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#lockdown: पैसे की खातिर, दो भाईयों का मर्डर  

छत्तीसगढ़ के सरगुजा मे,कोरोना विषाणु  महामारी के समय काल में, एक ऐसा जघन्य अपराध घटित हुआ, जिसने संपूर्ण छत्तीसगढ़ को उद्वेलित कर दिया. दरअसल, हुआ यह कि इस सनसनीखेज अपराध में दो भाइयों की हत्या करके, घर में दफन करने का अपराध कारित हुआ.इस हाई प्रोफाइल मर्डर मे पुलिस ने अंततः सफलता प्राप्त करके आरोपियों को जेल के सींखचों  में डालने में सफलता  प्राप्त की. घटनाक्रम कुछ ऐसा था –  सुनील अग्रवाल औ उसका चचेरा भाई सौरभ अग्रवाल दोनों को आरोपी ने अपने घर पर बुलाया और खूब शराब पिलाई और गोली मारकर हत्या करने के पश्चात अपने ही घर में दफन कर दिया. पुलिस ने  लाश  घर से बरामद कर ली. हमारे  संवाददाता के अनुसार  दोनों में एक की गोली मारकर और  दूसरे की चाकू से गोदकर हत्या की  गई.

दोनों भाई अंबिकापुर शहर के बड़े कारोबारी थे. उनके घर से महज  30 मीटर दूर पर ही दोनों की हत्या की गई .पुलिस की पूछताछ में जानकारी सामने आई  उसके मुताबिक “जर जोरू व जमीन”  जैसे उस पुराने  फलसफे की सच्चाई साबित  हो गई. “जर”अर्थात   पैसे के लेनदेन में दोनों भाई की हत्या हुई , सुनील अग्रवाल और सौरभ अग्रवाल

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का एक पड़ोसी था, जिससे कुछ महीने पहले एक मकान इन कारोबारियों ने खरीदा था. लेकिन इसी मामले को लेकर उनमें पैसों का विवाद शुरू हो गया था. विवाद के बाबजूद इन कारोबारियों का अपने उस मित्रवत  पड़ोसी के घर आना जाना बना हुआ था .

“कोरोना- काल” मे  हत्या 

हत्याकांड का समय बेहद अहम है. देश में चल रहे लॉक डाउन के समय यह हत्या हुई,देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 21 दिनों का लाक डाउन घोषित किया हुआ था इसी दरमियान 4अप्रैल को इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि तैयार की गई . यहां तक कि अपने घर में 6 फीट का गड्ढा भी खोद कर तैयार कर लिया और फिर अपने घर शराब पीने दोनों को बुलाया. .योजना  के मुताबिक 10 अप्रैल शाम को कथित आरोपी  ने दोनों कारोबारी को अपने घर पर बुलाया, जहां सभी ने शराब पी, फिर खाना खाया. इसके बाद वही दोनों कारोबारी की हत्या कर दी गयी. और घर में ही शव को दफना दिया. संदेह के आधार पर पुलिस ने पड़ोसी की हिरासत में लिया तो पूरी वारदात का खुलासा हुआ.

शुक्रवार 10 अप्रेल  को देर शाम क़रीब आठ बजे के बाद से दोनों लापता थे. जिनकी पतासाजी के लिए तीन टीमें बनाई गई थी.संदिग्ध परिस्थितियों में लापता यह दोनों व्यवसायी जिस इनोवा में निकले थे, वह लावारिस हालत में ही शहर के आकाशवाणी चौक के पास रात में ही बरामद हो चुकी थी, जिसके बाद अनहोनी की आशंका गहरा गयी थी.

दोनों की लाश गड्ढे मे …

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के ब्रम्हरोड निवासी व्यवसायी सौरभ अग्रवाल 27 वर्ष व सुनील अग्रवाल 40 वर्ष चचेरे भाई थे. दोनों अचानक गायब हो गए . उनका मोबाइल स्वीच ऑफ था. दूसरे दिन 11 अप्रैल  शनिवार 2020 को परिजनों की सूचना पर पुलिस उनकी खोजबीन में जुट गई. पुलिस ने उस क्षेत्र के सीसीटीवी फुटेज चेक किया तो एक कार से निकल रहे युवक की पहचान सिद्धार्थ यादव के रूप में हुई. पुलिस ने जब उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की तो उसने ब्रम्हरोड निवासी दोनों व्यवसायी के पड़ोसी आकाश गुप्ता का नाम बताया. जब पुलिस ने आकाश गुप्ता को गिरफ्त में लेकर  पूछताछ की तो उसने 10 अप्रैल की रात ही हत्या करने की बात क़ुबूल  कर ली। आकाश व उसके कथित ड्राइवर सिद्धार्थ यादव ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. हत्या करने के बाद दोनों की लाश आकाश के घर के पीछे पूर्व प्लान के अनुसार खोदे गए गड्ढे में गाड़ दिया.

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यह तथ्य भी उजागर हुआ की व्यवसायी सौरभ अग्रवाल ने मुख्य आरोपी आकाश गुप्ता का 6 माह पहले मकान  खरीदा था. आकाश ने पूरे रुपए भी ले लिए थे.6 महीने में मकान खाली करने की बात तय हुई थी. 6 महीने पूरे होने पर सौरभ ने मकान खाली करने कहा, इस बात को लेकर कुछ दिन पूर्व दोनों के बीच कहासुनी हुई थी .

विवाद के बाद भी सौरभ व उसके चचेरे भाई सुनील अग्रवाल का आकाश के घर आना-जाना था. वे साथ में बैठकर कैरम भी खेलते थे.विवाद की रंजिश व अपनी प्रोपर्टी बचाने आकाश ने उनकी हत्या का प्लान बना लिया. हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने घटना के 6 दिन पहले से ही अपने घर के पीछे  गड्ढा खोदना शुरु कर दिया था.इसमें  कथित ड्राइवर सिद्धार्थ यादव ने सहयोग किया. कुल जमा कोरोना  महामारी के इस आपाधापी के समय में भी रुपयों के लालच में हत्या जैसा जघन्य अपराध हो गया.और पुलिस ने तत्परता के साथ आरोपियों को धर दबोचा. आरोपियों पर धारा 302, 201 भादवि  के तहत मामला दर्ज कर उन्हें न्यायालय में प्रस्तुत किया गया,जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कोरोना संकट में भी जारी है मोदी का इमेज बिल्डिंग अभियान

मलेरिया की दवा निर्यात के बहाने इमेज मेकिंग

एक तरफ देश की जनता कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही है. देश मे बेकारी, बीमारी, भुखमरी और बेरोजगारी बढ़ रही है. कल कारखाने बन्द हो गए है. रोजीरोजगार ना मिलने से मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. लंबे लंबे लॉक डाउन से घरो में आपसी तनाव बढ़ रहा है. देश के ऐसे हालत हो गए है कि विकास की नजर में हम सालोसाल पीछे हो गए है. इस माहौल में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “इमेज मेकिंग” पर काम करने वाला तंत्र उनको विश्व गुरु बनाने में लगा है. इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत मे कोरोना से कम नुकसान हो रहा है.

समय पर नही हुआ लॉक डाउन का फैसला

मोदी की इमेज मेकिंग के लिए काम करने वाले लोग यह नहीं बता रहे कि लॉक डाउन का फैसला भारत मे इतनी देर से क्यों हुआ? भारत मे जनवरी माह में कोरोना का पहला केस आया था. जनवरी फरवरी में ही लोक डाउन पर फैसला ले लिए गया होता तो देश मे इतना लंबा लॉक डाउन करने की हालत नही बनती. यह फैसला लेने में केंद्र सरकार ने इतनी देरी क्यो की ? क्या इसकी वजह अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प का भारत दौरा था ? अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे में भारत सरकार इतना भाव विभोर हो गई थी कि उसे कोरोना का कोई डर दिखाई ही नही दे रहा था.

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अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के बाद भारतीय जनता पार्टी का फोकस मध्य प्रदेश में कॉंग्रेस सरकार को गिरा कर अपनी सरकार बनाने का था. लॉक डाउन की आहट को तब तक रोका गया जब तक मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह ने कुर्सी नहीं संभाल लिया था. उस समय तक वँहा सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान नही दिया गया. सवाल यह उठ रहा है कि क्या राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए लॉक डाउन को तब तक टाला गया जब तक मध्य प्रदेश में सत्ता का स्थानांतरण नही हो गया ?

अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे और मध्य प्रदेश सरकार के गठन तक केंद्र सरकार को कोरोना का खतरा क्यो नजर नही आया ? मार्च माह तक कोरोना का ख़ौफ़ दुनिया मे दिखने लगा था. भारत मे विपक्षी दल के नेता यह मांग करने लगे थे कि कोरोना से निपटने के लिये सरकार कड़े कदम उठाए ? अगर सरकार ने उस समय अपने एयर पोर्ट को लॉक कर दिया होता तो कोरोना का किसी तरह का खतरा यँहा नही होता. विश्व के तमाम देशों ने यह फॉर्मूला अपनाया और आज वह ना केवल कोरोना के संकट से बचे है बल्कि उनके यहाँ इस तरह के हालत नही फैले है.

लॉक डाउन के साथ नही हुए बेहतर प्रबंध

भारत सरकार ने कोरोना संकट से निपटने के दौरान कोई ऐसा अच्छा इंतजाम नहीं किया जिससे शहरों में रहने वाले लोग आराम से अपने घर तक पहुंच सके. केंद्र सरकार ने अचानक लॉक डाउन की घोषणा कर दी जिससे जो जहां था वहीं फस गया. बेरोजगारी के बढ़ते संकट को देखते हुए शहरों में रहने वाले लोग अपने गांव और घर की तरफ पलायन करने को मजबूर हो गए. केंद्र सरकार ने अगर सही समय पर सही तरीके से आवागमन का साधन उपलब्ध कराती है तो शहरों से गांव की तरफ पलायन करने वाले लोग इस तरह भूखे प्यासे पैदल, धक्के खा कर गांव घर नही पहुचते.

मजेदार बात यह है कि किसी को इन सवालों को उठाने का समय नही है. सोशल मीडिया पर ऐसे सवाल करने वालो को मोदी भक्त घेर लेते है. मीडिया का एक बड़ा हिस्सा “गोदी मीडिया” बन चुका है. देश के लोगो को यह बातया जा रहा है कि दुनिया मे मोदी अकेले ऐसे नेता है जो कोरोना वायरस से निपट रहे है. लॉक डाउन फेल होने के पहले फेल होने के कारणों का ठीकरा फोड़ने के लिये दूसरे लोगो के कंधों को तैयार कर लिया गया.

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दिल्ली से उत्तर प्रदेश आने वाले मजदूरों का जब बड़ा हुजूम दिल्ली उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर इकट्ठा होने लगा तब उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बात का ठीकरा दिल्ली सरकार के ऊपर फोड़ने की कोशिश की, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने पहले यह प्रबंध किया था की दिल्ली के मजदूरों को उत्तर प्रदेश बिहार उत्तराखंड और दूसरे प्रदेशों में पहुंचाने के लिए बस की सुविधा दी जाएगी. अगर समय पर दिल्ली उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर बस की सुविधा उपलब्ध होती तो मजदूरों को पैदल और प्राइवेट साधनों से अपने घरों की तरफ जाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता . यह जिम्मेदारी केंद्र सरकार की थी की लॉक डाउन से पहले वह ऐसे इंतजाम कर लेती जिससे बाहर फंसे हुए लोग सकुशल अपने घर वापस हो जाते . अगर ऐसा प्रबंध हो जाता तो लोग आराम से अपने घर पहुंच जाते और उनमें कोरोना बीमारी का कोई खतरा भी नहीं रहता .

केंद्र सरकार ने कोरोना संकट से निपटने के लिए जो बेहतर प्रबंध करनी चाहिए थे वह नहीं कर पाई . इसके साथ ही साथ विभिन्न प्रदेशों के साथ केंद्र सरकार का जो समन्वय होना चाहिए था  वह भी नहीं हो पाया . देश में कुछ प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं है ऐसे में केंद्र सरकार को विपक्षी सरकारों के साथ बेहतर तालमेल करके कोरोना संकट से निपटने का प्रबंध करना चाहिए था यह केंद्र सरकार का असफलता है की विपक्षी सरकारों के साथ उसका बेहतर तालमेल नहीं हो सका ऐसे में हर सरकार अपने अपने तरीके से कोरोना संकट से निपटने के प्रयास कर रही थी.

विश्व गुरु बनने की चाहत

प्रचार तंत्र के सहारे अब इस बात को बताने का प्रयास किया जा रहा है कि पूरे विश्व में भारत की ऐसा देश है जो कोरोना से बेहतर अंदाज में लड़ाई लड़ रहा है. सच्चाई है कि भारत में अस्पतालों की बेहतर व्यवस्था नहीं है. यहां पर अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों और बाकी स्टाफ के पास किसी तरह की अच्छी व्यवस्था नहीं है. अस्पताल कर्मचारियों  के पास कोरोना से दूर रहने के उपाय  जैसे अच्छे किस्म के मास्क, ग्लब्स, सेनेटाइजर, और पीपी  ड्रेस नहीं है जिसे पहनकर कोरोना का इलाज किया जा सके. इस संकट से निपटने के लिए लखनऊ मेडिकल कॉलेज ने अपने कर्मचारियों के वेतन कटौती करके यह सामान खरीदने का प्रस्ताव पास किया था. मामला सोशल मीडिया पर आने के बाद सरकार की चारो तरफ आलोचना होने लगी. इसके बाद उतर प्रदेश सरकार में यँहा के कर्मचारियों की मदद करने की बात कही और इलाज के लिए जरूरी सामान उपलब्ध कराया. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक और अस्पताल बलरामपुर  अस्पताल में कर्मचारियों ने सही व्यवस्था ना होने के कारण आपत्ति जताई और अस्पताल मैनेजमैंट का घेराव करने की चेतावनी भी दी थी.

इस तरह की हालत केवल लखनऊ के अस्पतालों की नहीं है दूरदराज और दूसरे प्रदेशों के अस्पतालों की भी हालत इसी तरीके की है ऐसे में जो सरकार अपने अस्पताल और अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बेहतर व्यवस्था नहीं कर पा रही है वहीं सरकार विदेशों में मदद करने के नाम पर अपनी इमेज बिल्डिंग कर रही है.

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“गोदी मीडिया” में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेडिकल डिप्लोमेसी’ को लेकर बहुत चर्चा की जा रही है. इसमें बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के दूसरे देशों में कोरोना से निपटने के लिए मलेरिया की दवा भिजवाने का प्रबंध किया है इस प्रबंध की वजह से नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे हैं और जिन देशों को कोरोना संकट से निपटने के लिए मलेरिया की दवा भेजी जा रही है वह देश आने वाले समय में भारत के सच्चे मित्र होंगे . मलेरिया की दवा को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बातचीत को भी देखने की जरूरत है. इस बात में भी विवाद है कि भारत ने अमेरिका को मलेरिया की जो दवा सप्लाई की है वह भारत को अमेरिका के दबाव में करना पड़ा है.

मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास

इस समय देश को सबसे बड़ी जरूरत है कि करोना संकट के साथ-साथ देश बेरोजगारी, बेकारी और भुखमरी के संकट से बाहर आ सके. लॉक डाउन में ऐसा प्रबंध होना चहिए की  जनता के काम चलते रहे और लॉक डाउन इतिहातो का पालन भी किया जा सके. लॉक डाउन जिस तरह से बढ़ेगा दूसरी तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. जिसकी शुरुआत लॉक डाउन में पुलिस और जनता के बीच आपसी तनाव के रूप में देखने को मिल रहा है. कोरोना संकट के नाम पर पुलिस की निरंकुश व्यवस्था सामने आ रही है.

केवल यही नही कोरोना से निपटने में लगे लोगो को सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर पहले ताली और थाली बजाना और बाद में कैंडिल और दिए कि रोशनी करने की बातों को भी जनता ने कोरोना भगाने से जोड़ लिया. किसी भी देश के लिए यह सोच समझने वाली है कि देश ताली, थाली और कैंडल जला कर इस कोरोना जैसी महामारी का मुकाबला कर रहा है. लोगो को जरूरी सूचनाएं देने की जगह पर रामायण, महाभारत और चाणक्य जैसे टीवी सीरियल दिखाए जा रहे है जिससे लोग जीवन और मृत्यु के लिए व्यवस्था को नही अपने कर्मो को जिम्मेदार माने. राजा के हर आदेश को भगवान का आदेश मॉन कर स्वीकार करें. असल मे सरकार के इन फैसलों पर चर्चा करने की जगह पर इस बात पर चर्चा हो रही है कि जब पूरे विश्व के नेता कोरोना संकट में बेबस हो रहे थे तब भारत के प्रधानमंत्री उससे लड़ने के प्रबंध कर रहे थे बल्कि पूरे विश्व की मदद भी कर रहे थे.

लॉक डाउन में जी उठी यमुना

जो काम करोड़ों रुपया खर्च करके ना हो पाया वो काम मात्र इक्कीस दिन के लॉक डाउन ने कर दिया. दिल्ली में यमुना जी उठी है. यमुना फिर से साँसे ले रही है. फिर से नीली दिख रही है. इसमें मछलियां अटखेलियां करती नज़र आ रही हैं.

यमुना को साफ़ करने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने बड़ी मशक्क़तें कीं, इसकी सफाई के लिए करोड़ों का बजट फूंक दिया, मगर कोई सकारात्मक परिणाम कभी नहीं निकला, लेकिन 21 दिन के लॉक डाउन में यमुना ने खुद अपने को साफ़ कर लिया. इक्कीस दिन के बंद में ना तो यमुना में औद्योगिक कचरा गिरा, ना लोग अपना मैल धोने यहाँ आये और ना पूजा पाठ, पुष्प-दिया प्रवाह इसमें हुआ. शव दाह, अस्थि या मूर्ती विसर्जन जैसे उपक्रम भी इसके घाटों पर नहीं हुए. नतीजा यमुना खुश हो कर अपने अति पुराने सुन्दर नीले रूप में निखार आई. यमुना के इस बदलाव को विशेषज्ञों के स्तर पर काफी गंभीरता से लिया जा रहा है. लॉक डाउन ने यमुना ही नहीं देश की बाकी नदियों को भी जीवनदान दिया है. गंगा, गोमती, ब्रह्मपुत्र आदि तमाम नदियों का जल अपना रंग बदल कर स्वच्छ नीला नज़र आने लगा है. इनमे जलीय जीवों की तादात बढ़ती दिख रही है.

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गौरतलब है कि दिल्ली में यमुना को साफ़ करने के लिए सरकारी योजनाएं सन 1975 से बन-बिगड़ रही थीं. इन योजनाओं का आज तक कोई परिणाम नहीं निकला. इन योजनाओं पर करोड़ों-अरबों रूपए स्वाहा हो चुके हैं. वर्ष 2011 मई में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने दिल्ली सरकार से यमुना उद्धार कि रिपोर्ट भी मांगी थी मगर तत्कालीन सरकार कोई उत्साहवर्धक रिपोर्ट पेश नहीं कर पाई. सरकार द्वारा दिल्ली के 22 किलोमीटर हिस्से की यमुना नदी की सफाई के लिए पिछले दशक में 2000 करोड़ रूपए से ज़्यादा व्यय हो चुके हैं, परन्तु यमुना में जस की तस गंदी बनी रही. सारा धन नेताओं और सरकारी अधिकरियों की जेबों में चला गया. गन्दगी, गाद और ऑक्सीजन की भयंकर कमी ने यमुना की मछलियों का जीवन भी दुश्वार कर दिया. बीते कई सालों से यमुना में मछलियों का टोटा पड़ गया था.

यमुना को शुद्ध करने के लिए बाकायदा ‘यमुना बचाओ आन्दोलन’ चला. इस आंदोलन में  भारतीय किसान संघ ने अग्रणीय भूमिका निभाई. प्रयाग से दिल्ली तक यमुना-भक्तों ने पद यात्राएं कीं, जंतर मंतर पर हज़ारों लोगों ने एकत्रित होकर अपना मत सरकार के सामने रखा.उधर बृज की गली-गली में घूम कर आंदोलनकारियों ने यमुना को बचाने के लिए भजन-कीर्तन के जरिये चेतना जाग्रत करने की कोशिश की कि लोग किसी तरह नदियों में अपने घर का कूड़ा-कचरा, पूजा सामग्री इत्यादि प्रवाहित करने से तौबा कर लें, लेकिन सारा प्रयास विफल रहा. ना लोग सुधरे, ना सरकार का कोई जतन काम आया.

‘यमुना बचाओ आंदोलन’ से लम्बे समय तक जुड़े रहे सोशल एक्टिविस्ट एन.एन. मिश्रा कहते हैं, ‘यमुना में घरेलू कूड़ा-करकट से इतना प्रदूषण नहीं होता, जितना इसके घाटों पर पूजापाठ करने वाले, फूल और पूजा सामग्री प्रवाहित करने वाले, प्लास्टिक की थैलियों में गंद फेकने वाले, मरे हुए जानवरों और इंसानों के शवों को यमुना जी में बहाने वाले,  रोजाना इसके घाटों पर अपने गंदे कपडे धोने वाले लोग यमुना को गंदा करते हैं और इससे भी ज़्यादा प्रदूषण औद्योगिक मिलों द्वारा पैदा किया जाता है, जो रोज़ाना लाखों लीटर औद्योगिक कचरा इसमें उंडेलती हैं. इसी के साथ स्लॉटर हाउसेस से निकला रक्त, रसायन, गन्दगी सब यमुना में गिरती है. लेकिन लॉक डाउन ने तीन हफ़्तों से इन सब पर रोक लगा रखी है, लिहाज़ा यमुना साफ़ हो गई है. लॉकडाउन ने दिल्ली की मृतप्राय यमुना को नया जीवन दे दिया है. 1990 के बाद यमुना अब इस रूप में दिख रही है. दूसरी तरफ यमुना किनारे बसी झुग्गियों में रहने वाले लोग अपने घर चले गए है. अधिकाँश लोग अपने गाँव की ओर पलायन कर गए हैं. इस कारण वहां की गंदगी भी यमुना में कम जा रही है. फैक्ट्रियों का गंदा और रंगीन पानी यमुना में नहीं गिर रहा है, यमुना की स्वछता का एक बड़ा कारण यही है.’

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उल्लेखनीय है कि यमुना की नई रंगत देख कर यमुना निगरानी समिति की ओर से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इस पर अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है ताकि यह बदलाव भविष्य में भी यमुना में सुधार का आधार बन सके. यमुना से जुड़ी योजनाएं भी इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर तैयार की जाएंगी. इसी निर्देश के मद्देनजर सीपीसीबी की एक टीम ने विभिन्न स्थानों से राजधानी में यमुना के पानी के नमूने भी उठाए हैं. संभावना जताई जा रही है कि यमुना के इस बदलाव पर प्राथमिक रिपोर्ट जल्दी जारी कर दी जाएगी.

गौरतलब है कि दिल्ली में पल्ला से बदरपुर तक कुल 54 किलोमीटर तक यमुना बहती है, लेकिन वजीराबाद से ओखला के बीच 22 किलोमीटर के क्षेत्र में यह सबसे ज्यादा प्रदूषित है. यमुनोत्री से प्रयाग (इलाहाबाद) के बीच 1,370 किलोमीटर लंबी यमुना का यह हिस्सा कहने को तो थोड़ा सा है, लेकिन 76 फीसद प्रदूषण इसी हिस्से में दिखता है. वजह, पानीपत और दिल्ली की औद्योगिक इकाइयों का कचरा और रसायन युक्त पानी नालों के जरिये सीधे यमुना में गिरता है.

दिल्ली सरकार के उद्योग विभाग ने पिछले कुछ समय में सीधे नालों में गंदगी फैलाने को लेकर 900 से अधिक औद्योगिक इकाइयों पर कार्रवाई भी की थी. प्रदूषण नियंत्रण उपायों में दिल्ली के 28 औद्योगिक क्लस्टरों में से 17 को 13 कॉमन एफ्लूएंट ट्रीटमेंस प्लांट (सीईटीपी) से जोड़ा गया है, जबकि 11 इससे जुड़े हुए नहीं हैं.

इधर यमुना के पानी का शोधन भी कम हो रहा था. उल्लेखनीय है कि यमुना में 748 एमजीडी पानी गिरता है, इसमें से मात्र 90 एमजीडी पानी का शोधन ही हो पा रहा है और 290 एमजीडी पानी यमुना में ऐसे ही गिर रहा है. पिछले करीब दो सप्ताह से चल रहे देशव्यापी लॉकडाउन ने दिल्ली और हरियाणा की तमाम औद्योगिक इकाइयों पर तालाबंदी कर दी. नतीजा, यमुना में औद्योगिक कचरा और रसायन युक्त पानी बिल्कुल नहीं जा रहा है. अधिकतर स्लॉटर हाउसेस भी बंद पड़े हैं. घाटों पर लोगों का आना शून्य है. कोई पूजा पाठ, हवन इत्यादि भी नहीं हो रहा है. इस दौरान बारिश भी कई बार हो चुकी है. दूसरी तरफ हरियाणा ने हाल ही में सिंचाई का भी काफी सारा पानी यमुना में छोड़ा है. इन्हीं सबके मिश्रित परिणाम से यमुना का बहाव बढ़ा है. पहले का कचरा नीचे बैठ गया है और ऊपर बह रहा पानी पहले की तुलना में काफी साफ नजर आ रहा है.

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इसके अलावा, दिल्ली में हिंडन का पानी भी पहले से साफ हुआ है. हालांकि घरेलू सीवरेज की गंदगी अभी भी नदी में ही जा रही है. इसके बावजूद औद्योगिक कचरा गिरना एकदम बंद ही हो गया है. इसीलिए पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के चलते आने वाले कुछ दिनों में नदियों के जल में और सुधार की पूरी उम्मीद है. सोचिये कि जिस यमुना को साफ करने के लिए सरकारों ने करोड़ों रूपये खर्च कर दिए उसे मात्र 21 दिनों के लॉकडाउन ने एकदम पाक साफ कर दिया. अगर कोरोना का प्रकोप नहीं होता तो आप अपने बच्चों को यह यकीन नहीं दिला पाते कि यमुना का पानी नीला होता है.

गंगा ने भी बदला रूप

नदियों की सफाई पर नजर रखने वाले पर्यावरणविद विक्रांत टोंगड़ का मानना है कि देश में लॉकडाउन के बाद से गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में भी काफी सुधार हुआ है. विक्रांत टोंगड़ कहते हैं कि औद्योगिक क्षेत्र बंद हैं जहां से बड़े पैमाने पर कचरा नदीं में डाला जाता था. टेनरी यानी चमड़ा उद्योग पूरी तरह बंद है. यही वजह है कि कानपुर के आसपास गंगा का पानी बेहद साफ हो गया है. आर्गेनिक प्रदूषण तो नदीं के पानी में घुल कर खत्म हो जाता है, लेकिन औद्योगिक इकाइयों से होने वाला रासायनिक कचरा घातक किस्म का प्रदूषण है जो नदी की खुद को साफ रखने की क्षमता को खत्म कर देता है. लॉकडाउन के दौरान नदी की खुद को साफ रखने की क्षमता में सुधार के कारण ही जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है.

Coronavirus: QUARANTINE के लिए इस बॉलीवुड एक्टर ने दिया अपना होटल

कोरोना महामारी के दौरान लोगों को राहत देने व उनकी मदद करने के लिए धीरे धीरे कुछ बौलीवुड हस्तियंा सामने आ रही है.कुछ दिन पहले ही दुबई में फंसे अभिनेता सचिन जे जोषी ने अपनी पत्नी उर्वषी षर्मा और अपने एनजीओ ‘द बिग ब्रदर’’के माध्यम से जरुरतमंदो तक रोषन पहुॅचाने का कार्यक्रम षुरू किया था.

मगर अब सचिन जोषी को भी अहसास हुआ कि कोरोना से बचाव के लिए सेल्फ-आइसोलेशन और सेल्फ-क्वारंटाईन वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरुरत बन गयी है,तो उन्होेने मंुबई के पवई इलाके में स्थित अपने ३६ कमरे वाला आलिशान बुटीक होटल ‘‘द बीटल’’ को मंुबई महानगर पालिका को देते हुए उन्होंने प्रस्ताव दिया कि कोविद -19 से संक्रमित हुए विदेश से लौटे प्रवासियों को क्वारंटाईन के रूप में यहा रखा जाए.वास्तव में जहरीला कोरोना वायरस (कोविद -19) भारत के हजारों लोगों और विदेशों में लाखों लोगों को प्रभावित कर रहा है.२१ दिन के लॉकडाउन से भारत गुजर रहा है,इस बीच नागरिकों ने साबित कर दिया है कि इंसानियत अभी भी मौजूद है.

दुबई में फंसे सचिन जे जोशी ने ख्ुाद कहा-‘‘मुंबई एक घनी आबादी वाला शहर है.इसलिए हमारे शहर को बचाने के लिए उपाय करने के लिए पर्याप्त अस्पताल और बिस्तर व्यवस्था नहीं हैं.जब नगरपालिका ने हमसे मदद के लिए संपर्क किया,तो हमने मदद करने के लिए अपनी खुशी से अपने होटल का उपयोग करने की इजजत दे दी.बीएमसी की मदद से हमने अपने होटल को यात्रियों के क्वारंटाईन के तहत सुविधा में बदल दिया है.जबकि नगरपालिका ने एहतियाती कदम उठाते हुए नियमित निरीक्षण के लिए विशेष डॉक्टरों और नर्सों की नियुक्ति कुछ दिशा-निर्देश के साथ किया है.आवश्यक उपकरणों और सुसज्जित कर्मचारियों के साथ पूरी इमारत/होटल के कमरों की नियमित रूप से सफाई की जाती है.’’
ज्ञातब्य है कि अभिनेता व उद्योगपति सचिन जे जोशी ने फिल्म ‘‘अजान’’ में अभिनय कर बौलीवुड में कदम रखा था.उसके बाद उन्होंने  सनी लियोन व नसिरूद्दीन षाह के के साथ ‘‘‘जैकपॉट’’, लिसा रे और उषा जाधव के साथ ‘‘वीरप्पन’’, नर्गिस फाकरी और मोना सिंह के साथ ‘‘अमावस’’जैसी फिल्मों में अभिनय किया.

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अभिनेता सचिन जे जोषी का मानना है कि वायरस से लड़ने में मदद करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है.केवल मुंबई या महाराष्ट्र या सिर्फ भारत में ही नहीं यह खतरनाक कोरोना वायरस दुनिया के खिलाफ खड़ा है.सरकारी कर्मचारियों और गरीबों को ध्यान में रखते हुए उनके बिग ब्रदर फाउंडेशन के तहत जरूरतमंदों को खाद्य पदार्थ से भरे बॉक्स वितरित कर रहे हैं.सचिन के अनुसार यह कार्य उनका ‘द बिग ब्रदर’फाउंडेशन लॉकडाउन समय के अंत तक काम करता रहेगा.
होटल ‘‘द बीटल’’की चर्चा करते हुए सचिन जे जोषी की पत्नी उर्वषी षर्मा कहती हैं-‘‘मुझे खुशी है कि पवई,मुंबई में हमारा होटल ‘द बीटल‘ क्वारंटाईन के लिए बीएमसी दिया गया है.यह मेरे पति का फैसला है और मैं उनका सम्मान और उनका समर्थन करती हूं.हम अपने होटल से लेकर अधिकारियों और गली में फंसे सभी लोगों को खाना बांट रहे हैं. हमारी टीम लगभग दो सप्ताह से इस काम को निर्बाध रूप से कर रही है और जब तक हम सक्षम हैं,हम मदद करते रहेंगे। ‘‘

कोरोना पीड़ितो की चैरिटी के लिए उर्वशी शर्मा ले रही हैं हस्तकला का सहारा  
ज्ञातब्य है कि अभिनेता सचिन जे जोषी की पत्नी उर्वषी षर्मा भी अदाकारा हैं.वह ‘नकाब’, ‘बार्बर’,‘खट्टा मीठा’,‘चक्रधार’जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा विखेर चुकी हैं.अभिनेता सचिन जे जोषी से षादी करने के बाद से वह अभिनय से दूर हो गयीं.स दंपति की एक बेटी समीरा और बेटा शिवांश है.अब लाॅकडाउन के दौरान उर्वशी शर्मा ने मोमबत्ती बनाने और कढ़ाई करने का नया शौक अपनाया है.वह कहती हैं-‘‘इन दिनों मैं मोमबत्ती और फूल बनाने, कढ़ाई, बुनाई और मोती पिरोने का काम कर रही हूं.अपने बच्चों के साथ मूलयवान वक्त बिताने के अलावा मैं पेंटिंग भी करती हूं.कुल मिलाकर यह मेरे लिए एक बहुत ही उपयोगी क्वारंटाइन साबित हुआ है.

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यॅूं भी कुछ रचनात्मक करना हमेशा से ही मेरा जुनून रहा  है.मैं कुछ भी साधारण नहीं करती हूं. हमारे सुंदर घर के हर कोने पर मेरा खास स्पर्श है.मुझे कला और शिल्प बेहद पसंद हैं, और मैं इसके लिए हर दिन समय निकालती हूं.मैं इस कलाकृति को हमारे बिग ब्रदर फाउंडेशन के लिए निधि जुटाने के लिए बेचूंगी.जिससे कोराना पीड़ितो की मदद में योगदान हो सके.‘‘
हमने ‘‘द बिग ब्रदर फाउंडेशन’’को एक गैर-लाभकारी पहल के रूप में स्थापित किया गया था.हमने इस संस्था द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों और महिलाओं के सशक्तिकरण के खास कार्य किए हैं.’’

ये रिश्ता क्या कहलाता है की एक्ट्रेस का हुआ तलाक, पति को मिली बेटे की कस्टडी

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है कि मशहूर एक्ट्रेस सिमरन खन्ना का उनके पति भरत से  कुछ दिनों पहले तलाक हो गया है. सिमरन और भरत के अलगाव की खबरें आए दिन आ रही थी. दोनों के बीच लंबे समय से अनबन चल रहा था.

एक रिपोर्ट में सिमरन ने अपने तलाक की खबर को सही बताते हुए कहा कि हां यह सच है कि हमारा तलाक हो गया है लेकिन आज भी हम एक अच्छे दोस्त की तरह एक-दूसरे से मिलते हैं.

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बता दें कि सिमरन और भरत का एक बेटा है विनीत उसकी कस्टडी फिलहाल भरत के पास है. टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में उन्होंने गायत्री यानी गायू का किरदार निभाया था. इस किरदार में लोगों ने इन्हें बेहद पसंद किया था. इसके अलावा भी सिमरन ने कई सीरियल में लीड रोल में काम किया है. जैसे- परमावतार श्रीकृष्ण और भी कई सीरियल में भी.

 

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Kokka mera kuch kuch kenda ni kokka. #punjabi #laung #traditional

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बता दें सिमरन अभिनेत्री चाहत खन्ना की बहन है. चाहत इन दिनों मीका सिंह के साथ नजदीकियों को लेकर सुर्खियों में हैं. वह मीका सिंह के साथ म्यूजिक वीडियो में काम कर रही हैं.

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सिमरन फिलहाल कई अलग-अलग तरह के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. कुछ दिनों से अपने निजी जीवन में चल रहे परेशानियों से परेशान थी. हालांकि अब वह बहुत खुश है. अपने काम पर ध्यान दे रही है. अगर इन दिनों की बात करें तो वह अपनी फैमली के साथ घर पर समय बीता रही हैं. घर से बाहर नहीं निकल रही हैं.

#coronavirus: योगी सरकार ने जिलों को दो वर्गों में बांटा

कोरोना वायरस का संक्रमण अभी तक कंट्रोल नहीं हुआ है जिसके कारण सभी राज्य लॉकडाउन को 30 अप्रैल तक बढ़ा रहें हैं उसी कड़ी में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी लॉकडाउन को 30 अप्रैल बढ़ा दिया है क्योंकि इस वक्त इसके आलावा और कोई चारा नहीं नज़र आ रहा है इस कोरोना वायरस से बचने का.रविवार को योगी सरकार अपने आवास पर उच्च-स्तरीय बैठक के बाद ये फैसला लिया है.और उत्तर प्रदेश से पहले ओडिशा,महाराष्ट्र और पंजाब ने भी लॉकडाउन को 30 अप्रैल तक बढ़ाने का फैसला लिया है.पीएम मोदी से शनिवार को वीडियो कांफ्रेस के जरिए बात-चीत के बाद योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है.सबसे बड़ी बात ये है योगी सरकार ने जिलों को दो वर्गों में बांट दिया है जिससे थोड़ी राहत रहेगी उन्होंने ए वर्ग और बी वर्ग बनाया है.

ए वर्ग वो है जहां पर अभी तक कोई भी कोरोना पॉजीटिव नहीं पाया गया है.बी वर्ग में वो  जिलें आएंगे जहां से कोरोना के मरीज पाएं गए हैं.ए वर्ग में कुछ रियायतें दी जाएंगी जैसे कि सब्जी की दूध औऱ किराने के शॉर खुलेंगे.लेकि उसका भी एक टाइम होगा.सुबह सात से दोपहर एक बजे तक लोग अपने वाहन से आ-जा पाएंगे लेकिन बहुत जरूरी काम हो तभी.उसमें भी ए वर्ग और बी वर्ग के बीच कोई वाहन नहीं चलेंगे.साथ ही बी वर्ग बी में पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा.जो हॉटस्पॉट क्षेत्र हैं वहां पूरी तरह से प्रतिबंध रहेग और प्रदेश में कहीं भी पांच लोग से ज्यादा लोगों के खड़े होने पर प्रतिबंध है.धारा 144 लागू रहेगा.साथ ही 31 मई तक आप किसी भी सार्वजनिक स्थान पर बिना मॉस्क के नहीं जा पाएंगे मॉस्क लगाना अनिवार्य है.

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साथ ही अगर वर्ग ए वाले जिले में कहीं भी कोरोना के मरीज मिले तो उस जिले पर तुरंत कड़ा प्रतिबंध लगा दिया जाएगा. जितने भी जिलें हैं उनमें स्टांप और रजिस्ट्रेशन संबंधी काम के लिए अनुमति मिलेगी लेकिन कुछ नियमों के अधीन बहुत ही जरूरी होने पर.होटल, शॉपिंग मॉल्स,सिनेमा हाल, मल्टीप्लेक्स,धर्मशाला, जिम,बार,रेस्टूरेंट, मंदिर ये सभी बंद रहेंगे.इस वक्त हिन्दुस्तान एक बहुत बड़ा संक्रमण से लड़ रहा है और एसे में सभी जनता को भी सरकार का साथ देना होगा तभी इस संक्रमण से मुक्ति मिल सकती है. 2020 का ये वक्त देश पर काल है और इस गकाल को मिलकर ही हटाया जा सकता है जिसमें सबके सहयोग की जरूरत है और ये विश्वास भी कि जल्द देश इस संक्रमण से मुक्त होगा और एक बार फिर से देश में सब कुछ सामान्य होगा.

आफत जनधन खाता ही बना मुसीबत

ऐसा क्या पता था कि सरकार ही इन गरीबों के साथ मजाक करेगी. जैसे ही इन गरीब औरतों को पता चला कि  जनधन खाते में सरकार ने कुछ पैसा भेजा है, ये औरतें बिना सोचेसमझे ही पैसा निकालने बैंक चल दीं और वो भी कोरोना के चलते लॉक डाउन में.

यह मामला मध्य प्रदेश के भिंड इलाके का है. 09 अप्रैल, 2020 का दिन ऐसी औरतों के लिए बड़ी मुसीबत बन गया, जो न कहते बन रहा है, न उगलते.

भिंड इलाके की ये औरतें जनधन योजना के तहत खोले गए खाते में आए 500 रुपए लेने बैंक गई थीं. ये 2-4 नहीं, बल्कि 39 गरीब औरतें थीं. इन औरतों को लॉक डाउन में कर्फ्यू लगा होने के कारण नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

सचाई तो यही है,पर कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉक डाउन के दौरान मध्य प्रदेश के भिंड सहित कई जिले में कर्फ्यू है. ,इस दौरान इन गरीब औरतों को प्रधानमंत्री जनधन योजना से 500 रुपए लेना महंगा पड़ गया. पुलिस ने सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करने पर 39 गरीब औरतों को जेल में बंद कर दिया.

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पुलिस ने इन औरतों पर धारा 151 के तहत कार्यवाही की थी. लिहाजा, इन औरतों को 4 घंटे जेल में गुजारने पड़े. इन औरतों को 10-10 हजार रुपए के मुचलके पर एसडीएम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद छोड़ा गया.

इस कार्यवाही के दौरान पुलिस की भी लापरवाही सामने आई और पुलिस ने खुद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया.

दूसरों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने वाली पुलिस इन औरतों को हिरासत में ले कर एक ही वाहन में भर कर ले गई थी. इस के बाद इन औरतों को अस्थायी जेल में बंद कर दिया गया था.

गरीबी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इन लोगों के खाते में 500 रुपए डाले हैं, जिसे निकालने के लिए बैंक के बाहर गरीबों की एक लंबी लाइन लग गई.

लॉक डाउन के उल्लंघन की जानकारी जब पुलिस को लगी, तो वह वहां तुरत पहुंची और इन औरतों को समझाया कि वो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें. लेकिन ये औरतें नहीं मानीं. फिर इन पर एक्शन लिया गया और इन को हिरासत में ले लिया गया.

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पुलिस की इस कार्यवाही से ये गरीब औरतें काफी आहत हैं. पैसे की तंगी से उबारने के लिए जनधन खातों में सरकार ने 500 रुपए जरूरतमंदों के खाते में डाले थे, लेकिन ये पैसे लेना इन गरीब औरतों को भारी पड़ गया.

सरकार द्वारा गलत समय पर लिया गया फैसला इन गरीब औरतों को ऐसी दोहरी मार मारेगा, सपने में भी नहीं सोचा था. 500 रुपए पाने के चक्कर में 10 हजार रुपए और इन की जेब से जाना इस बात को दर्शाता है कि गरीब की कहीं कोई सुनवाई नहीं है.

तुम भुखनंगे देश के खातिर भूखे नहीं रह सकते?

कभी सुना था कि नेता हमेशा जनता का अग्र बन कर नेतृत्व प्रदान करता है और जनता नेता के पीछेपीछे उस के बताए रास्तों पर चलती है. भारत में कई ऐसे नेता पैदा हुए जिन्होंने मजदूरों किसानों का नेतृत्व किया. कई नेता ऐसे आए जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाया, कईयों ने न जाने कौन से रामराज्य का ख्वाब दिखाया. लेकिन जैसे जैसे समय बदला, समय के साथ साथ नेता जमीन से गायब होने लगे. गायब हुए नेता को ढूँढा तो शानदार चमचमाती 10 बाई 10 के बैनरों और पोस्टरों की शान बन गए. चुनाव शुरू हुए कि पंडित के माथे का टीका बन गए, जय श्रीराम का उद्घोष बन गए, दलित के बीच जय भीम बन गए, और हां.., कहीं कहीं मुसलमानों की टोपी भी बन गए. बस नहीं बन पाए तो किसी की भूख, बेगारी, और लाचारी.

आज ये नेता कमरों में बंद हैं, कोई रामायण देख रहा है तो कोई जनता के लिए चिंतामग्न है. लेकिन करे तो करे क्या भाई, बाहर जा कर बीमार थोड़ी होना है. आखिर जमीन से उठ कर इन नेताओं ने अपने लिए शाम-दाम-दंड-भेद से बड़ेबड़े आशियाने बनाए है. क्या यह इसलिए कि बुरे वक़्त में काम भी न आ सके. खैर, अपना घर होना दिलचस्प बात है, कमबख्त रोक ही लेता है बाहर जाने से. लेकिन नेतागिरी का चस्का घर बैठे जिंदगी से थोड़ी निकल जाता है. इसलिए जितनी संतुष्टि और खुन्नस इस लाकडाउन से आ रही है उसे ट्विटर पर 150 अक्षरों में ही सही लेकिन पेल दो, आखिरकार देश के लेमनचुसिया मध्यम और उच्च वर्ग तक तो बात पहुंचेगी. ओहो…अब इस में ओफेंड होने की क्या बात? लेमनचुसिया ही तो कहा है, अब है तो है.

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अब यही देखो, सुंदर अभिनेत्री कटरीना कैफ घर में बर्तन धोते हुए वीडियो में सन्देश दे रही थी कि घर का काम कर के बोरियत से बचे, तो यह देख कर सुमन चाची बहुत हंस पड़ी. अब बेचारी कटरीना को क्या पता कि जिस काम को वह बोरियत से बचने का तरीका सुझा रही है सुमन चाची के लिए यह काम रोटी कमाने का जरिया है. वहीँ ऋषि कपूर यानि चिंटू जी, सरकार से ट्विटर पर दारु के ठेकों से लाकडाउन हटाने का रिक्वेस्ट कर रहे थे. अब वह अपने चिंटूपने वाली हरकतों से बाज आए तो पता चले कि मजदूरों के पास खाने को दाना तक नहीं है. भोले है  क्या करे, अपनी अमीर मासूमियत को कुछ समय के लिए छुपा भी नहीं पा रहे है.

जिस समय हमारे प्यारे अमीर गिटार और हारमोनियम बजा, अन्ताक्षरी खेलकर, पेंटिंग बना कर लाकडाउन के खट्टेमीठे अनुभव शेयर कर रहे थे, जैसे मानो स्कूली बच्चों की छुट्टियाँ पड़ी हों और उन्हें मजा आ रहा हो, उस समय दिल्ली से बरेली जाने वाला ललित को उकडू बना कर सरकार जबरदस्ती केमिकल से नहला रही थी. वैसे सही हुआ ललित के साथ, कमबख्त नहाता भी तो नहीं है. हमेशा कहता है मजदूर हूँ मिटटी में जन्मा हूँ मिटटी में मरूँगा.

हद है यार, इस बेशर्म बिमारी ने सारे देशों के बॉर्डर लांघ दिए हैं, गरीब से लेकर अमीर किसी भी देश में फर्क नहीं छोड़ा. अब जब यह हमारे देश में है तो बेचारे अमीर लोग अपनी आज़ादी का मजा लेने कहीं विदेश निकल भी नहीं पा रहे. जैसा वो हमेशा से करते आए थे. कितनी दुख की बात है न, लेकिन जहां दुख है वहां सुख भी है. सुना है देश के सब से अमीर आदमी मुकेश अम्बानी ने लाकडाउन के कारण पहली बार मुंबई में अपने 27 मंजिला एंटिला मकान के अच्छे से दर्शन किये. वरना इस से पहले उन्हें पता ही नहीं था कि किस माले में पार्क है और किस में स्विमिंग पूल. खैर आजकल उनके लिए समस्या इस बात की है कि वे भूल जाते है कि खाना किस कमरे में है और सोना किस कमरे में है. वहीँ आनंद महिंद्रा साहब तो लोगों को यह बताने में लगे है कि वो घर में लुंगी पहनते है. सही हुआ उन्होंने बता दिया, अब पूर्वांचल के दिहाड़ी मजदूर और बंगाली बाबु मारे खुशी के खुद को महिंद्रा समझ कर अपनी दिमागी भूख मिटाने में मस्त हैं.

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अमीरों को कितनी टेंसन है अपने अमीरियत का हिसाब रखने की. इस से अच्छी जिन्दगी तो गरीब लोगों की होती है. नेताओं के 8 बाई 8 के बेनर जितने कमरों में रहते है. वहीँ खाना, वहीं सो जाना. आसपड़ोस की निकटता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसी सज्जन की छोड़ी हुई विषेली गैस 3 घर छोड़ कर चौथे घर में पहुंच जाती है. और वो भी झट से सूंघ कर समझ जाता है कि फलाने घर में क्या बना था.

2011 की जनगणना के अनुसार मुंबई की 42 फीसदी आबादी झुग्गी झोपड़ियों में रहती है. यह आबादी पूरे मुंबई के मात्र 7 फीसदी क्षेत्र में अपना जीवन गुजरबसर करती है. वहीँ पुरे महारष्ट्र की झुग्गियों में रहने वाली आबादी का 66.5 फीसदी हिस्सा एक कमरे में अपना जीवन चला रही है. मोदी जी के विकास मोडल वाले गुजरात में 69.8 फीसदी और ईमानदार केजरीवाल की दिल्ली में 61.3 फीसदी हिस्सा एक कमरे में अपना जीवन गुजरबसर कर रही है.

जब बात मुंबई की हुई है तो सुना है कोरोना धारावी में भी घुस चुका है. क्या मुसीबत है यार. अब इन गरीबों का भी इलाज करना पड़ेगा सरकार को. भले बिमारी अमीर लाए हों लेकिन ये गरीब लोग किसी बिमारी से कम है क्या? बेचारी सरकार को चिंता इस बात की है कि कोरोना के आड़ में यह गरीब लोग टीबी के इलाज में सरकार का खर्चा न करवा दें. इन गरीबों से तो सोशल डिस्टेंस भी मेन्टेन नही होता. लेकिन झुग्गी में रहने वाला गरीब भी क्या करे? जिस धारावी में कोरोना घुसा है वहां इतने लोग है कि अगर उस इलाके में रहने वाले लोगों का अनुपात उस इलाके के कुल क्षेत्र से लगाया जाए तो मोदीजी का एक मीटर वाला सोशल डिस्टेंस भी फेल हो जाए.

आखिर इन गरीबों की समस्या क्या है?

माना यह अस्पताल, सड़क, मोल, बस और न जाने क्या क्या बनाते है उससे क्या, इस का मतलब यह तो नहीं की यह सरकार की बात ही न माने. अब देखो, सरकार ने कितनी मेहनत से लोगों का ध्यान हिन्दू मुस्लिम में बांटा है. लेकिन इन्हें चैन कहां, फिर से इन गरीब मजदूरों ने अपनी दो कौड़ी की औकात दिखा दी. आ गए न ये सेकड़ों की संख्या में सूरत की सड़कों में भात मांगते हुए. सुना है पुलिस को भी पीटा है आगजनी भी की है. सड़कों में उधम मचाया है. अखबार से पता चला कि यह मजदूर कई दिनों से भूखे थे. सरकार इन्हे राशन नहीं पहुंचा रही थी.  आसपास ढाई किलोमीटर के इर्दगिर्द कोई दुकान ही नहीं थी. बाहर निकल रहे थे तो सरकारी डंडे इन तक जरूर पहुँच जा रहे थे. खैर इनकी भूख का मसला हमारा नहीं हैं हम तो घर में अच्छे से खा पीकर ट्वीट कर रहे है.

हमारा मसला राष्ट्र का है. इसलिए देश के एक जिम्मेदार हष्टपुष्ट खाते पीते नागरिक के तौर पर इन भूखनंगे मजदूरों से सीधा सवाल. क्या तुम देश के खातिर एक महीने तक भूखे नहीं रह सकते?

खेती व्यवसाय में 100 फीसदी मुनाफा

“भारत गांवों में बसता है और कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की आत्मा है.” राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह कहना दुरुस्त है. हालांकि, आजादी से अब तक खेतीबाड़ी सेक्टर में सरकारों ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है. देश की मौजूदा मोदी सरकार का यह दावा कि वर्ष 2022 में किसानों की आमदनी दोगुना हो जाएगी, कृषि सेक्टर की हालत को देखते हुए असंभव सा प्रतीत हो रहा है.

गांधीजी के कथन और मोदी सरकार के जुमलारूपी दावे से अलग इस सेक्टर की सकारात्मकता और महत्ता पर यहां चर्चा होगी. कृषि व्यवसाय दुनिया का सबसे आकर्षक व्यवसाय है, क्योंकि कृषि व्यवसाय न सिर्फ बेहद कम पूंजी में शुरू किए जा सकते हैं व चलाए जा सकते हैं, बल्कि इस व्यवसाय से 100 फीसदी लाभ कमाया भी जा सकता है.

कृषि व्यवसाय को जहां पहले गंदा और गरीबों व किसानों का व्यापार कहा जाता था, वहीं दूसरी तरफ देश में बढ़ रही बेरोजगारी के चलते आजकल युवा पीढ़ी इस व्यवसाय की तरफ आर्कषित हो रहे हैं और मौडर्न तकनीकों का इस्तेमाल कर कृषि व्यापार में अपना भविष्य आजमा रहे हैं और खासा मुनाफा भी कमा रहे हैं.

पहले जहां लोगों की यह धारणा थी कि किसी छोटे गांव में बिजनेस कैसे सफल हो सकते हैं, क्योंकि गांव में न तो बिजनेस करने के उचित साधन मौजूद थे और न तो सुविधाएं ही थीं. इसी वजह से पिछले कुछ सालों से ज्यादा से ज्यादा लोग रोजगार के लिए और अपनी आजीविका कमाने के उद्देश्य से गांवों से शहरों की तरफ पलायन कर रहे थे.

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लेकिन अब बदलते दौर में गांव में बिजनेस करना और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर कृषि का व्यवसाय घाटे का सौदा नहीं रह गया है. गांव में भी अच्छा बिजनेस स्थापित कर खूब पैसा कमाया जा सकता है.

कृषि व्यवसाय की सबसे खास बात यह है कि ये बिना किसी ट्रेनिंग के भी आसानी से शुरू किए जा सकते हैं. वहीं कृषि व्यवसाय को शुरू करने के लिए आपको किसी तरह की कोई डिग्री लेने की भी जरूरत नहीं पड़ती है, हालांकि, इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए आपको इसकी पेचीदगियों के बारे में सीखने की और इसको समझने के लिए अपना कुछ समय देने की जरूरत पड़ सकती है.

कृषि व्यवसाय के कुछ आकर्षक बिजनेस विकल्पों और इनकी संभावनाओं के बारे में आप जानें जिससे कि छोटे कस्बों और गांव में इस तरह के व्यापार आसानी से कर पैसा कमा सकें.

कृषि व्यवसाय से संबंधित कुछ बिजनेस आइडियाज ये हैं-
*शहरी कृषि या फसल उगाना
*खरगोश पालन
*ताजे फलों का व्यवसाय
*सूखे फूल का व्यवसाय
* खाद्य पदार्थों की खुदरा बिक्री या ग्रोसरी सर्विस
*मछली पालन
*खाद वितरण का व्यवसाय
*बेकरी
*सब्जी उगाना
*जड़ी बूटी उगाना
*फल और सब्जी के लिए कोल्ड चेन का बिज़नेस
*आर्गेनिक खाद
*मुर्गी पालन
*मधुमक्खी पालन
*पोल्ट्री फार्मिंग
*दुग्ध उत्पादन
*पशुधन चारा उत्पादन
*टोकरी बनाना
*मशरुम की खेती
*फ्रोजेन चिकन प्रोडक्शन
*बेत की कुर्सी बनाना
*शंबुक या घोंघा की खेती करना
*काजू प्रोसेसिंग
*सूर्यमुखी की खेती
*चिप्स बनाना
*नर्सरी प्लांट
*फूलों की खेती
*बकरी पालन
*नारियल तेल निर्माण
*रस्सी निर्माण
*बीज उत्पादन
*सोयाबीन उत्पादन
*दाल मिल लगाना
*फल और सब्जी निर्यात
*आटा मिल
*चिंराट की खेती
*सूअर पालन
*मटर का व्यवसाय
*बोया बीन्स प्रोसेसिंग
*मसाला की खेती
*आलू चिप्स उत्पादन
*फल के जूस का बिज़नेस
*अदरक लहसुन पेस्ट उत्पादन
*रजनीगंधा की खेती
*अदरक तेल उत्पादन
*अंगूर के शराब का उत्पादन
*ग्रोसरी ई-शॉपिंग पोर्टल
*मूंगफली का तेल उत्पादन
*जट्रोफा की खेती
*आलू पाउडर
*मूंगफली उत्पादन
*मधु उत्पादन
*एलोवेरा का व्यापार
*धान की खेती
*राई से तेल उत्पादन
*मिट्टी परिक्षण केंद्र
*आइसक्रीम उत्पादन
*गुड़ उत्पादन
*जैम जेली उत्पादन
*मांस उत्पादन
*छोटा सिंचाई प्रणाली प्रदान करना
*दूध ठंडा रखने का प्लांट
*बहु प्रयोजन कोल्ड स्टोरेज
*प्याज पेस्ट उत्पादन
*ताड़ तेल उत्पादन
*कीटनाशक सूत्रीकरण
*अचार बनाना
*आलू उत्पादन
*चावल ब्रान तेल उत्पादन
*चावल मिल
*टमाटर उत्पादन
*वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन
*धनिया पाउडर उत्पादन
*गाय के मूत्र से कीटनाशक उत्पादन
*भुट्टा उत्पादन
*आम उत्पादन
*अमरूद उत्पादन
*लाल-हरी मिर्ची
*अदरक
*गाजर खेती
*मावा बनाना
उपरोक्त के अलावा भी कई और कृषि व्यवसाय से जुड़े बिजनेस आप शुरू कर सकते हैं. इनमें से कोई भी बिजनेस शुरू करने से पहले पूरी जानकारी लें और उसकी अच्छाई व कमियों के बारे में भी जानें, तभी आप एक सफल व्यापारी बन सकेंगे और बढ़िया पैसा कमा सकेंगे. इनमें कई ऐसे बिजनेस हैं जिनमें आप 100 फीसदी इनकम अर्जित कर सकते हैं.

मेरी भाभी ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया है, अब फिर से हमबिस्तरी करना चाहती हैं,क्या करूं?

सवाल

मेरे भाई की शादी के 20 साल बाद भी कोई औलाद नहीं हुई. भाभी ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया, तो एक लड़की पैदा हुई, पर वह 3 दिन बाद ही गुजर गई. लड़की मरने के 4 महीने बाद भाभी फिर से मेरे साथ हमबिस्तरी करना चाहती हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप ने एक बार गुनाह किया है, तो उसे दोहरा भी सकते हैं. लेकिन इस में बहुत खतरा है. पता चलने पर आप की जिंदगी बरबाद हो सकती है.

 

सवाल

मैं 26 साल की विवाहित युवती हूं. विवाह 6 महीने पहले हुआ है. मैं तभी से एक विचित्र परेशानी से गुजर रही हूं. जब जब हम सैक्स करते हैं, उस के तुरंत बाद मुझे सिर में जोर का दर्द होने लगता है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं यह किसी गंभीर भीतरी रोग का लक्षण तो नहीं है? इस से बचने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? कोई घरेलू नुस्खा हो तो बताएं?

जवाब

आप जरा भी परेशान न हों. यह समस्या कई युवक युवतियों में देखी जाती है. इस का संबंध शरीर की जटिल रसायनिकी से होता है. यों समझें कि यह एक तरह का कैमिकल लोचा है. जिस समय सैक्स के समय कामोन्माद यानी और्गेज्म प्राप्त होता है, उस समय शरीर की रसायनिकी में आए परिवर्तनों के चलते सिर की रक्तवाहिकाएं कुछ देर के लिए फैल जाती हैं. धमनियों में आए इस अस्थाई फैलाव से उन के साथसाथ चल रही तंत्रिकाओं पर जोर पड़ता है, जिस कारण सिर में दर्द होने लगता है.

आप आगे इस दर्द से परेशान न हों, इस के लिए आप एक छोटा सा घरेलू नुसखा अपना सकती हैं. सहवास से 40-45 मिनट पहले आप पैरासिटामोल की साधारण दर्दनिवारक गोली लें. साइड इफैक्ट्स के नजरिए से पैरासिटामोल बहुत सुरक्षित दवा है. इसे लेने से कोई नुकसान नहीं होता.

जिन्हें पैरासिटामोल सूट नहीं करती, उन्हें अपने फैमिली डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. यदि डाक्टर कहे तो नियम से प्रोप्रानोलोल सरीखी बीटा ब्लौकर दवा लेते रहने से और्गैज्म के समय सिर की धमनियों में फैलाव नहीं आता और सिरदर्द से बचाव होता है.

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कामुकता का राज और स्त्री की संतुष्टि को कुछ इस तरह समझिए

मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

सैक्स जीवन को बेहतर बनाने और रिश्ते में प्यार कायम रखने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? रिश्ते में प्रगाढ़ता कैसे आएगी? हमें कोई बहुत अच्छा क्यों लगने लगता है? किसी की धूर्तता या दीवानगी के पीछे सैक्स की कामुकता के बदलाव का राज क्या है? खुश रहने के लिए कितना सैक्स जरूरी है? सैक्स में फ्लर्ट किस हद तक किया जाना चाहिए?

इन सवालों के अलावा सब से चिंताजनक सवाल अंग के साइज और शीघ्र स्खलन की समस्या को ले कर भी होता है. इन सारे सवालों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा है, जबकि सामान्य पुरुष उन से अनजान बने रह कर भावनात्मक स्तर पर कमजोर बन जाता है या फिर आत्मविश्वास खो बैठता है.

वैज्ञानिक शोध : संसर्ग का संघर्ष

हाल में किए गए वैज्ञानिक शोध के अनुसार, यौन सुख का चरमोत्कर्ष पुरुषों के दिमाग में तय होता है, जबकि महिलाओं के लिए सैक्स के दौरान विविध तरीके माने रखते हैं. चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक बताते हैं कि पुरुष गलत तरीके के यौन संबंध को खुद नियंत्रित कर सकता है, जो उस की शारीरिक संरचना पर निर्भर है.

पुरुषों के लिए बेहतर यौनानंद और सहज यौन संबंध उस के यौनांग, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर निर्भर करता है. पुरुषों में यदि रीढ़ की हड्डी की चोट या न्यूरोट्रांसमीटर सुखद यौन प्रक्रिया में बाधक बन सकता है, तो महिलाओं के लिए जननांग की दीवारें इस के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं और कामोत्तेजना में बाधक बन सकती हैं.

शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक पुरुष में संसर्ग सुख तक पहुंचने की क्षमता काफी हद तक उस के अपने शरीर की संरचना पर निर्भर है, जिस का नियंत्रण आसानी से नहीं हो पाता है. इस के लिए पुरुषों में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और शिश्न जिम्मेदार होते हैं.

मैडिसन के इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल और मायो क्सीविक स्थित वैज्ञानिकों ने सैक्सुअल और न्यूरो एनाटोमी से संबंधित संसर्ग के प्रचलित तथ्यों का अध्ययन कर विश्लेषण किया. विश्लेषण के अनुसार,

डा. सीगल बताते हैं, ‘‘पुरुष के अंग के आकार के विपरीत किसी भी स्वस्थ पुरुष में संसर्ग करने की क्षमता काफी हद तक उस के तंत्रिकातंत्र पर निर्भर है. शरीर को नियंत्रित करने वाले तंत्रिकातंत्र और सहानुभूतिक तंत्रिकातंत्र के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए, जो शरीर के भीतर जूझने या स्वच्छंद होने की स्थिति को नियंत्रित करता है.’’

डा. सीगल अपने शोध के आधार पर बताते हैं कि शारीरिक संबंध के दौरान संवेदना मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी द्वारा पहुंचती है और फिर इस के दूसरे छोर को संकेत मिलता है कि आगे क्या करना है. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तेजना 2 तथ्यों पर निर्भर है.

एक मनोवैज्ञानिक और दूसरी शारीरिक, जिस में शिश्न की उत्तेजना प्रत्यक्ष तौर पर बनती है.

इन 2 कारणों में से सामान्य मनोवैज्ञानिक तर्क की मान्यता में पूरी सचाई नहीं है. डा. सीगल का कहना है कि रीढ़ की हड्डी की चोट से शिश्न की उत्तेजना में कमी आने से संसर्ग सुख की प्राप्ति प्रभावित हो जाती है. इसी तरह से मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक समस्याओं में अवसाद आदि से तंत्रिका रसायन में बदलाव आने से संसर्ग और अधिक असहज या कष्टप्रद बन जाता है.

स्त्री की यौन तृप्ति

कोई युवती कितनी कामुक या सैक्स के प्रति उन्मादी हो सकती है? इस के लिए बड़ा सवाल यह है कि उसे यौन तृप्ति किस हद तक कितने समय में मिल पाती है? विश्लेषणों के अनुसार, शोधकर्ता वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ऐसे लोगों को चिकित्सकीय सहायता मिल सकती है और वे सुखद यौन संबंध में बाधक बनने वाली बहुचर्चित भ्रांतियों से बच सकते हैं.

इस शोध में यह भी पाया गया है कि युवतियों के लिए यौन तृप्ति का अनुभव कहीं अधिक जटिल समस्या है. इस बारे में पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप के जरिए युवतियों के अंग की दीवारों में होने वाले बदलावों और असंगत प्रभाव बनने वाली स्थिति का पता लगाया है.

वैज्ञानिकों ने एमआरआई स्कैन के जरिए महिला के दिमाग में संसर्ग के दौरान की  सक्रियता मालूम कर उत्तेजना की समस्या से जूझने वाले पुरुषों को सुझाव दिया है कि वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं. उन्हें सैक्सुअल समस्याओं के निबटारे के लिए डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए, न कि नीम हकीम की सलाह या सुनीसुनाई बातों को महत्त्व देना चाहिए. इस अध्ययन को जर्नल औफ क्लीनिकल एनाटौमी में प्रकाशित किया गया है.

महत्त्वपूर्ण है संसर्ग की शैली

डा. सीगल के अनुसार, महिलाओं के लिए संसर्ग के सिलसिले में अपनाई गई पोजिशन महत्त्वपूर्ण है. विभिन्न सैक्सुअल पोजिशंस के संदर्भ में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में भी पाया गया है कि स्त्री के यौनांग की दीवारों को विभिन्न तरीके से उत्तेजित किया जा सकता है.

आज की भागदौड़भरी जीवनशैली में मानसिक तनाव के साथसाथ शारीरिक अस्वस्थता भी सैक्स जीवन को प्रभावित कर देती है. ऐसे में कोई पुरुष चाहे तो अपनी सैक्स संबंधी समस्याओं को डाक्टरी सलाह के जरिए दूर कर सकता है.

कठिनाई यह है कि ऐसे डाक्टर कम होते हैं और जो प्रचार करते हैं वे दवाएं बेचने के इच्छुक होते हैं, सलाह देने में कम. वैसे, बड़े अस्पतालों में स्किन व वीडी रोग (वैस्कुलर डिजीज) विभाग होता है. अगर कोई युगल किसी सैक्स समस्या से जूझ रहा है तो वह इस विभाग में डाक्टर को दिखा कर सलाह ले सकता है.

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