सीमा का जब शहर के नामचीन स्कूल में अध्यापिका के रूप में नियुक्ति हुई तो वह बेहद खुश थी. साफसुथरा स्कूल, करीने से सजा हुआ स्टाफरूम और चमचमाती कक्षाएं. पर सीमा की यह खुशी जल्द ही काफूर हो गई जब उस ने स्कूल के टौयलेट में कदम रखा.
टौयलेट में लगातार पानी रिस रहा था. चारों तरफ जालों का अंबार लगा हुआ था. गंदगी देख कर सीमा को उबकाई आने लगी और भाग कर वह बाहर निकल गई.
बाहर स्टाफरूम में बैठी इशिता और ज्योति खिलखिलाते हुए बोलीं,"लगता है आज सीमा मैडम ने टौयलेट के दर्शन कर ही लिए..."
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सीमा ने प्रश्नसूचक नजरों से उन्हें देखते हुए कहा,"आपलोगों ने इस बारे में आज तक कुछ नहीं किया?"
ज्योति कंधे उचकाते हुए बोली,"यह तो स्कूल के सफाईकर्मियों की जिम्मेदारी है."
सीमा अभी क्लास में पहुंची ही थी कि छात्रा अंशिका झिझकते हुए आई और बोली,"मैडम, मुझे घर जाना होगा."
सीमा प्यार से बोली,"अंशिका, इस के लिए घर जाने की क्या जरूरत है, मैडिकल रूम से पैड ले लो."
अंशिका बोली,"मैडम, यहां के टौयलेट में जाने का मतलब है कि मैं 10 और प्रकार के इन्फैक्शन को न्यौता दे दूं."
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सीमा अपने साथ हुए अनुभव को भूली नहीं थी. इसलिए वह अंशिका की बात से सहमत थी.
खुद की पहल और फिर...
घर आ कर सीमा इसी बात पर विचार करती रही और उस ने निर्णय ले लिया कि वह स्वयं ही पहल कर के इस
समस्या का समाधान निकाल लेगी.
अगले दिन सब से पहले जा कर सीमा ने अपनी कक्षा की छात्रों से कहा कि वे स्कूल टौयलेट में होने वाली समस्यओं और उस के समाधान के बारे में लिखें. यह छात्रों के लिए एक नए तरह का अनुभव था कि उन की कक्षा अध्यापिका ने उन से सलाह मांगी थी.
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