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राजस्थान में सत्ता की रेस

बिल्ली को हमेशा छींका टूटने का इंतजार रहता है. अब छींका टूटने का इंतजार करने की जगह पर छींका तोडने की जोर आजमाइष भी करनी पडती है. राजस्थान में भाजपा भी सत्ता का छींका टूटने का केवल इंतजार ही नहीं कर रही उसके लिये पूरा प्रयास भी कर रही है. कांग्रेस की अदूरदर्षी सोंच की वजह से राजस्थान में सत्ता का छींका टूटकर भाजपा के पक्ष में जाने वाला है. कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा धन और सत्ता के बल का प्रयोग कर सत्ता की मलाई खाना चाहती है. इसमें कोई हर्ज करने वाली बात नहीं है क्योंकि सत्ता पर कब्जे के लिये यह सब कांग्रेस ने भी अपने जमाने में किया है. आज कांग्रेस उस से की तरह हो गई है जो अपने गुफे में पडे पडे ही उम्मीद कर रहा कि षिकार खुद उसके पास चल कर आये. सत्ता की रेस में यह संभव नहीं रह गया है. बिल्ली की तरह छींका टूटने का इंतजार करने की जगह पर छींका तोडने के लिये उछलकूद करनी पडती है.

मध्य प्रदेश की राह पर राजस्थान:

राजस्थान में सत्ता की रेस मे जो हो रहा है यही सब कुछ मार्च माह में मध्य प्रदेश में हो चुका है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनावों में जीत के बाद कांग्रेस ने युवा नेताओं की अनदेखी की. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंघिंया और राजस्थान में सचिन पायलेट दो ऐसे युवा नेता थे जिन्होने कांग्रेस की जीत में सबसे अहम भूमिका अदा की थी. राहुल गांधी के समकक्ष पीढी में यह दो कांग्रेस के ऐसे नेता थे जिनका अपना वोट बैंक था. यह जमीनी स्तर पर चुनाव जीतवाने वाले नेता थे. राजस्थान और मध्यप्रदेश के चुनाव जितवाकर दोनो नेताओं ने अपने कद को साबित भी किया था. इन दोनो नेताओं को कांग्रेस में राहुल गांधी का करीबी नेता भी माना जाता था. चुनाव जीतने के बाद जब राजस्थान और मध्य प्रदेष में सरकार बनाने का मौका आया तो ज्योतिरादित्य और सचिन पायलेट की अनदेखी करके कमलनाथ और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

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ज्योतिरादित्य और सचिन की केवल अनदेखी ही नहीं हुई उनके कद को छोटा करने की साजिष भी शुरू हो गई. ऐसे में सबसे पहले मध्य प्रदेष में ज्योतिरादित्य सिधिया ने बगावत की. जिसकी वजह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ को हार का मुंह देखना पडा. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य की लडाई में सत्ता भाजपा के पास आ गई और शिवराज सिंह चैहान मुख्यमंत्री बन गये. मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में सत्ता की रेस हारने के बाद भी कांग्रेस को का राजस्थान पर ध्यान नहीं गया. मध्यप्रदेश की तरह कांग्रेस राजस्थान में भी अशोक गहलोत और सचिन पायलेट के बीच आपसी खींचतान को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया. जिसकी वजह से राजस्थान में भी सत्ता की रेस षुरू हो गई. एक बार फिर से भाजपा बिल्ली की तरह छींका

ज्योतिरादित्य की राह पर पायलेट:

टूटने का इंतजार कर रही है. मध्य प्रदेश के मुकाबले राजस्थान में कांग्रेस मजबूत है पर किले में पडी दरार सत्ता को कभी भी ढहा सकती है.

राजस्थान में विधानसभा में 200 विधायक है. राजस्थान में बहुमत के लिये 101 विधायकों का समर्थन चाहिये. कांग्रेस 107 विधायको के साथ बहुमत से सरकार चला रही थी. सचिन पायलेट के पक्ष में 30 विधायक बताये जा रहे है. सचिन अपने समर्थक विधायको के साथ नई पार्टी का गठन करने की योजना में है. सचिन के पास अगर 30 विधायक है तो भाजपा के 72 विधायकोेे के साथ मिलकर वह सरकार बना सकते है. इसमें कुछ निर्दलीय विधायकों का साथ भी मिल सकता है. कांग्रेस के लिये यह जरूरी है कि वह मध्य प्रदेष वाली गलती राजस्थान में ना दोहरायें. सचिन पायलेट अब मध्य प्रदेष के नेता ज्योतिरादित्य की बगावती राह पर है.

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अगर कांग्रेस सचिन पायलेट को समझाने में सफल नहीं हुई तो राजस्थान में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. सचिन पायलेट और अषोक गहलोत के बीच तालमेल नहीं है. पूरे मामले में मध्य प्रदेश के नेता ज्योतिरादित्य सिधिंया की भूमिका महत्वपूर्ण है. इसकी वजह यह है कि ज्योतिरादित्य और सचिन पायलेट आपस में मित्र है. उनके बीच बेहतर तालमेल है. सचिन कांग्रेस विवाद में ज्योतिरादित्य ने कहा ‘कांग्रेस में टैलेंट की कद्र नहीं है. सचिन को साइड लाइन होते देखकर दुखी हॅू.’ अब जिम्मेदारी कांग्रेस पर है कि वह सचिन पायलेट को बगावत करने के पहले रोक ले.

हुंडई ग्रैंड आई 10 निओस- इंटीरियर

हुंडई ग्रैंड आई 10 निओस का इंटीरियर बेहद ही शानदार तरीके से डिजाईन किया गया है. यह बाहर से दिखने में जितना खूबसूरत है उससे कहीं ज्यादा अंदर से कम्फर्टेबल है. आइए जानते हैं इसके इंटिरियर के बारे में.

गाड़ी के अंदर का स्पेश बहुत आरामदायक है. हुंडई ग्रैंड आई 10 निओस  का फ्रंट केबिन इस सेगमेंट की कार में सबसे बड़ा बना हुआ है. गाड़ी के अंदर कदम रखते ही आपको आरामदायक महसूस होगा.

फ्रंट मे बना हुआ डैशबोर्ड भी बहुत शानदार तरीके से डिजाईन किया हुआ है. जो सामने बैठे लोगों को कंफर्टेबल फील कराएगा.

नेपोटिज्म के मुद्दे पर करण पटेल ने साधा कंगना पर निशाना, दिया ये बड़ा बयान

बॉलीवुड में नेपोटिज्म इन दिनों खूब चर्चा में हैं. सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या के बाद लोगों के बीच नेपोटिज्म एक बड़ा मुद्दा बनकर ऊभर रहा है. कुछ लोग इस बहस को बेकार बता रहे हैं तो वहीं कुछ लोग इस बहस में जमकर हिस्सा ले रहे हैं.

टीवी एक्टर करण पटेल ने नेपोटिज्म पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि नेपोटिज्म के बारे में खुलकर बोलने वाली एक्टर कंगना रनौत जो हमेशा दूसरों पर निशाना साघती रहती हैं वो अपना प्रोडक्शन हाउस बहन औऱ भाई को क्यों चलाने के लिए दे रही हैं बजाए किसी आउटसाइडर के.

करण पटेल ने कहा है कि जब कोई व्यक्ति ऐसे मर जाता है तो लोग उस समय बिना किसी वजह के कहानियां बनाना शुरू कर देते हैं. जैसे सुशांत सिंह राजपूत के साथ जो भी हुआ उस पर लोग खुलकर नेपोटिज्म को आगे कर दिए हैं.

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All good under the hood …. ?

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करण ने कहा जरा देखिए कौन नहीं बोल रहा है अभिनव कश्यप से लेकर हर बड़ा छोटा एक्टर नेपोटिज्म के बारे में सवाल करता नजर आ रहा है. इसे जान बुझकर बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है.

अगर मैं गलत हूं तो एक्ट्रेस खुद कुछ दिनों पहले अपना प्रोडक्शन हाउस खोला है उन्होंने सुशांत को काम क्यों नहीं दिया. क्यों इन दिनों वह सोनू सूद के बारे में भूल गई है. मैंने कभी उन्हें किसी निर्माता या नर्देशक के लिए बातचीत करते नहीं देखा है.

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मुझे पूरा यकीन है कि वह खुद फिल्म साइन करने से पहले एक बार जरूर सोचती होगी कि उन्हें किस बैनर के साथ काम करना है. उन्हें कौन प्रमोट कर रहा है. उन्हें कितना फायदा होगा.

 

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Just Smile, and feel the world become a better place instantly ….. ?

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आगे उन्होंने कहा मैं ये नहीं कहूंगा कि उन्होंने जो किया है वह गलत है लेकिन इतना जरूर तहना चाहूंगा कि यह नेपोटिज्म सदियों से चला आ रहा है. अगर मेरे पिता कोई विजनेस करेंगे तो वह मुझे संभालने के लिए देंगे.

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हालांकि कंगना का अभी तक इस बात पर कोई रिएक्शन नहीं आया है.

श्वेता तिवारी की दोस्त ने अभिनव कोहली पर लगाया आरोप, पलक से करते थें ऐसे बात

टीवी अदाकारा श्वेता तिवारी और उनके पति अभिनव के बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. आए श्वेता के बारे में नई-नई खबर सोशल मीडिया पर आते रहती हैं. दोनों के बीच चल रहा है विवाद दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है. श्वेता अपने पति अभिनव से दूर रहती हैं. श्वेता ने अभइनव पर घरेलू हिंसा के आरोप भी लगाए थें.

इस बात पर अभिनव ने सफाई देते हुए इंस्टाग्राम पर लंबा पोस्ट शेयर किया था. इसी बात पर श्वेता तिवारी की दोस्त अनुराधा सरीन ने भी अभिनव कोहली पर इल्जाम लगाते हुए इंस्टाग्राम पर पोस्ट जारी किया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि ‘ बताओ तुम वर्जन हो या नहीं’ बताओ कौन सा बाप अपनी बेटी से यह सवाल पूछता है.

आगे कहती हैं ऐसे फीगर बनाओ वरना इंडस्ट्री तुम्हे खड़ा नहीं करेगी. इस पर अभिनव ने अनु को जवाब देते हुए लिखा है कि अनु मैंने स्क्रिनशॉट ले लिया है. देख मैं तुम्हें कैसे फंसाऊंगा मानहानी का केस करुंगा.

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अनुराधा और अभिनव के बाच छीड़ी जंग में अभी तक श्वेता तिवारी का कोई रिएक्शन नहीं आया है. श्वेता तिवारी एक सिंगल मदर है और अपने बच्चों को बखूबी पाल रही हैं. उन्हें पता है कि वह अपने घर की औरत भी हैं और मर्द भी हैं.

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हाल ही में श्वेता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मुझे पता है कि मैं अपने बच्चों की मां भई हूं और बाप भी हूं इसलिए मुझे इन सभी फालतू चीजों के बारे में सोचने का समय नहीं है. मैं नहीं चाहती की मेरे बच्चों के ऊपर इसका कोई भई असर पड़े.

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श्वेता ने अभिनव से दूसरी बार शादी की थी, श्वेता और अभिनव का एक बच्चा भी है. श्वेता इससे पहले राजा चौधरी से शादी के बंधन में बंधी थीं, राजा और श्वेता की एक बेटी है पलक, श्वेता अपने बच्चों की परवरीश बेहद ही शानदार तरीके से कर रही हैं.

Unlock 2.0 की शुरूआत होगी कलर्स के नए शो के साथ

अनलॉक 2.0 की शुरूआत हो चुकी है और उसी के साथ-साथ कलर्स लेकर आ रहा है ना सिर्फ आपके पसंदीदा सीरियल्स के नए एपिसोड्स, बल्कि एक रोमांचक नया शो ‘इश्क़ में मरजावाँ’ आज रात 7 बजे से सिर्फ कलर्स पर.

मुंबई में स्थित ये कहानी है साज़िशों के दलदल में फंसी बेइंतहां चाहत की. जिंदगीभर अपनों के प्यार को तरस्ती रिद्धिमा, पुलिस ऑफिसर, कबीर से बेइंतहां मोहब्बत करती है. लेकिन क्या सच्चे प्यार की भी कोई कीमत हो सकती है, जो चुकाई जा सके? ऐसी कीमत मांगी है रिद्धिमा के प्यार ने. आइए आपको बताते हैं, इस शो के मुख्य किरदारों की एक खास झलक…

क्या होगा रिद्धिमा की जिंदगी में नया मोड़?

कलर्स के इस शो की कहानी में सबसे अहम किरदार रिद्धिमा नाम की लड़की का है, जो पेशे से फिज़ियोथेरेपिस्ट है और स्वभाव से बहुत ही साधारण लड़की है. किसी भी व्यक्ति पर भरोसा कर लेने वाली  रिद्धिमा कि जिंदगी में नया मोड़ आता है जब वह एक पुलिस ऑफिसर, कबीर को अपना दिल दे बैठती है.

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लाड़-प्यार में पला बढ़ा वंश

मुंबई के रईस, रायसिंघानिया परिवार का इकलौता वारिस, वंश रायसिंघानिया एक रहस्यमयी किरदार है. ब्लैक मार्केट की दुनिया का बेताज बादशाह, तेज़-तर्रार और निडर वंश हर बार कबीर की नज़रों के सामने  से निकल जाता है.

क्या है कबीर की जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद?

बिना माता-पिता के पले बड़े, कबीर के जिंदगी में दो चीजें सबसे खास हैं, एक, उसका फर्ज़ और दूसरा, रिद्धिमा का प्यार. फिलहाल, उसके जिंदगी का एक ही मकसद है, वंश रायसिंघानिया को रंगे हाथों पकड़ना. और इसी मकसद को पूरा करने के लिए कबीर अपने प्यार को कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाता है, रिद्धिमा को वंश का होने को कहकर.

 

लेकिन क्या रिद्धिमा अपने प्यार की इतनी बड़ी कीमत चुका पाएगी? क्या वंश, कबीर के इस चाल पर भरोसा कर बैठेगा? जानने के लिए देखिए, ‘इश्क़ में मरजावाँ’ आज रात 7 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

बिलखता मौन-भाग 5 : किरण कमरे में क्यों बंद थी?

‘‘‘किरण, क्यों नहीं तुम अपनी मां को पत्र लिख कर मन की बातें कह देती.’

‘‘‘मैं ने बिक्की को बांहों में भर कर कहा, थैंक्यू, थैंक्यू बिक्की.’

‘‘मेरी प्यारी मां…

‘‘क्यों फिर आज तुम ने वही किया जो 10 वर्ष पहले किया था. तुम्हें याद होगा, 10 वर्ष पहले सब के सामने मेरे हाथ से तुम्हारे दुपट्टे का छोर फिसलताफिसलता छूट गया, तुम बेबसी से देखती रहीं. किंतु आज तो तुम चोरीचोरी अपना छोर छुड़ा कर चली गई हो. अपनी किरण को एक बार गौर से देखा तक नहीं. तुम्हें नहीं पता, तुम्हारी किरण तो अपनी मां और भैया सूरज को हर रोज चोरीचोरी देख लेती थी टौयलट जाने के बहाने  ‘‘मां शायद तुम्हें याद होगा, एक दिन जब आप की और मेरी नजरें स्कूल में टकराई थीं, आप अनजाने से मुझे देखना भूल गई थीं. तब से मैं हर रोज चोरीचोरी सब की नजरों से छिप कर तुम्हारी एक झलक देखने की प्रतीक्षा करती रही. लेकिन मुझे कभी भी आप के पूरे चेहरे की झलक नहीं मिली. बस, यही एहसास ले कर जीती रही कि मेरी भी मां है.

‘‘मां , मेरी प्यारी मां, मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है. मैं तो आप की हिम्मत और साहस की दाद देती हूं. आप ने भ्रूण हत्या के बजाय मुझे इस दुनिया में लाने की हिम्मत दिखाई. हर रोज नानी के कड़वेकड़वे कटाक्ष सुने. मेरा मन जानता है, प्यार तो तुम अपनी किरण को बहुत करती थीं. न जाने तुम्हारी क्याक्या मजबूरियां रही होंगी. मैं पुरानी धुंधली यादों के सहारे आज तक कभी हंस लेती हूं, कभी रो लेती हूं. मैं जानती थी कि कोई भी मां इतनी कठोर नहीं हो सकती और न ही जानबूझ कर ऐसा कर सकती है.

‘‘मां, आज तुम्हें मैं एक राज की बात बताती हूं. तुम्हारी छवि, तुम्हारा स्पर्श, तुम्हारी खुशबू को लेने के लिए मैं रोज सूरज से मिलने जाती रही. उस को छूने तथा सूंघने से मेरे मन में तुम्हारे प्यार की लहर सी उठती. जो मेरे मन में उठे गुबार को शांत कर देती. उसे गोद में बिठा कर मैं मन में छवि बना लेती कि जब वह तुम्हारी गोद में बैठेगा, तब सूरज नहीं, मैं किरण होऊंगी. ‘‘मेरी सुंदर मां, देखो न, हम दोनों एकदूसरे को कितना समझते रहे हैं. आप भी जानती थीं कि मैं आप को देखती रहती हूं और मैं भी जानती थी कि आप को पता है. फिर भी हम ने कभी भी एकदूसरे को शर्मिंदा नहीं होने दिया.

‘‘मां, कई बार सोचा, हिम्मत बटोर कर आप से बात करूं. किंतु मैं नहीं चाहती थी कि मेरे कारण आप का अतीत आप के वर्तमान में उथलपुथल मचा जाए. अतीत को साथसाथ लिए तुम आगे नहीं बढ़ सकती थीं. मन ही तो है, मचल जाता है. ‘‘मैं जानती थी आप के लिए ऐसा करना संभव न था. आप की भी सीमाएं हैं. इसीलिए आज तक मैं ने कोई प्रश्न नहीं किया. शायद नानी सही थीं. अगर नानी आप के बारे में न सोचतीं तो और कौन सोचता?

‘‘मां, मेरी प्यारी मां, मेरी आखिरी शिकायत यह है, आज आप ने सदा के लिए मुझ से अपने होने (मां) का एहसास छीन लिया जिस एहसास से मेरी सब आशाएं जीवित थीं, मेरे जीवन की डोर बंधी थी. तुम थीं तो पिता का एहसास भी जीवित था. अब न तुम, न पिता.

‘‘प्यारी सी तुम्हारी बेटी, किरण.

‘‘मिस हैलन, इंसान में समझौते की प्रवृत्ति कितनी शक्तिशाली होती है? कैसी भी स्थिति क्यों न हो, आदमी उस में जीना सीख ही लेता है.’’

‘‘ठीक कहती हो किरण, जीवन का सतत प्रवाह भी कभी रुक पाया है क्या?’’

‘‘मिस हैलन, अब प्रश्न उठा कि यह पत्र पहुंचाया कैसे जाए.

‘‘मुझे और बिक्की दोनों को पता था कब फ्यूनरल है. कितने बजे पार्थिव शरीर को आखिरी दर्शन के लिए घर लाया जाएगा. हम दोनों सफेद कपड़े पहने भीड़ को चीरते उन के घर पहुंचे. मां के दर्शन करते वक्त मैं ने चोरी से वह पत्र मां को दे दिया. (कफिन बौक्स में रख दिया). अब हमें किसी का डर नहीं था. नानी का भी नहीं. वैसे, नानी मुझे पहचान गई थीं, पर चुप रहीं. हम दोनों चुपके से वहां से निकल आए. आज यही मातम तो मना रही थी, मिस.’’ वह फूटफूट कर रोने लगी.

हैलन ने किरण के कंधों पर हाथ रख कर दिलासा देते उसे गले से लगा कर कहा, ‘‘जाओ, थोड़ा आराम कर लो.’’

इतने में ही ‘चिल्ड्रंस होम’ की प्रधान अध्यापिका किरण के हाथ में एक पैकेट देती बोलीं, ‘‘किरण, आज सुबह ही यह रजिस्टर्ड पत्र तुम्हारे लिए आया है.’’

‘‘मेरे लिए?’’ उस ने पत्र घुमाफिरा कर देखा. कोई अतापता नहीं था. उस के हाथ कंपकंपा रहे थे. शायद वह लिखाई थोड़ी जानीपहचानी लग रही थी.

‘‘किरण, दो इसे मैं पढ़ देती हूं,’’ हैलन ने कहा. उस ने पत्र हैलन की ओर बढ़ाया.

‘‘मेरी प्यारी जिगर की टुकड़ी किन्नी (किरण),

‘‘बेटा, यह संदेश मैं वैसे ही लिख रही हूं जैसे डूबते समय जहाज के साथ समुद्र में समाए जाने से पहले नाविक अंतिम संदेश लिख कर बोतल में रख कर लहरों में छोड़ देता है. इस आशा में मैं ने यह पत्र छोड़ दिया है. तुम्हें मिले या न मिले, यह समय पर निर्भर करता है. अगर यह पत्र तुम्हें मिल गया तो जरूर पढ़ लेना. मुझे शांति मिलेगी.

‘‘मैं जानती हूं, मैं बहुत बड़ी गुनहगार हूं. बहुत बड़ी भूल की है मैं ने. तुम से क्षमा मांगती हूं. ऐसी बात नहीं कि मैं तुम्हें भूल गई थी. भला, कोई मां अपने बच्चों को भूल सकती है क्या? मुझे पूरा विश्वास है, जब तुम बड़ी होगी, शायद मेरी बेबसी को समझ पाओगी. समय जानता है, एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा होगा जब तुम्हारी मां की आंखें नम न हुई हों. मानती हूं, गलतियां बहुत की हैं मैं ने जो क्षमा के योग्य भी नहीं हैं. क्या करूं, कमजोर थी. ‘‘उस दिन मैं ने खुद को बहुत कोसा. रातभर नींद भी नहीं आई जब मैं ने तुम्हें देख कर भी अनदेखा कर दिया और आगे बढ़ गई थी. तुम्हें देखते ही यों लगा, मानो प्रकृति ने मेरी मुराद पूरी कर दी हो. जी तो किया कि तुम्हें गले लगा लूं लेकिन अपराधबोध की दीवार सामने खड़ी थी जिसे मैं मरते दम तक न लांघ सकी. उस दिन के बाद घर से निकलते ही मेरी नजर तुम्हें ढूंढ़ने लगतीं.

‘‘तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी नानी ने मेरे लाल पासपोर्ट का फायदा उठाया. अपने नए पति को तुम्हारे बारे में न बता सकी. एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जब मैं ने अपनी प्यारी पहली बच्ची किरण के बारे में सोचा नहीं. जबजब सूरज को प्यार से गले लगाती तबतब तुम्हारा नाम ले कर सूरज को बारबार पुचकारती रहती. मैं जानती थी कि तुम अकसर सूरज से मिलती हो. जब कभी सूरज बताता कि किरण दीदी ने चौकलेट दी है, उस की बलैया लेते नहीं थकती. बेटा, तुम्हारे लिए मेरी अंतडि़यां रोती थीं. विडंबना यह थी कि किसी से तुम्हारा जिक्र भी नहीं कर सकती थी. तुम्हें तो यह तक न बता सकी कि मेरे पास समय बहुत कम है, कभी भी मेरी मृत्यु हो सकती है. बस, सोच कर तसल्ली कर लेती. तुम्हें अलग करने की यह सजा तो नाममात्र के बराबर है. अब मैं आजाद होने वाली हूं. आज कोई डर नहीं है मुझे, मां का भी नहीं.

‘‘बेटा मरने से पहले यह पत्र तथा एक छोटा सा पैकेट पड़ोसियों को दिया है तुम्हें पोस्ट करने के लिए, जिस में तुम्हारा पहला जोड़ा, हम दोनों की पहली तसवीर, तुम्हारा टैडीबियर, तुम्हारे पापा का नाम और फोटो है. ‘‘जीवन भर तुम्हें कलेजे से लगाने को तरसती रही, लेकिन हिम्मत न जुटा पाई. दोषी हूं तुम्हारी. हाथ जोड़ कर माफी मांगती हूं. मजबूर मां के इस बिलखते मौन को समझ कर उसे क्षमा कर देना.

‘‘तुम्हारी मां.’’

स्टीविया : मिठास के साथ ज्यादा आमदनी

लगातार बढ़ती जनसंख्या की वजह से परिवारों में खेतों का बंटवारा होता जा रहा?है. इसीलिए खेती ज्यादा फायदेमंद नहीं रह गई है, लेकिन किसान कम रकबे में ज्यादा आमदनी हासिल करने के लिए पुरानी खेती की जगह ऐसी फसलों की बोआई कर रहे हैं, जिन में सिंचाई के लिए कम पानी का इस्तेमाल हो और खेती पर कम से कम खर्च हो व इन उत्पादों को बाजार में ज्यादा कीमत मिल सके. इस के लिए किसान फलफूल, सागसब्जी व औषधीय  पौधों की खेती करने लगे हैं. कम लागत में ज्यादा आमदनी देने वाली औषधीय फसलों में स्टीविया की खेती ज्यादा मुफीद साबित हो रही है, क्योंकि इस का इस्तेमाल मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दांत व दूसरे रोगों से पीडि़त रोगियों द्वारा किए जाने की वजह से आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियां महंगे दामों पर इसे खरीद रही हैं.

स्टीविया को मीठी तुलसी भी कहते हैं, क्योंकि इस के पत्तों में चीनी से करीब 30 फीसदी से ज्यादा मिठास होती है. इस का पाउडर बना कर मधुमेह के रोगी चीनी की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. स्टीविया की पैदावार सब से पहले दक्षिणी अमेरिका के पेरोडवे प्रदेश में होती थी. बाद में इस की खेती जापान, ब्राजील, कोरिया, ताईवान, थाईलैंड व भारत में भी होने लगी. भारत में इस की खेती खासतौर से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व झारखंड में होती?है. पुणे की सनफूड नाम की निजी कंपनी स्टीविया की खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण व उधार पैसा भी देती है.

मीठी तुलसी का पौधा करीब 60 से 70 सेंटीमीटर ऊंचा व झाड़ीनुमा होता है. इस के पत्तों में स्टीवियोसाइड जैसे कई यौगिकों का मिश्रण होता?है, जो शरीर में इंसुलिन को नियंत्रित रखने का काम करते हैं. स्टीविया की खेती के लिए जुलाई में गहरी जुताई करनी पड़ती है और जुताई के बाद उस में गोबर की खाद या 1 हेक्टेयर में ढाई से 3 क्विंटल कंपोस्ट खाद डाली जाती है. स्टीविया की एमडीएस 14 व एमडीएस 13 किस्में भारतीय मौसम के लिए सही बताई गई हैं. इस के बीजों को एक छोटी ट्रे में मिट्टी भर कर बोया जाता?है, ताकि अंकुरण के बाद पौधों की देखभाल हो सके. जब पौधे करीब 10 दिनों के हो जाते हैं, तब उन की रोपाई खेतों में की जाती है. पौधे करीब आधा से 1 फुट दूरी पर लगाए जाने चाहिए, जिस से उन की सही बढ़वार हो सके. रोपाई का काम सितंबर से नवंबर के बीच ज्यादा मुफीद माना गया है. स्टीविया फसल के लिए काली जमीन व बालू मिट्टी अधिक मुफीद रहती है.

स्टीविया के पौधों की रोपाई के करीब 1 हफ्ते के बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए. यदि खेत में खरपतवार पैदा हो गए हों, तो उन्हें निकाल कर सिंचाई की जानी चाहिए. पहली सिंचाई के साथ 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 45 किलोग्राम पोटाश जरूर डालें. ज्यादा उपज के लिए फसल पर बोरोन व मैग्नीज जैसे छोटे तत्त्वों का भी छिड़काव किया जा सकता है. वैसे स्टीविया कीटरोधी है, फिर भी कीटों से बचाव के लिए जरूरी देखभाल समयसमय पर की जानी चाहिए. स्टीविया की खेती में 15 दिनों में 1 बार सिंचाई जरूर करनी चाहिए.

जब स्टीविया की फसल 4 हफ्ते की हो जाए, तब पौधों की बढ़वार को कम करने के लिए उस की छंटाई करें और पत्तियों को इकट्ठा कर के सुखा लें. इस की पत्तियां उत्पाद के साथ बाजार में बेची जा सकती हैं. छंटाई के बाद फसल में फूल आने लगेंगे और पत्तियों में मिठास भी बढ़ जाएगी. तब पहली कटाई 3 महीने के बाद कर सकते हैं. वैसे साल में स्टीविया की 3 बार कटाई करनी चाहिए. 1 हेक्टेयर से करीब 70 से 80 किलोग्राम स्टीविया की पत्तियां मिल जाती हैं. 1 पौधे में 3 से 5 सालों तक पत्तियां लगती हैं. स्टीविया की 1 हेक्टेयर फसल से औसतन 8 से 10 लाख रुपए हर साल आमदनी की जा सकती है.

स्टीविया की फसल की कटाई के बाद पत्तियों को छाया में सुखाना चाहिए. पत्तियां सुखाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उन पर चीटिंयों व दूसरे कीटों का प्रकोप न हो, वरना पत्तियों की मिठास व गुणों में गिरावट आ सकती है. वैसे स्टीविया की पत्तियां 40 से 50 डिगरी तापमान में 3 दिनों में सूख जाती हैं. पत्तियां सूखने के बाद उन में से?डंठलों को अलग करें और प्लास्टिक की थैलियों में पैक कर के आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियों को बेच दें.

राजस्थान में स्टीविया की खेती भरतपुर जिला मुख्यालय पर स्थित लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एंड रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रायोगिक तौर पर कराई जा रही है. स्टीविया की खेती का प्रशिक्षण राजस्थान में उद्यान विभाग, कर्ण नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर, सोनामुखी नगर, सालावास रोड जोधपुर और सनफ्रूड कंपनी पुणे से लिया जा सकता है.

केंद्र के निरर्थक कदम

पहले अर्थव्यवस्था से भरपूर खिलवाड़, फिर हिंदूमुस्लिम आग लगा कर समाज को तारतार करना, फिर कोविड-19 का कहर और अब चीन से युद्ध की तैयारी देश पर बहुत भारी पड़ने वाली है. 1962 के बाद जब गरीब भारत को सैनिक तैयारी में बहुत पैसा झोंकना पड़ा था तब भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी और देश पर भारी कर लगाए गए थे. आज वे ही दोहराए जा रहे हैं.

पैट्रोल और डीजल के दामों में लगातार वृद्धि इसी कड़ी का पहला कदम समझें. जो पैट्रोल (42 डौलर प्रति बैरल की दर पर जब कच्चा तेल हो) 26 रुपए प्रति लिटर होता है, अंतिम ग्राहक तक पहुंचतेपहुंचते वह 80 रुपए प्रति लिटर हो जाता है, क्योंकि आजकल सरकार की असली आय यही है. जीएसटी और प्रत्यक्ष
करों से इस साल सरकार को बहुत कम पैसा मिलेगा. उत्पादन ही नहीं हुआ, तो कैसा जीएसटी, कैसा आय कर?

पैट्रोल पर बढ़ता कर इसलिए जरूरी है कि  इसे राज्य सरकारों में बांटना नहीं पड़ता. जीएसटी में वृद्धि की जाए, तो महंगाईर् बढ़ेगी. और फिर जनता हायहाय करेगी. पर राज्य सरकारों को अपना हिस्सा केंद्र सरकार को देना होगा.

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केंद्र सरकार का अपना खर्च अब बढ़ रहा है, घट नहीं रहा. केंद्र सरकार ने निर्माण कार्य बंद कर दिए हैं, सड़कें, रेलें, हवाई जहाज, हवाई अड्डे नहीं बनेंगे. स्वास्थ्य सेवाओं पर भी केंद्र सरकार ने कोरोना के बावजूद खर्चा नहीं बढ़ाया है. उस ने सारा दायित्व राज्य सरकारों पर डाल दिया है.

चीन से युद्ध तो नहीं होगा, पर तैयारी वैसी ही करनी होगी मानो युद्ध हो रहा है. सेना की टुकडि़यां  इधर से उधर जाएंगी. हवाईर् जहाज उड़ेंगे, टैंक डीजल खाएंगे और प्रैक्टिस करेंगे. सड़कें बनेंगी. लगातार प्रशिक्षण
होगा. इन सब पर उतना ही खर्च होता है जो वास्तविक युद्ध पर होता है. टैंक युद्ध में चलें या प्रशिक्षण में, वे खराब होंगे ही, दुर्घटना में अंजरपंजर ढीले होंगे ही. सिवा जान की हानि के युद्ध की तैयारी पर लगभग
उतना ही खर्र्च होगा जितना युद्ध करने में होता है.

यह तैयारी आवश्यक है, इस में संदेह नहीं. पर क्या नोटबंदी आवश्यक थी, क्या जीएसटी आवश्यक था, क्या राममंदिर पर देश में निरर्थक बहस की जरूरत थी, क्या देश को दोफाड़ करने वाली ऊंचोंनिचलों की नीतियों में फेरबदल की जरूरत थी, क्या कनार्टक और मध्य प्रदेश में सरकारों को गिराने की जरूरत
थी?

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सरकार युद्ध की तैयारी करे, समझा जा सकता है. पर इन सब निरर्थक कामों, कहने को चाहे बिना बजट में हों, पर भी खर्च होना ही है, कहीं सरकार का, तो कहीं जनता का. बहरहाल, बात एक ही है. हकीकत यह है कि इस सब से अर्थव्यवस्था कमजोर होती है और कमजोर अर्थव्यवस्था वाला देश आगे नहीं बढ़
सकता.

माओ त्से तुंग ने चीन को सामाजिक संकट में डाले रखा था और नतीजा यह था कि जब तक वह जिंदा था, चीन पिछड़ा देश रहा. इस के बाद चीन ने सामाजिक मुद्दे छोड़ दिए, कम्युनिस्ट विचारधारा को केवल लाल झंडे तक सीमित कर डाला. नतीजा यह हुआ है कि वह आज अमेरिका का मुकाबला करने को तैयार है.

अमेरिका ने सामाजिक विभाजन को और ज्यादा भड़का दिया. नतीजा यह है कि आज पूरा देश उबल रहा है. इस का असर उस की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. चीन समझ रहा है कि अमेरिका अब खोखला देश है और तभी वह अमेरिका के मित्रों से दोदो हाथ करने को तैयार है.

भारत की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के लिए आंतरिक संतोष चाहिए जो धारा 370, नागरिकता संशोधन कानून, आरक्षण समाप्त करने, स्वतंत्र व निर्भीक पत्रकारिता की टांग तोड़ने जैसे कामों से नहीं आ सकता. देश को एकजुट हो कर काम करना होगा. एडोल्फ हिटलर का 1940-45 में युद्ध में हारने के पीछे एक कारण यहूदियों को दोषी मानना ही नहीं था, हर उस नागरिक को देशद्रोही मानना भी था जो नाजी पार्टी को दिल से नहीं चाहता था.

चीन से मुकाबला हमारे लिए चुनौती है क्योंकि चीन की आबादी में 92 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो एक वर्ग से आते हैं. चीन में भी अलगअलग जगह से लोग आए होंगे. पर 2,000 सालों में चीन ने सब को एक भाषा, एक समूह में ढाल लिया. भारत में तो हम दीवारें खड़ी कर रहे हैं जो चीन की दीवार से तो ज्यादा
मजबूत और चौड़ी हैं.

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सो, टैक्स तो हमें तंग करेंगे ही, गिरती अर्थव्यवस्था, सुरक्षा पर होने वाले बड़े खर्चों का असर भी देशवासियों  पर पड़ेगा. चीन के लिए एकजुटता जरूरी

देश का मनोबल बनाए रखना किसी भी युद्ध में पहली जरूरत होती है. सरकार का प्रचारतंत्र जब भी जरूरत होती है, बढ़चढ़ कर बोलना शुरू कर देता है. चाहे समझदार उस बकवास को न मानें, लेकिन बहुत से नासमझ इन बातों को मान कर एक गलत आत्मविश्वास और दंभ पाल लेते हैं कि उन का कुछ न बिगड़ेगा. शत्रु से निबटने के लिए ठोस कदम उठाने पड़ते हैं. पर आमतौर पर सरकारें अपने प्रचार की प्रतिध्वनि को ही सुन कर आश्वस्त हो जाती हैं कि सबकुछ ठीक है.

‘दिल्ली ने चीन को दिया बहुत बड़ा झटका,’ ‘दुश्मन देश ने ऐसा सपने में भी नहीं सोचा होगा,’ ‘लद्दाख में भी टैंक टी-90 की तैनाती से कांपेगा चीन,’ ‘चीन ने टेक दिए घुटने,’ जैसी ब्रेकिंग न्यूज गोदी मीडिया व सरकारी टीवी चैनलों पर दिख रही हैं. ये जनता को गलत संदेश भी दे रही हैं कि सबकुछ
ठीकठाक है.

चीन से लड़ाई तो क्या, लड़ाई सा माहौल भी चुनौतियोंभरा है. उस से निबटने के लिए हर नागरिक को पूरी व सही जानकारी होनी चाहिए. ऐसे समाचार कि, ‘दुश्मन कमजोर है और हम मजबूत,’ आखिरकार भारी पड़ते हैं. आप के आत्मविश्वास से काम नहीं चलेगा. हमारा नेता सब देख लेगा, यह गलतफहमी भी नहीं रहनी चाहिए. चीन से उलझे हैं तो पूरा देश उलझा है और पूरे देश को अपनी विशेषताओं का भी ज्ञान हो, कमजोरियों का भी. 18 जून, 1940 को ब्रिटिश संसद में विंस्टन चर्चिल ने हिटलर के भावी हमले पर कहा था, ‘हम अंत तक लड़ेंगे. हम तटों पर लड़ेंगे. हम गलियों में लड़ेंगे, हम पहाड़ों में लड़ेंगे. पर कभी आत्मसमर्पण नहीं करेंगे.’ उन्होंने यह नहीं कहा कि वे हिटलर को यूरोप में रोक लेंगे. उन्होंने छिपे शब्दों में इंग्लैंड वालों को बता दिया कि हो सकता है कि समुद्र पार कर के हिटलर उन के द्वीप
पर आ जाए.

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जानकारी सही और पूरी देना सब से ज्यादा जरूरी है. चीन से युद्ध ‘शोले’ फिल्म में ठाकुर की तरफ से 2 पतले से हीरो और गब्बर सिंह के मंजे हुए साथियों के बीच का संघर्ष नहीं है. हम फिल्मी माहौल में न रहें. हमें अगर यह भरोसा रहा कि बंदरों और भालुओं से हम लंका जीत लेंगे, तो सब गलत होगा,
यह तो जवाहरलाल नेहरू को दोहराने जैसा होगा.

चीन के मुकाबले के लिए सही व पूरी जानकारी जरूरी है ताकि हम किसी तरह की गलती न करें. पूरा 130 करोड़ का देश एकसाथ, एकदम तैयार हो. सरकार भाजपा-कांग्रेस विभाजन में न लगी रहे, विरोधियों की बातों को अनदेखा न
करती रहे.

मानसून स्पेशल: रोमांटिक मौसम और हाय ये पिम्पल

रिमझिम बरसता सावन, ठंडी ठंडी हवाएं, पिया से मिलने की तमन्ना और सारे फिर सारे रोमांस का मज़ा किरकिरा करता ये गालों का पिम्पल और ऑयली स्किन, जो थोड़ी ही देर में सारे मेकअप का सत्यानाश कर देती है. बरसात के दिनों में उमस ज़्यादा होने से पसीना ज़्यादा आता है, त्वचा हर वक़्त गीली गीली सी महसूस होती है. लगता है जैसे तेल या ऑयली क्रीम लगाईं हो. ये ऑयली स्किन जहाँ चेहरे पर मेकअप को टिकने नहीं देती, वहीँ पिम्पल और दाने भी उत्पन्न करती है. पाउडर और फाउंडेशन पसीने और आयल के साथ मिल कर रोमछिद्र बंद कर देता है जिससे पिम्पल की समस्या बरसात में पैदा हो जाती है. बारिश के मौसम में कुछ लड़कियों की स्किन तो बहुत अधिक खराब हो जाती है. बारिश में वातावरण में मौजूद नमी और उमस के कारण स्किन में पसीने की एक लेयर बन जाती है जिसकी वजह से स्किन बहुत अधिक चिपचिपी हो जाती है और बार बार धोने पर भी फ्रेश फील नहीं होता है.

बारिश के मौसम में पिम्पल की समस्या युवाओं में सबसे ज़्यादा होती है. जिस जगह स्किन ज़्यादा ऑयली रहती है, वहां दाने निकल आते हैं. किसी के नाक के ऊपर पिंपल्स हो जाते हैं तो किसी के पूरे चेहरे पर पिंपल्स हो जाते हैं. बारिश के पानी के कारण कई लड़कियों को इस मौसम में स्किन रैशेज की समस्या भी हो जाती है. ये भी ऑयली स्किन की समस्या के कारण होता है. कभी कभी तो ये पिम्पल गर्दन और छाती पर भी होने लगते हैं. मानसून का हमारे बालों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. बारिश का पानी में मौजूद प्रदूषित कण, पसीना और आयल मिल कर बालों को उलझा देते हैं. उन्हें बेजान और कमजोर बनाते हैं.

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ऐसे में हमें सावन आने से पहले ही अपनी स्किन की देखभाल शुरू कर देनी चाहिए ताकि बरसात में भी त्वचा खिली खिली और खूबसूरत नज़र आये और पिम्पल की समस्या भी ना हो. जिन लोगों की त्वचा पहले ही ड्राई रहती है उनको बारिश बहुत परेशान नहीं करती, मगर ऑयली स्किन वालों को थोड़ा ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत पड़ती है.

ऑयली स्किन वालों को चाहिए कि हमेशा चेहरे को गुनगुने पानी और मेडिकेटेड साबुन से धोएं. दिन में तीन से चार बार चेहरा साफ़ करें. ध्यान रहे चेहरा हलके हाथों से धोएं, ना कि रगड़ें. चेहरे को क्लीन करने के लिए हमेशा ऐसे फेसवॉश या साबुन का प्रयोग करें जिसमें कैमिकल्स का इस्तेमाल कम किया गया हो. ऑयली स्किन पर कभी भी मार्केट में मिलने वाले फेस मास्क का इस्तेमाल न करें. स्किन पर होममेड मास्क का इस्तेमाल करें.

सबसे सरल और इफेक्टिव होममेड मास्क ओटमील से तैयार किया जा सकता है. इसको बनाने के लिए चार छोटे चम्मच ओटमील में गुलाबजल मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएं. आधे घंटे के बाद चेहरे को साफ़ पानी से धो कर इस मास्क को हटा दें. हटाते वक़्त हलके हाथों से गोलाई में मलते हुए मास्क को हटाएँ. सप्ताह में दो बार इस मास्क का इस्तेमाल करने से ऑयली स्किन पर होने वाले पिम्पल्स और अतिरिक्त चिकनाई की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा.

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इसके अलावा बेसन भी ऑयली स्किन के लिए बहुत अच्छा रहता है. इससे बना मास्क भी स्किन की समस्याओं से छुटकारा दिलाता है और बारिश में भी स्किन पर ग्लो पैदा करता है.बेसन एक आम सी घरेलू साम्रगी है जो स्‍किन के लिए बेहद गुणकारी मानी जाती है. इससे तैयार फेस पैक को नियमित चेहरे पर लगाने से आपको 15 मिनट में ही असर दिखाई देगा. इसके लिए 1 चम्मच एलोवेरा जेल, 2 चम्मच बेसन,  ½ टी-स्‍पून नींबू के रस ले कर मिला लें. अब इस पेस्‍ट को अपने चेहरे और गर्दन पर लगाएं और इसे लगभग 15 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर इसे ठंडे पानी से धो लें. आखिर में चेहरे पर थोड़ा सा मॉइस्चराइजर लगाएं, जिससे स्‍किन बहुत ज़्यादा ड्राई ना हो.

 

चेहरे पर बेसन लगाने का फायदा

बेसन का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जा रहा है. यह मुंहासे को दूर कर के चेहरे का रंग निखारता है. इसे चेहरे पर लगाने से स्‍किन पर जमा अतिरिक्त तेल हट जाता है. बेसन त्वचा पर स्क्रब की तरह काम करता है. इससे चेहरे की मृत कोशिकाएं भी हटती हैं. यह उम्र से पहले चेहरे पर झुर्रियां आने से रोकता है.

 

एलोवेरा का फायदा

एलोवेरा जेल स्‍किन पर ठंडक का एहसास दिलाता है. यह स्‍किन पोर्स को साफ करता है. ऐसे में ऑयली स्किन वालों के लिए यह बेहद उपयोगी है. इसके अलावा एलोवेरा एक एंटी-एजिंग एलिमेंट के तौर पर काम करता है. ऐलोवेरा में बीटा कैरोटीन, विटामिन-सी और ई जैसे ऐंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो स्किन जवां रखते हैं.

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नींबू का रस

नींबू में अम्लीय गुण पाए जाते हैं, जो आश्चर्यजनक रूप से स्‍किन पर काम करते हैं. नींबू त्वचा के पीएच स्तर को संतुलित करने के लिए जाना जाता है, जो मुंहासे और तैलीय त्वचा के पीछे मुख्य कारण हो सकता है. नींबू विटामिन-सी से भी भरपूर होता है और ये रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देने में कारगर है.

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