एडिट बाय- निशा राय
बी आर चोपड़ा 106वीं बर्थ एनिवर्सरी: बलदेव राज चोपड़ा से मेरी पहली मुलाकात धारावाहिक ‘‘महाभारत’’ के फिल्मांकन के दौरान फिल्मसिटी स्टूडियो में हुई थी. उसके बाद फिल्म ‘कल की आवाज’, ‘बागबान’ और ‘‘बाबुल’’ के दौरान उनसे मेरी कई मुलाकातें होती रही. 2002 में 13 जुलाई से 17 जुलाई तक उनकी पुत्रवधू और फिल्मकार स्व.रवि चोपड़ा की पत्नी रेणु चोपड़ा ने ‘बी आर थिएटर’में पांच दिवसीय फिल्मोत्सव आयोजित कर बी.आर चोपड़ा को सम्मानित करने का काम किया था.
इन पांच दिनों में ‘धुंध’, ‘गुमराह’, ‘इंसाफ का तराजू’,‘वक्त’ और ‘नया दौर’ जैसी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया था. इसी दौरान इन फिल्मों के संदर्भ में स्व.बी आर चोपड़ा से भी मेरी लंबी बातचीत हुई थी, जिसमें कई अद्भुत बातें उन्होंने हमें बतायी थीं. वह जब तक जीवित रहे, काम करते रहे और उनके अंदर हमेशा कुछ नया कर गुजरने का जज्बा बरकरार रहा. हम यहां उनकी कुछ फिल्मो के संदर्भ में उनके जीवित रहते जो बातें हुई थी, वह पेश कर रहे हैं…
गुमराहः पहली अति बोल्ड फिल्म
बी आर चोपड़ा ने कई फिल्में बनाई. लेकिन उनके द्वारा 1962 में निर्मित फिल्म ‘‘गुमराह’’ को पहली अति बोल्ड फिल्म माना जाता है. इस फिल्म में पहली बार किसी शादीशुदा औरत की जिंदगी में परपुरुष का चित्रण है. यह एक अलग बात है कि अंततः यह फिल्म इस बात को ऊभारती है कि हर शादीशुदा औरत को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाते हुए लक्ष्मण रेखा को पार करने का दुष्साहस नहीं करना चाहिए. फिल्म ‘गुमराह’ में मीना (माला सिन्हा) अपने प्रेमी राजेंद्र (सुनील दत्त) के लिए अपने पति अशोक (अशोक कुमार) को धोखा देती हैं. लेकिन अशोक अपने तरीके से अपनी पत्नी मीना को सही और गलत का एहसास कराते हैं.
फिल्म ‘गुमराह’ की कहानी: जर्मन लेखक की कहानी से प्रेरित
1962 में फिल्म ‘‘गुमराह’’की कहानी बी आर चोपड़ा के दिमाग में कैसे आई थी? क्योंकि यह वह वक्त था, जब किसी भी नारी के जीवन में गैर मर्द की कल्पना नहीं की जा सकती. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने हमसे कहा था- ‘‘हमने एक जर्मन लेखक की 15 पन्नों की एक कहानी पढ़ी थी, जिसे हमने फिल्म की पटकथा के रूप में परिवर्तित किया. फिल्म की शुरुआत प्रेमी और प्रेमिका के गीत गाने से होती है.’’
फिल्म पूरी हो के बाद शुरूआत बदली गयीः
फिल्म पूरी हो गयी थी. फिल्म के मुख्य कलाकार अशोक कुमार चाहते थे कि फिल्म को जल्द से जल्द प्रदर्शित किया जाए, मगर बी आर चोपड़ा फिल्म के शुरूआती दृष्य से संतुष्ट नहीं थे. इसका जिक्र करते हुए बी आर चोपड़ा ने हमें बताया था- ‘‘फिल्म प्रदर्शन के लिए तैयार थी. लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या फिल्म की यह शुरूआत सही है? इसलिए अशोक कुमार के बार बार कहने के बावजूद मैं फिल्म को रिलीज नहीं कर रहा था. एक दिन हमने ‘रामायण’ में लक्ष्मण रेखा खींचने की कहानी सुनी. बस फिर हमने शुरुआत में लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा खींचने की कहानी को दिखाया और कहा कि ऐसी ही एक लक्ष्मण रेखा को लांघने के प्रयास की कहानी है फिल्म ‘गुमराह’.
बी आर चोपड़ा ने अपनी फिल्म ‘गुमराह’ में जिस लक्ष्मण रेखा को ना लांघने की बात कही थी, वह आज साठ साल बाद भी एक शाश्वत सत्य है. यह एक अलग बात है कि वर्तमान परिस्थितियों में गैर मर्द की कल्पना करना आम बात हो गई है. लेकिन 1962 में इसकी कल्पना करना संभव नहीं था. यही वजह है कि जब यह फिल्म दिल्ली के शीला सिनेमाघर में प्रदर्शित हुई थी, तो दर्शकों ने पर्दे पर पत्थर फेंके थे.
गुमराह के निर्माण में आयी थीं दिक्कतें
1962 में जिस तरह के सामाजिक हालात थे, उसके चलते ‘गैर मर्द’ को खलनायक ही माना जाता था. इसलिए फिल्म ‘‘गुमराह’’ में गैर मर्द राजेंद्र का किरदार निभाने के लिए कोई भी कलाकार तैयार नहीं था. उन दिनों कोई भी कलाकार खलनायक नहीं बनना चाहता था, सभी को हीरो ही बनना था. लोग ‘देवदास’ की कल्पना को बदलना नहीं चाह रहे थे. ऐसे में बी आर चोपड़ा के सामने समस्या पैदा हो गई थी कि क्या किया जाए? पर ऐसे वक्त में अभिनेता सुनील दत्त ने आगे बढ़कर इस किरदार को निभाने के लिए हामी भरी. क्योंकि सुनील दत्त को कहानी पंसद आयी थी और उन्हे फिल्म की कहानी में राजेंद्र और मीना के प्यार में कहीं भी अश्लीलता नजर नहीं आयी थी. बाद में फिल्म देखकर लोगों ने महसूस किया था कि चोपड़ा साहब ने राजेंद्र के किरदार की पवित्रता को बरकरार रखी थी.
गुमराह का क्लायमेक्स चार बार बदला गया
‘गुमराह’ सर्वाधिक सफल फिल्म रही है. मगर बहुत कम लोगों को पता होगा की फिल्म ‘गुमराह’ की शुरुआत ही नहीं बल्कि इसका क्लायमेक्स भी चार बार बदला गया था. जब चौथी बार फिल्म के क्लायमैक्स का पुनः फिल्मांकन होना तय हुआ, उस वक्त सुनील दत्त अपनी पत्नी के साथ इटली में छुट्टियां मना रहे थे. चोपड़ा साहब ने उन तक खबर भिजवाई. सुनील दत्त यह सोचकर आनन-फानन मुंबई पहुंच गया कि अब नए क्लायमैक्स में राजेंद्र को मीना मिल जाएगी, मगर ऐसा नही हुआ था. फिल्म के अंत में जो दृष्य है, उसमें मीना,राजेंद्र के लिए दरवाजा हमेशा हमेशा के लिए बंद कर देती है.
धुंध में भी गैर मर्द की कहानीः
इसके बाद बी आर चोपड़ा ने 1973 में फिल्म ‘‘धुंध’’बनायी थी. इस फिल्म में भी गैर मर्दका किरदार था, जिसे संजय खान ने बिना कुछ सोचे समझे निभाने की हामी भर दी थी. क्योंकि ‘धुंध’’ की कहानी में गैर मर्दवास्तव में गैर मर्दनहीं है, बल्कि वह तो दूसरों की मदद करने वाल इंसान है.
पहली रंगीन फिल्म ‘‘वक्त’’
‘गुमराह’’के बाद बी आर चोपड़ा ने 1965 में पहली रंगीन फिल्म ‘‘वक्त’’ का निर्माण किया था, जिसके कैमरामैन धर्म चोपड़ा को फिल्मफेअर अवार्ड से नवाजा गया था.
इस फिल्म के निर्माण के पीछे भी अजीबोगरीब कहानी थी. जिसके बारे में जीवित रहते हुए खुद बी आर चोपड़ा ने मुझे एक मुलाकात के दौरान बताया था. उन्होंने बताया था- ‘‘एक दिन मैं अपने ऑफिस में बैठा हुआ था, लेखक अख्तर मिर्जा मेरे पास आए. उन्होंने बताया कि पृथ्वी राज कपूर अपने तीनों बेटों को लेकर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं. इस फिल्म में वह स्वयं अभिनय करेंगे. इसलिए उनके कहने पर अख्तर मिर्जा ने एक पिता और तीन बेटों को लेकर एक कहानी लिखी है. मैने उत्सुकतावश उनसे कहानी सुनी और मैने उनसे कहा कि यह कहानी बहुत अच्छी है. पृथ्वीराज कपूर को यह कहानी जरूर पसंद आएगी. लेकिन शाम को अख्तर मिर्जा वापस मुंह लटकाए हुए आ गए. उन्होंने बताया कि पृथ्वीराज कपूर को यह कहानी पसंद नहीं आई है. तो मैंने उनसे कहा कि आप चिंता ना करें, इसी कहानी पर मैं फिल्म बनाउंगा. उसके बाद मैने इस फिल्म में अभिनय करने के लिए पृथ्वी राज कपूर और उनके तीनों बेटों से बात कर ली.
कैसे ‘वक्त’ के कलाकार बदले गएः
मगर सभी जानते है कि फिल्म ‘‘वक्त’’ में पृथ्वीराज कपूर और उनके तीनों बेटे नहीं है. इस पर बी आर चोपड़ा ने हमें एक दिलचस्प वाक्या सुनाया था- ‘‘हमने अपनी तरफ से पृथ्वीराज कपूर और उनके तीनो बेटो को इस फिल्म में अभिनय करने के लिए राजी कर लिया था. मगर दो दिन बाद मेरे मित्र व फिल्मकार विमल राय मेरे पास आए. तो मैंने उन्हें कहानी सुनाई. कहानी विमल राय को भी पसंद आई. लेकिन विमल राय ने मुझे सलाह दी कि इस कहानी में तीनों बेटों के किरदार में तीनों सगे भाइयों को मत लीजिए. ऐसा करेंगे तो, इस कहानी का उतना असर दर्शकों पर नहीं पड़ेगा, जितना इस कहानी के अनुसार पड़ना चाहिए. तब हमने कलाकार बदले थे. फिर बलराज साहनी, राजकुमार, सुनील दत्त और शशि कपूर को लेकर यह फिल्म बनायी थी और इसके निर्देशन की जिम्मेदारी मैंने अपने छोटे भाई यश चोपड़ा को दी थी.’’
बी. आर. चोपड़ा का जन्म और शुरुआती जीवन
22 अप्रैल 1914 में ब्रिटिश शासन के दौरान वर्तमान के पाकिस्तान शहर राहोन में जन्में पद्मभूषण और दादा साहेब फालके अवॉर्ड से सम्मानित फिल्मकार बलदेव राज चोपड़ा उर्फ बी आर चोपड़ा का 94 वर्ष की उम्र में मुंबई में और देहांत 5 नवंबर 2008 को हुआ था. आज उनकी 106वीं पुण्यतिथि है. बतौर पत्रकार बी आर चोपड़ा के संग हमारी कई मुलाकातें रही हैं. आज हम उनसे और उनके फिल्मों के संदर्भ में उनसे हुई कुछ अद्भुत बातों का यहां जिक्र कर रहे हैं.
बी आर चोपड़ा ने अपने कैरियर की शुरूआत 1944 में लाहौर में बतौर फिल्म पत्रकार की थी. वह लाहौर में ही ‘‘अरोड़बंस प्रेस’’ में नौकरी करते थे, बाद में 1974 में इसी प्रेस ने ‘मायापुरी’ साप्ताहिक फिल्म पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया. बी आर चोपड़ा ने लाहौर में ही 1947 में आई एस जौहर की कहानी पर फिल्म ‘‘चांदनी चौक’’ की शुरूआत की थी, मगर तभी देश का बंटवारा हो गया और वह लाहौर से दिल्ली तथा दिल्ली से मुंबई पहुंच गए. मुंबई पहुंचने पर उन्होंने सबसे पहले 1948 में फिल्म ‘करवट’ का निर्माण शुरू किया. और 1951 में बतौर निर्देशक उन्होने फिल्म ‘अफसाना’का निर्देशन किया, जिसमें अशोक कुमार हीरो थे. फिर 1954 में आई एस जौहर की ही कहानी पर मीना कुमारी को लेकर उन्होंने फिल्म ‘‘चांदनी चौक’’ बनायी.
1955 में उन्होंने ‘‘बी आर फिल्मस’’ नामक अपने प्रोडक्शन हाउस की शुरूआत की थी, जिसके तहत पहली फिल्म ‘‘एक ही रास्ता’’ का निर्माण व निर्देशन किया था. 2006 तक उन्होंने 36 फिल्मों का निर्माण और इनमें से ‘एक ही रास्ता’,‘धूल का फूल’,‘धुंध’ सहित 16 फिल्मों का निर्देशन किया. उन्होंने ‘‘महाभारत’’ और ‘सैादा’ जैसे धारावाहिक का निर्माण व निर्देशन किया.