श्राप और स्वाभिमान

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भगवान टाइप के व्यक्ति हैं, एक तो शास्वत भगवा लिवास और उस पर चेहरे पर पसरा सनातनी रुआब देखकर ही मानव मात्र का मन उनके सामने दंडवत होने मचलने लगता है और जिसका न मचले वह लंबी छुट्टी की अर्जी देकर चिंतन मनन के लिए अज्ञातवास पर निकल पड़ता है.  वैसे भी इन दिनो लाक डाउन के चलते हर कोई अपने घर में ही बुध्तत्व की ही अवस्था में है.

हुआ यूं कि योगी जी को गौतमबुद्ध नगर की एक सरकारी मीटिंग में गुस्सा आ गया जो उतरा खासतौर से एक अधिकारी बीएन सिंह पर जो कुछ घंटे पहले तक डीएम हुआ करते थे. इसके बाद क्या हुआ यह जानने से पहले यह समझ लेना जरूरी है कि यह गुस्सा मनोविज्ञान के नियमों और सिद्धांतों के तहत चरणवद्ध तरीके से यानि स्टेप बाई स्टेप नहीं आया था बल्कि कुछ कुछ पूर्व नियोजित सा था. खैर इन सिंह साहब ने भी तुरंत अपने बड़े साहब को छुट्टी की दरखावस्त दे डाली जिसमें वजह वे व्यक्तिगत कारण बताए गए थे जो मीडिया की पहुंच और मेहरबानी के चलते इस डांट कांड के मिनटों बाद ही इफ़रात से सार्वजनिक हो चुके थे.

Yogi_Adityanath

छुट्टी साफ है, तात्कालिक आवेश और क्षोभ के चलते ली गई जिसका मकसद स्वाभिमान की रक्षा करना था.  यह ब्यूरोक्रेट्स में पाई जाने बाली बहुत बुरी लेकिन प्रचिलित बीमारी है.  अब उम्मीद की जानी चाहिए कि चूंकि बकबास खत्म हो गई है इसलिए कोरोना वायरस यूपी में संक्रमित नहीं होगा और मजदूरों के पलायन की समस्या भी हल हो जाएगी.

कहते हैं गुस्सा कमजोरी की निशानी है लेकिन चूंकि आदित्यनाथ सामान्य मानव नहीं हैं इसलिए जनहित में उनके इस प्रायोजित क्रोध को श्राप ही समझा जाना चाहिए जिससे 18 – 18 घंटे काम कर रहे कामचोर मुलाज़िम और ज्यादा फुर्ती से काम करेंगे और प्रशासनिक बुद्धि का इस्तेमाल करेंगे जिसके चलते अब उत्तरप्रदेश में कोरोना पीड़ितों की तादाद में भारी कमी आएगी और भागते मजदूर केमरे की जद से दूर कर दिये जाएँगे.

दान पर दनादन –

इधर लोगों को खाने के लाले पड़े हैं, रहने और रोजगार के ठिये बंद हो रहे हैं, लाक डाउन से घबराए लोग बस भाग रहे हैं कि जैसे भी हो घर पहुँच जाएँ और इधर आलीशान वातानुकूलित महलनुमा घरों में बैठे कलाकारनुमा मानव मुक्त हस्त से दान दे रहे हैं. ये लोग जो लाखों करोड़ों का दान राशि पीएम केयर्स फंड में कर रहे हैं वह दरअसल में एक तरह का निवेश है जो उन्हें संसद में भी ले जा सकता है और कोई पद्म पुरुस्कार भी दिलवा सकता है.

दान की मानसिकता धर्म की देन है. पैसा गरीबों और जरूरतमंदो को दिया जाये तो दान नहीं रह जाता वह फिर भीख या सहायता हो जाती है. दान का वास्तविक अधिकारी तो ब्राह्मण ही धर्मग्रंथो में बताया गया है. इस बहस से परे निरपेक्ष होकर देखें और सोचें कि क्यों देने बालों के पेट में मरोड़े उठ रही हैं और दान पर भी हिन्दू मुस्लिम क्यों हो रहा है तो बात आईने की तरह साफ हो जाती है कि किसी को कोरोना और लाक डाउन पीड़ितों से कोई खास सरोकार नहीं है.

फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने पीएमसी फंड में 25 करोड़ रु क्या दान में दिये कि सोशल मीडिया के भक्त हल्ला मचाने लगे कि खान गैंग क्यों दान देने से कतरा रही है और अधिकतर दान दाता हिन्दू हैं मुसलमान तो दान दे ही नहीं रहे. अक्षय कुमार ने दान के साथ दूसरे दान दाताओं की तरह कुछ कुछ भावुकता भी दी जो जाहिर है पीएम फंड में जमा नहीं होगी.

25 करोड़ के इस महादान पर अमिताभ बच्चन ने भी कविता के जरिये ताना कसा तो सलमान खान के बारे में खबर आई कि वे 25 हजार मजदूरों के रहने, खाने पीने और दवाइयों बगैरह का इंतजाम 2 महीने के लिए कर रहे हैं जिस पर 25 से 50 करोड़ रु खर्च होंगे लेकिन चूंकि यह पीएम फंड के जरिये वे नहीं कर रहे इसलिए इसकी कोई अहमियत नहीं यानि मंदिर की दान पेटी में डाला गया पैसा ही दान की श्रेणी में आता है. बाहर खड़े भूखे अधनंगे भिखारियों को जो दिया जाता है वह तो भीख सहायता या करुणा होती है जिसका कोई धार्मिक महत्व नहीं होता.

Salman-Khan

कहने को तो हर कोई ब-जरिये दान, कोरोना पीड़ितों की मदद करना चाहता है लेकिन हकीकत में सबको अपना यश, धंधा और पुण्य और उससे भी ज्यादा प्रधानमंत्री की निगाहों में चढ़ने की वासना और लालसा दिख रही है.  इसीलिए मीडिया और सोशल मीडिया पर सूचियाँ वायरल हो रहीं हैं कि किसने कितना दिया और जिनहोने नहीं दिया उन्हे धिक्कारा जा रहा है मानो दान न देना कोई असंवैधानिक कृत्य या संगीन जुर्म हो. इस दान दक्षिणा का का स्वागत किया जाता लेकिन इसमें भी धर्म घुसेड़ कर भक्तों ने जता दिया है कि संकट के इस दौर में भी उनके लिए हिन्दू राष्ट्र का एजेंडा सर्वोपरि है.

कीड़े मकोड़े ही तो हैं

देश भर के तमाम छोटे बड़े शहरों से जो मजदूर भाग रहे हैं उनमे से ज़्यादातर छोटी जाति बाले ही हैं जिन्हें धार्मिक ग्रन्थों में शूद्र करार दिया गया है. इनके भागने पर चिंता और भगदड़ क्यों मची हुई है इस पर 19 बाँ पुराण लिखा जा सकता है जिसका सार या भूमिका इससे ज्यादा कुछ नहीं होगी कि दरअसल में कलयुग के फलां खंड में कोरोना वायरस के नाम पर जो कुछ भी प्रकोप हुआ वह ईश्वर की पापियों को सजा देने और नष्ट करने की लीला थी. कुछ भक्त तो वक्त रहते ही शिवपुराण खोलकर दिखा भी चुके हैं कि देखो इसमें कोरोना वायरस का वर्णन पहले से ही है.

उत्तर प्रदेश के बरेली बस अड्डे पर हैरान परेशान भगोड़े मजदूरों पर प्रशासन ने कीटनाशक छिड़कवाकर साबित भी कर दिया कि इनकी हैसियत वाकई में कीड़े मकोड़ों जैसी है. क्या आप उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं जब तमाम ज्ञान विज्ञान को ताक में रखते ऐसा किया गया होगा. यह बिलाशक घोर क्रूर और अमानवीय आलोकतांत्रिक कृत्य था जिस पर कोई कडा एक्शन नहीं लिया गया और न ही मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी पर खरा उतर पाया. फिर भी जिन मीडिया कर्मियों ने इस पर सवाल किए तो बड़े फख्र से उन्हें बताया गया कि सेनेटाइजिंग टीम द्वारा  इन मजदूरों पर सोडियम हाइपोक्लोराइड का छिड़काव किया गया था. यह केमिकल आमतौर पर ब्लीचिंग के काम आता है पर बरेली के विदद्वान अफसरों ने इसे सेनेटाइजर बताया.

लाक डाउन के नाम पर पसरती वर्ण व्यवस्था पर कोई नेता कुछ नहीं बोला सिवाय बसपा प्रमुख  मायावती के लेकिन वे भी जाने किस मजबूरी के चलते सीधे सरकार पर हमलावर नहीं हो पाईं बस इस कांड की निंदा कर वे इतना ही बोलीं कि इन मजदूरों को स्पेशल ट्रेन चलाकर उनके घरो को भेजने के इंतजाम किए जाना चाहिए था.

अगर घातक रसायनो का गरीबों पर यह प्रयोग मान्य और विज्ञानसम्मत है तो इससे पहले नेताओं और अधिकारियों को स्नान करना चाहिए. पर यह सवेदनहीनता बताती है कि गरीब मजदूरों की हैसियत अभी भी क्या है और उनकी गिनती किस वर्ण के अंतर्गत की जाती है. अब आप खुद ही तय कर लें कि लाक डाउन के असली गुनहगार कौन हैं और किस मानसिकता के हैं.

कण कण में कनिका –

गाने से कभी इतनी शौहरत नहीं मिलती जितनी कोरोना छिपाने और फिर फैलाने से मिल गई . गायिका कनिका कपूर को कोरोना संक्रमण आभिजात्य वर्ग में फैलाने का श्रेय जाता है जो इन दिनों लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में अपना इलाज करवा रहीं हैं. यह तो अच्छा हुआ कि जिन जिन हस्तियों के संपर्क में वह आई उनमें से लगभग सभी का कोरोना टेस्ट निगेटिव आया नहीं तो अब तक आसमान सर पर उठा लिया जाता क्योंकि उसके संपर्क में कोई गरीब मजदूर नहीं बल्कि खासे रसूख बाले लोग आए थे.

कनिका की चौथी रिपोर्ट भी पॉज़िटिव आई है यानि कोरोना ने स्पष्ट बहुमत से उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया है. कनिका ने कोरोना संक्रमण छिपाने का गुनाह तो किया ही है साथ ही यह भी जता दिया है कि उसने सिर्फ अपने बेहतर इलाज के लिए उसने यह राज खोला क्योंकि कोरोना संक्रमण एक ऐसा  प्रगट रोग है जिसका कहीं कोई इलाज नहीं सिवाय इसके कि मरीज एकांत में रहते अपनी ज़िंदगी के पाप पुण्यों का हिसाब किताब लगाते खुद के ठीक होने की दुआ करता रहे.

लखनऊ की ही रहने बाली तलाक़शुदा कनिका के घर बाले उसे इलाज के लिए एयर लिफ्ट करने की पेशकश कर वही मूर्खता दोहरा रहे हैं जिसकी सजा कनिका भुगत रही है. देश विदेश में कहीं इसका कोई इलाज नहीं है तो वे संक्रमित कनिका को इलाज के लिए कहाँ ले जाएँगे. कनिका सेलेब्रिटी है इसलिए उस पर सभी की निगाहें हैं लेकिन खुद उसे सोचना चाहिए कि यह प्रसिद्धि उसे कितनी महंगी पड़ रही है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...