कानपुर का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे जघन्य वारदात को अंजाम देकर उज्जैन के महाकाल मंदिर में शायद इस उम्मीद में पहुंचा था कि भगवान् महाकाल उत्तर प्रदेश पुलिस के काल से उसको बचा लेंगें, मगर उसकी वह इच्छा पूरी नहीं हुई. काल के आगे महाकाल की भी ना चली और अंततः विकास दुबे पुलिस के हाथों मारा ही गया.

विकास दुबे का अपराध क्षमा योग्य हरगिज़ नहीं था. आठ पुलिस कर्मियों की जघन्य ह्त्या और उनके शवों को क्षत-विक्षप्त कर जलाने की साजिश रचना उसके अपराधी मानसिकता के चरम को दर्शाता है. मगर जिस तरीके से एनकाउंटर का ताना बाना बन कर उसका खात्मा किया गया है, उस पर उंगलियां उठनी शुरू हो गयी हैं.

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जिस विकास दुबे के दोनों पैरों में रॉड पड़ी हुई थी, वह कानपुर से भागता हुआ उज्जैन पहुंच गया, महाकाल मंदिर में उसने सुबह खुद गार्ड को अपना परिचय देकर खुद को पुलिस के हाथों में सौंपा, यानी सरेंडर किया, मध्य प्रदेश पुलिस ने उसको अरेस्ट करके उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स के हवाले किया. एसटीएफ के 15 जवानो का जत्था उसको लेकर कानपुर आ रहा था, जहां आज यानी 10 जुलाई को उसको कोर्ट में पेश किया जाना था, मगर शहर में दाखिल होने में अभी 17 किलोमीटर का रास्ता बचा था, कि उसको एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया.

पुलिस ने एनकाउंटर की जो कहानी सुनाई, उसके मुताबिक़ एसटीएफ की तीन गाड़ियां एक के पीछे एक चल रही थीं. तेज़ रफ़्तार और बारिश के कारण जिस गाड़ी में विकास दुबे बैठा था वो गाड़ी सड़क पर उलट गयी. जिसमें से विकास दुबे निकल कर भागा. भागते वक़्त उसने घायल जवान का हथियार छीन लिया. पुलिस ने उसको रोकने की कोशिश की मगर वो खेतों की ओर दौड़ गया. फिर पुलिस ने उसको गोली मार दी.

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