आर्थिक विशेषज्ञों ने 20 लाख करोड़ रुपए के सरकारी पैकेज का पहले दिन खुलेदिल से स्वागत किया, पर जैसेजैसे वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के स्टीमुलसों की परतें उधेड़ी गईं, पता चला कि यह आर्थिक सहायता महज 1.25 से 1.77 लाख करोड़ रुपए की ही है. निर्मलाजी ने साफसाफ कह दिया कि वे कल का कुछ नहीं कह सकतीं. इसलिए, आज खजाने के कोने में दबा पैसा खर्चा नहीं कर सकतीं चाहे लौकडाउन से देश की जनता भूखों मरे.

पश्चिमी देशों ने कुल राष्ट्रीय उत्पादन के 10 से 20 प्रतिशत तक के पैकेज दिए क्योंकि उन्हें भरोसा है कि उन के उद्योग व सेवाएं कोविड के नुकसान को कुछ महीनों में पूरा कर लेंगे. भारत ने तो उद्योगों, व्यापारों और सेवाओं की दोनों टांगें पहले ही तोड़ दी हैं नोटबंदी और जीएसटी की लाठियों से. उसे मालूम है कि हमारे ये उद्योग अब भरभरा जाएंगे. भारत सरकार ‘जीवन नश्वर है’ के सिद्धांत में अगाध विश्वास रखती है, उसे पता है कि जो सत्कर्म करेगा वही जीवित रहेगा. जो टीका लगाएगा, कलेवा बांधेगा, राजा के निकट रहेगा उसी को जीने का हक है, चाहे व्यक्ति हो या उद्योगव्यापार.

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सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज की पोल एकदो ने नहीं,

14 अर्थविशेषज्ञ कंपनियों ने खोली है. गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, यह 1.3 प्रतिशत, मोतीलाल ओसवाल के अनुसार 1.3 प्रतिशत, यूबीएस बैंक के अनुसार 1.2 प्रतिशत, बैंक औफ अमेरिका के अनुसार 1.1 प्रतिशत, फिच के अनुसार 1 प्रतिशत, कोटक बैंक के अनुसार 1 प्रतिशत, एडलवाइस के अनुसार 0.84 प्रतिशत, सीएलएसए के अनुसार 0.8 प्रतिशत और बार्कलेज बैंक के अनुसार 0.75 प्रतिशत है.

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