मेरा प्यारा सा परिवार , जिसमें मैं , मेरे हस्बैंड, मेरी मां जैसी सासू मां साथ रहते हैं. पिता सामान ससुर का देहांत हुआ काफी वर्ष हो गए थे. तक से माँ अकेली हो गई थी. मेरी शादी को अभी 3 साल ही हुए हैं , लेकिन परिवार से इतना प्यार मिला कि मुझे अपने मायके की कमी ही महसूस नहीं होती है. बस अफ़सोस इस बात का होता था कि माँ को छोड़कर जब हम नौकरी के लिए रोज़ाना घर से बाहर जाते थे तो वे भले ही कुछ नहीं कहती थी लेकिन उनकी आंखे व चेहरे के हावभाव साफ़ बताते थे कि जैसे वे कहना चाहती हो कि बेटा तुम जल्दी घर आ जाना. लेकिन सब की मजबूरियो व सब पर घर को चलाने की जिम्मेदारियों के चलते किसी को कुछ बोल नहीं पा रही थी. उनके अकेलापन को हम भी समझ रहे थे लेकिन चाहा कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि घर का लोन चुकाने के लिए दोनों का कमाना बहुत जरूरी था.

शाम को जैसे ही हम डोर बेल बजाते तो माँ दौरति हुई दरवाजे पर आती, उनके चेहरे पर आई मुस्कान को देखकर लगता जैसे वे कब से हमारी राह देख रही हो. आते ही गले लग जाती और कोई काम न करने देती. कहती कि तुम लोग थक कर आए हो थोड़ी देर आराम करो. तब मैं माँ को रूम में बैठाकर सबके लिए चाय बनाने चली जाती और फिर चाय के साथ उन्होंने पूरे दिन क्या किया, फ्रूट्स खाए , खाना पूरा खाया या नहीं सब पूछती. जब माँ यह सब बताने में बीच बीच में चुप हो जाती तो हमे समझ आ जाता कि माँ की आज तबियत ठीक नहीं है तभी माँ ने खाना खाने में आनाकानी की है. तब हम माँ को प्यार से डांटते हुए कहते कि माँ ऐसे कैसे चलेगा , आप ही तो हमारे लिए सब कुछ हो, अगर आप को कुछ हो गया तो हम कैसे रह पाएँगे , इसलिए आप अपना पूरा ध्यान रखो. कई बार माँ को ऐसे देख कर मैं ऑफिस भी नहीं जाती थी, क्योकि माँ की उदासी हमसे देखी जो नहीं जाता थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...