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KBC 12: क्या लॉकडाउन के बाद छोटे परदे पर लौटेगा अमिताभ बच्चन का ‘कौन बनेगा करोड़पति’?

कोरोना वायरस के चलते सभी टीवी शोज की शूटिंग बंद पड़ी है. जिस वजह से दर्शकों को पुराने टीवी शोज देखकर काम चलाना पड़ रहा है. इसी बीच एक खबर आई है रियलिटी शो कौन बनेगा करोड़पति से जिसे जानकर दर्शक खुशी से झूम उठेंगे.

दरअसल एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह शो जल्द ही रिटर्न आने वाला है. जिससे मालूम पड़ता है कि कोरोनावायरस के खत्म होते ही इस शो की वापसी की तैयारी शुरू की जाएगी.

हालांकि इस बार इस शो के बारे में अमिताभ बच्चन ने कोई अधिकारिक घोषणा अभी तक  नहीं कि है. लॉकडाउन होने की वजह से इस समय कई शोज की टीआरपी कुछ कास कमाल नहीं दिखा पा रही थी. जिसे बंद करके इस शो को लाने की प्लानिंग चल रही है.

 

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” Can we please delete the 2020 year and then reinstall it anew ? This version is with virus !” ~ Ef j

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कोरोनावायरस के बाद से ही लोगों में पुराने टीवी शोज को देखने की होड़ मची हुई है. जैसे दुरदर्शन पर महाभारत औऱ बाकी अन्य टीवी चैनलों पर भी कई पुराने टीवी सीरियल प्रसारित किए जा रहे हैं.

ऐसे में घर पर बैठे दर्शक भी अपना टाइम पास इन सभी सीरियल्स को देखकर कर रहे हैं. घर बैठे मनोरमजन करने का अच्छा तरीका है.

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अब देखना यह है कि इस बार कौन बनेगा करोड़पति सीजन में लोग कितना मनोरंजन करते हैं. वहीं कोरोना की वजह से इन दिनों सभी एक्टर और एक्ट्रेस अपने परिवार के साथ समय बीता रहे हैं.

अगर बात करें अमिताभ बच्चन की तो अमिताभ मुंबई में हैं तो वही पत्नी जया बच्चन दिल्ली में किसी कार्य के लिए  आई थी औऱ यहीं पर फस गई हैं. कुछ दिनों पहले जया बच्चन का जन्मदिन था इस मौके पर वह अपने परिवार के साथ नहीं थी. जिस वजह से बेटे अभिषेक और पति अमिताभ सभी उन्हें काफी मिस कर रहे थें.

लॉकडाउन में विद्या बालन ने शेयर किया कुकिंग वीडियो, बनाए मोदक

अभिनेत्री विद्या बालन जिन्होंने दर्शकों को हमेशा आश्चर्यचकित किया है, इस लॉकडाउन के दौरान भी वे नई खोज कर रही है और सभी को चौंका रही है. हमने पहले विद्या को घर के दिलचस्प काम करते हुए देखा है कि कैसे वह अपने घर को साफ कर रही हैं. विद्या कुकिंगकरने की शौकीन नहीं है और इसलिए वह अच्छी तरह से खाना बनाना नहीं जानती है लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह खाना बनाने की कोशिश कर रही है और उन्हें यह काफी मजेदार लग रहा है.

हमने हाल ही में विद्या बालन को मोदक बनाते देखा है जो उनकी पसंदीदा डिश भी है, और हम कह सकते हैं कि वह इस लॉकडाउन के दौरान निस्संदेह अपने घर में  कुकिंग का आनंद ले रही हैं. विद्या ने कई बार कहा है की उन्हें खाना बनाने में दिलचस्पी नहीं है इसलिए वे खाना बनाना नहीं जानती, लेकिन इस लॉकडाउन के दौरान हमने कई मशहूर हस्तियों को इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खाना बनाते और तस्वीरें पोस्ट करते देखा है.

हमने काफी संख्या में ऐसे अभिनेताओं को देखा है जो पिछले कुछ समय से अपने कुकिंग वीडियो और तस्वीरों को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं और अब हमारे पास हमारी दिवा विद्या बालन हैं जो बहुत ही मजेदार तरीके से हमें मोदक बनाकर दिखाया है और उन्हें अब कुकिंग बहुत पसंद आरही है.

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विद्या ने उल्लासपूर्वक कहा, “मैंने हमेशा खाना पकाने को घरेलु होने के प्रतीक के रूप में देखा, लेकिन लॉकडाउन में यह एक नई खोज है ” विद्या जो की हमेशा महिलाओं की केंद्रित भूमिका निभाने के लिए जानी जाती है और उनकी यह राय थी कि खाना बनाना एक बहुत ही घरेलू भूमिका है और वह इसमें पूरी तरह से फिट नहीं होंगी, लेकिन इस लॉकडाउन ने उन्हें एक नई विशेषता का पता चला और वह अब उसका पूरे दिल से आनंद ले रही है.

विद्या अपनी बहुप्रतीक्षित शकुंतला देवी के साथ अपने दर्शकों के बीच धूम मचाने जा रही है,उम्मीद की जा रही है कि वह लॉकडाउन के बाद स्क्रीन हिट करेगी और साथ ही वह बहुचर्चित फिल्म शेरनी में भी नजर आएगी, जिसमें पहली बार वह एक वन अधिकारी की भूमिका निभाती नजर आएंगी.

गांव के भूमि विवाद को ख़त्म करेगी ‘स्वराज्य योजना’

पंचायती राज दिवस पर  पीएम मोदी आज सुबह 11 बजे देशभर के सरपंचों से वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से संवाद किया और ई -ग्राम स्वराज पोर्टल, मोबाइल ऐप एवं स्वामित्व योजना का शुभारंभ  किया तो आये जानते है गांव के लिए क्या खास है ई -ग्राम स्वराज पोर्टल में. पंचायती राज व्यवस्था के लिए स्वामित्व योजना क्या है और गाँव के भूमि विवाद को ख़त्म करेगी आये जानते है .

क्या है  स्वामित्व योजना ?

 प्रधानमंत्री ने कहा कि गांवों में संपत्ति को लेकर जो स्थिति रहती है वो आप जानते हैं. ‘स्वामित्व योजना’ इसी को ठीक करने का प्रयास है. इसके तहत देश के सभी गांवों में ड्रोन के माध्यम से गांव की हर संपत्ति की मैपिंग की जाएगी. इसके बाद गांव के लोगों को उस संपत्ति का मालिकाना प्रमाणपत्र दिया जाएगा.

* हर संपत्ति का मालिकाना प्रमाणपत्र :- सरकार के एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत की 60% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. ज्यादातर लोगों के पास उनकी संपत्ति के स्वामित्व के दस्तावेज नहीं है. अंग्रेजों के समय से ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनों का बंदोबस्त होता आया है. यही बंदोबस्त ग्राम विवाद का मुख्य कारण होता है. स्वामित्व योजना के माध्यम से ग्रामीणों को उनकी संपत्ति का मालिकाना हक मिल जाएगा. इसके बाद फिर किसी भी प्रकार का विवाद नहीं होगा.

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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गांवों में संपत्ति को लेकर जो स्थिति रहती है वो आप जानते हैं. ‘स्वामित्व योजना’ इसी को ठीक करने का प्रयास है. इसके तहत देश के सभी गांवों में ड्रोन के माध्यम से गांव की हर संपत्ति की मैपिंग की जाएगी. इसके बाद गांव के लोगों को उस संपत्ति का मालिकाना प्रमाणपत्र दिया जाएगा.

* योजना के अनेकों लाभ है :-

1 . ग्राम पंचायत के भूमि विवाद को ख़त्म करने में यह योजना मिल का पत्थर साबित होगी .  इसके मदद से गांव में विकास योजनाओं की प्लानिंग में मदद मिलेगी. साथ ही गांव में संपत्ति को लेकर भ्रम और झगड़े खत्म होंगे .

2 . स्वामित्व योजना के तहत गांवों में ड्रोन से एक-एक संपत्ति की मैपिंग की जाएगी, इससे यहाँ के लोग भी शहरों की तरह इन संपत्तियों पर बैंक से लोन लिया जा सकेगा.

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* 6 राज्यों में ट्रायल के तौर पर शुरू :-  अभी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड में इस योजना को प्रारंभिक तौर पर शुरू कर दिया गया है . इसके बाद देश के सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के सभी गाँव को इस से जोड़ा जायेगा .

 

19 दिन 19टिप्स: फिमेल मास्टरबेशन के हेल्थ बेनिफिट्स, जानें यहां

मास्टरबेशन का नाम सुनते ही ज्यादातर लड़कियां या महिलाएं ‘छीछी’, ‘हाय हाय’, जैसे शब्द कहने लगती हैं. कारण साफ है कि उन के लिए यह किसी पाप से कम नहीं. मास्टरबेशन अर्थात हस्तमैथुन के बारे में हम सभी जानते हैं और इसे बखूबी समझते भी हैं. लेकिन, मास्टरबेशन को हम लड़कों से जोड़ते हैं. अधिकतर लड़कियों के लिए तो वह लड़के ‘ठरकी’ से ज्यादा कुछ नहीं जो मास्टरबेट करते हैं और इस बारे में खुलकर बात करते हैं. मास्टरबेशन ठरक नहीं है, न मास्टरबेट करने वाले लड़कों को ठरकी या परवर्ट कहा जा सकता है और न ही लड़कियों को. क्यों? क्योंकि मास्टरबेशन एक शारीरिक क्रिया है जो व्यक्ति खुद को सेक्सुअली सेटिस्फाइड करने के लिए करता है.

मास्टरबेशन असल में एक नहीं बल्कि कई तरीकों से लड़कियों के लिए फायदेमंद होती है. एक स्टडी के अनुसार मास्टरबेशन सवस्थ होने का एहसास दिलाता है, ओर्गास्म की संभावना बढ़ाता है, रिलेशनशिप और सेक्सुअल सैटिस्फैक्शन में मदद करता है, सेल्फ एस्टीम बढ़ाता है, टेंशन कम करता है जिस से नींद बेहतर आती है, सेक्सुअल टेंशन को कम करता है, मेंस्ट्रुअल क्रैम्प्स को कम करता है, नितम्भ और एनल के आसपास के एरिया की मसल्स को मजबूत बनाता है,  यूरिन लीकेज की संभावना कम करता है और शरीर से समय-समय पर बेकार बैक्टीरियास को बाहर भी निकालता है.

लोगों को लगता है कि लड़कियां मास्टरबैशन इसलिए करतीं हैं क्योंकि वह अपने पार्टनर से असंतुष्ट हैं जबकि सच तो यह है कि मस्टरबैशन आप के रिलेशनशिप को पहले से कही बेहतर बना सकता है. साथ ही यह आप की सेक्सुअल लाइफ को इंट्रेस्टिंग बनाता है जिस से आप अपनी सेक्सुअल लाइफ को अधिक एन्जौय भी करते हैं और आप दोनों को पता भी होता है कि आप को सेक्स के दौरान क्या चाहिए.

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सेक्सुअल सैटिस्फैक्शन है जरूरी

सेक्सुअल सैटिस्फैक्शन उतनी ही जरूरी है जितना सैक्स करना है. सैक्स भी क्रिया ही है, फर्क सिर्फ इतना है कि दो लोग अकसर इसे प्यार का नाम दे कर करते हैं. यही कारण है कि मास्टरबेशन को परवर्ट या ठरकी होने की निशानी मान लिया जाता है और घिन्न भरी नजरों से देखा जाता है. हैरानी की बात तो यह है कि लड़कें बड़े ही इस सोच के साथ होते हैं कि मास्टरबेशन उन के लिए सामान्य क्रिया है जबकि इस के बिलकुल विपरीत लड़कियों के लिए यह किसी टैबू से कम नहीं. यह सचमुच शर्म की बात है क्योंकि मास्टरबेशन लड़कियों के लिए कही ज्यादा फायदेमंद है, और यह विभिन्न तरीकों से स्वास्थ को प्रभावित भी करती है.

फीमेल मास्टरबेशन के हेल्थ बेनिफिट्स

आपने नेटफ्लिक्स पर ‘लस्ट स्टोरीज’ देखी होगी तो शायद इस समय आप के दिमाग में किआरा आडवाणी आ रही होगी जिस के अपने पति से सेकसुअली अनसैटिस्फाइड होने के कारण उस ने वाइब्रेटर का यूज किया और गलती से वाइब्रेटर सब के सामने ओन होने से उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा. लेकिन, अगर वह मास्टरबेशन का सहारा पहले ही ले लेती तो शायद हाल कुछ अलग होते और बेहतर हल भी निकलता. खैर, यह तो मास्टरबेशन का केवल एक उदहारण था कि कैसे मास्टरबेशन की जरूरत हर लड़की को महसूस तो होती है लेकिन समाज का डर, पति या होने वाला पति क्या सोचेगा या फिर ‘यह सही नहीं है’ जैसी चीज़ें उन्हें रोक लेती हैं. वह इस का आनंद उठाना तो दूर की बात है, इस के हेल्थ बेनिफिट्स से भी जीवनभर अंजान रहती हैं.

मास्टरबेशन स्ट्रेस कम करता है

मास्टरबेशन शरीर में डोपामाइन रिलीज करता है जोकि प्लेजर से जुड़ा एक हार्मोन है. साफ़ शब्दों में यह आपको अच्छा महसूस कराता है. आपका मूड ठीक होता है और आपको ख़ुशी का एहसास होता है. साथ ही मास्टरबेशन के दौरान ओर्गास्म तक पहुंचने पर शरीर में औक्सीटोसिन हार्मोन निकलता है जो स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल को कम करता है. खुद को छूने और ओर्गास्म तक पहुंचने पर इन हार्मोन्स का स्त्राव होता है जो स्ट्रेस खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

मास्टरबेशन सैक्स में सहायक

लोगों को लगता है कि लड़कियां मास्टरबेट करने के बाद सैक्स के दौरान ओर्गास्म तक नहीं पहुंचती या फिर वह अच्छा परफार्म नहीं कर पातीं जबकि होता इस से बिलकुल उल्टा है. मास्टरबेट करने वाली लड़कियां अन्य लड़कियों से ज्यादा ओर्गास्म तक पहुंचती है और सैक्स एन्जौय करती हैं जिस का सब से बड़ा कारण यही है कि उन्हें पता होता है कि उन्हें अपने पार्टनर से क्या चाहिए और क्या नहीं.

मेंस्ट्रुएशन में मददगार मास्टरबेशन 

रिसर्च के अनुसार मास्टरबेशन शरीर की कैलोरीज बर्न करता है और साथ ही इम्यून पावर भी बढ़ाता है. इस से मेंस्ट्रुअल या पीरियड क्रैम्स भी कम होते हैं, साथ ही यह नितम्भ की मसल टोन की स्ट्रेंथ भी बढ़ाता है. पीरियड सैक्स की ही तरह पीरियड मास्टरबेशन भी शरीर की सेक्सुअल इंटेंसिटी को बढ़ाता है जिस से पीरियड क्रैम्प्स का दर्द कम लगने लगता है. मास्टरबेशन के दौरान ओर्गास्म मिलने पर एंडोर्फिन हार्मोन रिलीज़ होता है जो शरीर को सुख की अनुभूति कराता है. इस का परिणाम यह निकलता है कि हम शरीर के बाकी दर्द और तकलीफ को भूल जाते हैं (सुनने में बेवकूफी भरा लगता है पर है नहीं).

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मोर मास्टरबेशन, मोर ओर्गास्म

फीमेल मास्टरबेशन का सब से बड़ा बेनिफिट देखा जाए तो वह यह है कि लड़कियों को स्पष्टतौर पर पता होता है कि उन्हें बेहतर ओर्गास्म पाने के लिए खुद को किस तरह छूना है और चरमोत्कर्ष तक पहुंचाना है. वे एक ओर्गास्म के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा ओर्गास्म भी पा सकती हैं. यह तथ्य मास्टरबेशन को नार्मल सैक्स से अलग भी बनाता है और बेहतर भी. तो, मोर मास्टरबेशन का मतलब है मोर ओर्गास्म.

लॉकडाउऩ में बच्चों के लिए ऐसे बनाएं टेस्टी बेक्ड डोनाल्ड

लेखिका- रश्मि देवर्षि

सामग्री-
मैदा 1 कप, चुटकी भर नमक, मिल्क पाउडर 2 छोटी चम्मच, ड्राई यीस्ट 1 छोटी चम्मच, कैस्टर शुगर 4 छोटी चम्मच, बटर 2 छोटी चम्मच, बेकिंग पाउडर 1/2 छोटी चम्मच, गुनगुना पानी 1/2 कप.

ऊपर की कोटिंग की सामग्री-

मेल्टेड चॉकलेट 1/2 कप, आइसिंग शुगर 3 बड़ी चम्मच, पानी 2 छोटी चम्मच, चॉकलेट वर्मीसिली, कलर वर्मीसिली और सिल्वर बॉल्स सजाने के लिए.

विधि-
सबसे पहले एक बड़े बाउल में मैदा, बेकिंग पाउडर, मिल्क पाउडर और नमक को अच्छे से मिला लें, फिर बीच में एक गड्ढा बनाकर ड्राई यीस्ट और कैस्टर शुगर डालकर गुनगुना पानी डालें फिर किनारे से मैदा लेकर यीस्ट को कवर करके 5 मिनट के लिए ढककर रखें, जैसे ही 5 मिनट हो जाये सभी सामग्री को एकसार कर गूंथ लें, फिर बटर डालकर पांच से सात मिनट तक हल्के हाथों से मसल कर ढक दें. इसे एक घंटे के लिए खमीर उठाने के लिए किसी भी गरम जगह पर रखें. जैसे ही आटा डबल हो जाये तो समझें कि डोनट का आटा तैयार है. आटा को एकबार फिर वापस से हल्के हाथों से गूंथ कर लगभग एक सेंटीमीटर की मोटाई की  बड़ी रोटी बेल लें और किसी भी गोल आकार के कटर या कटोरी से एक से आकार के डोनट काट लें. डोनट के बीच में छेद निकालने के लिए केक नोजल के पीछे वाले हिस्से से डोनट के बीच में छोटा छेद कर लें. अब एक बेकिंग ट्रे में बटर पेपर बिछा लें और  इसमें डोनट्स थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रखकर बीस मिनट के लिये एक बार फिर से खमीर उठाने के लिए रखें. जब खमीर उठाने से इनका आकार बड़ा हो जाये तो अवन को 180℃ पर 5 मिनट के लिए प्री-हीट कर लें फिर डोनट ट्रे को 15 से 20 मिनट के लिए बेक करें.  बेक हो जाने के बाद इसे ठंडा होने दें.

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चॉकलेट टॉपिंग के लिए-
ठंडे किये हुए डोनट को पिघली हुई चॉकलेट में एक तरफ से डिप करके प्लेट में रखते हुए ऊपर से चॉकलेट वर्मीसिली, सिल्वर बॉल्स से सजाएं और चॉकलेट के सेट होने तक फ़्रिज में रखें.

आइसिंग शुगर टॉपिंग के लिए-
एक बाउल में आइसिंग शुगर और पानी डालकर मिलायें और डोनट लेकर इसके ऊपरी भाग को आइसिंग शुगर में डिप करें और फिर सीधा कर प्लेट पर रखकर रंगीन चॉकलेट बॉल्स से सजाएं और आइसिंग शुगर को सेट होने तक फ्रिज में रखें.

19 दिन 19 टिप्स: जब पत्नी किसी और को चाहने लगे

पतियों के दिलफेंक किस्से किस ने नहीं सुने. लोग आसानी से कह देते हैं कि मर्दों की तो फितरत ही ऐसी होती है. लेकिन ऐसा कोई किस्सा किसी पत्नी के बारे में हो तो? ऐसे में पति की क्या हालत होगी? लगेगा, जैसे सबकुछ खत्म हो गया. गुस्सा, विश्वासघात की भावना आम बात है. शादी की बुनियाद ही हिल जाएगी. पहला खयाल जो मन में आएगा वह होगा कि इस रिश्ते को फौरन तोड़ डाले. फिर दूसरा खयाल आएगा कि पत्नी से जवाबतलब करे, इस उम्मीद में कि वह रो पड़ेगी, पैरों में गिर कर माफी मांगेगी, कहेगी कि मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. आइंदा ऐसा कभी नहीं होगा.

लेकिन क्या हो अगर ऐसा न हो कर ठीक इस की उलटी हालत पैदा हो जाए? पत्नी का किसी से अफेयर हो जाए और छूटे ही नहीं. वह लुकछिप कर अपने प्रेमी से मिलती रहे, पति की नजर बचा कर प्रेमी को मैसेज भेजती रहे, मुसकरा कर टैक्स्ट लिखती रहे और जब पति कमरे में आए तो झट से फोन औफ कर दे, मोबाइल से अपनी कौल हिस्ट्री डिलीट करती रहे, पासवर्ड शेयर करने से मना कर दे और कारण पूछने पर उलटा पति पर ही हावी हो जाए कि तुम्हें मुझ पर विश्वास करना होगा.

लेकिन पत्नी का विश्वास न करने देने योग्य व्यवहार पति को यकीन न करने दे तो? अकसर लोग इसे कलियुगी श्राप कहने से बाज नहीं आते. इस संबंध में सभी द्रौपदी की बात करते हैं. परंतु अहल्या की कथा भी यही कहती है.

गौतम ऋषि की पत्नी पर इंद्र का दिल आ गया और वे ऋषि गौतम का रूप धर कर अहल्या के करीब आए. अहल्या पहचान गई कि ये उस के पति नहीं हैं किंतु उस ने खुद को रोका नहीं. एक और कथा के अनुसार, राजा पांडु की दोनों पत्नियों कुंती और मांडवी ने अलगअलग देवों से पुत्र प्राप्त किए. राजा पांडु ने एक जगह कहा है कि पहले स्त्रियां केवल अपने पति के साथ ही नहीं, बल्कि घर से बाहर भी रिश्ते कायम करने को स्वतंत्र थीं. स्त्री का पतिव्रता होना बाद में परंपरा बनी.

लाइफ कोच डा. रमौन लांबा कहती हैं, ‘‘स्त्री और पुरुष का नजरिया काफी अलग होता है. मर्दों के लिए सैक्स और प्यार 2 अलग बातें हैं. वहीं औरतों के लिए सैक्स और प्यार के तार आपस में उलझे होते हैं. इसलिए स्त्रियों के अफेयर भावनात्मक होते हैं. उन से छूट पाना महिलाओं के लिए आसान नहीं होता.’’

अनुजा (बदला हुआ नाम) बताती हैं, ‘‘हमें सभी ‘मेड फौर ईच अदर’ पुकारते थे. लेकिन जिंदगी के रोजमर्रा के एक ही तरह के ढंग ने मुझे इतना बोर कर दिया कि मुझे एक छोटा सा फ्ंिलग करने में कोई हर्ज नहीं लगा. मुझे लगा मैं फ्रेश हो जाऊंगी और मेरी शादीशुदा जिंदगी पर कोई आंच नहीं आएगी. इस ऐक्सट्रा मैरिटल रिश्ते ने मुझे वह खुशी दी जो सालों की दिनचर्या में कहीं खो गई थी.’’

दरअसल, एक ही साथी के संग, रोज वही जिंदगी जीते हुए जो आपसी आकर्षण, कुछ नया कर पाने की इच्छा, बेहतरीन सैक्स छूट जाता है, वे ऐसे रिश्तों से अकसर वापस मिल जाता है. ऊपर से चोरीछिपे होने के कारण थ्रिल अलग. एक इंसान के साथ लंबा पड़ाव पार करने पर उस की क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं, यहां तक की सैक्स में भी पूर्वानुमेय होने के कारण जीवन कुछ नीरस हो जाता है. ऐसे में ऐक्सट्रा मैरिटल रिश्ते एक ताजी हवा के झोंके की तरह आते हैं.

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इस्थेर पेरेल, प्रसिद्ध लेखिका और थेरैपिस्ट, बिलकुल सही कहती हैं कि अकसर लोग ऐक्स्ट्रा मैरिटल रिश्ते में सैक्सुअल भावनाओं, हम मनुष्यों के लिए सब से तीव्र भावनाएं होती हैं जोकि अफेयर की पूरी गति ही पलट डालती हैं, को समझने से पहले ही उस की चपेट में आ चुके होते हैं और फिर पता भी नहीं चलता कि कब यह हलकाफुलका अफेयर हमारे जी का जंजाल बन बैठता है. परिवार पर इस का असर पड़ता है, सो अलग.

कुछ सवाल जो पति महोदय की नींद उड़ा सकते हैं.

–     अब मैं क्या करूं?

–     यह किस को मैसेज करती रहती है?

–     क्या उस की सोशल साइट्स को हैक करवाऊं?

–     पत्नी मुझ से दूर क्यों रहने लगी है?

–     पत्नी की बेवफाई का अर्थ, मैं नाकाम पति हूं?

अलग कपल, अलग प्रतिक्रिया

मोहित को जब इंद्रा के अफेयर के बारे में पता चला तो उस ने फौरन अपनी पत्नी से पूछताछ की. लेकिन इंद्रा का रवैया देख वह सोच में पड़ गया, ‘आखिर इंद्रा भी मेरी तरह इंसान है. मैं अपने व्यापार में इतना बिजी हो गया था कि वह अकेली पड़ गई. वह पहले की तरह साथ चाहती थी, प्यार चाहती थी…’ मोहित ने शादी को प्रैक्टिस ग्राउंड मान कर अपने अंदर उन कमियों को तलाशा जिन के कारण इंद्रा किसी और की तरफ आकर्षित हुई, और उन कमियों को दूर करने की ठान ली.

दूसरी ओर सुमित को जब अपनी पत्नी के अफेयर की जानकारी मिली तो उस का पारा सातवें आसमान से भी पार चला गया. वह पत्नी, जो सिर्फ उस की थी, उस पर किसी और का हक उसे बरदाश्त न हुआ. अपनी पुस्तक ‘स्ट्रेट टौक टूल्स फौर डेस्परेट हस्बैंड’ में स्टीव होरस्मन बताते हैं कि पुरुषों को अपनी पत्नी पर हक की भावना होती है. उस के अंग, जिन पर अब तक पति का एकाधिकार था, किसी और की नजर और छुअन उस से सहन नहीं होती. जलन वह असुरक्षा की भावना है जो नियंत्रण के अभाव में जन्म लेती है.

स्टीव की मानें तो मोहित का रिस्पौंस सुमित से बेहतर है. इस तरह आप अपना रिश्ता बचा सकते हैं. उस की कमियां दूर कर प्यार और सम्मान दोनों पा सकते हैं.

ऋषि ने नया ही पैतरा आजमाया. उस ने अपनी पत्नी नेहा से खुल कर बात की. साफतौर पर कहा कि वह खुद भी इस रिश्ते में एक बंधन, एक अलगाव की भावना महसूस कर रहा है. उस को नेहा के हर समय फोन पर टैक्स्ट करते रहने, किसी और खयाल में गुम रहने पर कोई आपत्ति नहीं है. और यदि नेहा किसी से अफेयर के बारे में विचाराधीन है तो ऋ षि खुद भी ऐसा ही कुछ सोच रहा है. ‘चूंकि अब हमारे बीच वह बात नहीं रही, तो मैं तुम्हें कोई दोष नहीं दूंगा.’ साथ ही यह भी कह दिया कि वह अकेले ही मूवी देखने जा रहा है. नेहा का अचंभित हो उठना स्वाभाविक था. ‘क्या बेकार की बात कर रहे हो,’ कहते हुए वह ऋ षि की बेबाकी पर एक बार फिर फिदा हो उठी.

ग्लोबल मैरिज ऐक्सपर्ट मोर्ट फर्टेल कहते हैं कि हर कपल अलग होता है, और उस की प्रतिक्रिया भी अलग होती है. जब तक आप उस स्थिति का शिकार नहीं हैं, आप यकीन से नहीं कह सकते कि आप का रीऐक्शन क्या होगा.

मैरिज फिटनैस के लेखक रह चुके फर्टेल का मानना है, ‘‘चाहे कोई यह सोचे कि चीटिंग करते हुए पकड़े जाने पर वह अपने पार्टनर को कभी क्षमा नहीं करेगा, परंतु असली प्रतिक्रिया स्थिति उत्पन्न होने पर ही पता चलती है. अकसर लोग ऐसे में अपने पार्टनर को माफ कर, उस के साथ आगे की जिंदगी बिताना चाहते हैं. इस का यह मतलब कतई नहीं कि माफ कर देने वाला पार्टनर कमजोर है या कम मर्दाना है. ज्यादातर लोग किस में उन का अधिक फायदा है, उसे तोल कर फैसला लेते हैं. बहुत सारी झंझटों, जैसे कोर्टकचहरी के चक्कर, वकीलों की फीस, बच्चों का साथ छूटना, बीवी को एलिमनी देना, घरगृहस्थी का कामकाज आदि में फंसने से अच्छा कई बार बेवफा साथी को माफ कर देना आसान होता है.’’

क्या कहते हैं काउंसलर्स

काउंसलिंग साइकोलौजिस्ट डा. राशि आहूजा कहती हैं, ‘‘हर रिश्ते का हनीमून पीरियड होता है, जिस में दोनों पक्ष चाहत में मजबूत, प्यार में डूबे, एकदूसरे में खोए रहते हैं. लेकिन हनीमून पीरियड खत्म होते ही वह रिश्ता बोर लगने लगता है. यही ऐक्सट्रा मैरिटल रिश्तों की भी सचाई है.’’

इसीलिए, मोर्ट फर्टेल सुझाते हैं कि यदि आप अपनी पत्नी से प्यार करते हैं तो उस का अफेयर पता चलने पर उस से रिश्ता तोड़ने से पहले पत्नी को लौटने का समय दें.

स्टीव होरस्मन पहले यह जानना चाहते हैं कि पत्नी शादी में रहना चाहती है या नहीं. जबरदस्ती के रिश्ते की उम्र नहीं होती. यदि पत्नी एक बार नए सिरे से रिश्ता सुधारना चाहती है तब अफेयर को भुला कर आगे बढ़ा जा सकता है.

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कपल्स थेरैपी है मददगार

इस में संशय नहीं कि प्यार में धोखा खाया पति काफी डिस्टर्र्ब हो उठेगा. अधिकतर इस का निष्कर्ष तलाक ही निकलता है. धोखा खाए पार्टनर का धोखा देने वाले पार्टनर पर फिर विश्वास करना मुश्किल होता है. लेकिन इस मुश्किल राह पर चलने के लिए कपल्स थेरैपी बहुत मदद करती है. कपल्स थेरैपी में सब से पहले इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ा जाता है कि रिश्ते में ऐसी गलती क्यों हुई.

यह प्रश्न कई अन्य तरह की प्रश्नोत्तरी को जन्म देगा. रिश्ते की बुनियाद फिर से बनाने, और रिश्ते में फैल गई गंदगी को साफ करने के लिए यह आवश्यक है. यह तो तय है कि रिश्ते को वापस पहले की तरह बनने में समय लगेगा.

जब तक मन में क्षमाभाव और रिश्ते को बनाने की प्रतिबद्धता नहीं होगी, तब तक टूटा हुआ विश्वास फिर से नहीं पनपेगा. कपल्स थेरैपी से कई जोड़ों ने लाभ उठाया है. उन का रिश्ता न केवल वापस जुड़ गया, बल्कि इस बार पहले से भी मजबूत जुड़ा.

कोरोना वायरस से भी खतरनाक है साम्प्रदायिकता का वायरस

कोरोना नहीं हिन्दू मुस्लिम से लड़ रहा देश सोशल मीडिया के मैसेजो से बिगड़ा माहौल सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा एक मैसेजसरकार से मेरा आग्रह है कि…

खाने-पीने की वस्तुओं जैसे सब्जी, फल, नमकीन, जूस, कुल्फी, चाट, मौसमी खाद्य पेय आदि सामग्री को बेचने वाली चलती फिरती दुकानों, हाथ ठेलों, फेरी वालों जैसी अस्थाई दुकानों पर सामग्री विक्रेता का पूरा वास्तविक नाम, मोबाइल नंबर, पता स्पष्ट व बड़े अक्षरों में लिखा हुआ फ्लेक्स प्रिंट बैनर या बोर्ड लगाया जाना अनिवार्य होना चाहिए तथा वह जिस थाना क्षेत्र में सामान बेच रहा है वहां से सत्यापित प्रपत्र उसके गले में लटका होना चाहिये ताकि खरीदार को जानकारी हो कि उसने खाने का कौन सा सामान किससे लिया है या खायापिया है। यह जानना प्रत्येक क्रेता का मौलिक अधिकार भी है

चूंकि ऐसे विक्रेता अस्थाई होते हैं इनका कोई पता ठिकाना नहीं रहता अतः खाने पीने कि कोई वस्तु को लेकर मिलावट या बीमारी का अंदेशा होने पर व्यक्ति विशेष के बारे में जानकारी हासिल करना सरकार के लिए मददगार होगा. वर्तमान परिदृश्य में संक्रमण की स्थिति में इसे लागू किया जाना अब अतिआवश्यक प्रतीत हो रहा है.

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सोशल मीडिया पर इस तरह के मैसेज बडी तेजी से फैल रहे है. यह केवल वायरल मेसजे ही नही है यह समाज पर बहुत असर डाल रहे है. असल मे ऐसे मेसजे का उद्देश्य केवल धार्मिक भेदभाव फैलाना होता है.यह राजनीतिक और सामाजिक ताकतों के द्वारा समर्थित भी होते है.

सोशल मीडिया के भ्रम से बढ़ी समाज मे दूरी

लखनऊ में सब्जी बेचने वाले एक विक्रेता ने अपना हिंदू नाम रख लिया. इस बात की जानकारी वँहा रहने वॉले कुछ लोगो को लग गई. इसके बाद वह लोग सब्जी विक्रेता से अपना आधारकार्ड दिखाने की बात करने लगें. पूरा मोहल्ला वँहा इकट्ठा हो गया। सब्जी वॉले ने आधार कार्ड तो नही दिखाया पर अपना असल नाम बता कर माफी मांग ली और वँहा से चला गया.

केवल लखनऊ की ही घटना नहीं है. देश के कई अलग हिस्सों में लोक डाउन के दौरान इस तरह के मामले देंखने को मिले. दिल्ली मुम्बई जैसे बड़े शहर भी इससे अलग नहीं हो सके. कुछ शहरों में  सब्जी बेचने और फेरी लगाने वालों ने अपनी दुकानों या ठेलों पर इस तरह के झंडे लागये जिससे वो देंखने में हिन्दू लगे.

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मुंबई में एक डिलीवरी बॉय से जब गेट पर उसका नाम पूछ कर और उसे मुस्लिम समुदाय से जानकर सामान लेने से मना कर दिया गया तो उसने शिकायत दर्ज कराई. जिस पर सामान लेने से मना करने वाले ने कहा कि उसे सोशल मीडिया के मैसेज से यह पता चलता है को कोरोना फैलाने में यह लोग बड़ा माध्यम है. कोरोना संक्रमित लोगो मे बड़ी तादाद ऐसे लोगो की है.

कोरोना और जमात का गठजोड

वैसे तो कोरोना किसी भी तरह से जाति, धर्म और मजहब देख कर नही आता. दिल्ली में जमात के कार्यक्रम में कोरोना संक्रमित लोगो का पता चलते ही ऐसा प्रचारित किया गया जैसे जमात के लोगो ने पूरे देश मे कोरोनो फैलाया है. इसमे सोशल मीडिया के साथ ही साथ मीडिया, राजनीतिक दलों और सामाजिक लोगो का भी बड़ा हाथ रहा है.

कोंग्रेस नेता सोनिया गांधी ने कहा “जब देश को एकजुट हो कर कोरोना के खिलाफ लड़ना था तब भी वह नफरत फैलाने का काम कर रही थी.” भाजपा नेता मुख़्तार अब्बास नकवी ने कहा कि “केवल जमात में शामिल कुछ लोगो की वजह से पूरे समुदाय को जिम्मेदार ठहराया जाना उचित नही है”

ऐसे नेताओ की आवाज या तो बहुत धीमी है या फिर यह आवाज बहुत देर से उठी. क्योकि समाज मे बहुसंख्यक लोगो के मन मे बैठ चुकी है कि जमात के कारण ही कोरोना कंट्रोल में नही आ रहा.

भ्रंतियो का समाज पर प्रभाव :

सोशल मीडिया पर वायरल हुए मैसेज और उनको समाज से जिस तरह से समर्थन मिल रहा है वो अपने आप मे समाज मे आपसी दूरी फैलाने वाला है.  सोशल मीडिया पर यह मैसेज भी बहुत तेजी से फैलाया गया कि जमात के लोग इधर उधर थूक कर कोरोना के वायरस को फैलाने का काम कर रहे है.

यही नहीं कई जगहों पर यह मैसेज भी वायरल हुए कि कुछ लोग उनके घरों के सामने 5 सौ रुपये के नोट गिरा दे रहे जिससे कोई उठा कर ले जाये तो उसके घर तक कोरोना के वायरस पहुँच जाए.

कुछ लोगों ने यह शिकायतें भी की कि उनके घरों के बाहर लगे गेट को छू कर कुछ खास किस्म के लोग  कोरोना वायरस फैलाने का प्रयास कर रहे है.इन लोगों ने यह बताने का प्रयास किया कि जैसे यह किसी खास धर्म के लोगों द्वारा किया जा रहा है.

इसके पीछे की वजह यह थी कि कुछ गरीब किस्म के लोग लॉक डाउन के समय खाने की तलाश में कालोनियों में बने घरो की तरफ जाते थे. इनमे से सबसे बड़ी तादाद बांग्लादेशी लोगो की थी. इनको अपने गेट के पास आया देख कर लोगो को यह लगा की शायद कोई उनके गेट को छू कर कोरोना वायरस को फैला रहा है. यह बातें भी एक जगह से दुसरी जगह पहुची। जिसकी वजह से एक बार फिर सम्प्रदाय विशेष के लोग निशाने पर आ गए.

लखनऊ में ऐसी शिकायतों पर नगर निगम के द्वारा ऐसे लोगों के घरों को सेनेटाइज भी कराना पड़ा. इन लोगों ने अपनी बातों को सोशल मीडिया पर लिखा जिससे यह बात तेजी से एक जगह से दूसरी जगह फैली और कई जगहों पर इससे जुड़े विवाद भी शुरू हो गए. लखनऊ के ही पीजीआई थाना अंतर्गत एक कॉलोनी में थूकने की शिकायत को लेकर पहले कुछ लोगों ने कॉलोनी  के एक रास्ते को बांस की बल्लियों से  बंद कर दिया बाद में जब दूसरे वर्ग ने आपत्ति दर्ज कराई तो उनके खिलाफ जबरन थूकने का मुकदमा दिखाने का प्रयास किया गया.

पान और पान मसाले की पीक पर मौन

एक तरफ थूकने को लेकर  जगह-जगह विवाद हो रहा है दूसरी तरफ प्रदेश में पान मसाला और गुटका बंद होने के बाद भी इसको खाने और थूकने का काम जारी है. लोग इसको खा भी रहे हैं और जगह-जगह थूक भी रहे है. ऐसे लोगों के खिलाफ किसी भी तरीके का ना कोई विरोध दर्ज करता  है और ना ही इनको कोई रोकता है. इसका मतलब है की  थूकने पर रोक केवल एक धर्म विशेष के लोगों को लेकर ही है.अगर थूकने से कोरोना के फैलने का खतरा रोकना होता तो पान और गुटका खाने वालों को भी रोका जाता.

राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को लेकर जिस तरीके से जनता के बीच दूरियां बढाते आये है उसके चलते आज के दौर में इस तरह की अफवाहों को फैलाना और सरल हो जाता है. समाज में एक का दूसरे वर्ग पर भरोसा होता जा रहा है. हर किसी को दूसरे वर्ग से खतरा नजर आने लगा है. राजनीतिक दलों की नजर में यही उनकी सफलता है और यही  बैंक वोट बैंक है.देश मे कोरोना की लड़ाई से अधिक अपने दल की मजबूती और अपने दल में नेता की तरीफ जिस तरह से चल रही उसके पीछे की वजह यह है कि कोरोना को लेकर केंद्र सरकार की नीतियों की असफलता पर सवाल ना किये जायें.

आईटी सेल जिम्मेदार :

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं ऐसे मैसेजो के पीछे विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए प्रचार करने वाले लोग और बड़ी संख्या में खुली आईटी सेल जिम्मेदार है.इसके साथ ही साथ इन लोगो के कट्टर समर्थक भी जिम्मेदार है.  यही नहीं सामाजिक तौर पर भी सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो केवल भ्रांतियां फैलाने का काम कर रहे है.वह अपने-अपने ढंग से और अपने अपने लोगों को खुश रखने के लिए ही ऐसे मैसेज कर रहे हैं जिनसे समाज में एक दूरी पैदा हो रही है. इससे आपसी मेलजोल और  सामंजस्य भी खत्म हो रहा है.हो सकता है कि कोरोना कुछ समय बाद खत्म हो जाए परन्तु इस दौरान जो आपसी सामंजस खत्म हुआ है वह दोबारा कायम हो पाएगा यह संभव नहीं लगता है.

19 दिन 19 कहानियां: डोर से कटी पतंग- भाग 1

लेखक- अलंकृत कश्यप

18 अक्तूबर, 2019 को करवाचौथ था. खुशी उर्फ मोहसिना बानो ने भी पहली बार व्रत रखा था. मोहसिना बानो मुसलिम थी. उस ने अपनी मरजी से महेंद्र को पति के रूप में चुना था. चूंकि उस ने महेंद्र से शादी कर ली थी, इसलिए अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. महेंद्र से शादी के बाद वह लखनऊ के थाना सरोजनी नगर क्षेत्र के गांव दादूपुर की नई कालोनी में रहने लगी थी.

पति की दीर्घायु के लिए उस ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा था. पड़ोसी महिलाओं से पूछ कर उस ने दिन में पूजा वगैरह भी की थी.

लाल रंग के जोड़े में सजनेसंवरने के बाद उस ने अपने पैरों में महावर लगाई, मांग में गहरे लाल रंग का सिंदूर भरा. साजशृंगार के बाद वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

शाम के 7 बज चुके थे लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा था. भूखे पेट रह कर उस ने महेंद्र का मनपसंद खाना भी बना लिया था. उसे महेंद्र के लौटने का इंतजार था ताकि चंद्रमा निकलने पर वह अर्ध्य दे सके. खुशी मन ही मन काफी उल्लासित थी.

उस ने कई बार महेंद्र को फोन किया, लेकिन बात नहीं हो पाई. शाम को 5 बजे भी उस ने काल रिसीव नहीं की. पति के फोन न उठाने पर खुशी को बहुत गुस्सा आया. काफी देर बाद महेंद्र ने उस की काल रिसीव की तो खुशी ने इतना ही कहा कि तुम घर जल्दी आ जाओ. मैं इंतजार कर रही हूं. इतना कह कर खुशी ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

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चंद्रमा निकल आया, लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा. पड़ोस की सभी महिलाएं अपनेअपने पति को देख कर चंद्रमा को अर्घ्य दे रही थीं. लेकिन खुशी पति के न आने से परेशान थी. वह खुशी की काल भी रिसीव नहीं कर रहा था. खुशी सोचसोच कर परेशान थी कि कम से कम आज पूजा के समय तो उन्हें घर पर होना चािहए था.

चंद्रमा निकलने के 2 घंटे बाद भी महेंद्र घर नहीं लौटा तो खुशी ने उसे गुस्से में वाट्सऐप मैसेज भेजे, उन का भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रात करीब 12 बजे महेंद्र घर लौटा तो वह इस स्थिति में नहीं था कि पत्नी खुशी से कुछ कह सके.

अगले दिन लखनऊ के ही थाना बंथरा के निकटवर्ती जंगल में पुराहीखेड़ा से नरेरा गांव की तरफ जाने वाले रास्ते पर लोगों ने सुबहसुबह एक युवती का शव पड़ा देखा. शव खेत की सिंचाई के लिए बनाई गई नाली में अर्द्ध नग्नावस्था में था. किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना पा कर थाना बंथरा के थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत अपने साथ इंसपेक्टर (क्राइम) प्रहलाद सिंह, एसएसआई शिव प्रताप सिंह, एसआई अरुण प्रताप सरोज, सिपाही जी.एल. सोनकर, हैडकांस्टेबल अरविंद कुमार और अविनाश चौरसिया को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस ने घटना स्थल का निरीक्षण किया तो देखा,युवती के हाथपैरों में महावर और मेहंदी लगी थी. उस का चेहरा थोड़ा सा झुलसा हुआ था. मेहंदी रची हथेली पर ‘एम’ लिखा हुआ था. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर था. घटनास्थल पर शव के पास नीले रंग की पालीथिन में एसिड की 3 खाली शीशियां मिली थीं, जिन में से एक शीशी में बचा हुआ थोड़ा सा एसिड था.

लाश के पास ही नीले रंग का एक पर्स भी पड़ा मिला. पर्स की तलाशी ली गई तो उस में एक मोबाइल फोन मिला. पुलिस ने मौके पर मिला फोन और शीशियां अपने कब्जे में ले लीं.

निरीक्षण में पुलिस को युवती के गले पर किसी चीज के कसने के गहरे निशान दिखे. नाक से खून रिस कर सूख चुका था. उस के पैरों में न तो पायल थीं न ही बिछिया. नाक में सोने का एक फूल जरूर नजर आ रहा था. पुलिस ने वहां जमा भीड़ से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवती शायद कहीं बाहर की रहने वाली रही होगी. उस की हत्या कहीं और कर, शव यहां ला कर फेंक दिया है.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने महिला की बरामद की गई लाश के फोटो जिले के सभी थानों में भेजने के अलावा वाट्सऐप पर डाल दिए ताकि उस की शिनाख्त हो सके. इस के अलावा अज्ञात महिला की लाश बरामद करने की सूचना समाचारपत्रों में भी प्रकाशित करा दी.

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22 अक्तूबर, 2019 को 2 व्यक्ति थाना बंथरा पहुंचे. थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने उन से पूछा तो उन में एक व्यक्ति ने अपना नाम मुश्ताक अहमद बताया. वह गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर, जिला अमेठी का रहने वाला था. उस ने अखबार में छपी युवती की तसवीर दिखाते हुए बताया कि ये जो फोटो छपी है, मेरी बेटी मोहसिना बानो (27) की है.

मुश्ताक अहमद ने आगे बताया कि करीब 8 साल पहले उस ने मोहसिना बानो का निकाह अपने गांव के ही मोहम्मद नसीम के साथ किया था. निकाह के बाद वह अपने शौहर के साथ मुंबई में रहने लगी थी. अब से करीब 4 महीने पहले मोहसिना मुंबई से कहीं गायब हो गई थी.

हम सब ने उसे काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. जब उस की कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो दामाद मोहम्मद नसीम ने 29 जून, 2019 को पवई (मुंबई) थाने में मोहसिना के गुम होने की सूचना लिखाई थी.

मुश्ताक ने आगे बताया कि साथ आए मेरे भतीजे अरमान ने अखबार में छपी तसवीर पहचानी तो हम लोग यहां आए. मुझे विश्वास है कि मोहसिना मुंबई से जिस व्यक्ति के साथ भागी थी, उसी ने उस की हत्या कर लाश खेतों में डाली होगी.

थानाप्रभारी ने मुश्ताक अहमद को मोर्चरी ले जा कर लाश दिखाई तो उस ने लाश की शिनाख्त अपनी बेटी मोहसिना के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने मुश्ताक की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज हो गया तो थानाप्रभारी ने खुद ही इस केस की जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उस की ज्यादा बातें महेंद्र से होती थीं. महेंद्र भेलपुर कालोनी (जगदीशपुर) का रहने वाला था. पुलिस ने महेंद्र के बारे में पूछताछ की तो पता चला वह मोहसिना का पति था.

उसी के साथ मोहसिना मुंबई से भाग कर आई थी और अपना नाम खुशी रख कर उसी के साथ रह रही थी. महेंद्र भी शादीशुदा था. उस की पहली पत्नी गांव में रहती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने महेंद्र की काल डिटेल्स देखी तो पता चला कि संदीप नाम के युवक से महेंद्र की अकसर बातें होती थीं. जांच करने पर पता चला कि संदीप अमेठी जिले के गांव नियावा का रहने वाला था, जो महेंद्र की बोलेरो चलाता था.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद ही जांच आगे बढ़ सकती थी. लिहाजा पुलिस ने इन दोनों की तलाश शुरू कर दी. दोनों में से कोई भी घर पर नहीं मिला तो उन की खोजखबर के लिए मुखबिर लगा दिए गए. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 24 अक्तूबर, 2019 को रात करीब 12 बजे दोनों को दादूपुर गांव के शराब ठेके के पास से हिरासत में ले लिया.

महेंद्र और संदीप से मोहसिना के बारे में पूछताछ की गई तो महेंद्र ने बताया कि उस ने मोहसिना की हत्या नहीं की थी. करवाचौथ वाली रात को जब वह घर पहुंचा तो वह मृत अवस्था में थी. उस ने तो उस की लाश केवल ठिकाने लगाई थी. दोनों से विस्तार से पूछताछ के बाद मोहसिना की मौत की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी.

मोेहसिना बानो जनपद अमेठी के गांव हामी का पुरवा, जगदीशपुरके रहने वाले मुश्ताक अहमद की बेटी थी. मोहसिना अपने परिवार में सब से बड़ी थी.

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उस के अलावा उस की 2 बहनें व एक भाई और था. मोहसिना आधुनिक विचारों की महत्त्वाकांक्षी युवती थी. वह बहुत चतुर दिमाग की थी. घर के रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद वह वाट्सऐप व फेसबुक पर लगी रहती थी.

फेसबुक पर नएनए लोगों से दोस्ती कर के उन से घंटों बातें करना उस का शगल बन गया था. कभीकभी तो वह किसी से फोन पर घंटों बातें किया करती थी. एक दिन उस की अम्मी नूरजहां ने उस की फोन पर हो रही रोमांस भरी बातें सुन लीं.

तब उन्होंने झल्लाते हुए मोहसिना को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘तुझे दीनमजहब की बातों का बिलकुल डर नहीं है. पता नहीं किसकिस से बतियाती रहती है. तेरी यह बातें ठीक नहीं हैं, इन बातों से बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलता.’’

एक दिन यह बात नूरजहां ने अपने पति मुश्ताक अहमद को बताई और कहा कि मोहसिना के लिए अब कोई लड़का देख लो. कहीं ऐसा न हो कि हम हाथ मलते ही रह जाएं.

पत्नी की बात सुन कर मुश्ताक अहमद की चिंता बढ़ गई. वह मोहसिना के लिए लड़का देखने लगे. इसी दौरान मुश्ताक के भतीजे अरमान ने अपने खानदानी भाई नसीम के बारे में चर्चा की. नसीम मुंबई में रहता था.

इस के बाद मुश्ताक ने नसीम के पिता सुलेमान से बात की. बात परिवार की थी, इसलिए सुलेमान मोहसिना के साथ बेटे का विवाह करने के लिए तैयार हो गए. सामाजिक रीतिरिवाज से सन 2011 में मोहसिना का निकाह नसीम से कर दिया गया.

शादी के कुछ दिनों बाद नसीम मोहसिना को अपने साथ मुंबई ले गया. वह मुंबई के पवई इलाके में रहता था. मोहसिना मुंबई क्या पहुंची, जैसे उसे खुशियों का जहां मिल गया.

उस ने शौहर नसीम के साथ अपनी जिंदगी के 8 साल हंसीखुशी से बिता दिए. इस दौरान वह 3 बेटों की मां बन गई. मुंबई में रह कर वह पूरी तरह आजाद हो गई. नसीम के काम पर चले जाने के बाद वह सैरसपाटा करने निकल जाती और शाम को वापस लौटती.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अपने पत्रकार होने पर शर्मिंदगी

ज्यादा नहीं कोई 6-7 महीने पहले की बात है, देर रात एक प्रोफेसर मित्र ने फोन पर बताया था फलां चैनल देखो नवकंज लोचन कंजमुख कर…… की तर्ज पर एक नया भक्त पत्रकार अवतरित हुआ है. क्या हाहाकारी तेवर हैं उसके देखना पट्ठा दूसरे चमचों से पहले पद्म पुरुस्कार ले जाएगा.

यूं आमतौर पर मैं टीवी नहीं देखता न्यूज़ चेनल्स तो बिलकुल नहीं, लेकिन प्रोफेसर के कहने या बताने का अंदाज अलग था. ठीक वैसे ही जैसे एक शौकीन दूसरे को बता रहा हो कि मीना बाजार में एक नई जवान हसीन तवायफ आई है. क्या जलवे और हुस्न है उसका, नाचती है तो देखते ही बनते है.

मैंने 2-3 मिनिट उस भक्त चैनल के अधेड़ होते उस श्रद्धावान युवा एंकर के लटके झटके देखे और समझ गया कि भगवा गैंग ने नया पीआरओ या सेल्समेन रख लिया है क्योंकि पुरानों के चहेते कम हो रहे हैं, उनका पत्रकारीय यौवन ढलने लगा है. इसलिए अच्छा किया नया रख लिया इससे मीडिया का बाजार भी गुलजार रहेगा और 4-5 करोड़ भक्तों को भी नयापन दिखता रहेगा.

फिर एक दिन किसी ने बताया कि वह साढ़े तीन लाख रु लेता है एक दिन के, इस बार की आवाज में भी वही कोठों और तवायफ़ों सरीखी गंध और खनक थी कि कोई ऐसी वैसी बाई जी नहीं हैं वे एक मुजरे के लाखों लेती हैं.

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फिर आज सुना कि उसने पद्म पुरुस्कार न मिलने के गम या खीझ में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी है जिस पर कोई दर्जन भर एफआईआर देश भर में दर्ज हुई हैं. एक अपरिपक्व और आक्रोशित पत्रकार अतिरेक उत्साह में इससे ज्यादा भी बहुत कुछ कर सकता है पर इतने से ही उसकी निष्ठा का नवीनीकरण हो गया कि उसे माँ बहिन की गालियां देने के गुनाह से उसके ही भगवा भगवानों ने बचा लिया. यह बात जरूर शुक्र की है .

जाने क्यों मुझे अपने पत्रकार होने पर शर्म हो आई. एक ग्लानि, क्षोभ, अपराधबोध, होने लगा कि कल का वो गला फाड़कर चीखने बाला छोरा दुनिया भर की वाहवाही ले उड़ा और आप 40 साल से कलम घिसने के बाद भी मोहल्ला स्तर का भी पुरुस्कार नहीं कबाड़ पाये. उल्टे समाज और रिश्तेदारी में तिरिस्कृत होते रहे, धर्मांध लोगों की गालियां खाते रहे और एक बार तो आपको भरे चौराहे पर निर्वस्त्र कर एक धर्म विशेष के लोगों ने समारोह पूर्वक ठोक दिया था क्योंकि आपने उनके एक धर्म गुरु के व्यभिचार को मैगज़ीन में फींच कर रख दिया था जबकि आप को इस पाप को ढकने की वाजिब कीमत की पेशकश की गई थी जो आपने ठुकरा दी थी.  इस पर उन्होंने आपको ऐसा फेंटा कि अभी भी कभी कभी पुराने जख्म रिसने लगते हैं.

भाईसाहब आपको अगर निष्पक्ष और ईमानदारी से लिखने की बीमारी है ही तो पहले कोई सियासी माई बाप ढूंढ लेते यकीन मानिए आज राज्यसभा में होते या खैरात में मिले किसी ऊंचे मलाईदार मुकाम पर होते जहां शराब कबाब और शबाब ज़िंदगी को रंगीन बना देते हैं.

आप के ही कुछ साथियों को यह ज्ञान प्राप्त हो गया है और उन्होने ईमान और स्वाभिमान को तिरोहित कर मौजूदा आकाओं के तलवे चोरी छिपे चाटना भी शुरू कर दिये हैं और आप अभी तक प्रतिबद्धता का तार तार हो चुका पल्लू पकड़े तरने का भ्रम पाले बैठे हैं. आपका कुछ नहीं हो सकता आप पत्रकारिता के नाम पर कलंक हैं.

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आज भी अगर आप यह कहेंगे कि एक बड़ी नेत्री के बारे में इस तरह के शब्द इस्तेमाल नहीं किए जाने चाहिए, यह कोई स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है तो आप तुरंत कांग्रेसी और वामपंथियों के पिट्ठू करार दे दिये जाएँगे. आप मोदी और राष्ट्र विरोधी तो पहले ही घोषित किए जा चुके हैं. आपको रटते रहना चाहिए कि दौर भड़ुओं और भांड़ों का है और आप भी बूढ़ी तवायफ की तरह पत्रकारिता के बाजार से षडयंत्रपूर्वक गायब किए जा रहे हैं. आपका एक गुनाह यह भी है कि आपने धंधा चमकाने दलाल नहीं रखे न ही कभी खुद दलाल बने क्योंकि आप पत्रकारिता को एक अभियान समझते और मानते रहे.

जिस मूल्य आधारित पत्रकारिता का मुगालता पाले आप लिखे जा रहे हैं उसका अवमूल्यन हुये 6 साल हो चुके हैं फिर भी आप हिम्मत नहीं हार रहे और मैदान नहीं छोड़ रहे तो यह आपकी बेशर्मी और हठधर्मिता है न कि प्रतिबद्धता है. प्रतिबद्ध तो वे हैं जो आज भी द्रौपदी को भरी सभी में निर्वस्त्र कर पुरुषत्त्व दिखा रहे हैं और माता सीता की पवित्रता पर संदेह जताते अपनी मर्यादा का ढिंढोरा पीट रहे हैं. दौर इन्हीं धर्मियों का है आप जैसे विधर्मियों का नहीं जो ज़िंदगी भर समाज सुधार और नवनिर्माण का ढ़ोल पीटते रह गए और समाज को फिर से धर्म की आड़ में बांटने बाले वर्ण व्यवस्था के पेरोकर देश का बंटाढार कर रहे हैं.

दिक्कत ये भी है कि लोग आपसे सहमत तो हैं लेकिन तभी, जब होश में आते हैं वरना तो धर्म की अफीम न्यूज़ चैनल्स के जरिये जमकर परोसी और वितरित की जा रही है और ये नशेड़ी फिर मदहोश हो जाते हैं, बहक जाते हैं कि नहीं हमे उसी भरम में रहने दो जिसमें हम पीढ़ियों से रहते आए हैं. होश में आते हैं तो हम टूटने, बिखरने लगते हैं हमे घबराहट होने लगती है.  हमारा दिल, चेतना और कान जो सुनना चाहते हैं वे इसी तरह की बातें हैं कि महामृत्युंजय मंत्र से कोरोना भाग जाता है. इलाज दवा में नहीं बल्कि गोबर और गौ मूत्र में है, कपूर में है इसलिए आप हमें बहकाओ मत.

तो आप भाईसाहब तार्किक और गंभीर पत्रकारिता छोड़ो, मुख्य धारा से जुड़ो, पाठकों को बताओ कि अति दूरदर्शी और अति मानव और लगभग अवतार मोदी जी ने आज जो कहा उसका वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक महत्व क्या है. आपके पास बुद्धि है जो सच को झूठ और झूठ को सच साबित कर सकती है.

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कैसे घंटे घड़ियाल बजाने से कोरोना उम्मीद से कम फैला इसका प्रचार करो लेकिन आप हैं कि करोड़ों मजदूरों की फिक्र में दुबले हुये जा रहे हैं. अरे ये लोग कोई आदमी नहीं हैं बल्कि बैकवर्ड हैं इनकी नियति, किस्मत, भाग्य वगैरह यही है जो मनु, पाराशर, तुलसी, चाणक्य आदि सदियों पहले लिख गए हैं. ये कीड़े मकोड़े अपने पापों की सजा भुगत रहे हैं इन्हें छोड़िए मरने दीजिये.  दुनिया के सबसे बुद्धिमान शासक का गुणगान कीजिये आप हाथों हाथ लिए जाएँगे.

देश हित में और ज्यादा कुछ करना चाहते हैं तो सोनिया, केजरीवाल ममता बगैरह पर राक्षस होने का, विदेशी एजेंट होने का, सनातन विरोधी होने का आरोप लगाइए. दलितों और मुसलमानों को कोसिये इससे आप महान हों न हों चर्चित जरूर हो जाएँगे. इन दिनों जो 4-5 करोड़ सवर्ण हिन्दू घरों में बैठे पकोड़ी और मिष्ठान उदरस्थ कर रहे हैं वे आपका यह मुजरा जरूर देखेंगे.

किसी संभ्रांत और सम्मानीय नेत्री जिसने महज इसलिए कभी देश का सबसे बड़ा पद इसलिए ठुकरा दिया था कि भाजपा की दो नेत्रियाँ अपने मुंडन की बात करते प्रलाप करने लगीं थीं, उस नेत्री को उसकी इस मूर्खता (त्याग एक तरह की मूर्खता ही होता है) के लिए बेइज्जत कीजिये और फिर 56 इंच का सीना तानकर कहिए कि देखो कलयुगी शूर्पनखा की नाक काट ली तो आप हीरो बना दिये जाएँगे.

और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो इतमीनान से अपने पत्रकार होने पर शर्मिंदा होते सोचते रहिए कि पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी हिन्दू क्यों बौराया जा रहा है. इसे अंत में मिलेगा क्या हाल फिलहाल तो इसे लग रहा है कि वह जातिगत रूप से ही श्रेष्ठ है, भगवा गैंग उसका आत्मविश्वास है और बस अब 2-4 साल में हम विश्वगुरु बनने ही बाले हैं फिर ये जमीन , आसमान, हवा पानी पैसा सब कुछ इसी का होगा जैसा कि वैदिक काल में हुआ करता था.

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आप इन्हें इसके खतरे मत बताइये कि दरअसल में आप ठगे जा रहे हैं, उल्लू बनाए जा रहे हैं.  आप के हाथ सिवाय शंख और घंटे घड़ियाल के कुछ नहीं आना और कभी बहुसंख्यक दलित आदिवासी और मुसलमान भी आप जैसे कट्टर होते एक हो गए तो कोई आपकी दुर्गति की ज़िम्मेदारी लेने आगे नहीं आएगा.

बहरहाल मुद्दे की बात मेरी पत्रकार होने की शर्मिंदगी है जो एक तवायफनुमा महंगे पत्रकार की धूर्तता से पैदा हुई. मौजूदा दौर की पत्रकारिता मकसद से भटक रही है, इसमें जोकरों की भरमार हो चली है जिन्हें राजा और उसे नचाने बाले खूब धन और प्रोत्साहन दे रहे हैं. आप याद करते रहिए कि कभी पत्रकारिता एक सम्मानजनक और प्रतिष्ठित पेशा हुआ करता था.

मुझे इस बात की कुंठा या इच्छा नहीं कि यह सब मुझे क्यों नहीं मिल रहा क्योंकि मैंने कभी ऐसा चाहा ही नहीं. मैं जब तक रहूँगा पत्रकार ही रहूँगा और ढोंग पाखंडों से लोगों को आगाह करता रहूँगा क्योंकि मुझे मालूम है कि देश में लोकतन्त्र जितना भी बचा हुआ है मुझ जैसों की वजह से ही बचा हुआ है.

धार्मिक उन्माद फैलाने वाले, धर्म आधारित शासन थोपने वाले पंडे पुजारी मुझ जैसे पत्रकारों से डरते हैं और इस डर का कायम रहना जरूरी है नहीं तो मुट्ठी भर एक जाति विशेष के लोग फिर जो हाहाकार मचाएंगे वह जरूर देश को गुलामी की भट्टी में पूरी तरह झोंक देगा. अभी तो उम्मीद बाकी है .

कोरोना सर्वाइवर सुमिति सिंह ने ब्लड प्लाज्मा डोनेट किया , कार्तिक ने कहा गर्व है आप पर

कार्तिक आर्यन ने हल ही में अपने यूट्यूब चैनल पर इस लॉकडाउन के दौरान ‘कोकी पूछेगा’ नाम से अपना एक चैट शो शुरू किया है.कार्तिक ने अपने शो के पहले ही एपिसोड में गुजरात से कोरोना सर्वाइवर सुमिति सिंह का इंटरव्यू किया था और उनसे कोरोना पर अहम बातचित की थी. सुमिति भारत में  पूरी तरह स्वस्थ होने वाले शुरूआती कोरोना-पेशेंट्स में से एक हैं. लेकिन अब सुमिति जो करने जा रही हैं वो बहुत बड़ा काम है और इसके लिए उनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है.सुमिति सिंह अब कोरोना से लड़ रहे पेशेंट्स के लिए खून देने जा रही हैं.

चूंकि कोरोना से पीड़ित पेशेंट को बचाने के लिए, कोरोना से ठीक हुए व्यक्ति का ब्लड प्लाज्मा का उपयोग काफी कारगर है और इससे पेशेंट के जल्द अच्छा होने का चांस बहुत बढ़ जाता है. कोरोना से ठीक हो चुकीं सुमिति ने बाकी लोगों की मदद के लिए ये तरिका चुना है जो कि बहुत काबिलेतारीफ है. कार्तिक से बात करते हुए सुमिति ने कहा था , ‘किसी ने मुझे मैसेज भेजा है और बोला कि क्या आप मुझसे अपना ब्लड प्लाज्मा शेयर करेंगी?’ इसपर कार्तिक ने हँसते हुए कहा था ऐसी बीमारी से लड़ने में सुमिति का योगदान बहुत बड़ा रहेगा, क्योंकि उनका ब्लड प्लाज्मा इस समय बहुत महत्वपूर्ण है.

 

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So proud of @sumitisingh ???? I urge all survivors to check with their doctors and donate their blood plasma if eligible to help critical patients who are on the road to recovery.?? Also a big Thank You Sumiti for spreading awareness #KokiPoochega . . . #Repost @sumitisingh ・・・ I donated my blood plasma today— A person who has recovered from COVID is able to make antibodies against it . Also if you don’t have any pre existing ailments you are considered a healthy body and CAN donate your blood plasma, if willing, for the benefit of patients in a critical condition. With great joy and pride I am able to share that I fit all the necessary criteria to donate plasma and did so today at the Red Cross Ahmedabad. The procedure:- The procedure to donate plasma is the same as when you donate blood. There is one needle that is used to draw blood from your body, and the blood runs through tubes that carry it into a machine. That machine separates the plasma from the blood . The same needle sends back blood to your body while the (yellowish coloured) plasma is collected in a bag. It’s all toO cool. This happens through multiple cycles. I was also informed that the body will replenish the plasma in 24 – 48 hours. Dear Positives/Now Negatives… This was my first blood plasma donation experience. My feelings were oscillating between nervousness and excitement . On one part I was unsure about the procedure and how I’d feel thereafter . On the other hand there was a desire to contribute in any way I could in the war against COVID. If it helped anyone , anywhere I was doing it . Expect 2 needle pricks. The first one to check if you have antibodies .The second one to draw blood out and transfer it back in. The procedure lasted 30-40 minutes. Most of this time I was fine, however for 3- 4 minutes I felt nauseous and light headed. My doctors at the Red Cross, immediately helped me with what I was feeling and put me at ease. I have been completely fine, thereafter. SVP hospital is the first in India to get approvals for trials for Plasma Therapy and I wish them all the luck in the world & thank them for taking me through this. If I can do it…. maybe you can too

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आज समिति सिंह ने अपना ब्लड प्लाज्मा डोनेट किया जिसके बाद उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करते हुए कोरोना पर जागरूकता लाने वाला पोस्ट शेयर किया. अभिनेता कार्तिक आर्यन ने समिति सिंह को धन्यवाद कहते हुए , लिखा आप के लिए गर्व महसूस कर रहा हु. में सभी सर्वाइवर से कहूंगा कि अपने डॉक्टर से चेक करे कि आप अपना ब्लड प्लाज्मा डोनेट कर सकते है , इस समय गंभीर पेशंट्स के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है. जागरूकता बढ़ाने के लिए आप का बहुत धन्यवाद.

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कार्तिक की नई हिट यूट्यूब सीरीज़ ‘कोकी पूछेगा’ सीरीज के तहत वे कोरोना फाइटर्स के इंटरव्यू ले रहे है. इस वैश्विक महामारी के प्रति कार्तिक लगातार लोगों में जागरूकता फ़ैलाने का काम कर रहे हैं .

 

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