बिल्ली को हमेशा छींका टूटने का इंतजार रहता है. अब छींका टूटने का इंतजार करने की जगह पर छींका तोडने की जोर आजमाइष भी करनी पडती है. राजस्थान में भाजपा भी सत्ता का छींका टूटने का केवल इंतजार ही नहीं कर रही उसके लिये पूरा प्रयास भी कर रही है. कांग्रेस की अदूरदर्षी सोंच की वजह से राजस्थान में सत्ता का छींका टूटकर भाजपा के पक्ष में जाने वाला है. कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा धन और सत्ता के बल का प्रयोग कर सत्ता की मलाई खाना चाहती है. इसमें कोई हर्ज करने वाली बात नहीं है क्योंकि सत्ता पर कब्जे के लिये यह सब कांग्रेस ने भी अपने जमाने में किया है. आज कांग्रेस उस से की तरह हो गई है जो अपने गुफे में पडे पडे ही उम्मीद कर रहा कि षिकार खुद उसके पास चल कर आये. सत्ता की रेस में यह संभव नहीं रह गया है. बिल्ली की तरह छींका टूटने का इंतजार करने की जगह पर छींका तोडने के लिये उछलकूद करनी पडती है.

मध्य प्रदेश की राह पर राजस्थान:

राजस्थान में सत्ता की रेस मे जो हो रहा है यही सब कुछ मार्च माह में मध्य प्रदेश में हो चुका है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनावों में जीत के बाद कांग्रेस ने युवा नेताओं की अनदेखी की. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंघिंया और राजस्थान में सचिन पायलेट दो ऐसे युवा नेता थे जिन्होने कांग्रेस की जीत में सबसे अहम भूमिका अदा की थी. राहुल गांधी के समकक्ष पीढी में यह दो कांग्रेस के ऐसे नेता थे जिनका अपना वोट बैंक था. यह जमीनी स्तर पर चुनाव जीतवाने वाले नेता थे. राजस्थान और मध्यप्रदेश के चुनाव जितवाकर दोनो नेताओं ने अपने कद को साबित भी किया था. इन दोनो नेताओं को कांग्रेस में राहुल गांधी का करीबी नेता भी माना जाता था. चुनाव जीतने के बाद जब राजस्थान और मध्य प्रदेष में सरकार बनाने का मौका आया तो ज्योतिरादित्य और सचिन पायलेट की अनदेखी करके कमलनाथ और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

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ज्योतिरादित्य और सचिन की केवल अनदेखी ही नहीं हुई उनके कद को छोटा करने की साजिष भी शुरू हो गई. ऐसे में सबसे पहले मध्य प्रदेष में ज्योतिरादित्य सिधिया ने बगावत की. जिसकी वजह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ को हार का मुंह देखना पडा. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य की लडाई में सत्ता भाजपा के पास आ गई और शिवराज सिंह चैहान मुख्यमंत्री बन गये. मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में सत्ता की रेस हारने के बाद भी कांग्रेस को का राजस्थान पर ध्यान नहीं गया. मध्यप्रदेश की तरह कांग्रेस राजस्थान में भी अशोक गहलोत और सचिन पायलेट के बीच आपसी खींचतान को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया. जिसकी वजह से राजस्थान में भी सत्ता की रेस षुरू हो गई. एक बार फिर से भाजपा बिल्ली की तरह छींका

ज्योतिरादित्य की राह पर पायलेट:

टूटने का इंतजार कर रही है. मध्य प्रदेश के मुकाबले राजस्थान में कांग्रेस मजबूत है पर किले में पडी दरार सत्ता को कभी भी ढहा सकती है.

राजस्थान में विधानसभा में 200 विधायक है. राजस्थान में बहुमत के लिये 101 विधायकों का समर्थन चाहिये. कांग्रेस 107 विधायको के साथ बहुमत से सरकार चला रही थी. सचिन पायलेट के पक्ष में 30 विधायक बताये जा रहे है. सचिन अपने समर्थक विधायको के साथ नई पार्टी का गठन करने की योजना में है. सचिन के पास अगर 30 विधायक है तो भाजपा के 72 विधायकोेे के साथ मिलकर वह सरकार बना सकते है. इसमें कुछ निर्दलीय विधायकों का साथ भी मिल सकता है. कांग्रेस के लिये यह जरूरी है कि वह मध्य प्रदेष वाली गलती राजस्थान में ना दोहरायें. सचिन पायलेट अब मध्य प्रदेष के नेता ज्योतिरादित्य की बगावती राह पर है.

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अगर कांग्रेस सचिन पायलेट को समझाने में सफल नहीं हुई तो राजस्थान में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. सचिन पायलेट और अषोक गहलोत के बीच तालमेल नहीं है. पूरे मामले में मध्य प्रदेश के नेता ज्योतिरादित्य सिधिंया की भूमिका महत्वपूर्ण है. इसकी वजह यह है कि ज्योतिरादित्य और सचिन पायलेट आपस में मित्र है. उनके बीच बेहतर तालमेल है. सचिन कांग्रेस विवाद में ज्योतिरादित्य ने कहा ‘कांग्रेस में टैलेंट की कद्र नहीं है. सचिन को साइड लाइन होते देखकर दुखी हॅू.’ अब जिम्मेदारी कांग्रेस पर है कि वह सचिन पायलेट को बगावत करने के पहले रोक ले.

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