीदने के लिये  प्रदान की .

 

अपने आपको देश का चौकीदार बताने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता को संबोधित करते हुए कोरोना वायरस का डर तो दिखा दिया, लेकिन इससे बचाव के लिए  डाक्टरों और अस्पतालों के लिए कोई सरक्षा के इंतजामात नहीं किये. उल्टे जनता को ताली और थाली बजाने की नसीहत दे डाली. प्रधानमंत्री के इस कदम की दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डाक्टर देवब्रत महापात्र ने खुला पत्र लिखकर आलोचना की. उन्होंने लिखा कि देश के सरकारी अस्पतालों में डाक्टर किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं.मुश्किल हालातों में काम कर रहे डॉक्टरों के पास गुणवत्तापूर्ण गाऊन, उपकरण और मास्क तक नहीं हैं.सोशल मीडिया पर लिखे इस पत्र के जरिए उन्होंने देश के मुखिया को नसीहत दी कि यदि वे डाक्टरों की सुरक्षा के लिए जरूरी उपकरण नहीं दे सकते तो थाली बजाकर उनका मजाक न उड़ाएं.

जहां एक ओर‌ हमारे देश के डाक्टर अपनी जान जोखिम  में डालकर कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे हैं और हमारा समाज इन्हे प्रताड़ित कर रहा है. दिल्ली के साथ देश के इलाकों में मक़ान मालिक उन डाक्टर और‌ नर्सो से मकान खाली करवाने की धमकी  दे रहे हैं जो‌ कोरोना का इलाज कर‌ रहे हैं.

आज  देश में फैली इस महामारी के दौर में जनता के सच्चे जनसेवक इन डाक्टरों, नर्सों और सरकारी अफसरों पर हमें गर्व है . यह भारतीय लोकतंत्र की विडंबना ही है कि अपने स्वार्थो की खातिर नोट और शराब की बोतलों में वोट खरीदने वाले राजनेता देश के हुक्मरान बने बैठे हैं. कोरोना की इस जंग ने लोगों को सचेत जरूर किया है कि वे अपने कीमती वोट से यैसे जनसेवकों का चुनाव करें ,जो उनके बुरे वक्त में उनके साथ खड़ा रह सके .

नेताओं का डरा रहा कोरोना

अपने आपको जनता का सेवक कहने वाले नेता कोरोना के कहर से इस कदर भयभीत हैं कि वे जनता के दुख दर्दो से कन्नी काट रहे हैं . न्यूज चैनलों पर लंबी चैड़े भाषण देने वाले भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और क्वालिफाईड डाॅ संबित पात्रा ने जनता को कोइ्र मदद करने की बजाय अपने आपको घर में कैद कर लिया है . कमलनाथ सरकार के गिरते ही मध्यप्रदेश के छतरपुर जिला भाजपा जिलाध्यक्ष माखनसिंह की अगुआई में भाजपाई जुलूस निकालकर जस्न मनाते नजर आये , लेकिन जब कोरोना का खतरा बढ़ तो जनता के बीच जाने से कतरा रहे हैं . मध्यप्रदेश के एक पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री बनने के लिये खूब भागदौडत्र करते रहे ,परन्तु जब शिवराज के रहते उनकी दाल नहीं गली तो आने आपको कोरोना से बचाने अपने घर पर नाती पोतों के साथ खेलने पढ़ाई करने के वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं .

मध्यप्रदेश के कांग्रेसी नेता भी कोरोना की परवाह किये बिना सरकार बचाने दिल्ली ,बेंगलरू तक दौड़ धूप करते रहे और जब सरकार गिरी तो जनता से मुंह मोड़ अपने आपको घरों में आइसोलेट कर लिया. छत्तीसगढ़ के एक विधायक ने तो हद ही कर दी .प्रधानमंत्री के जनता कर्फयू के दौरान वेमेतरा के विधायक आशीष छावड़ा ने अपने घर पर नेताओं का हुजूम इकट्ठा कर बकायदा कोरोना से बचाव के लिये हवन और पूजा पाठ तक करवा दिया .

देश के गरीब ,पिछड़े और दलितों को किसी पाप योनि का मानने वाले नेताओं की कमी नहीं है .सरकार के नूमाइंदे इन गरीबों को चंद दिनों के लिये दो वक्त की रोटी का इंतजाम न कर सके . इसी बजह से एक राज्य से दूसरे राज्य अपने घर जाने सडको पर पलायन कर रही मजदूरों की भीड़ ने बिना प्लानिंग किये गये लौक डाउन पर सबाल खड़े कर दिये हैं .

Lockdown Effect: 9–10 महीने बाद थोक में गूंजेगी किलकारियां

कोरोना संक्रमण से और कितनी मौतें होंगी यह तो आने बाला वक्त ही बताएगा लेकिन अंदाजों से परे एक रिसर्च की मानें तो इस साल के आखिर और 2021 की शुरुआत में थोक में नन्हें मुन्हे पैदा होंगे खासतौर से उन देशों में जहां लॉक डाउन है. इसमें कोई शक नहीं कि इस लाक डाउन और उसकी सोशल डिस्टेन्सिंग के चलते लाखों जिंदगियां काल के गाल में असमय समाने से बच गईं हैं लेकिन यह भी सच है कि उससे कई गुना ज्यादा जिंदगियां कोखों में अंगड़ाइयां लेने लगी हैं और यह सिलसिला लाक डाउन खत्म होने तक जारी रहने की पूरी उम्मीद है.

हार्ले थेरेपी के क्लीनिकल डायरेक्टर डॉ शेरी जैकबसन ने अपने एक दिलचस्प शोध में कहा है कि अगले साल की शुरुआत में बेबी बूम आएगा. अपनी रिसर्च में शेरी ने बताया है कि लॉक डाउन के चलते लोग खासतौर से नए जोड़े बोरियत और तनाव दूर करने शारीरिक सम्बन्धों को प्राथमिकता देंगे इससे साल के आखिर तक बेबी बूम आने की पूरी संभावना है. डॉ शेरी का अधध्यन क्षेत्र हालांकि ब्रिटेन है लेकिन उनकी यह रिसर्च सैद्धान्तिक रूप से उन तमाम देशों पर लागू होती है जहां लॉक डाउन है.

भारत इससे अछूता नहीं है जहां हाल-फिलहाल 14 अप्रैल तक लॉक डाउन है, लेकिन यह अगर और बढ़ा जैसी कि संभावना जताई जा रही है तो कोई वजह नहीं कि देश किलकारियों से न गूंजे. डॉ शेरी के मुताबिक लॉक डाउन के चलते गर्भनिरोधक और कंडोम बनाने बाली कंपनियां बंद हैं, जिससे बाजार से इनका स्टाक खत्म हो गया है. ऐसे में जाहिर है युवा जोड़ों की नज़दीकियां आबादी बढ़ाने बाली भी साबित होंगी.

तमाम छोटी बड़ी कंपनियों अपने कर्मचारियों से घर से ही काम करवा रहीं हैं जिसे वर्क फ्राम होम कहा जा रहा है. कर्मचारी घर से काम भी कर रहे हैं लेकिन कोई कंपनी उनकी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति पर अंकुश नहीं लगा सकती जिसके पैदा होने का कोई वक्त नहीं होता लिहाजा गुल तो खिलना तय है.

पर ये गुल कितने होंगे इसका ठीक ठाक आंकड़ा किसी के पास नहीं कि कितने नवविवाहित एक साथ घरों में कैद हैं और उन्हें कंडोम बगैरह मिल रहे हैं या नहीं और अगर मिल भी रहे हों तो वे इनका इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं. मुमकिन यह भी है कि खुद उनके मन में बच्चे की ख़्वाहिश आ रही हो. लंबे लाक डाउन ने कंडोम का गणित और अर्थशास्त्र दोनों गड़बड़ा दिये हैं.

कंडोम की मांग तो है लेकिन आपूर्ति उसके मुताबिक नहीं है. फुटकर दुकानों से कंडोम खत्म हो चले हैं और नया स्टाक आ नहीं रहा इसलिए निसंकोच कहा जा सकता है कि नए जोड़ों से बहुत ज्यादा संयम और समझदारी की उम्मीद न रखी जाये.

आमतौर पर आजकल के कपल्स मकान और कार की तरह बच्चा भी प्लान करते हैं कि उसे कब दुनिया में लाया जाना उनके बजट, आमदनी और घरेलू हालातों के हिसाब से ठीक रहेगा.  पर लॉक डाउन ने अच्छे अच्छों की प्लानिंग्स मिट्टी में मिला दी हैं फिर इन नए जोड़ों की बिसात क्या, जिनके लिए सेक्स अब आनंद का ही जरिया नहीं बल्कि एक तरह से टाइम पास मूंगफली भी हो गया है लिहाजा लॉक डाउन तक ये उसे छीलते और खाते रहेंगे और अपने प्यार की निशानी को दुनिया में लाने से रोकेंगे नहीं.

अगर कंडोम थोक में और सहजता से उपलब्ध होते तो शायद किसी रिसर्च की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन यह कोई अनाज या एफएमसीजी जैसा प्रोडक्ट भी नहीं है जिसके न मिलने पर हाहाकार मचे लिहाजा जो होना है वह अभी से दिखने भी लगा है. जब कोरोना से हुई मौतों का मातम खत्म होगा तब तय है नए मेहमानों के आने की खुशियां मनाने का वक्त शुरू हो चुका होगा.

डॉ शेरी की रिसर्च कुछ लोगों की इस धारणा को भी झुठलाती हुई है कि दरअसल में कोरोना के कहर से कुदरत अपना संतुलन बना रही है यानि बढ़ती आबादी को रोक रही है. यहां तो उल्टा हो रहा है, लॉक डाउन से मौतें तो कम हुई हीं साथ ही आने बाली ज़िंदगियों की तादाद में बैठे ठाले इजाफा हो रहा है. वैश्विक मंदी के इस दौर में यह रिसर्च बेबी प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों के लिए तो एक शुभ समाचार तो है ही.

LOCKDOWN टिट बिट्स- भाग 2

श्राप और स्वाभिमान

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भगवान टाइप के व्यक्ति हैं, एक तो शास्वत भगवा लिवास और उस पर चेहरे पर पसरा सनातनी रुआब देखकर ही मानव मात्र का मन उनके सामने दंडवत होने मचलने लगता है और जिसका न मचले वह लंबी छुट्टी की अर्जी देकर चिंतन मनन के लिए अज्ञातवास पर निकल पड़ता है.  वैसे भी इन दिनो लाक डाउन के चलते हर कोई अपने घर में ही बुध्तत्व की ही अवस्था में है.

हुआ यूं कि योगी जी को गौतमबुद्ध नगर की एक सरकारी मीटिंग में गुस्सा आ गया जो उतरा खासतौर से एक अधिकारी बीएन सिंह पर जो कुछ घंटे पहले तक डीएम हुआ करते थे. इसके बाद क्या हुआ यह जानने से पहले यह समझ लेना जरूरी है कि यह गुस्सा मनोविज्ञान के नियमों और सिद्धांतों के तहत चरणवद्ध तरीके से यानि स्टेप बाई स्टेप नहीं आया था बल्कि कुछ कुछ पूर्व नियोजित सा था. खैर इन सिंह साहब ने भी तुरंत अपने बड़े साहब को छुट्टी की दरखावस्त दे डाली जिसमें वजह वे व्यक्तिगत कारण बताए गए थे जो मीडिया की पहुंच और मेहरबानी के चलते इस डांट कांड के मिनटों बाद ही इफ़रात से सार्वजनिक हो चुके थे.

Yogi_Adityanath

छुट्टी साफ है, तात्कालिक आवेश और क्षोभ के चलते ली गई जिसका मकसद स्वाभिमान की रक्षा करना था.  यह ब्यूरोक्रेट्स में पाई जाने बाली बहुत बुरी लेकिन प्रचिलित बीमारी है.  अब उम्मीद की जानी चाहिए कि चूंकि बकबास खत्म हो गई है इसलिए कोरोना वायरस यूपी में संक्रमित नहीं होगा और मजदूरों के पलायन की समस्या भी हल हो जाएगी.

कहते हैं गुस्सा कमजोरी की निशानी है लेकिन चूंकि आदित्यनाथ सामान्य मानव नहीं हैं इसलिए जनहित में उनके इस प्रायोजित क्रोध को श्राप ही समझा जाना चाहिए जिससे 18 – 18 घंटे काम कर रहे कामचोर मुलाज़िम और ज्यादा फुर्ती से काम करेंगे और प्रशासनिक बुद्धि का इस्तेमाल करेंगे जिसके चलते अब उत्तरप्रदेश में कोरोना पीड़ितों की तादाद में भारी कमी आएगी और भागते मजदूर केमरे की जद से दूर कर दिये जाएँगे.

दान पर दनादन –

इधर लोगों को खाने के लाले पड़े हैं, रहने और रोजगार के ठिये बंद हो रहे हैं, लाक डाउन से घबराए लोग बस भाग रहे हैं कि जैसे भी हो घर पहुँच जाएँ और इधर आलीशान वातानुकूलित महलनुमा घरों में बैठे कलाकारनुमा मानव मुक्त हस्त से दान दे रहे हैं. ये लोग जो लाखों करोड़ों का दान राशि पीएम केयर्स फंड में कर रहे हैं वह दरअसल में एक तरह का निवेश है जो उन्हें संसद में भी ले जा सकता है और कोई पद्म पुरुस्कार भी दिलवा सकता है.

दान की मानसिकता धर्म की देन है. पैसा गरीबों और जरूरतमंदो को दिया जाये तो दान नहीं रह जाता वह फिर भीख या सहायता हो जाती है. दान का वास्तविक अधिकारी तो ब्राह्मण ही धर्मग्रंथो में बताया गया है. इस बहस से परे निरपेक्ष होकर देखें और सोचें कि क्यों देने बालों के पेट में मरोड़े उठ रही हैं और दान पर भी हिन्दू मुस्लिम क्यों हो रहा है तो बात आईने की तरह साफ हो जाती है कि किसी को कोरोना और लाक डाउन पीड़ितों से कोई खास सरोकार नहीं है.

फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने पीएमसी फंड में 25 करोड़ रु क्या दान में दिये कि सोशल मीडिया के भक्त हल्ला मचाने लगे कि खान गैंग क्यों दान देने से कतरा रही है और अधिकतर दान दाता हिन्दू हैं मुसलमान तो दान दे ही नहीं रहे. अक्षय कुमार ने दान के साथ दूसरे दान दाताओं की तरह कुछ कुछ भावुकता भी दी जो जाहिर है पीएम फंड में जमा नहीं होगी.

25 करोड़ के इस महादान पर अमिताभ बच्चन ने भी कविता के जरिये ताना कसा तो सलमान खान के बारे में खबर आई कि वे 25 हजार मजदूरों के रहने, खाने पीने और दवाइयों बगैरह का इंतजाम 2 महीने के लिए कर रहे हैं जिस पर 25 से 50 करोड़ रु खर्च होंगे लेकिन चूंकि यह पीएम फंड के जरिये वे नहीं कर रहे इसलिए इसकी कोई अहमियत नहीं यानि मंदिर की दान पेटी में डाला गया पैसा ही दान की श्रेणी में आता है. बाहर खड़े भूखे अधनंगे भिखारियों को जो दिया जाता है वह तो भीख सहायता या करुणा होती है जिसका कोई धार्मिक महत्व नहीं होता.

Salman-Khan

कहने को तो हर कोई ब-जरिये दान, कोरोना पीड़ितों की मदद करना चाहता है लेकिन हकीकत में सबको अपना यश, धंधा और पुण्य और उससे भी ज्यादा प्रधानमंत्री की निगाहों में चढ़ने की वासना और लालसा दिख रही है.  इसीलिए मीडिया और सोशल मीडिया पर सूचियाँ वायरल हो रहीं हैं कि किसने कितना दिया और जिनहोने नहीं दिया उन्हे धिक्कारा जा रहा है मानो दान न देना कोई असंवैधानिक कृत्य या संगीन जुर्म हो. इस दान दक्षिणा का का स्वागत किया जाता लेकिन इसमें भी धर्म घुसेड़ कर भक्तों ने जता दिया है कि संकट के इस दौर में भी उनके लिए हिन्दू राष्ट्र का एजेंडा सर्वोपरि है.

कीड़े मकोड़े ही तो हैं

देश भर के तमाम छोटे बड़े शहरों से जो मजदूर भाग रहे हैं उनमे से ज़्यादातर छोटी जाति बाले ही हैं जिन्हें धार्मिक ग्रन्थों में शूद्र करार दिया गया है. इनके भागने पर चिंता और भगदड़ क्यों मची हुई है इस पर 19 बाँ पुराण लिखा जा सकता है जिसका सार या भूमिका इससे ज्यादा कुछ नहीं होगी कि दरअसल में कलयुग के फलां खंड में कोरोना वायरस के नाम पर जो कुछ भी प्रकोप हुआ वह ईश्वर की पापियों को सजा देने और नष्ट करने की लीला थी. कुछ भक्त तो वक्त रहते ही शिवपुराण खोलकर दिखा भी चुके हैं कि देखो इसमें कोरोना वायरस का वर्णन पहले से ही है.

उत्तर प्रदेश के बरेली बस अड्डे पर हैरान परेशान भगोड़े मजदूरों पर प्रशासन ने कीटनाशक छिड़कवाकर साबित भी कर दिया कि इनकी हैसियत वाकई में कीड़े मकोड़ों जैसी है. क्या आप उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं जब तमाम ज्ञान विज्ञान को ताक में रखते ऐसा किया गया होगा. यह बिलाशक घोर क्रूर और अमानवीय आलोकतांत्रिक कृत्य था जिस पर कोई कडा एक्शन नहीं लिया गया और न ही मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी पर खरा उतर पाया. फिर भी जिन मीडिया कर्मियों ने इस पर सवाल किए तो बड़े फख्र से उन्हें बताया गया कि सेनेटाइजिंग टीम द्वारा  इन मजदूरों पर सोडियम हाइपोक्लोराइड का छिड़काव किया गया था. यह केमिकल आमतौर पर ब्लीचिंग के काम आता है पर बरेली के विदद्वान अफसरों ने इसे सेनेटाइजर बताया.

लाक डाउन के नाम पर पसरती वर्ण व्यवस्था पर कोई नेता कुछ नहीं बोला सिवाय बसपा प्रमुख  मायावती के लेकिन वे भी जाने किस मजबूरी के चलते सीधे सरकार पर हमलावर नहीं हो पाईं बस इस कांड की निंदा कर वे इतना ही बोलीं कि इन मजदूरों को स्पेशल ट्रेन चलाकर उनके घरो को भेजने के इंतजाम किए जाना चाहिए था.

अगर घातक रसायनो का गरीबों पर यह प्रयोग मान्य और विज्ञानसम्मत है तो इससे पहले नेताओं और अधिकारियों को स्नान करना चाहिए. पर यह सवेदनहीनता बताती है कि गरीब मजदूरों की हैसियत अभी भी क्या है और उनकी गिनती किस वर्ण के अंतर्गत की जाती है. अब आप खुद ही तय कर लें कि लाक डाउन के असली गुनहगार कौन हैं और किस मानसिकता के हैं.

कण कण में कनिका –

गाने से कभी इतनी शौहरत नहीं मिलती जितनी कोरोना छिपाने और फिर फैलाने से मिल गई . गायिका कनिका कपूर को कोरोना संक्रमण आभिजात्य वर्ग में फैलाने का श्रेय जाता है जो इन दिनों लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में अपना इलाज करवा रहीं हैं. यह तो अच्छा हुआ कि जिन जिन हस्तियों के संपर्क में वह आई उनमें से लगभग सभी का कोरोना टेस्ट निगेटिव आया नहीं तो अब तक आसमान सर पर उठा लिया जाता क्योंकि उसके संपर्क में कोई गरीब मजदूर नहीं बल्कि खासे रसूख बाले लोग आए थे.

कनिका की चौथी रिपोर्ट भी पॉज़िटिव आई है यानि कोरोना ने स्पष्ट बहुमत से उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया है. कनिका ने कोरोना संक्रमण छिपाने का गुनाह तो किया ही है साथ ही यह भी जता दिया है कि उसने सिर्फ अपने बेहतर इलाज के लिए उसने यह राज खोला क्योंकि कोरोना संक्रमण एक ऐसा  प्रगट रोग है जिसका कहीं कोई इलाज नहीं सिवाय इसके कि मरीज एकांत में रहते अपनी ज़िंदगी के पाप पुण्यों का हिसाब किताब लगाते खुद के ठीक होने की दुआ करता रहे.

लखनऊ की ही रहने बाली तलाक़शुदा कनिका के घर बाले उसे इलाज के लिए एयर लिफ्ट करने की पेशकश कर वही मूर्खता दोहरा रहे हैं जिसकी सजा कनिका भुगत रही है. देश विदेश में कहीं इसका कोई इलाज नहीं है तो वे संक्रमित कनिका को इलाज के लिए कहाँ ले जाएँगे. कनिका सेलेब्रिटी है इसलिए उस पर सभी की निगाहें हैं लेकिन खुद उसे सोचना चाहिए कि यह प्रसिद्धि उसे कितनी महंगी पड़ रही है.

मेरा मन सैक्स करने का करता है, ऐसा कोई उपाय बताएं जिस से सैक्स की फीलिंग न हो?

सवाल

मैं एक 20 वर्षीय युवती हूं. मेरा मन सैक्स करने का करता है. ऐसा कोई उपाय बताएं जिस से सैक्स की फीलिंग न हो?

जवाब

सैक्स की फीलिंग नौर्मल फीलिंग है, लेकिन आप की समस्या से लगता है कि आप इस के बारे में बहुत ज्यादा सोच रही हैं. आप अपनी लाइफस्टाइल में कुछ चेंज करें. फ्रैंड सर्कल में ऐसी फ्रैंड्स के साथ कम रहें जो केवल सैक्स से संबंधित बातें ही करती हों. पौर्न साइट्स न देखें, हैल्दी मनोरंजन से भरपूर किताबें पढ़ें. जैसे ही आप का ध्यान इस ओर डाइवर्ट होने लगे, स्वयं को कहीं और व्यस्त कर लें. सुधार दिखने पर आप को अच्छा लगेगा.

 

सवाल
मेरी उम्र बहुत छोटी है लेकिन मैं अपने पड़ोस के लड़के से प्यार कर बैठी हूं. देखता वह भी है लेकिन अभी तक उस ने मुझ से कुछ नहीं कहा. मैं रातों में भी बस उसी के बारे में सोचती रहती हूं और उसे अपने दिल का हाल बता कर उस के साथ सैक्स करना चाहती हूं. आप ही बताएं कि क्या मेरा ऐसा सोचना सही है?

जवाब
अभी आप की उम्र पढ़ाईलिखाई में ध्यान दे कर अच्छा कैरियर बनाने की है, न कि प्यारव्यार के चक्कर में पड़ने की. इसलिए इस तरफ से अपना ध्यान हटाइए और अगर वह आप से दोस्ती करने के बारे में कहे तो उसे सिर्फ अच्छा दोस्त मानिए, न कि उस के साथ सैक्स करने के बारे में सोचें. इस से आप की जिंदगी बरबाद हो सकती है. भूल कर भी आप खुद की तरफ से पहल न करें.

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जब चढ़ा प्यार का नशा

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी के भलस्वा गांव के रहने वाले सोहताश की बेटी की शादी थी. उन के यहां शादी में एक रस्म के अनुसार, लड़की की मां को सुबहसुबह कई घरों से पानी लाना होता है. रस्म के अनुसार पानी लाने के लिए सोहताश की पत्नी कुसुम सुबह साढ़े 5 बजे के करीब घर से निकलीं. यह 20 जून, 2017 की बात है.

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पानी लेने के लिए कुसुम पड़ोस में रहने वाली नारायणी देवी के यहां पहुंचीं. नारायणी देवी उन की रिश्तेदार भी थीं. नारायणी के घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह उस की बहू मीनाक्षी को आवाज देते हुए सीधे अंदर चली गईं. वह जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, उन्हें नारायणी का 40 साल का बेटा अनूप फर्श पर पड़ा दिखाई दिया. उस का गला कटा हुआ था. फर्श पर खून फैला था. वहीं बैड पर नारायणी लेटी थी, उस का भी गला कटा हुआ था.

दोनों को उस हालत में देख कर कुसुम पानी लेना भूल कर चीखती हुई घर से बाहर आ गईं, उस की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. उस ने आंखों देखी बात उन्हें बताई तो कुछ लोग नारायणी के घर के अंदर पहुंचे. नारायणी और उस का बेटा अनूप लहूलुहान हालत में पड़े मिले.

अनूप की पत्नी मीनाक्षी, उस की 17 साल की बेटी कनिका, 15 साल का बेटा रजत बैडरूम में बेहोश पड़े थे. दूसरे कमरे में नारायणी की छोटी बहू अंजू और उस की 12 साल की बेटी भी बेहोश पड़ी थी. नारायणी का छोटा बेटा राज सिंह बालकनी में बिछे पलंग पर बेहोश पड़ा था.

मामला गंभीर था, इसलिए पहले तो घटना की सूचना पुलिस को दी गई. उस के बाद सभी को जहांगीरपुरी में ही स्थित बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया. सूचना मिलते ही एएसआई अंशु एक सिपाही के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वहां उन्हें पता चला कि सभी को बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया है तो सिपाही को वहां छोड़ कर वह अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों से बात करने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी थानाप्रभारी महावीर सिंह को दे दी.

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घटना की सूचना डीसीपी मिलिंद डुंबरे को दे कर थानाप्रभारी महावीर सिंह भी घटनास्थल पर जा पहुंचे. उस इलाके के एसीपी प्रशांत गौतम उस दिन छुट्टी पर थे, इसलिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे के निर्देश पर मौडल टाउन इलाके के एसीपी हुकमाराम घटनास्थल पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया गया था. पुलिस ने अनूप के घर का निरीक्षण किया तो वहां पर खून के धब्बों के अलावा कुछ नहीं मिला. घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखा था, जिस से लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी.

कुसुम ने पुलिस को बताया कि जब वह अनूप के यहां गई तो दरवाजे खुले थे. पुलिस ने दरवाजों को चैक किया तो ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से लगता कि घर में कोई जबरदस्ती घुसा हो. घटनास्थल का निरीक्षण कर पुलिस अधिकारी जगजीवनराम अस्पताल पहुंचे. डाक्टरों ने बताया कि अनूप और उस की मां के गले किसी तेजधार वाले हथियार से काटे गए थे. इस के बावजूद उन की सांसें चल रही थीं. परिवार के बाकी लोग बेहोश थे, जिन में से 2-3 लोगों की हालत ठीक नहीं थी.

कनिका, रजत और राज सिंह की बेटी की हालत सामान्य हुई तो डाक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रात उन्होंने कढ़ी खाई थी. खाने के बाद उन्हें ऐसी नींद आई कि उन्हें अस्पताल में ही होश आया.

इस से पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि किसी ने सभी के खाने में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया था. अब सवाल यह था कि ऐसा किस ने किया था? अब तक राज सिंह को भी होश आ चुका था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि खाना खाने के बाद उसे गहरी नींद आ गई थी. यह सब किस ने किया, उसे भी नहीं पता.

पुलिस को राज सिंह पर ही शक हो रहा था कि करोड़ों की संपत्ति के लिए यह सब उस ने तो नहीं किया? पुलिस ने उस से खूब घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई बात सामने नहीं आई.

मामले के खुलासे के लिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे ने थानाप्रभारी महावीर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में अतिरिक्त थानाप्रभारी राधेश्याम, एसआई देवीलाल, महिला एसआई सुमेधा, एएसआई अंशु, महिला सिपाही गीता आदि को शामिल किया गया.

नारायणी और उस के बेटे अनूप की हालत स्थिर बनी हुई थी. अंजू और उस की जेठानी मीनाक्षी अभी तक पूरी तरह होश में नहीं आई थीं. पुलिस ने राज सिंह को छोड़ तो दिया था, पर घूमफिर कर पुलिस को उसी पर शक हो रहा था. उस के और उस के भाई अनूप सिंह के पास 2-2 मोबाइल फोन थे.

शक दूर करने के लिए पुलिस ने दोनों भाइयों के मोबाइल फोनों की कालडिटेल्स निकलवाई. इस से भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अनूप का एक भाई अशोक गुड़गांव में रहता था. उस का वहां ट्रांसपोर्ट का काम था. पुलिस ने उस से भी बात की. वह भी हैरान था कि आखिर ऐसा कौन आदमी है, जो उस के भाई और मां को मारना चाहता था?

21 जून को मीनाक्षी को अस्पताल से छुट्टी मिली तो एसआई सुमेधा कांस्टेबल गीता के साथ उस से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गईं. पूछताछ में उस ने बताया कि सभी लोगों को खाना खिला कर वह भी खा कर सो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं. पुलिस को मीनाक्षी से भी कोई सुराग नहीं मिला.

अस्पताल में अब राज सिंह की पत्नी अंजू, अनूप और उस की मां नारायणी ही बचे थे. अंजू से अस्पताल में पूछताछ की गई तो उस ने भी कहा कि खाना खाने के कुछ देर बाद ही उसे भी गहरी नींद आ गई थी.

जब घर वालों से काम की कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा मुखबिरों को लगा दिया. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. पुलिस को मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि अनूप की पत्नी मीनाक्षी के अब्दुल से अवैध संबंध थे. अब्दुल का भलस्वा गांव में जिम था, वह उस में ट्रेनर था. पुलिस ने अब्दुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह जहांगीरपुरी के सी ब्लौक में रहता था.

पुलिस 21 जून को अब्दुल के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. उस की पत्नी ने बताया कि वह कहीं गए हुए हैं. वह कहां गया है, इस बारे में पत्नी कुछ नहीं बता पाई. अब्दुल पुलिस के शक के दायरे में आ गया. थानाप्रभारी ने अब्दुल के घर की निगरानी के लिए सादे कपड़ों में एक सिपाही को लगा दिया. 21 जून की शाम को जैसे ही अब्दुल घर आया, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

थाने पहुंचते ही अब्दुल बुरी तरह घबरा गया. उस से अनूप के घर हुई घटना के बारे में पूछा गया तो उस ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि उस के मीनाक्षी से नजदीकी संबंध थे और उसी के कहने पर मीनाक्षी ने ही यह सब किया था. इस तरह केस का खुलासा हो गया.

इस के बाद एसआई देवीलाल महिला एसआई सुमेधा और सिपाही गीता को ले कर मीनाक्षी के यहां पहुंचे. उन के साथ अब्दुल भी था. मीनाक्षी ने जैसे ही अब्दुल को पुलिस हिरासत में देखा, एकदम से घबरा गई. पुलिस ने उस की घबराहट को भांप लिया. एसआई सुमेधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे और अब्दुल के बीच क्या रिश्ता है?’’

‘‘रिश्ता…कैसा रिश्ता? यह जिम चलाता है और मैं इस के जिम में एक्सरसाइज करने जाती थी.’’ मीनाक्षी ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मैडम, तुम भले ही झूठ बोलो, लेकिन हमें तुम्हारे संबंधों की पूरी जानकारी मिल चुकी है. इतना ही नहीं, तुम ने अब्दुल को जितने भी वाट्सऐप मैसेज भेजे थे, हम ने उन्हें पढ़ लिए हैं. तुम्हारी अब्दुल से वाट्सऐप के जरिए जो बातचीत होती थी, उस से हमें सारी सच्चाई का पता चल गया है. फिर भी वह सच्चाई हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’

सुमेधा का इतना कहना था कि मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, ‘‘मैडम, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही यह सब किया है. आप मुझे बचा लीजिए.’’

इस के बाद पुलिस ने मीनाक्षी को हिरासत में लिया. उसे थाने ला कर अब्दुल और उस से पूछताछ की गई तो इस घटना के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह अविवेक में घातक कदम उठाने वालों की आंखें खोल देने वाली थी.

उत्तर पश्चिमी दिल्ली के थाना जहांगीरपुरी के अंतर्गत आता है भलस्वा गांव. इसी गांव में नारायणी देवी अपने 2 बेटों, अनूप और राज सिंह के परिवार के साथ रहती थीं. गांव में उन की करोड़ों रुपए की संपत्ति थी. उस का एक बेटा और था अशोक, जो गुड़गांव में ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था. वह अपने परिवार के साथ गुड़गांव में ही रहता था. करीब 20 साल पहले अनूप की शादी गुड़गांव के बादशाहपुर की रहने वाली मीनाक्षी से हुई थी. उस से उसे 2 बच्चे हुए. बेटी कनिका और बेटा रजत. अनूप भलस्वा गांव में ही ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था.

नारायणी देवी के साथ रहने वाला छोटा बेटा राज सिंह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी में फलों का आढ़ती था. उस के परिवार में पत्नी अंजू के अलावा एक 12 साल की बेटी थी. नारायणी देवी के गांव में कई मकान हैं, जिन में से एक मकान में अनूप अपने परिवार के साथ रहता था तो दूसरे में नारायणी देवी छोटे बेटे के साथ रहती थीं.

तीनों भाइयों के बिजनैस अच्छे चल रहे थे. सभी साधनसंपन्न थे. अपने हंसतेखेलते परिवार को देख कर नारायणी खुश रहती थीं. कभीकभी इंसान समय के बहाव में ऐसा कदम उठा लेता है, जो उसी के लिए नहीं, उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है. नारायणी की बहू मीनाक्षी ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठा लिया था.

सन 2014 की बात है. घर के रोजाना के काम निपटाने के बाद मीनाक्षी टीवी देखने बैठ जाती थी. मीनाक्षी खूबसूरत ही नहीं, आकर्षक फिगर वाली भी थी. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उस ने खुद को अच्छी तरह मेंटेन कर रखा था. वह 34 साल की हो चुकी थी, लेकिन इतनी उम्र की दिखती नहीं थी. इस के बावजूद उस के मन में आया कि अगर वह जिम जा कर एक्सरसाइज करे तो उस की फिगर और आकर्षक बन सकती है.

बस, फिर क्या था, उस ने जिम जाने की ठान ली. उस के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे. अनूप रोजाना समय से अपने ट्रांसपोर्ट के औफिस चला जाता था. इसलिए घर पर कोई ज्यादा काम नहीं होता था. मीनाक्षी के पड़ोस में ही अब्दुल ने बौडी फ्लैक्स नाम से जिम खोला था. मीनाक्षी ने सोचा कि अगर पति अनुमति दे देते हैं तो वह इसी जिम में जाना शुरू कर देगी. इस बारे में उस ने अनूप से बात की तो उस ने अनुमति दे दी.

मीनाक्षी अब्दुल के जिम जाने लगी. वहां अब्दुल ही जिम का ट्रेनर था. वह मीनाक्षी को फिट रखने वाली एक्सरसाइज सिखाने लगा. अब्दुल एक व्यवहारकुशल युवक था. चूंकि मीनाक्षी पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए अब्दुल उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

मीनाक्षी अब्दुल से कुछ ऐसा प्रभावित हुई कि उस का झुकाव उस की ओर होने लगा. फिर तो दोनों की चाहत प्यार में बदल गई. 24 वर्षीय अब्दुल एक बेटी का पिता था, जबकि उस से 10 साल बड़ी मीनाक्षी भी 2 बच्चों की मां थी. पर प्यार के आवेग में दोनों ही अपनी घरगृहस्थी भूल गए. उन का प्यार दिनोंदिन गहराने लगा.

मीनाक्षी जिम में काफी देर तक रुकने लगी. उस के घर वाले यही समझते थे कि वह जिम में एक्सरसाइज करती है. उन्हें क्या पता था कि जिम में वह दूसरी ही एक्सरसाइज करने लगी थी. नाजायज संबंधों की राह काफी फिसलन भरी होती है, जिस का भी कदम इस राह पर पड़ जाता है, वह फिसलता ही जाता है. मीनाक्षी और अब्दुल ने इस राह पर कदम रखने से पहले इस बात पर गौर नहीं किया कि अपनेअपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात कर के वह जिस राह पर चलने जा रहे हैं, उस का अंजाम क्या होगा?

बहरहाल, चोरीछिपे उन के प्यार का यह खेल चलता रहा. दोढाई साल तक दोनों अपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इसी तरह मिलते रहे. पर इस तरह की बातें लाख छिपाने के बावजूद छिपी नहीं रहतीं. जिम के आसपास रहने वालों को शक हो गया.

अनूप गांव का इज्जतदार आदमी था. किसी तरह उसे पत्नी के इस गलत काम की जानकारी हो गई. उस ने तुरंत मीनाक्षी के जिम जाने पर पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी के मायके वालों को फोन कर के अपने यहां बुला कर उन से मीनाक्षी की करतूतें बताईं. इस पर घर वालों ने मीनाक्षी को डांटते हुए अपनी घरगृहस्थी की तरफ ध्यान देने को कहा. यह बात घटना से 3-4 महीने पहले की है.

नारायणी की दोनों बहुओं मीनाक्षी और अंजू के पास मोबाइल फोन नहीं थे. केवल घर के पुरुषों के पास ही मोबाइल फोन थे. लेकिन अब्दुल ने अपनी प्रेमिका मीनाक्षी को सिमकार्ड के साथ एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिसे वह अपने घर वालों से छिपा कर रखती थी. उस का उपयोग वह केवल अब्दुल से बात करने के लिए करती थी. बातों के अलावा वह उस से वाट्सऐप पर भी चैटिंग करती थी. पति ने जब उस के जिम जाने पर रोक लगा दी तो वह फोन द्वारा अपने प्रेमी के संपर्क में बनी रही.

एक तो मीनाक्षी का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया था, दूसरे पति ने जो उस के मायके वालों से उस की शिकायत कर दी थी, वह उसे बुरी लगी थी. अब प्रेमी के सामने उसे सारे रिश्तेनाते बेकार लगने लगे थे. पति अब उसे सब से बड़ा दुश्मन नजर आने लगा था. उस ने अब्दुल से बात कर के पति नाम के रोड़े को रास्ते से हटाने की बात की. इस पर अब्दुल ने कहा कि वह उसे नींद की गोलियां ला कर दे देगा. किसी भी तरह वह उसे 10 गोलियां खिला देगी तो इतने में उस का काम तमाम हो जाएगा.

एक दिन अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 10 गोलियां ला कर दे दीं. मीनाक्षी ने रात के खाने में पति को 10 गोलियां मिला कर दे दीं. रात में अनूप की तबीयत खराब हो गई तो उस के बच्चे परेशान हो गए. उन्होंने रात में ही दूसरे मकान में रहने वाले चाचा राज सिंह को फोन कर दिया. वह उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां अनूप को बचा लिया गया. पति के बच जाने से मीनाक्षी को बड़ा अफसोस हुआ.

इस के कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने पति को ठिकाने लगाने के लिए एक बार फिर नींद की 10 गोलियां खिला दीं. इस बार भी उस की तबीयत खराब हुई तो घर वाले उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां वह फिर बच गया.

मीनाक्षी की फोन पर लगातार अब्दुल से बातें होती रहती थीं. प्रेमी के आगे पति उसे फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. वह उस से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच अनूप की मां नारायणी को भी जानकारी हो गई कि बड़ी बहू मीनाक्षी की हरकतें अभी बंद नहीं हुई हैं. अभी भी उस का अपने यार से याराना चल रहा है.

अनूप तो अपने समय पर औफिस चला जाता था. उस के जाने के बाद पत्नी क्या करती है, इस की उसे जानकारी नहीं मिलती थी. उस के घर से कुछ दूर ही मकान नंबर 74 में छोटा भाई राज सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. मां भी वहीं रहती थी. कुछ सोचसमझ कर अनूप पत्नी और बच्चों को ले कर राज सिंह के यहां चला गया. मकान बड़ा था, पहली मंजिल पर सभी लोग रहने लगे. यह घटना से 10 दिन पहले की बात है. उसी मकान में ग्राउंड फ्लोर पर अनूप का ट्रांसपोर्ट का औफिस था.

इस मकान में आने के बाद मीनाक्षी की स्थिति पिंजड़े में बंद पंछी जैसी हो गई. नीचे उस का पति बैठा रहता था, ऊपर उस की सास और देवरानी रहती थी. अब मीनाक्षी को प्रेमी से फोन पर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता था. अब वह इस पिंजड़े को तोड़ने के लिए बेताब हो उठी. ऐसी हालत में क्या किया जाए, उस की समझ में नहीं आ रहा था?

एक दिन मौका मिला तो मीनाक्षी ने अब्दुल से कह दिया कि अब वह इस घर में एक पल नहीं रह सकती. इस के लिए उसे कोई न कोई इंतजाम जल्द ही करना होगा. अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 90 गोलियां ला कर दे दीं. इस के अलावा उस ने जहांगीरपुरी में अपने पड़ोसी से एक छुरा भी ला कर दे दिया. तेजधार वाला वह छुरा जानवर की खाल उतारने में प्रयोग होता था. अब्दुल ने उस से कह दिया कि इन में से 50-60 गोलियां शाम के खाने में मिला कर पूरे परिवार को खिला देगी. गोलियां खिलाने के बाद आगे क्या करना है, वह फोन कर के पूछ लेगी.

अब्दुल के प्यार में अंधी मीनाक्षी अपने हंसतेखेलते परिवार को बरबाद करने की साजिश रचने लगी. वह उस दिन का इंतजार करने लगी, जब घर के सभी लोग एक साथ रात का खाना घर में खाएं. नारायणी के पड़ोस में रहने वाली उन की रिश्तेदार कुसुम की बेटी की शादी थी. शादी की वजह से उन के घर वाले वाले भी खाना कुसुम के यहां खा रहे थे. मीनाक्षी अपनी योजना को अंजाम देने के लिए बेचैन थी, पर उसे मौका नहीं मिल रहा था.

इत्तफाक से 19 जून, 2017 की शाम को उसे मौका मिल गया. उस शाम उस ने कढ़ी बनाई और उस में नींद की 60 गोलियां पीस कर मिला दीं. मीनाक्षी के दोनों बच्चे कढ़ी कम पसंद करते थे, इसलिए उन्होंने कम खाई. बाकी लोगों ने जम कर खाना खाया. देवरानी अंजू ने तो स्वादस्वाद में कढ़ी पी भी ली. चूंकि मीनाक्षी को अपना काम करना था, इसलिए उस ने कढ़ी के बजाय दूध से रोटी खाई.

खाना खाने के बाद सभी पर नींद की गोलियों का असर होने लगा. राज सिंह सोने के लिए बालकनी में बिछे पलंग पर लेट गया, क्योंकि वह वहीं सोता था. अनूप और उस की मां नारायणी ड्राइंगरूम में जा कर सो गए. उस के दोनों बच्चे बैडरूम में चले गए. राज सिंह की पत्नी अंजू अपनी 12 साल की बेटी के साथ अपने बैडरूम में चली गई.

सभी सो गए तो मीनाक्षी ने आधी रात के बाद अब्दुल को फोन किया. अब्दुल ने पूछा, ‘‘तुम्हें किसकिस को निपटाना है?’’

‘‘बुढि़या और अनूप को, क्योंकि इन्हीं दोनों ने मुझे चारदीवारी में कैद कर रखा है.’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम उन्हें हिला कर देखो, उन में से कोई हरकत तो नहीं कर रहा?’’ अब्दुल ने कहा.

मीनाक्षी ने सभी को गौर से देखा. राज सिंह शराब पीता था, ऊपर से गोलियों का असर होने पर वह गहरी नींद में चला गया था. उस ने गौर किया कि उस की सास नारायणी और पति अनूप गहरी नींद में नहीं हैं. इस के अलावा बाकी सभी को होश नहीं था. मीनाक्षी ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा, ‘‘तुम नींद की 10 गोलियां थोड़े से पानी में घोल कर सास और पति के मुंह में सावधानी से चम्मच से डाल दो.’’

मीनाक्षी ने ऐसा ही किया. सास तो मुंह खोल कर सो रही थी, इसलिए उस के मुंह में आसानी से गोलियों का घोल चला गया. पति को पिलाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई, लेकिन उस ने उसे भी पिला दिया.

आधे घंटे बाद वे दोनों भी पूरी तरह बेहोश हो गए. मीनाक्षी ने फिर अब्दुल को फोन किया. तब अब्दुल ने सलाह दी कि वह अपनी देवरानी के कपड़े पहन ले, ताकि खून लगे तो उस के कपड़ों में लगे. देवरानी के कपड़े पहन कर मीनाक्षी ने अब्दुल द्वारा दिया छुरा निकाला और नारायणी का गला रेत दिया. इस के बाद पति का गला रेत दिया.

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इस से पहले मीनाक्षी ने मेहंदी लगाने वाले दस्ताने हाथों में पहन लिए थे. दोनों का गला रेत कर उस ने अब्दुल को बता दिया. इस के बाद अब्दुल ने कहा कि वह खून सने कपड़े उतार कर अपने कपड़े पहन ले और कढ़ी के सारे बरतन साफ कर के रख दे, ताकि सबूत न मिले.

बरतन धोने के बाद मीनाक्षी ने अब्दुल को फिर फोन किया तो उस ने कहा कि वह उन दोनों को एक बार फिर से देख ले कि काम हुआ या नहीं? मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची तो उसे उस का पति बैठा हुआ मिला. उसे बैठा देख कर वह घबरा गई. उस ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा कि वह दोबारा जा कर गला काट दे नहीं तो समस्या खड़ी हो सकती है.

छुरा ले कर मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची. अनूप बैठा जरूर था, लेकिन उसे होश नहीं था. मीनाक्षी ने एक बार फिर उस की गरदन रेत दी. इस के बाद अनूप बैड से फर्श पर गिर गया. मीनाक्षी ने सोचा कि अब तो वह निश्चित ही मर गया होगा.

अपने प्रेमी की सलाह पर उस ने अपना मोबाइल और सिम तोड़ कर कूड़े में फेंक दिया. जिस छुरे से उस ने दोनों का गला काटा था, उसे और दोनों दस्ताने एक पौलीथिन में भर कर सामने बहने वाले नाले में फेंक आई. इस के बाद नींद की जो 10 गोलियां उस के पास बची थीं, उन्हें पानी में घोल कर पी ली और बच्चों के पास जा कर सो गई.

मीनाक्षी और अब्दुल से पूछताछ कर के पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 307, 328, 452, 120बी के तहत गिरफ्तार कर 22 जून, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार की कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में अन्य सबूत जुटा कर पुलिस ने उन्हें फिर से न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

मीनाक्षी ने अपनी सास और पति को जान से मारने की पूरी कोशिश की थी, पर डाक्टरों ने उन्हें बचा लिया है. कथा लिखे जाने जाने तक दोनों का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

मीनाक्षी के मायके वाले काफी धनाढ्य हैं. उन्होंने उस की शादी भी धनाढ्य परिवार में की थी. ससुराल में उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. खातापीता परिवार होते हुए भी उस ने देहरी लांघी. उधर अब्दुल भी पत्नी और एक बेटी की अपनी गृहस्थी में हंसीखुशी से रह रहा था. उस का बिजनैस भी ठीक चल रहा था. पर खुद की उम्र से 10 साल बड़ी उम्र की महिला के चक्कर में पड़ कर अपनी गृहस्थी बरबाद कर डाली.

बहरहाल, गलती दोनों ने की है, इसलिए दोनों ही जेल पहुंच गए हैं. निश्चित है कि दोनों को अपने किए की सजा मिलेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शूलों की शैय्या पर लेटा प्यार : भाग 1

राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी.

राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी.

इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.

मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था.

विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.

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जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया.

विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया.

घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.

कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे.  इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया.

सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली.

सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.

जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी.

राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था.

मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.

राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’

‘‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.

संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’

राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था.

संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही.

दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.

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अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’

‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’

राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी.

संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो.

फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’

‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.

संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा.

उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी.

लेकिन राधा के दिलोदिमाग पर तो जीजा छाया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद तुलसी ने राधा का बिस्तर अलग कमरे में लगा दिया और निश्चिंत हो कर सो गई. लेकिन राधा और संजय की आंखों में नींद नहीं थी.

देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.

जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’

‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की.

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आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली.

अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’

उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं.

तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया.

तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.

राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी.

इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.

संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

Kanika Kapoor का चौथा कोरोना टेस्ट भी आया पॉजिटिव, लिखा ये इमोशनल मैसेज

Kanika Kapoor’s fourth positive COVID-19: बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर का चौथा कोरोना टेस्ट भी पॉजिटिव आया है. वो इस वक्त लखनऊ के एक अस्पताल में जहां उनका लगातार इलाज जारी है. लेकिन  उनकी सारी कोरोना वायरस रिपोर्ट पॉजिटिव ही आ रही है. इसी बीच कनिका ने अपने फैंस के लिए एक मैसेज शेयर किया है.

बच्चों को कर रही हूं मिस- कनिका

कनिका कपूर ने बीती रात पहली बार अस्पताल से पोस्ट किया था. जिसमें उन्होंने अपना हेल्थ अपडेट दिया था. साथ ही ये भी बताया कि उन्हें घर जाने का इंतजार है. उन्हें अपने परिवार और बच्चों की याद सता रही है. कनिका ने पोस्ट में लिखा- सोने जा रही हूं. आप सभी को अपना प्यार भेज रही हूं. सेफ रहें. आप सभी का मेरी चिंता करने के लिए शुक्रिया. लेकिन मैं आईसीयू में नहीं हूं. मैं ठीक हूं. उम्मीद है कि मेरा अगला कोरोना टेस्ट नेगेटिव होगा. अपने बच्चों और फैमिली के पास जाने का इंतजार है. मैं उन्हें बहुत मिस कर रही हूं.

 

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Lucky me ??? #happychildrensday Missing my babies ?

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घरवाले हो रहे हैं परेशान…

डॉक्टर्स ने इलाज के दौरान 4 बार कनिका की कोरोना वायरस की जांच की है लेकिन चारों बार उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. इससे सिंगर कनिका कपूर (Kanika Kapoor) के परिवार वाले परेशान हैं और उन्हें चिंता सता रही है कि आखिर कनिका ठीक क्यों नहीं हो रही है. हालांकि, लखनऊ के अस्पताल के डॉक्टर्स ने बताया है कि उनकी तबियत स्थिर हैं.

 

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Aao Huzoor tumko sitaron me le chalu ?

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20 मार्च से हैं हॉस्पिटल में…

कनिका कपूर 20 मार्च से अस्पताल में भर्ती है. वो 9 मार्च को लंदन से लौटी थी. इसके बाद वो लखनऊ और कानपुर में गई थी. इस दौरान ही उन्हें कोरोना वायरस (Coronavirus) के सिम्पटम महसूस हुए और उनके इस बीमारी से ग्रसित होने की जानकारी सामने आई. लेकिन इसके बाद उन्हें सांत्वना की बजाए सोशल मीडिया पर काफी ट्रोल किया गया. इसकी वजह लंदन से लौटने के बावजूद उन्हें क्वारंटीन में न रहने को लेकर आलोचना हुई थी. क्योंकि इस दौरान कनिका कपूर 3 बड़ी पार्टियों में गई थी और करीब 300 लोगों के संपर्क में आई थी.

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#Coronavirus : अक्षय कुमार ने डोनेट किए 25 करोड़ तो बाहुबली प्रभास और रजनीकांत ने दिए इतने करोड़

कोरोना वायरस की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचा है. यहीं वजह देश के प्रधानमंत्री सभी को एकजुट होकर काम करने की बात कर रहे हैं. इस गंभीरसमय में हमारे देश के अभिनेता सभी देश की आर्थिक स्थित को सुधारने में मदद कर रहे हैं.

आइए जानते हैं उन अभिनेताओं के बारे में जिन्होंने देश के राहतफंड में पैसे दिए हैं. बॉलीवुड के सितारे देश के लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. कोई न कोई आए दिन राहत फंड में पैसा डालते नजर आ रहा है. भले ही सलमान खान पीएम के रिलीफ फंड में पैसा नहीं डाले है लेकिन फिल्म सिटी में काम करने वाले 25,000 हजार मजदूरों का खर्च हर रोज उठा रहे हैं.

अभिनेता राजकुमार राव भी एक जगह नहीं कई जगहों रिलीफ फंड में पैसा डाल रहे हैं. जैसे महाराष्ट्र सीएम फंड और पीएम फंड में पैसा डालने का एलान कर चुके हैं.

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वहीं अगर बात करें रैपर किंग बादशाह कि तो उन्होंने 25 लाख रुपये दान देने का जिम्मा उठाया है.

अभिनेता अक्षय कुमार ने बताया है कि 25 करोड़ रुपये पीएम के फंड में दान दे रहे हैं जिससे आम जनता को बहुत मदद मिलेगी.

वरुण धवन भी पीएम फंड में 55 लाख रुपये दान देने का जिम्मा उठाया है.

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बाहुबली एक्टर प्रभास ने 4 करोड़ रुपये सरकार को दान में दिए हैं, जिसमें से 1 करोड़ रुपये तेलंगाना में जाएगा.

आपको जानकर हैरानी होगी कि एक्टर ऋतिक रौशन ने गरीब लोगों को मास्क बांट हैं. जिससे उन्हें बहुत मदद मिली है. उनके इस कदम की सभी प्रशंसा कर रहे हैं.

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अभिनेत्री हेमामालिनी ने एक करोड़ रुपये इस राहत कोष में अपने तरफ से पैसे दान में दिए हैं.

बता दें साउथ के सुपर स्टार  रजनीकांत ने 50 लाख रुपये राहत कोष में दिए हैं.

इस राहत कोष में दान देने के लिए कई बड़े नेताओं के नाम जुड़े हुए हैं. जैसे कपिल शर्मा, महेश बाबू, रामचरण, पवन कल्याण .

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