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चिन्मयानंद प्रकरण: खत्म होती न्याय की आस

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती उर्फ कृष्णपाल सिंह ने कंधे पर पड़े रामनामी को उतार कर झाड़ा और मुसकरा कर फिर से अपने गले में लपेट लिया, मानों साफे पर थोड़ी गंद पड़ गई थी, जो झटकते ही साफ हो गई.

होंठों पर विजयी मुसकान लिए और ऐंठ के साथ चलते चिन्मयानंद की भावभंगिमा यह बताने के लिए काफी थी कि हम भले ही आकंठ पाप के समंदर में उतर जाएं, लेकिन हमारा कोई कुछ नहीं बिगाङ सकता.

दरअसल, भारत में धर्म की ढाल, पैसे की ताकत, सत्ता में रसूख और अंधभक्तों का समर्थन घोर से घोर पापियों को भी सजा से बचा लेता है.

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बलात्कार के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद को भी सत्ता और पैसे की ताकत ने आखिरकार बचा ही लिया.

यह कोई पहला मौका नहीं है जब संत के लबादे में छिपे कामुक भेड़िए को सत्ता की मेहरबानियों ने बड़ी ही आसानी से उबार लिया. इस से पहले के मामलों में भी उन का बाल बांका नहीं हुआ है.

संत का चोला ओढ़ कर असंतई करने वाले बाबा के खिलाफ मुकदमों की फाइलें विभागों और अदालतों के खानों में पड़ी धूल फांकती रहीं और स्वामी अपनी यौन पिपासाओं की शांतिक्रिया में रत रहे.

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पीङिता का यूटर्न

भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती पर बीते साल बलात्कार का आरोप लगाने वाली कानून की छात्रा ने कोर्ट में यूटर्न लेते हुए उन पर लगाए बलात्कार के आरोप को वापस ले लिया है.

एमपी एमएलए विशेष कोर्ट में उस ने जज के सामने कहा,”चिन्मयानंद ने उस:के साथ कोई बलात्कार नहीं किया है.”

कितनी अचंभित करने वाली बात है कि कानून की एक छात्रा जिस ने 1 साल पहले मय सुबूतों के स्वामी चिन्मयानंद पर यह आरोप लगाया था कि वह उस का बलात्कार करता है, उस को धमकाता है. इतना ही नहीं उस ने बाकायदा एक वीडियो भी रिलीज किया था जिस में चिन्मयानंद नग्नावस्था में उस के साथ मौजूद है. तब छात्रा ने यह भी कहा था कि चिन्मयानंद सिर्फ उस का ही बलात्कार नहीं करते, बल्कि कालेज की अन्य लड़कियों को भी डराधमका कर उन का शोषण करते हैं. बावजूद तमाम जांचों, सुबूतों और गवाहों के इस लड़की ने जज के सामने अपने आरोपों को वापस ले लिया.

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वायरल हुआ था वीडियो

गौरतलब है कि बीते साल इस मामले को ले कर खूब होहल्ला मचा था. चिन्मयानंद के नंगे जिस्म की मालिश करती पीड़िता का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. दुनियाभर ने देखा कि कैसे नग्नावस्था में बैठे पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और खुद को संत कहलाने वाले चिन्मयानंद उस कानून की छात्रा से अपने गुप्तांगों की मालिश करवा रहे हैं.

कानून की यह छात्रा शाहजहांपुर स्थित स्‍वामी सुखदेवानंद विधि महाविद्यालय से एलएलएम कर रही थी. उल्लेखनीय है कि इस ला कालेज के मालिक स्वामी चिन्मयानंद ही हैं.

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बलात्कार का आरोप लगाने और वीडियो जारी करने के बाद यह छात्रा अचानक गायब भी हो गई थी. तब उस के पिता ने 28 अगस्त, 2019 को शाहजहांपुर स्थित कोतवाली में अपनी पुत्री की गुमशुदगी और बलात्कार का दोषी चिन्मयानंद को ठहराते हुए उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था. वहीं थोड़े दिनों बाद 5 सितंबर, 2019 को पीड़िता ने दिल्ली पहुंच कर नई दिल्ली के थाना लोधी कालोनी में चिन्मयानंद के खिलाफ बलात्कार का केस रजिस्टर करवाया था. इस एफआईआर को उस के पिता की ओर से शाहजहांपुर में दर्ज कराई गई पहली एफआईआर के साथ संबद्ध कर दिया गया था.

जब मामले ने तूल पकङा

इस मामले के तूल पकड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः इस का संज्ञान लिया. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की 2 सदस्यीय विशेष बैंच गठित करवा कर पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने का निर्देश दिया था. कोर्ट के आदेश से मामले की तफ्तीश के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को आईजी स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन करना पड़ा था. सालभर एसआईटी की जांच चली.

20 सितंबर, 2019 को एसआईटी ने उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ मिल कर आश्रम से चिन्मयानंद को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस मामले में 4 नवंबर, 2019 को एसआईटी ने चिन्मयानंद के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की, जिस में उन पर आईपीसी की धारा 376(सी), 354(डी), 342 व 506 लगाई गई थी. 13 पन्ने की चार्जशीट में 33 गवाहों के नाम व 29 दस्तावेजी साक्ष्यों की सूची संलग्न की गई.

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3 फरवरी, 2020 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद केस की सुनवाई शाहजहांपुर जिला अदालत से लखनऊ एमपी एमएलए विशेष कोर्ट में स्थानांतरित हुई.

तब एसआईटी प्रमुख नवीन अरोड़ा ने कहा था,”स्‍वामी ने लगभग वे सारी चीजें स्‍वीकार कर ली हैं जो आरोप पीड़िता ने उन पर लगाए हैं. उन्‍होंने वीडियो में अपनी मौजूदगी स्‍वीकारी है, उन्‍होंने अश्‍लील बातचीत करना स्‍वीकारा है, उन्‍होंने उस से बौडी मसाज कराना भी स्‍वीकारा है, लेकिन रेप की बात नहीं स्वीकारी है.”

संगीन अपराध पर खामोशी

एसआईटी अधिकारियों का कहना है कि चिन्‍मयानंद लड़की से रेप करने के सवाल पर जवाब नहीं देते और खामोश रहते हैं. जब तक वे स्वीकार नहीं करते तब तक एफआईआर दर्ज होने से कोई आरोप साबित नहीं होता. इसलिए चिन्‍मयानंद पर रेप की बजाय आईपीसी की दफा 376सी के तहत केस दर्ज हुआ है. दफा 376सी का मतलब है किसी संस्था के संरक्षक द्वारा किसी लड़की या महिला के साथ दुराचार करना.

उन पर लगीं अन्य धाराएं भी संगीन थीं. मसलन धारा 354-डी का मतलब किसी महिला का पीछा करना, धारा 342 सदोष किसी महिला को रोकना, धारा 506 आपराधिक धमकी देना और इन सभी धाराओं में अपराधी को अधिकतम 7 साल की सजा होती है.

रेप की धाराओं में केस दर्ज नहीं होने पर तब पीड़ित छात्रा ने गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा था,”जब मैं एसआईटी के सामने 161 का बयान देने गई थी, मैं ने उस दिन बता दिया था कि मेरे साथ रेप हुआ है, किस तरीके से हुआ है, सबकुछ बताया था. इस के बावजूद चिन्‍मयानंद पर 376 सी लगाई गई, जिस चीज का डर था वही हुआ.”

यानी तब तक पीड़िता अपने आरोपों पर दृढ़ थी कि चिन्मयानन्द ने उस का रेप किया है. वह चिन्मयानंद को सजा दिलवाना चाहती थी, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि उस ने आरोप वापस ले लिए?

चिन्मयानंद प्रकरण की जांच करने वाली एसआईटी टीम ने इस केस में भाजपा के 2 अन्य नेताओं को भी आरोपी बना कर आरोपपत्र दाखिल किया था, जिस में सहकारी बैंक के अध्यक्ष, डीपीएस राठौर तथा भाजपा नेता अजित सिंह के नाम का जिक्र था. आरोप है कि उन्होंने पीड़िता से राजस्थान के दौसा में, जब पीड़िता बरामद हुई थी, तब उस से वह पैनड्राइव छीन ली थी जिस में लड़की द्वारा स्वामी चिन्मयानंद का मालिश वाला वीडियो था. लेकिन इतना सब होने के बाद नतीजा वही ढाक के तीन पात ही निकला.

जब पीङिता मुकर गई

जब पीड़िता अपने आरोपों से ही मुकर गई और जज के सामने कह गई कि उस के साथ स्वामी चिन्मयानन्द ने कोई बलात्कार नहीं किया है तो एसआईटी की पूरी मेहनत बेकार साबित हो गई. सुबूत, गवाह सब झूठे साबित हो गए और स्वामीजी काजल की कोठरी से कोरे निकल आए.

आखिर क्या वजह है कि पीड़िता कोर्ट में अपने आरोपों से मुकर गई? क्या वह और उस का परिवार आरोपी चिन्मयानन्द के हाथों बिक गया? क्या उस पर और उस के परिवार पर राजनितिक दबाव है? क्या उस को जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं? क्या वह लंबी कानूनी प्रक्रिया से उकता गई ? क्या कानून और अदालत पर उस का विश्वास खत्म हो गया?

सवाल यह भी है कि यदि सत्ता में बैठे ताकतवर अपराधी अपनी दहशत और बाहुबल से पीड़ितों के मुंह ऐसे ही बंद करवाते रहेंगे, उन्हें अपने आरोप वापस लेने के लिए मजबूर करते रहेंगे, तो देश में कानून का राज बचेगा कहां? पुलिस और अदालतें आखिर करेंगी क्या?

सत्ता और पैसे का खेल

इस केस में भी सत्ता और पैसे का बड़ा खेल हुआ है. दरअसल, जिस वक्त पीड़िता ने स्वामी चिन्मयानंद पर बलात्कार का आरोप लगाया था और उस की ताकत और रसूख को देखते हुए शाहजहांपुर से अपनी जान बचा कर भागी थी, उस समय चिन्मयानंद के वकील ओम सिंह की तरफ से छात्रा और उस के कुछ साथियों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज करवाई गई कि वे स्वामी चिन्मयानंद से फोन पर ₹5 करोड़ मांग रहे हैं. यानी आरोप लगाने वाली लड़की और उस के साथी चिन्मयानंद को ब्लैकमेल कर रहे हैं. चूंकि चिन्मयानंद  राजनीति के मंझे हुए खिलाङी हैं तो उन की एफआईआर पर तेजी से काररवाई हुई. पुलिस लड़की और उस के दोस्तों की तलाश में जुट गई.

कुछ ही समय में राजस्थान से लड़की और उस के 3 साथियों संजय सिंह, विक्रम सिंह और सचिन सेंगर को गिरफ्तार कर पुलिस ने जेल भेज दिया. अब यह मामला दोतरफा हो गया. एक ओर बलात्कार के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद जिन को सत्ता, पुलिस, समर्थक, भाजपा सभी का समर्थन था, तो दूसरी ओर जेल में बंद एक अकेली लड़की और बाहर उस का भयभीत परिवार था.

5 महीने जेल में रहने के बाद चिन्मयानंद को तो 3 फरवरी, 2020 को इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिल गई, मगर पीड़िता अभी तक जेल में है.

इस 1 साल के दौरान उस ने और उस के परिवार ने न जाने कितनी धमकियों, दबावों और प्रताड़नाओं का सामना किया होगा, इस का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता है.

यही वजह है कि एक कानून की छात्रा ने कानून के मंदिर में खड़े हो कर कानून को धता बता दिया. उस ने बता दिया कि देश के संविधान में, कानून में उस को रत्तीभर भी विश्वास नहीं है. उस ने बता दिया कि उसे जब लंका में ही रहना है तो रावण से समझौते के अलावा कोई चारा नहीं है. इस के बिना उस का और उस के परिवार का जीवित रहना शायद संभव नहीं है. न्यायालय से उसे कोई न्याय नहीं चाहिए, कोर्ट के बाहर आरोपी से समझौता ज्यादा फायदेमंद है.

सूत्रों की माने तो बेतरह दबाव और कोई ₹2 करोड़ खर्च कर के स्वामी ने लड़की की जबान अपने हक में मोड़ ली और अपने दामन पर लगे बलात्कार के दाग को धो डाला.रामनामी साफा एक बार फिर चमक उठा.

यह पहला मौका नहीं था कि जब स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती पर बलात्कार का आरोप लगा. ऐसा जघन्य अपराध वे पहले भी कर चुके हैं. इस से पहले उन्होंने अपने ही आश्रम की एक साध्वी को अपनी हवस का शिकार बनाया था. स्वामी पर वह केस अभी भी लंबित है.

चिन्मयानंद की ताकत

पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद की संत समाज से ले कर राजनीतिक क्षेत्र तक में मजबूत पकड़ है. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अति निकटतम लोगों में से हैं. 3 बार सांसद और केंद्र में गृह राज्यमंत्री रहने के अलावा वे ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन और राम मंदिर आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं. यही नहीं, अधर्म की राह पर चलने वाले स्वामी कई धार्मिक किताबें भी लिख चुके हैं.

स्वामी चिन्मयानंद 80 के दशक में शाहजहांपुर आए थे और स्वामी धर्मानंद का शिष्य बन कर उन्हीं के मुमुक्षु आश्रम में रहने लगे थे. मुमुक्षु आश्रम की स्थापना धर्मानंद के गुरू स्वामी शुकदेवानंद ने की थी. 80 के दशक में स्वामी धर्मानंद के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने इस आश्रम और उस से जुड़े संस्थानों का प्रबंधन संभाला.

चिन्मयानंद ने शाहजहांपुर में मुमुक्षु शिक्षा संकुल नाम से एक ट्रस्ट बनाया जिस के जरीए कई शिक्षण संस्थाओं का संचालन किया जाता है. इन में पब्लिक स्कूल से लेकर पोस्ट ग्रैजुएट स्तर के कालेज तक शामिल हैं. यही नहीं, मुमुक्षु आश्रम में ही स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट का मुख्यालय है, जिस के माध्यम से परमार्थ निकेतन ऋषिकेश और हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम संचालित किए जाते हैं.

ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के प्रबंधन और संचालन की ज़िम्मेदारी चिदानंद मुनि के हाथों में है जबकि हरिद्वार वाले आश्रम का जिम्मा चिन्मयानंद के पास है.

राजनीतिक रसूख का फायदा

80 के दशक के अंतिम हिस्से में जब देश में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था तब विश्व हिंदू परिषद से जुड़े तमाम साधुसंत पहले इस आंदोलन से जुड़े और फिर भारतीय जनता पार्टी के जरीए राजनीति में आ गए. उन्हीं संतों में से एक थे स्वामी चिन्मयानंद.

मंदिर आंदोलन के समय चिन्मयानंद ने महंत अवैद्यनाथ के साथ मिल कर राम मंदिर मुक्ति यज्ञ समिति बनाई और इसी के जरीए इन लोगों ने मंदिर आंदोलन में अपने पैर जमाए. बाद में रामविलास वेदांती और रामचंद्र परमहंस को भी जोड़ लिया गया. इस के अलावा अपने मुमुक्षु आश्रम के जरीए स्वामी चिन्मयानंद ने बड़ी संख्या में संतों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा.

महंत अवैद्यनाथ के बेहद करीबी होने के कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से चिन्मयानंद के बहुत अच्छे संबंध रहे हैं. वैसे भी दोनों ठाकुर बिरादरी से आते हैं और एकदूसरे का सम्मान करते हैं.

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ मुमुक्षु युवा महोत्सव में हिस्सा लेने के लिए शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम गए, जबकि उस वक्त स्वामी चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम की ही एक साध्वी के यौन शोषण के केस का सामना कर रहे थे. इस महोत्सव के दौरान ही एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिस में शाहजहांपुर के कुछ प्रशासनिक अधिकारी साध्वी के बलात्कारी संत चिन्मयानंद की आरती उतार रहे थे.

केंद्रीय मंत्री रहते हुए स्वामी चिन्मयानंद लालकृष्ण आडवाणी के भी बेहद करीब आ गए थे, लेकिन राजनाथ सिंह के विरोधी के तौर पर उन की पहचान बनी. हालांकि योगी आदित्यनाथ और भाजपा के दूसरे ठाकुर नेताओं से उन के बहुत ही करीबी रिश्ते हैं. महंत अवैद्यनाथ पर जब डाक टिकट जारी हो रहा था, उस कार्यक्रम में स्वामी चिन्मयानंद सब से आगे की पंक्ति में रहने वालों में से थे. पार्टी में उन का सक्रिय प्रभाव तब थोड़ा कम हुआ जब साध्वी से बलात्कार के आरोप ने ज्यादा तूल पकड़ा. हालांकि राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद सरकार ने उन के खिलाफ लगे इस मुकदमे को वापस ले लिया. लेकिन पीड़ित पक्ष ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी है. फिलहाल हाई कोर्ट से स्वामी चिन्मयानंद को इस मामले में स्टे मिला हुआ है.

सलाखों में कैसे कैद होंगे बलात्कारी

अब जबकि कानून की छात्रा ने भी चिन्मयानंद पर लगाए अपने आरोपों से पलटी मार ली है तो स्वामी के हौसले और बुलंद हो गए हैं. हालांकि छात्रा के आरोपों से मुकरने से अभियोजन ने उसे पक्षद्रोही घोषित करते हुए अदालत में उस के खिलाफ  धारा 340 के तहत झूठा बयान देने के आरोप में मुकदमा चलाने की अरजी दाखिल की है. सरकारी वकील अभय त्रिपाठी की ओर से छात्रा के खिलाफ धारा 340 के तहत दी गई अरजी में लिखा है कि 5 सितंबर-2019 को छात्रा ने खुद नई दिल्ली के थाना लोधी कालोनी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. जिसे पीड़िता के पिता द्वारा शाहजहांपुर में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के साथ जोड़ दिया गया था. इस के बाद एसआईटी ने पीड़िता का बयान दर्ज किया था. इस के बाद शाहजहांपुर में मजिस्ट्रेट के सामने उस का कलमबंद बयान दर्ज हुआ था. इन दोनों बयानों में छात्रा ने घटना को सही बताया था. लेकिन बीते 9 अक्तूबर, 2020 को कोर्ट में इस मामले की गवाही में उस ने जानबूझ कर अपना बयान बदल दिया है. लगता है, उस ने अभियुक्त के साथ समझौता कर लिया है. लिहाजा, उस के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत काररवाई की जाए.

लेकिन यह महज सांप निकलने के बाद लाठी पीटने वाली बात है. जब पीड़ित और अपराधी के बीच आउट औफ कोर्ट इतना बड़ा सौदा हो गया, तो बाकी तो छोटेमोटे सौदा हैं, निबटा ही लिए जाएंगे.

खैर, कानूनी काररवाई जो भी हो, अगर कोर्ट के बाहर पैसे ले कर आरोपी और पीड़िता के बीच अनैतिक समझौता हो ही गया है तो अब दोनों पक्ष इत्मीनान में होंगे. मगर 1 साल चले इस मामले की आपाधापी ने पुलिस और कोर्ट का जो बहुमूल्य समय बरबाद किया, कानून का जो मखौल बनाया और जनता के समक्ष जो उदाहरण प्रस्तुत किया, उस ने देश में लोकतंत्र की नींव पर फिर एक बार चोट की है और देश में कानून के राज की क्या स्थिति है, उस का परदाफाश किया है.

जब नहीं रही न्याय की आस

राजनीतिक ताकत रखने वाले किस तरह संगीन जुर्म कर के भी निष्कलंक साबित हो जाते हैं यह केस इस का उदाहरण है. स्वामी चिन्मयानंद अकेले नहीं हैं जो अपने राजनीतिक रसूख के चलते बलात्कार के आरोप से बेदाग निकल गए. इन से पहले अखिलेश सरकार की अगुआई वाली समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 से 2017 तक मंत्री रहे गायत्री प्रजापति पर भी बलात्कार का आरोप लगा था और पैसे और सत्ता की ताकत ने इस केस की पीड़िता को भी अपने बयान बदलने के लिए मजबूर किया था.

चित्रकूट की एक महिला ने गायत्री प्रजापति के खिलाफ दर्ज अपनी एफआईआर में कहा था कि प्रजापति ने नौकरी और एक घर देने के बहाने उसे लखनऊ बुलाया था और वहां अपने साथियों के साथ उस से दुष्कर्म किया था. उस ने कहा कि प्रजापति ने उसशसे ही नहीं, बल्कि उस की नाबालिग बेटी से भी दुष्कर्म किया और उन का वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल करता रहा.

गौरतलब है कि एक राजनितिक व्यक्ति के खिलाफ इस पीड़िता की एफआईआर जब उत्तर प्रदेश पुलिस नहीं लिख रही थी, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने इस का संज्ञान लिया था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पीड़िता की एफआईआर दर्ज हुई थी. बाद में गायत्री प्रजापति को गिरफ्तार भी किया गया था.

लेकिन इस पीड़िता पर भी राजनितिक दबाव, धमकी और लालच का इतना दबाव पड़ा कि उस ने भी कोर्ट में कह दिया कि मंत्रीजी तो मेरे पिता सामान हैं, उन्होंने मेरे साथ कुछ नहीं किया बल्कि कुछ षड्यंत्रकारियों ने हमारे रिश्ते को कलंकित किया है.

महिला यहीं नहीं रुकी. उस ने कहा कि जब उस ने आरोप लगाया था तो पुलिस के पास क्या सुबूत था, जो उन्हें गिरफ्तार कर लिया है. वह निर्दोष हैं. यही नहीं उस महिला ने अपने वकील पर ही इस केस की साजिश रचने का आरोप लगा दिया.

संतों और राजनेताओं से जुड़े हाईप्रोफाइल केसों में सरकार और सत्ता का आरोपी के साथ खड़े होने के कई मामले हाल के सालों में देखे गए हैं. कई जगह पीड़ित को ही बारबार प्रताड़ित होते हुए भी देखा गया है. उन्नाव का चर्चित माखी कांड शायद ही कोई भूल पाए. दोषी कुलदीप सेंगर को जिस तरह बचाने के लिए पूरी मशीनरी एक हो गई, नेता पीड़िता का चरित्रहनन करने लगे, कई बार इसे पीड़िता की साजिश तक करार दिया गया. लेकिन आखिरकार सच सामने तो आया लेकिन पीड़िता ने इस दौरान अपने परिवार के कई सदस्यों को खो दिया, अनेक बार जिल्लतें सहीं, न्याय के लिए दरदर भटकी.

हाथरस मामले में भी बलात्कार के आरोप को जातीय और संप्रदायिक मामले का रंग देने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में निश्चित ही बलात्कार पीड़िताओं को न्याय की आस दूर ही नजर आएगी. शायद यही कारण है कि कानून की पढ़ाई करने वाली पीड़िता का कानून पर विश्वास खंडित हो गया और आरोपी से सौदेबाजी करने में उसे ज्यादा फायदा नजर आया.

भारत के लिए पहला ऑस्कर जीतने वाली महिला भानू अथैया का हुआ निधन, पढ़ें खबर

15 अक्टूबर का दिन फिल्म जगत को एक और सदमा दे गया. इस दिन भारत के लिए पहली ऑस्कर जितने वाली महिला कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानू अथैया  का निधन हो गया . भानू का निधन 91 साल में हुआ है. इस बात की जानकारी उनकी बेटी राधिका गुप्ता ने दी.

राधिका गुप्ता ने बताया कि गुरुवार की सुबह उनका निधन हो गया. 8 पहले उनके ब्रेन में ट्यूमर होने की बात पता चली थी. वह पिछले तीन साल से बिस्तर पर थी उनके शरीर का एक हिस्सा पैरालाइज हो गया था.

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उनके निधन पर बॉलीवुड की तमाम हस्तियों ने श्रद्धांजलि दी है. वहीं कस्टूयम डिजाउनर नीता ने लिखा है कि भानू जी हम आपको मिस करेंगे.  एक रिपोर्ट से बात करते हुए कई लोगों ने भानू को श्रद्धांजलि दी है.

बता दें की भानू कई फिल्मों में कास्टयूम डिजाइनर का काम किया है जैसे निकाह और वक्त. वहीं बोनी कपूर ने भी भानू को याद करते हुए कहा कि हमें उनके साथ काम करने का सौभाग्य मिला है. वह देश की पहली कास्टयूम डिजाइनर थी जो कला के क्षेत्र में बहुत ज्यादा आगे थीं.

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फिल्म डर्टी पिक्चर के ड्रेस को डिजाइन करने वाली  निहारिका भसीन ने भानु के मौत पर दुख जताया है. भानू को फिल्म गांधी के ड्रेस डिजाइन करने पर उन्हें साल 1982 में अवार्ड मिला था.

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भानू का ख्याल इन दिनों उनकी बेटी रख रही थीं. वह काफी लंबे वक्त से बीमार चल रही थीं. उन्होंने अपनी जिंदगी में कई तरह की मुश्किलों का सामना किया लेकिन कभी भी पीछए मुड़कर नहीं देखा यह उनके जीवन की सच्चाई है.

मेरे अनुभव-भाग 1: रेणु को अपने ससुराल वालों से क्या शिकायत थी?

‘‘हैलो रेखा, कैसी हो? मैं रेणू बोल रही हूं.’’

‘‘अरे, रेणू तुम कब आईं? मैं ने तो सुना था कि तुम लंबे समय के लिए भारत गई थीं.’’

दूसरी ओर से रेखा ने फोन का उत्तर देते हुए जब यह कहा तो रेणू सकपका सी गई. फिर अपने को संभाल कर बोली, ‘‘आज ही भारत से लौटी हूं. हां, पहले यह बताओ कि तुम्हें कुछ पता है कि अनुभव कहां हैं?’’

‘‘नहीं. मु झे तो कुछ पता नहीं. क्या भाईसाहब तुम्हें लेने एयरपोर्ट नहीं गए?’’ रेखा ने दूसरा प्रश्न किया तो रेणू चुप हो गई. अब वह उसे कैसे बताए कि अनु को उस ने अपने वापस आने के बारे में बताया ही नहीं. हां, एयरपोर्ट पहुंच कर घर फोन जरूर किया था पर किसी ने उठाया ही नहीं. इसलिए वह एकदम टैक्सी पकड़ कर घर चली आई. घर पर जब अनुभव नहीं मिले तो बहुत निराशा हुई.

‘‘नहीं, उन्हें यह पता नहीं था कि मैं आज वापस आ रही हूं. मैं उन्हें अचानक आ कर आश्चर्य में डाल देना चाहती थी,’’ रेणू ने रेखा से बात आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘सुनो, यहां आ जाओ. खाना खा कर चली जाना,’’ रेखा बोली.

‘‘नहीं, मैं बहुत थकी हुई हूं. कल देखूंगी,’’ रेणू ने उत्तर दिया और फोन रख दिया.

रेखा हमारे पड़ोस में ही रहती है तथा अनुभव और रेखा के पति सुबोध पिछले 5-6 सालों से अच्छे मित्र हैं, पहले दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे.

रात के 11 बज गए पर अनुभव का कोईर् पता नहीं चला. रेणू ने कई जगह फोन भी किया पर किसी को भी अनुभव के बारे में पता नहीं था. गैराज में दोनों कारें खड़ी हैं, तो फिर अनुभव कहां जा सकते हैं? दिमाग के घोड़े दौड़ाते हुए रेणू समझ नहीं पा रही थी.

रेणू को भूख भी लग रही थी. फ्रिज खोला तो देखा उस में कुछ खाने को भी नहीं है. अनुभव तो स्वयं ही बहुत अच्छा खाना बनाते हैं तथा ज्यादातर घर का बना खाना ही पसंद करते हैं. यद्यपि उन्हें अमेरिका आए हुए बहुत दिन हो गए हैं लेकिन अभी भी भारतीय खाना ही पसंद करते हैं. फ्रिज में जब कुछ भी खाने को नहीं मिला तो रेणू ने सैंडविच बनाया तथा उसे खा कर ही संतोष कर लिया.

अनुभव के न होने से रेणू की नजर बारबार घड़ी पर जा रही थी. आधी रात होने को आई पर वह अभी तक नहीं आए. रेणू को चिंता होने लगी. आंखों में नींद नहीं थी. चाय पीने को मन किया तो घर में दूध नहीं था. रेणू सोचने लगी कि अनु होते तो अभी दूध ले कर आते और स्वयं चाय बनाते. उन की गैरमौजूदगी इस समय बहुत अखरी. बाहर काफी ठंड थी. ऊपर से एक कंबल उठा कर लाई तथा ड्राइंगरूम में ही सोफे पर लेट कर टैलीविजन देखने लगी. टैलीविजन देखतेदेखते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला. जब आंखें खुलीं तो सुबह के 8 बज रहे थे और टैलीविजन वैसे ही चल रहा था.

रेणू ने उठ कर सब से पहले टैलीविजन बंद किया. फिर बाथरूम चली गई. वहां से आ कर उस ने अनुभव के औफिस में फोन किया तो उन की सैक्रेटरी ने बताया कि वे तो 4 दिन से कैलिफोर्निया में एक कौन्फ्रैंस में हैं तथा कल रात तक वापस आएंगे. मैं ने जब सैक्रेटरी से उन के होटल के बारे में पूछा तो वह बोली कि जिस दिन अनुभवजी गए थे वह औफिस में नहीं थी, इसलिए उसे पता नहीं है.

यह जान कर कि अनुभव कैलिफोर्निया में है और कल आ रहे हैं, रेणू को बड़ी शांति मिली. वह तैयार हो कर बाहर गई तथा खाने का सामान खरीद लाई. सब से पहले चाय बना कर पी फिर नहा कर अच्छा सा नाश्ता किया. चूंकि अनुभव कल आने वाले हैं, अत: घर में अकेला अच्छा नहीं लगा तो टैलीविजन देखने लगी. मन में एक बार आया कि रेखा को फोन कर के बात ही कर ले. फिर खयाल आया कि वह तो काम पर गई होगी. अनुभव के सभी दोस्तों की पत्नियां काम करती हैं. मैं ही अकेली ऐसी हूं जो काम नहीं करती.

रेणू को याद आया, अनुभव ने एक बार कहा भी था कि तुम घर पर पड़ीपड़ी बोर हो जाती होगी, कहीं कोई काम ही ढूंढ़ लो पर मेरा अहं सामने आ गया और मैं बोली थी, ‘मेरे घर वालों के पास इतना पैसा है कि यदि तुम भारत वापस आ कर उन के पास रहने लगो तो तुम्हें भी सारी जिंदगी काम करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’ तब से अनुभव ने इस बारे में फिर कभी कोई बात नहीं की.

हमारी शादी को 5 साल हुए हैं तथा पिछले 4 सालों से हम यहां वाशिंगटन के पास मैरीलैंड स्टेट में ही रह रहे हैं. मैं ने हमेशा अपने घर वालों के धनवैभव से अनुभव और उन के परिवार वालों का अपमान ही करना चाहा है पर उन्होंने कभी पलट कर कुछ नहीं कहा है. यही सब सोचतेसोचते मु झे अपने विवाहित जीवन के बीते दिनों की याद आने लगी.

हमारे एक दूर के रिश्तेदार ने अनुभव के बारे में पिताजी को बताया था. अनुभव उस समय कैलिफोर्निया से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई समाप्त कर के भारत आए हुए थे. पिताजी तुरंत अनुभव को देखने गए तथा उन से बहुत प्रभावित हुए व उन्हें अगले दिन ही मु झे देखने का निमंत्रण दे आए.

मु झे अभी तक याद है. पिताजी ने मु झ से कहा था, ‘बेटी रेणू, मेरी अनुभवी आंखों ने अनुभव में बहुतकुछ देखा है. हालांकि उस का घर साधारण है, गांव में खेतीबाड़ी होती है. उस के पिता पहले शिक्षक थे, अब रिटायर हो गए हैं, लेकिन तुम्हें वहां थोड़े ही रहना है, तुम तो शादी के बाद अमेरिका ही चली जाओगी.’

मेरे अनुभव-भाग 3 : रेणु को अपने ससुराल वालों से क्या शिकायत थी?

वैसे तो शायद मैं नहीं जाती पर विजय जा रहा है, इसलिए तुरंत हां कर दी.

विजय मेरे भैया का मित्र है. उस के पिताजी सरकारी ठेकेदार हैं. बहुत पैसे वाले हैं. विजय अपने मातापिता का एकलौता बेटा है. उस का हमारे यहां आनाजाना बहुत दिनों से है. वह बहुत ही हंसमुख स्वभाव का है. जब भैया की शादी हुई तो वह उन्हें सिनेमा दिखाने ले गया था. मैं भी साथ में गई थी. वह मेरी ही साथ वाली सीट पर बैठा था. फिल्म के दौरान उस ने कई बार मु झे छूने की कोशिश की और मैं ने उसे मना नहीं किया क्योंकि मु झे अच्छा लग रहा था.

एक दिन कालेज की छुट्टी जल्दी हो गई थी. ड्राइवर मु झे लेने नहीं आ पाया तो मैं घर जाने के लिए रिकशे में बैठ ही रही थी कि विजय आ गया और बोला, ‘रेणू, आज रिकशे में क्यों जा रही हो?’ मैं ने कहा, ‘ड्राइवर को पता ही नहीं कि कालेज की छुट्टी जल्दी हो गई, इसीलिए.’

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‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं’, वह बोला.

पहले तो मैं सकुचाई फिर सोचा कि विजय कोई अजनबी तो है नहीं, अत: उस के साथ स्कूटर पर बैठ गई. इस तरह हम दोनों निकट आते चले गए.

एक दिन हम एक रैस्तरां में बैठे कौफी पी रहे थे कि उस ने अचानक कहा, ‘रेणू, तुम मु झे बहुत अच्छी लगती हो, मु झ से शादी करोगी?’

मैं इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. अत: घबरा गई तो वह मेरी घबराहट देख कर बोला, ‘यदि तुम्हें एतराज न हो तो मैं कमलकांत (मेरे भैया) से बात करूं?’

मैं अभी भी घबराई हुई थी पर बोली, ‘जैसी तुम्हारी इच्छा.’

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भैया ने पिताजी से बातें कीं और पिताजी ने साफ इनकार कर दिया. मैं ने भैया और पिताजी की बातें सुनी थीं. भैया से कह रहे थे, ‘विजय एक रईस बाप का बिगड़ा हुआ बेटा है. उस का चालचलन भी ठीक नहीं है. पिछले 4 वर्षों से बीए में पढ़ रहा है. उन के यहां पैसा गलत तरीके से कमाया जाता है, और यही मेरे मना करने का सब से बड़ा कारण है.’

हम दिल्ली में जब घूमतेघूमते बहुत थक गए तो भाभीजी ने किसी अच्छे से रैस्तरां में जा कर चाय पीने का प्रस्ताव रखा. हम एक रैस्तरां में गए. मु झे विजय का साथ उस दिन बहुत अच्छा लगा. उस के चेहरे पर वही स्वाभाविक मुसकान थी. दूसरी तरफ अनुभव कुछ गंभीर स्वभाव के हैं, ऐसा नहीं कि वह हंसते नहीं, जब कभी अपने दोस्तों के बीच में होते हैं तो बहुत हंसते हैं, पर ज्यादातर वे गंभीर ही रहते हैं.

विजय ने थोड़ा एकांत पा कर मु झ से पूछा, ‘रेणू, कैसी हो? तुम्हारे पति कैसे हैं? कब अमेरिका जा रही हो?’

मैं ने कहा, ‘जैसे ही वीजा बन जाएगा मैं अमेरिका चली जाऊंगी.’

‘तुम अपनी शादी से खुश हो?’ उस ने पूछा.

मु झे उस का यह पूछना अच्छा नहीं लगा. उसे क्या हक है कि वह मु झ से पूछे कि मैं अपनी शादी से खुश हूं कि नहीं, पर प्रत्यक्ष में मैं बोली, ‘हां, बहुत खुश हूं.’

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इतने में भैया आ गए और बात वहीं समाप्त हो गई.

एक महीने बाद मैं अमेरिका चली आई. यहां आ कर मैं ने देखा कि घर का सारा काम खुद ही करना पड़ता है, हालांकि अनुभव ही ज्यादातर घर का काम करते हैं पर फिर भी चूंकि भारत में घर के काम के लिए नौकर रहते थे, अत: अच्छा नहीं लगा.

पिछले 4 सालों में मैं 4 बार भारत जा कर लौट आई हूं. जब भी भारत जाती हूं खूब सामान ले जाती हूं, कितु कभी भी अपनी ससुराल के लिए कुछ नहीं ले गई. केवल 2 बार पिताजी के बहुत कहने पर अपनी ससुराल गई और वह भी केवल चंद घंटों के लिए. एक बार जब गई थी तो मेरी सास ने मंजू की शादी के बारे में बातें करनी शुरू कीं पर मैं ने कुछ ज्यादा रुचि नहीं दिखाई. मु झे लगा कि शायद ये लोग अब हम से आर्थिक मदद चाहेंगे.

मेरा इस बार भारत जाना अचानक ही हुआ. भैया ने 6 माह पहले एक नौकर घर के काम के लिए रखा था. उस ने घर में 2-3 बार चोरी की पर उस के बाप ने आ कर पिताजी से क्षमा मांगी और विश्वास दिलाया कि भविष्य में वह ऐसा नहीं करेगा. तब पिताजी ने उसे क्षमा कर दिया था. भैया ने उसे चेतावनी दी कि यदि उस ने फिर कभी ऐसी हरकत की तो उसे नौकरी से निकाल कर पुलिस के हवाले कर देंगे.

वह लड़का किसी गैंग में था. वह एक बार फिर हमारे घर में चोरी कर के अपने साथियों के पास भाग गया. चोरी के माल के बंटवारे को ले कर उन में आपस में  झगड़ा हुआ और गैंग के सरदार ने उसे गोली मार दी. उस लड़के के पिता ने उस की मौत का इलजाम मेरे भैया के सिर मढ़ दिया और पुलिस केस बन गया. मु झे जब इस की सूचना मिली तो एकदम भागी और भारत आ गई.

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जब मैं यहां पहुंची तो केस अदालत में था. पिताजी ने बहुत ऊंचे वकील किए हुए थे. पर यह साबित करने के लिए कि जिस दिन कत्ल हुआ, उस दिन भैया शहर में नहीं थे, हम ने बहुत सारे गवाह अदालत में पेश किए पर जज पर उन गवाहियों का कोई असर नहीं पड़ा.

एक शाम को मेरे ससुर घर आए. उन्होंने सारी बातें सुनीं. हमारे वकील भी वहीं थे. बातोंबातों में जब वकील ने जज के नाम और उस के बारे में बताया तो मेरे ससुर ने पिताजी से कहा, ‘उस दिन तो मंजू की सगाई थी और कमलजी ही हमारे घर आए थे तथा रात को मैं ने ही उन्हें रोक लिया, इसलिए मैं कल अदालत में यह गवाही देना चाहता हूं.’

हमारे वकील ने कहा, ‘आप की गवाही से उस जज पर कुछ असर नहीं पड़ेगा.’ बाद में यह तय हुआ कि अदालत में विजय यह गवाही देगा कि उस दिन वह और कमल दिल्ली में थे.

अगले दिन जब पिताजी अदालत जाने की तैयारी कर रहे थे तो मेरे ससुर भी उन के साथ जाना चाहते थे. पर मैं ने पिताजी से कहा, ‘इन्हें वहां मत ले जाइए. इन की वेशभूषा ही ऐसी है कि लोग हम पर हंसेंगे.’

पिताजी मेरी बात मानते हुए सुसर से बोले, ‘मास्टरजी, आप आराम कीजिए, क्यों बेकार कोर्टकचहरी के चक्कर में पड़ते हैं.’

‘ठीक है तो मैं फिर अपने घर ही चला जाऊंगा’, मेरे ससुर ने उत्तर दिया.

विजय की गवाही हुई. वकीलों ने उस से बहुत से प्रश्न किए. बाद में जज ने विजय से पूछा, ‘जिस दिन यह कत्ल हुआ उस दिन क्या तुम अपराधी (कमलकांत) के साथ दिल्ली गए हुए थे?’

विजय ने कहा, ‘हां, सर, मैं और कमल बिजनैस के सिलसिले में दिल्ली गए हुए थे, और जिस दिन यह कत्ल हुआ हम दोनों इस शहर में नहीं थे.’

जज ने पूछा, ‘वह कौन सी तारीख थी?’

विजय बोला, ‘मार्च की 28 तारीख थी.’

जज ने जब भरी अदालत को बताया कि 28 मार्च को शहर में मेयर के घर शादी थी, और उस शादी में उन्होंने विजय को वहां देखा था, जो उन के लिए खाना ले कर आया था. अत: विजय की गवाही  झूठी साबित हुईं.

जज साहब अपनी बात कह कर खामोश हुए ही थे कि मेरे ससुर, जो हमारे घर से अपने घर न जा कर सीधे यहीं अदालत में चले आए थे, खड़े हो गए और बोले, ‘साहब, मेरा नाम मास्टर धर्मप्रकाश है और मैं इस के बारे में एक सच्ची गवाही देना चाहता हूं.’

जज ने मेरे ससुर की तरफ घूर कर देखा और कहा, ‘आप का नाम गवाहों की सूची में नहीं है और आप अदालत की कार्यवाही में बाधा डाल रहे हैं.’

मेरे ससुर डरे नहीं और बोले, ‘साहब, यह एक सच्ची गवाही है. मेरा नाम गवाहों की सूची में नहीं भी है, तो भी मेरी इस अदालत से प्रार्थना है कि मेरी गवाही ली जाए.’

सब ने देखा कि जज के चेहरे पर अजीब से भाव आजा रहे थे. उन्होंने कुछ सोच कर सरकारी वकील और हमारे वकील को अपने पास बुलाया और उन से विचारविमर्श किया. उस के बाद जज ने मेरे ससुर को गवाही देने की स्वीकृति दी, अब मेरे ससुर गवाहों के कठघरे में खड़े थे. उन्हें सच बोलने की शपथ दिलाई गई.

जज ने स्वयं उन से प्रश्न पूछने शुरू किए, सरकारी वकील ने कुछ कहना भी चाहा पर जज ने उन्हें रोक दिया.

जज ने पूछा, ‘आप का नाम?’

‘मास्टर धर्मप्रकाश’, मेरे ससुर ने उत्तर दिया.

‘कहां रहते हो?’ जज ने दूसरा प्रश्न किया.

मेरे ससुर जब अपना पता बता रहे थे तो सब ने देखा कि जज ने उन का पता अपनी डायरी में नोट किया.

‘क्या करते हो?’ जज ने फिर पूछा.

‘स्कूल में पढ़ाता था, अब रिटायर हो गया हूं’, मेरे ससुर ने कहा.

‘कहां और क्या पढ़ाते थे?’ जज ने अगला प्रश्न किया.

‘बिजनौर में धर्मसमाज हाईस्कूल में आज से 20 वर्ष पहले गणित पढ़ाता था,’ मेरे ससुर का उत्तर था.

सब ने देखा कि जज ने मेरे ससुर की तरफ बड़े गौर से देखा और प्रश्न किया, ‘मास्टर जी, आप इस केस के बारे में क्या जानते हैं?’

‘जिस दिन यह कत्ल हुआ उस दिन कमलकांतजी इस शहर में थे ही नहीं’, मेरे ससुर ने कहा.

‘तो फिर कहां थे?’ जज ने पूछा.

‘उस रात यह मेरे मेहमान थे, उस दिन मेरी बेटी की मंगनी थी और मैं ने ही इन्हें रात को अपने घर रोक लिया था’, ससुर ने कहा.

‘आप का अपराधी से क्या रिश्ता है?’ जज ने जब यह प्रश्न किया तो मेरे ससुर एकदम बोले, ‘साहब, ये मेरे बेटे के साले लगते हैं,’ मेरे ससुर ने उत्तर दिया.

‘किस के, अनुभव के क्या?’ जज ने जब पूछा तो हम जज के मुंह से अनुभव नाम सुनते ही सकते में आ गए.

जज ने मेरे ससुर से और कुछ नहीं पूछा. दोनों वकीलों को अपने चैंबर में आने का आदेश देते हुए फैसला अगले दिन सुनाने को कह कर जज साहब उठ गए.

जज के चैंबर के पास खड़े हम सुन रहे थे. वे दोनों वकीलों से कह रहे थे, ‘मास्टर धर्मप्रकाशजी ने जो गवाही दी वही सत्य है.’

सरकारी वकील ने कहा, ‘सर, आप कैसे कह सकते हैं कि यही सत्य है?’

जज ने कहना जारी रखा, ‘वकील साहब, मास्टरजी को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. उन्होंने मु झे हाईस्कूल तक पढ़ाया है. वह सत्य की प्रतिमूर्ति हैं. मास्टर धर्मप्रकाशजी  झूठ बोल ही नहीं सकते. आज जज की कुरसी पर मैं उन्हीं की प्रेरणा से बैठा हूं.’

अगले दिन मेरे भाई को बाइज्जत बरी कर दिया गया. दूसरे दिन मैं पिताजी के साथ अपनी ससुराल गई. मैं जब वहां पहुंची तो देखा, जज साहब वहीं थे. मेरे ससुर ने जब उन से परिचय कराया तो वे मु झ से बोले, ‘मैं और अनुभव साथसाथ हाईस्कूल में पढ़ते थे तथा अच्छे मित्र थे. मास्टरजी मु झे घर पर ट्यूशन पढ़ाने भी आते थे. मैं हाईस्कूल में नकल करता पकड़ा गया तो मेरे पिताजी ने, जो उस स्कूल के मैनेजर भी थे, मास्टरजी को इस तरह के प्रलोभन दिए कि वे यह कह दें कि मैं ने नकल नहीं की, पर मास्टरजी नहीं डिगे.

‘मास्टरजी को स्कूल से निकाल दिया गया पर उन्होंने कोई परवा नहीं की. अनुभव तो हाईस्कूल में पास हो गया और फिर शहर ही छोड़ कर चला गया. अगले साल मैं ने बहुत मेहनत की और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ. मैं ने मास्टरजी को बहुत ढूंढ़ा पर कहीं पता नहीं चला. मास्टरजी की प्रेरणा से ही मैं ने सत्य का मार्ग अपनाया.’

‘वापस जब अमेरिका जाओ तो अनुभव से मेरा सप्रेम नमस्ते कहना व मेरे बारे में याद दिलाना. तुम्हारी संतान में भी मास्टरजी व अनुभव जैसे ही संस्कार हों यही मेरी शुभकामना है’, इतना कह कर उन्होंने ससुरजी के चरण छुए और चले गए.

मैं अपराधबोध से अपने ससुरजी के पैरों पर गिर कर रोने लगी तो उन्होंने मु झे स्नेह से उठाया और बोले, ‘बहू, अब तो सब ठीक हो गया, अब क्यों रोती हो?’

मैं अंदर सास के पास चली गई तथा उन के चरणस्पर्श कर के उन के काम में हाथ बंटाने लगी. मंजू उस समय स्कूल गई हुई थी.

‘मांजी, मंजू की शादी की तैयारी करो. मैं उसे रानी की तरह इतनी धूमधाम से दुलहन बनाऊंगी तथा हम उस की शादी करेंगे कि सारा गांव देखता रह जाएगा’, मैं ने अपनी सास से कहा.

‘भाभी, आप शादी में आएंगी न?’ मंजू, जो अभीअभी स्कूल से आई थी तथा दरवाजे पर खड़ी हमारी बातें सुन रही थी, ने कहा.

‘मेरी एक ही तो ननद है, मैं और तुम्हारे भैया दोनों अवश्य आएंगे’, मैं ने कहा तो उस ने मु झे अपनी बांहों में भर लिया.

मैं अभी वहां और रुकना चाहती थी पर एक तो पिताजी को जाना था, दूसरे, मैं भी अब जल्दी अनुभव के पास लौटना चाहती थी, अत: ज्यादा देर रुक न सकी.

‘देखा मेरे अनुभव और उस के परिवार वालों को. बेटे, अच्छे संस्कार ही बड़ी चीज हैं’, पिताजी ने जब रास्ते में मु झ से यह कहा तो आज पहली बार मु झे पिताजी द्वारा अपने ससुर की बड़ाई करना अच्छा लगा और गर्व का अनुभव हुआ.

इस तरह मैं जल्दी ही अमेरिका लौट आई. कल अनुभव और मैं उन्हें मंजू की शादी में जाने को कहेंगे तो वे बहुत प्रसन्न होंगे. पिताजी के कहे वाक्य मु झे याद आ रहे हैं, ‘बेटे, मेरे अनुभव बताते हैं कि अनुभव बहुत अच्छा लड़का है.’

हां, सचमुच, ऐसे ही हैं मेरे अनुभव

 

मेरे अनुभव-भाग 2: रेणु को अपने ससुराल वालों से क्या शिकायत थी?

मुझे भी अनुभव देखने में अच्छे लगे और मैं ने हां कर दी. 15 दिनों में ही हमारी शादी हो गई. पिताजी ने बहुत धूमधाम से शादी की. मैं जब दुलहन बन कर अपनी ससुराल गई तो उन्होंने मेरी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी, किंतु मेरा मुंह हमेशा फूला ही रहा. 2 कमरों का उन का एक छोटा सा घर था. बाहर एक बहुत बड़ा चौक था जिस में उन के गायबैल बंधे रहते थे. न बाथरूम न शौचालय. मैं वहां केवल 2 दिन रही पर वे 2 दिन भी 2 युगों के समान लगे थे. तीसरे दिन जब मेरे भैया लिवाने आए तो मैं तुरंत तैयार हो गई.

घर जा कर मैं ने मां से बहुत शिकायत की कि पिताजी ने इतनी जल्दबाजी में मेरी शादी क्यों की. उन के यहां तो रहने के लिए अच्छा सा घर भी नहीं है, क्या मैं आप लोगों पर इतनी भारी पड़ रही थी?

शाम जब पिताजी घर आए तो उन्होंने फिर मु झे सम झाया, ‘बेटा, तुम्हें वहां गांव में थोड़े ही रहना है. अनुभव तो तुम्हें अपने साथ अमेरिका ही ले जाएगा.’

3 दिन बाद अनुभव हमारे घर आए तो पिताजी ने हमें घूमने के लिए मसूरी भेज दिया. पूरा एक सप्ताह हम वहां रहे, बहुत मजा किया. मसूरी से चलते समय अनुभव ने बताया कि उन्हें 10 दिन बाद वापस अमेरिका लौटना है. और भी बहुतकुछ सम झाते रहे, साथ ही यह भी कहा कि मैं अमेरिका पहुंच कर वीजा के सारे कागजात वगैरा भेजूंगा. तुम्हें जल्दी ही वीजा भी मिल जाना चाहिए. मैं चाहता हूं कि तब तक तुम हमारे घर रहो. मेरी मां अब बूढ़ी हो चली हैं. उन से घर का काम अब होता नहीं है. छोटी बहन मंजू अभी स्कूल में पढ़ती है तथा उसे घर के काम में मां की सहायता करनी होती है, इस से उस की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है.

‘मैं वहां नहीं रह सकती’, मैं ने तपाक से कह दिया था.

अनुभव ने कुछ नहीं कहा, केवल चुप रहे. हम घर वापस आ गए. 3-4 दिन हमारे घर रहने के बाद वह अपने घर चले गए.

जिस दिन अनुभव को अमेरिका जाना था, हम उन्हें एयरपोर्ट पर ही मिलने आए. अनुभव के साथ मेरे ससुर व मंजू भी थी, पिताजी ने मेरे ससुर को पहले हाथ जोड़ कर नमस्कार की फिर गले से लग गए.

‘कैसी हो भाभी?’ मंजू ने मेरे पास आ कर पूछा था.

‘ठीक हूं’, बस, इतना सा उत्तर मैं ने दिया था.

अनुभव ने जाने से पहले वहां खड़े सभी बड़ों के चरण स्पर्र्श किए, फिर मु झ से यह कह कर कि ‘अपना खयाल रखना’ हाथ हिलाते हुए चले गए.

मेरी आंखों में बरबस आंसू आ गए. फ्लाइट जाने के थोड़ी देर बाद हम भी घर जाने को तैयार हो गए.

‘मास्टरजी, आप हमारे साथ घर चलिए, वहां से हमारा ड्राइवर आप को गांव छोड़ आएगा’, पिताजी ने मेरे ससुरजी से कहा.

‘नहीं, समधीजी, हम तो बस से आए थे और बस से ही वापस जाएंगे’, ससुरजी बोले.

तब पिताजी ने बड़े आदर से उनका हाथ पकड़ कर गाड़ी में बैठा लिया और वह मना न कर सके. मंजू भी उन के साथ ही थी. मैं दूसरी गाड़ी में मम्मी व भाभी के साथ बैठ गई. मैं ने मम्मी से रास्ते में कहा भी कि यदि वे लोग बस से जा रहे थे तो फिर मुसीबत पालने की क्या जरूरत थी?

घर पहुंच कर मैं तो अपने कमरे में जा कर लेट गई और अनुभव के बारे में ही सोचती रही कि पता नहीं अमेरिका में उन्होंने कोई लड़की तो नहीं रखी हुई है. सुना है वहां तो सैक्स के बारे में बहुत आजादी है. वैसे अनुभव ऐसे लगते तो नहीं, पर यह क्या किसी के माथे पर लिखा होता है? मन में उथलपुथल होती रही.

मैं ने अच्छा नहीं किया, मु झे उन के साथ गांव ही चले जाना चाहिए था. वहां उन के साथ रहती तो शायद उन के बारे में कुछ और पता चल जाता. मेरे मन में ऐसे विचार आए पर तभी एक विचार और आया, भला कैसे चली जाती? न तो वहां ठीक से बैठने की जगह है, न रात को अलग से सोने का कमरा. इसी उथलपुथल में समय का पता नहीं चला. तभी मम्मी का स्वर सुनाई दिया.

‘रेणू बेटी, तुम्हारे ससुराल वाले जा रहे हैं, बाहर आ जाओ.’

मैं बाहर आई तो मंजू ने चलते हुए पूछा, ‘भाभी कब आओगी?’

मैं ने रूखेपन से उत्तर दिया, ‘कुछ पता नहीं.’ मैं अपने मन में सोचने लगी कि वहां अब मेरा रखा ही क्या है जो मैं वहां जाऊं.

पिताजी ने मु झ से ससुरजी के पैर छूने का इशारा किया था इसलिए मन न चाहते हुए भी मैं ने अपने ससुर के पैर छुए और उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दिया.

मंजू ने दोनों हाथ जोड़ कर मु झे नमस्ते की. मैं ने उस का कोई उत्तर नहीं दिया. पिताजी ने जाने से पहले ससुरजी को भेंट दी तथा मम्मी ने मंजू तथा मेरी सास के लिए कुछ कपड़े आदि दिए. इस के बाद पिताजी उन्हें गाड़ी में बैठाने चले गए.

उन्हें विदा करने के बाद पिताजी मु झ से बोले थे, ‘रेणू, मु झे तुम्हारा अपने ससुराल वालों के प्रति यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा बेटी, मत भूलो कि वह तुम्हारे ससुर हैं.’

मैं ने कोईर् प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की तथा अपने कमरे में जा कर लेट गई.  2-3 दिन बड़ी उदास सी रही. फिर सब सामान्य सा होने लगा.

मु झे अच्छी तरह से याद है, वह शनिवार का दिन था. शाम को आ कर भैया ने मु झ से कहा था, ‘रेणू, कल हम विजय के साथ दिल्ली घूमने जा रहे हैं. तुम चलो हमारे साथ.’

क्या करें कि अपराधी को सख्त से सख्त सजा मिले?

नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2018 में हर दिन 91 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं घटी थीं. इस तरह सालभर में कुल 33,356 महिलाएं इस कुकृत्य का शिकार हुईं. लेकिन इनमें से कितने बलात्कारियों को सजा मिलेगी, यह आंकड़ा तो अभी तक नहीं आया, लेकिन अगर 2016-17 आदि के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो भारत में सिर्फ 27.2 फीसदी बलात्कारियों को ही सजा मिल पाती है. कभी कभी किसी साल यह संख्या कुछ ज्यादा हो जाती है वरना आमतौर पर इसी प्रतिशत के आसपास बनी रहती है. सवाल है आखिर तमाम सख्त कानून होने के बावजूद हिंदुस्तान में सभी या ज्यादा से ज्यादा बलात्कारियों को सजा क्यों नहीं मिलती? नहीं, ये सभी रसूख वाले नहीं होते कि पैसे और हैसियत की बदौलत सजा से बच जाएं. इनके सजा से बच जाने के पीछे एक बड़ी भूमिका हमारी अज्ञानता की होती है. दरअसल बलात्कार के बाद इसे एक सामाजिक त्रासदी के रूप में एहसास करते हुए, बलाकृत महिला और उसके घर वाले इस कदर दहशत, निराशा और हीनभावना के शिकार हो जाते हैं कि वे बलात्कारी को सजा दिलवाने के लिए साक्ष्य जुटाने या उन्हें बरबाद होने से बचाने के प्रति तो सजग होते ही नहीं उल्टे अपनी नासमझी से तमाम सबूतों को ही मिटा देते हैं.

सवाल है अगर बलात्कार हो ही जाए तो हमें क्या कुछ करना चाहिए ताकि बलात्कारी जैसे खूंखार अपराधी को हर हाल में सजा मिले? मशहूर सेक्सोलाॅजिस्ट डाॅ. प्रकाश कोठारी के साथ एक लंबी बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि अगर हम बलात्कार के बाद अपना होश न खोएं और बलात्कारी को सजा दिलवाने के प्रति सजग हो जाएं तो वह किसी भी कीमत में इससे बच नहीं सकता. इसके लिए बलात्कार का शिकार महिला को विशेष रूप से यह सावधानी बरतनी चाहिए कि वह अपना मानसिक संतुलन न खोए. इसमें उसके परिजनों की भी यही सोच होनी चाहिए. बलात्कार महिला ओ सोचना चाहिए कि इसमें उसका क्या दोष नहीं? अतः न शर्माएं, न झिझकें, न डरें, बोल्डनेस दिखायें. बलात्कारी के विरुद्ध हर हाल में कार्यवाही कराने की हिम्मत जुटाएं. बलात्कार की आपदा के समय भी अपने आंख-कान खुले रखें. दिमाग दुरूस्त रखें.

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बलात्कारी के संबंध में कई छोटी छोटी बातें याद रखें मसलन वह किस वाहन से आया था, क्या कपड़े पहने था. शरीर पर किसी खास निशान, स्थायी निशान, उसकी भाषा, बोलचाल के लहजे पर भी ध्यान दें. बलात्कारी की लंबाई, शरीर के आकार-प्रकार, उम्र, बालों, आंखों का रंग, हेयर स्टाइल की ओर भी नजर रखें. यदि बलात्कारी के कपड़ों से कोई खास सेंट या किसी प्रकार की सुगंध अथवा दुर्गंध आ रही हो, तो वह भी याद रखें. बलात्कारी के चंगुल से छूटने के तुरंत बाद यह देखें कि वह किस तरफ गया है. यदि वह कार इत्यादि किसी वाहन से है तो उसका नंबर, उस पर लगे स्टीकर कार का मेक, डिजाइन, नाम इत्यादि याद कर लें. बलात्कार के बाद जितनी जल्दी हो सके पुलिस को फोन करें.

शरीर पर लगे घावों, काटने, नोंचने, खरोंचने के निशानों को साफ करने से पहले पुलिस या संबंधित डाॅक्टर द्वारा मुआयना हो जाने दें.बलात्कार की घटना में मेडिकल रिपोर्ट बड़ी अहम भूमिका निभाती है. 24 घंटे के भीतर यदि चिकित्सकीय परीक्षण नहीं हुआ तो बलात्कार के बहुत से सबूत लगभग नष्ट हो जाते हैं और बलात्कारी के छूटने की राह बन जाती है. मेडिकल से पहले हो सके तो पेशाब न जाएं. नहाएं तो बिल्कुल नहीं, न ही डूश पिचकारी से योनिमार्ग की धुलाई या दवा न लें. कपड़े भी न बदलें न ही ब्रश करें, संभव हो तो कुछ खाएं-पीएं भी नहीं. यह सब तभी संभव है, जब बलात्कार के चार-पांच घंटों के बाद या भीतर ही चिकित्सकीय सुविधा मिल जाए.

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मेडिकल जांच में महिला या जहां वह उपस्थित न हो पुरुष चिकित्सक घावों,चोटों, खरोंचो, निशानों का परीक्षण करता है, उसे नोट करता है. गुप्तांगों का बाहरी तौरपर पूरी तरह परीक्षण करता है. खासतौर पर योनिद्वार के आसपास, चिकित्सक योनि के भीतर काटन डालकर स्वाब टेस्ट के लिए योनि के अंदर एक औजार डालकर थोड़ी खुरचन भी करता है, यह थोड़ा कष्टप्रद हो सकता है पर घबराएं नहीं, न ही झिझकें. डाॅक्टर के सवालों का पूरी ईमानदारी से विस्तृत जवाब दें.

डाॅक्टर इन नमूनों के साथ मुंह की जांच कर सकता है. यदि बलात्कारी ने मुख मैथुन भी किया हो. साथ ही साथ वह खून का नमूना, सिर के बाल तथा गुप्तांगों के बाल का कुछ नमूना ले सकता है. उसे ऐसा करने दें, न करे तो पूछ लें कि क्या इसकी आवश्यकता है, मुखर बनें, दब्बू नहीं. बलात्कार के कुछ हफ्ते बाद एक मेडिकल परीक्षण और करवाएं यौन रोगों के संक्रमण का. बहुधा बलात्कारी इससे पीड़ित हो सकते हैं बलात्कार के तुरंत बाद इसके लक्षण नहीं दिखते न परीक्षण में पकड़े जाते हैं पर बाद के परीक्षण में रोग उभरने से पहले यह पकड़ में आ जाते हैं. आसन्न परेशानी से बचने के लिए इस परीक्षण में कोताही न बरतें. पहली ही माहवारी समय पर न आये तो तुरंत गर्भ परीक्षण करवायें कहीं आप बलात्कारी से गर्भवती तो नहीं होने जा रहीं. समय रहते पता चल जाने से इस समस्या से निजात पाना आसान होता है.

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पुलिस आपसे बलात्कार के दौरान, जो कपड़े आपने पहने थे उन्हें रखवाने की बात कर सकती है. पुलिस को ये कपड़े जरूर दें पर उसके फटने, मसलने, निशान धब्बा कहां हैं याद कर लें. पुलिस के फोटोग्राफर को फोटो खींचने को भी कहें. इन सारी प्रक्रियाओं के दौरान अपने किसी भी शुभचिंतक, मित्र, रिश्तेदार, घर के लोग या समाजसेवी व्यक्ति को साथ रखें तो बेहतर होगा. बलात्कार के बाद अपनी मनःस्थिति को मजबूत करें जिसे विश्वस्त समझें उससे अपना दुख कहकर उसे हल्का करें.

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समझदार खुले दिल दिमाग वालों के पास बैठें. लोगों में इन्वाल्व हों. चुप और अकेले मत बैठें. कटे-कटे न रहें लोगों का सामना हिम्मत और खुलेपन से करें. इस घटना को पूरे जीवन से जोड़कर न देखें. बस इतना समझें कि यह लंबे जीवन में कुछेक घंटों का काला पक्ष था. भूलने की कोशिश करें. गलतियों से सबक लें, आगे के लिए सावधान रहें. यदि आप सामान्य जीवन नहीं बिताएंगी, डरेंगी, खुलेंगी नहीं कार्यवाई नहीं करेंगी तो बलात्कारी की हिम्मत बढ़ेगी. वह आपको या आप जैसी दूसरी को शिकार बना सकता है.
(सेक्सोलाॅजिस्ट डाॅ. प्रकाश कोठारी से हुई बातचीत के आधार पर)

 

फेफड़े खराब कर रहा है कोरोना

कोविड-19 का जड़ से इलाज एक आदर्श वैक्सीन द्वारा ही संभव है. मगर वैक्सीन आने में अभी समय है. जिन वैक्सीन्स पर काम चल रहा है वह बनने के बाद कितनी कारगर होंगी इस बारे में भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है क्योंकि कोरोना को ही अभी पूरी तरह पहचाना नहीं जा सका है. कोरोना लगातार विभिन्न लक्षण प्रकट कर रहा है. यह सिर्फ खांसी, जुकाम, बुखार, सांस की तकलीफ का ही मामला नहीं है, बल्कि ये फेफड़ों में फाइब्रोसिस पैदा करने और शरीर में खून के थक्के जमाने वाली बीमारी भी है. कोरोना कमजोरी और ऑक्सीजन की भारी कमी पैदा कर रहा है जिनके चलते कई अन्य बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं. लिहाज़ा कोरोना वायरस को पूरी तरह पहचानना और समझना डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की पहली चुनौती है.

कोरोना पर अनुसंधान के दौरान पता चल रहा है कि डॉक्टर की सलाह पर कोरोना मरीजों को दवाएं और एंटीबायोटिक्स ना दी जाएं तो आगे चलकर वे पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो सकते हैं क्योंकि कोरोना वायरस फेफड़ों को बड़ी तेजी से डैमेज करता है, जिससे आगे चलकर फाइब्रोसिस का खतरा पैदा हो सकता है.

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हाल ही में मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी को फेफड़ों में समस्या के चलते एम्स में दाखिल किया गया था. कोरोना इंफेक्शन से रिकवरी के बाद पता लगा कि वह फाइब्रोसिस का शिकार हो चुके हैं. पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक गंभीर बीमारी है जिसमें फेफड़े के टिशू (ऊतक) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. दरअसल कोरोना वायरस फेफड़ों के अंदर वायुकोषों को नुकसान पहुंचा रहा है. ये वायुकोषों की दीवार में फाइब्रोसिस पैदा करता है. देखा जा रहा है कि कोरोना संक्रमित 100 मरीज़ों में से 5 से 15 मरीज़ पल्मोनरी फाइब्रोसिस का शिकार हैं.

फाइब्रोसिस फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने का आखिरी स्टेज है. कोरोना वायरस मुख्य रूप से इंसान के फेफड़ों को ही खराब करता है, इसलिए रिकवरी के बाद भी लोगों को डॉक्टर्स की सलाह पर इसकी दवाएं लेना जारी रखना चाहिए.

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वरिष्ठ चेस्ट फिज़िशियन डॉ नरेंद्र रावल कहते हैं, ‘कोविड-19 के इलाज के दौरान डॉक्टर्स को मरीजों के फेफड़ों की रक्षा करनी होती है. कोरोना से रिकवरी के बाद मरीज को रेगुलर गाइडेंस के लिए डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए ताकि फेफड़ों के बचाव और उसके नॉर्मल फंक्शन को समझा जा सके. इसके अलावा डॉक्टर की देख-रेख में एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉयड या संबंधित दवाओं को नियमित रूप से लेना चाहिए.

चेस्ट फिज़िशियन डॉ नरेंद्र रावल की माने तो पल्मोनरी फाइब्रोसिस वाले रोगियों को फाइब्रोसिस की नियमित दवा लेनी चाहिए, नहीं तो कोरोना मिट जाएगा मगर फाइब्रोसिस ज़िन्दगी भर बना रहेगा. उनका कहना है कि फाइब्रोसिस में मरीज़ को खांसी आती है, श्वांस चढ़ता है, कमजोरी लगती है और शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. ऐसे मरीज़ को अपने सीने का सीटी स्कैन करवा कर फेफड़े रोग के सही चिकित्सक से सही दवा लेनी चाहिए.

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अधिक उम्र वाले व्यक्ति, मधुमेह, रक्तचाप, ह्रदय रोगी, मस्तिष्क रोगी या कैंसर ग्रस्त लोगों में दोबारा कोरोना संक्रमण की संभावना बनी रहती है.

इससे पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान यानी एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी कहा था कि ये वायरस किसी मरीज के सिर्फ फेफड़ों पर ही अटैक नहीं करता, बल्कि ये ब्रेन, किडनी और हार्ट को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहा है. उन्होंने कहा था कि ये अब ‘सिस्टमेटिक डिजीज’ बन गया है. मेडिकल साइंस की भाषा उस बीमारी को सिस्टेमेटिक डिजीज कहा जाता है, जो एक साथ शरीर के कई अंगों पर हमला करता हो. कोरोना से ठीक होने के बाद भी कई मरीजों को फेफड़ों में काफी दिक्कतें आती है. हालत ये है कि कई महीनों के बाद भी ऐसे मरीजों को घर पर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है.

डॉक्टर के मुताबिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस पर्मानेंट पल्मोनरी आर्किटेक्चर डिस्टॉर्शन या लंग्स डिसफंक्शन से जुड़ी समस्या है. कोविड-19 के मामले में फेफड़े वायरस से खराब होते हैं, जो बाद में फाइब्रोसिस की वजह बन सकता हैं. हालांकि यह बीमारी कई और भी कारणों से हो सकती है. ये रेस्पिरेटरी इंफेक्शन, क्रॉनिक डिसीज, मेडिकेशंस या कनेक्टिव टिशू डिसॉर्डर की वजह से भी हो सकती है. पल्मोनरी फाइब्रोसिस में फेफड़े के आंतरिक टिशू के मोटा या सख्त होने की वजह से रोगी को सांस लेने में काफी दिक्कत होती है. धीरे-धीरे मरीज के खून में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. यह स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है. अधिकांश मामलों में डॉक्टर इसके कारणों का पता नहीं लगा पाते हैं. इस कंडीशन में इसे इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस कहा जाता है.

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डॉक्टर रावल कहते हैं कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस घातक एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस-2 (SARS-CoV-2) को ज्यादा गंभीर बना सकता है. इम्यून सिस्टम पैथोजन से जुड़े अणुओं का इस्तेमाल कर वायरस की पहचान करता है, जो एंटीजन-प्रेजेंटिंग सेल रिसेप्टर्स के साथ संपर्क कर डाउनस्ट्रीम सिग्नलिंग को ट्रिगर करते हैं ताकि एंटीमाइक्रोबियल और इनफ्लामेटरी फोर्सेस को रिलीज किया जा सके. बता दें कि पूरी दुनिया में अब तक कोरोना के साढ़े तीन करोड़ से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. अकेले अमेरिका में इस वक्त 79 लाख से ज्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है. अमेरिका के बाद भारत में 72 लाख कोरोना संक्रमित पाए गए हैं. इस भयंकर बीमारी से भारत में अब तक कुल 1.09 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

पल्मोनरी माइकोसिस होने की संभावना

कोरोना से जंग जीतने वालों के फेफड़े कमजोर हो जाने के कारण फेफड़े में फफूंद (फंगल डिज़ीज़) यानी पल्मोनरी माइकोसिस होने का डर भी बना रहता है. गौरतलब है कि हमारे फेफड़ों पर 50 तरह की फफूंद अटैक कर सकती है. इसलिए फफूंद की सही जांच और कल्चर के बाद ही डॉक्टर फफूंद की पहचान के बाद सही दवा दे सकते हैं.

प्लेटलेट्स को तोड़ कर अन्य बीमारियां दे रहा है कोरोना

कोरोना का वायरस शरीर में प्लेटलेट्स को तोड़ देता है जिससे शरीर में छोटे छोटे थ्रोम्ब्स उठते हैं. ये थ्रोम्ब्स ह्रदय में हुए तो हृदयघात ला सकते हैं. मस्तिष्क में होने पर ब्रेन स्ट्रोक और किडनी या लिवर फेल्योर कर सकते हैं. यानी कोरोना के साइड इफ़ेक्ट बहुत घातक हैं. ये सिर्फ सर्दी बुखार वाली बीमारी नहीं है, बल्कि अन्य घातक बीमारियों को पैदा करने वाली बीमारी है. इसलिए इसका पूरा इलाज डॉक्टर्स की निगरानी में लम्बे समय तक होना ज़रूरी है. कम लक्षणों वाले मरीज़ों और कोरोना से जंग जीत चुके मरीज़ों को भी लम्बे समय तक निगरानी की आवश्यकता है.

Crime Story : अर्मयादित रिश्ते

सौजन्या- मनोहर कहानियां 

शिवराज कुशवाहा जनपद हरदोई के गांव देहीचोर अंटवा में अपने परिवार के साथ रहते थे .काम था खेतीकिसानी का. परिवार में पत्नी कैलाशा देवी और 3 बेटे थे— अर्जुन, अमर सिंह और कैलाश.

अर्जुन लखनऊ में एक ट्रैक्टर एजेंसी में काम करता था. अमर सिंह नोएडा की किसी फैक्टरी में कार्यरत था और कैलाश गांव में खेती करता था. शिवराज ने तीनों का विवाह कर के जमीन का बंटवारा कर दिया था. तीनों भाई परिवार के साथ अपनेअपने हिस्से में रहते थे. करीब 6 साल पहले अमर सिंह का विवाह विनीता से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. कैलाश की शादी 4 साल पहले कंचनलता से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे.

घर से दूर नोएडा में रहने की वजह से अमर सिंह की पत्नी विनीता का गांव में मन नहीं लगता था. पति 2-3 महीने में घर का चक्कर लगाता था, फलस्वरूप विनीता पति से मिलने वाले सुख के लिए बेचैन रहती थी. काफी समय तक पति सुख से वंचित रहने के कारण उस का तन विद्रोह करने लगा था.

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विनीता का देवर कैलाश घर पर ही रहता था. जब वह उस से हंसीमजाक करता तो कभीकभी अपनी सीमाएं लांघ जाता था. विनीता समझ गई कि कैलाश भले ही शादीशुदा है, लेकिन उसे शायद घर की दाल में मजा नहीं आ रहा, इसलिए वह बाहर की बिरयानी खाने की जुगत में है. इसी वजह से वह उस पर डोरे डालने की कोशिश कर रहा है.

कैलाश भी जानता था कि उस का बड़ा भाई अमर सिंह बाहर रहता है, इसलिए उस की भाभी प्यासी मछली की तरह तड़पती होंगी. वह अपनी भाभी को अपने आगोश में लेने के लिए सारे जतन कर रहा था.

विनीता भी उस की मंशा भांप कर खुश थी. क्योंकि उस प्यासी के लिए तो कुआं घर में ही मौजूद था, बाहर तलाशने की जरूरत नहीं थी. दोनों ही एकदूसरे में समाने को आतुर हुए तो विनीता ने मिलन का रास्ता भी बना लिया.

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एक दिन दोपहर के समय विनीता चारपाई पर लेटी थी तभी कैलाश वहां आ गया. उसे देख कर विनीता पैरों में दर्द का बहाना कर के  कराहने लगी. उस ने साड़ी को घुटने तक खींच लिया. कैलाश ने उस की हालत देखी तो बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी, ऐसे कराह क्यों रही हो?’’‘‘क्या बताऊं…पैरों में बड़ी जोर से दर्द हो रहा है.’’ विनीता अपने हाथ से दायां पैर दबाने की कोशिश करती हुई बोली. ‘‘अरे आप क्यों परेशान हो रही हैं, मैं दबा देता हूं पैर.’’ कह कर कैलाश उस के नग्न पैरों को अपने हाथों स दबाने लगा.

इस पर विनीता उस को तेल की शीशी देते हुए बोली, ‘‘इस तेल से मालिश कर दो, कुछ आराम मिल जाएगा.’ कैलाश ने उस के हाथों से तेल की शीशी ले कर थोड़ा तेल निकाला और भाभी के पैरों की मालिश करने लगा. पराए मर्द के हाथों के स्पर्श से विनीता के तन में चिंगारियां फूटने लगीं. तनबदन मचल उठा.

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जैसेजैसे कैलाश मालिश कर रहा था, विनीता साड़ी को थोड़ाथोड़ा ऊपर खींचते हुए मालिश करने को कहती गई, ‘‘थोड़ा और ऊपर मालिश कर दो. जैसेजैसे मालिश कर रहे हो, दर्द नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है.’’ मस्ती से सराबोर हो कर विनीता ने कहा. इस के बाद उस ने साड़ी को कूल्हों तक खींच लिया.

कैलाश कोई नादान नहीं था. वह भाभी की मंशा समझ गया और मालिश करतेकरते अपना नियंत्रण खोने लगा. उस के हाथ आगे बढ़ते गए. अंतत: विनीता ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. उस के बाद उन के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. इस के बाद दोनों के बीच संबंधों का यह सिलसिला चलने लगा.

Crime Story: टुकड़ों में बंटी औरत

लेकिन ऐसे संबंध एक न एक दिन उजागर हो ही जाते हैं. अमर सिंह को अपनी पत्नी व भाई के बीच के नाजायज संबंधों का पता चल गया तो वह गांव आ गया. उस ने गुस्से में विनीता को तो जम कर पीटा ही, कैलाश के साथ भी मारपीट की. विनीता और बच्चों को वह अपने साथ नोएडा ले गया.

विनीता के चले जाने के बाद कैलाश भी काम के सिलसिले में हैदराबाद चला गया. कैलाश की पत्नी कंचनलता 2 बच्चों के साथ घर पर रह रही थी. कंचनलता को घर में अकेले देख कर कैलाश का चचेरा भाई रमाकांत उस के पास आने लगा. रमाकांत पड़ोस में ही रहता था और अविवाहित था. उस की चाय समोसे की दुकान थी.

कंचनलता की कंचन काया छरहरी थी. रमाकांत उस पर आसक्त हो गया. 2 बच्चों की मां कंचनलता अपने हुस्न से तमाम लड़कियों को मात दे सकती थी.

खूबसूरत हुस्न की मालकिन कंचन पति कैलाश के बिना मुरझाईमुरझाई सी रहने लगी. वह हंसती तो लगता जैसे दिखावटी हंसी हंस रही हो. रमाकांत उस के मुरझाने का कारण बखूबी समझता था. इसलिए रमाकांत उस के पास जाता तो उसे हंसाने की कोशिश करता. कंचनलता को भी उस की बातें अच्छी लगती थीं. वह उस से घुलनेमिलने लगी.

एक दिन बातोंबातों में रमाकांत कंचनलता के दर्द को अपनी जुबां पर ले आया, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि जब से कैलाश भैया गए हैं, तब से आप उदास सी रहने लगी हो.’’ ‘‘तो क्या करूं, उन के जाने पर नाचूं या हंसू?’’ कंचनलता ने बड़ी कड़वाहट से जवाब दिया  ‘‘आप को भी उन के साथ चले जाना चाहिए था, आखिर आप की भी अपनी कुछ जरूरतें और इच्छाएं हैं.’’  ‘‘उन को मेरी चिंता ही कहां है.’’ वह बुझे मन से बोली.

‘‘जब उन्हें आप की चिंता नहीं है तो आप भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिओ. आप को भी पूरी आजादी है, मैं आप का हर तरह से साथ देने को तैयार हूं.’’ रमाकांत बोला.  यह सुन कर कंचनलता मुसकराई और अपनी नजरें झुका लीं.

रमाकांत ने अपने दाएं हाथ से कंचनलता की ठोढ़ी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया और उस की आंखों में देखा. इस पर कंचनलता कुछ देर यूं ही उस की आंखों में देखती रही. फिर उस के अंदाज की कायल हो कर उस से लिपट गई.रमाकांत ने भी कंचनलता को अपनी बांहों में भर लिया. फिर उन के बीच की सारी मर्यादाएं टूट गईं, दोनों के जिस्म एक हो गए. उन के बीच यह खेल निरंतर खेला जाने लगा.

देश में लौकडाउन हुआ तो अमर सिंह को सपरिवार नोएडा से गांव आना पड़ा. कैलाश भी हैदराबाद से गांव वापस लौट आया. सभी के घर आ जाने के बाद कैलाश और विनीता ने मौका मिलने पर फिर से संबंध बनाने शुरू कर दिए.

कैलाश रोज रात में 11 बजे गर्रा नदी किनारे अपने मक्का के खेत की रखवाली के लिए चला जाता था और सुबह 4 बजे घर लौटता था. लेकिन 22 अगस्त, 2020 की सुबह कैलाश काफी देर तक घर नहीं लौटा तो कंचनलता उसे बुलाने खेतों पर गई. वहां खेत में उसे पति की लाश पड़ी मिली. उस ने रोतेपीटते घर वालों को घटना की सूचना दी. कुछ ही देर में घर वाले और गांव के लोग वहां एकत्र हो गए. कैलाश के दोनों भाई भी वहां पहुंच गए थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि कैलाश की हत्या किस ने कर दी. भाई अमर सिंह ने सांडी थाना पुलिस को घटना की सूचना दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर अखिलेश यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थाने से रवाना होते समय उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर यादव ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर व हाथों पर किसी तेज धारदार हथियार के घाव थे. आसपास का निरीक्षण करने पर उन्हें कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. उन्होंने कंचनलता, अमर सिंह व अन्य घरवालों से आवश्यक पूछताछ की.

इसी बीच एएसपी (पूर्वी) अनिल सिंह यादव और सीओ बिलग्राम एस.आर. कुशवाहा भी मौके पर पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद उन्होंने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर अखिलेश यादव को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर यादव ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल स्थित मोर्चरी भेज दी और अमर सिंह को साथ ले कर थाने लौट गए.

थाने पहुंच कर उन्होंने अमर सिंह की तरफ से अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर यादव ने केस की जांच शुरू की. घर वालों ने मामला जमीनी रंजिश का बताया था, लेकिन वैसा लग नहीं रहा था. गांव वालों व पड़ोसियों से पूछताछ के बाद घटना की वजह कुछ और ही नजर आ रही थी इंसपेक्टर यादव ने कैलाश के घर आनेजाने वालों व घर के बराबर में रहने वाले कैलाश के भाईबंधुओं के बारे में पता किया, तब उन्हें पता चला कि लाश मिलने के एक दिन पहले रात में अमर सिंह और उस के चचेरे भाई रमाकांत को एक साथ गांव के बाहर जाते देखा गया था.

यह भी पता चला कि रमाकांत कैलाश की गैरमौजूदगी में उस के घर में ही घुसा रहता था. कैलाश के संबंध अमर सिंह की पत्नी से थे, जिस की वजह से अमर सिंह पत्नी को नोएडा ले गया था.

यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर यादव ने अमर सिंह और रमाकांत को 30/31 अगस्त की रात करीब ढाई बजे गांव बरोलिया के मंदिर के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

लौकडाउन में घर वापस आने के बाद कैलाश और विनीता में फिर से संबंध बनने लगे तो यह बात छिप न सकी. अमर सिंह को भी यह जानकारी मिल चुकी थी. अमर सिंह गुस्से से आगबबूला हो उठा.

उस ने अपने छोटे भाई कैलाश को काफी समझाया, पर उन दोनों पर उस के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. कैलाश बड़े भाई की बात मानने को तैयार नहीं था. ऐसे में अमर सिंह नेउसे मौत की नींद सुलाने का फैसला कर लिया.

एक बार अमर सिंह ने चचेरे भाई रमाकांत को कैलाश की पत्नी कंचनलता से संबंध बनाते देख लिया था. तब रमाकांत ने अमर सिंह से माफी मांग ली थी और अमर सिंह भी चुप हो गया. अमर सिंह को कैलाश की हत्या में साथ देने के लिए एक साथी की जरूरत थी. वह साथी उसे रमाकांत के रूप में मिल गया.

अमर सिंह ने भाई कैलाश की हत्या में रमाकांत से मदद मांगी तो वह मना करने लगा. इस पर अमर सिंह ने कहा कि उन दोनों के रास्ते का कांटा एक ही है. वह उसे इसलिए मारना चाहता है क्योंकि वह उस की पत्नी से संबंध बना कर उस का घर खराब कर रहा है. कैलाश के रास्ते से हटने पर उस का रास्ता साफ हो जाएगा, फिर वह बेरोकटोक कंचनलता से मिल सकेगा.

अमर सिंह की बात रमाकांत के भेजे में घुस गई और रमाकांत अमर सिंह का साथ देने को तैयार हो गया.  21 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे कैलाश अपने मक्के की फसल की रखवाली के लिए घर से निकल गया. योजनानुसार रात साढे़ 12 बजे के करीब अमर सिंह और रमाकांत घर से निकले. दोनों अपने साथ एक कुल्हाड़ी भी लाए थे.

दोनों खेत पर पहुंचे तो कैलाश को गहरी नींद में सोते पाया. यह देख अमर सिंह ने कुल्हाड़ी से उस के सिर पर वार किया. इस के बाद उस ने कई वार किए. रमाकांत ने भी उस से कुल्हाड़ी ले कर उस पर कई वार किए.

लहूलुहान कैलाश चारपाई से नीचे गिर गया. लेकिन कुल्हाड़ी के अनगिनत वारों के कारण कैलाश की सांसें ज्यादा देर तक चल न सकीं और उस की मौत हो गई. उसे मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने अपने खून सने कपड़े उतारे और दूसरे कपड़े पहन कर रक्तरंजित कपड़ों और कुल्हाड़ी को एक जगह छिपा दिया और घर वापस लौट आए.

लेकिन गुनाह छिप न सका और वे पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने कुल्हाड़ी और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनोें को सीजेएम कोर्ट

में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल दिया गया.

शहतूत एक फायदे अनेक

शहतूत एक स्वाद से भरा व पौष्टिक फल है. शहतूत की मुख्य 3 किस्में हैं, सफेद शहतूत, लाल शहतूत और काला शहतूत. शहतूत का फल जितना रसीला और मीठा होता है, उतनी ही ज्यादा मात्रा में इस में एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है. गरमी के मौसम में शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत होती है और इस के सेवन से पानी की कमी को दूर किया जा सकता है. यह फल खूबसूरत ही नहीं होता, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है. यह पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करता है. पौष्टिकता की नजर से शहतूत में विटामिन सी, अम्ल, एंटीआक्सीडेंट व खनिज काफी मात्रा में पाए जाते हैं. पोटेशियम और मैंगनीज जैसे खनिजों से युक्त शहतूत में आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस भी पाए जाते हैं.

औषधीय गुण

चूंकि शहतूत का फल एंटीआक्सीडेंट का अच्छा जरीया है, इसलिए यह हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. गरमी में जामुनी शहतूत अपने स्वाद के कारण सभी का मन मोह लेता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस का सेवन गरमी के प्रकोप को कम करता है. शहतूत का पका फल कैंसर के खतरे को कम करता है. इस के अलावा यह गठिया, दिमागी विकार, गुर्दे के रोगों व मलेरिया आदि के इलाज में भी कारगर होता है. यह फल कई दूसरे रोगों जैसे कब्ज, अजीर्ण, सिर का चक्कर, नींद न आना, खून की कमी व बुखार जैसी बीमारियों के इलाज में भी उपयोगी होता है.

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शहतूत एंटी ऐज यानी बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम करता है, यह बालों में भूरापन लाता है, क्योंकि इस में ज्यादा एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है, जो बालों के लिए अच्छा होता है. यह नकसीर व गरमी के प्रकोप को कम करता है. शहतूत का शरबत बुखार में दिया जाता है.

शहतूत का शरबत खांसी व गले की खराश मिटाता है. यह पाचन शक्ति को बढ़ाने के साथ खून  को साफ करता है. पुराने समय से ही चीन में इस फल का इस्तेमाल कई किस्म की दवाओं को बनाने में किया जाता रहा है.

शहतूत एक सुंदर पत्तेदार पौधा है, जो कि 9-12 मीटर ऊंचा और ज्यादा टहनियों वाला होता है. इस के पत्ते करीब 5-10 सेंटीमीटर लंबे व 3-5 सेंटीमीटर चौड़े होते हैं. फूल हरे रंग का होता है. फल की ऊपरी परत नरम व हलके जामुनी या हरे रंग की होती है, जिस के अंदर सफेद रंग के बीज होते हैं. फल खूबसूरत होता है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. इन्हें इस्तेमाल में ला कर 50-60 फीसदी तक ताजा शहतूत जूस निकाला जाता है.

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हिमाचल प्रदेश में इस फल में फरवरी से मार्च महीने तक फूल आते हैं और फल अप्रैल से जून महीनों में पक कर तैयार होते हैं. एक अच्छे पौधे से करीब 10-15 किलोग्राम फलों की पैदावार होती है. यह पैदावार कुदरती वातावरण व पेड़ की उम्र पर भी निर्भर करती है.

शहतूत के पेड़ से टहनियां काट कर उस की 6-8 इंच लंबी कटिंग को मिट्टी में लगाया जाता है. इस के 6 महीने के बाद ही 3-4 फुट तक का पेड़ तैयार हो जाता है. 1 एकड़ में शहतूत के करीब 5000 पेड़ लगाए जा सकते हैं, जिन से करीब 8000 किलोग्राम शहतूत के फल प्राप्त किए जा सकते हैं. शहतूत की लकड़ी से बैट बनता है. इस के साथ ही हाकी स्टिक, टेबल टेनिस रैकेट वगैरह भी शहतूत की लकड़ी से ही बनाए जाते हैं.

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आज की जरूरत

दक्षिण भारत के अलावा उत्तर भारत में भी शहतूत का उत्पादन होता है. वैसे तो हरे व काले शहतूत के खूबसूरत और मीठे फल खाने में खासे मजेदार होते हैं, मगर शहतूत की खेती का खास मकसद रेशमकीटपालन से जुड़ा होता है, इसलिए इस की खेती करने से दोहरा फायदा होता है. रेशमकीटपालन के व्यवसाय में 50 फीसदी खर्च पत्तियों पर ही हो जाता है, यह कारोबार पत्तियों पर ही निर्भर करता है, पत्तियों पर रेशमकीट का जीवनचक्र चलता है, इसी जीवनचक्र में ये कीट रेशम के कोए बनाते हैं. रेशम के कोए 300-400 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेचे जा सकते हैं. यदि किसान शहतूत की खेती कर के खुद कीटपालन करें तो दूसरी फसलों से ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. शहतूत के पेड़ के हर भाग जैसे फल, हरे पत्ते व लकड़ी का अपना महत्त्व है. ये सभी भाग चिकित्सीय गुणों से भरपूर होते हैं. इस के फल सालभर में 5-8 हफ्ते तक ही मिलते हैं. सामान्य व नमी की परिस्थितियों में यह फल 1-2 दिनों व कोल्ड स्टोरेज में 2-4 दिनों में खराब हो जाता है. शहतूत के रस को 3 महीने के लिए कोल्ड स्टोरेज में रखा जा सकता है, जबकि बोतल बंद पेय कमरे के तापमान में 12 महीने के लिए रख सकते हैं. इस के तमाम उत्पाद जैसे ड्रिंक, स्क्वैश, सिरप, जैली, जैम, फू्रट सौस, फ्रूट पाउडर, फ्रूट वाइन वगैरह बनाना समय की मांग है, ताकि किसानों को इस से अतिरिक्त आमदनी मिल सके.

शहतूत में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व व दूसरे पदार्थ

पौष्टिक तत्त्व          मात्रा

खाद्य भाग       100 फीसदी

नमी             85-88 फीसदी

मैलिक अम्ल   1.1-1.8 फीसदी

कार्बोहाइड्रेट   7.8-9.0 फीसदी

प्रोटीन           0.5-1.4 फीसदी

रेशा              1.30 फीसदी

वसा            0.3-0.5 फीसदी

खनिज पदार्थ   0.8-1.0 फीसदी

कैरोटीन          0.17 फीसदी

कैल्शियम      0.17-0.39 फीसदी

पोटेशियम      1.00-1.49 फीसदी

मैग्नीशियम     0.09-0.10 फीसदी

सोडियम        0.01-0.02 फीसदी

फास्फोरस      0.18-0.21 फीसदी

आयरन         0.17-0.17 फीसदी

विटामिन सी    12.50 मिलीग्राम प्रति  100 ग्राम

निकोटिनिक अम्ल      0.7-0.8 फीसदी

– डा. नारायण सिंह ठाकुर व हामिद

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