सेठ धनराज के बंगले में मातम छाया हुआ था. उन का इकलौता बेटा पप्पू कांति प्रसाद प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था. 4 दिन पहले जब वह स्कूल गया तो लौट कर नहीं आया.
धनराज की पत्नी आशा खुद बेटे को स्कूल लेने जाती थी. उस दिन किसी कारणवश वह समय पर नहीं पहुंच सकी थी. स्कूल के द्वार के पास पप्पू अपनी मां का इंतजार कर रहा था. जब वह वहां नहीं पहुंची तो वह अकेला सड़क पार करने लगा. परंतु अचानक ही तेज गति से एक ट्रक आया और पप्पू को कुचलता हुआ चला गया. घटनास्थल पर ही उस की मृत्यु हो गई थी.
आशा का रोरो कर बुरा हाल था. वह एक ही रट लगाए हुए थी, ‘‘मुझे मेरा पप्पू चाहिए, मुझे मेरा पप्पू चाहिए. मैं उस के बिना जिंदा नहीं रह सकती…’’
धनराज ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आशा, जीवन में इंसान को कुछ दुख ऐसे भी मिलते हैं जिन्हें उसे झेलना ही पड़ता है. हिम्मत से काम लो.’’
आशा ने सिसकियां लेते हुए कहा, ‘‘आप जानते हैं कि जब पप्पू का जन्म हुआ था तो मुझे औपरेशन करवाना पड़ा था. अब तो मैं दूसरे बच्चे को जन्म देने में भी असमर्थ हूं. मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता. पप्पू के जाने के बाद मेरी जीने की तमन्ना ही खत्म हो गई है.’’
‘‘मृत्यु एक कड़वी सचाई है, हमें उस सचाई का सामना करना होगा,’’ धनराज का स्वर भी उदासी में डूबा हुआ था.
तभी द्वार पर घंटी बजी. धनराज ने दरवाजा खोला. सामने डाकिया खड़ा था. धनराज को एक लिफाफा दे कर वह चला गया.
धनराज आशा के पास बैठ कर लिफाफा खोलने लगे. पत्र देख कर प्रतीत होता था कि वह विदेश से आया था. धनराज के पिता कनाडा में रहते थे, इसीलिए उन्होंने सोचा कि पिताजी का ही पत्र होगा.
पहले धनराज और आशा भी कनाडा में रहते थे. परंतु उन दोनों को वहां की सभ्यता और वातावरण रास नहीं आया था. उस के पिता केदारनाथ कई वर्षों से भारत में बसने की बात सोच रहे थे, परंतु कनाडा के व्यापार को समेटना आसान न था.
धनराज ने पत्र खोल कर पढ़ना शुरू किया :
‘प्रिय बेटा धनराज,
‘प्यार,
‘मैं ने कनाडा में सारी संपत्ति बेच दी है और शीघ्र ही मैं भारत पहुंच रहा हूं. जैसे ही मुझे हवाई जहाज का टिकट प्राप्त होगा, मैं सफर शुरू कर दूंगा. शायद यह पत्र पहुंचने से पहले ही मैं खुद भारत पहुंच जाऊं.
‘मुझे दिल का दूसरा दौरा पड़ा था. डाक्टर ने आराम करने को कहा है. उन का कहना है कि अगर मैं व्यापार में और दौड़धूप करूंगा तो मुझे किसी भी समय तीसरा दौरा पड़ सकता है और मेरी मृत्यु हो सकती है.
‘मैं अपनी शेष जिंदगी अपने लाड़ले पोते पप्पू के साथ हंसतेखेलते गुजारना चाहता हूं. वह जब 6 महीने का था तब की उस की तसवीरें मेरे पास हैं. बस, उन्हीं को प्यार करता रहता हूं. बाकी बातें मेरे पहुंचने पर होंगी. पप्पू को मेरी तरफ से जीभर कर प्यार देना. उस से कहना कि उस के दादा उस के लिए नईनई वस्तुएं और खिलौनों का भंडार ले कर आ रहे हैं. मैं ने उस के लिए एक खास किस्म की खिलौना गाड़ी खरीदी है. उसे देख कर पप्पू बहुत खुश होगा. उम्मीद है, बहू ठीकठाक होगी.
‘तुम्हारा पिता
‘केदारनाथ.’
पत्र पढ़ते ही धनराज के हाथपांव कांपने लगे, परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपनेआप को संभाल लिया.
आशा घबरा कर बोली, ‘‘अब क्या होगा? जब पिताजी को पता चलेगा कि पप्पू अब इस दुनिया में नहीं है तो शायद वे यह सदमा सहन न कर सकें. उन्हें तीसरा दौरा पड़ सकता है. पप्पू तो चला गया, कहीं पिताजी भी…’’
धनराज ने उस की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘तुम सिर्फ दुखभरी बातें ही क्यों सोचती हो? निराशा और घबराहट से मुसीबत टल तो नहीं जाती. फिर पिताजी को यहां पहुंचने में अभी थोड़ा वक्त है. तब तक सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए?’’ धनराज खुद अंदर से घबरा गए थे परंतु अपनी पत्नी को बराबर तसल्ली दे रहे थे.
लगभग 2 घंटे बाद एक टैक्सी बंगले में प्रविष्ट हुई. धनराज ने लपक कर देखा. उन के पिता टैक्सी का किराया चुका रहे थे.
‘‘पिताजी आ गए हैं, आशा. जल्दी से अपना बिगड़ा हुआ हुलिया ठीक करो. घबराना नहीं. अपने पर तुम्हें काबू रखना होगा. अब और अधिक सोचनेसमझने का वक्त नहीं है.’’
केदारनाथ ने कमरे में प्रवेश किया. आशा और धनराज दोनों हक्केबक्के हो कर उन्हें घूर रहे थे.
‘‘क्या बात है, मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो, मेरा लाड़ला पोता कहां है?’’
जल्दी से दोनों ने संभलते हुए केदारनाथ के चरण स्पर्श किए.
शीघ्र ही उन्होंने फिर पप्पू के बारे में पूछा. धनराज और आशा इतनी जल्दी इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं थे. वे बगलें झांकने लगे. तभी आशा ने शीघ्रता से और घबराहट में बिना सोचेसमझे कह दिया, ‘‘आप आइए पिताजी, बैठिए. पप्पू अपनी कक्षा के बच्चों के साथ पिकनिक पर गया है. 5 बजे शाम को मैं उसे स्कूल से ले आऊंगी.’’
केदारनाथ ने घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘अब तो 5.30 बज चुके हैं. तुम दोनों अभी यहीं हो. क्या ऐसे ही देखभाल करते हो मेरे पोते की?’’ फिर थोड़ा गुस्से से वे बोले, ‘‘ड्राइवर को पप्पू के स्कूल का पता मालूम है?’’
‘‘मालूम तो है पिताजी, लेकिन…’’
‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. देख लिया, तुम दोनों कितने लापरवाह हो. आज से उस की देखभाल मैं करूंगा. मैं ड्राइवर के साथ कार ले कर पप्पू के स्कूल जा रहा हूं. मैं अपने पोते को पहचान सकता हूं.’’
केदारनाथ बाहर निकल गए. आशा और धनराज एकदूसरे का मुंह देखते रह गए.
‘‘अब क्या होगा?’’ आशा ने घबराए स्वर में पति से पूछा.
‘‘हिम्मत से काम लो, जो होगा, ठीक ही होगा.’’
ड्राइवर केदारनाथ को सीधा पप्पू के स्कूल ले गया. वहां पहुंच कर उन्हें मालूम हुआ कि पिकनिक बस कभी की वहां पहुंच चुकी है और अभिभावक बच्चों को अपने साथ ले गए हैं. परंतु एक बच्चे को लेने कोई नहीं आया था, इसलिए वह बच्चा चौकीदार के पास बैठा हुआ था.
जब केदारनाथ चौकीदार के पास गए तो देखा कि एक बच्चा एक पिल्ले को गोद में लिए हुए बैठा है. वह सूनीसूनी नजरों से इधरउधर देख रहा था. केदारनाथ ने उसे गौर से देखा तो नन्हा भी उन की तरफ देख कर मुसकराने लगा. पप्पी भी जोरजोर से पूंछ हिलाने लगा.
केदारनाथ ने प्यार से पुकारा,
‘‘पप्पू बेटा.’’
तभी पप्पी ने उस के पांव पर गुदगुदी की तो वह हंसने लगा. केदारनाथ ने भी खुशी से झूम कर नन्हे को अपनी गोद में उठा लिया और भावविभोर हो कर उसे बेतहाशा प्यार करने लगे.
वह नन्हे का माथा चूमते हुए बोले, ‘‘अब मैं आ गया हूं, बेटा. मैं तुम्हारा दादा हूं. मैं तुम्हारे लिए ही यहां आया हूं. अब हम साथसाथ रहेंगे. तुम्हारे मातापिता की लापरवाही देख ली है मैं ने. चलो, घर चलते हैं.’’
उधर, आशा और धनराज उदास बैठे हुए स्थिति का सामना करने की कोशिश कर रहे थे.
आशा ने डूबती आवाज में कहा, ‘‘मुसीबत पर मुसीबत खड़ी हो रही है. अब जब पिताजी को स्कूल में पप्पू नहीं मिलेगा, तब क्या होगा?’’
‘‘तुम्हें इस तरह झूठ नहीं बोलना चाहिए था. एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं. फिर जब पिताजी को सचाई का पता चलेगा…’’
धनराज अपना वाक्य पूरा कह भी नहीं पाए थे कि कार बंगले में प्रविष्ट हुई. उन्होंने देखा कि केदारनाथ एक बच्चे के साथ कार से बाहर निकल रहे हैं. उन्होंने बच्चे को अपनी छाती से चिपका रखा था. यह देख धनराज और उन की पत्नी आश्चर्यचकित हो कर एकदूसरे को प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे. दोनों असमंजस में पड़ गए. स्तब्ध से वे कभी बच्चे को देखते तो कभी पिताजी को, और कभी दुम हिलाते हुए पप्पी को.
नदजीक पहुंच कर केदारनाथ ने कहा, ‘‘तुम दोनों इस तरह हैरान हो कर हमें क्यों देख रहे हो? तुम क्या समझे थे कि मैं पप्पू को पहचान नहीं सकूंगा. देखो, मैं ने अपने बेटे को पहचान लिया. लेकिन इस लापरवाही के लिए मैं तुम लोगों को माफ नहीं करूंगा. पप्पू बेचारा अकेला चौकीदार के पास बैठा हुआ था. लेकिन कोई बात नहीं. आज से यह मेरे साथ ही रहेगा और मेरे कमरे में सोएगा,’’ वे नन्हे को ले कर ऊपर वाले कमरे में चल पड़े.
तभी धनराज ने कहा, ‘‘लेकिन पिताजी, आप मेरी बात तो सुनिए.
यह बच्चा…’’
‘‘नहीं, अब मैं बहुत थक गया हूं. बाकी बातचीत कल होगी. रात को मेरा और पप्पू का भोजन मेरे कमरे में भेज देना. और हां, पप्पू के पप्पी के लिए भी खाने को कुछ भेज देना.’’
धनराज और आशा अपने कमरे में बैठे हुए थे. रात गहरी हो रही थी, लेकिन नींद उन के नेत्रों से कोसों दूर थी.
‘‘पप्पू की मृत्यु के कारण मेरा तो पहले ही बुरा हाल था, ऊपर से यह नई मुसीबत. पिताजी न जाने किस का बच्चा उठा लाए हैं,’’ आशा धीरे से बोली.
‘‘मैं सोच रहा हूं कि पिताजी को सचाई बता देनी चाहिए, नहीं तो कोई और बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. हम कितना भी प्रयत्न करें, सचाई को छिपा नहीं सकते. पिताजी को पप्पू की मृत्यु को सहन करना ही पड़ेगा.’’
‘‘हां, आप ठीक कहते हैं. एक न एक दिन तो सचाई सामने आ ही जाएगी. फिर हम कब तक झूठ पर झूठ बोलते रहेंगे.’’
‘‘हम कल ही पिताजी को सचाई
बता देंगे.’’
लंबे सफर की थकान के बावजूद देर रात तक केदारनाथ उस से बातें करते रहे. नन्हा भी अपनी तोतली जबान में उन के साथ बतियाता रहा. उस की प्यारी बातों ने केदारनाथ का मन मोह लिया. जब उन्होंने नन्हे को खिलौना गाड़ी दी तो वह खुशी से झूम उठा.
सुबह धनराज, आशा, केदारनाथ और नन्हा एकसाथ नाश्ता कर रहे थे. केदारनाथ ने नन्हे को अपनी गोद में बिठा रखा था. वे दोनों आपस में बातें कर रहे थे. मेज के नीचे फर्श पर पप्पी बैठा हुआ कुछ खा रहा था.
धनराज और आशा बारबार नन्हे को निहार रहे थे. न चाहते हुए भी उन की नजर उस की ओर उठ जाती थी. धनराज अपने पिताजी को सच बताने का अवसर खोज रहे थे. उन का दिल जोरजोर से धड़क रहा था.
तभी केदारनाथ बोल पड़े, ‘‘चलो, पप्पू बेटा, हम बाहर बगीचे में जा कर बैठते हैं. पप्पी को भी बुला लो. बाहर बहुत सुहावना मौसम है.’’
पिताजी के जाने के बाद धनराज ने कहा, ‘‘आशा, एक बात कहूं?’’
‘‘जी, कहिए.’’
‘‘क्या उस बच्चे में तुम्हें पप्पू की छवि नजर नहीं आती? मुझे तो बिलकुल पप्पू जैसा ही दिखाई देता है.’’
‘‘हां, मैं भी आप से यही कहने वाली थी. उसे देख कर मैं तो भूल ही गई थी कि पप्पू हमारे बीच नहीं है.’’
‘‘लेकिन वह बच्चा है किस का? पिताजी कहां से लाए हैं उसे?’’
‘‘इस का उत्तर तो वही दे सकते हैं.’’
तभी केदारनाथ ने भीतर आते हुए कहा, ‘‘क्या खुसुरफुसुर हो रही है, जरा हम भी तो सुनें.’’
‘‘पिताजी, आप जरा मेरे साथ मेरे कमरे में आइए, आप से जरूरी बात करना चाहता हूं,’’ धनराज बोले.
दूसरे कमरे में पहुंच कर धनराज ने पप्पू के बारे में सबकुछ सचसच बताते हुए उस की मौत का समाचार भी उन्हें सुना दिया.
शोक समाचार सुनते ही केदारनाथ अवाक् रह गए. उन के होंठ खुले के खुले रह गए. उन के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. वे धीरे से पलंग पर बैठ गए. आशा भी तब तक वहां पहुंच चुकी थी.
धनराज ने कहा, ‘‘अपनेआप को संभालिए, पिताजी.’’
केदारनाथ ने दुखभरे स्वर में कहा, ‘‘पप्पू की मौत की खबर सुन कर मुझे अति दुख हुआ बेटा, परंतु अफसोस इस बात का भी है कि तुम ने मुझे इतना कमजोर समझा.
‘‘मृत्यु एक कड़वा सत्य है बेटा, इसे हर इंसान को सहन करना पड़ता है.’’
नन्हा धीरेधीरे चलता हुआ वहां पहुंच गया. फिर वह केदारनाथ की गोद में जा कर बैठ गया.
केदारनाथ ने उस को अपनी छाती में भींच लिया और कहा, ‘‘मेरे लिए तो यही पप्पू है. पप्पू को तो मैं ने देखा भी नहीं था. उस से तो जुदा हो गया परंतु इस बच्चे से जुदा न हो सकूंगा,’’ उन्होंने धनराज और आशा से कहा, ‘‘अब जो होना था सो हो गया. पप्पू की याद में रोरो कर जीवन व्यतीत करने से क्या यह बेहतर नहीं कि तुम दोनों इस बच्चे को ही अपना पुत्र, अपना पप्पू समझो? परिस्थिति से समझौता कर लो बेटा.’’
आशा ने कहा, ‘‘आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली, पिताजी. इस तरह मुझे जीने का सहारा मिल जाएगा.’’
‘‘लेकिन यह बच्चा है किस का? पिताजी, आप को यह कहां से मिला?’’
धनराज के प्रश्नों का उत्तर केदारनाथ ने संक्षेप में दे दिया.
धनराज सोचते हुए बोले, ‘‘सब से पहले हमें पुलिस स्टेशन जाना चाहिए. हो सकता है कि इस के मातापिता ने वहां रपट दर्ज करवाई हो.’’
आशा, केदारनाथ और धनराज पुलिस थाने गए. नन्हा भी उन के साथ था. वहां जा कर उन्होंने थानेदार को नन्हे के बारे में सब कुछ बता दिया.
‘‘एक बच्चा विद्यावती अनाथालय से गुम हो गया था. उस की रपट हमारे पास दर्ज है. शायद यह वही बच्चा हो.’’ थानेदार ने कहा.
धनराज ने कहा, ‘‘कृपा कर के आप हमारे साथ अनाथालय चलिए, अभी इसी वक्त. हमारे पास कार है, 10 मिनट में वहां पहुंच जाएंगे.’’
वे सब नन्हे को ले कर विद्यावती अनाथालय गए. मुख्य अधिकारी से मिल कर थानेदार के सामने धनराज और आशा ने नन्हे को विधिवत गोद ले लिया.
फिर वे सब हंसीखुशी घर लौट आए. पुत्र वियोग में दुखी मांबाप को बेटा मिल गया. दादा को पोता मिल गया और नन्हे को सहारा मिल गया.
जब वे बंगले पर पहुंचे तो पप्पी व्याकुल हो कर इधरउधर दौड़ रहा था. नन्हे को देखते ही वह दुम हिलाता हुआ उस के पास गया और उस के पांवों पर गुदगुदी करने लगा. नन्हे ने हंसते हुए उसे गोद में उठा लिया और बंगले में प्रविष्ट हो गया.
धनराज के बंगले में फिर से रोशनी जगमग करने लगी.