पिछले दिनों देश में अनेक हिस्सों में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने अनेक किसानों की फसल खराब कर दी है. अब किसान की नजरें कभी बरबाद हुई फसल की ओर उठती हैं तो कभी सरकार की ओर. अब सब से बड़ी समस्या उन खेतों के सर्वे की आ रही है. क्योंकि लॉक डाउन लागू है.

राजस्थान के एक कृषि विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि फसल ख़राब होने पर शायद की ये पैसा सभी किसानों को मिल पता हो, क्योंकि बीमा कंपनियों के नियम ही कुछ ऐसे हैं जिन में किसान उलझ कर रह जाता है. जैसे फसल खराब होने की जानकारी बीमा कंपनियों को 72 घंटे में देनी होती है आदि. उन्होंने ये भी बताया कि अभी तक पिछले 2 सालों में ख़राब हुई फसल का पैसा भी अनेक किसानों को नहीं मिला है. जबकि सरकार की तरफ से समय पर फंड जारी हो गया था. किसानों के बैंक खाते से बिना जानकारी दिए बीमा की किश्त भी काट ली जाती है.

हालांकि इस समय हालातों को देखते हुए राजस्थान सरकार की तरफ से गिरदावरी के आदेश जारी हो चुके हैं और अनेक रकबों की जांच होने के बाद रिपोर्ट भी संबंधित विभागों को भेजी जा चुकी है. देखना यह है की महामारी के इस दौर में किसानों का पैसा उन तक पहुँचता भी है या नहीं. हालांकि फसल सर्वे को जरुरी मानते हुए हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व अन्य प्रदेश सरकारों ने टाइम बाउंड सर्कुलर जारी कर दिया है. सभी जिलों के कृषि अधिकारियों को कहा है की इस से जुड़े कर्मचारी इस काम में लग जाएं और तय समय में इस काम को पूरा करें और रिपोर्ट मुख्यालय में भेजें.

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लेकिन यह काम इतना आसान नहीं दिख रहा क्योंकि बीमा कंपनियों के कर्मचारी भी फील्ड में जाने से कतरा रहे हैं और कई गांव में तो बाहर से आए लोगों को भी रोका जा रहा है.ड्रोन से फसल सर्वे : वैसे आज तकनीकी के दौर में कोई भी काम ऐसा नहीं है जो न हो सके. आज सरकार और कंपनियों के पास आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी अनेक आधुनिक तकनीक मौजूद हैं. जिस का इस्तेमाल ऐसे सर्वे में होता रहा है. इसलिए सरकार और बीमा कंपनीयां फसल सर्वे के काम को ड्रोन के जरिए करा कर किसान को समय से रहत दे सकती है.

कैसे होता है फसल सर्वे: फसल सर्वे के पहले चरण में कृषि विभाग के लोग संबंधित किसान के खेतों में जाते हैं और पिछले 5 सालों की फसल पैदावार लगभग कितनी होती है यह देखते हैं. इस सर्वे के लिए कृषि विभाग के स्टाफ को फसल काटने से पहले 2 से 3 बार जाना होता है. फसल बीमा के लिए यह सर्वे खास होता है. क्योकि सर्वे में यह देखा जाता है कि पिछले 5 सालों में उस खेत से किसान की कितनी औसतन कटाई हुई. इसी के आधार पर मुआवजा दिया जाता है.सर्वे के दूसरे दौर में कृषि विभाग के कर्मचारी द्वारा यह देखा जाता है. किसान ने कौन कौन सी फसल बोई हैं और कितने रकबे में बोई है. जिसका मिलान पटवारियों द्वारा की गई गिरदावरी से किया जाता है. गिरदावरी का मतलब खेत के रिकॉर्ड से है कि किसान ने कितने रकबे में कौन की फसल बोई है. जिस का लेखाजोखा पटवारी के पास होता है.

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तीसरा और आखिरी सर्वे स्थानीय सर्वे होता है इस चरण में एडीओ (एग्रीकल्चर डवलपमेंट ऑफिसर) या उसी ओहदे के बराबर अधिकारी द्वारा एक कमेटी का गठन होता है जिस में बीमा कंपनी का प्रतिनिधि और किसान भी शामिल होता है. इस कमेटी के लोग मौके पर जाकर आपदा वाले खेत में फसल का सर्वे करते हैं. यह काम फसल कटाई से पहले करना होता है. उसी के आधार पर किसान के नुकसान की भरपाई की जाती है.अब किसान के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है. क्योकि ज्यादातर इलाकों में फसल पक चुकी है या पकने वाली है. फसल पकने के बाद उसे समय से काटना भी जरुरी है. जब तक ख़राब फसल का सर्वे नहीं होता तो किसान उसे काट भी नहीं सकता.

इसलिए सबसे पहले सरकार को यह कदम उठाना ही होगा होगा कि प्राकृतिक आपदा से ख़राब हुई फसल का जल्दी से जल्दी सर्वे कराया जाए. जिस से उस की भरपाई हो सके. साथ ही बची हुई फसल को किसान समय से काट कर रख सके.

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