अलका औफिस में सब के लिए जिज्ञासा का विषय बनी हुई थी. वह किस से, क्यों, कहां जाती है, इस बारे में सब अटकलें लगाते थे लेकिन असलियत कुछ और ही थी.     अलका को जैसे ही यह खबर लगी कि उस का तबादला फिर भोपाल होने का मेल हैडऔफिस से आया है, तो उस की आंखें छलक पड़ीं. वह तो फिर से भोपाल जाने के लिए जैसे रातदिन बाट ही जोह रही थी.उस के तबादले पर इंदौर कार्यालय के उस के सहकर्मियों ने उस का बाकायदा विदाई समारोह आयोजित किया. विदाई समारोह के भाषण में वह अपने बारे में बहुतकुछ कहना चाहती थी, लेकिन यह सोच कर उस ने कुछ नहीं कहा कि बनर्जी साहब को सबकुछ पता चल ही गया है, तो अब सारी बात बाकी के लोगों को भी पता चल ही जाएगी.

तब, यह सबकुछ जान कर शायद किसी के दिल में यह बात आ जाए कि‘माफ करना अलका,’ हम तुम्हें समझ नहीं पाए.वह जल्दी से घर आई. उस ने अपने 2 सूटकेसों में सारा सामान भरा और रेलवे स्टेशन पहुंची. भोपाल जाने के लिए  2 साल पहले किन हालात से गुजर कर उसे भोपाल से इंदौर कार्यालय में आना पड़ा. जब वह इंदौर आई, तब इस शहर से पूरी तरह अनजान थी.इंदौर कार्यालय में जब वह पहुंची तो उस ने एक मैडम से कहा, ‘मुझे बनर्जी साहब से मिलना है,’ वह मैडम उस के सौम्य रूप को देख कर उस पर एकदम से मुग्ध सी हो गई. फिर बोली, ‘मैडम, आप किसलिए उन से मिलना चाहती हैं?’ जवाब में वह बोली, ‘मैं अलका हूं और भोपाल कार्यालय से ट्रांसफर हो कर यहां आई हूं और मुझे अपनी जौइनिंग रिपोर्ट देनी है.’‘सामने वाला केबिन बनर्र्जी साहब का है और मैं उन की पीए श्वेता शर्मा हूं.

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