लगातार बढ़ती जनसंख्या की वजह से परिवारों में खेतों का बंटवारा होता जा रहा?है. इसीलिए खेती ज्यादा फायदेमंद नहीं रह गई है, लेकिन किसान कम रकबे में ज्यादा आमदनी हासिल करने के लिए पुरानी खेती की जगह ऐसी फसलों की बोआई कर रहे हैं, जिन में सिंचाई के लिए कम पानी का इस्तेमाल हो और खेती पर कम से कम खर्च हो व इन उत्पादों को बाजार में ज्यादा कीमत मिल सके. इस के लिए किसान फलफूल, सागसब्जी व औषधीय पौधों की खेती करने लगे हैं. कम लागत में ज्यादा आमदनी देने वाली औषधीय फसलों में स्टीविया की खेती ज्यादा मुफीद साबित हो रही है, क्योंकि इस का इस्तेमाल मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दांत व दूसरे रोगों से पीडि़त रोगियों द्वारा किए जाने की वजह से आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियां महंगे दामों पर इसे खरीद रही हैं.
स्टीविया को मीठी तुलसी भी कहते हैं, क्योंकि इस के पत्तों में चीनी से करीब 30 फीसदी से ज्यादा मिठास होती है. इस का पाउडर बना कर मधुमेह के रोगी चीनी की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. स्टीविया की पैदावार सब से पहले दक्षिणी अमेरिका के पेरोडवे प्रदेश में होती थी. बाद में इस की खेती जापान, ब्राजील, कोरिया, ताईवान, थाईलैंड व भारत में भी होने लगी. भारत में इस की खेती खासतौर से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व झारखंड में होती?है. पुणे की सनफूड नाम की निजी कंपनी स्टीविया की खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण व उधार पैसा भी देती है.
मीठी तुलसी का पौधा करीब 60 से 70 सेंटीमीटर ऊंचा व झाड़ीनुमा होता है. इस के पत्तों में स्टीवियोसाइड जैसे कई यौगिकों का मिश्रण होता?है, जो शरीर में इंसुलिन को नियंत्रित रखने का काम करते हैं. स्टीविया की खेती के लिए जुलाई में गहरी जुताई करनी पड़ती है और जुताई के बाद उस में गोबर की खाद या 1 हेक्टेयर में ढाई से 3 क्विंटल कंपोस्ट खाद डाली जाती है. स्टीविया की एमडीएस 14 व एमडीएस 13 किस्में भारतीय मौसम के लिए सही बताई गई हैं. इस के बीजों को एक छोटी ट्रे में मिट्टी भर कर बोया जाता?है, ताकि अंकुरण के बाद पौधों की देखभाल हो सके. जब पौधे करीब 10 दिनों के हो जाते हैं, तब उन की रोपाई खेतों में की जाती है. पौधे करीब आधा से 1 फुट दूरी पर लगाए जाने चाहिए, जिस से उन की सही बढ़वार हो सके. रोपाई का काम सितंबर से नवंबर के बीच ज्यादा मुफीद माना गया है. स्टीविया फसल के लिए काली जमीन व बालू मिट्टी अधिक मुफीद रहती है.
स्टीविया के पौधों की रोपाई के करीब 1 हफ्ते के बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए. यदि खेत में खरपतवार पैदा हो गए हों, तो उन्हें निकाल कर सिंचाई की जानी चाहिए. पहली सिंचाई के साथ 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 45 किलोग्राम पोटाश जरूर डालें. ज्यादा उपज के लिए फसल पर बोरोन व मैग्नीज जैसे छोटे तत्त्वों का भी छिड़काव किया जा सकता है. वैसे स्टीविया कीटरोधी है, फिर भी कीटों से बचाव के लिए जरूरी देखभाल समयसमय पर की जानी चाहिए. स्टीविया की खेती में 15 दिनों में 1 बार सिंचाई जरूर करनी चाहिए.
जब स्टीविया की फसल 4 हफ्ते की हो जाए, तब पौधों की बढ़वार को कम करने के लिए उस की छंटाई करें और पत्तियों को इकट्ठा कर के सुखा लें. इस की पत्तियां उत्पाद के साथ बाजार में बेची जा सकती हैं. छंटाई के बाद फसल में फूल आने लगेंगे और पत्तियों में मिठास भी बढ़ जाएगी. तब पहली कटाई 3 महीने के बाद कर सकते हैं. वैसे साल में स्टीविया की 3 बार कटाई करनी चाहिए. 1 हेक्टेयर से करीब 70 से 80 किलोग्राम स्टीविया की पत्तियां मिल जाती हैं. 1 पौधे में 3 से 5 सालों तक पत्तियां लगती हैं. स्टीविया की 1 हेक्टेयर फसल से औसतन 8 से 10 लाख रुपए हर साल आमदनी की जा सकती है.
स्टीविया की फसल की कटाई के बाद पत्तियों को छाया में सुखाना चाहिए. पत्तियां सुखाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उन पर चीटिंयों व दूसरे कीटों का प्रकोप न हो, वरना पत्तियों की मिठास व गुणों में गिरावट आ सकती है. वैसे स्टीविया की पत्तियां 40 से 50 डिगरी तापमान में 3 दिनों में सूख जाती हैं. पत्तियां सूखने के बाद उन में से?डंठलों को अलग करें और प्लास्टिक की थैलियों में पैक कर के आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियों को बेच दें.
राजस्थान में स्टीविया की खेती भरतपुर जिला मुख्यालय पर स्थित लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एंड रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रायोगिक तौर पर कराई जा रही है. स्टीविया की खेती का प्रशिक्षण राजस्थान में उद्यान विभाग, कर्ण नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर, सोनामुखी नगर, सालावास रोड जोधपुर और सनफ्रूड कंपनी पुणे से लिया जा सकता है.