बलात्कार निसंदेह महिलाओं के प्रति एक घृणित अपराध है लेकिन आजकल ऐसे बलात्कारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन में सहमति से संबंध बनते हैं और अदालतें बिना वास्तविकता पर विचार किए आरोपी को जेल भेज देती हैं. यह कैसी ज्यादती है, इस पर पढि़ए यह खास रिपोर्ट.
बीती 5 सितंबर को बलात्कार के एक मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने जो अजीबोगरीब फैसला सुनाया है वह हैरानी के साथ चिंता पैदा करने वाला भी इस लिहाज से है कि इसे न्याय कहा जाए या अन्याय माना जाए. बलात्कार की परिभाषा और बलात्कार की सजा को ही कठघरे में खड़ा करते इस और देशभर की अदालतों में चल रहे ऐसे लाखों मामलों को समझें तो लगता है कि इन में सिरे से बदलाव की जरूरत है और ऐसा कहने की पर्याप्त वजहें व आधार भी हैं.
चर्चित मामला इंदौर के नजदीक देवास जिले का है जिस में आरोपी और पीडि़ता साल 2017 में संपर्क में आए और लिवइन में रहने लगे. आरोपी ने पीडि़ता से शादी का वादा किया जिस के चलते पीडि़ता, जो शादीशुदा थी, ने अपने पति से जनवरी 2020 में तलाक ले लिया. तलाक के बाद रास्ता साफ हो जाने से उस ने आरोपी को शादी का उस का वादा याद दिलाया, तो वह मुकर गया. पीडि़ता ने सीधे थाने का रुख किया और बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद की कहानी भी ऐसे लाखों मुकदमों की तरह जानीपहचानी है कि आरोपी को पुलिस ने जेल भेज दिया. उस ने जिला अदालत में जमानत की अर्जी दी जोकि उम्मीद के मुताबिक खारिज हो गई.
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इस पर आरोपी ने इंदौर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब अदालत ने अपने अनूठे फैसले में कहा कि आरोपी को इस शर्त पर अस्थायी जमानत दी जाती है कि वह पीडि़ता से शादी कर ले और 2 महीने के भीतर इस के दस्तावेजी सुबूत भी पेश करे तो उस की जमानत स्थायी हो जाएगी. इस बाबत तुरंत ही आरोपी और पीडि़ता ने अपनीअपनी रजामंदी भी दे दी.
इस स्वभाव के दूसरे कुछ मामलों पर नजर डालने से पहले इस फैसले को समझें तो पहली नजर में यह बड़ा भला फैसला प्रतीत होता है जिस का कानून या उस की धाराओं से दूरदूर तक कोई लेनादेना नहीं क्योंकि बिना ट्रायल के ही आरोपी को आरोपी मान लिया गया है. सहज ज्ञान आरोपी को भी मिल गया है कि सालोंसाल जेल में सड़ने और अदालतों के चक्कर काटने से तो बेहतर है कि वादा किया हो या न किया हो, पीडि़ता से शादी कर जंजाल से छुटकारा पा लिया जाए, बाद में जो होगा, देखा जाएगा.
एक बात यह भी इस मामले से साबित होती है कि अगर अदालतें बतौर सजा विकल्प कथित आरोपी के सामने रखेंगी तो वे आसान रास्ता ही चुनेंगे जैसा कि बहुचर्चित अवमानना के मामले में देश के मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने एक रुपए का जुर्माना भरने का चुना और जता दिया कि असमंजस में वे नहीं, बल्कि सब से बड़ी अदालत थी जो मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए की तर्ज पर कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी.
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और भी हैं मामले
बलात्कार के मामलों में अब आम लोगों की राय यह बनती जा रही है कि वे अकसर होते नहीं हैं बल्कि अदालतें उन्हें हुआ मान लेती हैं. खासतौर से उन मामलों में जिन में परी और राक्षसों के किस्सेकहानियों की तरह यह बात आ जाती है कि आरोपी ने शादी का झांसा या प्रलोभन देते बेचारी महिला यानी पीडि़ता का महीनों या सालों शारीरिक शोषण यानी बलात्कार किया लेकिन पीडि़ता को इस बलात्कार का एहसास तभी हुआ जब आरोपी ने शादी से इनकार कर दिया. इस के पहले उस की समझ कहां घास चरने चली गई थी और उस ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की. अच्छी बात यह है कि इस पर न केवल आम लोग बल्कि अदालतें भी कभीकभार सोचने लगी हैं. इस के पहले ऐसे कुछ मामलों पर गौर करने से समझ आता है क्यों लोगों की धारणा बलात्कार के बारे में बदल रही है और इस का जिम्मेदार कौन है.
12 सितंबर को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से गुरुग्राम में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने आई 28 वर्षीय युवती की दोस्ती फेसबुक के जरिए फरवरी में लाजपतनगर में रहने वाले युवक अनमोल अलरिजा से हुई. यह युवती गुरुग्राम के डीएलएफ फेज-3 में किराए के मकान में रहती है. जल्द ही दोनों मिलनेजुलने लगे और प्यार भी हो गया और फिर शारीरिक संबंध भी दोनों के बीच बने.
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12 सितंबर को डीएलएफ फेज-3 थाने में पीडि़ता ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि आरोपी ने शादी का झांसा दे कर जबरन शारीरिक संबंध बनाए थे. अगस्त के महीने में उस ने अनमोल से शादी करने को कहा तो वह मुकर गया. शिकायत पर कार्रवाई करते पुलिस ने आरोपी को पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह फरार हो गया. जाहिर है गिरफ्तारी के बाद उसे लंबे वक्त तक जेल में रहना पड़ेगा क्योंकि बलात्कार के मामलों में जमानत आसानी से नहीं होती.
छत्तीसगढ़ के सिहावा नगरी की रहने वाली एक आदिवासी युवती ने थाना सिहावा में 21 अगस्त को रिपोर्ट दर्ज कराई कि रोशन लाल साहू नाम के युवक से उस की पहचान साल 2018 में हुई थी. रोशन लाल ने उसे शादी का झांसा दे कर शारीरिक संबंध बनाए लेकिन शादी की नहीं. इतना ही नहीं, वह युवती को बदनाम करने की धमकी देते उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा. रिपोर्ट के बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. अब जमानत कब होगी, यह जेल की अंधेरी कोठरी में रह रहे रोशन लाल को नहीं पता.
रोशन लाल की तरह मोहम्मद असलम भी दुमका की सैंट्रल जेल में बंद है. झारखंड के रानेश्वर की एक महिला, जो 2 बच्चों की मां है, ने उस पर बलात्कार का आरोप लगाया है. बकौल पीडि़ता, असलम ने उस से शादी का वादा किया था लेकिन पूरा नहीं किया तो उस ने 11 सितंबर को दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखा दी. पुलिस ने असलम को बलात्कार के आरोप में जेल भेज दिया.
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भोपाल के जहांगीराबाद इलाके में रहने वाली 22 वर्षीया युवती ने अनूपपुर में पदस्थ एक पुलिसकर्मी हरेंद्र गुर्जर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई कि वह लंबे समय से उस का शारीरिक शोषण कर रहा था. लौकडाउन के दौरान आरोपी उस के घर आया और ज्यादती की और फिर शादी का वादा भी किया, लेकिन शादी की नहीं और गायब हो गया. अब रिपोर्ट के बाद पुलिस उसे ढूंढ़ रही है.
भोपाल के ही शाहपुरा थाने में 24 सितंबर को निजी संस्थान में कार्यरत एक 25 वर्षीय युवती ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस की पहचान 6 साल पहले मोबाइल की दुकान पर काम करने वाले महेंद्र कुमार से हुई थी. जल्द ही दोनों में प्यार भी हो गया. साल 2017 में पहली बार उन के शारीरिक संबंध महेंद्र के घर पर बने. फिर अकसर वे सैक्स करने लगे. जब पीडि़ता ने ही शादी के लिए कहा तो आरोपी ने यह कहते अपनी मजबूरी जता दी कि उस पर कोई 2 लाख रुपए का कर्ज है. इस पर पीडि़ता ने उसे 1 लाख 11 हजार रुपए दे दिए. लेकिन फिर भी शादी के लिए महेंद्र तैयार नहीं हुआ, तो उस ने शारीरिक शोषण की रिपोर्ट लिखा दी. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
जेलों में सड़ने को मजबूर
अनमोल, रोशन लाल साहू, असलम, महेंद्र और हरेंद्र जैसे लाखों लोगों को कथित पीडि़ताओं के कहनेभर से अपराधी मान लेना उन के साथ ज्यादती मानी जाएगी. समाज का नजरिया कुछ भी रहे लेकिन अदालतों का नजरिया बलात्कार के आरोपियों के प्रति सरासर पूर्वाग्रही और भेदभावभरा नजर आता है जो आरोप के सिद्ध होने से कोई सरोकार नहीं रखतीं और आरोपी को सीधे जेल भेज देती हैं. एक अहम सवाल और मुद्दा जमानत का भी है जोकि आमतौर पर आसानी से नहीं दी जाती.
कितने मामलों में बलात्कार साबित हो पाता है, इस अहम सवाल को एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों से देखें तो देश में बलात्कार के महज 32.2 फीसदी मामलों में ही आरोप साबित हो पाता है. साल 2017 में बलात्कार के कुल मामलों की संख्या 1,46,201 थी, लेकिन उन में सजा केवल 5,822 को ही हुई थी. यानी, बाकी निर्दोष थे. एक और एजेंसी के मुताबिक, ऐसे मामलों, जिन में प्यार और शादी का झांसा दे कर बलात्कार होना बताया जाता है, की संख्या कुल बलात्कारों का लगभग 60 फीसदी होती है. इस से स्पष्ट हो जाता है कि इन मामलों में पुरुष व महिला ने लंबे समय तक अपनी मरजी से सैक्स किया, लेकिन पुरुष ने शादी नहीं की, तो उसे बलात्कार के आरोप में फंसा दिया गया. अपराध साबित हो न हो लेकिन उन्हें जमानत से वंचित रखा जाना अदालतों की तानाशाही या भर्राशाही, कुछ भी कह लें, का नतीजा ही माना जाएगा. इस गैरजमानती अपराध में जमानत की प्रक्रिया के दौरान अदालतें यह नहीं देखतीं कि-
क्या वाकई पुरुष ने शादी का वादा किया था?
क्या कोई भी महिला केवल इसलिए पुरुष को अपना शरीर सौंप देती है या इस आधार पर सौंप देना चाहिए कि पुरुष उस से शादी का वादा कर रहा है?
जब कुछ दिन, महीने या साल तक पीडि़ता और आरोपी साथ रहे या एकदूसरे से परिचित थे या फिर प्यार करते थे तो यह, यानी सहवास, बलात्कार किस आधार पर हो गया और इसे लंबे समय तक क्यों चलने दिया गया?
पीडि़ता ने बलात्कार महसूस होना और उस की रिपोर्ट लिखाना उसी वक्त मुनासिब या जरूरी क्यों समझा जब आरोपी शादी के अपने कथित वादे से मुकर गया और क्या एफआईआर में इस के पुख्ता सुबूत हैं?
और अहम बात, क्या यह जरूरी है कि कोई प्रेमी या पुरुष शादी का अपना वादा निभाए ही, क्या यह उस की कानूनी बाध्यता है?
यहां गौरतलब है कि किसी की भी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियां बदलती रहती हैं जिन के मुताबिक ही लोग जिंदगी के अहम फैसले लेते हैं, ऐसे में फिर उन्हें तुरंत जमानत की सहूलियत क्यों नहीं. रही बात दोष सिद्धि की, तो आखिरी तौर पर यह अदालत ही पेश किए गए सुबूतों की बिना पर तय करती है और अकसर अपराध साबित नहीं होता. ऊपर दिए आंकड़ों से यह साफ भी हो जाता है.
यह बलात्कार ही नहीं
आंकड़ों से हट कर बलात्कार को परिभाषित करने वाली आईपीसी की धारा 375 को देखें तो उस में कहीं भी यह किसी भी तरह स्पष्ट नहीं है कि अगर 2 वयस्क अपनी सहमति से सहवास करते हैं तो यह बलात्कार है. इस धारा के तहत परिभाषा यह है कि अगर कोई पुरुष किसी महिला से उस की इच्छा के विरुद्ध, उस की सहमति के बिना, उसे डराधमका कर, दिमागीतौर पर कमजोर या पागल महिला को धोखा दे कर या उस महिला के शराब के नशे या नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं होने पर संभोग करता है तो उसे बलात्कार कहते हैं.
समयसमय पर इस में जोड़ी गईं उपधाराओं में भी इस तरह का कोई उल्लेख नहीं है कि शादी का झांसा, वादा या प्रलोभन दे कर सहवास करना बलात्कार है. चूंकि अब इस तरह के बलात्कार तेजी से चलन में आ रहे हैं, इसलिए कानूनविद हर कभी इस पर बहस करते नजर आते हैं. जो रिपोर्टें ऐसे मामलों की दर्ज होती हैं, उन में पीडि़ता यह जरूर लिखाती है कि न केवल शादी का झांसा दिया गया बल्कि उसे डरायाधमकाया भी गया. यहां अदालत शादी के वादे से मुकर जाने को ही बलात्कार और धोखा दिया मान कर चलती है.
यह एक गंभीर बात है जिस पर लंबी और निष्पक्ष चर्चा होनी जरूरी है जिस से बलात्कार के झूठे मामले दर्ज न हों और बेगुनाहों को बेवजह पहले जेल की हवा न खानी पड़े और फिर अदालतों के चक्कर न काटना पड़ें.
उम्मीद बंधाते फैसले
कहने का मतलब यह नहीं कि बलात्कार होते ही नहीं, बल्कि यहां मकसद उन बलात्कारों की चर्चा करना है जो दरअसल बलात्कार होते ही नहीं लेकिन अदालतें उन्हें बलात्कार मान लेती हैं और जमानत के बारे में सोचती भी नहीं. लेकिन देशभर की अदालतों के कुछ फैसले बलात्कार के ऐसे मामलों पर कुछ और ही कहते हैं जिन्हें बहुत बारीकी से समझा जाना जरूरी है जिन से यह तो साबित होता ही है कि आपसी सहमति से बने संबंध बलात्कार के दायरे में नहीं आते.
एक मामले में महिला ने परंपरागत आरोप यही लगाया कि उस का प्रेमी लंबे समय तक उसे शादी का झांसा दे कर बलात्कार करता रहा लेकिन शादी से मुकर गया और दूसरी महिला से शादी कर ली. बलात्कार की धारा 376 के अलावा उस ने प्रेमी पर धोखाधड़ी की धारा 420 के तहत मुकदमा दायर किया.
बंबई हाईकोर्ट ने आरोपी को यह कहते जमानत दी कि विवाह से पहले दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाए थे इसलिए अगर विवाह नहीं भी हुआ तो इस के लिए किसी भी रूप में पुरुष अकेला दोषी नहीं कहा जा सकता. महिला को इस बात की जानकारी थी कि वह अविवाहित है और भारतीय समाज में विवाह से पहले शारीरिक संबंध बनाना अनैतिक है.
साल 2016 में एक ऐसे ही अहम मामले, जिस में महिला ने मुंबई के गोरेगांव पुलिस स्टेशन में अपने प्रेमी पर शादी का झांसा और फिर बलात्कार करने की रिपोर्ट लिखाई थी, में जस्टिस मृदुला भटकर ने आरोपी को जमानत देते कहा था कि यह बलात्कार नहीं है. लड़की पढ़ीलिखी है और शारीरिक संबंध के लिए मना भी कर सकती थी. इस तरह के बलात्कारों के बारे में टिप्पणी करते उन्होंने यह भी कहा था कि अगर किसी मामले में धोखे से किसी महिला की सैक्स के लिए सहमति ली जाए तो उसे झांसा दे कर बलात्कार माना जाएगा यानी पहले से ही शादीशुदा पुरुष लड़की को अपनी वैवाहिक स्थिति न बताए और शादी का झांसा दे कर सैक्स करे तो इसे बलात्कार माना जाएगा, साथ ही, कोई महिला अनपढ़ है और उसे शादी का झांसा दे कर उस के साथ सैक्स संबंध बनाए जाएं तो यह भी बलात्कार होगा. लेकिन अगर लड़की पढ़ीलिखी है और किसी लड़के से उसे प्यार होता है और इसी प्यार में वे दोनों संबंध बनाते हैं तो इसे एकदूसरे की सहमति माना जाएगा.
शहरीकरण के इस दौर में यह फैसला बेहद प्रासंगिक है क्योंकि देशभर के कोई 40 फीसदी युवा, जिन में लड़कियों की तादाद भी लड़कों के बराबर है, अपना घर और शहर छोड़ बड़े शहरों में नौकरी कर रहे हैं जिस के दौरान उन में प्यार और शारीरिक संबंध बन जाना निहायत ही स्वाभाविक व आम बात है क्योंकि उन पर कोई पारिवारिक या सामाजिक नियंत्रण नहीं रह जाता. कई तो खुलेआम लिवइन में रहते हैं. ऐसे में सहमति से बने संबंधों को बलात्कार ठहराने की कोशिश एक मूर्खतापूर्ण बात है.
मुंबई की एक सौफ्टवेयर कंपनी में नौकरी कर रही भोपाल की अनन्या कहती हैं, ‘‘यह यानी विवाहपूर्व सहमति से बने संबंध कोई हैरानी की बात नहीं है, न ही इस में अनैतिक कुछ है. यह आज के युवा की जरूरत है और मरजी भी. इसे बलात्कार कैसे कह सकते हैं.
पिछली 2 मई को बेंगलुरु की 27 वर्षीया महिला ने अपने 42 वर्षीय सहकर्मी के खिलाफ आर आर नगर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस ने शादी का झूठा वादा कर बलात्कार किया. पुलिस ने आईपीसी की यौन उत्पीड़न वाली धारा 376, धोखाधड़ी की धारा 420, धमकी देने की धारा 506 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 बी के तहत युवक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. आरोपी ने सीआरपीसी धारा 438 के अंतर्गत अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद अपने फैसले में युवती के चरित्र पर ही उंगली सी उठा दी.
24 जून को अदालत ने अपने फैसले, जिसे ऐतिहासिक ही कहा जाएगा, में कहा – शिकायतकर्ता ने यह नहीं बताया कि वह रात के 11 बजे उन के दफ्तर क्यों गई थी. उन्होंने आरोपी याचिकाकर्ता के साथ शराब पीने पर कोई एतराज नहीं जताया और उन्हें सुबह तक अपने साथ रहने दिया.
शिकायतकर्ता का यह कहना कि अपराध होने के बाद वह थकी हुई थी और सो गई, यह भारतीय महिला के लिए अनुपयुक्त है. शिकायतकर्ता द्वारा इस बारे में कुछ नहीं बताया गया गया है कि उन्होंने अदालत से शुरुआत में संपर्क क्यों नहीं किया जब आरोपी ने उन पर यौन संबंध के लिए दबाव बनाया था. अदालत के पास जमानत नामंजूर करने की कोई वजह नहीं क्योंकि महिला ने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि जब वे आरोपी के साथ खाना खाने गईं, एल्कोहल का सेवन किया और उन की गाड़ी में आ कर बैठा तब उस के व्यवहार के बारे में उन्होंने पुलिस या अन्य व्यक्ति को आगाह क्यों नहीं किया.
यह कैसा बलात्कार
एक खास किस्म के बुद्धिजीवियों के वर्ग में इस फैसले की आलोचना हुई थी, लेकिन हकीकत में यह फैसला लाखों ऐसे मुकदमों की बखिया उधेड़ता हुआ था जिन में महिला के पास अपने साथ हो रही ज्यादती या बलात्कार की बाबत पुलिस या कहीं और शिकायत करते वक्त होता है लेकिन वे ऐसा नहीं करतीं. इस पर जबलपुर हाईकोर्ट के युवा अधिवक्ता सौरभ भूषण कहते हैं, ‘‘ऐसे लगभग सभी मामले सहमति के होते हैं. लेकिन, जब वजह कोई भी हो, बात या संबंध बिगड़ते हैं तो महिला मुंह उठा कर नजदीकी थाने जा पहुंचती है और पुलिस पुरुष को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस देती है, जहां उसे जमानत, जिस की कोई तयशुदा मियाद नहीं होती, मिलने तक उसे रजामंदी के गुनाह की सजा भुगतनी पड़ती है. अदालतें बहुतकुछ जानतेसमझते हुए भी आरोपी को जमानत नहीं देतीं.’’
बकौल सौरभ, ‘‘क्या इसे आप या कोई बलात्कार कहेगा जिस में महिला मरजी से पुरुष के साथ लगातार सहवास करती है, घूमतीफिरती है और शादी के लिए कहती है या दबाव बनाती है जिस पर पुरुष मना करता है तो यह बलात्कार हो जाता है. मुमकिन है, पुरुष ने शादी की बात कही हो, लेकिन इस का यह मतलब कैसे निकाल लिया जाता है कि उस ने बलात्कार ही किया है. यानी, वास्तविक बलात्कार के लिए कुछ आदर्श परिस्थितियों का होना जरूरी लगता है जो ठीक वैसी ही हैं जो हिंदी फिल्मों में दिखाई जाती हैं या धारा 375 में वर्णित हैं.’’
सौरभ बताते हैं, ‘‘अवास्तविक बलात्कारों में पुरुष कुछ समय के लिए जेल की सजा भुगतता है, वहीं, ऐसे मामलों से महिलाओं की छवि बिगड़ती है क्योंकि वे अदालत में अकसर गलत साबित होती हैं और आरोपी बाइज्जत बरी हो जाता है.
जमानत का प्रावधान सरल हो
बलात्कारों की संख्या यानी आंकड़ा बढ़ रहा है, तो इस की एक बड़ी वजह फर्जी बलात्कार हैं जिन में महिला की एक मंशा विवाद हो जाने पर पुरुष को सबक सिखाने की भी होती है क्योंकि वह जानती है कि, कुछ दिनों के लिए ही सही, पुरुष को जेल तो जाना ही पड़ेगा. लेकिन जमानत की प्रक्रिया सरल की जाए तो ऐसे मामलों पर लगाम लग सकती है. अगर आरोपी को बजाय जेल में रखने के सीधे अदालत में अपनी बात कहने का मौका दिया जाए तो हालात उलट होंगे क्योंकि फिर महिला थाने का रुख नहीं करेगी. इस के लिए जरूरी है कि आरोपी को मुचलके या खुद की गारंटी पर थाने से ही छोड़ने के प्रावधान रखे जाएं.
जमानत उन आरोपियों को ही सरलता से दी जाए जो लंबे समय से पीडि़ता से परिचित हैं या उस के साथ लिवइन में रह रहे हैं या फिर दोनों में प्यार है. कई बार मरजी से बने सैक्स संबंधों को बलात्कार न मानने के लिए यह भी जरूरी है कि बात पुरुष की भी सुनी जाए लेकिन इस शर्त या जिद पर नहीं कि एक बार तो उसे जेल जाना ही पड़ेगा. जिस तेजी से सहमति वाले बलात्कारों की तादाद बढ़ रही है उसे देखते जरूरी है कि अगंभीर मामलों में बलात्कार के आरोपियों को अग्रिम जमानत का प्रावधान किया जाए.