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लाॅकडाउनः लोगों को निराशा से उबारने के लिए सेलेब्स लाए एंथम सॉन्ग ‘फिर तेरा टाइम आएगा’

“क्यूं करता है फिक्र, आखिर होगा क्या,तू सोच के देख जरा , क्या क्या है पाया … ‘फिर तेरा टाइम आएगा‘ इस नए म्यूजिक वीडियो के गीत और संगीत कानों में पड़ते ही एक नई ऊर्जा उत्पन्न होती है.

भारत में वैश्विक महामारी ‘कोविड 19’ के कारण लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई गई है और इससे पूरा देश लड़ रहा है.लोग चिंतित हैं और धीरे धीरे निराशा के गर्त में समा रहे हैं.ऐसे में कलाकारों के एक समूह ‘सुरव्हायरलिस्ट‘ने अपने नवीनतम गीत के साथ देश को एक नई प्रेरणा और ऊर्जा देने के लिए एक म्यूजिक वीडियो ‘फिर तेरा समय आएगा’ लेकर आए हैं.इस म्यूजिक वीडियो की कल्पना विनोद जी नायर ने की  है,जिन्होने इस गीत को लिखने के साथ ही इसका निर्देशन भी किया है.दिग्गज गायक हरिहरन, अक्षय हरिहरन और इमैनुअल बर्लिन ने इसे संगीत से संवारा है.वीडियो के निर्देशन में विनोद जी नायर का साथ दिया रनजीव कपूर और करण हरिहरन ने.

इस म्यूजिक वीडियो के गीत में विनोद जी नायर,करण हरिहरन और अक्षय हरिहरन द्वारा‘रैप‘ का भी समावेश है. राकेश श्रीकुमार की मधुर सीटी भी इसमें सुनने को मिलेगी.

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दो राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता पद्मश्री हरिहरन के नेतृत्व में बैंड ‘सुरव्हायरलिस्ट‘में पद्मश्री शेफ संजीव कपूर, पाश्र्व गायक रूपकुमार राठौड़ और सोनाली राठौड़, मीका सिंह, नीती मोहन और ईशान दत्ता, मास्टर शेफ रणवीर बरार,कपिल शर्मा,  अभिनेता करण हरिहरन और संगीतकार अक्षय हरिहरन, प्रतिभाशाली युवा गीतकार-गायिका रीवा राठौड़, मार्केटिंग गुरु-फूडपेंडर विनोद जी नायर, हीरा व्यापारी पुनीत गुप्ता, प्रसिद्ध आईटी वकील नदीम लसानी, अमेरिकी क्रिप्टोक्यूरेंसी विशेषज्ञ राकेश श्रीकुमार और संगीतकार इमैनुएल बर्लिन का समावेश है.

कोरोना व लाॅकडाउन के इस कठिन समय में ‘फिर तेरा समय आएगा‘ के साथ फिर से अपना टाइम आएगा!गाना लोगों को  प्रोत्साहित कर उनके अंदर अपनी जिंदगी जीने के लिए नए जोश व जुनून का संचार करेगा.

खुद विनोद जी नायर कहते हैं-‘‘इस गीत के मध्य में हमने हिप-हॉप-रैप शैली का गीत भी रखा है.जो कि मानव जाति के साहस और हंसमुखता की प्रशंसा करता है, साथ ही हम में कभी न मरने वाले सकारात्मक दृष्टिकोण को मजबूत करने की कोशिश करता है.‘‘

हरिहरन कहते हैं-‘‘मैं एक ऐसा गीत बनाना चाहता था,जो लोगों को खुश करे और लोग सारी पीड़ा भूलकर कर नाचें.‘फिर तेरा टाइम आएगा‘हर भारतीय के धैर्य को सैल्यूट करने वाला ट्रिब्यूट है.”

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पाश्र्व गायक रूप कुमार राठौड़ कहते हैं-‘‘मेरा मानना है कि लॉक डाउन’को आपदा के तौर पर नहीं,बल्कि नए कौशल और क्षमताओं की खोज करने और अपने जीवन में अधिक सकारात्मक रूप से जुड़ने और जीवन ने उन्हें क्या दिया है, उसकी खोज व सराहना करने का एक अनूठा अवसर है.चल धुंड ले नए साझ को, नई चीख दे अल्फाज को..,”

गायिका रीवा राठौड़ ने कहा-‘‘हम हर युवा भारतीय को एक ऐसी भाषा में गीत सुनाना चाहते हैं, जिसे वह समझ सकें – यह दौर भी गुजर जायगा.. फिर तेरा टाइम आएगा. ”

बहुत कम लोग जानते होंगे कि मशहूर शेफ संजीव कपूर एक उम्दा ड्रम वादक भी हैं.वह कहते हैं-‘‘हर दिन हम सभी निराशाजनक खबरें देखते हैं …ऐसे में इस वक्त  दुनिया को आशा,उम्मीद और खुशी चाहिए.हमने इस गीत को एक सकारात्मक उम्मीद देने के उद्देश्य से बनाया है.हम चाहते हंै कि लोग जीवन के सुखद क्षणों को फिर से याद करेंगे और एक नई खुशहाल सुबह निश्चित रूप से आएगी,ऐसा विश्वास अपनाएंगे.‘‘

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इस गीत की चर्चा चलने पर कपिल शर्मा ने कहा-‘‘यह नेशनल सॉंग  नहीं है … यह सर्वसामान्य लोक गीत है.हम चाहते हैं कि लोग इन मुश्किल समय के दौरान भी हंसते रहें.‘‘

यह गीत सावन, अमैजाॅन,अँपल म्युजिक,स्पॉटीफाई सहित हर प्लेटफार्म पर उपलब्ध होगा.यूट्यूब सहित अन्य सोशल मीडिया पर भी डाउनलोड के लिए  उपलब्ध रहेगा.सरकार के लॉकडाउन नियमों का कड़ाई से अनुपालन करते हुए, कलाकारों ने स्वयं लघु प्रोमो शूट किए हैं, जो 5 मिनट लंबे संगीत वीडियो में शामिल है.

स्वीकृति के तारे- भाग 1: मां ने उसे परचा थमाते हुए क्या कहा?

वह हमेशा ही टुकड़ों में बंटी रही. दूसरों के हिसाब से जीने के लिए मजबूर किसी अधबनी खंडित मूर्ति की तरह. जिसे कभी तो अपने मतलब के लिए तराश लिया जाता, तो कभी निर्जीव पत्थर की तरह संवेदनहीन मान उस की उपेक्षा कर दी जाती. आज फलां दुखी है तो उसे उस के दुखों पर मरहम लगाना होगा. आज फलां खुश है तो उसे अपने आंसुओं को पी कर जश्न में शामिल होना होगा. आज फलां के जीवन में झंझावात आया है तो उसे भी अपने जीवन की दिशा बदल लेनी चाहिए. आज फलां की नौकरी छूटी है तो उसे उस की मदद करनी चाहिए. खंडित मूर्ति को अपने को संवारना सुनने में भी कितना अजीब लगता है. ऐसे में अपने पर खर्च करना फुजूलखर्ची ही तो होता है.

संपूर्णता वह कभी नहीं पा पाई. मूर्ति पर जब भी मिट्टी लगाई गई या रंग किया गया, तो उसे पूरी तरह से या तो सूखने नहीं दिया या फिर कई जगह ब्रश चलाना आवश्यक ही नहीं समझा किसी भी फ्रंट पर, इसलिए चाह कर भी वह संपूर्ण नहीं हो पाई क्योंकि उस से जो कडि़यां जुड़ी थीं, उस से जो संबंध जुड़े थे, उन्होंने उस की भावनाओं को नरम घास पर चलने का मौका ही नहीं दिया. उन की भी शायद कोई गलती नहीं थी. आखिर, ढेर सारा पैसा कमाने वाली लड़की भी तो किसी एटीएम मशीन से कम नहीं होती है. फर्क इतना है कि एटीएम में कार्ड डालना होता है जबकि उस के लिए तो मजबूरियों व भावनाओं का बटन दबाना ही काफी था.

घर की बड़ी लड़की होना और उस पर से जिम्मेदारियों को सिरमाथे लेना – ऐसे में कौन चाहेगा कि वह अपने सपनों को सच करने की चाह भी करे. दोष न तो उस के मांबाबूजी का है, न उस के भाई का और न ही उस की 2 छोटी बहनों का. दोष है तो सिर्फ उस का. अपने ही हाथों अपने अरमानों को कुचलते हुए सब को यह एहसास दिलाते रहने की उस की उस कोशिश का कि सब का खयाल रखना उस का दायित्व है और उस के लिए चाहे कितना ही खंडखंड होना, बिखरना ही क्यों न पड़े, वह तैयार है.

ऐसे में उम्र की तरह जीवन भी अपनी गति से हाथ से फिसलता रहा.

घड़ी की रफ्तार भी उस की जिंदगी की तरह ही तेज है. 9 बज चुके थे. सवा 9 बजे की चार्टर्ड बस अगर छूट गई तो फिर 3 बसें बदल कर औफिस जाना होगा. मन हुआ कि एक बार शीशे के सामने खड़ी हो कर खुद को निहारे. पर फिर अपनी सूती साड़ी की प्लेटों को ठीक कर ऐसे ही बाहर आ गई. जानती थी कि चेहरे के खत्म होते लावण्य और आंखों में बसी उदासी देख आईना भी उस से अनगिनत सवाल पूछने लगेगा. उस क्यों का जवाब देने का न तो उस के पास समय था और न ही कोई तर्क.

‘‘औफिस से आते समय अपने बाबूजी की ये दवाइयां ले आना. उन की खांसी तो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही है,’’ मां ने उसे परचा थमाते हुए यह कहा तो मन में सवालों के गुंजल चक्कर काटने लगे.

‘‘क्या सोचने लगी?’’ मां ने फिर कहा.

‘‘मां, दवाइयां तो भुवन भी ला सकता है,’’ उस की आवाज में कंपकंपाहट थी.

‘‘क्यों, तुझे कोई दिक्कत है लाने में. उसे क्यों परेशान करती है. सारा दिन तो बेचारा पढ़ता रहता है. और सुन, आज सब्जी नहीं बन पाई है. रोटियां पैक कर दी हैं. सब्जी कैंटीन से ले लेना,’’ कागज में लिपटी रोटियां मां ने उसे ऐसे थमाईं मानो एहसान कर रही हों.

भीतर फिर कुछ टूटा. अपनी ही मां क्या ऐसा कर सकती है? स्वार्थ की ममता शायद ऐसी ही होती है. तभी तो उस के सामने और कुछ दिखाई नहीं देता है. न ही बेटी की खुशी, न उस की पीड़ा. बस, केवल एक डर मन में समाया रहता है कि कहीं अगर इस ने अपनी जिंदगी को ले कर कुछ ख्वाब बुनने शुरू कर दिए या अपने सपनों को पंख देने की चाह उस के अंदर पैदा होने लगी तो बाकी लोेगों का क्या होगा. बाबूजी की दवाइयां कहां से आएंगी.

भुवन और दोनों बेटियों की पढ़ाई

व शादी कैसे होगी, घर का खर्च और सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह कैसे होगा?

उसे मांबाबूजी की तकलीफ और मजूरियां सब दिखाई देती हैं. सब समझ भी आती हैं. इसलिए वह भी बिना कुछ कहे उन की डोर से बंधी कठपुतली की तरह नाचती रहती है. लेकिन, बस, एक ही कसक उसे टीस देती है कि सब की खुशियों का खयाल रखने वाली इस बेटी से मां को वैसी ममता क्यों नहीं है जैसी बाकी तीनों बच्चों से. वह तो उन की सौतेली बेटी भी नहीं है. सभी कहते हैं कि रिया की शक्ल बिलकुल मां से मिलती है. फिर वह क्यों उन के लाड़प्यार से वंचित है? क्यों मां को उस की बिलकुल भी परवाह नहीं है?

न ही उसे कभी अपने सवाल का जवाब मिल सकता, क्योंकि उसे सवाल पूछने का हक नहीं है. कौन यकीन करेगा कि इस जमाने में एक कमाने वाली आत्मनिर्भर लड़की भी इतनी असहाय हो सकती है. इतनी बेचारी कि उसे अपनी ही कमाई के एकएक पैसे का हिसाब देना पड़ता हो.

चार्टर्ड बस का सफर उस के लिए किसी राहत से कम नहीं होता है. घर के घुटनभरे माहौल की यातना से मुक्ति उसे यहीं मिलती है. हर तरह के कार्यक्षेत्रों से जुड़े लोग एकसाथ आधेपौने घंटे का सफर हंसतेगाते बिताते हैं. यह सच है कि थकावट आजकल हर इंसान की जीवनशैली का हिस्सा बन चुकी है और यही वह समय होता है जब कुछ समय बैठने का अवसर मिलता है. चाहे तो आंखें मूंद कर अपनी दुनिया में लीन हो जाओ या चैन से अपनी नींद पूरी कर लो या फिर अपने घरऔफिस की समस्या को बांट अपने मन को हलका कर लो. कभीकभी तो बात करतेकरते समाधान भी मिल जाता था.

बच्चों की समस्याएं चुटकी में सुलझ जाती थीं और दूसरों की परेशानियों के आगे अपनी परेशानी बौनी लगने लगती थी. किसी का जन्मदिन है, तो मिठाई बंट रही है. मंगलवार है, तो प्रसाद बंट रहा है. एक पूरी दुनिया ही जैसे बस में सिमट गई हो. रिया की कितनी ही सहेलियां बन गई हैं. रोज जिस के साथ बैठो, उस के साथ आत्मीयता पनप ही जाती है. मेहा और सपना के साथ उस की बहुत छनती है. हालांकि दोनों ही विवाहित और दोदो बच्चों की मां हैं, फिर भी उन की बातों का विषय केवल पति व बच्चों तक ही सीमित नहीं होता है. उन के साथ रिया हर तरह के विषय पर बिंदास हो बात कर सकती है.

‘‘ले रिया ढोकला खा. तेरे लिए खास बना कर लाई हूं. वैसे भी तुझे देख कर लग रहा है कि भूखी ही घर से आई है,’’ सपना ने ढोकले का डब्बा उस के सामने करते हुए कहा.

‘‘तेरे जैसा ढोकला तो कोई बना ही नहीं सकता है,’’ मेहा ने झट ढोकला उठा कर मुंह में डाल लिया.

‘‘कुछ तो शर्म कर. औफर मैं रिया को कर रही हूं और खुद खाने में लगी है,’’ सपना ने उसे प्यार से झिड़का.

‘‘अरे खाने दे न,’’ रिया ने कहा तो सपना हंसते हुए बोली, ‘‘जब से बस में चढ़ी है तब से ही चिप्स खा रही है. पिछले 2 सालों में कितनी मोटी हो गई है. देख तो सीट भी कितनी घेर कर बैठती है.’’ यह सुन मेहा ने उसे चिकोटी काटी. रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

कहीं बुधिया जैसा हश्र न हो ज्योति का

मुद्दत बाद यह नाम सुनकर शायद आपके दिमाग की बत्ती जली हो और मुमकिन है उस में कुछ पुरानी बातों ने भी खलबली मचाई हो कि हाँ याद तो आ रहा है कि एक छोटे से लड़के ने बड़ा सा कोई कारनामा कर दिखाया था जिसके चलते खूब हल्ला मचा था और बुधिया को हाथों हाथ लिया गया था लेकिन अब उसके कहीं अते पते नहीं .

बिहार के दरभंगा की 15 साल की दलित लड़की ज्योति कुमारी पासवान उतनी ही सुर्खियों में है जितनी में कभी बुधिया हुआ करता था . ताजा बात ये कि दरभंगा डाक विभाग ने ज्योति के सम्मान में उसका फोटो छपा माई स्टाम्प टिकिट जारी किया है .  डाकघर में उसका बचत खाता खोल दिया गया है और  उसे 5100 रु का चेक देकर उसकी आर्थिक मदद की गई है .  ज्योति के पिता मोहन पासवान जो पेशे से ड्राइवर हैं को भी चादर और अंगोछा या गमछा टाइप का कोई कपड़ा जिसे अंग वस्त्र कहा जा रहा है देकर इज्जत बख्शी गई है . ज्योति को लेकर किए गए इन और ऐसे कई ड्रामो के क्यों कोई माने नहीं हैं और इनका अंजाम क्या होता है इसे समझने से पहले बुधिया के बारे में कुछ बातें याद कर लेना जरूरी है .

  • एक था बुधिया

बुधिया की उम्र अब 18 साल हो गई है उसको लेकर आखिरी अहम खबर 9 नवंबर 2017 को यह आई थी कि उसे आनंद चन्द्र दास नाम  के नए कोच मिल गए हैं . तब आनंद ने जोश खरोश से दावा किया था कि वे बुधिया को बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार कर रहे हैं . इसके बाद बुधिया का क्या हुआ इसकी कोई खबर नहीं .

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बुधिया ओड़ीशा के एक गाँव के बेहद गरीब परिवार में साल 2002 में पैदा हुआ था .  जन्म के कुछ अरसे बाद ही उसके पिता की मौत हो गई तो घर में खाने पीने के लाले पड़ने लगे . बुधिया तब 2 साल का था जब उसकी माँ सुकान्ति ने पैसों की जरूरत के किए उसे एक दलाल के हाथों महज 800 रु में बेच दिया था .

बुधिया की कहानी आकार लेने के पहले यहीं खत्म और दफन हो जाती लेकिन इसी दौरान बिरंची दास की इंट्री हुई जो एक अनाथालय चलाते थे और जूडो कोच भी थे . सुकान्ति ने बिराची से मदद मांगी तो उन्होने उस दलाल को 800 रु देकर बुधिया को वापस ले लिया लेकिन उसे अपने साथ रखा . एक दफा बिरंची ने किसी बात पर गुस्से में आकर फिल्मी और पौराणिक स्टाइल में बुधिया को तब तक दौड़ते रहने की सजा दी जब तक कि वे उसे रुकने न कहें .

कोई पाँच घंटे बाद बिरंची ने देखा कि बुधिया अब भी दौड़ ही रहा है तो उन्हें हैरत के साथ चिंता भी हुई . उन्होने बुधिया की डाक्टरी जांच करवाई तो पता चला कि उसका नन्हा दिल सामान्य तरीके से धडक रहा है . बिरंची को बुधिया में कुछ खास नजर आया तो उन्होने उसे दौड़ने की ट्रेनिंग देना शुरू कर दी नतीजतन  5 साल का होने से पहले बुधिया कोई 50 मेराथन दौड़ें अपने नाम कर चुका था .

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बड़े पैमाने पर हल्ला तब मचा जब 2 मई 2006 को बिरंची ने बुधिया को पुरी के जगन्नाथ मंदिर से भुवनेश्वर तक समारोहपूर्वक 65 किलोमीटर दौड़ाया . बुधिया ने यह दूरी 7 घंटे 2 मिनिट में पुरी की थी .  यह एक हाहाकारी इवैंट और वर्ल्ड रिकार्ड था जिसे लिमका बुक के 2006 के संस्करण में भी जगह मिली थी . इस दौड़ को तब सीआरपीएफ ने स्पंसर किया था और मीडिया ने इसे खासा कवरेज दिया था . बुधिया पर पैसों की बरसात तो नहीं हुई लेकिन बौछारें खूब पड़ीं थीं .

बुधिया रातों रात हीरो बन गया लेकिन बाल कल्याण विभाग ने उसके मेराथन दौड़ने पर रोक लगा दी थी .  इस पर बुधिया के कारनामे से नाम और दाम दोनों कमा रहे बिरंची ने हाइकोर्ट का दरबाजा खटखटाया था लेकिन अदालत ने सरकार की दलीलों से इत्तफाक रखा कि इतनी कम उम्र में ज्यादा दौड़ने से बुधिया बर्नआउट का शिकार हो सकता है .

इस तरह 2007 में बुधिया और बिरंची अलग हो गए .  बुधिया को साई हॉस्टल में दाखिला मिल गया और बिराची अपना अनाथाश्रम संभालने लगे लेकिन कुछ महीने बाद ही बिराची की हत्या पुरानी किसी रंजिश के चलते 2 लोगों ने कर दी तो बुधिया एक बार फिर अनाथ सा हो गया . इसके बाद उसकी ज़िंदगी पर साल 2016 में एक फिल्म बुधिया सिंह – बार्न टू रन बनी जो ज्यादा नहीं चली और धीरे धीरे वह गुमनामी का शिकार हो गया . आनंद और बुधिया दोनों कुछ दिनों तक ओलंपिक में मेडल लाने की बात करते रहे . अब बुधिया कहाँ है और क्या कर रहा है इसकी अधिकृत या अनाधिकृत जानकारी के भी कोई जरूरत और माने नहीं रहे इसलिए कोई उसकी खोज खबर भी नहीं ले रहा .

एक है ज्योति-

ज्योति के कारनामे और कहानी में कुछ खास फर्क नहीं हैं .  दोनों ही निहायत ही गरीब घरों से हैं और ज्योति ने भी एकाएक ही बुधिया सरीखा कारनामा जिसे लाक डाउन से उपजी बेबसी कहना ज्यादा बेहतर होगा कर दिखाया है . ज्योति को भी बुधिया की तरह भुनाया जा रहा है लोग उस पर गर्व कर रहे हैं या तरस खा रहे हैं यह कह पाना मुश्किल है . गरीब का बच्चा कभीकभार ही ब्रांड बनता है और बनता भी क्या है मनोरंजन के लिए कुछ दिनों के लिए बना दिया जाता है यह बुधिया के बाद ज्योति को देख समझ आ रहा है .  साल दो साल बाद यह साबित भी हो जाएगा .

हालफिलहाल तो इतना भर हुआ था कि ज्योति अपने बीमार और घायल पिता मोहन पासवान  को गुरुग्राम से साइकिल पर बैठालकर लगभग 1200 किलोमीटर दूर दरभंगा के नजदीक अपने गाँव सिरहुल्ली ले आई थी . अगर यह सच है तो बिलाशक एक साहसिक बात है लेकिन इस सच के कई पेंच भी उजागर होने लगे हैं . ज्योति पर सभी का ध्यान उस वक्त ज्यादा गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बेटी इवांका ट्रम्प ने उसके जज्बे और साहस की तारीफ की .

बस इतना होने भर की देर थी कि लोग संस्थाएं और राजनैतिक दलों में होड सी लग गई . सबसे पहले बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने 16 मई को एक टीम सिरहुल्ली भेजी इस टीम ने ज्योति का नामांकन सरकारी स्कूल में दर्ज किया . इस दिन पिंडारुछ गाँव के सरकारी स्कूल में उसका नाम 9बी कक्षा में लिखा दिया गया जिससे कोई प्राइवेट स्कूल बाला यह श्रेय न लूट ले जाए जैसा कि बुधिया के मामले में हुआ था .

कहीं ज्योति और उसका परिवार दाखिले से नानुकुर न करने लगे इसलिए ज्योति को एक नई साइकिल के साथ साथ दो जोड़ी यूनिफ़ार्म , जूता मोजा , स्कूल बेग और किताबों का सेट दिया गया . गौरतलब है कि पैसों की कमी के चलते ज्योति पढ़ाई अधूरी छोड़ अपने मजदूर पिता के साथ गुरुग्राम चली गई थी . लाक डाउन के चलते पिता को काम मिलना बंद हो गया और मकान मालकिन किराए का तकाजा करने लगी तो ज्योति पिता को साइकिल पर बैठालकर गाँव वापस चल दी क्योंकि गुरुग्राम में खाने पीने के भी लाले पड़ने लगे थे . जब उसका कारनामा मीडिया के जरिये उजागर हुआ तो उसकी मदद करने बालों की भीड़ उमड़ने लगी .

सबने चमकाईं दुकानें –

स्कूली शिक्षा विभाग ने वाहवाही लूटी तो तुरंत ही चिल्ड्रन वेलफ़ेयरएसोशिएशन ने भी 5100 रु उसे देकर फोटो खिंचाए . इसके बाद सीएफआई यानि साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ज्योति को ट्रायल के लिए आने का न्यौता दे डाला . इस फेडरेशन के चेयरमेन ओंकार सिंह ने उसे शुभकामनाओं के साथ साथ सफ़ेद दाढ़ी बाले ऋषि मुनियों की तरह आशीर्वाद भी दे डाला . ज्योति के दिन  बिना पूजा पाठ और व्रत उपवास के सत्य नारायण की कथा की कलावती की तरह फिरने लगे और बुरे दिनों का श्राप सर से उतरने लगा .

राढ़ी पश्चिमी पंचायत के पटकोला स्थित डाक्टर गोविंद चन्द्र मिश्रा एज्यूकेशनल फाउंडेशन ने न केवल ज्योति को मुफ्त शिक्षा की पेशकश की बल्कि उसके पिता को भी नौकरी का ऑफर दे डाला . दरभंगा के एक और नामी डान बास्कोस्कूल ने भी ज्योति को मुफ्त पढ़ाई की पेशकश की .

इन पंक्तियों को लिखे जाने तक इमदाद , मदद और खैरात का सिलसिला जारी था हर कोई ज्योति को 5 – 10 हजार देकर अपना नाम और दुकान चमका रहा है . ये वे लोग और संस्थाएं हैं जिन्हें यह बेहतर मालूम है कि बिहार में ऐसी ज्योतियों की कमी नहीं जो गरीबी के चलते मिडिल स्कूल का मुंह भी नहीं देख पातीं और घर चलाने खुद भी मजदूरी करने लगती हैं लेकिन इन्हें ज्योति में काफी रोशनी यानि मुनाफा नजर आ रहा है लिहाजा हर कोई उस पर दांव लगा रहा है . ज्योति की शोहरत पर सुपर 30 के आनंद कुमार ने भी रोटियाँ सेंकी , उन्होने उसे मुफ्त आईआईटी की कोचिंग देने की बात कही .  आनंद का मकसद भी अपनी कोचिंग का नाम चमकाना ही ज्यादा दिखता है हालांकि वे गरीब दलित बच्चों को कोचिंग देने जाने जाते हैं लेकिन शुरुआती नेकनामी के बाद कई विवाद भी उनके साथ जुड़ चुके हैं .

सियासी दल भी पीछे नहीं

अब भला सियासी दल क्यों पीछे रहते उन्होने भी मौका ताड़ते ज्योति की आड़ में राजनीति का खेल खेलना शुरू कर दिया . लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष , सांसद और दलित नेता केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने भी ज्योति के माँ बाप से बात की कि उनकी पार्टी ज्योति की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाएगी .  ज्योति अपनी पसंद का विषय लेकर देश में जहां भी पढ़ना चाहे लोजपा मदद करेगी .

पासवान पिता पुत्र खुद उसी पासी समुदाय के हैं जिसकी कि ज्योति है .  इनहोने लाक डाउन में किसी पासी या दूसरे किसी समुदाय के एक भी दलित की रत्ती भर भी मदद शायद ही की हो लेकिन ज्योति को मीडिया ने हिट कर दिया तो इनहोने भी बहती गंगा में हाथ धो डाले .

चिराग पासवान का मदद का जज्बा एक घबराहट की देन था जो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की वजह से पैदा हुआ था . अखिलेश यादव ने ज्योति के परिवार को एक लाख रु नगद दिये थे क्योंकि वह उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल पर बैठकर आई थी . सपा ने यह राशि मामले के तूल पकड़ते ही ज्योति की माँ फूलोदेवी के खाते में ट्रांसफर कर वाहवाही लूट ली थी . अब हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर चिराग पासवान और अखिलेश दोनों ज्योति की शोहरत का फायदा चुनाव प्रचार में उठाने की कोशिश करें . चिराग पासवान ने तो ज्योति को राष्ट्रपति सम्मान दिलाने की भी पहल कर डाली .

अब भला राजद नेता बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी क्यों चूकतीं उन्होने भी वीडियो काल के जरिये ज्योति के माँ बाप से ऐसे बात की मानों वे उनकी सबसे सगी और असली हमदर्द हैं . राबड़ी ने ज्योति की मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था के साथ साथ उसकी शादी का खर्च भी उठाने की पेशकश कर डाली .  राबड़ी के बेटे तेजस्वी यादव ने तो तुरंत दान महा कल्याण की तर्ज पर ज्योति को 50 हजार रु दे दिये  . कल तक जो लड़की और उसके घर बाले भूखों मरने की कगार पर थे और कोई उनकी सुध लेने बाला नहीं था उनके एकाएक ही इतने मददगार और हमदर्द पैदा हो गए कि खुद उन्हें तय कर पाना मुश्किल हो रहा होगा कि किस की मदद लें और किसकी ठुकराएँ .

अब बारी भाजपा की थी जिसके सांसद और आरएसएस के नजदीकी नेता राकेश सिन्हा ने ज्योति को 25 हजार रु दान में दे डाले भाजपा ने ज्योति को एक साइकिल भी तोहफे में दी . राकेश सिन्हा ने ज्योति की तारीफ करते उसे युवाओं के लिए उदाहरण तक बता डाला .

कड़वा सच और हकीकत     

इन मददगारों की असल मंशा समझने से पहले उस सच और शक पैदा करते कुछ सवालों पर भी एक नजर डालना जरूरी है जो ज्योति की साइकिल यात्रा को कटघरे में खड़ा करता है . मीडिया और सोशल मीडिया ने ज्योति को हाथों हाथ लिया और उसे श्रवण कुमार तक करार दे दिया वही रामायण का गरीब किरदार श्रवण कुमार जो अपने माँ बाप को काँवड़ में बैठालकर घुमाता रहा था और दशरथ के तीर का शिकार हो गया था .

मीडिया की खबरों और रिपोर्टों में विकट के विरोधाभास हैं जो पीपली लाइव फिल्म की याद दिलाते हैं . कहा जा रहा है और तर्क भी दिये जा रहे हैं कि टीआरपी की खातिर मीडिया ने सच छिपाया और कई बातें और तथ्य उड़ा या छिपा लिए और तो और फर्जीवाड़ा भी किया  . एक रिपोर्ट के मुताबिक ज्योति अपने पिता को साइकिल पर बैठालकार 7 मई की रात को गुरुग्राम से चली थी और 15 मई की शाम को दरभंगा पहुँच गई . एक बड़े अखबार में छपी खबर के मुताबिक ज्योति और उसके पिता 10 मई को चले और 16 मई को घर पहुँच गए . यानि उसके चलने में ही विरोधाभास है .

एक नामी वेबसाइट की मानें तो मोहन पासवान का कहना है कि वे लोग 7 या 8 मई को चले थे और 15 मई को दरभंगा पहुँच गए थे . बहरहाल इस खबर को जब प्रमुख अमेरिकी न्यूयार्क टाइम्स ने प्रमुखता से प्रकाशित किया तो उससे प्रभावित होकर इवांका ट्रम्प ने ज्योति की तारीफ कर दी जिससे भारतीय मीडिया में खलबली मच गई और वे ज्योति के पीछे भागे . न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा था कि ज्योति ने अपनी साइकिल से रोजाना लगभग 160 किलोमीटर का सफर तय किया . एक अँग्रेजी पत्रिका के मुताबिक खुद ज्योति ने बताया था कि वह रोज 20 से 30 किलोमीटर साइकिल चलाती थी .  इस हिसाब से उसे 1200 किलोमीटर की दूरी तय करने में 40 से 60 दिन लगने चाहिए .

जब इस अविश्वसनीय कारनामे पर सवाल उठने लगे तो एक समाचार एजेंसी ने दावा किया कि मोहन ने उसे बताया था कि रास्ते में एक जगह उन्होने एक ट्रक में सफर किया था . उक्त वेबसाइट ने भी दावा किया कि मोहन पासवान ने एक नहीं बल्कि दो बार ट्रक में सफर करने की बात कबूली इसके वीडियो भी उसके पास हैं . हालांकि ज्योति ने ट्रक में सफर करने की बात से साफ इंकार कर दिया .

तो फिर सच क्या है और बात का बवंडर कैसे मचा इस पेचीदे सवाल का जबाब गाँव सिरहुल्ली के ही एक नौजबान ने दिया कि जब ज्योति गाँव आई तो हमें लगा कि यह खबर छपनी चाहिए इसलिए हमने उसका वीडियो बनाकर लोकल मीडिया को भेजा . जैसे ही खबर आम हुई तो और भी मीडिया बाले आने लगे उन्होने अपने हिसाब से ज्योति और उसके पिता से बुलबाना शुरू कर दिया . यहीं से बात ने तूल पकड़ा और ज्योति और उसके पिता भी यही कहने लगे कि वे पैदल आए हैं .

अपनी बात में दम लाते इस नौजबान ने यह भी बताया कि ज्योति के वीडियो के बेकग्राउंड में जो स्कूल दिख रहा है वहाँ उन्हें क्वारंटीन किया गया था यह गाँव का स्कूल है . बात सच इस लिहाज से नजर आती है कि किसी मीडिया बाले ने यह नहीं कहा कि उसने ज्योति से 1200 किलोमीटर के सफर के बीच में कहीं बात की थी . उक्त नौजबान पूरे आत्मविश्वास से कहता है कि ज्योति के सारे वीडियो गाँव में ही शूट किए गए जितने भी रिपोर्टर गाँव आए उन्होने ज्योति से उसके पिता को पीछे बिठलबाकर साइकिल चलबाई और वीडियो बनाया . कुछ वीडियो में ज्योति की ड्रेस भी अलग दिख रही है .

वेबसाइट ने ज्योति और उसका गुणगान कर रहे मीडिया को गलत साबित करने भारतीय साइकिलिंग टीम के मुख्य कोच राजेंद्र शर्मा के हवाले से भी कहा कि रेसिंग बाली साइकिल से एक आदमी औसतन 30 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से अधिकतम 10 घंटे तक ही साइकिल नहीं चला सकता वह भी अकेले , जबकि ज्योति के पीछे उसके 70 – 80 किलो वजनी पिता बैठे थे . राजेंद्र शर्मा तो कई तर्कों और अनुभवों से सवाल खड़े कर ही रहे हैं लेकिन कोई मामूली अक्ल बाला आदमी भी ज्योति की उपलब्धि को आसानी से नकार सकता है .

तो क्या ज्योति का कारनामा मीडिया की मनगढ़ंत कहानी है , मुमकिन है ऐसा हो लेकिन ऐसा क्यों किया गया इसका एक अंदाजा तो टीआरपी बढ़ाने को बताया जा रहा है जबकि दूसरा उससे भी ज्यादा खतरनाक और घातक है कि मकसद लोगों का ध्यान बंटाकर सरकार का नकारापन और निकम्मापन ढकना था क्योंकि लाखों मजदूर तब भी चिलचिलाती गर्मी में फटेहाल , बदहाल पैदल चल रहे थे और अभी भी चल रहे हैं . इनकी हालत देख सरकार को अब दिल से कोसने लगे हैं . क्या सैकड़ों हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे मजदूर ज्योति सरीखी वाहवाही , शाबाशी और इनामों के हकदार नहीं .

ज्योति का सच जो भी हो पर उसका हश्र बुधिया से इतर नहीं होगा ऐसा कहने की कोई वजह नहीं क्योंकि दोनों गरीब हैं और दोनों में से किसी के पास तकनीकी प्रतिभा नहीं है बल्कि हालातों ने इनसे हैरान कर देने बाले कारनामे करा लिए और मीडिया ने भी इन्हें खूब हवा दी जिससे टीआरपी बढ़े और दर्शक एक ऐसा तमाशा देखें जो आधी हकीकत और आधा फसाना है .

लाॅकडाउनः जाॅन अब्राहम बनाएंगे सुपरहिट मलयालम फिल्म ‘‘अय्यप्पनम कोशियुम’’का हिंदी रीमेक

लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू है.पिछले ढाई माह से फिल्म इंडस्ट्री में भी सब कुछ बंद है.सभी अपने अपने घरो में कैद हैं.मगर रचनात्मक इंसान चुप बैठ जाए,ऐसा तो हो ही नही सकता.तो घर के अंदर रहकर जो कुछ रचनात्मक काम सुचारू रूप से किया जा सकता है,उसे सभी करने में व्यस्त हैं.जी हॉ !इसी दौरान बॉलीवुड अभिनेता और फिल्म निर्माता जॉन अब्राहम ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘जे ए एंटरटेनमेंट’’के तहत अति लोकप्रिय एक्शन व रोमांच से भरपूर मलयालम फिल्म ‘‘अय्यप्पनम कोशियुम’’का हिंदी रीमेक बनाने की सारी कागजी काररवाही पूरी कर ली है.

सर्वविदित है कि सची निर्देशित और पृथ्वीराज सुकुमारन व बीजू मेनन के अभिनय से सजी फिल्म‘‘अय्यप्पनम कोषियुम’’ 7 फरवरी 2020 को प्रदर्शित हुई थी.छह करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म ने लाॅक डाउन लागू होने से पूर्व ही तकरीबन छप्पन करोड़ रूपए कमा लिए थे.

मलयालम फिल्म ‘‘अय्यप्पनम कोशियुम’’को हिंदी में बनाने के संदर्भ में जॉन अब्राहम कहते हैं-‘‘फिल्म‘अयप्पनम कोशियुम’ एक मनोरंजक फिल्म है.इसमें एक्शन, रोमांच और अच्छी कहानी के बीच एक सही संतुलन है.‘जे ए एंटरटेनमेंट’ में हम ऐसी आकर्षक कहानियों को अपने दर्शकों के सामने लाने के इच्छुक रहते हैं.समर्पण और फोकस के साथ हम जो करते हैं,उसी के चलते हमारी फिल्में दर्शकों को पसंद आती हैं.हम रीमेक करते हुए वास्तव में आकर्षक फिल्म बनाने की कोशिश करेंगें.

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यह फिल्म हमारी भविष्य की योजनाओं पर भी सही बैठती है क्योंकि हमें विश्वास है कि ‘कोविड 19’संकट खत्म होने के तुरंत बाद हिंदी फिल्म उद्योग कुशल और मनोरंजक फिल्मों के साथ वापसी करेगा.”
अय्यप्पनम कोशियुम के साथ, जेए एंटरटेनमेंट ने अपनी फिल्मों की सूची में उन सभी शैलियों को शामिल किया है, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर सफलता और आलोचनात्मक प्रशंसा प्राप्त की है.ज्ञातब्य है कि जाॅन अब्राहम इससे पहले ‘‘जे ए एंटरटेंनमेंट’के तहत ‘विक्की डोनर’,राजनैतिक रोमांचक फिल्म‘‘मद्रास कैफे’’और ‘‘परमाणुः द पोखरण’’,‘‘रॉकी हैंडसम’’,‘‘फोर्स 2’’,‘‘बाटला हाउस’’ जैसी फिल्मों के निर्माण से जुड़े रहे हैं.

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एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा: आसमान से गिरे खजूर पर लटके

हाल ही में दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व उत्तर पूर्वी दिल्ली के सांसद क्रिकेट खेलने हरियाणा पहुंच गए तो लोगों ने उन की जम कर आलोचना की.मनोज तिवारी ने इस दौरान न सिर्फ लौकडाउन का उल्लंघन किया, बल्कि उन की बिना मास्क लगाए तस्वीरें भी वायरल हुईं. सोशल मीडिया पर लोगों ने यहां तक कह डाला कि इस देश में 2 कानून हैं- अमीरों और रसूखदारों के लिए अलग व गरीब लोगों व मजदूरों के लिए अलग.

लोगों की इन बातों में सचाई भी है और यह सब देश में लागू लौकडाउन के बीच देखा भी गया है.
बात की गंभीरता इसलिए भी है कि एक तरफ नेता क्रिकेट खलेने में व्यस्त रहते हैं और इन पर कोई नियमकानून लागू नहीं होता, तो दूसरी तरफ देश के लोगों की यात्राओं पर अब सरकारें तुगलकी फरमान लागू कर वही कर रही है, जो पहले नोटबंदी में किया था.

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नोटबंदी में लोगों के पास पैसा था मगर वे अपने ही पैसे निकाल पाने में लाचार थे, तो अब जब पूरे देश में जगहजगह लोग कोरोना वायरस और फिर लौकडाउन की वजह से फंसें हैं और अपने घर जाना चाहते हैं उन की यात्राओं पर तमाम पाबंदियां लगा कर उन्हें और भी बेबस किया जा रहा है.

यात्राओं को ले कर लोग सरकारों पर भड़ास भी निकाल रहे हैं. सोशल मीडिया पर एक ने कहा,”पहले कोरोना और अब सरकार जीने नहीं दे रही. कई दिनों से शहर में फंसा हूं, स्वस्थ हूं मगर जब अपने गांव जाऊंगा तो अपने परिवार वालों से 14 दिनों या फिर इस से अधिक दिनों तक दूर ही रहना पङेगा.”

इस शख्स की पीङा इसलिए भी गौर करने लायक है कि देश में अगर कोई एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा पर निकलने वाला है तो उसे सीधे गांव या फिर अपने परिवार वालों से मिलने नहीं जाने दिया जा सकता है, क्योंकि देश और राज्य की सरकारों ने कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए अजीबोगरीब नियमकायदे बनाए हैं.

जरा गणित भी समझ लीजिए

हाल ही में केंद्र सरकार ने 25 मई से कुछ घरेलू उड़ानें व 1 जून से सीमित संख्या में यात्री ट्रैनों को चलाने की अनुमति तो दी है पर नियमकानून ऐसा कि जाने से पहले कोई 10 बार सोचे.
एक राज्य से दूसरे राज्य की या​त्राएं शुरू तो हो रही हैं, लेकिन यात्री जिस राज्य की सीमा में पहुंच कर वहां के नियमकानूनों से अनजान रहेंगे या फिर नहीं मानेंगे तो उन्हें खासा परेशानी झेलनी पङ सकती है और यह कुछ ऐसा ही है जैसे आसमान से गिरे और खजूर पर लटके.

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अब अगर आप एक राज्य से दूसरे राज्य जा रहे हैं तो आप को वहां के नियमकानूनों से वाकिफ होना जरूरी पड़ेगा.आप के लिए यह जानना भी जरूरी है कि अगर आप एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा करते हैं, तो आप को क्वारंटाइन के भी जरूरी नियमों से वाकिफ होना होगा. भले ही आप स्वस्थ हैं.

इतना ही नहीं आप किसी भी माध्यम से दूसरे राज्य पहुंचें, आप को हैल्थ स्क्रीनिंग से गुजरना होगा. स्क्रीनिंग के बाद यह तय होगा कि आप में कोविड-19 संबंधी लक्षण हैं या नहीं? अगर हैं तो आप को कोविड हैल्थकेयर केंद्रों यानी डीसीएचसी भेज दिया जाएगा.

अगर लक्षण नहीं हैं यानी आप ऐसिंप्टोमैटिक हैं तो भी आप को कोविड केयर केंद्रों में बने संस्थागत क्वारंटाइन भेजा जा सकता है. देश के राज्यों के नियम और कानून भी अलगअलग बनाए गए हैं.

हवाईयात्रा को ले कर नियम

अगर आप हवाईजहाज की यात्रा करने वाले हैं तो यह जानना आप के लिए जरूरी होगा कि एअरलाइंस के जरीए भारत पहुंचने वाले यात्रियों के लिए क्वारंटाइन अनिवार्य कर दिया गया है. पहले कुछ चिह्नित देशों से आने वाले यात्रियों को किया जा रहा था लेकिन ​अब दिल्ली सरकार ने कहा है कि किसी भी देश से आ रहे यात्रियों के लिए क्वारंटाइन अनिवार्य होगा.
हैल्थ चैकअप के बाद यह तय किया जाएगा कि किस तरह के क्वारंटाइन केंद्र में किस यात्री को भेजा जाए.

खबरों की मानें तो लौकडाउन के चौथे चरण में एक राज्य से दूसरे राज्य तक यात्रा करने पर क्या नियम होंगे, इस बारे में राज्यों को तय करना है. केंद्र की गाइडलाइन के मुताबिक 14 दिनों के क्वारंटाइन की सलाह दी गई है और ज्यादातर राज्य इसी का पालन कर रहे हैं, फिर भी कुछ बिंदुओं पर हर जगह फर्क है.

माननी ही पङेगी बात

उधर रेलवे ने यात्रा के लिए सिर्फ औनलाइन टिकट की व्यवस्था की है और अब इस में नया नियम जोड़ दिया गया है. टिकट बुक तभी होगा जब आप इस बात पर सहमत होंगे कि आप जिस राज्य की यात्रा कर रहे हैं, उस राज्य में उतरने पर वहां के नियम का पालन करेंगे. इस तरह का निर्देश टिकट बुकिंग के समय ही आएगा और अगर आप ने इसे कैंसिल किया तो टिकट बुक नहीं होगा.
इस निर्देश में लिखा होगा-
“मैं ने गंतव्य राज्य की स्वास्थ्य संबंधी हिदायतें पढ़ ली हैं। मैं उन्हें मंजूर करता हूं और उन का पालन करने का वचन देता हूं.”

यह कैसा विरोधाभास

उधर क्वारंटाइन को ले कर केंद्र सरकार की हिदायत है कि 14 दिनों का यह समय अनिवार्य हो। लक्षण होने पर निगरानी वाले संस्थागत या सरकारी केंद्रों में लोगों को रखे जाने और लक्षण न होने पर होम क्वारंटाइन किए जाने के लिए राज्य अपने हिसाब से फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं.

मगर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे कई राज्य इस बारे में केंद्र के निर्देशों का पालन कर रहे हैं, जबकि ओडिशा में होम क्वारंटाइन का समय बढ़ा कर 14 दिन से 28 दिन कर दिया गया है.

इस के अलावा पंजाब में क्वारंटाइन के सख्त नियमों के निर्देश हैं.वहीं, गुजरात में होम क्वारंटाइन किया जा सकता है.

लोगों को डराया क्यों जा रहा

कुछ राज्य क्वारंटाइन नियमों की अवहेलना के चलते लोगों पर मुकदमा भी दर्ज कर रहे हैं. संभव है कि अगर आप संबंधित राज्य के नियमकानूनों को नहीं मानें तो आप को वापस भी भेजा जा सकता है या फिर आप पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.

कोरोना वायरस में लागू लौकडाउन की वजह से एक तो लोग पहले से ही परेशान हैं और दूसरा जब वे अपने गांव अथवा घर जाना चाहें तो भी मुसीबत पीछा छोङने वाला नहीं है.

एक ही देश में अलगअलग राज्यों के नियमकायदे भी विरोधाभास को और भी पेचिदा बना रहे हैं और लोगों के सामने यात्रा करने को ले कर भ्रम की स्थिति है.

पहले भी मच चुका है बवाल

उधर राज्य के क्वारंटाइन जगहों को ले कर भी लोगों ने बवाल मचाया था. इन की शिकायते थीं कि वहां टौयलेट गंदे हैं, कमरे की साफसफाई कम होती है या फिर होती ही नहीं.खाना भी समय पर नहीं मिलता और मिलता भी है तो इंसानों के खाने लायक होता नहीं.

हाल ही में प्रवासी मजदूरों ने इन नियमों के खिलाफ आवाज भी उठाई थी पर जैसा कि इस देश में होता आया है, उन आवाजों को दबा दिया जाता है.

खबर यह भी है कि कोरोना वायरस में लागू लौकडाउन के बीच लाखोंकरोङों लोग बेरोजगार हो गए हैं। फैक्टरियां बंद पङी हैं और लोगों के हाथों में फूटी कौङी भी नहीं बचा है। ऐसे में जो अपने घर अथवा गांव जाना चाहते हैं, सरकारों के बनाए नियमकायदे उन्हें कोरोना वायरस से अधिक परेशानियों में डालेंगे यह तय है.

लॉकडाउन के बीच अक्षय कुमार ने की ‘‘कोविड 19’’के विज्ञापन की शूटिंग

 कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में 31 मई तक ‘‘लॉकडाउन’’का चौथा चरण जारी है.मुंबई में कोरोना का संक्रमण अपने पूरे उफान पर है.17 मार्च से ही बॉलीवुड में भी सन्नाटा पसरा हुआ है.सभी अपने अपने घरों में कैद हैं.एक अनुमान के अनुसार अब तक बॉलीवुड को दो हजार करोड़ से अधिक का नुकसान हो चुका है.

मगर देश में ‘‘लाॅक डाउन’’’ के चैथे चरण में कुछ राज्यों मे काफी छूट दे दी है और लोगों से कह दिया गया है कि कोरोना के साथ जीना होगा.लोगों ने भी कोरोना के साथ आगे बढ़ना और जीना सीख लिया है.एक तरफ जहां रेलवे और वायुयान सेवा शुरु हो गई है.परिणामतः पिछले एक सप्ताह से बाॅलीवुड को पटरी पर लौटाने के लिए माथापच्ची  की जा रही है.महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दो बार फिल्म प्रतिनिधियों से मुलाकात कर उनसे मुंबई में शूटिंग शुरू करने के लिए ठोस व सुरक्षित योजना बनाकर देने की बात कही.फिल्म प्रतिनिधियों ने अपनी योजना बनाकर दी या नही,यह पता नहीं मगर,अभिनेता अक्षय कुमार ने शूटिंग करनी शुरू कर दी.

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Sometimes it’s best to sit it out ? #ThisTooShallPass

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जी हाॅ!अक्षय कुमार ने मशहूर फिल्मकार आर बालकी के निर्देशन में बीस क्रू मेंबरो के साथ ‘‘लाॅक डाउन’’के बीच रवीवार,24 मई के दिन मंुबई के जोगेश्वरी इलाके में स्थित ‘‘कमालिस्तान’’ स्टूडियो में ‘कोरोना’की विज्ञापन फिल्म की शूटिंग की.इस विज्ञापन फिल्म का मकसद भारतवासियों को कोरोना के प्रति जागरूक करना है.शूटिंग शुरू करने वालांे का दावा है कि स्थानीय प्रशासन/मंुबई महानगर पालिका ने उन्हे षूटिंग करने की इजाजत दी थी.जबकि एक सूत्र का दावा है कि अक्षय कुमार और आर बालकी ने इस विज्ञापन फिल्म की शूटिंग करने की इजाजत भारत सरकार से ली थी.आखिरकार अक्षय कुमार ने जिस कोरोना विज्ञापन की षूटिंग की,वह भी केंद्र सरकार की ओर से कोरोना वायरस के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए चलाए गए अभियान का एक हिस्सा है.

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सेनेटाइजिंग और थर्मल स्क्रीन के अलावा मास्क व दास्तानों के साथ शूटिंग
अक्षय कुमार और आर बालकी की तरफ से दावा किया गया है कि शूटिंग के दौरान सभी स्वास्थ्य संबंधी सावधानियों का ख्याल रखा गया.षूटिंग की युुनिट द्वारा जारी एक वीडियो के अनुसार स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए शूटिंग स्थल पर पहुॅचने वाले हर सदस्य को सेेनेटाइजिंग की खास प्रक्रिया से गुजरना पड़ा.सबसे पहले आने वाले सभी सदस्यों को सेनिटाइजेशन टनल से गुजारा गया.इसके बाद उन्हें चेहरे पर लगाने के लिए मास्क और हाथों में पहनने के लिए दास्ताने दिए गए.उनके शरीर के तापमान की भी थर्मल जांच की गयी.

यॅूं भी अभिनेता अक्षय कुमार कोरोना संकट के इस दौर में लगातार लोगों  की मदद कर रहे हैं.अक्षय कुमार ने पीएम केयर फंड में पच्चीस करोड़ देने के साथ ही थिएटर मालिकों की भी मदद की.मुंबई पुलिस को भी कुछ सुरक्षा कवच दिए.अक्षय कुमार अकसर सोशल मीडिया के जरिए भी लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते रहते हैं.

जहाॅं तक फिल्मी कैरियर का सवाल है तो अक्षय कुमार की फिल्म ‘सूर्यवंशी‘ मार्च माह के अंतिम सप्ताह में प्रदर्शित होने वाली थी,मगर कोरोना वायरस संक्रमण और लॉकडाउन के चलते नही हो पायी.उनकी एक अन्य फिल्म‘‘लक्ष्मी बम’’भी प्रदर्शन के लिए तैयार है.वैसे ‘लक्ष्मी बम‘ को ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शित करने की खबरें गर्म हैं.

शूटिंग की इजाजत कैसे?
मगर अक्षय कुमार को ‘कोविड 19’ के लिए विज्ञापन फिल्म की षूटिंग करने की इजाजत कैसे मिली,इस पर भी कुछ सवाल उठ रहे हैं.फेसबुक पेज और सोशल मीडिया पर कई तरह की बयान बाजी हो रही है.लोग सवाल उठा रहे हैं बात बात पर अंकुश चलाने वाली बाॅलीवुड की एसोसिएशन चुप क्यंो रहीं?कुछ लोग इसे राजनैतिक रंग देेने की कोशिश कर रहे हैं.

कमाल आर खान ने कसा तंज
तो वहीं कमाल आर खान ने ट्वीट करते हुए अक्षय कुमार की शूटिंग करते हुए फोटो शेयर करते हुए लिखा- ‘‘अक्षय कुमार को हर चीज में जल्दबाजी में रहती हैं.जब लोग अपने-अपने घरों में बैठे हैं,तब वह सरकारी विज्ञापन के लिए शूट कर रहे हैं.‘‘

कृषि यंत्रों से खेती बने रोजगार का जरिया भी

कम होती खेती की जमीन, युवाओं का खेती से मुंह मोड़ कर शहरों की ओर कामधंधे की तलाश में पलायन करना आम बात है. देश के सब से ज्यादा पलायन करने वाले राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं.

सरकार युवाओं के लिए ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर मुहैया कराने में भी नाकाम साबित हो रही है. हालांकि कुछ लोग इन में ऐसे भी हैं, जो हाथ के दस्तकार हैं. वे अपने गांवों के आसपास ही कमाखा रहे?हैं.

कुछ लोग ऐसे भी?हैं, जिन के पास खेती की जमीन?है, पर वे भी खेती से संतुष्ट नहीं?हैं. वे लोग खेती से अधिक कमाई के लिए परदेश चले जाते हैं.

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आज देश कोरोना के कहर से जूझ रहा?है. देशभर में लोग अपने घर जाने के लिए परेशान हैं. वे जहांतहां फंसे हुए हैं. शहरों से उन का मोह भंग हो चुका है. अपनों के बीच पहुंचने की जल्दी है. जो लोग नहीं जा पा रहे हैं, उन को दो जून की रोटी के भी लाले पड़े हैं. उन्हें अपने खेतखलिहान, अपने लोग याद आ रहे?हैं.

ऐसे समय में उन के खेतिहर किसानों या कृषि से जुड़े लोगों को सीख लेनी चाहिए, जो कृषि को छोड़ कर शहरों की ओर रुख करते?हैं. जिन लोगों के पास खेती है, उन्हें खेती को ही बेहतर रोजगार का जरीया बनाना चाहिए.

कृषि के पारंपरिक तौरतरीकों को छोड़ कर नई तकनीकों से खेती करनी चाहिए. सरकारी स्कीमों का फायदा लेना चाहिए.

देश के?ज्यादातर किसानों के हालात ऐसे नहीं?हैं, जो ट्रैक्टर, हार्वेस्टर जैसे महंगे यंत्र खरीद सकें. ऐसे किसानों के लिए आज अनेक ऐसे कृषि यंत्र हैं, जो उन की पहुंच में?हैं और बड़े यंत्रों की जगह उन छोटे यंत्रों को इस्तेमाल कर फायदा ले सकते?हैं.

मशीनों के इस्तेमाल से समय और पैसे की भी बचत होती?है. उस बचे हुए समय को अन्य किन्हीं कामों में लगा सकते हैं. कृषि से जुड़े अनेक काम होते?हैं, उन्हें कर सकते?हैं.

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उन कृषि यंत्रों से दूसरों के खेतों में काम कर के भी आमदनी कर सकते?हैं.

यहां हम आप को कुछ ऐसे ही कृषि यंत्रों के बारे में जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं, जो आप के बड़े काम की?हैं:

ह्वीट कटर

यह एक ऐसी मशीन है, जिस की मदद से गेहूं, जौ, धान, चारा वगैरह फसलों को आसानी से काटा जा सकता है.

ह्वीट कटर से किसान फसल के अलावा घासफूस और छोटीमोटी झाड़ी, जंगल को भी साफ कर सकते हैं. यह मशीन पैट्रोल से चलती है और एक आदमी इस मशीन को बैल्ट की मदद से अपनी कमर में बांध कर आसानी से फसल को काट सकता है.

स्प्रे पंप

अच्छी फसल हासिल करने के लिए समयसमय पर कीटनाशक, बीमारीनाशक और खरपतवारनाशक दवाओं का छिड़काव बहुत ही जरूरी है. फसल की लागत में बीज, खाद, पानी के बाद सब से ज्यादा लागत कैमिकलों पर आती है. इस स्प्रे पंप की खास बात यह है कि इस में दवा का पूरापूरा इस्तेमाल होता है. यह बागबगीचों में कैमिकल का स्प्रे बहुत ही अच्छी तरह से करता है.

कैमिकल निकालने के लिए एक सूई की नोक के बराबर पौइंट होता है और इस में प्रैशर से फौग बनता है. थोड़ा सा कैमिकल धुएं का गुबार बन कर गिरता है. इस तकनीक से

50 फीसदी तक कैमिकल की बचत होती है.

पावर टिलर

इस को छोटा ट्रैक्टर भी कहते हैं. छोटे खेत और पहाड़ों पर सीढ़ीनुमा खेतों में पावर टिलर बहुत ही कारगर है. इस से ट्रैक्टर द्वारा किए जाने वाले तमाम काम किए जा सकते हैं. मसलन, जुताई, सिंचाई, ढुलाई, कटाई, मेंड़ बनाने वगैरह खेती के सभी कामों में यह इस्तेमाल होता है.

टिलर छोटा, हलका और असरदार होता है. इस का रोटावेटर न केवल जुताई करता है, बल्कि खेत की मिट्टी को अच्छी तरह से मिला देता है. बागबगीचों, आलू, गन्ना, औषधीय पौधों वगैरह के खेतों में मेंड़ बनाना, नाली तैयार करना, निराईगुड़ाई या खरपतवार निकालना वगैरह कामों में टिलर कामयाब है. केले या अंगूर के बागों में दवा का छिड़काव या सिंचाई जैसे काम टिलर से ही मुमकिन हैं.

टिलर से पेड़पौधों के चारों तरफ थाले बनाए जा सकते हैं. इस से खेत की जुताई, रीजर द्वारा नाली बनाना, धान की फसल की मचाई करना जैसे काम किए जा सकते हैं. ट्रैक्टर की तरह ही टिलर में तकरीबन एक दर्जन औजार जोड़ कर बहुत सारे काम किए जा सकते हैं.

पावर वीडर

फसल में उगे खरपतवारों को निकालने के लिए पावर वीडर बहुत ही कामयाब मशीन है. हाथ से खेत की निराईगुड़ाई करने में समय और पैसा बहुत लगता है. इस के अलावा खेती में मजदूरों की लगातार होती कमी भी एक बड़ी परेशानी है. ऐसे में पावर वीडर बहुत ही मददगार साबित हो रहा है.

यह पावर वीडर 60-65 किलोग्राम वजनी है और यह पैट्रोल से चलने वाली मशीन है.

2 पहियों पर रखी मशीन को चलाने के लिए हैंडिल दिए हुए हैं. यह 18-20 इंच चौड़ाई में निराईगुडाई करती हुई आगे बढ़ती है.

एक आदमी इसे बड़ी आसानी से चलाता हुआ तकरीबन डेढ़ घंटे में एक एकड़ खेत

की निराईगुड़ाई कर सकता है. यह गन्ना और सब्जी की खेती में निराईगुड़ाई में बहुत ही कारगर है.

इस तरह और भी बहुत सारी छोटी मशीनें जैसे गन्ना सफाई मशीन, पावर रीपर, कल्टीवेटर, पेड़ वगैरह की कटाई के लिए चैनसा और बागबानी के लिए गड्ढे खोदने के लिए अर्थ औगर वगैरह हैं, जिन की मदद से कम लागत में खेती के काम को आसान कर पैदावार को कई गुना बढ़ा सकते हैं.

धर्मणा के स्वर्णिम रथ- पाखी को अधर्मी क्यों कहते थें लोग? भाग 1

लाख रुपए का खर्च सुन जब ममता विस्मित हो उठीं तो उन के पति किशोरीलाल ने उन्हें समझाया, ‘‘जब बात धार्मिक उत्सव की हो तो कंजूसी नहीं किया करते. आखिर क्या लाए थे जो संग ले जाएंगे. सब प्रभु का दिया है.’’ फिर वे भजन की धुन पर गुनगुनाने लगे, ‘‘तेरा तुझ को अर्पण, क्या लागे मेरा…’’ ममता भी भक्तिरस में डूब झूमने लगीं.

दिल्ली के करोलबाग में किशोरीलाल की साड़ीलहंगों की नामीगिरामी दुकान थी. अच्छीखासी आमदनी होती थी. परिवार में बस एक बेटाबहूपोता. सो, धर्म के मामले में वे अपना गल्ला खुला ही रखते थे.

खर्च करना किशोरीलाल का काम और बाकी सारी व्यवस्था की देखरेख ममता के सुपुर्द रहती. वे अकसर धार्मिक अनुष्ठानों, भंडारों, संध्याओं में घिरी रहतीं. समाज में उन की छवि एक धार्मिक स्त्री के रूप में थी जिस के कारण सामाजिक हित में कोई कार्य किए बिना ही उन की प्रतिष्ठा आदरणीय थी.

अगली शाम साईं संध्या का आयोजन था. ममता ने सारी तैयारी का मुआयना खुद किया था. अब खुद की तैयारी में व्यस्त थीं. शाम को कौन सी साड़ी पहनी जाए… किशोरीलाल ने 3 नई साडि़यां ला दी थीं दुकान से. ‘साईं संध्या पर पीतवस्त्र जंचेगा,’ सोचते हुए उन्होंने गोटाकारी वाली पीली साड़ी चुनी. सजधज कर जब आईना निहारा तो अपने ही प्रतिबिंब पर मुसकरा उठीं, ‘ये भी न, लाड़प्यार का कोई मौका नहीं चूकते.’

शाम को कोठी के सामने वाले मंदिर के आंगन में साईं संध्या का आयोजन था. मंदिर का पूरा प्रांगण लाल और पीले तंबुओं से सजाया गया था. मौसम खुशनुमा था, इसलिए छत खुली छोड़ दी थी. छत का आभास देने को बिजली की लडि़यों से चटाई बनाईर् थी जो सारे परिवेश को प्रदीप्त किए हुए थी. भक्तों के बैठने के लिए लाल दरियों को 2 भागों में बिछाया गया था, बीच में आनेजाने का रास्ता छोड़ कर.

एक स्टेज बनाया गया था जिस पर

साईं की भव्य सफेद विशालकाय

मूर्ति बैठाईर् गई थी. मूर्ति के पीछे जो परदा लगाया था वह मानो चांदीवर्क की शीट का बना था. साईं की मूर्ति के आसपास फूलों की वृहद सजावट थी जिस की सुगंध से पूरा वातावरण महक उठा था. जो भी शामियाने में आता, ‘वाहवाह’ कहता सुनाई देता. प्रशंसा सुन कर ममता का चेहरा और भी दीप्तिमान हो रहा था.

नियत समय पर साईं संध्या आरंभ हुई. गायक मंडली ने भजनों का पिटारा खोल दिया. सभी भक्तिरस का रसास्वादन करने में मगन होने लगे. बीचबीच में मंडली के प्रमुख गायक ने परिवारजनों के नाम ले कर अरदास के रुपयों की घोषणा करनी शुरू की. ग्यारह सौ की अरदास, इक्कीस सौ की अरदास… धीरेधीरे आसपास के पड़ोसी भी अरदास में भाग लेने लगे. घंटाभर बीता था कि कई हजारों की अरदास हो चुकी थी. जब अरदास के निवेदन आने बंद होने लगे तो प्रमुख गायक ने भावभीना भजन गाते हुए प्रवेशद्वार की ओर इशारा किया.

सभी के शीश पीछे घूमे तो देखा कि साक्षात साईं अपने 2 चेलों के साथ मंदिर में पधार रहे हैं. उन की अगुआई करती

2 लड़कियां मराठी वेशभूषा में नाचती आ रही हैं. साईं बना कलाकार हो या साथ में चल रहे 2 चेले, तीनों का मेकअप उम्दा था. क्षीणकाय साईं बना कलाकार अपने एक चेले के सहारे थोड़ा लंगड़ा कर चल रहा था. उस की गरदन एक ओर थोड़ी झुकी हुईर् थी और एक हाथ कांपता हुआ हवा में लहरा रहा था. दूसरे हाथ में एक कटोरा था.

उस कलाकार के मंदिर प्रांगण में प्रवेश करने की देर थी कि भीड़ की भीड़ उमड़ कर उस के चरणों में गिरने लगी. कोई हाथ से पैर छूने लगा तो कोई अपना शीश उस के पैरों में नवाने लगा. लगभग सभी अपने सामर्थ्य व श्रद्धा अनुसार उस के कटोरे में रुपए डालने लगे. बदले में वह भक्ति में लीन लोगों को भभूति की नन्हीनन्ही पुडि़यां बांटने लगा.

सभी पूरी भक्ति से उस भभूति को स्वयं के, अपने बच्चों के माथे पर लगाने लगे. जब कटोरा नोटों से भर जाता तो साथ चल रहे चेले, साईं बने कलाकार के हाथ में दूसरा खाली कटोरा पकड़ा देते और भरा हुआ कटोरा अपने कंधे पर टंगे थैले में खाली कर लेते. और वह कलाकार लंगड़ा कर चलते हुए, गरदन एक ओर झुकाए हुए, कांपते हाथों से सब को आशीर्वाद देता जाता.

भक्ति के इस ड्रामे के बीच यदि किसी को कोफ्त हो रही थी तो वह थी ममता और किशोरीलाल की बहू पाखी. पाखी एक शिक्षित स्त्री थी, जिस की शिक्षा का असर उस के बौद्धिक विकास के कारण साफ झलकता था. वह केवल कहने को पढ़ीलिखी न थी, उस की शिक्षा ने उस के दिमाग के पट खोले थे. वह इन सब आडंबरों को केवल अंधविश्वास मानती थी. लेकिन उस का विवाह ऐसे परिवार में हो गया था जहां पंडिताई और उस से जुड़े तमाशों को सर्वोच्च माना जाता था. अपने पति संबल से उस ने एकदो बार इस बारे में बात करने का प्रयास किया था किंतु जो जिस माहौल में पलाबढ़ा होता है, उसे वही जंचने लगता है.

संबल को इस सब में कुछ भी गलत नहीं लगता. बल्कि वह अपने मातापिता की तरह पाखी को ही नास्तिक कह उठता. तो पाखी इन सब का हिस्सा हो कर भी इन सब से अछूती रहती. उसे शारीरिक रूप से उपस्थित तो होना पड़ता, किंतु वह ऐसी अंधविश्वासी बातों का असर अपने ऊपर न होने देती. जब भी घर में कीर्तन या अनुष्ठान होते, वह उन में थोड़ीथोड़ी देर को आतीजाती रहती ताकि क्लेश न हो.

उस की दृष्टि में उस की असली पूजा उस की गोद में खेल रहे मनन का सही पालनपोषण और बौद्धिक विकास था. अपने सारे कर्तव्यों के बीच उस का असली काम मनन का पूरा ध्यान रखना था. कितनी बार उसे पूजा से उठ कर जाने पर कटु वचन भी सुनने पड़ते थे. परंतु वह इन सब की चिंता नहीं करती थी. उस का उद्देश्य था कि वह मनन को इन सब पोंगापंथियों से दूर रखेगी और आत्मविश्वास से लबरेज इंसान बनाएगी.

साईं संध्या अपनी समाप्ति की ओर थी. अधिकतर भजनों में मोहमाया को त्यागने की बात कही जा रही थी. आखिरी भजन गाने के बाद मुख्य गायक ने भरी सभा में अपना प्रचारप्रसार शुरू किया. कहां पर उन की दुकान है, वे कहांकहां जाते हैं, बताते हुए उन्होंने अपने विजिटिग कार्ड बांटने आरंभ कर दिए, ‘‘जिन भक्तों को साईं के चरणों में जाना हो, और ऐसे आयोजन की इच्छा हो, वे इस संध्या के बाद हम से कौंटैक्ट कर सकते हैं,’’ साथ ही, प्रसाद के हर डब्बे के नीचे एक कार्ड चिपका कर दिया जा रहा था ताकि कोई ऐसा न छूट जाए जिस तक कार्ड न पहुंचे.

सभी रवाना होने लगे कि रानी चाची ने माइक संभाल लिया, ‘‘भक्तजनो, मैं आप सब से अपना एक अनुभव साझा करना चाहती हूं. आप सब समय के बलवान हैं कि ऐसी मनमोहक साईं संध्या में आने का सुअवसर आप को प्राप्त हुआ. मैं ने देखा कि आप सभी ने पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ यह शाम बिताई. साईं बाबा का आशीर्वाद भी मिला. तो बोलो, जयजय साईं,’’ और सारा माहौल गुंजायमान हो उठा, ‘‘जयजय साईं.’’

‘‘रानी की यह बात मुझे बहुत भाती है,’’ अपनी देवरानी के भीड़ को आकर्षित करने के गुण पर ममता बलिहारी जा रही थीं.

रानी चाची ने आगे कहा, ‘‘आप लोगों में से शायद कोई एकाध ऐसा नास्तिक भी हो सकता है जो आज सभा में आए साईं बाबा को एक मनुष्यरूप में देखने का दुस्साहस कर बैठा हो. पर बाबा ऐसे ही दर्शन दे कर हमारी प्यास बुझाते हैं. मैं आप को एक सच्चा किस्सा सुनाती हूं-‘‘गत वर्ष मैं और मेरी भाभी शिरडी गए थे. वहां सड़क पर मुझे साईं बाबा के दर्शन हुए. उन्हें देख मैं आत्मविभोर हो उठी और उन्हें दानदक्षिणा देने लगी. मेरी भाभी ने मुझे टोका और कहने लगीं कि दीदी, यह तो कोई बहरूपिया है जो साईं बन कर भीख मांग रहा है.

‘‘अपनी भाभी की तुच्छ बुद्धि पर मुझे दया आई. पर मैं ने अपना कर्म किया और बाबा को जीभर कर दान दिया. मुश्किल से

20 कदम आगे बढ़े थे कि मेरी भाभी को ठोकर लगी और वे सड़क पर औंधेमुंह गिर पड़ीं. साईं बाबा ने वहीं न्याय कर दिया. इसलिए हमें भगवान पर कभी शक नहीं करना चाहिए. जैसा पंडितजी कहें, वैसा ही हमें करना चाहिए.’’

सभी लोग धर्म की रौ में पुलकित हो लौटने लगे. रानी को विदा करते समय ममता ने कहा, ‘‘रानी, अगले हफ्ते से नवरात्र आरंभ हो रहे हैं. हर बार की तरह इस बार भी मेरे यहां पूरे 9 दिन भजनकीर्तन का प्रोग्राम रहेगा. तुझे हर रोज 3 बजे आ जाना है, समझ गई न.’’

‘‘अरे जिज्जी, पूजा हो और मैं न आऊं? बिलकुल आऊंगी. और हां, फलों का प्रसाद मेरी तरफ से. आप मखाने की खीर और साबूदाना पापड़ बांट देना. साथ ही खड़ी पाखी सब देखसुन रही थी. पैसे की ऐसी बरबादी देख उसे बहुत पीड़ा होती. स्वयं को रोक न पाई और बोल पड़ी, ‘‘मां, चाचीजी, क्यों न यह पैसा गरीबों में बंटवा दिया

जून-जुलाई में पीक पर होगा कोरोना, ऐसे रखें अपना ध्यान

कोरोना ने पूरे भारत पर अपने पैर पसारे हुए हैं और तो और एम्स के डायरेक्टर आर. गुलेरिया ने भी कह दिया है कि जून-जुलाई पर कोरोना पीक पर आ सकता है यानी की अपनी चरम सीमा पर आ सकता है.वैश्विक महामारी के कारण जहां चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है लोग परेशान है,अफरा-तफरी मची हुई है.इस महामारी के कारण लोग भय के साये में जी रहे हैं.ऐसे में अगर किसी को सबसे ज्यादा चिंता है तो वो खान-पान को लेकर है क्योंकि इस स्थिति में लोगों को जीने के लिए खाना तो चाहिए ही लेकिन वो भी खरीदना काफी खतरनाक हो रहा है.

ऐसे दौर में संतुलित और स्वच्छ भोजन ही लोगों को इस बिमारी से निजात दिलाएगा औऱ उन्हें सुरक्षित रखेगा. और इसे ही देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन विश्व (WHO) ने रविवार को खान-पान को लेकर कुछ जरूरी दिशा-निर्देश यानी की कुछ गाइड लाइन जारी की है जिसे आपको जरूर अपनाना चाहिए ,जिसे अपना कर आप कोरोना के प्रभाव से काफी हद तक बच सकते हैं.यहां तक कि कोरोना से लड़ने में ये गाइडलाइन आपकी मदद करेगा.

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सावधानियां क्या-क्या होनी चाहिए और क्यों ?

1 टॉयलेट जाने के बाद हांथ जरूर धोयें,

2 रसोईं घर को कीड़ों-मकौड़ों से मुक्त रखें,

3 खाना बनाने की जगह को,चूल्हे और बर्तन को अच्छी तरह धोएं और उन्हें साफ रखें सैनिटाइज भी करें.

4 सब्जियां, फल, कटिंग बोर्ड,चाकू जो कि हर वक्त इस्तेमाल करते हैं,लाइटर कीचन का हर एक सामान साफ करते रहें.

5 खाना खाने से पहले और खाने के बाद हांथ जरूर धोएं.

6 कच्चे भोजन को बनाए हुए भोजन से भी दूर रखना रखें जो लोग नॉनवेज खाना पसंद करते हैं वो भी उसे ऐसे ही सैनिटाइज करके औऱ साफ करके खाएं लेकिन यदि कुछ समय के लिए नॉनवेज ना खाएं तो ज्यादा बेहतर होगा.

7 खाने को अच्छी तरह से पकाएं.

8 यदि आप सूप जैसी चीजें बना रहें हैं तो याद रखें की तापमीन लगभग 70 डिग्री सेल्सियस पर जरूर

9 यहां तक की पके हुए भोजन को भी अच्ची तरह दोबारा से गर्म करें.

10 पके हुए भोजन को ज्यादा देर तक फ्रीज में ना रखें तो बेहतर है.

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ये सारी चीजें अपने दिनचर्या में अपना कर आप कोरोना जैसी घातक बीमारी से लड़ भी सकते हैं और उससे बच सकते है. क्योंकि आप सामान लेने के लिए बाहर जाते हैं तो जाहिर है सब्जियां और फल सभी कुछ बाहर का होता है इसलिए सावधानी बरतना ही आपके लिए बेहतर है.

ये सब आपको इसलिए करना है ताकि कोरोना तो क्या कोई भी बीमारी ना फैले. क्योंकि सबसे ज्यादा बीमारी तो इसी से फैलती है.

धर्मणा के स्वर्णिम रथ- पाखी को अधर्मी क्यों कहते थें लोग? भाग 4

इस घटना से पाखी भीतर तक सिहर गई. क्या सच में उसे अपने किए की सजा मिल रही थी? क्या धर्म की दुकान के आगे नतमस्तक न हो कर वह पाप की भागीदारिणी बन रही है? पाखी का हृदय व्याकुल हो उठा. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. क्या उसे भी अन्य की भांति धार्मिक ढकोसलों के आगे झुक जाना चाहिए, या फिर अपने तर्कवितर्क से जीवन मूल्यों को मापना चाहिए. इसी अस्तव्यस्तता की अवस्था में वह घर की छत पर जा पहुंची. संभवतया यहां उसे सांस आए. अमूमन घर की स्त्रियां छत पर केवल सूर्यचंद्र को अर्घ्य देने आया करती थीं. लंबीलंबी श्वास भरते हुए पाखी छत के एक कोने में जा बैठी. अभी उस का उद्वेलित मन शांत भी नहीं हुआ था कि उसे छत पर निकट आती कुछ आवाजें सुनाई दीं.

‘‘तो क्या करती मैं? खून का घूंट पी कर रह जाती उस कल की छोकरी से?’’ ये रानी चाची के स्वर थे, ‘‘उसे सबक सिखाना जरूरी था और फिर हार का क्या, मैं भी तो इसी परिवार का हिस्सा हूं. मेरे पास रह गया हार, तो कोई अनर्थ नहीं हो जाएगा.’’

तो क्या हार को जानबूझ कर रानी चाची ने गायब किया? उफ, पाखी का मन और भी भ्रमित हो उठा. धर्म के आगे न झुकने पर उस के अपने परिवार वाले ही उसे सजा दे रहे थे?

‘‘पकड़ी जाती तो?’’ यह एक मरदाना सुर था.

‘‘पर पकड़ी गई तो नहीं न?’’ रानी चाची अपनी होशियारी पर इठलाती प्रतीत हो रही थीं.

‘‘पकड़ी गई,’’ यह फिर उसी मरदाना सुर में आवाज आई. साथ ही, पाखी ने गुदगुदाने वाले स्वर सुने, मानो कोई चुहलबाजी कर रहा हो. बहुत सावधानी से पाखी ने झांका, तो हतप्रभ रह गई. उस के ससुर किशोरीलाल और रानी चाची एकदूसरे के साथ ठिठोली कर रहे थे. किशोरीलाल की बांहें

रानी चाची को अपने घेरे में लिए

हुए थीं और रानी चाची झूठमूठ कसमसा रही थीं. किशोरीलाल के

हाथ रानी चाची के अंगअंग पर मचल रहे थे.

‘‘छोड़ो न, जाने दो. कहीं ममता आ गई तो क्या कहोगे?’’ अब रानी, किशोरीलाल को छेड़ रही थी, ‘‘इस से तो अपनी दुकान का वह कमरा ही सुरक्षित है. अपने भाई को घर जाने दो. बाद में मुझे छोड़ने के बहाने वहीं चलेंगे. और हां, दीवाली पर एक नई साड़ी लूंगी तुम से.’’

‘‘ले लेना, मेरी जानेमन, पर पहनाऊंगा मैं ही,’’ किशोरीलाल और रानी की बेशर्मियों से पाखी के कान सुर्ख हो चले थे.

आज पाखी के दिल को तसल्ली मिली थी. अच्छा ही है जो वह यहां मिसफिट है. आखिर, ऐसी मानसिकता जो समाज में दोहरे रूप रखे, बाहरी ढकोसलों में स्वयं को भक्तसंत होने का दिखावा करे, पर अंदर ही अंदर परिवार के सगे रिश्तों को भी वासना की आंच से न बचा पाए, उन में ढल जाना पाखी को कतई स्वीकार न था. ऐसी धर्मणा बनने या फिर उस के दिखावेभरे स्वर्णिम रथों पर सवार होने की उस

की कोई इच्छा न थी. वह अधर्मी

ही भली.

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