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आंखों में इंद्रधनुष:भाग 2

‘‘वे रंग कहां मिलेंगे?’’ गुलाबी रंग वाली लड़की ने उत्साह से उस के हाथ को दोनों हाथों से पकड़ कर जोर से दबा दिया, ‘‘चलो, मुझे वहां ले चलो. मैं उन रंगों को भी अपने तनमन में बसा लेना चाहती हूं.’’ लड़की सचमुच बहुत भोली थी और काले रंग की चाल को नहीं समझ पा रही थी. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष बसा लेती हैं तो उन की आंखों में जीवन के वास्तविक रंग खो जाते हैं और वे ऐसे काल्पनिक रंगों की विविधता में खो जाती हैं कि उन को पाने के चक्कर में अपना बहुतकुछ गंवा देती हैं.

काले रंग ने उसे अपने रंग में रंगते हुए कहा, ‘‘इन रंगों को पाने के लिए हमें एकांत की अंधेरी गलियों में जाना होगा. वहां हमें कुछ दिखाई नहीं देगा, परंतु हम अपने हाथों से उन रंगों को प्राप्त कर सकते हैं. अगर तुम सहमत हो तो हम चलें और उन रंगों को खोज कर अपने हाथों से अपने तनबदन में भर लें. देखना, बहुत अच्छे लगेंगे तुम को वे रंग, जब वे तुम्हारी पकड़ में आ जाएंगे.’’ गुलाबी रंग वाली लड़की को काले रंग की मंशा का अंदाजा नहीं था. वह बस जीवन को सुख प्रदान करने वाले कुछ और रंगों को अपने तनबदन में समेट लेना चाहती थी. इंद्रधनुष के रंग उस की आंखों में कम पड़ने लगे थे. अब उसे उन रंगों की तलाश थी जो उस के तनबदन से लिपट कर उसे जीवन के अभी तक अपरिचित सुख से सराबोर कर दें. वह भोली थी, परंतु उत्सुक थी. और जहां ये दोनों चीजें हों वहां बुद्धिमत्ता नहीं हो सकती, सतर्कता नाम की किसी चीज से इन का कोई वास्ता नहीं होता.

और फिर अपनी आंखों में इंद्रधनुष लिए वह यहांवहां भटकती रही. जंगल के वीरान सन्नाटे में, होटल के बदबूदार नीमअंधेरे कमरे में, बगीचों के पौधों के पीछे की नरम मिट्टी पर उगी गुदगुदी घास पर और न जाने कहांकहां. उसे जीवन के सुखद रंगों की तलाश थी और इस तलाश में वह बहुतकुछ भूल गई थी, अपने घरपरिवार को, नातेरिश्तेदारों को, सगेसंबंधियों को और कालेज के दोस्तों को… उसे कुछ रंग पाने थे. वे रंग जिन को उस ने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था. वह उस काले रंग के माध्यम से उन रंगों को खोजने निकली थी, परंतु वह स्वयं भटक गई थी, ऐसी अंधेरी गलियों में जहां काले रंग ने अपने खुरदरे हाथों से उस के बदन में कुछ ऐसे बीज बो दिए थे, जो धीरेधीरे उग रहे थे और उस के बदन में कुछ ऐसी मिठास भर रहे थे कि वह दिनोदिन मदहोश होती जा रही थी.

उस के होशहवास गुम थे और उसे पता नहीं था कि वह किस दुनिया में विचरण कर रही थी. परंतु जो भी हो रहा था, उसे अच्छा लग रहा था. फिर एक दिन काले रंग ने उस के बदन के सारे रंग चुरा लिए और उस के अंदर एक काला रंग भर दिया. गुलाबी रंग को पता नहीं चला कि उसे सुख प्रदान करने वाले कौन से रंग प्राप्त हुए थे, परंतु ये जो भी रंग थे, उसे सुखद ही लग रहे थे. उन रंगों को वह पहचान नहीं पा रही थी और शायद जीवन के अंत तक न पहचान पाए, परंतु इन बदरंग रंगों में खोने का उसे कोई अफसोस नहीं था. उस की आंखों के इंद्रधनुष में काला रंग पूरी तरह से घटाओं की तरह छा गया और वह भी उन घटाओं की फुहारों में भीग कर प्रफुल्लित अनुभव कर रही थी.

एक दिन गुलाबी रंग के अंदर एक दूसरा काला रंग उभरने लगा. वह चिंतित हुई और उस ने काले रंग को इस संबंध में बताया कि वह अपने अंदर कुछ परिवर्तन अनुभव कर रही थी और उसे लग रहा था कि उस के अंदर एक काला रंग धीरेधीरे कागज पर फैली स्याही की तरह फैलने लगा था. काला रंग थोड़ी देर के लिए सन्न सा रह गया. उस ने अविश्वसनीय भाव से गुलाबी रंग को देखा, उस की आंखों में इंद्रधनुष ढूंढ़ने का प्रयास किया, परंतु उस की आंखों का इंद्रधनुष फीका सा लगा. वह भयभीत हो गया, परंतु चतुराई से उस ने अपने चेहरे के भावों को गुलाबी रंग वाली लड़की से छिपा लिया. फिर धीरे से जमीन की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ. तुम ठीक हो.’’

‘‘नहीं, कुछ तो हुआ है. मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी घर कर गई है. मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता. मेरे शरीर में कुछ परिवर्तन हो रहा है, जिसे मैं ठीक से समझ नहीं पा रही हूं.’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है. तुम ने ढेर सारे रंग एकसाथ अपने हाथों से समेट कर अपने बदन में भर लिए हैं, इसीलिए तुम्हें ऐसा लग रहा है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘काश, सबकुछ ठीक हो जाए, परंतु मैं अपने मन को कैसे समझाऊं? मेरे घर वाले भी अब तो और ज्यादा सतर्क व चौकन्ने हो कर मेरी हरकतों पर नजर रख रहे हैं. उन की आंखों में ऐसे रंग उभर आते हैं कि कभीकभी मैं डर जाती हूं,’’ उस ने काले रंग को जोर से पकड़ते हुए कहा. काला रंग यह बात सुन कर और अधिक भयभीत हो गया. अगर गुलाबी रंग के घर वालों को सबकुछ पता चल गया तो उस का क्या होगा? वह तो बेमौत मारा जाएगा. वे लोग पता नहीं क्या करेंगे उस के साथ? कहीं यह मासूम लड़की घर वालों के दबाव में आ कर सबकुछ बता न दे. उस ने लड़की की पकड़ से धीरे से अपने को छुड़ाया और चौकन्नी निगाहों से चारों तरफ इस तरह देखने लगा जैसे उसी वक्त वहां से भाग जाना चाहता हो.

उस दिन लड़की को ढेर सारी सांत्वना और झूठे आश्वासन दे कर उस ने अपने को उस के चंगुल से छुड़ाया और फिर वह काला रंग पता नहीं कहां गुम हो गया. प्रत्यक्ष रूप से तो वह अवश्य लुप्त हो गया था परंतु पूरी तरह से कैसे गुम हो सकता था? उस का प्रतिरूप लड़की के अंदर धीमी गति से अपने पैर पसारने लगा था और गुलाबी रंग वाली लड़की यह बात अच्छी तरह समझ गई थी कि उस के जीवन में अब कुछ ठीक नहीं होने वाला था. अपनी निगाहों और हाथों से सुख प्रदान करने वाले जितने रंग उस ने पकड़ कर अपने बदन में भरे थे, वे सारे पिघल कर बह गए थे और अब केवल एक ही रंग बचा था, जो उस के अंदर धीरेधीरे गाढ़ा होता जा रहा था, वह था काला रंग.

#coronavirus: कोरोना ने दिलाई कार्ल मार्क्स की याद

21 दिन के लाकडाउन की घोषणा के बाद पूरा देश थम गया. देश बोले तो घिसती रगड़ खाती इकोनोमी. इस इकोनोमी में खुद को सुरक्षित पाते वह मालदार लोग आते हैं जिन की तिजोरियां भरी हुई हैं, बैंक खातों के अंक हर सेकंड बढ़ते जाते हैं. उन्हें चिंता है तो अपने नफेनुकसान की. गिरते शेयरों की. बंद पड़े अपने कारखानों की. फिर आता है वह पढ़ालिखा तबका जिन के लिए कोरोना से लड़ाई मतलब बालकोनी से हाथ हिलाना, सोशल मीडिया पर ‘घरों पर ही रहने’ का सन्देश देना, कहीकहीं भूखे को खाना खिला इन्स्टा, ट्विटर पर फोटो चिपका देना और पलायन करने वाले गरीब मजदूरों को दिन भर गाली देना है.

यह अभिजात तबका पहले कांग्रेस कार्यकाल में खराब सरकारी व्यवस्ता की किरकिरी करता था और समस्याएं गिनाता था. बहरहाल अब शासन बदला है, तो इन के ऊपर अंधराष्ट्रवाद का खुमार और भक्ति सर चढ़ कर बोल रहा है चाहे देश और ज्यादा गर्त में चला गया हो. इन के लिए चिंता बस यही है कि ‘हद है यार, एक तो कोरोना का वैक्सिनैसन नहीं बना है ऊपर से ये गरीब लोग भीड़ के साथ झोला उठा अपने घर चल दिए हैं..’

अब आते हैं देश के सब से निचले पायदान में खड़े इन्ही गरीबों के पास, जिन के लिए देश न रुका है न ही रुक सकता है. उन का नाम “चलती को जिन्दगी” है क्योंकि वे मानते हैं “रुकता वही है जिन का बसेरा होता है.” नहीं समझे?

मतलब यह कि न तो उन के पास हाथ हिलाने के लिए बालकोनी और घर है, न ही अपने शेयर गिरने की चिंता. सच है, ये घुमंतू हैं जहाँ दानाखाना की आश है वहां चल देंगे, अगर देश में सीमाएं न हो तो उन्हें भी लांघ जाएंगे. फिलहाल ये शहरों में उड़ कर आएं हैं. शहर में काम करने आए ये नवयुवक मजदूर महज 6-8 हजार रूपए में छोटी फक्ट्रियों में महीने के हिसाब से नौचे जा रहे हैं.

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आज देश को जब बंद किया तो इन्ही मजदूरों को इतनी दिक्कत हुई कि इन्होने सरकार के लाकडाउन का फरमान मानने से इनकार कर दिया. आखिर क्यों जिस बिमारी को पूरी दुनिया में इस समय सब से बड़ा खतरा बताया जा रहा है उसे यह ठोकर मार आगे बढ़ गए?

“रहने को घर नहीं है हिन्दोस्तां हमारा”

“साहब, कोरोना बाद में मारेगी पहले भूख मार देगी” यह कहते हुए 20 वर्षीय युवा ललित फैक्ट्री के मालिक से अपने इस महीने की तनख्वाह ले कर दिल्ली से बरेली चल दिया. ललित के पास न मकान था न किराया का कमरा. वह वहीँ बलजीत नगर की एक छोटी सी फैक्ट्री में ही रहता था. उस का काम चार्जर बनाने का था. अब फैक्ट्री बंद है तो उसे बिना पैसों के वहां रुकना ठीक नहीं लगा. यही हाल अलगअलग राज्यों में असंख्य मजदूरों का भी है. जब ललित से पूछा कि सरकार तो राशन और खातों में पैसे मुहैय्या करवा रही है. तुम जा क्यों रहे हो? तो तपाक से कहता है “न मेरे पास राशन कार्ड है न बैंक खाता.”

फिर मुस्कुराते हुए कहता है “वैसे भी मोदी जी ने कहा है अपने घर में ही रहे, तो में अपने घर जा रहा हूं. लम्बा सफ़र है फिर कभी मिलेंगे”

ललित की तरह कई मजदूर ऐसे ही लाकडाउन की परवाह किये बिना निकल चुके है उन्हें सरकार की राहत घोषणाओं पर ख़ासा विश्वास नहीं है. जाहिर है उन्होंने कई सरकारों को बदलते देखा है लेकिन अपने हालातों को नहीं. वे यह घोषणाएं हमेशा सुनते आएं हैं. नेताओं की बड़ीबड़ी हांके अब उन के लिए आम बात है. यह अविश्वास इतना हो गया है कि उन्हें लगता है ये तो मौत पर भी सियासत करने से बाज नहीं आएंगे, यह मजदूर भूखे प्यासे सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं. कई अपने छोटे बच्चों को गोद में लिए चल दिए हैं. तो वहीँ अपनी बीवी को कंधे पर बैठाए 257 किलोमीटर की दूरी तय करते मजदूर की सनसनाती तस्वीर देश को आइना दिखा रही है.

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असहाय वे बच्चे हैं जिन के लिए कोरोना नहीं बल्कि गरीबी आफत बन कर आई है. अपनी इस छोटी उम्र में उन्होंने बचपन की शेतानियों को वेसे भी खो दिया था बस अब बाकी था तो बचपन का पूरी तरह ख़त्म होना सो वो भी हुआ. यह सिर्फ 4 या 5 दिन की लम्बी पैदल यात्रा नहीं बल्कि आजीवन चिपकने वाली वह काली याद है जिसे सोच मजदूरों को हमेशा अपनी लाचारी महसूस होती रहेगी. ऐसे हालत में कुछ लोगों की रास्ते में भूख व दुर्घटना से मौत हो चुकी है. यह मोतें कोरोना के कारण आई समस्या से हुई है लेकिन कोरोना की फ़ाइल में इन मौतों को चिपकाया नहीं जाएगा. बमुश्किल है कि इन मौतों का कोई खाका भी बन पाए. अलबत्ता ये वों मजदूर होंगे जिन की हाजरी कभी किसी सरकारी कागजों में नहीं होगी.

यही कारण होगा कि जर्मनी के महान समाजवादी विचारक कार्ल मार्क्स ने मजदूरों को ले कर कहा था कि “मजदूरों का कोई देश नहीं होता.” इसी तर्ज पर उन्होंने “दुनिया के मजदूरों एक हो” का नारा दिया. इस नारे के कई गहन मतलब निकल सकते हैं लेकिन जो फ़िलहाल समझ आ रहा है यह कि मजदूर किसी जगह(देश) पर जन्म ले तो सकता है लेकिन उन की सरकारों ने कभी उन्हें अपना नहीं समझा. आज अभिजातों के लिए विदेश में हवाई जहाज भेज कर रेस्क्यू ओप्रेशन चलाया जा रहा है. वहीँ लाचार गरीबों को बसों में ठूसठूस कर जानवरों सा व्यवहार किया जा रहा है. यहाँ तक कि उन पर कीड़ेमकोड़ों की तरह केमिकल का छिडकाव किया जा रहा है. उन के लिए मजदूर सिर्फ मशीन के कलपुर्जे है.

देश को देश बनाने में इन मजदूरों ने अपना खूनपसीना लगा दिया. फिर भी ये मजदूर अपने यहाँ ही परदेशी है. देश की इकोनोमी में अपनी मेहनत लगाने वाले ये बेघर है, अनाथ हैं जिन के पास रहने की जगह भी है तो वह गन्दी बस्तियां हैं जहाँ बच्चों के लिए धुलमिटटी ही उन का खिलौना है और मांबाप के लिए रोजीरोटी. इन्हें कोरोना से लड़ने के लिए पहले गरीबी को मात देनी पड़ेगी. कोरोना की मौत से न डरने वाले ये मजदूर जानीपहचानी मौतों से डर रहे हैं, वह है भूख जिस का वैक्सीनेशन खाना है जो हमेशा से सरकारों के पास था. लेकिन इतने सालों बाद भी इन तक नहीं पहुंचा है. यह सारे अंतर्विरोध आज उठउठ कर सामने आ रहे हैं. भले ही आज पुरे विश्व में पूंजी की बात कहने वालों का डंका बज रहा है लेकिन जमीन पर मची यह खलबली कहीं मार्क्स की प्रासंगिकता की जीवन्तता की तरफ इशारा तो नहीं?

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#coronavirus: घुटन

“आशा है कि आप और आप का परिवार स्वस्थ होगा, और आप के सभी प्रियजन सुरक्षित और स्वस्थ होंगे, उम्मीद करते हैं कि हम सभी मौजूदा स्थिति से मजबूती से और अच्छे स्वास्थ्य के साथ उभरें, कृपया अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें.”

घर पर रहें और सुरक्षित रहें

मीतू ने व्हाट्सऐप पर नीलिमा का भेजा यह मैसेज पढ़ा और एक ठंडी सांस भरी क्या सुरक्षित रहे. पता नहीं कैसी मुसीबत आ गई है. कितनी अच्छीखासी लाइफ चल रही थी. कहां से यह कोरोना आ गया. दुनिया भर में त्राहित्राहि मच गई है. खुद मेरी जिंदगी क्या कम उलझ कर रह गई है. सोचते हुए दोनों हाथों से सिर को पकड़ते हुए वह धप से सोफे पर बैठ गई.

मीतू का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया. 2 बज रहे थे दोपहर के खाने का वक्त हो गया था. रिषभ को अभी भी हलका बुखार था. खांसी तो रहरह कर आ ही रही है.

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रिषभ उस का पति. बहुत प्यार करती है वह उस से लव मैरिज हुई थी दोनों की. कालेज टाइम में ही दोनों का अफेयर हो गया था. रिषभ तो जैसे मर मिटा था उस पर. एकदूसरे के प्यार में डूबे कालेज के तीन साल कैसे गुजर गए थे, पता ही नहीं चला दोनों को. बीबीए करने के बाद एमबीए कर के रिषभ एक अच्छी जौब चाहता था ताकि लाइफ ऐशोआराम से गुजरे. मीतू से शादी कर के वह एक रोमांटिक मैरिड लाइफ गुजारना चाहता था.

रिषभ ने जैसा सोचा था बिलकुल वैसा ही हुआ. वह उन में से था जो, जो सोचते हैं वहीं पाते हैं. अभी उस की एमबीए कंपलीट भी नहीं हुई थी उस का सलेक्शन टौप मोस्ट कंपनी में हो गया. सीधे ही उसे अपनी काबिलियत के बूते पर बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिल गई.

दिल्ली एनसीआर नोएड़ा में कंपनी थी उस की. मीतू को अच्छी तरह याद है वह दिन जब पहले दिन रिषभ ने कंपनी ज्वाइन की थी. जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे थे उस के. लंच ब्रेक में जब उसे मोबाइल मिलाया था तब उस की आवाज में खुशी, जोश को अच्छी तरह महसूस किया था उस ने.

‘मीतू तुम सीधा मैट्रो पकड़ कर नोएडा सेक्टर 132 पहुंच जाना शाम को. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. आज तुम्हें मेरी तरफ से बढ़िया सा डिनर, तुम्हारी पसंद का.’

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कितना इंजौय किया था दोनों ने वह दिन. सब कितना अच्छा. भविष्य के कितने सुनहरे सपने दोनों ने एकदूसरे का हाथ थाम कर बुने थे.

रिषभ की खुशी, उस का उज्जवल भविष्य देख बहुत खुश थी वह. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया था कि रिषभ को वह हर खुशी देने की कोशिश करेंगी. बचपन में ही अपने मातापिता को एक हादसे में खो दिया था उस ने. लेकिन बूआ ने खूब प्यार लेकिन अनुशासन से पाला था रिषभ को, क्योंकि उन की खुद की कोई औलाद न थी. मीतू रिषभ की जिंदगी में प्यार की जो कमी रह गई थी, वह पूरी करना चाहती थी.

क्या हुआ उस वादे का, कहां गया वह प्यार. ‘ओफ रिषभ मैं यह सब नहीं करना चाहती तुम्हारे साथ.’ सोचते हुए मीतू को वह दिन फिर से आंखों के आगे तैर गया, जिस दिन रिषभ देर रात गए औफिस से घर वापस आया था. 4 दिन बाद होली आने वाली थी.

साहिर मीतू और रिषभ की आंखों का तारा. 5 साल का हो गया था. शाम से होली खेलने के लिए पिचकाारी और गुब्बारे लेने की जिद कर रहा था.

‘नहीं बेटा कोई पिचकारी और गुब्बारे नहीं लेने. कोई बच्चा नहीं ले रहा. देखो टीवी में यह अंकल क्या बोल रहे हैं. इस बार होली नहीं खेलनी है.’

मीतू ने साहिर को मना तो लिया लेकिन उस का दिल भीतर से कहीं डर गया. टीवी के हर चैनल पर कोरोना वायरस की खबरेें आ रही थी. मानव से मानव में फैलने वाला यह वायरस चीन से फैलता हुआ पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है. लोगों की हालत खराब है.

रिषभ रोज मैट्रो से आताजाता है.  कितनी भीड़ होती है. राजीव चैक मेट्रो स्टेशन पर तो कई बार इतना बुरा हाल होता है कि लोग एकदूसरे पर चढ़ रहे होते हैं. टेलीविजन पर लोगों को एतियात बरतने के लिए बोला जा रहा है.

मीतू उठी और रिमोट से टेलीविजन की वैल्यूम कम की और झट रिषभ का मोबाइल मिलाया. ‘कितने बजे घर आओगे, रिषभ.’

‘यार मीतू, बौस एक जरूरी असाइनमैंट आ गया है. रात 10 बजे से पहले तो क्या ही घर पहुंचुगा.’

‘सुनो भीड़भाड़ से जरा दूर ही रहना. इंटरनेट पर देख रहे हो न. क्या मुसीबत सब के सिर पर मंडरा रही है,‘ मीतू के जेहन में चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं.

‘डोंट वरी डियर, मुझे कुछ नहीं होने वाला. बहुत मोटी चमड़ी का हूं. तुम्हे तो पता ही है क्यों…’ रिषभ ने बात को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘बसबस, ज्यादा मत बोलो, जल्दी घर आने की कोशिश करो, कह कर मीतू ने मोबाइल काट दिया लेकिन पता नहीं क्यों मन बैचेन सा था.

उस रात रिषभ देर से घर आया. काफी थका सा था. खाना खा कर सीधा बैडरूम में सोने चला गया.

अगले दिन मीतू ने सुबह दो कप चाय बनाई और रिषभ को नींद से जगाया.

‘मीतू इतनी देर से चाय क्यों लाई. औफिस को लेट हो जाऊंगा,‘ रिषभ जल्दीजल्दी चाय पीने लगा.

‘अरेअरे… आराम से ऐसा भी क्या है. मैं ने सोचा रात देर से आए हो तो जरा सोने दूं. कोई बात नहीं थोड़ा लेट चले जाना औफिस,‘ मीतू ने बोलते हुए रिषभ के गाल को हाथ लगाया, ‘रिषभ तुम गरम लग रहे हो. तबीयत तो ठीक है,‘ मीतू ने रिषभ का माथा छूते हुए कहा.

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‘यार, बिलकुल ठीक हूं. बस थोड़ा गले में खराश सी महसूस हो रही है. चाय पी है थोड़ा बैटर लगा है,‘ और बोलता हुआ वाशरूम चला गया.

लेकिन मीतू गहरी चिंता में डूब गई. कल ही तो व्हाट्सऐप पर उस ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के लक्षण के बारे में पढ़ा है. खांसी, बुखार, गले में खराश, सांस लेने में दिक्कत…

‘ओह…नो… रिषभ को कहीं… नहींनहीं, यह मैं क्या सोच रही हूं. लेकिन अगर सच में कहीं…’

मीतू के सोचते हुए ही पसीने छूट गए.

तब तक रिषभ वौशरूम से बाहर आ गया. मीतू को बैठा देख बोला, ‘किस सोच में डूबी हो,’ फिर उस का हाथ अपने हाथ से लेता हुआ अपना चेहरा उस के चेहरे के करीब ले आया और एक प्यार भरी किस उस के होंठो पर करना ही चाहता था कि मीतू एकदम पीछे हट गई.

‘अब औफिस के लिए देर नहीं हो रही,’ और झट से चाय के कप उठा कर कमरे से चली गई.

रिषभ मीतू के इस व्यवहार से हैरान हो गया. ऐसा तो मीतू कभी नहीं करती. उलटा उसे तो इंतजार रहता है कि रिषभ पहले प्यार की शुरूआत करे फिर मीतू अपनी तरफ से कमी नहीं छोड़ती थी लेकिन आज मीतू का पीछे हटना, कुछ अजीब लगा रिषभ को.

खैर ज्यादा सोचने का टाइम नहीं था रिषभ के पास. औफिस जाना था. झटपट से तैयार हो गया. नाश्ता करने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.

मीतू ने नाश्ता रिषभ के आगे रखा और जाने लगी तो वह बोला, ‘अरे, तुम्हारा नाश्ता कहां है. रोज तो साथ ही कर लेती हो मेरे साथ. आज क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं तुम कर लो. मैं बाद में करूंगी. कुछ मन नहीं कर रहा.’ मीतू दूर से ही खड़े हो कर बोली.

‘क्या बात है तुम्हारी तबीयत तो ठीक है.’

‘हां सब ठीक है.‘ मीतू साहिर के खिलौने समेटते हुए बोली.

‘साहिर के स्कूल बंद हो गए हैं कोराना वायरस के चलते. चलो अब तुम्हें उसे सुबहसुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं करना पड़ेगा. चलो कुछ दिन का आराम हो गया,‘ रिषभ ने मीतू को हंसाने की कोशिश की.

‘खाक आराम हो गया. यह आराम भी क्या आराम है. चारों तरफ खतरा मंडरा रहा है और तुम्हे मजाक सूझ रहा है,‘ मीतू नाराज होते हुए बोली.

‘अरे…अरे, मुझ पर क्यों गुस्सा निकाल रही हो. मेरा क्या कसूर है. मैं फैला रहा हूं क्या वायरस,‘ रिषभ ने बात खत्म करने की कोशिश की, ‘देखो ज्यादा पेनिक होने की जरूरत नहीं.’

‘मैं पेनिक नहीं हो रही बल्कि तुम ज्यादा लाइटली ले रहे हो सब.’

‘ओह, तो यह बात है. कहीं तुम्हें यह तो नहीं लग रहा कि मुझे कोरोना हो गया है. तुम ही दूरदूर रह रही हो. बेबी, आए एम फिट एंड फाइन. ओके शाम को मिलते हैं. औफिस चलता हूं. बाय डियर, ‘बोलता हुआ रिषभ घर से निकल गया.

मीतू के दिमाग में अब रातदिन कोरोना का भय व्याप्त हो गया था. होली आई और चली गई, उन की सोसाइटी में पहले ही नोटिस लग गया था कि कोई इस बार होली नहीं खेलेगा.

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मीतू अब जैसे ही रिषभ औफिस से आता उसे सीधे बाथरूम जाने के लिए कहती और कपड़े वही रखी बाल्टी में रख्ने को कहती. फिर शौवर ले कर, कपड़े चेज करने के बाद ही कमरे में जाने देती.

हालात दिन पर दिन बिगड़ ही रहे थे. टेलीविजन पर लगातार आ रही खबरें, व्हाट्सऐप पर एकएक बाद एक मैसेज, कोरोना पर हो रही चर्चाएं मीतू के दिमाग को गड़बड़ा रही थीं.

दूसरी तरफ रिषभ मीतू के बदलते व्यवहार से परेशान हो रहा था. न जाने कहां चला गया था उस का प्यार. बहाने बनाबना कर उस से दूर रहती. साहिर का बहाना बना कर उस के कमरे में सोने लगी थी. साहिर को भी उस से दूर रखती थी. अपने ही घर में वह अछूत बन गया था.

रिषभ का पता है और मीतू भी इस बात से अनजान नहीं थी कि बदलते मौसम में अकसर उसे सर्दीजुकाम, खांसी, बुखार हो जाता है.

लेकिन कोरोना के लक्षण भी तो कुछ इसी तरह के हैं. मीतू पता नहीं क्यों टेलीविजन, व्हाट्सऐप के मैसेज पढ़पढ़ कर उन में इतनी उलझ गई है कि रिषभ को शक की निगाहों से देखने लगी है.

आज तो हद ही हो गई. सरकार ने जनता कफ्यू का ऐलान कर दिया था. रिषभ को रह रह कर  खांसी उठ रही थी. हलका बुखार भी था. रिषभ का मन कर रहा था कि मीतू पहले ही तरह उस के सिरहाने बैठे. उस के बालों में अपनी उंगलियां फेरे. दिल से, प्यार से उस की देखभाल करे. आधी तबीयत तो उस की मीतू की प्यारी मुसकान देख कर ही दूर हो जाती थी. लेकिन अचानक जैसे सब बदल गया था.­

मीतू न तो उस का टैस्ट करवाना चाहती है. रिषभ अच्छी तरह समझ रहा था कि मीतू नहीं चाहती कि आसपड़ोस में किसी को पता चले कि वह रिषभ को कोरोना टैस्ट के लिए ले गई है और लोगों को यह बात पता चले और उन से दूर रहे. खुद को सोशली बायकोट होते वह नहीं देख सकती थी.

मीतू का अपेक्षित व्यवहार रिषभ को और बीमार बना रहा था. उधर मीतू ने आज जब रिषभ सो गया तो उस के कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा दिया.

रिषभ दवाई खा कर सो गया था. दोपहर हो गई थी और खाने का वक्त हो रहा था. मीतू अपनी सोच से बाहर निकल चुकी थी.

रिषभ की नींद खुली. थोड़ी गरमी महसूस हुई. दवा खाई थी इसलिए शायद पसीना आ गया था. सोचा, थोड़ी देर बाहर लिविंग रूप में बैठा जाए. पैरों में चप्पल पहनी और चल कर दरवाजे तक पहुंच कर हैंडल घुमाया. लेकिन यह क्या दरवाजा खुला ही नहीं. दरवाजा लौक्ड था.

“मीतूमीतू, दरवाजा लौक्ड है. देखो तो जरा कैसे हो गया यह.” रिषभ दरवाजा पीटते हुए बोला.

“मैं ने लौक लगाया है,” मीतू ने सपाट सा जवाब दिया.

“दिमाग तो सही है तुम्हारा. चुपचाप दरवाजा खोला.”

‘नहीं तुम 14 दिन तक इस कमरे में ही रहोगे. खानेपीने की चिंता मत करो, वो तुम्हें टाइम से मिल जाएगा,‘ मीतू ने जवाब दिया.

‘मीतू तुम यह सब बहुत गलत कर रही हो.‘

‘कुछ गलत नहीं कर रही. मुझे अपने बच्चे की फिक्र है.‘

‘तो क्या मुझे साहिर की फिक्र नहीं है,‘ रिषभ लगभग रो पड़ा था बोलते हुए.

लेकिन मीतू तो जैसे पत्थर की बन गई थी. आज रिषभ का रोना सुन कर भी उस का दिल पिघला नहीं. कहां रिषभ की हलकी सी एक खरोंच भी उस का दिल दुखा देती थी.

रिषभ दरवाजा पीटतेपीटते थक गया तो वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. यह क्या डाला था मीतू ने. बीमारी का भय, मौत के डर ने पतिपत्नी के रिश्ते खत्म कर दिया था.

14 दिन कैसे बीते यह रिषभ ही जानता है. मीतू की उपेक्षा को झेलना किसी दंश से कम न था उस के लिए. मीतू उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगी, वह सोच भी नहीं सकता था. मौत का डर इंसान को क्या ऐसा बना देता है. जबकि अभी तो यह भी नहीं पूरी तौर से पता नहीं कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है भी या नहीं.

मीतू चाहे बेशक सब एहतियात के तौर पर कर रही हो लेकिन पतिपत्नी के बीच विश्वास, प्यार को एक तरफ रख कर उपेक्षा का जो रवैया अपनाया था, उस ने पतिपत्नी के प्यार को खत्म कर दिया था.

रिषभ कोरोना नेगेटिव निकला पर उन के रिश्ते पर जो नेगेटिविटी आ गई थी उस का क्या.

मीतू दोबारा से रिषभ के करीब आने की कोशिश करती लेकिन रिषभ उस से दूर ही रहता. कोरोना ने उन की जिंदगी को अचानक क्या से क्या बना दिया था. मीतू ने उस दिन दरवाजा लौक नहीं किया था, जिंदगीभर की दोनों की खुशियों को लौक कर दिया था.

Lockdown: घर पर ऐसे टाइम बिता रही हैं ‘तारक मेहता’ की दयाबेन, फैंस को दिया ये मैसेज

छोटे परदे के पॉपुलर शो Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah में दयाबेन का रोल करने वाली एक्ट्रेस Disha Vakani (दिशा वकानी) करीब दो साल से मैटरनिटी ब्रेक पर है और अभी तक वह इस शो पर लौटकर नहीं आई है. ऐसे में फैंस उन्हें काफी मिस कर रहे है. हाल ही में दिशा ने एक वेबसाइट को दिए गए इंटरव्यू में देश का मौजूदा हालात को लेकर काफी बातें शेयर की है. इसी के साथ ही साथ उन्होंने अपने फैंस के लिए एक खास मैसेज भी दिया है.

घरवालों के साथ मिलकर करती हूं काम…

दिशा वकानी ने कहा है कि, ‘मैं इस वक्त सभी निर्देशों का पालन कर रही हूं और इस समय मैं घर से बाहर भी नहीं निकल रही हूं. हम गरम पानी पी रहे है और खाने को अच्छे से पकाकर ही खा रहे है साथ ही साथ सोशल डिस्टेंस भी मैंटेन कर रहे है. मेरे हाउस हेल्पर यहां पर नहीं है तो मैं घर का सारा काम घरवालों के साथ मिलकर खुद ही कर रही हूं. मुझे पता है कि लोग घरों में कैद रहने से परेशान है और बोर हो रहे है लेकिन मुझे नहीं लगता है कि ये कोई दिक्कत की बात है.

 

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Negotiations are being made with the producers. Let’s hope for the best?

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World?

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बाहर खेलना चाहती है बेटी…

इसी के साथ ही दिशा ने ये भी बताया है कि वह किस तरह से अपनी बेटी का ख्याल रख रही हैं. दिशा ने आगे कहा है कि, ‘मेरी बेटी जोकि अभी काफी छोटी है..वो बाहर खेलने जाना चाहती है और हर दिन कहती है कि उसे बाहर खेलना है..लेकिन एक जिम्मेदार माता-पिता होने के नाते हम उसका ध्यान बाकी चीजों में बंटा रहे हैं. वह भी इस दौरान अच्छी चीजें सीख रही है. मुझे विश्वास है ये समय भी कट जाएगा. अच्छा सोचें तो आगे अच्छा ही होगा.’

 

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बता दें कि टीवी शो तारक मेहता का उल्टा को शुरु हुए 10 साल से ज्यादा हो गए हैं और खास बात यह है कि आज भी लोग इस शो के रिपीट टेलीकास्ट को भी बड़े ही चाव से देखते है. इस बात में कोई भी शक नहीं है कि इस कॉमेडी शो के हर एक किरदार को लोगों ने भरपूर प्यार दिया है और दयाबेन के किरदार का तो आज तक कोई तोड़ नहीं है.

#coronavirus: कोरोना पीड़ितो के लिए कार्तिक आर्यन ने डोनेट किए इतने करोड़, लिखा-इमोशनल मैसेज

कोरोना वायरस से इस वक्त भारत सरकार और भारत वासी एकजुट होकर लड़ रहे है . भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आपदा की घड़ी में लोगों से अपील की है कि वह अपने सामर्थ्य के अनुसार आर्थिक तौर से सरकार का सहयोग करें. युवा सुपरस्टार कार्तिक आर्यन ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए प्रधानमंत्री केयर्स फंड में 1 करोड़ रुपये का योगदान करने का निर्णय लिया है.

 

कार्तिक का इस बारे में कहना है कि यह उनकी अपनी जिम्मेदारी है कि वह जरूरतमंदों के काम आ सकें. चूँकि कार्तिक साफ़ तौर पर मानते हैं कि आज वह जो कुछ भी हैं, वह आम लोगों की वजह से ही हैं. कार्तिक ने ट्विटर पर अपनी बात रखते हुए कहा, ” यह समय की मांग है कि हम सब एक देश के तौर पर साथ खड़े हो. जो भी आज मैं हूं, जो भी पैसे मैंने कमाए हैं, वो सब देश की जनता की वजह से कमाए हैं. और हमारे लिए मैं पीएम-केयर्स फंड में 1 करोड़ रुपये डोनेट कर रहा हूं.

 

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We need each other now more than ever. Let’s show our support ??

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मैं अपने सभी देशवासियों से निवेदन करता हूं वह इस विपदा के समय में ज्‍यादा से ज्‍यादा दान दें.” कार्तिक ने सभी लोगों से अपील की है कि वह भी इस नेक काम में आगे आयें और अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना संभव हो सके, अपना योगदान दें. कार्तिक का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.

 

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Apni picture Sunday ko Family ke saath baithke TV pe dekhne wali feeling… Still unbeaten ❤️ And Mummy Never waits for credits?

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बता दें कि कार्तिक ने कोरोना वायरस को लेकर कुछ दिनों पहले अपने मोनोलॉग का एक बेहतरीन वीडियो जारी किया था, जिसमें उन्होंने अपने चितपरिचित अंदाज में लोगों से अपने घरों में रहने की अपील की थी. वह वीडियो खूब वायरल भी हुआ. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्तिक के इस कदम की सराहना करते हुए अपने पेज पर शेयर किया था . अब कार्तिक ने देश की मदद के लिए इतनी बड़ी धनराशि डोनेट करते हुए युवा पीढ़ी को प्रेरित करने का प्रशंशनीय काम किया है .

 

Lockdown: रश्मि देसाई ने लगाई झाड़ू तो इस वजह से ट्रोल करने लगे यूजर, देखें VIDEO

कोरोना वायरस की वजह से सभी स्टार्स इन दिनों अपने घर पर हैं. ऐसे में टीवी जगत की मशहूर कलाकार रश्मि देसाई अपने घर की सफाई करती नजर आई.

दरअसल, रश्मि देसाई अपने घर में मेकअप करके झाडू लगा रही हैं. यह वीडीयो रश्मि ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया है. जिसके बाद ट्रोलर्स रश्मि के इस नए लुक को देखने के बाद कई तरह के सवाल खड़े करने लगे.

कुछ ने कहा रश्मि लोगों को दिखाने के लिए झाडू लगा रही है तो वहीं कुछ यूजर्स ने सवाल किया कि मेकअप करके कौन झाडू लगाता है. इसके बाद लगातार लोग रश्मि को ट्रोल करने लगे.

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हालांकि रश्मि को भी क्या पता था कि उसे वीडियो डालने के बाद ट्रोलर्स का शिकार होना पड़ेगा. वैसे इस पर रश्मि अभी तक अपने सफाई में कुछ भी नहीं कही है. रश्मि इन दिनों अपने फैमली के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही है.

 

 

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Clean home ? @imrashamidesai #rashmidesai busy during #Lockdown21 . . .#bb13 #biggboss13 #viralbhayani?

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रश्मि देसाई सबको सीरियल उतरन से सभी को पसंद आने लगी थी. इस शो में उन्हें सभी घरों में पसंदीदा बहू के रूप में देखने लगे थे लोग.

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हाल ही में रश्मि सलमान खान के सबसे विवादित शो बिगबॉस 13 का हिस्सा बनी थी. इस शो में भी लोगों को रश्मि का किरदार खूब पसंद आया था. रश्मि देसाई इस शो के आखिरी तक घर में बनी हुई थीं. हालांकि टॉप थ्री का हिस्सा नहीं बन पाई थीं.

खबर है रश्मि जल्द ही सीरियल नागिन में नजर आएंगी. फैंस रश्मि के कमबैक का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. इसके अलावा भी रश्मि के पास कई प्रोजेक्ट्स है जिसका खुलासा रश्मि जल्द ही करेंगी.

#coronavirus: ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति कोरोना एंजाइटी से कैसे बचें

कोरोना वाइरस लोगों में एंजाइटी और डिप्रेशन जैसी समस्याओं का मुख्य कारण बन रहा है लेकिन इस का अत्यधिक प्रभाव उन पर है जो ओसीडी यानी ओब्सेसिव कंपलसिव डिसोर्डर से पीड़ित हैं. हाथों को बारबार साफ करना, अपने आसपास सफाई रखना, उपकरण व डिजिटल सरफेस को साफ रखना आदि जहां साधारण व्यक्तियों के लिए सामान्य काम हैं वही ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति के लिए यह काम एंजाइटी का कारण बनते हैं

.इसे स्पष्टरूप से इस तरह समझा जा सकता है कि सामान्य व्यक्ति जहां 20 सेकंड तक हाथ धोता रहेगा वहीं ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति इस बात से ही घबराने लगेगा कि आखिर उसे 20 सेकंड बाद रुक जाना है या नहीं, या उसे अपने हाथों को और ज्यादा साफ करने के लिए 20 मिनट के अंतराल की जगह हर 5 मिनट में ही हाथ धो लेने चाहिए या नहीं.इस पर मेंटल एंड बिहेवीओरल साइन्सेस की हैड औफ डिपार्टमेंट कामना छिब्बर का कहना है, “यह समझना बेहद जरूरी है कि इस तरह की स्थिति से कई और ट्रिगर्स दब सकते हैं जिन से व्यक्ति को पहले से भी ज्यादा एंजाइटी हो सकती है. सो, जिस व्यक्ति को साधारणतया एंजाइटी नहीं होती है उसे भी इस स्थिती में एंजाइटी होने लगती है और यदि पहले से ही उस व्यक्ति की स्थिति नाजुक है तो हाइपरविजीलेंस में वृद्धि होती है. इस से व्यक्ति में तनाव और एंजाइटी और अधिक बढ़ जाती है.”

ओसीडी को केवल ओब्सेसिव क्लीनलिनेस के रूप में ही नहीं आंका जा सकता. कई लोगों में ओसीडी से एक्सट्रीम हाइपोकांड्रिया या उन के मस्तिष्क में अपने आसपास के व्यक्तियों को कहीं उन के कारण किसी तरह का नुकसान न पहुंचे, जैसे अत्यधिक तीव्र विचार भी कौंधने लगते हैं. नोवल कोरोना वाइरस से उन में डर, बाध्यकारी व्यवहार, एक ही काम को करते रहना और असाधारण रूप से तनाव लेना व खुद को बुरी तरह से तटस्थ कर लेने जैसी स्थिती पैदा होने लगती है.

यह स्थिति सभी में अलग हो सकती है और इस का प्रभाव भी किसी पर ज्यादा तो किसी पर कम पड़ सकता है. अतः ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति कुछ बातों को ध्यान में रख कोरोना के समय होने वाली एंजाइटी से नजात पाया जा सकता है:

– अगर आप का किसी तरह का ट्रीटमेंट चल रहा है तो उसे बीच में न रोकें. अपने डाक्टर से कोंटेक्ट में रहें और अपनी दवाएं न रोकें.
– आप एक ही काम को बारबार दोहरा नहीं रहे हैं इस बात को सुनिश्चित करने के लिए अपने परिवार के लोगों की मदद लें. उन्हें कहें कि यदि वे आप को रिपीटेटिव ओब्सेसिव मैनर में देखें तो टोकें.
– बैलेंस बनाने की कोशिश करें. अजीब ख्याल आने लगें तो डाक्टर द्वारा बताए गए स्टेप्स फौलो करें.
– झूठी खबरों से दूर रहें और केवल विश्वस्नीय जानकारी को ही अपने दिमाग में घर करने दें. सोश्ल मीडिया एंजाइटी बढ़ाने का काम कर सकता है इसलिए उस पर भी सीमित समय के लिए ही एक्टिव रहें.
– कोई सवाल मन में हो तो उस एक सवाल को ओवरथिंक करने के बजाए उस के जवाब ढूंढने की कोशिश करें.
– डाक्टर द्वारा दी गई एक्सरसाइज करते रहें और अपने डेली रूटीन को सामनी बनाए रखने की कोशिश करें.
कोरोना वाइरस कुछ समय में खत्म हो जाएगा और हम सभी अपनेअपने घरों से निकलने में एकबार फिर सक्षम होंगे. तबतक कोशिश करें कि अपना संयम न खोएं और इस समय  नकारात्मक नहीं सकारात्मक सोचें.

#coronavirus: भुखमरी के कगार पर फूलों की खेती करने वाले किसान

जी हां , लोगों के जीवन में खुशी का रंग भरते फूलों ने इन दिनों किसानों के जीवन को रंगहीन कर दिया है .फल , सब्जी या फूलों की खेती की खेती. ये सभी नगदी फसलें हैं .फसल तैयार होने के बाद अगर इन्हें तुरंत बाजार में ना भेजा जाए तो यह खराब हो जाती हैं , इन का मोल दो कौड़ी का भी नहीं रह जाता.
आज फूल पैदा करने वाले किसानों के सामने ऐसा ही दौर आया है .खेतों में लदे इन फूलों की खुशबू किसानों का दम घोंट रही है . अपने हाथों से किसान  खुशबू बिखेरती अपनी फसल को काट कर फेंकने को मजबूर हैं,  क्योंकि कोरोना के कहर ने किसी को नहीं छोड़ा .

देश की मंडियां बंद हैं, कारोबार बंद हैं, कारखाने बंद हैं,  देश का किसान भुखमरी के कगार पर है. किसानों को फसल से मिलने वाली आमदनी तो दूर, उनकी लागत लागत भी डूब चुकी है .फूलों की खेती करने वाले मेरठ ततारपुर के किसान ओमबीर ने बताया कि हम तो इस समय बरबाद हो चुके हैं. हम ने 4 एकड़ में फूलों की फसल लगाई थी , 2 एकड़ में गुलाब लगाया था ,  2 एकड़ में गुलदावरी और ग्लेडियोलस की फसल लगाई थी. गुलदावरी तैयार है, गुलाब तैयार है ,ग्लेडियोलस भी तैयार है. लेकिन सभी फसलों को हमें अपने हाथों से काट कर फेंकना पड़ रहा है .गुलाब तो काटने के बाद फिर गुलजार हो जाएगा, लेकिन बाकी फसलों को हमें खेत में ही जोतना होगा.

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उन्होंने आगे बताया कि हम हर साल अपनी फसल को दिल्ली की गाजीपुर मंडी में ले जाकर बेचते थे , लेकिन इस समय सब कुछ बंद होने के कारण सब बर्बाद हो गया .फूलों के अलावा हम ने चुकंदर और बंद गोभी भी लगा रखी है , उन फसलों का भी यही हाल है . क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा. कुल मिलाकर हम आज के समय 17 – 18 लाख रुपए के नीचे आ गए हैं .खीरी लखीमपुर उत्तर प्रदेश के किसान हैं यदुनंदन सिंह ,वह भी फूलों की खेती करते हैं. उन्होंने 5 एकड़ में गैंदा लगाया हुआ है. बातचीत में उन्होंने बताया कि पूरा बाजार बंद है .रोजाना नुकसान हो रहा है ,रोजाना फूलों को तोड़कर फेंकना पड़ रहा है, फूलों को तोड़ना भी जरूरी है ,नहीं तो पौधे खराब हो जाएंगे . लगातार ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले समय में हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी .

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गाजियाबाद के बागवानी विशेषज्ञ डा.अनंत कुमार ने बताया कि हमारे इलाके में अनेक किसान जरबेरा और मैरीगोल्ड  फूलों की खेती कर रहे हैं. देश भर में इन फूलों के अच्छे दाम मिलते हैं, लेकिन इस बार फसल को खेतों में ही काटकर फेंकना पड़ रहा है.करोल बाग, दिल्ली के एक फूल विक्रेता ने बताया कि इस समय हमारे पास जो थोड़ेबहुत फूल आ रहे हैं ,वो यमुना के किनारे कुछ  किसान फूलों की खेती करते हैं वहां से आ रहे हैं. जो माल आ रहा है वह भी नहीं बिक रहा , कोरोना के डर से ग्राहक ही नहीं हैं , लोग डरे हुए हैं. जबकि अभी नवरात्रि का त्यौहार चल रहा है और फूलों की अच्छी मांग होती रही है .ऐसे समय में हमारी अच्छी कमाई होती थी लेकिन अब दाल रोटी के भी लाले पड़े हैं .

यही समय था किसानों की कमाई का : सही मायने में देखा जाए तो फूल पैदा करने वाले किसानों पर दोहरी मार पड़ी है. सितंबर से मार्च तक का समय फूलों की खेती के लिए ही खास होता है. जिस समय का इंतजार किसान महीनों से करते हैं.इस के अलावा फूलों की खेती करने के लिए खेत तैयार करने के लिए 4 से 5 बार तक जुताई करनी होती है. खादबीज ,खरपतवार नाशक, निराईगुड़ाई ,पानी आदि का खर्चा अलग .कुल मिलाकर फूलों की खेती करने में 10 से 15 हजार रु. प्रति एकड़ तक का खर्चा आता है .ऐसे में किसान को मुनाफा तो दूर, उस की लागत भी डूब गई.

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ऐसे किसानों के लिए सरकार द्वारा भी अभी तक ऐसी कोई राहत वाली खबर नहीं आई है, जबकि मजदूरों को , बेरोजगारों को , पेंशनरों को , सरकार द्वारा अनेक राहत दी गई है. सभी को मिलने वाली राशि भी बढ़ाई गई है, लेकिन किसान उस लाइन में कहीं खड़ा नजर नहीं आता , जबकि ऐसे समय में उस किसान को नहीं भूलना चाहिए जो देश का अन्नदाता है. – भानु प्रकाश राणा

बीवी और कुत्ता

जसबीर की पत्नी खो गई. वे पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने गए. इंस्पैक्टर ने पूछा, ‘कब खोई तुम्हारी पत्नी?’ जसबीर ने कहा, ‘7 दिन हो गए.’ इंस्पैक्टर हैरान हुआ, बोला, ‘मियां, 7 दिन हो गए, और आज आप आ रहे हैं रिपोर्ट लिखवाने? होश ठिकाने हैं न आप के? 7 दिनों तक कर क्या रहे थे?’ जसबीर ने कहा, ‘मुझे पहले यकीन ही नहीं हुआ. मैं तो चाहता था कि काश, पत्नी मुझे छोड़ कर चली जाए. जब पूरी तरह भरोसा हुआ कि हां, वह भाग गई है तभी मैं आया रिपोर्ट लिखवाने. अब तक तो वह बहुत दूर निकल गई होगी. आप खोजना भी चाहें तो भी उसे खोज नहीं पाएंगे. इसलिए चला आया रिपोर्ट लिखवाने.’

इंस्पैक्टर ने रिपोर्ट लिखना शुरू किया. उस ने जसबीर से पूछा, ‘आप की पत्नी की लंबाई कितनी थी?’ जसबीर ने कहा, ‘अब ऐसे भी कठिन सवाल मत किया करो. अपनी पत्नी को भी कोई नापता है क्या?’ इंस्पैक्टर ने पूछा, ‘लंबाई?’ कुछ पल के बाद जसबीर ने कहा, ‘यही मंझोले कद की होगी और क्या.’ इंस्पैक्टर ने पूछा, ‘कोई खास बात, कि जिस से उन्हें पहचाना जा सके?’ तो जसबीर ने कहा, ‘बड़ी बुलंद आवाज है उस की. दहाड़ दे तो पहाड़ हिल जाए, दिल कांपने लगें.’ लेकिन इंस्पैक्टर ने कहा, ‘आवाज का क्या, वे दहाड़ कर बोलें या कभी न भी बोलें. कोई ऐसा चिह्न बताओ जिस के सहारे उन्हें पहचानना आसान हो.’

जसबीर ने कहा, ‘कुछ नहीं, इंस्पैक्टर.’ फिर कहा, ‘दुख की बात यह है कि वह मेरे कुत्ते को भी साथ ले कर गई है.’ इंस्पैक्टर ने कहा, ‘ठीक है, कुत्ते की भी रिपोर्ट लिखवा दो.’ पहचान की बात आई तो जसबीर ने कहा, ‘अल्सेशियन कुत्ता, ढाई फुट लंबा, रंग काला. उस का एक कान सफेद रंग का है. बालों की लंबाई एक इंच, पिछले हर पैर की 2-2 उंगलियों के नाखून टूटे हुए हैं. हिंदी भाषा अच्छी तरह समझता है…’ उस ने पूरा ब्योरा अच्छी तरह से लिखा दिया. एक बात आखिर तक उस की समझ में हीं आई कि आखिर इंस्पैक्टर उस की तरफ अजीब नजरों से क्यों देख रहा था.                   

#coronavirus: भगवान नहीं विज्ञान दिलाएगा कोरोना से मुक्ति

दुनिया में जब-जब भी मनुष्य पर संकट आया इतिहास गवाह है कि धर्म के ठेकेदार, ईश्वर के स्वयंभू एजेंट्स और अमीर पूंजीपति मैदान छोड़ कर अपनी-अपनी बिलों में घुस जाते हैं. आपदाओं से अगर कोई लड़ता है तो वह है विज्ञान. आज कोरोना वायरस के संकट में पूरा विश्व थरथर काँप रहा है. मानव जीवन मुश्किल में है. हर दिन सैकड़ों ज़िंदगियाँ काल के गाल में समा रही हैं. ऐसे वक़्त में पोंगा पंडित, मौलवी-मौलाना, पादरी जो विज्ञान की धज्जियां उड़ाते हुए धार्मिक अंधविश्वासों, पाखंड और मान्यताओं को स्थापित करने में दिन रात एक किये रहते थे, सारे के सारे सिरे से नदारद हो गए हैं. गोमूत्र को हर मर्ज़ की दवा बताने वाले कोरोना से खुद को बचाने के लिए सात किवाड़ों के पीछे जा छिपे हैं. अब कोई गोमूत्र नहीं पी रहा और ना ही गोबर का लेप अपने शरीर पर कर रहा है. अब कोई व्रत नहीं कर रहा, कथाएं नहीं बांच रहा, गण्डा-ताबीज़ नहीं बाँट रहा है क्योंकि धर्म के ठेकेदारों को ये अच्छी तरह मालूम है कि इन चीज़ों से ना कभी कुछ हुआ है और ना कभी कुछ होगा.

ये अच्छी तरह जानते हैं की रोग का इलाज साइंस के पास ही है फिर भी ये धर्म के नाम पर विज्ञान का अपमान करने से बाज़ नहीं आते. आपसी नफरत, झूठ, अंधविश्वास व अवैज्ञानिक तथ्यों की घुट्टी पिलाकर इंसानियत का भारी नुकसान करते हैं. और जब मानव जाति पर आपदा आती है तो ये दुम दबा कर भाग खड़े होते हैं. आज अगर कोरोना जैसी त्रासदी से कोई लड़ रहा है तो वह हैं विज्ञान की आराधना करने वाले डॉक्टर्स, नर्स और मेडिकल स्टाफ, जो अपनी जान जोखिम में डाल कर आम आदमी से ले कर धर्म के उन ठेकेदारों की भी जान बचाने में लगे हैं जिन्होंने अपने पाखंड को स्थापित करने के लिए तमाम डॉक्टर्स की बलि ले ली. डॉक्टर कफील को बिहार की जनता कैसे भुला सकती है जो बिहार में दिमागी बुखार से तड़प रहे सैकड़ों बच्चों की जाने बचाने के लिए भयानक बारिश में भी अपनी कार से ऑक्सीजन सिलिंडर की खोज में मारे मारे फिरे थे, सैकड़ों बच्चों की जाने बचाने के लिए जिहोने रात और दिन में फर्क नहीं किया, रात दिन उनके इलाज में जुटे रहे मगर वही डॉक्टर कफील आज धर्म के इन्ही ठेकेदारों और इनके इशारे पर नाच रहे राजनेताओं की साजिश और बदनीयती का शिकार होकर जेल की सलाखों में कैद हैं. अगर इस वक़्त वो बाहर होते तो शायद कोरोना से लड़ने में अपना योगदान ही दे रहे होते.
धर्म के इन ठेकेदारों और इनके इशारे पर नाचने वाले सत्ता के लालची नेताओं को बहुत अच्छी तरह मालूम है कि कोरोना जैसे रोग के भयावह प्रकोप में उन्हें उनका काल्पनिक ईश्वर बचाने नहीं आएगा. वैज्ञानिक ही उनको जीवन दान देंगे.

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अमेरिका की एक टेक कंपनी में ऑपरेशन मैनेजर 43 वर्षीया जेनिफर हैलर नाम की महिला के प्रति सर सम्मान से झुक जाता है. ये वही महिला हैं जिन्होंने सियाटल के रिसर्च इंस्टीट्यूट में कोविड-19 को ख़त्म करने के लिए ईजाद की गई वैक्सीन का परीक्षण सबसे पहले अपने ऊपर करवाया. मालूम हो कि जेनिफर दो मासूम बच्चों की माँ हैं, मगर मानव जाति को खतरे में देख कर उन्होंने अपनी जान पर ख़तरा मोल लिया क्योंकि उनको विज्ञान पर भरोसा है. उनको भरोसा है डॉक्टर्स पर. गौरतलब है कि वैक्सीन के परीक्षण से पहले जेनिफर को इस खतरनाक कोरोना वायरस से संक्रमित होना पड़ा. क्या जान का इतना बड़ा जोखिम कोई धर्म का ठेकेदार, कोई पंडित, कोई मौलाना या कोई पादरी उठा सकता है?
उन महान वैज्ञानिकों के नाम से पूरे मानव समाज का सिर झुक जाता है जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर पल भर में लाखों लोगों को मार देने वाली बीमारियों के टीके इजाद किए, वरना यह धरती कबकी मरघट बन गई होती.

भारत में हर साल धार्मिक स्थलों व संस्थाओं को सरकार व कॉर्पोरेट घराने अरबों-खरबों रुपये का अनुदान देते है. श्रद्धालुओं से हर वर्ष धार्मिक स्थलों को अरबों रुपयों का दान मिलता है. सोना चांदी हीरे जवाहरात मिलते हैं. मगर जब इन्ही श्रद्धालुओं पर प्राकृतिक विपदा आती है तो धर्म के ये ठेकेदार मैदान छोड़कर भाग जाते हैं. इनके ईश्वर भी इन श्रद्धालुओं की पीड़ा देख कर मुँह फेर लेते हैं और मास्क लगा कर आइसोलेशन में चले जाते हैं. तब आपदा से सिर्फ आम आदमी, डॉक्टर, रिसर्च स्कॉलर्स और वैज्ञानिक ही जूझते नजर आते हैं. अरबों रुपयों पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे धन व धर्म के ठेकेदार ऐसी विपदा में भगवान् के ख़ज़ाने से एक रुपया नहीं निकालते हैं. उल्लेखनीय है कि देश भर में गरीब-गुरबा, मजदूर, किसान कोरोना की दहशत और पेट की आग की दोहरी मार से जूझ रहे हैं. शहरों से भूखे प्यासे पलायन कर रहे हैं. छह माह के दुधमुहे बच्चों को आँचल में समेटे और साठ साल की बूढी माँ का हाथ थामे औरतें हज़ार हज़ार किलोमीटर का फासला पैदल तय कर रही हैं. कहाँ हैं बमबम भोले यात्रा के दौरान कांवरियों के लिए जगह जगह खाने पीने का इंतज़ाम करने वाले धर्मात्मा लोग? सलीबें लगाने वाले, आलू पूरी बांटने वाले? सब नदारद.

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ढाई हजार साल पहले गौतम बुद्ध से लेकर आधुनिक दुनिया के कई महान विचारकों व वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है. संसार का सृजन किसी काल्पनिक ईश्वर ने नहीं किया बल्कि करोड़ों वर्षों में इसका धीरे धीरे सतत विकास हुआ है. प्रकृति के नियमों से संसार चलता है और इनका पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है. लेकिन इन सारे तथ्यों को पैरों तले रौंदते हुए धर्म के ठेकेदार ईश्वर के नाम पर लूट और वैज्ञानिक सोच का गला घोंटते रहते हैं.
कोरोना से लड़ने के लिए आज पूरी मानव जाति भगवान् की नहीं बल्कि विज्ञान की शरण में है.मानवता के रक्षक वैज्ञानिक कोरोना का टीका बनाने और उसके परीक्षण में रात दिन लगे हुए हैं. इसलिए विज्ञान की गाइडलाइंस का पालन करें जो सरकार के ज़रिये आप तक पहुंच रही है.घबराएं नहीं, हर बार की तरह जीत तर्क, विवेक और विज्ञान की ही होगी.

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