बिहार के प्रवासी मजदूरों की दर्दभरी दास्तान को पूरा देश देख रहा है . भूखेप्यासे मजदूर जान बचाने के लिए किस तरह कंधे पर गठरियां लादे बिहार चल पङे यह कोरोना वायरस से भी अधिक पीङा पहुंचाने वाली बात है .

इस दर्द को वे ही समझ सकते हैं जिन्होंने इसे झेला है . लेकिन इसी बीच बिहार की एक खबर ने जहां बेटियों की हौसलों की नई तसवीर पेश की है, वहीं इस घटना ने बिहार की सियासी माहौल को भी गरमा दिया है . वह भी तब जब राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सभी सियासी दलों के बीच चुनाव जीतने की होङ मची है .

ये भी पढ़ें-#coronaviru: डरना नहीं जीना है हमें

गुरूग्राम से दरभंगा

ताजा मामला बिहार की रहने वाली ज्योति नाम की 15 वर्षीय एक लङकी की है, जिस ने गुरूग्राम से दरभंगा लगभग 1200 किलोमीटर तक की यात्रा साइकिल से पूरी की और न सिर्फ खुद बल्कि अपने पिता को साइकिल पर पीछे बैठा कर घर पहुंच गई . ज्योति ने इस साहसिक यात्रा को सिर्फ 7 दिनों में पूरा कर लिया .

यों जिस देश में धर्म और पाखंड हावी हों, हर चीज और काम को अंधविश्वास से जोङ कर देखा जाता हो, वहां सदियों से महिलाओं को दोयम दरजे का माना जाता रहा है . यह विडंबना ही है कि जिस देश के तथाकथित लोग दुर्गा को देवी मान कर पूजते हैं, उसी देश की करोङों बेटियों को इसलिए शिक्षा से वंचित रखा जाता है ताकि ताउम्र उस पर पाबंदियां लगाई जा सकें, उन्हें मर्दों का गुलाम बना कर रखा जा सके . मगर ज्योति ने अपने जज्बे और साहस से यह बता दिया कि आज की बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं .

हार नहीं मानी

दरअसल, पूरे देश में लागू लौकडाउन के बीच गुरूग्राम में एक कंपनी में काम करने वाले ज्योति के पिता एक हादसे के बाद जख्मी हो गए थे . वे खुद बिहार अपने गांव जाने की स्थिति में नहीं थे . लिहाजा, जब ज्योति ने अपने पिता से कहा कि वह खुद उन्हें साइकिल पर बैठा कर दरभंगा ले जाएगी तो एक पिता के तौर पर उन्होंने यही समझा कि यह बेटी का उन के प्रति प्रेम है . मगर जब ज्योति ने अपने पिता को घर ले जाने की ठान ली तो वे मान गए . फिर दोनों 10 मई को गुरूग्राम से दरभंगा की दूरी नापने के लिए निकल पङे . साइकिल पर पीछे बैठे एक पिता को भी तब पूरा यकीन हो गया था कि बेटी किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानेगी .

ये भी पढ़ें-भूमिगत पानी का मालिक कौन किसान या सरकार?

7 दिनों की वह यात्रा

1200 किलोमीटर की लंबी यात्रा पूरी करने में ज्योति को 7 दिन लगे . आखिरकार ज्योति 16 मई को घर पहुंची लेकिन रास्ते में तमाम कठिनाइयों के बाद ज्योति ने वह कर दिखाया जो लगभग नामुमकिन सा था .

ज्योति दिनभर साइकिल चलाती और रात को वे किसी पैट्रोलपंप पर रूक जाते . अहले सुबह यह यात्रा फिर शुरू हो जाती .

लौकडाउन के बीच गुरूग्राम से दरभंगा अपने पिता को साइकिल पर पीछे बैठा कर ले कर आने वाली ज्योति की चर्चा हुई तो लोगों ने इस हौसले की जम कर तारीफ की .

जब इवांका ने की तारीफ

मगर बात यहीं खत्म नहीं हुई . इस हौसले की तारीफ करने वालों में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका का नाम जुङा तो फिर ज्योति रातोरात स्टार बन गई और देश की बेटियों के लिए एक मिसाल भी .

इवांका ने ट्वीट कर कहा,”15 साल की ज्योति कुमारी ने अपने घायल पिता को साइकिल पर बैठा कर 7 दिनों में 1200 किलोमीटर की दूरी कर के अपने गांव ले गई . सहनशक्ति और प्यार की इस वीरगाथा ने भारतीय लोगों और साइकिल फैडरेशन औफ इंडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है .”

इवांका के ट्वीट के बाद मीडिया से बातचीत में ज्योति ने बताया,”हां, फैडरेशन वालों का फोन आया था उन्होंने मुझे ट्रायल के लिए दिल्ली बुलाया है .

“फिलहाल मैं थकी हुई हूं लेकिन लौकडाउन के बाद दिल्ली जा कर ट्रायल जरूर दूंगी .”

चढ़ा सियासी रंग

लेकिन ज्योति के इस हौसले की जहां पूरी दुनिया में तारीफ होने लगी तो यह सियासी मामला भी बन गया और ज्योति के इस कारनामे को राजनीतिक रंग देने की कोशिशें भी तेज हो गईं .

बिहार में इसी साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और तभी सियासी ड्रामे के केंद्र में दरभंगा की साहसी ज्योति रही जो सुबह में भाजपा की थी दोपहर होतेहोते लोजपा की हो गई और देर शाम राजद ने भी उस पर अपना दावा ठोंक दिया . फिर तो जदयू के लोग भी कहां पीछे रहने वाले थे?

सब से पहले सामने आए मधेपुरा के पूर्व सांसद पप्पू यादव, जिन्होंने अपनी तरफ से ज्योति को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई . उस के बाद तो सभी राजनीतिक दलों में होङ मच गई .

भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने भी ज्योति की मदद की तो वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी ₹1लाख देने की घोषणा की .

इस बीच ज्योति कुमारी का नाम बदल कर ज्योति पासवान हो गया और लोजपा के मुखिया और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने इस कहानी को साझा किया .

बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी पीछे नहीं रहीं और उन्होंने एक वीडियो जारी किया गया जिस में वह और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ज्योति से वीडियो कौंफ्रेंसिंग के माध्यम से बातचीत कर रहे थे और उसे सहायता देने का वादा भी कर रहे थे .

तारीफों का सिलसिला

अब खबर तेजी से वायरल होने लगा कि ज्योति के घर में छत नहीं है और न ही घर में कोई बुनियादी सुविधाएं . घर का एकमात्र कमाने वाला पिता लाचार है, जिसे वह एक लंबा सफर तय कर साइकिल से ले कर वापस दरभंगा लौटी है .

लोगों का जमावड़ा भी उस के घर पर होने लगा और तारीफों का सिलसिला चलता रहा . कोई इसे चमत्कार भी बता रहा था, तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो बेटी को बेटा से बेहतर मान रहे थे .

उधर देशभर में मुश्किल दौर से गुजर रहे प्रवासी बिहारी मजदूरों की ओर आंखें मूंदी बिहार सरकार को अब भी उन मजदूरों का खयाल शायद ही आया होगा जो भूख से तङप रहे हैं . जो मजदूर बिहार लौट चुके उन के लिए भी कोई ठोस पहल राज्य सरकार की ओर से नहीं की गई है .

कहां सोई है सरकार

पर चूंकि दिसंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं तो वहां सियासी दलों को ज्योति एक नया मुद्दा बनता दिख रहा है .

मगर दुख तो इस बात की होनी चाहिए आखिर क्यों एक बेटी को अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर 1200 किलोमीटर ले जाने का जोखिम उठाना पङा?

आखिर क्यों राज्य सरकार अपने बिहारी मजदूरों का खयाल नहीं रख पाई और वे पेट पालने के लिए देशभर में दरदर की ठोकरें खाने को विवश हैं?

आखिर क्यों नहीं राज्य सरकार इन के लिए कोई मुकम्मल व्यवस्था ढूंढ़ पाई? जबकि खुद नीतीश सरकार को भी राज्य में शासन करते लगभग 15 साल हो चुके हैं .

ज्योति की तरह साहस शायद हरकोई नहीं कर सकता मगर इस का श्रेय खुद उस बेटी को जाता है जिस ने यह बता दिया कि समाज में बेटियां बेटों से कमतर नहीं होतीं . मुश्किल हालात में बेटियां न सिर्फ अपने मातापिता का सहारा बन सकती हैं, बल्कि उन में किसी भी विकट परिस्थितियों से जूझने का हौसला भी होता है .

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...