Download App

कोरोना वायरस से बेहाल बौलीवुड

सिनेमा जगत पर भी कोरोना का कहर बुरी तरह बरपा है, चाहे बौलीवुड हो या क्षेत्रीय सिनेमा, सभी को कोरोना की मार झेलनी पड़ रही है. इंडस्ट्री के सभी डिपार्टमैंट और प्रोडक्शन के काम जैसे कास्टिंग, लोकेशन ढूंढ़ना, टेक स्काउटिंग, कौस्टयूम फिटिंग, वार्डरोब, हेयर ऐंड मेकअप आर्ट, साउंड व कैमरा, केटरिंग, एडिटिंग, साउंड और वौयस ओवर जैसे सभी काम ठप पड़ गए हैं और ये काम करने वालों के पास कोई काम नहीं है और न ही कमाई का जरीया है.

ऐक्सपर्ट्स के अनुसार, सिनेमाघरों के बंद होने, शूटिंग रुकने, प्रमोशनल इवेंट्स के न होने और इंटरव्यू रुकने के चलते टीवी और फिल्म इंडस्ट्री को आने वाले समय में भारी नुकसान झेलना पड़ेगा.

यह नुकसान कितना बड़ा होगा, इस के सही आंकड़ें अभी मौजूद नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि इंडस्ट्री को 100 से 300 करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है.

बंद पड़े हैं सिनेमाघर

तकरीबन 9,500 सिनेमाघरों को बंद कर दिया गया है और आने वाले कुछ हफ्तों तक इन के खुलने की कोई संभावना नहीं है. हर साल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 1,200 फिल्में बनती हैं. इन फिल्मों की कमाई मल्टीप्लैक्स से आती है, जो लौकडाउन के दौरान बंद हैं.

मार्च माह में सब से पहले रिलाइंस एंटरटेनमैंट ने रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सूर्यवंशी’ की तारीख आगे बढ़ाई थी, जिस के बाद फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’, ‘हाथी मेरे साथी’ समेत 83 फिल्मों की रिलीज की तारीख टाल दी गई.

ये भी पढ़ें-लाॅकडाउनः जाॅन अब्राहम बनाएंगे सुपरहिट मलयालम फिल्म ‘‘अय्यप्पनम

फिल्म ‘बागी’ 3 मार्च को पहले हफ्ते में रिलीज जरूर हुई, लेकिन उस की टिकटों की बिक्री नहीं हुई थी. इस का एक कारण भारत में बढ़ रहा कोरोना का खतरा था.

इसी तरह इरफान खान और राधिका मदान की फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ को बौक्स औफिस से निकाल ओटीटी प्लेटफार्म डिज्नी होट स्टार पर रिलीज किया गया. क्षेत्रीय फिल्मों को भी रिलीज से रोक दिया गया था.

ओटीटी प्लेटफार्म्स बैस्ट औप्शन नहीं

रिलीज डेट आगे बढ़ जाने और सिनेमाघरों के बंद होने के चलते फिल्म, टीवी व वैब सीरीज की शूटिंग को रोक दिया गया, जिस पर लौकडाउन के बाद पूरी तरह विराम लग गया. ओटीटी प्लेटफार्म्स जैसे अमेजन प्राइम, नैटफ्लिक्स पर कुछ फिल्में रिलीज जरूर हो रही हैं, लेकिन यह हर फिल्म के लिए संभव नहीं है कि वह ओटीटी तक पहुंच पाए और न ही ओटीटी प्लेटफार्म्स हर बड़ी फिल्म को खरीद सकते हैं.

चर्चित तेलुगु फिल्म प्रोड्यूसर एसकेएन का कहना है कि लगभग 1,000 सीटों वाले सिनेमाघरों को महीने के 10 लाख रुपए का घाटा हो रहा है.

एसकेएन इस बात को ले कर चिंतित हैं कि ओटीटी प्लेटफार्म्स लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे या नहीं. वे कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि ओटीटी प्लेटफार्म्स उन फिल्मों को खरीदना चाहेंगे, जो सिनेमाघर में रिलीज नहीं हुई हैं, क्योंकि हमें नहीं पता कि कौन सी फिल्म सिनेमाघर में हिट साबित होगी और कौन सी नहीं. और यह साफ है कि ओटीटी उन्हीं फिल्मों को खरीदना चाहते हैं, जो पहले से ही हिट हों.”

इस समय एंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में केवल ओटीटी प्लेटफार्म ही ऐसे हैं, जो फायदे में हैं. बहुचर्चित शोज और फिल्मों को लोग लौकडाउन के चलते बिंज वौच कर रहे हैं, जिन के जरीए इन प्लेटफार्म की व्युअरशिप बढ़ी है.

साल 2019 में इस इंडस्ट्री ने 17,300 करोड़ रुपए की कमाई की थी. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि साल 2020 में इन प्लेटफार्म्स की कमाई के कितने रिकौर्ड टूटेंगे.

यह जगजाहिर है कि सिनेमाघरों में बौलीवुड फिल्मों की रिलीज व उस की मान्यता कितनी महत्वपूर्ण है, जोकि ओटीटी प्लेटफार्म्स पर होना मुश्किल है. दूसरी तरफ, ओटीटी प्लेटफार्म्स 5 करोड़ की फिल्म तो खरीद सकते हैं लेकिन वे 100 करोड़ की फिल्म खरीदने में असमर्थ होंगे. इसलिए बौलीवुड फिल्मों को सिनेमाघरों में रिलीज करना आवश्यक है.

इन फिल्मों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली, मुंबई और चेन्नई समेत भारत के 10 महानगरों से आता है, जो फिलहाल कोरोना वायरस के हौटस्पौट हैं. इस स्थिति में बौलीवुड की बिग बजट फिल्मों का भविष्य अंधकारमय है.

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन के बीच अक्षय कुमार ने की ‘‘कोविड 19’’के विज्ञापन की शूटिंग

कर्मचारियों की है हालत पस्त  बड़े सितारे आएदिन सोशल मीडिया के जरीए अपनी उपस्थिति दिखाते हैं. किसी को अपने एसी खराब होने की चिंता है, तो कोई बरतन धोने को प्रोडक्टिविटी के रूप में पेश कर रहा है. परंतु, फिल्मों के बैकग्राउंड में काम करने वालों के लिए यह समय बेरोजगारी और भुखमरी ले कर आया है.

फिल्मों की शूटिंग और उस से जुड़े सभी प्रोडक्शन और प्रमोशन के काम बंद होने का इतना असर बड़े बैनर्स और ऐक्टर्स पर नहीं पड़ा है, जितना फिल्मों से जुड़े छोटे स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों पर हुआ है. क्रू मेंबर्स, दिहाड़ी पर काम करने वाले और छोटेमोटे प्रोजेक्ट्स से पैसा कमाने वाले लोगों के लिए जीवन निर्वाह करना मुश्किल हो गया है. वे दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हो चुके हैं.

प्रोड्यूसर्स गिल्ड औफ इंडिया के अनुसार, बौलीवुड का काम ठप होने से इंडस्ट्री से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े तकरीबन 10 लाख लोगों पर कोरोना के चलते प्रभाव पड़ रहा है. अनेक लोग बिना काम के रहने को मजबूर हैं. इस से बौलीवुड में दिहाड़ी पर काम करने वाले 35,000  कर्मचारी अत्यधिक प्रभावित हुए हैं.

सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स एसोशिएशन यानी सिनटा द्वारा बौलीवुड के ए लिस्टर सितारों से इन कर्मचारियों के लिए डोनेशन की अपील की गई, जिस के चलते रोहित शेट्टी, सलमान खान, रितिक रोशन, अमिताभ बच्चन और विद्या बालन उन सितारों में से एक थे, जो दिहाड़ी कर्मचारियों के लिए फंड व राशन देने के लिए सामने आए.

चिंता की बात यह है कि आखिर कब तक डोनेशन के जरीए इन कर्मचारियों का घर चलेगा. ज्ञातव्य है कि मदद हर कर्मचारी तक नहीं पहुंच रही व ऐसे कितने ही अभिनेता हैं, जो खुद चिंता में हैं कि उन के खर्चे कैसे पूरे होंगे, परंतु पोपुलैरिटी के चलते वे मदद मांगने में असमर्थ हैं.

नए ऐक्टर्स और पैपराजी भी चपेट में मुंबई महानगरी है और देश के अलगअलग हिस्सों से युवा यहां अपने सपने पूरे करने आते हैं. किराए के घरों में रहने वाले इन युवाओं को भी अपने घरों तक लौटना पड़ा. यह सभी छोटेमोटे प्रोजेक्ट कर अपना निर्वाह कर रहे थे, पर अब कोई काम न होने पर इन्हें अपने मातापिता पर आश्रित होना पड़ रहा है.

हालत यह है कि एकसाथ 4-5 लोग जिस घर का किराया दे रहे थे, उन में से कई अपने घर लौट चुके हैं. इस के चलते जो रह गया है, उसे पूरा किराया खुद देना पड़ रहा है. यह स्थिति कब तक बनी रहेगी, किसी को कोई अंदाजा नहीं है.

आएदिन टीवी ऐक्टर्स के एयरपोर्ट लुक्स, जिम लुक्स, वैडिंग लुक या सीक्रेट डेट लुक को कैमरे में कैद करने वाले पैपराजी भी कोरोना की मार से नहीं बचे हैं. न अब सेलेब्रिटी घर से निकल रहे हैं और न ही यह उन्हें कैप्चर कर पा रहे हैं.

आमतौर पर एक दिन में 11,000 से 20,000 रुपए कमाने वाले इन पैपराजी के लिए कमाई के रास्ते बंद हो गए हैं. डायरैक्टर और प्रोड्यूसर रोहित शेट्टी व ऐक्टर रितिक रोशन ने इन के लिए डोनेशन दिया है.

लौकडाउन के बाद ऐसे संभलेगी फिल्म इंडस्ट्री लौकडाउन खुलने के बाद  फिल्म इंडस्ट्री को पटरी पर वापस आना है. लेकिन यह इतना आसान नहीं है. फिल्म के निर्मातानिर्देशकों को प्रीप्रौडक्शन काम को बेहद सावधानी से पूरा करना होगा.

यदि स्टाफ के एक व्यक्ति को भी कोरोना संक्रमण होता है, तो सारा काम 3 हफ्तों तक रोक दिया जाएगा. अंतर्राष्ट्रीय यातायात पर प्रतिबंध होने पर ज्यादा से ज्यादा ग्रीन स्क्रीन पर शूटिंग होगी, जिस से फिल्में अलग तरह से बनेंगी. इसी तरह से अनेक बदलाव होने वाले हैं.

प्रोडक्शन को जारी करने के लिए प्रोड्यूसर्स गिल्ड औफ इंडिया ने बैक टू ऐक्शन रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में औन और औफ स्टेज व प्री और पोस्ट प्रोडक्शन के सभी डिपार्टमैंट्स के लिए निर्देश दिए गए हैं, जिन की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

– लौकडाउन खुलने के पहले 3 महीनो में सेट पर आने वाले हर शख्स का टैंपरेचर चेक होगा व उस के द्वारा सेनेटाइजेशन, सोशल डिस्टेंसिंग, जहां तक संभव हो, वर्क फ्रौम होम का पालन किया जाएगा. साथ ही, कम कास्ट और क्रू व बाहरी लोकेशनों में शूटिंग कम करने को ध्यान में रखा जाएगा. सेट पर मैडिकल टीम का होना अनिवार्य होगा.

– सेट पर सभी को हर थोड़ी देर में हाथ धोने होंगे व ट्रिपल लेयर मास्क हर समय लगाए रखना होगा. सभी को 3 मीटर की दूरी का पालन करना होगा और हाथ मिलाने, गले लगने व किस करने से परहेज करना होगा.

– सेट पर आने वाले हर क्रू मैंबर और स्टाफ को अपनी फिटनैस और स्वास्थ्य के सही होने की पुष्टीकरण के लिए फार्म भरना होगा और किसी भी प्रोजैक्ट को साइन करने से पहले स्वास्थ्य की सही जानकारी देनी होगी.

– शूटिंग के दिनों में हर व्यक्ति की उपस्थिति का रिकौर्ड रखा जाएगा. सभी को शूटिंग से 45 मिनट पहले सेट पर पहुंचना होगा, ताकि उन्हें कोरोना से बचाव के तरीके बताए जाएं और नई दिनचर्या उन की आदत बन जाए.

जो लोग घर से काम कर सकते हैं, उन्हें घर से ही काम करना होगा. 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्ति और किसी भी तरह की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को घर से काम करना अनिवार्य होगा.

देखना यह है कि आखिर कब तक यह स्थिति बनी रहती है. सभी की कोशिश यही है कि काम जल्दी से जल्दी पटरी पर लौट आए और रफ्तार पकड़ ले.

वर्क फ्रौम होम टैंशन दूर करें ऐसे

“क्यों पारुल, कहीं जा रही हो क्या? सारे रास्ते तो बंद हैं? जगहजगह पुलिस खङी है?” मयूरी ने अपनी पड़ोसिन पारुल को स्मार्टली ड्रैसअप हो कर बालकनी में खड़ा देखा तो पूछ बैठी.

दरअसल, जब से लौक डाउन हुआ है तब से मयूरी तो अपनी नाइटी से बाहर ही नहीं आई है. घर में रहो तो नाइटी ही सबसे सुविधाजनक ड्रैस लगती है. कौटन की हलकी, लूज और हवादार नाइटी में एक तो घर के काम करते वक्त गरमी नहीं लगती और थक जाओ तो इसी में थोड़ी देर सो जाओ. बारबार कपडे बदलने का झंझट भी नहीं और लौकडाउन में कोई मेहमान भी तो नहीं आने वाला कि नहाधो कर सलवारकुरता और दुपट्टा धारण करो. खुद भी कहीं निकलना नहीं है.

इसलिए मयूरी आजकल दिनरात नाइटी में काट लेती हैं. मगर पारुल को सुबहसुबह बिलकुल फ्रैश, पूरे मेकअप और औफिस के कपड़ों में टिंच देख कर मयूरी से रहा नहीं गया, तो अपनी बालकनी से आवाज दे कर पूछ ही बैठी.

ये भई पढ़ें-ऐसे रोमांटिक बनाए मैरिड लाइफ

“नहींनहीं… कहीं जाना नहीं है, घर पर ही हूं,” पारुल ने जवाब दिया.
“फिर ये सुंदर मिडीटौप क्यों? वैसे तुम बहुत स्मार्ट लग रही हो, कोई आने वाला है क्या?”

मयूरी की उत्सुकता कारण जाने बिना खत्म होने वाली नहीं थी. आखिर जब घर में ही रहना है तो पारुल इतनी स्मार्टली ड्रैसअप हो कर क्यों घूम रही है?

“अरे, कोई नहीं आने वाला है, बस थोड़ी देर में औफिस की मीटिंग शुरू होने वाली है औनलाइन, इसलिए तैयार हुई हूं.”

“अरे, तो इस के लिए इतना तैयार होने की क्या ज़रूरत थी? मुझे तो लगा तुम्हारा औफिस खुल गया और तुम औफिस जाने की तैयारी में हो,” मयूरी की उत्सुकता अभी कम नहीं हुई थी.
“अरे वीडियो कौन्फ्रैंस है, सब के चेहरे दिखेंगे तो तैयार तो होना पड़ता है न. फिर तैयार हो कर ना बैठो तो औफिस वाली फीलिंग नहीं आती, मीटिंग में दिल नहीं लगता, बस इसलिए तैयार हुई हूं और कोई बात नहीं है.”
“अच्छाअच्छा… मैं ने तो यों ही पूछ लिया था”, मयूरी कुछ झेंप कर बोली.

दरअसल, मयूरी हाउसवाइफ है. लौक डाउन नहीं था तब वह भी सुबह उठ कर, नहाधो कर सलवारकुरता पहन लेती थी क्योंकि सुबह से ही किसी ना किसी की दस्तक दरवाजे पर होती रहती थी. फिर कभी ब्रैड लेने जाना है, कभी सब्जी लेने तो कभी दूध खत्म.

मगर लौकडाउन में बच्चे भी घर में हैं और पति भी, तो उसे को बारबार बाहर जाने के झंझट से मुक्ति मिल गई है. पति सुबह जा कर सारा सामान एक बार में ले आते हैं.

ये भी पढ़ें-माता-पिता के लिए घर में करें ये बदलाव

वैसे भी कोरोना वायरस के डर से बारबार बाहर निकलने की गलती कोई नहीं कर रहा है. पति अपना औफिस का काम घर से ही करते हैं, कभी फोन पर तो कभी छोटे के कंप्यूटर पर. थोड़ी देर काम करते हैं, लेकिन खूब सोते भी हैं.

दूसरी तरफ पारुल है, जो सुबह अपने घर के सारे काम निबटा कर नहाधो कर बिलकुल ऐसे तैयार होती है जैसे औफिस जा रही हो.

जब से लौकडाउन हुआ है और वर्क फ्रौम होम शुरू हुआ है तभी से उस ने अपने घर के एक कोने को औफिस का लुक दे कर अपना कंप्यूटर, फोन, लैपटौप सब वहीं सैट कर दिया है. साथ ही इलैक्ट्रिक से चलने वाली टी केटल भी लगा ली है कि थकान या बोरियत हो तो गरमगरम चाय की चुसकी भी ले लो.

पारुल आईटी प्रोफेशनल है. स्मार्ट और तेजतर्रार वर्कर है. लिहाजा लौकडाउन में घर से काम करते  हुए बिलकुल फ्रैश, साफसुथरे कपड़ों में वह 10 बजते ही इस कोने में अपना लैपटौप खोल कर विराजमान हो जाती है.

पारुल का ज्यादातर काम लैपटौप पर होता है. मीटिंग्स और बाकी सारे काम भी औनलाइन चलते हैं. मीटिंग में वीडियो काल भी शामिल होती है, तो ऐसे में पारुल को अपने पहनावे और लुक्स का भी ध्यान रखना पड़ता है.

वैसे भी जब आप ठीक से तैयार होते हैं तो आप को थोड़ी औफिस वाली फीलिंग्स मिल ही जाती हैं. रोज कुछ नयापन बना रहता है. काम में मन लगता है और नएनए आइडियाज  आते हैं.

आरिफ एक स्कूल में टीचर हैं. वे भी लौकडाउन में वर्क फ्रौम होम कर रहे हैं. रोज सुबह जल्दी उठते हैं. नहाधो कर अच्छे से प्रैस किए हुए पैंटशर्ट पर बाकायदा टाई और परफ्यूम लगा कर अपने लैपटौप के आगे बैठ जाते हैं और करीब 4 घंटे सुबह और 4 घंटे लंच के बाद अपने स्टूडैंट्स की औनलाइन क्लास लेते हैं. इस दौरान वे पूरी तरह चुस्त और ऐनर्जेटिक दिखते हैं.

आरिफ इस बात का पूरा खयाल रखते हैं कि वे अपने घर में किसी ऐसी जगह तो नहीं बैठे हैं कि पीछे का सीन उन के स्टूडैंट्स का ध्यान भटकाए. वे हमेशा किसी साफसुथरी दीवार या परदे के आगे बैठते हैं.
घर के अन्य सदस्य इस दौरान उन के आसपास या पीछे से नहीं गुजरते.

कुछ सावधानियां भी जरूरी हैं

वर्क फ्रौम होम में काफी बातों का ध्यान रखना पड़ता है. ऐसे में कुछ सावधानियां भी रखनी जरूरी हैं. जैसे जब आप औनलाइन दूसरों को नजर आ रहे हों तो आप के बाल सलीके से बने हुए हों. आप अच्छे और साफ कपड़ों में हों.

अगर आप पुरुष हैं तो चेहरा शेव किया हुआ हो और अगर आप महिला हैं तो थोड़ा मेकअप जरूरी है ताकि आप दूसरों को आकर्षक दिखें और आप को व आपषकी बातों को तवज्जो दी जाए.

हाल ही में एक मशहूर टीवी चैनल के जानेमाने न्यूज ऐंकर वर्क फ्रौम होम करते हुए अपने घर के नीचे ही खड़े हो कर कैमरे के सामने अपनी खबर दे रहे थे. अब कैमरे में सिर्फ उन का चेहरा और सीने का कुछ हिस्सा आना था, लिहाजा उन्होंने ऊपर तो बढ़िया शर्ट पहन ली लेकिन नीचे हाफ निक्कर ही पहने रहे, सोने पर सुहागा यह कि पैरों में चप्पलें तक नहीं डाली. नंगे पैर बाइट देने खड़े हो गए.

अब उन के चैनल पर तो उन की तसवीर ठीक दिखी, मगर उन के एक पड़ोसी की खुराफात के चलते वे सोशल मीडिया पर मजाक का केंद्र बन गए.

दरअसल, जिस वक्त वे औफिस के कैमरे पर आधे घर के और आधे औफिस के कपड़ों में अपनी बाइट दे रहे थे, ठीक उसी समय उन के सामने वाले घर की छत से उन का पड़ोसी अपने मोबाइल फोन से उन का वीडियो शूट कर रहा था.

इधर वे अपने चैनल पर दिखे, उधर उन का फुल वीडियो सोशल मीडिया पर आ गया और लोग चटखारे लेले कर देखने और उन के हाफ निक्कर पर कमैंट्स करने लगे. इस को ले कर उन को अपने औफिस से काफी लताड़ भी सुनने को मिली.

वर्क फ्रौम होम की दिक्कतें

अनेक कामकाजी महिलाओं के लिए लौक डाउन का पीरियड कई मुश्किलें ले कर आया है. उन को एकसाथ कई काम निबटाने पड़ रहे हैं. लौकडाउन में कामवाली या मेड का आना लगभग सभी घरों में बंद है. ऐसे में उन महिलाओं को जो अपने कार्यालयों में बड़ीबड़ी पोस्ट पर हैं, घर के सारे छोटेबड़े काम करने पड़ रहे हैं तो मिडिल क्लास की कामकाजी महिलाओं की तो जान ही आफत में है. उन्हें झाड़ूपोंछा भी करना है, गंदे बरतनों का ढेर भी साफ करना है, कपडे भी धोने हैं, खाना भी बनाना है व बच्चों और पति को भी देखना है.

बच्चों की औनलाइन क्लासेज भी चल रही हैं, ऐसे में कई परिवारों में लैपटौप और कंप्यूटर को ले कर भी मारामारी मची हुई है. बच्चों को भी कंप्यूटर चाहिए, पति को भी और पत्नी को भी. ऐसे में अगर पतिपत्नी दोनों वर्क फ्रौम होम कर रहे हैं तो उन का काम काफी प्रभावित होता है.

कई बार औनलाइन न आ पाने के लिए बहाने भी बनाने पड़ते हैं.
महिलाओं से ये अपेक्षा भी की जाती हैं कि घर पर हों तो रोज कुछ नया बना कर खिलाओ. ऐसे में वे हर तरफ से पिस रही हैं. तनाव चरम पर है. औफिस का काम भी समय पर पूरा करना है और घर का भी.

आजकल सभी कामकाजी महिलाएं  बावर्ची, कपङे धोने वाले, मेड सब की भूमिका अकेले निभाते हुए औफिस का काम निबटा रही हैं. हां, वे महिलाएं थोड़ा आराम में हैं जिन की शादी नहीं हुई या जो अकेली रह रही हैं. जिन की शादी नहीं हुई और जो अपने मातापिता के साथ हैं उन के लिए औफिस के काम के लिए पर्याप्त समय निकालना कुछ आसान है क्योंकि उनषकी मांएं उन की समस्या समझते हुए घर का काम खुद ही निबटा लेती हैं और बेटी को काम करने के लिए पूरा वक्त मिल जाता है.

वहीं जो महिलाएं महानगरों में या अन्य शहरों में अकेली रह रही हैं वे भी अपनी सुविधा के अनुसार घर के काम निबटाती हैं और औफिस के काम के लिए पूरा समय दे पाती हैं. मगर शादीशुदा और ससुराल में रहने वाली महिलाएं वर्क फ्रौम होम में काफी दिक्कतों का सामना कर रही हैं और उम्मीद कर रही हैं कि जल्दी ही लौक डाउन खुले और वे वापस औफिस पहुचें.

बनाएं थोड़ा संतुलन

घर और औफिस की जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभाने के लिए संतुलन बनाना बहुत जरूरी है, वरना दोहरा तनाव आप को बीमार कर देगा. इस के लिए निम्न उपाय अपनाएं :

• चाहे आप कोई भी काम करें, लेकिन उस के लिए एक शैड्यूल बनाना जरूरी है. शैड्यूल बना कर काम करेंगे तो घर और औफिस दोनों का काम सही समय पर पूरा हो जाएगा.

• अपने काम करने की प्राथमिकता के हिसाब से कामों की एक सूची तैयार करें. इस लिस्ट से आप अपने काम पर ढंग से फोकस कर पाएंगे और समय से अपना काम शुरू कर समय पर पूरा भी कर सकेंगे. दिन के आखिर में अपने पूरे दिन किए कामों की रिव्यू जरूर करें.

• घर में अगर छोटे बच्चे हैं और आप एकल परिवार में रहती हैं, तो अपने सहकर्मियों को अपनी स्थिति से अवगत कराएं. फायदा यह होगा कि कभी कोई काम में थोड़ी देरी भी होगी तो आपशको बहुत ज्यादा सफाई देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

• अगर संयुक्त परिवार में रहती हैं तो औफिस का काम शुरू होने से पहले घर के जितने काम निबटा सकती हैं, निबटा लें. उस के बाद बेझिझक हो कर बच्चे से जुड़ी जिम्मेदारियों के लिए परिवार वालों की मदद लें.

• अपने काम के कैलेंडर के आधार पर पति के साथ घर की जिम्मेदारियों को इस तरह से बांटें कि जिस समय आप काम करें, उस समय वह बच्चों को देखें और जब वह काम करें, तो आप बच्चों की देखभाल करें. सारी जिम्मेदारियां खुद पर नहीं लें.

• घर में सास और ननद पर भी किचन और घर की साफसफाई की जिम्मेदारी डालें. अच्छी बहू बनने के चक्कर में अपनी परेशानियां न बढ़ाएं वरना दोतरफा काम का तनाव आप को बीमार भी कर सकता है.

Crime Story: एक सहेली ऐसी भी

4 बच्चों की मां रूबी ने रजनी से बने समलैंगिक संबंधों के लिए अपने पति भूरी सिंह को रजनी के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया. बच्चों की तो छोडि़ए, अगर वह अपने और रजनी के भविष्य के बारे में सोचती तो…  

उस दिन होली थी. कुंवरनगर कालोनी के भूरी सिंह ने दोस्तों और परिचितों के साथ जम कर होली खेली. होली खेलने के बाद वह नहाधो कर सो गया. भूरी सिंह सटरिंग का काम करता था. शाम को सो कर उठने के बाद वह अपनी पत्नी रूबी से यह कह कर कि ठेकेदार से अपने रुपए लेने जा रहा है, घर से निकल गया.

जब वह देर रात तक घर वापस नहीं आया तो पत्नी को उस की चिंता हुई. रात गहराने लगी तो रूबी ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के मोबाइल से पति को फोन किया, लेकिन उस का फोन रिसीव नहीं हुआ.

दूसरे दिन 11 मार्च की सुबह 7 बजे लोगों ने कालोनी से निकलने वाले नाले में एक लाश उल्टी पड़ी देखी. इस जानकारी से कालोनी में सनसनी फैल गई. आसपास के लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में थाना गांधी पार्क के थानाप्रभारी सुधीर धामा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए.

ये भी पढ़ें-Crime Story: जानी जान का दुश्मन

इसी बीच भूरी सिंह की पत्नी रूबी को किसी ने नाले में लाश मिलने की जानकारी दी. रूबी तत्काल वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने लाश को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक की शिनाख्त घटनास्थल पर पहुंची उस की पत्नी रूबी व छोटे भाई किशन लाल गोस्वामी ने भूरी सिंह गोस्वामी के रूप में की.

थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पति की लाश देख रूबी बिलखबिलख कर रो रही थी. मोहल्ले की महिलाओं ने उसे किसी तरह संभाला.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.  मृतक के मुंह पर टेप लगा था और उस के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे.

जांच के दौरान फोरैंसिक टीम ने देखा कि मृतक भूरी की गरदन पर चोट का निशान है. भूरी सिंह की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल यह भी था कि हत्यारे हत्या कर लाश को मृतक के छोटे भाई के घर के पास नाले में क्यों फेंक गए थे?

पुलिस का अनुमान था कि हत्यारे भूरी सिंह की हत्या किसी अन्य स्थान पर करने के बाद लाश को उस के छोटे भाई किशन गोस्वामी के घर के पास फेंक गए होंगे. होली का त्यौहार होने के कारण आवागमन कम होने से हत्यारों को लाश फेंकते किसी ने नहीं देखा होगा. पुलिस को मृतक की जेब से उस का मोबाइल भी मिल गया था.

थानाप्रभारी ने रूबी से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रूबी ने बताया, ‘मंगलवार रात 9 बजे पति के मोबाइल पर पेमेंट ले जाने के लिए ठेकेदार का फोन आया था. इस के बाद वह घर से निकल गए और फिर नहीं लौटे. काफी रात होने पर उन्हें फोन किया, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई थी.’

ये भी पढ़ें-Crime Story: इश्क, ईश्वर और राधा

परिवार वालों को यह जानकारी नहीं थी कि भूरी सिंह किस ठेकेदार के पास रुपए लेने गया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो पता चला कि भूरी सिंह की हत्या तार अथवा रस्सी से गला घोटने से हुई थी. मृतक के भाई किशनलाल गोस्वामी की तहरीर पर पुलिस ने मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी, उस के किराएदार डब्बू, डब्बू की पत्नी रजनी और दूसरे किराएदार हरिओम और डब्बू के एक दोस्त आसिफ के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज कर लिया.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंध थे. इस का भूरी सिंह विरोध करता था. इस बात को ले कर रूबी और भूरी सिंह में आए दिन झगड़ा होता रहता था. घटना से 10 दिन पहले भी रूबी व किराएदार डब्बू ने मिल कर भूरी सिंह को पीटा था.

 

घटना वाली रात डब्बू ने अपने दोस्त आसिफ को घर बुलाया और पांचों नामजदों ने मिल कर भूरी की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को मकान से कुछ दूर नाले में फेंक दिया.

सुबह रूबी ने अपने आप को साफसुथरा दिखाने के लिए पुलिस को कपोलकल्पित कहानी सुनाई थी कि भूरी सिंह ठेकेदार से पेमेंट लेने गया था, जो लौट कर घर नहीं आया.

पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी. सीओ (द्वितीय) पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक की लाश से उस का मोबाइल बरामद हुआ था, जिस की मदद से कुछ तथ्य सामने आए. पुलिस केस की गहनता से जांच कर रही थी. नतीजतन पुलिस ने घटना के दूसरे दिन ही इस हत्या की गुत्थी सुलझा ली.

दरअसल, पुलिस ने भूरी सिंह की हत्या के आरोप में मृतक की पत्नी रूबी व उस के किराएदार डब्बू की पत्नी रजनी को हिरासत में ले कर पूछताछ की. शुरुआती पूछताछ में दोनों पुलिस को बरगलाने की कोशिश करने लगीं. लेकिन जब सख्ती हुई तो दोनों एकदूसरे को देख कर टूट गईं और अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

12 मार्च को एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, सभी समझ रहे थे कि भूरी सिंह की हत्या उस की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंधों के बीच रोड़ा बनने के चलते की गई थी, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी, जिसे सुन कर पुलिस ही नहीं सभी हक्केबक्के रह गए.

भूरी सिंह की हत्या का कारण था 2 महिलाओं के समलैंगिक संबंध. रूबी और रजनी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों ने इस हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

 

भूरी सिंह की हत्या पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी. इन दोनों महिलाओं ने ही उस की हत्या की पटकथा एक माह पहले लिख दी थी, जिसे अंजाम तक पहुंचाया होली के दिन गया.

भूरी सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उस का विवाह पत्नी की बहन यानी साली रूबी से करा दिया गया था. भूरी सिंह दूसरी पत्नी रूबी से उम्र में 11 साल बड़ा था. भूरी सिंह के पहली पत्नी से 3 बेटे व 1 बेटी थी.

भूरी सिंह सीधेसरल स्वभाव का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. भूरी सिंह जैसा था, उस की पत्नी रूबी ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और चंचल स्वभाव की थी.

घर वालों ने उस की शादी भूरी सिंह से इसलिए की थी ताकि बहन के बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाए. वह मजबूरी में भूरी सिंह का साथ निभा रही थी. अपनी ओर भूरी सिंह द्वारा ध्यान न देने से जवान रूबी की रातें करवटें बदलते कटती थीं.

 

भूरी सिंह अपने बड़े भाई के मकान में किराए पर रहता था. पड़ोस में ही रजनी भी किराए के मकान में रहती थी. दोनों हमउम्र थीं. एकदूसरे के यहां आनेजाने के दौरान जानेअनजाने सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो, वीडियो देखतेदेखते दोनों में नजदीकियां हो गईं, फिर दोस्ती गहरा गई.

दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बन गए और एकदूसरे से पतिपत्नी की तरह प्यार करने लगीं. रूबी पत्नी तो रजनी पति का रिश्ता निभाने लगी.

दोनों सोशल मीडिया की इस कदर मुरीद थीं कि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती थीं. दोनों अपने इस रिश्ते के वीडियो तैयार कर के टिकटौक पर भी अपलोड करती थीं. उन के कई वीडियो वायरल हो चुके थे.

डब्बू और रजनी की शादी को 5 साल हो गए थे. उन का कोई बच्चा नहीं था. इसलिए भी दोनों महिलाओं के रिश्ते और गहरे हो गए. बाद में दोनों ने साथ रहने की कसमें खाते हुए कभी जुदा न होने का फैसला लिया.

इस बीच भूरी सिंह ने अपना मकान बनवा लिया था. रूबी और रजनी के बीच बने संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो चुके थे कि घटना से एक साल पहले पति भूरी सिंह से जिद कर के रूबी ने अपने मकान की ऊपरी मंजिल पर एक कमरा और बनवा लिया था. फिर रजनी को उस के पति डब्बू के साथ किराएदार बना कर रख लिया, ताकि उन के संबंधों के बारे में किसी को पता न चल सके.

एक ही मकान में रहने से अब दोनों महिलाएं बिना किसी डर के आपस में मिल लेती थीं. भूरी सिंह सटरिंग के काम के लिए सुबह ही निकल जाता था और देर शाम लौटता था. इस के चलते दोनों सहेलियों में पिछले 2 सालों में गहरे समलैंगिक संबंध बन गए थे. दोनों एकदूसरे से बिना मिले नहीं रह पाती थीं.

इन अनैतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए दोनों काफी गोपनीयता बरतती थीं. फिर भी उन की पोल खुल ही गई. एक माह पहले ही भूरी सिंह को अपनी पत्नी रूबी  और किराएदार रजनी के बीच चल रहे अनैतिक संबंधों का पता चल गया. दोनों महिलाओं के बीच चल रहे प्रेम संबंधों का पता चलने के बाद भूरी सिंह के होश उड़ गए. वह परेशान रहने लगा.

उस ने इन अनैतिक संबंधों को गलत बताते हुए विरोध किया. उस ने पत्नी रूबी को समझाया और रजनी से दूर रहने को कहा. इन्हीं संबंधों को ले कर दोनों में विवाद होने लगा. भूरी सिंह ने रूबी को सुधर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने मकान में रजनी को किराएदार नहीं रखेगा.

दूसरे दिन भूरी सिंह के काम पर जाने के बाद रूबी ने यह बात रजनी को बताई. भूरी सिंह उन के प्रेम संबंधों में बाधक बन रहा था, इस से दोनों परेशान हो गईं. काफी विचारविमर्श के बाद दोनों ने राह के रोड़े भूरी सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद भी दोनों के संबंध चलते रहे. हां, अब दोनों थोड़ी होशियारी से मिलती थीं.

 

होली वाले दिन शाम को रूबी और रजनी ने भूरी सिंह को जम कर शराब पिलाई. इस के चलते भूरी सिंह नशे में बेसुध हो गया, तो दोनों ने उस के हाथपैर रस्सी से बांधे और मुंह पर टेप लगाने के बाद रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी.

रात होने पर दोनों ने लाश को पड़ोस में रहने वाले छोटे भाई किशनलाल के घर के पास नाले में फेंक दिया ताकि शक भाई  के ऊपर जाए. बुधवार को कुंवर नगर कालोनी में नाले में उस का शव मिला.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर रूबी ने अफवाह फैला दी कि उस का पति भूरी सिंह ठेकेदार से रुपए लेने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया, तब उस ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के फोन से काल थी. जबकि हकीकत वह स्वयं जानती थी.

पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के साथ ही दोनों महिलाओं की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी व टेप बरामद कर लिया. दोनों महिलाओं को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को वैध कर दिया गया है यानी समलैंगिकता अब हमारे देश में कानूनन अपराध नहीं है, अर्थात आपसी सहमति से 2 व्यस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा. लेकिन हमारे देश में अभी तक इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया है. इसी के चलते लोग अपने संबंधों को समाज में स्थापित करने के लिए अपराध की राह पर चल पड़ते हैं. भूरी सिंह हत्याकांड के पीछे भी यही कारण प्रमुख रहा.

दोनों महिलाओं के अनैतिक संबंधों के चलते उन के परिवार उजड़ गए. भूरी सिंह की मौत के बाद उस के चारों अबोध बच्चे अनाथ हो गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मेरे जीजाजी भाई की तरह मुझ से प्रेम करते हैं पर मेरे पति उन्हें पसंद नहीं करते. पति को कैसे समझाऊं?

सवाल

मेरी शादी को 1 साल हुआ है. यों तो पति और ससुराल वाले सब अच्छे हैं, पर पति को मेरा मायके जाना पसंद नहीं है. दरअसल, हमारा कोई भाई नहीं है. इसीलिए मेरी बड़ी बहन सपरिवार मम्मी पापा के पास रहती है. बहन मुझ से 10 साल बड़ी है. मेरे जीजा जी बिलकुल बड़े भाई की तरह मुझ से स्नेह करते हैं पर मेरे पति उन्हें पसंद नहीं करते. मुंह से कुछ नहीं कहते पर उन का चेहरा सब बयां कर जाता है. पति को कैसे समझाऊं?

जवाब

आप की शादी को थोड़ा ही वक्त बीता है, अभी आप को अपने पति को समय देना चाहिए. यदि आप के पति नहीं चाहते कि आप मायके ज्यादा जाएं या अपने बहनोई से खुल कर बात करें. तो आप उन्हें शिकायत का मौका न दें. हो सकता है कि समय के साथ उन का व्यवहार बदल जाए और उन्हें रिश्तों की अहमियत समझ आने लगे.

ये भी पढ़ें- मैं अपनी पत्नी के साथ फिजिकल रिलेशन बनाना चाहता हूं, पर उसे अच्छा नहीं लगता. मैं क्या करूं?

अदरक की खेती

लेखक-डा. संतोष कुमार विश्वकर्मा 

भारत में अदरक की खेती का क्षेत्रफल 136 हजार हेक्टेयर है, जो उत्पादित अन्य मसाले में प्रमुख है. अदरक का प्रयोग प्राचीन काल से ही मसाले, ताजा सब्जी और औषधि के रूप में प्रयोग होता चला आ रहा है और आगे भी होता रहेगा. खीरी जनपद में भी शारदा व घाघरा नदियों के मध्य और तराई में अदरक की खेती बहुतायत से होती है.

आमतौर पर अदरक की खेती  सभी प्रकार की जमीन में  की जा सकती है. लेकिन उचित जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी, जिस में जीवांश की अच्छी मात्रा हो, अदरक की खेती के लिए उपयुक्त होती है. इस की अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पीएच मान 5.0 से 6.0 के बीच होना चाहिए.

खेत की तैयारी खेती योग्य भूमि तैयार करने के लिए 1-2 जुताई मिट्टी पलटने और 2-3 जुताई देशी हल से करनी चाहिए. मिट्टी को अच्छी तरह से समतल व भुरभुरा कर लेना चाहिए.

प्रमुख प्रजाति  सुप्रभा, सुरभि, रजाता, हिमगिरि, महिमा आदि खास प्रजाति हैं. इस के अलावा किसान लोकल प्रजाति का भी चयन खेती हेतु प्रयोग करते हैं.

ये भी पढ़ें-कृषि यंत्रों से खेती बने रोजगार का जरिया भी

बोआई का समय

अदरक की बोआई का सब से उचित समय 20 अप्रैल से 25 मई तक अच्छा माना जाता है.

बोआई के पहले डाईथेन एम 45 के 0.30 फीसदी के घोल से इस के कंदों को अच्छी तरह से उपचारित कर लेना चाहिए और छाया में सुखा लेना चाहिए.

बीज की मात्रा

अदरक की बोआई के लिए कंदों के आकार के अनुसार 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.

बोने की नाली विधि

इस विधि का प्रयोग सभी प्रकार की जमीनों में की जा सकती है. पहले से तैयार खेत में 60 या 40 सैंटीमीटर की दूरी पर मेंड़ या नाली को हल या फावड़े से तैयार किया जाता है और बीजों को 5 से 6 सैंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है व ऊपर से मिट्टी चढ़ा दी जाती है.

ये भी पढ़ें-अच्छी मिट्टी से मिले अच्छी पैदावार

तैयार पैदावार

अदरक की फसल की अच्छी तरह सिंचाईं, निराई और देखभाल समयसमय पर की जाए, तो 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है.

किसान सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अपने कृषि कार्यों को पूरा करें और अधिक जानकारी

के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.

श्रमिक स्पेशल ट्रेनें- मजदूरों की मुसीबतों का अंत नहीं

दलित और गरीब मजदूर के लिये श्रमिक ट्रेने भी सफर को सुहाना नहीं कर सकी है. भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी कई मजदूरों की मौत का कारण भी बन रही है. इसके बाद भी गरीब दलितों की अगुवाई करने वाले नेता खामोश है. गरीबों की जगह अगर हवाई जहाज से लाये जा रहे विदेशी प्रवासियों के साथ ऐसा हादसा होता तो पूरे देश में हंगामा मच जाता. पासपोर्ट और राशनकार्ड का फर्क इस तरह दिख रहा है. मजदूरों के प्रति सरकार की अनदेखी जातीय भेदभाव को दिखाती है.

मजदूरों के सफर को सरल बनाने के लिये सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन शुरू करके खुद अपनी पीठ थपथपाई. महाराष्ट्र सरकार और केन्द्र सरकार के बीच तो इसको लेकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति भी चली. श्रमिक ट्रेनों की बुरी हालत सबसे सामने है. कही यह ट्रेने रास्ता भटक जा रही तो कहीं कहीं यह घंटो विलंब से चल रहीं है. हालात यह है कि यह ट्रेनें घंटो के विलंब से दिनों के विलंब तक पहंुच गई. सूरत से सिवान के लिये चली टेªन दो दिन के बदले 9 दिन में अपनी जगह पंहुची. ऐसी अपवाद स्वरूप घटनाओं को छोड दिया जाय तो भी श्रमिक स्पेशल ट्रेनो खानापानी की दिक्कत के साथ ही साथ रास्तें में बीमार पडना और सफर के दौरान ही यात्रियों के मरने तक की घटनांए सामने आई. ऐसे में साफ है कि मजदूरों को राहत देने के नाम पर चली श्रमिक ट्रेने आफत बन गई है.

झांसी ने गोरखपुर जा रही 04175 श्रमिक स्पेशल में आजमगढ के जहानगंज थाने के रहने वाले राम अवध चैहान सफर कर रहे थे. 45 साल के राम अवध चैहान अपने परिवार के साथ पहले मुम्बई से झांसी पहंुचे थे. वहां से आजमगंढ जाने के लिये ट्रेन पर सवार हुये थे. मुम्बई से शुरू हुये सफर में उनको सही तरह से खानापानी और दवायें नहीं मिल सकी जिसकी वजह से वह रास्ते में ही मर गये. इसी ट्रेन में एक और यात्री की मौत हो गई. कई ट्रेनों मंे इस तरह की घटनायें सामने आई.

ये भी पढ़ें-कहीं बुधिया जैसा हश्र न हो ज्योति का

भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों मंे मजदूरों की सबसे बडी परेशानी भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी है. सरकार ने दावा किया था कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों मंे डिसटेंसिग का पालन किया जायेगा. हकीकत में इन ट्रेनों मंे में ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा है. यह ट्रेने खचाखच भर कर आ रही है. दूसरे शहरों की बात कौन करे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वाराणसी में रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों मंे से उतर रही भीड इसकी गवाही देती है. 26 मई को करीब 10 हजार प्रवासी मजदूर ट्रªेनो के जरीये यहां आये. वाराणसी कैंट से गुजरने वाली सूरत जौनपुर स्पेशल 13 घंटे लेट पहुंची तो उसको यही कैंसिल कर दिया गया. एलटीटी वाराणसी स्पेशल 8 घंटे देर से पहुंची. इसमें यात्री बुरी तरह से ठंूस कर आये थे. निजामुददीन वाराणसी और बोरीवली से आई श्रमिक ट्रेन में मजदूरों का यही हाल था. मुंबई और सूरत से गाजीपुर, बलिया, गोपालगंज जाने वाली ट्रेनों मंे के लेट होने से रास्ते में खानापानी नहीं मिलने से मजदूरों को काफी दिक्कत हुई. सफर जानलेवा बन गया. ट्रेनों मंे सफर कर रहे यात्रियों की हालत पानी के लिये स्टेशनों पर टूट पडने से ही समझ आ जाती है.

ट्रेनों में यात्रियों की भीड कम नहीं हो रही है. मुम्बई और गुजरात से आने वाली ट्रेने चलने से पहले ही भर जाती है. भूख, प्यास, बीमारी और गर्मी में अच्छे अच्छे यात्री की हालत खराब हो जा रही. रेलवे की तरफ से यात्रियांे को पीने के लिये पानी तक सही से मुहैया नहीं कराया जा पा रहा है. कुछ पढे लिखे और सोशल मीडिया का प्रयोग करने वालों ने रेलमंत्री से लेकर बाकी नेताओं और अफसरो तक अपनी बात पहंुचाने का काम टिवीटर पर शिकायत करके किया. तब कहीं कहीं पर मदद मिली. झांसी से कानपुर के रास्ते लखनऊ के प्लेटफार्म नम्बर 3 पर श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सफर करने वाले निशांत कुमार ने कहा ‘हम गुजरात से चले है. 6 दिन में अलग अलग ट्रेनों में सफर करके लखनऊ पहंुचे है. यहां से बस के द्वारा सीतापुर जायेगे. हम कपडा बनाने की फैक्ट्री में काम कर रहे थे. कामधंधा बंद होने से भागना पडा.’

निशांत के बताया कि स्पेशल ट्रेनों में बुरे हालत है. कई बार तो मुसीबत देखकर ऐसा लगता है जैसे जिंदा घर पहंुच पायेगे भी या नहीं ? बच्चे, महिलायें और बीमार लोगों के सामने बुरे हालत है. हमारे सामने की सीट पर बैठी एक महिला के पास बच्चे को देने के लिये दूध नहीं था. बच्चा छोटा था. भूख से बेहाल था. ऐसे में उसकी मां को कोई और उपाय नहीं दिखा तो उसने चीनी घोलघोल कर पिलाने लगी. पसीना और उमस से प्यास और भी अधिक लग रही थी पर पीने के लिये पानी नहीं था. कई स्टेशनों पर पानी को लेने के लिये इतनी लंबी लाइनें लगी थी कि अकेले सफर कर रहे लोगों के लिये तो पानी ले पाना अंसभव था.’

ये भी पढ़ें- पैसा कमाने – काढ़े के कारोबार की जुगाड़ में बाबा रामदेव

अव्यवस्था का आलम :

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अव्यवस्था की बहुत सारी बातें देखने को मिल रही. लुधियाना से बलिया जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन का सुल्तानपुर में स्टापेज नहीं था. इसके बाद भी ट्रेन में सुल्तानपुर में उतरने वाले 1263 लोगों को बैठा दिया गया. 26 मई को जब ट्रेन बिना रूके ही सुल्तानपुर पार करने लगी तो क्रासिंग के पास पहंुच कर यात्रियों ने चेन पुलिंग करके ट्रेन कोे रोक दिया. यात्री ट्रेन से उतर कर भाग गये. यात्रियों ने कहा कि उनको यह कह कर बैठाया गया था कि ट्रेन सुल्तानपुर रूकेगी. 04642 नम्बर की यह ट्रेन लुधियाना से बलिया जा रही थी. रेलवे पुलिस और प्रशासन के बीच किसी भी तरह से आपस में कोई तालमेल नहीं दिखा रहा है.

सरकार ने जिस तरह से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर वादे किये वह पूरी तरह से खोखले निकले. श्रमिक ट्रेनों के चलने के बाद भी मजदूरों की हालत में कोई सुधार नहीं आया. उनको मुसीबतों का सामना करते हुये सफर तय करना पडा. तमाम लोगों के लिये यह सफर अंतिम सफर भी साबित हांे रहा है. मजदूरों का मरना भी सरकार के लिये कोई बडी बात नहीं है. शायद मजदूर की किस्मत में मरना ही लिखा है सफर चाहे ट्रेन बस और पैदल किसी भी तरह का हो. गरीब मजदूर की मौत से इसलिये भी किसी को कोई फर्क नहीं पडता क्योकि यह दलित और पिछडी जाति के है. जिनके लिये इस वर्ग का कोई नेता आवाज उठाने को भी तैयार नहीं है

प्राइवेट पार्ट्स को न करें अनदेखा

राधा की योनि से लगातार 6 महीनों से स्राव होने के साथसाथ उस में खुजली होती रही. पति के साथ संबंध बनाते वक्त उसे दर्द होता. पेशाब करने के वक्त उसे परेशानी होती. उस ने डाक्टर से संपर्क किया. जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि उसे ट्राइकोमोनियासिस बीमारी हो गई है. पढ़ेलिखे होने के बावजूद अधिकांश महिलाएं अपने प्राइवेट पार्ट्स की देखभाल के प्रति गंभीर नहीं होतीं.

महिला-पुरुषों में स्पष्ट शारीरिक भिन्नता होती है. स्त्रियों में प्राइवेट पार्ट्स का योनि, गर्भाशय व गर्भनली के माध्यम से सीधा संबंध होता है. पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध दोनों के जीवन का सुखकारी समय होता है. किंतु कई बार महिलाओं में प्रसव, मासिक धर्म व गर्भपात के समय भी संक्रमण होने का डर होता है.

ट्राइकोमोनियासिस का इलाज मैट्रोनीडाजोल नामक दवा से होता है जो खाई जाती है और जैल के रूप में लगाई भी जाती है लेकिन डाक्टर की सलाह पर ही दवा लें.

ये भी पढ़ें-जून-जुलाई में पीक पर होगा कोरोना, ऐसे रखें अपना ध्यान

अशिक्षा, गरीबी, शर्म के कारणों से अकसर महिलाएं प्राइवेट पार्ट्स के रोगों का उपचार कराने में आनाकानी करती हैं. प्राइवेट पार्ट्स के संक्रमण से एड्स जैसा खतरनाक रोग भी हो सकता है.

कौपर टी लगवाने से भी प्राइवेट पार्ट्स में रोग के पनपने की आशंका रहती है.  ‘क्लामाइडिया’ रोग ट्राइकोमेटिस नामक जीवाणु से हो जाता है. यह रोग ‘मुख मैथुन’ और ‘गुदामैथुन’ से जल्दी फैलता है. कई बार इस बीमारी से संक्रमण गर्भाशय से होते हुए फेलोपियन ट्यूब तक फैल जाता है. इस में जलन होती है. समय पर उपचार नहीं होने पर एचआईवी होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

गोनोरिया : यह रोग महिलाओं में सूजाक, नीसेरिया नामक जीवाणु से होता है. यह महिला के प्रजनन मार्ग के गीले क्षेत्र में आसानी से बढ़ी तेजी से बढ़ता है. इस के जीवाणु मुंह, गले, आंख में भी फैल जाते हैं. इस बीमारी में यौनस्राव में बदलाव होता है. पीले रंग का बदबूदार स्राव निकलता है. कई बार योनि से खून भी निकलता है.

गर्भवती महिला के लिए यह बहुत घातक रोग होता है. प्रसव के दौरान बच्चा जन्मनली से गुजरता है, ऐसे में मां के इस बीमारी से ग्रस्त होने पर बच्चा अंधा भी हो सकता है.

ये भी पढ़ें-कोरोना संकट : दुनियाभर के लोगों को दे रहा  है मानसिक आघात

हर्पीज : यह रोग ‘हर्पीज सिंपलैक्स’ से ग्रसित व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से होता है. इस में 2 प्रकार के वायरस होते हैं. कई बार इस रोग से ग्रसित महिलापुरुष को मालूम ही नहीं पड़ता  कि उन्हें यह रोग है भी. यौन अंगों व गुदाक्षेत्र में खुजली, पानी भरे छोटेछोटे दाने, सिरदर्द, पीठदर्द, बारबार फ्लू होना आदि इस के लक्षण होते हैं.

सैप्सिस : यह रोग ‘टे्रपोनेमा पल्लिडम’ नामक जीवाणु से पैदा होता है. योनिमुख, योनि, गुदाद्वार में बिना खुजली के खरोंचें हो जाती हैं. महिलाओं को तो पता ही नहीं चलता है. पुरुषों में भी पेशाब करते वक्त जलन, खुजली, लिंग पर घाव, आदि समस्याएं हो जाती हैं.

हनीमून सिस्टाइटिस

नवविवाहिताओं में यूटीआई अति सामान्य है, इस को हनीमून सिस्टाइटिस भी कहते हैं. महिलाओं में मूत्र छिद्र योनिद्वार और मलद्वार के पास स्थित होता है. यहां से जीवाणु आसानी से मूत्र मार्ग में पहुंच कर संक्रमण कर सकते हैं. करीब 75 प्रतिशत महिलाओं में यूटीआई आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है. इस के अतिरिक्त अनेक अन्य प्रजाति के जीवाणु भी यूटीआई उत्पन्न कर सकते हैं.

मूत्रमार्ग का संक्रमण जिस को यूरीनरी ट्रैक्क इन्फैक्शन या यूटीआई कहते हैं, महिलाओं में मूत्र मार्ग की विशिष्ट संरचना के कारण अति सामान्य समस्या है. करीब 40 प्रतिशत महिलाएं इस से जीवन में कभी न कभी ग्रसित हो जाती हैं.

मूत्रद्वार में होने वाली जलन, खुजली अनेक कारणों से हो सकती है लेकिन लगभग 80 प्रतिशत में यह यौन संसर्ग के कारण होती है. अकसर संक्रमण होने पर यौन संबंध बनाने के करीब 24 घंटे बाद लक्षण शुरू हो जाते हैं. विवाह के तुरंत बाद अज्ञानता, हड़बड़ी इत्यादि कारणों से यूटीआई होने की संभावना ज्यादा रहती है.

अगर बात लक्षणों की करें तो यूटीआई होने पर बारबार पेशाब आता है, पर पेशाब कुछ बूंद ही होता है. मूत्र त्याग के समय जलन और कभीकभी दर्द होता है, मूत्र से दुर्गंध आती है, मूत्र का रंग धुंधला हो सकता है. कभीकभी खून मिलने के कारण पेशाब का रंग गुलाबी, लाल, भूरा हो सकता है.

यदि संक्रमण होने पर यौन संबंध बनाए जाते हैं तो जलन बढ़ सकती है. यदि उपचार नहीं किया जाता तो पीठ के निचले हिस्से में पीठदर्द हो सकता है, ज्वर हो सकता है. कुछ स्थितियों में संक्रमण मूत्राशय से ऊपर गुर्दों में पहुंच कर इन में संक्रमण कर सकता है.

बहरहाल, आप पूरी तरह से स्वस्थ तभी हैं जब अपने पार्टनर के संग सुरक्षित सैक्स करें और आप के प्राइवेट पार्ट्स साफ व सुरक्षित रहें. इस के लिए जरूरी है कि आप अपने प्राइवेट पार्ट्स के बारे में जागरूक हों. उन में कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत डाक्टर से सलाह लें.

स्वीकृति के तारे- भाग 3: मां ने उसे परचा थमाते हुए क्या कहा?

‘‘कोई ऐसा काम न करना जिस से हमारी बदनामी हो. तेरी दोनों बहनों की शादी भी करनी है,’’ मां ने कहा तो उस का मन पहली बार विरोध करने को आतुर हो उठा.

‘‘और मेरी? अच्छा मां, सच कहना, क्या मैं तुम्हारी बेटी नहीं हूं?’’

‘‘रिया, मां से कैसे बात कर रही है?’’ बाबूजी का स्वर गूंजा तो पलभर को उस का विरोध डगमगाया, लेकिन फिर जैसे भीतर से किसी ने हिम्मत दी. शायद, उन्हीं सतरंगी फूलों ने…

‘‘बाबूजी, आखिर क्यों मेरे साथ मां ऐसा व्यवहार करती हैं जैसे मैं…’’ उस के शब्द आंसुओं में डूबने लगे.

‘‘उस की मजबूरी है, बेटा. वह ऐसा न करे तो यह घर कैसे चले. तेरी कमाई है तो घर चल रहा है. बाकी और चार लोगों की जिंदगी बचाने के लिए वह तुझे ले कर स्वार्थी हो गई है ताकि कहीं तेरा मोह, तेरे प्रति उस की ममता उसे तुझे अपनी जिंदगी जीने देने की आजादी न दे दे.’’

उस ने मां को देखा. उन के दर्द से भीगे आंचल में उस के लिए भी ममता का सागर लहरा रहा था. फिर क्या करे वह. एक तरफ उस की उमंगें उसे दीपेश की ओर धकेल रही हैं तो दूसरी ओर मां की उस से बंधी आस उसे अपने को खंडित और अधूरा बनाए रखने के लिए मजबूर कर रही है. क्या वह कभी पूर्ण हो कर नहीं जी पाएगी? क्या उसे अपनी खुशियों के बारे में सोचने का कोई हक नहीं है? अपनी जिंदगी को रंगों से भरने की चाह क्या उसे नहीं है? लेकिन वह यह सब क्या सोचने लगी. दीपेश को ले कर इतनी आश्वस्त कैसे हो सकती है वह? उस ने तो खुल कर क्या, अप्रत्यक्ष रूप से भी कभी यह प्रदर्शित नहीं किया कि रिया को ले कर उस के मन में कोई भाव है. शायद वही अब अपनी अधूरी जिंदगी से ऊब गई है या शायद पहली बार किसी ने उस के मन के तारों को छुआ है.

‘‘मेरा प्रपोजल पसंद आया, अगर आप की तरफ से ओके हो तो मैं इस पर काम करना शुरू करूं?’’ दीपेश का आज बिना इजाजत लिए चले आना उसे अजीब तो लगा पर एक अधिकार व अपनेपन की भावना उसे सिहरा गई.

‘‘प्लीज गो अहेड,’’ उस ने अपने को संभालते हुए कहा.

‘‘आज शाम के गेटटूगेदर में तो आप आ ही रही होंगी न? मार्केटिंग की फील्ड के सारे ऐक्सपर्ट्स वहां एकत्र होंगे.’’

‘‘आना ही पड़ेगा. दैट इज अ पार्ट औफ माई जौब. वरना मुझे इस तरह की पार्टियों में जाना कतई पसंद नहीं है.’’

पार्टी में मार्केटिंग से जुड़े हर पहलू पर बात करतेकरते कब रात के 11 बज गए, इस का उसे अंदाजा ही नहीं हुआ. मां तो आज अवश्य ही हंगामा कर देंगी. वैसे भी आज जब वह तैयार हो रही थी, तो उन्होंने कितना शोर मचाया था. उस ने गुलाबी शिफौन की साड़ी के साथ मैचिंग मोतियों की माला पहनी थी. उस की सुराहीदार गरदन पर झूलता ढीला जूड़ा और मेकअप के नाम पर सिर्फ माथे पर लगी छोटी सी बिंदी के बावजूद उस की सुंदरता किसी चांदनी की तरह लोगों को आर्किषत करने के लिए काफी थी.

‘‘काम के नाम पर रात को घर से निकलना न जाने कैसा फैशन है.’’ मां की बड़बड़ाहट की परवा न करने की हिम्मत उस समय रिया के अंदर कैसे आ गई थी, वह नहीं जानती. इसलिए हाई हील की सैंडिल उन के सामने जोर से चटकाते हुए वह उन के सामने से निकली थी.

‘‘कैसे जाएंगी आप? मैं आप को छोड़ दूं,’’ दीपेश ने पूछा तो वह मना नहीं कर पाई. और कोई विकल्प भी नहीं था, क्योंकि कंपनी में ऐसा कोई नहीं था जो उस से इस तरह का सवाल करने की हिम्मत कर पाता. गलती उसी की थी जिस ने अपने ऊपर गंभीरता का लबादा ओढ़ा हुआ था. केवल काम की बातों तक ही सीमित था उस का अपने कलीग्स से व्यवहार.

कार में कुछ देर की खामोशी के बाद दीपेश बोला, ‘‘रिया, जानती हो, मैं ने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’ दीपेश के अचानक इस तरह के सवाल से हैरान रिया ने उसे देखा.

‘‘मैं चाहता था कि मेरा जीवनसाथी ऐसा हो जो समझदार व मैच्योर हो. मेरे काम और मेरे परिवार को समझ सके ताकि बैलेंस करने में न उसे दिक्कत आए, न मुझे. तुम से मिलने के बाद मुझे लगा कि मेरी खोज पूरी हो गई है, पर तुम अपने में इतनी सिमटी रहती हो कि तुम से कुछ कहने की हिम्मत कभी नहीं हुई.

‘‘तुम्हारे प्रति यह लगाव कोई कच्ची उम्र का आकर्षण नहीं है. एक एहसास है जिसे प्यार के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता है. मैं तुम्हारे और तुम्हारी घर की स्थितियों के बारे में सबकुछ जानता हूं. क्या तुम मेरे साथ जिंदगी की राह पर चलना पसंद करोगी? एक बार मजबूत हो कर तुम्हें फैसला लेना ही होगा. हम दोनों मिल कर तुम्हारे परिवार को संभालें तो?’’

रिया चुप थी. उसे समझ नहीं आ

रहा था कि  क्या सचमुच उस की

जिंदगी में रंग भर सकते हैं, क्या सचमुच अपूर्ण, खंडित इस मूर्ति के अंदर भी लहू का संचार हो सकता है? उस का घर आ चुका था.

दीपेश ने जाती हुई रिया का आगे बढ़ कर हाथ थाम लिया. मां को बालकनी में खड़ी देख अचकचाई रिया. पर दीपेश की हाथों की दृढ़ता ने उसे संबल दिया. अपना दूसरा हाथ दीपेश के हाथ पर रखते हुए उस ने दीपेश को देखा. रिया की आंखों में स्वीकृति के असंख्य तारे टिमटिमा रहे थे.

घर के अंदर कदम रखते हुए मां को सामने खड़े देख रिया ने उन्हें ऐसे देखा, मानो अपना फैसला सुना रही हो. उस के चेहरे पर लालिमा बन छाई खुशी और उस की आंखों में झिलमिलाते रंगीन सपनों को देख मां कुछ नहीं बोलीं. बस, उसे अपने कमरे की ओर जाते देखती रहीं. उस ने अपनी बेजान सी बेटी के अंदर प्यार से सजे प्राणों का संचार होते जैसे देख लिया था. वे जान गई थीं कि अब नहीं रोक पाएंगी वे उसे.

स्वीकृति के तारे- भाग 2: मां ने उसे परचा थमाते हुए क्या कहा?

‘‘कितनी अच्छी लगती है हंसते हुए. बुझीबुझी सी मत रहा कर, रिया. घर से निकले तो दुखों की गठरी वहीं दरवाजे पर छोड़ आया कर. चल बाय, मेरा स्टैंड आ गया,’’ सपना ने उस के कंधे पर आश्वासन का हाथ रखा. उस का भी स्टैंड अगला ही था.

औफिस में वही एक  सा रूटीन. बस, एक ही तसल्ली थी कि यहां काम की क्रद होती थी. इसलिए उस को तरक्की करते देर नहीं लगी थी. कौर्पोरेट औफिस में जिस तरह एक व्यवस्था व नियम के अनुसार काम चलता है, वही कल्चर यहां भी था. काम करोगे तो आगे बढ़ोगे, वरना जूनियर भी तेजी से आगे निकल जाएंगे. काम पूरा होना चाहिए. उस के लिए कैसे मैनेज करना है, यह तुम्हारा काम है. मैनेजमैंट को इस से कोई मतलब नहीं.

मार्केटिंग हैड होने के नाते कंपनी की उस से उम्मीदें न सिर्फ काम को ले कर जुड़ी हैं, बल्कि मुनाफे की भी वह उम्मीद रखती है. रिया कार रख सकती है. बेहतरीन सुविधाओं से युक्त घर में रह सकती है और अपनी लाइफस्टाइल को बढि़या बना सकती है. क्योंकि, कंपनी उसे सुविधाएं देती है. पर रिया ऐसा कुछ भी नहीं कर पाती है, क्योंकि उसे बेहतरीन जिंदगी जीने का हक नहीं है. वह वैसे ही जीती है जैसे उस की मां चाहती है. सुविधाओं के लिए मिलने वाले पैसे मां उसे अपने पर खर्च भी नहीं करने देती, बल्कि उन से दोनों बहनों के लिए जेवर खरीद कर रखती है. और उस के लिए… क्या मां के मन में एक बार भी यह विचार नहीं आता कि इस बेटी के अंदर भी जान है, वह कोई बेजान मूर्ति नहीं है. उस के विवाह का खयाल क्यों नहीं उसे परेशान करता.

‘‘मैं जानती हूं कि तू हमारी खातिर कुछ भी कर सकती है. अब जब लोग पूछते हैं कि तेरा ब्याह क्यों नहीं हुआ, तो मैं यही समझाती हूं कि तू ने अपनी इच्छा से ब्याह न करने का फैसला किया है. वरना, क्या मैं तुझे कुंआरी रहने देती. आखिर, अपने भाईबहन की कितनी चिंता है तुझे,’’ मां की यह बात सुन वह हैरान रह जाती. उस ने आखिर ऐसा कब कहा, उस से कब उस की इच्छा पूछी गई है?

‘‘मैडम, मिस्टर दीपेश पांडे आप से मिलना चाहते हैं. क्या आप के केबिन में उन्हें भेज दूं?’’ इंटरकौम पर रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.

‘‘5 मिनट बाद.’’

दीपेश के आने से पहले खुद को संभालना चाहती थी वह. कंपनी जौइन किए हुए हालांकि उसे अभी 2 महीने ही हुए हैं, पर अपनी काबिलीयत और कंविंसिंग करने की क्षमता के कारण वह कंपनी को करोड़ों का फायदा करा चुका है. कंपनी के एक्स्पोर्ट डिपार्टमैंट को वही संभालता है. रिया से कोई 1-2 साल छोटा ही होगा. पर उस के सामने आते ही जैसे रिया की बोलती बंद हो जाती है. जब वह सीधे उस की आंखों में आंखें डाल कर किसी प्रोजैक्ट पर डिस्कस करता है तो वह हड़बड़ा जाती है. ऐसा लगता है मानो उस की आंखें सीधे उस के दिल तक पहुंच रही हों, मानो वे उस से कुछ कहना चाह रही हों. मानो उस में कोई सवाल छिपा हो.

ऐसा नहीं है कि रिया को उस का

साथ अच्छा नहीं लगता. उस का

बात करने का अंदाज, हर बात पर मुसकराना और जिंदादिली – सब उसे भाता है, लेकिन अपने ओहदे की गरिमा का उसे पूरा खयाल रहता है. पूरा औफिस उस की इज्जत उस के काम के अलावा उस की शिष्टता के लिए भी करता है. डिगनिटी को कैसे मेंटेन कर के रखा जाता है, यह वह बखूबी जानती है. इन 2 महीनों में न जाने कितनी बार उस के साथ इंटरैक्शन हो चुका है, फिर भी बिना इजाजत वह कमरे में नहीं आता. और रिया उस की इस बात की भी कायल है.

न जाने क्यों उस के हाथ बालों को संवारने लगे. बैग में से शीशा निकाल कर उस ने अपने को निहारा. 35 वर्ष की हो चली है, पर आकर्षण अभी भी है. इस खंडित मूर्ति को अगर नए सिरे से संवारा जाए तो इस में भी जान भर सकती है. प्यार और एहसास जैसे शब्द उस की जिंदगी के शब्दकोश में न हों, ऐसा कहना गलत होगा. बस, कभी उन पन्नों को खोलने की उस ने हिम्मत नहीं की जिन पर वे लिखे हुए हैं.

दीपेश से मिलने के बाद न जाने क्यों उस के अंदर उन पन्नों को छू कर पढ़ने की चाह जागने लगी है. इस से पहले भी कई पुरुषों ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, लेकिन उसे तब कभी ऐसा नहीं लगा कि वह उन के साथ किसी ऐसी राह पर कदम रख सकती है जो दूर तक जाती हो, पर…

‘‘मैम, कैन आई टेक योर फाइव मिनट्स,’’ दीपेश ने दरवाजे पर से ही पूछा.

‘‘प्लीज, डू कम इन ऐंड बाइ द वे, यू कैन कौल मी, रिया. यहां सभी एकदूसरे का नाम ले कर संबोधित करते हैं.’’

‘‘थैंक्स रिया. तुम ने मुझे कितनी बड़ी परेशानी से बचा लिया. वरना मैम कहतेकहते मैं बोर होने लगा था.’’ रिया उस के शरारती अंदाज को नजरअंदाज न कर सकी और खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘माई गौड, आप हंसती भी हैं. मुझे तो यहां का स्टाफ कहता है कि आप को किसी ने कभी हंसते हुए नहीं देखा. बट वन थिंग, आप हंसते हुए बहुत खूबसूरत लगती हैं. यू नो, यू आर अ कौंबीनेशन औफ ब्रेन ऐंड ब्यूटी.’’

उस की बात सुन रिया फिर सीरियस हो गई, ‘‘टैल मी, क्या डिस्कस करना चाहते थे?’’

‘‘दैट्स बैटर. अब लग रहा है कि किसी सीनियर कलीग से बात कर रहा हूं.’’ उस के गंभीर हो जाने को भी दीपेश एक सौफ्ट टच देने से बाज न आया. मन में उस समय अनगिनत फूल एकसाथ खिल उठे. उन की खुशबू उसे छूने लगी. उसे विचलित करने लगी. काश, दीपेश यों ही सामने बैठा रहे और वह उसे सुनती रहे.

‘‘तो रिया, मेरे इस प्रपोजल पर आप की क्या राय है?’’ चौंकी वह, कुछ सुना हो तो राय दे.

‘‘इस फाइल को यहीं छोड़ दो. एक बार पढ़ कर, फिर बताती हूं कि क्या किया जाए,’’ अपने को संभाल पाना इतना मुश्किल तो कभी नहीं था रिया के लिए. तो क्या पतझड़ में भी बहार आ जाती है?

‘‘आजकल तू कुछ ज्यादा ही बनठन कर औफस नहीं जाने लगी है?’’ मां ने उसे टोका तो सचमुच उसे एहसास हुआ कि वह अपने पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगी है. बालों का जूड़ा कस कर बांधने के बजाय ढीला छोड़ देती है. अलमारी में बंद चटख रंगों की साडि़यां पहनने लगी है और बारबार शीशा देखने की आदत भी हो गई है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें