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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में दोबारा हुई अक्षरा की एंट्री, क्या फिर दिखेंगी हिना खान?

टीवी जगत का सबसे चर्चित शो ये रिश्ता क्या कहलाता है के मशहूर एक्टर मोहसिन खान और शिवांगी जोशी के साथ कुछ ऐसा होने वाला है जिससे सभी लोग इमोशनल हो जाएंगे.

कैरव हाल ही में अपने परिवार के पास वापस आया है वह अपनी बहन के नामकरण में शामिल होगा. अपने बेटी के नाम करण में नायरा जैसे ही कृष्णा को नहीं देखेगी वह तुरंत उसे ढूंढने निकल जाएगी.

तभी अचानक गोयनका हाउस में कृष्णा की एंट्री होगी हाथ में एक कलश लिए हुए जिसे देखकर सभी लोग परेशान हो जाएंगे. कृष्णा को देखकर जहां दादी और मनीष को अच्छा नहीं लगेगा वहीं बाकी परिवार के सदस्य कृष्णा को देखकर खुश हो जाएंगे.

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Gorgeousness overload

कार्तिक और नायरा की बेटी के नामकरण के वक्त पूरे गोयनका हाउस को अच्छे से सजाया जाता है. जिसे देखकर पूरा परिवार खुशी से झूम उठता है. पूरे परिवार वालों के चेहरे पर एक अलग सी चमक नजर आती है. फैमली का हर एक मेंमबर खुश नजर आता है.

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वहीं इस दौरान नायरा के मायके वाले उसकी बेटी का नाम सुझाने आते हैं. जिसमें नायरा की दादी और उसकी मां होती हैं.

Gorgeousness overload

वहीं कार्तिक के पिता मनीष ने भी नायरा के बेटी का नाम सोच लिया है. वह अपकमिंग एपिसोड में उसका नाम सुझाते नजर आएंगे. पीला रंग के लहंगा में नायरा बेहद ही ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही है.

वहीं कार्तिक और नायरा अपनी बेटी के नामकरण संस्कार में मस्ती से झूमते नजर आएंगे. दोनों एक साथ में बहुत ही ज्यादा प्यारे लग रहे हैं.

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मस्ती करते –करते कार्तिक और नायरा अपनी बेटी का नाम सोचेंगे और आखिरी में दोनों मिलकर निर्णय लेंगे की उनकी बेटी का नाम क्या होगा.

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एपिसोड के आखिरी में नायरा बताएगी की वह अपनी बेटी का नाम अक्षरा रखेगी जिससे वह वर्षो खोई हुई अपनी मां का नाम हमेशा जिंदा रखना चाहती है.

  अब किसानों पर हथौड़ा

बिचौलियों के खिलाफ लगभग हर देश में हमेशा एक संशय का भाव बना रहता है. चूंकि किराने की दुकान का मालिक ही अंतिम उपभोक्ता के नजदीक होता है और थोक में खरीदने वाला उत्पादक के करीब होता है, इसलिए उपभोक्ता और उत्पादक इन बिचैलियों को बड़ा मुनाफा हड़पने वाला सम झते हैं. यह वैसी ही भावना है जिस के आधार पर देश की नरेंद्र मोदी सरकार ने नोटबंदी लागू की थी कि जनता का बड़ा पैसा कालेधन के रूप में अमीरों के लौकरों में बंद है.

जैसे नोटबंदी पूरी तरह असफल हुई वैसे ही कृषि संशोधन कानून, जिसे मोदी सरकार ने आपातकाल याद दिलाते हुए कोरोनाकाल में संसद से पास करा लिया, असफल होगा. यह ठीक है कि कृषि मंडियों में आढ़तियों का आतंक चलता है और मंडियों के कर्ताधर्ता कृषि उत्पाद पर कब्जा किए हुए हैं. किसानों को महंगे ब्याज पर आढ़तियों से कर्ज लेना पड़ता है और फिर उन्हें सरकारी भाव से भी कम पर उन्हीं आढ़तियों को फसल बेचनी होती है.

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यह भी ठीक है कि आढ़तियों ने मंडी कानूनों के सहारे एक जमींदारी व्यवस्था सी लागू कर रखी है जिस में बहुत से किसान मात्र गुलाम बन कर रह गए हैं. पर, ये आरोप वैसे ही हैं जैसे पुलिस पर आरोप लगाए जाएं कि माफिया तो चलता ही पुलिस थाने से है और पुलिस की मौजूदगी के बावजूद विवाद को माफिया डौनों से सुल झवाने पड़ते हैं. और इसलिए पुलिस व अदालतों को नष्ट कर दिया जाए.

नोटबंदी और जीएसटी की तरह मंडी कानून भी दिखता अच्छा है लेकिन यह सदियों से बने स्ट्रक्चर को तोड़ डालेगा. यह कहना आसान है कि किसान अब उत्पाद चाहे जहां बेचे, पर उसे खरीदार कहां मिलेगा जो 2-3 ट्रौली गेंहू या जौ खरीदेगा. फसल की खरीद तो बहुत किसानों से होगी और हरेक इलाके से हजारों टनों में होगी, तभी तो अन्न देश के दूसरे इलाकों में जा पाएगा.

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खेती की उपज का खेतों से शहरों तक और शहरी उद्योगों का उत्पादन शहरों से गांवों तक पहुंचाना आसान नहीं. शहरी उत्पादन में एकाधिकार इसलिए है कि जो उत्पादन करेगा उसे कोनेकोने तक पहुंचाना पड़ता है. जो माहिर है वह मारुति, सैमसंग, हिंदुस्तान लीवर की तरह शहंशाह है. किसानों में जब तक यह मोह नहीं पैदा होगा, तब तक मंडियों की जरूरत होगी ही.

यह कानून नोटबंदी और सेल्स टैक्स की तरह बनेबनाए ढांचे को नष्ट कर देगा. बाद में क्या होगा, वह देखा जाएगा. जो सरकार बाबरी मसजिद का ढांचा तोड़ कर आई है, उसे बनीबनाई चीजें तोड़ने में मजा आता है, चाहे वह फुटकर व्यापार हो, नकदी का लेनदेन, संसद भवन या फिर मंडियां. बनाने वाला तो ऊपर है न. उस की पूजा करो, पंडों को खिलाओ, खुश रहो.

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भ्रम में देशवासी

कोरोना का कहर कम होता नहीं दिख रहा है. देश में कुछ ही महीनों में कोरोना संक्रमितों की संख्या एक करोड़ तक हो जाएगी. हालांकि कोरोना से होने वाली मौतों की दर कम है लेकिन इस की दहशत बहुत है. 8 महीनों से यह काली छाया हर घर पर छाई है.

अफसोस यह है कि देश की सरकार ने तो इसे पूरी तरह लोगों पर छोड़ दिया है. न तो नए अस्पताल खुल रहे हैं और न ही डाक्टरों, नर्सों की जरूरतभर भरतियां व ट्रेनिंग कहीं हो रही है.

सरकार का ध्यान अपने एजेंडों पर है, जबकि हर परिवार एक ओर कोरोना से जान बचाने में लगा है तो दूसरी ओर घर व पेट बचाने में लगा है. पिछले दशकों में भारत जैसे गरीब देश में भी पैसा आया है और जिस से लोगों का जो लाइफस्टाइल बदला है, उसे कोरोना ने गहरी चोट पहुंचाई है. हैरानी यह है कि सरकार की तरफ से देशवासियों को खुद उन पर ही छोड़ दिया गया है कि वे अपने घावों की दवाई ढूंढ़ें.

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सरकार का इस तरह से हाथ खड़े कर देना तब तो सम झा जा सकता था जब सरकार के पास साधनों की कमी हो या हो गई हो, जबकि ऐसा है नहीं. देशवासियों के लिए आज सरकार का जो रवैया है उस से लगता है कि सरकार तो कोरोनारूपी संकट का लाभ उठाने में लगी है.

सरकार ने हर तरह की नागरिक सुविधाएं कम कर दी हैं. बैंकों की ब्याज दर कम कर दी गई है. शासन ने पैट्रोल का दाम बढ़ा दिया है. कोरोना का इलाज सस्ता नहीं किया गया. सैनिटेशन का हल्ला बंद हो गया. नगरपालिकाओं से ले कर केंद्र सरकार तक ने नागरिक मनोरंजन व सुविधाओं के दरवाजे बंद कर दिए जबकि आयकर में कोई कटौती नहीं की. न जीएसटी कम हुआ न आयकर.

लोकसभा का हालिया सत्र सरकार के बेरुखे रवैए का आइना साबित हुआ जहां मोदी सरकार ने हठधर्मी दिखाते हुए विपक्षी दलों को बोलने न दिया और साफ कह दिया कि सरकार को अपने हितों की चिंता है, जनता के हितों की नहीं. जब सरकार का रुख ऐसा हो, तब आम आदमी तो यह सोचेगा ही कि वह इस उम्मीद के साथ सरकार का मुंह नहीं देख सकता कि उस के अगलेपिछले कर्मों का उसे कोई लाभ मिलेगा.

आज कई देशों की सरकारें, असल में, शासकों में बदल गई हैं. सरकार के मुखिया अपने को राजा सम झने लगे हैं. सरकार के यानी राजा के जबरदस्त प्रचार व अधिकांश नागरिकों के चाटुकार होने के चलते आम जनता को सम झ नहीं आ रहा कि उस की सुबहशाम की तकलीफ के लिए वह खुद जिम्मेदार है या और कोई. हमारे देश में अब सरकार माईबाप से माफिया, रंगदार का रूप ले रही है जो जनता के किए काम में तो हिस्सा बंटाती है पर खुद कुछ देने में मुंह छिपा रही है. इस के लिए अब जिम्मेदारी आम आदमी की है जो कोरोना की माहमारी में भी सरकार की वाहवाही में या उस के तमाशों में हिस्सा ले रही है.

जनहित के लिए एयर इंडिया

सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया भारी नुकसान में चल रही है. कई वर्षों से सरकार इसे बेचने की कोशिश कर रही है. पर, कोई ग्राहक नहीं मिल रहा है. इस का भारीभरकम स्टाफ और 23 हजार करोड़ रुपए का भयंकर कर्ज हर खरीदार को डरा देता है. खरीदार यह भी जानते हैं कि उस के कर्मचारियों को पटरी पर लाना आसान नहीं है क्योंकि सब में अंदर तक सरकारी तानाशाही, मनमानी और निकम्मेपन का वायरस घुसा हुआ है जिस की वैक्सीन किसी खरीदार उद्योगपति के पास नहीं है.

वैसे भी, किसी भी चीज का खरीदार अपने मुनाफे के लिए कुछ खरीदता है. एयर इंडिया खरीद कर नुकसान कौन उठाएगा? अगर केंद्र सरकार एयर इंडिया पर चढ़े कर्ज को खुद चुका दे तो भी नए खरीदार को पहले दिन से नुकसान होने लगेगा क्योंकि वह घाटे पर जो चल रही है.

एयर इंडिया सरकार को नुकसान पहुंचा रही है, फिर भी हम कहेंगे कि इसे चलते रहने दिया जाना चाहिए. दरअसल, सरकार को बहुत से काम बिना कारण के करने होते हैं जहां सीधे मुनाफा नहीं दिखता पर उन कामों का लाभ देश की जनता को मिलता है. तमाम खामियों के बाद एयर इंडिया खासी सही चलने वाली एयरलाइंस रही है.

एयर इंडिया के कर्मचारी आम जनता के ज्यादा नजदीक हैं. वे उस की भाषा बोलते हैं, उस के कल्चर को सम झते हैं. ग्राउंड स्टाफ हो या हवाई जहाज का, लोग उन्हें सहज लेते हैं, जैसे आम लग्जरी बस का कंडक्टर. इस के विपरीत, प्राइवेट एयरलाइनों के कर्मचारी अपने को आम जनता से श्रेष्ठतर सम झते हैं.

वहीं, एयर इंडिया उन रूटों पर भी चलती है जहां यात्री कम होते हैं. कम यात्रियों को भी हवाई सुविधा मिलती रहे, यह राजनीतिक फैसला होता है. विदेश जाने वाले मजदूरों को एयर इंडिया की उड़ान ज्यादा अच्छी लगती है. जब भी कोई आपदा होती है तो एयर इंडिया ही आगे आती है क्योंकि उस के साथ टैंडर प्राइसिंग का  झमेला नहीं होता.

एयर इंडिया का नुकसान पोस्टऔफिस या सरकारी बैंकों जैसा नुकसान है. इसे जनसेवा के नाम पर जारी रखा जाना चाहिए. नुकसान कम करने के लिए चाहे कम हवाई जहाज हों, कम स्टाफ हो, कम सुविधाएं हों पर आम जनता को इंग्लिश मीडियम वाले वर्ग के आतंक से बचाने के लिए यह एयर इंडिया जरूरी है. याद रखें कि चीन से युद्ध करने वाले जवानों में एयर इंडिया के स्टाफ जैसे लोग हैं, ऊंची जातियों के इंग्लिश मीडियम वाले नहीं.

भारतीय अमेरिकी और कमला

हालांकि मार्च 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत करते हुए ‘एक बार फिर मोदी सरकार’ की तर्ज पर ‘फिर एक बार ट्रंप सरकार’ का नारा लगा दिया था लेकिन फिर भी भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों में से दोतिहाई जो बाइडेन और कमला हैरिस की टीम को पसंद कर रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी काफी हद तक एकजैसे शासक हैं. रूस के राष्ट्रपति  व्लादिमीर पुतिन और तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यप एर्दोगन भी इसी कैटेगरी के नेता  हैं जो संविधान, कानून, व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं को अपने हाथ का मैल सम झते हैं जो कोरोना की तरह साबुन से 20 सैकंड हाथ धोने के बाद चला जाएगा. चारों ने देशों को एक गर्त में धकेल दिया है. कोरोना इस का बड़ा उदाहरण रहा है और इस ने इन चारों देशों में जम कर पांव पसारे हैं. चारों देशों की अर्थव्यवस्था खतरे में है, प्रैस गुस्से में है और चारों देशों की आधी से ज्यादा जनता अपने शासकों से नाराज है.

हां, इन सब देशों में कट्टरवादियों की बड़ी जमात है जो अपनेआप को दूसरों से श्रेष्ठ सम झती है. डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक हैं पर वे ज्यादातर गोरे हैं व कट्टर ईसाई हैं. वे चाहते हैं कि दुनिया के देशों के लोग वहां आएं पर गुलामों की तरह रहें. ट्रंप गोरे पुलिसवालों को कालों को मारने की खुली छूट देते हैं, जबकि, भारत में मोदी दलितों और मुसलमानों को मारने, पुतिन अपने विरोधियों को जहर देने और तैय्यप एर्दोगन कट्टर इसलाम को पिछले दरवाजे से लाने की.

अमेरिका में बसे भारतीय मूल के बहुत लोग वे हैं जो भारत के ऊंचे घरों से पढ़लिख कर गए और वहां उन्होंने अच्छी जगह बना ली. ऐसा न चीनियों के साथ हुआ, न जापानियों के साथ और न कालों के साथ. ये सब लैटिनों की तरह मजदूरी के लिए अमेरिका आए थे और 5-7 पीढि़यों के बाद आज भी इन का उद्धार नहीं हो पाया है. भारतीय मूल के शिक्षितों ने अमेरिकियों के बराबर जगह बना ली और ये ही अमेरिका में हिंदू धर्म का झंडा उठाए हुए हैं और केवल यही ट्रंप समर्थक हैं.

इन भारतीय को वैसे भी बराबरी के अवसर और बराबरी के व्यवहार से कोई मतलब नहीं होता. ये भारतीय खून की महिला को उपराष्ट्रपति पद पर बैठा देख कर खुश नहीं होंगे क्योंकि वह महिला तो वर्णसंकर बन चुकी है. उस की मां ने एक काले ईसाई से शादी की थी और उक्त महिला यानी कमला हैरिस ने एक यहूदी से शादी की है. खून को शुद्ध रखने के समर्थक भारतीय मूल के अमेरिकियों की कमी नहीं है और वे ‘ट्रंप के साथ गोरों का खून ही शुद्ध रहे’ के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं. वे नरेंद्र मोदी की बात सिरआंखों पर रखते हैं, पर, अफसोस कि ट्रंप के दोहराने के बाद भी भारतीय मूल के दोतिहाई अमेरिकी ट्रंप के खिलाफ ही हैं.

चुनावों में पहले तय कर लेना सही नहीं है. इसलिए, अभी यह तो नहीं कहा जा सकता कि ट्रंप हार ही जाएंगे पर यह दिख रहा है कि ट्रंप और उन के समर्थक घबराए हुए हैं. कमला हैरिस भारतीय नहीं है, यह भी याद रखना चाहिए, कम से कम वह उस तरह की भारतीय नहीं है कि साउथ ब्लौक, जहां भारत का विदेश मंत्रालय है, खुश हो.

13 टिप्स: हेल्दी रहने में है जिंदगी का मजा

स्वस्थ, सुडौल बने रहना सभी को अच्छा लगता है पर भागदौड़ भरे जीवन में चाहते हुए भी बहुत सी चीजों और कामों को नजरअंदाज करना पड़ता है. इस का नतीजा यह होता है कि शरीर अस्वस्थ और स्थूल बनता चला जाता है, तब पछताने के सिवा इनसान के पास कुछ भी नहीं बचता. ऐसे में डाक्टर क्या सलाह देते हैं, यह जानने के लिए हम ने कुछ खास डाक्टरों से भेंट की. दिल्ली के बोन एंड जायंट्स केयर फाउंडेशन के निदेशक डा. सुभाष शल्या का कहना है, ‘‘यदि आप अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय अपने लिए निकाल कर उसे खर्च करें तो आप को जीने का अधिक मजा आएगा और आप वृद्धावस्था तक चुस्तदुरुस्त बने रहेंगे.’’

डा. शल्या से प्राप्त दिशानिर्देश पाठकों के लिए नीचे दिए जा रहे हैं ताकि वे भी उन का लाभ उठाएं और स्वस्थ रह कर जीवन का आनंद लें :

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1.फास्ट फूड से परहेज

फास्ट फूड को अपने जीवन से बिलकुल निकाल फेंकें और इस के स्थान पर हरी सागसब्जियां और ताजे फल खाएं. डब्बाबंद भोजन व जूस में कई रासायनिक पदार्थ मिले होते हैं जो सेहत को खराब करते हैं. बिस्कुट, नमकीन आदि भी न लें, जब कभी आप को कुछ अतिरिक्त खाने की इच्छा हो तो मूली, खीरा, तरबूज, पपीता, चीकू, अंगूर, संतरा, कीनू, टमाटर, आम या कोई अन्य मौसमी फल खाएं. इन से शरीर को रेशा मिलता है.

2.नियमित समय पर भोजन

नियमित रूप से 3 मुख्य आहार लें. नाश्ता, लंच और डिनर. इस के अलावा 2 छोटे आहार भी लें पर भोजन नियमित समय पर ही लें. इस से भी शरीर स्वस्थ रहता है और पेट पर दबाव नहीं रहता. नाश्ता पौष्टिक लें ताकि दिन भर काम करने की ऊर्जा बनी रह सके. 2 आहारों के बीच जब थकान लगे या भूख लगे तो कोई ताजा फल जैसे केला आदि खाएं या फिर एक कटोरी दही लें. खाने में सलाद अवश्य लें. रात्रि के भोजन से पहले सब्जियों का ताजा सूप लें.

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3.मौसमी फल, सब्जियां अवश्य खाएं

यों तो अब हर सब्जी लगभग हर मौसम में मिलने लगी है पर कुछ सब्जियां व फल किसी खास मौसम में अधिक होते हैं जैसे आम, खरबूजा, तरबूज, खीरा गरमियों में अधिक मिलते हैं. सेब, अंगूर, संतरा, कीनू सर्दियों में अधिक होते हैं. सब्जियों में साग, पत्तागोभी, फूलगोभी, मटर सर्दियों में बाजार में अधिक आते हैं और भिंडी, टिंडे, घीया, तोरी आदि गरमियों में अधिक आते हैं. यथासंभव मौसमी फल व सब्जियों का सेवन अधिक करें क्योंकि इन्हें उन्हीं दिनों में खाना अधिक लाभप्रद होता है.

4.भोजन के बाद झपकी

अगर आप घर पर हैं तो दोपहर के भोजन के बाद थोड़ी देर आराम जरूर करें ताकि शरीर में ऊर्जा पुन: जमा हो सके. यदि आप दफ्तर में हैं तो खाने के बाद थोड़ी देर के लिए आंखें बंद कर लें. इस से आप दोबारा काम करने के लिए पुन: तैयार हो जाएंगे.

5.पर्याप्त नींद

रात को पूरी नींद लें और सोने का समय निश्चित रखें. नींद पूरी होने पर शरीर चुस्त रहता है. जिन लोगों की नींद पूरी नहीं होती वे अगले दिन चुस्ती से काम नहीं कर पाते. पर्याप्त नींद शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है.

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6.गहरी सांसें लें

सुबह खुले वातावरण में लंबीलंबी गहरी सांसें लें. इस क्रिया से शरीर को अधिक आक्सीजन मिलती है. इसी तरह लंबी व गहरी सांसें छोड़ते समय शरीर के कई विषैले तत्त्व भी बाहर निकल जाते हैं जिन से आप कई तरह की बीमारियों से शरीर को बचा सकते हैं. यदि सुबह आप के पास समय न हो तो आप शाम को भी लंबी गहरी सांसें ले सकते हैं. इस से ध्यान भी केंद्रित होता है.

7.क्रोध से बचें

क्रोध से काम करने की शक्ति का हृस होता है और मन अशांत रहता है. काम में दिल नहीं लगता, स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी आता है. क्यों न इस का त्याग करें.

8.सकारात्मक सोच अपनाएं

सकारात्मक सोच जीवन को शक्ति प्रदान करती है और नकारात्मक सोच तनाव ही तनाव देती है जिस से इनसान अपने को बोझ समझने लगता है. इस का कुप्रभाव उस की सेहत और मन दोनों पर पड़ता है. सकारात्मक सोच अपनाकर जीवन को सार्थक बनाएं.

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9.नियमित सैर और व्यायाम करें

सुबह जल्दी उठें और नित्यकर्म से निवृत्त हो कर सैर पर जाएं क्योंकि सुबह की ताजा व शुद्ध हवा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है जिस से आप दिन भर ताजादम बने रहते हैं. यदि सैर पर जाना संभव न हो तो घर पर व्यायाम करें. व्यायाम से शरीर की मांसपेशियां लचीली बनती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

10 साफसफाई पर ध्यान दें

सेहत का साफसफाई से गहरा रिश्ता है. यदि आप के आसपास का वातावरण साफसुथरा है तो आप रोगों से दूर रहेंगे. मौसम के अनुसार हर रोज स्नान कर, साफ वस्त्र पहनें. खुद को प्रदूषण से दूर रखें. प्रदूषण भी रोगों को निमंत्रण देने में सहायक होता है.

11.बुरी आदतों का त्याग करें

आप अधिक चाय, काफी, शीतल पेय पीने के शौकीन हैं तो इन का सेवन कम कर दें. कोला हड्डियों को कमजोर करता है. चाय, काफी से शरीर को कैफीन की मात्रा अधिक मिलती है, जिस से भूख कम लगती है. मांसाहारी भोजन, शराब और तंबाकू आप की तामसिक वृत्तियों को बढ़ावा देते हैं. इन का त्याग आप के स्वास्थ्य के लिए हितकर है.

12.खुश रहें

तनाव, चिंता और दुख सेहत के दुश्मन हैं, इन से नाता तोड़ें. खुश रह कर आप चिंता व तनाव पर आसानी से काबू पा सकते हैं. प्रसन्न रहने पर ही दिमाग सही सोचता है, दुखी रह कर दिमाग भी पूरा काम नहीं करता. अच्छी सेहत का राज हंसी है. अपने आसपास के वातावरण को खुशनुमा बनाएं.

13.प्रकृति से दोस्ती रखें

प्रकृति आप को ऊर्जा व चेतना प्रदान करती है तो इस से दूरी क्यों? जब भी प्रकृति का आनंद उठाने का अवसर मिले, उसे छोड़ें नहीं, बल्कि उस का पूरा लाभ उठाएं. घर पर कुछ पौधे रखें, सुबह आसमान निहारें, पेड़पौधों को देखें, पक्षियों की गतिविधियों को देखें. इस से बहुत आनंद मिलता है. रात में खुले आसमान को देखें, चांदसितारों को देखें, कितना अच्छा लगता है प्रकृति का साथ. यह न भूलें कि स्वस्थ रहने में ही जीवन का असली मजा है.

सहारा- भाग 3 : पप्पू के चले जाने से कैसे वीरान हो गई धनराज-आशा की जिंदगी

सेठ धनराज के बंगले में मातम छाया हुआ था. उन का इकलौता बेटा पप्पू कांति प्रसाद प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था. 4 दिन पहले जब वह स्कूल गया तो लौट कर नहीं आया.

धनराज की पत्नी आशा खुद बेटे को स्कूल लेने जाती थी. उस दिन किसी कारणवश वह समय पर नहीं पहुंच सकी थी. स्कूल के द्वार के पास पप्पू अपनी मां का इंतजार कर रहा था. जब वह वहां नहीं पहुंची तो वह अकेला सड़क पार करने लगा. परंतु अचानक ही तेज गति से एक ट्रक आया और पप्पू को कुचलता हुआ चला गया. घटनास्थल पर ही उस की मृत्यु हो गई थी.

आशा का रोरो कर बुरा हाल था. वह एक ही रट लगाए हुए थी, ‘‘मुझे मेरा पप्पू चाहिए, मुझे मेरा पप्पू चाहिए. मैं उस के बिना जिंदा नहीं रह सकती…’’

धनराज ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आशा, जीवन में इंसान को कुछ दुख ऐसे भी मिलते हैं जिन्हें उसे झेलना ही पड़ता है. हिम्मत से काम लो.’’

आशा ने सिसकियां लेते हुए कहा, ‘‘आप जानते हैं कि जब पप्पू का जन्म हुआ था तो मुझे औपरेशन करवाना पड़ा था. अब तो मैं दूसरे बच्चे को जन्म देने में भी असमर्थ हूं. मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता. पप्पू के जाने के बाद मेरी जीने की तमन्ना ही खत्म हो गई है.’’

‘‘मृत्यु एक कड़वी सचाई है, हमें उस सचाई का सामना करना होगा,’’ धनराज का स्वर भी उदासी में डूबा हुआ था.

तभी द्वार पर घंटी बजी. धनराज ने दरवाजा खोला. सामने डाकिया खड़ा था. धनराज को एक लिफाफा दे कर वह चला गया.

धनराज आशा के पास बैठ कर लिफाफा खोलने लगे. पत्र देख कर प्रतीत होता था कि वह विदेश से आया था. धनराज के पिता कनाडा में रहते थे, इसीलिए उन्होंने सोचा कि पिताजी का ही पत्र होगा.

पहले धनराज और आशा भी कनाडा में रहते थे. परंतु उन दोनों को वहां की सभ्यता और वातावरण रास नहीं आया था. उस के पिता केदारनाथ कई वर्षों से भारत में बसने की बात सोच रहे थे, परंतु कनाडा के व्यापार को समेटना आसान न था.

धनराज ने पत्र खोल कर पढ़ना शुरू किया :

‘प्रिय बेटा धनराज,

‘प्यार,

‘मैं ने कनाडा में सारी संपत्ति बेच दी है और शीघ्र ही मैं भारत पहुंच रहा हूं. जैसे ही मुझे हवाई जहाज का टिकट प्राप्त होगा, मैं सफर शुरू कर दूंगा. शायद यह पत्र पहुंचने से पहले ही मैं खुद भारत पहुंच जाऊं.

‘मुझे दिल का दूसरा दौरा पड़ा था. डाक्टर ने आराम करने को कहा है. उन का कहना है कि अगर मैं व्यापार में और दौड़धूप करूंगा तो मुझे किसी भी समय तीसरा दौरा पड़ सकता है और मेरी मृत्यु हो सकती है.

‘मैं अपनी शेष जिंदगी अपने लाड़ले पोते पप्पू के साथ हंसतेखेलते गुजारना चाहता हूं. वह जब 6 महीने का था तब की उस की तसवीरें मेरे पास हैं. बस, उन्हीं को प्यार करता रहता हूं. बाकी बातें मेरे पहुंचने पर होंगी. पप्पू को मेरी तरफ से जीभर कर प्यार देना. उस से कहना कि उस के दादा उस के लिए नईनई वस्तुएं और खिलौनों का भंडार ले कर आ रहे हैं. मैं ने उस के लिए एक खास किस्म की खिलौना गाड़ी खरीदी है. उसे देख कर पप्पू बहुत खुश होगा. उम्मीद है, बहू ठीकठाक होगी.

‘तुम्हारा पिता

‘केदारनाथ.’

पत्र पढ़ते ही धनराज के हाथपांव कांपने लगे, परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपनेआप को संभाल लिया.

आशा घबरा कर बोली, ‘‘अब क्या होगा? जब पिताजी को पता चलेगा कि पप्पू अब इस दुनिया में नहीं है तो शायद वे यह सदमा सहन न कर सकें. उन्हें तीसरा दौरा पड़ सकता है. पप्पू तो चला गया, कहीं पिताजी भी…’’

धनराज ने उस की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘तुम सिर्फ दुखभरी बातें ही क्यों सोचती हो? निराशा और घबराहट से मुसीबत टल तो नहीं जाती. फिर पिताजी को यहां पहुंचने में अभी थोड़ा वक्त है. तब तक सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए?’’ धनराज खुद अंदर से घबरा गए थे परंतु अपनी पत्नी को बराबर तसल्ली दे रहे थे.

लगभग 2 घंटे बाद एक टैक्सी बंगले में प्रविष्ट हुई. धनराज ने लपक कर देखा. उन के पिता टैक्सी का किराया चुका रहे थे.

‘‘पिताजी आ गए हैं, आशा. जल्दी से अपना बिगड़ा हुआ हुलिया ठीक करो. घबराना नहीं. अपने पर तुम्हें काबू रखना होगा. अब और अधिक सोचनेसमझने का वक्त नहीं है.’’

केदारनाथ ने कमरे में प्रवेश किया. आशा और धनराज दोनों हक्केबक्के हो कर उन्हें घूर रहे थे.

‘‘क्या बात है, मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो, मेरा लाड़ला पोता कहां है?’’

जल्दी से दोनों ने संभलते हुए केदारनाथ के चरण स्पर्श किए.

शीघ्र ही उन्होंने फिर पप्पू के बारे में पूछा. धनराज और आशा इतनी जल्दी इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं थे. वे बगलें झांकने लगे. तभी आशा ने शीघ्रता से और घबराहट में बिना सोचेसमझे कह दिया, ‘‘आप आइए पिताजी, बैठिए. पप्पू अपनी कक्षा के बच्चों के साथ पिकनिक पर गया है. 5 बजे शाम को मैं उसे स्कूल से ले आऊंगी.’’

केदारनाथ ने घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘अब तो 5.30 बज चुके हैं. तुम दोनों अभी यहीं हो. क्या ऐसे ही देखभाल करते हो मेरे पोते की?’’ फिर थोड़ा गुस्से से वे बोले, ‘‘ड्राइवर को पप्पू के स्कूल का पता मालूम है?’’

‘‘मालूम तो है पिताजी, लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. देख लिया, तुम दोनों कितने लापरवाह हो. आज से उस की देखभाल मैं करूंगा. मैं ड्राइवर के साथ कार ले कर पप्पू के स्कूल जा रहा हूं. मैं अपने पोते को पहचान सकता हूं.’’

केदारनाथ बाहर निकल गए. आशा और धनराज एकदूसरे का मुंह देखते रह गए.

‘‘अब क्या होगा?’’ आशा ने घबराए स्वर में पति से पूछा.

‘‘हिम्मत से काम लो, जो होगा, ठीक ही होगा.’’

ड्राइवर केदारनाथ को सीधा पप्पू के स्कूल ले गया. वहां पहुंच कर उन्हें मालूम हुआ कि पिकनिक बस कभी की वहां पहुंच चुकी है और अभिभावक बच्चों को अपने साथ ले गए हैं. परंतु एक बच्चे को लेने कोई नहीं आया था, इसलिए वह बच्चा चौकीदार के पास बैठा हुआ था.

जब केदारनाथ चौकीदार के पास गए तो देखा कि एक बच्चा एक पिल्ले को गोद में लिए हुए बैठा है. वह सूनीसूनी नजरों से इधरउधर देख रहा था. केदारनाथ ने उसे गौर से देखा तो नन्हा भी उन की तरफ देख कर मुसकराने लगा. पप्पी भी जोरजोर से पूंछ हिलाने लगा.

केदारनाथ ने प्यार से पुकारा,

‘‘पप्पू बेटा.’’

तभी पप्पी ने उस के पांव पर गुदगुदी की तो वह हंसने लगा. केदारनाथ ने भी खुशी से झूम कर नन्हे को अपनी गोद में उठा लिया और भावविभोर हो कर उसे बेतहाशा प्यार करने लगे.

वह नन्हे का माथा चूमते हुए बोले, ‘‘अब मैं आ गया हूं, बेटा. मैं तुम्हारा दादा हूं. मैं तुम्हारे लिए ही यहां आया हूं. अब हम साथसाथ रहेंगे. तुम्हारे मातापिता की लापरवाही देख ली है मैं ने. चलो, घर चलते हैं.’’

उधर, आशा और धनराज उदास बैठे हुए स्थिति का सामना करने की कोशिश कर रहे थे.

आशा ने डूबती आवाज में कहा, ‘‘मुसीबत पर मुसीबत खड़ी हो रही है. अब जब पिताजी को स्कूल में पप्पू नहीं मिलेगा, तब क्या होगा?’’

‘‘तुम्हें इस तरह झूठ नहीं बोलना चाहिए था. एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं. फिर जब पिताजी को सचाई का पता चलेगा…’’

धनराज अपना वाक्य पूरा कह भी नहीं पाए थे कि कार बंगले में प्रविष्ट हुई. उन्होंने देखा कि केदारनाथ एक बच्चे के साथ कार से बाहर निकल रहे हैं. उन्होंने बच्चे को अपनी छाती से चिपका रखा था. यह देख धनराज और उन की पत्नी आश्चर्यचकित हो कर एकदूसरे को प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे. दोनों असमंजस में पड़ गए. स्तब्ध से वे कभी बच्चे को देखते तो कभी पिताजी को, और कभी दुम हिलाते हुए पप्पी को.

नदजीक पहुंच कर केदारनाथ ने कहा, ‘‘तुम दोनों इस तरह हैरान हो कर हमें क्यों देख रहे हो? तुम क्या समझे थे कि मैं पप्पू को पहचान नहीं सकूंगा. देखो, मैं ने अपने बेटे को पहचान लिया. लेकिन इस लापरवाही के लिए मैं तुम लोगों को माफ नहीं करूंगा. पप्पू बेचारा अकेला चौकीदार के पास बैठा हुआ था. लेकिन कोई बात नहीं. आज से यह मेरे साथ ही रहेगा और मेरे कमरे में सोएगा,’’ वे नन्हे को ले कर ऊपर वाले कमरे में चल पड़े.

तभी धनराज ने कहा, ‘‘लेकिन पिताजी, आप मेरी बात तो सुनिए.

यह बच्चा…’’

‘‘नहीं, अब मैं बहुत थक गया हूं. बाकी बातचीत कल होगी. रात को मेरा और पप्पू का भोजन मेरे कमरे में भेज देना. और हां, पप्पू के पप्पी के लिए भी खाने को कुछ भेज देना.’’

धनराज और आशा अपने कमरे में बैठे हुए थे. रात गहरी हो रही थी, लेकिन नींद उन के नेत्रों से कोसों दूर थी.

‘‘पप्पू की मृत्यु के कारण मेरा तो पहले ही बुरा हाल था, ऊपर से यह नई मुसीबत. पिताजी न जाने किस का बच्चा उठा लाए हैं,’’ आशा धीरे से बोली.

‘‘मैं सोच रहा हूं कि पिताजी को सचाई बता देनी चाहिए, नहीं तो कोई और बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. हम कितना भी प्रयत्न करें, सचाई को छिपा नहीं सकते. पिताजी को पप्पू की मृत्यु को सहन करना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां, आप ठीक कहते हैं. एक न एक दिन तो सचाई सामने आ ही जाएगी. फिर हम कब तक झूठ पर झूठ बोलते रहेंगे.’’

‘‘हम कल ही पिताजी को सचाई

बता देंगे.’’

लंबे सफर की थकान के बावजूद देर रात तक केदारनाथ उस से बातें करते रहे. नन्हा भी अपनी तोतली जबान में उन के साथ बतियाता रहा. उस की प्यारी बातों ने केदारनाथ का मन मोह लिया. जब उन्होंने नन्हे को खिलौना गाड़ी दी तो वह खुशी से झूम उठा.

सुबह धनराज, आशा, केदारनाथ और नन्हा एकसाथ नाश्ता कर रहे थे. केदारनाथ ने नन्हे को अपनी गोद में बिठा रखा था. वे दोनों आपस में बातें कर रहे थे. मेज के नीचे फर्श पर पप्पी बैठा हुआ कुछ खा रहा था.

धनराज और आशा बारबार नन्हे को निहार रहे थे. न चाहते हुए भी उन की नजर उस की ओर उठ जाती थी. धनराज अपने पिताजी को सच बताने का अवसर खोज रहे थे. उन का दिल जोरजोर से धड़क रहा था.

तभी केदारनाथ बोल पड़े, ‘‘चलो, पप्पू बेटा, हम बाहर बगीचे में जा कर बैठते हैं. पप्पी को भी बुला लो. बाहर बहुत सुहावना मौसम है.’’

पिताजी के जाने के बाद धनराज ने कहा, ‘‘आशा, एक बात कहूं?’’

‘‘जी, कहिए.’’

‘‘क्या उस बच्चे में तुम्हें पप्पू की छवि नजर नहीं आती? मुझे तो बिलकुल पप्पू जैसा ही दिखाई देता है.’’

‘‘हां, मैं भी आप से यही कहने वाली थी. उसे देख कर मैं तो भूल ही गई थी कि पप्पू हमारे बीच नहीं है.’’

‘‘लेकिन वह बच्चा है किस का? पिताजी कहां से लाए हैं उसे?’’

‘‘इस का उत्तर तो वही दे सकते हैं.’’

तभी केदारनाथ ने भीतर आते हुए कहा, ‘‘क्या खुसुरफुसुर हो रही है, जरा हम भी तो सुनें.’’

‘‘पिताजी, आप जरा मेरे साथ मेरे कमरे में आइए, आप से जरूरी बात करना चाहता हूं,’’ धनराज बोले.

दूसरे कमरे में पहुंच कर धनराज ने पप्पू के बारे में सबकुछ सचसच बताते हुए उस की मौत का समाचार भी उन्हें सुना दिया.

शोक समाचार सुनते ही केदारनाथ अवाक् रह गए. उन के होंठ खुले के खुले रह गए. उन के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. वे धीरे से पलंग पर बैठ गए. आशा भी तब तक वहां पहुंच चुकी थी.

धनराज ने कहा, ‘‘अपनेआप को संभालिए, पिताजी.’’

केदारनाथ ने दुखभरे स्वर में कहा, ‘‘पप्पू की मौत की खबर सुन कर मुझे अति दुख हुआ बेटा, परंतु अफसोस इस बात का भी है कि तुम ने मुझे इतना कमजोर समझा.

‘‘मृत्यु एक कड़वा सत्य है बेटा, इसे हर इंसान को सहन करना पड़ता है.’’

नन्हा धीरेधीरे चलता हुआ वहां पहुंच गया. फिर वह केदारनाथ की गोद में जा कर बैठ गया.

केदारनाथ ने उस को अपनी छाती में भींच लिया और कहा, ‘‘मेरे लिए तो यही पप्पू है. पप्पू को तो मैं ने देखा भी नहीं था. उस से तो जुदा हो गया परंतु इस बच्चे से जुदा न हो सकूंगा,’’ उन्होंने धनराज और आशा से कहा, ‘‘अब जो होना था सो हो गया. पप्पू की याद में रोरो कर जीवन व्यतीत करने से क्या यह बेहतर नहीं कि तुम दोनों इस बच्चे को ही अपना पुत्र, अपना पप्पू समझो? परिस्थिति से समझौता कर लो बेटा.’’

आशा ने कहा, ‘‘आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली, पिताजी. इस तरह मुझे जीने का सहारा मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन यह बच्चा है किस का? पिताजी, आप को यह कहां से मिला?’’

धनराज के प्रश्नों का उत्तर केदारनाथ ने संक्षेप में दे दिया.

धनराज सोचते हुए बोले, ‘‘सब से पहले हमें पुलिस स्टेशन जाना चाहिए. हो सकता है कि इस के मातापिता ने वहां रपट दर्ज करवाई हो.’’

आशा, केदारनाथ और धनराज पुलिस थाने गए. नन्हा भी उन के साथ था. वहां जा कर उन्होंने थानेदार को नन्हे के बारे में सब कुछ बता दिया.

‘‘एक बच्चा विद्यावती अनाथालय से गुम हो गया था. उस की रपट हमारे पास दर्ज है. शायद यह वही बच्चा हो.’’ थानेदार ने कहा.

धनराज ने कहा, ‘‘कृपा कर के आप हमारे साथ अनाथालय चलिए, अभी इसी वक्त. हमारे पास कार है, 10 मिनट में वहां पहुंच जाएंगे.’’

वे सब नन्हे को ले कर विद्यावती अनाथालय गए. मुख्य अधिकारी से मिल कर थानेदार के सामने धनराज और आशा ने नन्हे को विधिवत गोद ले लिया.

फिर वे सब हंसीखुशी घर लौट आए. पुत्र वियोग में दुखी मांबाप को बेटा मिल गया. दादा को पोता मिल गया और नन्हे को सहारा मिल गया.

जब वे बंगले पर पहुंचे तो पप्पी व्याकुल हो कर इधरउधर दौड़ रहा था. नन्हे को देखते ही वह दुम हिलाता हुआ उस के पास गया और उस के पांवों पर गुदगुदी करने लगा. नन्हे ने हंसते हुए उसे गोद में उठा लिया और बंगले में प्रविष्ट हो गया.

धनराज के बंगले में फिर से रोशनी जगमग करने लगी.

सहारा- भाग 2 : पप्पू के चले जाने से कैसे वीरान हो गई धनराज-आशा की जिंदगी

पुलिस के 2 सिपाही आपस में बातचीत करते जा रहे थे. एक ने कहा, ‘‘कहां गया होगा? अगर नहीं मिला तो थाने जा कर क्या मुंह दिखाएंगे. थानेदार साहब बहुत नाराज होंगे.’’

दूसरा बोला, ‘‘हुलिया क्या बताया था साहब ने?’’

‘‘काली आंखें, भूरे बाल, नाक चपटी, दाएं पांव पर एक सफेद निशान वगैरहवगैरह.’’

‘‘भई, उसे खोजतेखोजते मैं तो थक कर चूर हो गया हूं. पता नहीं उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया?’’

‘‘बच्चा है, ज्यादा दूर नहीं जा सकता. हिम्मत मत हारो, चलो, उस तरफ देखते हैं,’’ बतियाते हुए वे आगे निकल गए.

बाजार कभी का बंद हो चुका था. सड़कें सुनसान थीं. रात गहराने लगी थी. ठंडी, तेज हवा चल रही थी. नन्हे और पप्पी की टांगें दिनभर भटकतेभटकते थक चुकी थीं. रात के अंधेरे में सुनसान सड़क पर चलतेचलते वे दोनों एक बंद दुकान के आगे पड़ी एक बड़ी मेज के नीचे जा कर बैठ गए.

इधरउधर आंखें घुमाते हुए दोनों सिपाही आगे निकल गए. वे उन दोनों को नहीं देख सके क्योंकि जहां वे बैठे थे वहां अंधेरा था.

आंखों में निद्रा घिर आई थी. वे दोनों वहीं पर सोने का प्रयत्न करने लगे. ठंड के कारण वे थरथर कांप रहे थे.

अचानक नन्हे को पप्पी का स्वर सुनाई दिया. उस ने इधरउधर देखा. पप्पी का मुंह एक नाली में फंसा हुआ था. नन्हे ने उसे खींच कर बाहर निकाला तो देखा कि उस के मुंह में एक कपड़ा है, जिसे वह नाली के रास्ते दुकान के भीतर से बाहर खींचने का प्रयत्न कर रहा था. अब दोनों ने उस कपड़े को बाहर खींचा तो देखा कि वह एक छोटी सी चादर है.

नन्हे ने वह चादर अपने ऊपर ओढ़ ली. पप्पी भी उस के भीतर घुस गया. लेकिन समस्या अभी हल नहीं हुई थी. दोनों के पेट में चूहे दौड़ रहे थे. उन्हें भूख सता रही थी.

थोड़ी देर बार पप्पी उठ कर कहीं चला गया तो नन्हा अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा. वह दुबक कर बैठ गया. उस ने महसूस किया कि वह अपने मित्र के बिना नहीं रह सकता, उस के बिना वह एकदम अकेला है.

तभी पप्पी वापस आ गया. उस के मुंह में डबलरोटी थी, जिसे वह बहुत कठिनाई से उठा कर लाया था. उस को देख कर नन्हे का चेहरा खिल उठा. दोनों ने मिल कर डबलरोटी खाई. पेट की आग तो ठंडी हो गई, परंतु समस्या अब भी हल नहीं हुई थी. उन्हें एक नल दिखाई पड़ा. लेकिन उस का मुंह इतना ऊंचा था कि वे वहां तक नहीं पहुंच सकते थे. वे होंठों पर जबान फेरते हुए नल को घूरने लगे. पप्पी कूद कर नन्हे के कंधे पर सवार हो गया, परंतु व्यर्थ. उस ने गरदन घुमाई, पर मदद करने वाला कोई न था. पप्पी नीचे कूद पड़ा. दोनों प्यासे ही वहां से लौट गए.

पौ फट चुकी थी. चारों ओर सफेदी छा गई थी. वे दोनों फुटपाथ के किनारे बैठे हुए थे. दूसरी तरफ से आ रहे दोनों सिपाहियों की निगाह उन पर पड़ी.

एक ने ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘वह रहा, पकड़ो, भागने न पाए.’’

उन के नजदीक पहुंच कर एक सिपाही ने जंजीर पप्पी के गले में डालते हुए राहत की सांस ली.

‘‘नाक में दम कर रखा था इस ने. रात को थाने में विधायक साहब का फोन आया था. कह रहे थे कि अगर पप्पी नहीं मिला तो हमें नौकरी से निलंबित कर दिया जाएगा. थानेदार भी गुस्से से लालपीले हो रहे थे. आखिर हम ने इसे पकड़ ही लिया.’’

पप्पी स्वयं को उन की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश में लगातार भूंक रहा था. वह उन के साथ नहीं जाना चाहता था. परंतु सिपाही जंजीर को खींचने लगा.

नन्हा उदास नजरों से उन्हें जाते हुए तब तक देखता रहा जब तक कि वे उस की नजरों से ओझल नहीं हो गए. पप्पी का स्वर अभी तक उस के कानों में गूंज रहा था.

पप्पी को खोजने वाले बहुत थे, परंतु नन्हे को ढूंढ़ने वाला कोई न था. वह फिर अकेला हो गया. उस का मित्र चला गया था, इसलिए वह बहुत दुखी था.

रंगबिरंगे फूलों भरे उद्यान में नन्हा घास पर बैठा हुआ था. सामने मैदान में उसी की उम्र के बच्चे खेलकूद में मग्न थे. उन से थोड़ी दूरी पर उन की अध्यापिका बैठी हुई थी. नन्हा उन को घूर रहा था.

तभी पप्पी वहां पहुंच गया और नन्हे के पांवों में गुदगुदी करने लगा. नन्हे ने जब उसे देखा तो खुशी के मारे जोरजोर से हंसने लगा. पप्पी उस के पांव चाट कर अपने प्यार का इजहार कर रहा था. वह जता रहा था कि वह अपने प्रिय मित्र को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता. नन्हे ने उसे गोद में बैठा लिया और उस के शरीर पर हाथ फेरने लगा.

थोड़ी देर बाद नन्हा भी बच्चों के साथ खेलकूद में मस्त हो गया. पप्पी भी नाचने लगा. शाम को जब बच्चे लौटने लगे तो नन्हा भी उन के साथ ही बस में सवार हो गया. अध्यापिका का ध्यान उस की तरफ नहीं गया.

नन्हे के पांवों के पास पप्पी भी चुपचाप बैठा हुआ था. वह भी कूदता हुआ बस में सवार हो गया था.

बस जब स्कूल के नजदीक पहुंची तो बच्चों का शोरगुल सुन कर सेठ धनराज की पत्नी आशा ने खिड़की से झांक कर देखा. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह भरे गले से पति की ओर देखते हुए बोली, ‘‘मेरा पप्पू भी इन बच्चों के साथ पिकनिक पर जाने वाला था. ये उसी की कक्षा के छात्र हैं.’’

मेरी पत्नी मुझ पर नामर्दी का आरोप लगा कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई है,मेरे पास सरकारी रिपोर्ट है कि मैं नामर्द नहीं हूं, क्या करूं?

सवाल
मेरी शादी को एक साल हो गया है, लेकिन मेरी पत्नी मुझ पर नामर्दी का आरोप लगा कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. मेरे पास सरकारी रिपोर्ट है कि मैं नामर्द नहीं हूं. लड़की के घर वाले मुझ पर 10 लाख रुपए देने का दबाव बना रहे हैं. क्या करूं?

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जवाब
आप तुरंत सारे ब्योरे और सुबूतों सहित पुलिस में रिपोर्ट लिखाएं और पत्नी व उस के घर वालों के खिलाफ अदालत में मुकदमा भी दायर करें. समाज व रिश्तेदारों में पत्नी की करतूतों का ढिंढोरा पीटने से?भी न चूकें. इस से उन की हिम्मत टूटेगी. बात आज नहीं तो कल उजागर होगी ही, इसलिए बिना डरे पुलिस और अदालत की मदद लें. ब्लैकमेलिंग के झांसे में आ कर किसी को एक धेला भी न दें.

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बिहारी किसानों के लिए बड़ा वरदान बना सोलर सिंचाई पंप 

 किसी भी फसल का उत्पादन उस को समय से दी जाने वाली सिंचाई पर निर्भर करता है. किसान भले ही खेती में उन्नत बीज और तकनीकी का प्रयोग कर लें, लेकिन फसल की सिंचाई समय पर न की जाए, तो फसल के पूरी तरह से नष्ट होने का खतरा बना रहता है.खेती में जिस तरह दिनोंदिन लागत बढ़ रही है, उसी तरह से खेती में आने वाली सिंचाई की लागत भी बढ़ी है जहां डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं वहीं बिजली बिल की बढ़ी कीमतें भी सिंचाई लागत बढ़ने का कारण बनी हैं.
इस के साथ ही सिंचाई के लिए उपयोग में लाए जाने वाले डीजल इंजन व बिजली मीटर के रखरखाव व मेंटेनैंस पर अलग से खर्च करना पड़ता है. ऐसे में किसानों को फसल की सिंचाई के लिए वैकल्पिक साधनों के उपयोग की तरफ कदम बढ़ाने की ज्यादा जरूरत है.बिहार भूजल के मामले में एक धनी राज्य है, फिर भी इतनी विशाल उपलब्धता के बावजूद पानी का उपयोग सिंचाई और घरेलू खपत के लिए निर्मित बुनियादी ढांचे की लागत पर निर्भर करता है. यहां आज भी पारंपरिक रूप से ज्यादातर हिस्से में डीजल आधारित पंप सैटों से ही सिंचाई की जाती है. ऐसी स्थिति में एक डीजल पंप संचालक किसानों से किराए के रूप में 180 रुपए प्रति घंटे तक ले लेता है.
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यह प्रति घंटे सिंचाई की लागत दर भी भौगोलिक बनावट और मौसम के हिसाब से बदलती रहती है. यहां ज्यादातर बोरिंग उथले पानी की सतह में स्थापित किए जाते हैं, इसलिए गरमी के मौसम में पानी की उपलब्धता कम हो पाती है. सामाजिक, आर्थिक स्थितियों, जलवायु परिस्थितियों और छोटे किसानों की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए सिंचाई के लिए ऊर्जा के अपरंपरागत स्रोत अधिक विश्वसनीय हैं.
यह कहा जा सकता है कि ऊर्जा की कमी और डीजल पंप की उच्च लागत के कारण किसानों को सौर ऊर्जा के साथ जाने की जरूरत है, जो विश्वसनीय और जरूरत के अनुसार उपयोग करने के लिए ज्यादा फायदेमंद है.
फसल सिंचाई की लागत में कमी लाने के लिए बिहार के कुछ जिलों में किसानों ने ऐसे ही वैकल्पिक साधनों का उपयोग शुरू किया है, जिन के जरीए पूरे गांव के किसान बेहद ही कम लागत में अपने खेतों की सिंचाई कर पाने में कामयाब हुए हैं.यह पहल आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम-भारत के द्वारा कुछ राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं जौन डियर, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक और गोदरेज के वित्तीय सहयोग से की गई है.
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इन संस्थाओं के सहयोग से बिहार के मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली व दरभंगा जिलों में प्रोग्राम के जरीए खेतीबारी को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक सोलर सिंचाई योजना की स्थापना की गई है.
इस कार्यक्रम से जुड़े बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि बिहार में समृद्ध भूजल संसाधन हैं. इतने विशाल जल संसाधन की उपलब्धता के बावजूद भी सिंचाई के लिए पानी का सही उपयोग नहीं हो पाता है.उन्होंने बताया कि बिहार के किसानों की एक बड़ी आबादी डीजल आधारित पंप सैटों से सिंचाई का काम करती है, जिस पर किसानों की प्रति एकड़ लागत अधिक आती है. यह लागत तब और भी बढ़ जाती है, जब डीजल और बिजली का रेट बढ़ जाता है. वहीं बिहार में किसानों द्वारा खेतों की सिंचाई के लिए जो बोरिंग इस्तेमाल में लाई जाती है, वह बहुत कम गहराई पर स्थापित होती है, जिस के चलते गरमियों में खेतों को पर्याप्त पानी भी नहीं मिल पाता है.
ऐसे में इन समस्याओं से किसानों को नजात दिलाने के लिए आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम-भारत द्वारा किसानों को संगठित कर सोलर पंप की स्थापना की गई है. इस की देखरेख और लागत बहुत कम तो है ही, साथ ही 400 फुट की गहराई की बोरिंग के चलते गरमियों में भी पर्याप्त पानी मिलता रहता है.
ऐसे करता है कामबिहार के गांवों में यह परियोजना एकेआरएसपी-इंडिया, सहयोगी वित्तीय संस्थाओं और किसानों के अंशदान से संचालित है. सोलर आधारित यह पंप5 एचपी क्षमता वाला होता है, जिसे 270 फुट से 400 फुट गहरे बोरवैल पर स्थापित किया गया है. इस की स्थापना लागत तकरीबन 7 लाख रुपए आती है. कुछ जगहों पर आकस्मिक स्थिति से निबटने के लिए डीजल से चलने वाला जनरेटर शैड भी स्थापित किया गया है. इस में कुछ हिस्सा सामुदायिक अंशदान के रूप में समुदाय को लगाना होता है.
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इस सोलर पंप के जरीए एक दिन में तकरीबन 1 लाख लिटर पानी बाहर आता है. इस से 20-25 एकड़ भूमि की सिंचाई आसानी से की जा सकती है. इस पंप से निकलने वाले पानी को एकत्रित करने के लिए एक टैंक का भी निर्माण किया गया है, जिस में पंप से निकलने वाला पानी एकत्रित भी होता है. इस टैंक से जुड़े पाइप को अंडरग्राउंड पाइप के जरीए खेतों में पहुंचाया जाता है.सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणाली के प्रयोग से फसलों के उत्पादन, उत्पादकता और किसानों की कुल आय में वृद्धि के बारे में जानकारी देते हुए एकेआरएसपीआई के सीओओ नवीन पाटीदार कहते हैं कि डीजल पंप की तुलना मे सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणाली में भारी लाभ है.
सौर आधारित सिंचाई प्रणाली में किसान पानी की पहुंच और अच्छी गुणवत्ता यानी प्रवाह की वजह से डीजल आधारित सिंचाई की तुलना में अधिक भूमि की सिंचाई कर सकते हैं. इस के अलावा वे अब डीजल व बिजली की तुलना में सस्ती दरों पर पानी हासिल कर रहे हैं, इसलिए उन के पास किसी विशेष फसल खासकर सब्जियों के लिए अधिक सिंचाई करने और अधिक पैदावार हासिल करने का बेहतर मौका होता है.
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आकस्मिक स्थिति के लिए है यह व्यवस्था
मौसम खराब होने की स्थिति में सोलर पैनल के काम न करने या सुबह जल्द सिंचाई करने की स्थिति में इस सोलर पंप के साथ जनरेटर सैट और लाइट का कनैक्शन भी लगाया गया है, जो धूप न रहने की अवस्था में भी पंप को चलाता है. इस के लिए पंप को एसी और डीसी दोनों स्थितियों में चलाने की सुविधा मोटर के साथ जोड़ी गई है. इस सुविधा के चलते किसानों की फसल को कभी भी सिंचाई की देरी के चलते नुकसान नहीं उठाना पड़ता है.
किसानों का समूह करता है संचालन
इस सोलर पंप के संचालन और देखरेख की पूरी जिम्मेदारी किसानों के समूह की होती है. इन्हीं किसानों के समूह के नाम पर ये सोलर पंप स्थापित किए गए हैं. इस समूह में एक अध्यक्ष, एक सचिव और एक कोषाध्यक्ष का पद होता है, बाकी 14 सदस्य होते हैं. इस समूह में महिलापुरुष सहित सभी वर्ग के लोगों को समान भागीदारी दी गई है. इस पंप के जरीए होने वाली समस्त आय का लेखाजोखा इस समूह के कोषाध्यक्ष के जिम्मे होता है. इस से होने वाली आय को इसी तरह के दूसरे कामों पर खर्च किया जाता है.
सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणाली में किसानों की सामुदायिक भागीदारी की चर्चा करते हुए आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अपूर्वा ओ?ा बताते हैं कि किसी भी समुदाय संचालित मौडल की स्थिरता एवं निरंतरता के लिए सामुदायिक स्वामित्व की बहुत आवश्यकता होती है.
इन सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणालियों की स्थापना के दौरान समुदाय ने शुरुआत से ही एक प्रमुख भूमिका निभाई है यानी खेतों की मैपिंग, सार्वजनिक योगदान का संग्रह, सिंचाई संचालन समूह का गठन, निर्माण कार्य को ठीक से प्रबंधित करना आदि.
चूंकि किसानों का समूह खुद सौर सिंचाई प्रणाली के सभी तत्त्वों की देखभाल करता है, इसलिए निर्माण कार्य किए जाने के बाद एकेआरएसपीआई की भागीदारी केवल तकनीकी मार्गदर्शन, डाटा रिकौर्ड करने और सिस्टम की प्रभावशीलता का विश्लेषण करने के लिए होती है.
मुजफ्फरपुर जिले के मेघ रतवारा गांव में संचालित सामूहिक सोलर सिंचाई योजना के अंतर्गत स्थापित बाबा खगेश्वरनाथ सामूहिक सिंचाई विकास समिति के अध्यक्ष गौतम प्रसाद कुशवाहा ने बताया कि जिस भी किसान को इस पंप के जरीए सिंचाई करनी होती है, उसे 4 दिन पहले सिंचाई आपरेटर के पास सूचना देनी होती है, जिस से उस किसान की फसल को समय से पानी उपलब्ध कराया जा सके. इस के लिए किसान से 100 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से सिंचाई शुल्क लिया जाता है, जिस में से  30 रुपए आपरेटर का शुल्क शामिल होता है.
किसानों को सिंचाई सुविधा पहले आओ पहले पाओ के आधार पर ही दी जाती है. इस समूह में पारदर्शिता बनी रहे, इस के लिए हर साल पदाधिकारियों का चुनाव किया जाता है, साथ ही हर 2 साल पर सदस्यों का भी चुनाव किया जाता है. इस पंप की समस्त देखभाल की जिम्मेदारी इस समूह के सदस्य ही निभाते हैं. आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम इस समूह में मात्र मार्गदर्शक और संरक्षक की भूमिका में ही है.
शिवगंगा सामूहिक सिंचाई विकास समिति, हरपुर (मुजफ्फरपुर) की अध्यक्ष रेखा देवी सब्जियों की खेती की तरफ उत्साह से दिखाते हुए बताती हैं कि चूंकि पानी की उपलब्धता की समस्या नहीं है, इसलिए अब हम साल के हर महीने में मौसमी सब्जियों की सघन खेती कर पा रहे हैं.
चुनौतियों के विषय मे पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि कभीकभी खराब मौसम जैसे कुहरा या घना बादल छाए रहने पर सौर आधारित सिंचाई धीरेधीरे काम करती है. हालांकि इस बात की काफी संभावना होती है कि इस समय फसलों की सिंचाई नहीं की जाती है, क्योंकि कुहरे व बारिश की अवधि में फसलों के लिए पानी की जरूरत भी कम हो जाती है. इसलिए, यह किसानों के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है.
समय से पानी की उपलब्धता किसानों में ला रही खुशहाली एकेआरएसपीआई के सीटीओ उमेश देसाई बताते हैं कि सोलर पंप के जरीए हर समय उपलब्ध रहने वाली सिंचाई व्यवस्था के चलते किसानों द्वारा ली जाने वाली फसलों के उत्पादन में वृद्धि के रूप में देखी जा सकती है. इस के चलते किसानों की आय में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है.
सामूहिक सोलर सिंचाई योजना के चलते असिंचित भूमि के सिंचित भूमि में बदलने से भी किसानों की आय में इजाफा हो रहा है. किसान विभिन्न तरह की सब्जियों और फसलों को लेने में सक्षम हो पा रहे हैं. इस से किसान परिवारों में भी पौष्टिक भोजन के सेवन के चलते पोषण स्तर में वृद्धि देखने को मिल रही है.
किसान परिवारों को खेती से होने वाली आय में इजाफा होने के चलते गांव से पलायन की दर में भी कमी आ रही है.

सहारा- भाग 1 : पप्पू के चले जाने से कैसे वीरान हो गई धनराज-आशा की जिंदगी

विद्यावती अनाथालय के भीतर वाले मैदान में कुछ अनाथ बच्चे रबड़ की गेंद से खेल रहे थे. उन की आयु 10-12 वर्ष थी. वे निशाना साध कर एकदूसरे की पीठ पर गेंद से प्रहार करने का प्रयत्न करते थे और बचतेबचते इधरउधर भाग रहे थे. जब गेंद किसी बच्चे की पीठ पर लगती तो सब एकसाथ शोर मचाने लगते.

थोड़ी ही दूर सब से अलगथलग एक नन्हा बच्चा बैठा हुआ था. उस की उम्र लगभग 5 वर्ष थी. उस का ध्यान गेंद से खेल रहे बच्चों की तरफ नहीं था. वह अपनेआप में मस्त जमीन पर बैठा घास के साथ खेल रहा था. सूख कर टूटे और बिखरे हुए घास के तिनकों को उठा कर वह हरीभरी घास में मिलाने का प्रयत्न कर रहा था. वह कभी मुसकरा देता और कभी उदास हो जाता.

‘डगडग, डगडग…’ उसे आश्रम के बाहर सड़क की ओर से आती ध्वनि सुनाई पड़ी. तभी उस की तंद्रा टूटी. उस ने सिर उठा कर देखा.

सामने अनाथालय का लोहे की सलाखों का मुख्यद्वार था. मोटीमोटी सलाखों में थोड़ाथोड़ा फासला था. जब किसी को भीतर या बाहर आनाजाना होता तो चौकीदार उसे खोलता था. नजदीक ही टिन का एक छप्पर बना हुआ था, जहां चौकीदार बैठता था.

‘डगडग, डगडग…’ ध्वनि अब करीब से सुनाई दे रही थी. वह नन्हा एकटक उसी ओर निहार रहा था. अचानक वह उठा और मुख्यद्वार की ओर चल पड़ा.

लोहे की सलाखों के बीच में से उस ने देखा कि एक महिला सिर पर टोकरी उठाए जा रही है और उस के पीछे एक खिलौना गाड़ी सरक रही है.

उस महिला ने एक मोटे धागे से खिलौना गाड़ी को बांध रखा था और धागा अपने हाथ में पकड़ रखा था. लकड़ी की 2 पतली डंडियां उस गाड़ी पर बारीबारी से प्रहार करती थीं. इसी कारण ‘डगडग, डगडग’ की ध्वनि उभर रही थी.

वह उच्च स्वर में बोल रही थी, ‘‘खिलौना गाड़ी ले लो, खिलौना गाड़ी…’’

नन्हे का ध्यान उस खिलौना गाड़ी वाली महिला की तरफ नहीं था. उस का ध्यान तो उस की आवाज, गाड़ी के स्वर और खिलौना गाड़ी पर केंद्रित था.

जैसे ही खिलौना गाड़ी छोटेछोटे 4 पहियों पर सरकती हुई द्वार के सामने से गुजरी, नन्हा द्वार की मोटी सलाखों के छोटे फासले में से घुस कर सरकता हुआ द्वार से बाहर निकल गया.

चौकीदार कुछ दूरी पर बैठा हुआ था. मैदान के दूसरी ओर कुछ महिलाएं और पुरुष मीठी धूप का आनंद उठाते हुए गपशप में मशगूल थे. वे अनाथ बच्चों के शिक्षक व संरक्षक थे. किसी का भी ध्यान उस नन्हे बालक की तरफ नहीं गया.

सड़क पर कई वाहन आजा रहे थे. फुटपाथ पर आगेआगे वह महिला जा रही थी, उस के पीछे ‘डगडग’ करती खिलौना गाड़ी सरक रही थी. उन के पीछे नन्हा अपने नन्हे पांवों से लंबे डग भरने का प्रयत्न करते हुए उस गाड़ी को पकड़ने की भरपूर कोशिश कर रहा था. 3-4 बार वह इस कोशिश में नाकाम हो चुका था.

धीरेधीरे फासला बढ़ता गया. वह महिला और खिलौना गाड़ी दूर निकल गई. नन्हा काफी पीछे छूट गया. अब खिलौना गाड़ी उस की आंखों से ओझल हो गई थी.

सड़क पर बहुत भीड़ थी. स्कूटर, साइकिलें, कारें और ट्रक एक तरफ से दूसरी तरफ भागे जा रहे थे. फुटपाथ पर भी आमदरफ्त करते लोगों की भीड़ थी. परंतु नन्हा एकदम अकेला था. वह अकेला ही किसी अनजान डगर की ओर बढ़ता चला जा रहा था. वह नन्हा मुसाफिर कई बार ठोकरें खा कर गिरा, उठा और फिर चल पड़ा.

चलतेचलते अचानक उसे ‘चऊंचऊं, चऊंचऊं’ का स्वर सुनाई दिया. रुक कर उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई परंतु कुछ दिखाई नहीं दिया. जैसे ही वह आगे बढ़ने लगा, स्वर फिर सुनाई दिया.

इस बार उस की नजर एक जगह पर जा कर टिक गई. उस ने देखा कि नाली के किनारे एक छोटे पिल्ले की टांग एक छोटे से पत्थर के नीचे दबी हुई है. शायद इसी कारण वह पीड़ा से कराह रहा था.

नन्हा धीरेधीरे उस के पास गया. उस ने पत्थर को अपने नन्हे हाथों से दूसरी तरफ सरका दिया, पिल्ले की टांग छूट गई. वह हर्षित हो कर पूंछ हिलाता हुआ नन्हे के पांव चाटने लगा. शायद वह उस का शुक्रिया अदा कर रहा था.

‘‘शैतान पप्पी, पीछे हट,’’ नन्हे ने धीरे से कहा. उस के नंगे पांवों में गुदगुदी होने लगी. वह धीरे से हंसा. हंसना उसे भला लगा. वह और जोर से हंसने लगा. पप्पी भी सिर हिलाता हुआ नाचने लगा. जोर से हिलती हुई उस की दुम उस के खुश होने का इजहार कर रही थी. 2 अजनबियों में पलभर में मित्रता हो गई.

नन्हे को एक साथी मिल गया. अब वह दुनिया के मेले में अकेला नहीं था. वह फुटपाथ पर आगे बढ़ने लगा. पप्पी भी दुम हिलाता हुआ उस के पीछेपीछे चलने लगा.

सड़क की दूसरी तरफ फुटपाथ पर कोई पुरुष गुब्बारे बेच रहा था. नन्हे ने जब लाल, पीले, नीले गुब्बारे देखे तो उस का मन उन्हें पाने के लिए ललचा उठा. पप्पी कभी गुब्बारों को देखता, कभी नन्हे को, तो कभी आतेजाते वाहनों को. सड़क पार करने में उसे खतरा महसूस हुआ.

नन्हा अभी तक गुब्बारों को ललचाई निगाहों से देख रहा था. जैसे ही वह गुब्बारे को पाने के लिए सड़क पार करने लगा, उसी वक्त पप्पी उस के सामने आ गया और उस के पांवों पर जीभ से गुदगुदी करने लगा.

उस का ध्यान गुब्बारों से हट गया. वह जोरजोर से हंसने लगा. अचानक पप्पी फुटपाथ पर भागने लगा. नन्हा भी उस के पीछे भागा. पप्पी नन्हे को पीछे भगाते हुए उस गुब्बारे वाले से काफी दूर ले गया. फिर दोनों बैठ कर हांफने लगे. नन्हा अब गुब्बारों को भूल गया था इसलिए पप्पी भी निश्ंिचत था.

‘‘लव का पंगा:पुरानी कहानी ,मगर ताजगी के अहसास के साथ..’’

समीक्षाः वेब सीरीज
रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माता: अब्यूज ओरीजीनल
कहानी व निर्देशन: नीतेष सिंह
कैमरामैन: अनूप सिंह
कलाकारः अंश बागरी, आशा नेगी,मीनू पांचाल, भावशील साहनी व अन्य.
अवधि:15 से 22 मिनट के छह एपीसोड,कुल अवधि एक घ्ंाटा 44 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः एम एक्स प्लेअर

दो विपरीत परिवेश में पले बढ़े लड़के व लड़की जब मनाली जैसी खूबसूरत वादियों में मिलते हैं,तो इनके बीच किस तरह विचारों का आदान प्रदान होता है और कैसे दोनों की सोच एक दूसरे के प्रति बदलती है और एक प्रेम कहानी पल्लवित होती है.इस खूबसूरत प्रेम कहानी को वेब सीरीज‘‘लव पंगा’में लेकर आए हैं नीतेश सिंह.इसे 15 अक्टूबर से ‘‘एम एक्स प्लेअर’पर मुफ्त में देखा जा सकता है.

कहानीः
नेहा शर्मा (आशा नेगी) एक परिष्कृत,उच्च शिक्षित दिल्ली की लड़की है,जो मनाली में एक शांत,शांतिपूर्ण छुट्टी बिताना चाहती है.तो वहीं दूसरी तरफ सुमित टोकस हरियाणा का एक जोरदार छोरा है,जो जिंदगी जीने का इरादा रखकर मनाली छुट्टी मनाना चाहता है.यह विपरीत सोच,परवरिश,स्वभाव तथा असंगत युगल एक दूसरे के साथ टकराते हैं. दोनों मनाली की खूबसूरत वादियों में छुट्टी का आनंद लेने के लिए निकले थे.
पर रास्ते में नेहा की टैक्सी ने घ्ुाटने टेक दिए,तो सुमित टोकस ने उन्हे अपनी टैक्सी में जगह देकर मनाली साथ ले गया.वहां दोनो एक ही होटल में रूकते हैं.सुमित और नेहा का वर्तमान समय में जो व्यवहार है,जो एटीट्यूड है,उसके पीछे दोनों के साथ अतीत मंे घटी एक घटना है.उधर नेहा शर्मा की दोस्त राधिका(मीनू पांचाल) फोन करके नेहा को बताती है कि उसे आज नया प्रेमी सैंडी(भावशील साहनी)मिला,जिसके साथ उसने सेक्स संबंध भी बना लिए.जब नेहा ,राधिका को बताती है कि उसे दिल्ली का ही एक लड़का सुमिता मिला है,तो राधिका उसे सलाह देेती है कि वह सुमित के साथ प्यार का चक्कर चलाए.उधर सैंडी,सुमित का दोस्त है.
सैंडी,सुमित को बताता है कि राधिका उसकी पचासवीं गर्लफें्रड है,जिसके साथ उसने सेक्स ंभी कर लिया.सैंडी,सुमित को ऐसा ही कुछ नेहा के साथ करने की सलाह देता है.दोनों के बीच नोकझोक होती है.फिर उनके बीच दोस्ती हो जाती है.अब सुमित ,सैंडी की सलाह पर अमल करना चाहता है, कुछ हद तक उसे नेहा से भी वैसा ही इशारा मिलता है,मगर ऐन वक्त पर सुमित,नेहा को छोड़कर गायब हो जाता है,मगर कहानी यहीं खत्म नही होती.चार माह बाद कोरोना महामारी के वक्त में ही प्यार कैसे प्रस्फुटित होता है,यह देखने लायक है.
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लेखन व निर्देशनः
कहानी के स्तर पर देखें,तो इस तरह की कहानी को हजारों फिल्मांे में पेश किया जा चुका है.सुमित को लगता है कि वह नेहा की मदद कर रहा है,पर नेहा को यह उसकी चीपपना लगता है.सुमित को लगता है कि नेहा में एटीट्यूड है,पर किस तरह से दोनो का एक दूसरे के प्रति यह नजरिया बदलता है.इसे निर्देशक कुछ हद तक सही ढंग से पेश करने में सफल रहे हैं.फिर भी पटकथा काफी हद तक यथार्थ के करीब होने का अहसास दिलाता है.कुछ दृश्य अविश्वसनीय लगते हैं.कुछ दृश्यांे को बेवजह काफी लंबा खींचा गया है.‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर प्रदर्शित करने की सोच व युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के मकसद से बेवजह कुछ द्विअर्थी व अश्लील संवाद जोड़े गए हैं,अन्यथा यह पूरे परिवार के साथ बैठकर देखी जाने वाली वेब सीरीज बन सकती थी.
कैमरामैन अनूप सिंह का कैमरावर्क कमाल का है.दर्शक को अहसास होता है कि वह मनाली पहुॅच गया है.

अभिनयः
अंश बागरी का उच्चारण दोष मजा किरकिरा करता है.अन्यथा अंश बागरी ने बेहतरीन अभिनय किया है.नेहा के किरदार को आशा नेगी ने पूरी तरह से आत्मसात किया है.अंश बागरी व आष्श नेगी के बीच की केमिस्ट्ी बहुत अच्छी है.मगर मीनू पांचाल और भावशील साहनी निराश करते हैं.
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