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Crime Story: जानी जान का दुश्मन

राजवीर देखने में भले ही साधारण व्यक्ति था, लेकिन वह बातों का धनी था. अपनी लच्छेदार बातों से वह किसी का भी मन मोह लेता था. राजवीर मेवाराम की पत्नी उमा के खूबसूरत हुस्न का दीवाना था. उमा भी उस की जवांदिली पर लट्टू थी.

शाम का समय था. राजवीर घर आया तो उमा उस के लिए चाय बना लाई. चाय के साथ गरमागरम पकौड़े भी थे. पकौड़े राजवीर को बहुत पसंद हैं, यह बात उमा जानती थी. राजवीर चहक उठा, ‘‘भई वाह, ये हुई न बात.’’फिर एक पकौड़ा मुंह में रख कर स्वाद लेते हुए पूछ बैठा, ‘‘तुम मेरे दिल की बात कैसे जान गईं?’’
उमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब हमारे दिल के साथसाथ शरीर भी एक हो चुके हैं तो दिल की बात एकदूसरे से कैसे छिपी रह सकती है.’’

‘‘वाकई तुम्हारी यह बात बिलकुल सही है. देखो, तुम्हारी चाय का रंग भी तुम्हारे रंग जैसा है. लगता है जैसे चाय में तुम ने अपने हुस्न का रंग मिला दिया हो. चाय का स्वाद भी तुम्हारे जैसा मीठा है. पकौड़े भी तुम्हारे जिस्म के अंगों की तरह गर्म और स्वादिष्ट है.’’अपने हुस्न की तारीफ का यह अंदाज उमा को अच्छा लगा. वह राजवीर से सट कर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘जो कुछ मेरे पास है, उस पर तुम्हारा ही तो अधिकार है.’’

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राजवीर ने उस की दुखती रग को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत जिस्म पर तो तुम्हारे पति मेवाराम का सर्वाधिकार है. लोग भी उस के ही अधिकार को स्वीकृति देंगे.’’‘‘वह तो सिर्फ नाम का पति है. बीवी की जगह शराब की बोतल को सीने से लगाए घूमता है, मुझे बिस्तर पर तड़पने के लिए छोड़ देता है. वैसे भी शराब ने उस के शरीर को इतना खोखला कर दिया है कि उस में शबाब के उफनते गुप्त तटबंधों की गरमी शांत करने का माद्दा नहीं बचा.’’‘‘तुम्हारी हसीन चाहतों की कसौटी पर मैं खरा उतरा हूं कि नहीं?’’ कह कर राजवीर ने उमा के दिल की बात जाननी चाही.

मन के भंवर में डूबी उमा के कानों में राजवीर की बात पहुंची तो एकाएक उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई, वह बोली, ‘‘तुम ने मेरे हुस्न की बगिया को अपने प्रेम की बरसात से ऐसा सींचा है कि रोमरोम खिल कर महकने लगा है. तुम्हारे जोश की तो मैं कायल हूं. तुम्हारे साथ आनंदलोक की यात्रा करना सुखद अहसास होता है. मैं तो सोचसोच कर ही रोमांचित हो जाती हूं.’’ उमा बेबाकी से कहती चली गई.
‘‘तो फिर चलें आनंदलोक की यात्रा पर…’’ राजवीर ने उमा के गले में हाथ डाल कर उसे अपने बदन से सटाते हुए कहा. इस पर उमा ने मुसकरा कर मूक सहमति दे दी.

राजवीर उमा के कपोलों को चूमने के साथसाथ उस के होंठों का भी रसपान करने लगा. उमा ने शरमा कर अपना मुंह उस के सीने में छिपा लिया. साथ ही उस ने राजवीर के गले में बांहों का हार डाल दिया. फिर दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समा गए.आनंदलोक की यात्रा पूरी कर के दोनों एकदूसरे से अलग हुए. उन के शरीर पसीने से लथपथ थे, लेकिन चेहरों पर संतुष्टि के भाव थे. जिला हरदोई के थाना कोतवाली हरपालपुर के अंतर्गत एक गांव है कूड़ा नगरिया. मेवाराम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. परिवार में पत्नी उमा और 5 बेटियों के अलावा 2 बेटे अश्विनी और अंकुर थे. मेवाराम के पास खेती की जमीन थी, जिस की आय से उस के परिवार का गुजारा हो जाता था.

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मेवाराम भागवत कथा करने का भी काम करता था. उस के काम में उस के बड़े भाई सेवाराम भी साथ देते थे. धार्मिक कार्यों में रमे रहने की वजह से मेवाराम पत्नी की शारीरिक जरूरतों पर ध्यान नहीं दे पाता था. वैसे भी वह 50 साल से ऊपर का हो गया था. थोड़ाबहुत दमखम था भी तो उसे धीरेधीरे शराब पी रही थी.
दूसरी ओर 7 बच्चे पैदा करने के बाद भी उमा के बदन की आग अभी तक सुलग रही थी. 45 साल की उम्र में उस ने खुद को टिपटौप बना रखा था. उस की खूबसूरती अभी तक कहर ढाती थी.

शरीर की आग ठंडी न हो तो इंसान में चिड़चिड़ापन आ जाता है, उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. उमा के साथ भी ऐसा ही था. ऐसे में उस ने अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरा ठौर तलाशना शुरू कर दिया. उसे अपने सुख के साधन की तलाश थी. उस की तलाश खत्म हुई राजवीर पर. वह भी कूड़ा नगरिया में ही रहता था. उस के पिता रामकुमार चौकीदारी का काम करते थे. 22 साल पहले राजवीर का विवाह कमला से हुआ था. उस से 3 बच्चे हुए. उस की शादी को अभी 6 साल ही बीते थे कि पति की रंगीनमिजाजी से परेशान हो कर कमला अपने 2 छोटे बच्चों को ले कर हमेशा के लिए मायके चली गई.
पत्नी के जाने के बाद राजवीर को शारीरिक सुख मिलना बंद हो गया. उमा की तरह वह भी शारीरिक सुख के लिए दूसरा ठौर ढूंढ रहा था. उस की नजर कई औरतों पर पड़ी, लेकिन उन में से उसे उमा ही मन भाई. उमा की कदकाठी और खूबसूरत देह राजवीर के दिलोदिमाग में उतर गई.

दूसरी ओर उमा भी राजवीर को पसंद करने लगी थी. जब दोनों सामने पड़ते तो एकदूसरे पर नजरें जम जातीं. आग दोनों तरफ लगी थी. दोनों को अपनी अंदरूनी तपिश का अहसास हो गया था.

एक दिन जब मेवाराम घर में नहीं था तो राजवीर उस के घर पहुंच गया. उस के आने का मकसद उमा से नजदीकियां बना कर उस का सान्निध्य पाना था. उमा को उस का आना अच्छा लगा. उस दिन दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. न तो उन की बातें खत्म होने का नाम ले रही थीं और न ही उन का मन भर रहा था.
लेकिन जुदा तो होना ही था, दिल पर पत्थर रख कर राजवीर उमा से विदा ले कर घर आ गया. लेकिन दिल की चाहत फिर भी तनमन को बेचैन करती थी. यह ऐसी बेचैनी थी जो दोनों के दिलों को और करीब ला रही थी.
चिंगारी को जब तक हवा नहीं लगती, तब तक वह शोला नहीं बनती. उमा के मन में दबी चिंगारी को अब तक हवा नहीं लगी थी. लेकिन उस दिन राजवीर उस के पास आ कर दबी चिंगारी को एकाएक शोला बना गया था.

मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. राजवीर हंसीमजाक करते वक्त जानबूझ कर उमा के शरीर के नाजुक अंगों को छू लेता तो उमा के चेहरे पर मादक मुसकराहट उतर आती. राजवीर का शरीर भी झनझना जाता, दिल बेकाबू होने लगता.
आखिर एक दिन मुलाकात रंग ले ही आई. राजवीर के मन की बात होंठों पर आ गई. उस ने उमा के हाथों को अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर हो, उमा.’’
‘‘सचऽऽ’’ उमा ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.
‘‘हां, तुम बहुत सुंदर हो.’’

‘‘कितनी?’’ उमा ने फुसफुसाते हुए पूछा.
‘‘चांद से भी…’’ इस के आगे वह कुछ नहीं कह सका. वह उस के बदन की गरमी से पिघलने लगा था.
राजवीर की बात सुन कर उमा के चेहरे पर चमक आ गई. राजवीर को नशीली मदमस्त निगाहों से देखते हुए वह उस से सट गई और उस के कानों में फुसफुसा कर बोली, ‘‘शादी कर लो, तुम्हें मुझ से भी सुंदर पत्नी मिल जाएगी.’’

उस की बातों ने आग में घी का काम किया. वह बोला ‘‘लेकिन फिर तुम तो नहीं मिलोगी.’’
‘‘अगर मैं मिल जाती तो तुम क्या करते..?’’ उमा ने शरारत में कहा और बदन को मोड़ कर नशीली अदा से अंगड़ाई ली. उसी वक्त राजवीर के हाथ उस के वक्षस्थल से टकरा गए.
उमा की कातिल अदा उसे पागल कर गई. वह बोला, ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करता.’’
‘‘कितना?’’ उमा ने उसे उकसाया तो राजवीर ने साहस जुटा कर उमा को अपनी बांहों में ले कर जोर से दबाते हुए कहा, ‘‘इतना.’’उमा ने राजवीर के अंदर दबी चिंगारी को हवा दे दी, ‘‘बस, इतना ही.’’
‘‘नहीं, इस से भी ज्यादा…और इतना ज्यादा.’’ कहने के साथ ही राजवीर ने उसे बांहों में लिएलिए पलंग पर लिटा दिया.

अपनी अतृप्त प्यास बुझाने की चाह में उमा ने उस का रत्ती भर विरोध नहीं किया. इस की जगह वह उसे और उकसाती रही. लोहार की धौंकनी की तरह चलती दोनों की तेज सांसें और उन के मिलन की सरगम ने कमरे में तूफान सा ला दिया. राजवीर के सामीप्य से उमा को एक अलौकिक सुख का आनंद मिला.
उमा को अपने पति मेवाराम का सामीप्य बिलकुल नहीं भाता था, लेकिन राजवीर को वह दिल से चाहने लगी. वह राजवीर के बारे में सोचने लगी कि क्यों न हमेशा के लिए उसी की हो कर रह जाए.
उस की यह सोच गलत नहीं थी, क्योंकि उस के भीतर मचलते जिस तूफान को उस का पति एक बार भी शांत नहीं कर पाया था, राजवीर ने उस तूफान को पहली मुलाकात में ही शांत कर दिया था.

फिर एकाएक उमा उसे बेतहाशा प्यार करने लगी. उस की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली. उसे रोते देख राजवीर घबरा गया. वह बोला, ‘‘यह तुम्हें क्या हो गया उमा? तुम पागल तो नहीं हो गईं?’’
‘‘नहीं राजवीर, आज मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज जो सुख, जो खुशी मुझे दी है, उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती. आज तक इतना सुख, इतनी खुशी मुझे मेरे पति से नहीं मिली.

‘‘सुहागरात से मैं जिस सुख की कल्पना करती आ रही थी, आज तुम से मिल गया. उस रात जब वह कमरे में आए और मैं ने घूंघट की आड़ से देखा तो मंत्रमुग्ध सी देखती रह गई. भरेपूरे शरीर और उन की गहरी नशीली आंखों में मैं डूबती चली गई. मैं उन को और वह मुझे देर तक एकदूसरे को देखते रहे, फिर एकाएक उन के स्पर्श ने मेरी तंद्रा भंग कर दी.’’

थोड़ा रुक कर वह बोली, ‘‘वह आए और मेरी बांहों को पकड़ कर बैठ गए. फिर धीरे से घूंघट उठा दिया. कुछ देर वह सम्मोहित से मुझे देखते रहे. उन के होंठ मेरी ओर बढ़े और उन्होंने मेरे चेहरे को अपने हाथों में समेट लिया, फिर मेरे होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए. उन का स्पर्श पा कर मैं सिहर उठी.‘‘मैं लाज से दोहरी होती गई. मगर मेरा दिल कह रहा था कि वह इसी तरह हरकत करते रहें. उन्होंने बेझिझक मुझे सहलाना शुरू कर दिया, मेरे ऊपर जैसे नशा छा गया. मेरी आंखें धीरेधीरे बंद होती जा रही थीं और बदन अंगारों की तरह दहकने लगा था. फिर मैं भी उन का सहयोग करने लगी.

‘‘बंद कमरे में फूलों की सेज पर जैसे तूफान आ गया था. लेकिन थोड़ी देर में वह तूफान तो शांत हो गया लेकिन मैं फिर भी जलती रही. उस वक्त वह मेरे बदन पर ही नहीं, मेरे दिल पर भी बोझ लग रहे थे. उस का एक ही कारण था कि उन्होंने जो आग मुझ में लगाई थी, उसे बुझाए बिना निढाल हो गए थे.
‘‘पहली रात ही क्या, किसी भी रात वह मुझे सुख नहीं दे पाए. मेरे दुख का कारण वे रातें थीं, जो मैं ने उन के बगल में तड़पते और जलते हुए गुजारी थीं. हमारी जिंदगी जैसेतैसे कट रही थी. देखने वालों को लगता कि मैं बहुत खुश हूं, मगर वास्तविकता ठीक इस के विपरीत थी. मैं ठीक वैसे ही जल रही थी, जैसे राख के नीचे दबी चिंगारी.’’

इतना कह कर उमा ने दुखी मन से अपना चेहरा झुका लिया. राजवीर ने देखा तो उस से रहा न गया, ‘‘दुखी क्यों होती हो उमा, अब तो मैं तुम्हारी जिंदगी में आ गया हूं. मैं तुम्हारी चाहतों को पूरी करूंगा.’’
इस के बाद दोनों के बीच कुछ देर और बातें होती रहीं. फिर राजवीर वहां से चला गया.
उस दिन के बाद से उमा खुश और खिलीखिली सी रहने लगी. दोनों की चाहतें, जरूरतें एकदूसरे से पूरी होने लगीं. किसी को भी इस सब की कानोंकान खबर तक नहीं लगी.अब जब दोनों का मन होता, एक हो जाते. दोनों का यह खेल बेरोकटोक चलने लगा. देखतेदेखते 5 साल गुजर गए. रात में खेतों की रखवाली के लिए उमा खेत में बनी झोपड़ी में रुक जाती थी. उस के खेतों के बराबर में ही पड़ोसी गांव प्रतिपालपुर के राजेश (परिवर्तित नाम) का खेत था.

जब वह खेत पर होती तो राजेश से बातें करती रहती. दोनों एकदूसरे के खेतों में जानवर घुसने पर भगा देते थे. खेतों के मामले में दोनों पड़ोसी थे. पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है.यह सब राजवीर ने देखा तो वह उमा पर शक करने लगा कि वह अब उस के बजाए राजेश में रुचि ले रही है. जब वह अपने पति के होते हुए उस से संबंध बना सकती है तो राजेश के साथ संबंध बनाने में उसे क्या दिक्कत होगी. उस ने कई बार उमा को राजेश से काफी नजदीक हो कर बातें करते देखा तो उस ने समझ लिया कि दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए हैं. राजवीर को यह बात नागवार गुजरी. उस की प्रेमिका उस के होते हुए किसी और से संबंध रखे, यह उसे मंजूर नहीं था.

8 जनवरी, 2020 की शाम 4 बजे उमा खेतों की रखवाली के लिए गई. अगले दिन सुबह उस की लाश खेत में पड़ी मिली. गांव वालों के बताने पर उमा के बच्चे खेतों पर पहुंचे. मेवाराम भागवत कथा के लिए कहीं गया हुआ था, किसी ने इस घटना की सूचना हरपालपुर थाना कोतवाली को दे दी थी.
सूचना पा कर इंसपेक्टर भगवान चंद्र वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका के शरीर पर किसी प्रकार की चोट के निशान नहीं थे. लेकिन गले पर दबाए जाने के निशान थे.

निरीक्षण के बाद उन्होंने उमा के बच्चों व ग्रामीणों से पूछताछ की तो उन्होंने उस के प्रेमी राजवीर पर शंका जताई. इस के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और उमा की बेटी मुसकान को ले कर थाने आ गए.इंसपेक्टर वर्मा ने मुसकान की तरफ से लिखित तहरीर ले कर राजवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.राजवीर घर से फरार था. 13 जनवरी, 2020 की सुबह 5:20 बजे एक मुखबिर की सूचना पर इंसपेक्टर वर्मा ने राजवीर को गांव अर्जुनपुर के पास से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने उमा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

8 जनवरी को उमा खेतों में खड़ी गेहूं की फसल की रखवाली के लिए गई थी. रात 8 बजे राजवीर उस के पास पहुंचा तो वह अकेली थी. राजेश से संबंध होने की बात कह कर वह उमा से भिड़ गया. वादविवाद होने पर दोनों में गालीगलौज होने लगी. इस पर राजवीर ने उमा को दबोच कर दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया, जिस से उमा की मौत हो गई. उस के मरते ही राजवीर वहां से फरार हो गया.राजवीर की गिरफ्तारी के बाद इंसपेक्टर वर्मा ने आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

धर्मणा के स्वर्णिम रथ – पाखी को अधर्मी क्यों कहते थें लोग? भाग 3

आज के दिन के खर्च का हिसाब लगाया जाए तो आसानी से 15 हजार रुपए तक पहुंच जाएगा. ममता समाज को ऐसा ही वैभव दर्शन करवाने की कामना से हर नवरात्र पर 9 दिन अपने घर में कीर्तन रखवाया करतीं. रानी ने भी प्रसाद में अपनी ओर से लाए फल सजवा दिए. कीर्तन प्रारंभ होने पर आदतन रानी ने ढोलक और माइक अपनी ओर खींच लिए. न तो वे किसी और को ढोलक बजाने देतीं और न ही माइक पर भजन गाने का अवसर प्रदान करती. यह मानो उन का एकाधिकार था.

सारी गोष्ठी में रानी के स्वर और थाप गूंजते. उन के मुखमंडल का तेज देखने लायक होता, जैसा उन से महान भक्त इस संसार में दूसरा कोई नहीं. रानी का प्रभुत्वपूर्ण व्यवहार देख पाखी का मन प्रतिवाद करता कि यह कैसी पूजा है जहां आप स्वयं को अन्य से श्रेष्ठ माननेमनवाने में लीन हैं. मुख से गा रहे हैं, ‘तेरा सबकुछ यहीं रह जाएगा…’ और एक ढोलकमाइक का मोह नहीं छूटते बन रहा.

कम उम्र की महिलाएं रानी के चरणस्पर्श करतीं तो वे और भी मधुसिक्त हो झूमने लगतीं. कोई कहती, ‘देखो, कैसे भक्तिरस के खुमार में डूब रही हैं,’ तो कोई कहती कि इन पर माता आ गई है. यह सब देखते हुए पाखी अकसर विचलित हो उठती. उसे इन आडंबरों से पाखंड की बू आती है. वह अकसर स्वयं को अपने आसपास के परिवेश में मिसफिट पाती. कितनी बार उस के मनमस्तिष्क में यह द्वंद्व उफनता कि काश, उस की सोच भी अपने वातावरण के अनुरूप होती तो उस के लिए सामंजस्य बिठाना कितना सरल होता. यदि उस के विचार भी इन औरतों से मेल खाते, तो वह भी इन्हीं में समायोजित रहती.

पाखी ने अपने कमरे में आ कर मनन को खाना खिलाया और फिर कीर्तन मंडली में जा कर बैठने को थी कि रानी ने तंज कसा, ‘‘पाखी, सारी मोहमाया यहीं रह जाएगी. भगवान में मन लगा, ये पतिबच्चे कोई काम नहीं आता. सिर्फ प्रभु नाम ही तारता है इस संसार से.’’

‘‘चाचीजी, मैं बच्चे को भूखा छोड़ कर भजन में मन कैसे लगाऊं?’’ पाखी से इस बार प्रतिउत्तर दिए बिना न रहा गया. इन ढपोलशंखी बातों से वैसे ही उसे खीझ उठ रही थी.

‘‘हमारा काम समझाना है, आगे तुम्हारी मरजी. जब हमारी उम्र में पहुंचोगी तब पछताओगी कि क्यों गृहस्थी के फालतू चक्करों में समय बरबाद किया. तब याद करोगी मेरी बात को.’’

‘‘तब की तब देखी जाएगी, चाचीजी. किंतु आज मैं अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ सकती. मेरा नन्हा बच्चा, जो मेरे सहारे है, उसे बेसहारा छोड़ मैं प्रभुगान करूं, यह मेरी दृष्टि में अनुचित है. मेरी नजर में यदि मैं अपने बच्चे को सही शिक्षा दे पाऊं, उस का उचित लालनपालन कर सकूं, तो वही मेरे लिए सर्वोच्च पूजा है,’’ अकसर चुप रह जाने वाली पाखी आज अपने शब्दों पर कोई बांध लगाने को तैयार नहीं थी.

उस की वर्तमान मानसिक दशा ताड़ती हुई रानी ने मौके की नजाकत को देखते हुए चुप हो जाने में भलाई जानी. लेकिन सब के समक्ष हुए इस वादप्रतिवाद से वह स्वयं को अवहेलित अनुभव करने से रोक नहीं पा रही थी. आज के घटनाक्रम का बदला वह ले कर रहेगी. मन ही मन प्रतिशोध की अग्नि में सुलगती रानी ने सभा समाप्त होने से पहले ही एक योजना बना डाली.

कुछ समय बाद दीवाली का त्योहार आया. मनन अपने छोटेछोटे हाथों में फुलझडि़यां लिए प्रसन्न था. किशोरीलाल और ममता दुकान में लक्ष्मीपूजन कर अब घर के मंदिर में पूजा करने वाले थे. चाचा और रानी चाची भी पूजाघर में विराजमान हो चुके थे. संबल ने पाखी को पूजा के लिए पुकारा. हर दीवाली पर पाखी वही हार पहनती जो संबल ने उसे सुहागरात पर भेंट दिया था, यह कह कर कि यह पुश्तैनी हार हर शुभ अवसर पर अवश्य पहनना है. किंतु इस बार पाखी को वह हार नहीं मिल रहा था. निराशा और खिन्नता से ओतप्रोत पाखी हार को हर तरफ खोज कर थक चुकी थी. आखिर उसे बिना हार पहने ही जाना पड़ा.

उस के गले में हार को न देख संबल

एक बार फिर आपा खो बैठा और

उस पर चीखने लगा. पाखी ने उसे समझाने का अथक प्रयास किया पर विफल रही. दीवाली का त्योहार खुशियां लाने के बजाय अशांति और कलह दे गया. सब के समक्ष संबल ने पाखी को खूब लताड़ा. बेचारी पाखी अपने लिए लापरवाह, असावधान, अनुत्तरदायी, अधर्मी जैसे उपमाएं सुनती रही.

‘‘हम तो सोचते थे कि पाखी को केवल धर्म और पूजापाठ से वितृष्णा है. हमें क्या पता कि इसे हर संस्कारी कर्म से परेशानी होती है. पारंपरिक विधियों से भला कैसा बैर,’’ रानी चाची आग में भरपूर घी उड़ेल रही थीं.

‘‘इसीलिए तो कहते हैं, रानी, कि धर्म से मत उलझो. देखो, तुम्हारी भाभी की तरह, हमारी बहू को भी उस के किए की सजा मिल गई. हाय, हमारा पुश्तैनी हार… इस से तो अच्छा था कि वह हार हम ही संभाल लेते,’’ ममता का विलाप परिस्थिति को और जटिल किए जा रहा था.

फिर से नहीं

मुझे पार्किंग से औफिस की तरफ जाते हुए ‘हाय’ की आवाज सुनाई दी, तो मैं ने उस दिशा में देखा जहां से वह आवाज आई थी. लेकिन उधर कोई नहीं दिखा तो मैं मुड़ कर वापस चलने लगी. फिर मुझे ‘हाय प्लाक्षा’ सुनाई दिया तो मैं रुक गई. पीछे मुड़ कर देखा तो विवान था. वह हाथ हिलाते हुए मेरी तरफ आ रहा था. ‘ये यहां क्या कर रहा है?’ मैं ने सोचा. फिर फीकी सी मुसकान के बाद उस से पूछा, ‘‘हाय, कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं. तुम यहां दिल्ली में क्या कर रही हो?’’ उस ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘मैं यहां काम करती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्या सच में? कब से?’’ उस की आवाज में उत्साह था.

‘‘2 हफ्ते हो गए. क्या तुम्हारा औफिस भी इसी बिल्डिंग में है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं तो यहां औफिस के काम से किसी से मिलने आया था,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा चलो हम बाद में बात करते हैं. मुझे देर हो रही है,’’ यह कह कर मैं आगे बढ़ने लगी. जबकि आज मैं थोड़ा जल्दी आ गई थी, क्योंकि घर पर कुछ करने को ही नहीं था. औफिस में रोज सुबह 10 बजे मीटिंग होती थी. अभी उस में आधा घंटा बाकी था. मैं तो बस जल्दी से जल्दी उस से दूर जाना चाहती थी.

‘‘चलो चलतेचलते बात करते हैं,’’ उस ने आगे बढ़ते हुए कहा.

‘‘तो तुम किस कंपनी में काम करती हो?’’ लिफ्ट में उस ने फिर से बात शुरू की.

‘‘द न्यूज ग्रुप में.’’

‘‘तो तुम टीवी पर आती हो?’’ उस ने आंखें बड़ी कर के पूछा. मुझे मन ही मन हंसी आ गई. पता नहीं क्यों सब को ऐसा लगता है कि न्यूज चैनल में काम करने वाले सभी लोग टीवी पर आते हैं.

‘‘नहीं, मैं अभी डैस्क पर काम करती हूं.’’ मैं ने उस की तरफ देखे बिना कहा.

मैं बेसब्री से अपना फ्लोर आने का इंतजार कर रही थी. लिफ्ट खुलते ही जल्दी से उसे ‘बाय’ कह कर मैं बाहर निकल गई. ऐसा नहीं था कि मैं उस से चिढ़ती थी, बल्कि एक वक्त तो ऐसा था जब मैं उस से मिलने, बात करने के लिए घंटों इंतजार करती थी. मेरी जिंदगी में उस के अलावा और कुछ नहीं था. दूसरे शब्दों में कहूं तो वही मेरी जिंदगी था.

विवान मेरा ऐक्स बौयफ्रैंड है. हम इंजीनियरिंग में एक ही क्लास में थे और उन 4 साल के बाद भी हम साथ थे. लेकिन धीरेधीरे सब फीका पड़ गया. मुझे लगने लगा कि मैं अकेली ही इस रिश्ते को संवारने में लगी हूं. उस वक्त विवान ने मुझे काफी हद तक बदल दिया था और एक बार मैं डिप्रैशन में चली गई थी. तब मैं ने निश्चय किया कि अब मुझे इस रिश्ते से बाहर आने की जरूरत है और हम अलग हो गए.

आज हम 2 साल बाद मिले थे. मेरे लिए आगे बढ़ना आसान नहीं था. लेकिन मैं ने कोशिश की और आज मुझे खुद पर गर्व था कि मैं ऐसा कर पाई. लेकिन आज जब मैं ने उसे इतने वक्त बाद देखा तो ऐसा लगा जैसे कुछ देर के लिए मेरा दिल धड़कना भूल गया हो.

औफिस में आई तो देखा कि वह लगभग खाली था. वैसे तो किसी न्यूज चैनल का औफिस कभी भी बिलकुल खाली नहीं होता पर सुबह की शिफ्ट के लोग 10 बजने पर ही आते थे. अपने लिए कौफी ले कर मैं कुरसी पर बैठ गई. दिमाग में फिर वही पुरानी बातें घूमने लगीं…

‘‘क्या हम हमेशा ऐसे दोस्त ही रहेंगे?’’ उस ने पूछा था.

‘‘हां, क्यों? क्या तुम नहीं चाहते?’’ मैं जानती थी कि उस के मन में क्या चल रहा था पर मैं उस के मुंह से सुनना चाहती थी.

‘‘नहीं, मेरा मतलब है कि कभी उस से ज्यादा नहीं?’’ उस ने झिझकते हुए कहा.

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम जानती हो कि मैं क्या चाहता हूं पर मैं  कभी तुम्हें प्रपोज नहीं कर पाऊंगा,’’ वह कुछ ज्यादा ही अंतर्मुखी था. लेकिन मैं भी वही चाहती थी, इसलिए मैं ने ही प्रपोज करने की रस्म पूरी कर डाली. बचपन से ही मुंहफट जो थी.

खैर, वक्त के साथ हम एकदूसरे के आदी हो गए. कालेज में तो 8 घंटे साथ रहते ही थे, आतेजाते भी साथ थे. इस के अलावा मोबाइल पर सारा दिन मैसेज होते रहते थे. कहते हैं, कभीकभी रिश्तों में ज्यादा नजदीकियां भी घातक हो जाती हैं. हम शायद जरूरत से ज्यादा ही साथ रहते थे. धीरेधीरे झगड़े बढ़ने लगे. वह मेरे लिए कुछ ज्यादा ही पजैसिव था.

‘‘वह लड़का तुम्हारी तरफ देख कर मुसकरा क्यों रहा है?’’ वह पूछता.

‘‘मुझे क्या पता,’’ मैं हैरान हो कर कहती.

‘‘मुझे बताओ तुम जानती हो उसे?’’ वह गुस्से से पूछता.

‘‘अरे हद है. मैं थोड़े ही देख रही हूं उसे. वह देख रहा है. पृछ लो जा कर उस से,’’ मैं तुनक कर कहती तो वह मुंह फुला कर चुप बैठ जाता.

मेरी जिंदगी मेरी रही ही नहीं थी और मुझे एहसास भी नहीं हुआ था कि कब और कैसे मैं उसे खुश करने के लिए अपनी जिंदगी से इनसानों और चीजों को बाहर निकालने लगी थी. मेरे जितने भी दोस्त लड़के थे, उन से तो बात करना छुड़वा ही दिया था, उस पर मजेदार बात यह थी कि जब मैं लड़कियों से बात करती तब भी न जाने क्यों उसे चिढ़ होती. इस तरह मैं एक कवच में चली गई. किसी से कोई मेलजोल नहीं, कोई बात नहीं. उस ने मेरे लिए कुछ नहीं छोड़ा था. न दोस्त, न जिम, न बाइक राइड्स.

जब वह इन सब में व्यस्त होता तब मैं अकेली बैठी यही सोचती रहती कि मैं क्या कर रही हूं खुद के साथ? मेरा आत्मविश्वास बिलकुल गिर चुका था. बहुत से लोगों के सामने बोलने में मुझे हिचक होती थी. शुरुआत में जब मैं क्लास में भी सब के सामने बोलती तो वह टोक देता. उसे लगता कि मैं ऐसा लोगों का ध्यान खींचने के लिए करती हूं.

उस की ऐसी बातें मुझ में खीज पैदा करने लगीं और मैं उस का विरोध करने लगी. बस वही वक्त था, जब हमारे बीच दूरियां बढ़ने लगीं. मैं ने उस के जासूसी भरे सवालों का जवाब देना बंद कर दिया. उसे अपना फोन चैक करने के लिए भी रोकने लगी. मुझे कभी समझ नहीं आया कि लोग रिश्तों में हमेशा शंकित क्यों रहते हैं. अगर कोई आप से प्यार करता है, तो वह आप के साथ धोखा करेगा ही नहीं और यदि वह धोखा करता है तो इस का मतलब वह आप के प्यार के काबिल ही नहीं था. यह बात विवान को कभी समझ नहीं आई और इसी चीज ने हमें अलग कर दिया.

अगले 2-3 दिन तक मैं औफिस आतेजाते इधरउधर देखती रहती कि कहीं वह है तो नहीं. पता नहीं उस से बचने के लिए या फिर उसे एक बार फिर से देखने के लिए. ठीक 1 हफ्ते के बाद फिर से सुबह के वक्त वह पार्किंग में मुझ से मिला.

‘‘गुड मौर्निंग,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘गुड मौर्निंग,’’ मैं ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मुझे देर हो रही है,’’ कह कर मैं चलने लगी.

‘‘सुनो प्लाक्षा…पाशी सुनो,’’ उस ने पीछे से पुकारा तो मेरे कदम रुक गए. आज मुझे सच में देर हो रही थी, लेकिन उस के मुंह से पाशी सुन कर मेरे कदम आगे बढ़ ही नहीं पाए.

‘‘मुझे तुम से कुछ बात करनी है,’’ वह पास आ कर बोला.

‘‘बाद में विवान, अभी मुझे सच में बहुत देर हो रही है,’’ मैं ने जल्दी से कहा.

‘‘ओके, ओके. शाम को कब फ्री होगी?’’ उस ने पूछा.

‘‘6 बजे,’’ मैं ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘ठीक है, फिर डिनर साथ में करते हैं.’’

‘‘पर.’’

‘‘कोई परवर नहीं. मुझे शाम को यहीं मिलना. मैं इंतजार करूंगा,’’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

मैं ने चुपचाप सिर हिला दिया और खड़ी रही.

‘‘अरे अब खड़ी क्यों हो? देर नहीं हो रही?’’ उस ने हलकी सी मुसकान के साथ कहा. मैं चल दी यह सोचते हुए कि अब भी क्यों मैं उस के सामने इतनी कमजोर हूं? क्या मैं अब भी उस से..? नहींनहीं, फिर से नहीं… मैं ने अपना सिर झटक दिया.

सिर झटकने से विचार नहीं रुके. पूरा दिन मैं उसी के बारे में सोचती रही. क्यों मिलना चाहता है मुझ से? क्या बात करनी होगी? क्या वह भी मुझ से? नहींनहीं… इसी पसोपेश में सारा दिन निकल गया. शाम को मैं जानबूझ कर 6 बजने के बाद भी औफिस में बैठी रही. सवा 6 बजे शिखा ने चलने के लिए कहा तो उस को जाने को कह कर खुद बैठी रही. जब साढ़े 6 बजे तो सोचने लगी कि जाऊं? घर जाने के लिए तो निकलना ही पड़ेगा और यह भी तो हो सकता है वह अभी तक इंतजार ही न कर रहा हो. अगर कर भी रहा हो तो कोई जबरदस्ती थोड़े ही है, मना कर दूंगी. खुद को यही समझातेसमझाते मैं नीचे तक चली आई. वह वहीं था. इंतजार कर रहा था.

‘‘क्या हुआ, क्यों देर हो गई?’’ उस ने पूछा.

‘‘काम ज्यादा था इसलिए…’’ मैं इतना ही कह पाई.

‘‘ओके. कोई बात नहीं, चलें?’’ यह कह कर वह अपनी गाड़ी की तरफ चलने लगा.

मेरे मुंह से चूं तक नहीं निकली. शायद मैं भी उस के साथ जाना चाहती थी. रास्ते में मैं पूरे वक्त खिड़की से बाहर ही देखती रही. उस की नजरें मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं, लेकिन मैं ने उस की ओर नहीं देखा.

‘‘क्या लोगी?’’ रैस्टोरैंट में मेन्यू बढ़ाते हुए उस ने पूछा.

‘‘कुछ भी…तुम देख लो,’’ मैं ने बिना मेन्यू देखे कहा. बैरे को और्डर देने के बाद हम चुपचाप खाने का इंतजार करने लगे. जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘‘क्या बात करनी है विवान? क्यों ले कर आए हो मुझे यहां?’’

‘‘मुझे तुम्हारी एक मदद चाहिए,’’ वह झिझकते हुए बोला.

‘‘कैसी मदद?’’

‘‘तुम मेरे मम्मीपापा से मिल सकती हो?’’ वह बोला.

‘‘क्या? पर क्यों? मुझे नहीं लगता कि वे मुझे जानते हैं,’’ मैं ने असमंजस में कहा.

‘‘यार देखो मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं तुम्हें कैसे समझाऊं,’’ वह अचानक परेशान नजर आने लगा.

‘‘बोलो क्या बात है?’’

‘‘वे मेरी शादी के पीछे पड़े हैं. मैं अभी शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम उन से मेरी गर्लफ्रैंड की तरह मिलो. मैं उन से कहने वाला हूं कि तुम अभी 6 महीने शादी नहीं कर सकतीं और मैं सिर्फ और सिर्फ तुम से शादी करूंगा,’’ वह समझाते हुए बोला.

‘‘तुम पागल हो गए हो? मैं ऐसा क्यों करूंगी? और तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? कभी न कभी किसी न किसी से तो शादी करनी है न. प्रौब्लम क्या है?’’ मैं ने तीखे स्वर में पूछा.

‘‘प्लाक्षा, तुम करोगी या नहीं?’’

‘‘नहीं, और जब तक तुम कारण नहीं बताते तब तक तो बिलकुल भी नहीं.’’ वह कुछ देर तक चुपचाप मेरी तरफ देखता रहा. खाना आ चुका था. हम बिना कुछ बोले खाना खाने लगे.

‘‘प्लाक्षा, तुम सच में मेरी मदद नहीं करोगी?’’ खामोशी तोड़ कर उस ने कहा.

‘‘तुम मुझे कारण भी नहीं बता रहे हो, विवान. क्या उम्मीद करते हो मुझ से? और मैं तुम्हारे लिए कुछ भी क्यों करूंगी? इतना सब होने के बाद भी?’’ मेरी आवाज में चिढ़ थी. पता नहीं क्यों हर कोई मुझ से इतनी उम्मीदें रखता है. कभीकभी लगता है कि इनसान को इतना भी कमजोर नहीं होना चाहिए कि सब उस का फायदा ही उठाते रहें.

मेरा घर आ चुका था. ‘‘डिनर के लिए थैंक्स,’’ कह कर मैं कार का दरवाजा खोलने लगी.

‘‘प्लाक्षा सुनो, रुको.’’ मैं रुक गई.

‘‘प्लीज मेरी हैल्प कर दो. मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूं.’’ उस के बाद उस ने जो कहानी बताई वह कुछ इस तरह थी-

उस की एक गर्लफ्रैंड थी, साक्षी. उसे कंपनी की तरफ से अमेरिका जाने का मौका मिला था और वह 6 महीने से पहले वापस नहीं आ सकती थी. विवान उसी से शादी करना चाहता था और मुझे उस के घर वालों से साक्षी बन कर मिलना था. उस के घर वाले उस पर शादी का बहुत ज्यादा दबाव बना रहे थे और उसे इस के अलावा कोई और विकल्प नहीं दिख रहा था.

‘‘पर मैं ही क्यों विवान? तुम तो किसी भी लड़की को ले जा सकते हो,’’ मैं ने उस से कहा.

‘‘एक तो और कोई है ही नहीं. फिर कोई लड़की सच में गले पड़ गई तो?’’

‘‘अच्छा. और मैं ने ऐसा कुछ किया तो?’’

‘‘नहीं करोगी. मुझे विश्वास है तुम पर.’’

मैं व्यंग्य से हंस पड़ी. ‘‘तुम्हें मुझ पर विश्वास है? अच्छा लगा सुन कर.’’

वह असहज हो गया. कुछ देर की शांति के बाद बोला, ‘‘तो तुम करोगी?’’

‘‘सोच कर बताऊंगी,’’ कह कर मैं कार से उतर गई. मुझे पता था उस की नजरें मेरा पीछा कर रही थीं पर मैं ने मुड़ कर नहीं देखा.

सारी रात उस की बातें मेरे दिमाग में घूमती रहीं. कितनी कोशिश की थी मैं ने उन सब बातों और यादों से खुद को दूर रखने की, लेकिन आज जब फिर से वह मेरे सामने खड़ा था तो खुद को कमजोर ही पा रही थी मैं. मुझे ब्रेकअप के कुछ महीने बाद उस से हुई आखिरी मुलाकात याद आ गई.

‘‘तुम्हें मेरी याद आती है?’’ मैं ने उस से पूछा था.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ वह मेरी ओर देखे बिना बोला था. फिर पूरे वक्त वह अपनी जौब, कुलीग्स, घूमनेफिरने की ही बातें करता रहा. हालांकि मैं ने ही उसे मिलने के लिए बुलाया था, लेकिन मैं बिलकुल खामोश थी. बस, अलविदा कहते वक्त उस से पूछा था, ‘‘तुम क्या चाहते हो विवान मुझ से?’’

‘‘मतलब?’’ उस ने अचकचा कर पूछा.

‘‘हमारा ब्रेकअप हो चुका है न. फिर भी तुम जबतब मुझ से बात करने लगते हो और जब मैं बात करना चाहूं तो मुझे झिड़क देते हो. क्या चाहते हो? फिर से रिलेशनशिप में आना या फिर सच में बे्रकअप?’’ मैं ने उस से पूछा, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से बहुत टैंशन में थी मैं. वह न तो मुझे खुद से जुड़े रहने देता और न ही पूरी तरह अलग करना चाहता था.

‘‘देखो, अब हम साथ तो नहीं रह सकते,’’ इतना ही बोला उस ने.

‘‘तो फिर मुझ से बात करना बिलकुल बंद कर दो. मुझे अकेला छोड़ दो. यह औनऔफ मुझ से बरदाश्त नहीं होता,’’ रो पड़ी थी मैं.

उस के बाद से अकेली ही थी मैं. कमजोर थी इसलिए कई लोगों ने भावनात्मक रूप से फायदा उठाने की कोशिश भी की. पर इन सब चीजों ने मुझे और मजबूत बना दिया. लोगों की थोड़ीबहुत पहचान भी मैं करने लगी थी अब. किसी पर आसानी से विश्वास नहीं करती थी. कुल मिला कर अपनी छोटी सी दुनिया में खुद को बचाए किसी तरह चैन से जी रही थी मैं. पर अब फिर से… नहीं. मैं अब किसी को अपनी अच्छाई का फायदा नहीं उठाने दूंगी. मैं मदद करूंगी लेकिन एक शर्त पर.

हम अगली बार एक कौफी शौप में बैठे थे. मेरे ‘हां’ कहने पर विवान बहुत खुश था. लेकिन मेरी शर्त की बात सुन कर वह थोड़ा परेशान हो गया.

‘‘क्या?’’ उस ने पूछा तो मैं ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘वह तुम्हें 6 महीने बाद बताऊंगी.’’

‘‘अरे, प्लीज बताओ न, तुम्हें पता है मुझे सस्पैंस बिलकुल पसंद नहीं है,’’ वह मेरा हाथ पकड़ कर जिद करने लगा. मैं ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. उस की छुअन से अब भी…नहींनहीं, फिर से नहीं.

‘‘सौरी,’’ वह डरते हुए बोला, ‘‘बताओ न प्लीज.’’

‘‘विवान, तुम चाहते हो न कि मैं तुम्हारी हैल्प करूं?’’ मैं ने तल्ख स्वर में पूछा. ‘‘हां, लेकिन…’’ उस की बात पूरी होने से पहले ही मैं बोली, ‘‘बस तो फिर अब कुछ काम मेरी पसंद के भी करो और मुझे बताओ कि कब कैसे क्या करना है.’’

‘‘अगले दिन हम दोनों उस के घर के ड्राइंगरूम में बैठे थे. मैं उस के कहे अनुसार सलवारकमीज में थी और हमेशा की तरह उस ने असहज महसूस कर रही थी. उस में मम्मीपापा सामने बैठे मुझे ऊपर से नीचे तक देख रहे थे.  –

क्रमश: (कहानी के शेष भाग के लिए पढ़ते रहिये सरिता)

धर्मणा के स्वर्णिम रथ- पाखी को अधर्मी क्यों कहते थें लोग? भाग 2

जाए? आप की मंडली में तो सभी संपन्न घरों से आती हैं. जो चढ़ावा आता है और जो कुछ आप ने प्रसाद के लिए सोचा है, सब मिला कर किसी झोपड़पट्टी के बच्चों को दूधफल खिलाने के काम आ जाएगा.’’

‘‘कैसी बात करती हो, पाखी? तुम खुद तो अधर्मी हो ही, हमें भी अपने पाप की राह पर चलने को कह रही हो. अरे, धर्म से उलझा नहीं करते. अभी सुनी नहीं तुम ने मेरी भाभी वाली बात? हाय जिज्जी, यह कैसी बहू लिखी थी आप के नाम,’’ रानी चाची ने पाखी के सुझाव को एक अलग ही जामा पहना दिया. उन के जोरजोर से बोलने के  कारण आसपास घूम रहा संबल भी वहीं आ गया, ‘‘क्या हो गया, चाचीजी?’’

‘‘होना क्या है, अपनी पत्नी को समझा, अपने परिवार के रीतिरिवाज सिखा. आज के दिन तो कम से कम ऐसी बात न करे,’’ रानी के कहते ही संबल ने आव देखा न ताव, पाखी की बांह पकड़ उसे घर के अंदर ले गया.

‘‘देखो पाखी, मैं जानता हूं कि तुम पूजाधर्म को ढकोसला मानती हो, पर हम नहीं मानते. हम संस्कारी लोग हैं. अगर तुम्हें यहां इतना ही बुरा लगता है तो अपना अलग रास्ता चुन सकती हो. पर यदि तुम यहां रहना चाहती हो तो हमारी तरह रहना होगा,’’ संबल धाराप्रवाह बोलता गया.

वह अकसर बिदक जाया करता था. इसी कारण पाखी उस से धर्म के बारे में कोई बात नहीं किया करती थी. परंतु वह स्वयं को धार्मिक आडंबरों में भागीदार नहीं बना पाती थी. इस समय उस ने चुप रहने में ही अपनी और परिवार की भलाई समझी. वह जान गईर् थी कि संबल को रस्में निभाने में दिलचस्पी थी, न कि रिश्ते निभाने में.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, संबल. चाचीजी को मेरी बात गलत लगी, तो मैं नहीं कहूंगी. तुम बाहर जा कर मेहमानों को देखो,’’ उस ने समझदारी से संबल को बाहर भेज दिया और खुद मनन को खिलानेसुलाने में व्यस्त हो गई. मन अवश्य भीग गया था. उसे संदेह होने लगता है कि काश, उस की मानसिकता भी इन्हीं लोगों की भांति होती तो उस के लिए जीवन कुछ आसान होता. परंतु फिर अगले पल वह अपने मन में उपमा दोहराती कि जैसे कीचड़ में कमल खिलता है, वह भी इस परिवार में इन की अंधविश्वासी व पाखंडी मानसिकता से स्वयं को दूर रखे हुए है.

इधर किशोरीलाल स्वयं रानी चाची को उन के घर तक छोड़ने गए. ममता ही जिद कर के भेजा करती थीं. ‘‘आप गाड़ी चला कर जाइए रानी को छोड़ने. वह कोई पराई है क्या, जो ड्राइवर के साथ उसे भेज दें?’’

रास्ते में रोशन कुल्फी वाले की दुकान आई तो किशोरीलाल ने पूछा, ‘‘रोकूं क्या, तुम्हारी पसंदीदा दुकान आ गई. खाओगी कुल्फीफालूदा?’’

‘‘पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे मेरे मना करने पर मान जाओगे? तुम्हीं ने बिगाड़ा है मुझे. अब हरजाना भी भुगतना पड़ेगा,’’ रानी ने खिलखिला कर कहा. फिर किशोरीलाल की बांह अपने गले से हटाते हुए कहने लगी, ‘‘किसी ने देख लिया तो? आखिर तुम्हारी दुकान यहीं पर है, जानपहचान वाले मिल ही जाते हैं हर बार.’’

किशोरीलाल और रानी के बीच अनैतिक संबंध जाने कितने वर्षों से पनप रहा था. सब की नाक के नीचे एक ही परिवार में दोनों अपनेअपने जीवनसाथी को आसानी से धोखा देते आ रहे थे. ममता धार्मिक कर्मकांड में उलझी रहतीं. रानी आ कर उन का हाथ बंटवा देती और ममता की चहेती बनी रहती. कभी पूजा सामग्री लाने के बहाने तो कभी पंडितजी को बुलाने के बहाने, किशोरीलाल और रानी खुलेआम साथसाथ घर से निकलते. किशोरीलाल ने अपनी दुकान में पहले माले पर एक कमरा अपने आराम करने के लिए बनवा रखा था. सभी मुलाजिमों को ताकीद थी  कि जब सेठजी थक जाते हैं तब वहां आराम कर लेते हैं. पर जिस दिन घर पर पूजापाठ का कार्यक्रम होता, किशोरीलाल अपने सभी मुलाजिमों को छुट्टी देते और अपने घर न्योता दे कर बुलाते.

ऐसे में तैयारी करने के बहाने वे और रानी बाजार जाते. फिर दुकान पर एकडेढ़ घंटा एकदूसरे की आगोश में बिताते और आराम से घर लौट आते. मौज की मौज और धर्मकर्म का नाम. बाजार में कोई देख लेता तो सब को यही भान होता कि घर पर पूजा के लिए कुछ लेने दुकान पर आए हैं. वैसे भी, हर बार आयोजन से पहले किशोरीलाल, ममता के लिए अपनी दुकान से नई साडि़यां ले ही जाया करते थे. पत्नी भी खुश और प्रेमिका भी.

नवरात्र में भजनकीर्तन की तैयारी में जुटी ममता को अपना भी होश न था. सबकुछ भूल कर वे माता का दरबार सजाने में मगन थीं. बहू पाखी ने आज अपने कमरे में रह कर ही भोजन किया, वरना उसे सुबह से ही सास की चार बातें सुनने को मिल जातीं कि कोई व्रतउपवास नहीं करती. पाखी इन नाम के उपवासों में विश्वास नहीं करती थी. कहने को उपवास है, पर खाने का मैन्यू सुन लो तो दंग रह जाओ – साबूदाना की खिचड़ी, आलू फ्राई, कुट्टू के पूरीपकौड़े, घीया की सब्जी, आलू का हलवा, सामक के चावल की खीर, आलूसाबूदाने के पापड़, लय्या के लड्डू, हर प्रकार के फल और भी न जाने क्याक्या.

कहने को व्रत रख रहे हैं पर सारा ध्यान केवल इस ओर कि इस बार खाने में क्या बनेगा. रोजाना के भोजन से कहीं अधिक बनता है इन दिनों में. और विविधता की तो पूछो ही मत. 9 दिन व्रत रखेंगे और फिर कहेंगे कि हमें तो हवा भी लग जाती है, वरना पतले न हो जाते. अरे भई, इतना खाओगे, वह भी तलाभुना, तो पतले कैसे हो सकते हो? पाखी अपनी सेहत और नन्हे मनन की देखरेख को ही अपना धर्म मानती व निभाती रहती.

कीर्तन करने के लिए अड़ोसपड़ोस की महिलाएं एकत्रित होने लगी थीं. सभी एक से बढ़ कर एक वस्त्र धारण किए हुए थीं. देवी की प्रतिमा को भी नए वस्त्र पहनाए गए थे – लहंगाचोलीचूनर, सोने के वर्क का मुकुट, पूरे हौल में फूलों की सजावट, देवी की प्रतिमा के आगे रखी टेबल पर प्रसाद का अथाह भंडार, देसी घी से लबालब चांदी के दीपक, नारियल, सुपारी, पान, रोली, मोली, क्या नहीं था समारोह की भव्यता बढ़ाने के लिए. आने वाली हर महिला को एक लाल चुनरिया दी जा रही थी जिस पर ‘जय माता दी’ लिखा हुआ था.

नेताविहीन दुनिया

ऐसे समय में जब संकट विश्वव्यापी है, हमें ऐसे नेता चाहिए जो विश्व को एक नजर से देखें अपने देश, धर्म, व्यापार, अर्थव्यवस्था, अगले चुनाव में जीत की निगाहों से नहीं. अफसोस यह है कि दुनिया के पास ऐसे नेता ही नहीं हैं जो पूरे विश्व समुदाय की सोचें.

दुनिया को जब मोहनदास करमचंद गांधी जैसा नेता चाहिए था, एल्बर्ट आइंसटाइन जैसा वैज्ञानिक चाहिए था, विंस्टन चर्चिल जैसा स्टेट्समैन चाहिए था, तब दुनिया के पास क्रोनी कैपिटलिज्म से पैसा बनाने वाले नेता हैं, बस. चीन, जो आज दुनिया का औद्योगिक नेता बना है, कोरोना वायरस का जन्मदाता है. चीन के सर्वोच्च नेता शी जिनपिंग कोरोना को पूरी तरह दोहने में लगे हैं. अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप तो केवल अमीरों, वह भी अमेरिका के अमीर गोरों, की सोचते हैं. उन के पैसों पर आंच न आए, इस के लिए उन्होंने गलत फैसला किया और देश को कोरोना की आग में झोंक दिया. वे दुनिया के नेता कैसे कहे जा सकते हैं.

इधर भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार अभी भी हिंदूमुसलिम करने में लगी है. उसे लौकडाउन लागू किए जाने के चलते बेरोजगार हो गए मजदूरों की कोई चिंता नहीं है जो मरतेखपते अपने घरों की ओर जाना चाहते हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव का ओहदा डोनाल्ड ट्रंप की वजह से वैसे ही कमजोर हो गया है और वह पद भी अनजाने से एंटोनियो गुटरेस के पास है जो कोने में छिपे जैसे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी सही नेतृत्व नहीं दे पा रहा.

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इस समय सब लोग आग से अपनेअपने घर का सामान बचाने में लगे हैं. आग बुझाने के लिए सोचने या कुछ करने की फुरसत है किसी को? हर नेता की निगाह अगले चुनावों पर है, अगली खेप के मरीजों पर नहीं.

पिछले 30 सालों के दौरान दुनियाभर में पैसे की जो भूख पैदा हुई, उस ने मानवता को कुचल दिया है. दुनिया के सभी नेता, जिन्होंने उन पर खर्च किया उन्हें, मुआवजा देने में लगे हैं. हर नेता की निगाह अपने देश के शेयर बाजार पर लगी है. आज के नेताओं के पास तो अपनेअपने देशों की गरीब जनता के लिए 2 मिनट भी नहीं हैं.

समाचारपत्र, जो पहले विश्वव्यापी उदार दृष्टि रखते थे, अब एकएक कर के संकटों में घिर रहे हैं क्योंकि इंटरनैट ने विचारों को सस्ता बना दिया है. सही विचार की जगह इंटरनैट के सहारे वैब मीडिया व पेड टैलीविजनों से भड़काऊ या कोरी चुहुलबाजी की सोच परोसी जा रही है.

कोरोना का कहर किसी एक देश की समस्या नहीं है. इस का हल पूरा विश्व एकसाथ बैठ कर ही निकाल सकता है. पर न ऐसी संस्था बची है, न देश और न नेता जो इस संकट को दूर करने के दूरगामी फैसले ले सके और लागू करवा सके. मानवता को इस की कीमत देनी होगी. जब इस का अप्रत्यक्ष साइड इफैक्ट घरघर पर पड़ने लगेगा, तो पता चलेगा कि दुनिया एक झटके में 300साल पहले की स्थिति में पहुंच गई है.

सांसद बेचारे

केंद्र सरकार ने एक तानाशाही फरमान से सांसदों को मिलने वाली सांसद निधि कोष को हड़प लिया है. जो भक्तसांसद हर बात में हां में हां मिलाने को तत्पर रहते हैं, वे भी सोच रहे होंगे कि अब वे अपने गांव, शहर, कसबे में मतदाताओं की मांग पर नल, सड़क, स्कूल, बस, प्लेग्राउंड कैसे बनवाएंगे. कहने को तो सरकार ने यह कदम कोविड-19 को हराने के लिए उठाया है पर इस के लिए और भी बहुत से क्षेत्र हैं जहां कटौती की जा सकती है.

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जो भाजपा सांसद सोचते थे कि हर बात में उन का नेता सही ही होता है, वे अब मन ही मन गुस्सा हो रहे होंगे कि सांसद निधि की राशि सालाना महज 2 करोड़ रुपए है. यह भी सांसद के बैंक अकाउंट में नहीं जाती. यह उसे खर्च करनी होगी और इस के खर्च करने के लिए 14 पृष्ठों के दिशानिर्देश हैं. सांसद एक लाख रुपए से ज्यादा और 10 लाख रुपए से कम राशि का अनुमोदन कर सकता है. लेकिन सरकारी मशीनरी ही इसे खर्च करती है. 1992 से चल रही यह योजना सांसदों के लिए उपयोगी है और वे मतदाताओं की मांग पर छोटेछोटे काम कराते रहते हैं.

स्कूलों या सार्वजनिक उपयोग के लिए पुस्तकालयों, सीसीटीवी लगवाने जैसे कार्यक्रमों के लिए विस्तृत सीमाएं दिशानिर्देशों में हैं. हर अनुमोदित खर्च पर सांसद निधि से संबंधित लंबेचौड़े कागज भरने होते हैं. किसी भी सूरत में यह स्कीम सांसदों को मनमानी नहीं करने देती. बहुत से सांसद तो खानापूर्ति करने से बचने के लिए इसे खर्च ही नहीं करते.

सांसद निधि, दरअसल, केंद्र सरकार के नेतृत्व की मनमानी से बचने का एक उपाय था. आजकल आम जनता की तो छोडि़ए, सांसदों तक की नहीं सुनी जाती. ये 2 करोड़ रुपए कुछ राहत देते हैं. देश का बजट तो 30 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है जिसे मिनटों में पास करने को मजबूर किया जाता है. बेचारे सांसदों का काम सिर्फ हाथ उठाना भर रह गया है. अब वे अपने शहरगांव या चुनाव क्षेत्र में विकास के लिए 10-11 करोड़ रुपए भी 5 सालों में खर्च नहीं कर पाएंगे. यह न भूलें कि उन का क्षेत्र इतना बड़ा होता है कि चुनाव के समय घरघर पहुंचने में सभी उम्मीदवारों को कुल मिला कर 25-30 करोड़ रुपए 20-25 दिन में खर्चने पड़ते हैं.

सांसद निधि को समाप्त करना देश की सत्ता को एक हाथ में लेने का एक और कदम है. संसद और इस के बाद विधान सभाएं अगर चीनी और उत्तरी कोरियाई लगने लगें, तो बड़ी बात नहीं.

संसद देश के लोकतंत्र का अभिन्न अंग है. उस के सदस्य बेचारे या शक्तिहीन मोहरे बन कर रह जाएं, तो लोकतंत्र को वैंटिलेटर पर ही समझें.

मीडिया सरकारी गुलाम

सरकार को कोरोना के वायरस के साथसाथ एक और मोरचे पर लड़ना पड़ सकता है, वह है विश्वास का मोरचा. करोड़ों लोग कोरोना से प्रभावित हुए हैं. सब घरों में बंद हैं. कुछ गांवों में, कुछ सड़कों पर लावारिस पड़े हैं. कुछ अस्पतालों में हैं. इन सब को सरकार के किसी कथन पर भरोसा नहीं है. वे कोई भी काम अपनी पूरी सहमति के साथ नहीं करेंगे. सरकार जहां जबरन जो कहेगी, उसे वे कर लेंगे स्थिति की भयावहता को समझ कर, सहयोग देते हुए नहीं.

सरकार ने यह भरोसा तोड़ा है, बड़ी मेहनत से. पिछले 6 सालों के दौरान सरकार की हर बात को सच मान कर झूठ का भी ढिंढोरा इतनी जोरजोर से पीटा गया है कि सच और झूठ के बीच की दीवार कब की गिर चुकी है. मीडिया को बिका हुआ माना जाता है और वह जो चाहे कहे. उस में चाहे कुछ को, धर्म के उपदेश की तरह, अगाध श्रद्धा हो, लेकिन ज्यादातर लोग उसे आधा सच ही मानते हैं.

ऐसे में सरकार जो निष्ठा चाहती है वह उसे नहीं मिल पाती. हर व्यक्ति जबरन काम करता है या तो डर कर या इसलिए कि उस के पास और कोई पर्याय नहीं है. कोई भी सरकार, ऐसे मामले में जिस में बीसियों करोड़ों का वर्तमान, भविष्य व जीवनमरण जुड़ा हो, बिना आपसी भरोसे के सफल नहीं हो सकती.

स्वतंत्र मीडिया केवल इसलिए स्वतंत्र नहीं कि विपक्षी दलों को इस से फायदा होता है. स्वतंत्र मीडिया सरकार के लिए पहरेदारी करता है. उसे वह वे बातें बताता है जो सरकार के खुद के लोग नहीं बताते. स्वतंत्र मीडिया जनता के हितों की रक्षा तो करता ही है, सरकारी हितों की भी रक्षा करता है क्योंकि वह गांवगांव से तथ्य जमा करता है, सरकार की नाकतले होने वाली धांधलियों की पोल भी अकसर खोलता है.

सरकार ने स्वतंत्र मीडिया के पर कुचल डाले हैं. पत्रकारों और पत्रकारिता के नाम पर सरकार ने जीहुजूरों की फौज खड़ी कर ली है. आज देश के ज्यादातर पत्रकार सरकार के कहने पर चलते हैं. ऐसी स्थिति में वे अगर सच कहें या लिखें, तो भी भरोसा नहीं होता.

जब सरकार कोरोना से बचाने वाले लौकडाउन के फायदों, सावधानियों, व्यवहार परिवर्तन की बात करती है तो जनता उसे मन से स्वीकार नहीं करती. सरकार को अब डाक्टरों की फौज लगानी पड़ रही है, विशेषज्ञ बुलाने पड़ रहे हैं. कोई भी मंत्रियों की बात मानने को तैयार नहीं है क्योंकि वे सच नहीं बोलते. इसीलिए आज मीडिया, चाहे वह गोदी मीडिया हो या कोई और, पर मंत्रियों, नेताओं के चेहरे दिख ही नहीं रहे. दरअसल, आमजन का उन पर भरोसा नहीं रहा. सब अब वैज्ञानिकों का इंतजार कर रहे हैं कि वे आएं और वायरसरूपी आफत से बचाएं.

जब पूरे देश को एक चाल से चला कर लक्ष्य की ओर ले जाना हो तो सरकार और मीडिया पर भरोसा बहुत जरूरी है. कोरोना से लड़ाई लंबी होनी है, यह तय है. ऐसे में अगर सरकार व मीडिया दोनों पर जनता को भरोसा नहीं होगा तो हम वैसे ही भटकते रहेंगे जैसे 1857 में अंगरेजों के विरुद्ध खड़े होने में भटके थे और तब

90 साल और गुलामी गले पड़ी रही थी.

बेकार होते कामगार

कहने को भाजपा सरकार देश को कालेधन और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने की रातदिन कोशिश कर रही है. पर, असल में वह धन को ही समाप्त करने में लगी है. सभी क्षेत्रों में भारी मंदी आ गई है. इस के सब से बड़े शिकार छोटे व्यापारी, छोटे उद्योगपति हैं. उन के साथ काम कर रहे करोड़ों लोगों का वर्तमान और भविष्य दोनों खतरे की जद में हैं.

कोरोना से पहले ही केंद्र सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों की वजह से देश में आई मंदी और पैसे की कमी के चलते छोटेबड़े उद्योगों ने नियमित कामगार रखने की जगह ठेके पर कामगार रखने शुरू कर दिए थे. इस का मतलब है कि किसानों, बढ़इयों, लुहारों, जुलाहों के बच्चे, जो खेतीकिसानी में खप नहीं पाते थे, शहरों की सरकारी फैक्ट्रियों में नौकरी पा कर सुरक्षा भी पाते थे और घरबार भी बना लेते थे, लेकिन अब वे कच्ची नौकरियों में रह जाएंगे. 2011-12 में इन ठेकेदारों के पास काम करने वालों की संख्या 11 करोड़ थी, जो 2017-18 में बढ़ कर 14 करोड़ हो गई. बिहार जैसे राज्य में तो इसी अवधि में इन की संख्या 39 लाख से बढ़ कर 85 लाख हो गई.

ठेके पर काम करने वाले अब कभी भी कुशल नहीं बन पाएंगे क्योंकि उन्हें कभी एक फैक्ट्री में काम करना होगा तो कभी दूसरी में. फैक्ट्री प्रबंधन इन्हें काम सिखाने में भी रुचि नहीं दिखाएगा क्योंकि उसे इन के टिकने का भरोसा नहीं रहेगा.

यह स्थिति देश की आर्थिक सुदृढ़ता के लिए खतरनाक है. देश का कामगारी वर्ग, जो किसानी करता है या किसानों के लिए काम करता था, देश के कारखानों में श्रमिक भेजता रहा है. देश के ज्यादातर सैनिक भी इसी वर्ग से आते हैं. यह वर्ग सप्लाई चेन का भी अहम हिस्सा है. दिक्कत यह रही है कि सदियों से इस वर्ग को पढ़नेलिखने नहीं दिया गया और मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद जो खिड़कियां खुलीं भी, वे इन की संख्या देखते हुए कम थीं.

अब बागों की देखरेख के लिए सरकारी माली नहीं रखे जाते, ठेकेदार रखे जाते हैं. सड़कों की मरम्मत सरकार अपने कर्मियों से नहीं कराती बल्कि ठेकों पर कराती है. नोएडा ने हाल ही में अपने क्षेत्र के पंप, बिजली, सड़कों की देखभाल आदि के बीसियों करोड़ों के टैंडर जारी किए. टैंडर प्रक्रिया ऐसी है कि ये कामगार लोग खुद भी पूरी नहीं कर सकते. इन लोगों को ठेकेदारों के पास काम करना होगा जो आधाअधूरा काम कराएंगे.

ऐसे में देश की आर्थिक परेशानी दूर होगी तो कैसे? 50 करोड़ से ज्यादा जनता को आज बेसहारा छोड़ा जा रहा है. इन के पास न खेत बचे हैं, न कारखाने.   द्य

धर्मणा के स्वर्णिम रथ

रितेश पांडे पर एफआईआर को लेकर अक्षरा सिंह ने दी सफाई

दो दिन पहले उत्तर प्रदेष व बिहार के कुछ समाचार पत्रों में सूर्खिेयों के साथ खबर प्रकाषित हुई थी कि भोजपुरी की खूबसूरत अदाकारा अक्षरा सिंह ने भोजपुरी गायक और अभिनेता रितेश पांडे के खिलाफ उत्तर प्रदेष पुलिस में एफआईआर दर्ज करायी है.

इस खबर की चर्चा षुरू होने पर रितेष पांडे के साथ ही अक्षरा सिंह भी   आष्चर्य चकित हो गयी.तब अक्षरा सिंह ने फेसबुक पर जाकर अपने आधिकारिक पेज पर जाकर इस खबर को पूरी तरह से गलत बताते हुए लिखा कि,‘‘यह आरोप पूर्णरूपेण  बेबुनियाद है.कोरोना की वैश्विक महामारी व लाॅक डाउन के चलते मैं पिछले 60 दिनों से अपने घर में कोरंटीन हूं.सुरक्षित हूं और कहीं बाहर गई ही नहीं.तो मैं उत्तर प्रदेष जाकर अभिनेता रितेष पांडे के खिलाफ एफआईआर कैसे दर्ज करा सकती हूं.’’


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अक्षरा सिंह ने आगे लिखा है-‘‘मैं इस खबर का खंडन करती हूं कि मैंने किसी पर कोई एफआईआर दर्ज करायी है.प्रकाषित खबर में जो कुछ लिखा है,वह बिना सिर पैर का है.यह मुझे बदनाम करने की साजिश है.कई ऐसे लोग हैं,जो समय समय पर मेरे खिलाफ साजिश रच कर बदनाम करने की कोशिश करते रहते हैं.मुझे इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं है.

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मुझे मेरे फैंस का प्यार और आशीर्वाद भरपूर मिल रहा है.यह मेरे लिए बहुत है.मैं इस तरह की ओछी हरकत करने में कभी विश्वास नहीं करती.जहां तक रितेश पांडे का सवाल है,तो वह अच्छे अभिनेता के साथ साथ अच्छे इंसान हैं.वह मेेरे अच्छे दोस्त हैं.उनके साथ कभी कोई अनबन तक नहीं हुई,तो फिर एफआईआर किस बात के लिए..हमने एक साथ कुछ फिल्में भी की हैं,और आगे भी करने वाले हैं.’’

करण जौहर के घर पहुंचा कोरोना

महाराष्ट्र और मुंबई में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है.कोरोना वायरस के संक्रमण पर किसी भी तरह से रोक नहीं लग पा रही है.अब तो यह बॉलीवुड में भी अपने पैर पसारने लगा है.अप्रैल माह में करीम मोरानी और उनकी बेटी व अभिनेत्री जोया मोरानी कोराना ंसंक्रमित हुई  थीं.उनके ठीक होने के बाद से सब ठीक चल रहा था.मगर एक सप्ताह पहले बोनी कपूर के घर के कर्मचारी कोरोना पीड़ित पाए गए थे.दो दिन पहले अभिनेता किरण कुमार के कोरोना पीड़ित होने की खबरे आयीं.

अब फिल्म निर्माता निर्देशक करण जोहर के घर में काम करने वाले दो कर्मचारियों के कोरोना पीड़ित होने से हड़कंप मच गया है.25 मई को करा जेाहर का जन्मदिन था,उसी दिन उनके घर पर कार्यरत दो लोगों के कोरोना पीड़ित होने की खबरें सामने आयीं.और इस बात की जानकारी स्वयं करण जोहर ने ही दी.वैसे करण जोहर उनकी मां उनके बच्चों यस और रूही के कोरोना टेस्ट नगेटिव आए हैं.लेकिन एहतियातन करण जोहर के पूरे परिवार को 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया गया है.

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खद करण जोहर ने सोषल मीडिया पर लिखा है-‘‘मेरे घर पर काम करने वाले दो लोगों का कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आया है. उन लोगों को क्वॉरंटीन कर दिया गया है.बीएमसी को इस बात की जानकारी दे गई है.परिवार के सभी सदस्य और स्टाफ के अन्य सभी लोग सुरक्षित हैं.सभी का टेस्ट नगेटिव आया है.लेकिन सुरक्षा के लिहाज से सभी लोग अगले 14 दिन के लिए सेल्फ आइसोलेशन में चले गए.‘’

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करण जौहर ने आगे बताया, ‘‘हम सभी को सुरक्षित करने के लिए अपने कमिटमेंट के साथ खड़े है और यह सुनिश्चित किया है कि अथॉरिटी द्वारा निर्धारित सभी उपायों का पालन करते रहेंगें.हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि जिन कर्मचारियों को कोरोना संक्रमण हुआ है,उन्हे बेहतरीन इलाज की सुविधा महैय्या करयी जाएगी.हमें पूरी उम्मीद है कि वह जल्द ही ठीक हो जाएंगे.’‘

लॉकडाउन इफेक्ट: रश्मि देसाई के बाद निया शर्मा भी हुई नागिन 4 से बाहर

टीवी जगत का मशहूर शो ‘नागिन 4’   हमेशा की तरह एक बार फिर सुर्खियों में आ चुका है. लेकिन अगर आप यह सोच रहे है कि सीरियल में कुछ ट्विस्ट आने वाला है तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं है इस बार नागिन के फैंस के लिए बुरी खबर है.

नागिन 4 जल्द ही बंद होने वाला है. इसकी जानकारी पहले से ही आ रही थी लेकिन अब यह साफ हो गया है कि लॉकडाउन के खत्म होते ही रश्मि देसाई को शो से बाहर किया जाएगा. क्योंकि रश्मि इस शो में सबसे ज्यादा पैसा लेने वाली कलाकार है. वहीं अब खबर ये भी आ रही है कि रश्मि के बाद निया शर्मा को भी इस शो से बाहर किया जाएगा.

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एकता कपूर जल्द ही सीरियल नागिन 5 का ऐलान करने वाली हैं. जिसमें कई नए  चेहरे नजर आएंगे. लॉकडाउन में इस शो को घाटा भी हो रहा था. जिसे ध्यान में रखते हुए इन सभी फैसलों को लिया गया है.

ताजा रिपोर्ट की मानें तो इस बात का अंदाजा शो में काम करने वाले सभी कलाकारों को पहले से ही हो गया था. साथ ही खबर ये भी है कि निया शर्मा जल्द ही अपने नए शो के कास्ट को सभी के सामने होस्ट करने वाली है. वैसे नागिन तो हमेशा से लोगों का मन पसंदीदा सीरियल रहा है. इस सीरियल को लगभग सभी लोग देखना पसंद करते हैं. वैसे फैंस को एकता कपूर के नए शो का इंतजार है. देखना यह है कि इस शो में कैन-कौन होंगे नए चेहरे.

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वैसे फिलहाल सभी लोग लॉकडाउन में अपने घर से बैठकर काम कर रहे हैं. सभी को लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार है.

ये अफवाहें कोरोना से ज्यादा खतरनाक हैं

भारत में सिर्फ कोरोना वायरस ही नहीं है जो तेजी से फैल रहा है, बल्कि झूठी खबरों और अफवाहों की रफ्तार कोरोना वायरस को भी मात दे चुकी है. हर तरफ से आने वाली झूठी खबरें न केवल लोगों को सच देखने से रोक रही हैं, बल्कि उन की सोचनेसमझने की शक्तियों पर भी पाबंद लगा देती हैं जिस से उन के लिए सही और गलत में अंतर करना मुश्किल हो जाता है.

अफवाह और अराजकता

बीते दिनों नोएडा के रहने वाले राजेश को फेसबुक पर इंडिया टीवी के स्टाफ को ले कर झूठी खबरें फैलाने के जुर्म में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.

राजेश ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर लिखा,”इंडिया टीवी के 20 कर्मचारियों को कोरोना वायरस हो गया है. यदि आप इंडिया टीवी के औफिस के आसपास रहते हैं तो सावधानी बरते और संभल कर रहें.”

इंडिया टीवी ने अपने कर्मचारियों को ले कर इस अफवाह के संदर्भ में झूठी खबर फैलाने के लिए राजेश के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. जाहिरतौर पर यह अफवाह जी न्यूज के कर्मचारियों के कोरोना संक्रमित होने के आधार पर फैलाई गई.

मिजोरम में 15 लोगों को फेक खबरें वायरल करने पर गिरफ्तार किया गया जिस में लिखा था कि राज्य से बाहर के लोग जल्द से जल्द वापस आ जाएं. राजस्थान के एक हैल्थकेयर कर्मचारी को कोविड-19 के झूठे आंकड़े पोस्ट करने पर हिरासत में लिया गया. ओडिशा में एक आदमी को फेसबुक पर अन्य व्यक्ति को कोरोना से संक्रमित होने की झूठी खबर पोस्ट करने पर गिरफ्तार किया गया. इस शख्स का कहना था कि उसे यह खबर व्हाट्सऐप पर मिली थी.

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झूठी खबरें फैलाने पर चिंता

यूनिवर्सिटी औफ मिशिगन के विद्वानों द्वारा भारत में झूठी खबरों के फैलने पर की गई स्टडी जिसे 18 अप्रैल, 2020 को जारी किया गया, के अनुसार भारत में लौकडाउन के दौरान झूठी खबरों के फैलने में भारी वृद्धि देखने को मिली है. स्टडी बताती है कि इस दौरान कोरोना वायरस के उपचार की झूठी खबरों में गिरावट आई है पर ऐसी खबरें जो लोगों को मार्मिक करने व मानसिक स्थिति को प्रभावित करती हैं में इजाफा हुआ है.

इस स्टडी में खबरों को 7 भागों में बांटा गया है जिस में संस्कृति या धर्म को ले कर फैलाई गई झूठी खबरें सब से ऊपर हैं. दूसरे स्थान पर हैं वायरस के इलाज और बचाव से जुड़ी अफवाहें, तीसरे स्थान पर प्रकृति से जुड़ी खबरें, चौथे और 5वें पर आपात व अर्थव्यस्था, छठे पर सरकार से जुड़ी झूठी खबरें व 7वें स्थान पर डाक्टरों से जुड़ी खबरें हैं.

अफवाहों के पीछे साजिश तो नहीं

इन झूठी अफवाहों के फैलाव का कारण देशव्यापी लौकडाउन है जिस के चलते सोशल मीडिया के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी हुई है. जहां फेसबुक का इस्तेमाल लौकडाउन के बाद 50% तक बढ़ा है, वहीं ट्विटर का इस्तेमाल भी कई फीसदी तक बढ़ा है. लौकडाउन के एक बार फिर बढ़ने से इन आंकड़ों में वृद्धि की आशंका है.

न के बराबर सच

झूठी खबरें फेसबुकू, इंस्टाग्राम, ट्विटर और व्हाट्सऐप पर धड़ल्ले से फैलाई जा रही हैं. ये खबरें कोरोना वायरस से जुड़े हरएक मुद्दे से ले कर देश की गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति की सामाजिक, आर्थिक व निजी जीवन को भी अपनी चपेट में लेती हुई गढ़ी जाती हैं.

एक पढ़ेलिखे व्यक्ति के लिए भी इन फेक खबरों से खुद को दूर रखना लगभग मुश्किल हो गया है. यह निर्धारित करना मुश्किल हो गया है कि जो खबरें हमें सोशल मीडिया या न्यूज चैनलों द्वारा परोसी जा रही हैं वह किस हद तक विश्वसनीय हैं और कितनी नहीं.

बीते दिनों बौलीवुड अभिनेत्री और जबतब ट्विटर पर बेबाकी से अपनी राय रखने वालीं शबाना आजमी भी फेक न्यूज की चपेट में आ गईं.

शबाना आजमी ने अपने ट्विटर अकाउंट से एक तसवीर शेयर की जिस में एक गरीब बच्चा एक छोटे बच्चे को अपनी गोद में लिए बैठा था. यह तसवीर बेहद मार्मिक थी और इसे देश के मजदूरों के पलायन से जोड़ कर देखा गया. आजमी ने इसे शेयर करते हुए लिखा,”हार्टब्रेकिंग…”
यह तसवीर केवल आजमी द्वारा ही नहीं बल्कि विभिन्न सोशल प्लैटफौर्म्स पर विभिन्न लोगों द्वारा शेयर की गई थीं. सभी ने इस तसवीर को मजदूरों की दयनीय हालत से जोड़ कर देखा पर जब इस तसवीर की सचाई सामने आई तो भाव पूरी तरह बदल गए.

यह जनवरी 2019 की पाकिस्तान की एक तसवीर थी. संबित पात्रा समते अनेक लोगों ने इसे फेक बताया और आजमी को अर्बन नक्सल जैसे अलंकारों से ट्रोल करना शुरू कर दिया.

झूठी खबरों का बाजार

मजदूरों की बदहाली के बाद सोशल मीडिया पर मार्मिक खबरें दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं.

यकीनन मजदूरों की हालत दयनीय है और दिल को कचोटती हैं, पर इस मजबूरी का फायदा झूठी खबरों का बाजार गरम करने वाले तत्त्व बखूबी उठा रहे हैं.

कुछ दिनों पहले दलित कांग्रेस द्वारा एक तसवीर ट्वीट की गई जिस में एक बूढ़ा व्यक्ति अपनी बूढ़ी मां को कंधे पर उठाए चल रहा है. इस तसवीर से यकीनन आखें भीग उठती हैं लेकिन, यह तसवीर असल में भारतीय मजदूर प्रवासी की न हो कर 2017 में खींची गई बांग्लादेशी रोहिंग्या शरणार्थी की थी. इस तसवीर को पत्रकार और लेखक तवलीन सिंह और सागरिका घोष, अर्थशास्त्री रूपा सुब्रमनियम व जर्नलिस्ट स्वाति चतुर्वेदी ने भी शेयर किया था. इस के अलावा अनेक लोगों ने इसे फेसबुक, ट्विटर आदि पर भी पोस्ट किया.

परोसी जा रहीं हैं झूठी खबरें

भारत ऐसे फेज में पहुंच चुका है जहां खबरें मर्म और व्यक्ति की पहचान पर निर्धारित कर फैलाई जा रही हैं बजाय उन के वास्तविक तथ्य और वैज्ञानिक वैरिफिकेशन के. मार्मिक तसवीरों और लंबेलंबे मैसेजों के वायरल होने पर उन की सचाई जाने बिना उन पर यकीन कर लेना इतना आम हो गया है कि ये खबरें घृणा व दंगे भड़काने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने लगी हैं. भारत में मुसलिम तबके को ले कर नफरत का एक बङा कारण ये झूठी खबरे ही हैं.

भारत पर तंज

मई के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन की वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा लिया जिस में उन्होंने आतंकवाद और झूठी खबरों को ले कर बात की. पीएम मोदी से पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने फेक न्यूज व इसलामोफोबिक कंटैंट पर बात की. राष्ट्रपति अल्वी ने भारत पर तंज कसते हुए कोरोनावायरस के संदर्भ में कहा, “बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को मौखिक दुर्व्यवहार अर्थात गालीगलौज, मौत की धमकी और शारीरिक हमलों का सामना कर पड़ा है. मुसलमानों को महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा जा रहा है. यह ट्रैंड हमारे करीबी पड़ोसी देश से ज्यादा और कहीं विद्यमान नहीं है.”

यकीनन तबलीगी जमात के कोरोना फैलाने के मामले के पश्चात सोशल मीडिया पर हर मुमकिन तरीके से इसलामोफोबिक कंटैंट डाल कर नफरत फैलाने की कोशिशें की गईं. भारतियों का अपने धर्म को ले कर मार्मिक होना उन्हें व्यक्ति को धर्म की कसौटी से ऊपर उठा कर देखने से रोकता है. धर्म से इस भावनात्मक व संवेदनशील जुड़ाव का ही नतीजा है कि एक बीमार व्यक्ति का धर्म निश्चित करता है कि उस से सांत्वना रखनी चाहिए या द्वेष?

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अजैंडा के लिए झूठी खबरें

झूठी खबरें फैलाने के पीछे अन्य जरूरी मसलों को दबाने का अजैंडा छिपा होता है. सरकार की नाकामी को इन झूठी खबरों के नीचे दबा बेरोजगारी, चरमराती अर्थव्यवस्था, गरीबी, अपराध व भ्रष्टाचार से जनता का ध्यान कभी सीएए तो कभी दंगों पर लगा दिया जाता है. कोरोना महामारी के दौरान लोग पैनिक व ऐंजाइटी से गुजर रहे हैं और ऐसे में उन्हें अफवाहों के जाल में आसानी से जकड़ा जा रहा है.

धर्म के नाम पर कमियों को छिपाया जा रहा

भारत सरकार धर्म के नाम पर हमेशा से अपनी कमियों को ढंकती रही है फिर चाहे वह राम मंदिर का मसला हो या दिल्ली दंगों का. हिंदूमुसलिम का टकराव तो हमेशा से मौजूदा सरकार का नंबर-1 अजैंडा रहा है.

कोरोना वायरस के चलते ऐसी कितनी ही फेक वीडियोज वायरल हुईं जिन्होंने सरकार के अचानक से किए गए लौकडाउन की गलती तक को परदानशी कर दिया.

एक मुसलिम आदमी का एक विडियो वायरल हुआ जिस में वह अपनी रेहङी पर लगे फलों को चाट कर रख रहा था. इस विडियो को यह कह कर वायरल किया गया कि तबलीगी जमात से आया यह व्यक्ति फलों पर थूक लगा कोरोना फैलाने की कोशिश कर रहा है. विडियो पर काररवाई करते हुए पुलिस ने शेरू नामक इस व्यक्ति को हिरासत में लिया तो पता चला कि यह विडियो फरवरी माह की है और इस व्यक्ति की दिमागी हालत ठीक नहीं है जिस कारण इस का मजाक उड़ाने के लिए मोहल्ले के लड़कों ने यह विडियो बनाया था. यह विडियो तबलीगी जमात के मामले से पहले की थी.

अमर उजाला द्वारा 5 अप्रैल को यह रिपोर्ट पेश की गई कि तबलीगी जमात के कुछ लोग सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में नौनवेज खाने की मांग कर रहे हैं व खुले में मल त्याग रहे हैं. इस खबर को भी खूब फैलाया गया. आखिर सहारनपुर पुलिस द्वारा एक स्टेटमैंट जारी कर बताया गया कि यह खबर झूठी है अथवा अफवाह है और इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है.

झूठी खबरों के फैलाव से बचें

मुख्यधारा के न्यूज पेपर व चैनल फेक न्यूज को इस तरह परोसते हैं कि जनता इस पर विश्वास करने से खुद को रोक नहीं पाती और इन झूठी खबरों पर आग में घी डालने का काम किसी पद पर विराजमान अधिकारी या जानीमानी हस्तियां करती हैं. जैसे, बिजनैसवुमेन किरण शा मजूमदार ने ट्वीट किया था कि दक्षिणी गोलार्द्ध का देश कोरोना वायरस से मुक्त है, जिसे बाद में झूठी खबर करार दिया गया.

विश्व के लिए खतरा

ऐजेंस फ्रांस प्रैस की एक हालिया टैली के मुताबिक भारत में तकरीबन 100 लोगों को कोरोनावायरस से जुड़ी झूठी खबरों को फैलाने पर हिरासत में लिया गया. मुंबई पुलिस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता के सैक्शन 144 के अंतर्गत एक और्डर लागू किया गया जिस के अनुसार, सोशल मीडिया पर किसी भी ग्रुप में फेक न्यूज का फैलाव होता है या किसी के भी द्वारा किया जाता है तो उस का जिम्मेदार ग्रुप का ऐडमिन होगा और उसी पर काररवाई की जाएगी.

लोगों के लिए यह समझना आवश्यक है कि झूठी खबरें किसी के जीवन को नष्ट कर सकती हैं, यहां तक कि ये विश्व के लिए भी खतरा हैं. इन्हें पोस्ट करने से पहले विश्वसनीय मीडिया हाउस की रिपोर्ट्स देखें व क्रौस चेक करें. सोशल मीडिया पर आने वाली हर खबर सच नहीं होती और कई बार विश्वसनीय स्रोत भी गलती कर बैठते हैं तो किसी एक स्रोत को अपने विचारों का आधार न बनाएं.

ऐसे जांचें झूठी खबरें

तसवीरें कौंटेक्स्ट अथवा प्रसंग के बिना होती हैं इसलिए उन की जांच करना मुश्किल होता है और उन पर विश्वास आसानी से हो जाता है. तसवीरें शेयर करने से पहले उन्हें गूगल इमेज सर्च के माध्यम से जांचें. गूगल पर रेवआई और टिनआई जैसे टूल्स मौजूद हैं जिन से आप किसी तसवीर की मौलिकता का पता लगा सकते हैं. तसवीर को गूगल पर खोलें व रेवआई टूल की मदद से उसे सर्च करें, इस तसवीर का मूल आप को मिल जाएगा.

इस पर भी ध्यान दें कि डाटा दिखाने वाले चार्ट्स का मतलब यह नहीं कि वह सही ही हैं, स्रोत के आधार पर डाटा की जांच करें उस में लिखी बातों के नहीं.

लोगों के लिए यह समझना जरूरी है कि जिन व्यक्तियों को वह अपना आदर्श मानते हैं वह भी गलत हो सकते हैं व उन के विचार रूढ़िवादी और हिंसक हों तो इस का मतलब यह नहीं कि यह सही है. आंखें मूंद कर किसी को फौलो न करें बल्कि दिमाग खोल कर करें. अधेड़ उम्र के व्यक्ति अपने राजनीतिक गुरुओं और युवा अपने सोशल मीडिया इंफ्लुऐंसर्स के नक्शेकदम पर चलने की बजाय अफवाहों को बढ़ावा न दें. किसी की गलत सोच, हिंसक और भड़काऊ पोस्ट को शेयर करना गलत है और निंदनीय है.

सोचसमझ कर शेयर करें

मैसाचुसैट्स इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी के मुताबिक ऐसी तसवीरें व्यक्ति में भावनात्मक प्रतिक्रिया को ट्रिगर करती हैं अधिक शेयर होती हैं. यही कारण है कि लोग जल्दी झूठी खबरों की चपेट में आते हैं जो मार्मिक और प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाली होती हैं. इन से बच कर रहें और सोचसमझ कर ही कुछ शेयर करें व विश्वास कर राय बनाएं.

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